Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 11:52 AM,
#11
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग 9- चौधराइन के आम चूसने के या खाने के


मदन का दिल किया कि, ब्लाउज में कसे दोनो आमो को अपनी मुठ्ठी में भर कर पूछे “इन्हें चाची।” पर टार्च चौधराइन के हाथ में पकड़ा, नीचे गिरे आमो को उठाकर अपनी मुठ्ठी में भर दबाता हुआ, उसकी पत्थर जैसी सख्त नुकिली चूचियों को घूरता हुआ बोला,
“पक गये है…चूस चूस…खाने में…।"

माया देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली,
“हां,,,,चूस के खाने लायक,,,इसस्स्…ज्यादा जोर से मत दबा…। सारा रस निकल जायेगा…आराम से खाना ।"
चलते-चलते माया देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टार्च की रोशनी को फोकस किया और बोली,
“इधर देख मदन…ये तो एकदम पका आम है…। इसको भी तोड़…थोड़ा ऊपर है…तु लम्बा है…जरा इस बार तु चढ़ के…”

मदन भी उधर देखते हुए बोला,
“हां,,, है तो एकदम पका हुआ, और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…अभी तो चढ़ने में एक्ष्पर्ट बता रही थी।”

“ना रे, गिरते-गिरते बची हुं…फिर तु ठीक से टार्च भी नही दिखाता…कहती हुं हाथ पर तो दिखाता है, पैर पर.”
“हाथ हिल जाता है…।”
धीरे से बोली मगर मदन ने सुन लिया,
“तेरा तो सब कुछ हिलता है…तु चढ़ना…ऊपर…”
मदन ने लुंगी को दोहरा करके लपेटा लिया। इस से लुंगी उसके घुटनो के ऊपर तक आ गई। लण्ड अभी भी खड़ा था, मगर अन्धेरा होने के कारण पता नही चल रहा था। माया देवी उसके पैरो पर टार्च दिखा रही थी।

थोड़ी देर में ही मदन काफी उंचा चढ़ गया था। अभी भी वो उस जगह से दूर था जहां आम लटका हुआ था। दो डालो के ऊपर पैर रख जब मदन खड़ा हुआ, तब माया देवी ने नीचे से टार्च की रोशनी सीधी उसकी लुंगी के बीच डाली। चौड़ी-चकली जांघो के बीच मदन का ढाई इंच मोटा लण्ड आराम से दिखने लगा। लण्ड अभी पूरा खड़ा नही था. पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लण्ड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था। माया देवी का हाथ अपने आप अपनी जांघो के बीच चला गया। नीचे से लण्ड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी। जांघो को भींचती, होठों पर जीभ फेरती, अपनी नजरो को जमाये भुखी आंखो से देख रही थी।
“अरे,,,, आप रोशनी तो दिखाओ, हाथों पर…।”

“आ,,,हां,,हां,,,,,,तु चढ़ रहा था…। इसलिये पैरों पर दिखा…।”,
कहते हुए उसके हाथों पर दिखाने लगी। मदन ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया।

“लो पकड़ो…।"

माया देवी ने जल्दी से टार्च को अपनी कांखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिये. मदन ने आम फेंका और माया देवी ने उसको अपनी चूचियों के ऊपर, उनकी सहायता लेते हुए केच कर लिया। फिर मदन नीचे उतर गया और माया देवी ने उसके नीचे उतरते समय भी अपनी आंखो की उसके लटकते लण्ड और अंडकोशो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की। मदन के लण्ड ने चूत को पनिया दिया।

मदन के नीचे उतरते ही बारिश की मोटी बुंदे गिरने लगी। मदन हडबड़ाता हुआ बोला,
“चलो जल्दी,,,,,भीग जायेंगे........”
दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पडे। अन्दर पहुंचते पहुंचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये। माया देवी का ब्लाउज और मदन की बनियान दोनो पतले कपड़ों के थे. भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे, जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो। बाल भी गीले हो चुके थे।

मदन ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर चौधराइन की तरफ देखा की वो अपने बालों को तौलिये से रगड़ रही थी। भीगे ब्लाउज में कसी चूचियाँ अब और जालिम लग रही थी। चूचियों की चोंच स्पष्ट दिख रही थी। ऊपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चूचियों के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी। तौलिये से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसके बड़ी बड़ी चूचियाँ लक्का कबूतरों सी फ़ड़फ़ड़ा रहीं थीं। उसकी आंखे हिलती चूचियों ओर उनकी घाटी से हटाये नही हट रही थी। तभी माया देवी धीरे से बोली,
“तौलिया ले…और जा कर मुंह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…।"

मदन चुप-चाप बाथरुम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था। कमोड पर खड़ा हो चर-चर मुतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया, तो देखा की माया देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ बैठी थी, और एक पैर का पायल निकाल कर देख रही थीं।
मदन ने हाथ पैर पोंछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुछा…,
“क्या हुआ…?”

“पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…!?”

“लाओ, मैं देखता हुं…”,
कहते हुए मदन ने पायल अपने हाथ में ले लिया।

“इसका तो हुक सीधा हो गया है, लगता है टूट…”
कहते हुए मदन हुक मोड़ के पायल को माया देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा, पर वो फिट नही हो पा रहा था। माया देवी पेटिकोट को घुटनों तक चढ़ाये एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मदन की तरफ आगे बढ़ाये हुए बैठी थी।

मदन ने पायल पहनाने के बहाने माया देवी के कोमल पैरों को एक-दो बार हल्के से सहला दिया। माया देवी उसके हाथों को पैरों पर से हटा ते हुए, रुआंसी होकर बोली,
“रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…”

“हां,,,,शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना……आप भी इतनी मामुली सी बात… कौन सी आप को पैसे की कमी है ।”

माया देवी मुंह बनाती हुई बोली,

“बात पैसे की नहीं शहर में मिलेगी कौन ला के देगा पायल,,,? …तेरे चाचा तो न जाने किस दुनिया में रहते हैं उनसे तो आशा है नही, और …तु तो,,,, !!! ?”,
कहते हुए एक ठंडी सांस भरी।

माया देवी की बात सुन एक बार मदन के चेहरे का रंग उड़ गया। फिर हकलाते हुए बोला,
“क्यों ऐसा क्या चौधराइन चाची,,,,?....मैं शहर चला जाऊँगा… वैसे भी इस शनिवार को शहर से…”

“रहने दे…तू कहाँ काम का हरजा कर परेशान होगा??”,
कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई। मदन पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला,
“अरे, छोड़ो ना,,,,, चौधराइन चाची।
पर माया देवी ने कोई जवाब नही दिया। खिड़की खुली थी, कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिश शुरु हो चुकी थी। मौसम एकदम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बुंदे भी अन्दर आ जाती थी। मदन कुछ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला,

“चौधराइन चाची,,,,, ब्लाउज तो बदल लो…। गीला ब्लाउज पहन…”

“ऊं…रहने दे, थोड़ी देर में सुख जायेगा. दूसरा ब्लाउज कहाँ लाई, जो…?”

“तौलिया लपेट लेना…”
मदन ने धीरे से झिझकते हुए कहा।
माया देवी ने कोई जवाब नही दिया।
मदन हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला,
“आम नही खाओगी…?”

“ना, रहने दे, मन नही है…”

“क्या चौधराइन चाची ?,,,, क्यों उदास हो रही हो…?”

“ना, मुझे सोने दे…तु आम,,,खा.....”

“ना,,,, पहले आप खाओ …!!।",
कहते हुए मदन ने आम के उपरी सिरे को नोच कर माया देवी के हाथ में एक आम थमा दिया, और उसके पैर फिर से दबाने लगा। माया देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही। ये देख कर मदन ने कहा,
“क्या हुआ…? आम अच्छे नही लगते क्या ?,,,,,चूस ना…पेड़ पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना...!!!!”
मदन की नजरे तो माया देवी की नारियल की तरह खड़ी चूचियों से हट ही नही रही थी। दोनो चूचियों को एक-टक घूरते हुए, वो अपनी चौधराइन चाची को देख रहा था। माया देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होठों को खोला, और आम को एक बार चुसा फिर बोली,
“तु नही खायेगा…?”

“खाऊँगा ना…?!।”,
कहते हुए मदन ने दूसरा आम उठाया और उसको चुसा तो फिर बुरा सा मुंह बनाता हुआ बोला,
“ये तो एकदम खट्टा है…।"

“ये ले मेरा आम चूस…बहुत मीठा है…”,
धीमी आवाज में माया देवी अपनी एक चूची को ब्लाउज के ऊपर से खुजलाती हुई बोली, और अपना आम मदन को पकड़ा दिया।

“मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…”,
धीरे से बोलते हुए मदन ने माया देवी के हाथ से आम ले लिया, और मुंह में ले कर ऐसे चूसने लगा, जैसे चूची चूस रहा हो।
माया देवी चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान लिये बोली,
“बड़े मजे से चूस रहा है !! मीठा है ना,,,,,,!? ”

माया देवी और मदन के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी।

मदन प्यार से आम चूसता हुआ बोला,
“हां चौधराइन चाची, आपका आम,,,,,,,,,बहुत मीठा है(!!!)..... ले ना, तू भी चूस…”

“ना, तू चूस,,… मुझे नही खाना…”,
फिर मुस्कुराती हुई, धीरे से बोली,
“देखा, मेरे बाग के आम कितने मीठे हैं खाया कर…”

“मिलते ही …नहीं…”
मदन उसकी चूचियों को घूरते हुए बोला।

“कोशिश…कर के देख…!!!!”,
उसकी आंखो में झांकती माया देवी बोली।

दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातों में मजा आ रहा था। मदन अपने हाथ को लुंगी के ऊपर से लण्ड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ, उसकी चूचियों को घूरता हुआ बोला,
“तू मेरा वाला,,,(!) चूस… खट्टा है….,,,,, औरतों को तो खट्टा…।”

“हां, ला मैं तेरा,,,(!) चूसती हुं…खट्टे आम भी अच्छे होते…”,
कहते हुए माया देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी।
अब माया देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट् आ गई थी, अपने रसीले होठों से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी। उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात-चीत ने अब तक मदन और माया देवी दोनो की अन्दर आग लगा दी थी। दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे। पेड़ के ऊपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लुंगी के अन्दर छुपे सामान को देखा था, ये दोनो को पता था। दोनो के मन में बस यही था, की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लुंगी के हथियार के साथ हो जाये।

मदन अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए, उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था. माया देवी आम चूसते हुए उसको देख रही थी। बार-बार मदन का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिन्ड्लियों तक फिसलता हुआ चला जाता। पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था। एक पैर पसारे, एक पैर घुटने के पास से मोडे हुए माया देवी बैठी हुई थी। कमरे में पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुप-चाप नजरो को नीचे किये बैठे थे। बाहर से तेज बारिश की आवाज आ रही थी।

आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मदन बोला,
“कल सुबह शहर जा आपकी पायल मैं ले आऊँगा.,,,,,,।”

“रहने दे, मुझे नही मंगवानी तुझसे पायल…।”

“…मैं आप जैसी बताओगी वैसी पायल,,,,,ला,,,,,,“

“ना रहने दे, तू…पायल लायेगा,,,,,,फिर मेरे से…उसके बदले,,,,,,”,
धीरे से मुंह बनाते हुए माया देवी ने कहा, जैसे नाराज हो।
मदन के चेहरे क रंग उड़ गया। धीरे से हकलाता हुआ बोला,
“बदले में,,,,,,,क्या,,,???…मतलब…???”

आंखो को नचाती, मुंह फुलाये हुए धीरे से बोली,
“,,,,,लाजो को भी,,,,,पायल,,,,,”

इस से ज्यादा मदन सुन नही पाया, लाजो का नाम ही काफी था। उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया, और दिमाग हवा में तैरने लगा. तभी माया देवी के होठों के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसके सीने के उभार पर गिर पड़ा। माया देवी उसको जल्दी से से पोंछने लगी, तो मदन ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली,

“…ना, ना, रहने दे,,,(!?),, अभी तो मैंने तेरे से पायल मंगवाई भी नहीं, जो,,,,,,(!!!!!!!)…”

ये माया देवी की तरफ से दूसरा खुल्लम-खुल्ला सिग्नल था की आगे बढ़ । माया देवी के पैर की पिन्डलियों पर से कांपते हाथों को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला,

“मतलब पा,,,,पायल ला दूँगा तो,,,,,,तो …(??!!)”

धीरे से माया देवी बोली,
“…पा,,,,,,यल लायेगा,,,,तो,,,,,क्या? ”

“आम,,,,,!! स…आफ…करने…दोगी…??”,
धीरे से मदन बोला। आम के रस की जगह, आम साफ करने की बात शायद मदन ने जानबूझ कर कही थी।

“तो तू गाँव का पायल एक्स्पर्ट है…सबको…पायल,,,,,,लाता है, क्या…?”,
सरसराती आवाज में माया देवी ने पुछा

“नही…”

“लाजो के लिए लाया था,,, …”

मदन चुप-चाप बैठा रहा।

“फ़िर उसके आ……म सा…फ… किये…तूने…?!!।”
क्रमश:……………………
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04-25-2019, 11:52 AM,
#12
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चौधराइन
भाग 10 - खूब चुसे आम चौधराइन के


मदन की समझ में आ गया की माया देवी क्या चाहती है।

“आपही ने तो कहा आपके पेड़ के आम खाने को अब मैं खाना चाह रहा हूँ तो”,
इतना कहते हुए, मदन आगे बढ़ अपना एक हाथ माया देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नशीली आंखो में झांक कर देखा।

“तो खा…ना…!!। मैं तो कब से…!!।”

चाहत और अनुरोध से भरी आंखो ने मदन को हिम्मत दी, और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों के ऊपर लगे आम के रस को चाट लिया।

इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण माया देवी की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी। ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर मदन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने रसीले होठों को अपने दांतो से दबाती हुई बोली,
“चा,,,,ट कर,,,,,,सा…फ करेगा…!!?।

मदन ने कोई जवाब नही दिया।

“आम तो चूस…ने(!!) मैं तो…चुस,,,,,,वाने ही आई थी…।"

माया देवी ने सीधी बात करने का फैसला कर लिया था।

“हाय तो चूसूँ चाची!!?”

चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमंत्रण ने लण्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी।

पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ कर अपनी छाती पर रखती हुई, माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।"

मदन ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से सिसकारी निकल गई,

“चूसने के लिये,,,बोला तो… ”

“दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”,
शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला।

“तो धीरे से दबा…जोर से दबा के… तो,,,सारा रस,,,,निकल,,,,,,”

मदन की चालाकी पर धीरे से हँस दी।

“सच में चूसूँ चाची…??????”,
मदन ने वासना से जलती आंखो में झांकते हुए पुछा।

“और कैसे…!!! बोलूँ क्या लिख के दूँ …?”,
उत्तेजना से कांपती, गुस्से से मुंह बिचकाती बोली।
मदन को अब भी विश्वास नही हो रहा था, की ये सब इतनी आसानी से हो रहा है। कहाँ, तो वो प्लान बना रहा था, की रात में साड़ी उठा कर अन्दर का माल देखेगा…यहां तो दसो उगँलियाँ घी में और पूरा सिर कढ़ाई में घुसने जा रहा था।

गरदन नीचे झुकाते हुए, मदन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। मगर मदन तो अब पागल हो चुका था। एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगा। माया देवी केलिए ये नया अनुभव था, सदानन्द एक अनुभवी मर्द की तरह उससे प्यार से पेश आता था धीरे धीरे आगे बढ़कर अपनी प्रचन्ड काम शक्ति और धैर्य के साथ उसे सन्तुष्ट करता था मगर आज एक जमाने के बाद जब उसकी चूचियों को एक नव जवान के हाथ और मुंह की नोच खसोट मिली तो उसे अपनी नवजवानी के दिन याद आ गये जब वो सदानन्द और दूसरे लड़कों के साथ ऐसी नोच्खसोट करती थी । मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , मदन के सिर को अपनी चूचियों पर भींच लिया।

गीले ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को चूसने का बड़ा अनुठा मजा था। गरम चूचियों को गीले ब्लाउज में लपेट कर, बारी-बारी से दोनो चूचियों को चूसते हुए, वो निप्पल को अपने होठों के बीच दबाते हुए चबाने लगा। निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब मदन ने चुसा तो माया देवी छटपटा गई।
मदन के सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी,
“इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,,,। धीरे…आराम से, आम चु…स…”

दोनो चूचियों की चोंच को बारी-बारी से चूसते हुए, जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउज के खुले बटन से चाटने लगा। फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए, उसकी गरदन को चाटते हुए अपने होठों को उसके कानो तक ले गया, और अपने दोनो हाथों में दोनो चूचियों को थाम, फुसफुसाते हुए बोला,
“बहुत मीठा है, तेरा आम…छिलका,,,, (!!?) उतार के खाउं…??।"
माया देवी भी उसकी गरदन में बांहे डाले, अपने से चिपकाये फुसफुसाती हुई बोली,
“हाय,,,,,, छिलका…उतार के…? ”

“हां,,,,, शरम आ रही है,,,, क्या ?"

“शरमाती तो,,,,, आम हाथ में पकड़ाती…?”

“तो उतार दुं,,,,, छिलका…?”

“उतार दे, हरामी,,,,, तू बक-बक बहुत करता है ??”
मदन ने जल्दी से गीले ब्लाउज के बटन चटकाते हुए खोल दिये, ब्लाउज के दोनो भागों को दो तरफ करते हुए, उसकी काले रंग की ब्रा को खोलने के लिये अपने दोनो हाथों को चौधराइन की पीठ के नीचे घुसाया, तो उसने अपने आप को अपने चूतड़ों और गरदन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। चौधराइन की दोनो चूचियाँ मदन की छाती में दब गई। चूचियों के कठोर निप्पल मदन की छाती में चुभने लगे तो मदन ने पीठ पर हाथों का दबाव बढ़ा कर, चौधराइन को और जोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोर चूचियों को अपनी छाती से पीसते हुए, धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिया। कसमसाती हुई चौधराइन ने उसे थोड़ा सा पीछे धकेला और गीले ब्लाउज से निजात पाई और तकिये पर लेट मदन की ओर देखने लगी। चौधराइन की आंखे नशे में डूबी लग रही थी। मदन ने कांपते हाथों से ब्रा उतारी तो उनके बड़े बड़े दूध से सफेद उरोज ऐसे फड़फड़ाये जैसे दो बड़े बड़े सफेद कबूतरों हों । मदन ने मदन ने दोनो हाथों में थाम उन कबूतरों को काबू में किया। मदन ने देखा कि उसके हाथों मे चौधराइन के स्तन इतनी देर दबाने मसलने से लाल हो दो बड़े बड़े कटीले लंग़ड़ा आम से लग रहे हैं उन्हें हल्के से दबाते हुए धीरे से बोला,
“बड़े…मस्त आम है !”
“तो खाले न” चौधराइन की आवाज आई।
ये सुनते ही मदन ने हलके भूरे रंग का निप्पल अपने मुँह मे दबा लिया और चूसने लगा । थोड़ी ही देर में मदन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और वो पहले तो उनके निप्पलो को बदल बदलकर होंठों में दबा चुभलाने चूसने लगा। फ़िर उनके गदराये जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगा। उसने चौधराइन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया। करीब पांच मिनट तक दोनो मुँह बोले चाची-भतीजे एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे। जब दोनो अलग हुए तो हांफ रहे थे ।

मदन का जोश और चूसने का तरीका चौधराइन को पागल बना रहा था। छिनाल औरतों की दी हुई ट्रेनिंग़ का पूरा फायदा उठाते हुए, मदन ने चौधराइन की चूचियों को फिर से दोनो हाथों में थाम लिया और उसके निप्पल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए, एक चूची के निप्पल से अपनी जीभ को लड़ाने लगा। चौधराइन भी अपने एक हाथ से चूची को पकड़ मदन के मुंह में ठेलने की कोशिश करते हुए, सिसयाते हुए चूसवा रही थी। बारी-बारी से दोनो चूचियों को मसलते चूसते हुए, उसने दोनो चूचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूचियों के निपल दांतों में दबा चूसते हुए बोला,
“चौधराइन चाची…आप,,,,ठीक कहती… थीं…तेरे पेड़ के…आम…उफफ्,,,,,पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी डालता ।”

चौधराइन कभी उसके सिर के बालो को सहलाती, कभी उसकी पीठ को, कभी उसके चूतड़ों तक हाथ फेरती बोली,
“अभी…चूसने को मिला न …खूब चूस…भतीजे…।”

तभी मदन ने अपने दांतो को उसकी चूचियों पर गड़ाते हुए निप्पल को खींचा, तो दर्द से कराहती बोली,
“बदमाश…चूसने वाला…आम है,,,,,,,,,न कि खाने वाला …उन रण्डियों…का होगा,,,,,,, जिनको…उफफफ्…। धीरे से चूस…चूस कर…उफफफ्,,,.. बेटा,,,…निप्पल को…होठों के बीच दबा…के…धीरे से…नही तो छोड़…दे…”

इस बात पर मदन ने हँसते हुए चौधराइन की चूचियों पर से मुंह हटा, उसके होठों को चुम धीरे से कान में बोला,
“इतने जबरदस्त,,,,,,,आम पहले नही चखाये, उसी की सजा…”

चौधराइन भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“कमीना…गन्दा लड़का।”

“गन्दी औरत …गन्दी चाची का गन्दा भतीजा…”,
बोलते बोलते मदन रुक गया।
गन्दी औरत बोलता है,,,,? चौधराइन ने दाँत पीसते दोनो हाथों में मदन के चेहरे को भरती हुई, उसके होठों और गालो को बेतहाशा चुमती हुई, उसके होठों पर अपने दांत गड़ा दिये. मदन सिसया कर कराह उठा। हँसती हुई बोली, “अब बोल कैसा लगा,,,,? खुद, वैसे भी तू मेरा भान्जा हुआ वो भी मुँह बोला, क्योंकि चौधरी साहब को को तेरी माँ भाई कहती है ।" मदन ने भी अपन गाल छुडा कर, उनके गुदाज संगमरमरी कंधे पर दांत गड़ा दिये और बोला, -“मैं तो शुरू से चाची ही कहता हूँ”
चल मामी कम चाची सही अपनी चाची के साथ गन्दा काम…? चौधराइन की मुस्कान और चौड़ी हो गई।
“तू भी तो अपने भान्जे कम भतीजे के साथ…।" मदन ने जवाब दिया।

दोनो अब बेशरम हो चुके थे। मदन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया। चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही चौधराइन ने अपनी जांघो को भींचा, तो मदन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोला,
“अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!”

पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई चौधराइन, फुसफुसाती हुई बोली,
“तू,,,,, आम…चूस…मेरा बिल …देखेगा तो तेरा मन करेगा फ़िर……चाची कम मामीचोद…बन…”

मदन समझ गया की गन्दी बाते करने में चौधराइन चाची को मजा आ रहा है।
“अगर डण्डा डालूँगा,,,,,!!। तभी,,,,,,, चाची कम मामीचोद कहलाऊँगा… मैंने तो खाली दिखानेको बोला है… तू क्या चुदवाना चाहती है!।”,
कहते हुए, चूत को पेटिकोट के ऊपर से और जोर से मसलते, उसकी पुत्तियों को चुटकी में पकड़ जोर से मसला।

“हाय…हरामी, क्या बोलता है मेरे…बिल… में डंडा…घुसायेगा ??।”

चौधराइन ने जोश में आ उसके गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती लुंगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की। हाथ नहीं घुसा, मगर मदन के दोनो अंडकोश उसकी हथेली में आ गये। जोर से उसी को दबा दिया, मदन दर्द से कराह उठा। कराहते हुए बोला,
“उखाड़ लेगी,,,,,क्या,,,???… क्या चाहिये,,,!!? ”

चौधराइन ने जल्दी से अंडकोश पर पकड़ ढीली की,
“हथियार,,,(!),,, दिखा.....?”

“थोड़ा ऊपर नही पकड़ सकती थी…? पेड़ पर तो सब देख लिया था…?”

“तुझे, पता…था ?तो तू जान-बुझ के दिखा रहा था, वैसे पेड़ पर… तो तूने भी… देखा था…”

“तो तू भी…जान-बुझ कर दिखा रही थी ! …”,
कहते हुए चौधराइन का हाथ पकड़ अपनी लुंगी के भीतर डाल दिया दिया।

खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही चौधराइन का बदन सिहर गया। गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो। मुँह से निकला –हय साल्ला! सदानन्द की औलाद का लौड़ा मारूँ!”
ये सुन मदन चुका –“ क्या मतलब चाची!”
चौधराइन –“ कहाँ की चाची किसका भाई मेरे बचपन का यार है तेरा बाप पहले भी चुदवाती थी अब भी लगभग रोज दोपहर को……?
मदन –“ तेरी माँ की आँख चाची! वाह चाची मैं तो आप को सीधा समझ रहा था”
मदन के लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली,
“तो क्या सारी दुनियाँ में तू ही एक चुदक्कड़ है हम भी कुछ कम नहीं ऐसा ही वो(सदानन्द) भी है जैसा बाप वैसा बेटा । जैसे गधे का…उखाड़ कर लगा लिया हो ?”

“है, तो…तेरे भतीजे काही…मगर…गधे के…जैसा !!!”,
बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के ऊपर से उँगली चलाते हुए बोला,
“पानी…फेंक रही है…”

“चाचीकम मामीचोद बने,,,,गा,,,,,,,,क्या,,,?”

“तू,,,,भतीजे कम भांजे की … रखैल बनेगी?....”

“जल्दी कर! अब रहा नही जा रहा…”

“पर पूरी नंगी करूँगा…????”

“जो चाहे कर हां! पर जल्दी,,,,,”
क्रमश:…………………………
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04-25-2019, 11:52 AM,
#13
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग 11 – चौधराइन के प्लान की सफ़लता



झट से बैठते हुए, अपनी लुंगी खोल एक तरफ फेंकी, तो कमरे की रोशनी में उसका दस इंच का तमतमाता हुआ लण्ड देख चौधराइन को झुरझुरी आ गई। उठ कर बैठते हुए, हाथ बढ़ा उसके लण्ड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलु जैसे लाल सुपाड़े को देखती बोली,
“हाय,,,,,,,बेला ठीक बोलती थी…तु बहुत बड़ा,,,,,, हो गया है…तेरा…केला तो…। मेरी…तो फ़ाड़ ही देगा.........”
पेटिकोट के नाड़े को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला,
“भगवान बेला का भला करे जिसने मेरी इतनी तारीफ़ की कि तू ललचा गई
कहती हुई चौधराइन अपने भारी भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़ उठा, पेटिकोट को चूतड़ों से सरका और शानदार रेशमी मांसल जांघों से नीचे से ठेल निकाल दिया। इस काम में मदन ने भी उसकी मदद की और सरसराते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया। कमरे की ट्यूबलाइट की रोशनी में चौधराइन के भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़, शानदार चमचमाती रेशमी मांसल जांघो को देख मदन की आंखें एक बार तो चौंधियागयी फ़िर फ़टी की फ़टी रह गईं।
चौधराइन लेट गई, और अपनी दोनो टांगो को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया। दोनो मुँहबोले चाची-भतीजे अब जबर्दस्त उत्तेजना में थे. दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था। मदन ने चौधराइन की चमचमाती जांघो को अपने हाथ से पकड़, थोड़ा और फैलाया और उनके ऊपर हपक के मुँह मारकर चुमते हुए, फ़िर उसकी झाँटदार चूत के ऊपर एक जोरदार चुम्मा लिया, और बित्ते भर की चूत की दरार में जीभ चलाते हुए, बुर की टीट को झाँटों सहित मुंह में भर कर खींचा, तो चौधराइन लहरा गई। चूत की दोनो पुत्तियों ने दुप-दुपाते हुए अपने मुंह खोल दिये। सिसयाती हुई बोली,
“इसस्स्,,,,,,,!!! क्या कर रहा है…???”

दरार में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर लण्ड, बुर में लेने की जल्दी थी। जल्दी से मदन के सिर को पीछे धकेलती बोली,
“…। क्या…करता…है ??…जल्दी कर…।”

पनियायी चूत की दरार पर उँगली चला उसका पानी लेकर, लण्ड की चमड़ी खींच, सुपाड़े की मुन्डी पर लगा कर चमचमाते सुपाड़े को चौधराइन को दिखाता बोला, “चाची,,,,,,देख मेरा…डण्डा…तेरे छेद…पर…”

“हां…जल्दी से…। मेरे छेद में…।“

लण्ड के सुपाड़े को चूत के छेद पर लगा, पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक चला, बुर के होठों पर लण्ड रगड़ते हुए बोला,
“हाय,,,,, पेल दुं,,,,पूरा…???”

“हां,,,,,,!! चाची…चोद बन जा…”

“फ़ड़वाये,,,गी…?????”हाय,,,,,,फ़ाड़ दूँ…”
“बकचोदी छोड़,,,,, फ़ड़वाने के,,,,,लिये तो,,,,,खोल के,,,,नीचे लेटी हूँ…!! जल्दी कर…”, वासना के अतिरेक से कांपती झुंझुलाहट से भरी आवाज में चौधराइन बोली।

लण्ड के लाल सुपाड़े को चूत के गुलाबी झांठदार छेद पर लगा, मदन ने धक्का मारा। सुपाड़ा सहित चार इंच लण्ड चूत के कसमसाते छेद की दिवारों को कुचलता हुआ घुस गया। हाथ आगे बढ़ा, मदन के सिर के बालो में हाथ फेरती हुई, उसको अपने से चिपका, भराई आवाज में बोली,
“हाय,,,, पूरा…डाल दे…“हाय,,,,, ,,,!!!…फ़ाड़…! मेरी मदन बेटा…शाबाश।"

मदन ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए, फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाल धक्का मारा। इस बार का धक्का जोरदार था। चौधराइन की चूतड़ों फट गई। पिछले दो दिनों से सदानन्द नहीं आया था सो उसने चुदवाया नही था जिससे उसकी चूत सिकुड़ी हुई थी। चूत के अन्दर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लम्बा लण्ड, जड़ तक घुसने की कोशिश कर रहा था, तो चूत में छिलकन हुई और दर्द की हल्की सी लहर ने उसको कंपा दिया।

“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,,,,,,चौधराइन चाची की आह…।”,
करते हुए, अपने हाथों के नाखून मदन की पीठ में गड़ा दिये।
“बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…”

चूत के पानी में फिसलता हुआ, पूरा लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया।

“बहुत बड़ा…है,,,,तेरा,,,,केला…उफफफ्…। मेरे,,,,,, आम चूसते हुए,,,,,चोद शाबाश”

मदन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक-चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाता पुछा,
“पेलवाती,,,, नही… थी…???”

“नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?”

“क्यों,,,,?…चौधरी चाचा…!!!।”

“उसका मूड…बहुत कम… कभी कभी ही बनता है।”

“दूसरा…कोई…”

“हरामी,,,,, कहे तो तेरे बाप से चुदवा लूँ ,,,,,,तुझे अच्छा…लगेगा…??।”, ताव में से चूतड़ पर मुक्का मारती हुई बोली।
“बात तो सुन लिया कर पूरी,,,,, सीधा गाली…देने…”,
झल्लाते हुए, मदन चार-पांच तगडे धक्के लगाता हुआ बोला।

तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं। मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई। थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी, और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हुआ था। अपने पैरों को मदन की कमर से लपेट उसको भींचती सिसयाती हुई,
“उफफफ्,,,,,,,, सीईई,,,,हरामी,,,,, दुखा…दिया…आरम,,,से,,,,भी बोल शकता…था…”

मदन कुछ नही बोला. लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये वो अपनी चौधराइन चाची कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्के लगा रहा था। चौधराइन को भी अब पूरा मजा आ रहा था. लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था। धीरे धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली,
“बोलना,,,,,तो, जो बोल…रहा…”

“मैं तो…बोल रहा था,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरे टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद…”

“हाय…हरामी…तुझे,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी…”

“मैं तो…बस एक,,,,बात बोल रहा…था की…
“चुप कर…कमीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…तेरी मेरी घरेलू बात घर की बात…”

तब तो…मेरे बाप से चुदवाने का आइडिया बुरा नहीं, घरेलू मामला घर की बात घर में जैसे मैं चाची चोद वो बहन चोद”

“वैसे ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मजा आ रहा,,,,,अब तुझे खूब मजे… दस इंच के हथियार वाला भतीजा किस दिन…काम आयेगा…”

“हाय…बहुत मजा…आ…चोदे जा…मेरा जवान भतीजा…। गांव भर की हरामजादिया मजे लुटे, और मैं…”
“हाय,,,, अब…गांववालीयों को छोड़…अब तो बस तेरी…ही…सीईईइ उफफ्…बहुत मजेदार छेद है…”,
गपा-गप लण्ड पेलता हुआ, मदन सिसयाते हुए बोला।

लण्ड बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूतके मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी। मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी गुदाज चूत होने का यही फायदा था। हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी। ऊपर के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए मदन तेजी से अपनी चूतड़ों उछाल कर चौधराइन के ऊपर कुद रहा था।

“हाय,,, तेरा केला भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा…डण्डा…सीसीसीईईईईईईई…हाय डालता रह…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम से…। हाय…। अब फ़ाड़ दे…डाल…। सीईईईई…पूरा डाल…कर…। हाय मादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी …चु…।”

नीचे से चूतड़ों उछालती, मदन के चूतड़ को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी, चौधराइन। कमरे में बारिश की आवाज के साथ चौधराइन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी। इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चौधराइन चाची-भतीजे जवानी का मजा लूट रहे थे। कहाँ मदन अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफसोस मना रहा था, वहीं अभी खुशी से चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी चौधराइन चाची की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रहा था। उधर चौधराइन जो सोच रही थी की मदन बिगड़ गया है, अब नंगी अपने भतीजे के नीचे लेट कर, उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए अपने भतीजे के बिगड़ने की खुशियां मना रही थी। आखिर हो भी क्यों ना, जिस लण्ड के पीछे गांव भर की औरतो की नजर थी अब उसके कब्जे में था, अपने खलिहान या घर के अन्दर, जितनी मरजी उतना चुदवा सकती थी।
“हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरे आम…तेरा छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय, चौधराइन चाची,,,, मजा आ रहा है, इस भतीजे का डण्डा बिल में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता…। तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देता …सीईईईई ले भतीजे का…। लण्ड…। हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना…तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जायेगा……सीईईईईई… तेरी … चु…त में,,,,???।,
सिसयाते हुए मदन बोला।

नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, चौधराइन भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी। चूतड़ों को उछालती हुई, अपनी टांगो को मदन की कमर पर कसते हुए चिल्लाई…,
”मार,,,,,मार ना,,,, भोसड़ीवाले… छोटे पण्डित हाय…सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे…।लण्ड से,,,…मार… चौधराइन…की चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,,…। बेटा,, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दे… चाची…की चूत…। पेल देएएए…। चौधराइन चाची के लण्ड …। चोद्द्द्द्……मेरी चूऊत में…।”
यही सब बकते हुए उसने मदन को अपनी बाहों में कस लिया।

उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था। मदन के लण्ड से भी तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था। मदन के होंठ चौधराइन के होठों से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था। दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब मदन के लण्ड का पानी चौधराइन की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो। तपते रेगीस्तान पर मदन का लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी चौधराइन चाची को चोद ही दिया। करीब आधे घन्टे तक दोनो एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे. मदन अब उसके बगल में लेटा हुआ था। चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, ।

आधे घन्टे बाद जब माया देवी को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ाकर उठ गई। बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में मदन भी नंगा लेटा हुआ था। उसका लटका हुआ लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया। मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे छोटे पंडित को भी निबटा दिया , देख बारिश भी छोटे पंडित और बड़ी चौधराइन की चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के दोनो पण्डित मेरी चूत से बंधे रहो।
मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचते, मुस्कुराते उन्होंने आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और मदन की लुंगी उसके ऊपर डाल, जैसे ही फिर से लेटने को हुई की मदन की आंखे खुल गई। अपने ऊपर रखी लुंगी का अहसास उसे हुआ, तो मुस्कुराते हुए लुंगी को ठीक से पहन ली। थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर, फिर मदन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गया, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा। फिर धीरे से बोला,
“कैसी हो चौधराइन चाची,,,,,, ,,,,?”

चौधराइन –“ एक एक जोड़ दुख रहा है।”
मदन फिर बोला,
“इधर देखो ना…।”

माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। मदन उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगा। नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते मदन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर उनकी फ़ूली चूत जो अभी अभी चुदने से और भी फ़ूल गई थी हाथ फ़ेर दिया, तो गुदगुदी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली,
“क्या करता है,,,,,? हाथ हटा…”

मदन ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दिया और थोड़ा और आगे सरक कर उनकी आंखो में झांकते हुए बोला,
“,,,,,,मजा आया…!!!???”

झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया. उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली,-“,,,,,,,चुप…गधा कहीं का…!!!!”
मदन -“मुझे तो बहुत मजा,,,,,,,आया…बता ना, तुझे कैसा लगा…?”

“हाय, नही छोड़…तू पहले हाथ हटा…”

“क्यों,,,,अभी तो…बताओ ना,,,,,, चाची,,,?”

“धत,,,,,छोड़,,,वैसे, आज कोई आम चुराने वाली नही आई ?”,
माया देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा।

“तूने इतनी मोटी-मोटी गालियां दी…थी, वो सब…”

“चल,,,,,,मेरी गालियों का,,,,,असर…उनपे कहाँ से…होने वाला…?”

“क्यों,,,!!,,,? इतनी मोटी गालियां सुन कर, कोई भी भाग जायेगा,,,,,,मैंने तो तुझे पहले कभी ऐसी गालियां देते नही सुना”

“वो तो,,,,,,,,वो तो तेरी झिझक दूर करने के लिए …बस,,,,…वरना रात बेकार जाती…”

“अच्छा, तो आप पहले से प्लान बनाये थी मैं तो अपने को बड़ा अकलमन्द समझ रहा था…? वैसे, बड़ी…मजेदार गालियां दे रही थी,,,,,,,,मुझे तो पता ही नही था…”

“…! चल हट, बेशरम…”

“…!! उन बेचारियों को तो तूने…।”
“अच्छा,,,,,,वो सब बेचारी हो गई,,,!!! सच-सच बता,,,, लाजो थी, ना…?”
आंखे नचाते हुए चौधराइन ने पुछा।

हँसते हुए मदन बोला,
“तुझे कैसे पता…? तूने तो उसका बेन्ड बजा…”,
कहते हुए, उनके होठों को हल्के से चुम लिया।

माया देवी, उसको पीछे धकेलते हुए बोली,
“हट,,,,,। बदमाश,,,, बजाई तो तूने है सबकी, सच सच बता अब तक गांव में कितनों की बजाई…???”

मदन एक पल खामोश रहा, फिर बोला,
“क्या,,,,,चौधराइन चाची,,,?…कोई नही.....”

“चल झूठे,,,,,,,,मुझे सब पता…है. सच सच बता....”.
कहते हुए. फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया।

मदन ने फिर से हाथ को पेट पर रख. उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा.
“सच्ची-सच्ची बताउं......?”

“हां, सच्ची…कितनो के साथ…?”,
कहती हुई, उसकी छाती पर हाथ फेरा।

मदन, उसको और अपनी तरफ खींचा तो चौधराइन उस्की तरफ़ घूम गईं, मदन अपनी कमर को उसकी कमर से सटा, धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला,
“याद नही, पर....करीब बारह-तेरह …।"

“बाप रे,,,,!!!…इतनी सारी ???…कैसे करता था, मुए,,??,,,,मुझे तो केवल लाजो और बसन्ती का पता था…”,
कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी।

“वो तो तुझे तेरी जासुस बेला ने बताया होगा इसीलिए कल मैंने बेला को भी इसी बिस्तर पे पटक के चोद दिया… बाकियों को तो मैंने इधर-उधर कहीं खेत में, कभी पास वाले जंगल में, कभी नदी किनारे निपटा दिया था…।”

“कमीना कहीं का,,,,,तुझे शरम नही आती…बेशरम…”,
उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली।

मदन(ताल ठोंक के) -“अब जब गाँव की चौधराइन चाची की ही निपटा दी तो…॥”,
कहते हुए, उसने चौधराइन को कमर से पकड़ कस कर भींचा। उसका खड़ा हो चुका लण्ड, सीधा चौधराइन की जांघो के बीच दस्तक देने लगा।
चौधराइन उसकी बाहों से छुटने का असफल प्रायास करती, मुंह फुलाते हुए बोली,
“छोड़,,,,बेशरम,,,,,बदमाश… तू तो कितना सीधा था, कहाँ सीखी इतनी बदमाशी?”
मदन –“अगर एक बार और करने दो तो बताऊँ।”
चौधराइन गरम तो थी हीं उसका लण्ड अपनी दोनों माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा के मसलते हुए बोलीं –“अगर सच सच बतायेगा तो… वरना नहीं।”
मदन –“मंजूर। तो फ़िर सुनिये”

ये कह मदन ने चौधराइन के ब्लाउज में हाथ डाल उनकी विशाल छाती थाम ली और सहलाते हुए अपनी आप बीती सुनानी शुरू की। 
यहाँ चौधराइन का प्रथम सोपान समाप्त हुआ।
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04-25-2019, 11:52 AM,
#14
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चौधराइन 

भाग 12 - भोलु मदन की मुश्किलें


ये तो पता ही हैं अब से २ साल पहले तक सचमुच में अपने मदन बाबू उर्फ मदन बाबू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे। जब १५ साल के हुए और अंगो में आये परिवर्तन को समझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे। लण्ड बिना बात के खड़ा हो जाता था। पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुछ खयाल आ जाये तब भी। करे तो क्या करे। स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरविअर पहनना शुरु कर दिया था। मगर अपने भोलु राम के पास तो केवल पैन्ट थी। कभी अंडरविअर पहना ही नही था। लण्ड भी मदन बाबू का उम्र की औकात से कुछ ज्यादा ही बड़ा था, फुल-पैन्ट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था। जो की ऊपर दिखता था और हाफ पैन्ट में तो और मुसिबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जांघो के पास के ढीली मोहरी से अन्दर का नजारा दिख जाता था। बेचारे किसी को कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरविअर ला दो क्योंकि रहते थे मामा-मामी के पास, वहां मामा या मामी से कुछ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी। गांव काफी दिनों से गये नही थे। बेचारे बड़े परेशान थे।
सौभाग्य से मदन बाबू की मामी हँसमुख स्वभाव की थी और अपने मदन बाबू से थोड़ा बहुत हँसीं-मजाक भी कर लेती थी। उसने कई बार ये नोटिस किया था की मदन बाबू से अपना लण्ड सम्भाले नही सम्भल रहा है। सुबह-सुबह तो लगभग हर रोज उसको मदन के खड़े लण्ड के दर्शन हो जाते थे। जब मदन को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरुम की ओर भागता था। मदन की ये मुसिबत देख कर मामी को बड़ा मजा आता था। एक बार जब मदन अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने पलंग पर बैठ गई। मदन ने उस दिन संयोग से खूब ढीला-ढाला हाफ पैन्ट पहन रखा था। मदन पालथी मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था। सामने मामी भी एक मैगउन खोल कर देख रही थी। पढ़ते पढ़ते मदन ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया। इस स्थिति में उसके जांघो के पास की हाफ-पैन्ट की मोहरी नीचे लटक गई और सामने से जब मामीजी की नजर पड़ी तो वो दंग रह गई। मदन का मुस्टंडा लण्ड जो की अभी सोयी हुई हालत में भी करीब तीन-चार इंच लंबा दिख रहा था उसका लाल सुपाड़ा मामीजी की ओर ताक रहा था।

इस नजारे को ललचाई नजरों से एकटक देखे जा रही थी। उसकी आंखे वहां से हटाये नहीं हट रही थी। वो सोचने लगी की जब इस छोकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है तो जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता होगा। उसके पति यानी की मदन के मामा का तो बामुश्किल साढे पांच इंच का था। अब तक उसने मदन के मामा के अलावा और किसी का लण्ड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही की मोटे और लंबे लण्ड कितना मजा देते होंगे। कुछ देर में जब बर्दास्त के बाहर हो गया तो उर्मिला देवी वहां से उठ कर चली गई।

उस दिन की घटना के बाद से उर्मिला देवी जब मदन से बाते करतीं तो थोड़ा नजरे चुरा कर करतीं थीं क्योंकि बाते करते वख्त उनका ध्यान उसके पजामे में हिलते-डुलते लण्ड अथवा हाफ पैन्ट से झांकते हुए लण्ड की तरफ़ चला जाता। मदन भी सोच में डुबा रहता था की मामी उससे नजरें चुरा कर क्यों बात करतीं हैं और अक्सर नीचे की तरफ़ उसके पायजामे या निकर) की तरफ़ क्यों देखती रहती हैं । क्या मुझसे कुछ गड़बड़ हो गई है बड़ा परेशान था बेचारा। उधर लगातार मदन बाबू के लण्ड के बारे में सोचते सोचते मामी के दिमाग मे ख्याल आया कि अगर मैं किसी तरह मदन के इस मस्ताने हथियार का मजा चख लूँ तो न तो किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा न ही किसी को पता ही चलेगा? बस वो इसी फिराक में लग गई कि क्या ऐसा हो सकता है की मैं मदन के इस मस्ताने हथियार का मजा चख सकुं? कैसे क्या करें ये उनकी समझ में नही आ रहा था। फिर उन्होंने एक रास्ता खोज ही लिया।

अब उर्मिला देवी ने नजरे चुराने की जगह मदन से आंखे मिलाने का फैसला कर लिया था। वो अब मदन की आंखो में अपने रुप की मस्ती घोलना चाहती थी। देखने में तो वो माशा-अल्लाह खूबसुरत थीं ही। मदन के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी। जैसेकि जब भी वो मदन के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक ऊपर उठा कर बैठती, साड़ी का आंचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढुलक जाता था (जबकी पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउज के ऊपर के दोनो बटन खुले ही रह जाते थे और उनमे से दो आधे आधे चाँद(उनके मस्ताने स्तन) झाँकते रहते थे। बाथरुम से कई बार केवल पेटीकोट और ब्लाउज या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरुम में सामान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती। नहाने के बाद बाथरुम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल आती थी। बेचारा मदन बीच ड्राइंग रुम में बैठा ये सारा नजारा देखता रहता था। लड़कियों को देख कर उसका लण्ड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लण्ड खड़ा होगा। लण्ड तो लण्ड ही ठहरा, उसे कहाँ कुछ पता है कि ये मामी हैं । उसको अगर खूबसुरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही। मदन को उसी दौरान मस्तराम की एक किताब हाथ लग गई। किताब पढ़ कर जब लण्ड खड़ा हुआ और सहलाते रगड़ते जब उसका झड़ गया उसकी कुछ कुछ समझ में आया कि चुदाई क्या होती है और उसमें कितना मजा आ सकता होगा। मस्तराम की किताबों में तो रिश्तों में चुदाई की कहानियां भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उलटी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिये कितनी भी कोशिश करे। वही हाल अपने मदन बाबा का भी था। वो चाह रहे थे की अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के रेशमी बदन को देखता तो ऐसा हो जाता था। मामी भी यही चाह रही थी। खूब थिरक थिरक के अपना बदन झलका दिखा रही थीं।

बाथरुम का दरवाजा खुला छोड़ साड़ी पेटीकोट अपने भारी बड़े बड़े चूतड़ों के ऊपर तक समेटकर पेशाब करने बैठ जाती, पेशाब करने के बाद बिना साड़ी पेटीकोट नीचे किये खड़ी हो जातीं और वैसे ही बाहर निकल आती और मदन को अनदेखा कर साड़ी पेटीकोट को वैसे ही उठाये हुए अपने कमरे में जाती और फिर चौंकने की एक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साड़ी को नीचे गिरा देती थी। मदन भी अब हर रोज इन्तजार करता था की कब मामी झाड़ू लगायेगी और अपने बड़े बड़े कटीले लंगड़ा आमों (स्तनों) के दर्शन करायेगी या फिर कब वो अपनी साड़ी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जांघो के दर्शन करायेगी। मस्तराम की किताबें तो अब वो हर रोज पढ़ता था। ज्ञान बढ़ने के साथ अब उसका दिमाग हर रोज नई नई कल्पना करने लगा कि कैसे मामी को पटाऊँगा। जब पट जायेगी तो कैसे साड़ी उठा के उनकी चूत में अपने हलव्वी लण्ड डाल के चोद के मजा लूँगा ।
इसी बीच बिल्ली के भाग से छींका टूटा चुदास की आग में जल रही मामी ने ही एक तरकीब खोज ली,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक दिन मामीजी बाथरुम से तौलिया लपेटे हुए निकली, हर रोज की तरह मदन बाबू उनको एक टक घूर घूर कर देखे जा रहे थे। तभी मामी ने मदन को आवाज दी,
" मदन जरा बाथरुम में कुछ कपड़े है, मैंने धो दिये है जरा बाल्कनी में सुखने के लिये डाल दे। "

मदन जो की एक टक मामीजी की गोरी चिकनी जांघो को देख के आनन्द लूट रहा था को झटका सा लगा, हडबड़ा के नजरे उठाई और देखा तो सामने मामी अपनी छातियों पर अपने तौलिये को कस के पकड़े हुए थी।

मामी ने हँसते हुए कहा, "जा बेटा जल्दी से सुखने के लिये डाल दे नहीं तो कपड़े खराब हो जायेंगे. "

मदन उठा और जल्दी से बाथरुम में घुस गया। मामी को उसका खड़ा लण्ड पजामे में नजर आ गया। वो हँसते हुए चुप चाप अपने कमरे में चली गई। मदन ने कपड़ों की बाल्टी उठाई और फिर बाल्कनी में जा कर एक एक करके सुखाने के लिये डालने लगा। मामी की कच्छी और ब्रा को सुखाने के लिये डालने से पहले एक बार अच्छी तरह से छु कर देखता रहा फिर अपने होठों तक ले गया और सुंघने लगा। तभी मामी कमरे से निकली तो ये देख कर जल्दी से उसने वो कपड़े सुखने के लिये डाल दिये।

शाम में जब सुखे हुए कपड़ों को उठाते समय मदन भी मामी की मदद करने लगा। मदन ने अपने मामा का सुखा हुआ अंडरवियर अपने हाथ में लिया और धीरे से मामी के पास गया। मामी ने उसकी ओर देखते हुए पुछा, 
"क्या है, कोई बात बोलनी है ?"

मदन थोड़ा सा हकलाते हुए बोला, " माआम्म्मी,,,,,,एक बात बोलनी थी. "

"हा तो बोल ना. "

"मामी मेरे सारे दोस्त अब बबबबबब्,,,,"

" अब क्या,,,,,,,,? " , उर्मिला देवी ने अपनी तीखी नजरे उसके चेहरे पर गड़ा रखी थी।

" मामी मेरे सारे दोस्त अब अं,,,,,,,,,अंडर,,,,,,,,, अंडरवियर पहनते है. "

मामी को हँसी आ गई, मगर अपनी हँसी रोकते हुए पुछी, "हाँ तो इसमे क्या है सभी लड़के पहेनते है. "

" पर पर मामी मेरे पास अंडरवियर नही है. "

मामी एक पल के लिये ठिठक गई और उसका चेहरा देखने लगी। मदन को लग रहा था इस पल में वो शरम से मर जायेगा उसने अपनी गरदन नीचे झुका ली।

उर्मिला देवी ने उसकी ओर देखते हुए कहा, " तुझे भी अंडरवियर चाहिये क्या ? "

" हा मामी मुझे भी अंडरवियर दिलवा दो ना !!"

" हम तो सोचते थे की तु अभी बच्चा है, मगर, ", कह कर वो हँसने लगी।

मदन ने इस पर बुरा सा मुंह बनाया और रोआंसा होते हुए बोला, " मेरे सारे दोस्त काफी दिनों से अंडरवियर पहन रहे है, मुझे बहुत बुरा लगता है बिना अंडरवियर के पैन्ट पहनना। "

उर्मिला देवी ने अब अपनी नजरे सीधे पैन्ट के ऊपर टिका दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली, " कोई बात नही, कल बाजार चलेंगे साथ में। "

मदन खुश होता हुआ बोला, " ठीक है मामी।"

फिर सारे कपड़े समेट दोनो अपने अपने कमरों में चले गये।
वैसे तो मदन कई बार मामी के साथ बाजार जा चुका था। मगर आज कुछ नई बात लग रही थी। दोनो खूब बन संवर के निकले थे। उर्मिला देवी ने आज बहुत दिनो के बाद काले रंग की सलवार कमीज पहन रखी थी और मदन को टाईट जीन्स पहनवा दिया था। हांलाकि मदन अपनी ढीली पैन्ट ही पहेनना चाहता था मगर मामी के जोर देने पर बेचार क्या करता। कार मामी खुद ड्राईव कर रही थी। काली सलवार कमीज में बहुत सुंदर लग रही थी। हाई हील की सेंडल पहन रखी थी। टाईट जीन्स में मदन का लण्ड नीचे की तरफ हो कर उसकी जांघो से चिपका हुआ एक केले की तरह से साफ पता चल रहा था। उसने अपनी टी-शर्ट को बाहार निकाल लिया पर जब वो कार में मामी की बगल में बैठा तो फिर वही ढाक के तीन पात, सब कुछ दिख रहा था। मामी अपनी तिरछी नजरो से उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी। मदन बड़ी परेशानी महसूस कर रहा था। खैर मामी ने कार एक दुकान पर रोक ली। वो एक बहुत ही बड़ी दुकान थी। दुकान में सारे सेल्स-रिप्रेसेन्टिव लड़कियाँ थी।

एक सेल्स-गर्ल के पास पहुंच कर मामी ने मुस्कुराते हुए उस से कहा,
" जरा इनके साईज का अंडरवियर दिखाइये।"

सेल्स-गर्ल ने घूर कर उसकी ओर देखा जैसे वो अपनी आंखो से ही उसकी साईज का पता लगा लेगी। फिर मदन से पुछा, " आप बनियान कितने साईज का पहनते हो। "

मदन ने अपना साईज बता दिया और उसने उसी साईज का अंडरवियर ला कर उसे ट्रायल रुम में ले जा कर ट्राय करने को कहा। ट्रायल रुम में जब मदन ने अंडरवियर पहना तो उसे बहुत टाईट लगा। उसने बाहर आ कर नजरे झुकाये हुए ही कहा,
" ये तो बहुत टाईट है। "

इस पर मामी हँसने लगी और बोली, "हमारा भांजा मदन नीचे से कुछ ज्यादा ही बड़ा है, एक साईज बड़ा ला दो। "

उर्मिला देवी की ये बात सुन कर सेल्स-गर्ल का चेहरा भी लाल हो गया। वो हडबड़ा कर पीछे भागी और एक साईज बड़ा अंडरवियर ला कर दे दिया और बोली,

" पैक करा देती हूँ ये फिट आ जायेगी। "

मामी ने पुछा, " क्यों मदन एक बार और ट्राय करेगा या फिर पैक करवा ले। "

" नहीं पैक करवा लीजिये. '

" ठीक है, दो अंडरवियर पैक कर दो, और मेरे लिये कुछ दिखाओ। "

मामी के मुंह से ये बात सुन कर मदन चौंक गया। मामी क्या खरीदना चाहती है अपने लिये। यहां तो केवल कच्छी और ब्रा मिलेगी। सेल्स-गर्ल मुस्कुराते हुए पीछे घुमी और मामी के सामने गुलाबी, काले, सफेद, नीले रंगो के ब्रा और कच्छियों का ढेर लगा दिया। मामी हर ब्रा को एक एक कर के उठाती जाती और फैला फैला कर देखती फिर मदन की ओर घुम कर जैसे की उस से पूछ रही हो बोलती, " ये ठीक रहेगी क्या, मोटे कपड़े की है, सोफ्ट नहीं है. " य फिर " इसका कलर ठीक है क्या.. "

मदन हर बात पर केवल अपना सर हिला कर रह जाता था। उसका तो दिमाग घुम गया था। उर्मिला देवी कच्छियों को उठा उठा के फैला के देखती। उनकी इलास्टिक चेक करती फिर छोड़ देती। कुछ देर तक ऐसे ही देखने के बाद उन्होने तीन ब्रा और तीन कच्छियाँ खरीद ली। मदन को तीनो ब्रा और कच्छियाँ काफी छोटी लगी। मगर उसने कुछ नही कहा। सारा सामान पैक करवा कर कार की पिछली सीट पर डालने के बाद मामी ने पुछा,
" अब कहाँ चलना है ? "

मदन ने कहा, " घर चलिये, अब और कहाँ चलना है। "

इस पर मामी बोली, "अभी घर जा कर क्या करोगे चलो थोड़ा कहीं घुमते है। "

" ठीक है. "
कह कर मदन भी कार में बैठ गया।

फिर उसका टी-शर्ट थोड़ा सा उंचा हो गया पर इस बार मदन को कोई फिकर नही थी। मामी ने उसकी ओर देखा और देख कर हल्के से मुस्कुराई। मामी से नजरे मिलने पर मदन भी थोड़ा सा शरमाते हुए मुस्कुराया फिर खुद ही बोल पड़ा,
" वो मैं ट्रायल रुम में जा कर अंडरवियर पहन आया था। "

मामी इस पर हँसते हुए बोली, "वाह रे छोरे तू तो बड़ा होशियार निकला, मैंने तो अपना ट्राय भी नही किया और तुम पहन कर घुम भी रहे हो, अब कैसा लग रहा है ? "

" बहुत आराम लग रहा है, बड़ी परेशानी होती थी ! "

" मुझे कहाँ पता था कि इतना बड़ा हो गया है, नहीं तो कब का दिला देती. "
मामी की इस दुहरे अर्थ वाली बात को समझ कर मदन बेचारा चुपचाप झेंप कर रह गया। मामी कार ड्राईव करने लगी। घर पर मामा और चौधराइन की लड़की मोना दोनो नहीं थे। मामा अपनी बिजनेस टुर पर और मोना कालेज ट्रिप पर गये थे। सो दोनो मामी-भांजा शाम के सात बजे तक घुमते रहे। शाम में कार पार्किंग में लगा कर दोनो मोल में घुम रहे थे की बारिश शुरु हो गई। बड़ी देर तक तेज बारिश होती रही। जब ८ बजने को आया तो दोनो ने मोल से पार्किंग तक का सफर भाग कर तय करने की कोशिश की, और इस चक्कर में दोनो के दोनो पूरी तरह से भीग गये। जल्दी से कार का दरवाजा खोल झट से अन्दर घुस गये। मामी ने अपने गीले दुपट्टे से ही अपने चेहरे और बांहो को पोंछा और फिर उसको पिछली सीट पर फेंक दिया। मदन ने भी रुमाल से अपने चेहरे को पोंछ लिया।

मामी उसकी ओर देखते हुए बोली, " पूरे कपड़े गीले हो गये. "

" हां, मैं भी गीला हो गया हुं। "

बारिश से भीग जाने के कारण मामी का ब्लाउज उनके बदन से चिपक गई थी और उनकी सफेद ब्रा के स्ट्रेप नजर आ रहे थे। कमीज चुंकि स्लीवलेस थी इसलिये मामी की गोरी गोरी बांहे गजब की खूबसुरत लग रही थी। उन्होंने दाहिनी कलाई में एक पतला सा सोने का कड़ा पहन रखा था और दूसरे हाथ में पतले स्ट्रेप की घड़ी बांध रखी थी। उनकी उंगलियाँ पतली पतली थी और नाखून लंबे लंबे थे उन पर पिंक कलर की चमकीली नेईल पोलिश लगी हुई थी। स्टियरिंग को पकड़ने के कारण उनका हाथ थोड़ा उंचा हो गया था जिस के कारण उनकी चिकनी चिकनी कांखो के दर्शन भी मदन को आराम से हो रहे थे। बारिश के पानी से भीग कर मामी का बदन और भी सुनहरा हो गया था। बालों की एक लट उनके गालों पर अठखेलियां खेल रही थी। मामी के इस खूबसुरत रुप को निहार कर मदन का लण्ड खड़ा हो गया था।
घर पहुंच कर कार को पार्किंग में लगा कर लोन पार करते हुए दोनो घर के दरवाजे की ओर चल दिये। बारिश दोनो को भिगा रही थी। दोनो के कपड़े बदन से पूरी तरह से चिपक गये थे। मामी की कमीज उनके बदन से चिपक कर उनकी चूचियों को और भी ज्यादा उभार रही थी। चुस्त सलवार उनके बदन उनकी जांघो से चिपक कर उनकी मोटी जांघो का मदमस्त नजार दिखा रही थी। कमीज चिपक कर मामी के चूतड़ों की दरार में घुस गई थी। मदन पीछे पीछे चलते हुए अपने लण्ड को खड़ा कर रहा था। तभी लोन की घास पर मामी का पैर फिसला और वो पीछे की तरफ गिर पड़ी। उनका एक पैर लग भग मुड गया था और वो मदन के ऊपर गिर पड़ी जो ठीक उनके पीछे चल रहा था। मामी मदन के ऊपर गीरी हुई थी। मामी के मदमस्त चूतड़ मदन के लण्ड से सट गये। मामी को शायद मदन के खड़े लण्ड का एहसास हो गया था उसने अपने चूतड़ों को लण्ड पर थोड़ा और दबा दिया और फिर आराम से उठ गई। मदन भी उठ कर बैठ गया।

मामी ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली, " बारिश में गिरने का भी अपना अलग ही मजा है। "

" कपड़े तो पूरे खराब हो गये मामी. "

" हा, तेरे नये अंडरवियर का अच्छा उदघाटन हो गया. "

मदन हँसने लगा। घर के अन्दर पहुंच कर जल्दी से अपने अपने कमरो की ओर भागे। मदन ने फिर से हाफ पैन्ट और एक टी-शर्ट डाल ली और गन्दे कपड़ों को बाथरुम में डाल दिया। कुछ देर में मामी भी अपने कमरे से निकली। मामी ने अभी एक बड़ी खूबसुरत सी गुलाबी रंग की नाईटी पहन रखी थी। मैक्सी के जैसी स्लिवलेस नाईटी थी। नाईटी कमर से ऊपर तक तो ट्रान्सपरेन्ट लग रही थी मगर उसके नीचे शायद मामी ने नाईटी के अन्दर पेटीकोट पहन रखा था इसलिये वो ट्रान्सपरेन्ट नही दिख रही थी।
उर्मिला देवी किचन में घुस गई और मदन ड्राईंग रुम में मस्ती से बैठ कर टेलीवीजन देखने लगा। उसने दूसरा वाला अंडरवियर भी पहन रखा था अब उसे लण्ड के खड़ा होने पर पकड़े जाने की कोई चिन्ता नही थी। किचन में दिन की कुछ ।सब्जियाँ और दाल पड़ी हुई थी। चावल बना कर मामी उसके पास आई और बोली,
" चल कुछ खा ले। "

खाना खा कर सारे बर्तन सिन्क में डाल कर मामी ड्राईंग रुम में बैठ गई और मदन भी अपने लिये मेन्गो शेक ले कर आया और सामने के सोफे पर बैठ गया। मामी ने अपने पैर को उठा कर अपने सामने रखी एक छोटी टेबल पर रख दिये और नाईटी को घुटनो तक खींच लिया था। घुटनो तक के गोरे गोरे पैर दिख रहे थे। बड़े खूबसुरत पैर थे मामी के। तभी मदन का ध्यान उर्मिला देवी के पैरों से हट कर उनके हाथों पर गया। उसने देखा की मामी अपने हाथों से अपनी चूचियों को हल्के हल्के खुजला रही थी। फिर मामी ने अपने हाथों को पेट पर रख लिया। कुछ देर तक ऐसे ही रखने के बाद फिर उनका हाथ उनके दोनो जांघो के बीच पहुंच गया।

मदन बड़े ध्यान से उनकी ये हरकते देख रहा था। मामी के हाथ ठीक उनकी जांघो के बीच पहुंच गये और वो वहां खुजली करने लगे। जांघो के ठीक बीच में बुर के ऊपर हल्के हल्के खुजली करते-करते उनका ध्यान मदन की तरफ गया। मदन तो एक टक अपनी मामी को देखे जा रहा था। उर्मिला देवी की नजरे जैसे ही मदन से टकराई उनके मुंह से हंसी निकल गई। हँसते हुए वो बोली,
" नई कच्छी पहनी है ना इसलिये खुजली हो रही है। "

मदन ने अपनी चोरी पकड़े जाने पर शर्मिन्दा हो मुंह घुमा कर अपनी नजरे टी वी से चिपका लीं। तभी उर्मिला देवी ने अपने पैरो को और ज्यादा फैला दिया। ऐसा करने से उनकी नाईटी नीचे की तरफ लटक गई । मदन के लिये ये बड़ा बढ़िया मौका था, उसने अपने हाथों में पकड़ी रबर की गेंद जान बुझ के नीचे गिरा दिया। गेंद लुढकता हुआ ठीक उस छोटे से टेबल के नीचे चला गया जिस पर मामी ने पैर रखे हुए थे।
मदन, " ओह !! " कहता हुआ उठा और टेबल के पास जाकर गेंद लेने के बहाने से लटकी हुई नाईटी के अन्दर झांकने लगा। एक तो नाईटी और उसके अन्दर मामी ने पेटीकोट पहन रखा था, लाईट वहां तक पूरी तरह से नही पहुंच पा रही थी पर फिर भी मदन को मामी की मस्त जांघो के दर्शन हो ही गये। उर्मिला देवी भी मदन की इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो समझ गई की छोकरे के पैन्ट में भी हलचल हो रही है और उसी हलचल के चक्कर में उनकी कच्छी के अन्दर झांकने के चक्कर में पड़ा हुआ है।
मदन गेंद लेकर फिर से सोफे पर बैठ गया तो उर्मिला देवी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, 
" अब इस रबर की गेंद से खेलने की तेरी उमर बीत गई है, अब दूसरे गेंद से खेला कर। "

मदन थोड़ा सा शरमाते हुए बोला," और कौन सी गेंद होती है मामी, खेलने वाली सारी गेंद तो रबर से ही बनी होती है. "

" हां, होती तो है मगर तेरे इस गेंद की तरह इधर उधर कम लुढकती है. ", कह कर फिर से मदन की आंखो के सामने ही अपनी बुर पर खुजली करके हँसते हुए बोली,
" बड़ी खुजली सी हो रही है पता नही क्यों, शायद नई कच्छी पहनी है इसलिये। "

मदन तो एक दम से गरम हो गया और एक टक जांघो के बीच देखते हुए बोला,
" पर मेरा अंडरवियर भी तो नया है वो तो नही काट रहा. "

" अच्छा, तब तो ठीक है, वैसे मैंने थोड़ी टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी ली है, हो सकता है इसलिये काट रही होगी. "

"वाह मामी, आप भी कमाल करती हो इतनी टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी खरीदने की क्या जरुरत थी आपको ? "

" टाईट फ़िटिंग वाली कच्छी हमारे बहुत काम की होती है, ढीली कच्छी में परेशानी हो जाती है, वैसे तेरी परेशानी तो खतम हो गई ना. "

" हां, मामी, बिना अंडरवियर के बहुत परेशानी होती थी, सारे लड़के मेरा मजाक उड़ाते थे। "

" पर लड़कियों को तो अच्छा लगता होगा, क्यों ? "

" हाय, मामी, आप भी नाआआ,,,, "

" क्यों लड़कियाँ तुझे नही देखती क्या ? "

" लड़कियाँ मुझे क्यों देखेंगी ? "
क्रमश:………………………………
Reply
04-25-2019, 11:53 AM,
#15
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन 

भाग 13 – समझदार मामी की सीख


" तु अब जवान हो गया है, मर्द बन गया है. "

" कहाँ मामी, आप भी क्या बात करती हो !!? "

" अब जब अंडरवियर पहनने लगा है, तो इसका मतलब ही है की तु अब जवान हो गया है. "

मदन इस पर एक दम से शरमा गया,
" धत् मामी,,,,,,,,,!!! "

" तेरा खड़ा होने लगा है क्या ? "
मामी की इस बात पर तो मदन का चेहर एकदम से लाल हो गया। उसकी समझ में नही आ रहा था क्या बोले। तभी उर्मिला देवी ने अपनी नाईटी को एकदम घुटनो के ऊपर तक खींचते हुए बड़े बिन्दास अन्दाज में अपना एक पैर जो की टेबल पर रखा हुआ था उसको मदन की जांघो पर रख दिया (मदन दर-असल पास के सोफे पर पलाठी मार के बैठा हुआ था।) मदन को एकदम से झटका सा लगा। मामी अपने गोरे गोरे पैर की एड़ी से उसकी जांघो को हल्के हल्के दबाने लगी और एक हाथ को फिर से अपने जांघो के बीच ले जा कर बुर को हल्के हल्के खुजलाते हुए बोली,
"बोल न क्यों मैं ठीक बोल रही हूँ ना ?"

"ओह मामी,"

"नया अंडरवियर लिया है, दिखा तो सही कैसा लगता है ?"

"अरे क्या मामी आप भी ना बस ऐसे,,,,,,,,,,अंडरवियर भी कोई पहन के दिखाने वाली चीज है."

"क्यों लोग जब नया कपड़ा पहनते है तो दिखाते नही है क्या ?", कह कर उर्मिला देवी ने अपने एड़ी का दबाव जांघो पर थोड़ा सा और बढ़ा दिया, पैर की उंगलियों से हल्के से पेट के निचले भाग को कुरेदा और मुस्कुरा के सीधे मदन की आंखो में झांक कर देखती हुई बोली,
" दिखा ना कैसा लगता है, फिट है या नही ?"

"छोड़ो ना मामी.."

'अरे नये कपड़े पहन कर दिखाने का तो लोगो को शौक होता है और तु है की शरमा रहा है, मैं तो हंमेशा नये कपड़े पहनती हूँ तो सबसे पहले तेरे मामा को दिखाती हूँ, वही बताते है की फ़िटिंग कैसी है या फिर मेरे ऊपर जँचता है या नही ।"

"पर मामी ये कौन सा नया कपड़ा है, आपने भी तो नई कच्छी खरीदी है वो आप दिखायेंगी क्या ??"

उर्मिला देवी भी समझ गई की लड़का लाईन पर आ रहा है, और कच्छी देखने के चक्कर में है। फिर मन ही मन खुद से कहा की बेटा तुझे तो मैं कच्छी भी दिखाऊँगी और उसके अन्दर का माल भी पर जरा तेरे अंडरवियर का माल भी तो देख लूँ नजर भर के फिर बोली,
"हां दिखाऊँगी अभी तेरे मामा नही है,,,,,ना, तेरे मामा को मैं सारे कपड़े दिखाती हूँ."

"तो फिर ठीक है मैं भी मामा को ही दिखाऊँगा."

"अरे तो इसमे शरमाने की क्या बात है, आज तो तेरे मामा नही है इसलिये मामी को ही दिखा दे."
“धत् मामी,,,,,,”
और उर्मिला देवी ने अपने पूरे पैर को सरका कर उसकी जांघो के बीच में रख दिया जहां पर उसका लण्ड था। मदन का लण्ड खड़ा तो हो ही चुका था। उर्मिला देवी ने हल्के से लण्ड की औकात पर अपने पैर को चला कर दबाव डाला और मुस्कुरा कर मदन की आंखो में झांकते हुए बोली,
"क्यों मामी को दिखाने में शरमा रही है, क्या ?"

मदन की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी। मुंह से बोल नही फुट रहे थे। धीरे से बोला, "रहने दीजिये मामी मुझे शरम आती है."

उर्मिला देवी इस पर थोड़ा झिड़कने वाले अन्दाज में बोली,
"इसीलिये तो अभी तक इस रबर की गेंद से खेल रहा है."

मदन ने अपनी गरदन ऊपर उठायी तो देखा की उर्मिला देवी अपनी चूचियों पर हाथ फिरा रही थी। मदन बोला, "तो और कौन सी गेंद से खेलूँ ?"

"ये भी बताना पडेगा क्या, मैं तो सोचती थी तु समझदार हो गया होगा, लगता है मुझे ही समझाना पड़ेगा चल आज तुझे समझदार बनाती हूँ।"

"हाय मामी, मुझे शरम आ रही है."

उर्मिला देवी ने अपने पंजो का दबाव उसके लण्ड पर बढ़ा दिया और ढकी छुपी बात करने की जगह सीधा हमला बोल दिया,
"बिना अंडरवियर के जब खड़ा कर के घुमता था तब तो शरम नही आती थी,,,,,,,,??, दिखा ना।"

और लण्ड को कस के अपने पंजो से दबाया ताकि मदन अब अच्छी तरह से समझ जाये की ऐसा अन्जाने में नही बल्कि जान-बुझ कर हो रहा है। इस काम में उर्मिला देवी को बड़ा मजा आ रहा था। मदन थोड़ा परेशान सा हो गया फिर उसने हिम्मत कर के कहा, "ठीक है मामी, मगर अपना पैर तो हटाओ।"
"ये हुई ना बात." कह कर उर्मिला देवी ने अपना पैर हटा लिया।

मदन खड़ा हो गया और धीरे से अपनी हाफ पैन्ट घुटनो के नीचे तक सरका दी। उर्मिला देवी को बड़ा मजा आ रहा था। लड़कों को जैसे स्ट्रीप टीज देखने में मजा आता है, आज उर्मिला देवी को अपने भांजे के सौजन्य से वैसा ही स्ट्रीप तीज देखने को मिल रहा था।

उसने कहा, "पूरा पैन्ट उतार ना, और अच्छे से दिखा।"

मदन ने अपना पूरा हाफ पैन्ट उतार दिया और शरमाते-संकोचते सोफे पर बैठने लगा तो उर्मिला देवी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मदन का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और अपने पास खड़ा कर लिया और धीरे से उसकी आंखो में झांकते हुए बोली, "जरा अच्छे से देखने दे ना कैसी फ़िटिंग आई है।"

मदन ने अपने टी-शर्ट को अपने पेट पर चढ़ा रखा था और मामी बड़े प्यार से उसके अंडरवियर कि फ़िटिंग चेक कर रही थी। छोटा सा वी शेप का अंडरवियर था। इलास्टिक में हाथ लगा कर देखते हुए मामी बोली,
"हमम् फ़िटिंग तो ठीक लग रही है, ये नीला रंग भी तेरे ऊपर खूब अच्छा लग रहा है मगर थोड़ी टाईट लगती है."

"वो कैसे मामी, मुझे तो थोड़ा भी टाईट नही लग रहा."

मदन का खड़ा लण्ड अंडरवियर में एकदम से उभरा हुआ सीधा डंडे की शकल बना रहा था। उर्मिला देवी ने अपने हाथ को लण्ड की लंबाई पर फिराते हुए कहा,
"तु खुद ही देख ले, पूरा पता चल रहा है की तेरा औजार खड़ा हो गया है।"

लण्ड पर मामी का हाथ चलते ही मारे सनसनी के मदन की तो हालत खराब होने लगी, कांपती हुई आवाज में, ".....ओह...आहहहह....." करके रह गया।

उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए पुछा, "हर समय ऐसे ही रहता है क्या ?"

"ना हही मामी, हमेशा ऐसे क्यों रहेगा."

“तो अभी क्यों खड़ा है?”
“आप इतनी देर से छेड़खानी…अ।”
“क्या?”
मदन पहले तो झोंक मे कहने लगा था पर मामी के “क्या?” ने ब्रेक लगा दिया तब उसकी समझ में आया कि क्या बोल रहा है तो घबरा के रुक गया और जल्दी से बोला –
“न प…पता नहीं मामी”
उर्मिला –“अच्छा तो मेरी छेड़खानी से तेरे औजार का ये हाल है इसका मतलब कोई और औरत या लड़की होती तो शायद तेरा ये उसपे चढ़ ही दौड़ता ।” 
मदन(जल्दी से) –“नहीं मामी”
उर्मिला –“क्या नहीं मामी?” 
उर्मिला(अचानक बात बदलते हुए मुस्कुराईं) –“अच्छा ये बता वैसे आम तौर पे ढीला रहता है ?"

मदन(तपाक से) –“"हाँ मामी।"

"अच्छा, तब तो ठीक फ़िटिंग का है, मैं सोच रही थी की अगर हर समय ऐसे ही खड़ा रहता होगा तो तब तो तुझे थोड़ा और ढीला लेना चाहिये था।"

"बहुत बड़ा दिख रहा है, पेशाब तो नहीं लगी है तुझे ?"

'नही मामी."
"तब तो वो ही कारण होगा, वैसे वो सेल्स-गर्ल भी हँस रही थी, जब मैंने बोला की मेरे भांजे का थोड़ा ज्यादा ही बड़ा है," कह कर उर्मिला देवी ने लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से कस कर दबाया। मदन के मुंह से एक सिसकारी निकल गई।

उर्मिला देवी ने लण्ड को एक बार और दबा दिया और बोली,
"चल जा सोफे पर बैठ।"

मदन सीधे धरती पर आ गया। लण्ड पर मामी के कोमल हाथों का स्पर्श जो मजा दे रहा था वो बड़ा अनूठा और अजब था। मन कर रहा था की मामी थोड़ी देर और लण्ड दबाती पर मन मार कर चुप चाप सोफे पर आ के बैठ गया और अपनी सांसो को ठीक करने लगा। उर्मिला देवी भी बड़ी सयानी औरत थी जानती थी की लौंडे के मन में अगर एक बार तड़प जाग जायेगी तो फिर लौंडा खुद ही उसके चंगुल में फ़ँस जायेगा। कमसिन उमर के नौजवान छोकरे के मोटे लण्ड को खाने के चक्कर में वो मदन को थोड़ा तड़पाना चाहती थी। उर्मिला देवी ने अभी भी अपनी नाईटी को अपने घुटनो से ऊपर तक उठाया हुआ था और अपने दोनो पैर फिर से सामने की टेबल पर रख लिये थे। मदन ने धीरे से अपनी हाफ पैन्ट को उठाया और पहनने लगा। 

उर्मिला देवी तभी बोल पड़ी, "क्यों पहन रहा है ?, घर में और कोई तो है नही, और मैंने तो देख ही लिया है."

"हाय नही मामी, मुझे बड़ी शरम आ रही है."

तभी उर्मिला देवी ने फिर से अपनी चूत के ऊपर खुजली की। मदन का ध्यान भी मामी के हाथों के साथ उसी तरफ चला गया।

उर्मिला देवी मुस्कुराती हुई बोली, "अभी तक तो शायद केवल कच्छी काट रही थी पर अब लगता है कच्छी के अन्दर भी खुजली हो रही है।"

मदन इसका मतलब नही समझा चुप-चाप मामी को घूरता रहा। उर्मिला देवी ने सोचा खुद ही कुछ करना पडेगा, लौंडा तो कुछ करेगा नही। अपनी नाईटी को और ऊपर सीधा जांघो तक उठा कर उसके अन्दर हाथ घुसा कर हल्के हल्के सहलाने लगी। और बोली, "जा जरा पाउडर तो ले आ ।"

मदन अंडरवियर में ही बेडरुम में जाने को थोड़ा हिचका मगर मामी ने फिर से कहा, "ले आ जरा सा लगा लेती हूँ।"
मदन उठा और पाउडर ले आया। उर्मिला देवी ने पाउडर ले लिया और थोड़ा सा पाउडर हाथों में ले कर अपनी हथेली को नाईटी में घुसा दिया। और पाउडर लगाने लगी। मदन तिरछी निगाहों से अपनी मामी हरकतो को देख रहा था और सोच रहा था काश मामी उसको पाउडर लगाने को कहती। उर्मिला देवी शायद उसके मन की बात को समझ गई और बोली,
"मदन क्या सोच रहा है ?"

"कुछ नही मामी, मैं तो बस टी वी देख रहा हूँ."

"तु बस टी वी देखता ही रह जायेगा, तेरी उमर के लड़के ना जाने क्या-क्या कर लेते है ?, तुझे पता है दुनिया कितनी आगे निकल गई है ?"

"क्या मामी आप भी क्या बात करती हो, मैं अपने क्लास का सबसे तेज बच्चा हूँ ?"

" मुझे तो तेरी तेजी कहीं भी नही दिखी।"

"क्या मतलब है, आपका मामी ?"

" मतलब ये कि अब तू जवान हो रहा है, अगर तू क्लास में सबसे तेज है तो तेरी जवानी में भी तो तेजी नजर आनी चाहिये?”
“कैसी तेजी मामी ।”
मदन ने भोलेपन का स्वांग करने का ठान लिया था।
मतलब तेरे मन में जवानी की अंगड़ाइयाँ आनी चाहिये सच बता मन तो करता होगा ?,"

"क्या मन करता होगा मामी ?"

"तांक-झांक करने का", अपनी चूत पर नाईटी के अन्दर से हाथ चलाते हुए बोली,
"अब तो तेरा पूरा खड़ा होने लगा है."

"नहीं वो तो मामी,,,,,,!!?"

"क्यों मन नही करता क्या ?, मैं जैसे ऐसे तेरे सामने पाउडर लगा रही हूँ तो तेरा दे्खने का मन करता होगा,,,,,,,,,,"

"धत् मामी,,,,,,,,,।"

"मैं सब समझती हूँ,,,,,,,तु शरमाता क्यों है ?, तेरी उमर में तो हर लड़का यही तमन्ना रखता है की कोई खोल के दिखा दे,,,,,,,,,,,,,,,,,तेरा भी मन करता होगा,,,,,,,,, फिर मदन के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली,
"खोलने की बात सुनते ही सब समझ गया, कैसे चेहरा लाल हो रहा है तेरा, मैं सब समझती हूँ तेरा हाल." ,
मदन का चेहरा और ज्यादा शरम से लाल हो गया पर उसने भी अब बहादुर बनने का फ़ैसला कर लिया पर अपनी नजरे झुकाते हुए बोला,
"आप बात ही ऐसी कर रही हो ।”
उर्मिला (बात बदलते हुए) बोली –“तेरे मामा होते तो उनसे पाउडर लगवा लेती."
मदन –“लाओ मैं पाउडर लगा देता हूँ."

"हाय, लगवा तो लूँ मगर तु कहीं बहक गया तो !?"

"हाय मामी मैं क्यों बहकूँगा ?"

"नही तेरी उमर कम है, जरा सी छेड़छाड़ से ही जब तेरा इतना खड़ा हो गया तो हाथ लगा के क्या हाल हो जायेगा, फिर अगर किसी को पता चल गया तो बदनामी…।"

मदन बोला,
"आपकी कसम मामी किसी को भी नही बताऊँगा."

इस पर उर्मिला देवी ने मदन का हाथ पकड़ अपनी तरफ खींचा, मदन अब मामी के बगल में बैठ गया था। उर्मिला देवी ने अपने हाथों से उसके गाल को हल्का सा मसलते हुए कहा,
"हाय, बड़ी समझदारी दिखा रहा है पर है तो तू बच्चा ही ना कहीं इधर उधर किसी से बोल दिया तो ?"

"नहीं मामी,,,,,,,,मैं किसी से नही,,,,,,,,,"

"खाली पाउडर ही लगायेगा या फिर,,,,,,,,देखेगा भी,,,,,,,,,,,,,,मैं तो समझती थी की तेरा मन करता होगा पर,,,,,,,,"

"हाय मामी पर क्या देखने का मन,,,,,,,,,,"

"ठीक है, चल लगा दे पाउडर."
उर्मिला देवी खड़ी हो गई और अपनी नाईटी को अपनी कमर तक उठा लिया। मदन की नजर भी उस तरफ घुम गई। मामी अपनी नाईटी को कमर तक उठा कर उसके सामने अपनी कच्छी के इलास्टीक में हाथ लगा कर खड़ी थी। मामी की मोटी मोटी केले के तने जैसी खूबसुरत रेशमी गुलाबी जांघे और उनके बीच कयामत बरसाती उनकी काली कच्छी को देख पाउडर का डिब्बा हाथ से छुट कर गिर गया और पाउडर लगाने की बात भी दिमाग से निकल गई।

क्रमश:………………………………
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04-25-2019, 11:53 AM,
#16
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चौधराइन 
भाग 14 – समझदार मामी की सीख 2


कच्छी एकदम छोटी सी थी और मामी की चूत पर चिपकी हुई थी। मदन तो बिना बोले एक टक घूर घूर कर देखे जा रहा था। उर्मिला देवी चुप-चाप मुस्कुराते हुए अपनी नशीली जवानी का असर मदन पर होता हुआ देख रही थी। मदन का ध्यान तोड़ने की गरज से वो हँसती हुई बोली,
कैसी है मेरी कच्छी की फ़िटिंग ठीक ठाक है, ना ?"

मदन एकदम से शरमा गया। हकलाते हुए उसके मुंह से कुछ नही निकला। पर उर्मिला देवी वैसे ही हँसते हुए बोली,
"कोई बात नही, शरमाता क्यों है, चल ठीक से देख कर बता कैसी फ़िटिंग आई है ?"

मदन कुछ नही बोला और चुप-चाप बैठा रहा। इस पर खुद उर्मिला देवी ने उसका हाथ पकड़ के खींच कर उठा दिया और बोली,
"देख के बता ना, कही सच-मुच में टाईट तो नही, अगर होगी तो कल चल के बदल लेंगे।"

मदन ने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाई और सीधा मामी के पैरों के पास घुटनो के बल खड़ा हो गया और बड़े ध्यान से देखने लगा। मामी की चूत कच्छी में एकदम से उभरी हुई थी। चूत की दोनो फांक के बीच में कच्छी फ़ँस गई थी और चूत के छेद के पास थोड़ा सा गीलापन दिख रहा था। मदन को इतने ध्यान से देखते हुए देख कर उर्मिला देवी ने हँसते हुए कहा,"
क्यों फिट है या नही, जरा पीछे से भी देख के बता ?"

कह कर उर्मिला देवी ने अपने भारी गठीले चूतड़ मदन की आंखो के सामने कर दिये। कच्छी का पीछे वाला भाग तो पतला सा स्टाईलीश कच्छी की तरह था। उसमे बस एक पतली सी कपड़े की लकीर सी थी जो की उर्मिला देवी की चूतड़ों की दरार में फ़ँसी हुई थी। मैदे के जैसे गोरे-गोरे गुदाज बड़े बड़े चूतड़ों को देख कर तो मदन के होश ही उड़ गये, उसके मुंह से निकल गया,
"मामी पीछे से तो आपकी कच्छी और भी छोटी है चूतड़ भी कवर नही कर पा रही।"

इस पर मामीजी ने हँसते हुए कहा, "अरे ये कच्छी ऐसी ही होती है, पीछे की तरफ केवल एक पतला सा कपड़ा होता है जो बीच में फ़ँस जाता है, देख मेरे चूतड़ों के बीच में फ़ँसा हुआ है, ना ?"

"हाँ मामी, ये एकदम से बीच में घुस गया है."

"तु पीछे का छोड़, आगे का देख के बता ये तो ठीक है, ना ?"

"मुझे तो मामी ये भी छोटा लग रहा है, साईड से थोड़े बहुत बाल भी दिख रहे है, और आगे का कपड़ा भी कहीं फ़ँसा हुआ लग रहा है।"

इस पर उर्मिला देवी अपने हाथों से कच्छी के जांघो के बीच वाले भाग के किनारो को पकड़ा और थोड़ा फैलाते हुए बोली,
"वो उठने बैठने पर फ़ँस ही जाता है, अब देख मैंने फैला दिया है, अब कैसा लग रहा है ?"

"अब थोड़ा ठीक लग रहा है मामी, पर ऊपर से पता तो फिर भी चल रहा है."

"अरे तु इतने पास से देखेगा तो, ऊपर से पता नही चलेगा क्या, मेरा तो फिर भी ठीक है तेरा तो साफ दिख जाता है।"

"पर मामी, हम लोगों का तो खड़ा होता है ना, तो क्या आप लोगों का खड़ा नही होता ?"

"नहीं हमारे में दरार सी होती है, इसी से तो हर चीज इसके अन्दर घुस जाती है।"

कह कर उर्मिला देवी खिलखिला कर हँसने लगी। मदन ने भी थोड़ा सा शरमाने का नाटक किया। अब उसकी भी हिम्मत खुल चुकी थी। अब अगर उर्मिला देवी चुची पकड़ाती तो आगे बढ़ कर दबोच लेता । उर्मिला देवी भी इस बात को समझ चुकी थी। ज्यादा नाटक चोदने की जगह अब सीधा खुल्लम-खुल्ला बाते करने में दोनो की भलाई थी, ये बात अब दोनो समझ चुके थे। उर्मिला देवी ने इस पर मदन के गालों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा,
"देखने से तो बड़ा भोला भाला लगता है मगर जानता सब है, कि किसका खड़ा होता है और किसका नही, लड़की मिल जाये तो तू उसे छोड़ेगा,,,,,,,,,,,,,,, नहीं बहुत बिगड़ गया है तू तो"

कह कर उर्मिला देवी ने अपनी नाईटी को जिसको उन्होंने कमर तक उठा रखा था नीचे गिरा दिया।
"क्या मामी आप भी ना, मैं कहाँ बिगड़ा हूँ, लाओ पाउडर लगा दूँ."

"अच्छा बिगड़ा नही है, तो फिर ये तेरा औजार जो तेरी अंडरवियर में है, वो और भी क्यों तनता जा रहा है?"

मदन ने चौंक कर अपने अंडरवियर की तरफ देखा, सच-मुच उसका लण्ड एकदम से दीवार पर लगी खूँटी सा तन गया था और अंडरवियर को एक टेन्ट की तरह से उभारे हुए था। उसने शरमा कर अपने एक हाथ से अपने उभार को छुपाने की कोशिश की।

" हाय मामी आप भी छोड़ो न लाओ पाउडर लगा दूँ।"

“न बाबा तु रहने दे पाउडर, वो मैंने लगा लिया है, कहीं कुछ उलटा सीधा हो गया तो।"

"क्या उलटा सीधा होगा मामी ?, मदन अभी भी भोलेपन का नाटक कर रहा था बोला –
“मैं तो इसलिये कह रहा था की आपको खुजली हो रही थी तो फिर,,,,,,,,,,,,", बात बीच में ही कट गई।

"खूब समझती हूँ क्यों बोल रहे थे ?"

" क्यों मामी नही, मैं तो बस आप को खुजली,,,,,,,।"

"मैं अच्छी तरह से समझती हूँ तेरा इरादा क्या है, और तु कहाँ नजर गड़ाये रहता है, मैं तुझे देखती थी पर सोचती थी ऐसे ही देखता होगा मगर अब मेरी समझ में अच्छी तरह से आ गया है."

मामी के इतना खुल्लम-खुल्ला बोलने पर मदन के लण्ड में एक सनसनी दौड़ गई.

"हाय मामी नही,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,", 

मदन की बाते उसके मुंह में ही रह गई और उर्मिला देवी ने आगे बढ़ कर मदन के गाल पर हल्के से चिकोटी काटी।
मामी के कोमल हाथों का स्पर्श जब मदन के गालों पर हुआ तो उसका लण्ड एक बार फिर से लहरा गया। मामी की नंगी जांघो के नजारे की गरमाहट अभी तक लण्ड और आंख दोनो को गरमा रही थी। तभी मामी ने उसकी ठुड्डी पकड़ के उसके चेहरे को थोड़ा सा ऊपर उठाया और एक हाथ से उसके गाल पे चुट्की काट के बोली,
"बहुत घूर घूर के देखता है ना, दिल चाहता होगा की नंगी देखने को मिल जाये तो… है ना ?

मामी की ये बात सुन कर मदन का चेहरा लाल हो गया और गला सुख गया फ़ँसी हुई आवाज में, "माआआआम्म्म्म्मीईईई,,,,,,,," करके रह गया।

मामी ने इस बार मदन का एक हाथ पकड़ लिया और हल्के से उसकी हथेली को दबा कर कहा, "क्यों मन करता है की नही, की किसी की देखुं।"

मदन का हाथ मामी के कोमल हाथों में कांप रहा था। मदन को अपने और पास खींचते हुए उर्मिला देवी ने मदन का चेहरा अपने गुदाज सीने से सटा लिया था। मामी को मदन की गर्म सांसो का अहसास अपने सीने पर हो रहा था। मदन को भी मामी की उठती गिरती छातियाँ अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी।

थुक निगल के गले को तर करता हुआ मदन बोला, "हांआआ मामी मन…तो…।"

उर्मिला देवी ने हल्के से फिर उसके हाथ को अपनी चूचियों पर दबाते हुए कहा, 'देख मैं कहती थी ना तेरा मन करता होगा, , लौंडा जैसे ही जवान होता है उसके मन में सबसे पहले यही आता है की किसी औरत की देखे।"

अब मदन भी थोड़ा खुल गया और हकलाते हुए बोला,
"स…च, मा…मी बहुत मन करता है कि देखे."

"मैं दिखा तो देती मगर....."

"हाय मामी, मगर क्या ?"

"तूने कभी किसी की देखी है ?”

"नही, माआआअमीईईइ...!!"

"तेरी उमर कम है, फिर मैं तेरी मामी हूँ।"

"मामी मैं अब बड़ा हो गया हूँ."
"मैं दिखा देती मगर तेरी उमर कम है, तेरे से रहा नही जायेगा."

"क्या रहा नही जायेगा मामी, बस दिखा दो एक बार."

उर्मिला देवी ने अपना एक हाथ मदन के अंडरवियर के ऊपर से उसके लण्ड पर रख दिया। मदन एकदम से लहरा गया। मामी के कोमल हाथों का लण्ड पर दबाव पा कर मजे के कारण से उसकी पलके बन्द होने को आ गई। उर्मिला देवी बोली,
" देख कैसे खड़ा कर के रखा हुआ है ?, अगर दिखा दूँगी तो तेरी बेताबी और बढ़ जायेगी."

"हाय नही बढ़ेगी मामी, प्लीज एक बार दिखा दो मेरी जिज्ञासा शान्त हो जायेगी."

"कच्छी खोल के दिखा दुं ?"
"हां मामी, बस एक बार, किसी की नही देखी." मदन गिड़गिड़ाया।

मदन का सर जो अभी तक उर्मिला देवी के सीने पर ही था, उसको अपने हाथों से दबाते हुए और अपने उभारों को थोड़ा और उचकाते हुए उर्मिला देवी बोली,
"वैसे तो मैंने नई ब्रा भी पहनी हुई, उसको भी देखेगा क्या ??

"हाँ मामी उसको भी…।"

"देखा तेरी नियत बदलने लगी यही तो मैं कह रही थी कि तुझसे रहा न जायेगा ।“

"नहीं मामी, मैं आपकी हर बात मानुंगा ।"

“मानेगा”
“हाँ मामी”
“चल दिखा दूँगी मगर एक शर्त पर”

"ठीक है”
“जा और मुत कर के अपना अंडरवियर उतार के आ."

मदन को एकदम से झटका लग गया। उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या जवाब दे। मामी और उसके बीच खुल्लम-खुल्ला बाते हो रही थी मगर मामी अचानक से ये खेल इतना खुल्लम-खुल्ला हो जायेगा, ये तो मदन ने सोचा भी ना था। कुछ घबराता और कुछ सकपकाता हुआ वो बोला,
"मामी अंडरवियर,,,,,,,,,,,,,,"

"हा, जल्दी से अंडरवियर उतार के मेरे बेडरुम में आ जा फिर दिखाऊँगी.", कह कर उर्मिला देवी उस से अलग हो गई और टी वी बन्द कर के अपने बेडरुम की तरफ चल दी।
मामी को बेडरुम की तरफ जाता देख जल्दी से बाथरुम की तरफ भागा। अंडरवियर उतार कर जब मदन मुतने लगा तो उसके लण्ड से पेशाब की एक मोटी धार कमोड में छर छरा कर गिरने लगी। जल्दी से पेशाब कर अपने फनफनाते लण्ड को काबु में कर मदन मामी के बेडरुम की तरफ भागा। अन्दर पहुंच कर देखा की मामी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बालों का जूड़ा बना रही थी।

मदन को देखते ही तपाक से बोली, "चल बेड पर बैठ मैं आती हुं.",

और बेडरुम से जुड़े बाथरुम में चली गई। बाथरुम से मामी के मुतने की सीटी जैसी आवाज सुनाई दे रही थी। कुछ पल बाद ही मामी बाथरुम से अपनी नाईटी को जांघो तक उठाये हुए बाहर निकली। मदन का लण्ड एक बार फिर से सनसनाया। उसका दिल कर रहा था की मामी की दोनो जांघो के बीच अपने मुंह को घुसा दे और उनकी रसीली चूत को कस के चुम ले। तभी उर्मिला देवी जो की, बेड तक पहुंच चुकी थी की आवाज ने उसको वर्तमान में लौटा दिया,
"तु अभी तक अंडरवियर पहने हुए है, उतारा क्यों नही ?


"हाय् मामी, अंडरवियर उतार के क्या होगा?!! मैं तो पूरा नंगा हो जाऊँगा मामी शरम आ रही है ।"

"तो क्या हुआ ?, मुझे कच्छी खोल के दिखाने के लिये बोलता है मुझे शरम नही आती क्या? शर्त यही है न तू शर्मा न मैं, अगर अंडरवियर उतारेगा तो मैं भी दिखाऊँगी और तुझे बताऊँगी की तेरी मामी को कहाँ कहाँ खुजली होती है और तेरी खुजली मिटाने की दूसरी दवा भी बताऊँगी । अब चल अंडरवियर खोल वरना अपने कमरे में जा।”."
मदन घबराया कि कहीं बनता काम न बिगड़ जाये सकपका के बोला –

"नहीं नहीं मामी, मैं उतार दूँगा पर दूसरी कौन सी दवा है ?"

"बताऊँगी बेटा, पहले जरा अपना सामान तो दिखा।"

मदन ने थोड़ा सा शरमाने का नाटक करते हुए अपना अंडरवियर धीरे धीरे नीचे सरका दिया। उर्मिला देवी की चूत पनियाने और आंखो की चमक बढ़ने लगी । आज दस इंच मोटे तगडे लण्ड का दर्शन पहली बार खुल्लम-खुल्ला ट्युब लाईट की रोशनी में हो रहा था। नाईटी जिसको अब तक एक हाथ से उन्होंने उठा कर रखा हुआ था, छुट कर नीचे हो गई । मदन की आंखो को गरमी देने वाली चीज तो ढक चुकी थी मगर उसकी मामी के मजे वाली चीज अपनी पूरी औकात पर आ के फुफकार रही थी। उर्मिला देवी ने एक बार अपनी नाईटी के ऊपर से ही अपनी चूत को दबाया और खुजली करते हुए बोली,
"इस्स्स्स्स्स्स्स्स्सस तेरी माँ की आँख ! बाप रे ! कितना बड़ा हथियार है तेरा, उफ़!! मेरी तो खुजली और बढ़ रही है।"
मदन जो की थोड़ा बहुत शरमा रहा था झुंझुलाने का नाटक कर बोला –
"खुजली बढ़ रही है तो कच्छी उतार दो ना मामी, मैं पाउडर लगा दूँ, वो काम तो करती नही हो, बेकार में मेरा अंडरवियर उतरवा दिया."


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#17
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चौधराइन 
भाग 15 – समझदार मामी की सीख 3



"क्यों तू मेरी देखेगा तो मैं तेरा क्यों न देखूँ सबर कर मैं अभी उतारती हूँ, कच्छी फिर तुझे बताऊँगी अपनी खुजली की दवाई, हाय कैसा मुसल जैसा है तेरा."

फिर उर्मिला देवी ने अपनी नाईटी के बटन खोलने शुरु कर दिये। नाईटी को बड़े आराम से धीरे कर के पूरा उतार दिया। अब उर्मिला देवी के बदन पर केवल एक काले रंग की ब्रा और नाईटी के अन्दर पहनी हुई पेटीकोट थी। गोरा मैदे के जैसा माँसल गदराया पर कसा हुआ पेट, उसके बीच गहरी गुलाबी नाभी, दो विशाल छातियाँ, जो की ऐसा लग रहा था की ब्रा को फ़ाड़ के अभी निकल जायेगी उनके बीच की गहरी खाई, ये सब देख कर तो मदन एकदम से बेताब हो गया था। लण्ड फुफकार मार रहा था और बार-बार झटके ले रहा था। मदन अपने हाथों से अपने लण्ड को नीचे की तरफ़ जोर जोर से दबाने लगा।
बाहर खूब जोरो की बारिश शुरु हो गई थी। ऐसे मस्ताने मौसम में मामी-भांजे क मस्ताना खेल अब शुरु हो गया था। ना तो अब उर्मिला देवी रुकने वाली थी ना ही मदन।
उर्मिला देवी ने जब उसकी बेताबी देखी तो आगे बढ़ कर खुद अपने हाथों से उसके लण्ड को पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली,
"मैं कहती थी ना की तेरे बस का नही है, तु रह नही पायेगा, अभी तो मैंने पूरा खोला भी नही है और तेरा ये बौखलाने लगा ।"
फ़िर उर्मिला देवी ने मदन के हाथ से लण्ड छुड़ा के बोली –
“तू अपने इस औजार को छोड़।”
“बड़ा दर्द कर रहा है मामी ”
मदन ने कहा और उसका हाथ फ़िर अपने लन्ड पर चला गया ये देख उर्मिला देवी बोली,
" तु मानता क्यों नही बेटा छूने से और अकड़ेगा, और दर्द करेगा, अच्छा तू ऐसा कर मेरी ब्रा खोल तेरा ध्यान बटेगा चल खोल ।" ये कहकर उसका हाथ अपनी ब्रा में कैद चूचियों के ऊपर रख दिया

मदन ने पीछे हाथ ले जा कर अपनी मामी की ब्रा के स्ट्रेप्स खोलने की कोशिश की मगर ऐसा करने से उसका चेहरा मामी के सीने के बेहद करीब आ गया और उसके हाथ कांपने लगे ऊपर से ब्रा इतनी टाईट थी की खुल नही रही थी। उर्मिला देवी ने हँसते हुए अपने बदन को थोड़ा ढीला किया खुद अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपनी ब्रा के स्ट्रेप्स को खोल दिये और हँसते हुए बोली.
"ब्रा भी नही खोलना जानता है, चल कोई बात नही मैं तुझे पूरी ट्रेनिंग दूँगी, ले देख अब मेरी चूचियाँ जिनको देखने के लिये इतना परेशान था."

मामी के कन्धो से ब्रा के स्ट्रेप्स को उतार कर मदन ने झपट कर जल्दी से ब्रा को एक झटके में निकाल फेंका। जिससे उनके बड़े बड़े लक्का कबूतरों से उरोज फ़ड़फ़ड़ा के बाहर आ गये उसकी इस हरकत से मामी हँसने लगी जिससे उनके फ़ड़फ़ड़ाते स्तन और भी थिरकने लगे वो हँसते हुए बोली,
" आराम से, जल्दी क्या है, अब जब बोल दिया है कि दिखा दूँगी तो फिर मैं पीछे नही हटने वाली।"

मामी के ऊपर को मुँह उठाये फ़ड़फ़ड़ाते थिरकते स्तन देख कर मदन तो जैसे पागल ही हो गया था। एक टक घूर घूर कर देख रहा था उनके मलाई जैसे चुचों को। एकदम बोल के जैसी ठोस और गुदाज चूचियाँ थी। निप्पल भी काफी मोटे मोटे और हल्का गुलाबीपन लिये हुए थे उनके चारो तरफ छोटे छोटे दाने थे।
मामी ने जब मदन को अपनी चूचियों को घूरते हुए देखा तो मदन का हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख दिया और मुस्कुराती हुई बोली,
"कैसा लग रहा है, पहली बार देख के !"

"हां मामी पहली बार बहुत खूबसुरत है."

मदन को लग रहा था जैसे की उसके लण्ड में से कुछ निकल जायेगा। लण्ड एकदम से अकड़ कर अप-डाउन हो रहा था और सुपाड़ा तो एकदम पहाड़ी आलु के जैसा लाल हो गया था।

"देख तेरा औजार कैसे फनफना रहा है, नसें उभर आई हैं थोड़ी देर और देखेगा तो लगता है फट जायेंगी."

"हाय मामी फट जाने दो, थोड़ा सा और कच्छी खोल के भीई………"

इस पर उर्मिला देवी ने उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में थाम लिया और दबाती हुई बोली, "अभी ये हाल है तो कच्छी खोल दी तो क्या होगा ?"

"अरे अब जो होगा देखा जायेगा मामी, जरा बस सा खोल के……"

इस पर उर्मिला देवी ने उसके लण्ड को अपनी कोमल गुदाज हथेली मे पकड़ सहलाने और ऊपर नीचे करने लगीं । बीच बीच मे लण्ड के सुपाड़े से चमड़ी पूरी तरह से हटा देतीं और फिर से ढक देती। मदन को समझ में नही आ रहा था की क्या करे। बस वो सबकुछ भुल कर सिसकारी लेते बेख्याली और उत्तेजना में मामी के उनके बड़े बड़े लक्का कबूतरों से उरोज सहलाते दबाते हुए उनके हाथों का मजा लूट रहा था। लण्ड तो पहले से ही पके आम के तरह से कर रखा था। दो चार हाथ मारने की जरुरत थी, फट से पानी फेंक देता । मदन की आंखे बन्द होने लगी, गला सुख गया ऐसा लगा जैसे शरीर का सारा खून सिमट कर लण्ड में भर गया है। मजे के कारण आंखे नही खुल रही थी। मुंह से केवल गोगीयांनी आवाज में बोलता जा रहा था,
"हाय, ओह मामी,,,,,,,,,,,,,,,,,,"
तभी उर्मिला देवी ने उसका लण्ड सहलाते हुए बोल पड़ी,
"अब देख, तेरा कैसे फल फला के निकलेगा जब तु मेरी कच्छी की सहेली को देखेगा."

चुसाई बन्द होने से मजा थोड़ा कम हुआ तो मदन ने भी अपनी आंखे खोल दी। मामी ने एक हाथ से मुठ मारते हुए दूसरे हाथ से अपने पेटीकोट को पूरा पेट तक ऊपर उठा दिया और अपनी जांघो को खोल कर कच्छी के किनारे (मयानी) को पकड़ एक तरफ सरका कर अपनी झांटो भरी चूत के दर्शन कराये तो मदन के लण्ड का धैर्य जाता रहा और मदन के मुंह से एकदम से आनन्द भरी जोर की सिसकारी निकली और आंखे बन्द होने लगी और, "ओह मामी..........ओह मामी...." , करता हुआ भल-भला कर झड़ने लगा।
उर्मिला देवी ने उसके झड़ते लण्ड का सारा माल अपने हाथों में लिया और फिर बगल में रखे टोवल में पोंछती हुई बोली,
" देखा मैं कहती थी ना की, देखते ही तेरा निकल जायेगा।"

मदन अब एकदम सुस्त हो गया था। इतने जबरदस्त तरीके से वो आजतक नही झड़ा था। उर्मिला देवी ने उसके गालो को चुटकी में भर कर मसलते हुए एक हाथ से उसके ढीले लण्ड को फिर से मसला। मदन अपनी मामी को हँसरत भरी निगाहों से देख रहा था। उर्मिला देवी मदन की आंखो में झांकते हुए वहीं पर कोहनी के बल मदन के बगल में अधलेटी सी बैठ कर अपने दूसरे हाथ से मदन के ढीले लण्ड को अपनी मुठ्ठी में उसके अंडो समेत कस कर दबाया और बोली, "मजा आया………………???"

मदन के चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कुराहट फैल गई। पर मुस्कुराहट में हँसरत भी थी और चाहत भी थी।
"मजा आया…?", उर्मिला देवी ने फिर से पूछ।

"हाँ मामी, बहुत्,,,,,,,,"

"लगता है पहले हाथ से कर चुका है ?"

"कभी कभी.."

"इतना मजा आया कभी ?"

"नही मामी इतना मजा कभी नही आया,,,,,,,,,,"
मामी ने मदन के लण्ड को जोर से दबोच कर उसके गालो पर अपने दांत गड़ाते हुए एक हल्की सी पुच्ची ली और अपनी टांगो को उसकी टांगो पर चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली, "पूरा मजा लेगा....?"

मदन थोड़ा सा शरमाते हुए बोला, "हाय मामी, हां !!।"

उर्मिला देवी की गोरी चिकनी टांगे मदन के पैरो से रगड़ खा रही थी। उर्मिला देवी का पेटीकोट अब जांघो से ऊपर तक चढ़ चुका था।

"जानता है पूरे मजे का मतलब ?!"

मदन ने थोड़ा संकुचाते हुए अपनी गरदन हां में हिला दी। इस पर उर्मिला देवी ने अपनी नंगी गदराई जांघो से मदन के लण्ड को मसलते हुए उसके गालो पर फिर से अपने दांत गड़ा दिये और हल्की सी एक प्यार भरी चपत लगाते हुए बोली,
"वाह बेटा छुपे रुस्तम मुझे पहले से ही शक था, तु हंमेशा घूरता रहता था।"

फिर प्यार से उसके होठों को चुम लिया और उसके लण्ड को दबोचा। मदन को थोड़ा दर्द हुआ। मामी के हाथ को अपनी हथेली से रोक कर सिसकाते हुए बोला,
"हाय मामी...।"

मदन को ये मीठा दर्द सुहाना लग रहा था। वो सारी दुनिया भुल चुका था। उसके दोनो हाथ अपने आप मामी की पीठ से लग गये और उसने उर्मिला देवी को अपनी बाहों में भर लिया। मामी की दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ अब उसके चेहरे से आ लगीं। मदन ने हपक के एक छाती पे मुँह मारा और चूसने लगा मामी के मुह से कराह निकल गई। मदन उन बड़ी बड़ी चूचियाँ पे जहाँ तहाँ मुँह मारते हुए निपल चूस रहा था उर्मिला देवी सिसकारियाँ भर रहीं थीं ।ऐसे ही मुँह मारते चूसते चूमते बाहों कन्धों गरदन से होते हुए वो उर्मिला देवी के होठों तक पहुँच गया ।

उर्मिला देवी ने फिर से मदन के होठों को अपने होठों में भर लिया और अपनी जीभ को उसके मुंह में डाल कर घुमाते हुए दोनो एक दूसरे को चुमने लगे। औरत के होठों का ये पहला स्पर्श जहां मदन को मीठे रसगुल्ले से भी ज्यादा मीठा लग रहा था वहीं उर्मिला देवी एक नौजवान कमसिन लौंडे के होठों का रस पी कर अपने होश खो बैठी थी। उर्मिला देवी ने मदन के लण्ड को अपनी हथेलीयों में भर कर फिर से सहलाना शुरु कर दिया। कुछ ही देर में मुरझाये लण्ड में जान आ गई। दोनो के होंठ जब एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मीलो लम्बी रेस लगा कर आये हे। अलग हट कर मदन के चेहरे को देखते हुए उर्मिला देवी ने मदन के हाथ को पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखा और कहा,
"अब तू मजा लेने लायक हो गया है."

फिर उसके हाथों को अपनी चूचियों पर दबाया। मदन इशारा समझ गया।उसने उर्मिला देवी की चूचियों को हल्के हल्के दबाना शुरु कर दिया। उर्मिला देवी ने भी मुस्कुराते हुए उसके लण्ड को अपने कोमल हाथों में थाम लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी। आज मोटे दस इंच के लण्ड से चुदवाने की उसकी बरसों की तमन्ना पूरी होने वाली थी। उसके लिये सबसे मजेदार बात तो ये थी की लौंडा एकदम कमसिन उमर का था। जैसे मर्द कमसिन उमर की अनचुदी लड़कियों को चोदने की कल्पना से सिहर उठते है, शायद उर्मिलाजी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था. मदन बाबू के लण्ड को मसलते हुए उनकी चूत पसीज रही थी और इस दस इंच के लण्ड को अपनी चूत की दिवारों के बीच कसने के लिये बेताब हुई जा रही थी।
मदन भी अब समझ चुका था की आज उसके लण्ड की सील तो जरुर टूट जायेगी। दोनो हाथों से मामी की नंगी चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए मामी के होठों और गालो पर बेतहाशा चुम्मीयां लिये जा रहा था। दोनो मामी-भांजे जोश में आकर एक दूसरे से लिपट चिपट रहे थे।

तभी उर्मिलाजी ने मदन के लण्ड को कस कर दबाते हुए अपने होंठ भींच कर मदन को उक्साया, "जरा कस कर।"

मदन ने निप्पल को चुटकी में पकड़ कर आगे की तरफ खींचते हुए जब दबाया तो उर्मिला देवी के मुंह से तो मुंह से सिसकारियाँ फुटने लगी। पैर की एड़ीयों से बिस्तर को रगड़ते हुए अपने चूतड़ों को हवा में उछालने लगी। मदन ने मामी को मस्ती में आते हुए देख और जोर से चूचियों को मसला और अपने दांत गाल पर गड़ा दिये।

उर्मिला देवी एकदम से तिलमिला गई और मदन के लण्ड को कस कर मरोड दिया,
"उईईईईईईईई............माआआआआआ, सस्सस्सस धीरे से,,,,,,,,,,।"

लण्ड के जोर से मसले जाने के कारण मदन एकदम से दर्द से तड़प गया पर उसने चूचियों को मसलना जारी रखा और मामी की पुच्चियां लेते हुए बोला,
"अभी तो बोल रही थी, जोर से और अभी चील्ला रही हो,,,,,,,,,,,,,,,ओह मामी !!!।"

तभी उर्मिला देवी ने मदन के सर को पकड़ा और उसे अपनी चूचियों पर खींच लिया और अपनी बांयी चूची के निप्पल को उसके मुंह से सटा दिया और बोली,
"बातचीत बन्द।"
मदन ने चूची के निप्पल को अपने होठों के बीच कस लिया। थोरी देर तक निप्पल चूसवाने के बाद मामी ने अपनी चूची को अपने हाथों से पकड़ कर मदन के मुंह में ठेला, मदन का मुंह अपने आप खुलता चला गया और निप्पल के साथ जितनी चूची उसके मुंह में समा सकती थी उतनी चूची को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा। दूसरे हाथ से दूसरी चूची को मसलते हुए मदन अपनी मामी के निपल चूस रहा था। कभी कभी मदन के दांत भी उसके मम्मो पर गड़ जाते, पर उर्मिला देवी को यही तो चाहिये था-----एक नौजवान जोश से भरा लौंडा जो उसको नोचे खसोटे और एक जंगली जानवर की तरह उसको चोद कर जवानी का जोश भर दे।

मदन की नोच खसोट के तरीके से उर्मिला देवी को पता चल गया था की लौंडा अभी अनाडी है, पर अनाडी को खिलाडी तो उसे ही बनाना था। एक बार लौंडा जब खिलाडी बन जाये तो फिर उसकी चूत की चांदी ही चांदी थी।

मदन के सर के बालों पर हाथ फेरती हुई बोली,
".........धीरे.....धीरे...,, चूची चूस और निप्पल को रबर की तरह से मत खींच आराम से होठों के बीच दबा के धीरे-धीरे जीभ की मदद से चुमला, और देख ये जो निप्पल के चारो तरफ काला गोल गोल घेरा बना हुआ है ना, उस पर और उसके चारो तरफ अपनी जीभ घुमाते हुए चुसेगा तो मजा आयेगा।"
मदन ने मामी के चूची को अपने मुंह से निकाल दिया, और मामी के चेहरे की ओर देखते हुए अपनी जीभ निकाल कर निप्पल के ऊपर रखते हुए पुछा,
"ऐसे मामी,,??"

"हां, इसी तरह से जीभ को चारो तरफ घुमाते हुए, धीरे धीरे।"

चुदाई की ये कोचिंग आगे जा कर मदन के बहुत काम आने वाली थी जिसका पता दोनो में से किसी को नही था। जीभ को चूची पर बड़े आराम से धीरे धीरे चला रहा था निप्पल के चारो तरफ के काले घेरे पर भी जीभ फिरा रहा था। बीच बीच में दोनो चूची को पूरा का पूरा मुंह में भर कर भी चूस लेता था। उर्मिला देवी को बड़ा मजा आ रहा था और उसके मुंह से सिसकारियाँ फुटने लगी थी,
" ऊऊउईई,,,,,,,,,,,,आअह्हहहह्,,,,,,,,,शशशशश्,,,,,,,,,,,,मदन बेटा,,,,,,,,,,,,,,,,आअह्हह्हह,,,,, ,,,,, ऐसे ही मेरे राजा,,,,,,,,,,शीईईईईईई................एक बार में ही सीख गया, हाय मजा आ रहा है,"

"हाय मामी, बहुत मजा है, ओह मामी आपकी चूची,,,,,,,,,,,,शशशश...... कितनी खूबसुरत है, हंमेशा सोचता था, कैसी होगी ??, आज,,,,,,,,"

" उफफफ्फ् शशशशशसीईईईईईई,,,,,,,,,,,,, आआराआआम से आराम से, उफफफ् साले, खा जा, तेरी चौधराइन चाची के बाग का लंगड़ा आम है, भोसड़ी के,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चूस के सारा रस पी जा।"

मामी की गद्देदार माँसल चूचियों को मदन, सच में शायद लंगड़ा आम समझ रहा था। कभी बायीं चूची मुंह में भरता तो कभी दाहिनी चूची को मुंह में दबा लेता। कभी दोनो को अपनी मुठ्ठी में कसते हुए बीच वाली घाटी में पुच,,,,पुच करते हुए चुम्मे लेता, कभी उर्मिला देवी की गोरी सुराहीदार गरदन को चुमता।
बहुत दिनो के बाद उर्मिला देवी की चूचियों को किसी ने इस तरह से मथा था। उसके मुंह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, आहें निकल रही, चूत पनिया कर पसीज रही थी और अपनी उत्तेजना पर काबु करने के लिये वो बार-बार अपनी जांघो को भींच भींच कर पैर की एड़ीयों को बिस्तर पर रगड़ते हुए हाथ-पैर फेंक रही थी। दोनो चूचियाँ ऐसे मसले जाने और चुसे जाने के कारण लाल हो गई थी।

चूची चूसते-चूसते मदन नीचे बढ़ गया था और मामी के गुदाज पेट पर अपने प्यार का इजहार करते हुए चूम रहा था। एकदम से बेचैन होकर सिसयाते हुए बोली,
" कितना दुध पीयेगा मुये, उईई,,,,,,, शिईईईईईईईईई,,,,,,,,, साले, चूची देख के चूची में ही खो गया, इसी में चोदेगा क्या, भोसड़ी के ?।"
मदन मामी के होठों को चुम कर बोला,
"ओह मामी बहुत मजा आ रहा है सच में, मैंने कभी सोचा भी नही था. हाय, मामी आपकी चूचियाँ खा जाऊँ??"

उर्मिला देवी की चूत एकदम गीली हो कर चू ने लगी। भगनसा खड़ा होकर लाल हो गया था। इतनी देर से मदन के साथ खिलवाड करने के कारण धीरे-धीरे जो उत्तेजना का तुफान उसके अन्दर जमा हुआ था, वो अब बाहर निकलने के लिये बेताब हो उठा था।
उर्मिला देवी ने एक झापड़ उसके चूतड़ पर मारा और उसके गाल पर दांत गड़ाते हुए बोली, "साले, अभी तक चूची पर ही अटका हुआ है।"

मदन बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और एक हाथ में अपने तमतमाये हुए लण्ड को पकड़ कर उसकी चमड़ी को खींच कर पहाड़ी आलु के जैसे लाल-लाल सुपाड़े को मामी की जाँघों पर रगड़ने लगा।
क्रमश:………………………………
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04-25-2019, 11:53 AM,
#18
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन

भाग 16 – मदन की जिज्ञासा




उत्तेजना के मारे मदन का बुरा हाल हो चुका था, उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था। खेलने के लिये मिले इस नये खिलौने के साथ वो जी भर के खेल लेना चाहता था। लण्ड का सुपाड़ा रगड़ते हुए उसके मुंह से मजे की सिसकारियाँ फुट रही थी,
"ओह मामी, शशशीईईईईईई मजा आ गया मामी, शशशशीईईईईईईईई मामी।"
उर्मिला देवी की चूत में तो आग लगी हुई थी उन्होंने झट से मदन को धकेलते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़ कर अपने पेटीकोट को ऊपर किया एक हाथ से लण्ड को पकड़ा और अपनी झांटदार पनियायी हुई चूत के गुलाबी छेद पर लगा कर बैठ गई। गीली चूत ने सटाक से मदन के पहाड़ी आलु जैसे सुपाड़े को निगल लिया।

मदन का क्यों की ये पहली बार था इसलिये जैसे ही सुपाड़े पर से चमड़ी खिसक कर नीचे गई मदन थोड़ा सा चिहुंक गया।
" ओह मामी, !!!"

"पहली बार है ना, सुपाड़े की चमड़ी नीचे जाने से,,,,,,,,,"

और अपनी चूतड़ों उठा कर खचाक से एक जोरदार धक्का मारा। गीली चूत ने झट से पूरे लण्ड को निगल लिया। जोश में उर्मिला देवी ने पूरा लण्ड अपनी चूत में ठाँस तो लिया पर उनकी साढ़े पाँच इन्ची लन्ड से चुदने वाली चूत मदन के दस इन्ची लण्ड ने चिगुरा दी मारे दर्द के उनकी साँस रुकने लगी जैसे लण्ड चूत से हलक तक आ गया हो। बोली –
“ उईईई माँ बहुत बड़ा है साला।”
नीचे लेटे लेटे ही मदन ने जब फ़िर मामी की गद्देदार माँसल चूचियों सामने देखीं तो फ़िर उनपर झपट पड़ा वो कभी बायीं चूची मुंह में भरता तो कभी दाहिनी चूची को मुंह में दबा लेता। कभी दोनो को एक साथ मिला के चूसता । मामी फ़िर सिसकारियाँ भरने लगी । थोड़ी देर में चूत ने पानी छोड़ दिया और उर्मिला देवी का दर्द कम हो गया तो उन्होंने पेटीकोट को कमर के पास समेट कर खोस लिया और चूतड़ उठा कर दो-तीन और धक्के लगा दिये।

मदन की समझ में खुछ नही आ रहा था। बस इतना लग रहा था जैसे उसके लण्ड को किसी ने गरम भठ्ठी में डाल दिया है। गरदन उठा कर उसने देखने की कोशिश की। मामी ने अपने चूतड़ को पूरा ऊपर उठाया, चूत के रस से चमचमाता हुआ लण्ड बाहर निकला, फिर तेजी के साथ मामी के चूतड़ों नीचे करते ही झांठों के जंगल में समा गया।
"शशशीईईईईईई मामी, आप ने तो अपना नीचे वाला ठीक से देखने भी नही,,,,,,,,,,,"

"बाद में,,,,,,,,,,,,अभी तो नीचे आग लगी हुई है."

"हाय मामी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दिखा देती तोओओओओओओओओओ.."

"अभी मजा आ रहा है,,,,,,,,??"

"हाय, हां, आ रहा हैएएएएए,,,,,,,,,!!"

"तो फिर मजा लूट ना भोसड़ी के, देख के क्या अचार डालेगा ?,,,,,,,,,,,,,,,"

"उफफ् मामी,,,,,,,,,,,,,,,,शीईईईईईईईई ओह, आपकी नीचेवाली तो एकदम गरम,,,,,,,।"

"हां,,,,,,,,,,,,,,,बहुत गरमी है इसमे, अभी इसकी सारी गरमी निकाल दे. फिर बाद में,,,,,,,,,,,,,भठ्ठी देखना,,,,,,,,,,,अभी बहुत खुजली हो रही थी, ऐसे ही चुदाई होती है समझा, पूरा मजा इसी को शीईईईईईई,,,,,,,,,,,,जब चूत में लण्ड अन्दर बाहर होता है तभी,,,,,,,,,,,,,,हाय पहली चुदाई है ना तेरीईईईईईईईई.."

"हां मामी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हाय शीईईईईईई."

"क्यों, क्या हुआ,,,,,,??,,,,,,,,,,,शीईईईईईई.."

"ऐसा लग रहा है, जैसे उफफफ्फ्फ्,,,,,,,,,,,,जैसे ही आप नीचे आती है, एकदम से मेरे लण्ड की चमड़ी नीचे उतर जाती है,,,,,,,,,,,,,,,,उफफफ्फ्फ् माआआमीईईईई बहुत गुदगुदी हो रही है"

"तेरा बहुत मोटा है, ना,,,,,,,,,,,,,,,,,,इसलिये मेरी में एकदम चिपक कर जा रहा है,,,,,,,"
इतना कह कर उर्मिला देवी ने खचाक-खाचाक धक्के लगाना शुरु कर दिया। चूत में लण्ड ऐसे फिट हो गया था जैसे बोतल में कोर्क !!। उर्मिला देवी की चूत जो की चुद चुद के भोसड़ी हो गई थी, आज १० इंच मोटे लण्ड को खा कर अनचुदी बुर बनी हुई थी और इठला कर, इतरा कर पानी छोड़ रही थी। लण्ड चूत की दिवारों से एकदम चिपक कर रगड़ता हुआ पूरा अन्दर तक घुस जाता था, और फिर उसी तरह से चूत की दिवारों को रगड़ते हुए सुपाड़े तक सटाक से निकल कर फिर से घुसने के लिये तैयार हो जाता था। चूत के पानी छोड़ने के कारण लण्ड अब सटा-सट अन्दर बाहर हो रहा था।

मदन ने गरदन उठा कर अपना देखने की कोशिश की मगर उर्मिला देवी के धक्को की रफतार इतनी तेज और झटकेदार थी, की उसकी गरदन फिर से तकिये पर गिर गई। उर्मिला देवी के मुंह से तेज तेज सिसकारियाँ निकल रही थी और वो चूतड़ों उठा उठा के तेज-तेज झटके मार रही थी। लण्ड सीधा उसकी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था और बार बार उसके मुंह से चीख निकल जाती थी। आज उसको बहुत दिनो के बाद ऐसा अनोखा मजा आ राह था। दोनो मामी-भांजा कुतिया-कुत्ते की तरह से हांफ रहे थे और कमरे में गच-गच, फच-फच की आवाजें गुंज रही थी।
"ओहहह,,,,,,,,,,,,,,शीईईईईईई,,,,,,,,,,,,मदन बहुत मस्त लण्ड है,,,,,,,,,उफफफफ्फ्फ्फ्."

"हां,,,,,,,,,,,,,,मामी,,,,,,,,,बहुत मजा आ रहा है,,,,,,,,,,,,,,,,,,आपके खरबूजे ईईईई ???..."

"हां, हां, दबा ना, खरबूजे दबा के खा,,,,,,,,,,,,,,,बहुत दिनो के बाद ऐसा मजा आ रहा है,,,,,,,,,"

"सच माआमीईइ,,,,,,,,आआज तो आपने स्वर्ग में पहुंचा दिया,,,,,,,,,,,"

"हाय तेरे इस घोड़े जैसे लण्ड ने तो,,,,,,,,,,आआआज्ज्ज्ज् मेरी बरसो की प्यास बुझाआअ,,,,,"

खच-खच, करता हुआ लण्ड, बुर में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। उर्मिला देवी की मोटी-मोटी चूतड़ों मदन के लण्ड पर तेजी से उछल-कूद कर रही थी। मस्तानी मामी की दोनो चूचियाँ मदन के हाथों में थी, और उनको अपने दोनो हाथों के बीच दबा कर मथ रहा था।

"ओह हो, राआजूऊऊऊउ बेटाआआआआ,,,,,,,,,,,,,,मेरा निकलेगा अब श्श्श्श्शीशीईईईईईई हाय निकल जायेगा,,,,,,,,,,,,,,,ओओओओओओओओगगगगगगगगगग,,,,,,,,,,,,,,,,(फच-फच-फच) ,,,,,,,,शीईईईईईईईई हायरेएएएएएए कहा था ततततततूऊऊउ,,,,,,,,,,,,,,मजा आआआ गयाआआआ रेएएएएए, गई मैं,,,,,,,,,,हाय आआआआआज तो चूत फ़ाड़ के पानी निकाल दियाआआआ तूनेएएए,,,,,,,,,उफफफ्फ्.."

"हाय मामी, और तेज मारो,,,,,,,मारो और तेज,,,,,,,,,और जोर सेएएएएएए, उफफफफ्फ्फ्फ् बहुत गुदगुदीईइ होओओओओओओ,,,,,,,,,,,,,,"
तभी उर्मिला देवी एक जोर की चीख मारते हुए,
",,,,,,,,,,,,,,शीईईईईईईईईईईई..." 
करते हुए मदन के ऊपर ढेर हो गई। उसकी चूत ने फलफला कर पानी छोड़ दिया। चूत का छेद झड़ते हुए लण्ड को कभी अपनी गिरफ्त में कस रहा था कभी छोड़ रहा था। मदन भी शायद झड़ने के करीब था मगर उर्मिला देवी के रुकने के कारण चुदाई रुक गई थी और वो बस कसमसा कर रह गया। उर्मिला देवी के भारी शरीर को अपनी बाहों में जकड़े हुए नीचे से हल्के हल्के चूतड़ों उठा उठा कर अपने आप को सन्तुष्ट करने की कोशिश कर रहा था। मगर कहते है की थुक चाटने से प्यास नही बुजती।

मदन का लण्ड ऐसे तो झड़ने वाला नही था। हां अगर वो खुद ऊपर चढ़ कर चार पांच धक्के भी जोर से लगा देता तो शायद उसका पानी भी निकल जाता। पर ये तो उसकी पहली चुदाई थी, उसे ना तो इस बात का पता था ना ही उर्मिला देवी ने ऐसा किया। लण्ड चूत के अन्दर ही फुल कर और मोटा हो गया था। दिवारों से और ज्यादा कस गया था। धीरे धीरे जब मामी की सांसे स्थिर हुई तब वो फिर से उठ कर बैठ गई और मदन के बालों में हाथ फेरते हुए उसके होठों से अपने होठों को सटा कर एक गहरा चुम्बन लिया।
"हाय,,,,,,,,,,,,मामी रुक क्यों गई ???,,,,,,,,,,,,,,और धक्का लगाओ ना,,,,,,,,"

"मुझे पता है,,,,,,,,,,तेरा अभी निकला नही है,,,,,,,,,,,मेरी तो इतने दिनो से प्यासी थी,,,,,,,,, की ठहर ही नही पाई,,,,,,,,,,,,,,,"

कहते हुए उर्मिला देवी थोड़ा सा ऊपर उठ गई। पक की आवाज करते हुए मदन का मोटा लण्ड उर्मिला देवी की बित्ते भर की चूत से बाहर निकल गया। उर्मिला देवी जो की अभी भी पेटीकोट पहने हुई थी ने पेटीकोट को चूत के ऊपर दबा दिया। उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और पेटीकोट को चूत के ऊपर दबाते हुए उसके कपड़े को हल्के से रगड़ते हुए पानी पोंछ रही थी। अपनी दाहिनी जांघ को उठाते हुए मदन की कमर के ऊपर से वो उतर गई और धड़ाम से बिस्तर पर अपनी दोनो जांघो को फैला कर तकीये पर सर रख कर लेट गई। पेटीकोट तो पूरी तरह से ऊपर था ही, उसका बस थोड़ा सा भाग उसकी झाँटों भरी चूत को ढके हुए था। वो अब झड़ने के बाद सुस्त हो गई थी। आंखे बन्द थी और सांसे अब धीरे धीरे स्थिर हो रही थी।
मदन अपनी मामी के बगल में लेटा हुआ उसको देख रहा था। उसका लण्ड एकदम सीधा तना हुआ छत की ओर देख रहा था। लण्ड की नसें फुल गई थी और सुपाड़ा एकदम लाल हो गया था। मदन बस दो-चार धक्को का ही मेहमान था, लेकिन ठीक उसी समय मामी ने उसके लण्ड को अपनी चूत से बे-दखल कर दिया था। झड़ने की कगार पर होने के कारण लण्ड फुफकार रहा था, मगर मामी तो अपनी झाड़ कर उसकी बगल में लेटी थी।

सुबह से तरह तरह के आग भड़काने वाले कुतेव करने के कारण उर्मिला देवी बहुत ज्यादा चुदास से भरी हुई थी. मदन का मोटा लण्ड अपनी चूत में लेकार झड़ गई पर मदन का लण्ड तो एक बार चूस कर झाड़ चुकी थी इसलिये और भी नही झड़ा। उर्मिला देवी अगर चाहती तो चार-पांच धक्के और मार कर झाड़ देती, मगर उसने ऐसा नही किया। क्योंकि वो मदन को तड़पाना चाहती थी वो चाहती थी की मदन उसका गुलाम बन जाये। जब उसकी मरजी करे तब वो मदन से चुदवाये अपनी चूतड़ों चटवाये मगर जब उसका दिल करे तो वो मदन की चूतड़ों पे लात मार सके, और वो उसकी चूत के चक्कर में उसके तलवे चाटे, लण्ड हाथ में ले कर उसकी चूतड़ों के पीछे घुमे।

उर्मिला देवी की आंखे बन्द थी और सांसो के साथ धीरे धीरे उसकी नंगी चूचियाँ ऊपर की ओर उभर जाती थी। गोरी चूचियों का रंग हल्का लाल हो गया था। निप्पल अभी भी खड़े और गहरे काले रंग के भुरे थे, शायद उनमें खून भर गया था, मदन ने उनको खूब चुसा जो था। मामी का गोरा चिकना माँसल पेट और उसके बीच की गहरी नाभी,,,,,,,,,,,मदन का बस चलता तो लण्ड उसी में पेल देता। बीच में पेटीकोट था और उसके बाद मामी की कन्दली के खम्भे जैसी जांघे और माँसल गुलाबी पिन्डलियाँ । मामी की आंखे बंद थी इसलिये मदन अपनी आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर देख सकता था। वो अपनी मामी के मस्ताने रुप को अपनी आंखों से ही पी जाना चाहता था, मदन अपने हाथों से मामी की मोटी मोटी जांघो को सहलाने लगा। उसके मन में आ रहा था की इन मोटी-मोटी जांघो पर अपना लण्ड रगड़ दे और हल्के हल्के काट काट कर इन जांघो को खा जाये।

ये सब तो उसने नही किया मगर अपनी जीभ निकाल कर चुमते हुए जांघो को चाटना जरुर शुरु कर दिया। बारी-बारी से दोनो जांघो को चाटते हुए मामी की रानों की ओर बढ़ गया। उर्मिला देवी ने एक पैर घुटनो के पास मोड़ रखा था और दूसरा पैर पसार रखा था। ठीक जांघो के जोड़ के पास पहुंच कर हल्के हल्के चाटने लगा और एक हाथ से धीरे से पेटीकोट का चूत के ऊपर रखा कपड़ा हल्के से उठा कर चूत देखने की कोशिश करने लगा।
तभी उर्मिला देवी की आंखे खुल गई। देखा तो मदन उसकी चूत के पास झुका हुआ आंखे फ़ाड़ कर देख रहा है। उर्मिला देवी के होठों पर एक मुस्कान फैल गई और उन्होंने अपनी दूसरी टांग को भी सीधा फैला दिया।

मामी के बदन में हरकत देख कर मदन ने अपनी गरदन ऊपर उठाई। मामी से नजर मिलते ही मदन झेंप गया। उर्मिला देवी ने बुरा-सा मुंह बना कर नींद से जागने का नाटक किया,
"ऊहहह उह, क्या कर रहा है ?"

फिर अपने दोनो पैरो को घुटनो के पास से मोड़ कर पेटीकोट के कपड़े को समेट कर जांघो के बीच रख दिया और गरदन के पीछे तकिया लगा कर अपने आप को ऊपर उठा लिया और एकदम बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली,
"तेरा काम हुआ नही क्या ?,,,,,,,,,,,,नींद से जगा दिया,,,,,,,,,,,सो जा।"

मदन अब उसके एकदम सामने बैठा हुआ था। उर्मिला देवी की पूरी टांग रानो तक नंगी थी। केवल पेटीकोट समेट कर रानो के बीच में बुर को ढक रखा था।

मदन की समझ में नही आया की मामी क्या बोल रही है। वो गिगयाते हुए बोला, "मामी,,,,,,,,,,,वो,,,,,,,,,,मैं बस जरा सा देखना,,,,,,,,,,,"
"हां, क्या देखना,,??,,,,,,,,,,,,चूत,,,,,,,,,,,???"

"हां हां, मामी वही."

उर्मिला देवी मुंह बिचकाते हुए बोली, "क्या करेगा,,?,,,,,,,झांटे गिनेगा ?।"

क्रमश:………………………
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04-25-2019, 11:53 AM,
#19
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चौधराइन 

भाग 17- अन्तिम पाठ



मदन चौंक गया, हडबड़ाहट में मुंह से निकल गया, "जी,,,जी मामी,,,,,,,"

"बोल न,,,,,,,,,, ,झांटे गिनेगा क्या?"

"ओह नही मामी,,,,,,,,,,प्लीज बस देखनी है,,,,,,,,,,,,,अच्छी तरह से,,,,,,,,"

चूत पर रखे पेटीकोट के कपड़े को एक बार अपने हाथ से उठा कर फिर से नीचे रखा जैसे वो उसे अच्छी तरह से ढक रही हो और बोली,
"पागल हो गया है क्या,,?,,,,,,,,,जा सो जा।"

उर्मिला देवी के कपड़ा उठाने से चूत की झाँटों की एक झलक मिली तो मदन का लण्ड सिहर उठा, खड़ा तो था ही। उर्मिला देवी ने सामने बैठे मदन के लण्ड को अपने पैर के पंजो से हल्का सी ठोकर मारी।

"साले,,,,,,,,,,,,,,खड़ा कर के रखा है,,,,,,?"

मदन ने अपना हाथ उर्मिला देवी की जांघो पर धीरे से रख दिया, और जांघो को हल्के हल्के दबाने लगा, जैसे कोई चमचा अपना कोई काम निकलवाने के लिये किसी नेता के पैर दबाता है, और बोला,
"ओह मामी,,,,,,,,,,,,,,बस एक बार अच्छे से दिखा दो,,,,,,,,,,,,,,,सो जाऊँगा फिर,,"

उर्मिला देवी ने मदन का हाथ जांघो पर से झटक दिया, और झिड़कते हुए बोली,
छोड़,,,,,,,,,हाथ से कर ले,,,,,खड़ा है, इसलिये तेरा मन कर रहा है,,,,,,,,,,,निकाल लेगा तो आरम से नींद आ जायेगी,,,,,,,,,,कल दिखा दूँगी."

"हाय नही मामी,,,,,,,,अभी दिखा दो ना !"

"नही, मेरा मन नही है,,,,,,,,ला हाथ से कर देती हूँ."

"ओह मामी,,,,,,,,,,,हाथ से ही कर देना पर,,,,,,,,,,,,,,दिखा तो दो,,,,,,,,,,,"

अब उर्मिला देवी ने गुस्सा होने का नाटक किया।

"भाग,,,,,,,,,,,,,,रट लगा रखी है दिखा दो,,,,,,,,,दिखा दो,,,,,,,,,,"

"हाय मामी, मेरे लिये तो,,,,,,,,,,हाय प्लीज,,,,,,,,,,,,"

अपने पैर पर से उसके हाथों को हटाते हुए बोली,
"चल छोड़, बाथरुम जाने दे."
मदन ने अभी भी उसकी जांघो पर अपना एक हाथ रखा हुआ था। उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे। तभी उर्मिला देवी ने जो सवाल उससे किया उसने उसका दिमाग घुमा दिया।

"कभी किसी औरत को पेशाब करते हुए देखा है,,,,,,,,,,,?"

"क् क् क्क्या मामी,,,,,,,,,,,,,?"

"चुतीये, एक बार में नही सुनता क्या ?,,,,,,,,,,पेशाब करते हुए देखा है,,,,,,,,किसी औरत को,,,,,,,,,?"

"नननही मामी,,,,,,,अभी तक तो चूत ही नही देखी,,,,,,,,तो पेशाब करते हुए कहाँ से ?"

"ओह हां, मैं तो भुल ही गई थी,,,,,,,,,,तूने तो अभी तक,,,,,,,,,,,,चल ठीक है,,,,,,,इधर आ जांघो के बीच में,,,,,,,,उधर कहाँ जा रहा है,,,,,,,,?"

मदन को दोनो जांघो के बीच में बुला कर मामी ने अपने पेटीकोट को अब पूरा ऊपर उठा दिया, चूतड़ों उठा कर उसके नीचे से भी पेटीकोट के कपड़े को हटा दिया अब उर्मिला देवी पूरी नंगी हो चुकी थी। उसकी चौड़ी चकली झाँटेंदार चूत मदन की आंखो के सामने थी। अपनी गोरी रानो को फैला कर अपनी बित्ते भर की चूत की दोनो फांको को अपने हाथों से फैलाती हुई बोली,
"चल देख,,,,,,"
मदन की आंखो में भुखे कुत्ते के जैसी चमक आ गई थी। वो आंखे फ़ाड़ कर उर्मिला देवी की खूबसुरत डबल रोटी जैसी फुली हुई चूत को देख रहा था। काली काली झाँटों के जंगल के बीच गुलाबी चूत।

"देख, ये चूत की फांके है, और ऊपर वाला छोटा छेद पेशाब वाला, और नीचे वाला बड़ा छेद चुदाई वाला,,,,,,,,,,यहीं पर थोड़ी देर पहले तेरा लण्ड,,,,,,,,,।"

"ओह मामी, कितनी सुंदर चूत है,,,,,,,,,,एकदम गद्देदार पाव रोटी सी फुली हुई,,,,।"

"देख, ये गुलाबी वाला बड़ा छेद,,,,,,,,,इसी में लण्ड,,,,,,,,ठहर जा, हाथ मत लगा,,,,,,"

"ओह, बस जरा सा छु कर,,,,,,"

"साले,,,,,,,,,अभी बोल रहा था, दिखा दो,,,,,,,,,,दिखा दो, और अब छूना है,,,,,,"
कहते हुए उर्मिला देवी ने मदन के हाथों को परे धकेला।

मदन ने फिर से हाथ आगे बढ़ाते हुए चूत पर रख दिया, और बोला,
"ओह मामी प्लीज, ऐसा मत करो,,,,,,,,,अब नही रहा जा रहा, प्लीज,,,,,,,"

उर्मिला देवी ने इस बार उसका हाथ तो नही हटाया मगर उठ कर सीधा बैठ गई, और बोली,
"ना,,,,,,रहने दे, छोड़, तु आगे बढ़ता जा रहा है,,,,,वैसे भी मुझे पेशाब लगी है ।"

"उफफफफफ्फ् मामी, बस थोड़ा सा,,,,,,,,"

"थोड़ा सा क्या ?,,,,,,,,,,मुझे बहुत जोर पेशाब लगी है,,,,,,,,,"

"वो नही मामी, मैं तो बस थोड़ा छू कर,,,,,,,"

"ठीक है, चल छू ले,,,,,,,,पर एक बात बता चूत देख कर तेरा मन चाटने का नही करता,,,,,,,,??"

"चाटने का,,,,,,,,,,,?"

"हां, चूत चाटने का,,,,,,,,,देख कैसी पनिया गई है,,,,,,,,,,,देख गुलाबी वाले छेद को,,,,,,,ठहर जा पूरा फैला कर दिखाती हुं,,,,,,,,,देख अन्दर कैसा पानी लगा है,,,,,इसको चाटने में बहुत मजा आता है,,,,,,,,चाटेगा,,,,??,,,चल आ जा,,,,,,"

और बिना कुछ पुछे उर्मिला देवी ने मदन के सिर को बालों से पकड़ कर अपनी चूत पर झुका दिया।
मदन भी मस्तराम की किताबों को पढ़ कर जानता तो था ही की चूत चाटी और चुसी जाती है, और इनकार करने का मतलब नही था. क्या पता मामी फिर इरादा बदल दे ?

इसलिये चुपचाप मामी की दोनो रानो पर अपने हाथों को जमा कर अपनी जीभ निकाल कर चूत के गुलाबी होठों को चाटने लगा। उर्मिला देवी उसको बता रही थी की कैसे चाटना है ।

"हां, पूरी चूत पर ऊपर से नीचे तक जीभ फिरा के चाट,,,,,,। हां, ऐसे ही शशशशशीईई ईईईईईईई ठीक इसी तरह से, हांआआ, ऊपर जो दाने जैसा दिख रहा है ना, सो चूत का भगनशा है,,,,,,,,उसको अपनी जीभ से रगड़ते हुए हल्के हल्के चाट,,,,,,,,,,शशश शशीईईईईईईईईई शाबाश,,,,,,,, टीट को मुंह मेअं लेएएएए।"

मदन ने बुर के भगनशे को अपने होठों के बीच ले लिया और चूसने लगा। उर्मिला देवी की चूत, टीट-चुसाई पर मस्त हो कर पानी छोड़ने लगी। पहली बार चूत चाटने को मिली थी, तो पूरा जोश दिखा रहा था। जंगली कुत्ते की तरह लफड-लफड करता हुआ अपनी खुरदरी जीभ से मामी की चूत को घायल करते हुए चाटे जा रहा था। चूत की गुलाबी पंखुडीयों पर खुरदरी जीभ का हर प्रहार उर्मिला देवी को अच्छा लग रहा था। वो अपने बदन के हर अंग को रगड़वाना चाहती थी, चाहती थी की मदन पूरी चूत को मुंह में भर ले और स्लररप स्लररप करते हुए चुसे।

मदन के सर को अपनी चूत पर और कस के दबा कर सिसयायी,
"ठीक से चुअस,,,,,,,,,,,,मदन बेटा,,,,,, पूरा मुंह में ले कर,,,,,,,,,हां ऐसे ही,,,,,,,,,शशश शशीईईईईईईईईई ,,,,, बहुत मजा दे रहा है। हाय,,,,,,,,,,,, ,,,,,आआआअह्हाआअ,,,,,,,,,,,,सही चूस रहा हैएएएएए, हांआआ ऐसे ही चूऊउस,,,,,,,,एएएएएस्स्स्स्सेएएए ही."
मदन भी पूरा ठरकी था। इतनी देर में समझ गया था की, उसकी मामी एक नंबर की चुदैल, रण्डी, मादरचोद किस्म की औरत है। साली छिनाल चूत देगी, मगर तड़पा-तड़पा कर।

वैसे उसको भी मजा आ रहा था, ऐसे नाटक करने में। उसने बुर की दोनो फांको को अपनी उंगलियों से फैला कर पूरा फ़ैला दिया, और जीभ को नुकीला कर के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाने लगा। चूत एकदम पसीज कर पानी छोड़ रही थी। नुकीली जीभ को चूत के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाते हुए चूत की दिवारों से रीस रहे पानी को चाटने लगा।

उर्मिला देवी मस्त हो कर चूतड़ों हवा में लहरा रही थी। अपने दोनो हाथों से चूचियों को दबाते हुए, मदन के होठों पर अपनी फुद्दी को रगड़ते हुए चिल्लायी,
"ओह मदन,,,,,,,,मेरा बेटाआआ,,,,,,,,,बहुत मजा आ रहा है, रेएएए,,,,,,,,,,ऐसे ही चाट,,, ,,,,,पूरी बुर चाट ले,,,,,,,,,तूने तो फिर से चुदास से भर दिया,,,,,,,,,,हरामी ठीक से पूरा मुंह लगा कर चाआट नही तो मुंह में ही मुत दूँगीईईइ,,,,,,,,अच्छी तरह से चाआट,,,,,"
ये अब एकदम नये किस्म की धमकी थी। मदन एकदम आश्चर्यचकित हो गया। अजीब कमजर्फ, कमीनी औरत थी। मदन जहां सोचता था अब मामला पटरी पर आ गया है, ठीक उसी समय कुछ नया शगुफा छोड़ देती थी।

सो मदन ने भी एक दाँव फ़ेका, चूत पर से मुंह हटा दिया और गम्भीरता से बोला,
"ओह मामी,,,,,,,,,,तुमको पेशाब लगी है, तो जाओ कर आओ,,,,,,,"

चूत से मुंह हटते ही उर्मिला देवी का मजा कीरकीरा हुआ. मदन के बालो को पकड़ लिया, और गुस्से से भनभनाती हुई उसको जोर से बिस्तर पर पटक दिया, और छाती पर चढ़ कर बोली,
"चुप हराम खोर,,,,,,,,,,अभी चाट ठीक से,,,,,,,,,,अब तो तेरे मुंह में ही मुतुंगी,,,,,,,,,,,,,, पेशाब करने जा रही थी, तब क्यों रोकाआ था,,,,,,,,,,,,,?"

कहते हुए अपनी बुर को मदन के मुंह पर रख कर जोर से दबा दिया। इतनी जोर से दबा रही थी, की मदन को लग रहा था की उसका दम घुट जायेगा। दोनो चूतड़ के नीचे हाथ लगा कर किसी तरह से उसने चूत के दबाव को अपने मुंह पर से कम किया, मगर उर्मिला देवी तो मान ही नही रही थी। चूत फैला कर ठीक पेशाब वाले छेद को मदन के होठों पर दबा दिया, और रगड़ते हुए बोली,
"चाट ना,,,!!?,,,,,,,चाट जरा मेरी पेशाब वाली छेद को,,,,,,,,नही तो अभी मुत दूँगी तेरे मुंह पर,,,,,,,,,हरामी,,,,,,,,,,कभी किसी औरत को मुतते हुए नही देखा है ना ?,,,,,,,, अभी दिखाती हूँ, तुझे."

और सच में एक बुंद पेशाब टपका दिया,,,,,,,,,,अब तो मदन की समझ में नही आ रहा था की क्या करें कुछ बोला भी नही जा रहा था। मदन ने सोचा साली ने अभी तो एक बुंद ही मुत पिलाया है, पर कहीं अगर कुतिया ने सच में पेशाब कर दिया तो क्या करूँगा ?? चुप-चाप चाटने में ही भलाई है, ऐसे भी पूरी बुर तो चटवा ही रही है। पेशाब वाले छेद को मुंह में भर कर चाटने लगा। बुर के भगनशे को भी अपनी जीभ से छेड़ते हुए चाट रहा था।

पहले तो थोड़ी घिन्न सी लगी थी मगर फिर मदन को भी मजा आने लगा। अब वो बड़े आराम से पूरी फुद्दी को चाट रहा था। दोनो हाथों से गुदाज चूतड़ों को मसलते हुए बुर का रस चख रहा था।
उर्मिला देवी अब चुदास से भर चुकी थी,
"उफफफ्फ्,,,,,,,,,शीईईईईई बहुत,,,,,,,मजा,,,,,,,,हाय रेएएएएएएए तूने तो खुजली बढ़ा दी, कंजरे,,,,,,,,,अब तो फिर चुदवाना पडेगा,,,,,,,,भोसड़ी के, लण्ड खड़ा है कि, ?!!!!,,,,,"

क्रमश:……………………
Reply
04-25-2019, 11:53 AM,
#20
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन 
भाग 18 - माहिर मदन



मदन जल्दी से चूत पर से मुंह हटा कर बोला.
"ख्...खड़ा है, मामी,,,,,,,,एकदम खड़ा हैएएएएएए.."

"कैसे चोदना है ??,,,,,,,चल छोड़ मैं खुद,,,,,,,,"

"हाय, नही मामी,,,,,,,इस बाआर,,,,,,,मैं,,,,,,,,,,"

"फिर आजा सदानन्द के लण्ड,,,,,,,,जल्दी से,,,,,,,,बहुत खुजली हो,,,,,,,,,,,,,",
कहते हुए उर्मिला देवी नीचे पलंग पर लेट गई। दोनो टांग घुटनो के पास से मोड़ कर जांघ फैला दी, चूत की फांको ने अपना मुंह खोल दिया था।

मदन लण्ड हाथ में लेकर जल्दी से दोनो जांघो के बीच में आया, और चूत पर लगा कर कमर को हल्का सा झटका दिया। लण्ड का सुपाड़ा उर्मिला देवी की भोसड़े में पक की आवाज के साथ घुस गया। सुपाड़ा घुसते ही उर्मिला देवी ने अपने चूतड़ों को उचकाया । मोटा पहाड़ी आलु जैसा सुपाड़ा पूरा घुस चुका था। मामी की फुद्दी एकदम गरम भठ्ठी की तरह थी। चूत की गरमी को पाकर मदन का लण्ड फनफना गया।

लण्ड फ़क से मामी की बुर में फिसलता चला गया। कुंवारी लौंडिया होती तो शायद रुकता, मगर यह तो उर्मिला देवी की सेंकडो बार चुदी चूत थी, जिसकी दिवारों ने आराम से रास्ता दे दिया। उर्मिला देवी को लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में मोटा लोहे का डन्डा गरम करके डाल दिया हो। लण्ड चूत के आखीरी कोने तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था।
उफफफफ्फ्फ्,,,,,हरामी, आराम से नहीं डाल सकता था ?,,,,,,एक बार में ही पूराआआआ,,,,,,,,,,,"

आवाज गले में ही घुट के रह गई, क्योंकि ठरकी मदन अब नही रुकने वाला था। चूतड़ों उछाल उछाल कर पका-पक लण्ड पेले जा रहा था। मामी की बातों को सुन कर भी उनसुनी कर दी। मन ही मन उर्मिला देवी को गाली दे रहा था,
",,,,,,,,,साली कुतिया ने इतना नाटक करवाया है,,,,,,,,,बहन की लौडी ने,,,,,,,,अब इसकी बातों को सुन ने का मतलब है, फिर कोई नया नाटक खड़ा कर देगी,,,,,,,,,जो होगा बाद में देखूँगा,,,,,,,,पहले लण्ड का माल इसकी चूत में निकाल दुं,,,,,,,,,,,,,"

सोचते हुए धना-धन चूतड़ों उछाल-उछाल कर पूरे लण्ड को सुपाड़े तक खींच कर चूत में डाल रहा था। कुछ ही देर में चूत की दिवारों से पानी का सैलाब बहने लगा। लण्ड अब सटा-सट फच-फच की आवाज करते हुए अन्दर बाहर हो रहा था। उर्मिला देवी भी बेपनाह मजे में डुब गई। मदन के चेहरे को अपने हाथों से पकड़ उसके होठों को चुम रही थी, मदन भी कभी होठों कभी गालो को चुमते हुए चोद रहा था।

उर्मिला देवी के मुंह से सिसकारियाँ निकल रही थी,,,,,,,,
"शीईईईईईईईई,,,,,,,,,,,आईईईईईई,,,,,,और जोर सेएएएएएएएएए मदन,,,,,,,,,उफफफफ्फ्फ् बहुत मजा आआआककक्क्क्क्क्,,,,,,,,,,,,,,,,,फाआआड देएएएएएगाआआ,,,,,,,,उफफफफ्फ्फ् मादरच्,,"

"उफफफफ्फ्फ् मामी, बहुत मजा आ रहा हैएएएए,,,,,,,,,,,"

"हां, मदन बहुत मजा आ रहा है,,,,,,,,,,,,,,,,ऐसे ही धक्के माआर,,,,,,,,बहुत मजा दे रहा तेरा हथियार,,,,,हाआये शीईईईईई चोद्,,,,,,,,,,अपने घोड़े जैसे,,,,,,,लण्ड सेएएएएए"
तभी मदन ने दोनो चूचियों को हाथों में भर लिया, और खूब कस कर दबाते हुए एक चूची को मुंह में भर लिया, और धीरे धीरे चूतड़ों उछालने लगा। उर्मिला देवी को अच्छा तो लगा मगर उसकी चूत पर तगडे धक्के नही पड़ रहे थे।

"मादरचोद, रुकता क्यों है ? दुध बाद में पीना, पहले चूतड़ों तक का जोर लगा के चोद."

"हाय मामी, थोड़ा दम तो लेने दो,,,,,,,,,पहली बार,,,,,,,,,,,?"

"चुप हरामी,,,,,,,,,,,चूतड़ों में दम नही,,,,,,,,,,,तो चोदने के लिये क्यों मर रहा था ?,,,,,,, मामी की चूत में मजा नही आ रहा क्या,,,,,,,,,,,?"

"ओह्ह्हह मामी, मेरा तो सपना सच हो गयाआ,,,,,,,,,,,,,,,,हर रोज सोचता था कैसे आपको चोदु ?!!,,,,,आज,,,,,,,मामी,,,,,,,,ओह मामी,,,,,,,,,,बहुत मजा आ रहा हैएएएएएए,,,,,,,,,,,बहुत गरम हैएएएएए आपकी चूत."

"हां, गरम और टाईट भी है,,,,,,,,,चोदो,,,,,,,,,आह्ह्ह,,,,,,,चोदो अपनी इस चुदासी मामी को ओह्ह्ह्हह,,,,,,,,,बहुत तडपी हुं,,,,,,,,,,,,मोटा लण्ड खाने के लिये,,,,,,,,,,तेरा मामा, बहन का लण्ड तो बस्सस,,,,,,,तू,,,,,,,,अब मेरे पास ही रहेगा,,,,,,,,, ,यहीं पर अपनी जांघो के बीच में दबोच कर रखूँगी,,,,,,,,,"

मदन (धक्के लगाते हुए) –“हां मामी, अब तो मैं आपको छोड़ कर जाने वाला नहीईईई,,,,,,,ओह मामी, सच में चुदाई में कितना मजा है,,,,,,,,,, हाय मामी देखो ना कितने मजे से मेरा लण्ड आपकी चूत में जा रहा है और आप उस समय बेकार में चिल्ला,,,,,,,,,?

मामी (मदन के धक्कों की वजह से रुक रुक के) –“अबे साले…लण्ड वाला है ना, तुझे क्या पता,,,,,,,,,,इतना……मोटा…लण्ड किसी…कुंवारी लौंडिया में…घुसा देता तो………अब तक बेहोश………मेरे जैसी चुदक्कड़ औरत……को भी एक बार तो……………बहुत मस्त लण्ड है ऐसे ही पूरा जड़ तक ठेल ठेल कर चोद…आ…आ…आ…ईशईईईईईईईईई ,,,,,,,,तू तो पूरा खिलाडी चुदक्कड़ हो…ग…या है ।"
लण्ड फच फच करता हुआ चूत के अन्दर बाहर हो रहा था। उर्मिला देवी चूतड़ों को उछाल उछाल कर लण्ड ले रही थी। उसकी बहकी हुई चूत को मोटे १० इंच के लण्ड का सहारा मिल गया था। चूत इतरा-इतरा कर लण्ड ले रही थी।

मदन का लण्ड पूरा बाहर तक निकल जाता था, और फिर कच से चूत की गुलाबी दिवारों को रौंदता हुआ सीधा जड़ तक ठोकर मारता था। दोनो अब हांफ रहे थे। चुदाई की रफतार में बहुत ज्यादा तेजी आ गई थी। चूत की नैया अब किनारा खोज रही थी।

उर्मिला देवी ने अपने पैरो को मदन की कमर के इर्द गिर्द लपेट दिया था और चूतड़ों उछालते हुए सिसकाते हुए बोली,
"शीईईईईई राजा अब मेरा निकल जायेगा,,,,,,,,जोर जोर से चोद,,,,,,,,,,पेलता रह,,,,, चोदु,,,,,,,,,मार जोर शीईईईईई,,,,,,,,,,निकाल दे, अपना माआआल्ल अपनी मामी की चूत के अन्दर,,,,,,,,,,ओह ओहहहहह्ह्ह्ह्ह?

"हाय मामीईई, मेरा भी निकलेगा शीईईईईईईईईई तुम्हारी चूत फ़ाड़ डालूँगाआआ,,,मेरे लण्ड काआआ पानीईईई,,,,,,,,,,,ओह मामीईईईइ…। हायएएए,,,,,,,, ,,,,,,,उफफफफ्फ्फ्।"

"हाय मैं गईईईईईईई, ओह आआअहहह्ह्हाआआ शीईईईइए....",
करते हुए उर्मिला देवी ने मदन को अपनी बाहों में कस लिया, उसकी चूत ने बहुत सारा पानी छोड़ दिया। मदन के लण्ड से तेज फुव्वारे की तरह से पानी निकलने लगा। उसकी कमर ने एक तेज झटका खाया और लण्ड को पूरा चूत के अन्दर पेल कर वो भी हांफते हुए ओहहहह्ह्ह्ह्ह्ह करते हुए झड़ने लगा। लण्ड ने चूत की दिवारों को अपने पानी से सरोबर कर दिया। दोनो मामी-भांजा एक दूसरे से पूरी तरह से लिपट गये। दोनो पसीने से तर-बतर एक दूसरे की बाहों में खोये हुए बेसुध हो गये।
करीब पांच मिनट तक इसी अवस्था में रहने के बाद जैसे उर्मिला देवी को होश आया उसने मदन को कन्धो के पास से पकड़ कर हिलाते हुए उठाया,
"मदन उठ,,,,,मेरे ऊपर ही सोयेगा क्या ?"

मदन जैसे ही उठा पक की आवाज करते हुए उसका मोटा लण्ड चूत में से निकल गया। वो अपनी मामी के बगल में ही लेट गया। उर्मिला देवी ने अपने पेटीकोट से अपनी चूत पर लगे पानी पोंछा और उठ कर अपनी चूत को देखा तो उसकी की हालत को देख कर उसको हँसी आ गई। चूत का मुंह अभी भी थोड़ा सा खुला हुआ था। उर्मिला देवी समझ गई की मदन के हाथ भर के लण्ड ने उसकी चूत को पूरा फैला दिया है। अब उसकी चूत सच में भोसड़ा बन चुकी है और वो खुद भोसड़ेवाली चुदक्कड़ । माथे पर छलक आये पसीने को वहीं रखे टोवेल से पोंछने के बाद उसी टोवेल से मदन के लण्ड को बड़े प्यार से साफ कर दिया।"
मदन मामी को देख रहा था। उर्मिला देवी की नजरे जब उस से मिली तो वो उसके पास सरक गई, और मदन के माथे का पसीना पोंछ कर पुछा,
"मजा आया,,,,,,,,???"

मदन ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हां मामी,,,,,,,,,बहुत !!!।"

अभी ठीक ५ मिनट पहले रण्डी के जैसे गाली गलोच करने वाली बड़े प्यार से बाते कर रही थी।

"थक गया क्या ?,,,,,,,,,सो जा, पहली बार में ही तूने आज इतनी जबरदस्त मेहनत की है, जितनी तेरे मामा ने सुहागरात को नही की होगी."

मदन को उठता देख बोली, "कहाँ जा रहा है ?"

"अभी आया मामी,,,,,,,,,। बहुत जोर की पेशाब लगी है."

"ठीक है, मैं तो सोने जा रही हूँ,,,,,,,,,,अगर मेरे पास सोना है, तो यहीं सो जाना नही तो अपने कमरे में चले जाना,,,,,,,,,,,,केवल जाते समय लाईट ओफ कर देना."

पेशाब करने के बाद मदन ने मामी के कमरे की लाईट ओफ की, और दरवाजा खींच कर अपने कमरे में चला गया। उर्मिला देवी तुरंत सो गई, उन्होंने इस ओर ध्यान भी नही दिया। अपने कमरे में पहुंच कर मदन धड़ाम से बिस्तर पर गिर पड़ा, उसे जरा भी होश नही था।
सुबह करीब सात बजे की उर्मिला देवी की नींद खुली। जब अपने नंगेपन का अहसास हुआ, तो पास में पड़ी चादर खींच ली। अभी उसका उठने का मन नही था। बन्द आंखो के नीचे रात की कहानी याद कर, उनके होठों पर हल्की मुस्कुराहट फैल गई। सारा बदन गुद-गुदा गया। बीती रात जो मजा आया, वो कभी ना भुलने वाला था। ये सब सोच कर ही उसके गालो में गड्ढे पड़ गये, की उसने मदन के मुंह पर अपना एक बुंद पेशाब भी कर दिया था। उसके रंगीन सपने साकार होते नजर आ रहे थे।

ऊपर से उर्मिला देवी भले ही कितनी भी सीधी सादी और हँसमुख दिखती थी, मगर अन्दर से वो बहुत ही कामुक-कुत्सीत औरत थी। उसके अन्दर की इस कामुकता को उभारने वाली उसकी सहेली हेमा शर्मा थी। जो अब उर्मिला देवी की तरह ही एक शादी शुदा औरत थी, और उन्ही के शहर में रहती थी।

हेमा, उर्मिला देवी के कालेज के जमाने की सहेली थी। कालेज में ही जब उर्मिला देवी ने जवानी की दहलीज पर पहला कदम रखा था, तभी उनकी इस सहेली ने जो हर रोज अपने चाचा-चाची की चुदाई देखती थी, उनके अन्दर काम-वासना की आग भड़का दी। फिर दोनो सहेलीयां एक दूसरे के साथ लिपटा-चिपटी कर तरह-तरह के कुतेव करती थी, गन्दी-गन्दी किताबे पढ़ती थी, और शादी के बाद अपने पतियों के साथ मस्ती करने के सपने देखा करती।

हेमा का तो पता नही, मगर उर्मिला देवी की किस्मत में एक सीधा सादा पति लिखा था, जिसके साथ कुछ दिनो तक तो उन्हे बहुत मजा आया मगर, बाद में सब एक जैसा हो गया। और जब से लड़की थोड़ी बड़ी हो गई मदन का मामा हफ्ते में एक बार नियम से उर्मिला देवी की साड़ी उठाता लण्ड डालता धकम पेल करता, और फिर सो जाता।

उर्मिला देवी का गदराया बदन कुछ नया मांगता था। वो बाल-बच्चे, घर-परिवार सब से निश्चिंत हो गई थी. सब कुछ अपनी रुटीन अवस्था में चल रहा था। ऐसे में उसके पास करने धरने के लिये कुछ नही था, और उसकी कामुकता अपने उफान पर आ चुकी थी। अगर पति का साथ मिल जाता तो फिर,,,,,,,,,, मगर उर्मिला देवी की किस्मत ने धोखा दे दिया। मन की कामुक भावनाओं को बहुत ज्यादा दबाने के कारण, कोमल भावनायें कुत्सीत भावनाओं में बदल गई थी। अब वो अपने इस नये यार के साथ तरह-तरह के कुतेव करते हुए मजा लूटना चाहती थी।
आठ बजने पर बिस्तर छोडा, और भाग कर बाथरुम में गई. कमोड पर जब बैठी और चूत से पेशाब की धारा निकलने लगी, तो रात की बात फिर से याद आ गई और चेहरा शरम और मजे की लाली से भर गया। अपनी चुदी चूत को देखते हुए, उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई की, कैसे रात में मदन के मुंह पर उन्होंने अपनी चूत रगडी थी, और कैसे लौंडे को तड़पा तड़पा कर अपनी चूत की चटनी चटाई थी।

नहा धो कर, फ्रेश हो कर, निकलते निकलते ९ बज गये, जल्दी से मदन को उठाने उसके कमरे में गई, तो देखा लौंडा बेसुध होकर सो रहा है। थोड़ा सा पानी उसके चेहरे पर डाल दिया।

मदन एकदम से हडबड़ा कर उठता हुआ बोला, "पेशशशा,,,,ब,,,,,,मत्,,,,,,,।"

आंखे खोली तो सामने मामी खड़ी थी। वो समझ गई की, मदन शायद रात की बातो को सपने में देख रहा था, और पानी गिरने पर उसे लगा शायद मामी ने उसके मुंह पर फिर से कर दिया। मदन आंखे फ़ाड़ कर उर्मिला देवी को देख रहा था।

"अब उठ भी जाओ,,,,,,,,९ बज गये है, अभी भी रात के ख्वाबो में डुबे हो क्या,,,,,"

फिर उसके शोर्टस् के ऊपर से लण्ड पर एक ठुंकी मारती हुई बोली,
"चल, जल्दी से फ्रेश हो जा.."

उर्मिला देवी रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। बाथरुम से मदन अभी भी नही निकला था।

"अरे जल्दी कर,,,,,,,,,, नाश्ता तैयार है,,,,,,,,,इतनी देर क्यों लगा रहा है बेटा,,,,,,,,?"
ये मामी भी अजीब है। अभी बेटा, और रात में क्या मस्त छिनाल बनी हुई थी। पर जो भी हो बड़ा मजा आया था। नास्ते के बाद एक बार चुदाई करूँगा तब कही जाऊँगा।

ऐसा सोच कर मदन बाथरुम से बाहर आया तो देखा मामी डाइनिंग़ टेबल पर बैठ चुकी थी। मदन भी जल्दी से बैठ गया और नाश्ता करने लगा। कुछ देर बाद उसे लगा, जैसे उसके शोर्टस् पर ठीक लण्ड के ऊपर कुछ हरकत हुई। उसने मामी की ओर देखा, उर्मिला देवी हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी। नीचे देखा तो मामी अपने पैरो के तलवे से उसके लण्ड को छेड़ रही थी।

मदन भी हँस पड़ा और उसने मामी के कोमल पैरो को, अपने हाथों से पकड़ कर उनके तलवे ठीक अपने लण्ड के ऊपर रख कर, दोनो जांघो के बीच जकड़ लिया। दोनो मामी-भांजे हँस पडे। मदन ने जल्दी जल्दी ब्रेड के टुकडो को मुंह में ठुसा और हाथों से मामी के तलवे को सहलाते हुए, धीरे-धीरे उनकी साड़ी को घुटनो तक ऊपर कर दिया। मदन का लण्ड फनफना गया था। उर्मिला देवी लण्ड को तलवे से हल्के हल्के दबा रही थी। मदन ने अपने आप को कुर्सी पर एडजस्ट कर, अपने हाथों को लम्बा कर, साड़ी के अन्दर और आगे की तरफ घुसा कर जांघो को छूते हुए सहलाने की कोशिश की।

उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा,
"उईइ क्या कर रहा है ?,,,,,,,कहाँ हाथ ले जा रहा है,,,,,,,,??"

"कोशिश कर रहा हुं, कम से कम उसको छू लूँ, जिसको कल रात आपने बहुत तड़पा कर् छूने दिया.."

"अच्छा, बहुत बोल रहा है,,,,,,,रात में तो मामी,,,,मामी कर रहा था.."

"कल रात में तो आप एकदम अलग तरह से व्यवहार कर रही थी.."

"शैतान, तेरे कहने का क्या मतलब है, कल रात मैं तेरी मामी नही थी तब.."

"नहीं मामी तो आप मेरी सदा रहोगी, तब भी और अब भी मगर,,,,,,"

"तो रात वाली मामी अच्छी थी, या अभी वाली मामी,,,,,???"
"मुझे तो दोनो अच्छी लगती है,,,,,,,,पर अभी जरा रात वाली मामी की याद आ रही है.",
कहते हुए मदन कुर्सी के नीचे खिसक गया, और जब तक उर्मिला देवी,
"रुक, क्या कर रहा है ?"
कहते हुए रोक पाती, वो डाइनिंग़ टेबल के नीचे घुस चुका था और उर्मिला देवी के जाँघों और पिंडलियों चाटने लगा था। उर्मिला देवी के मुंह सिसकारी निकल गई. वो भी सुबह से गरम हो रही थी।

"ओये,,,,,,,,,,,,,,,,,,क्या कर रहा है ??,,,,,,,नाश्ता तो कर लेने दे,,,,,,,,"

'''पच्च पच्च,,,,,,,,,''',,,,,,, "ओह, तुम नाश्ता करो मामी. मुझे अपना नाश्ता कर लेने दो."

"उफफफ्फ्,,,,,,,,,,,,मुझे बाजार जाना है. अभीईई छोड़ दे,,,,,,,,,,,बाद मेंएएए,,,,,,,,,"

उर्मिला देवी की आवाज उनके गले में ही रह गई। मदन अब तक साड़ी को जांघो से ऊपर तक उठा कर उनके बीच घुस चुका था। मामी ने आज लाल रंग की कच्छी पहन रखी थी। नहाने के कारण उनकी स्किन चमकीली और मख्खन के जैसी गोरी लग रही थी, और भीनी भीनी सुगंध आ रही थी।
मदन गदराई गोरी जांघो पर पुच्चीयां लेता हुआ आगे बढ़ा, और कच्छी के ऊपर एक जोरदार चुम्मी ली।

उर्मिला देवी ने मुंह से, "आऊचाआ,,,,,,ऐस्स्सेएएए क्या कर रहा है ?, निकल।"

"मामीईइ,,,,,,,,,,मुझे भी ट्युशन जाना है,,,,,,,,पर अभी तो तुम्हारा फ्रुट ज्युस पी कर हीईइ,,,,,,,,"

कहते हुए मदन ने पूरी चूत को कच्छी के ऊपर से अपने मुंह भर कर जोर से चुसा।
"इसससस्,,,,,,,, एक ही दिन में ही उस्ताददद,,,,बन गया हैएएए,,,,,,,चूत काआ पानी फ्रुट ज्युस लगता हैएएएएएए !!!,,,,,,,,उफफ,,,,, कच्छीई मत उताररररा,,,,"

मगर मदन कहाँ मान ने वाला था। उसके दिल का डर तो कल रात में ही भाग गया था। जब वो उर्मिला देवी के बैठे रहने के कारण कच्छी उतारने में असफल रहा, तो उसने दोनो जांघो को फैला कर चूत को ढकने वाली पट्टी के किनारे को पकड़ खींचा और चूत को नंगा कर उस पर अपना मुंह लगा दिया। झांटो से आती भीनी-भीनी खुश्बु को अपनी सांसो मे भरता हुआ, जीभ निकाल चूत के भगनसे को भुखे भेड़िये की तरह काटने लगा।

फिर तो उर्मिला देवी ने भी हथियार डाल दिये, और सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में चूत चुसाई का मजा लेने लगी। उनके मुंह से सिसकारियाँ फुटने लगी। कब उन्होंने कुर्सी पर से अपने चूतड़ों को उठा कच्छी निकलवाई, और कब उनकी जांघे फैल गई, उसका उन्हे पता भी न चला। उन्हे तो बस इतना पता था, की उनकी फैली हुई चूत के मोटे मोटे होठों के बीच मदन की जीभ घुस कर उनकी बुर की चुदाई कर रही थी. और उनके दोनो हाथ उसके सिर के बालो में घुम रहे थे और उसके सिर को जितना हो सके अपनी चूत पर दबा रहे थे।

थोड़ी देर की चुसाई-चटाई में ही उर्मिला देवी पस्त होकर झड़ गई, और आंख मुंदे वहीं कुर्सी पर बैठी रही। मदन भी चूत के पानी को पी कर अपने होठों पर जीभ फेरता जब डाइनिंग़ टेबल के नीचे से बाहर निकला तब उर्मिला देवी उसको देख मुस्कुरा दी और खुद ही अपना हाथ बढ़ा कर उसके शोर्टस् को सरका कर घुटनो तक कर दिया।
"सुबह सुबह तूने,,,,,,,,ये क्या कर दिया,,,,,,,,!!?", कहते हुए उसके लण्ड सहलाने लगी।
"ओह मामी, सहलाओ मत,,,,,,,,,,,,,,,चलो बेडरुम में ।"
क्रमश:…………………………
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