Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
02-20-2019, 06:20 PM,
#81
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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मैंने उनके होंठ अब भी अपने मुंह से ढके हुए थे| मैंने जब अपना मुंह हटाया तो भौजी की सिसकारी निकलने लगी..."स्स्स्स....जानू....स्स्स्स्स" मैंने रफ़्तार बढ़ा दी.... और भौजी के साथ-साथ मेरी हालत भी ख़राब होने लगी|

रफ़्तार बढ़ने से भौजी की सिस्कारिया और तेज होने लगी... "स्स्स..अह्ह्हह्ह...म्म्म्म्म...जानू....."

मैं: प्लीज ज्यादा जोर से मत चिल्लाना...वरना कोई ऊपर आ जायेगा?

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और फिर उनके मुंह से सिस्कारियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी| उन्होंने अपनी टांगें उठा के मेरे कमर पे लॉक कर ली और मेरे चेहरे को हाथ में थाम के मुझे अपने होठों से लगा लिया और मेरे होठों को चूसने लगी और मैं अब भी नीचे से धक्के लगाय जा रहा था|

भौजी: जानू....आज....स्स्स्स्स.... मुझे पूरा कर दो.... आज आखरी रात है हमारी साथ.....स्स्स्स्स अम्म्म्म्म्म ... (मस्ती में उनके मुंह से शब्द भी ठीक से नहीं निकल रहे थे)

इसी के साथ भौजी दुबारा स्खलित हो गईं और उनके रस की गर्म फुवार जब मेरे लंड पे पड़ी तो मैं भी झड़ गया| हाँफते हुए मैं उनके ऊपर जा गिरा| सांसें तो भौजी की भी तेज थीं| उनके गोर-गोर स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे| भौजी की योनि में जो रस था वो अब बाह के बहार आना चाहता था परनतु भौजी जैसे एक बूँद भी बाहर नहीं गिरना चाहती थीं| उन्होंने अपनी कमर ऊपर उठा ली और जैसे चाहा रहीं हों की सारा रास उनकी बच्चेदानी में भर जाए! मैं उनके ऊपर से उत्तर के उनकी बगल में लेट गया| दो मिनट बाद भौजी ने कमर नीचे की;

मैं: ये आप क्या कर रहे थे?

भौजी: आपका रस अपने अंदर समा रही थी!

मैं: (उनकी बचकानी बात सुन के मैं हँस पड़ा) ही...ही... ही... ही...

भौजी: हँस क्या रहे हो...सच कह रही हूँ|

मैं: अच्छा बाबा!

फिर उन्होंने लेटे-लेटे अपनी साडी उठाई;

मैं: क्या हुआ? जा रहे हो? अभी? प्लीज...मत जाओ ना.... मेरे पास बैठो ना|

भौजी: किसने कहा मैं जा रही हूँ? मैंने साडी में कुछ गाँठ लगा के रखा है उसे निकाल रही हूँ|

मैं: क्या है?

भौजी ने गाँठ खोल के उसमें से स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप निकाली!

मैं: आप सब प्लान कर के रखते हो?

भौजी: जानू आप से ही सीखा| वैसे भी ये आपकी FARFEWELL पार्टी है! इसे Special तो होना ही है|

और भौजी लोलीपोप अपने मुंह में लेके चूसने लगी| भौजी ने मेरी तरफ करवट ली और अपनी दायीं टांग मोड़ के मेरे लंड के पास रख दी और अपने घुटने से मेरे लंड को सहलाने लगीं| लोलीपोप चूसने के बाद उन्होंने मुझे दी और मैं उसे चूसने लगा;

भौजी: So you must be exhausted!

मैं: Are you?

भौजी: नहीं...

मैं: तो मैं कैसे हो सकता हूँ...वैसे भी ये आखरी रत है हमारी..इसके बाद तो हम कुछ महीने बाद ही मिलेनेगे और तब तो मैं आपको छू भी नहीं पाउँगा?

भौजी: वो क्यों?

मैं: मैंने सुना है की Pregnancy के दिनों में सम्भोग नहीं करते!

भौजी: हाय ...आपको मेरी कितनी फ़िक्र है...पर एक चीज तो कर ही सकते हैं?
(उनका मतलब था Anal Sex से)

मैं: (उनका मतलब समझते हुए) ना...कभी नहीं.... मुझे वो वहशी पना लगता है| Anal तो जानवर करते हैं...और मैं आपसे प्यार करता हूँ...आपके जिस्म का भूखा नहीं हूँ|

भौजी; जानती हूँ...अगर आप जिस्म के ही भूखे होते तो आज मेरे इतनी बार मन अकरने पे या तो मुझसे रूठ जाते या फिर जबरदस्ती सब करते! मैं तो बस आपका मन जानना चाहती थी| अगर आप उसके लिए कहते भी तो मैं मन नहीं करती!

मैं: आपका मन करता है Anal करने का?

भौजी: नहीं...मुझे नाम से ही चिढ़ है...पर आपकी ख़ुशी के लिए कुछ भी!

मैं: Thanks but No Thanks !

मैंने लोलीपोप निकाल के भौजी को दी जो अब लघभग खत्म हो गई थी|

मैं: Oops मैं सारी चूस गया!

भौजी: कोई बात नहीं...अभी तो एक आम वाली और एक ऑरेंज वाली बची है|

उन्होंने आम वाली खोली और उसे चूसने लगीं ...और इधर मेरी नजर उनके स्तनों पे पड़ी| जो अपनी नाराजगी जाता रहे थे की आखिर मैंने उन्हें अभी तक क्यों नहीं छुआ? मैंने उनके दायें स्तन को अपने मुंह में लिया और जीभ की नोक से उनके निप्पल को कुरेदने लगा| भौजी ने अपने दायें हाथ से मेरा सर अपने स्तन पे दबा दिया| मैंने जितना हो सकता था उतना बड़ा मुंह खोला और उनके स्तन को अपने मुंह में भरना चाहा परन्तु असफल राहा पर मेरे दाँतों ने उनके स्तन पे अपनी छाप छोड़ दी थी| पाँच मिनट तक उनके स्तन का पान करने के बाद मैंने उनके बाएं स्तन को पीना चाहा परन्तु उसके लिए मुझ फिर से उनकी दोनों टांगों के बीच आना पड़ा| मैंने उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ा तो भौजी ने "स्स्स" की सिटी बज दी| फिर मैंने उनके स्तन को मुंह में लेके चूसने लगा और इतनी तेज सुड़का मार जैसे उसमें से सच में दूध निकलेगा| "प्लीज...स्स्स्स्स " कहते उन्होंने मेरे सर को अपनी छाती पे दबा दिया! मैंने अपने दांत उनके स्तन पे गड़ा दिए और वो चिहुंक उठी!

भौजी: ये निशान मेरे दिल पे पड़ चुके हैं!

मैं उनकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दिया! अब तो लंड तनतना गया था ...पर मुझे लगा की शायद तीसरी बार.....ये ठीक नहीं होगा!!

भौजी: क्या हुआ?

मैं: ये ठीक नहीं है... (मैं उनके उपरसे हट के उनकी बगल में पीठ के बल लेट गया|)

भौजी: (मेरी तरफ करवट लेते हुए) क्यों क्या हुआ?

मैं: मैं आपसे प्यार करता हूँ...दो बार तक करना ठीक था...परन्तु तीसरी बार...ये ...ऐसा लगता है जैसे मेरे अंदर आपके जिस्म की भूख है.... पर मैं आपसे प्यार करता हूँ... आपके जिस्म से नहीं!

भौजी: समझी... आप की सोच गलत नहीं है पर जैसा आपका दिमाग कह रहा है वैसे नहीं है...ये कोई शरीर की भूख नहीं है...ये आपका प्यार है! भूख तब होती जब मैं इसके लिए राजी नहीं होती..आप मुझसे जबरदस्ती करते..या मुझे जूठ बोल के ..Emotional ब्लैकमेल कर के करते...आपका शरीर अंदर से आपको ये करने को विवश करता| पर आप खुद देखो...आप ने खुद को रोक लिया...शर्रेरिक भूख होती तो आप खुद को कभी रोक ना पाते...और तो और आप रसिका के साथ कब का सब कुक कर चुके होते! आपको तो माधुरी के साथ करने के बाद भी ग्लानि हुई... रसिका के छूने भर से आपको अपवित्र जैसा लगा और आधी रात को नह बैठे...वो भी दो दिन... और क्या हालत हो गई थी आपकी? इसलिए आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे...तीन बार क्या ...अगर सारी रात भी आप करना चाहो तो ना तो ये अनैतिक है ना ही मैं आप[को मना करुँगी| जबतक होगा...आपका साथ देती रहूंगी! अब चलो... Finish what you started? Or do you expect me to….

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई| मैं समझ चूका था की जो भौजी कह रहीं हैं वो बिल्कु सही है! भौजी मेरे लंड पे अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द रखते हुए बैठ गईं और ऊपर-नीचे होने लगीं| उनकी योनि अंदर सेपोरी तरह हमदोनों के रास से नह चुकी थी और अब तो भौजी को ज्यादा जोर भी नहीं लगाना पड़ रहा था..और लंड फिसलता हुआ सररर से अंदर जाता और उनकी बच्चेदानी से टकराता| भौजी के ऊपर-नीचे होने से उनके स्तन भी ऊपर-नीचे उछल रहे थे| भौजी के मुंह से सिस्कारियां छूटने लगीं थीं "स्स्स्स्स...म्मा ..माआ म्म्म्म्म्म...आह...म्म्म्म्म्म...स्स्स्स्स...आह...स्स्स्स...म्म्म्म...हम्म्म्म...स्स्स्स....हाय्य्य !!" अब तो मैंने भी उनकी कमर से ताल मिलाना शुरू कर दिया और उनके हर धक्के के साथ मैं भी अपनी कमर उचकाने लगा था|

भौजी: हाँ....स्स्स्सस्स्स्स......इसी तरह.....आअह.....लगता है आज तो आप मेरी बच्चेदानी के....आह !! ...स्स्स्स....मम्म.... अंदर घुसा दोगे...स्स्स्स्स्स!!!

मैं: Sorry ...आह...मुझे नहीं पता...मुझे क्या हो रहा है|

भौजी: प्लीज...रुकना मत ...स्स्स्सस्स्स्स....अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...ऐसे ही..... मेरे साथ ताल मिल्लते रहो!

अब मेरे अंदर जोश और भी बढ़ गया मैंने भौजी को झटके से अपने नीचे लिटाया और मैंने उनकी टांगें अपने कंधे पे रखीं और उनके ऊपर आ गाय और तेजी से लंड अंदर-बाहर करने लगा| अब तो भौजी स्खलित होने ही वालीं थीं, उन्होंने अपने हाथों की सारी उँगलियाँ मेयर पीठ में धंसा दी और उनके नाखूनों ने मेरी पीठ को कुरेद दिया जैसे कोई बिल्ली के पंजे किसी गद्दे को कुरेद देते है| मेरे मुंह से "आह!" की सीत्कार निकली.... उनके कुरेदने से जख्म हो गया पर बहुत छोटा सा...बस नाख़ून के निशान थे|

.अगले दो मिनट में वो स्खलित हो गईं; "स्स्स्स्स...अह्ह्हह्ह्ह्ह....जानू...उउउउउउ म्म्म्म्म्म" और चूँकि मैंने उनकी कमर उठा राखी थी उनका रस बहार छलक नहीं पाया और मेरे लंड अंदर-बहार करने से फच-फच की आवाजें आने लगीं| अब मैंने उनकी अक्मर वापस नीचे राखी और उनकी दायीं टांग छोड़ दी पर बाईं टांग को सीधा हवा में खड़ा कर दिया और उनकी योनि में अपना लंड पेलता रहा| लंड पूरा नादर जा रहा था और अब मुझ में और शक्ति नहीं बची थी की मैं और खुद को संभाल पाऊँ| अपने आखरी धक्के के साथ मैं उनकी योनि में झड़ गया और सारा रस उनकी योनि में उड़ेल दिया और उनके ऊपर गिर पड़ा| पसीने से पीठ तरबतर थी और ऊपर से भौजी के नाखूनों से पीठ छिल गई थी तो उनमें पसीने की बूंदें पड़ते ही जलन मचने लगी|

दोनों में ही ताकत नहीं बची थी... दोनों हाँफ रहे थे... और अब तो नीचे जाके अपने बिस्तर में सोना जैसे आफत थी दोनों के लिए!

भौजी: आज...तो.....आपने मुझे....पूर्ण कर दिया! (भौजी ने अपनी सामनसों को नियंत्रित करते हुए कहा)

मैं कुछ नहीं बोल पाया .... अब तो मन कर रहा था की बस ये संमा यहीं थम जाए और मैं उनसे लिपट के यहीं सो जाऊँ!

मैं: यार...अभी तो कपडे भी पहनने हैं...और मुझ में बिलकुल ताकत नहीं बची है!

भौजी: जानू...पहले बताओ तो सही की टाइम क्या हुआ है?

मैं: एक बज रहा है!

भौजी: पिछले तीन घंटों से आप मुझे प्यार कर रहे हो तो थको गए ही ना! चलो आप लेटो मैं दूध बनाके ले आती हूँ!

मैं: कोई जर्रूरत नहीं...आप भी थके हुए हो...मेरे पास ही लेटो!

भौजी: पर आप थके हुए हो... सुबह कैसे जाओगे दिल्ली?

मैं: अच्छा है...कल जाना बच जायेगा| कल का दिन भी मैं आपके साथ गुजारूँगा!

भौजी: सच?

मैं: मुच..

भौजी: अच्छा पहले कपडे तो पहन लो ...

हमने जैसे-तैसे कपडे पहने ... फिर छत की Perapet Wall के साथ पीठ लगा के दोनों बैठ गए| और अब तो दोनों को बड़ी जोरों की नींद आने लगी थी| भौजी ने मेरी गोद में सर रखा और सो गईं| मैं भी कुछ देर तक उनके सर को सहलाता रहा और फिर मुझे भी नींद आ गई|
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अब आगे ....

सुबह की पहली किरण जैसे ही मुख पे पड़ी तो मेरी आँख खुली|आमतौर पे लोग सुयभ उठते हैं..भगवान को शुक्रिया देते हैं..माँ-बाप के पाँव षहु के आशीर्वाद लेते हैं ...पर उस दिन...उस दिन सुबह होते ही मुझे लगा की मेरी जिंदगी की शाम ढल गई हो| मन ही मन कोस रहा था की क्यों...क्यों ये सुबह आई! क्या ये रात और लम्बी नहीं हो सकती थी? आखिर क्यों..........?

खेर अपना होश संभालते हुए मैंने देखा तो भौजी मेरे पास नहीं थीं| घडी में साढ़े पाँच बजे थे.... और मुझे पे एक चादर पड़ी हुई थी| साफ़ था ये भौजी ने ही डाली थी| मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं नीचे जाके भौजी का सामना करूँ वरना मैं फफफ़क के रो पड़ता| इसलिए मिअन छत पर दिवार का टेक लेके उकड़ूँ होक बैठा रहा और अपना मुंह अपने घुटनों में छुपा लिया| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी आइन...उनकी पायल की छम-छम आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूंजने लगी| वो मेरे सामने अपने घुटनों पे बैठते हुए बोलीं;

भौजी: जानू........जानू.......उठो?

पर मैंने अपना मुंह अब भी छुपा रखा था| मैं जानता था की वो मुझे इतनी जल्दी इसीलिए उठा रहीं हैं ताकि जो कुछ घंटे बचे हैं हमारे पास..कम से कम वो तो हम एक साथ गुजार लें|

भौजी: जानू....मैं जानती हूँ...मुझे आपको अभी नहीं उठाना चाहिए....पर आप का दीदार करने को ये आँखें तरस रहीं हैं!

अब उनकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं और मैंने अपना मुंह घुटनों की गिरफ्त से छुड़ाया और मैं भौजी से गले लग गया| बहुत....बहुत रोक खुद को...संभाला.....अपनी आवाज तक को गले में दफन कर दिया ...क्योंकि जानता था की अगर मैंने कुछ बोलना चाहा तो मेरे आंसूं बाह निकलेंगे और भौजी का मनोबल आधा हो जाएगा| वो टूट जाएँगी.... चूँकि वो मुझे इतना प्यार करती थीं तो उन्हें पता तो अवश्य ही लग गया होगा की मेरी मनोदशा क्या है?

भौजी: मैं.....जानती हूँ.......(सुबकते हुए) आप पर क्या ....बीत रही है|

भौजी इतना भावुक हो गईं थीं की अपना दर्द...अपनी तड़प छुपा नहीं पा रहीं थीं और खुद को रोने से रोकने की बेजोड़ कोशिश कर रहीं थीं| इसी करन वो शब्दों को तोड़-तोड़ के बोल रहीं थीं| मैं उन्हें रोने से रोकना चाहता था ...

मैं: प्लीज......कुछ मत कहो!

बस इतना ही कह पाया क्योंकि इससे आगे कहने की मुझ में क्षमता नहीं थी| अगर आगे कुछ बोलता तो....खुद को रोक नहीं पाता| पाँच मिनट तक हम चुप-चाप ऐसे ही गले लगे रहे| फिर हम दोनों नीचे आये और मैं फ्रेश होने लगा| फ्रेश होते समय भी मन कह रहा था की जल्दी से काम निपटा और उनकी आँखों के सामने पहुँच जा...आखरी बार देख ले...फिर अगला मौका दशेरे की छुटियों में ही मिलेगा| मैं जल्दी से तैयार हो गया और इतने में पिताजी आ गए;

पिताजी: बेटा दस बजे निकलना है| अपना सामान पैक कर लो|

मैं: जी...वो ...माँ कर देगी...मैं एक बार नेहा से मिल लूँ ...फिर उसने स्कूल चले जाना है|

पिताजी: नेहा कहीं नहीं जा रही ...सुबह से रोये जा रही है| तू ऐसा कर उसे चुप करा...तबतक मैं सामान पैक कर देता हूँ|

इतने में बड़की अमा चाय लेके आ गईं| मैंने उनके पाँव हाथ लागए और चाय का कप उठाते हुए पूछा;

मैं: अम्मा...आप चाय लाय हो?

बड़की अम्मा: हाँ बेटा...वो बहु कुछ काम कर रही थी तो ....

अम्मा कुछ बात छुपाने की कोशिश करने लगीं| रोज तो भौजी ही मुझे चाय दिया करती थीं और आज वो चाय नहीं लाईं हैं तो कुछ तो गड़बड़ है| मैंने चाय का कप रखा और उनके घर के पास भगा| दरवाजा अंदर से लॉक था.... मैंने दरवाजा खटखटाया तो दो मिनट तक कोई अंदर से नहीं बोला| मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो पाया की नेहा भी बाहर नहीं है| अब तो मुझे घबराहट होने लगी! मैं तुरंत भौजी के घर की साइड वाली दिवार फांदने के लिए भगा| और उस वक़्त इतना जोश में था की ये भी नहीं देखा की वो दिवार आठ-नौ फुट ऊँची है!

मैंने अपने जूते उतारे और दिवार की तरफ भगा और किसी तरह दिवार का ऊपरी किनारा पकड़ा और खुद को खींच के दूसरी तरफ भौजी के घर के आँगन में कूद पड़ा| देखा तो भौजी नेहा को गोद में ले के अपने कमरे के दरवाजे पे बैठीं थीं| नेहा भौजी के सीने से लगी हुई थी और उसके सुअब्कने की आवाज मैं साफ़ सुन सकता था| मैं जहाँ कूड़ा था वहीँ अपने घुटनों के बल बैठ गया और भौजी ने मुझे जब ये स्टंट मारते हुए देखा और मेरे कूदने की आवाज नेहा ने सुनी तो वो भौजी की गोद से छिटक के अलग हुई और आके मेरे गले लग गई| दोस्तों मैं आपको बता नहीं सकता उस वक़्त मेरे दिल पे क्या गुजरी थी.... एक छोटी सी बच्ची जिसका उसकी माँ के अलवबा कोई ख्याल नहीं रखता...जो मुझे पापा कहती थी... जिसक ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता था ....वो बच्ची ...मुझसे लिपट के रोने लगी तो मेरा क्या हाल हुआ इसी बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं| ऐसी स्थिति में चाहे जैसा भी इंसान हो...वो खुद को रोने से नहीं रोक पाता...पर मैं खुद कोकिसिस तरह रोके हुए था...आंसूं आँखों की दहलीज तक पहुँच के रूक गए थे...जैसे वो भ जानते थे की अगर वो बाहर आ गए तो यहाँ दो दिल और हैं जो टूट जायंगे| मैं फिर भी उस बच्ची को गोद में ले के पुचकारने लगा... की वो कैसे भी चुप हो जाए...

मैं: नेहा...बेटा बस...बस बेटा! चुप हो जाओ...देखो पापा अभी आपके पास हैं! बस बेटा...चुप हो जाओ! देखो...मैं बस कुछ दिनों के लिए जा रहा हूँ...और आपसे मेरी बात फोन पे होती रहेगी! प्लीज बेटा...

पर नहीं...मेरी सारी कोशिशें उस बच्ची को चुपकराने में व्यर्थ थीं| भौजी दरवाजे पे खड़ीं हम दोनों को देख रहीं थीं...अब तो उनसे बी कंट्रोल नहीं हुआ और वो भी भाग के मेरे पास आइन और मेरे गले लग गईं| गले लगते ही उन्होंने फुट-फुट के रोना शुरू कर दिया| इधर गोद में नेहा पहले ही रो रही थी और अब भौजी.....अब मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं खुद को रोने से रोकूँ| आखिरकर मेरे आंसूं भी छलक आये.... आज मैं सच में टूट छुका था....दिल ने भावनाओं के आगे हार मान ली थी! अब खुद पे कोई काबू नहीं रहा...ऐसा लगा की भौजी और नेहा के बिना... मैं पागल हो जाऊँगा! मन नहीं कह रहा था की मैं उन्हें बिलखता हुआ छोड़ के दिल्ली चला जाऊँ ऊपर से जब भौजी ने बिलखते हुए हाथ जोड़ के मिन्नत की तो;

भौजी: प्लीज.....I beg of you ...प्लीज..... मत जाओ!

मेरा दिल चकना चूर हो गया| उनकी हर एक ख्वाइश पूरी करने वाला आज उनके आगे लाचार होगया....कोई जवाब नहीं था..मेरे पास.... क्या करता मैं...क्या कहता मैं....मेरे बस में कुछ नहीं था|

मैं: (सुबकते हुए) प्लीज....ऐसा मत कहो.....मैं मजबूर हूँ! मुझे माफ़ कर दो!!! प्लीज !!!

भौजी फिर से मुझसे लिपट गईं ....आधा घंटा...दोस्तों आधा घंटे तक हम रोते रहे.... नेहा तो रोते-रोते सो गई थी..पर हम दोनों की हहलात ऐसी थी जैसे कोई जिस्म से रूह को अलग कर रहा हो! मैंने नेहा को चारपाई पे लिटाया पर उसने मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी बाँहों से लॉक कर लिया था| भौजी ने मेरी मदद की तब जाके हमने उसके हाथों की पकड़ से मेरी गर्दन छुड़ाई| भौजी फिर से मेरे सीने पे सर रख के सुबकने लगीं|

मैं: देखो...I Promise मैं वापस आऊँगा... !!

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और तब जाके उनका सुबकना बंद हुआ|

मैं: अब दरवाजा खोलो ...और बाहर चलो| (मैंने उनके आँसूं पोंछते हुए कहा|)

भौजी: आप सच में आओगे ना?

मैं: हाँ...वादा करता हूँ| दशेरे की छुटियों में अवश्य आऊँगा| बस कुछ महीनों की ही तो बात है...

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और वो मुझे आशवस्त दिखीं| मैं बहार आया और बड़े घर की ओर चल दिया और भौजी हमारे लिए रास्ते में खाने को कुछ पैक करने लगीं| मेरी आँख सुर्ख लाल हो गईं थीं... कोई भी देख के बता सकता था की मैं कितना रोया हूँगा!

पिताजी: क्यों...जाने का मन नहीं हो रहा है?

मैंने कुछ जवाब नहीं दिया...देता भी तो उन्होंने मेरी क्लास लगा देनी थी| मैं बिना कुछ कहे अंदर चला गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा की कैसे भी जाना रूक जाए| इधर पिताजी ने अजय भैया को रोइक्क्षव लेने के लिए भेज दिया| ये रिक्शा हमें Main रोड तक छोड़ने वाला था और वहाँ से हमें लखनऊ की बस मिलती ...वहां से रात दस बजे की लखनऊ मेल हमें सीधा दिल्ली छोड़ती| अब मैं मन ही मन मना रहा था की भैया को रिक्शा ना मिले! और मेरा बचपना तो देखिये...जैसे रिक्शा ना मिलने पे पिताजी जाना कैंसिल कर देंगे जब की हमारे पास कन्फर्म टिकट है! इधर माँ और बड़की अम्मा जो साथ में बैठे बात कर रहे थे उन्होंने मेरी लाल आँखें देखीं तो बिना कहे ही सारी बात समझ गए|

बड़की अम्मा: मुन्ना...तुम्हारी बड़ी याद आएगी! और तुम चिंता ना करो...हम लोग हैं यहाँ...तुम्हारी भौजी का ध्यान रखने को!

मैंने उन्हें कुछ कहा नहीं पर मन ही मन कहा की आप तो हो पर उस चुडेल(रसिका) का क्या और उस दैत्य (चन्दर भैया) का क्या? पर मन ही मन खुद को धन्यवाद दिया की कम से कम तूने भौजी को अपने मायके जाने को तो बोल दिया है ना! वो वहाँ सुरक्षित रहेंगी! इतने में भौजी नाश्ता ले आईं. और उन्होंने एक प्लेट मेरी ओर बढ़ाई;

भौजी: लीजिये

मैं: आपकी प्लेट कहाँ है? और नेहा कहाँ है?

भौजी: नेहा सो रही है ...आप खा लो...मैं बाद में खा लुंगी!

मैं: आजतक कभी हुआ है की मैंने आपके पहले खाया हो? कम से कम मुझे पता तो होता था की आपने खाया जर्रूर होगा...आखरी बार ही सही मेरे हाथ से खा लो.... (मैंने पराठे का एक टुकड़ा उन्हें खिलाने को उठाया)

ये बात मैंने बड़की अम्मा और माँ के सामने बिना डरे कह दी थी| पर मैं उस वक़्त इतना भावुक था की मुझे कोई फर्क नहीं था की मेरे आस-पास कौन है और मुझे क्या कहना चाहिए और क्या नहीं? मुझे चिंता थी...बल्कि पता था की मेरे जाने के बाद मेरे गम में भौजी खाना नहीं खायेंगी|

बड़की अम्मा: खा ले बहु...प्यार से खिला रहा है ... सच कहूँ छोटी (माँ) इन दोनों का प्यार बड़ा अद्भुत है! जब से मानु आया है...दोनों एक पल के लिए भी अलग नहीं हुए| और जब हुए तो दोनों का क्या हाल था ये तो सब को पता है| जब मानु तुम्हारे साथ वाराणसी गया तब बहु ने खाट पकड़ ली...खाना-पीना बंद कर के| और जब बहु को मानु ने शादी में भेजा तो इसने खाट पकड़ ली...अपर खेर उस समय बात कुछ और थी|

माँ: हाँ दीदी... पता नहीं दोनों कैसे रहेंगे...एक दूसरे के बिना?

बड़की अम्मा: अरे छोटी...जैसे-जैसे दिन बीतेंगे...दोनों भूल जायेंगे ...आखिर दूर रहने से रिश्तों में दूरियाँ तो आ ही जाती हैं| फिर मानु की शादी हो.....

मैं नहीं जानता की अम्मा क्या सोच के वो सब कह रहीं थीं| मेरा और भौजी का रिश्ता कोई कच्चे धागे की गाँठ नहीं थी जिसे दूरियाँ तोड़ दें! ये तो एक बंधन था...एक अनोखा बंधन...जो तोड़े ना टूटे! और जब उन्होंने शादी की बात की तो मैं नाश्ता छोड़ के उठ गया और बाहर आ गया|

भौजी मेरी प्लेट ले के मेरे पास आईं;

मैं: क्या जर्रूरत थी अम्मा को वो सब कहने की?

भौजी: छोडो उन्हें... आ नाश्ता करो| देखो बड़े प्यार से मैंने बनाया है! (भौजी ने परांठे का एक कौर मेरी ओर बढ़ाया)

मैं: चलो आपके घर में बैठ के खाते हैं|

फिर हम भौजी के घर में आ गए और आँगन में चारपाई पे दोनों बैठ गए| भौजी मुझे अपने हाथ से खिला रहीं थीं और मैं उन्हें अपने हाथ से खिला रहा था|

भौजी: अच्छा मैं एक बात कहूँ? आप मानोगे?

मैं: आपके लिए जान हाज़िर है...माँग के तो देखो!

भौजी: जाने से पहले एक बार.... (बस भौजी आगे कुछ नहीं कह पाईं|)

पर मैं उनकी बात उनके बिना कहे समझ चूका था|मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच थाम और उनके थिरकते होटों को Kiss किया| ये Kiss शायद Goodbye Kiss था ....आखरी Kiss ... कम से कम कुछ महीनों तक तो आखरी Kiss ही था! Kiss करते समय मैंने उनके होंठों को हलके से अपने मुँह में भर के चूसा बस...इस Kiss में जरा भी वासना...या जिस्म की अगन नहीं थी| केवल प्यार था...पाक प्यार... पवित्र! जब हम अलग हुए तो नेहा उठ चुकी थी और हमें Kiss करते हुए देख रही थी| फिर उसने अपनी बाहें खोल के मेरी गोद में आने की इच्छा प्रकट की| मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और बाहर निकल आया| मैं जानता था की अब किसी भी पल अजय भैया रिक्शा लेके आ जायेंगे और मुझे जाता हुआ देख नेहा फिर रो पड़ेगी| इसलिए मैं उसे गोद में लिए दूकान की ओर चल दिया ओर उसे एक बड़ा चिप्स का पैकेट दिलाया| कम से कम उसका ध्यान इसमें लगा रहेगा और वो रोयेगी नहीं| जब मैं नेहा को लेके वापस आया तब तक रिक्शा आ चूका था और अजय भैया हमारा सामान रिक्क्षे में रख रहे थे| मेरे पाँव जैसे जम गए...वो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते थे| सारा बदन साथ छोड़ रहा था...जैसे एक साथ शरीर के सारे अंगों ने बगावत कर दी थी की भैया हम आगे नहीं जायेंगे,हमें यहीं रहना है...

पर दिमाग...वो सब को आगे चलने पे मजबूर करने पे तुला था| बारबार धमका रहा था की अगर पिताजी बरस पड़े तो? मैं भारी-भारी क़दमों से रिक्क्षे की तरफ बढ़ा| अब तक सारा सामान रखा जा चूका था और माँ-पिताजी सबसे विदा ले रहे थे| रिक्क्षे के पास सब खड़े थे; बड़के दादा, चन्दर भैया, अजय भैया, भौजी, रसिका भाभी, बड़की अम्मा, सुनीता और ठाकुर साहब| 

मैंने नेहा को गोद से उतार दिया और बड़के दादा के पाँव छुए;

बड़के दादा: जीतो रहो मुन्ना...और अगली बार जल्दी आना|

फिर मैं बड़की अम्मा के पास पहुंचा और उनके पाँव छुए;

बड़की अम्मा: सुखी रहो मुन्ना.... (उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया...उनकी आँखें छलक आईं थीं| अम्मा ने मेरे हाथ में कुछ पैसे थम दिए और मेरे मन करने के बावजूद मेरी मुट्ठी बंद कर दी|)

फिर मैं चन्दर भैया के पास पहुंचा और उनके पाँव छूने की बजाय उनसे नमस्ते की, मेरे मन में उनके लिए वो स्थान नहीं था जो पहले हुआ करता था| चन्दर भैया मुझे खुश लगे, शायद मेरे जाने के बाद उनकी पत्नी पर अब कोई हक़ नहीं जताएगा|;

चन्दर भैया: नमस्ते (उन्होंने बस मेरी नमस्ते का जवाब दिया|)

फिर मैं अजय भैया के पास पहुंचा और उनके गले लगा और उनके कान में फुस-फुसाया;

मैं: भैया मेरे एक काम करोगे?

अजय भैया: हाँ भैया बोलो|

मैं: आज अपना फ़ोन उनके (भौजी) पास छोड़ देना...मैं ट्रैन में बैठने पे उन्हें फोन कर के बता दूँगा वरना वो चिंता करेंगी|

अजय भैया: कोई दिक्कत नहीं भैया ....

फिर मैं भौजी और नेहा के पास पहुंचा, नेहा चिप्स खा रही थी पर जैसे ही उसने मुझे देखा वो मुझसे लिपट गई और रोने लगी| मुझे लगा था की वो चिप्स खाने में बिजी रहेगी... पर नहीं... उसने तो वो चिप्स का पैकेट छोड़ दिया और मेरे गाल पे Kiss किया| मानो वो जाता रही हो की मैं आपसे प्यार करती हूँ...चिप्स से नहीं! अब तो मेरी आँखें भी नम हो गेन थीं पर मैं खुद को रोके हुए था| मैंने थोड़ा पुचकार के नेहा को चुप कराया और उसे गोद से निचे उतारा और वो जाके पिताजी के और माँ के पाँव छूने लगी| जब मैं भौजी के पास पहुँचा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भौजी को सब के सामने गले लगा लिया और भौजी टूट के रोने लगीं| मुझसे अब काबू नहीं हुआ और मेरी आँखों से भी आँसूं बह निकले| खुद को संभालते हुए उनके कान में कहा;

मैं: Hey ....Hey .... बस ...जान मैं ...वापस आऊँगा| और हाँ अजय भैया को मैंने कह दिया है...वो आप को अपना फोन दे देंगे| मैं आपको ट्रैन में बैठते ही फोन करूँगा| अपना ख़याल रखना और हमारे बच्चों का भी?

भौजी ने हाँ में सर हिलाया| और बोलीं;

भौजी: आप भी अपना ख़याल अच्छे से रखना|

फिर मैंने अपने आँसूं पोछे और सुनीता के पास आया

मैं: (गहरी साँस छोड़ते हुए) अब मैं आपको Hi कहूँ या Bye समझ नहीं आता| But anyways it was nice knowing you ! GoodBye !

सुनीता: Same here !!!

फिर मैं ठाकुर साहब के पास पहुंचा और उनके पाँव छुए;

ठाकुर साहब: जीते रहो बेटा! अगली बार कब आओगे?

मैं: जी दशेरे की छुटियों में?

मेरा जवाब सुन के पिताजी हैरान दिखे! और चन्दर भैया का मुँह फीका पड़ गया|

ठाकुर साहब: बहुत अच्छा बेटा...जल्दी मुलाकात होगी|

अब बचीं तो बची रसिका भाभी, जो सबसे पीछे खड़ी थीं| मैं उनकी ओर बढ़ा ओर हाथ जोड़ के उन्हें नमस्ते कहा| जवाब में उन्होंने भी नमस्ते कहा| शायद उन्होंने उम्मीद नहीं की थी की मैं जाने से पहले उनको "नमस्ते" तक कह के जाऊँगा|

पिताजी: चल भई..देर हो रही है|

साफ़ था की कोई नहीं चाहता था की मैं उसे आखरी बार मिलूं...पर मैं उसके पास इस लिए गया था ताकि सब के सामने उस की कुछ तो इज्जत रह जाए!
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02-20-2019, 06:21 PM,
#83
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
78

अब आगे ....

माँ रिक्क्षे पर बैठ चूँकि थी और रिक्क्षे वाला धीरे-धीरे पेडल मारता हुआ चलने लगा था, पिताजी आगे-आगे चल रहे थे| मैं सबसे पीछे चल रहा था और ,मैंने पीछे मुड़ के एक बार भौजी को देखा तो भौजी मेरी ओर बढ़ रहीं थी|

मैं: आप कहाँ?

भौजी: आपको छोड़ने?

मैं: अरे Main रोड तक कहाँ जाओगे? वो भी इस हालत में?

पिताजी: हाँ-हाँ बहु तुम आराम करो! अजय है ना....

मैं भौजी का दिल नहीं तोडना चाहता था...इसलिए मैंने बात को संभाल लिया|

मैं: चलने दो पिताजी...थोड़ी कसरत ही हो जाएगी इनकी|

माँ: ना बहु...तुम आराम करो...ऐसी हालत में ज्यादा म्हणत नहीं करनी चाहिए... फिर Main रोड यहाँ से बीस-पच्चीस मिनट दूर है| इतना चलोगी तो थक जाओगी|

भौजी: माँ...बस चौक तक|

मैं: (चौधरी बनते हुए) ठीक है!

हम धीरे-धीरे चलने लगे| आगे-आगे पिताजी ओर अजय भैया थे| उनके पीछे-पीछे रिक्क्षे वाला ओर सबसे पीछे मैं, भौजी और नेहा|

मैं: देखो मेरे जाने के बाद अगर आप बीमार पड़े तो मैं अगली फ्लाइट पकड़ के यहाँ आ जाऊँगा| ठीक से खाना ...और कोई भी म्हणत वाला काम मत करना| और कल ही अपने मायके चले जाना?

भौजी: जी (भौजी का गाला भर आया था)

मैं तो ये बातें इस लिए कह रहा था की उनका मन इधर-उधर लग जाए| इधर हम चौक पे पहुँच गए थे|

मैं: अच्छा आप मेरा इन्तेजार करोगे ना?

बस मेरा इतना कहना था की भौजी मुझसे लिपट गईं और रोने लगीं| मैं उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें चुप कराने लगा| अब रोना तो मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ पर किसी तरह पहले उन्हें चुप कराया और उनके माथे को चूमा| उनके आँसूं पोछे और उन्होंने मेरे आँसूं पोछे...फिर हम दोनों ने अपने सर एक दूसरे से भिड़ा दिया;

मैं: बस जान.... अब और नैन रोना| मैं जल्दी आऊँगा...ठीक है|

भौजी: मैं आपका इन्तेजार करुँगी जानू...

मैं: Now Smile !

भौजी मुस्कुराईं और मैं नसे दो कदम पीछे चलता हु दूर हुआ और हाथ हिला के Bye कहा| नेहा और भौजी दोनों हाथ हिला के Bye कहने लगे| मन को तसल्ली हुई की चलो कम सेकम जाते हुए उनका हँसता हुए चेहरे की "याद" अपने साथ लेके जा रहा हूँ| मैं रिक्क्षे में बैठा और पिताजी अजय भैया की साइकिल में पीछे बैठे और हम तीजी से Main रोड की ओर बढे| हम Main रोड पहुंचे और वहाँ दो मिनट में ही बस आ गई| भैया ने सामान अंदर रखा और मैंने जाते-जाते उन्हें फिर से याद दिल दिया की वो अपना फोन भौजी को अवश्य दे दें और उन्होंने गर्दन हिला के हामी भरी|

बस ने हमें लखनऊ उतारा ...अभी घड़ी में तीन बजे थे और ट्रैन रात दस बजे की थी| मेरा मन अब भी अंदर से उदास था और वो भाग के भौजी के पास जाना चाहता था! पिताजी ने मेरा मन बहलाने के लिए लखनऊ घूमने का प्लान बना डाला| मेरा मन तो नहीं था पर मैं पिताजी और माँ का दिल नहीं तोडना चाहता था| इसलिए मैंने चेहरा ऐसा बनाया ...या ये कहें की मैंने अपने मुँह पे excitement का मुखौटा पहन लिया और लखनऊ घूमने लगा| बड़ा इमाम बाड़ा...छोटा इम्माम बाड़ा... प्रेसीडेंसी और शहीदी पार्क...बस इतना ही घूम पाये| फिर हमने चाय पि और स्टेशन आ गए| रात के साढ़े नौ बजे ट्रैन स्टेशन पे लग गई और हम अपनी सीट पे बैठ गए| जब हम गाँव आ रहे थे तो मन में कितनी ख़ुशी थी...कितनी excitement थी पर जाते समय ...बड़ी उदासी और तन्हाई थी| बस एक बात थी की मैं आया खाली हाथ था और जाते समय भौजी की जिंदगी खुशियों से भर के जा रहा था| और अपने साथ भौजी और नेहा के साथ बिठाये सुखी पलों की माला ले जा रहा था|

बैठे-बैठे याद आया की भौजी को फोन तो कर लूँ| मैंने तुरंत फोन मिलाया पर फोन बंद था! मैं हर आधे घंटे बाद कोशिश करता रहा पर फोन बंद आ रहा था| दिल ने कहा यार अभी तुझे भौजी को अकेले छोड़े हुए कुछ घंटे ही हुए हैं और अभी से इतनी परेशानिया खड़ी हो गईं हैं तो तब क्या होगा जब तू दिल्ली पहुँच जाएगा? फिर सोचा की हो सकता है की अजय भैया के फोन की बैटरी खत्म हो गई हो? कल उनके मायके में ही फोन कर लूँगा और सारा हाल-चाल सुना दूँगा|| इतने में माँ ने खाना जो की भौजी ने पैक कर के दिया था वो निकाल लिया और खाने को कहा| खाना खाने के बाद मैं सबसे ऊपर वाली बर्थ पे लेट गया और भौजी की यादों में खो गया| उन्हें याद करते-करते, ट्रैन के झटकों को सहते हुए सो गया|

अगली सुबह उठा तो मुझे याद ही नहीं था की मैंने गाँव छोड़ दिया है...छोड़ आया मैं भौजी को अकेले....मैं उम्मीद कर रहा था की भौजी आएँगी और मुझे प्यार से उठाएँगी, Good Morning Kiss देंगी... तभ पिताजी की कड़क आवाज कान में पड़ी;

पिताजी: मानु...उठ जा ...स्टेशन आने वाला है|

तब जाके होश आया की ...मैं तो भौजी को अकेला छोड़ आया हूँ...ना यहाँ भौजी हैं और ना ही नेहा! कुछ देर बाद स्टेशन आ गए और हम ऑटो करके घर पहुँच गए| रास्ते में चार बार फोन मिलाया पर कुछ नहीं...फोन अब भी बंद था| घर पहुँचते ही मैं अपने कमरे में भाग गया और पिताजी का फोन छुपा के अपने पास रखा हुआ था| मैंने फिर से कोशिश की पर फोन बंद था| फिर मैंने सोचा की थोड़ा और रूक जाता हूँ.... बारह बजे तक भौजी अपने मायके पहुँच जाएँगी तब उनके भाई वाले नंबर से बात हो जाएगी|थोड़ी देर में पिताजी ने मुझे नीचे बोलया और अपना मोबाइल माँगा| फिर उन्होंने बड़के दादा को फोन किया और उन्हें बता दिया की हम ठीक-ठाक घर पहुँच गए हैं| पहले तो मैंने सोचा की मैं भी उनसे बात करूँ और इसी बहाने से भौजी से बात करूँ| पर फिर सोचा की भौजी ना तो बड़के दादा के पास आएँगी और बड़के दादा को भी ये थोड़ा अजीब लगेगा|

मैं बड़ी बेसब्री से बारह बजने का इन्तेजार करने लगा|नजरें घडी की टिक-टिक पे गड़ी हुई थीं| पर कमबख्त घडी जैसे थम गई थी| धीरे-धीरे घडी ने बारह बजाय और मैंने झट से पिताजी का फोन उठाया और अपने साले साहब का नंबर मिलाया|

अनिल: हेल्लो

मैं: हेल्लो...अनिल ...मैं मानु बोल रहा हूँ|

अनिल: नमस्ते जीजा जी...आप कैसे हैं? ठीक-ठाक पहुँच गए?

मैं: हाँ..हाँ... मेरी बात हो जाएगी...

अनिल: किससे?

मैं: अ...अ..... वो....आपकी दीदी से!

अनिल: जी.........आ....वो तो यहाँ नहीं हैं?

मैं: तो आप घर पे नहीं हो?

अनिल: नहीं...मैं तो यही हूँ| मतलब घर पे ही हूँ पर दीदी यहाँ नहीं आईं?

मैं: अच्छा? ok ....

अनिल: क्या दीदी न कहा था ई वो आएँगी?

मैं; नहीं..नहीं...शायद ....मतलब मुझे ऐसा लगा| खेर..मैं बाद में बात करता हूँ| बाय!

अनिल: बाय जीजा जी|

अब तो मुझे बहुत चिंता होने लगी थी| मैंने सोहा की चलो एक बार और अजय भैया का नंबर मिला के देखूं| किस्मत से नंबर मिल गया और पहली घंटी बजते ही भौजी की आवाज सुनाई दी;

भौजी: हेल्लो....

मैं: हेल्लो (मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी)

भौजी: जानू....जानू...आप कैसे हो? आपकी आवाज सुनने को तरस गई थी|

मैं: ठीक हूँ... कल रात से छत्तीस बार नंबर मिला चूका हूँ ...पर फोन switch off जा रहा था|

भौजी: हाँ फोन की बैटरी खत्म हो गई थी...अभी-अभी अजय भैया फ़ोन चार्ज करा के लाये और मुझे दे दिया| सारी रात सो नहीं पाई.... करवटें बदलती रही.... आपकी आवाज ने सोने नहीं दिया|

मैं: चिंता से मेरी जान जा रही थी... और ये बताओ की आप अब तक यहीं हो?

भौजी: जी....वो..... फोन तो किया था अनिल को...पर वो आया नहीं!

मैं: जूठ बोल रहे हो ना?

भौजी: जी ....वो.....

मैं; मेरी अभी बात हुई थी अनिल से...उसेन बताया की आपने आने का कोई संदेसा ही नहीं भिजवाया तो वो आता कैसे आपको लेने?

भौजी: सॉरी जानू...मुझे याद नहीं रहा...कल आप चले गए और आज मैं चली जाती तो.... घर कौन संभालता?

मैं: घर संभालने के लिए "वो" (रसिका) है ना... आप कल मुझे अपने मायके में मिलने चाहिए? वरना कल रात की गाडी पकड़ के आ रहा हूँ!

भौजी: तो आ जाओ ना....

मैं: सच?

भौजी: नहीं बाबा.... मैं कल चली जाऊँगी| और वहाँ पहुँचते ही आपको फोन करुँगी|

मैं: जब तक आप फोन नहीं करोगे मैं कुछ नहीं खाऊँगा...

भौजी: नहीं..नहीं.. ऐसा मत कहो!

मैं: नहीं मैं कुछ नहीं जानता...कल आप अगर अपने मायके नहीं पहुंचे तो?

भौजी: ठीक है बाबा...

मैं: और हाँ....इसी तरह मुस्कुराते रहना| I Love You !

भौजी: I Love You Too !

मैंने फोन रखा और दिल को अब थोड़ा सकून मिला|

मैंने अपने दोस्तों को फ़ोन मिलाया और उन्हें अपने आने की सुचना दी| अब तो मेरे सामने Holiday Homework का पहाड़ पड़ा हुआ था| डेढ़ महीना मैंने ऐसे ही गुजार दिया...पर हाँ ये डेढ़ महीना वो समय था जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया था| इन डेढ़ महीनों में मुझे एक पत्नी...एक अच्छी दोस्त, एक प्यारी सी बेटी और एक आने वाले नए मेहमान के आने की ख़ुशी दी थी| इतनी खुशिया वो भी डेढ़ महीने में? कौन यकीन करेगा?

मैंने इस बात को अपने दोस्तों से राज रखने का सोचा, सिवाय एक के ... मेरा सच्चा दोस्त...जिसके बारे में मैंने कहानी में बताया था जब मैंने भौजी को भगा ले जाने का फैसला किया था| अगले दिन हम पार्क में मिले और मैंने उसे सब सच बता दिया| मतलब हमारे सम्भोग के बारे में इतना डिटेल में नहीं बताया जितना आप लोगों को बताया है| उसका कहना था की भाई इस रिलेशन का कोई नाम या अंत नहीं है...ये ऐसा रिलेशन है जो शादी के बाद भी जारी रह सकता है पर उसे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कहते हैं| चूँकि ये सुनने में बहुत बुरा लगता है तो तू जैसे अभी चलरहा है वैसे चलने दे, जबतक तेरी शादी नहीं होती| शादी के बाद तू इस रिश्ते को खत्म कर दियो! उसका कहना बिलकुल सही था...पर अगर ये रिश्ता इतनी आसानी से टूट जाता तो बात ही क्या थी| खेर अभी मैंने Holiday Homework पे फोकस कर रहा था, वरना स्कूल में टीचर मेरी वाट लगा देते| और वैसे भी मैं जितना भौजी से प्यार करता था, उतना ही मैं पढ़ाई से भी करता था| मैं नहीं चाहता था की पढ़ाई को लेके भौजी चिंता करें| इसलिए मैंने उस दिन से खुद को पढ़ाई में झोंक दिया| दिन में एक घंटा फ्री रखता था ताकि भौजी से फोन पे बात कर सकूँ! पर उसमें भी दिक्कत थी, मेरे पास खुद का फोन नहीं था, हमेशा पिताजी के आने का इन्तेजार करता था| खेर उसका भी रास्ता मैंने निकाल लिया, मैंने सुबह-सुबह पार्क में पिताजी का फोन चुरा के ले जाता और यहां से भौजी को फोन करता था| पर उस समय STD कॉल दो रुपये प्रति मिनट की होती थी, इसलिए पिताजी से पॉलकेत मनी जो मिलती थी, उसका रिचार्ज करवाता था| पैसे कम पड़े तो अपने जिगरी दोस्त से ले लेता था|

अगले दिन जब सुबह०सुबह मैंने फोन किया तो भौजी अपने मायके पहुँच गईं थीं पर फोन उनके पास नहीं बल्कि अनिल के पास था| उसने बताया की वो दोपहर तक पहुंचेगा| अब फिर से मन बेसब्र हो गया और उनकी आवाज सुनने को तड़पने लगा| | खेर दोपहर में जब पिताजी भोजन करने घर आये तो मैंने उनका फोन चुराया और भौजी को मिलाया|

किस्मत से इस बार बात हो गई;

मैं: हेल्लो ...

भौजी: हेल्लो जानू.....

मैं: कैसे हो?

भौजी: आपके बिना....बस समय काट रही हूँ! कब आ रहे हो आप?

मैं: यार जैसे ही स्कूल खुलेंगे मैं जुगाड़ लगा के पता करता हूँ की दशेरे की छुटियाँ कब हैं, फिर तुरंत टिकट बुक करवा लूंगा|

भौजी: और प्लीज ... इस बार कोई सरप्राइज प्लान मत करना!

मैं: जानता हूँ...उस दिन जब आपको सरप्राइज दिया था तो आपकी क्या हालत थी....जानता हूँ|

भौजी: अच्छा ये बताओ, आपने खाना खाया?

मैं: अभी नहीं...

भौजी: तो पहले खाओ ...पता नहीं सुबह से कुछ खाया भी है या नहीं! फिर बाद में बात करते हैं|

मैं: यार, पिताजी अभी खाना खाने आये हैं और फिर चले जायेंगे.... तो बात कब होगी? रात में वो देर से आते हैं.... तो फिर कल सुबह तक कौन इन्तेजार करे|

भौजी: सच कहूँ तो मेरा मन करता है की भाग के आपके पास आ जाऊँ!

मैं: Hey ....मैं आ रहा हूँ ना...तो आपको भागने की क्या जर्रूरत है?

मैं: अच्छा...नेहा से तो बात कराओ?

भौजी: हाँ, अभी बुलाती हूँ.... कल से सौ बार पूछ चुकी है की पापा कब आएंगे...?

भौजी ने नेहा को आवाज लगाईं और अगली आवाज उसकी थी;

नेहा: हेल्लो

मैं: Awww मेरा बच्चा कैसा है?

नेहा: पापा ... I Love You So Much !

मैं: Awwww मेरा बच्चा ... किसने सिखाया ये? मम्मी ने?

नेहा: हाँ जी|

मैं: I Love You Too बेटा! कैसा है मेरा बच्चा?

नेहा: ठीक हूँ पापा...आप कब आ रहे हो?

मैं: बहुत जल्द बेटा...बहुत जल्द....और आपके लिए गिफ्ट भी लाऊँगा...

नेहा: सच पापा?

मैं: हाँ बेटा.... अब मम्मी को फोन दो!

भौजी: हाँ जी बोलिए जानू....

मैं: बहुत कुछ सीखा रहे हो मेरी बेटी को?

भौजी: हाँ...उसने ही पूछा था की I Love You का मतलब क्या होता है? तो मैंने बता दिया|

मैं: अच्छा जी?...उसने ये I Love You शब्द कहाँ सुन लिया?

भौजी: कितनी ही बार तो आप मुझे कहते थे...और मैं भी तो.....

बस इतनी ही बात हो पाई की पिताजी ने मुझे भोजन करने के लिए बुला लिया|

मैं: अच्छा मैं चलता हूँ...कल सुबह फोन करूँगा| बाय!

भौजी: ना...ऐसे नहीं... I Love यू कहो?

मैं: I Love You जान!

भौजी: I Love You Too जानू!

इसी तरह दिन बीतने लगे..और मैं रोज सुबह- शाम उन्हें फोन करने लगा| अब चूँकि मैं दशेरे पे उनसे मिलने जाने को उत्सुक था तो मैंने दोस्तों से बातों-ब्बातों में पूछा की दशेरे की छुटियाँ कब से हैं| तो वो लोग हँसने आगे... कहते, बेटा अभी तो गर्मियों की छुटियाँ खत्म हुई नहीं की तू दशेरे की सोच रहा है! गाँव में कोई बंदी बना ली है क्या, जिससे मिलने को इतना उत्सुक है? मैंने उनकी बात हँसी में टाल दी, अब ये तो सिर्फ मैं और मेरा जिगरी दोस्त जानता था की असल बात क्या है! खेर पर किस्मत को कुछ और मंजूर था..... स्कूल खुल गए और अब मैं उन्हें सुबह तो फोन कर नहीं पाटा केवल दोपहर में, स्कूल से आने पर ही फोन करता था| फिर एक दिन मैंने स्कूल में जुगाड़ लगाया और चपरासी से बातों-बातों में पूछा की दशेरे की छुटियाँ कब हैं तो उसने बताया की दस अक्टूबर से हैं| मैं तो ख़ुशी में उड़ने लगा और घर आते ही सोचा की ये खुश खबरी भौजी को दूँ! 
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02-20-2019, 06:22 PM,
#84
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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अब आगे ....

मैंने घर पहुँचते ही उन्हें फोन किया, पर उनका नंबर स्विच ऑफ़ था| मैंने सोचा की कोई बात नहीं...बैटरी खत्म हो गई होगी| उस दिन रात को पिताजी जल्दी आगये थे, तो मैंने फिर से फोन मिलाया पर फोन फिर स्विच ऑफ ! मैंने सोचा की शायद चार्ज नहीं हो पाया होगा ...वैसे भी हमारे गाँव में बिजली है नहीं| फोन चार्ज करने के लिए बाजार जाना पड़ता है और वहां भी बिजली एक-दो घंट ही आती है| अगले सात दिन तक यही चलता रहा...हर बार फोन स्विच ऑफ आता था| अब तो मैं परेशान हो उठा...और सोचने लगा की ऐसा क्या बहाना मारूँ की मैं गाँव हो आऊँ| मैंने अजय भैया का फोन मिलाया ताकि ये पता चले की कहीं भौजी घर वापस तो नहीं आ गईं? इसीलिए वो फोन ना उठा रहीं हों या अनिल को फोन स्विच ऑफ कर रहीं हों| पर भैया ने बताय की वो यहाँ नहीं हैं, वो अपने मायके में ही हैं! मैंने उनसे कहा भी की कहीं वो भौजी के कहने पे तो जूठ नहीं बोल रहे?तो उन्होंने बड़की अम्मा की कसम खाई और कहा की वो सच बोल रहे हैं| अब मन व्याकुल होने लगा...की आखिर ऐसी क्या बात है की ना तो वो मुझे फोन कर रहीं हैं ना ही अनिल का नंबर स्विच ओंन कर रहीं हैं? अगर कोई ज्यादा गंभीर बात होती तो अजय भैया मुझे अवश्य बता देते और फिर वो भला मुझसे बात क्यों छुपाएंगे? कहीं भौजी......वो मुझे avoid तो नहीं कर रहीं? नहीं..नहीं...ऐसा नहीं हो सकता! वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं...वो भला ऐसा क्यों करेंगी....नहीं..नहीं...ये बस मेरा वहम है! वो ऐसी नहीं हैं....जर्रूर कोई बात है जो वो मुझसे छुपा रही हैं|

अब उनकी चिंता मुझे खाय जा रही थी...ना ही मुजखे कोई उपाय सूझ रहा था की मैं गाँव भाग जाऊँ| अब करूँ तो करूँ क्या? दस दिन बीत गए पर कोई फोन...कोण जवाब नहीं आया...मेरा खाना-पीना हराम हो गया...सोना हराम हो गया...रात-रात भर उल्लू की तरह जागता रहता था...स्कूल में मन नहीं लग रहा था...दोस्तों के साथ मन नहीं लग रहा था...बस मन भाग के उनके पास जाना चाहता था| फिर ग्यारहवें दिन उनका फोन आया वो भी unknown नंबर से| किस्मत से उस दिन Sunday था और पिताजी और माँ घर पे नहीं थे| उस दिन सुबह से मुझे लग रहा था की आज उनका फोन अवश्य आएगा...इसलिए मैंने फोन अपने पास रख लिया ये कह के की मेरा दोस्त आने वाला है उसके साथ मुझे किताबें लेने चांदनी चौक जाना है| रात को देर हो जाए इसलिए फोन अपने पास रख रहा हूँ| मैंने किताब तो खोल ली पर ध्यान उसमें नहीं था| 

इतने में घंटी बजी, मुझे नहीं पता था की ये किसका नंबर है पर फिर सोचा की शायद उन्ही का हो, इसलिए मैंने फटाक से उठा लिया;

मैं: हेल्लो

भौजी: हेल्लो ....

मैं: ओह जान... I Missed You So Much ! कहाँ थे आप? इतने दिन फोन क्यों नहीं किया..और तो और अनिल का
नंबर भी बंद था| मेरी जान सुख गई थी.... और ये नंबर किसका है? आप हो कहाँ?

भौजी: वो सब मैं आपको बाद में बताउंगी , But first I Wanna talk to you about something.

मैं: Yeah Sure my Love! (भौजी की आवाज से लगा की वो बहुत गंभीर हैं|)

भौजी: am..... look….we gotta end this! I mean….आपको मुझे भूलना होगा?

ये सुन के मैं सन्न रह गया और गुस्से से मेरा दिमाग खराब हो गया| एक तो इतने दिन फोन नहीं किया...और मेरे सवालों का जवाब भी देना मुनासिब नहीं समझा...ऊपर से कह रहीं है की मुझे भूल जाओ!

मैं: Are you out of your fucking mind?

भौजी: Look….I’ve thought on it…over and over again..but हमारा कुछ नहीं हो सकता| आपका ध्यान मुझे पे और नेहा पे बहुत है...आपको पढ़ना है..अच्छा इंसान बनना है...माँ-पिताजी के सपने पूरे करने हैं... और मैं और नेहा इसमें बाधा बन रहे हैं| आप रोज-रोज मुझे फोन करते हो...कितना तड़पते हो ये मैं अच्छे से जानती हूँ| गाँव आने को व्याकुल हो... और अगर ये यहाँ ही नहीं रोक गया तो आप अपनी पढ़ाई छोड़ दोगे और यहाँ भाग आओगे|बेहतर यही होगा की आप हमें भूल जाओ... और अपनी पढाई में ध्यान लगाओ!

मैं: पर मेरी....

भौजी: मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती ...ये आखरी कॉल था, आजके बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे ..... इतना सब कहने में मुझे बहुत हिम्मत लगी है... आप मुझे भूल जाओ बस|

और उन्होंने फोन काट दिया| अगले पांच मिनट तक मैं फोन को अपने कान से लगाय बैठा रहा की शायद वो दुबारा कॉल करें...पर नहीं....कोई कॉल नहीं आया| मैं सोचता रहा की आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो वो मुझे इतनी बड़ी सजा दे रहीं हैं? मैंने तो कभी नैन कहा की मैं पढ़ाई छोड़ दूँगा? बल्कि वो तो मेरी inspiration थी... उस समय मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने आपको दुनिया में जीने के लिए छोड़ दिया बस आपसे साँस लेने का अधिकार छीन लिया| बिना साँस लिए कोई कैसे जी सकता है...!!! उस दिन के बाद तो मैं गमों के समंदर में डूबता चला गया| पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा...बस अकेला बैठा उनके बारे में सोचता रहता| घर पे होता तो छत पे एक कोने पे बैठ रहता ...स्कूल में कैंटीन के पास सीढ़ियां थीं...वहां अकेला बैठा रहता ... क्लास में गुम-सुम रहता...दोस्तों से बातें नहीं.... सेकंड टर्म एग्जाम में passing मार्क्स लाया ...बस...यही रह गया था मेरे जीवन में| इस सबके होने से पहले पिताजी ने मुझे एक MP3 प्लेयर दिलाया था...उसमें दुःख भरे गाने सुन के जीये जा रहा था| मेरे फेवरट गाने थे;

१. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए (A Train Movie) जो गाना मुझ पे पूरा उतरता था....

२. मैं जहाँ रहूँ (Namaste London) इसका एक-एक शब्द ऐसा था जो मेरी कहानी बयान करता था|

३. जीना यहाँ (Mera Naam Joker) बिलकुल परफेक्ट गाना! 

माँ शायद मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख के समझ गईं की बात क्या है? या फिर उन्होंने तुक्का मार!

माँ: क्या बात है बेटा? आजकल तू बहुत गुम-सुम रहता है!

मैं: कुछ नहीं माँ...

माँ: मुझसे मत छुपा.... तेरे पेपरों में बी अचानक से कम नंबर आये हैं... और जब तेरे पिताजी ने करण पूछा तब भी तू इसी तरह चुप था? देख मैं समझ सकती हूँ की तुझे अपनी भौजी और नेहा की बहुत याद आ रही है! ऐसा है तो फोन कर ले उसे...मन हल्का हो जायेगा! वैसे भी तूने बहुत दिनों से उसे फोन नही किया.... कर ले फोन?

मैं: नहीं माँ... मैं फोन ठीक नहीं करूँगा!

माँ: क्यों लड़ाई हो गई क्या?

मैं: नहीं तो

माँ: हाँ..... समझी...दोनों में लड़ाई हुई है!

मैं: नहीं माँ... ऐसा कुछ नहीं है| Thanks की आप आके मेरे पास बैठे| अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

माँ से बात छुपाना शायद इतना आसान नहीं होता... पर मेरी बात किसी बात पे अड़ नहीं जाती| उन्होंने इस बात को ज्यादा नहीं दबाया और मेरे सर पे हाथ फेरा और चली गईं| इधर मुझे मेरे सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला था और मैं बस तड़प के रह गया..! मन में बस एक ही सवाल की क्यों....आखिर क्यों उन्होंने मुझे अपने जीवन से...इस तरह निकाल के फेंक दिया? आखिर कसूर क्या था मेरा?

यहाँ मैं अपने उस जिगरी दोस्त का जिक्र करना चाहूंगा...जो अगर ना होता तो मैं इस गम से कभी उबर न पाता| मैं उसे "दिषु" कहके बुलाता था| उसने मुझे समझा और मुझे होंसला दिया...तब जाके मैं कुछ संभल पाया| बाकी मेरी जिंदगी का एक लक्ष्य रहा था की मैं कभी भी अपनी माँ को दुखी ना करूँ... तो ये भी एक वजह थी की मैं इस गम को जल्दी भुला दूँ| पर अगर भूलना इतना आसान होता तो बात ही क्या थी! मैंने उनकी याद को मन में दबा लिया...जब अकेला होता तो उन सुहाने पलों को याद करता| पर सब के सामने हँसी का मुखौटा ओढ़ लेता| ऐसे करते-करते बारहवीं के बोर्ड के पेपर हो गए और किस्मत से पास भी हो गया| अब आगे कॉलेज के लिए फॉर्म भर दिए और साथ ही कुछ एंट्रेंस एग्जाम के फॉर्म भी| जिसकी कोचिंग के लिए मैं एक कोचिंग सेंटर जाने लगा| दिषु चूँकि मुझसे पढ़ाई में बहुत अच्छा था तो उसने अलग कोर्स लिया और वो अलग जगह जाता था| पर हम अब भी दोस्त थे|

अब हुआ ये की पहला दिन था कोचिंग सेंटर में और मं किसी को नहीं जानता था तो चुप-चाप बैठा था| शुरू से मेरा एकाउंट्स बहुत तेज रहा है| तो कोचिंग में एकाउंट्स का सब्जेक्ट शुरू होते ही सब के सर मेरी ओर घूम जाया करते थे| पहले दिन सर ने JLP : Joint Life Policy पे एक सवाल हल कर रहे थे, जिसका जवाब सर ने गलत निकाला था| चूँकि मैंने एक दिन पहले से ही तैयारी कर राखी थी तो जब मैंने सर को सही जवाब बताया तो सब के सब हैरानी से मुझे देखने लगे की आखिर इसने सर को करेक्ट कैसे कर दिया? मैं आखरी बेंच पे बैठा था ओर मेरे ठीक सामने एक लड़की बैठ थी| जब सब पीछे मुड के देखने आगे तब हम दोनों की आँखें चार हुईं| उसकी सुंदरता का वर्णन कुछ इस प्रकार है;

मोर सी उसकी गोरी गर्दन, मृग जैसी उसकी काली आँखें...जिनमें डूब जाने को मन करता था... गुलाब से उसके नाजुक होंठ ओर दूध सा सफ़ेद रंग....बालों की एक छोटी ओर उसकी नाक पे बैठा चस्मा....हाय!!! उस दिन से मैं उसका कायल हो गया| वो बड़ी शांत स्वभाव की लड़की थी...लड़कों से बात नहीं करती थी.... बस अपनी सहेलियों से ही हँसी-मजाक करती थी| जब वो हंसती थी तो ऐसा लगता था की फूल मुस्कुरा रहे हैं| क्षमा करें दोस्तों मैं उसका नाम आप लोगों को नहीं बता सकता...क्योंकि उसका नाम बड़ा अनोखा था...अगर कोई उसका नाम ठीक से ना पुकारे तो वो नाराज हो जाया करती थी| पर नजाने क्यों मैं...पहल करने से डरता था| मैंने उस सेंटर में पूरे दो महीने कोचिंग ली...पर सच कहूँ तो मैं सिर्फ उसे देखने आता था| पीछे बैठे-बैठे उसकी तसवीरें लिया करता था...पर कभी भी उसकी पूरी तस्वीर नहीं ले पाया| क्लास के सारे लड़के जानते थे की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ....पर कभी हिम्मत नहीं हुई उससे कुछ कहने की! कोचिंग खत्म होने से एक दिन पहले हमारी बात हुई...वो भी बस जनरल बात की आप कौन से स्कूल से हो? कितने परसेंट मार्क्स आये थे? आगे क्या कर रहे हो? बस...मैं मन ही मन जानता था तक़ी इतनी सुन्दर लड़की है और इतना शीतल स्वभाव है...हो न हो इसका कोई न कोई बाँदा तो होगा ही और दूसरी तरफ मैं...उसके मुकाबले कुछ भी नहीं| हाँ व्यक्तित्व में उससे ज्यादा प्रभावशाली था....पर अब कुछ भी कहने के लिए बहुत देर हो चुकी थी|

उस लड़की से एक दिन बात क्या हुई...मैं तो हवा में उड़ने लगा| उसके बारे में सोचने लगा...और मन में दबी भौजी की याद पे अब धुल जमना शुरू हो चुकी थी| पर अभी भी उसपे समाधी नहीं बनी थी! खेर मैंने पेपर दिए और पास भी हो गया| उसके बाद अपने कोचिंग वाले दोस्तों से उसका नंबर निकलवाने की कोशिश की पर कुछ नहीं हो पाया...अब तो बस उसकी तसवीरें जो मेरे फोन में थी वही मेरे जीने का सहारा थी| दिन बीतते गए...साल बीते ...और आज सात साल हो गए इस बात को! 

इन सात सालों में मैं गाँव नहीं गया....मुझे नफरत सी हो गई उस जगह से| 2008 फरवरी में उन्हें लड़का हुआ ... और अब मैं जानता था की भौजी को घर में वही इज्जत मिल रही होगी जो उन्हें मिलनी चाहिए थी| आखिर उन्होंने खानदान को वारिस दिया था! इसी बहाने नेहा को भी वही प्यार मिल जायेगा जो उसे अब तक नहीं मिला| हाँ पिताजी की तो हफ्ते में दो-चार बार बड़के दादा से बात हो जाया करती थी..या फिर वो जब जाते थे तो आके हाल-चाल बताते थे की घर में सब खुश हैं| एक दिन मैंने माँ-पिताजी को बात करते सुना भी था की भौजी को अब सब सर आँखों पे रखते हैं| रही रसिका भाभी की तो उसमें अब बहुत सुधार आया है| सरे घर का काम वही संभालती है और अब वो पहले की तरह सुस्त और ढीली बिलकुल नहीं है| रसिका भाभी के मायके वालों ने आके माफ़ी वगेरह माँगी और अब उनके और अजय भैया के बीच रिश्ते फिर से सुधरने लगे हैं| इन सात सालों में बड़के दादा के छोटे लड़के(गट्टू) की भी शादी थी...पर मैं वो अटेंड करने भी नहीं गया| पढ़ाई का बहाना मार के रूक गया था और माँ-पिताजी को भेज दिया था|... पर अब मुझे इंटरनेट और पंखों की आदत हो गई थी और हमारे गाँव में अब तक बिजली नहीं है! तो मेरे पास गाँव ना जाने की एक और वजह थी! भौजी ने मुझे फोन करने को मना किया था...और खुद से इस तरह काट के अलग कर दिया था तो अब मैं भी उनके प्रति उखड़ चूका था| शायद मैंने नेहा को उनकी इस गलती की सजा दी...या फिर उसे वो प्यार चन्दर भैया से मिल गया होगा! वैसे भी मैं सबसे ज्यादा प्यार तो भौजी से करता था और उनके बाद नेहा से...तो अगर उन्हें ही मुझसे रिश्ता खत्म करना था और खत्म कर भी दिया तो फिर नेहा से मैं किस हक़ से मिलता|ऐसा नहीं था की मैं भौजी को बिलकुल भूल गया था...तन्हाई में उनके साथ बिताये वो लम्हे अब भी मुझे याद थे...रात को सोते समय एक बार उन्हें याद जर्रूर करता था...पर वो सिर्फ मेरी शिकायत थी| मैं उन्हें शिकायत करने को याद किया करता था| पर दूसरी तरफ वो लड़की....जिसके प्रति मैं attracted था ...वो मुझे फिर से भौजी की यादों के गम में डूबने नहीं देती थी| मैंने भौजी से इतना प्यार करता था की मैंने हमेशा भौजी की हर बात मानी थी..उनकी हर इच्छा पूरी की थी...तो फिर उनकी ये बात की मुझे भूल जाओ और दुबारा फोन मत करना...ये कैसे ना मानता? और ऐसा कई बार हुआ की मैं इल के आगे मजबूर हो गया और उन्हें फोन भी करना चाहा पर.... करता किस नंबर पे? उनके पास उनका कोई पर्सनल नंबर तो था नहीं? आखरी बार उन्होंने कॉल भी अनजान नंबर से किया था! अनिल को फोन करता तो लोग हमारे बारे में बातें बनाते| मुझे तो ये तक नहीं पता था की भौजी हैं कहाँ? अपने मायके या ससुराल?

तो जब से मैंने यहाँ कहानी लिखनी शुरू की तभी से कुछ अचानक घटित हुआ| मैं उस लड़की को याद करके खुश था...रात को सोते समय उसे याद करता..उसकी मुस्कान याद करता...उसकी मधुर आवाज याद करता... ये सोचता की अं उसके साथ हूँ...You can call it my imagination! पर मेरी कल्पना में ही सही वो मेरे साथ तो थी! कम से कम वो भौजी की तरह मुझे दग़ा तो नहीं देने वाली थी| एक बात मैं आप लोगों को बताना ही भूल गया या शायद आप खुद ही समझ गए होंगे| जब मैं कोचिंग जाता था तब पिताजी ने मुझे मेरा पहला मोबाइल दिल दिया था| Nokia 3110 Classic !

खेर, इसी साल करवाचौथ से कुछ दिन पहले की बात थी! मुझे एक अनजान नंबर से फोन आया;

मैं: हेल्लो

भौजी: Hi

मैं: Who's this ?

भौजी: पहचाना नहीं?

अब जाके मैं उनकी आवाज पहचान पाया..... मन में बस यही बोला; "oh shit !"

मैं: हाँ

भौजी: तो?

अब हम दोनों चुप थे...वो सोच रही थीं की मैं कुछ बोलूँगा पर मैं चुप था|

भौजी: हेल्लो? You there ?

मैं: हाँ

भौजी: मैं आपसे मिलने आ रही हूँ!

मैं: हम्म्म्म ...

भौजी: बस "हम्म्म्म" मुझे तो लगा आप ख़ुशी से कहोगे कब?

मैं: कब?

भौजी समझ चुकीं थीं की मैं नाराज हूँ और फोन पे किसी भी हाल में मानने वाला|

भौजी: इस शनिवार....तो आप मुझे लेने आओगे ना?

मैं: शायद ...उस दिन मुझे अपने दोस्त के साथ जाना है!

भौजी: नहीं..मैं नहीं जानती...आपको आना होगा!

मैं: देखता हूँ!

भौजी: मैं जानती हूँ की आपको बहुत गुस्सा आ रहा है| मैं मिलके आपको सब बताती हूँ|

मैं: हम्म्म्म!

और मैंने फोन काट दिया| मैंने जानबूझ के भौजी से जूठ बोला था की मैं अपने दोस्त के साथ जा रहा हूँ पर मेरा जूठ पकड़ा ना जाये इसलिए मैंने दिषु को फोन किया और उसे सारी बात बता दी| उसने मुझे कहा की मैं उसके ऑफिस आ जॉन और फिर वहां से हम तफड्डी मारने निकल जायेंगे|

शाम को पिताजी जब लौटे तो उन्होंने कहा की;

पिताजी: "गाँव से तेरे चन्दर भैया आ रहे हैं तो उन्हें लेने स्टेशन चला जईओ|"

मैं: पर पिताजी उस दिन मुझे दिषु से मिलने जाना है?

पिताजी: उसे बाद में मिल लीओ? तेरी भौजी आ रहीं है और तू है की बहाने मार रहा है|

मैं: नहीं पिताजी...आप चाहो तो दिषु को फ़ोन कर लो|

पिताजी: मैं कुछ नहीं जानता| और हाँ चौथी गली में जो गर्ग आंटी का मकान खाली है वो लोग वहीँ रुकेंगे तो कल उसकी सफाई करा दिओ| और आप भी सुन लो (माँ) जबतक उनका रसोई का काम सेट नहीं होता वो यहीं खाना खाएंगे!

माँ: ठीक है...मुझे क्या परेशानी होगी..कम से कम इसी बहाने मेरा भी मन लगा रहेगा|
आज पहलीबार मैंने वो नहीं किया ज पिताजी ने कहा| मैंने अपना प्लान पहले ही बना लिया था| शनिवार सुबह दिषु ने पिताजी को फ़ोन किया, उस समय मैं उनके पास ही बैठा था और चाय पी रहा था ;

दिषु: नमस्ते अंकल जी!

पिताजी: नमस्ते बेटा, कैसे हो?

दिषु: ठीक हूँ अंकल जी| अंकल जी ....मैं एक मुसीबत में फंस गया हूँ|

पिताजी: कैसी मुसीबत?

दिषु: अंकल जी...मैं यहाँ अथॉरिटी आया हूँ...अपने लाइसेंस के लिए ...अब ऑफिस से बॉस ने फोन किया है की जल्दी ऑफिस पहुँचो| अब मैं यहाँ लाइन में लगा हूँ कागज जमा करने को और मुझे सारा दिन लग जायेगा| अगर कागज आज जमा नहीं हुए तो फिर एक हफ्ते तक रुकना पड़ेगा| आप प्लीज मानु को भेज दो, वो यहाँ लाइन में लग कर मेरे डॉक्यूमेंट जमा करा देगा और मैं ऑफिस चला जाता हूँ|

पिताजी: पर बेटा आज उसके भैया-भाभी आ रहे हैं?

दिषु: ओह सॉरी अंकल... मैं...फिर कभी करा दूंगा| (उसने मायूस होते हुए कहा)

पिताजी: अम्म्म... ठीक है बेटा मैं अभी भेजता हूँ|

दिषु: थैंक यू अंकल!

पिताजी: अरे बेटा थैंक यू कैसा... मैं अभी भेजता हूँ|

और पिताजी ने फोन काट दिया|

पिताजी: लाड-साहब अथॉरिटी पे दिषु खड़ा है| उसे तेरी जर्रूरत है...जल्दी जा|

मैं: पर स्टेशन कौन जायेगा?

पिताजी: वो मैं देख लूंगा...उन्हें ऑटो करा दूंगा और तेरी माँ उन्हें घर दिखा देगी|

मैं फटाफट वहाँ से निकल भागा| मैं उसे अथॉरिटी मिला और वहाँ से हम Saket Select City Walk मॉल चले गए| वहाँ घूमे-फिरे;

मैं: ओये यार घर जाके पिताजी ने डॉक्यूमेंट मांगे तो? क्योंकि मैं तो अथॉरिटी से घर निकलूंगा तू थोड़े ही मिलेगा मुझे?

दिषु: यार चिंता न कर ..मैंने डॉक्यूमेंट पहले ही जमा करा दिए थे| ये ले रख ले और मैं रात को तुझ से लै लूँगा|
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02-20-2019, 06:22 PM,
#85
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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अब आगे ....

मैं शाम को पांच बजे घर पहुंचा और ऐसे एक्टिंग की जैसे सारा दिन लाइन में खड़े रहने से मेरी टांगें टूट गईं हों| पर मेरा मन नहीं कर रहा था उनकी सूरत देखने को...अब मैं उन्हें AVOID करना चाहता था| भौजी गर्ग आंटी के घर में सामान सेट कर रहीं थीं और अब तक मेरी और उनकी मुलाकात नहीं हुई थी और ना ही मैं मिलना चाहता था| पर मैं जानता था की रात को तो मिलना ही पड़ेगा.....इसलिए मैंने उसका भी प्लान बना लिया| मैंने दिषु को sms किया की वो मुझे मिलने आये और किसी बहाने से बहार ले जाए| वो ठीक छः बजे आया;

दिषु: नमस्ते आंटी जी|

माँ: नमस्ते बेटा| कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?

दिषु: जी सब ठीक हैं...आप सब को बहुत याद करते हैं|

माँ: बेटा समय नहीं मिल पाता वरना मैं भी सोच रही थी की मैं आऊँ|

और माँ अंदर पानी लेने चली गईं| मैंने दिषु को समझा दिया की उसे क्या कहना है|

माँ: ये लो बेटा...नाश्ता करो|

अब दिषु ने प्लान के अनुसार बात शुरू की|

दिषु: यार डाक्यूमेंट्स जमा हो गए थे?

मैं: हाँ ...ये ले उसकी कॉपी|

दिषु: थैंक्स यार.... नहीं तो एक हफ्ता और लगता|

मैं: यार ... थैंक्स मत बोल|

दिषु: चल ठीक है...ट्रीट देता हूँ तुझे|

मैं: हाँ...ये हुई ना बात| कब देगा?

दिषु: अभी चल

मैं: माँ...मैं और दिषु जा रहे हैं|

माँ: अरे अभी तो कह रहा था की टांगें टूट रहीं हैं|

मैं: अरे पार्टी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ| तू बैठ यार मैं अभी चेंज करके आया|

माँ: ठीक है जा...पर कब तक आएगा?

दिषु: आंटी ....नौ बजे तक| डिनर करके मैं इसे बाइक पे यहाँ छोड़ जाऊँगा|

माँ: बेटा बाइक धीरे चलाना|

दिषु: जी आंटी|

मैं जल्दी से तैयार हो के आया और हम निकल पड़े| दिषु अपनी बाइक स्टार्ट कर ही रहा था की भौजी आ गईं ..उन्होंने मुझे देखा...मैंने उन्हें देखा.... पर फिर अपना attitude दिखाते हुए मैंने हेलमेट पहना और दिषु के साथ निकल गया|

उसके साथ घूमने निकल गया पर बार-बार उनका ख्याल आ रहा था| मुझे लगा की मुझे अपना जूठा attitude या अकड़ नहीं दिखना चाहिए था| ये बात मेरे चेहरे से झलक रही थी...दिषु ने मुझसे मेरी उदासी और भौजी को ignore करने का कारन पूछा, तो मैंने कह दिया की मैं अब फिर से उसी हालत में नहीं पहुँचना चाहता जिससे दिषु ने मुझे निकला था| मैं भला और उस लड़की यादें भलीं| रात को आधे नौ बजे घर पहुंचा...जानबूझ कर लेट आया था क्योंकि मैं चाहता था की मेरे आने तक भौजी चली जाएं और मुझे उनका सामना ना करना पड़े| पर भौजी माँ के साथ बैठी टी.वी. पे सास-बहु का सीरियल देख रहीं थीं| मैं आया और माँ को गुड नाईट बोल के अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के लेट गया| 

पर अगले दिन कुछ इस प्रकार हुआ| मैं सो के लेट उठा....दस बजे उठ के तैयार हो के नीचे आया तो माँ ने कहा;

माँ: बेटा...तेरी भौजी के घर में ये सिलिंडर रख आ| चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|

अब माँ का कहा मैं कभी नहीं टालता था तो मजबूरन मुझे सिलिंडर उठा के उनके घर जाना पड़ा| उनके घर पहुँच कर मैंने दरवाजा खटखटाया और उन्होंने दरवाजा खोला, उनके मुँह पर मुझे देखने की ख़ुशी झलक रही थी|

भौजी: जानू ... यहाँ रख दीजिये|

मैंने सिलिंडर रखा और जाने लगा तो भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे गले लग गईं| उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया, वो अपने हाथ मेरी पीठ पे फ़िर रहीं थीं| पर मैंने अपने हाथ मेरी पेंट की जेब में ठुसे थे| मैंने उन्हें जरा भी छुआ नहीं... कोई अगर देखता तो ये ही कहता की भौजी मेरे गले लगी हैं ...मैं नहीं!

मैं: OK …let go of me!

भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?

मैं: हुंह...नाराज.... किस रिश्ते से?

भौजी: प्लीज मुझे माफ़ कर दो...मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी...मैं बता नहीं सकती| ग्यारह दिन तक खुद को रोकती रही आपको कॉल करने को पर.....मैं नहीं चाहती थी की मैं या नेहा आपके पाँव की बेड़ियां बने! प्लीज ...प्लीज मुझे गलत मत समझो!!!

मैं: (उन्हें खुद से अलग करते हुए) तकलीफ? ...इसका मतलब जानते हो आप? पूरे सात साल...Fucking सात साल....आपको भूलने में ...... और आप ग्यारह दिन की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया ...अपनी बात रखने का हक़ नहीं था क्या मुझे? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? हुंह.... आपने मुझे समझा क्या है...? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता हो! जानते हो की मुझे कितनी तकलीफ हुई होगी... मैं ...मैं इतना दुखी था..इतना तड़प रहा था की.... आपने कहा था की मैं पढ़ाई पे ध्यान दूँ ... और मेरे सेकंड टर्म में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! इन सात सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? मैं कहना तो नहं चाहता पर, I feel like… like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे छोड़ दिया...मरने को? आप ने जरा भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? मैं मर ही जाता ...अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! यही चाहते थे ना आप?

भौजी अब बिलख के रो पड़ीं थीं|

मैं: मेरे बारहवीं पास होने पे फोन नहीं किया...ग्रेजुएट होने पर भी नहीं.... इतना ही नहीं...आपने आयुष(भौजी और मेरा बेटा) के पैदा होने पर भी मुझे फोन तक नहीं किया? एक फोटो तक नहीं भेजी आपने? उसकी आवाज तक नहीं सुनाई? कोई किसी से ऐसा करता है क्या? किस गुनाह की सजा दी आपने मुझे? की आपने मुझे ऐसी सजा सुनाई? आपने तो मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! सजा देते समय आपको नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? (एक लम्बी साँस लेते हुए) और इतना सब के बाद आप मुझसे कहते हो की क्या मैं आपसे नाराज हूँ?

मैंने उन्हें वो सब सुना दिया जो इतने सालों से मेरे अंदर दबा हुआ था|

भौजी रो रहीं थीं...मैं उन्हें चुप करा सकता था....उनके आँसूं पांच सकता था... पर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उनहीं रोता-बिलखता छोड़ के जाने लगा तभी मुझे दो बच्चे घर में घुटे हुए दिखाई दिए| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| नेहा अब XX साल की हो गई थी और आयुष की उम्र तो आप समझ ही चुके होंगे| आयुष ने तो मुझे नहीं पहचाना पर नेहा पांच सेकंड तक मुझे देखती रही पर फिर वो भी अंदर चली गई| दोस्तों आब जरा सोच के देखो की अगर कोई आपके साथ ऐसा करे ओ दिल को कितनी ठेस पहुँचती है| मैं उन बच्चों को छूना चाहता था.... पर छू न सका! कुछ कहना चाहता था...पर कह ना सका! गले लगाना चाहता था पर ....नहीं लगा सका| भौजी अंदर से हमें देख रहीं थीं और इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं चला गया| घर आके मैंने खुद को अपने कमरे में लॉक किया और दरव्वाजे ले सहारे बैठ गया और अपने घुटनों में अपना चेहरे छुपा के रोने लगा| वो जख्म जिसपे धुल जम चुकी थी आज किसी ने उस जख्म को कुरेद को हरा कर दिया था| यही कारन था की मैं भौजी से बिलकुल मिलना नहीं चाहता था| दोपहर के भोजन से पहले ही मैं बहाना मार के घर से निकल गया और रात को नौ बजे आया| पिताजी से बड़ी डाँट पड़ी, की तू इस तरह अवरगिर्दी करता रहता है! पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और उनकी डाँट चुप-चाप सुन के अपने कमरे में जाके सो गया| अगले दिन सुबह जल्दी उठ गया और घर से निकलने ही वाला था की पिताजी ने रोक लिया;

पिताजी: कहाँ जा रहा है?

मैं: जी साइट पे| (मैं पिताजी के साथ ही काम करता था| पिताजी ने बिल्डिंग रेनोवेशन का काम ले लिया था और यही कारन था की उन्होंने चन्दर भैया को अपने साथ काम में लगाने के लिए गाँव से बुलाया था|)

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं...मैंने चन्दर को वहां भेजा है..वो आज प्लंबिंग का काम करवा रहा है, वहां तेरा कोई काम नहीं है| तेरी भौजी ने कहा था की घर में कुछ सफाई और बिजली का कुछ काम है| तू जा और वो काम कर के आ|

मैं: पर मैं अभी नहया हूँ| आप मुझे फिरसे धुल-मिटटी का काम दे रहे हो?

पिताजी: तो फिर से नह लिओ...यहाँ कौन सा सुख पड़ा है जो तुझे नहाने को पानी नहीं मिलेगा| जा जल्दी|

मैं बेमन से उनके घर की ओर चल दिया| तभी मुझे अपना एक वादा याद आया..जो मैंने नेहा से किया था| मैं पहले मार्किट गया ओर उसके लिए एक जीन्स और टॉप खरीदा ओर उसे एक गिफ्ट पैक में wrap कराया और उसमें एक चिप्स का पैकेट भी छुपा के रख दिया, क्योंकि उसे बचपन से चिप्स बहुत पसंद थे| गिफ्ट पैक बहुत मोटा होगया था क्योंकि उसमें चिप्स का पैकेट इस तरह रखा था की जैसे ही कोई गिफ्ट खोलेगा तो उसे सबसे पहले चिप्स का पैकेट दिखेगा| पर पता नहीं उसे अब चिप्स पसंद होंगे या नहीं? आयुष के लिए मैंने एक Toy Plane लिया और उसे भी गिफ्ट पैक कराया| मैं भौजी के घर पहुँचा.... बच्चे घर पे नहीं थे| भौजी ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा| फिर भौजी बहार गईं और उन्होंने बच्चों को आवाज दी| बच्चे बहार खेल रहे थे और भागगते हुए घर आये| दोनों मेरे सामने खड़े थे|

भौजी: आयुष बेटा...नेहा...ये आपके पा....

मैं: (मैंने भौजी की बात एक दम से काट दी|) बेटा मैं आपका चाचा हूँ|

मुझे ये बोलने में कितनी तकलीफ हुई ये मैं आप लोगों को बयान नहीं कर सकता| भौजी आँखें फ़ाड़े मेरी ओर देख रहीं थीं और उन्होंने बात पूरी करनी चाही पर मैंने उन्हें बोलने ही नहीं दिया| मैं चाहता था की उन्हें भी वो दर्द महसूस हो जो मुझे हुआ था जब उन्होंने ये कह के फोन काट दिया की ": मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती ...ये आखरी कॉल था, आजके बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे ..... इतना सब कहने में मुझे बहुत हिम्मत लगी है... आप मुझे भूल जाओ बस|"

मैं: नेहा बेटा....पता नहीं आपको याद होगा की नहीं...पर मैंने एक बार आपको प्रॉमिस किया था की मैं दशेरे की छुटियों में आऊँगा ..और आपके लिए गिफ्ट भी लाऊँगा| (ये कहता हुए मेरी आँखें भर आईं थीं...गाला भारी हो गया था, पर जैसे तैसे खुद को रोका|) हाँ थोड़ा लेट हो गया...सात साल! (ये मैंने भौजी को देखते हुए कहा, उनकी नजरें झुक गई थीं|)

नेहा: थैंक यू (वो कुछ कहने वाली थी पर रुक गई)

मैं: और आयुष बेटा...ये आपके लिए .. (मैंने उसे Toy प्लेन दे दिया|)

आयुष तो खिलौना ले के अंदर कमरे में भाग गया पर नेहा कुछ सोचते हुए अंदर जा रही थी... एक बार का तो मन हुआ की उसे रोक लूँ और पूछूं...पर नहीं| अब मेरा उस पे कोई हक़ नहीं था| आयुष को जब इतना नजदीक देख के उसे छूना चाहा...गले लगाना चाहा...आखिर वो मेरा खून था...पर फिर मैं अपना आपा खो देता इसलिए खुद को रोक लिया|

भौजी की आँखें छलक आईं थीं पर मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा... मैं भी पांच मिनट तक चुप बैठा रहा और खुद को संभालने की कोशिश करता रहा| आखिर पांच मिनट बाद में बोला;

मैं: तो ...कहिये "भाभी" क्या काम है आपको?

मेरे मुँह से भाभी शब्द सुन के भौजी मेरे पास आके बैठ गईं और उनकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी|मैंने जान-बुझ के वो शब्द कहा था.... कारन साफ़ था!

मैं: क्या हुआ? (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं जा रहा हूँ!

भौजी: (अपने आँसूं पोछते हुए) आप तो मुझे "जान" कहके बुलाया करते थे ना?

मैं: कहता था....जबतक आपने मुझे ऐसे अपराध की सजा नहीं दी थी जो मैंने किया ही नहीं था| और अब रहा ही क्या....जो मैं आपको जान कहके बुलाऊँ?

भौजी: कुछ नहीं रहा हमारे बीच?

मैं: नहीं.... मैं किसी और से प्यार करता हूँ|

भौजी ये सुनते ही रो पड़ीं और मुझे उन्हें रुला के बुरा लग रहा था पर फिर मैं ऐसे दिखा रहा था की मुझे कोई फर्क नहीं पद रहा है| पर ये मेरा दिल जानता है की मुझे पे उस पल क्या बीत रही थी|

भौजी: ठीक है .... (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: तो कुछ काम है मेरा की मैं जाऊँ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं...इतने में मुझे अंदर से बच्चों के खेलने की आवाज सुनाई देने लगी...मैं एक कदम चला और फिर रूक गया|

भौजी: आप आयुष को गले नहीं लगाओगे?

मैं: किस हक़ से? ओह...याद आया....चाचा जो हूँ उसका! (मैंने भौजी को फिर टोंट मार|)

भौजी: आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

मैं:हुंह...मैं....ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरी बात का जवाब दो; क्या आपने उसे बताय की मैं उसका क्या हूँ? ये तो छोडो आपने उसे मेरे बारे में कुछ भी बताया?

भौजी: कैसे बताती ...आप कभी आये ही नहीं मिलने?

मैं: कैसे आता...आपको उस दिन कहना चाहता था की मेरे स्कूल की दशेरे की छुटियाँ पंद्रह अक्टूबर से सगुरु होंगी...पर आपने मेरी बात ही नहीं सुनी| और विासे भी मेरी तस्वीर तो थी ना आपके पास?

भौजी का सर ऑफर से झुक गया| मैं जाने लगा तो नेहा बाहर आई और मेरी कमीज पीछे से पकड़ के खींचते हुए बोली;

नेहा: पापा

उसके मुँह से पापा सुनते ही मैं घटनों पे जा गिरा और उसके गले लग गया| नेहा भी मुझे कस के गले लग गई और हम दोनों की आँखें भर आईं|

नेहा: (मैंने नेहा के आँसूं पोछे) पापा I missed you so much ! आपने कहा था ना की आप मुझसे मिलने दशेरे की छुटियों में आओगे? पर क्यों नहीं आये आप?

मैंने एक पल को तो सोचा की मैं उसे सब सच बता दूँ...पर फिर रूक गया| क्योंकि मैं जानता था की असल बात जानेक वो अपनी ही माँ से नफरत करेगी इसलिए मैंने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया|

मैं: बेटा.... वो मैं......Sorry !!! मैं अपना वादा पूरा नहीं कर पाया| (नेहा मेरे आँसूं पोछते हुए बोली)

नेहा: It's okay पापा| अब तो आप कहीं नहीं जाओगे ना?

मैं: नहीं बीता...मैं यहीं पास रहता हूँ...जब चाहे आ जाना| और याद रहे ये पापा वाला सीक्रेट हमारे बीच रहे|

नेहा ने हाँ में सर हिलाया और मैं जाने लगा की एक पल की लिए ठहरा और भौजी की ओर देखने लगा| उनका चेहरे को देख के ये समझ नहीं आया की वो खुश हैं की दुखी?

मैं जाने लगे तो भौजी ने अपने आंसूं पोछे और बोलीं;

भौजी: जानू...प्लीज !!!

मैं रूक गया पर मेरी पीठ उनकी ओर थी और फिर उन्होंने आयुष को आवाज मारी| नेहा ने मेरी ऊँगली पकड़ के मुझे रोक लिया|

भौजी: आयुष...बेटा इधर आओ....

आयुष बाहर आ गया, उसके हाथ में वही टॉय प्लेन था| मैं उसकी तरफ मुड़ा ओर एक बार को मन किया की उसे गले लगा लूँ...पर रूक गया|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं|

मैं: (मैंने फिर उनकी बात को संभालते हुए कहा) चाचा ..मैं आपका चाचा हूँ.... और बेटा Thanks कहने की कोई जर्रूरत नहीं| आप जाओ और अपनी दीदी के साथ खेलो|

मैंने नेहा को आयुष के साथ खेलने का इशारा किया और वो उसके साथ भीतर चली गई| अब हॉल में बस मैं ओर भौजी ही रह गए थे| भौजी फिर से रोने लगीं.... उन्हें रोता हुआ देख मेरा भी दिल भी पसीज गया...पर मैंने उन्हें अब भी सहारा नहीं दिया| क्योंकि जब मैं रो रहा था तब मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं था... उन्हें इसका एहसास करना जर्रुरी था!

फिर मैंने ही बात शुरू जी;

मैं: क्यों जबरदस्ती के रिश्ते बाँध रहे हो?

भौजी: (आसूँ पोछते हुए) जबरदस्ती के? वो आपका बेटा है...आपका अपना खून ...

मैं: Thanks बताने के लिए! (मैंने उन्हें फिर टोंट मारा)

भौजी: प्लीज...प्लीज ...एक बार मेरी बात सुन लो? ...प्लीज...प्लीज....

मैं: चहुँ तो मैं अभी जा सकता हूँ...और आप भी जानते हो की मैं कभी नहीं लौटूंगा और जो सफाई आप देना चाहते हो आपके अंदर ही दब कर रह जाएगी| पर मैं आपकी तरह नहीं हूँ....आपने तो मुझे अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया था...पर मैं अवश्य दूँगा| बोलो क्या बोलना है आपको? (मैं हाथ बांधे खड़ा हो गया|)

भौजी: मैंने आपका इस्तेमाल कभी नहीं किया...मेरे मन में कभी भी ऐसा ख्याल नहीं आया की मैं आपको USE कर रही हूँ| आप के कारन टी मुझे परिवार में वो इज्जत वापस मिली...वो प्यार वापस मिला...नेहा को उसके दादा-दादी का प्यार मिला.... प्लीज मुझे गलत मत समझिए! मैंने खुद को आपसे दूर इसीलिए किया ताकि आप पढ़ाई में अपना मन लगा सको!

मैं: Oh please! Don’t gimme that bullshit story again! क्या मैंने कभी आपसे कहा की मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा? क्या कभी आपने मुझसे पूछा की मैं पढ़ाई ठीक से कर रहा हूँ या नहीं? आप मेरी Inspiration थे! दिन में बस एक घंटा ही तो आपसे बात करता था...बस.... इससे ज्यादा मैंने कभी आपसे कुछ माँगा? आपके साथ डेढ़ महीना बिताने के बाद सिर्फ 15 दिन....fucking 15 दिन में सारा holiday homework खत्म कर दिया! What else you want me to do? What if I;ve commited suicide over our last telephonic conversation? Would you ever be able to forgive yourself?

भौजी: प्लीज...प्लीज... Don’t say this! मैं मानती हूँ की गलती मेरी थी...मुझे फैसला लेने से पहले आपको पूछना चाहिए था? मैंने बहुत बड़ी गलती की है...Punish Me !

मैं: Punish You ? You gotta be kidding me! ये इतनी छोटी गलती नहीं है की मैं आपको उठक-बैठक करने की सजा दूँ और बात खत्म! आपने.... You ruined everything…everything!

भौजी अपने घुटनों पे गिर गईं और बिलख-बिलख के रोने लगीं| उन्होंने मेरे पाँव पकड़ लिए! अब तो मेरा भी सब्र भी टूटने लगा था, मैंने उनहीं खुद से अलग किया और मैं तीन कदम पीछे गया और बोला;

मैं: Despite everything you did to me……. I forgive you! This is the least I can do!

इसके आगे मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और वहां से चला आया|दोपहर को भोजन के समय हम अब बैठ के खाना खा रहे थे| हमारे घर में ऐसा कोई नियम नहीं की आदमी पहले खाएंगे और औरतें बादमें पर चूँकि भौजी को इसकी आदत नहीं थी तो वो हमारे साथ खाने के लिए नहीं बैठीं थीं| हम भोजन कर रहे थे की मुझे सलाद चाहिए था तो मैंने भौजी को कहा;

मैं: भाभी....सलाद देना|

पिताजी: क्यों भई...तू तो बहु को भौजी कहा करता था? अब भाभी कह रहा है?

मैं: जी तब मैं छोटा था....अब बड़ा हो चूका हूँ|

पिताजी: हाँ..हाँ बहुत बड़ा हो गया?

इतने में पिताजी का फोन बजा, साइट पे कोई पंगा हो गया था तो उन्हें और चन्दर भैया को तुरंत निकलना पड़ा| अब टेबल पे मैं, नेहा, आयुष और माँ ही बैठे थे|

माँ: बहु...तू भी आजा...

भौजी कुछ बोलीं नहीं...उन्होंने अब तक घूँघट काढ़ा हुआ था| वो भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गईं| मैं उन्हें की तरफ देख रहा था..तभी मुझे टेबल पे टपकी उनकी आँसूं की बूँद दिखी| मैंने अपने माथे पे हाथ रख के चिंता जताई...फिर मैं आगे कुछ नहीं बोला और भोजन आधा छोड़के उठ गया|

माँ: तू कहाँ जा रहा है...खाना तो खा के जा?

मैं: सर दर्द हो रहा है...मैं सोने जा रहा हूँ|

मैं अपने कमरे में जाके बैठ गया| कुछ पांच मिनट बाद दरवाजा खुला और भौजी अंदर आईं| उनके हाथ में प्लेट थी ...

भौजी: जानू...खाना खा लो? चलो?

मैं: मूड नहीं है...और Sorry .....

मैंने उन्हें "भाभी" कहने के लिए Sorry बोला|

भौजी: पहले जख्म देते हो फिर उसपे Sorry की मरहम भी लगा देते हो? अब चलो खाना खा लो?

मैं: नहीं...मुझे कुछ जर्रुरी काम याद आगया...

भौजी: जानती हूँ क्या जर्रुरी काम है| चलो वार्ना मैं भी नहीं खाऊँगी?

मैं: आपकी मर्ज़ी|

और मैं कमरे से बहार चला गया और माँ को बोल गया की मैं साइट पे जा रहा हूँ... रात तक लौटूंगा|
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02-20-2019, 06:22 PM,
#86
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
81

अब आगे ....

भौजी समझ चुकीं थीं की मैं रात को उनके जाने के बाद ही घर आऊँगा| भौजी ने कहाँ नहीं खाया...रात में खाना उन्होंने ही बनाया था और माँ ने फोन कर के डिनर के लिए बुलाया तो मैंने कह दिया की मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ..पर मैं दस बजे पिताजी और चन्दर भैया के साथ लौटा| अगले दो दिन तक मैं यही करता था...सुबह पिताजी के साथ निकल जाता.... और रात को देर से आता| लंच और डिनर के समय मैं पिताजी से कोई न कोई बहन कर के गोल हो जाता| चाय-वाय पी लेता..हल्का-फुल्का कुछ भी खा लेता..पर घर पे कभी खाना नहीं खाता| रात में सोते समय परेशान रहता...नींद नहीं आती...की आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? क्या करूँ? कुछ नहीं पता!

तीसरे दिन तो आफ़त हो गई| भौजी की तबियत ख़राब हो गई थी| मेरी वजह से पिछले तीन दिनों से वो फांके कर रहीं थीं| मैं चार बजे से जाग रहा था और दिवार से पीठ लगाये बैठा था| घडी में सात बज रहे थे की तभी माँ धड़धडाते हुए अंदर आईं और बोलीं;

माँ: क्या कहा तूने बहु से?

मैं: (हैरान होते हुए) मैंने? मैंने क्या कहा उनसे?

माँ: कुछ तो कहा है...वरना बहु खाना-पीना क्यों छोड़ देती?

अब ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए| मैं उठ के खड़ा हुआ और उनके घर की तरफ दौड़ लगाईं...literally दौड़ लगाईं! उनके घर पहुँच के दरवाजा खटखटाया, दरवाजा चन्दर भैया ने खोला|

मैं: कहाँ हैं भौजी?

चन्दर भैया: अंदर हैं.... देख यार पता नहीं क्या कह दिया तूने और इसने तीन दिन से खाना-पीना बंद कर दिया?

मैं धड़धड़ाते हुए उनके कमरे में घुसा तो देखा की आयुष और नेहा भौजी को घेर के बैठे हैं| मैं जाके उनके सिरहाने बैठ गया;

मैं: Hey what happened?

भौजी ने ना में सर हिलाया ... पर उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ के हलके से दबा दिया| परेशानी मेरे चेहरे से साफ़ जहलक रही थी| मैं समझा गया की वो क्या कहना चाहती हैं|

मैं: बेटा आप दोनों यहीं बैठो मैं डॉक्टर को लेके आता हूँ|

भौजी: नहीं...डॉक्टर की कोई जर्रूरत नहीं है|

मैं: Hey I'm not asking you !

और मैं डॉक्टर को लेने चला गया| डॉक्टर सरिता हमारी फैमिली डॉक्टर हैं, उन्होंने उन्हें चेक किया...दवाइयाँ दीं और चलीं गईं| चन्दर भैया भी पिताजी के साथ साइट पे चले गए| अब भौजी के घर पे बस मैं, माँ, नेहा और आयुष रह गए थे|

माँ: बेटा...मैं कुछ बनती हूँ...और सुन तू (मैं) जब मैं फोन करूँ तब आ जाइओ और फिर अपनी "भौजी" को खिला दो| और खबरदार जो तूने आज के बाद बहु को "भाभी" कहा तो? और बहु तू इस पागल की बात को दिल से लगाया मत कर| ये तो उल्लू है!

और माँ चलीं गईं| उन्होंने ये सोचा की उस दीं मैंने भौजी को "भाभी" कहा इस बात को भौजी ने दिल से लगा लिया और खाना-पीना छोड़ दिया|

आज सात साल में पहली बार मैंने भौजी को छुआ! मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों के बीच में रख के उन्हें दिलासा देने लगा|

मैं: क्यों किया ये?

भौजी: खुद को सजा दे रही थी....आपके साथ जो मैंने अन्याय किये ...उसके लिए!

मैं: पर मैंने आपको माफ़ कर दिया...दिल से माफ़ कर दिया|

भौजी: पर मुझे अपनाया तो नहीं ना?

मैं: मैं...... शायद अब मैं आपसे प्यार नहीं करता!

ये सुन के भौजी की आँखें भर आईं...

भौजी: कौन है वो लड़की? (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: 2008 में कोचिंग में मिली थी....बस उससे एक बार बात की ....अच्छी लगी...दिल में बस गई.... पर मई में एग्जाम थे...उस एग्जाम के बाद इस शहर में वो लापता हो गई| आज तक उससे बात नहीं हुई.... या देखा नहीं?

भौजी: तो आप मुझे भूल गए?

मैं: नहीं.... आपको याद करता था.... पर याद करने पे दिल दुखता था....वो दुःख शक्ल पे दीखता था....और मेरा दुःख देख के माँ परेशान हो जाया करती थी| इसलिए आपकी याद को मैंने सिर्फ सुनहरे पलों में समेत के रख दिया| उस टेलीफोन वाली बात को छोड़के सब याद करता था....

भौजी: आपने कभी उस लड़की से कहा की आप उससे प्यार करते हो?

मैं: नहीं.... इतनी अच्छी लड़की थी की उसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड तो होगा ही! अब सीरत अच्छी होने से क्या होता है? शक्ल भी तो अच्छी होनी चाहिए?

भौजी: (उठ के बैठ गईं और बेडपोस्ट का सहारा ले के बैठ गईं) जो लड़की शक्ल देख के प्यार करे क्या वो प्यार सच्चा होता है?

मैं: नहीं .... (मैंने बात बदलने की सोची, क्योंकि मुझे उनकी हेल्थ की ज्त्यादा चिंता थी ना की मेरे love relationship की, जो की था ही नहीं) मैं...अभी आता हं...माँ ने आपके लिए सूप बनाया होगा|

मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और जाने नहीं दिया|

भौजी: माँ ने कहा था की वो आपको फोन कर की बुलाएंगी...और अभी तो फोन नहीं आया ना? आप बैठो ..आज आप अच्छे मूड में हो...मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी है| पता नहीं क्यों पर मुझे लग रहा है की आप कुछ छुपा रहे हो?

मैं: नहीं तो....

भौजी: शायद आप भूल गए पर हमारे दिल अब भी connected हैं! बताओ ना....प्लीज?

मैं: मैं .... आपको कभी भुला नहीं पाया...पर ऐसे में उस नै लड़की का जादू...... मतलब मुझे ऐसा लगा की मैं आपके साथ दग़ा कर रहा हूँ!

भौजी: Did you got physical with her?

मैं: कभी नहीं...मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता| मतलब इसलिए नहीं की मैं आपसे प्यार करता था...या हूँ...पर इसलिए की मैं उस लड़की के बारे में आज तक मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा|

भौजी: फिर ...क्यों लगा आपको की आप मुझे cheat कर रहे हो?

मैं: मतलब....आप के होते हुए मैं एक ऐसी लड़की के प्रति "आकर्षित" हो गया...जिसे ......(मैंने बात अधूरी छोड़ दी)

भौजी: What did you just say? "आकर्षित"....O ...... समझी.....!!! It’s not LOVE….. its just attraction!!! Love and attraction are different?

मैं: How can you say this? I mean…मुझे वो अच्छी लगती है...

भौजी: You know what? मुझे सलमान खान अच्छा लगता है....तो क्या I’m in love with him? Its just you were attracted to her….और कहीं न कहीं दोष मेरा भी है...बल्कि देखा जाए तो दोष मेरा ही है| ना मैं उस दिन आपसे वो बकवास करती और ना ही आपका दिल टूटता! जब किसी का दिल टूटता है ना तो वो किसी की यादों के साथ जी ने लगता है| जैसे मैं आपकी यादों...मतलब आयुष के सहारे जिन्दा थी| आपके पास मेरी कोई याद नहीं थी...शायद वो रुमाल था?

मैं: था....गुस्से में आके मैंने ही उसे धो दिया!

भौजी: See I told you ! गुस्सा....मेरी बेवकूफी ने आपको गुस्से की आग में जला दिया| आपको सहारा चाहिए था....आपका दोस्त था पर वो भी आपके साथ emotionally तो attached नहीं था| ऐसे में कोचिंग में वो लड़की मिली...जिसके प्रति आप सिर्फ attract हो गए| That's it ! मैं जहाँ तक आपको जानती हूँ...अगर मैंने वो बेवकूफी नहीं की होती तो आप कभी किसी की तरफ attract नहीं होते| मैंने आपको कहा भी था की You’re a one woman man! ये मेरी गलती थी....मैं आपके भविष्य के बारे में जयादा सोचने लगी...वो भी बिना आपसे कुछ पूछे की मेरे इस फैसले से आपको कितना आघात लगेगा? मेरे इस कठोर फैसले ने आपको अपने ही बेटे से वंचित कर दिया...आपको नेहा से दूर कर दिया.... पर मैं सच कह रही हूँ...मैं कभी नहीं सोचा था की मेरे एक गलत फैसले से हम दोनों की जिंदगियाँ तबाह हो जाएँगी?

मैं: I’m still confused! मुझे अब भी लगता है की मैं उससे प्यार करता हूँ? मैं उसकी जन्मदिन की तारिख अब तक नहीं भुला...उहर साल उसके जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी माँगता हूँ|

भौजी: क्या आप दिषु के जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी नहीं मांगते? वो आपका Best friend है ना?

मैं: हाँ माँगता हूँ| मैं तो आपके जन्मदिन पर भी आपकी ख़ुशी माँगता हूँ?

भौजी: See ..... आप सब के जन्मदिन पे उनकी ख़ुशी चाहते हो.... That doesn’t make her special? मैं आपको गुमराह नहीं कर रही..बस आपके मन में उठ रहे सवालों का जवाब दे रही हूँ| वो भी आपकी पत्नी बनके नहीं बल्कि एक Neutral इंसान की तरह|

मैं: तो मैं उसके बारे में क्यों सोचता हूँ?

भौजी: सोचते तो आप मेरे बारे में भी हो?

मैं: Look may be you’re right or maybe not…but I…I ….can’t decide anything now.

भौजी: Take yor time…or may be ask Dishu, he’ll help you!

मैं: थैंक्स...मेरे दिमाग में उठे सवालों का जवाब देने के लिए|

भौजी: नहीं...अभी भी कुछ बाकी है

मैं: क्या?
भौजी ने आयुष को आवाज लगाईं| वो घर के बहार ही गली में खेल रहा था, अपनी मम्मी की आवाज सुन के वो भगा हुआ अंदर आया|

भौजी: बेटा बैठो मेरे पास|

आयुष मेरे पास बैठ गया| कमरे में बस मैं. भौजी और आयसुह ही थे|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं...

मैंने भौजी के मुँह पे हाथ रख के उन्हें चुप कराया पपर वो नहीं मानी और मेरा हाथ हटा दिया और अपनी बात पूरी की|

भौजी: बेटा..मैंने आपको बताया था न की आपके पापा शहर में पढ़ रहे हैं|

आयुष ने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर मेरी तरफ देखने लगा| मैं अब खुद को रोक नहीं पाया और मन में उठ रही तीव्र इच्छा प्रकट की;

मैं: बेटा...आप एक बार मेरे गले लगोगे?

आयुष ने बिना कुछ सोचे-समझे ...मेरे गले लगा गया.... उस एहसास के लिए मैं सालों से तरस रहा था और उस एहसास का वर्णन मैं बस एक लाइन में कर सकता हूँ:

"मुझे ऐसा लगा जैसे सवान के प्यास को, तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया हो|"

कालेज जो गुस्से की आग में पिछले सात सालों से जल रहा था उसे आज जाके ठंडक मिली हो| मेरी आँखें भर आईं और तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा

उसके मुँह से ये शब्द सुन के मेरे सारे अरमान पूरे हो गए| उस समय मैं दुनिया का सब से खुशनसीब इंसान था! इस ख़ुशी का इजहार आँखों ने "नीर" बहा के किया! इस पिता-पुत्र के मिलान को देख भौजी की आँखें भी भर आईं| मैंने आयुष को खुद से अलग किया और उसके गालों को माथे को चूमने लगा| आज जो भी गुस्सा अंदर भरा हुआ था वो प्यार बनके बहार आ गया|

मैं: बेटा I missed you so much !!!

अब मुझे ग्लानि महसूस होने लगी थी| मैंने भौजी को कितना गलत समझा! उन्होंने मुझसे दूर होते हुए भी मेरे बच्चों के मन में मेरी याद जगाय राखी और मैं यहाँ अपने गुस्से की आग में जलता रहा और उन्हें दोष देता रहा? अब मुझे इसका confession उनके सामने करना बहुत जर्रुरी था|

मैं: बेटा...नेहा को बुला के लाना|

आयुष नेहा को बुलाने चला गया|

भौजी: उस दिन आयुष ने पहली बार आपको देखा था..अब तक तो वो सिर्फ तस्वीर ही देखता था और तस्वीर में आपकी दाढ़ी-मूंछ नहीं थी ना....इसलिए आपको पहचान नहीं पाया|

मैं: I get it! वैसे आपने आयुष को बताय की वो सब के सामने मुझे "पापा" नहीं कह सकता?

भौजी: ये मैं कैसे कह सकती थी? मैं तो चाहती हूँ कि वो हमेशा आपको पापा ही कह के बुलाये|

मैं: आप जानते हो की ये Possible नहीं है| खेर मैं उससे बात कर लूँगा|

इतने में आयुष और नेहा दोनों आ गए| नेहा आके मेरे पास कड़ी हो गई और आयुष मेरे सामने भौजी के पास बैठ गया|

मैं: बेटा आपसे एक बात कहनी है| I hope आप समझ पाओगे| (एक लम्बी सांस लेते हुए) आप मुझे सब के सामने "पापा" नहीं कह सकते| (एक लम्बी सांस छोड़ते हुए) सिर्फ अकेले में ही ...आप कह सकते हो? आपकी दीदी भी ये बात जानती है|

आयुष: पर क्यों पापा?

मैं: बेटा.... (अपने माथे पे पड़ी शिकन पे हाथ फेरते हुए) मैं आपकी माँ को कितना प्यार करता हूँ ...ये कोई नहीं जानता...ये एक सीक्रेट है.... ये बात अब बस हम चार ही जानते हैं! नेहा मेरी बेटी नहीं है पर फिर भी मैं उसे आपके जितना ही प्यार करता हूँ...और आप...आप तो मेरा अपना खून हो... उस समय हालात ऐसे थे की हम (मैं और भौजी) एक हो गए| खेर उस बारे में समझने के लिए अभी आप बहुत छोटे हो और वैसे आपको वो बात जननी भी नहीं चाहिए? I hope आप समझ गए होगे|

आयुष ने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उसे पुरस में से पचास रूपए दिए और दोनों को समोसे वगेरह लाने को भेज दिया| 

इतने में मैंने सोचा की मैं अपने दिल की बात उन्हें कह ही दूँ;

मैं: I’ve a confession to make! मैंने आपको बहुत गलत समझा...बहुत...बहुत गलत.... जब से आप आये हो तब से आपको टोंट मारता रहा ...और उस दिन मने बिना कुछ जाने आपको इतना सब कुछ सुना दिया|..I’ve been very…very rude to you and for that I’m extrememly Sorry! आप मुझसे दूर हो के भी मुझे भुला नहीं पाये और इधर मैं आपको भुलाने की दिन रात कोशिश करता रहा|आपने हमारे बेटे का नाम भी वही रखा जो मैं उसे देना चाहता था..उसे वो सब बातें सिखाईं जो मैं सिखाना चाहता था...उसे आपने… मेरे बारे में भी बताया.... अगर मैं चाहता तो ये सब बात भुला के आपसे मिलने आ सकता था...आपकी, नेहा और आयुष की खोज-खबर ले सकता था| पर नहीं....मैं अपनी जूठी अकड़ और रोष की आग में जलता रहा| ये सब सुन के और देख के मुझे बहुत ग्लानि हो रही है| मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूँ|

मेरी आँखें नम हो चलीं थीं|

भौजी: Hey ? What're you saying? You’re not wrong! गलती मेरी थी...मैं जानती थी की मेरी बात से आप को कितनी चोट लगेगी? पर मैंने एक पल के लिए भी ये नहीं सोच की आप पर क्या बीतेगी? आप कैसे झेल पाओगे? और आपका गुस्सा...बाप रे बाप! उसे कैसे मैं भूल गई? आपको जब गुस्सा आता है तो आप क्या-क्या करते हो ये जानती थी....फिर भी...बिना सोचे-समझे...मैंने वो फैसला किया! और आप खोज-खबर कैसे लेते? मैंने आपको फोन करने को जो मन किया था...और जहाँ तक मैं जानती हूँ...आप मेरी वजह से इतने गुस्से में थे की आपको तो गाँव आने से ही नफरत हो गई होगी| I was so stupid…. I mean I should have asked you…atleast for once? ना मैं ऐसा फैसला लेती और ना ही आज आपको इतनी तकलीफ झेलनी पड़ती|

मैं: तकलीफ...तकलीफ तो आप झेल रहे हो! बीमार आप पड़े हो.... मैं तो कुछ न कुछ खा लिया करता था पर आपने तो खुद को मेरी गलती की सजा दे डाली|

भौजी: Oh comeon ! Lets forget everthing …and start a fresh!

मैं: That is something I’ll have to think about!

आगे बात नहीं हो पाई और माँ का फोन आ गया की; "सूप तैयार हो गया है| आके ले जा और अपने सामने बहु को पिला दिओ|" फोन रखा ही था की इतने में बच्चे आ गए| मैं उन्हें वहां बैठा के घर आया और थर्मस में स्पूप ले के लौट आया| मैंने अपने हाथों से उन्हें वो सूप पिलाया और इधर नेहा, आयुष और मैं हम समोसे खा रहे थे| Finally सब खुश थे! पर अब भी कुछ तो था….. जो नहीं था! भौजी और चन्दर भैया को आये हफ्ता होने आया था...और अभी बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराना बाकी था| मैंने पिताजी से बात की और पास ही के स्कूल में ले जाके दोनों का एडमिशन करवा दिया| अब बारी थी भौजी का किचन सेट करने की!

भौजी: जानू...अलग रसोई की क्या जर्रूरत है?

मैं: Hey I’m just following orders!

भौजी: तो क्या आपके अनुसार अलग रसोई होनी चाहिए?

मैं: देखो.... to be honest ...मैं अंडा खाता हूँ! और जैसे की आप जानते हो की हमारे खानदान में सब शुद्ध शाकाहारी है ...ऐसे में .... एक रसोई....मतलब ...दिक्कत हो सकती है|

भौजी: सच में आप अंडा खाते हो? Hwwww !!! और इसके बावजूद आपने मुझे छुआ?

मैं: अरे मैं अंडा खा के थोड़े ही आपको छूता था| जो कुछ भी हुआ वो तब हुआ जब मैंने इन चीजों को हाथ भी नहीं लगाया था|

भौजी: माँ-पिताजी भी खाते हैं?

मैं: नहीं... मैं खुद बनता हूँ..खुद खाता हूँ...and don't woory ....अंडे वाले बर्तन अलग हैं और उसमें आप लोगों ने कभी नहीं खाया| और तो और मैं अंडा...हीटर पे बनाता था!

भौजी: (हँसते हुए बोलीं) पर आपने तो मेरा धर्म भ्रस्ट कर ही दिया|

मैं: हाँ....और साथ-साथ सारे घर का भी! ही..ही..ही... still if you think we shoul have a common kitchen talk to mom.

भौजी: ठीक है….मैं माँ से बात करुँगी|

भौजी ने माँ से पता नहीं क्या बात की...और माँ मान भी गईं तो आब भौजी और हम सब एक साथ खाना खाते हैं और खाना पकाने का काम ज्यादातर भौजी ही देखती हैं| ऐसे करते-करते दिन बीतने लगे...एक दिन की बात है की मेरी तबियत शाम से ठीक नहीं थी...बुखार था और सर दर्द कर रहा था| उसी दिन पिताजी के एक मित्र जो हमारे साथ काम करते हैं उनके घर में गोद-भराई का फंक्शन था और उन्होंने पिताजी और चन्दर भैया को सपरिवार बुलाया|

मैं; पिताजी....मैं नहीं आ पाउँगा..मेरी तबियत ठीक नहीं है|

पिताजी: ठीक है...तू आराम कर|

माँ: ठीक है फिर मैं भी रूक जाती हूँ|

पिताजी: नहीं...गोदभराई में मर्दों का कयाम काम...तुम्हें तो आना ही होगा| फिर मिश्रा जी की पत्नी ने ख़ास कर तुम्हें बुलाया है| ये अकेला रह लेगा|

मैं: हाँ माँ...आप जाओ...मैं वैसे भी सोने ही जा रहा हूँ|

चन्दर भैया: चाचा ... बच्चों को यहीं छोड़ देते हैं मानु भैया के पास|

पिताजी: ठीक है ...वैसे भी बहुत दिन हुए इसे कोई कहानी सुनाये|

मैंने नेहा और आयुष को आँख मारी और वो मेरे पास आके बैठ गए|

पिताजी: लो भई इन तीनों का प्रोग्राम तो सेट हो गया|

सब हँस पड़े पर भौजी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था| उन्होंने हमेशा की तरह घूँघट काढ़ा हुआ था, उन्होंने माँ को अकेले में बुलाया और कुछ कहा|
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02-20-2019, 06:22 PM,
#87
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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अब आगे ....

माँ वापस ड्राइंग रूम में आईं जहाँ हम बैठे हुए थे और बोलीं;

माँ: लो भई ...बहु नहीं जाना चाहती| उसका कहना है की वो यहाँ रूक के मानु का ध्यान रखेगी|

मैं: अरे...आप जाओ...मैं बच्चों के साथ हूँ ना|

भौजी: पर ये आपको सोने नहीं देंगे| छल कूद कर-कर के आपकी नाक में डीएम कर देंगे|

मैं: नहीं करेंगे...क्यों बच्चों आप तंग नहीं करोगे ना?

दोनों ने एक साथ हाँ भरी|

भौजी: और खाने का क्या?

मैं: मैं मैगी बना लूँगा..और हम तीनों वही खाएंगे?

पिताजी: ठीक है...तो बात पक्की| हम चारों जायेंगे और तुम तीनों घर में ऊधम मत मचाना! चन्दर बेटा जाओ और जल्दी से तैयार हो के आ जाओ|

दोनों निकल गए और बच्चे मेरे साथ कमरे में आ गए| मैंने दोनों को कंप्यूटर पे गेम लगा दी और दोनों खेलने लगे| दोनों बहिय शोर कर रहे थे पर मुझे इस शोर को सुन के मजा आ रहा था| फिर दोनों जिद्द करने लगे की मैं भी उनके साथ गेम खेलूं तो मैं भी उनके साथ बैठ गया| हालाँकि मेरे सर में दर्द हो रहा था पर...बच्चों की ख़ुशी के आगे सब काफूर हो गया| हम NFS Rivals खेल रहे थे| मैंने आवाज तेज कर दी और दोनों मुझे ही ड्राइव करने को कह रहे थे| जब मैं gadgets use करता और कोई गाडी थोक देता या उस पर gadgets use करता तो दोनों चिल्लाने लगते| इतने में माँ आ गईं;

माँ: हाँ तो ये आराम हो रहा है?

मैं: माँ दोनों जिद्द करने लगे तो....

माँ: ठीक है बेटा.....हम जा रहे हैं|

माँ: बाय

नेहा और आयुष: बाय-बाय दादी जी|

माँ: बाय बच्चों|

माँ चलीं गईं और हम तीनों फिर से खेलने लगे| घडी में चार बज रहे थे ...हम खेलते रहे..मैंने उन्हें frozen फिम दिखाई...घर पे पॉपकॉर्न थे वो बना के खिलाये...घर पे Thumsup पड़ी थी वो भी पी मतलब मैंने अपने कमरे को थिएटर बना दिया था, और फिर पता ही नहीं चला की शाम के आठ बज गए| माँ कह गई थीं की वो दस बजे तक आएँगी| कमरे में मूवी की आवाज बहुत तेज थी और अब भूख लगने लगी थी;

मैं: तो बच्चों भूख लगी है?

नेहा और आयुष ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया?

अब दोनों एक साथ चीखे "हाँ पापा"!!!

मैं: चलो फिर अब हम मिलके कुछ बनाते हैं?

तीनों किचन में आये और मैंने उन्हें 6 in 1 मैगी का पैकेट निकाल के दिया और उन्हें एक सेफ्टी scissor दी और पैकेट खोलने को कहा| (ये Recipe मेरी है ..कहीं से copy नहीं की है|) जब तक वो पैकेट खोल रहे थे मई फटा-फ़ट टमाटर-प्याज और मिर्च काटी| ये मेरा मैगी बनाने का नया ट्विस्ट था|

एक पतीले में मैगी उबाली और एक कढ़ाई में थोड़ा सा तेल डाला और फिर प्याज और मिर्च दाल दी...जब प्याज पाक गए तब उसमें टमाटर डाल के गैस की आंच कम की और ढक्कन ढक के पकने को छोड़ दिया| इधर मैगी उबाल गई थी, उसे छन के पानी निकाल दिया| इधर टमाटर गाल चुके थे, अब इसमें उबली हुई मैगी डाली और ऊपर से मैगी मसाला डाला और मिक्स किया..और my personal touch a hint of Sirka and one drop of soya sauce! Yummy!!! मैगी तैयार हुई...और मैंने तीन fork निकाले और कढ़ाई उठा के डाइनिंग टेबल पे ले आया ... नेहा और आयुष तो टेबल के ऊपर ही बैठ गए| तीनों ने कढ़ाई में ही खाया|

मैं: तो बच्चों कैसी लगी पापा की बनाई हुई मैगी?

नेहा: टेस्टी पापा!

आयुष: नहीं दीदी ...superb !!!

दोनों बहुत खुश थे! और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर खाना तो हो गया अब बाकी था सोना|

मैं: तो अब किस-किस को कहानी सुन्नी है?

दोनों ने हाथ उठा के एक साथ कहा; "मुझे...पापा"|

मैं: ठीक है..आप दोनों को सुनाऊँगा| चलो पहले ब्रश कर लो|

तीनों ने ब्रश किया और फिर हम बिस्तर पर लेट गए| पहले थोड़ी "पिलो फाइट" हुई.. आयुष और नेहा एक टीम में थे और मैं अकेला...दोनों ने मुझे गिरा दिया और तकिये से मुझे मारने लगे...मैं दोनों को गुदगुदी कर के हटा देता पर वो फिर मुझे खींच के गिरा देते....इसी मस्ती में हम तीनों खूब हँसे...मजे किये! घडी ने नौ बजाये और आख़िरकार मैं बेडपोस्ट का सहारा लेके बैठा गया और मेरी एक बगल नेहा थी और दूसरी बगल में आयुष| मैं दोनों के सर पे हाथ फेरते हुए कहानी सुनाने लगा|दोनों मुझे झप्पी डाल के सो गए| नींद तो मुझे भी आ रही थी...

पर दिमाग ने कहा की थोड़ा self assessment करते हैं जो उस दिन भौजी ने मुझे कहा था| कुछ देर self assessment करने के बाद मैंने फैसला कर लिया और फिर बैठे-बैठे ही सो गया| सुबह छः नजी मेरी आँख खुल गई और मैंने दोनों बच्चों को प्यार से उठाया| दोनों कुनमुना रहे थे...फिर दोनों के गालों को Kiss किया और नेहा को पीठ पे और आयुष को गोद में उठा के मैं कमरे से बहार आया| बाहर बैठक में पिताजी और चन्दर भैया बैठे थे और मुझे इस तरह दोनों को उठाय हुए देख दोनों मुस्कुरा दिए| इतने में भौजी स्कूल यूनिफार्म और बैग्स ले के आ गईं| स्कूल घर के ज्यादा नज्दीक नहीं था..करीब आधा घंटा दूर इसलिए पिताजी ने मुझे प्राइवेट वैन लगाने को बोला था| मैं बच्चों को वैन में बैठा आया और फिर फ्रेश होने लगा| तैयार हो के बाहर निकला तो भौजी दिखीं..उनके हाथ में चाय की प्याली थी|

भौजी: So you guys had your fun right?

कमरे की हालत देखि तो तीनों ने कमरे की हालत ख़राब कर दी थी...बिस्तर तहस नहस हो गया था| टेबल पर पॉपकॉर्न बिखरे हुए थे...जगह-जगह कोल्ड ड्रिंक गिरी हुई थी....और रसोई तो मैं साफ़ करनी ही भूल गया था|

मैं: हाँ...

भौजी: तो मुझे क्यों भेज दिया? मैं होती तो और मजा आता?

मैं: यार .... after all these years I really needed sometime alone with kids. So….वैसे भी मुझे लगा की इसी बहाने आपके और दोस्त बनेंगे|

भौजी: पर मेरा मन नहीं था...आपकी वजह से गई| और दोस्त...वो तो मुझे बनाने आते ही नहीं| वहां तो बस Gossip ही चल रही थी! बोर हो गई.....

भौजी मुझे चाय दे के जाने लगीं तो मैं चाय का सुड़का लेते हुए बोला ;

मैं: Thanks !

भौजी: किस लिए?

मैं: For the advice ..... कल रात self assessment के बाद.... finally उस लड़की का भूत सर से उतर गया|

भौजी बस मुस्कुरा दीं और चलीं गईं| उस दीं पिताजी ने मुझे सप्लायर के पास भेजा था कुछ पेमेंट क्लियर करने को| उसके बाद मैं लंच के लिए घर जल्दी आ गया और अपने कंप्यूटर पे बैठ ये कहानी टाइप कर रहा था, की तभी माँ ने आवाज लगाईं|

मैं: जी माँ

माँ: बीटा कोई सब्जी नहीं है..जा के कुछ ले आ?

मैं: मैं? सब्जी? मजाक कर रहे हो? आजतक जब भी सब्जी लाया हूँ तब आप होते हो या दिषु....मुझे सब्जी लेनी कहाँ आती है?

तभी भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: माँ...मैं सीखा देती हूँ इन्हें|

माँ: हाँ बहु...तुम दोनों जाओ पर जल्दी आना, बारह बज गए हैं|

मैंने थैला उठाया और हम बाजार पहुँच गए| बाजार करीब पंद्रह मिनट दूर था| भौजी ने घूँघट हटा लिया था...मतलब सर पे पल्लू था|तभी भौजी ने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया| उनके छूते ही मुझे करंट लगा....बड़ा अजीब सा एहसास हुआ... जैसे किसी पवित्र चीज के छूने पर होता है| मैंने अपना हाथ धीरे से छुड़ा लिया| भौजी को ये बात अटपटी लगी जो उनके चेहरे से झलक रही थी पर उन्होंने कुछ नहीं कहा ..ये सोच के की हम घर के आस-पास ही हैं और यहाँ लोग मुझे जानते हैं| शायद इस दर से मैं उन्हें स्पर्श नहीं कर रहा! खेर हम सब्जी ले के घर आ गए| मेरे जन्मदिन आने तक भौजी कई बार मुझे छूतीं... कभी अपने घर पे...कभी हमारे घर पे...अकेले में ...सब के सामने नजर बचा के...पर हर बार मैं खुद को उनके स्पर्श से बचाने की कोशिश करता| आखिरकर मेरा जन्म दीं आ ही गया|

जन्मदिन से एक रात पहले, बारह बज के एक मिनट पे माँ-पिताजी मुझे B'day Wish करने आये| उनके जाने के बाद मैं लेट गया, की तभी दो मिनट बाद भौजी का फोन आया;

भौजी: Haapy B'day जानू!

मैं: Thanks !

भौजी: I Love You

मैं: (अब मुझे उन्हें I Love You बोलने में भी अजीब लगने लगा था| जुबान जैसे ये बोलना ही नहीं चाहती थी....दर रही थी कुछ कहने से!) हम्म्म्म ....

भौजी: ये क्या होता है "हम्म्म" say it properly

मैं कुछ नहीं बोला और उन्हें जूठ-मूठ के खर्राटें सुनाने लगा| हालाँकि वो जानती थी की मैं खरांटे नहीं मारता पर उन्होंने बिना कुछ कहे फोन रख दिया| कुछ देर बाद दिषु का फोन आया और उसने भी मुझे wish किया| फिर मैं सो गया...बरसों बाद आजकल मुझे चैन की नींद आ रही थी| All Thanks to her ! अगली सुबह surprises वाली थी| मैं सो रहा था की नेहा और आयुष कमरे में आये और मेरे ऊपर कूद पड़े और मेरे गालों को Kiss करते हुए बोले; "Happy B'day पापा !!!"

मैं: थैंक्स बच्चों!!! (फिर मैंने उन्हें चूमा और उठ के बैठ गया|)

पास ही भौजी भी खड़ीं थी और मुस्कुरा रहीं थी;

मैं: Good Morning !

भौजी: (नाराज होते हुए बोलीं) Good Morning !

मैं: अब मैंने क्या कर दिया की आपका मुँह उतरा हुआ है?

भौजी: कल रात में आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?

मैं: वो मैं सो गया था....All thanks to you ...की मुझे आजकल चैन की नींद आ रही है|

भौजी: ठीक है...तो अब कह दो?

मैं: क्या? (मैंने अनजान बनते हुए कहा)

भौजी: I Love You

मैं: (सोच में पड़ गया) बाद में...अभी फ्रेश हो जाऊँ| (और मैंने जानबूझ के माँ को आवाज लगाईं) माँ....माँ...

माँ: हाँ बोल?

मैं: पिताजी चले गए?

भौजी: (बीच में बोल पड़ीं) मुझसे भी तो पूछ सकते थे...माँ को क्यों तंग किया?

मैं: ओह ! सॉरी !

भौजी समझ गईं की मैं बात घुमा रहा हूँ|

माँ: अरे बहु इसका तो ऐसा ही है| तू चल मेरे साथ...लाड-साहब का नाश्ता बनाना है|

मैं: नहीं..आप लोग रहने दो ....मैं आज अंडा खाऊंगा|

माँ: लो भई... सबसे आखिर में बना लिओ| पहले अपने भैया और पिताजी को जाने दे|

मैं उठ के बाथरूम में घुसने ही वाला था की नेहा ने मेरा हाथ पकड़ा और वापस पलंग पे बैठा दिया|

नेहा: पापा ..आज आप दो बजे आ जाना?

मैं: क्यों?

आयुष: वो तो सरप्राइज है|

मैं: ooh I love surprises ..और specially अगर वो आप दोनों ने प्लान किया है तो!

नेहा: हम दोनों ने नहीं...तीनों ने|

आयुष: हमने तो बस के....

आगे कुश भी बोलने से नेहा ने आयुष को रोक दिया|

नेहा: वो सब बाद में| दो बजे...पक्का...वरना हम आपसे बात नहीं करेंगे|

मैं: ठीक है बीटा...अब आप लोग स्कूल के लिए तैयार हो जाओ...!!!

दोनों को वैन में बैठा के मैं लौटा तो पिताजी और चन्दर भैया निकल रहे थे|

माँ: बेटा तेरी भौजी ने टमाटर-प्याज काट दिए हैं| अंडे ले आया तू?

मैं: हाँ..ये रहे| (मैंने अंडे एक कपडे के बैग में छुपा रखे थे, ताकि चन्दर भैया ना देख लें| पिताजी तो जानते थे की मैं अंडा खाता हूँ|)

भौजी: क्या बनाओगे?

मैं: भुर्जी

भौजी; वो क्या होती है?

मैं: जब बनेगी तब देख लेना?

मैंने फटाफट भुर्जी बनाई और जब उसकी खुशबु भौजी की नाक में गईं तो वो मेरे पास आईं|

भौजी: तो इसे कहते हैं भुर्जी?

मैं: हाँ...खाओगे?

माँ: ओ लड़के क्यों सब का धर्म भ्रस्ट करने में लगा है!!!!

मैं: पूछ ही तो रहा हूँ?

भौजी: माँ खुशबु तो बहुत अच्छी है... चख के देखूं?

माँ: तेरी मर्जी बहु...

भौजी: पर आप किसी से बताना मत|

माँ: अरे नहीं बहु...खा ले..कोई बात नहीं.... यही उम्र तो है तुम लोगों की खाने पीने की.... अब ये टी बड़े बुजुर्गों ने नियम बना रखे हैं की ये नहीं खाना ..वो नहीं खाना...और एक आध बार खाने से कुछ नहीं होता ….ये भी तो खाता ही है|

माँ खाने-पीने के लिए कभी नहीं रोकती थी, बस ये कहती थी की खाना अच्छा खाओ| जहाँ तक Hardcore Non-Veg की बात है तो उसे खाने का मेरा मन कभी नहीं हुआ| मेरा ये मन्ना है की इक जीव की हत्या कर देना ...वो भी सिर्फ स्वाद के लिए? छी!!! हाँ अण्डों के बारे में मुझे ज्यादा डिटेल नहीं पता...अगर ये भी उसी श्रेणी में आता है तो मैं इसे भी खाना बंद कर दूँगा|

भौजी: आप खिला दो|

मैं: क्यों?

भौजी: मेरा हाथ लगाने को मन नहीं करता|

मैं: पर खाने का करता है?

फिर मैंने एक प्लेन परांठा जो माँ ने बनाया था उस के साथ भौजी को एक छोटा कौर भुर्जी के साथ खिलाया|

भौजी: उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म wow !!

माँ: कैसा लगा बहु?

भौजी: बहुत स्वादिष्ट माँ!

मैं: लो भई हो गया धर्म भ्रस्ट!

ये सुन के सब एक साथ हँस पड़े| फिर भौजी ने आखिर कर अंडा पहलीबार छुआ और अपने हाथ से खाया| नाश्ता खा के मैं बर्तन धोने जा रहा था की भौजी ने रोक दिया;

भौजी: रहने दो ..मैं धो लुंगी| धर्म तो भ्रस्ट हो ही गया! (और हम फिर से हँस पड़े)

मैं भौजी और माँ को बाय कह के निकल गया| जाते समय पिताजी ने मुझे काम समझा दिया था| अब बस देर थी दो बजने की और मुझे भौजी के घर पहुँचने की|

पिताजी ने मुझे किसी से पेमेंट लेने भेजा था...तो मैं उसी के ऑफिस में बैठा था| उस आदमी को आने में देर हो गई| वो आया 01 : 45 pm ...देरी की सुइन क्षमा मांगी और मैंने फटाफट उससे पैसे लिए और बैंक भागा| बैंक पहुँचते-पहुँचते दो बज गए| लंच हो गया अब ढाई बजे बैंक खुलना था| मैं वहीँ बैठा था, की तभी भौजी का फोन आया;

नेहा: हेल्लो पापा...

मैं: हाँ बेटा

नेहा: आप कहाँ हो? कब आ रहे हो?

मैं: बेटा बस बैंक आया हूँ...लंच टाइम हो गया है....थोड़ा लेट हो जाऊँगा|

इतने में आयुष की आवाज आई;

आयुष: पापा अगर आप जल्दी से नहीं आये तो कट्टी!

मैं: बेटा...45 मिनट लगेंगे बस... आपके दादु ने पैसे जमा करनाए को बोला है..बस बैंक आधे घंटे में खुलेगा .... पैसे जमा करा के मैं आपके पास ही आ रहा हूँ|

फिर भौजी की आवाज आई;

भौजी: जानू...45 मिनट में नहीं आये ना तो हम में से कोई बात नहीं करेगा|

मैं: ठीक है बाबा!

मैंने कह तो दिया की मैं 45 मिनट में आ जाऊँगा पर घर से बैंक आधा घंटा दूर था| ना मेरे पास कार थी न बाइक... ऊपर से घर पे लंच तीन बजे होता था !!! खेर बैंक का लंच खत्म हुआ पर कॅश जमा कराने की लाइन बहुत बड़ी थी| जिस बन्दे को मैं जानता था वो आज छुट्टी पे था| फिर भी किसी तरह तिगड़म लगा के मैंने पैसे जमा करा दिए और बैंक से भागा| ऑटो किया...पर रास्ते में जाम था! इधर भौजी के फोन इ फोन आ रहे थे! घर पहुँचते-पहुँचते 03 : 15 pm हो गए| अब घर पहुंचा तो भौजी का मुँह फुला हुआ ...नेहा का मन फुला हुआ..और आयुष का भी मुँह फुला हुआ था| तीनों में से कोई मुझसे बात नहीं कर रहा था| मैं डाइनिंग टेबल के पास आके खड़ा हुआ... नेहा, आयुष और भौजी तीनों रसोई में खड़े थे और मुझे देख के अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे| मैंने इशारे से आयुष और नेहा को अपने पास बुलाया पर कोई नहीं आया| फिर मई कान पकडे और घुटनों पे बैठ गया| मैंने दोनों को गले लगाने का इशारा किया तो दोनों भागते हुए आये और मेरे गले लग गए|
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02-20-2019, 06:23 PM,
#88
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
83

अब आगे ....

पिताजी और चन्दर भैया डाइनिंग टेबल पर बैठे सब देख रहे थे|

पिताजी: अरे भई ये क्या हो रहा है? बड़ी माफियाँ मांगी जा रही हैं?

मैं: कुछ नहीं पिताजी ...वो दोनों ने मिलके सरप्राइज प्लान किया था और मैं लेट हो गया तो.....

पिताजी: कैसा सरप्राइज बेटा?

इतने में भौजी ड्राइंग रूम से बोलीं;

भौजी: पिताजी...इधर है सरप्राइज|

हम सब ड्राइंग रूम में पहुंचे तो वहाँ सेंटर टेबल पे एक केक रखा हुआ था|

पिताजी: वाह भई वाह! केक!!! बहु ये अच्छा किया तुमने...बहुत सालों से हमने इसका जन्मदिन नहीं मनाया| हमेशा पैसे ले के निकल जाता था और दोस्तों को बहार ही खिला-पिला देता था| रात को हम घर पर कुछ बहार से माँगा लेते ..बस हो गया जन्मदिन|

मैं: Wow !!!

माँ: चल जल्दी से केक काट!

चन्दर भैया: जन्मदिन मुबारक हो मानु भैया|

मैं: Thanks भैया|

मैंने candle बुझाईं...केक काटा और पहला टुकड़ा पिताजी को खिलाया...दूसरा माँ को...तीसरा चन्दर भैया को ....चौथा नेहा और आयुष को!आखरी टुकड़ा उठा के मैंने भौजी को खिलाना चाहा पर उन्होंने शर्म दिखाते हुए मना कर दिया| वैसे भी उन्होंने घूँघट काढ़ा हुआ था तो ऐसे में वो पिताजी के पास घूँघट कैसे उठातीं| सब वापस डाइनिंग टेबल पे आ गए बस भौजी और मैं ही कमरे में रह गए|

मैं: नाराज हो मुझसे?

भौजी: नहीं तो...आज कैसे नाराज हो सकती हूँ! आपका एक सरप्राइज घर पे wait कर रहा है!

मैं: सच में? यार You're full of surprises!

फिर हम सबने खाना खाया और बचा हुआ केक हमने स्वीट डिश में खा लिया और केक खत्म| लंच के बाद भैया और पिताजी तो काम पे चले गए और मुझे आज दोस्तों के साथ एन्जॉय करने को कह गए| मैं सोने जा रहा था क्यों की दिषु कुछ दिनों के लिए बहार गया हुआ था|

तभी भौजी का फोन आया;

मैं: हाँ जी बोलो

भौजी: जल्दी से घर आ जाओ!

मैं उनके घर पहुँच गया| बच्चे सो चुके थे बस भौजी जाग रहीं थीं|

मैं: हाँ तो क्या है सरप्राइज?

भौजी ने एक छोटा सा गत्ते का बॉक्स मेरे सामने खोला| उसमें दो पेस्ट्री थीं| उन्होंने एक पे एक मोमबत्ती लगा दी और उसे जल दिया|

मैं: okay !

भौजी: वो प्लान बच्चों का था...और ये वाला Specially आपके लिए ...मेरी तरफ से!

मैंने candle बुझाई और वो टुकड़ा उन्हें खिलाया, भुजी ने दूसरा टुकड़ा मुझे खिलाया| भौजी मुझसे लिपट गईं और बोलीं;

भौजी: Happy B'day जानू!

मैंने अब भी उन्हें नहीं छुआ था.... वो मुझसे लिपटीं थीं पर मेरे हाथ उनकी कमर या पीठ पे नहीं थे, बल्कि मैंने अपने हाथ पीछे मोड़ रखे थे|

मैं: thanks

फिर मैंने उन्हें खुद से दूर किया और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गया| जाहिर था की इतने दिनों से मेरा व्यवहार उन्हें अटपटा लग रहा था और आखिर उन्होंने पूछ ही लिया;

भौजी: आप पिछले कुछ दिनों से इतना weired क्यों behave कर रहे हो? अब भी नाराज हो?

मैं: नहीं तो

भौजी: तो बात क्या है? ना आप मुझे छूते हो...ना पहले के जैसे "जान" कह के बुलाते हो... कल रात आपको मैंने I Love You कहा...आपने उसका कोई जवाब नहीं दिया...बल्कि मुझे अपने खरांटे सुनाने लगे...क्या मैं नहीं जानती की आप खरांटे नहीं लेते? आज सुबह भी आपने मेरे कहने पर भी I Love You नहीं कहा? अकेले में जब भी आपको छूतीं हूँ या कोशिश करती हूँ तो आप भाग जाते हो? आखिर क्यों मुझसे दूरी बना रहे हो? मैं यहाँ सिर्फ आपके लिए ही तो आई हूँ|

मैं: जानता हूँ...पर ....पर ....अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा| आप...आप मेरे लिए वो नहीं रहे जो पहले थे! I mean I use to love you…but now its like …I….I worship you! उस दिन आपने जो कुछ कहा...I mean आयुष और नेहा ...वो...वो सब.... I still feel guilty! आप हमेशा सही थे...और मैं आपको ही गलत मानता रहा| मैंने आपको दोषी बना डाला... सरे इल्जाम आप पर थोप दिए... मतलब... hHow could I ever do that! और इस सब के होने के बाद मेरे पास आपको छूने का या कुछ भी कहने का हक़ नहीं रहा| मेरे लिए तो आप वो संगे मरमर की मूरत हो जिसे मेरे जैसा पापी अगर देख भर ले तो वो मूरत गन्दी हो जाए...ऐसे में मैं आपको कैसे छूं| the truth is I don’t deserve you!

भौजी: Oh God ! I’m not a Goddess !!! मैं बस आपसे प्यार करती हूँ..और बस यही चाहती हूँ की आप मुझे वैसे ही प्यार करो जैसे किया करते थे| मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया..बलिक एहसान तो आपने किया है| आप मेरी जिंदगी में आय...और मुझे वो साड़ी खुशियां दीं जो मुझे मिलनी चाहिए थी| उसके बाद मेरी एक गलती की वजह से आप बिना कुछ कहे बिना कुछ मांगे...चले गए| आप ने तो expect करना ही छोड़ दिया| I mean आपकी जगह कोई और होता तो वो मुझसे कितनी उम्मीद बाँध लेता...और जैसा मैंने किया उसके बाद तो वो सब जगह जाके ढिंढोरा पीट देता की ये बच्चा उसका है और उसके बाद क्या होता ये मुझे कहने कोई जर्रूरत नहीं| आपने तो यहाँ तक आयसुह को खुद को "पापा" कहने से भी रोक दिया सिर्फ इसलिए की किसी को पता न चल जाये| और आज भी आप मुझे छूने से झिझकते हो....इतना बड़ा दिल किस इंसान का होता है? It’s you who should be worshipped!

मैं: Oh No..No…I don’t deserve that!

भौजी: तो promise me आप ये सब नहीं सोचोगे?

मैं: I can’t do that!

भौजी: Ok… कहते हैं जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है|

मैं: क्या मतलब?

भौजी: जब तक आप मुझे नहीं छूते मैं खाना-पीना सब छोड़ दूंगी|

मैं: That’s not fair!

भौजी: Well you once said, everything’s fair in love and war.

मैं जानता था की अगर मैंने उन्हें छुआ नहीं तो वो फिर से बीमार पड़ जाएँगी| तभी भौजी का फोन आया;

मैं: हाँ जी बोलो

भौजी: जल्दी से घर आ जाओ!

मैं उनके घर पहुँच गया| बच्चे सो चुके थे बस भौजी जाग रहीं थीं|

मैं: हाँ तो क्या है सरप्राइज?

भौजी ने एक छोटा सा गत्ते का बॉक्स मेरे सामने खोला| उसमें दो पेस्ट्री थीं| उन्होंने एक पे एक मोमबत्ती लगा दी और उसे जल दिया|

मैं: okay !

भौजी: वो प्लान बच्चों का था...और ये वाला Specially आपके लिए ...मेरी तरफ से!

मैंने candle बुझाई और वो टुकड़ा उन्हें खिलाया, भुजी ने दूसरा टुकड़ा मुझे खिलाया| भौजी मुझसे लिपट गईं और बोलीं;

भौजी: Happy B'day जानू!

मैंने अब भी उन्हें नहीं छुआ था.... वो मुझसे लिपटीं थीं पर मेरे हाथ उनकी कमर या पीठ पे नहीं थे, बल्कि मैंने अपने हाथ पीछे मोड़ रखे थे|

मैं: thanks

फिर मैंने उन्हें खुद से दूर किया और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गया| जाहिर था की इतने दिनों से मेरा व्यवहार उन्हें अटपटा लग रहा था और आखिर उन्होंने पूछ ही लिया;

भौजी: आप पिछले कुछ दिनों से इतना weired क्यों behave कर रहे हो? अब भी नाराज हो?

मैं: नहीं तो

भौजी: तो बात क्या है? ना आप मुझे छूते हो...ना पहले के जैसे "जान" कह के बुलाते हो... कल रात आपको मैंने I Love You कहा...आपने उसका कोई जवाब नहीं दिया...बल्कि मुझे अपने खरांटे सुनाने लगे...क्या मैं नहीं जानती की आप खरांटे नहीं लेते? आज सुबह भी आपने मेरे कहने पर भी I Love You नहीं कहा? अकेले में जब भी आपको छूतीं हूँ या कोशिश करती हूँ तो आप भाग जाते हो? आखिर क्यों मुझसे दूरी बना रहे हो? मैं यहाँ सिर्फ आपके लिए ही तो आई हूँ|

मैं: जानता हूँ...पर ....पर ....अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा| आप...आप मेरे लिए वो नहीं रहे जो पहले थे! I mean I use to love you…but now its like …I….I worship you! उस दिन आपने जो कुछ कहा...I mean आयुष और नेहा ...वो...वो सब.... I still feel guilty! आप हमेशा सही थे...और मैं आपको ही गलत मानता रहा| मैंने आपको दोषी बना डाला... सरे इल्जाम आप पर थोप दिए... मतलब... hHow could I ever do that! और इस सब के होने के बाद मेरे पास आपको छूने का या कुछ भी कहने का हक़ नहीं रहा| मेरे लिए तो आप वो संगे मरमर की मूरत हो जिसे मेरे जैसा पापी अगर देख भर ले तो वो मूरत गन्दी हो जाए...ऐसे में मैं आपको कैसे छूं| the truth is I don’t deserve you!

भौजी: Oh God ! I’m not a Goddess !!! मैं बस आपसे प्यार करती हूँ..और बस यही चाहती हूँ की आप मुझे वैसे ही प्यार करो जैसे किया करते थे| मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया..बलिक एहसान तो आपने किया है| आप मेरी जिंदगी में आय...और मुझे वो साड़ी खुशियां दीं जो मुझे मिलनी चाहिए थी| उसके बाद मेरी एक गलती की वजह से आप बिना कुछ कहे बिना कुछ मांगे...चले गए| आप ने तो expect करना ही छोड़ दिया| I mean आपकी जगह कोई और होता तो वो मुझसे कितनी उम्मीद बाँध लेता...और जैसा मैंने किया उसके बाद तो वो सब जगह जाके ढिंढोरा पीट देता की ये बच्चा उसका है और उसके बाद क्या होता ये मुझे कहने कोई जर्रूरत नहीं| आपने तो यहाँ तक आयसुह को खुद को "पापा" कहने से भी रोक दिया सिर्फ इसलिए की किसी को पता न चल जाये| और आज भी आप मुझे छूने से झिझकते हो....इतना बड़ा दिल किस इंसान का होता है? It’s you who should be worshipped!

मैं: Oh No..No…I don’t deserve that!

भौजी: तो promise me आप ये सब नहीं सोचोगे?

मैं: I can’t do that!

भौजी: Ok… कहते हैं जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है|

मैं: क्या मतलब?

भौजी: जब तक आप मुझे नहीं छूते मैं खाना-पीना सब छोड़ दूंगी|

मैं: That’s not fair!

भौजी: Well you once said, everything’s fair in love and war.

मैं जानता था की अगर मैंने उन्हें छुआ नहीं तो वो फिर से बीमार पड़ जाएँगी| 

भौजी आयुष और नेहा के कमरे में जा रहीं थी की मैं उठा और पीछे से जाके उन्हें कमर से पकड़ लिया| मैं उनकी शरीर की महक को आज बरसों बाद सूंघ रहा था....भौजी ने भी मेरे हाथों को कस के पका डी लिया और अपने जिस्म पे दबाने लगीं|

भौजी: ह्म्म्म्म्म्म्म

मैं: So sorry ..... for behaving so weired .....so are you Happy now?

भौजी: ना ...You're missing something ?

मैं: Oh .... I love you

भौजी: I Love You Too !

फिर मैंने पीछे से ही भौजी के गालों को चूमा और उन्हें अपनी गिरफ्त से आजाद किया|

भौजी: वैसे.... मुझे अभी भी आपसे एक चीज चाहिए? जिसके लिए मैं बहुत तड़पी हूँ|

मैं: क्या?

भौजी: Kiss !

मैं: दिया तो अभी!

भौजी: वो Kiss थोड़े ही था...वो तो आपने घांस काटी है|

इतने में बच्चे उठ गए और दोनों आके मेरी गोद में बैठ गए| भौजी उठ के कपडे लेने के लिए छत पे चली गईं| मैंने भी बच्चों को अपने घर भेज दिया ये कहके की मैं अभी आ रहा हूँ| नीचे ताला लगाया और मैं भी छत पे पहुँच गया| 

मैं: तो “जान”...आप कुछ मांग रहे थे?

भौजी ने शरारत भरी नजरों से मेरी ओर देखा ओर बोलीं;

भौजी: नहीं तो...

मैं: ठीक है ...मुझे लगा आपको वो अभी चाहिए था...पर ठीक है…..मैं जा रहा हूँ|

मैं जाने के लिए जैसे ही घुमा भौजी भाग के मेरे पास आऐं और मुझे झटके से पानी ओर घुमाया, मेरी कमीज के कॉलर को दोनों हाथों से पकड़ा और मेरे होठों पे अपने होंठ रख दिए| उनकी दोनों बाहों ने मेरी गर्दन के इर्द-गीर्द घेरा बना लिया और उन्होंने मेरे होठों को अपने मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया| जैसे ही बहूजी ने मेरे होठों को छोड़ा मैंने उनके होठों का रस पान शुरू कर दिया| दस मिनट तक हम एक दूसरे के इसी तरह Kiss करते रहे| जब अलग हुए तो भौजी बोलीं;

भौजी: सात साल...fucking सात साल इन्तेजार किया मैंने इसके लिए!!!

मैं: All you had to do was call me !

भौजी: पर तब वो आनंद नहीं आता जो आज आया| अच्छा आप ये बताओ...गाँव में तो आप मेरे कमरे में रात को आ जाया करते थे...तो यहाँ भी ऐसा ही करोगे?

मैं: ना यार... यहाँ कैसे हो सकता है| किसी ने रात में आपके पास आते देख लिया तो?

भौजी: वो मैं नहीं जानती.... आप आज रात आओगे|

इतने में मेरे फोन में मैसेज आया| मैंने मैसेज पढ़ा तो वो दिषु का था| उसके पास बैलेंस नहीं था और उसने मुझे कॉल करने को कहा था|मैंने तुरंत उसे फोन मिलाया;

मैं: हाँ भाई बोल?

दिषु: अगले दो घंटों में मैं दिल्ली पहुँच रहा हूँ| तू मुझे स्टेशन मिल|

मैं: पर किस लिए?

दिषु: ओये! बर्थडे ट्रीट कौन देगा?

मैं: यार पर....

दिषु: पर-वर कुछ नहीं... और हाँ...कपडे मस्त वाले पहनियो!

मैं: क्यों?

दिषु: मिल तब बताता हूँ|

मैंने फोन काटा और भौजी जो खडीन हमारी बातें सुन रहीं थी
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02-20-2019, 06:23 PM,
#89
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
84

अब आगे ....

वो बोलीं;

भौजी: तो? हमारा प्लान कैंसिल?

मैं: शायद! (मैंने नजरें चुराते हुए कहा)

भौजी: मैं नहीं जानती... Tonight I want you here !

मैं: पर....

भौजी: पर-वार कुछ नहीं...

फिर हम नीचे आ गए| मैंने घर जाके माँ को आज अपने प्लान के बारे में बता दिया| डेढ़ घंटे बाद ही मैं तैयार हो के स्टेशन के लिए निकल गया| स्टेशन पे उससे मिला और उसने अपना प्लान मुझे बताया| साले ने PUB जाने का प्लान बनाया था|

मैं: अबे पागल हो गया है तू? साले घर अगर पिके पहुँचा ना, तो पिताजी खाल खींच लेंगे|

दिषु: अबे चल ना यार.... साल में एक बार सब चलता है|

अब दोस्त को मना कैसे करूँ...वो भी जिगरी दोस्त को! मैंने घर फोन कर दिया की मैं लेट आऊँगा| शायद भौजी भी वहीँ मौजूद थीं और उन्होंने भी सुन लिया था की मैं लेट आऊँगा...इसलिए उन्होंने दो मिनट बाद अपने मोबाइल से फोन किया;

भौजी: हेल्लो मिस्टर ...भूल गए मुझे? (भौजी ने शिकायत की)

मैं: नहीं यार...मैं आ जाऊँगा....

भौजी: आज रात आपके भैया साइट पे रुकने वाले हैं और देर से आएंगे...उनके आने से पहले आ जाना...वार्ना याद है ना... (भौजी ने प्यार भरी धमकी दी|)

मैं: हाँ-हाँ बाबा आजाऊँगा....

और मैंने फोन काट दिया|

दिषु: क्या बात है?

मैं: कुछ नहीं यार| चल जल्दी चल|

मैं उसके साथ PUB आगया| Loud Music , Dance .... Awesome !!! मैं एक occasional drinker हूँ| पर अपनी लिमिट जानता हूँ| घर में मेरी इस आदत के बारे में कोई नहीं जानता| मैं बड़ा सोच समझ के ड्रिंक कर रक था..पर तभी दिषु ने ड्रिंक में कुछ मिलाया|

मैं: अबे ये क्या है?

दिषु: पी के देख| हवा में ना उड़े तो कहिओ!

मैं: पर है क्या ये?

दिषु: पता नहीं..बारटेंडर ने कहा बहुत अच्छी चीज है!

मैं: Fuck .... You Kidding Me ! अबे साले ड्रग्स हुआ तो?

दिषु: अबे चल न यार...एक बार ले के तो देख|

मैंने एक घूंट पिया..कुछ फर्क नहीं पड़ा| फिर धीरे-धीरे मैंने पूरा ड्रिंक खत्म किया| पर वो साल बाज नहीं आया और एक और ड्रिंक पिला दिया| इधर भौजी के फोन आने लगे...एक के बाद एक...लगातार दस कॉल| पर इधर मेरा सर घूमने लगा था...मुझे तो अपने मोबाइल की स्क्रीन पे नंबर और नाम तक ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे| अब तो पिताजी ने भी फोन करने शुरू कर दिए!

मैं: अबे...तूने ..ये क्या दे दिया....साले सर...घूम रहा है! ले फोन पे बात कर!

दिषु: अबे...सर तो मेरा....भी घूम रहा है!!!

मैं: साले फोन देख...बापू ने आज तो मेरी सुताई कर देनी है|

दिषु: अबे ... सुन...मेरा एक ऑफिस का ददोसत यहीं रहता है| उसके पास एक जुगाड़ है…..चल उसके घर चलते हैं …..और आज जुगाड़ पेलते हैं!

मैं: अबे …… ठरकी ...साले.....तूने .....सब प्लान कर ....रखा था! पर मुझे ...घर .......जाना है.....cause...I made a promise to her ..... फोन मिला और टैक्सी बुला|

दिषु: तेरी मर्जी .......

इतने में एक और बार भौजी का फोन आया और इस बार मैंने उठा भी लिया;

मैं: हेल्लो....

भौजी: कहाँ हो आप? घडी देखि है...साढ़े ग्यारह बज रहे हैं|

मैं: हाँ....आ ...रहा....हूँ!

भौजी: आप इतना खींच-खींच के क्यों बोल रहे हो?

मैं: आके...बताता ...हूँ!

मैंने फोन रखा और टैक्सी पकड़ी…… और भौजी के घर पहुँचते-पहुँचते साढ़े बारह बज गए| अब मैं इस हालत में सीधा घर तो जा नहीं सकता था| तो मैं लड़खड़ाते हुए भौजी के घर पहुँचा और उनके घर का दरवाजा खटखटाया| भौजी ने दरवाजा खोला..और मेरी हालत देख के वो सब समझ गईं|

भौजी: अपने पी है?

मैं: अह्ह्ह...हम्म्म्म....

भौजी ने मुझे अंदर बुलाया;

मैं: Sorry ....

मैं अंदर कुर्सी पे बैठा और लुढक गया|

भौजी: अंदर चल के लेट जाओ|

मैं: नहीं...बच्चे ...मुझे ऐसे न देखें ....

मैं किसी तरह उठ के खड़ा हुआ, वॉशबेसिन में मुँह धोया... और बाहर जाने लगा|

भौजी: कहाँ जा रहे हो?

मैं: घर...

भौजी: पर ऐसी हालत में घर जाओगे तो पिताजी...

मैं: जानता हूँ...गलती की है तो....

भौजी: मैं साथ चलती हूँ|

मैं: नहीं...आप यहीं रहो ...

मैं आगे दो कदम चला और लड़खड़ा के गिर पड़ा|

खुद को किसी तरह संभाला और खड़ा हुआ;

भौजी: आप कहीं नहीं जा रहे ...चलो अंदर जाके लेट जाओ|

मैं: नहीं...माँ-पिताजी.....चिंता.....

भौजी: नहीं मैं कहीं नहीं जाने दूंगी आपको| चलो लेट जाओ|

भौजी ने मुझे अपने कमरे में पलंग पे लिटा दिया|मैंने पाँव को एड़ी से रगड़ के जुटे उतारे और फ़ैल के लेट गया| मुझे कुछ तो होश था ही...और अब तो मन में अजीब सी तरंगे उठने लगीं थी|Excited feel हो रहा था|मन कर रहा था की भौजी को दबोश लूँ... पर ये क्या हो रहा है मुझे? आजतक पीने के बाद कभी मुझे ऐसा नहीं लगा| जब भी पी, चुप चाप घर आके, कमरा लॉक किया, ब्रश किया और सो गया| पर इस बार ऐसा क्यों लग रहा है...बस यही सोच रहा था की इधर दिमाग ने जिस्म से लड़ाई छेड़ दी| दिमाग अब भी conscious state में था और जिस्म बगावत पे उतर आया था| ऐसा लगा मानो दिमाग का जिस्म पे कंट्रोल ही ना हो....जैसे-तैसे कर के खुद को रोक!| फिर में थोड़ा बड़बड़ाया;

मैं: माँ-पिताजी....फोन....

भौजी: हाँ मैं अभी फोन करती हूँ|

इधर खुद को रोकने का एक ही तरीका था...की सो जाऊँ| दिमाग को हल्का छोड़ दिया और सोने लगा|कुछ देर बाद मुझे कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं... पर इतनी हिम्मत नहीं हुई की उठ के देखूं की कौन है| करीब आधे घंटे बाद मैं उठा...मूतने ...देखा भौजी मेरी बगल में सोई हैं! मन किया उन्हें छू के देखूं...प्यार करूँ पर अगले ही पल खुद को झिड़क दिया और मूतने बाथरूम में घुसा...फिर से मुंह धोया...की शायद होश में आउन और यहाँ से चुप-चाप चला जाऊँ...पर नशा अब भी सीधा खड़ा होने नहीं दे रहा था| तो चल के घर तक कैसे जाता| भौजी का घर 3 BHK था...जहाँ मैं पहले लेता था वो उनका बैडरूम था...दूसरे रूम में बहू सो रहे थे और तीसरे रूम की हालत ज्यादा सही नहीं थी...उसमें सामान भरा हुआ था..बास एक सिंगल बेड रखा था, जिसपे चादर तक नहीं थी| अब खुद को रोकने का यही एक तरीका था...मैं उसी बेड पे लेट गया...पर शरीर में जैसे छतियां काटने लगी थीं| मन कर रहा था की जाके वापिस भौजी के करे में सो जाऊँ...पर नहीं....ये मैं कैसे कर सकता था| कुछ देर की लड़ाई के बाद जिस्म ने हार मान ली और मैं सो गया, उसके बाद कुछ होश नहीं की क्या हुआ... सीधा सुबह दस बजे आँख खुली!

सर दर्द से फटा जा रहा था| मैं उठ के बैठा और इतने में भौजी आ गईं| मैं सर पकडे बैठा था...

भौजी: कॉफ़ी लोगे?

मैं: हाँ... पर ब्लैक!

भौजी: अभी लाई...

कुछ देर बाद भौजी कॉफ़ी ले के लौटीं|

मैं: I hope मैंने कल रात कोई बदतमीजी नहीं की!

भौजी: उसके बारे में बाद में बात करते हैं| अभी घर चलो!

हम दोनों घर आ गए| घर में घुसते ही माँ का गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा दिखाई दिया और इधर पिताजी डाइनिंग टेबल पे अखबार पढ़ रहे थे| मैं भी डाइनिंग टेबल पे जाके बैठ गया और सर पकड़ लिया, इधर जैसे ही उनकी नजर मुझ पे गई वो बोले;

पिताजी: उतर गई तेरी? या अभी बाकी है? और मंगाऊँ शराब? (ये पिताजी का पहला आक्रमण था)

मुझे बहुत बुरा लग रहा था की मैंने ये क्या किया.... की इतने में चन्दर भैया आ गए और वो भी टेबल पे बैठ गए|

चन्दर भैया: भैया इतनी क्यों पीते हो? (उन्होंने मुझे छेड़ते हुए पूछा)

मैं: वो...कल...पहलीबार था..... इसलिए होश नहीं रहा| Sorry पिताजी!

पिताजी: तू तो कह के गया था की ट्रीट देने जा रहा है और तू शराब पीने गया था? (पिताजी ने गुस्से में सवाल पूछा)

मैं: जी...वो प्लान अचानक बन गया... दिषु और मैंने कभी पी नहीं थी...तो सोचा की एक बार ...

पिताजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई? (पिताजी गरजते हुए बोले)

मैं: sorry पिताजी...आगे से एस एकभी नहीं होगा| मैंने तो बस एक ग्लास बियर पी थी...वहाँ पहले से पार्टी चल रही थी| हम दोनों की ड्रिंक्स एक्सचेंज हो गईं...

पिताजी: कहाँ गया था तू? (उन्होंने फिर गरज के कहा)

मैं: जी...याद नहीं! (मैंने जूठ बोला..वरना दिषु की शामत थी)

इतने में माँ ने चाय का कप मेरे सामने टेबल बे दे पटका और गुस्से में बोलीं;

माँ: ये ले... चाय...तेरा सर दर्द ठीक होगा|

पिताजी: पता नहीं? इतना भी होश नहीं.... दिषु को तो पता होगा?

मैं: जी नहीं...मैंने बताया ना वहाँ पार्टी चल रही थी..और हमारी ड्रिंक्स उन लोगों के साथ बदल गईं| इसलिए हमारी ये हालत हुई ...

पिताजी: अगर अगली बार तूने कभी भी शराब पी...तो तेरी टांगें तोड़ दूंगा और दिषु...उसके घर वालों से मैं बात करता हूँ, कल रात से वो भी पचास बार फोन कर चुके हैं| वो तो कल तेरी भौजी का फोन आया तब पता चला की तू उनके घर पे पड़ा है! इतनी शर्म आ रही थी घर आने में तो पी ही क्यों?

मैं: Sorry पिताजी...आज के बाद कभी नहीं पीऊँगा|

पिताजी कुछ नहीं बोले बस चन्दर भैया के साथ काम पे निकल गए| मैं भी उठा और अपने कमरे में घुस गया और फ्रेश हो के बाहर आया|

भौजी: रात को कुछ खाया था?

मैं: नहीं...

भौजी: मैं अभी खाने को कुछ लाती हूँ|

और भौजी नाश्ता बनाने चली गईं, इतने में दिषु का फोन आ गया|

दिषु: हेल्लो

मैं: साले...कुत्ते...कमीने...बहनचोद...ये क्या पिला दिया तूने? भोसड़ी वाले....

दिषु: (हँसते हुए) मजा आया ना रात भाभी के साथ?

मैं: क्या बकवास कर रहा है तू?

दिषु: अबे...you didn't had sex with your bhabhi?

मैं: ओ भोसड़ीवाले!!! क्या कह रहा है तू? क्या मिलाया था तूने?

दिषु: यार नाम तो याद नहीं...बारटेंडर ने कहा था बड़ी मस्त चीज है और उसने लड़कियों के नंबर भी दिए थे! अबे काश कल तू रात को आता| खेर तूने अपनी भाभी के साथ तो किया ही होगा?

मैं: बहनचोद! मुझे कुछ याद नहीं.... थोड़ा बहुत याद है...पर बेटा अगर कुछ हुआ होगा तो तेरी गांड लंगूर के जैसी लाल कर दूँगा| सच कह रहा हूँ भाई!

दिषु: भाई भड़क क्यों रहा है? मैंने तो तेरा काम आसान कर दिया||

मैं: साले नशे में मैं उन्हें छूने की भी नहीं सोच सकता! और तेरी वजह से मैंने कल रात पता नहीं क्या किया उनके साथ!!! तू गया बेटा !! बहनचोद अब तो तेरी गांड लाल हो के रहेगी!! (मैंने उसे बहुत गुस्से में ये सब कह दिया|)

मैंने फोन काटा और इतने में भौजी नाश्ता लेके अंदर आईं| उन्होंने मेरी बात सुन ली थी| मैं उनके सामने अपनेघुटनों पे आ गया और एक सांस में बोल गया;

मैं: जान.... I’m very Sorry..... मैंने कल रात को आपके साथ बदसलूकी की! …. I’m very sorry….प्लीज मुझ माफ़ कर दो!!!

भौजी: जानू...पर आपने कुछ नहीं किया?

मैं: क्या? How’s that possible? दिषु ने अभी कहा की उसने दोनों की ड्रिंक में कुछ sexual drug मिलाई थी.... और उसने तो रात को...मतलब.... (मैंने आगे कुछ नहीं कहा) तो मतलब मैंने आपको नहीं छुआ?

भौजी: नहीं....पर आप drugs लेते हो?

मैं: नहीं...वो उसने पहली बार ....

भौजी: सच कह रहे हो? खाओ मेरी कसम?

मैं: आपकी कसम मैं drugs नहीं लेता| कल रात पहलीबार था! और आखरी भी! Thank God … मैंने कल आपको नहीं छुआ....वरना कसम से खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता|

भौजी: कल आप बड़ा कह रहे थे की मैं संगे मर्मर की पवित्र मूरत हूँ और वो सब....!!! कल बड़ी बड़ाई कर रहे थे मेरी...और कल रात आप भी बहुत कुछ कर सकते थे! नशे में तो थे ही...पर फिर भी आपने ऐसा कुछ नहीं किया? drugs के नशे में होते हुए भी खुद को रोके रखा| उठ के मुझे देखा पर फिर भी....कोई बदसलूकी नहीं की| तो अब बताओ की कौन ज्यादा प्यार करता है? मैं या आप? मिल गया न अपने सवालों का जवाब?

मैं: हाँ जी!

फिर भौजी मेरे गले लग गईं| मैंने नाश्ता किया और अब Guilty महसूस नहीं हो रही थी!

थोड़ी देर में दिषु का फोन आया और वो बहुत घबराया हुआ था, बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा की उसकी फटी हुई थी!

मैं: बोल? (गुस्से में)

दिषु: यार..Sorry ....पर मेरी फटी हुई है! मेरे पापा ने कल तेरे घर फोन किया था...तो औन्क्ले ने उन्हें बताया नहीं की मैंने तेरे साथ हूँ?

मैं: उन्हें नहीं पता था की तू कहाँ है? तो वो क्या कहते? Hell I wasn't even conscious ! Thanks to you !

दिषु: यार आज तो मेरी चुदाई पक्की है!

मैं: सही है..कल रात तूने बजाई और आज तेरी बजेगी!!! ही..ही..ही..

दिषु: हँस ले भाई! बजी तो तेरी भी होगी?

मैं: हाँ... पर शुक्र कर तुझे बचा लिया वरना ...

फिर मैंने उसे सारी बात समझा दी| भौजी सारी बात सुन रही थीं, और जब मैंने फोन काटा तब वो बोलीं;

भौजी: अभी क्या कह रहे थे आप?

मैं: वो कल मुझे वहाँ ले जाना चाहता था!

भौजी: कहाँ?

मैं: G.B. Road !

भौजी: वो कौन सी जगह है?

मैं: Red Light Area!

भौजी: Hwwwwww ! पर आप गए क्यों नहीं?

मैं: Because ….. I ….. Love…….. You !!!!

भौजी: I Love You too जानू!

मैं: अच्छा ...आप मेरा एक काम करोगे?

भौजी: हाँ..हाँ बोलो जानू!

मैं: आप यहाँ बैठो! (मैंने उन्हें कंप्यूटर टेबल के पास पड़ी कुर्सी पे बिठा दिया|) और अब अपनी आँखें बंद करो!

भौजी: पर क्यों?

मैं: यार...सवाल मत पूछो!

भौजी: ठीक है बाबा!

भौजी ने आँखें बंद की| फिर मैंने अपने तकिये के नीचे से चांदी की पायल निकाली और भौजी के ठीक सामने जमीन पर आलथी-पालथी मार के बैठ गया| फिर उनका दाहिना पैर उठा के अपने दाहिने घुटनों पे रखा और उन्हें पायल पहनाई| इतने में भौजी ने आँखें खोल लीं;

भौजी: हाय राम! ये आप कब लाये? और क्यों?

मैं: उस दिन जब आप बीमार पड़े थे तब मैंने देखा था की आपके पाँव में पायल होती थी, जो अब नहीं थी| इसलिए उस दिन सोचा था की मैं अपने जन्मदिन के दिन आपको दूँगा| फिर कल शाम को आपने कहा था की रात को आपके पास आउन..तो फिर मैंने सोचा की रात को आपको पहनाऊँगा| पर कल रात वाले काण्ड के बाद...समय ही नहीं मिला|

भौजी: wow ! ये तो लॉक वाली पायल है! आपको कैसे पता चला की मुझे ऐसी पायल पसंद है? मैंने तो आपको कभी बताया नहीं? फिर कैसे पता चला?

मैं: ह्म्म्म्म्म ... हमारे दिल कनेक्टेड हैं!

भौजी हँस पड़ीं|

भौजी: अब ये बताओ की कितनी की आई?

मैं: क्यों? पैसे दोगे मुझे?

भौजी: नहीं बस...ऐसे ही पूछा!

मैं: वो सब छोडो और ये बताओ की आपकी पुरानी वाली पायल कहाँ है?

भौजी: वो....अनिल को कुछ पैसे चाहिए थे...Exams के लिए...मेरे पास थे नहीं तो.. मैंने उसे पायल और चूड़ियाँ दे दी|

मैं: और ये कब के बात है?

भौजी: यहाँ आने से पहले की|

मैं: और आपने मुझे ये बताना जर्रुरी नहीं समझा?

भौजी: नहीं...नहीं...ऐसी बात नहीं है| मुझे याद नहीं रहा|

मैं: आप जानते हो ना आपकी पायल की आवाज मुझे कितनी अच्छी लगती थी?

भौजी: Sorry बाबा!

मैं: चलो कोई बात नहीं| अच्छा...एक कप चाय मिलेगी?

भौजी: हाँ-हाँ जर्रूर....

मैं: और हाँ मेरे फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई है| आपके फोन में बैलेंस है?

भौजी: हाँ ये लो|

मैंने जानबूझ के जूठ बोल के उनसे फोन लिया और फटाफट अनिल का नया नंबर ले लिया| फिर चाय पी और घर से निकल गया|

बहार जाके मैंने अनिल को फोन किया;

मैं: हेल्लो अनिल?

अनिल: नमस्ते जीजू!

मैं: नमस्ते...यार तुमने अपनी दीदी से कुछ पैसे लिए थे?

अनिल: जी..वो कॉलेज की फीस भरनी थी....

मैं: मुझे क्यों नहीं बताया? मेरा नंबर तो था ना तुम्हारे पास?

अनिल: जी व...वो.....

मैं: अच्छा ये बताओ पैसे पूरे पड़ गए थे?

अनिल: जी.....वो...

अनिल: देख भाई जूठ मत बोल....

अनिल: जी नहीं.... पर काम चल गया था...मैंने कुछ पैसे उधार ले लिए थे|

मैं: कितने पैसे?

अनिल: जी....पाँच...पाँच हजार... PG के पैसे भरने के लिए|

मैं: अच्छा...आपकी दीदी ने कुछ पैसे दिए हैं आपको भेजने को! NEFT कर दूँ? अभी पहुँच जायेंगे|
(मैंने कूठ बोला, क्योंकि मैं जानता था की अनिल कभी भी मुझसे पैसे नहीं लेगा|)

अनिल: जी...

फिर उसने मुझे अपना बैंक अकाउंट नंबर और बाकी की डिटेल दी| दरअसल अनिल मुंबई में MBA करने गया है| भौजी के पिताजी अब चूँकि काम-धंदा नहीं कर पाते उम्र के चलते तो उन्होंने अपनी जमीन जुताई के लिए किाराये पे दी है| अब छोटे से टुकड़े से कहाँ इतनी आमदनी होती है? मैंने ये पैसे भेजने की बात भौजी को नहीं बताई और चुप-चाप एक घटे बाद वापस आ गया| दो घंटों बाद मुझे अनिल का फोन आया की उसे पैसे मिल गए हैं| मने फोन रखा और लेट गया| सीधा शाम को उठा और भौजी सामने चाय का कप ले के कड़ी थीं| उनकी आँखों में आंसूं थे, उन चेहरा देख के एकदम से उठा और उनका हाथ पकड़ के अपने पास बिठाया और उनके आँसूं पोछे;

मैं: Hey क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा?

भौजी ने चाय का कप मेरे कंप्यूटर टेबल पे रखा और मुझसे लिपट गईं और रोने लगीं|

मैं: Hey..Hey…Hey…क्या हुआ?

भौजी सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: अनिल का फोन आया था....

मैं: वो ठीक तो है ना?

भौजी: आपने....उसे पैसे....भेजे थे?

मैं: (मैं उनसे जूठ नहीं बोल सकता था) हाँ

भौजी ने अपनी बाँहों को मेरे इर्द-गिर्द कस लिया|

भौजी: thank you

मैं: किस लिए? अब आप तो मुझे अपनी प्रोब्लेम्स के बारे में बताते नहीं हो...तो मुझे ही कुछ करना पड़ा|

इतने में अनिल का फोन आ गया|

मैं: हेल्लो

अनिल: thank you जीजू!

मैं: अरे यार thank you वाली फॉर्मेलिटी बाहर वालों के साथ होती है| अपनों के साथ नहीं...और हाँ ...कभी कोई जर्रूरत हो तो मुझे फोन किया कर....दीदी को नहीं...!

अनिल: पर दीदी ने तो आपको कुछ बताया नहीं...फिर आपको कैसे?

मैं: आज मैंने उन्हें बिना पायल के देख तो पूछा..उन्होंने कहा की उन्होंने पायल और कुछ छुड़ियां बेच के तुम्हें पैसे भेजे...चांदी के पायल के कितने मिलते हैं....? चूड़ियों के फिर भी कुछ मिले होंगे| इसलिए मैंने तुम्हें फोन कर के पूछा| Anyways छोडो इन बातों को और पढ़ाई में मन लगाओ|

अनिल: जी जीजू!

मैं: बाय and take care!

अनिल: बाय जीजू!

भौजी ने हमारी बातें सुन ली थी|

मैं: और आप....अगर आपने दुबारा मुझसे को बात छुपाई ना...तो देख लेना!!! ढूंढने से भी नहीं मिलूंगा आपको?

भौजी मुझसे फिर से लिपट गईं| फिर जैसे-तैसे मैंने उन्हें चुप कराया और जो चाय वो लाईं थीं वो आधी उन्हें पिलाई और आधी मैंने पी| बच्चों के साथ खेलते-कूदते दिन गुजरा....हाँ मैं पिताजी और माँ से अब भी नजरें बचा रहा था और अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था| रात को पिताजी घर आये और तब माँ मुझे खाने के लिए बोलने आईं| सब डाइनिंग टेबल पे बैठ गए और अब बारी थी फिर से पिताजी के ताने सुनने की!

पिताजी: तो क्या किया सारा दिन?

माँ: पलंग तोड़ रहा था ...और क्या?

पिताजी: हम्म्म्म .... कल साइट पे आजइओ!!

मैं: जी (मैंने सर झुकाये हुए कहा|)

मैं हैरान था की बस ...इतनी ही दांत पड़ने थी की तभी चन्दर भैया ने चुटकी ली;

चन्दर भैया: मानु भैया... चाचा अच्छे मूड में हैं इसलिए बच गए आप!

मुझे गुस्सा तो बहुत आया की आग ठंडी पड़ चुकी है...और इन्हें उसमें घांसलेट डालने की पड़ी है| तभी पिताजी बोले,

पिताजी: ऐसा नहीं है बेटा.... क्लास तो मैं आज फिर इसके लगाता पर अब ये जवान हो गया है...आज तक इसने कोई गलत काम नहीं किया...पहली बार किया जिसके लिए इसे ग्लानि भी हो रही है| ऐसे में मैं इसकी सुताई कर दूँ तो ये सुधरेगा नहीं बल्कि..और बिगड़ेगा| फिर है भी तो ये गर्म खून! इतना ही बड़ा है की इसने वादा कर दिया की ये कभी ऐसी गलती नहीं करेगा|

मैं: I promise पिताजी...आज के बाद कभी शराब को हाथ नहीं लगाउँगा|

पिताजी मेरी बात से निश्चिन्त लगे और मेरे सर पे हाथ फेरा| डिनर के बाद पिताजी अपने कमरे में सोने चले गए और इधर चन्दर भैया ने भौजी से घर की चाभी ली और वो भी सोने चले गए| अब चूँकि मिअन दिनभर पलंग तोड़ चूका था तो नींद आ नहीं रही थी तो बैठक में माँ, मैं और भौजी बैठे थे| बच्चों को मैंने अपने कमरे में कहानी सुनाते हुए सुला दिया था| शुक्रवार का दिन था और रात दस बजे CID आता है| माँ उसकी बहुत बड़ी फैन है और अब तो ये आदत भौजी को भी लग चुकी थी| मैं भी वहां ऐसे ही बैठा था| CID खत्म हुआ तो माँ भी सोने चली गई और मुझे कह गई की;

माँ: बेटा...अगर देर तक टी.वी देखने का प्लान है तो .अपनी भौजी को घर छोड़ दिओ... अकेले मत जाने दिओ|

मैं: जी...

हम क्राइम पेट्रोल देख रहे थे| मैं दूसरी कुर्सी पे बैठा था और भौजी सोफे पे| उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, मैं जाके उनके पास बैठ गया|

भौजी: एक बात पूछूं? आप बुरा तो नहीं मानोगे?

मैं: पूछो?

भौजी: आपने वो पैसे कहाँ से भेजे?

मैं: मेरे अकाउंट से|

भौजी: और आपके पास पैसे कहाँ से आये?

मैं: studies पूरी होने के बाद मैंने कुछ डेढ़-दो साल जॉब की थी| घर तो पिताजी के पैसों से चल जाया करता था| मैं बस अपनी सैलरी से appliances खरीदा करता था| कभी Washing Machine तो कभी desktop ..... ये उसी की savings हैं|

भौजी आगे कुछ नहीं बोलीं बस गर्दन झुका के बैठ गईं|

मैं: Hey? बुरा लग रहा है?

भौजी कुछ नहीं बोलीं;

मैं: अच्छा ये बताओ की अगर यो आपका भाई है तो क्या मेरा कुछ नहीं? आपने ही तो उसे मेरा साल बनाया ना? अब दुनिया में ऐसा कौन सा जीजा है जिसे साले की मदद करने में दुःख होता हो? I mean जेठा लाल को छोड़ के! (तारक मेहता का उल्टा चश्मा)

मेरी बात सुन के भौजी मुस्कुरा दीं| चलो तारक मेहता का उल्टा चश्मा के जरिये ही सही ...वो हँसी तो!!!

मैं: चलो अब रात बहुत हो रही है...मैं आपको घर छोड़ देता हूँ|

मैंने भौजी को घर छोड़ा...उन्होंने Kiss मांगी पर उस वक़्त वो अंदर थीं और मैं बाहर...ऊपर से चन्दर भैया भी घर पर...तो मैंने "कल" कह दिया और Good Night कह के वापस आ गया| वापस आया तो आयसुह जाग रहा था और मेरे कमरे में पड़े खिलौनों से खेल रहा था|

मैं: आयुष...बेटा नींद नहीं आ रही?

आयुष: नहीं पापा...

मैं: बेटा कल स्कूल जाना है...जल्दी सोओगे नहीं तो सुबह जल्दी कैसे उठोगे?

आयुष: पापा...मुझे गेम खेलनी है|

मैं: ठीक है... पर शोर नहीं करना वरना नेहा जाग जाएगी|
Reply
02-20-2019, 06:23 PM,
#90
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
85

अब आगे ....

मैंने आयुष को गेम लगा के दी और उसे अपनी गोद में लेके बैठ गया| कीबोर्ड के बटन की चाप-चाप से नेहा भी उठ गई और बगल वाली कुर्सी पे आके बैठ गई| अब उसे भी गेम खेलने थी| दोनों लड़ने लगे की मैं खेलूंगा...मैं खेलूंगी|

मैं: बच्चों...आज रात एडजस्ट कर लो...कल मैं आप दोनों के लिए दो controllers ले आऊँगा|

खेर गेम खलते-खेलते बारह बज गए| अब देर से सोये थे तो बच्चों को उठने में देरी हो गई...हालाँकि मैं जल्दी उठ गया पर मन नहीं किया बच्चों को उठाने का| इतने में गुस्से में भौजी आ गईं और बड़बड़ाती हुई बच्चों को उठाने लगीं| "कितनी बार कहा की जल्दी सोया करो..ताकि जल्दी उठो.... पर ये दोनों दीं पर दीं बदमाश होते जा रहे हैं|"

मैं: Relax यार.... गलती मेरी है...रात को तीनों कंप्यूटर पे गेम जो खेल रहे थे| बारह बजे तो सोये हैं हम....

भौजी: हम्म्म्म...तो सजा आपको मिलेगी!

मैं: बताइये मालिक क्या सजा मुक़र्रर की है|

भौजी: आप ही इन्हें तैयार करोगे |

मैं: वो तो मैं रोज करता हूँ|

भौजी: और ...आज मेरे साथ शॉपिंग चलोगे!

मैं: done पर शाम को.... सुबह पिताजी के साथ जाना है|

भौजी: done !

फिर मैंने बच्चों को एक बार प्यार से पुकारा और दोनों उठ के बैठ गए और मेरे गले लग गए|

भौजी: अरे वाह! मैं इतनी देर से गुस्से में उबाल रही थी ...तब तो नहीं उठे! और पापा की एक आवाज में ही उठ गए?

मैं: आपसे ज्यादा प्यार करता हूँ इनहीं...तो मेरी हर बात मानते हैं|

भौजी मुस्कुराईं और चलीं गईं| बच्चों को तैयार कर...वैन में बिठा के घर लौटा...फ्रेश हो के...नाश्ता कर के पिताजी के साथ निकलने वाला था की भौजी ने आँख से इशारा किया और मुझे मेरे ही कमरे में आने को कहा| मैंने पिताजी से कहा की मैं पर्स भूल आया हूँ और लेने के लिए कमरे में आगया|

भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?

मैं: नहीं तो/ (मैंने अपना पर्स..रुम्माल...फोन सब चेक करते हुए कहा|)

भौजी: कल रात से आपकी एक Kiss due है?

मैं: ओह! हाँ याद आया...पर अभी नहीं...शाम को ठीक है?

भौजी: ठीक है!

पर भौजी कहाँ मानने वालीं थीं| उन्होंने फिर भी अचनक से मेरे होंठों को चूमा और बाहर चलीं गईं|

मैं: बदमाश.... अगर करना ही था तो ढंग से करते!

आज मैं बहुत जोश में था... साइट पे वर्कर्स भी कह रहे थे की क्या बात है भैया आज बड़े मूड में हो? अब मैं उन्हें क्या कहता की मैं मूड में इसलिए हूँ क्योंकि आज दिन की शुरुआत बड़ी मीठी हुई है| शाम होने से पहले मैंने पिताजी को फोन कर के कह दिया की मैं घर जा रहा हूँ... माँ ने बुलाया है| फिर मैं वहां से निकला और सीधा दिषु के ऑफिस पहुँच गया| उससे उसकी नैनो (Tata Nano) की चाभी ली और घर के बाहर पहुँच गया| वहां से मैंने भौजी को फोन किया और उनहीं और बच्चों को बाहर बुलाया| फिर उन्हें लेके मैं सीधा Saket Select City Mall की तरफ गाडी भगाई! वहाँ पहुँच के बच्चों का मन था मूवी देखने का...पर शो पहले ही शुरू हो चूका था| तो बच्चों का मुँह बन गया|

मैं: Awwww .... देखो कल मूवी पक्का! आज के लिए..... अम्म्म्म.... गेम कंट्रोलर्स ले लेते हैं!

बच्चे खुश हो गए.... फिर भौजी जिद्द करने लगीं की उन्हें जीन्स खरीदनी है| पर मैंने टाल दिया....

मैं: यार...आप जीन्स में अच्छे नहीं लगोगे....चलो आपके लिए साडी लेते हैं|

भौजी: OK ..पर पसंद आप करोगे?

मैं: ठीक है!

मैंने अपनी पसंद की उन्हें एक सीफोन की साडी दिलाई| अब उन्होंने जिद्द पकड़ ली की मेरे लिए शर्ट लेंगी...अब मेरे पास पैसे थे नहीं...मेरा Debit Card घर रह गया था| मैंने जान के बहाना मारा की कल ले लेंगे| फिर वहाँ से बच्चों को कॉर्न दिलाये और घर आ गया| घर आके दिषु से कह दिया की कल का दिन गाडी मेरे पास रहेगी| वो भी मान गया.... मैंने अपना कार्ड उठाया और वापस mall आ गया| वहाँ से मैंने भौजी के लिए जीन्स ली और एक टॉप भी| मैंने मन ही मन imagine किया की वो इसमें कैसी दिखेंगी| मैं चुप-चाप घर आया और ड्रेसेस अपने कमरे में छुपा दीं| मैं वापस डाइनिंग टेबल पे आकर बैठ गया और अखबार देखने लगा| फिर मैंने माँ से चाय मांगी;

मैं: माँ..एक कप चाय मिलेगी?

माँ: हाँ...बहु तू भी पियेगी?

भौजी: माँ..आप बैठो...मैं बनाती हूँ| सारे पी लेते हैं|

माँ: तो कहाँ गई थी सवारी?

मैं: माँ...बच्चों को गेम खलने के लिए कंट्रोलर्स दिलाने गया था| सोचा इन्हें भी घुमा दूँ थोड़ा...कल को कुछ सामान लाना हो और मैं ना हूँ तो ये अकेले जा तो सकें|

माँ: हाँ ..अच्छा किया| (नेहा और आयुष से) बच्चों...ज्यादा गेम मत खेल करो...चस्मा लग जायेगा|

मैं: माँ...अब कोई चिंता नहीं...ये कंट्रोलर्स हैं ना... दरअसल कल रात को दोनों को गेम खेलनी थी...और दोनों लड़ रहे थे की पहले मैं..पहले मैं ..

भौजी: हाँ माँ...देखो ना रात-रात भर तीनों गेम खेलते हैं?

माँ: बहु....तू चिंता मत कर...माना की ये लड़का बहुत शरारती है पर अपनी जिम्मेदारियाँ समझता है... एक आध बार चलता है|

फिर मैं डाइनिंग टेबल से उठा और भौजी को आँख मारते हुए कमरे में आने का इशारा किया| दो मिनट बाद भौजी चाय लेके कमरे में आ गईं|

मैं: बैठो... और आँखें बंद करो|

भौजी: एक और सरप्राइज? लो कर ली आँखें बंद!

फिर मैंने भौजी को जीन्स और टॉप निकाल के दी| जब भौजी ने आँखें खोल के ड्रेस को देखा तो वो हैरान होते हुए बोलीं;

भौजी: ये...पर आपने तो कहा था की ये मुझ पे अच्छी नहीं लगेगी|

मैं: वो इसलिए क्योंकि मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था| और वैसे भी मैं अपना Debit Card घर भूल गया था तो!

भौजी: O तो आप पहले घर आये हमें छोड़ा...Debit Card लिया और फिर दुबारा गए| हे भगवान!!! तो इसीलिए आपने मुझे शर्ट नहीं लेने दी?

मैं: हाँ! और सुन लो Don’t you dare to surpirise me with any shirt?

भौजी बड़ी हलकी आवाज में बुद्बुदाईन;

भौजी: मेरे पास पैसे ही कहाँ?

इतना कह के उन्होंने नजरें चुरा लीं| उन्हें लगा की मैंने सुना नहीं| पर मुझे एहसास हुआ की भैया उन्हें पैसे नहीं देते...क्यों नहीं देते ये नहीं जानता पर मुझे बहुत बुरा लगा| दिल कचोट उठा और मैंने फटाफट पर्स निकला और उसमें से अपना Debit Cad निकला और उन्हें देते हुए कहा;

मैं: ये लो...Keep it !

भौजी: पर किस लिए?

मैं: आज के बाद कभी भी....कभी भी मत कहना की आपके पास पैसे नहीं हैं| और कल आप ही मुझे एक अच्छी सी शर्ट दिलाओगे!

भौजी; पर मैं ये नहीं ले सकती? ये आपके पैसे हैं!

मैं: Hey I’m not asking…I’m ordering you. Keep it! और ये मेरा और तुम्हारा कब से हो गया| दिल भी तो मेरा था...पर फिर क्यों ले लिया आपने?

भौजी ये सुनके थोड़ा मुस्कुराईं और शर्मा गईं|

भौजी: पर?

मैं: पर-वर कुछ नहीं!

भौजी: मैं आपसे माँग लूंगी...जब जर्रूरत होगी!

मैं: और मैं अगर घर पे ना हुआ तो? और what about surprises?

भौजी: पर मुझे ये इस्तेमाल करना कहाँ आता है?

मैं: कल मैं सीखा दूंगा..तब तक इसे आप ही सम्भालो|

भौजी: अगर आपको जर्रूरत होगी तो?

मैं: मेरे पास checkbook है| और आपको मेरी कसम ये सवाल-जवाब बंद कोर और इसे संभाल के रख लो|

मैंने वो कार्ड भौजी की मुट्ठी में थमा दिया और उन्हें गले लगा लिया|

मैं: अच्छा सुनो... कल आप यही पहनना|

भौजी: hwwwwwwwww !!!

मैं: क्या hwwwww !!! सुनो मेरी बात...कल ये ड्रेस अपने साथ ले लेना और हम मॉल चलेंगे| वहाँ बाथरूम में जाके चेंज कर लेना| फिर वहाँ से मैं आपको मल्टीप्लेक्स ले चलूँगा|

भौजी: और बच्चे?

मैं: वो कुछ नहीं कहेंगे|

भौजी: न..बाबा ना....मुझे शर्म आएगी!!!

मैं: Come on यार!

भौजी: ठीक है!

वो रात मैंने गिन-गिन के काटी! अगली सुबह मैं जल्दी से तैयार हुआ और पिताजी के निकलने से पहले ही साइट पे चा गया| एक से दूसरी साइट के बीच juggle करता रहा और पताजी बड़े खुश नजर आये| फिर जब मैंने उन्हें कहा की मुझे आधे दिन की छुट्टी चाहिए तो उन्होंने मना नहीं किया| यही तो मेरा प्लान था...की पहले पिताजी को खुश करो और बाद में आधे दिन की छुट्टी| रास्ते में ही मैंने मोबाइल से टिकट बुक कीं और फटाफट घर पहुँचा| अब माँ से मैंने बात कुछ इस प्रकार की;

मैं; माँ... बच्चों को मैंने प्रॉमिस किया था की आज उन्हें फिल्म दिखाऊँगा| तो मैं ले जाऊँ उन्हें?

माँ: आज बड़ा पूछ रहा है मुझसे? ले जा...मैंने कब मना किया है|

मैं; ठीक है...

अब मैं उम्मीद करने लगा की माँ कहेंगी की अपनी भौजी को भी ले जा, पर उन्होंने नहीं कहा|| भौजी भी वहीँ किचन काउंटर पे सब्जियां काट रहीं थीं| अभी बच्चों को आने में घंटा भर बचा हुआ था| अब कैसे न कैसे कर के मुझे माँ को मनाना था की भौजी महि मेरे साथ चलें|पर बात कैसे शुरू करूँ?

पहले की बात और थी...तब मेरी उम्र कम थी...और माँ मना नहीं करती....पर अब मैं बड़ा हो चूका था...दाढ़ी-मुछ उग चुकी थी|

पर शायद ऊपर वाले को मेरी हालत पे तरस आ गया और उसने दूसरी बिल्डिंग में रहने वाली कमला आंटी को हमारे घर भेज दिया| वैसे वो भी दूसरी मंजिल पे रहती थीं!!! आंटी ने आके माँ से कहा की लंच के बाद उनके एक common friend के यहाँ कोई साडी वाला आया है| तो वो माँ को और भौजी को लेने आ गईं| माँ ने कहा की वो लंच के बाद सीधा आजाएंगी| अब मैं भौजी को इससे कैसे निकालूँ मैं यही सोच रहा था की तभी मैंने उनहीं मूक इशारा किया और उन्होंने माँ से बहाना मारा;

भौजी: माँ.... मैं भी पिक्चर देखने जाऊँ?

माँ: बच्चों के साथ? ठीक है...पर तुझे साड़ियाँ नहीं खरीदनी?

मैं: अरे भैया...कहाँ आपकी पुराने डिज़ाइन की साड़ियाँ...सारी तो aunty होंगी वहाँ...और इनकी पसंद तो नए जमाने की है| इन्हें कहाँ भाएँगी पुरानी साड़ियाँ!!!

माँ: अच्छा बाबा...ले जा...

भौजी: माँ ऐसा नहीं है...ये अपनी बात कर रहे हैं| मैं आपके साथ ही जाऊँगी!

मैंने भौजी को आँख दिखाई की आप ये क्या कर रहे हो?

माँ: नहीं बहु..तेरा मन पिक्चर देखने का है तो जा.... साडी फिर कभी ले लेंगे|

मैं: हाँ...माँ ठीक तो कह रही है|

भौजी: नहीं...माँ...आज तो मैं साडी ही खरीदुंगी|

अब मेरे मूड की लग गई थी| अब मरता क्या ना करता...बच्चों को प्रॉमिस जो किया था| बच्चे आये और उन्हें फटाफट तैयार करके मूवी दिखाने ले गया| शाम को आठ बजे लौटे...बच्चे बहुत खुश थे और गाडी में ऊधम मचा रखा था दोनों ने! सबसे ज्यादा टेस्टी तो उन्हें शवरमा लगा जो हमने अल-बेक से खाया था|जब हम पहुंचे तो सब घर में मौजूद थे सिवाय चन्दर भैया के|

पिताजी: अरे वाह भई...घुमी करके आ रहे हो सब!

आयुष: दादा जी..हम ने मूवी देखि! उसमें न ...वो सीन था जब....

इस तरह से आयसुह ने फिम की कहानी सुनाई| मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा मेरी गोद में बैठ थी और आयुष को बार-बार टोक कर कहानी ढीक कर रही थी| इधर भौजी भी बहुत खुश थीं| ,अं समझ गया था की भौजी ने मेरे साथ जाने से मना क्यों किया था...और मैंने उस बात का कुछ समय तक तो बुरा लगा पर फिर ...छोड़ दिया|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे पास आईं;

भौजी: Sorry !!! (कान पकड़ते हुए)

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

भौजी: अच्छा बाबा...कल मूवी चलेंगे?

मैं: रोज-रोज...माँ को क्या बोलूंगा की आज आपको मूवी दिखाने ले जा रहा हूँ?

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी: आज रात को!

मैं: मजाक मत करो!

भौजी सच...आपके भैया देर से आएंगे ... That means we’ve plenty of time togeteher!

मैं: Done पर इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

भौजी: नहीं बाबा..आज पक्का!

चलो भई आज रात का सीन तो पक्का था| मैंने दिषु को फोन किया और उसे प्लान समझा दिया| मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को अपने कमरे में सुला दिया| आज की धमाचौकड़ी के बाद वो थक जो गए थे| फिर दस बजे उसने मुझे फोन किया...उस समय मैं माँ के साथ बैठा था और टी.वी. देख रहा था|

मैं: हेल्लो...

दिषु: भाई...तेरी मदद चाहिए!

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है? (ये सुन के माँ भी हैरान हो गई|)

दिषु: यार...मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है...बाइक disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है| तू जल्दी से ट्रामा सेंटर पहुँच!

मैं: अभी आया!

बहाना सॉलिड था! और माँ ने बिलकुल भी मना नहीं किया| मैंने गाडी की चाभी ली और निकला गया| गाडी को मैंने कुछ दूरी पे अंडरग्राउंड पार्किंग में खड़ा किया और मैं भागता हुआ भौजी के घर पे आया और दस्तक दी|

जब उन्होंने दरवाजा खोला तो मैं उन्हें देखता ही रह गया! 

उनका टॉप लाइट पिंक कलर का था और Jeans स्लिम फिट थी| ऊपर से उन्होंने हाथों पे लाल चूड़ियाँ पहनी थी जैसे की नई-नवेली दुल्हनें पहनती हैं|

मैं: WOW ! You’re looking Gorgeous !!!

भौजी: Thanks ! पसंद आपकी जो है!! अंदर तो आओ!!!

मैं अंदर आके कुर्सी पे बैठ गया|

भौजी: यहाँ क्यों बैठ गए...अंदर चलो|

अब मुझे थोड़ी घबराहट होने लगी .... खेर मैं अंदर तो चला गया| उनके बैडरूम में आज कुछ अलग महक थी.... मीठी-मीठी सी.... पर मुझ कहने से पहले ही वो बोल पड़ी|

भौजी: आपको कैसे पता की मेरे ऊपर ये इतनी मस्त लगेगी?

मैं: बस आँखें बंद कर के आपको Imagine किया!!! वैसे ये बताओ की आज बात क्या है? कमरा महक रहा है?

भौजी: आपके लिए ही है ये सब!

जिस तरह से उन्होंने ये बोला मेरे पसीने छूट गए| 

मैं: मेरे लिए? समझा नहीं!

भौजी: ओफ्फो ...आज की रात बड़े सालों बाद आई है|

मैं: (उनसे नजरें चुराते हुए इधर-उधर देखने लगा) पर ...

भौजी: (मेरी हालत समझते हुए) आप शर्मा क्यों रहे हो? ये पहली बार तो नहीं?

मैं: नहीं है...पर ....अब हालात बदल चुके हैं! What if you got pregnant?

भौजी: तो क्या हुआ?

मैं: I mean I don’t want you to have another baby!

भौजी: पर क्यों? उसमें हर्ज़ ही क्या है?

मैं: यार उस वक़्त हालात और थे...हम जानते थे की हम दूर हो जायेंगे...आपको जिन्दा रहने के लिए एक सहारे की जर्रूरत थी...जो मैं दूर रह के नहीं दे सकता था... इसलिए आयुष... (मैंने बात अधूरी छोड़ दी)

भौजी: तो अब क्या हुआ? अब तो हम साथ हैं!

मैं: Exactly ...अब हम साथ हैं...और आपको अब कोई सहारा नहीं चाहिए|

भौजी मैंने कब कहा की मुझे कोई सहारा चाहिए.... ये सात साल मैंने किस तरह काटे हैं..मैं जानती हूँ! अपनी एक बेवकूफी...जिसकी सजा...मैंने दोनों को दी| पर यकीन मानो ...मैं अपने बच्चों की कसम, खाती हूँ...मैंने ना आपके भैया और न ही किसी और को खुद को छूने दिया!

मैं: Hey ... Hey .... आप ये क्या कह रहे हो? मैं आप पर शक नहीं कर रहा .... मुझे आप पर अपने से ज्यादा भरोसा है| I don't need any proof for that! मैं ये कह रहा हूँ की अगले 2 - 3 सालों में मेरी शादी हो जाएगी, तब? आप इस रिश्ते को क्यों आगे बढ़ा रहे हो? मैं नहीं चाहता की आपकी वो हालत हो जो मेरी हुई थी! मैं रिश्ता खत्म करने को नहीं कह रहा...पर अगर हम फिर से Physical हो गए तो...मैं खुद को नहीं रोक पाउँगा ....और फिर से वो सब.... मैं नहीं दोहराना चाहता|

भौजी: You once said, की Live in the past .... Forget the future !

मैं: हाँ..कहा था...पर उस वक़्त आप प्रेग्नेंट थे... ऐसे में सुनीता का रिश्ता और वो सब.... आपके लिए कितना कहस्तदाई था ये मैं जानता था| आपको खुश रखना मेरी जिम्मेदारी थी... और मैं नहीं चाहता था की आपकी सेहत खराब हो? इसलिए उस समय मेरा वो कथन बिलकुल सही था...पर अभी नहीं!

भौजी: तो अब आपको मेरी फीलिंग्स की कोई कदर नहीं|

मैं: नहीं यार...ऐसा नहीं है... मैं आपसे अब भी उतना ही प्यार करता हूँ....पर ....oh God कैसे समझाऊं आपको?

भौजी: ठीक है...You don't want me to get pregnant right ?

मैं: हाँ

भौजी: Okay we'll use protection.

मैं: पर अभी मेरे पास कंडोम नहीं है?

भौजी: तो किसने कहा की आप ही प्रोटेक्शन use कर सकते हो| मैं कल I-pill ले लूंगी!

मैं: यार ये सही नहीं है!!!

भौजी: मैं आपको बता नहीं सकती की मैं कितनी प्यासी हूँ आपके लिए...जब से आई हूँ..आपने कभी भी मेरे साथ quality time spend नहीं किया| जैसे की आप किया करते थे|

मैं: जानता हूँ...उसके लिए मैं आपका दोषी हूँ! पर अब मैं बड़ा हो चूका हूँ...और अब ये चीजें सब के सामने नहीं चल सकती| सब आप पर उँगलियाँ उठाएंगे| और वो मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं होगा|

भौजी: एक बार...मेरे लिए!!!

उन्होंने इतने प्यार से बोला की मेरा मन नहीं किया की मैं उनका दिल तोड़ूँ|

मैंने उन्हें अपने गले लगा लिया और उन्हें बेतहाशा चूमने लगा| उन्होंने भी मेरा पूरा साथ दिया, उनकी बाहें मेरी पीठ पे रास्ता बनाते हुए ऊपर-नीचे घूम रहीं थीं| मैंने उन्हें गोद में उठाया और पलंग पे लेटा दिया| मैं उनके ऊपर आगया और उन्होंने चूमने लगा| उनका बयां कन्धा तो पहले से ही बहार निकला हुआ था| मैंने उस पे अपने होंठ रखे तो भौजी की सिसकारी छूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स.....जानू" उन्होंने मेरा मुंह उठा के अपने होठों पे रख दिया और मेरे होठों को चूसने लगीं| मैंने भौजी के टॉप के अंदर हाथ डाला तो पाया की उन्होंने ब्रा नहीं पहनी है| मैं उनके स्तनों को मींजने लगा और भौजी मेरे होठों को चूस रहीं थीं| फिर मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में प्रवेश कराई और वो मेरी जीभ को अपने दाँतों से दबाने लगी| अगले दस मिनट तक हम एक दूसरे को smooch करते रहे| सालों की दबी हुई प्यास अब उभर के बहार आने लगी थी| दोनों की धड़कनें बहत तेज हो चलीं थीं| जब हमारा smooch टूटा तब हम दोनों ने एक पल के लिए एक दूसरे को देखा| भौजी के चेहरे पे उनकी एक लट आगई थी| मैंने अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से उनकी लट हटाई और उनके होठों को एक बार और चूम लिया|

भौजी: क्या सोच रहे हो?

मैं: कुछ नहीं... आपको इस तरह अपनी बाहों में लेटा देख.... तो ....

भौजी: तो क्या?

मैं: तो ये की मुझे आप पर बहुत प्यार आ रहा है!

भौजी: तो इन्तेजार किस का है?

मैंने उनका टॉप निकाल दिया और उनके स्तनों को निहारने लगा| मैंने अपने हाथ को धीरे-धीरे उनकी छाती पे फिराने लगा...उनकी घुंडियों के इर्द-गिर्द अपनी उँगलियों को चलते हुए उनके निप्पल को दबा देता और वो कसमसा कर रह जातीं| फिर झुक के मैंने उनके बाएं निप्पल को मुंह में लिया और चूसने लगा| भौजी का हाथ अब मेरे सर पे हा और वो उसे दबाने लगीं...बालों में उँगलियाँ फिराने लगीं| मैं रह-रह के उनके निप्पल को दाँत से काट लेता और वो बस "आह!" कर के कराह उठती| मैं महसूस करने लगा था की मेरे अंदर एक आग सी भड़क उधि है...और हर पल वो आग भड़कती जा रही है| उन्हें तकलीफ देने में मुझ मज़ा आने अलग था! मैं....पहले तो ऐसा नहीं था!!! मेरा एक हाथ उनकी नाभि से होता हुआ सीधा उनकी जीन्स के अंदर घुस गया| उँगलियों ने उनकी पेंटी के अंदर घुसने का रास्ता खुद बा खुद ढूंढ लिया था| मैं ऊपर उनके बाएं स्तन को चूस रहा था और उधर दूसरी ओर मेरी उँगलियाँ भौजी की योनि में चहलकर्मी करने लगी थीं| मैंने उनके बाएं स्तन को छोड़ा और नीचे खिसक के उनके जीनस का बटन खोलने लगा|

भौजी: (आने दायें स्तन की ओर इशारा करते हुए) ये वाला रह गया!

मैं: हम्म्म्म...Patience My Dear .....उसकी बारी आएगी.....

जैसे ही उनकी जीन्स का बटन खुला और उनकी पेंटी का दीदार हुआ...अंदर की आग और भड़कने लगी| भौज ने अपनी कमर उठाई और मैंने उनकी जीन्स खींच के नीचे कर दी| उनकी जीन्स घुटनों तक आ गई थी...फिर उनकी पेंटी भी नीचे खिसका दी| अब मैंने उनकी योनि को अपनी जीभ छुआ...और भौजी सिहर उठीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स"| आज बरसों बाद उनकी योनि को छूने का एहसास.....कमाल था! मैंने उनकी योनि को चाटना शुरु किया और भौजी बुरी तरह कसमसाने लगीं| वो ज्यादा देर टिक ना पाईं और दो मिनट में ही स्खलित हो गईं| मैंने उनका योनिरस पी लिया.....अब तो मेरा बुरा हाल था.... ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मुझे aphrodisiac दे दिया हो| शरीर में चींटीयाँ काटने लगीं थीं.... लंड इतना अकड़ चूका था की पेंट फाड़ के बहार आ जाये| अंदर सोया हुआ जानवर जागने लगा| उधर भौजी अपने स्खलन से अभी उबरी भी नहीं थीं ... मैं अपने घुटनों पे बैठ गया और अपने दिमाग और दिल पे काबू करने लगा| दिमाग ने तो अब काम करना बंद कर दिया था| सामने भौजी आधी नग्न अवस्था में लेटीं थीं| मन कह रहा था की सम्भोग कर .... पर कुछ तो था जो मुझे बांधे हुए था| मैं डरने लगा था... अचानक दिमाग को किसी ने करंट का झटका मारा हो और अचानक दिमाग ने चलना शुरू कर दिया| मुझे एहसास हुआ की ये मैं क्या करने जा रहा हूँ| अगर भौजी प्रेग्नेंट हो गईं तो क्या होगा? बवाल...बवाल...और सिर्फ बवाल! अच्छी खासी जिंदगी तबाह हो जाएगी...मेरी..उनकी...और बच्चों की! खुद को उस समय रोक पाना ऐसा था जैसे की Suicide करना! आप मारना नहीं चाहते पर हालत आपको मजबूर कर देते हैं..उसी तरह मैं खुद को रोकना चाहता था पर शरीर साथ नहीं दे रहा था| अब दिमाग और जिस्म में जंग छिड़ गई थी| शरीर लोभी हो गया था और दिमाग अब उनके हित की सोचने लगा था| मैं छिटक के उनसे अलग हो गया! और अपने कपडे ठीक करने लगा....तभी माँ का फोन आ गया|

मैं: हेल्लो माँ ...

माँ: बेटा क्या हुआ? वहां सब ठीक तो है ना?

मैं: जी...मैं अभी ड्राइव कर रहा हूँ....दिषु के भाई को पलास्टर चढ़या है| दस मिनट में घर पहुँच जाऊँगा|

माँ: ठीक है बेटा... आराम से गाडी चलाइओ|

मैं फोन कटा और भौजी की तरफ देखा ...वो हैरानी से मेरी तरफ देख रहीं थीं|

भौजी: आप जा रहे हो?

मैं: हाँ

भौजी: पर क्यों? अभी तो.....

मैं: sorry .... I can't !!! प्लीज !!!
मुझे उन्हें इस तरह छोड़ के जाने का दिल नहीं कर रहा था....बहत बुरा लग रहा था! पर अगर मैं वहां रुकता तो शायद वो हो जाता जिसका मुझे उम्र-भर पछतावा रहता| मैं घर पहुंचा और कमरे में जाके देखा तो बच्चे सो रहे थे| शरीर में अब भी आग लगी थी...मन तो किया की मुट्ठ मार के शांत हो जाऊँ पर मन स्थिर नहीं था| मैंने सोचा की ठन्डे पानी से नहा लेता हूँ| आखिर नहाने के बात थोड़ा फ्रेश महसूस करने लगा और अपने बिस्तर में घुस गया| नींद तो सारी रात नहीं आई...बस बच्चों को देखता रहा| सुबह उठा...और भौजी से नजरे नहीं मिला पा रहा था| नाश्ता करके काम पे निकल गया|
शाम को जब मैं लौटा तो पिताजी, मैं और चन्दर भैया एक साथ बैठे चाय पी रहे थे और अगले प्रोजेक्ट के बारे में discuss कर रहे थे| मैंने सब की नजर बचा के भौजी को देखा| मेरी नजर जैसे ही उन पर पड़ी, उन्होंने इशारे से मुझे अलग बुलाया| मैं नहीं उठा...और बातों में लगा रहा| मैं जानता था की उन्हें क्या बात करनी है| तभी कुछ हिसाब-किताब के लिए पिताजी ने मुझे और चन्दर भैया को अपने कमरे में बुलाया| चन्दर भैया तो एकदम से उठ के उनके पीछे चले गए| मैं चाय खत्म कर के जैसे ही उठा, भौजी तेजी से मेरी तरफ आइन, मेरे हाथ से चाय का कप लिया और टेबल पे रखा और मेरा हाथ पकड़ के खींच के मेरे कमरे में ले आईं|

भौजी: अब बताओ की क्यों मुझसे नजरें चुरा रहे हो? और कल रात क्या हुआ था आपको?

मैं: अभी जाने दो...पिताजी बुला रहे हैं| बाद में बात करते हैं!

भौजी: ठीक है....

मैं पिताजी के पास आया| उनसे बात हुई तो पता चला की हमें एक बिलकुल नया प्रोजेक्ट मिला है| ये first time है की हमें Construction का काम मिला है| आज तक हम केवल रेनोवेशन का ही काम करते थे| पिताजी ने काम की जिम्मेदारियां तीनों में बाँट दीं| चन्दर भैया को plumbing का ठेका दिया और उसमें से जो भी Profit होगा वो उनका| इसी तरह मुझे carpentry और electrician का काम सौंपा| उसका पूरा प्रॉफिट मेरा| और पिताजी खुद construction का काम संभालेंगे| उसका प्रॉफिट उनका! ये पहलीबार था की पिताजी ने इस तरह सोचा हो! काम कल से शुरू होना था और मुझे एडवांस पेमेंट लेने NOIDA जाना था| अब उनसे बात कर के मैं अपने कमरे में लौटा तो देखा भौजी वहीँ कुर्सी पे बैठीं हैं| बच्चे पलंग पे बैठे अपना होमवर्क कर रहे थे|
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