Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
08-06-2023, 08:07 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-36

योनि सुगम- गुरूजी के सेक्स ट्रीटमेंट  का प्रभाव


गुरु जी मेरे माथे को चूमते हुए गद्दे से उतरे, जबकि मैं उनके शिष्यों के सामने चमकीले पीले प्रकाश में गद्दे पर  बिलकुल नग्न लेटी हुई थी।

गुरुजी: संजीव उसे दवा दे दो और बेटी तुम आराम करो मैं पांच मिनट में वापस आऊंगा।

संजीव ने मुझे एक प्याला थमा दिया जिसमें उसने हरे रंग की दवाई डाल दी थी।

तरल पदार्थ का स्वाद बहुत अच्छा था और जैसे ही यह मेरे गले में उतरा इसने मुझे एक शांत प्रभाव के साथ-साथ एक बहुत ही संतोषजनक एहसास दिया। चूंकि मैं अभी भी उस चरणामृत में मिश्रित दवा के प्रभाव से 100% बाहर नहीं आयी थी और साथ ही साथ वह बहुत ही प्रभावशाली चुदाई जो मैंने अभी-अभी गुरु जी के साथ की थी, मैंने अपनी आँखें बंद करना और गद्दे पर थोड़ी देर आराम करना पसंद किया।

मेरे दिमाग में यही विचार घूम रहे थे  की  कहाँ मेरे शर्मीले स्वाभाव की वजह से लेडी डॉक्टर्स के सामने कपड़े उतारने में भी मुझे शरम आती थी. लेडी डॉक्टर चेक करने के लिए जब मेरी चूचियों, निपल या चूत को छूती थी तो मैं एकदम से गीली हो जाती थी. और मुझे बहुत शरम आती थी. और अब मैं पांच पुरुषो के सामने नंगी  थी , उनमे प्रत्येक के साथ लगभग सम्भोग कर चुकी  थी  . और उन्होंने मेरे हर अंग से साथ खिलवाड़ किया था और मेरा शायद ही कोई अंग ऐसा था जिसे चूमा और चूसा नहीं गया था .


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 फिर मेरे दिमाग में यही विचार आये  की मुझे इससे पहले संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ, जब मेरा पति अनिल मुझे चोदता है तो कितना मजा आता है ... और अगर मैं गर्भवती हो गयी तो फिर तो काफी दिन बिना चुदाई के ही रहना होगा । आह, ओह अरे गुरूजी का वह वो मूसल लिंग.. वाह ! उसको देखने से छूने से ...पकड़ने से ...सहलाने से कितना कामुक लग रहा था ...ओह गुरूजी के लिंग की महक... ऐसा लिंग देखना बहुत किस्मत की बात है और फिर उससे चुदना। वाह!  क्या एहसास था जब वह लिंग मेरे अंदर गया था। ...कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था... (ऐसे सोचते ही मेरी योनि में संकुचन हुआ और मैंने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली) वाह!  लिंगा महाराज! वाह ! 

मेरे दिमाग और बंद आँखों के सामने गुरूजी का महा लिंग की छवि घूम रही थी । ओह उनके लिंग की-की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक था, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह में लेकर चूसने में कितना आनंद आया था, गुरूजी के पूरे लिंग को धीरे-धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना ।कितना आनंदमय और उत्तेजक था।

काश मेरे पति का लिंग गुरूजी के लिंग जैसा होता ।काश मेरे जीवन में सदैव के लिए गुरूजी का लिंग होता, काश वह मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करते, बार-बार करते, हर रात करते । काश मेरी योनि को वह बार छूते ...सहलाते ...चूमते ... उफ़ उनकी वह जादुई उंगलिया । मेरे जीवन में मेरा पति नेल हालाँकि मुझे बहुत प्यार करता था और हम दोनों ने शादी के बाद लगातार कई दिन सिर्फ चुदाई ही की थी । । लेकिन फिर धीर धीरे सबकी तरह हमारा सम्भोग पहले हर रात में हुआ, फिर एक दिन छोड़ कर । फिर सप्ताहंत के दिनों में, फिर कभी-कभी । महीने में दो तीन बार । फिर सिर्फ बच्चे पाने के लिए सेक्स सिमित रह गया ... अब अनिल और मेरे संबंधों में भी खटास आने लगी थी. अनिल के साथ सेक्स करने में भी अब कोई मज़ा नही रह गया था , ऐसा लगता था जैसे बच्चा प्राप्त करने के लिए हम ज़बरदस्ती ये काम कर रहे हों. सेक्स का आनंद उठाने की बजाय यही चिंता लगी रहती थी की अबकी बार मुझे गर्भ ठहरेगा या नही.



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क्यों और कब मेरा सेक्स जीवन इतना नीरस हो गया है?  मेरा क्या दोष है? ...क्यों मैं धीरे-धीरे इस सुख से वंचित होती गयी ।

गुरूजी कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नहीं होता...तो क्या...तो क्या...मैं किसी भी पुरुष से सम्भोग कर लू?  ...उफ्फ्फ... नहीं मैं एक परिवार की बहु हूँ मैं ऐसा नहीं कर सकती!  ओह!  गुरूजी का ...लिं...ग...ग...ग।गगगग... मेरे पति का लिंग! ओह! इतना बढ़िया और लम्बा सम्भोग गुरूजी के मुसल लंग के साथ मेरा मन कर रहा था अब मैं बार-बार वही सुख प्राप्त करूँ ।

मैं न चाहते हुए भी आज जो कुछ भी मैंने किया उसके बारे में सोचने के लिए विवश हो गयी थी। आज जीवन में  पहली बार व्यभिचार के सागर में मैं उत्तर गयी थी । मेरा बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और मेरे अंदर की कामाग्नि अभी भी सुलग रही थी । अब गुरूजी के साथ सम्भोग के बाद वह कैसे थमेगी ये मेरी समझ से बाहर था । क्या ये पाप था?

मेरे दिमाग में कुछ शब्द गूंजने लगे मानो गुरूजी कह रहे हो । 

जय लिंगा महाराज!

गुरूजी-रश्मि बेटी! पाप और पुण्य दोनों का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि। पूरी सृष्टि, स्त्री और पुरुष की रचना लिंग देव और योनि माँ ने ही की है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो लिंगा महाराज!  की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जन मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, लिंग देव और माँ के आगे इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियाँ भी कोई चीज़ है बेटी!  इंद्रियाँ  भी लिंग देव के द्वारा ही बनाई हुई हैं, नियम भी उन्ही के बनाये हुए हैं और उनके उपाए भी उन्होंने ही बनाये हैं । ध्यान से सोचो तो सब  लिंगा महाराज!  की बनाई हुई माया है बस, रचा सब  लिंगा महाराज!  ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।

मैं पसीने-पसीने हो गयी, बार-बार आँख बंद करके फिर से उस अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे मेरा बदन बार-बार सनसना जाता, बेचैन होकर मैं कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो मैंने चुपके से अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, और जांघों को मैं रह-रह कर सिकोड़ रही थी, कभी मैं गुरूजी के चुंबन के बारे में सोच कर, तो कभी उनके शिष्यों ने मेरे साथ जो मन्त्र दान में मेरे अंगो का मर्दन किया था वह सोच का लजा जाती और मैंने शर्माकर आँख बंद कर ली, रह-रह कर चुदाई की कल्पना से मेरा मन सिहर उठता, (इस हालत में सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)

बस गुरूजी के साथ सम्भोग की मैंने कल्पना की, मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी।



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ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा

जारी रहेगी जय लिंग महाराज !
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08-06-2023, 08:08 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-37

योनि सुगम-  गुरूजी के चारो शिष्यों को आपसी बातचीत 


बस मैंने मन में गुरूजी के साथ  सम्भोग की कल्पना की और वो सब दोहराया  जो उन्होंने मेरे साथ किया था , मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक हलकी सी सिसकारी निकल गयी।

ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा


ईमानदारी से कहूं तो मैं उत्तेजित हो  गुरू जी की चुदाई की अद्भुत शांत और लंबी शैली को मानसिक तौर पर  दोहरा कर मजे ले रही थी ।


तभी मैंने आँखे खोल कर देखा तो गुरूजी के चारो शिष्य अपना कड़ा  लिंग हाथ में पकड़ कर उसे सहला रहे थे और  मुझे  घूर रहे थे . मुझे अब शर्म लगी और मैं  आँखे बंद  कर  लेती रही . वो चारो आपस में कुछ बात करने लगे .


संजीव: चलो इस तरफ चलते हैं ताकि मैडम  को कोई परेशानी  न हों।

मैं अपनी आँखें खोले बिना महसूस कर सकती थी  कि संजीव और अन्य लोग पूजाघर के दरवाजे की ओर चले गए। मैं काफी सचित थी  हालाँकि मुझे नींद आ रही थी । मैं अभी भी पूरी तरह से नंगी थी  - कमरे की तेज रोशनी में मेरी चुत, जांघें, पेट, नाभि, स्तन सब कुछ खुल का दिख रहा था । ऐसा नहीं है कि मुझे इसके बारे में पता नहीं था, लेकिन गुरु जी की चुदाई का प्रभाव इतना मंत्रमुग्ध कर देने वाला था कि मैं अपनी नग्नता के बारे में भूल गयी  और आराम करने और मैंने उन  सुखद क्षणों को फिर से महसूस करना  पसंद किया।



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संजीव, उदय, निर्मल और राजकमल आपस में धीमे स्वर में गपशप कर रहे थे और उनकी बातचीत का सारा अंश मुझ तक भी नहीं पहुँच रहा था। वास्तव में शुरू में मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही मैंने कुछ मुहावरों को सुना, मैं स्वतः ही उन्हें सुनने के लिए इच्छुक हो गयी ।

निर्मल: तुम क्या सोचते हो? ये मैडम इतनी खूबसूरत दिखती हैं, इन्हें  बच्चा ना होने की दिक्कत कैसे हो सकती है?

संजीव: शायद मैडम को समस्या नहीं है। लगता है कि उनके पति को उनकी क्षमता से समस्या है।

उदय: निश्चित रूप से,  उसकी योनि में  एक किशोरी की जकड़न है!

संजीव: क्या रे! हाल के दिनों में आपने किस किशोरी का स्वाद चखा मेरे प्रिय उदय ?

उदय: हा हा... नहीं, मैं तो बस कह रहा हूं...गुरूजी कह रहे थे न बहुत टाइट है !  सच! और फिर यह इतना लंबा हो गया है कि मैंने एक आरसे से किसी किशोरी की  चुदाई नहीं की है!

संजीव : उसकी इच्छा देखिए! साला… स्वीट सोलह  की किशोरी ! बाबू ढूंढते रह जाओगे!

राजकमल : क्यों? क्या आप सब उस आशा को भूल गए हैं?

संजीव : ओह! मैं उसे कैसे भूल सकता हूँ! क्या माल थी यार! काश! हममें से कोई भी उसे चोद नहीं सका था!

राजकमल : सच कह रहे हो ! लेकिन मैं अभी भी कभी कभी उसके छोटे बालों वाली चुत और तंग सेब और उस  हस्तमैथुन की कल्पना करता हूं।

निर्मल: काश आशा भविष्य में फिर से किसी भी समस्या के लिए यहां आए… हे हे …



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उदय : फिर भी ! हमें खुश होना चाहिए कि हम उस सेक्सी माल को पूरी तरह नंगी देख पाए।

राजकमल : उउउउउउह! उसके दोस्स्ढ़  वाह क्या दूध थे उसके !

उदय: पियो गिलास भर गया हैं ! हा हा हा…

राजकमल: काश मैं उसे चोद पाता और निश्चित रूप से वह मेरी उम्र के कारण मुझे पसंद करती।

संजीव : हुह! अपनी उम्र का ख्याल करो और खुश रहो! साला!

निर्मल: लेकिन दोस्तों, यह मैडम  भी बड़ी आकर्षक भी है क्योंकि वह परिपक्व है और शादीशुदा भी है।

संजीव : उह! हाँ, मैं मानता हूँ! इतनी चुदाई के बाद भी, मैं साली के स्तनों की जकड़न को देखकर चकित रह जाता हूँ!

निर्मल : उउउउह! हाँ, उसके स्तन रबर-टाइट हैं क्या आपने उसके निप्पलों पर ध्यान दिया! उह... हमेशा ध्यान मुद्रा में! हा हा हा…

संजीव: अगर मैं उसका पति होता तो सारी रात उन्हें चूसता!

राजकमल : निमल भैया ! तुम्हारे कद के साथ तुम उस के दिवास्वप्न ही देख सकते हो!

हा हा हा... ठहाकों की गड़गड़ाहट हुई।

निर्मल : चुप रहो ! क्यों? क्या प्रिया मैडम ने सबके सामने नहीं बताया कि वो मुझसे प्यार करती हैं...

संजीव: नाटे के पार्टी  नाटी का प्यार...

निर्मल: भाई  प्लीज ! उसे "नाटी" मत कहो!

हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।

उदय: लेकिन यार संजीव, तुम कुछ भी कहो, प्रिया मैडम ने हमारे निर्मल को बहुत भोग लगाया।

संजीव : भोग ! एक दिन ये उसके साथ नहाया इस मदर चौद  ने बहुत मजे लिए  !


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उदय : साला ! क्या तुम उसके पति को भूल गए  हो! एक शुद्ध अंडरटेकर! क्या उसे पता है कि हमारे निर्मल ने नहाते समय  उसकी बीवी का पीठ धो दिया था...

राजकमल : उसे पता चलेगा  तो वो  हमारे निर्मल भैया को तो निगल ही लेंगा ! हा हा हा..

निर्मल : चुप करो  सालो ! शौचालय में उसके साथ मैंने ही  प्रवेश किया था !

संजीव : श्रेय! उ-उ-ह!  लगता है तुम उस कुतिया का थप्पड़ भूल गये हो ... क्या... क्या नाम था उसका...?

राजकमल : संध्या मैडम! संध्या मैडम!

संजीव : हां, हां। क्यों? मिस्टर निर्मल? क्या आप इसे भूल गए हैं?

निर्मल : हुह! वह महज एक दुर्घटना थी।

राजकमल : ओह! दुर्घटना! मुझे अब भी याद है। सेटिंग लगभग ऐसी ही थी। गुरु जी ने बस  उस कुतिया की चुदाई पूरी की थी। फिर कुछ समस्या हुई और इसलिए अगले दिन जन दर्शन निर्धारित किया गया। हम सब उसे गुड नाईट कहते हैं, लेकिन ये चोदू  ..

उदय: अरे... रुको ना... ए निर्मल, एक बार और बताओ... उस दिन क्या हुआ था।

निर्मल : हुह! लेकिन यह मेरी गलती नहीं थी...

संजीव: ठीक है, ठीक है, तुम्हारी गलती नहीं थी। लेकिन फिर से बताओ ।

निर्मल: जब मैं उसके कमरे में गया और तुम सब मेरा इंतजार कर रहे थे। सही? अंदर घुसा तो देखा संध्या मैडम आईने के सामने खड़ी थी। मैंने सोचा कि वह अपने बालों में कंघी कर रही है, लेकिन जल्द ही पाया कि वह आईने के सामने अपना पेटीकोट उठाकर अपनी चुत में कुछ चेक कर रही थी। जैसे ही उसने मुझे देखा उसने अपना पेटीकोट गिरा दिया और मेरी ओर मुड़ी। जब मैं उससे  बातचीत कर रहा था  वह कुतिया लगातार मेरे सामने खुलेआम अपनी चुत को खुरच रही थी। मुझे लगा कि वह मुझे इशारा कर रही है। उसने मुझे बिस्तर बनाने के लिए कहा और जैसे ही मैं ऐसा कर रहा था वह शौचालय चली गई। मैंने देखा कि उसने शौचालय का दरवाजा आधा खुला छोड़ दिया था और जब मैंने अंदर झाँका तो देखा कि वह फिर से अपने पेटीकोट को उठाते हुए अपनी चुत का निरीक्षण कर रही थी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और शौचालय के अंदर चला गया…।


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संजीव: और फिर हम सबने उस थप्पड़ की तेज  आवाज  सुनी!

हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।

राजकमल: लेकिन आप कुछ भी कहें, यह मैडम तो बहुत खास है। उसके पास इतना टाइट  और शानदार फिगर है कि ये किसी का भी कोई भी सिर घुमा देगी ।

निर्मल: अरे हाँ, यह मैडम बहुत खास है! ओह! उसके पास कितनी बड़ी सेक्सी गांड है!

संजीव: हा यार! वह एक बम है! हम सभी को एक बार उसे चोदने की कोशिश करनी चाहिए। कसम से बहुत मजा आयेगा ।

राजकमल : अरे... धीरे से... वो हमें सुन सकती है।

निर्मल : हाँ, हाँ। धीरे से... धीरे से।

जारी रहेगी जय लिंग महाराज !
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08-09-2023, 05:36 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
wonderful updates
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08-13-2023, 10:12 AM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-38

योनि सुगम- गुरूजी के चारो शिष्यों के  पुराने अनुभव  


चुदाई के दौरान और बाद में मेरे मन में जो अच्छी भावनाएँ थीं, वे गुरु जी के शिष्यों की इन बातों को सुनकर धीरे-धीरे लुप्त हो रही थीं! ऐसा लगता था कि उन्हें किसी भी महिला के लिए कोई सम्मान नहीं है! दुर्भाग्य से, गुरु-जी अभी भी वापस नहीं आए थे और मेरे सुनने के लिए और भी बहुत कुछ बचा था!

संजीव: यह कुतिया मुझे चित्रा मैडम की याद दिलाती है!

उदय: ओह! संजीव! तो आपने निशाना बिलकुल ठीक लगाया!

राजकमल: हाँ, हाँ। उसे आश्रम की सर्वश्रेष्ठ सेक्सी कुतिया की उपाधि मिलनी चाहिए!

निर्मल: हाँ! लेकिन ईमानदारी से यार, क्या कोई ऐसी पत्नी रखना चाहेगा?

उदय: बिलकुल नहीं!

संजीव: तुम जब भी उसके कमरे में जाओगे तो तुम्हें वह रंडी हमेशा निकर में ही मिलेगी। मुझे संदेह है कि घर पर भी वह ठीक से कपड़े नहीं पहनती होगी। मोहल्ले के सारे लड़के और अंकल ने एक बार तो उसकी चुदाई जरूर की होगी! हा-हा हा...

राजकमल: अरे एक दो दिन जब उसने दरवाजा खोला तो मैंने उसे हाथ में खीरे के साथ भी पकड़ लिया था!

उदय: लेकिन बॉस, उसने हम सबको संतुष्ट किया था।

संजीव: ओ हाँ, ओ हाँ! अपनी योनि पूजा के बाद वह सभी के लिए उपलब्ध थी।

उदय: साली... एक दिन में उसने दो पुरुषो के साथ किया! क्या सेक्सी कुतिया थी!


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उदयः हाँ, लंच के बाद राजकमल के साथ उसने बेड शेयर किया और डिनर के बाद संजीव, तुम्हारी बारी थी और अगले दिन लंच के बाद मैं था और डिनर के बाद इस चोदू की बारी आयी थी!

निर्मल: वह 35 या 36 की थी! ?

संजीव: हाँ, परिपक्व और बहुत अनुभवी। हालांकि उसका फिगर थोड़ा पतला था!

निर्मल: इतनी सेक्स की भूखी थी तो वह तंग कैसे रह सकती है!

उदय: लेकिन फिर भी वह नि: संतान थी!

राजकमल: और तुम्हें याद है जब उसका पति उसे लेने आया था तो वह हमें धन्यवाद कह रहा था!

संजीव: हा-हा हा... उसे पता भी नहीं था कि उसकी पत्नी यहाँ पांच पुरुषो की पांचाली बनी हुई थी।

हँसी की गर्जना अब मेरे पूरे शरीर में रोंगटे खड़े कर रही थी, आनंद से नहीं, डर से!

संजीव: लेकिन मुझे हमेशा उस मारवाड़ी हाउसवाइफ प्रीति के लिए पछताता रहूंगा।

उदय: हाँ, मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि तुमने उसे कैसे जाने दिया! वह तुम्हारे बहुत करीब थी!

संजीव: हाँ यार! शुरू से ही जैसे ये रश्मि तुम्हें पसंद करती है, वैसे ही प्रीति भी मुझे बहुत पसंद करती थी। लेकिन मैं पूरी तरह से नहीं कर सका ...।

राजकमल: संजीब भाई आपको उदय भैया से सीख लेनी चाहिए! देखिए, उसने पहले ही इस मैडम को उनसे चुदाई के अलग से त्यार कर दिया है, जो मुझे लगता है कि आज मैडम को मिली चुदाई को देखते हुए उसके लिए यह आसान होगा ... ।

हा हा हा... फिर से हंसी की एक बड़ी गर्जना हुई और एक ठंडी लहर मानो मेरी रीढ़ को नीचे गिरा रही थी। उदय-उसने भी मेरे साथ सिर्फ एक सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह व्यवहार किया था और कुछ नहीं!

उदय: ज़रूर दोस्तों! मैं यज्ञ के बाद इस सुपर सेक्सी कुतिया को जोर से चोदने का वादा करता हूँ। गुरु जी कह रहे थे कि उसकी चुत अभी बहुत कसी हुई है... उसका पति जरूर चूतिया होगा! साला ठीक के चोदता नहीं होगा ...।

संजीव: मुझे आशा है कि यह रश्मि दूसरी प्रिया नहीं निकलेगी! वह किसी तरह भी फिर से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थी! अरे... गुरु जी से चुदाई के बाद, अगले ही दिन मैं उसे पास की रामशिला पहाड़ी पर घुमाने ले गया। वह जगह सुनसान रहती है और मुझे लगा कि उसे चोदने के लिए यह एक सुरक्षित जगह होगी।


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उदय: लेकिन कुछ निरीक्षण चल रहा था...।

संजीव: ठीक है! साला... नापने के लिए उनके पास और कोई दिन नहीं था। जब हम वहाँ बैठे थे और मैं उसे गर्म करने की पूरी कोशिश कर रहा था, तो वे आदमी वहाँ एक कारखाने के लिए कुछ नापने के लिए आए!

उदय: ओह्ह्ह! हाईए! बहुत दुख की बात है!

संजीव: कमीने! काश तुम्हे भी इस रश्मि के साथ ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़े!

निर्मल: ठीक है, ठीक है, जारी रखो!

संजीव: रामशिला में फेल होने के बाद मैंने सोचा था कि लंच के तुरंत बाद मैं अपना चांस ले लूंगा, लेकिन ... आप इन ग्रामीणों को जानते हैं ... दोपहर 02: 00 बजे से। यह कमबख्त गुरु-जी के दर्शन के लिए आश्रम के चारों ओर घूमने लगते हैं। समय इतना कम था कि मैं उसे चुदाई के लिए मना नहीं पा रहा था, लेकिन वास्तव में वह एक  नखरेवाली मुश्किल मजबूत महिला  थी! बॉस!

उदय: तुम बस चूक गए और वह अब इतिहास है!

संजीव: प्रिया अलग थी यार! आपको विश्वास नहीं होगा कि एक समय मैंने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए थे और मेरा हाथ उसकी चोली के अंदर था, लेकिन फिर भी वह मानसिक रूप से इतनी मजबूत थी कि मुझे चुदाई के लिए मना कर दिया! ज़रा कल्पना करें! और किसी तरह मैं उस पर जोर नहीं डाल सका ...

राजकमल: ओए! एक महिला आपको अपना ब्लाउज खोलने की अनुमति देने के बाद लेटने से कैसे मना कर सकती है!

संजीव: हुह! ये हाउसवाइव्स...

राजकमल: ये  हाउसवाइव्स.. खतरनाक नखरेवाली होती हैं! 

संजीव: छद्म रूढ़िवादिता! गुरु जी के सामने वे पूजा के नाम पर कुछ भी करवा लेती हैं, लेकिन फुर्सत में हमारे साथ वे सामाजिक मर्यादाओं, नैतिकता, धोखा आदि के नाम पर नाटक करती हैं।

सही! सही! वे सब एक साथ बोले।

उदय: लेकिन आश्रम में इलाज के लिए ये हाउसवाइफ ही तो आती हैं

निर्मल: जो भी हो मित्र! इन शर्मीली गृहिणियों को यहाँ आश्रम में आकर बेशर्म होते देखना बहुत मजे और खुशी की बात है।

उदय: कुछ साल पहले सेटिंग ज्यादा खुली थी और हम निश्चित रूप से अधिक आनंद लेते थे, निर्मल है न!

निर्मल: अरे हाँ! अब अलग हो गया है! राज पहले होता तो उसे ज्यादा मजे आते!

राजकमल: हाँ जानता हूँ, लेकिन अभी जो मिल रहा है, उससे संतुष्ट हूँ।

उदयः अभी भी बेटा। पहले महा-यज्ञ के लिए आने वाली किसी भी महिला को पूरे समय नग्न रहना पड़ता था... अहा...

संजीव: अब्बे... इतना ही नहीं! नहाने के बारे में कुछ बताओ! राज अपना सिर दीवार पर मारेगा।

उदय: अरे हाँ! राज पहले महा-यज्ञ करने वाली किसी भी महिला को आश्रम में एक छोटे से कृत्रिम तालाब में स्नान करना पड़ता था। टब की गहराई इतनी थी कि अगर कोई बुनियादी तैराकी नियम नहीं जानती तो वह स्नान करने में सक्षम नहीं होगी!

निर्मल: हालाँकि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली अधिकांश महिलाएँ तैरना जानती हैं-फिर भी नंगी स्त्री को तैरते देखना कुछ अलग ही नज़ारा है!

संजीव: इतना ही नहीं... कुछ गृहणियाँ थीं जो शहरों से आती थीं और तैरना नहीं जानती थीं और हम उन्हें तैरना सिखाते थे। हा-हा हा...

निर्मल: हाँ, हाँ... और मुझे तुरंत ही अलका मैडम याद आती हैं?

उदय: ओहो! वह मैडम जिसने गुरुजी से शिकायत की थी कि तैराकी की कक्षाओं में निर्मल उसके स्तनों को पकड़ता है और वह सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है! हा-हा हा...

हा हा हा... फिर हंसी की गर्जना हुई। मैं सोच रहा था कि मैं कहाँ आ गयी थी! ये आश्रम है या कोई हरम!

राजकमल: फिर क्या हुआ?

संजीव: अलका मैडम के स्विमिंग टीचर को बदल दिया गया, उदय साहब को नियुक्त कर दिया गया!

निर्मल: हाँ-हाँ ... उसका पहला नुस्खा अलका मैडम की साड़ी थी।

राजकमल: मतलब?

उदय: अबे वह एक हॉट माल थी, लेकिन उसने अपने सुंदर अंग न दिखाने के लिए ऐसा करने का नाटक किया था। पहले दिन उसे तैरते रहने का तरीका दिखाते हुए, मैंने उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके स्तनों को जोर से दबाया और निचोड़ा और मैं उसके चेहरे से देख रहा था जिससे पता चला कि वह आनंद ले रही थी। उस दिन के अंत में मैंने उससे कहा कि अगले दिन उसे वजन कम करने के लिए अपनी साड़ी के बिना पानी के अंदर जाने की जरूरत है।

संजीव: और हमारे उदय साहब ने स्विमिंग क्लास पूरी की जब अलका मैडम ब्लाउज और पेटीकोट में पानी के अंदर चली गईं, लेकिन स्विमिंग क्लास के बाद ब्रा में ही बाहर निकलीं!

राजकमल: केवल ब्रा! जय लिंगा महाराज! वाह उदय भाई! जय हो!

उदय: हा-हा हा... दरअसल अलका मैडम अपने पेटीकोट के नीचे कुछ भी नहीं पहनती थीं और-और तो और उन दिनों पैंटी पहनने का चलन शादीशुदा महिलाओं में उतना नहीं था।

निर्मल: एइ एइ... सस्श... ससस्स्स्स्स्स्श्ह्ह्ह्ह्ह्ह। गुरु जी वापस आ रहे हैं।

जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
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08-13-2023, 10:13 AM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-39

योनि सुगम- बहका हुआ मन  

हालाँकि गुरु जी के शिष्यों की आपस की ये सारी बाते सुनकर मैं पूरी तरह से चौंक गयी, स्तब्ध हो गयी थी और काफी हैरान हो गयी थी। िउंकि बाते से ऐसा लगता था कि उनके मन में किसी भी महिला के लिए कोई सम्मान नहीं है और आश्रम में इलाज के लिए आने वाली सभी गृहिणियों को "सस्ती रंडिया" समझते हैं! उदय से मुझे बहुत लगाव हो गया था, लेकिन दूसरों के साथ उसकी बातचीत सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ !

मुझे दूर से गुरु जी के कदमों की आहट सुनाई दे रही थी और मैंने अपनी आँखें खोलीं और देखा कि दूर के दरवाजे से गुरुजी मेरी ओर आ रहे हैं। लेकिन सबसे अजीब बात यह थी कि जब भी गुरुजी मेरे सामने आए तो मेरी सोच का हर धागा उलझ गया और फिर उन्होंने जो कुछ भी कहा मुझे वह सही रास्ता लग रहा था-उनकी उपस्थिति का ऐसा अध्भुत जादू था!

मैं अब चाहती थी कि वह मुझे एक बार जोर से चोदें क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे फिर से उनके बड़े लंड से चुदने का मौका नहीं मिलेगा या नहीं। मैं इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहती थी और चाहती थी वह मुझे एक बार कस कर चौद दे । मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और कल्पना की कि वह मेरे पास आये और अपनी उंगलियों को मेरे गर्म शरीर पर छोटे-छोटे घेरे में घुमाने लगे, उनका लिंग भी खड़ा था और वह मेरे स्तनों को सहलाने लगे और अपनी उंगलियों को मेरे पेट और मेरे पैरों के बीच ले गए। मेरे हाथ उनके मूसल जैसे बड़े तगड़े लंड को सहला रहे थे, धीरे-धीरे लंड की घुंडी पर लगी कोमल त्वचा को हटा रहे थे।



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मैंने खवाबो में सोचा की गुरुजी ने मुझे फिर से उस आसन पर लिटा दिया और मेरे पैर फैला दिए। मेरी गुलाबी चूत गुरूजी के गाढ़े वीर्य और मेरे चमकीले रस से चमक रही थी। मेरे स्तन किसी नाइट क्लब के चमकदार ग्लोब जैसे लग रहे थे। उन्होंने मेरे बूब्स को निचोड़ा और धीरे से मेरे शरीर को चूमा, मेरे कानों से शुरू कर गुरुजी नीचे की ओर बढ़ते रहे, मेरे पूरे शरीर को मेरे पैर की उंगलियों तक चूमते रहे।

मैंने ख्वाब देखना जारी रखा फिर से वह मेरे ऊपर चले गए, मेरे टखनों, भीतरी जांघों, नाभि को चूमते हुए मेरी योनि पर छोटे कोमल चुंबन के साथ। मैंने कराहते हुए कहा, "आह, गुरुजी, हाँ, करो, रुको मत।" उन्होंने अपने हाथ मेरे सिर पर फिराए और मैं उनके बालों को सहलाती रही। मैंने अपना हाथ उसके सिर पर रखा और कराहते हुए कहा, "आह हाँ, गुरुजी, आप कितने अच्छे हैं।" गुरुजी ने अपने होठों को मेरी चूत के चारों ओर घुमाते रहे, मेरे छेद के करीब जाते रहे। मैं इस अपनी ख्वाबो में इस अनुभूति का आनंद लेती रही। आह, गुरुजी, बहुत अच्छा, आप रुको नहीं। " फिर गुरुजी ने मेरे दोनों स्तनों को निचोड़ा और उन्हें थप्पड़ मारा उन्होंने मुझे हिंसक रूप से चूमने के लिए ऊपर खींचा क्योंकि मेरे शरीर की गर्मी बढ़ती जा रही थी, जिससे मैं बेचैन और कामुक हो रही थी। गुरुजी मेरे चेहरे के भावों को देखते रहे। मैं धीरे-धीरे कराह रही थी और मैंने आँखें बंद कर अपने पैरों को थोड़ा और फैला दिया।

मेरी आँखें बंद थीं; मेरे निपल्स हिल रहे थे मेरी चूत किसी भी चीज़ की तरह लीक हो रही थी और मेरा पूरा शरीर यौन उल्लास में कांप रहा थाऔर ऐंठ रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं गुरु-जी द्वारा पूरी तरह से कस कर रफ़ चुदाई का स्वप्न देख रही थीऔर महसूस कर रही थी, मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं क्योंकि मुझे लग रहा था कि मेरी योनि से गर्म रस निकल रहा है और मैं सचमुच अत्यधिक उत्साह और उत्तेजना में काँप रही थी।


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फिर अचानक एक रुकावट आई! मैंने गुरु जी मुझे ज़ोर से पुकारते और गुरु जी को कुछ कहते हुए सुना!

अचानक मेरे कानो में आवाज आयी ।

गुरूजी:-रश्मि बेटी कैसी हो? तुम कैसा महसूस कर रही हो?

हालांकि मैं पूरी तरहएक और चुदाई के लिए तैयार थी और मुझे अपनी चुत में फिर से गुरूजी के मुस्ल लंड के कड़े मांस की जरूरत थी, मुझे गुरूजी की आवाज का जवाब देना पड़ा। मैं धीरे-धीरे आँखे खोली और मैं थोड़ा बेशर्म हो उठ गयी और गुरु के पास आकर उनसे बोली-

मैं:-गुरूजी में ठीक हूँ । जी! मेरा मतलब?

गुरु-जी: मैं जानता हूँ कि रश्मि इस समय तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है!

गुरु-जी एक अनुभवी प्रचारक होने के नाते मेरी यौन आवेशित (उत्तेजित-कामुक) स्थिति को आसानी से समझ गए; एक अनजान वयस्क पुरुष के साथ इस तरह की भद्दी निकटता के कारण अपने बचाव का प्रयास करने के बजाय, मैं वास्तव में इस क्रिया के प्रति स्पष्ट झुकाव प्रदर्शित कर रही थी!

मैं नहीं? जी! मेरा मतलब? मेरी आपसे एक प्राथना है?

मैंने अपनी शर्म को छिपाने के लिए जल्दी से अपना चेहरा फिर से नीचे कर लिया। मेरा पूरा चेहरा लाल हो गया था और मैं शरमा गई थी। गुरुजी के शरीर में एक अजीब-सी महक थी, जो मुझे कमजोर बना रही थी ।

गुरु-जी: रश्मि, आप एक मिशन पर हैं। इसे अपनी भावनाओं से खराब न करें।

मैंने फिर से उन्हें गले लगाने की कोशिश की उन्होंनेअपनी आवाज कम की और मेरे कानों में फुसफुसाये।

गुरु-जी: बेटी? । रश्मि! अब हमारा कर्तव्य है लिंगा महाराज को धन्यवाद देना।


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the storm poem analysis

गुरुजी मेरी पीठ की तरफ गए और फिर मेरी बाहों को मेरी छाती के सामने मोड़ दिया और साथ में उन्होंने तुरंत अपने विशाल लिंग को मेरी दृढ़ गोल गांडकी दरार में डाल दिया। उसने मुझे पीछे से इस तरह दबाया कि मेरी पूरी गाण्ड उसके लंड और योनि क्षेत्र पर दब गयी और उनका चेहरा मेरे चेहरे और कंधे को छू रहा था। उन्होंने कुशलता से अपनी बाहों को मेरी कांख के माध्यम से अपने हाथों को मेरे हाथों के नीचे प्रार्थना मुद्रा में रखा औ। यह ऐसी मुद्रा थी जो निश्चित रूप से किसी भी महिला के लिए समझौता करने वाली मुद्रा थी, लेकिन उस समय मैं बहुत उत्साहित थी इसलिए मैंने उसके बारे में कुछ नहीं सोचा!

गुरु जी ने कुछ मंत्र बड़बड़ाया, परन्तु मुझे केवल उनके हाथों में दिलचस्पी थी, जो मेरे पूर्ण विकसित स्तनों के ऊपर आ गए थे और मेरी बड़ी गाण्ड पर एक साथ अपने खड़े लंड के साथ एक प्रहार के साथ उन्होंने मेरे स्तनों को साइड से पर्याप्त रूप से दबा दिया था? धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि उसकी उंगलियाँ मेरे हाथों पर रेंग रही थी, जो उन्होंने ने प्रार्थना के रूप में पकड़ी हुई थीं और हट कर मेरे स्तनों पर जा कर टिक गयी थी! चूँकि गुरुजी मेरी पीठ पर ज़े मेरे साथ चिपके हुए थे उनकी बाहें मेरी कांख के नीचे से गुजर रही थीं।

जब उन्होंने मंत्र फुसफुसाया, मुझे लगा कि वह फिर से मेरे तने हुए स्तनों को दोनों हाथों से सहला रहे थे। मैं अपनी भावनाओं को छिपाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस बार उन्होंने मुझे नॉकआउट कर दिया।

मैं: आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! ओरे! उई माँ!

गुरु-जी मेरे स्तन ऊपर उठाने की कोशिश कर रहे हैं और मुझे एहसास हुआ कि उनकी एक बार फिर गुरु जी की उंगलिया सीधे मेरे निप्पल तक जा सकती थीं! फिर पहली बार गुरु जी ने मेरे निप्पल को छुआ और मेरी हालत थी बस मजा आ गया ऊऊह ला ला!

स्वचालित रूप से मैं बहुत अधिक चार्ज थी और मेरे बड़ी गांड धे को उनके खड़े डिक पर जोर से फैला और दबा रही थी। मैं अपने लिए चीजों को और अधिक रोमांचक बनाने के लिए गुरु-जी से कुछ छोटे-छोटे धक्को को भी महसूस कर सकती थी! उन्होंने मेरे दोनों निप्पलों को पकड़ा और घुमाया और धीरे से चुटकी बजाई, जिससे मैं बिल्कुल जंगली हो गयी। मैंने महसूस किया कि गुरु-जी अपनी हथेलियों से मेरी छाती को दबा रहे थे।

मेरी आँखें बंद थीं; मेरे निपल्स हिल रहे थे मेरी चूत किसी भी चीज़ की तरह लीक हो रही थी और मेरा पूरा शरीर यौन उल्लास में कांप रहा थाऔर ऐंठ रहा तह। ऐसा लग रहा था कि मैं अभी भी गुरु-जी द्वारा पूरी तरह से टटोलने और महसूस करने के लिए एक स्वप्न देख रही थीऔर महसूस कर रही थी,

सच कहूँ तो उस समय मेरा मन प्राथना करने या धन्यवाद देने के बारे में सोचने में मेरी कोई दिलचस्पी बिल्कुल भी नहीं थी, मैं केवल भौतिक सुख पाने के लिए उत्सुक थी। मैंने अब भी अपने शरीर पर उनके कठोर लंड को स्पष्ट रूप से महसूस किया और जिस तरह से उन्होंने मेरे स्तनों को सहलाया और दबाया, यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह भी यौन रूप से उत्तेजित थे! मैंने हिम्मत की

में: गुरूजी मेरी एक प्राथना है आप एक बार फिर से योनि सुगम की जांच कर दीजिये ताकि अगर कोई भी रुकावट बच गयी हो तो वह भी दूर हो जाए

गुरूजी: हूँ! तो रश्मि अब मुझसे एक बार फिर से चुदाई चाहती है । देखो शिष्यों एक शर्मीली घेरु औरत अब खुल कर चुदाई मांग रही है । रश्मि वैसे तो मेरा नियम है मैं दुबारा चुदाई नहीं करता परन्तु तुमने जिस प्रकार सब क्रियाओं में पूरा सहयोग दिया है और सारी पूजा में सबसे तालिया बजवाई है तुम्हारी इस इच्छा को पूरा करना उचित होगा ।

जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
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08-15-2023, 11:25 PM,
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औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-40

बहका हुआ मन -सपना या हकीकत 


मैंने अब गुरूजी के सामने एक बहुत ही मदहोश अंगड़ाई ली और जब भी मैं अपने पति के सामने ऐसी अंगड़ाई लेती थी वह बेकरार हो मुझ से चिपक जाता था और मुझे चूमने लगता था । अब तो मैं बिलकुल नंगी हो ऐसी अंगड़ाई ले रही थी ।

इस अंगड़ाई से मेरे मोटे और बड़े मम्मे ऊपर की तरफ़ छलक उठे। तो इस मदहोश अदा से गुरूजी भी गरम और बेचैन हो गये। ऐसी अंगड़ाई को किसी भी मर्द के लिए ख़ुद पर काबू रखना एक ना मुमकिन बात होती। बिल्कुल ये ही हॉल गुरूजी औरर उनके शिष्यों का भी मेरे जवान बदन को देख कर उस वक़्त हो रहा था। गुरूजी के चारो शिष्य रूम में खड़े हो कर मेरे जवान, प्यासे बदन को देख-देख कर अपनी आँखे सेकने में मज़ा ले रहे थे।



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मेरी ये भरपूर अंगड़ाई देख कर गुरूजी भी मदहोशी में अपने लंड को पकड़ कर मचल उठे और वह अपने खड़े और मोटे लंड से खेलने लगे। ओह रश्मि मैडम क्या मस्त मम्मे हैं तुम्हारे और क्या शानदार टाइट चूत है तुम्हारी, हाईईईईईईई! उदय अपने लंड से खेलते हुए बुदबुदा रहा था। और यही हालत वहाँ मौजूद सभी मर्दो की थी ।

गुरुजी मेरे पास आए और अपनी उंगलियों को मेरे गर्म शरीर पर छोटे-छोटे घेरे में घुमाया, मेरे स्तनों को सहलाया और अपनी उंगलियों को मेरे पेट और मेरे पैरों के बीच ले गए। मेरे हाथ उनका लंड सहला रहे थे, धीरे-धीरे लंड की घुंडी पर लगी कोमल त्वचा को मेरी उंगलिया दबा रही थी।

गुरुजी ने मुझे लिटा दिया और मेरे पैर फैला दिए। मेरी मोटी मुलायम और गुदाज चिकनी जाँघे अपनी पूरी शान के साथ गुरूजी की आँखों के सामने नंगी थी।

मेरी गुलाबी चूत मेरे चमकीले रस और गुरूजी के वीर्य के मिश्रण से चमक रही थी। मेरे स्तन किसी बड़े ग्लोब जैसे लग रहे थे। उन्होंने मेरे बूब्स को निचोड़ा और धीरे से मेरे शरीर को चूमा, मेरे कानों से शुरू कर गुरुजी नीचे की ओर बढ़ते रहे, मेरे पूरे शरीर को चूमते रहे। अब गुरूजी मेरे प्रेमी थे और अब वह मुझे चुदाई के लिए त्यार कर रहे थे

गुरुजी फिर से ऊपर चले गए, मेरे टखनों, भीतरी जांघों, नाभि को चूमते हुए मेरी चिकनी, योनि पर छोटे कोमल चुंबन के साथ। मैंने कराहते हुए कहा, "आह, गुरुजी, हाँ, करो, रुको मत।" मैंने अपने हाथ उनके सिर पर फिराए और बालों को सहलाती रही।


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मैं अपनी टांगो को फैलाकर और अपनी गुलाबी चूत को और अधिक प्रकट कर रही थी। गुरुजी मेरी जाँघों को सहलाते और चूमते रहे, ऊपर की ओर बढ़ते रहे। गुरुजी मेरी जांघों के पास चले गए, मेरी चूत के पास पहुँचे। मैंने अपना हाथ उनके सिर पर रखा और कराहते हुए कहा, "आह हाँ, गुरुजी, आप कितने अच्छे हैं।"

गुरुजी अपने होठों को मेरी चूत के चारों ओर घुमाते रहे, मेरे छेद के करीब जाते रहे। मैं इस अनुभूति का आनंद लेती रही। गुरुजी ने अपने होठों को मेरी जाँघों पर मेरे प्यारे गर्म छेद के करीब और गहरा किया। गुरुजी ने अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पलों पर फिराईं।

गुरुजी मेरी नाभि तक चले गए। गुरुजी मेरे स्तनों की ओर बढ़े, उन्हें चूमते और सहलाते हुए। गुरुजी ने मेरे निप्पलों को चूसा और धीरे से चबाया। मैं अपने विलाप का विरोध नहीं कर सका। "आह, गुरुजी, बहुत अच्छा, आप रुको नहीं।"

गुरुजी ने मेरे दोनों स्तनों को निचोड़ा और उन्हें थप्पड़ मारा उन्होंने मुझे हिंसक रूप से चूमने के लिए ऊपर खींचा क्योंकि मेरे शरीर की गर्मी बढ़ती जा रही थी, जिससे मैं बेचैन और कामुक हो रही थी। गुरुजी ने हिंसक तौर पर मेरे स्तनों को चूमा और मेरे स्तनों को कस कर निचोड़ दिया ।

मैं कराह उठी, "आह हाँ, गुरुजी।" गुरुजी ने फिर मेरे ओंठो को चूमा और मुझे फिर से थोड़ा और गहरा चूमा और वह धीरे से कराह उठी। गुरुजी ने धीरे से अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे होठों को चाटा। मेरी चूत की गर्मी बढ़ती जा रही थी।

गुरुजी मेरे चेहरे के भावों को देखते रहे। मैं धीरे-धीरे कराह रही थी। उन्होंने मेरी पीठ उठाई और मैंने मेरी आँखें बंद कर दीं, मेरे पैरों को थोड़ा और फैला दिया।

गुरुजी ने अपनी उँगलियों से मेरी चूत को फैलाया और अपनी ऊँगली से मेरी भगनासा को छेड़ा तो मेरा शरीर यौन सुख और आनंद में कांपने लगा। मैंने अपना सिर पकड़ लिया, मैं कराह रही थी, "ओह, मुझे चोदो, गुरुजी।" मैं अब बेशर्म, हठी, भूखी और सेक्स के लिए बुरी तरह भूखी लग रही थी। मेरी कामुक कराह ने उन्हें संकेत दिया था की मेरी चूत कितनी नर्म और गर्म थी। गुरूजी मेरी चूत से निकलने वाली गर्मी महसूस कर रहे थे क्योंकि मैं जोर से सांस ले रही थी। गुरुजी अपनी जीभ को आराम दिए बिना मेरे मुंह को चाटते रहे।

गुरुजी ने अपनी जीभ से मेरे कानों को धीरे से चाटा और मुझे मेरे पूरे शरीर में रोंगटे खड़े होने जैसा महसूस हो रहा था। गुरुजी ने मेरे कानों को चाटने पर अपनी जीभ घुमाई। गुरुजी ने अपने हाथ मेरे स्तनों पर चलाए, उन्हें धीरे से सहलाया। मैं विरोध नहीं कर सकी क्योंकि मैंने अपने हाथों को उनके लिंग को पकड़ लिया।




मेरी हर सांस के साथ मेरे स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। गुरुजी ने अपने लंड को और गहरा किया। मेरी चूत खराब नल की तरह रिसने लगी। गुरुजी ने अपनी जीभ को मेरे मुँह में धकेला, मेरे ओंठो और मुँह को चाटते, चूसते और चूमते रहे।

कुछ घंटे पहले, यह मेरे लिए एक सपना था। लेकिन अब मैं नंगी, हॉट और गुरु का लिंग योनि के अंदर लेने के लिए टाँगे फैला कर लेटी हुई थी । सेक्स हमसे ऐसे काम करवाता है जिसकी हम कभी उम्मीद नहीं करते। मैं विलाप करने लगी।

गुरुजी ने मेरे मुँह को चाटने की गति बढ़ा दी, और नीचे अपनी टांगो से मेरे पैरों को थोड़ा दूर धकेल दिया। जीभ के कुछ लंबे गहरे स्ट्रोक के बाद, मेरे कोमल पैर सख्त होने लगे। मेरा शरीर अकड़ने लगा।


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जैसे ही मेरा प्यासा शरीर मेरी रिहाई की ओर बढ़ा, मैं जोर से कराह उठी और चिल्लाई, "अरे हाँ, गुरुजी, हाँ, यह बहुत अच्छा है।" जैसे ही गुरूजी ने अपना सिर एक तरफ धकेला मेरा पूरा शरीर हिल गया। मैं दबाव में झुक गयी।

एक शक्तिशाली रिहाई ने मेरे शरीर को हिला दिया, मेरी योनि से रस निलकने लगा। गुरूजी मेरी सूजी हुई चूत से रस टपकते हुए देख रहे थे। मैंने उसका सिर अपने बूब्स पर खींचा और कहा, "गुरुजी मुझे बहुत दिनों बाद ऐसे मज़ा आया, मुझे चोदो, गुरुजी।" उनके बड़े मुसल लंड पर मेरी गर्म चूत में महसूस करने से मैं बहुत व्याकुल हो रही थी।

मेरी मोहक सुंदरता ने गुरूजी को गहरी खुदाई और तेज चुदाई करने और कड़ी मेहनत करने के लिए बेताब कर दिया। जिस तरह वह अब मुझे चूम रहे थे उससे मुझे एहसास हुआ की गुरुजी अब मेरी योनि की गहराई में उतरना चाहते थे क्योंकि गुरुजी भी अब बहुत उत्तेजित और बेचैन महसूस कर रहे थे। गुरुजी अपने आप को नियंत्रित नहीं कर सके।



अब उनका उग्र लंड मेरे कोमल जलते छेद में अपनी प्यास बुझाना चाहता था। गुरुजी ने अपना लंड ड मेरी चूत के द्वार पर कस दिया। गुरुजी ने मेरे शरीर को उस गद्दे से ऊपर उठाने में मेरी मदद की और मैंने मुझे कस कर गले लगाया। गुरुजी ने मेरी गर्दन, कान और गालों को कस-कस कर चूमा। मैंने कुछ नहीं कहा बस प्रवाह का आनंद लिया। गुरुजी ने अपने लंड का दबाव मेरी चूत पर रखा। उसके हाथ अब मेरे कोमल गर्म स्तनों को और भी अधिक तीव्रता से निचोड़ रहे थे।

मैंने विलाप किया, "गुरुजी अब मुझे चोदो।" "हाँ," मुझे चोदो, मेरी चूत को चोदो, मेरी चीखे निकलवाओ। "गुरुजी ने फिर से एक झटके में अपना लंड बाहर निकाला और मैंने उनका लंड पकड़ा और योनि के प्रवेश द्वार पर यह कहते हुए रख दिया," अब मुझे चोदो। "

गुरुजी ने अपने विशाल लंड को मेरी प्यारी चूत में धकेलने के लिए मेरे हाथों को पीछे किया।

उन्होंने मेरी टांगें उठाईं, उनके कंधों पर रखीं, अपना लंड एक बार मेरी योनि पर रखा और आगे पीछे किया और उसका सिर मेरी चूत में जोर से घुसेड़ दिया। मैंने जोर से कराह उठी योनि में लंड के घुसते ही मैं मज़े और दर्द के मिलेजुले एहसास से उछल पड़ी " हाऐईयईईईईईईईईई! गुरूउउउउजीईईईईईईईईई! "


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लंड की कठोर चमड़ी से मेरी चूत की कोमल चमड़ी को चीरना जादुई था। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और विलाप किया। यह इतना कड़ा था, मैंने महसूस किया कि उनका लंड जबरदस्ती मेरी तंग चूत में चुभ रहा था।

उसके लंड की चमड़ी पीछे की ओर खिंची हुई थी, जिससे मुझे दबाव महसूस हो रहा था। मैंने विलाप किया, "गुरुजी, यह बहुत बड़ा है।" गुरुजी मेरे वांछित गर्म शरीर को देखकर कुछ सेकंड के लिए रुके। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं क्योंकि गुरुजी ने अपने सख्त मांस को मेरे छेद में धकेलने की कोशिश की।

मैंने कराहते हुए कहा, "आह, हे भगवान, गुरुजी, इसे धीरे से धक्का दें।" गुरुजी ने प्रतीक्षा की। मेरी आकर्षक आँखों में देखते हुए, गुरुजी ने कठोर लिंग को थोड़ा-सा बाहर निकाला। गुरुजी ने मेरी आँखों में देखा और धीरे-धीरे अपने लंड को ज़ोर से दबाया, मेरी धड़कती चूत को पूरी तरह से फाड़ दिया और पूरा का पूरा एक झटके में अंदर दाल दिया। अरे! यह सिर्फ मदहोश कर देने वाला था।

उसके लंड का मेरी चूत की त्वचा को अंदर तक घुसने का एहसास इतना दर्दनाक परन्तु सुखद था। गुरुजी महसूस कर सकते थे कि अब वह पूरी तरह से मेरे अंदर थे। उनके लंड ने मेरी चूत की दीवारों को अधिकतम तक खींच लिया। मैंने उसके विशाल लंड को अपनी चूत में पूरा घुसने देने से रोकने की स्वाभविक कोशिश की।

मैं दर्द से चिल्लायी और उन्होंने मेरा मुंह अपना हाथ चिपका कर मेरा मुँह बंद कर दिया। मुझे इतना दर्द हो था-था कि मैं रोने लगी। मैंने उन्हें रुकने के लिए कहने की कोशिश की लेकिन मेरे रोने, चीखने और मेरे मुंह पर उसके बड़े हाथ के बीच मैं शब्द नहीं निकाल सकी और गू-गू कर रह गयी।

जब गुरुजी ने मेरे सुस्वादु होठों को चूमा तो मैंने उनकी गर्दन से कस कर पकड़ने की कोशिश की। मैंने गाड़े पर पीछे होने की कोशिश की, खुद को उनकी जकड़न से छुड़ाने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी गांड को थोड़ा-सा पीछे किया और अपने लंड को बाहर निकाला। बिना समय बर्बाद किए, गुरुजी ने बहुत जोर से धक्का देकर अपना लंड मेरी चूत में अंदर तक घुसेड़ दिया।

इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती गुरुजी ने इन्हें कई बार दोहराया। गुरुजी धीरे-धीरे बार-बार बाहर खींच रहे थे, भयंकर जोरों से अपना लंड मेरी चूत में वापस घुसा रहे थे। मैं इसे संभाल नहीं सकी। मैं जोर-जोर से सांस लेने लगी। मेरे विलाप उस कक्ष में गूँज उठे।

गुरुजी ने मेरी कमर को कसकर पकड़ लिया; जकड़न, गर्मी और सम्मिलन के भयानक दर्द ने मुझे पागल कर दिया। मेरी भारी साँसों के साथ मेरे स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे। गुरूजी ने अपना लंड बाहर निकाला और एक ही झटके में जोर से पीछे धकेल दिया।

मेरा मुंह सदमे से खुला का खुला रह गया। मैंने कहा, "आह, गुरुजी, इसे फिर से करें।" गुरुजी ने अपने लंड को पीछे धकेलने के लिए बाहर निकाला, मेरे स्तनों को बेरहमी से निचोड़ रहे थे। गुरुजी ने मेरी चूत को और गहरा करना शुरू कर दिया।

यह मुझे एक अलग दुनिया में ले गया। आखिरकार, गुरुजी एक युवा, गर्म, रसीली चूत का आनंद ले रहे थे। गुरुजी मेरे स्तनों की कोमलता, मेरे शरीर की गर्मी, मेरी चूत के गीलेपन का आनंद ले रहे थे,। गुरुजी ने लंबे स्ट्रोक में अपने लंड को मेरी गर्म, जलती हुई चूत में घुसाना शुरू कर दिया। उसके हर ज़ोर से मेरी आँखें चौड़ी और चौड़ी हो गईं और मेरे गर्म स्तनों पर दब गईं।



मैं इसके हर पल का आनंद ले रही थीा। मेरे चेहरे के मोहक भाव, मेरी आँखों में एक कामुक चिंगारी, सब कुछ कह गई। गुरूजी अपने हर जोर से मेरी तंग चूत में अपने लंड को और गहरा धकेलते रहे। उसकी गर्म जलती छड़ का मेरी चूत में हिलना-डुलना रोमांचकारी और भयानक था।

मेरे अंदर वह तेज-तेज धक्के मारने लगे प्रत्येक जोर पहले वाले की तुलना में अधिक गहरा हो गया। ऐसा तेज दर्द मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था, रोते हुए मैं उनसे भीख मांगते हुए रुकने के लिए कहने लगी।


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गुरुजी -  रश्मि!  हमे ये जल्दी ख़त्म करना होगा हमे अभी कुछ और काम भी करने हैं। जितना कस कर पकड़ सकती हो पकड़ लो। 

मुझे तब तक समझ नहीं आया जब तक कि उन्होंने इतनी तेजी से मेरे अंदर धक्के मारना शुरू नहीं किया। दरसल उनका लंड अब मुझे पीट रहा था। मेरे अंदर ड्रिलिंग कर रहा था। वह अब मुझे एक जानवर की तरह चोद रहे थे। एक नन्ही चुदाई गुड़िया की तरह मैंने उनके कंधों को कस कर पकड़ लिया और अपने पैर उनके चारों ओर लपेट दिए। बिस्तर हिल रहा था। कमरा मेरी चीखो से भर गया था।

मेरी चिकनी नरम चूत पर उनका हर धक्का मेरे शरीर को पीछे धकेल देता था। गुरुजी ने मुझे कस कर पकड़ रखा था और अपना सख्त लंड मेरी चूत में जितना हो सके उतना अंदर तक जा रहा था या। गुरुजी अपनी चुदाई का बल और गति बढ़ाते रहे। मेरी आहें अब तेज और बेशर्म होती जा रही थीं।

मैंने कराहते हुए अपने हाथ उनकी गर्दन के चारों ओर लपेट दिए। मैं जोर से अपनी चूत को पीछे करने लगी । मैंने अपनी गांड को आगे बढ़ाया।

गुरुजी ने अपना लंड बाहर निकाला और गुरुजी ने मेरे दोनों होठों को चूमा और अपनी जीभ उनके मुँह में घुसेड़ दी। उसके हाथों ने मेरे दोनों बूब्स को पकड़ लिया और जोर से निचोड़ दिया। उसकी उँगलियाँ मेरे निप्पलों पर चली गईं, छोटे घेरे में लुढ़क गईं और उन्हें धीरे से पिंच कर रही थीं।

मेरे निप्पल सख्त हो गए थे और मेरे स्तन क्रूर हो गए थे। मैंने उसका लंड अपने हाथों में पकड़ा, उसे वापस अपनी प्यासी चूत पर ले गयी। मैंने लंड अपनी चूत पर रगड़ा। मैंने इसे अपनी उग्र गर्म चूत पर ठीक से लगाया। मैंने गुरूजी की ओर देखा। इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत की दीवारों को एक झाकते में अंदर घुसेड़ दिया।

मेरी उत्तेजित अवस्था अपने आप को नियंत्रित नहीं कर सकी क्योंकि मैंने उनको गाली दी,। मैं लगभग चिल्लायी, " आह, माँ! आह कमीने, कमीने। कुतिया के बेटे, तुम मेरी चूत फाड़ दोगे। मेरी गालियों पर ध्यान दिए बिना, गुरुजी ने मेरी कमर को मजबूती से पकड़ लिया और मेरी चूत को जोर से चोदने लगे।

गुरुजी का लंड मेरी सूजी हुई चूत में अंदर-बाहर होता रहा। मैं उनकी बाँहों में सिमट गयी। मेरा प्रतिरोध हार गया। अपनी चूत पर उसके भयंकर हमले से मैं खुशी से कांप उठी। मैं विलाप किया। मेरे आकर्षक चेहरे पर आकर्षक कामुक भाव थे।

मैंने अपने दोनों हाथ उसकी गर्दन पर रख दिए जैसे गुरूजी ने मेरी गहरी और कड़ी चुदाई की। प्रत्येक स्टोक मेरी योनि के छेद को चौड़ा कर रहा था ता है और लंड का सख्त मांस के अपने गर्म सख्त टुकड़े की पूरी लंबाई मेरे नरम मांस में गहरी हो जाती। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं क्योंकि गुरुजी ने मेरी पंपिंग शुरू कर दी थी। गुरूजी मुझे अपनी ओर खींचने लगे।

गुरुजी ने लगातार अपने लंड को मेरे गर्म छेद के अंदर और बाहर धक्के मारे। मैं विलाप कर रही थी। मेरी तीव्र, भावुक कराहों ने उन्हें और उत्तेजित कर दीवाना बना दिया।

गहरी इच्छाएँ मेरे मन में बलवती हो गयी और मुझे लगा मेरी चूत की दीवारें और मांसपेशिया टूटने वाली थीं। जैसे-जैसे गुरुजी अपने लंड को मेरी चूत में दबाते जा रहे थे, मेरी साँसें तेज़ होती जा रही थीं। गुरुजी ने मुझे मजबूती से पकड़ कर अपनी गति बढ़ा दी। मेरी गीली टपकती चूत में कुछ गहरे आघातों में गुरुजी को अपने चरम सुख का एहसास हो रहा था। उन्होंने मेरी तरफ देखा क्योंकि उसका शरीर सख्त होने लगा था।

मैंने अपनी प्यारी कामुक आवाज़ में निवेदन किया, "गुरुजी, जोर से करो।" गुरुजी ने मेरी गांड को कस कर पकड़ लिया और अपने स्ट्रोक्स को मजबूत किया। मेरी आँखों में देखते हुए, गुरुजी ने मेरे स्तनों के बीच अपना सिर रगड़ा और जैसे ही गुरुजी अपनी रिहाई के करीब पहुँचे, मेरे स्तनों को चबाते हुए गुरुजी ने लंड को पूरी ताकत से पंप किया और मेरा सिर ज़ोर से हिलना शुरू हो गया। मेरी आसन्न स्खलन के दबाव में मेरा शरीर कांपने लगा। मेरे होश उड़ गए। जैसे ही मेरी चूत की दीवारें से रस स्खलित हुआ। मैंने कराहते हुए गुरूजी को कस कर पकड़ लिया।

मैंने उनके होठों को चूमा क्योंकि मेरा शरीर मेरी रिहाई के दबाव में जकड़ा हुआ था। जैसे ही मैं अपनी आसन्न रिहाई के करीब पहुँचा, मैं बेशर्मी से खुशी से चिल्ला उठी। मेरी चूत के अंदर दो तेज़ धक्को के साथ में, हमने एक साथ स्खलन किया।


[Image: rough5.gif]

गुरुजी ने अपने लंड को मेरी जलती हुई सूजी हुई चूत में मजबूती से अंदर घुसा रखा था और गुरुजी ने अपना गर्म लावा मेरी चूत में स्खलित कर दिया। उन्होंने मुझे कस कर पकड़ रखा था और मुझे हिलने नहीं दिया। कुछ मिनटों के बाद, उन्होंने मुझे अपनी पकड़ से मुक्त कर दिया। अपना लिंग बाहर निकाल लिया और मुझ से अलग हुए और  मुझे नहीं मालूम ये सपना था या हकीकत ।


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love poem 4 stanza

 गुरूजी संजीव को ये कह रहे थे

गुरूजी:-संजीव ! रश्मि को स्वयं को ढकने के लिए एक तौलिया दे दो ।


जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
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08-15-2023, 11:29 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट- 41

स्पष्टीकरण


गुरूजी संजीव को कह रहे थे. 

गुरूजी:-संजीव रश्मि को स्वयं को ढकने के लिए एक तौलिया दे दो ।

मैंने आँखे खोली तो देखा संजीव एक तौलिया लेकर आया, जो मेरे शरीर के केवल एक हिस्से को ढक सकता था-या तो मेरे स्तन या मेरी चूत। मैंने अपनी चूत और जाँघों को ढँकना पसंद किया और गुरुजी के सामने टॉपलेस हालत में बैठ गई। स्वाभाविक तौर पर संजीव, उदय, निर्मल और राजकमल सभी मेरे बड़े, दृढ़ लहराते स्तनों को निहार रहे थे!


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गुरु जी: बेटी, इससे पहले कि तुम निष्कर्ष पर पहुँचो और अपने मन में ठगा हुआ और चिंतित महसूस करने लगो, मैं कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ ताकि तुम अपने प्रति पारदर्शी रहो! ठीक है?

मैं: जी गुरु-जी।

गुरु जी: देखो रश्मि, जो कुछ मिनट पहले आपके पास था, उसका शुरुआती रोमांच खत्म होने के बाद, आप उदास महसूस करने लगेंगी क्योंकि अवचेतन रूप से आपको "धोखा" या "आपने अपने पति को धोखा दिया है" या "जैसी भावना" महसूस होगी। तुम्हे लगेगा तुम गिर गयी हो और तुम बहुत नीचे चली गयी हो" इत्यादि-इत्यादि इत्यादि॥

गुरु जी की आवाज तेज और तेज हो गयी थी और यह इतनी शक्तिशाली थी कि मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया क्योंकि उन्होंने अपने तर्क को बुना जबकि मैं तब तक काफी होश में आ गयी थी ।

गुरु जी: न तो तुमने अपने पति को धोखा दिया है, न मैंने तुम्हें धोखा दिया है और न ही तुम नैतिक रूप से नीचे गई हो। आप यहाँ इलाज के लिए आयी हैं और यह मेरा अहसास था कि अकेले दवाओं से आप अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकती और आपने भी जो टेस्ट करवाए थे और अभी तक अपना इलाज करवाया था उससे आपको भी यही ज्ञात हुआ था। आपके योनि मार्ग में कुछ रुकावट थी, जो उम्मीद है कि अब साफ हो गई है। लेकिन अगर यह बनी रहती है, तो नर बीज आपके स्त्री बीज से ठीक से नहीं मिल सकते। आप मेरी बात समझ रही है! बेटी?


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मैं: जी... जी गुरु-जी।

गुरु जी: तो यह तथ्य कि इस इलाज की प्रक्रिया में आपने सेक्स का आनंद लिया है, वह आपके उपचार का ही एक हिस्सा था। आप यह तर्क दे सकते हैं कि इसकी आवश्यकता क्यों थी जब आप अपने पति से नियमित रूप से बिस्तर पर मिलती हैं। है न?

हा सही है! चूँकि मैं अपने पति से पहले ही चुदाई कर चुकी हूँ, तो इस चुदाई की क्या ज़रूरत थी! मैंने सिर हिलाया और गुरु जी की ओर उत्सुकता से देखा।

गुरु जी: बेटी, क्या तुम्हें तुम्हारे पति के चुदाई करने के तरीके और मैंने तुम्हें चोदने के तरीके में कोई अंतर नहीं देखा?

इतनी खुल्लम-खुल्ला ऐसी भद्दी बातें सुनकर मेरे कान गरम और लाल होने लगे!


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गुरु जी: बेटी, तुमने मेरा लंड देखा...

यह कहते हुए वह मुझे देखकर बहुत ही मार्मिक ढंग से मुस्कुराये। ऐसा लगता था कि वह अच्छी तरह जानते थे कि उनका विशाल लंड को देखना किसी भी परिपक्व महिला के लिए एक स्वागत योग्य दृश्य था विशेष रूप से विवाहित महिला एक मजबूत लंड की महिमा को अच्छी तरह से समझती है। मैंने धीरे से सिर हिलाया, लेकिन इस तरह के सवालों का जवाब देने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी।

गुरु जी: ... और आपने देखा होगा कि मैंने आपको एक अलग मूड में चोदा है। लेकिन क्यों? बस यह सुनिश्चित करने के लिए कि ही मैंने अपने खंभे जैसे लिंग को आपकी चुत के अंदर काफी गहराई तक खोदा हूँ ताकि यदि कोई सूक्ष्म बाधाएँ भी हों तो वे साफ हो जाएँ। औअर आपने अनुभव किया होगा आपकी बाधा काफी मजबूत थी और उस कारण से आपके लिए एक बार पुनः अपने कौमार्य को भांग करवाने जैसा था । बेटी इसका तरीका ापोरेशन भी हो सकता है । लेकिन मेरा ये तरीका ज्यादा प्राकृत और स्वाभिक है जिसमे सबसे अहम ये है चुदाई से योनि मार्ग की सभी बाधाओं को दूर किया जाए और साथ-साथ लिंगा महाराज की कृपा भी प्राप्त की जाए । बेटी कई मामलो में कोई बाधा नहीं होती फिर भी बिना लिंगा महाराज और योनि माँ की कृपा के संतान प्राप्त नहीं होती । इसलिए हम इस आश्रम में योनि पूजा का अनुष्ठान करते हैं।

वह फिर से मुस्कुराये और मुझे शर्म के मारे उनसे आँख मिलाने से बचना पड़ा। यह अपना कौमार्य फिर से खोने जैसा था क्योंकि गुरुजी का मेगा मूसल लंड मेरी योनि के अंदरूनी हिस्सों में चला गया था, जबकि मेरे पति का लंड उन हिस्सों में कभी नहीं घुसा था और मेरा योनि से खून बहना इस बात का सबूत था कि गुरुजी ने जो कहा वह सच था।

गुरुजी: तो बेटी, यह मत सोचो कि मैंने तुम्हारे साथ झूठ बोला है, तुमने बहुत बड़ा पाप किया है या ऐसा ही कुछ और। यह मेरे इलाज का सिर्फ एक हिस्सा था। कल महायज्ञ के समापन से पहले मैं आपके योनि की फिर से जांच करूंगा और आगे जो भी आवश्यक होगा वह करूंगा। क्या मैंने स्पष्ट कर दिया है?



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मैं: जी गुरु-जी।

गुरु-जी: क्या आप अपने मन में स्पष्ट हैं?

मैं: हाँ... हाँ गुरु-जी... लेकिन... मेरा मतलब... जैसा कि आप समझ सकते हैं...

गुरु जी: मैं यह समझ सकता हूँ। आप निश्चित रूप से किसी अन्य पुरुष के साथ लेटना नहीं चाहती थी और नाही आपके अपने पति के इलावा विवाहेतर किसी से कोई सम्बन्ध हैं, और आज भी आप अपने पति के प्रति बहुत वफादार हैं और आपसे यही उम्मीद की जाती है बेटी। आपकी रूढ़िवादिता ही आपकी ताकत है बेटी... मैं यहाँ कई विवाहित महिलाओं से मिला हूँ। अधिकतर महिलाये आप जैसी हैं-सभ्य, सुसंस्कृत और अपने परिवार के प्रति समर्पित, लेकिन हाँ, निश्चित रूप से कुछ अपवाद भी हैं, जो केवल नए साथी की तलाश में हैं! लेकिन अंततः वे अपने वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं बेटी, लेकिन तुम अवश्य सफल होगी! मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है! जय लिंग महाराज!

मैं: जय लिंग महाराज!

ईमानदारी से कहूँ तो उस बातचीत में गुरूजी से जो कुछ भी मैंने सुना वह मेरे दिमाग में पहले से ही बहुत कुछ घोला जा चुका था!

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गुरु जी: अब आपकी योनि पूजा का अंतिम भाग-योनि जन दर्शन। तो चलिए उसके लिए आगे बढ़ते हैं।

गुरु जी अपने आसन से उठे और कमरे से निकलने ही वाले थे। मैं थोड़ा असमंजस में थी-कहाँ जाऊँ? और मैं इस तरह कमरे से बाहर कैसे जा सकती हूँ? बिना कुछ पहने? मैं अपनी चूत के सामने छोटा तौलिया पकड़ कर खड़ा हो गयी, हालाँकि यह वास्तव में किसी काम का नहीं था क्योंकि उस कमरे में मौजूद सभी लोगों ने मेरी नग्न चूत को लंबे समय तक देखा था। लेकिन फिर भी मैं अपनी चुत के सामने हाथों में तौलिया लिए खड़ी थी! मैंने कहा

मैं: गुरूजी? अब क्या करना है?

गुरूजी:-संजीव! अरे! मेरा मतलब। आपने योनि जन दर्शन के सम्बंध में मैडम को जानकारी नहीं दी।


जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !

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08-20-2023, 05:13 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट- 42

चार व्यक्तियों को  योनि जन दर्शन



गुरु जी: ओहो! माफ़ करना। रश्मि, तुम मेरे साथ आओ अब हम तुम्हारे योनि जन दर्शन के लिए प्रांगण में एकत्रित होंगे। दुर्भाग्य से पूजा के मानक नियम के अनुसार आपको बाहर पूरी तरह नग्न होकर आना होगा। वहाँ आप अपनी योनि को "गंगा जल" से साफ करेंगे और फिर चार व्यक्ति योनि  जन दर्शन करगे जो वास्तव में चार दिशाओं, यानी पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का प्रतीक होंगे। ठीक? उदय, राजकमल, तुम दोनों मेरे साथ चलो। जल्दी करो!

यह कहकर गुरूजी उदय और राजकमल के साथ आनन-फानन में पूजाघर से निकल गये। मैं वहाँ एक मूर्ति की तरह खड़ी थी!

मैं इन अजीब हालात में फंस गयी थी-और नग्न हालत में बाहर जाना था और मुझे "चार व्यक्तियों" को  योनि दिखानी   थी । चार व्यक्ति? कौन हैं वे? निर्मल, संजीव, उदय और राजकमल? यदि ऐसा था, तो गुरुजी ने 'ऐसा' क्यों नहीं कहा; उन्होंने "चार लोगों" का उल्लेख क्यों किया?

क्या करूँ? मेरी विचार प्रक्रिया शून्य हो गयी कुछ समझ नहीं आ रहा था! मैंने लगभग एक वर्चुअल ब्लैकआउट का अनुभव किया। गुरु जी पहले ही बाहर के दरवाजे से गायब हो चुके थे। मैं पूरी तरह से भ्रमित और हैरान थी और इस नई स्थिति में चुदाई का आनंद जो मैंने अनुभव किया था वह जल्दी से समाप्त होने लगा था।



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जब मैं अपनी चुदाई के बाद गद्दे पर आंखें बंद करके लेटी थी तो मैंने गुरूजी के शिष्यों में आपस में जो "चैट" सुनी थी, उसके बारे में सब कुछ भूलकर मैंने तुरंत संजीव से ही मदद मांगी!

मैं: संजीव... मेरा मतलब है... मैं कैसे... मैं इस तरह से बाहर कैसे जा सकती हूँ?

संजीव: मैडम, योनि पूजा करने वाली सभी महिलाएँ ऐसे ही जन दर्शन के लिए आंगन में जाती हैं... यानी बिना कुछ पहने।

संजीव अपनी धुन में मस्त था।

मैं: लेकिन... प्लीज समझिए! यह... यह... ठीक है, ठीक है! मुझे बताओ कि "चार लोगों" से गुरु-जी का क्या मतलब था?


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संजीव: कौन से चार?

मैं:े मुझसे कहा ... '...चार व्यक्तियों को जन दर्शन कराओ जो वास्तव में चारों दिशाओं का प्रतीक होंगे...'

संजीव: ओह! मैडम, आप कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हैं! हाँ, चूंकि हम चारों आपकी पूजा में शामिल हैं, इसलिए हम दिशा संकेतक के रूप में खड़े नहीं हो सकते हैं, इसलिए यह होना ही है...

मैं: चार और आदमी?

मैं लगभग चीख पड़ी!

संजीव: हाँ! बेशक! लेकिन मैडम आप परेशांन मत होईये और रिलैक्स कीजिए... !

डर और घबराहट में मेरे होंठ पहले से ही सूखे हुए थे और उंगलियाँ ठंडी थीं और अब अपरिहार्य देखकर मैंने सीधे संजीव का हाथ पकड़ लिया और मदद की भीख माँगी।

मैं: संजीव... प्लीज़ समझो... मैं एक बालिग महिला हूँ... मैं चार और अनजान पुरुषों के सामने ऐसे कैसे जा कर खड़ी हो सकती हूँ! यह बेतुका है ... कृपया ...

संजीव: ओह! मैडम, आप बहुत तेजी से निष्कर्ष पर पहुँच रही हैं!

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निर्मल: जी मैडम। तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?

मैं: तुम बस चुप रहो!

संजीव: मैडम, पहले मेरी बात तो सुन लीजिए!

यह कहते हुए संजीव ने मुझे मेरे कंधों से पकड़ लिया और मेरा ध्यान खींचने के लिए एक झटका दिया। जैसे ही मैंने उसकी आँखों में देखा, मैंने महसूस किया कि मेरे बड़े स्तन झूल रहे थे और बहुत ही कामुक तरीके से हिल रहे थे। मुझे शायद ही कभी इस तरह का अनुभव हुआ हो कि कोई मुझसे बात करने के लिए मेरे कंधे पर हाथ रख रहा हो जबकि मेरे स्तन नग्न लटक रहे हों! हाँ, मैं अपने पति के साथ टॉपलेस स्थिति में बातचीत करती हूँ, लेकिन यह स्वाभाविक रूप से अंतरंग अवस्था में बिस्तर पर।

मैंने महसूस किया कि संजीव अपनी उँगलियों से मेरे नंगे कंधों को महसूस कर रहा था और उसने मुझे वहाँ जकड़ लिया था। मैं उसके काफी करीब खड़ी थी और मेरे मजबूत उभरे हुए स्तन उसकी छाती से कुछ इंच दूर थे।

संजीव: मैडम, शांत हो जाइए। आपके लिए उन चारो में से कोई भी अनजान नहीं है! कोई नहीं।

मैं: लेकिन... लेकिन वह कौन हैं? संजीव... कृपया मुझे बताओ!

संजीव: मैडम, आप लिंग महाराज की शिष्या हैं! आपने दीक्षा ले ली है और योनि पूजा कर ली है! फिर भी अभी भी आप बहुत शर्मीली हो! मैं आश्चर्यचकित हूँ!



[Image: PRESS.jpg]
मैं: संजीव प्लीज... बताओ कौन हैं वो?

संजीव: पांडे-जी, मिश्रा-जी, छोटू और मास्टर-जी।

निर्मल: कोई बाहरी नहीं है मैडम, तो इतनी चिंता क्यों करती हो!

मेरे होंठ विस्मयादिबोधक में फैल गए और नाम सुनते ही मैं लगभग जम गयी।

संजीव: मैडम, मुझे लगा कि आपको सहज होना चाहिए, क्योंकि आप उनमें से प्रत्येक को अच्छी तरह से जानती हैं।

मैं: लेकिन... लेकिन... मैं कैसे...


[Image: YP14.jpg]

मैं अपना वाक्य पूरा नहीं कर पायी और मेरा गला रुँध गया और वास्तव में मेरी नग्न स्थिति के बारे में सोचते हुए मेरी आँखों से आँसुओं की धाराएँ बहने लगीं।

संजीव: मैडम, मैं आपके मन की स्थिति को समझ सकता हूँ, लेकिन चूंकि यह योनी जन दर्शन पूजा का एक अभिन्न अंग है, इसलिए गुरु-जी इसे किसी भी तरह रोक नहीं सकते हैं। हाँ, वह केवल उन चार व्यक्तियों को बदल सकते है जो दिशाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे।

निर्मल: लेकिन संजीव, क्या मैडम रामलाल और किसी अन्य पुरुष के सामने अधिक सहज होंगी?

मैं नहीं! नहीं!

रामलाल का नाम सुनते ही मेरी प्रतिक्रिया तुरंत नहीं की निकल गई। इन लोगों के सामने नग्न हो जाना तो और भी अच्छा था, लेकिन रामलाल जैसे आदमी के सामने बिकुल भी नहीं।

संजीव: मैडम, तो आप खुद समझ सकती हैं... और फिर आप इतनी परेशान क्यों हैं? मिश्रा जी और मास्टर जी बुजुर्ग हैं, उनके सामने आपको शर्माना नहीं चाहिए।

निर्मल: और मैडम, निश्चित रूप से आप छोटू को अनदेखा कर सकती हैं क्योंकि वह आपकी सुंदरता का आकलन करने के लिए बहुत छोटा है। वह-वह ...

संजीव: बहुत सही! हाँ, मैं मानता हूँ कि पांडे जी के सामने आपको थोड़ी झिझक महसूस होगी क्योंकि वह एक अधेड़ शादीशुदा व्यक्ति हैं।




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मेरे लिए इन दो पुरुषों द्वारा किए गए आकलन को देखकर मैं चकित रह गयी! मैं भली-भांति समझ गयी था कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है और मुझे यह करना ही था। इस बीच संजीव मेरी अधमरी हालत देखकर मेरी नंगी हालत का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था।



उसने मुझे मेरे कंधों से पकड़ रखा था और अब वह मुझे समझाने के क्रम में इतना करीब आ गया कि मेरे सूजे हुए और नुकीले निप्पल उसकी छाती को छूने लगे।

मैं तुरंत पीछे हट गयी और एक अच्छी दूरी बना ली । मैंने अपनी आँखें बंद कीं और कुछ देर सोचा। ईमानदारी से कहूँ तो मैं अपने घर में भी शायद ही कभी ऐसे नंगी घूमी हूँ और यहाँ मुझे आश्रम में नंगी घूमना होगा! और वहाँ मुझे गुरूजी और उनके चार शिष्यों के अतिरिक्त चार और आदमियों के सामने नग्न ही खड़ा होना है... अरे नहीं! मैं यह कैसे कर सकती हूँ?

निर्मल: मैडम, हमें देर हो रही है...

संजीव: हाँ मैडम, हम यहाँ हमेशा के लिए इंतजार नहीं कर सकते।

कोई रास्ता न देखकर मुझे आगे बढ़ने के लिए राजी होना पड़ा।


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08-20-2023, 05:15 PM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट- 43

नितम्बो पर थप्पड़ 


मैं तुरंत पीछे हट गयी और एक अच्छी दूरी बना ली । मैंने अपनी आँखें बंद कीं और कुछ देर सोचा। ईमानदारी से कहूँ तो मैं अपने घर में भी शायद ही कभी ऐसे नंगी घूमी हूँ और यहाँ मुझे आश्रम में नंगी घूमना होगा! और वहाँ मुझे गुरूजी और उनके चार शिष्यों के अतिरिक्त चार और आदमियों के सामने नग्न ही खड़ा होना है... अरे नहीं! मैं यह कैसे कर सकती हूँ?



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निर्मल: मैडम, हमें देर हो रही है...

संजीव: हाँ मैडम, हम यहाँ हमेशा के लिए इंतजार नहीं कर सकते।

कोई रास्ता न देखकर मुझे आगे बढ़ने के लिए राजी होना पड़ा।

मैं: ठीक है तो चलिए... 

मैंने अनिच्छा से कहा।

संजीव: ज़रूर मैडम, लेकिन आपको वह तौलिया हटाना होगा ...

मैं: ओह! जी... हाँ... हाँ



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मैंने अपनी कमर से तौलिया ज़मीन पर गिरा दिया और संजीव और निर्मल के सामने पूरी तरह नंगी खड़ी हो गयी। वे दोनों स्वाभाविक रूप से मेरी कामुक सुंदरता को ताक रहे थे-दौड़ने मेरी 30 साल की पूरी तरह से खिली हुई नग्न आकृति! और जवानी को-को घूर रहे थे मुझे ठीक उसी पल याद आया कि मेरी शादी से ठीक पहले मेरी मौसी हमारे घर आई थीं और मेरी शादी तक वही रुकी और उन्होंने एक दिन हर्बल बॉडी शैम्पू का इस्तेमाल करके मेरे नहाने में मेरी मदद की। उस दिन मैं शौचालय में उसके सामने पूरी तरह नंगी हो गई, लेकिन आखिर वह एक महिला थी, लेकिन फिर भी... जवानी हासिल करने के बाद और उस दिन मौसी के सामने ऐसे नंगी होते के अतिरिक्त शायद यही एकमात्र मौका था जब मैं अपने पति के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति के सामने पूरी तरह से नग्न हुई थी।

संजीव ने पूजा घर के दरवाजे से बाहर गलियारे तक मेरा मार्गदर्शन किया।

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मैं सोच रही थी कि आख़िरी बार मैंने इस अंदाज़ में कमरे से बाहर कब ऐसे नग्न हो कदम रखा था। हाँ, मैं अपने पति के साथ अपने घर या होटलों में बिस्तर पर कई बार नग्न हो चुकी थी जब हम घूमने जाते थे, लेकिन मैं कभी भी इस तरह घर में भी नहीं चली थी-पूरी तरह से निर्वस्त्र अवस्था में-शायद नहीं शादी के बाद भी एक बार भी नहीं!

मैं आश्रम के गलियारे से बहुत धीरे-धीरे चली-लगभग हर कदम के साथ शर्म से मर रही थी-मेरे नंगे पांव ठंडे फर्श को महसूस कर रहे थे, मेरे बड़े गोल स्तन हिल रहे थे और जैसे ही मैंने अपने कदम फर्श पर रखे, मेरे मांसल नितंब हमेशा की तरह कामुकता से झूम रहे थे जैसा कि वे हमेशा मेरी साड़ी के नीचे करते हैं, लेकिन आज वे पूरी तरह से बेनकाब थे! निर्मल मेरे पीछे-पीछे चल रहा था और वह बौना उस कामुक दृश्य का अधिकतम आनंद ले रहा होगा।

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स्वाभाविक रूप से मैं अपना सिर नीचे करके चल रही थी और अचानक मैं संजीव से टकरा गयी क्योंकि वह अचानक रुक गया। जैसे ही मैं उससे टकराया, स्वाभाविक रूप से मेरी दृढ़ स्तन क्षण भर के लिए उसके शरीर के खिलाफ दब गए।

मैं: क्या... क्या हुआ? संजीव!

संजीव: उफ्फ! ये मच्छर... कहीं आपको काट तो नहीं रहे? मैडम, बहुत सावधान रहें! जैसा कि आपने कुछ भी नहीं पहना है, उनके आपको काटने की संभावन सबसे अधिक हैं।


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मुझे अपनी नग्न अवस्था की याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी और जैसा कि मैंने अपने दृढ नग्न स्तनों को देखा, मैं केवल एक आह भर सकती थी। संजीव ने अपने पैर पर दो-तीन बार थप्पड़ मारा और फिर चलने लगा। मैं गलियारे के पास से गुज़रा क्योंकि यह आश्रम से होते हुए आंगन की ओर जाता था।

थप्पड़! मेरे नितम्बो पर थप्पड़ पड़ा

मैं: आउच! अरे! यह क्या है? उफ्फ्फ...

निर्मल: खून चूसने वालों मछरो! मैंने उन दोनों को मार डाला! देखो...

मेरे कान तुरंत लाल हो गए और मेरा चेहरा लाल हो गया क्योंकि मैं पीछे मुड़ा और मरे हुए मच्छरों के एक जोड़े को देखने के लिए निर्मल की हथेलियों में देखा। उसने वास्तव में मच्छरों को मारने के लिए मेरे नंगे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारा था! यह इतना अप्रत्याशित था कि मैं इस नितांत अपमानजनक व्यवहार पर ठीक से प्रतिक्रिया भी नहीं कर सकी। एक महिला को उसकी गांड पर थप्पड़ मारना-सामान्य परिस्थितियों में लगभग अकल्पनीय, लेकिन यहाँ मेरी अपंग स्थिति ने जब मैंने निर्मल को घूरा तो वह मुझसे दूर ही गया।


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निर्मल: इसके लिए मैडम सॉरी, लेकिन उम्मीद है कि मैंने वहाँ आपको ज्यादा जोर से थप्पड़ नहीं मारा होगा?

मैंने उसे ज़ोर से देखा और अपनी आँखों से यह संदेश देने की कोशिश की कि मुझे उसका यह तरीका बिल्कुल पसंद नहीं आया था, लेकिन मैं इस कमीने को सबक सिखाने की स्थिति में नहीं थी। मेरा दाहिना नितम्ब गाल वास्तव में दर्द कर रहा था क्योंकि उसने मेरे सख्त गोल नितम्ब के मांस पर बहुत कसकर थप्पड़ मारा था।

संजीव: मैडम मुझे उम्मीद है कि उसने आपको ज्यादा जोर से थप्पड़ नहीं मारा होगा क्योंकि... मतलब मैडम आपके नितम्ब बहुत गोरे लग रहे हैं... अरे... और अगर उसके थप्पड़ से लाल दाग हो तो सबके सामने अजीब लगेगा।



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मैं इस तरह की टिप्पणी पर चकित थी और अपनी झुंझलाहट को किसी तरह निगल लिया; मैंने अपने होठों को काटते हुए नीचे की ओर फर्श की ओर देखा।

निर्मल: संजीव, यहाँ बहुत अँधेरा है। मुझे मैडम के बॉटम्स ठीक से दिखाई नहीं दे रहे हैं।

संजीव: तुम यह टॉर्च लेकर क्यों नहीं देख लेते! अगर गुरु-जी ने नोटिस किया तो इससे समस्या हो सकती है।

यह कहकर उसने तुरन्त एक पेन्सिल टॉर्च निर्मल को थमा दी।

निर्मल: हाँ, हाँ... वह प्रियंवदा देवी केस मुझे आज भी याद है। उह!

मैं: ये क्या बकवास है!

संजीव: मैडम, बस एक मिनट। धैर्य रखें! मैडम, अगर गुरुजी को आपकी नंगी गांड पर कोई धब्बा दिखा तो आप खुद ही लज्जित होंगी।

मैं क्या? लेकिन क्यों?

तब तक उस कमीने निर्मल ने टॉर्च ऑन कर दी थी और मेरी बड़ी नंगी गांड पर ध्यान दे रहा था। मैंने बहुत ही बेइज्जत महसूस किया, नग्न अवस्था में होने से भी ज्यादा मुझे उसका इस तरह से देखना बुरा लग रहा था!

जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
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09-03-2023, 08:50 AM,
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट- 44

नितम्बो पर लाल निशान का  धब्बा 


संजीव: मैडम, बस एक मिनट। धैर्य रखें! मैडम, अगर गुरुजी को आपकी नंगी गांड पर कोई धब्बा दिखा तो आप खुद ही लज्जित होंगी।

मैं क्या? लेकिन क्यों?


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तब तक उस कमीने निर्मल ने टॉर्च ऑन करके मेरी बड़ी नंगी गांड और चूतड़ों को ध्यान से देख रहा था। मैंने बहुत ही बेइज्जत महसूस किया, सच कहु तो नग्न अवस्था में होने से भी ज्यादा मुझे बेइज्जत महसूस हुआ!

मैं: इसे रोको! क्या चल रहा है? टॉर्च बंद कर दो बेशर्म!

लेकिन निर्मल ने मेरी एक न सुनी और मेरे गोल मखन रंग के नितम्बों पर प्रकाश डाला। संजीव भी मेरी गांड देखने के लिए मेरी पीठ की तरफ आ गया!

संजीव: मैडम, बेवकूफी मत करो। मुझे बताओ कि अगर गुरुजी को वहाँ कोई लाल निशान का  धब्बा  मिले और वह आप से पूछे की क्या हुआ तो आप क्या कहेंगी?


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यह कहते हुए उसने मेरी गांड की ओर इशारा किया। मैं एक पल के लिए रुक गयी। मैंने उस लाइन पर कभी नहीं सोचा था। मैं अभी भी अपने दाहिने नितम्ब के कोमल मांस पर निर्मल के थप्पड़ का दर्द महसूस कर रही थी।

मैंने वास्तव में अब अपने हाथ से उस क्षेत्र को छुआ और ... हे लिंग महाराज! थप्पड़ के कारण त्वचा काफी गर्म महसूस हो रही थी!

संजीव: मैडम, आप गुरु जी के सामने ऐसे नहीं जा सकतीं! ज़रा देखिए... कोई भी इस जगह को मिस नहीं करेगा!

निर्मल: मैडम, अगर गुरु जी ने आपसे पूछा कि आपने ऐसा कैसे विकसित किया कि आपको शर्मिंदगी महसूस होगी... इसलिए हम आपकी मदद करने की कोशिश कर रहे थे ताकि आपको एक अजीब स्थिति का सामना न करना पड़े।


मैं: हुह! यह सब तुम्हारी वजह से है ... तुम बदमाश!

निर्मल: सॉरी मैडम, लेकिन यकीन मानिए ऐसा इरादतन नहीं किया था... संजीव, कुछ तो करो यार!

संजीव: अब्बे साले! मैं भी तो बस यही सोच रहा हूँ... मैं नहीं चाहता कि मैडम प्रियंवदा देवी जैसी चिपचिपी स्थिति में पड़ें!

उनके मुंह से दो बार एक महिला का नाम सुनकर मैं स्वाभाविक रूप से थोड़ा उत्सुक हुई थी (उस स्थिति में भी) ।

मैं: आपने जो कहा उन प्र । प्रियं... देवी का इससे क्या सम्बंध है... ...

निर्मल: प्रियंवदा देवी! !

मैं: प्रियंवदा देवी को क्या हुआ था?


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संजीव: मैडम दरअसल प्रियंवदा देवी कुछ साल पहले आपके जैसी ही एक समस्या के लिए हमारे आश्रम में आई थीं, लेकिन जब वह यहाँ आईं तब तक वह काफी बुजुर्ग हो गयी थीं। वह 40 के करीब थी। दरअसल मैडम, आपको कैसे बताऊँ... एर...

मैं: संजीव... मेरा मूड नहीं है...

संजीव: हाँ, हाँ मैडम मुझे पता है। वास्तव में उनके मामले में हुआ यह था-गुरु जी के साथ योनी सुगम से गुज़रने के बाद भी, प्रियंवदा देवी और अधिक की तलाश में थीं! शायद उसके शरीर के अंदर की गर्मी अभी पूरी नहीं निकली थी और जब वह आपकी तरह योनी जन दर्शन के लिए इस गलियारे से नीचे जा रही थी, तो उसने कोशिश की... उसने कोशिश की...


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मैं: क्या ट्राई किया? (मैं स्वाभाविक रूप से अपने स्त्री गुणों के कारण अधीर थी) 

संजीव: मैडम, उसने मुझे प्रभावित करने की कोशिश की... मेरा मतलब है... वह एक और दौर चाहती थी... आरर ... आप समझ सकती हैं मैडम।

मैं: हे लिंगा महाराज!



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पूरे समय मैं संजीव के सामने पूरी तरह नंगी खड़ी रही और बातें करती रही! मैंने अपने जीवन में कभी भी ऐसा नहीं किया था, अपने पति के साथ भी नहीं-जब भी मैं अपने पति के साथ बिना कपड़ों के रही, तो बेशक बिस्तर पर ही थी और बिस्तर पर ही उनसे बाते की। यहाँ मेरे लिए एकमात्र सुकून देने वाला कारक गलियारे का अर्ध-अंधेरा था, जिससे मेरे पास खड़े दो शिष्यों को भी स्पष्ट रूप से मेरा पूरा शरीर दिखाई नहीं दे रहा था।

संजीव: जरा सोचो! मैंने प्रियंवदा देवी को समझाने की कोशिश की कि वह यहाँ किसी मकसद से आई है और उसे-उसे सही तरीके से पूरा करना चाहिए। आप जानती हैं मैडम मैंने उन्हें ये तक कहा कि अगर वह चाहेंगी तो मैं...अरे... महायज्ञ के बाद उन्हें चोदूंगा, लेकिन वह थी...

मुझे नहीं पता था कि मैं इस "बकवास" का अंत जानने के लिए इतना उत्सुक क्यों हो रही थी, लेकिन मेरी निर्वस्त्र हालत को नज़रअंदाज करते हुए संजीव से ऐसा करने के लिए बेवजह पूछताछ करता रही और उस थप्पड़ के बारे में भूल गयी जो निर्मल से सीधे मेरे नितम्ब पर मारा था।


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मैं: फिर क्या हुआ?

मैंने घुँघराली भौंहों से पूछा जैसे मैं किसी जासूस की तरह मामले की जाँच कर रही हूँ!

संजीव: मैडम, वह लगभग 40 वर्ष की थीं; वह पूरी तरह नंगी अवस्था में मुझसे चुदाई की भीख माँग रही थी; उसके पूरे भारी स्तनों के साथ उसकी बड़ी गांड... अरे... आपसे भी ज्यादा भड़कीली थी... मेरा मतलब मैडम... इतनी प्रेरक और उत्तेजक कि मुझे उसकी बात माननी पड़ी, लेकिन यज्ञ पूरा होने तक सेक्स बिल्कुल नहीं करने को मैंने उस बोला।

मैं: इसका मुझसे क्या लेना-देना? मुझे अभी भी उसका मेरे केस के साथ क्या रिश्ता हैं समझ नहीं आया है ...



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संजीव: मैडम,! सुनो ना... हम इसी गलियारे में खड़े होकर एक दूसरे को गले लगाने लगे और चूमने लगे और यकीन मानिए मैडम जिस तरह से वह मुझे प्यार कर रही थी उससे मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सदियों से उनके पति ने उन्हें छुआ तक नहीं!

मैंने संजीव से नज़रें हटा लीं, लेकिनमई न फिर भी आगे जानने के लिए उत्सुक थी।

संजीव: मैडम... अरे... प्रियंवदा देवी ने जल्द ही मेरा मुंह अपने ऊपर करने को मजबूर कर दिया... मतलब... स्तन और उसने मुझे अपने निप्पल चूसने को कहा। वास्तव में, उसने पहले भी गुरु-जी से बातचीत में यह स्वीकार किया था कि उसे अपने स्तनों को चूसना सबसे ज्यादा पसंद था।

मैं स्पष्ट रूप से इस विस्तृत विवरण से असहज महसूस कर रही थी। मैंने जोर-जोर से सांस लेना शुरू कर दिया और मेरे दृढ़ नग्न स्तन थोड़ी तेज गति से ऊपर-नीचे होने लगे, जिससे मैं और भी भद्दी और उत्तेजित लगने लगी! स्वचालित रूप से मेरा बायाँ हाथ मेरी चुत पर चला गया और यह महसूस करते हुए कि संजीव मेरे हाथ का पीछा कर रहा था, मैंने जल्दी से उसे अपनी नंगी चुत से हटा दिया। संजीव यह समझने के लिए काफी चतुर था कि मैं असहज महसूस कर रही थी औअर उसने अपने विवरण में दर्जनों व्याख्यानं जोड़ दिए।


संजीव: मैडम, आपके छुपाने की कोई भी बात नहीं है... प्रियंवदा देवी की शादी को करीब 10 साल हो चुके थे और पता नहीं इस बीच उनके पति ने कितनी बार उनके स्तन चूसे थे-उनके इतने बड़े निप्पल थे मैडम! (उन्होंने अपनी उंगलियों से इशारा किया) मैंने कई विवाहित महिलाओं के नग्न स्तन देखे हैं, लेकिन मैंने कभी भी इतने बड़े उभरे हुए निप्पल नहीं देखे! वे दूध पिलाने वाली बोतल के निप्पल की तरह थे, इतने बड़े! जाहिर है मैडम, आप अच्छी तरह समझ सकती हैं, ऐसी रसीली चीजों को चूसने का मौका देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैडम... किसकी बीवी और कौन चूस रहा था ... हुह!

मैंने एक बार अपना थूक निगल लिया और अपने दांतों को हल्के से दबा लिया क्योंकि मैं अब और अधिक असहज थी-वह इतने विस्तार से निप्पल चूसने के बारे में छोटो छोटी बाते विस्तार से बता रहा था मुझे लगा जैसे कि मैं संजीव को इस गलियारे में खड़ी एक नग्न महिला के स्तनों को चूसते हुए देख रही थी!


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संजीव: मैडम मुझसे वहीं गलती हो गई! मैं उसके बढ़े हुए निप्पलों का स्वाद लेने के लिए इतना जंगली हो गया था और जिस तरह से वह अपने बड़े स्तनों को मेरे चेहरे पर जोर दे रही थी कि मैंने उसके मांस को काटना शुरू कर दिया और मेरे नाखून भी उसके नग्न स्तनों पर गहरे धंस गए।

यह एक बहुत ही गर्म सत्र था और उसने शांत होने से पहले अपनी गर्मी को दूर करने के लिए मुझे अपनी चुदाई करने के लिए मजबूर किया। लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।

मैं: क्या... क्या नुकसान हुआ?

संजीव: मैडम नियमों के अनुसार किसी भी महिला को योनी पूजा के समय की अवधि के भीतर अतिरिक्त यौन या गर्म करने वाले सत्रों में शामिल नहीं होना चाहिए, लेकिन प्रियंवदा देवी ने अपनी खुद की विस्तारित यौन प्यास को संतुष्ट करने के लिए इसका उल्लंघन किया।


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मैं: हम्म... फिर?

संजीव: मैडम, अगर गुरु जी ने उसके स्तनों पर उन निशानों पर ध्यान नहीं दिया होता, तो उसे जाने दिया जाता, लेकिन मेरे दांतों और नाखूनों के निशान इतने प्रमुख थे कि वह पकड़ी गई और सजा के रूप में उसे अगले दिन एक बार फिर योनी पूजा भुगतनी पड़ी! जय लिंगा महाराज!

मैं: हे लिंगा महाराज!

संजीव: मैडम, इसलिए हम इतने चिंतित हैं! तुम्हारे लिए! हमारे लिए नहीं! मैडम, हमे लगभग महीने में एक बार हमें एक नंगी शादीशुदा औरत देखने को मिल जाती है, आप बहुत बड़ी गलत कर रही होंगी अगर आपको लगता है कि निर्मल ने जानबूझकर आपकी नंगी गांड को छूने के लिए आपको थप्पड़ मारा था।

मैंने निर्मल की तरफ देखा हमेशा की तरह दुष्ट बौना मुस्कुरा रहा था! मैंने उसके चेहरे से हटा कर अपना ध्यान फिर से संजीव की ओर किया।


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संजीव: मैडम, हम नहीं चाहते कि आप ऐसी स्थिति में हों। क्‍योंकि मैडम आपकी गांड का रंग इतना गोरा है, गुरुजी उस लाल निशान को देखने से नहीं चूकेंगे ...

जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
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