04-29-2023, 09:12 PM,
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aamirhydkhan
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-22
लिंग पूजा-4
अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और मैं उनक ऊपर लेट गयी। गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था, उनके शरीर से पूरी तरह समा गयी। मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फ़र्श में लेटी थी और निर्मल ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे। लेकिन अब अलग ही हो रहा था। गुरुजी फ़र्श पर लेते हुए थे और मैं उनके ऊपर थी मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुईl
गुरुजी—रश्मि बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है। मैं अपना वज़न तुम पर नहीं डालूँगा। तुम बस पूजा में ध्यान लगाओ ।
गुरुजी मेरे ऊपर लेटे हुए थे और उन्होंने अपनी धोती ठीक करने के बहाने गुरुजी ने अपने बदन को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट किया की उनका श्रोणि भाग (पेल्विक एरिया) ठीक मेरे नितंबों के ऊपर आ गया। अब गुरुजी ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। मैंने देखा की वह मेरी गांड में हल्के से धक्का लगा रहे हैं।
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पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के अतिरिक्त साथ-साथ में ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।
गुरु-जी: बहुत बढ़िया बेटी! अब हम लिंग से प्राथना करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।
गुरु जी: हे लिंग महाराज!
मैं: हे लिंग महाराज!
गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...
मैं: हे लिंगा महाराज! मैं खुद को आपको समर्पित करती हूँ ...
गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ...समर्पित करता हूँ।
मैं: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, अपनी । योनि... आपको सब कुछ...आपको ।समर्पित करती हूँ।
गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! कृपया इस पूजा को स्वीकार करें!
मैं: हे लिंगा महाराज! कृपया आप मेरी इस योनि पूजा को स्वीकार करें!
गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
मैं: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
उसके बाद मैं ये देखकर शॉक्ड हो गयी की गुरुजी भी मेरे बदन से आकर्षित होकर उनका लिंग कड़ा हो गया था और वह भी मेरे नितम्बो पर लंड से हलके धक्क्के मार रहे थे, फिर मुझे लगा शायद ये मेरा वहाँ है और मैंने गुरुजी का बताया हुआ मंत्र ज़ोर से बोल दिया। ऐसा पाँच बार करना था। दो बार मन्त्र बोलने के बाद में तो मेरे नितंबों पर गुरुजी का धक्का लगाना भी साफ महसूस होने लगा।
मंत्र जाप खत्म होने के बाद अब मुझे अपनी इच्छा गुरुजी को बतानी थी। गुरुजी अपने चेहरे को मेरे चेहरे के बिल्कुल नज़दीक़ ले गये, उनके मोटे होंठ मेरे गालों को छू रहे थे। गुरुजी ने अपने दोनों हाथ मेरी दोनों तरफ फर्श में रखे हुए थे। अब उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे में रख दिया और अपना मुँह उसके चेहरे से चिपका कर मेरी इच्छा सुनने लगे।
मैं: लिंग महाराज कृपया मुझे उर्वर बनाएँ और मुझे मेरे गर्भ से उत्पन्न एक बच्चे का आशीर्वाद दें...
लिंगा महाराज से मेरी इच्छा कह देने के बाद गुरुजी मेरे बदन से उठ गये। मैंने उसकी तरफ देखा तो मैंने साफ-साफ देखा की उनका खड़ा लंड धोती को बाहर तना हुआ खड़ा था । मेरे उठने से पहले ही उन्होंने जल्दी से अपने लंड को धोती में पुनः एडजस्ट कर लिया।
गुरुजी–रश्मि बेटी, तुमने पूजा करते समय अपना पूरा ध्यान लगाया?
मैं–हाँ गुरुजी. मैंने गहरी सांस लेते हुए बोला!
मैंने ख्याल किया मेरी आवाज़ कामोत्तेजना की वजह से। कांप रही थी, शायद! लेकिन मैं गहरी साँसे ले रही थी
गुरुजी–तो फिर तुम्हारी आवाज़ में कंपन क्यूँ है?
मैं गहरी साँसें ले रही थी, जैसे कि अगर कोई आदमी उसके ऊपर लेटे तो कोई भी औरत अघरि सांस लेती। लेकिन गुरुजी का स्वर कठोर था।
मैं–मेरा विश्वास कीजिए गुरुजी. मैं सिर्फ अपनी पूजा के बारे में सोच रही थी।
गुरुजी–तुम झूठ क्यूँ बोल रही हो बेटी?
कमरे में बिल्कुल चुप्पी छा गयी। मैं भी हैरान थी की ये हो क्या रहा है?
गुरुजी–रश्मि मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है तुम्हे अपना मन अपने लक्ष्य की और लगाना हैं और दूसरी बातो को नजर नदाज करना है परन्तु अभी भी तुम भटक जाती हो और यही तुम्हारी असफलता का मुख्य कारण है। तुम्हारा मन स्थिर नहीं रहता और अन्य चीज़ों में ज़्यादा उत्सुक रहता है। वही यहाँ पर भी हुआ। तुम्हारा मन पूजा की बजाय मेरे बदन के तुम्हारे बदन को छूने पर लगा हुआ था।
मैं –गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए. मैं सिर्फ प्रार्थना पर ध्यान लगा रही थी परन्तु जब आप मुझे छू रहे थे तो मुझे छूने का एहसास हो रहा था जिसे मैं नजरअंदाज करने का पूरा प्रयास कर रही थी । अगर मुझ से कोई भूल हुई है तो आप कृपया मुझे क्षमा करे!
गुरुजी–रश्मि यहाँ आओ और मुझे पता करना होगा की तुम्हारा मन भटका हुआ था कि नहीं। अगर तुम्हारा मन भटका हुआ था नहीं तो हमे ये प्रक्रिया दोहरानी होगी!
मैं हैरान थी। गुरुजी ये कैसे पता करेंगे? मैं सर झुकाए खड़ी थी क्योंकि मेरा ध्यान एक मर्द के अपने बदन को छूने पर था।
"लेकिन गुरुजी कैसे? मेरा मतलब।कैसे?"
गुरुजी–ये तो आसान है। मैं तुम्हारे निप्पल चेक करूँगा और मुझे पता चल जाएगा की तुम कामोत्तेजित हुई थी या नहीं।
एक मर्द के मुँह से ऐसी बात सुनकर हम दोनों हक्की बक्की रह गयीं। लेकिन फिर मुझे समझ आया की गुरुजी ने अपने अनुभव से एकदम सही निशाना लगाया है। क्यूंकी अगर किसी अगर ये पता लगाना हो की औरत की वह कामोत्तेजित है या नहीं तो ये बात उसके निप्पल सही-सही बता सकते हैं।
मैं शरम से लाल हो गयी थी। अब मुझे भी समझ आ गया था की गुरुजी को बेवक़ूफ़ नहीं बना सकती क्यूंकी वह बहुत अनुभवी और बुद्धिमान थे।
में–क्षमा चाहती हूँ गुरुजी. आप सही हैं।
गुरुजी–हम्म्म ......देख लिया बेटी तुमने, लोगों को बहलाने का कोई मतलब नहीं है। हमेशा सच बताओ. ठीक है?
अब मैंने सिर्फ सर हिला दिया। मैं समझ गयी थी की गुरुजी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले आदमी के सामने इस मेरी क्या हालत हो जाती और उनके सामने मेरा झूठ कुछ पल भी नहीं ठहर पाता ।
हमने एक बार फिर फूरी मन्त्र बोलने की प्रक्रिया दोहराई और इस बार मैंने पूजा पर ध्यान दिया नाकि गुरूजी के धक्को पर ।
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गुरूजी: रश्मि आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। "
"मैं समझ गयी गुरुजी मैं..." गुरुजी ने धीरे से अपना हाथ उठाकर और मुझे रुकने का इशारा करते हुए मेरे वाक्य बीच में काट दिया।
गुरूजी: रश्मि अब अप्प आप लिंगम पूजा की शक्तियों को अनुभव करेंगी तो अब हम लिंगा पूजा करेंगे। " उन्होंने मुझे कुछ आश्वासन के लिए देखा, मेरा दिमाग भारी था ।
मुझे जवाब देने की जल्दी थी, मुझे ठीक-ठीक पता था कि मुझे क्या चाहिए।
"मैं जैसा आप कहेंगे वैसा करुँगी गुरुजी मैं आपकी शिक्षाओं से प्रभावित हूँ। योनि पूजा अनुष्ठानों ने मुझे उत्साहित किया है।"
गुरुजी मेरे उत्साह पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।
गुरूजी- रश्मि अब मेरे पीछे दोहराओ कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
मैं:-कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
गुरु-जी: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
मैं: मैं, रश्मि सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
अब गुरुजी ने अपने बैग से लिंगा महाराज के दो प्रतिरूप निकाले। वह दिखने में बिल्कुल वैसे ही थे जिसकी हम यहाँ पूजा कर रहे थे।
गुरुजी–संजीव बेल के पत्ते, दूध, गुलाब जल और शहद रश्मि को दो और रश्मि अग्नि कुंड में थोड़ा घी डाल दो।
मैंने वैसा ही किया और गुरुजी उनसे कुछ मिश्रण बनाने लगे। उन्होंने बेल के पत्तों को कूटकर शहद में मिलाया और उसमें बाकी चीज़ें मिलाकर एक गाढ़ा द्रव्य तैयार किया। फिर लिंगा महाराज के एक प्रतिरूप पर वह द्रव्य चढ़ाने लगे। उन्होंने उस प्रतिरूप को द्रव्य से नहलाकर हाथ से उसमें सब जगह मल दिया। फिर दूसरे प्रतिरूप को उन्होंने अग्नि में शुद्ध किया और गुलाब जल से धो दिया। उसके बाद दोनों प्रतिरूपों की पूजा की। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी ।
गुरुजी–रश्मि, यहाँ आओ और अग्नि के पास खड़ी रहो। अपनी आँखें बंद कर लो और मैं जो मंत्र पढ़ूँ, अग्निदेव के सम्मुख उनका जाप करो।
घी डालने से अग्निकुण्ड में लपटें तेज हो गयी थीं। गुरुजी ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। मैं मंत्रों को दोहरा रही थी। पांच मिनट तक यही चलता रहा।
गुरुजी–रश्मि अब ये यज्ञ का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। तुम अपना पूरा ध्यान इस पर लगाओ. लिंगा महाराज के ये दोनों प्रतिरूप टूयमहरे अंदर की योनि को जाग्रत करेंगे। इसे 'जागरण क्रिया' कहते हैं। तुम्हें इस प्रतिरूप से पवित्र द्रव्य को पीना है और साथ ही साथ मैं दूसरे प्रतिरूप को तुम्हारे बदन में घुमाकर तुम्हें ऊर्जित करूँगा।
मैंने सर हिला दिया पर मेरे चेहरे से साफ पता लग रहा था कि मुझे कुछ समझ नहीं आया। लेकिन गुरुजी से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी।
मैं यज्ञ के अग्निकुण्ड के सामने हाथ जोड़े खड़ी थी, उसने आँखें बंद की हुई थीं। गुरुजी उसके बगल में खड़े थे।
गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।
गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए.
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अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।
कहानी जारी रहेगी
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04-30-2023, 06:44 PM,
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aamirhydkhan
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
महारानी देवरानी
अपडेट 3
उसके बाद राजा राजपाल अपनी आयी रानी देवरानी को ले कर अपने राज्य घाटकराष्ट्र आ जाता है जहाँ उसे समाज या घरवालों के ताने सहने पड़ते हैं क्योंकि उसने नियम का उल्लंघन कर दुसरा विवाह कर लिया था । उसकी पहली पत्नी सृष्टि उससे वचन लेती है कि वह पहले सृष्टि को प्रथमिकता देगा उसके बाद दूसरी पत्नी देवरानी को।
सृष्टि ने साफ कर दिया था और इसी शर्त पर उसकी दूसरी शादी स्वीकार की थी की उसके आज्ञा के बिना राजा देवरानी के पास ना जाए । मजबूरन वह उसकी बात मान लेता है । इधर देवरानी को इस विषय पर पूरी खबर उसकी दासी कमला देती है और देवरानी ओर जैसे पहाड़ टूट पड़ता है।
।उधर राजा रतन अपने राज्य को बढ़ाने में लग जाता है और युद्ध में न चाहते हुए भी राजा राज पाल को जाना पड़ता था । इसलिए राजा राज पाल का बहुत कम समय अपने राज्य में बीतेता था, दीन रात युद्ध करने के वजह से उनको शराब की लत लग गई और उन्हें कभी-कभी ही अपने महल में रहने का सौभाग्य मिलता और तब रानी सृष्टि राजा-राजा राज पाल को नहीं छोड़ती थी और उनके साथ राज विलास और भोग में लिप्त रहती थी । वह बहुत हम समय हु राज राजपाट को अकेला छोड़ती थी । इस कारण रानी देवरानी राजा से मिलन के लिए तड़पती हुई जीवन यापन करने लगी।
अपनी पहली पत्नी के भनक लगे बिना चोरी छिपे राजा राज पाल अपनी नयी कमसिन रानी देवरानी से 6 महिनों में मुश्किल से एक या दो बार छिप-छिप कर मिलाप कर लेते थे। इस विवाह के समय हुई सुहागरात के 9 महीने बाद पारस की राजकुमारी या घाटकराष्ट्र की रानी, रानी देवरानी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया बलदेव सिंह।
18 साल बाद महल में आज शुद्ध घी के दिए जलाये गए । हर तरफ खुशी का माहौल था। हो भी क्यू ना आज राजकुमार बलदेव सिंह का 18वा जन्मदिन जो था या आज वहअपने पिछले पांच वर्ष शिक्षा ग्रहण कर अपने गुरु के आश्रम से वापिस महल आया था।
अब राजा राज पाल की आयु लगभग 58 वर्ष हो गई थी ।राजा राज पाल की पहली पत्नी सृष्टि के आयु अब लगभग 48 वर्ष की थी पर लम्बाई कम होने के कारण वह कम आयु की लगती थी। अभी भी उनका बदन ढला नहीं था पर जहाँ सब बूढ़े हो रहे वही देवरानी दिन बा दिन जवान होते जा रही थी, देवरानी अब लगभाग 35 वर्ष की हो गयी थी और 5.10 ही लम्बाई वाली पतली छर्हरी राजकुमारी ने अब एक लम्बे कद की स्त्री का रूप प्राप्त कर लिया था, देविका के वक्ष संभाले नहीं संभालते थे जो 44 DD साइज के दो बड़े गुब्बारे की तरह चलने पर हिलते थे ।
पतली कमर उन पर दो बड़े-बड़े दृढ स्तन और दो मटके की तरह गोल नितम्बो के साथ लम्बे कद की रानी देवरानी और उसके ऊपर से दूध जैसा रंग जिसे देख सिपाही से ले कर पंडित तक आहे भरते थे । फिर आज देवरानी ने गहरे लाल रंग का ब्लाउज और साड़ी पहनी थी । उनका ब्लाउज इतना टाइट था कि जब भी देवीरानी चलती थी उनके स्तन दो पानी से भरे गुब्बारे किसी शराबी की तरह लड़खड़ाते हुए हिलने लगते थे ।
देवरानी पूजा की थाली तैयार कर रही थी तब उसकी दासी कमला आयी और उसे कहने लगी "महारानी युवराज आ गए!"
इतना सुनते ही देवरानी खुशी के मारे भर गयी और थाली ले कर दरवाज़े पर चली गयी और उनकी नज़र सीधे युवराज पर पड़ी जो अपने पिता राजा राजपाल से गले मिल रहा था।
देवरानी अपने युवा पुत्र को काई वर्षो बाद देख रही थी । उसे देख उनकी आँखे एक दम पत्थर कि तरह जम गयी है और मन में बोल रही थी " कितना बड़ा हो गया मेरा युवराज मेने इसका नाम बलदेव सही रखा था कितना ऊंचा लंबा और चौड़ा हो गया है। फिर भी कितना हसमुख है। अरे इसने तो मूंछे भी रख ली है, (तभी बलदेव अपनी मूंछो पर ताव देता है) देखो कैसे मूंछो को ताव दे रहा है जैसे कहीं का महाराजा हो। इसे देख कर कौन कहेगा के ये केवल 18 वर्ष का है, दिखने में 30 वर्ष का पूरा पुरुष राजा लग रहा है।
"ऐसे अपने पुत्र को देखते देख उनकी आँखों में पानी आ जाता है । बलदेव भी अपनी माँ को देखता है और बलदेव का भी अपनी माँ की प्रति स्नेह छलक जाता है और अपने पास खड़े अपने पिता या बड़ी माँ की तुलना अपनी माँ से करता है" मेरी माँ तो इन दोनों के सामने दोनों की बेटी लग रही है, ऊपर उसके तीखे नयन नक्श, चमकटी हुई त्वचा, उसके आला लम्बा पतला गठीला बदन, लम्बी कद काठी, मेरी माँ को देख कर कोई ये नहीं कह सकता कि ये मेरी माँ है, कोई अनजान लोग देखें तो सभी सोचेंगे मेरी छोटी बहन है आज भी इनकी आयु 25 से ज़्यादा नहीं लगती।"
तभी राजा राज पाल दोनों को टोकते हुए कहते हैं-
राजा राज पाल: भाग्यवान दोनों माँ या पुत्र ने एक दूसरे को देख लिया हो तो आगे की कारवाई की जाए! बलदेव अपनी माँ के चरण छुओ।
बलदेव तूरंत अपने माँ के पास जा कर उनके सुंदर पैरो को स्पर्श कर देवरानी से आशीर्वाद प्राप्त करता है ।
पूजा कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा, पूजा खत्म होने के बाद सभी उठ कर जाने लगे । देवरानी और कमला आस पास मिठाई बटवाने लगी । जब बलदेव उठ कर अपने कक्ष की ओर चल देता है, तब उसे कुछ बातें करने की आवाज सुनती देती है और वह उस तरफ चल देता है और अंत में अपनी बड़ी माँ सृष्टि के कक्ष के पास रुक जाता है।
सृष्टि: आज तो ये बलदेव भी अपनी शिक्षा पुरी कर के लौट आया है ।
राधा: हाँ महारानी मेने देखा आज देवरानी बहुत खुश लग रही थी, कहीं वह आप से बदला लेने का कोई क्षडयंत्र तो नहीं बना रही!
रानी सृष्टि: राधा हो सकता है तम सही हो क्योंकि मेने उससे उसके पति का सुख छीना है और लगता है वह बुढ़िया इसका बदला लेने के लिए जरूर मेरे लिए खड़ा खोदेगी।
राधा: तो हमें क्या करना चाहिए महारानी।
सृष्टि: सही समय का इंतजार, मैं बताउंगी के आपको क्या करना है राधा अभी तुम जाओ महाराज आते ही होंगे।
सब काम खत्म करने के बाद बलदेव को ले कर राजा राजपाल अपनी माँ यानी के महारानी जीविका जो अपनी जिंदगी के आखिरी दिन जी रही थी उनके कमरे में जाता है । बलदेव अपनी दादी जो कि बिस्तर पर लेटी थी और उनकी टांगो ने काम करना बंद कर दिया था इसलिए वह चल नहीं सकती थी परन्तु उनकी हाथ ठीक थे और थोड़ी मुश्किल से बोल भी लेती थी, बलदेव दादी को देख खुश होता है और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता है फिर उनकी बगल में बैठ जाता है।
दादी: बेटा बलदेव!
बलदेव: जी दादी!
दादी: मझे माफ़ कर दे में तेरा स्वागत करने द्वार पर ना आ सकी, अब में चल नहीं सकती
बलदेव: आप इस राज्य की महारानी हैऔर हम आपकी संतान हैं आपकी आज्ञा पर हम हिमालय भी चढ़ कर आपसे मिलने आ स्कते है।
दादी: बस बेटा, मझे तुमसे यही उम्मेद थी, तुम ही घटकराष्ट्र के भविष्य हो, भगवान तुम्हे एक अच्छा और महान राजा बनाएँ और तुम इतिहास बनाओ।
दादी जीविका राजमाता बलदेव के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती हैं। फिर बलदेव और राजा राज पल बाहर आते हैं।
राजपाल: पुत्र अब कल सुबह मिलते हैं अब आप अपने कक्ष में जा कर आराम करो।
बलदेव फिर एक बार राजपाल के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता है तो राजपाल अपने पुत्र को गले लगा लेता है और कहता है-
राजपाल: वाह पुत्र आप कितना लंबा हो गए हो देखते देखते!
बलदेव: कहा पिता जी, बस 6.3 फिट ही हू!
राजपाल: तेरे दादाजी की कद काठी भी तेरे जितनी नहीं थी तू अपने माँ पर गया है और फिर दोनों हसने लगते हैं ।
बलदेव अपनी प्रशंसा सुन कर प्रसन्न हो कर अपने एक उन्गली और अंगूठे से अपनी मूंछो पर ताव देता है।
राजपाल: बेटा अपनी माता को भोजन खिला कर सोना! तम्हे तो पता है वह तुम्हारे बिना नहीं खाती।
बलदेव: जी पिता जी!
फिर बलदेव अपनी माँ के कक्ष की ओर चल देता है।
कहानी जारी रहेगी
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05-07-2023, 02:39 PM,
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Madhu
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
Nice onee
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05-17-2023, 06:44 PM,
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aamirhydkhan
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
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लिंग पूजा-5- 'जागरण क्रिया"
गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।
गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए।
अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।
लिंगा का प्रतिरूप चूसते हुए मुझे अपनी एक पुरानी घटना याद आ गयी। मैंने अपने पति का लंड सिर्फ एक बार ही चूसा था और तब भी मैंने असहज महसूस किया था। शादी के बाद जब पहली बार जब मेरे पति ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं बहुत शरमा गयी और तुरंत मना कर दिया। फिर और भी कई दिन उन्होंने मुझसे इसके लिए कहा, पर जब देखा की मेरा मन नहीं है तो ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला। लेकिन बारिश के एक दिन मैं एक सेक्सी नॉवेल पढ़ रही थी और पढ़ते-पढ़ते कामोत्तेजित हो गयी।
जब मेरे पति अनिल काम से घर लौटे तो मेरा सेक्स करने का बहुत मन हो रहा था। लेकिन वह थके हुए थे और उनका मूड नहीं था। उस दिन मैं जानबूझकर देर से नहाने गयी और मैंने ध्यान रखा की जब मैं बाथरूम से बाहर आऊँ तो उस समय मेरे पति बेड में हों। मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और वहाँ खड़ी होकर नाइटी के अंदर से अपनी पैंटी उतार दी। ताकि मेरे पति को कामुक नज़ारा दिखे और मैं भी शीशे में उनका रिएक्शन देख सकूँ। मेरी ये अदा काम कर गयी क्यूंकी जब मैं बेड में उनके पास आई तो देखा पाजामे में उनका लंड अधखड़ा हो गया है।
लेकिन वह दिखने से ही थके हुए लग रहे थे और एक आध चुंबन लेकर सोना चाह रहे थे। लेकिन मैं तो चुदाई के लिए बेताब हो रखी थी। वह लेटे हुए थे और मैं उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी और अपनी नाइटी भी ऐसे एडजस्ट कर ली की मेरी बड़ी चूचियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी रहें। वैसे तो मैं, ज़्यादातर औरतों की तरह बिस्तर में पहल नहीं करती थी। पर उस दिन अपने पति को कामोत्तेजित करने के लिए बेशरम हो गयी थी। अब मेरे पति भी थोड़ा एक्साइटेड होने लगे और उन्होंने मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल दिया।
मैं इतनी बेताब हो रखी थी की मैंने अपनी जांघों तक नाइटी उठा रखी थी। वह मेरी नंगी मांसल जांघों में हाथ फिराने लगे। लेकिन मैंने देखा की उनका लंड तन के सख़्त नहीं हो पा रहा है। फिर मेरे पति ने लाइट ऑफ कर दी, तब तक मेरे बदन में सिर्फ मंगलसूत्र रह गया था और मैं बिल्कुल नंगी हो गयी थी। मैं अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी ताकि वह तन के खड़ा हो जाए।
उन्होंने कहा की मुँह में ले के चूसो शायद तब खड़ा हो जाए. मैंने मना नहीं किया और उस दिन पहली बार लंड चूसा। सच कहूँ तो ऐसा करना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और दूसरे दिन मैंने अपने पति से ऐसा कह भी दिया। लेकिन उस दिन तो मेरा लंड चूसना काम कर गया क्यूंकी चूसने से उनका लंड खड़ा हो गया और फिर हमने चुदाई का मज़ा लिया।
जैसे आज मैं लिंगा के प्रतिरूप को चूस रही थी, उस दिन मैंने भी अपने पति के लंड को चूसा और चाटा था। उसके प्री-कम से लंड चिकना हो गया था और चूसते समय मेरे मुँह से भी वैसी ही कामुक आवाज़ें निकल रही थीं। गुरुजी अब मेरे पीछे आ गये और लिंगा के दूसरे प्रतिरूप को मेरे बदन में छुआकर मंत्र पढ़ने लगे।
वो मेरे बदन में एक जगह पर लिंगा को लगाते और मंत्र पढ़ते फिर दूसरी जगह लगाते और मंत्र पढ़ते। ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादूगर जादू कर रहा हो। सबसे पहले उन्होंने मेरे सर में लिंगा को लगाया फिर गर्दन में और फिर उसकी पीठ में। जब गुरुजी ने मेरी पीठ में लिंगा को छुआया तो मेरे बदन को एक झटका-सा लगा।
गुरुजी मेरे पीछे खड़े थे और जैसे ही लिंगा मेरी कमर में पहुँचा उन्होंने लिंगा मेरे नितम्बो की तरफ किया तो मेरी स्कर्ट नीचे को सरका दी। मैंने हड़बड़ा कर लिंगा को चूसना बंद कर दिया और अब मैं लिंगा को मुँह से बाहर निकालने ही वाली थी। तभी गुरुजी ने कहा।
गुरुजी–बेटी, जैसा की मैंने तुमसे कहा था, तुम जो कर रही हो उसी पर ध्यान दो। मैं तुम्हें बता दूँ की लिंगा से ऊर्जित करने की इस प्रक्रिया में किसी अंग के ऊपर वस्त्र नहीं होने चाहिए. उस समय मैंने केवल चोली पहनी हुई थी और मेरी पीठ पर मेरी स्कर्ट भी कमरबंद की तरह बंधी हुई थी।
ऐसा कहते हुए गुरुजी मेरा रिएक्शन देखने के लिए रुके और जब उन्होंने देखा की वह उनकी बात समझ गयी है तो उन्होंने निर्मल की तरफ देखा।
गुरुजी–निर्मल लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दो।
"जी गुरुजी!"
निर्मल साइड में था, मेरी पीठ में पीछे से रोशनी पड़ रही थी क्योंकि मेरी चाय मेरे सामने बन रही थी है। गुरुजी ने मेरी स्कर्ट कमर के नीचे मेरी जांघो पर खींच दी थी। मेरी पेंटी पहले ही उत्तरी हुई थी गुरुजी सहित सभी पांचो मर्दो को मेरी नग्न गांड और नितम्ब देखकर मज़ा आ रहा होगा।
निर्मल का ध्यान भी मेरी नग्न गांड पर था और जब उसने द्रव्य नहीं डाला तो गुरूजी ने उसे फिर से पुकारा
गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. निर्मल द्रव्य डालो।
फिर नृमल ने जल्दी से द्रव्य का कटोरा लिया और मेरे पास आ गया। मैंने मुँह से लिंगा को बाहर निकाल लिया औरमैं हाँफ रही थी। मेरी आँखें अभी भी बंद थीं। उसने लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया।
निर्मल अपनी जगह वापस गया और मैंने फिर से लिंगा को मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया। इतनी देर तक गुरुजी मेरी गांड को नग्न किये हुए थे। अब मैं फिर से लिंगा को चूसने लगी तो गुरुजी ने मेरे गोल बड़े नितंबों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया।
गुरुजी दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर हाथ मेरी गांड पर घूमा रहे थे और साथ-साथ मन्त्र पढ़ रहे थे और फिर कुछ देर बाद वह एक हाथ से लिंगा फिर रहे थे और दुसरे हाथ से गुरुजी मेरी गांड को सहला रहे थे और जैसे ही उन्होंने लिंगा को मेरी गुदा पर लगाया मुझे झटके लगे और मैं अपने बदन को झटक रही थी।
गुरूजी के चारो शिष्यों को ये दृश्य बहुत अश्लील लग रहा होगा और मैं असहज हो गयी थी और क्यूँ ना हो? मैं एक पारिवारिक विवाहित महिला थी और अगर कोई मर्द उसकी गांड में लिंग स्पर्श करे और साथ ही साथ उसको दूसरा लिंगा चूसना पड़े तो कोई भी औरत अवश्य कामोत्तेजित हो जाएगी। ये बिलकुल थ्रीसम जैसे हालात थे। गुरुजी मंत्र लगातार पढ़े जा रहे थे और अपनी ऊर्जित प्रक्रिया को जारी रखे हुए थे। अब वह मेरे सामने आ गये और लिंगा को मेरे घुटनों में लगाया और धीरे-धीरे ऊपर को मेरे जांघों में घुमाने लगे। जैसे-जैसे गुरुजी के हाथ ऊपर को बढ़ने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी क्यूंकी अब गुरुजी के हाथ मेरे नाजुक अंग तक पहुँचने वाले थे। तभी अचानक गुरुजी ने कहा।
गुरुजी–राजकमल यहाँ आओ।
मुझे महसूस हुआ राजकमल वहाँ आ गया है।
गुरुजी–तुम रश्मि की स्कर्ट पकड़ो। मैं इसकी योनि को ऊर्जित करता हूँ।
गुरुजी के मुँह से योनि शब्द सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा लेकिन फिर मैंने सोचा ये तो यज्ञ की प्रक्रिया है तो इसका पालन तो करना ही पड़ेगा। किसी भी औरत के लिए ये बड़ा अपमानजनक होता की उसके कपड़े नीचे करके उन्हें पकड़कर कोई मर्द उसके गुप्तांगो को छुए लेकिन गुरुजी के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया होने की वजह से इसका पालन करना ही था। इसलिए मैंने भी कुछ खास रियेक्ट नहीं किया।
राजकमल ने एक हाथ से स्कर्ट पकड़ी और आगे से कमर तक ऊपर उठा दी। लेकिन गुरुजी ने उसे दोनों हाथों से पकड़कर ठीक से थोड़ा और ऊपर उठाने को कहा। राजकमल ने दोनों हाथों से स्कर्ट पकड़कर थोड़ी और ऊपर उठा दी। अब मेरी नाभि दिखने लगे।
गुरुजी ने दोनों हाथों से लिंगा को मेरी योनि के ऊपर घुमाना शुरू किया और ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। उस सेन्सिटिव भाग को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया और मैंने लिंगा को चूसना बंद कर दिया। वैसे लिंगा अभी भी मेरे मुँह में ही था और मेरी आँखें बंद थीं। फिर मैंने महसूस किया की गुरुजी मेरी चूत की दरार में ऊपर से नीचे अंगुली फिराने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ऊँगली के स्पर्श से मेरी चोली के अंदर निप्पल एकदम तन गये। गुरुजी की अँगुलियाँ मेरी योनि के ओंठो को छू रही थीं और अब मैंने आँखें बंद किए हुए हल्की सिसकारियाँ लेने लगी।
मैं–उम्म्म्ममम।
गुरुजी अब साफ-साफ मेरी चूत के त्रिकोणीय भाग को अपनी अंगुलियों से महसूस कर रहे थे और लिंगा को बस नाममात्र के लिए घुमा रहे थे। वह मेरी चूत के सामने झुककर इस 'जागरण क्रिया' को कर रहे थे। मैं अब उत्तेजित हो गयी थी और मेरी छूट गीली हो गयी थी और अब अपनी खड़ी पोजीशन में इधर उधर हिल रही थी और मैं असहज स्थिति में थी। कुछ देर बाद ये प्रक्रिया समाप्त हुई और गुरुजी सीधे खड़े हो गये। राजकम ने स्कर्ट नीचे कर दी और मैंने राहत की सांस ली।
गुरुजी–लिंगा में थोड़ा और द्रव्य डालो।
निर्मल ने उस गाड़े द्रव्य का कटोरा लिया और मुझे लिंगा को मुँह से बाहर निकालने को भी नहीं कहा और ऐसे ही लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया। लिंगा में बहते हुए द्रव्य मेरे होठों में पहुँच गया और थोड़ा-सा ठुड्डी से होते हुए गर्दन में बह गया। गुरुजी ने तक-तक मेरे के सपाट पेट में लिंगा घुमा दिया था और अब ऊपर को बढ़ रहे थे।
एक मर्द के द्वारा नितंबों और चूत को सहलाने से अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी नुकीली चूचियाँ कड़क होकरचोली में बाहर को तनी हुई थीं। निर्मल और राजकमल मेरे बिलकुल पास खड़े हुए थे मेरे स्तनों और खड़े निप्पल की शेप देख रहे होंगे और निश्चित ही उन्हें मेरी तनी हुई चूचियाँ बहुत आकर्षक लग रही होंगी।
कहानी जारी रहेगी
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05-17-2023, 06:46 PM,
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aamirhydkhan
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-24
लिंग पूजा-6- ' लिंगा जागरण क्रिया"
मैं अब लिंगा से द्रव्य को चूस रही थी। अब ऐसा लग रहा था कि गुरुजी भी अपनी भाव भंगिमाओं पर थोड़ा नियंत्रण खो बैठे हैं। मेरे सुंदर बदन के हर हिस्से से छेड़छाड़ करने के बाद ऐसा लगता था कि उनकी साँसे तेज हो गयी थी और वह खुद भी गहरी साँसें लेने लगे थे और जब वह मेरे पास हुए तो उनका खड़ा लंड मेरे से छू गया जिससे मुझे लगा उनका लंड धोती में खड़ा हो गया था। मंत्र पढ़ते हुए अब उनकी आवाज भी कुछ धीमी हो गयी थी।
अब गुरुजी ने मेरी चूचियों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया। मेरी आँखें बंद थीं शायद इसलिए गुरुजी को ज़्यादा जोश आ गया। उन्होंने अपनी चार शिष्यों की मौजूदगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिंगा से अपना दायाँ हाथ हटा लिया और मेरी बायीं चूची को पकड़ लिया।
मैं–उम्म्म्मम......
उत्तेजना की वजह से। मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। मैं लिंगा प्रतिरूप को चूस रही थी और साथ में कस के आँखें बंद की हुई थी, मुझे लगा अब गुरुजी हद पार कर रहे हैं, खुलेआम वह जिसे बेटी कहकर बुला रहे थे उस महिला की (यानी मेरी) चूची दबा रहे हैं। वह अपनी हथेली से मेरी चूची की गोलाई और सुडौलता को महसूस कर रहे थे और खुलेआम ऐसा करना मुझे बहुत इतना अश्लील महसूस हो रहा था। गुरुजी इस परिस्थिति का अनुचित और पूरा लाभ उठा रहे थे और मेरे कोमल बदन को महसूस कर रहे थे। लेकिन जल्दी ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और फिर ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर मेरी चूचियों पर घुमाने लगे। अंत में गुरुजी ने मेरी चूचियों को लिंगा के आधार से ऐसे दबाया जैसे उनपर अपनी मोहर लगा रहे हों।
गुरुजी–रश्मि बेटी, अपनी आँखें खोलो। तुम्हारी 'जागरण क्रिया का ये भाग' पूरा हो चुका है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।
मैं: जी गुरूजी और मैंने लिंगा प्रतिरूप मुँह से निकाल लिया ।
गुरु-जी ने मेरे से वह लिंग प्रतिकृति ली जिसे मैं चूस रही थी और उसे मेरे सिर, होंठ, स्तन, कमर और मेरी जाँघों पर छुआ और उसे फूलों से सजाए गए सिंहासन जैसी संरचना पर रखा। उन्होंने कुछ संस्कृत मंत्रों के उच्चारण की शुरुआत की और इसे वहाँ रखने के लिए एक छोटी पूजा की। लिंग स्थापना की पूजा के दौरान हम सब प्रार्थना के रूप में हाथ जोड़कर प्रतीक्षा कर रहे थे।
गुरुजी—रश्मि बेटी, अब तुम्हे साक्षात लिंग पूजा करनी है । ठीक है, अब मैं शुरू करता हूँ। " लिंगम पूजा की रस्म शुरू करने के लिए तैयार होते ही गुरूजी स्टूल पर बैठ गए।
ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी और उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी। स्वाभाविक था। मैं हैरान थी।
गुरूजी: रश्मि अब तुम बैठ जाओ और जिस प्रकार तुमने लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की थी उसी प्रकार अब साक्षात लिंग की पूजा करनी होगी और फिर लिंग को वैसे ही जागृत करना होगा जैसे मैंने योनि को जागृत किया है और साथ-साथ इस पुस्तक से मन्त्र पढ़ कर राजकमल बोलता रहेगा तुम उन्ही दोहराती रहना ।
मैंने अपनी आँखें फर्श की ओर गिरा दी और गुरु-जी के अगले निर्देश की प्रतीक्षा करने लगी।
गुरु-जी: रश्मि! अब आप लिंग पूजा करेंगे। आप मन में ॐ नमः लिंग देव मन्त्र का जाप करते रहना
तब गुरुजी ने मुझे लिंग पूजा की पूजा संक्षेप में विधि समझाई । मैंने देखा गुरूजी की धोती में उनका लंड खड़ा हो गया था । पूजा विधि के अनुसार, सबसे पहले गुरुजू के लिंग का अभिषेक विभिन्न सामग्रियों से करना है अभिषेक के लिए दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी का आमतौर पर उपयोग किया जाता है।
अब गुरुजी ने अपनी धोती उतार कर फ़र्श पर फेंक दी जो मेरे पास आकर गिरी। उस नारंगी रंग की धोती में मुझे कुछ गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे। उन्होंने नीचे कोई लंगोट या कच्चा भी नहीं पहना हुआ था उनके तने हुए मूसल लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी।
हे भगवान! कितना मोटा है! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल! मैंने मन ही मन कहा। मैं बेहोश होने से बची क्योंकि मुझे एहसास था कि गुरूजी का लंड बड़ा है। मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना वह हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती। मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी, इतना बड़ा और मोटा था, कम से कम 8—9 इंच लंबा होगा। आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ़ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद मैंने दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का लिंग ही सबसे बढ़िया था। शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है, वह ही ये जान सकती है इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं। गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी, लेकिन जब मुझे ध्यान आया की मैं कहाँ हूँ तो मुझे अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर लगा कि गुरूजी का ऐसा तगड़ा और बड़ा लिंग तो योनि फाड़ ही डालेगा।
अब गुरुजी ने अपनी टाँगे फैला दीं । मेरे साथ-साथ गुरूजी के शिष्य भी गुरूजी का लंड देख चकित थे ।
उनके लिंग के नीचे एक कटोरा रखा था ।
गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. राजकमल मन्त्र बोलो!
राजकमल मन्त्र बोलता रहा और मैं वैसे-वैसे करती रही
पहले पूजा में मैंने जल अभिषेक, फिर गुलाब जल अभिषेक, फिर दूध अभिषेक के बाद दही अभिषेक, फिर घी अभिषेक और शहद अभिषेक अन्य सामग्री के अलावा अंतिम अभिषेक मिश्रित पदार्थ से किया।
सभी पदरथ गुरूजी के लिंग से बाह कर उस कटोइरे में एकत्रित हो गए ।
अभिषेक की रस्म के बाद, गुरूजी के लिंग को बिल्वपत्र की माला से सजाया गया। ऐसा माना जाता है कि बिल्वपत्र लिंग महाराज को ठंडा करता है।
उसके बाद लिंग पर चंदन या कुमकुम लगाया तो मैंने लिंग पर हाथ लगाया । गुरूजी का लिंग मेरे हाथ की उंगलियों में पूरा नहीं आ रहा था।
जिसके बाद दीपक और धूप जलाई। लिंग को सुशोभित करने के लिए उपयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं में मदार का फूल चढ़ाया गया जो बहुत नशीला होता है और फिर, विभूति लगायी गयी विभूति जिसे भस्म भी कहा जाता है। विभूति पवित्र राख है जिसे सूखे गाय के गोबर से बनायीं गयी थी।
पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के साथ ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।
गुरु-जी: ग्रेट बेटी! अब हम मुख्य पूजा शुरू करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।
फिर जैसे ही उदय ने आग में कुछ फेंका, मैंने सिर हिलाया और आग और तेज होने लगी। पिन ड्रॉप साइलेंस था। उच्च रोशनी के साथ यज्ञ अग्नि अब पूरे कमरे में और प्रत्येक के चेहरे पर एक अजीब चमक प्रदान कर रही थी।
संजीव: हे लिंग महाराज, कृपया इस अंतिम प्रार्थना को स्वीकार करें और इस महिला को वह दें जो वह चाहती है! जय लिंग महाराज! बेटी, अब से वही दोहराना जो मैं कह रहा हूँ।
कुछ क्षण के लिए फिर सन्नाटा छा गया। मैं थोड़ा कांप रही थी और गुरूजी के बड़े लिंग के आकार के कारण मुझे एक अनजाना डर महसूस हो रहा था।
संजीव: हे लिंग महाराज!
मैं: हे लिंग महाराज!
संजीव: मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...
मैं: मैं खुद को आपको पेश करती हूँ ...
संजीव: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ।समर्पित करता हूँ ।
मैं: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी यो... योनि... आपको सब कुछ...समर्पित करती हूँ ।
संजीव: हे लिंग महाराज! कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उर्वर बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
मैं: हे लिंग महाराज कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
संजीव: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
मैं: मैं, अनीता सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
उदय: मैडम अब आप लिंग को जागृत करो ।
मैं अभी भी फर्श पर घुटनों के बल थी, मैं समझ गयी और तब तक आगे बढ़ी जब तक कि मेरे घुटने लगभग स्टूल को छू नहीं गए। यह एक अविश्वसनीय अहसास था, गुरूजी की टांगो के बीच वहाँ बैठे हुए मैं उनके बीच बैठी थी, मेरा मुँह गुरूजी के बड़े कठोर लंड से मात्र इंच भर दूर था। उदय ने मुझे गर्म दूध का गिलास दिया और मैंने उसमें अपनी उँगलियाँ डुबोईं, फिर उन्हें गुरूजी के स्तंभित लिंग की नोक के ठीक ऊपर रखा। गुरूजी के बैंगनी लंडमुंड पर टपकने देने से पहले मैंने ने दूध की धाराओं को निर्देशित करने के लिए अपनी उंगलियों को मोड़ा। फिर मैंने इसे कुछ बार दोहराया, अपनी सांसों के नीचे अश्रव्य प्रार्थनाओं को फुसफुसाते हुए।
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मैंने पांच बार ऐसा किया और फिर हाथों को नीचे किया और उन्हें लंड की लम्बाई के चारों ओर लपेट दिया और आगे हो होकर लिंग को चूमा और फिर आगे होकर लिंग पर अपने स्तनों और चुचकों को चुमाया, उसके बाद लिंग पर अपनी नाभि लगाई और उसके बाद अपनी घुटनो पर खड़ी हो योनि और फिर जांघो को लिंग पर लगाया और फिर घूम कर लिंग अपनी नितम्बो और फिर गांड को लिंग पर लगाया और गुरूजी के गोद में पीठ कर बैठ गयी । मेरी इस हरकत से गुरूजी का लिंग जो अभीतक आधा खड़ा था अब पूरा कठोर हो गया ।
ये बिलकुल लैप डांस जैसा था । जिसमे नाचने वाली अपने बदन की लिंग से धीरे-धीरे छुआ कर उत्तेजित करती है । मैं वैसे ही अपनी गांड और पूरा बदन हिला कर अलट कर पलट कर गुरूजी के साथ चिपक रही थी । अपने बदन अपने स्तन, अपनी गांड, अपनी योनि को उनके बदन, लिंग पर मसल और रगड़ रही थी। रंडीपैन की कोई सीमा ऐसी नहीं थी जिसे मैंने पार नहीं किया था । मुझे शर्म तो बहुत आ रही थी परन्तु मेरी स्थिति ऐसी थीऔर मैं इसमें इतना आगे आ चुकी थी की मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं था ।
मेरी योनि पूरी गीली हो गयी थी और मेरे चूचक तन गए थे । स्वाभिक तौर पर मैं भी अब उत्तेजित थी ।और फिर जब मुझे लगा गुरूजी का लिंग पूरी तरह से कठोर है मैं घूमी एक तेज़ गति में मैंने अपना सिरउनके लिंग पर गिरा दिया और मेरा गर्म मुँह गुरूजी के लंड के धड़कते लंडमुंड को ढँक रहा है।
गुरु जी भी अपना नियंत्रण खो बैठे थे और जोर से हांफने लगे क्योंकि गुरूजी के लिंग के चारों ओर उन्हें मेरे कोमल मखमली होंठों की रमणीय अनुभूति हुई। मैंने कई बार बेकाबू होकर सफलतापूर्वक उनके पूरे लिंग को अपने मुँह में दबा लिया। धीरे से उनके लिंग को चूसना शुरू कर दिया। राजकमल के मन्त्र उच्चारण समाप्त हो गया ।
गुरूजी: जय लिंगा महाराज!
मैं समझ गयी अब मेरे पास एक मिनट का समय और है और अपनी एक हाथ की उंगलियों के साथ लंड के शाफ्ट के चारों लपेट लिया और मुँह ऊपर और नीचे पंप करने लगी, जबकि उसके दूसरे हाथ ने गुरूजी के नडकोषो को सहलाया और उनकी मालिश की। मैंने अपने मुँह का गुरूजी के लंड पर कुशलता से इस्तेमाल किया, सिर को निगल लिया और लयबद्ध गतियों में उसे मुँह से अंदर और बाहर पंप किया।
मुझे लगता है कि गुरूजी उस समय सातवें आसमान पर थे और मैं खुश थी की आखिरकार मैंने गुरजी के लिंग को जागृत कर दिया है और उसे चूस लिया है, यह एक अद्भुत अनुभव था।
गुरूजी: जय लिंगा महाराज!
गुरूजी: "लिंगम जीवन के बीज पैदा करता है, सभी जीवन शक्ति का स्रोत।" उसने मेरी ओर देखे बिना कहा, गुरूजी अभी भी अपने लंड को सहला रहे थे। गुरूजी के लंड पर लगे पदार्थ का स्वाद मेरे मुँह में था जो द्रव्य से मिलता जुलता था और मुझे अच्छा लग रहा था । और मेरी आँखे शर्म और आननद से बंद हो गयी थी ।
गुरुजी–रश्मि तुम्हे बहुत बढ़िया किया केवल बढ़िया नहीं बल्कि आजतक यहाँ जितनी भी महिलाये आयी हैं उनसे बेहतर किया, अपनी आँखें खोलो। 'जागरण क्रिया' पूरी हो चुकी है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।
मैं वहीं हांफते हुए बैठ गयी और लिंग को मुँह से निकला लिया । मैंने देखा गुरूजी अब अपने लिंग पर हाथ फिरा रहे थे। मैंने एक बार ऊपर देखा, एक चुटीली मुस्कराहट गुरूजी की चेहरे पर थी ।
कहानी जारी रहेगी
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05-22-2023, 06:34 PM,
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nottoofair
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
Excellent update. waiting for more !
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05-25-2023, 07:25 AM,
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aamirhydkhan
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-25
योनि पूजा
गुरु-जी: बेटी, मेरे पास आओ। मुझे आपकी योनी पूजा पूरी करने दें!
गुरु जी के हाथों में कुछ फूल थे और अब जैसे ही मैं उनके आगे बढ़ी उन्होंने संस्कृत में मंत्रों का उच्चारण करना शुरू कर दिया। मैं अभी भी सफेद गद्दे पर खड़ी थी और गुरूजी उसके पास बैठे थे। उसने अब कुछ बहुत ही आश्चर्यजनक किया! उन्होंने जिस चबूतरे पर-पर लिंग की प्रतिकृति रखी गई थी और मुझे उस पर खड़े होने का इशारा किया!
मैं: मैं उस चबूतरे पर खड़ी हो जाऊ ... उस पर!
गुरु जी: हाँ बेटी, क्योंकि अब तुम ही वह देवी होगी जिसकी मैं पूजा करूँगा! यही योनी पूजा का नियम है और यह योनी पूजा में परिवर्तन का चरण है।
मैं: लेकिन... लेकिन...
मैं पूरी तरह से भ्रमित थी।
गुरु जी: उस पर खड़ी रहो बेटी। अब तुम ही बताओ मैं तुम्हारे अलावा और किसकी योनि पूजा करूँ? "अब आप अपना स्थान लेंगी। लिंग महाराज आपके मंत्र दान प्रस्तुति और पूजा से संतुष्ट हैं।" ठीक है, रश्मि।
मैं इसके बारे में गहराई से नहीं सोच पा रही थी और गुरु जी की आज्ञा का पालन कर रही थी। मैंने लकड़ी के अलंकृत चबूतरे पर कदम रखा!
मैं: अब लिंगा महाराज के स्थान पर योनि यानी मैं?
गुरु-जी: स्पष्ट रूप से मेरे लिए चिंतित हो रहे थे। मानो मेरे लिए पूजा अनुष्ठान करना कठिन होगा। सच्चाई से आगे कुछ भी नहीं हो सकता है!
"यह स्वाभाविक है कि यह कठिन है।" गुरु ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया। "योनि पूजा और वास्तव में लिंगम पूजा, बहुत पुराने और बहुत पवित्र कार्य हैं। वे कई वर्षों से किए जा रहे हैं। आधुनिक परिवारों में इन परिस्थितियों में योनि पूजा जैसे कृत्य असामान्य हैं, लेकिन यह केवल इसलिए है क्योंकि परिवार बदल गए हैं और अधिक छोटे और अलग-अलग हो गए हैं।"
गुरु जी ने अपने हाथ में रखे फूल मेरे पैरों पर फेंक दिए। फिर उसने अपनी हथेली में "कुमकुम" (= हमारे पैरों को सजाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लाल तरल) लिया और ट्रे से फूलों के साथ मिला दिया।
मैं: आउच!
मैं उस विस्मयादिबोधक (हालांकि बहुत हल्के ढंग से) निकली आवाज को नहीं रोक पायी क्योंकि जब मैं उस आसन पर खड़ी थी, तो मेरे पैरों के पास चल रहे टेबल फैन ने मेरी चुत और गांड पर हवा फेंकी थी। मेरी मिनी स्कर्ट उड़ गयी और मेरी प्रतिक्रिया बहुत स्वाभाविक और सहज थी और यह इतनी अजीब स्थिति थी। मैंने अपने हाथ अपनी मिनी स्कर्ट पर रख कर योनि के आगे रख कर अपनी योनि छुपाने की कोशिश की ।
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गुरु जी: जब तक मैं पूजा समाप्त नहीं कर देता इन फूलों को अपने हाथ में तब तक पकड़ो बेटी।
अब मैंने फूल लेने के लिए गुरुजी की ओर दोनों हाथ कर दिए ऐसा किया मेरी मिनीस्कर्ट उड़ने लगी और मेरे नग्न तलवे और चूत दिखने लगी। यह वास्तव में एक सेक्सी अपस्कर्ट दृश्य था और हर कोई इसका आनंद ले रहा होगा। मैंने फूल लिए और अपने हाथों को तुरंत अपनी स्कर्ट के ऊपर रख दिया, लेकिन गुरु जी की अगली आज्ञा ने मेरे प्रयासों को व्यर्थ साबित कर दिया।
गुरु जी: बेटी, फूलों को अपने हाथों में प्रार्थना के रूप में जोड़ो।
जैसे ही मैंने प्रार्थना के लिए अपने हाथ जोड़े, टेबल फैन ने मेरी मिनीस्कर्ट को स्वतंत्र रूप से उड़ा दिया और मेरी रसदार चुत गुरु जी के चेहरे के सामने खुल गई।
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गुरु जी: आप सभी गद्दे के चारों ओर बैठ जाएँ और यह मंत्र गुनगुनाएँ: ॐ, क्लीं ... विच्चे!
गुरु जी ने संजीव से स्टूल लाने को कहा। संजीव ने जल्दी से कमरे के कोने से गद्दीदार स्टूल खींच कर ठीक वहीं रख दिया जहाँ मैं बैठी थी और उसे लकड़ी के चबूतरे पर रख दिया। फिर, आश्चर्यजनक रूप से तेज़ गति से उसने मुझे स्टूल पर चढ़ने में मदद की और। जब मैं स्टूल पर बैठी तो उसने मेरी सूती स्कर्ट को ऊपर उठा लिया और मेरी कमर पर रख दिया। फिर उसने मेरी गांड को आगे की ओर घुमाने में मेरी मदद की ताकि स्टूल मेरी पीठ के निचले हिस्से के नीचे रहे और मेरी गांड ज्यादातर सीट से दूर रहे। उन्होंने इस कम आरामदायक स्थिति में मेरे वजन का समर्थन करने में सहायता करने के लिए मेरे दोनों ओर अपने हाथ रखे। जब तक वह संतुष्ट नहीं हो जाता तब तक मैंने खुद को स्टूल से दो बार उठाया क्योंकि उसने मेरी स्कर्ट और मेरी स्थिति को सावधानीपूर्वक समायोजित किया।
फिर गुरुजी ने मुझे देखा, मैं गुरुजी के विपरीत बैठी हुई थी, पैर खुले और फर्श पर पैरों के साथ आराम से और मेरी योनि मेरी खूबसूरत स्त्री गुफा स्त्री रस की नमी के साथ चिकनी, घुंघराले पिंकी-गेयर की भारी तह और चमकदार त्वचा, गुरुजी के सामने कुछ स्वादिष्ट व्यंजन जैसे चखने और निगलने की प्रतीक्षा कर रही थी।
अच्छा उदय, नारियल का दूध लेने के लिए कटोरा उसके नीचे ले आओ। " उसने मेरी ओर सिर हिलाते हुए कहा।
मुझे नहीं पता कि कैसे उदय ने खुद को छलांग लगाने और मेरी उस स्नैच में अपना चेहरा छुपाने से रोक लिया। मैं उसके मुंह में बनने वाली लार को महसूस कर सकती थी जैसे वह उन स्वादिष्ट सिलवटों के बीच अपनी जीभ चलाने और मेरे स्त्री सार का स्वाद लेने के लिए तड़प रहा हो।
उसने अपनी जीभ को अपने होठों पर घुमाते हुए मुझे अपनी जीभ को भद्दी और कामुक मुद्रा में दिखाया।
हे मेरे भगवान! अगर चारों मर्द गद्दे पर बैठे हुए हैं, तो वे स्पष्ट रूप से मेरी बड़ी नंगी गांड और मेरी उड़ने वाली स्कर्ट के नीचे मेरी योनि देख पाएंगे! मैंने उत्सुकता से इधर-उधर देखा, पर कुछ न कर सकी। मैं टेबल फैन को कोस रही थी, लेकिन यह कभी महसूस नहीं हुआ कि यह पूर्व नियोजित था और जब योनी पूजा कर रही महिला मंच पर बैठती है तब इस प्रभाव को पाने के लिए ठीक उसी तरह रखा गया था।
मैंने अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए एक पल के लिए नीचे देखा और यह देखकर चौंक गयी कि चूंकि मैं उस मंच पर (हालांकि गद्दे से एक फुट के आसपास की) ऊंचाई पर बैठी थी, गुरु जी और उनके शिष्य मेरे निचले अंगो का एक अविश्वसनीय दृश्य देख रहे थे।
मेरी स्कर्ट शरारत से फड़फड़ा रही थी। मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं और पूरी शर्म से नीचे नहीं देख पा रही थी, लेकिन मैं सब महसूस कर सकती थी कि मैं फिर से अपनी यौन इच्छा के आगे झुक रही थी जिसे मैंने किसी तरह अपनी मानसिक शक्ति से कुछ मिनटों तक रोक कर रखा था।
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इसके बजाय, गुरूजी किसी तरह अपने को शांत रखने में कामयाब रहे क्योंकि मैं आगे बढ़ गयी और उदय ने कटोरे को मेरी गांड के नीचे धकेल दिया-यह जानकर कि उसका हाथ मेरे शानदार सेक्स से केवल इंच की दूरी पर था मैं बहुत उत्तेजित थी।
जैसे ही मैं करीब आया वहइतने करीब थे की वह मेरी योनी को सूंघ सकता था। यह समृद्ध कस्तूरी इत्र है जो उसके नथुने भड़का रहे था और उसके मुंह से लार टपक रही थी। उन्होंने इस शानदार दिन के लिए अपने भाग्यशाली सितारों का शुक्रिया अदा करते हुए गहरी लेकिन विवेकपूर्ण तरीके से सांस ली और तभी गुरूजी मेरे करीब आ गए। उदय अपने स्थान पर चला गया ।
कहानी जारी रहेगी
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