RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
" छुट्टी क्यों..."
" अरे बियाने..." हँसके मैं बोली.
" अरे पर तुम तो कह रही थी कि उसका मरद किसी काम का नही है तो वो..."
" अरे बनाते हो ...उसके गौने के पहले तो एक हफ्ते तक तुमने उसे रगड़ के चोदा था, दिन मे तीन तीन बार और वो उसका फर्टिलिटी पीरियड था, खुद ही गर्भिन किया और अब.गौने मे वो गयी तो उसने अपने मरद को बेवकूफ़ बनाया. किसी तरह उसका डलवा लिया....और वो बेचारा तो उपर ही झाड़ गया पर उसने उसको ये समझाया कि, उसीने उसको गर्भिन किया है."
उनका लंड उस समय मेरे चूतड़ के बीच, सीधे मेरी गान्ड मे घुसने की तैयारी कर रहा था और मैं भी उसे छेड़ते हुए, उनके लंड पे अपनी गान्ड कस के रगड़ रही थी और मेरी उंगलियाँ उनके सुपाडे को छेड़ रही थीं. वो कस के अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत मे डाल के अंदर बाहर करते बोले, " अरे मेरी ससुराल वालियाँ बड़ी चालाक होती हैं."
" और क्या तभी तो अपनी सेक्सी ननद को पटा रही हू तुम्हारे लिए. हाँ एक बात. और जो तुम्हारे बॉस हैं ना मिस्टर मुखर्जी, तुम्हे मालूम ही है ना उन्हे क्या पसंद है, और 12 लोगों को बाइपास करके सक्सेना का प्रमोशन कैसे हुआ और सारे टेंडर वाले काम उसे कैसे, मिल गये और मिसेज़ मुखर्जी को तो मैं अच्छी तरह जानती हू वनिता एम्म्डल की हेड है,और उनकी किटी पार्टी मे भी मैं जाती हू, वहाँ सिर्फ़ लेस्बियन फ़िल्मे होती हैं और उन्हे सिर्फ़ यंग लड़कियाँ पसंद है इस मामलें मे उनका टेस्ट अपने हसबेंड से मिलता है. तो सक्सेना ने तो अपने किसी बाबू के ज़रिए...और वो भी ऐसी ही थी, ...उसके आगे तो ये तो...."
" सच कहती हो मुखर्जी तो देख के दीवाना हो जाएगा, पर ये मानेगी?."
" वो सब तुम मुझ पे छोड़ दो पर बस तुम कल से चालू हो जाओ. ज़रा उसको पकडो, प्यार से सहलाओ,दबाओ, ....वैसे जिस तरह तुम देख रहे थे, मुझे लग रहा था तुम मेरी ननद की कोरी गान्ड के भी आशिक हो गये हो.बिना मारे बेचारी की गान्ड छोड़ेगे नही.
" तुम्हारी ननद की गान्ड तो मैं बाद मे मारूँगा पर पहले उसकी भाभी की गान्ड अभी मार लू."
" इसका मतलब, मारोगे ज़रूर उस बेचारी की..." हँसते हुए मैने अपने को छुड़ाने की कोशिश की पर उनसे मैं कहाँ बच पाती, उन्होने उठाकर मुझे पेट के बल पटक दिया और मेरे पेट के नीचे ढेर सारे कुशण लगा के मेरी गान्ड हवा मे उठा दी और मेरे पीछे आ गये. वो अपना मोटा लंड मेरी गान्ड मे सटा रहे थे,लेकिन कुछ सोच के उन्होने लंड मेरी चूत मे पेल दिया. उनके वीर्य और मेरे चूत के रस से मेरी चूत अच्छी तरह सनी थी , इसलिए एक धक्के मे ही आधा लंड घुस गया. 5-6 धक्के मारने के बाद, उन्होने लंड निकाल के अपनी दो उंगली अंदर कर दी और उसे लगे चूत मे घुमाने. चूत तो वैसे ही पानी फेंक रही थी. 5-6 धक्के उंगली से मारने के बाद उसे बाहर निकाल के, उन्होने फिर लंड पेल दिया. और 7-8 धक्को के बाद उसे निकाल के फिर दो उंगलियाँ अंदर कर दीं. दो तीन बार ऐसे ही बारी बारी से उंगली और लंड से कर के, उन्होने उंगली मेरी गान्ड मे ठेल दी. चूत से गीली होने से उंगली सॅट से मेरी गान्ड मे घुस गयी और फिर उन्होने उसे घुमा घुमा के
मेरी गांद अच्छी तरह गीली कर ली. उस समय उनका लंड मेरी चूत का मंथन कर रहा था. फिर मेरी कमर पकड़ के उंगली निकाल एक झटके मे उन्होने लंड मेरी गान्ड मे घुसेड दिया.
पहले धक्के मे ही पूरा सुपाडा घुस गया, और बिना रुके उन्होने 4-5 धक्के और कस के मारे और आधा लंड मेरी गान्ड मे घुस गया. दर्द के मारे जैसे मेरी जान निकल गयी. लग रहा था जैसे किसी ने मुक्का मेरी गान्ड मे पेल दिया हो. मेरे मूह से चीख निकल गयी.पर वो कहाँ मानने वाले थे, वो कस कस के मेरी चुचियाँ मसलने लगे.
" हे अपनी बहना की गान्ड समझ रखा है क्या, जो इस बेदर्दी से मार रहे हो, बहोत दर्द हो रहा है प्लीज़ एक मिनट ठहरो,"
" अरे बहना की नही उसकी भौजाई की गान्ड समझ कर मार रहा हू,आज इत्ति चिचिया क्यों रही है." और जैसे जवाब मे, उन्होने लंड थोड़ा सा बाहर निकाल, कर चुची कस के दबाते हुए , पूरा पेल दिया. और फिर तो वो ढकपेल उन्होने मेरी गान्ड मारनी शुरू की...
" हे मेरा पेट आज अच्छी तरह भरा है , प्लीज़ ज़रा,..."
" अरे तभी तो आज और मज़ा आ रहा है, अब नेचुरल लुब्रीकेंट लग के पूरा अंदर तक जा रहा है." वो बोले.
और सच मे एकदम सट्सट जा रहा था .अब मुझे भी पूरा मज़ा आ रहा था. मैं भी हर धक्के का जवाब अपने चूतड़ के धक्के से दे रही थी. फिर उन्होने आधा लंड जब बाहर था, उसे पकड़ के गोल गोल घुमाना शुरू किया. मुझे तो लगा कि जैसे मेरी गान्ड मे कोई मथानी से मथ रहा हो. मेरे पेट मे अजीब उमड़ घूमड़ चालू हो गयी. एक बार उन्होने मुझे मज़ाक मे एनीमा लगा दिया था बस वैसे ही लग रहा था....बस लग रहा था कि कुछ रिस रहा है. उधर दूसरी ओर उन्होने अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत मे कस के डाल के चोदना शुरू कर दिया और अंगूठे से क्लिट रगड़ने लगे. मेरी मस्ती से हालत खराब हो रही थी.
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