RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
सामने जो मंज़र था.. वो लड़का उस आदमी का गिरेबान पकड़े कुछ कहा, उस आदमी ने "ना" मे सिर हिलाया, और उसके "ना" मे सिर हिलाते ही सिर पर एक बॉटल फोड़ डाली. वो आदमी पहले से अधमरा था, और उस पर कोई रहम ना दिखाते हुए, वो लड़का उसे मारे ही जा रहा था.
वो लड़का एक हाथ से उसका गिरेबान पकड़े दूसरे हाथ से उसे थप्पड़ पे थप्पड़ मारे जा रहा था. और वो किसी लाश की तरह झूलता बस मार खा रहा था. रीति जब ये देखी तो उस से रहा नही गया, और वो बीच-बचाओ के लिए पहुँच गयी.
उस लड़के ने मारने के लिए हाथ उठाया ही था, कि रीति उसका हाथ पकड़ कर रोक ली. उस लड़के ने गुस्से से लाल आँखें किए अपने बगल मे देखा, आख़िर उसका हाथ पकड़ने की जुर्रत किस ने की, और जब नज़र रीति पर गयी, तो वो नज़रें उधर ही अटक गयी.
उस लड़के के दूसरे हाथ की पकड़ खुद-व-खुद ढीली पर गयी, वो आदमी उसके हाथों से छूट गया था, और छूट कर कब निकला उसे पता भी नही चला, हां लेकिन दूसरा हाथ अब भी उसी तरह उपर ही रहा, जैसे अब भी कॉलर पकड़े ही हो.
इधर जब रीति की नज़रें एक बार फिर उस से मिली, तो वही पिच्छली रात की तरह समा हो गया, वो भी उसका हाथ रोके बस उसी को ही देख रही थी. दोनो के लिए जैसे ये पल थम गया हो, आस-पास इस समा मे जैसे और कोई ना हो, बस वो लड़का और रीति.
"क़ाहह ..... क़ाहह" वासू गले से खरास की आवाज़ निकलती...... दोनो मूर्ति बन गये क्या ?
वासू के टोकने से दोनो का ध्यान टूटा. रीति को फिर वास्तविक स्थिति याद आई, और जो दिल का प्यार था वो मन की चिड-चिड़ाहट बनते हुए ..... "आप उस बेचारे असहाय आदमी को क्यों मार रहे थे, ज़रा भी शरम नही आई आप को उसे मारते हुए. कितना खून निकल रहा था, बेचारा बिल्कुल अधमरा सा हो गया था. मैं ना हाथ पकड़'ती तो आप उसे मार ही डालते"
वो लड़का बस बस रीति के गुस्से से भरे चेहरे को निहार रहा था, गुस्से मे जब वो अपने बाल की लटे इतराकर उस्र की तो ... ईश्ह्ह्ह ! एक चुभन सी पैदा ही गयी उसके दिल मे. वो तो बस रीति के सादगी और खूबसूरती को ही निहार रहा था.
रीति.... मैं क्या पागल हूँ जो अकेली इतने देर से बोली जा रही हूँ, आप को कुछ समझ मे भी आता है.
लड़का.... हाई, मैं अभी हूँ .. अभिनश वेर्मा.
रीति.... अभी हो, या कल हो या परसो हों आप, मुझे उस से कोई लेना देना नही, आप उसे मार क्यों रहे थे.
अभी.... ये तो मेरा काम है, मैं नही मारता तो वो मुझे मारता. अब मार खाने से तो अच्छा है कि मैं ही मार लूँ.
रीति... हुहह ! गुंडे हो या पोलीस हो जो मार पीट करना काम है.
अभी.... एक बात कहूँ...
रीति.... क्या है ?
अभी.... आप बहुत सुंदर हैं, आप के होठ जैसे गुलाब की पंखुरी, गाल लाल टमाटर लगते हैं, झील से गहरी आँखें है, जिनमे डूब जाने को दिल करता है. और जब गुस्से से आप अपनी बाल की लटो को जब उपर करती हैं, हायययी ! ये दिल घायल हो जाता है रीति.
रीति गुस्से मे हुहह कहती हुई चली गयी, जब वो जा रही थी तब लड़का पिछे से चिल्लाते हुए... मेडम आज रात ज़रूर घूमने निकलियेगा, मैं आज मिल जाउन्गा.
रीति मुँह ऐंठ'ते वहाँ से कुछ आगे बढ़ी और वासू से.... हिम्मत देखी उसकी, कैसी बातें कर रहा था मवाली.
वासू.... पर वो बातें तो लगता है दिल से कर रहा था, कितनी तारीफे की तुम्हारी.
रीति.... दया नाम की चीज़ नही जिसके दिल मे उसकी तारीफें भी गाली जैसी लगती है, मत याद दिलाओ वो बातें.
वासू.... वैसे एक तक निहार तो तू भी उसे रही थी रीति, दिल मे कुछ और और मन मे कुच्छ और.
रीति, चिड चिड़ाटी हुई.... हुहह ! चिढ़ाना बंद करो प्लीज़, आज का दिन ही खराब है, दोस्त अपने नही रहे, और जिसकी तलाश कयि महीनो से कर रही थी, वो भी गुंडा निकला.
वासू... पर गुंडे की ऐसी अदा नही होती, मुझे तो कोई पोलीस वाला लगा.
रीति.... तो होगा कोई घूसखोर, मुझे तो पोलीस वाले गुण्डों से ज़्यादा बदमाश लगते हैं, पैसे दिए तो काम होगा नही दिए तो अभी जैसा उस बेचारे आदमी का हाल हो रहा था वैसा, इनकी तो बात ही मत करो.
वासू... अच्छा बाबा, तुम क्यों खून जला रही है, नही करती बात बस. पर ये तो बता दे आज रात आएगी क्या मिलने.
रीति... जी बिल्कुल भी नही, अभी इस पल से मैं उसे अपने दिल से और दिमाग़ से निकाल रही हूँ.
रीति काफ़ी गुस्से और पछतावे के साथ हॉस्टिल चली आई. हॉस्टिल का महॉल भी कुछ शांत ही था, एक कमरे मे रीति और सैली थी, पर दोनो चुप-चुप. वही हाल इंदु और वासू का भी था.
कुछ ही देर मे आधी रात का वक़्त ही गया, और रीति का किया गया प्रण.. "अभी से उसे दिल और दिमाग़ से निकालती हूँ".. डगमगाने लगा. कभी दिल करता जाउ, कभी दिल करता ना जाउ... हां-ना, हां-ना के बीच फँसी रीति आख़िर 12:30आम बजे अपने कमरे से बाहर निकली, और बाल्कनी मे आकर एक बार बाहर देखने लगी.
बाहर की ओर पूरा नज़र घुमा कर देख ली, कोई नही था... खुद से ही कहती .."हुहह ! झूठा" और पिछे मूडी... पीछे उसके वासू खड़ी थी जो मुस्कुरा रही थी....
वासू.... कुछ घंटे पहले क्या कहा था रीति मेडम ने.
रीति...... "क्या कही थी मैं" .. थोड़ी भोली बनती हुई कही
वासू.... आआ .. हाअ... हाअ, बोल तो ऐसे रही है, जैसे कितनी मासूम हो, बेबी को कुछ पता ही नही.
रीति.... जा रही हूँ सोने, मुझे नींद आ रही है.
वासू.... अच्छा सुन, मैं क्या कह रही थी, कि जब बाहर निकल ही आई है, तो चल चल-कर देख आते हैं. अर्रे हो सकता है कोई सच्चा और ईमानदार पोलीस वाला हो. अगर ऐसा हुआ तो कर तो वो देश की सेवा ही रहा है ना, और ऐसे व्यक्ति से तू प्यार करेगी, तो तेरे लिए फक्र की बात है.
रीति.... मेरा ब्रैन्वाश करने की कोशिस ना करी वासू, मैं कोई भी लॉजिक नही सुन'ने वाली.
वासू... अर्रे चल तो ज़िद पर क्यों अड़ी है..
और इतना बोल कर वासू, रीति को ज़बरदस्ती अपने साथ खींच कर ले गयी. वाचमेन ने 100 की हर्याली देख कर फिर गेट खोल दिया. दोनो कदम बाहर रखी ही थी, कि बौंड्री वॉल के दाएँ अभी खड़ा था.
अभी अपना एक हाथ उठाकर रीति को "हाई" कहा. रीति अपना मुँह ऐंठ'ती हुई "हुहह" मे उसका उत्तर दी और दूसरी ओर मूड गयी. एक ऑर अभी मुस्कुराते बस रीति को देख रहा था, वहीं दूसरी ओर रीति अपना हाथ बाँधे दूसरी ओर देख रही थी, और बीच मे वासू खड़ी... कभी नज़र अभी की ओर तो कभी रीति की ओर.
वासू.... ओ' हेलो मिस्टर. अभी, आप बताएँगे कि क्यों आप ने ऐसा कहा कि, आज रात बाहर आना मैं मिल जाउन्गा. आप को कैसे पता कि हम बाहर आते हैं, और बाहर आते भी हैं तो आप को ढूँढने.
वासू की बात सुन कर रीति अपनी हाथ खोलती, वासू की ओर देखने लगी. अभी अपने होंठों की मुस्कान बरकरार रखते हुए ....
"क्योंकि, मैं भी आया था, पिछ्ले कयि महीनो मे कयि बार इन्ही की तलाश मे, लेकिन मुझे लगा सिर्फ़ ये मेरा दीवानापन था, इनसे एक बार मिलने का. पर कुछ दिन पहले आप दोनो को बाहर घूमते देखा और बातें सुनी तो मेरे दिल को कितनी ख़ुसी हुई क्या बताऊ".
वासू अपने मन मे सोचती... "ये तो बड़ा चालू चीज़ है"... फिर कहने लगी... पर हम ने तो तुम्हे नही देखा, थे कहाँ.
अभी... यहीं था, इस पेड़ के उपर. वो क्या है ना, मैं इतने दिनो से भटका था, तो सोचा इन्हे भी कुछ दिन यूँ ही सड़क पर भटकने दूं. आप लोगों ने भटकना छोड़ दिया, इसलिए मैं तो सोच भी रहा था कि एक दिन मैं रीति से मिलूं.
रीति.... "वासू, आप थोड़ा चुप रहिए, मुझे बात करने दीजिए".... इतना कह कर रीति मूडी अभी की ओर और अपनी उंगली दिखाती हुई.....
"सुनो, किसी के दिल की बात छिप कर सुन लेने का मतलब ये नही, कि जब आप सामने आओ तो वो आप के प्यार मे पागल बिच्छ जाए. पहली बार का ये मेरा आप के प्रति अट्रर्क्षन था, और मात्र अट्रर्क्षन. इसे प्लीज़ कोई नाम मत दीजिए. किसी से मिलने का इच्छा करने का मतलब प्यार ही नही होता, और वैसे भी प्यार आप से, कभी नही. और ये क्या उस वक़्त बोल रहे थे .. कुछ "दीवानापन" वर्ड यूज़ किए थे ना. इसे करेक्ट कर के पागलपन कहिए और यहाँ से आगरा पास है वहाँ इलाज़ के लिए चले जाइए".
अभी अपने गंभीर स्वर मे ..... इलाज़ ही तो करवा रहा हूँ....
इतना कह कर अभी ने बड़ा सीरीयस सा फेशियल एक्सप्रेशन देते हुए, अपने बालों पर हाथ फेरा, थोड़ी सी डबडबाइ आँखें और देखने लगा दोनो को. ऐसा देखने से लग रहा था कि कितना दर्द भरा है इसके दिल मे.
रीति जो अभी गुस्से मे थी, उसका चेहरा देख कर बड़ी चिंता से पूछती हुई.... क्यों क्या हो गया, किस बात का इलाज़ चल रहा है.
अभी, तोड़ा खामोश रहकर, एक लंबी सांस लेता और छोड़ता हुआ.....
"आप को क्या लगता है, मैं कोई आवारा हूँ, चोर हूँ. मैं तो यहाँ आया था अपनी माँ का इलाज़ करवाने, अपने घर इलाहाबाद से. मैं वहाँ अपना दुकान संभालता हूँ. हम दुकानदार लोग, हमें किसी से लड़ाई झगड़े से क्या लेना. माँ को बहुत गंभीर बीमारी हुई, काफ़ी इलाज़ चला इलाहाबाद मे ही, पर कोई सुनवाई नही हुई".
"पूरी दुनिया मे मेरा सिर्फ़ अपना कहने वाला मेरी माँ, और उनके लिए मैं. अकेले वहाँ काफ़ी तकलीफ़ भी उठाई, घर का सारा काम, दुकान का सारा काम, और माँ की देख-भाल मुझ अकेले को ही करनी पड़ी. मैं इलाहाबाद मे ही उनका पूरा इलाज़ करवाना चाहता था"
इतना कह कर, एक लंबी सांस लिया, और अपने दोनो हाथों पर हाथ फेरते हुए उसे सॉफ किया और फिर कहने लगा.....
"हमारी जीविका का श्रोत्त केवल वो दुकान, और उसे बंद कर देता तो, पैसे की भी परेशानी आ जाती. लेकिन डॉक्टर्स के क्लिनिक के चक्कर लगा-लगा कर मैं परेशान हो गया था. कभी-कभी तो माँ का दर्द देख कर आत्महत्या करने को दिल करता था, पर मैं ही तो उनकी हिम्मत था, इसलिए अंदर से रोता रहता और ना चाह कर उपर से हंसता"
"अंत मे जब कोई इलाज़ काम नही आया तो मैं उन्हे यहाँ ले आया. इलाज़ के चक्कर मे सब बिक गया. और उपर से कोई आदमी उसी माँ को भला बुरा कहे, उनके हाथ से उनका पैसा छीन कर धकका दे दे, और उस धक्के से उनका सिर फुट जाए तो क्या करूँ मैं. क्यों नही खून खौलेगा मेरा. क्या किसी ने मुझ पर रहम किया, नही किया. एक माँ ही तो है जिसकी ख़ुसी के लिए मैं जिंदा हूँ. और मेरी उसी माँ सिर से खून निकाल दिया".
अपनी दुख भरी दास्तान सुना'ने के बाद अभी शांत होगया, और आँखों को फिर से सॉफ करते हुए पैर से सिर को अड़ा लिया. उसकी कहानी सुन'ने के बाद रीति की भी आँखें नम हो गयी. वो जैसे अभी के दर्द को महसूस कर रही थी. उसके पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखती....
"आइ आम सॉरी अभी जी, मुझे नही पता था. जो सामने दिखा उसे सच मान कर बस जो मन मे आया बोल दी. वैसे भी आप काफ़ी महान है, जो इतना सब होने के बाद भी इतना किया अपनी माँ के लिए. वैसे भी ये रीना सोभा नही देता आप को. लड़के रोते हुए अच्छे नही लगते".
वासू.... ओ' मिस्टर. अभी, अब बस भी करो, हमें भी रुला दिया. चलो अब सारे गिले सीकवे दूर तो अब से हम दोस्त.
अभी के मुँह से अचानक ही निकल गया... सिर्फ़ दोस्त...
वासू और रीति हैरानी भारी नज़रों से उसे देखने लगी... अपनी बात को संभालते हुए... सच दोस्त ... मुझे ख़ुसी होगी.
रीति और वासू को लगा शायद बोलने की ग़लती हो गयी ... दोनो हँसती हुई, एक साथ बोली .. "हान्णन्न्"
अभी... तो इस नयी दोस्ती की शुरुआत मे कुछ मीठा हो जाए.
वासू.... सॉरी, आज इसे शुरुआत ना मान कर कल से शुरुआत मानते हैं, और कल मीठे का प्रोग्राम, अभी रात ज़्यादा हो गयी है. हमे सोना भी है, और कल सुबह कॉलेज भी जाना है. सो गुड नाइट अभी, जाओ तुम भी सो जाओ.
अभी... हां वो तो सो ही जाउन्गा, पर कोई कॉंटॅक्ट नंबर तो हो तब तो मैं कल मुँह मीठा करूँगा ना, और करवाउन्गा भी.
रीति अपना नंबर बोलने के लिए .. 96 ... बोली ही थी कि वासू उसका कंधा पकड़'ती हुई ... कल यहीं रात मे 9:30पीएम बजे के बाद मिलते हैं, चॉकलेट ले आना, अभी गुड नाइट.
अभी बुझे मन से "गुड नाइट" बोलता हुए, मन मे 100 बार वासू को कोसते चला गया. उसके जाने के बाद वासू, रीति को डांटती हुई.... तू क्या पागल है जो पहली मुलाकात मे ही अपना नंबर दे रही थी.
रीति मासूम सा चेहरा बनाती हुई... पर वो तो दोस्त है ना.
वासू..... ओफफफफ्फ़ ओ क्या करूँ इस लड़की का, जब-जब उस लड़के को देखती है, दिमाग़ काम करना बंद कर देता है.
रीति मुस्कुराती हुई.... आप ही तो कही... दिल के मामले मे दिमाग़ नही लेता.
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