non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:18 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
देखते ही देखते कुछ ही देर में सबको अलग अलग पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध दिया गया। रस्सियों में जकड़ी गौरी बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। उसकी नज़र जैसे ही रस्सियों में बॅधे अपने बेटे विराज पर पड़ी वैसे ही वह बुरी तरह तड़प कर रोने लगी थी। विराज के साथ साथ रितू नीलम सोनम आदित्य आदि को रस्सियों में बॅधे थे, किन्तु इस वक्त ये सब अचेत अवस्था में थे।

"तो आख़िर तुम सब लोग यहाॅ पर मरने के लिए आ ही गए।" अजय सिंह उन सबके बीच ज़मीन पर चहल क़दमी करते हुए कठोर भाव से बोला___"वैसे क्या समझते थे तुम सब लोग कि मेरे क़हर से बचे रहोगे? हाहाहाहा ऐसा कभी नहीं हो सकता। जब तक मेरे द्वारा तुम सबको सज़ा नहीं मिल जाती तब तक तुम लोग किसी भी चीज़ से मुक्त नहीं हो सकते थे।"

"मेरे बेटे को कुछ मत करना।" सहसा गौरी ने रोते हुए कहा____"मैं आपके सामने हाॅथ जोड़ती हूॅ। भगवान के लिए उसे छोंड़ दो। उसके किये की सज़ा मुझे दे लो मगर मेरे बेटे को कुछ मत करना।"

"हाय! मेरी बुलबुल ये क्या हालत बना ली है तुमने?" अजय सिंह गौरी के क़रीब आते हुए चहका___"यकीन मानो तुम्हारी ये हालत देख कर मेरे दिल को बहुत दुख हो रहा है। अरे तुम तो मेरी जाने बहार हो डियर। कभी मेरे दिल के बारे में भी सोचा होता तो समझ में आता तुम्हें कि कोई किस क़दर चाहता है तुम्हें? मगर तुमने तो कभी मेरे बारे में सोचना तक गवारा न किया। आख़िर क्या कमी थी मुझमें? तुम्हारे उस अनपढ़ गवार पति से तो लाख गुना अच्छा था मैं। उससे कहीं ज्यादा अच्छी हैंसियत भी है मेरी। वो तो खेतों पर दिन रात काम करने वाला महज एक मजदूर था जबकि मैं तो यहाॅ का सम्पन्न राजा था। तुमको दुनियाॅ हर ऐशो आराम व सुख देता। मगर तुमको तो उस मजदूर से ही प्रेम था।"

"कोई भी इंसान धन दौलत से राजा नहीं बन जाता नीच इंसान।" गौरी का लहजा एकाएक कठोर हो उठा___"राजा बनने के लिए दूसरों के प्रति अपनी खुशियों का तथा अपने हर सुखों का त्याग करना पड़ता है। तुझमें तो सिर्फ एक ही खूबी है बेग़ैरत इंसान और वो है हर रिश्तों की मान मर्यादा का हनन करना। तेरे जैसे कुकर्मी के लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा ही हो सकती है।"

"उफ्फ।" अजय सिंह ने बुरा सा मुह बनाया___"मेरे प्रति इतनी घटिया बात कैसे सोच सकती हो तुम? अरे तुम कहती तो मैं तुम्हारे लिए खुद को पूरी तरह बदल भी देता मेरी जान। मैं वो सब बनने को तैयार हो जाता जो तुम मुझे बनने को कहती। मगर तुमने तो मुझसे इस बारे में कभी कुछ कहा ही नहीं। इसमे भला मेरा क्या कसूर है गौरी? मैं तो बस अपने दिल के हाॅथों मजबूर था और वही करता चला गया जो मेरा दिल कहता रहा था। मगर कोई बात नहीं डियर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम कहोगी तो मैं अब भी वैसा ही बन जाऊॅगा जैसा तुम कहोगी। ये समझ लो कि तुम्हारी स्वीकृति से सब कुछ एक पल में बदल जाएगा। कहने का मतलब ये कि तुम अगर अब भी मेरी हो जाओ तो ये सब लोग मेरे क़हर से बच जाएॅगे।"

"तू अपने और अपने इस सपोले के बारे में सोच हरामज़ादे।" होश में आते ही मेरी आवाज़ वातावरण में गूॅज उठी___"तू अगर ये समझता है कि तूने हम सबको रस्सियों में इस तरह बाॅध कर बहुत बड़ा तीर मार लिया है तो इस खुशफहमी में मत रह तू। दुनियाॅ की कोई भी ताकत तुझको मेरे हाॅथों मरने से बचा नहीं सकती।"

"तू अब कुछ नहीं कर सकता भतीजे।" अजय सिंह ने विराज की तरफ देखते हुए कहा___"तेरा सारा उछलना कूदना समाप्त हो चुका है। अब तक तुझे जो कुछ भी करना था वो सब कर लिया है तूने। अब तो मेरी बारी है और यकीन मान मैं अपनी बारी में अब कोई कसर नहीं छोंड़ूॅगा कुछ भी करने में। ख़ैर, अभी तो तुझे ये भी पता नहीं है कि मेरे एक ही झटके में तू और ये सब मेरी कैद में कैसे आ गए? तुझे पूछना चाहिए भतीजे कि मुझे तेरे ठिकाने का कैसे पता चला? और फिर कैसे तुम सब यहाॅ पहुॅच गए?"

अजय सिंह की इस बात पर सन्नाटा सा छा गया। ये सच था कि विराज एण्ड पार्टी को होश आते ही सबसे पहले उनके मन में यही सवाल उभरा था कि वो अचानक यहाॅ कैसे आ पहुॅचे हैं? एक के बाद एक सब कोई होश में आ चुका था। खुद को इस तरह रस्सियों में बॅधे देख वो सब बुरी तरह चौंके थे तथा बुरी तरह छटपटाने लगे थे। किन्तु जब यहाॅ के दृष्य व माहौल पर सबकी नज़र पड़ी तो जैसे सबके पैरों तले से ज़मीन ही गायब हो गई थी। विराज और रितू ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि मुम्बई से बाॅकी सब लोग भी यहाॅ आ चुके हैं और वो सब भी उनकी तरह रस्सियों से बॅधे हुए हैं।

"हाहाहाहाहा क्यों भतीजे ज़बान को लकवा क्यों मार गया तुम्हारे?" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसा___"पूछ न कि ये सब कैसे हुआ? खुद को बड़ा तीसमारखां समझ रहा था न तू? अब पूछ कि ये सब कैसे हो गया? एक ही झटके में तू भी यहाॅ आ गया और मुम्बई में रह रहे तेरे ये सब चाहने वाले भी यहाॅ आ गए। होश में आने के बाद तुझे सबसे पहले यही पूछना चाहिए था।"

"तुम बताने के लिए इतना ही मरे जा रहे हो तो खुद ही बता दो।" आदित्य ने कहा____"वैसे मुझे पूरा यकीन है कि इसमें भी तेरे जैसे कूढ़मगज का अपना कोई दखल नहीं होगा।"

"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता बेटा।" अजय सिंह ने कहा___"जंग में सेना का सारा ही योगदान होता है किन्तु जंग की जीत का सारा श्रेय राजा को ही जाता है। ख़ैर, अगर मेरा भतीजा ये जान जाए कि ये सब कैसे हुआ है तो यकीनन उसे दिल का दौरा पड़ जाएगा।"

"क्या मतलब??" मैं चकरा सा गया।
"छोटे को रस्सियों से मुक्त कर दो सहाय।" अजय सिंह ने अभिजीत सहाय की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे लगता है कि ये खुद ही बताए तो ज्यादा बेहतर होगा।"

अजय सिंह की इस बात से हर कोई भौचक्का रह गया। सचमुच सबके पैरों के तले से ज़मीन खिसक गई किन्तु अभी भी बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई थी। उधर अजय सिंह के कहने पर अभिजीत सहाय ने एक आदमी को इशारा किया तो उसने जा कर अभय सिंह को रस्सियों से मुक्त कर दिया। रस्सी से छूटते ही अभय सिंह मुस्कुराया और फिर अपने कपड़ों को झाड़ता हुआ अजय सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया।

अभय सिंह के होठों पर इस वक्त बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी। मैं ही क्या हम सब भी उसे इस तरह देख कर चकित थे। जबकि अभय सिंह कुछ देर हम सबकी तरफ उसी रहस्यमय मुस्कान के साथ देखता रहा।

"माफ़ करना राज।" अभय सिंह ने मेरी तरफ देखने के बाद माॅ की तरफ देखा___"आप भी मुझे माफ़ कीजिएगा भाभी जी। मगर मैं क्या करता? इस दुनियाॅ में हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही तो सोचता है।"

"अ..भय तुम।" गौरी के होठ बुरी तरह थरथरा कर रह गए, बोली___"तुमने ये सब किया है??"
"करने वाले तो बड़े भइया ही हैं भाभी।" अभय सिंह ने मुस्कुरा कर कहा___"मैने तो सिर्फ इन्हें फोन पर राज के ठिकाने के बारे में बताया था। आप सब समझ सकते हैं कि राज के ठिकाने का पता चल जाने के बाद बड़े भइया के लिए ये सब कर लेना कितना आसान रहा होगा।"

"नहींऽऽऽ।" गौरी के कुछ बोलने से पहले ही करुणा बुरी तरह रोते हुए चीख पड़ी____"आप ऐसा नहीं कर सकते। आप ऐसे नीच इंसान का साथ कैसे दे सकते हैं जिसके बेटे ने खुद आपकी पत्नी व बेटी के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी? नहीं नहीं, आप इस नीच आदमी की तरह नहीं हो सकते। भगवान के लिए कह दीजिए कि ये सब आपने नहीं किया।"

हम सब अभय सिंह की इस बात से हक्के बक्के थे। मुख से कोई बोल ही नहीं फूट रहा था। अभय सिंह का इस तरह पलटी मारना हम सबके लिए यकीनन अविश्वसनीय था। किन्तु सच्चाई तो अब सबके सामने ही थी। उसे कैसे कोई नकार सकता था?

"वाह अभय।" गौरी ने हताश भाव से कहा___"क्या खूब बेटे होने का फर्ज़ निभाया है तुमने। कल तक तो बड़ा कह रहे थे कि तुमने हमेशा मुझे अपनी माॅ की तरह समझा है। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि एक झटके में तुम फरिश्ता से राक्षस बन गए? आख़िर मैंने या मेरे बच्चों ने ऐसा क्या बुरा कर दिया था तुम्हारा कि तुमने हम सबको इस आदमी के सामने ला कर इस तरह खड़ा कर दिया?"
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11-24-2019, 01:18 PM,
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"मैने कहा न भाभी।" अभय सिंह ने कहा___"हर कोई सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है। बड़े भइया ने अपने बारे में सोचा था इस लिए उन्होंने वो सब किया। किन्तु क्या किसी ने मेरे बारे में सोचा कभी? भगवान ने एक बेटा दिया वो भी दिमाग़ से डिस्टर्ब। आपके बेटे को अरबपति आदमी ने अपनी संपूर्ण दौलत से नवाज दिया। इस लिए आप भी खुश हो गए। मगर मेरा क्या??? मेरा तो कहीं कोई महत्व ही न रह गया। दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा है, उसका क्या भविष्य हो सकता है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। इस लिए मैने बहुत सोच समझ कर एक सौदा किया।"

"स सौदा???" गौरी के होंठ काॅपे। हम सब के चेहरों पर भी गहन उलझन के भाव उभर आए।
"हाॅ भाभी।" अभय सिंह ने कहा____"मैने बड़े भइया को फोन लगाया और उनसे कहा कि अगर आपको इस जंग में जीत हासिल करनी है तो आपको मेरा कहना मानना पड़ेगा। वरना आप किसी भी तरह से इस जंग में जीत नहीं पाएॅगे। क्योंकि इनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी तो विराज के पास रखा इनका वो सब ग़ैर कानूनी सामान है। उस सामान के तहत विराज इन्हें जब चाहे कानून की गिरफ्त में जीवन भर के लिए डलवा सकता है। ये बात इन्हें भी अच्छी तरह पता है। तब इन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस जंग में क्या कर सकता हूॅ? मैने बताया कि इनका सारा ग़ैर कानूनी सामान आज की तारीख़ में मेरे कब्जे में है। इस सामान की कीमत ये होगी कि ये मेरे बेटे का बेहतर से बेहतर इलाज़ करवाएॅगे, साथ ही ज़मीन जायदाद में आधा हक़ मेरा होगा। इन्हें मेरा वो सौदा मंजूर था, इस लिए बात को आगे बढ़ा दिया गया। ये उसी का नतीजा है कि आज आप सब यहाॅ हैं। कल जगदीश ओबराय का फोन इसी लिए नहीं लग रहा था क्योंकि मैं ग़लत नंबर पर काल लगा रहा था। मैं नहीं चाहता था कि उस सिचुएशन में जगदीश वहाॅ आ जाए और मेरे काम में कोई अड़चन आ जाए। ये मेरी ही स्कीम थी कि सुबह नास्ते के समय में बड़े भइया विराज के फोन से पवन के फोन पर काल करें ताकि वैसे हालात बन जाएॅ। हलाॅकि जैसा मैने सोचा था उससे बेहतर ही माहौल बन गया था। क्योंकि पवन ने अपने मोबाइल का स्पीकर खुद ही ऑन कर दिया था।"

"ओह तो तुमने सिर्फ इस वजह से हम सबके साथ इतना बड़ा धोखा किया है।" गौरी ने कहा____"तुम्हें क्या लगता है कि अभय जिस आदमी के साथ तुमने हम सबका सौदा किया है वो आदमी तुम्हारे लिए इतना कुछ करेगा? अरे जिसने ज़मीन जायदाद के लिए अपने माॅ बाप व भाई तक को जान से मार दिया वो तुम्हें भी तो मार सकता है। रही बात तुम्हारे बेटे के इलाज़ की तो वो हम भी करवा देते। मैने तो इस बारे में सोच भी लिया था। याद करो मैने ही इस बात के लिए ज़ोर दिया था कि तुम खुद की समस्या को भी दूर कर लो। मैने जगदीश भाई साहब से बात की और फिर तुम्हारा इलाज हुआ। मैं नहीं जातनी कि इस सबके बाद भी तुम्हारे अंदर ये बात कैसे आ गई कि हम सबको एक ही झटके में इस तरह मौत के मुह में डाल दिया जाए?"

गौरी की ये बातें सुन कर अभय सिंह तुरंत कुछ बोल न सका। कदाचित गौरी की इस बात ने उसे सोचने पर मजबूर किया कि "एक तो अजय सिंह अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद से गुज़र सकता है दूसरी ये कि वो खुद उसके बेटे के बेहतर इलाज़ के बारे में सोचे बैठी थी"। इधर अभय सिंह को एकदम से चुप हो जाते देख अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका।

"ये औरत तुझे बरगलाने की कोशिश कर रही है छोटे।" अजय सिंह ने तपाक से कहा___"ये ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती जिसकी इस वक्त ये बातें गढ़ रही है। तुम्हारे बेटे का बेहतर इलाज़ मैं करवाऊॅगा। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ज्यादा उचित होगा कि मैंने तो इस बारे में शुरूआत भी कर दी है। तुम अपने बच्चे के लिए बिलकुल भी फिक्र मत करो छोटे। उसका इलाज़ मैं खुद विदेश में करवाऊॅगा।"

"तुम अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो अभय।" गौरी ने कहा___"ईश्वर जानता है कि मैने या मेरे मरहूम पति ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा था। हॅसते खेलते घर में आग लगाने वाला तो सिर्फ यही एक शख्स था। इतना तो अब तुम भी समझ ही गए हो कि इसने अपनी खुशी के लिए तथा अपने स्वार्थ के लिए हम सबके साथ क्या कुछ नहीं किया है। ज़मीन जायदाद और हवेली को हड़पने के चक्कर में इसने अपने ही भाई को ज़हरीले सर्प से डसवा कर मार डाला। उसके बाद अपनी करतूत को छुपाने के लिए इसने माॅ बाबू जी का एक्सीडेन्ट करवाया। आज जब ईश्वर ने इंसाफ किया तो तिलमिला उठा ये। मैं हैरान हूॅ कि तुम सब कुछ जानते बूझते हुए भी इसका साथ देने के लिए अथवा इससे इस तरह का सौदा कैसे कर बैठे? हमें इस बात का दुख नहीं है कि तुमने हम सबको धोखा दिया और फिर यहाॅ ले आए। क्योंकि जीवन में इतना कुछ पा लिया है और सहन कर लिया है कि अब किसी बात से कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता। किन्तु हाॅ इस सबके बाद भी तुम्हारे प्रति यही दिल करता है कि तुम ऐसी मुसीबत में न फॅस जाओ जिसके तहत एक बार फिर से ये कहानी दोहरा दी जाए।"

"माॅ की बात सही है चाचा जी।" सहसा मैने भी इस बीच हस्ताक्षेप किया____"दूसरी बात, आपको क्या लगता है कि मैं ये सब अपने हक़ को पाने के लिए कर रहा हूॅ?? नहीं चाचू, आप तो देख ही चुके हैं कि आज के समय में मैं अगर चाहूॅ तो इस पूरे गाॅव को एक पल में खरीद लूॅ। बात ज़मीन जायदाद या किसी प्रापर्टी की नहीं है बल्कि बात है अपने साथ हुए अन्याय की और अत्याचार की। सवाल उठता है कि आख़िर इन्हें किस चीज़ की कमी थी? दादा जी की ज़मीन जायदाद में तो उनके सभी बेटों का बराबर ही हक़ था। ज़मीनों में रात दिन खून पसीना बहा कर मेरे पिता जी ने एक मामूली से घर को इतनी बड़ी हवेली में तब्दील कर दिया। घर में हर सुख सुविधाएॅ हो गईं, यहाॅ तक कि मेरे ही पिता जी के खून पसीने की कमाई से इनके खुद के कारोबार की बुनियाद भी रखी गई। बदले में इन्होंने कभी कुछ दिया नहीं था और ना ही किसी ने इनसे कुछ पाने की आशा की थी कभी। अब सवाल ये उठता है कि ऐसी क्या वजह थी कि इन्होंने एक हॅसते खेलते परिवार को ख़ाक में मिला दिला? अगर इन्हें ज़मीन जायदाद की इतनी ही भूॅख थी तो खुल के कहते। मुझे पूरा यकीन है कि उस समय मेरे पिता जी इनकी भूॅख को शान्त करने की पूरी कोशिश करते। भले ही उन्हें अपने बीवी बच्चों को लेकर घर से निकल जाना पड़ता।"

"देखो तो।" अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह भिन्ना गया था, बोला____"साला आज का छोकरा, कैसी भाषणबाज़ी कर रहा है। इसे तो इतनी भी तमीज़ नहीं है कि जब बड़े आपस में बात कर रहे हों तो बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए।"

"और जब बड़े ही पाप करने की हर सीमा लाॅघ जाएॅ तो उसका क्या?" सहसा रितू दीदी बोल पड़ीं____"इस लड़ाई में किसके साथ क्या होगा इस बात का फैंसला तो ऊपर वाला कर ही देगा। किन्तु यहाॅ पर मैं भी ये कहना चाहती हूॅ कि दुनियाॅ में ऐसा कौन सा बाप है जो अपनी ही बेटियों को अपने नीचे सुलाने का तसव्वुर भी करता हो? आप कहते हैं कि राज को तमीज़ नहीं है बात करने की। जबकि सच्चाई तो ये है कि तमीज़, मान मर्यादा, इज्ज़त इन सब चीज़ों का अगर किसी में हद से ज्यादा अभाव है तो वो सिर्फ और सिर्फ आप में है। इस जन्म में तो किसी तरह ये जीवन काटना ही होगा मुझे, क्योंकि मैने अपना ये जीवन अपने सच्चे भाई राज की सुरक्षा में अर्पण कर दिया है। किन्तु मरने के बाद ईश्वर से सिर्फ यही फरियाद करूॅगी कि किसी ग़रीब बाप की औलाद बना देना मगर आप जैसे किसी पापी की औलाद न बनाना।" कहते कहते रितू दीदी की ऑखें छलक पड़ी थीं, फिर वो अभय सिंह की तरफ देखते हुए बोलीं___"आपसे ये उम्मीद नहीं थी चाचू कि आप अपने बेटे के बेहतर इलाज़ के स्वार्थ में अपने इस नीच व घटिया भाई का साथ देंगे। इससे अच्छा तो यही होता कि आपका बेटा जीवन भर वैसा ही रहा आता।"

"तुम ठीक कहती हो रितू।" करुणा ने रोते हुए कहा___"मेरा बेटा ऐसे ही अच्छा है। मुझे इसका कोई इलाज विलाज नहीं करवाना। इस नीच आदमी के पैसे का एक आना भी अपने बेटे पर नहीं लगाना चाहती मैं।" कहने के साथ ही करुणा ने अभय सिंह की तरफ देखा और फिर बोली____"कितना अभिमान था मुझे कि कम से कम मेरा पति अपने मॅझले भाई की तरह नेक दिल तो है। मगर आज आपने मेरे उस अभिमान को चकनाचूर कर दिया है अभय सिंह। किन्तु एक बात कान खोल कर सुन लो, ये मेरा बेटा है। मैं इसे खुद जान से मार देना पसंद करूॅगी मगर इस आदमी के पाप का पैसा इस पर नहीं लगाऊॅगी। और अगर आपने मुझे मजबूर किया तो देख लेना अच्छा नहीं होगा। मैं अपने बच्चों के साथ खुद ज़हर खा कर जान दे दूॅगी।"

"नहींऽऽऽ करुणा नहीं।" अभय सिंह पूरी शक्ति से चीख़ पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोला____"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी। मुझसे ग़लती हो गई करुणा, प्लीज मुझे माफ़ कर दो। मेरी मति मारी गई थी जो मैने इस आदमी के साथ ऐसा सौदा कर लिया।" कहने के साथ ही अभय सिंह गौरी की तरफ बढ़ा फिर बोला____"मुझे माफ़ कर दो भाभी। आपने मेरे लिए इतना कुछ किया और मेरी जानकारी के बिना भी मेरे बेटे के इलाज़ करवाने का सोचा, और मैं मूरख आप ही के साथ इतना बड़ा पाप कर बैठा। हे भगवान! तू मुझे इस सबके लिए माफ़ न करना।"

अभय सिंह को इस तरह पलटी खाते देख अजय सिंह भौचक्का सा रह गया। किन्तु फिर जल्द ही सम्हल भी गया वह। कदाचित उसे अंदेशा था कि अभय सिंह अपनी बातों से मुकर जाएगा। अतः उसने फौरन ही सहाय की तरफ देखते हुए कहा____"इस नामुराद को फौरन रस्सियों में बाॅधो सहाय। मुझे पता था ये अपनी बात पर कायम नहीं रह पाएगा। शायद इसका भी इन लोगों के साथ ही मरना लिखा है तो यही सही।"

अजय सिंह की बात सुन कर सहाय फौरन ही हरकत में आया। उसने अपने आदमियों को भी इशारा किया और खुद भी अभय सिंह की तरफ लपका। उधर अजय सिंह की ये बात अभय सिंह के भी कानों में पड़ चुकी थी। जैसे ही सहाय उसके पीछे पहुॅचा वैसे ही अभय सिंह तेज़ी से पलटा और पलक झपकते ही उसने एक हाथ से सहाय को उसकी गर्दन से पकड़ कर अपनी बाहों में कसा और दूसरे हाथ में लिए रिवाल्वर को उसकी कनपटी पर रख दिया।

अजय सिंह ये देख कर हक्का बक्का रह गया। उसे समझ न आया कि अभय सिंह के पास रिवाल्वर कहाॅ से और कब आ गया? उधर अभय सिंह के बंधनों में जकड़ा अभिजीत सहाय उससे छूटने के लिए छटपटाए जा रहा था।

"अपने आदमियों से कह सहाय।" अभय सिंह ने खतरनाक भाव से कहा___"कि ये सब अपने अपने हथियार फेंक दें और फिर इन सब को रस्सियों के बंधन से मुक्त कर दें। वरना तेरा काम तमाम करने में मुझे ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"

"फ..फेंक दो।" मौत के डर से थरथराता हुआ सहाय एकदम से चीखा____"अपने अपने हथियार फेंक दो और वही करो जो इसने कहा है।"
"कोई भी अपने हथियार नहीं फेंकेगा सहाय।" अजय सिंह ने कहा___"और हाॅ डरो मत। ये तुम्हें कुछ नहीं करेगा।"

"मैं मरना नहीं चाहता ठाकुर साहब।" सहाय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___"इस आदमी का लहजा बता रहा है कि ये इस वक्त कुछ भी कर सकता है। हाॅ ठाकुर साहब अगर मैने अपने आदमियों को हथियार फेंकने के लिए नहीं कहा तो ये मुझे खत्म कर देगा।"

"बड़े भइया।" अभय सिंह गुर्राया____"आजमाने की कोशिश मत करो। समय की नज़ाकत को देख कर काम करो। और हाॅ एक बात याद रखो, मुझे मरने का कोई डर नहीं है। अब तो बस हर जगह मुझे मौत ही मौत दिखाई दे रही है। इस लिए अगर भलाई चाहते हो तो वही करो जो मैने कहा है।"
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11-24-2019, 01:19 PM,
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अजय सिंह अपने छोटे भाई के गुस्से से भलीभाॅति परिचित था। इस लिए उसने उसका कहा मानने में ही अपनी भलाई समझी। वो देख रहा था कि इस वक्य अभय सिंह सहाय को अपने आगे किये हुए है और हर तरफ उसकी पैनी नज़र है। छोटी सी एक ग़लती सहाय का भेजा उड़ा सकती थी और सहाय के मर जाने से उसके आदमी उसका कोई आदेश नहीं मानेंगे।

बहुत ही मजबूर व लाचार भाव से अजय सिंह ने एक बार सबकी तरफ देखा उसके बाद उसने सभी गनमैनों की तरफ देखते हुए हाॅ में अपने सिर को हिलाया। प्रतिमा व शिवा ये सब देख कर बुरी तरह आतंकित से नज़र आने लगे थे। ख़ैर अजय सिंह के इशारे से सभी गनमैनों ने अपने हथियार फेंक दिये।

"अब इन सबके बंधनों को भी खोलो।" अभय सिंह ने गनमैनों को हुक्म सा दिया।
अजय सिंह का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से दौड़ रहा था। वो जानता था कि ऐसे में वह जीती हुई बाज़ी हार जाएगा। अतः वह कोई न कोई जुगत लगाने में लगा हुआ था। उधर अभय सिंह के कहने पर कुछ गनमैन आगे बढ़े और सबके बंधनों को खोलने लगे।

अभय सिंह पूरी तरह सतर्क था। वह सहाय की कनपटी पर रिवाल्वर सटाए हर तरफ देख रहा था। किन्तु ज्यादा देर तक उसकी सतर्कता उसके काम न आ सकी। अचानक ही एक तरफ से धाॅय की आवाज़ हुई थी और फिर अभय सिंह के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। रिवाल्वर की गोली सीधा उसके कान को छू कर गुज़र गई थी। गर्म गर्म शोला कान की लौ को मानो भीषण तपिश देकर गुज़रा था। जिसका असर ये हुआ कि अभय सिंह छिटक कर दूर हट गया था। रिवाल्वर जाने कब उसके हाॅथ से निकल गया था। सहाय उसकी गिरफ्त से छूटते ही एक तरफ को सरपट भागा था।
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11-24-2019, 01:19 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
इधर अभय सिंह के साथ हुए इस हादसे ने अजय सिंह के पलड़े को पुनः मजबूत करने की राह पकड़ ली। सबके बंधनों को छुड़ाने में लगे गनमैन इस हादसे के होते ही फौरन अपनी अपनी गन्स की तरफ लपके। उधर आदित्य, रितू, मैं और पवन जल्दी जल्दी अपने बंधन खोलते जा रहे थे। दरअसल जो गनमैन हमारे बंधनों को खोल रहे थे वो इस हादसे के होते ही उसे वैसी ही हालत में छोंड़ कर अपने अपने हथियारों की तरफ दौड़ पड़े थे।

उधर अभय सिंह जब तक खुद को सम्हालता अजय सिंह उसके पास पहुॅच चुका था। उसने ज़ोर की लात अभय सिंह के पेट में मारी। अभय सिंह लहराता हुआ दूर जा कर गिरा। अजय सिंह इस वक्त हिंसक जानवर की तरह लग रहा था। अफरा तफरी के माहौल को देख कर शिवा का भी दिमाग़ चल गया। वह फौरन ही इधर उधर देखने लगा। तत्काल ही उसकी नज़र सोनम पर पड़ी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। सोनम के पास पहुॅच कर उसने बेख़ौफ होकर उसकी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया फिर बोला___"आओ मेरी जान। हम भी अपना प्रोग्राम बनाते हैं। सोचा था कि दिल की बात मान कर इस सबसे तौबा कर लूॅगा। मगर कदाचित ये मेरी किस्मत में ही नहीं है।"

"छोंड़ दे मुझे।" सोनम ने अपनी कलाई को उससे छुड़ाते हुए कहा____"तेरे जैसा घटियाॅ इंसान तो सारे संसार में भी न होगा। अपनी ही बहन के बारे में इतना गंदा सोचने में तुझे ज़रा भी शर्म नहीं आती।"

"यही तो बात है सोनम।" शिवा अपने से बड़ी ऊम्र की बहन को पूरी ढिठाई से उसके नाम से संबोधित करते हुए कहा___"जब मुझे पता चला कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो मैने भी सोचा चलो अच्छा ही हुआ। दुनियाॅ की एक हसींन लड़की से अगर मेरी शादी हो जाएगी तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। मगर जल्द ही समझ में आ गया कि प्यार मोहब्बत साली होती ही उसी से है जो हमें कभी मिलने वाला नहीं होता। मुझे लगा यार इससे अच्छा तो वही था जबकि मैं सिर्फ रासलीला से ही खुश रहता था।"

"मुझे तेरी ये बकवास नहीं सुननी कमीने।" सोनम ने गुस्से में कहा____"मैं कहती हूॅ छोंड़ दे मेरा हाॅथ वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।"
"पर अगर तुम चाहो तो मैं अब भी बदल सकता हूॅ।" शिवा ने उसकी बात पर ध्यान दिये बिना ही बोला___"हाॅ सोनम, तुम मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर लो और मुझसे शादी कर लो। हलाॅकि मैं जानता हूॅ कि हम दोनो के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए एग्री नहीं होंगे। इस लिए हम कहीं दूर चले जाएॅगे। वहीं कहीं एक नया संसार बसाएॅगे। मैने तो सबकुछ सोच भी लिया है सोनम। तुम किसी भी बात की चिन्ता मत करो। धन दौलत बहुत है, उसी में हम जीवन भर ऐश करेंगे। क्या कहती हो...आहहहहह।"

अभी शिवा का वाक्य पूरा ही हुआ था कि तभी उसके गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा था। उसके कान एकदम से झनझना कर रह गए थे। अपने गाल को सहलाता हुआ शिवा जब सीधा हुआ तो उसकी नज़र विराज पर पड़ी। विराज को देखते ही उसकी नानी मर गई।

"इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा बेटा।" मैने उसकी ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"सुना है मुझसे दो दो हाॅथ करने के लिए बड़ा फुदकता था तू। अब आ गया हूॅ सामने तो हो जाए दो दो हाॅथ? क्या कहता है?"

"सब वक्त वक्त की बातें हैं भाई।" शिवा ने सहसा फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"हो सकता है कि मैं पहले भी तुमसे दो दो हाॅथ करने के काबिल न रहा होऊॅ किन्तु फिर भी दो दो हाॅथ करने की हिमाकत ज़रूर करता मगर अब वो बात नहीं रह गई।"

"क्यों क्या हुआ?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"शेर का सामना होते ही सारी हेकड़ी निकल गई?"
"हेकड़ी तो अभी भी है भाई।" शिवा ने कहा___"मगर जैसा कि मैने कहा न कि अब वो बात नहीं रह गई। अब तो बस बात ये है कि किसी से इश्क़ हुआ और हम खुद ही मर गए। अब अगर तुम एक मरे हुए को मारना चाहते हो तो ठीक है लो हाज़िर हूॅ, जो जी में आए कर लो। वादा करता हूॅ कि उफ्फ तक नहीं करूॅगा।"

शिवा की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह हैरान रह गया। मुझे समझ न आया कि ये बद्जात बोल क्या रहा है। जबकि मेरी उलझन को देखते हुए सोनम दीदी ने कहा___"ये कमीना कहता है कि ये मुझसे प्यार करता है और अब शादी भी करना चाहता है।"

"क्याऽऽऽ?????" सोनम दीदी की बात सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। आश्चर्य से शिवा की तरफ देखते हुए बोला___"आख़िर गंदा खून कर भी क्या सकता है? जिसका बाप हमेशा अपने ही घर की बहू बेटियों पर नीयत ख़राब करता रहा हो उसका बेटा भला कैसे दूध का धुला हुआ हो जाएगा?"

"इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है भाई।" शिवा ने कहा___"क्योंकि इश्क़ जब किसी के सिर चढ़ जाता है न तो फिर उसे ब्रम्हा भी नहीं समझा सकता। अतः तुम इस चक्कर में मत पड़ो। बल्कि उस चक्कर में पड़ो जिसके लिए तुम्हें पड़ना चाहिए। इस वक्त तुम खुद के साथ साथ अपने लोगों की जान की फिक्र करो। एक बात और, मेरी तरफ से बेफिक्र रहना।"

शिवा ने इतना कहा और फिर बड़े ही करुण भाव से सोनम की तरफ देखा। उसके बाद वह एक पल के लिए भी उस जगह नहीं रुका। मैं उसकी इस विचित्र सी हरकत से तथा उसकी बातों से बुरी तरह चकित था। तभी वातावरण में गोलियाॅ चलने की आवाज़ें आने लगी। मैं एकदम से फिरकिनी की मानिंद घूमा।

आदित्य, रितू दीदी व पवन के हाॅथों में गनें थी और वो अधाधुंध गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। पवन का तो निशाना ही नहीं लग रहा था। ये देख कर मैं मुस्कुराया। साले ने जीवन में कभी खिलौने का तमंचा तक न देखा था और आज दोस्ती के लिए गन लिए मौत का ताण्डव कर रहा था। मैने चारो तरफ देखा, मुझे औरतों में कहीं कोई दिखाई न दिया। ये देख कर मैं बुरी तरह चौंक गया। मन में सवाल उभरा कि ये सब कहाॅ गईं? कहीं किसी को कुछ हो तो नहीं गया। मैं सोनम दीदी को छोंड़ कर एक तरफ को भागा।

रितू दीदी, आदित्य व पवन पेड़ों की ओट में पोजीशन लिए हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, अभय चाचा, व सहाय कहीं दिख नहीं रहे थे। संभव है उन्होंने भी किसी पेड़ की ओट में पोजीशन लिया हुआ था। मैं छिपते छिपाते हुए फार्महाउस की इमारत के पिछले भाग में आ गया। यहाॅ आ कर मैने चारों तरफ देखा। कहीं कोई नहीं था। नीचे ज़मीन पर मरे हुए गनमैन अपने ही खून में नहाए पड़े थे।

माॅ लोगों को कहीं न देख कर मैं बहुत ज्यादा चिंतित व परेशान हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इतना जल्दी कहाॅ चले गए? मैं इमारत के पिछले भाग से निकल कर सामने की तरफ आया ही था कि तभी धाॅय की आवाज़ हुई। कहीं से गोली चली थी जो कि मेरे दाहिने बाजू को छू कर निकल गई थी। मैं इस सबसे बेखबर सा हो गया था। मेरे ज़हन में सिर्फ माॅ लोगों का ही ख़याल तारी था।

गोली की आवाज़ से तथा अपनी बाजू में उसकी छुवन से मैं बुरी तरह उछल पड़ा था और इसी उछलाहट में मैं फौरन ही एक पेड़ की ओट में आ गया। ओट से सिर निकाल कर मैंने आस पास का बारीकी से मुआयना किया। तभी मेरे कानों में इमारत के अंदर से कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी। मैं आवाज़ों को सुनने के लिए ग़ौर से ध्यान लगाया। तभी मेरे कानों में मेरी माॅ की आवाज़ पड़ी। वो कह रही थी____"मुझे बाहर जाने दो। वहाॅ मेरा बेटा गोलियों के बीच में खड़ा है और तुम सब कहती हो कि मैं यहीं पर रहूॅ। अरे मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मेरे ज़िन्दा रहने का क्या मतलब रह जाएगा?"

मैं सब समझ गया। मतलब माॅ लोग सब इमारत के अंदर हैं और शायद सुरक्षित भी हैं। वरना वो ऐसी बात उन लोगों को न कहतीं। ये सोच कर मैं फौरन ही जम्प मार कर दूसरे पेड़ की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही एकदम से गोलियों की आवाज़ें आने लगीं। किसी तरह बचते बचते मैं आदित्य के पास पहुॅच ही गया। आदित्य ने मुझे देखा तो इशारे से ही पूछा बाॅकी सब कैसे हैं? तो मैने बताया सब ठीक हैं।
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11-24-2019, 01:19 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अभी मैं आदित्य को इशारे से ये बताया ही था कि तभी सोनम दीदी की चीख़ गूज उठी। ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई मार रहा हो। मैने फौरन ही उस तरफ देखने की कोशिश की। बाॅई तरफ अजय सिंह सोनम दीदी को उनके सिर के बालों से पकड़े घसीटते हुए लिए आ रहे थे। उनके एक हाॅथ में रिवाल्वर भी था। ये देख कर मैं सकते में आ गया।

"अगर इस लड़की को ज़िन्दा देखना चाहते हो तो तुम सब सामने आ जाओ।" अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___"और हाॅ अपने अपने हथियार फेंक कर ही आना, वरना मैं इस लड़की को गोली मार दूॅगा।"

अजय सिंह की इस धमकी पर हम में से कोई कुछ न बोला। कुछ पलों तक अजय सिंह इधर उधर देखते हुए खड़ा रहा। उसके बाद फिर बोला___"मैं सिर्फ तीन तक गिनूॅगा। अगर मेरे तीन गिनने तक तुम लोग मेरे सामने नहीं आए तो समझ लो ये लड़की अपनी जिंदगी से हाॅथ धो बैठेगी।"

अजय सिंह ने गिनना शुरू कर दिया। पेड़ों की ओट में छुपे हम सब को बाहर निकलना अब अनिवार्य था। अजय सिंह ने जैसे ही तीन कहा हम सब उसके सामने आ गए। हम लोगों को देख कर अजय सिंह मुस्कुराया किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव खतरनाॅक रूप से बदले। उसने रिवाल्वर वाला हाॅथ उठाया और बिना कुछ कहे फायर कर दिया। गोली सीधा रितू दीदी के पेट में लगी। फिज़ा में रितू दीदी की हृदयविदारक चीख़ गूॅज गई।

अजय सिंह से अचानक इस कृत्य की कल्पना हम में से किसी ने न की थी। उधर पेट में गोली लगते ही रितू दीदी कटे हुए वृक्ष की तरह लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिरने लगी। मैं बिजली की सी तेज़ी से उनकी तरफ लपका। रितू दीदी को बाॅहों में सम्हाले मैं बुरी तरह रोते हुए चीखने लगा। वो मेरी बाॅहों में थीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के असहनीय भाव थे किन्तु ऑखें मुझ पर स्थिर थीं।

"दीदी, ये क्या हो गया दीदी?" मैं उन्हें सम्हालते हुए वहीं ज़मीन पर उकड़ू सा बैठ गया____"नहीं नहीं, आपको कुछ नहीं हो सकता।"
"अभी जंग खत्म नहीं हुई पगले।" रितू दीदी ने पीड़ित भाव से कहा____"अभी तो इस धरती पर वो इंसान जीवित है जिसने अपना आख़िरी सबूत ये दे दिया है कि उसके दिल में किसी के लिए भी कोई रहम अथवा प्यार नहीं है। ऐसे इंसान को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"मैं उसे ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा दीदी।" मैने सिसकते हुए कहा___"बस आप को कुछ नहीं होना चाहिए। मैं आपको खोना नहीं चाहता।"
"होनी को कौन टाल सकता है राज?" दीदी ने सहसा मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"बड़ी आरज़ू थी कि जीवन भर तेरे साथ रहूॅगी। तुझे खुद से दूर नहीं जाने दूॅगी। मगर देख ले, आज खुद ही तुझसे दूर जा रही हूॅ।"

"नहीं नहीं।" मैने उन्हें खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रोते हुए बोला___"आप कहीं नहीं जा रही हैं। मैं आपको कहीं जाने भी नहीं दूॅगा। मुझे मेरी दीदी सही सलामत चाहिए। मैं आपके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"

"इतना प्यार मत दिखा राज।" रितू दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई____"वरना मरने के बाद भी मुझे शान्ति नहीं मिलेगी। ख़ैर, अभी तू जा मेरे भाई। वरना वो राक्षस फिर किसी को गोली मार देगा। देख तुझे मेरी कसम है, तू जा राज।"

दीदी की कसम ने मुझे मजबूर कर दिया। मैं भारी मन से उन्हें वहीं पर छोंड़ कर पलटा। इधर रितू के साथ हुए इस हादसे ने आदित्य पवन व अभय चाचा को भी अचेत सा कर दिया था। वो सब ठगे से ऑखें फाड़े देखे जा रहे थे।

"अपनी ज़िद व अपने अहंकार में किस किस को मारोगे अजय?" सहसा इस बीच प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए बेहद ही करुण भाव से रोते हुए कहा___"उस दिन भी तुमने नीलम को जान से मार ही दिया था और आज एक और बेटी को जान से मार दिया। आख़िर किस किस को जान से मारोगे तुम? ये दौलत ये ज़मीन जायदाद किसके भोगने के लिए बनाई है तुमने? मुझे भी मार दो, अपनी ऑखों के सामने अपनी बेटियों को इस तरह मरते देख कर भला कैसे चैन से जी पाऊॅगी मैं?"

"ये मेरी कोई नहीं लगती प्रतिमा।" अजय सिंह गुर्राया___"अगर लगती तो आज ये अपने बाप के साथ खड़ी होती ना कि अपने बाप के दुश्मनों के साथ।"

"तो क्या ग़लत किया इन्होंने?" प्रतिमा ने बिफरे हुए लहजे से कहा___"अरे इन लोगों ने तो वही किया जो हर लड़की को करना चाहिए। अपने इज्ज़त और सम्मान की रक्षा करना हर लड़की या औरत का धर्म है। तुम तो उसके बाप हो न, तुम्हें तो खुद अपने घर की इज्ज़त की हर तरह से रक्षा करना चाहिए थी। मगर तुम तो खुद ही अपनी ही बहू बहन व बेटियों की अस्मत को लूटने वाले बन गए।"

"ये तुम कौन सी भाषा बोल रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह की ऑखें फैली____"आज तुम्हारे मुख से ऐसी बातें कैसे निकलने लगीं? क्या सब कुछ भूल गई हो तुम? तुम तो खुद भी उतनी ही गुनहगार हो जितना कि तुम इस वक्त मुझे समझ रही हो। इस लिए ऐसी बात मत करो, क्योंकि ये सब तुम पर शोभा नहीं देती हैं।"

"मैं मानती हूॅ कि मैं इस सबमें बराबर की गुनहगार हूॅ अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये भी एक सच है कि इस सबके लिए भी सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो। मैं तो तुमसे अंधाधुंध प्यार ही करती थी। किन्तु अपने मतलब के लिए तुमने ही मुझे ऐसे काम को करने के लिए प्रेरित किया था। तुम्हारे प्यार में अच्छा बुरा ऊॅच नीच कभी नहीं सोचा मैने। सिर्फ यही सोचा कि मेरे किसी भी काम से सिर्फ तुम खुश रहो। मगर अब ये जो कुछ भी हो रहा है उसने मुझे इस बात का एहसास करा दिया है कि तुमने कभी मुझे प्यार किया ही नहीं था। तुम्हें तो सिर्फ खुद से और अपनी ख़्वाहिशों से ही प्यार था। अगर ऐसा न होता तो आज तुम इस तरह अपनों के दुश्मन न बन गए होते और ना ही इस तरह क्रूरता से अपनी ही बेटियों को जान से मार देने का सोचते। ख़ैर, देर से ही सही मगर मैं ये स्वीकार कर चुकी हूॅ कि मैंने तुम्हारे प्यार के चलते सबके साथ ऐसा गुनाह व पाप किया है जो कदाचित माफ़ी के लायक हो ही नहीं सकता है। मुझे भी किसी से माफ़ी की इच्छा नहीं है। इतना कुछ होने के बाद तो वैसे भी अब जीने का दिल नहीं करता। मेरा वजूद इतना घिनौना हो चुका है कि दुनिया का गिरा से गिरा हुआ इंसान भी कदाचित मेरी तरफ देखना भी पसंद न करे। किन्तु सुना है पश्चाताप करने से और नेक काम करने से मन को शान्ति मिलती है। इसी लिए मैने पश्चाताप के रूप में वो किया जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था।"

"क्या मतलब???" अजय सिंह चौंका____"क..क्या किया है तुमने?"
"अब तक तो दिमाग़ पर दिल ही हावी था अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर जब दिल ही टूट कर बिखर गया तो दिमाग़ का ज़ोर पड़ ही गया उस पर। उस शाम जब तुम फोन पर अभय से बातें कर रहे थे तब मैने भी ड्राइंग रूम में रखे फोन पर तुम दोनो की बातें सुनी थी। तुम तो जानते हो कि वो दोनो ही फोन एक ही हैं। अगर एक पर किसी का फोन आएगा तो उस दूसरे फोन के माध्यम से भी दूसरा ब्यक्ति पहले वाले फोन पर हो रही बातचीत को बड़े आराम से सुन सकता है। ख़ैर तुम दोनो की बातें सुनी मैने और तब मुझे पूरी तरह समझ आ गया कि सारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ लुटाने वाली मैं कितनी पापिन थी जो कभी तुम्हारी खुशियों के सिवा किसी और पर होते अत्याचार को न देख सकी थी। तुमने अभय को विश्वास दिलाया कि तुम उसके बेटे का बेहतर इलाज़ करवाओगे और ज़मीन जायदाद में आधा हिस्सा भी दोगे। बदले में तुम्हें तुम्हारा वो ग़ैर कानूनी सामान व विराज के सभी चाहने वाले अपने पास चाहिए। अभय तो अपने बेटे के लिए अपना विवेक खो कर यकीन के साथ तुमसे इतना बड़ा सौदा कर बैठा जबकि मैं जानती थी कि तुम वैसा कभी नहीं करोगे जिस बात के लिए तुमने अभय को विश्वास दिलाया था। अपना मतलब निकल जाने के बाद तुम वही करोगे जो सबके साथ करना चाहते हो। मैं हैरान थी कि पढ़ा लिखा अभय इतनी बड़ी बेवकूफी व अपनों के साथ सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच कर इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है? लेकिन जल्द ही मुझे समझ आया कि भाई किसका है। मेरे दिमाग़ में ये बात भी आई कि संभव है कि अभय ने कोई दूर की कौड़ी सोची हुई है। कहने का मतलब ये कि इस जंग में अगर तुम्हारे साथ साथ मैं व हमारा बेटा मारे गए या कानून की चपेट में आ गए तो ये विराज को भी किसी तरह अपने रास्ते से हटा देगा। उस सूरत में सारी ज़मीन जायदाद का ये अकेला हक़दार हो जाएगा। ये सब बातें सोच कर मुझे एहसास हुआ कि जिसने इस सारी ज़मीन जायदाद को हीरे की शक्ल दी तथा जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं था उसे उसके भाई ने तो पहले ही मिटा दिया था और अब एक और भाई आ गया उसी इतिहास को दोहराने के लिए। मुझे पहली बार गौरी के बारे में सोच कर उस पर तरस आया। एकाएक ही मेरा हृदय झनझना उठा। अंदर कहीं से कोई बड़े ज़ोर से चीख कर कहा 'इस बेचारी ने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से इसके साथ इतना कुछ हो गया?' इंसान को बदलने के लिए सिर्फ एक ही मामूली सी चीज़ काफी होती है। अगर हम किसी के बारे में एक बार इस तरह से सोच लें तो फिर बहुत मुमकिन है कि फिर हमें उसकी अथवा अपनी वास्तविकता का बोध होने लगता है। वही हुआ मेरे साथ। हृदय परिवर्तन तो अपनी बेटी के साथ हुए हादसे से ही होने लगा था किन्तु उस फोन की वजह से पूरी तरह से ही हो गया। सारी बातों को सोचने के बाद मैने फैंसला कर लिया कि अब वो नहीं होंने दूॅगी जिसके लिए तुमने एक हॅसते खेलते परिवार की बलि चढ़ाई थी। हाॅ अजय, जैसे अभय ने अपने स्वार्थ के लिए अपनों के साथ विश्वासघात कर तुमसे वो सौदा किया उसी तरह मैने भी एक फोन किया।"
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11-24-2019, 01:19 PM,
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"क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका___"कैसा फोन किया तुमने?"
"मेरे पास विराज का नंबर नहीं था।" प्रतिमा ने कहा___"और मेरी बेटी मेरा फोन उठाती ही नहीं थी। तब मैने सीधा पुलिस कमिश्नर को फोन किया। पुलिस कमिश्नर को इस लिए क्योंकि मौजूदा वक्त में जो कुछ भी हुआ उससे ये बात साबित हो चुकी थी कि रितू अपने पुलिस महकमें की सह पर ही वो सब कर रही थी। हलाॅकि मैं पूरी तरह श्योर नहीं थी। किन्तु फिर भी मैने एक बार कमिश्नर से बात करने का ही सोचा और फिर उन्हें फोन लगाया। फोन पर मैने कमिश्नर से साफ साफ शब्दों में बता दिया कि सिचुएशन क्या है। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे एक बार विराज से बात करना है। उन्होंने मेरी बातों को बारीकी से सोचा समझा और फिर रितू को फोन किया और उससे विराज का नंबर लेकर मुझे दिया।"

"उस वक्त मैं और आदित्य बाहर घूमने गए थे जब मेरे फोन पर बड़ी माॅ का फोन आया था।" बड़ी माॅ की बात खत्म होते ही मैने तुरंत कहा___"इन्होंने मुझे फोन पर सारी बातें बता दी। हलाॅकि मुझे शुरू शुरू में इनकी बात पर ज़रा भी यकीन न हुआ। क्योंकि मैं सोच ही नहीं सकता था कि अभय चाचा हमारे साथ ऐसा कर सकते हैं। तब इन्होंने कहा कि ये अपनी बातों का सबूत तो नहीं दे सकती हैं मगर मैं खुद इस बात की जाॅच पड़ताल तो कर ही सकता हूॅ। दूसरी बात मुझे भी कहीं न कहीं लग रहा था कि अपनी बेटी के साथ हुए हादसे के चलते बड़ी माॅ में कुछ तो परिवर्तन आना ही चाहिए था। ख़ैर, इनकी ख़बर के बाद मैने भी वहाॅ पर रितू दीदी आदि को सब कुछ बता दिया और रात में ये सब होने का इंतज़ार करने के लिए कह दिया। वहीं मैने मुम्बई में भी पवन को फोन कर दिया था। उसे मैने समझाया था कि वो इस बारे में किसी से कुछ न कहे किन्तु अगर बड़े पापा का फोन उसके पास आए तो वो फोन का स्पीकर ऑन करके ज़रूर सबको इनकी बात सुनाए। क्योंकि उसके बाद तो उन्हें यहाॅ आना ही था। मैं भी अब खुल के इनके सामने आना चाहता था। किन्तु ये सब बहुत ही ज्यादा खतरनाक भी था। क्योंकि इससे किसी को भी कुछ भी हो सकता था। ख़ैर रितू दीदी ने कमिश्नर से बात की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया और पुलिस प्रोटेक्शन की माॅग भी की। कमिश्नर ने हमें बेफिक्र रहने को कहा। कल रात जब आप अपने दलबल के साथ हमारे ठिकाने पर पहुॅचे तब हम सब जाग रहे थे। आप ये समझ रहे हैं कि आप बड़ी आसानी से हम सबको बेहोश कर यहाॅ ले आए जबकि सच्चाई तो यही है कि आपका काम हमने खुद आसान किया था। वरना आप ही सोचिए कि ऐसे आलम में इतने लापरवाह हम कैसे हो जाएॅगे कि कोई आए और हम सबको बड़ी सहजता से बेहोश करके अपने साथ जहाॅ चाहे ले जाए। जबकि मैं चाहता तो उसी वक्त आप और आपके सभी आदमी मौत के घाट उतर चुके होते। मगर मैने अपने दोस्त शेखर के मौसा जी को उस रात वहाॅ पर सिक्योरिटी रखने से मना कर दिया था। उसके बाद क्या हुआ वो तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं।"

"चलो अच्छा हुआ कि तुमने खुद ही ये सब बता दिया।" अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे से कहने के साथ ही बड़ी माॅ की तरफ देखा___"पर तुमने ये सब करके अच्छा नहीं किया प्रतिमा और इसके लिए तुम्हें मौत से कम सज़ा तो हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती।"

"कितनी आश्चर्य की बात है न अजय।" प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारा हृदय परिवर्तन नहीं हुआ। तुम्हें ज़रा भी एहसास नहीं हुआ कि ये जो कुछ भी तुमने किया है वो कितना ग़लत था। बल्कि अभी भी तुम वही सब करने पर आमादा हो जिसका नतीजा तुम्हारे लिए किसी भी सूरत में अच्छा नहीं हो सकता। आज तुम्हारी इस हालत को देख कर सचमुच मुझे तरस आ रहा है। आज मैं ये सोचने पर मजबूर हूॅ कि पच्चीस साल पहले मैने तुममे ऐसा क्या देखा था कि तुमसे इस क़दर प्यार कर बैठी थी? तुम किसी के नहीं हो सकते अजय, तुम अकेले ही ऐसी मौत मरोगे जिसकी लाश पर कीड़े पड़ेंगे।"

"हरामज़ादी कुतिया।" गुस्से में तिलमिलाए हुए अजय सिंह ने बड़ी तेज़ी से अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को ऊपर हवा में उठाया और फिर___धाॅय।

प्रतिमा के सबसे क़रीब अभय सिंह ही था। माहौल की नज़ाकत का जैसे उसे बखूबी एहसास था तभी तो उन्होंने गोली के चलते ही जम्प लगाई थी। किन्तु गोली की स्पीड ने अपना काम तमाम करने में कोई कसर न छोंड़ी थी। प्रतिमा को बचाने के चक्कर में गोली अभय सिंह के कंधे पर जा लगी थी। फिज़ा में अभय सिंह की दर्द से डूबी चीख़ निकल गई थी। अभय सिंह प्रतिमा को लिए ज़मीन पर उलटता चला गया था।

इधर इस नज़ारे को देख कर मैने भी अजय सिंह पर जम्प लगाई थी। मगर मेरे जम्प लगाने से पहले ही उसने एक और फायर कर दिया था। जिसका नतीजा ये हुआ कि इस बार गोली अभय सिंह के पेट में लगी थी। उस वक्त वो जल्दी से उठने की कोशिश कर रहा था तभी गोली आकर उसके पेट में लग गई थी। एक साथ कई चीखें फिज़ा में गूॅज गई थी। इधर तीसरा फायर करने से पहले ही मैं अजय सिंह के ऊपर आ गिरा था। इस गुत्थम गुत्था में सोनम दीदी भी लोट पोट हो गई थीं। अजय सिंह की पकड़ से छूटते ही सोनम दीदी अभय सिंह व प्रतिमा की तरफ चिल्लाते हुए दौड़ पड़ी थी।

इधर मैने अजय सिंह के उस हाॅथ में एक कराट मारी जिसमें वो रिवाल्वर लिये हुए था। कराट लगते ही अजय सिंह के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर गिर गया। मैने उस पर लात घूॅसों की बरसात कर दी। अजय सिंह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाने लगा। वह खुद भी हाॅथ पैर चला रहा था किन्तु सब ब्यर्थ। मैं उसके ऊपर से उठा और फिर उसे उठा कर पूरी ताकत से दूर फेंक दिया। हवा में लहराते हुए अजय सिंह दूर जा कर गिरा।

जहाॅ पर अजय सिंह गिरा था वहीं पर एक गन पड़ी थी। जिसे देख कर वह अपना हर दर्द भूल गया और झपट कर उसने उस गन को उठा लिया। तभी फिज़ा में पुलिस सायरन की आवाज़ गूॅजने लगी। अजय सिंह गन लेकर तुरंत पलटा और मेरी तरफ देखते हुए गन को ऊपर करने लगा। इससे पहले की वह गन का ट्रिगर दबा पाता कहीं से एक साथ दो फायर हुए। एक गोली सीधा अजय सिंह के सीने में दिल वाले स्थान पर लगी जबकि दूसरी उसके थोड़ा नीचे। पलक झपकते ही उन दोनो जगहों से खून की धार फूट पड़ी और अजय सिंह कटे हुए बृक्ष की भाॅति लहरा कर ज़मीन पर गिरा और फिर एकदम से शान्त पड़ गया।

फायर की आवाज़ से मैं बिजली की तरह पलटा था। अजय सिंह के दाहिनी तरफ कुछ ही दूरी पर शिवा रिवाल्वर लिए खड़ा था। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे। मैं उसे चकित भाव से देखे जा रहा था। जबकि वह अपने बाप को मारने के बाद पलटा और मेरी तरफ देखते हुए बोला____"अपने हाॅथ इस पापी के खून से मत रॅगो भाई। इसे इससे बड़ी सज़ा और क्या मिलेगी कि इसने जिसे सबसे ज्यादा प्यार किया उसी ने इसकी साॅसें छीन ली। नफ़रत के इस पुजारी को मर ही जाना चाहिए था।"

"मगर तूने..।" मेरा वाक्य अधूरा रह गया।
"कुछ मत कहिए भाई।" शिवा की आवाज़ लड़खड़ा गई, बोला___"मैं नहीं जानता कि मुझसे ये सब कैसे हो गया। मगर अंदर से कोई कह रहा है कि बहुत अच्छा किया तुमने। माॅ बाप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार व स्वावलम्बी बनने की सीख देते हैं मगर मेरे इस बाप ने तो मुझे अपनी ही तरह बनने की सीख दी। ख़ैर छोंड़िये भाई, मुझे भी अब खुशी हो रही है कि मैने आज कोई अच्छा काम किया है। ये नियति मैने खुद चुनी है। अपने बाप के कत्ल के इल्ज़ाम में या तो मुझे फाॅसी हो जाएगी या फिर ऊम्र कैद। किसी से बेपनाह इश्क़ भी हुआ मगर सिर्फ मुझे ऊम्र भर तड़पाने के लिए। मैने अपने इस छोटे से जीवन में ही इतने ऊॅचे दर्ज़े के पाप किये हैं जिसके लिए ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"ये तू कैसी बकवास कर रहा पगले?" उसकी बातें सुन मेरा गला रुॅध सा गया। जाने क्यों इस वक्त वो मुझे बहुत प्यारा सा लगा जिसके लिए मेरा दिल रोने लग गया था। हलाॅकि उसने भी अपने बाप की तरह हमें जलील करने में कोई कसर न छोंड़ी थी।

"जाइये भाई।" तभी शिवा ने कहा____"अब तो सब खेल खत्म हो गया है। पुलिस भी आ गई है और अब वो मुझे कानूनन फाॅसी के फंदे पर झुलाने के लिए यहाॅ से ले जाएगी। सबकी देख भाल करना भाई, और सबको ढेर सारी खुशियाॅ देना। एक नया संसार बनाइये और उसमें सबको खुश रखिये।"

अभी शिवा अपनी इन बातों से मुझे चकित ही किये था कि हर तरफ पुलिस के आदमी फैलते हुए आ गए। मेरी नज़र दूर से ही कमिश्नर पर पड़ी। मैने पलट कर देखा तो शिवा अपने बाप के मृत शरीर के पास ही अपने हाॅथ में रिवाल्वर लिए बैठ गया था। मतलब साफ था कि वो पुलिस को दिखाना चाहता था कि उसने खुद ही अपने बाप का खून किया है और अब पुलिस को उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए। बड़ी अजीब बात थी वो चाहता तो खुद को बचा भी सकता था। क्योंकि खून करते हुए पुलिस ने उसे देखा ही नहीं था और हम लोग ये बात पुलिस को बताने के बारे में सोच भी सकते थे या नहीं भी।

कमिश्नर जब शिवा के पास पहुॅचा तो शिवा उसकी तरफ देख कर बोला___"अच्छा हुआ कि आप आ गए। आज इस पापी को इसके ही पापी बेटे ने मौत के घाट उतार दिया है। लीजिए अब मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।"
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11-24-2019, 01:19 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
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11-24-2019, 01:19 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट.......《 63 》

अब तक,,,,,,,,
शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

ऑधी तूफान बने हम सब आख़िर हास्पिटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी हमने रितू दीदी व अभय चाचा को स्ट्रेचर पर लिटा कर हास्पिटल के अंदर ले गए। कुछ ही देर में उन दोनो को ओटी के अंदर ले जाया गया। उन्हें अंदर ले जाते ही ओटी का दरवाज़ा बंद हो गया और हम सब बाहर ही चिंता व परेशानी की हालत में खड़े रह गए।

हम सब बेहद दुखी थे और भगवान से उन दोनो को सलामत रखने की मिन्नतें कर रहे थे। करुणा चाची के ऑसू बंद ही नहीं हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने पहले ही फोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता दिया था ताकि यहाॅ पर किसी प्रकार की परेशानी न हो सके और जल्द ही उनका इलाज़ शुरू हो जाए।

बड़ी माॅ हम सब से अलग एक तरफ गुमसुम सी खड़ी थीं। उनकी माॅग का सिंदूर मिटा हुआ था तथा हाॅथ की चूड़ियाॅ भी कुछ टूटी हुई थीं। मतलब साफ था कि पति की मौत के बाद उन्होंने खुद को विधवा बना लिया था। इस वक्त उनके चेहरे पर संसार भर की वीरानी थी। ऑखों में सूनापन था।

अधर्म पर धर्म की तथा बुराई पर अच्छाई की जीत तो हो चुकी थी किन्तु इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने वाले दो ब्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे। मैं रितू दीदी के लिए सबसे ज्यादा दुखी था। मेरी ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुंदर छवि चमक उठती थी। उनके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे। रितू दीदी ने शुरू से लेकर अब तक मेरा कितना साथ दिया था ये बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर मैं ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस जीत का सारा श्रेय ही उनको जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी। यूॅ तो मैं जीवन भर उनका ऋणी ही बन चुका था किन्तु एक ये भी सच्चाई थी कि मैं उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। मैं बचपन से ही उन्हें बेहद पसंद करता था और उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने की चाहत रखता था। अब तक तो नहीं पर अब लग रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नहीं पाऊॅगा।

आदित्य मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं खुद को सम्हालूॅ और सबको भी सम्हालूॅ। वो खुद भी बेहद दुखी था। उसने हम सबको अपना ही मान लिया था। उसने मुझे समझाया कि मैं खुद को मजबूत करूॅ वरना सब इस सबसे दुखी होते रहेंगे। आदित्य की बात सुन कर मैने खुद को सम्हाला और फिर सबको वहीं एक तरफ लम्बी सी बेंच में बैठ जाने के लिए कहा। मेरे ज़ोर देने पर आख़िर सब लोग बैठ ही गए। मेरी नज़र दूर एक तरफ खड़ी बड़ी माॅ पर पड़ी तो मैं उनके पास चला गया।

बड़ी माॅ कहीं खोई हुई सी खड़ी एकटक शून्य को घूरे जा रही थीं। मैं उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तंद्रा टूटी। उन्होंने मेरी तरफ अजीब भाव से देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से शून्य में देखने लगीं। मैने बड़ी माॅ से भी बैठ जाने के लिए कहा तो वो मेरे साथ ही दूसरी साइड की बेंच की तरफ आईं और बैठ गईं। उनके पास ही मैं भी बैठ गया। हलाॅकि मेरे उनके पास बैठ जाने से सामने ही बेंच पर बैठे सब लोग मुझे घूर कर देखने लगे थे मगर मैने उनके घूरने की कोई परवाह नहीं की।

मेरे मन में बड़ी माॅ की उस वक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे फोन किया था। इतना तो मुझे पता था कि हर इंसान को एक दिन अपने गुनाहों का एहसास होता है। वक्त और हालात इंसान को ऐसी जगह ला कर खड़ा कर देते हैं जब उसे शिद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने लगता है। वही हाल बड़ी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कि उन्होंने अपने पति से ऑख बंद करके तथा बिना कुछ सोचे समझे बेपनाह प्रेम किया था। जिसका सबूत ये था कि उन्होंने अजय सिंह के हर गुनाह में उसका खुशी खुशी साथ दिया था। उन्होंने कभी भी अपने पति से ये नहीं कहा कि वो ग़लत कर रहा है और वो ग़लत में उसका साथ नहीं देंगी। इंसान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ज़मीर ख़ामोश होकर बैठ जाता है। या फिर इंसान ज़बरदस्ती अपने ज़मीर का करुण क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है। फिर चाहे वो जिस रूप में हो। ख़ैर, मेरे मन में बड़ी माॅ से फोन पर हुई वो सब बातें चल रही थीं।

बड़ी माॅ से फोन पर पहले तो मैने कठोरतापूर्ण ही बातें की थी किन्तु जब उन्होंने अभय चाचा की असलियत और अपने पति से उनके द्वारा फोन पर हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हॅसा था, क्योंकि मुझे लगा कि बड़ी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं जिसमें वो अभय चाचा के खिलाफ ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रति शंका या दरार जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि भला उन्हें ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? दूसरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी कीं जिन बातों की मैं उनसे उम्मींद ही नहीं कर सकता था।

काफी समय तक हम सब ऐसे ही बैठे रहे थे। हम सबकी साॅसें हमारे हलक में अटकी हुई थी। ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी ख़याल आ जाते जिनके तहत हमारे जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आख़िर लम्बे इन्तज़ार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बुझा और फिर दरवाजा खुला। दरवाज़ा खुलते ही हम सब एक साथ ही खड़े होकर डाक्टर के पास तेज़ी से पहुॅचे।

"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाव से पूछा___"मेरा बेटा और बेटी कैसी है अब? वो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी बताइये डाक्टर साहब। वो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को देख कर डाक्टर तुरंत कुछ न बोला। ये देख कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर चढ़ दौड़े। करुणा चाची बुरी तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते देख दिव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यथित देख डाक्टर के चेहरे के भाव बदले।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बुलेट निकाल दी है। फिलहाल वो खतरे से बाहर हैं किन्तु खून ज्यादा बह जाने से उनकी हालत अभी बेहतर नहीं है। ख़ैर अभी तो वो दोनो बेहोश हैं। इस लिए आप लोग उनसे बात नहीं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सुन कर हम सबके निस्तेज पड़ चुके चेहरों पर जैसे नई ताज़गी सी आ गई। हम सब एक दूसरे की तरफ देख देख कर एक दूसरे से कहने लगे कि सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद किया। गौरी माॅ को अचानक ही जाने क्या हुआ कि वो पलटी और गैलरी में एक तरफ को लगभग दौड़ते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते देख चौंके तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरफ तेज़ी से बढ़ चले।

कुछ ही देर में हम सब जिस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस जगह का दृष्य देख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल वो गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर था। जिसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े बैठी गौरी माॅ नज़र आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गणेश जी के सामने अपने अपने हाॅथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़े हो कर हम सबने उनकी स्तुति की और उनकी इस कृपा के लिए हम सबने उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद दिया।

जैसा कि डाक्टर ने बताया था कि अभी रितू दीदी व अभय चाचा बेहोश हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे। ख़ैर दिन ढल चुका था। मुझे पता था कि इस सबके चक्कर में किसी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। अतः मैंने आदित्य व पवन को साथ लिया और पास के ही एक होटेल से सबके लिए खाने पीने का प्रबंध किया। मेरे और आदित्य के ज़ोर देने पर आख़िर सबको थोड़ा बहुत खाना ही पड़ा। हलाॅकि इसके लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि आज हमारे परिवार के एक बड़े सदस्य की मौत हो चुकी थी तथा दूसरा अपने पिता के कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार हो चुका था। निश्चय ही उसे या तो फाॅसी की सज़ा होगी या फिर ऊम्र कैद।
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11-24-2019, 01:19 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
वो दोनो बुरे ही सही किन्तु उनसे खून का रिश्ता तो था ही। फार्महाउस पर कदाचित अभी भी अजय सिंह का मृत शरीर पड़ा होगा। हम सब तो रितू दीदी व अभय चाचू को लेकर हास्पिटल आ गए थे। उसके बाद वहाॅ पर अजय सिंह की लाश यूॅ ही लावारिश ही पड़ी रह गई होगी। या फिर ऐसा हुआ होगा कि कमिश्नर ने इस पर कोई कानूनी प्रक्रिया की होगी। जिसके तहत वो अजय सिंह की लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्डम के लिए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक मिली नहीं थी, बल्कि ये महज हम सबका ख़याल ही था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस वक्त रात के दस बज रहे थे जब हास्पिटल की एक नर्स ने आ कर हमें बताया कि रितू दीदी व अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब नर्स की ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और फिर फौरन ही हम सब उस कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर रितू दीदी व अभय चाचू को शिफ्ट किया गया था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत देखा तो जान में जान आई। करुणा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये देख कर माॅ ने उन्हें समझाया कि अब उसे रोना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर दिया है।

मैं रितू दीदी के पास ही बैठ गया था और एकटक उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। वो खुद भी मुझे देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के लिए काॅपे जा रहे थे। ये देख कर मैने उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और फिर झुक कर उनके माथे पर चूम लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बंद हो गईं। ऐसे जैसे कि मेरे ऐसा करने से उन्हें कितना सुकून मिला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा दीदी, निधी व दिव्या पास ही चारो तरफ से घेरे खड़ी थीं।

यहाॅ पर मुझे एक चीज़ बहुत अजीब लग रही थी और वो था बड़ी माॅ का बिहैवियर। वो हम सबसे अलग दूर खड़ी थीं। दूर से ही वो अपनी बेटी रितू को देख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे। उनसे कोई बात नहीं कर रहा था और ना ही वो किसी से बात करने की कोई कोशिश कर रही थीं। उन्होंने तो जैसे खुद को हम सबसे अलग समझ लिया था।

उस रात हम सब हास्पिटल में ही रहे। दूसरे दिन डाक्टर से मिले तो डाक्टर ने कुछ दिन बेड रेस्ट के लिए यहीं रहने का कहा। इस बीच कमिश्नर साहब भी हमसे मिलने आए और सबका हाल अहवाल लिया। रितू दीदी से वो बड़े प्यार से मिले तथा उन्हें ये भी कहा कि उन्हें उन पर नाज़ है। कमिश्नर साहब ने बताया कि अजय सिंह की डेड बाॅडी पोस्टमार्डम के बाद आज दोपहर तक मिल जाएगी। ताकि हम उनका अंतिम संस्कार कर सकें।

अभय चाचा के बार बार ज़ोर देने पर माॅ इस बात पर राज़ी हुई कि वो बाॅकी सबको लेकर गाॅव जाएॅ। अभय चाचा ने बड़ी माॅ से भी आग्रह किया कि वो सबके साथ गाॅव जाएॅ। मैने नैना बुआ आदि को पवन के साथ ही हवेली जाने का कह दिया। जबकि मैं और आदित्य रितू दीदी व अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे।

आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद सब जाने के लिए राज़ी हुए। हास्पिटल से बाहर आकर मैने सबको गाड़ियों में बैठा दिया। मैने केशव जी को फोन करके बुला लिया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो वो हैरान हुए उसके बाद खुश भी हुए। मैने उनके कुछ आदमियों को माॅ लोगों के साथ हल्दीपुर जाने के लिए उनसे कहा। केशव जी मेरी बात तुरंत मान गए और फिर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदमियों बुला लिया।

करुणा चाची जाने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया और कहा कि वो किसी बात की फिक्र न करें। ख़ैर उन सबके जाने के बाद मैने कमिश्नर साहब से शिवा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शिवा से बात की थी कि वो चाहे तो कानून से छूट सकता है। किन्तु शिवा अपनी बात पर अडिग है। उसका कहना है कि वो इस जीवन से मुक्ति चाहता है। उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो वापस सबके बीच रह सके। सारी ज़िंदगी वो सबके सामने शर्म से गड़ा रहेगा और चैन से जी नहीं पाएगा। शिवा के न मानने पर ही कमिश्नर साहब ने केस फाइल किया। अपने बाप की चिता को आग देने के लिए उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पुलिस उसे वापस जेल में बंद कर देगी। अदालत का फैसला क्या होगा इसका पता चलते ही उस पर कानूनी कार्यवाही होगी।

कमिश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आदित्य वापस रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कि मैं इस सबके बारे में अपनी बड़ी बुआ यानी सौम्या बुआ को भी बता दूॅ और यहाॅ बुला लूॅ। फोन पर सारी बातें बताना उचित नहीं था। चाचा की बात सुन कर मैने बुआ को फोन लगाया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से बुआ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्द से जल्द हल्दीपुर आने को कहा। मेरे इस तरह बुलाने पर वो चिंतित होकर पूछने लगीं कि बात क्या है? उनके पूछने पर मैने बस यही कहा कि आप बस आ जाइये।

शाम होते होते कमिश्नर साहब की मौजूदगी में शिवा ने अपने बाप अजय सिंह की चिता को अग्नि दे दी। हल्दीपुर ही नहीं बल्कि आस पास के गाॅव में भी ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल का बड़ा बेटा अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा। शमशान पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। आदित्य को रितू दीदी व अभय चाचू के पास छोड़ कर मैं भी गाॅव आ गया था।

सौम्या बुआ आ चुकी थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का पता चला तो वो दहाड़ें मार मार कर रोने लगी थी। किन्तु बड़ी माॅ ने उन्हें सम्हाल लिया था और कठोर भाव से ये भी कहा कि ऐसे इंसान के मरने का शोक मत करो जिसने अपने जीवन में किसी के साथ कोई अच्छा काम ही न किया हो। बड़ी माॅ की ऐसी बातें सुन कर सौम्या बुआ हतप्रभ रह गई थीं। उन्हें थोड़ी बहुत पता तो था किन्तु सारी असलियत से वो अंजान थीं।

सारी क्रिया संपन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हवेली में हर तरफ एक भयावह सा सन्नाटा फैला हुआ था। हवेली के नौकर चाकर सब संजीदा थे। सौम्या बुआ के साथ उनके पति भी आए थे। मैने उनसे सब का ख़याल रखने का कहा और जीप लेकर वापस गुनगुन आ गया। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। मैं और आदित्य डाक्टर की परमीशन से रितू दीदी व अभय चाचा को हास्पिटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी नाज़ुक ही थी। इस लिए उनकी देख रेख के लिए सब मौजूद थे।

तेरवीं के दिन ब्राम्हणों को भोज कराया गया। सभी नात रिश्तेदार आए हुए थे। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात थी कि ठाकुर खानदान में ये अचानक क्या हो गया है? हलाॅकि इतना तो सब समझते थे कि ठाकुर खानदान में कुछ सालों से ग्रहण सा लगा हुआ था। दबी ज़मान में तो लोग ये भी कहते थे कि अजय सिंह ने घर की खुशियों में खुद आग लगाई थी। ख़ैर, एक दिन कमिश्नर साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि अदालत ने शिवा को ऊम्र कैद की सज़ा सुनाई है। ये जान कर हम सबको बहुत अजीब लगा था। शिवा ने अपनी मर्ज़ी से अपने इस अंजाम का चुनाव किया था, जबकि वो चाहता तो बड़े आराम से वो कत्ल के इल्ज़ाम से बरी हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उस पर कत्ल जैसा कोई इल्ज़ान लगता ही नहीं। मेरे ज़हन में उससे अंतिम मुलाक़ात की वो सब बातें घूम रहीं थी। मैं समझ सकता था कि वह एकदम से जुनूनी हो चुका था। उसकी सोच ऐसी हो चुकी थी कि उसे कोई समझा नहीं सकता था।

अजय सिंह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब कुछ बता दिया था। वो ये जान कर आश्चर्यचकित थे कि अभय चाचा ने इतना बड़ा धोखा किया था हमारे साथ। तेरवीं के दिन जगदीश ओबराय हमारे गाॅव आए थे। एक दो दिन रुक कर वो वापस मुम्बई चले गए थे। साथ ही हम सबको समझाया बुझाया भी था कि अब हम सब एक नये सिरे से जीवन पथ पर आगे बढ़ें। जाते समय वो थोड़ा मायूस लगे मुझे तो मैने और माॅ ने उनसे पूॅछ ही लिया कि क्या बात है? हमारे पूछने पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो अकेले मुम्बई में रह नहीं पाएॅगे। उनकी बातों को हम बखूबी समझते थे। इस लिए उन्हें तसल्ली दी कि वो फिक्र न करें। माॅ ने कहा कि राज और गुड़िया की तो पढ़ाई ही चल रही है अभी। इस लिए वो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे।

जैसा कि आप सबको पता है कि हवेली में तीनों भाइयों का बराबर हिस्सा था तथा हवेली बनाई भी इस तरह गई थी कि सबको बराबर बराबर मिल सके। अतः हवेली में आते ही हम सब अपने अपने हिस्सों में रहने लगे थे। किन्तु इसमें नई बात ये थी कि हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में बनने लगा था। रितू दीदी व अभय चाचा की सेहत में काफी सुधार हो गया था। रितू दीदी हमारे हिस्से पर ही एक कमरे में रह रही थीं। बड़ी माॅ(प्रतिमा) अपने हिस्से पर अकेली रहती थी। वो किसी से कोई बात नहीं करती थी और ना ही किसी के सामने आती थी। सारा दिन और रात वो अपने कमरे में ही रहती। रितू दीदी व नीलम उनसे कोई बात नहीं करती थीं। हलाॅकि ऐसा नहीं होना चाहिए था मगर कदाचित दिलो दिमाग़ से वो सब बातें अभी निकली नहीं थी। इस लिए उनसे कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझता था। हलाॅकि मैं आदित्य व पवन उनसे बात करते थे और उनके लिए दोनो टाइम का खाना व चाय नास्ता मैं ही लेकर उनके पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कि वो खा नहीं लेती थी।

ऐसे ही समय गुज़र रहा था। धीरे धीरे सब नार्मल हो रहे थे। किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसने मुझे दुखी किया हुआ था और वो था गुड़िया(निधी) का मेरे प्रति बर्ताव। इतना कुछ होने के बाद और इतने दिन गुज़र जाने के बाद मैने ये देखा था कि उसने मुझसे कोई बात नहीं की थी और ना ही मेरे सामने आने की कोई ख़ता की थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने दिल की इस धड़कन को कैसे मनाऊॅ? मेरे मन में कई बार ये विचार आया कि मैं उसके पास जाऊॅ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ कि ऐसा क्या हो गया है कि उसने मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि मेरे सामने आना भी बंद कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा कर नहीं पा रहा था क्योंकि गुड़िया के पास हर समय आशा दीदी बनी रहती थी। अपनी इस बेबसी को मैं किसी के सामने ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
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11-24-2019, 01:20 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।
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