Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:29 PM,
#21
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
बिमला ने मेरी आँखों में देखा और धीरे से अपनी चोली की डोरी को ढील दे दी अन्दर ब्रा थी नहीं तो बस हवा में झूल गए वो शोख कबूतर मन ललचा गया अपना फिर धीर धीरे से उसने अपने घागरे को भी नीचे को सरका दिया और बिलकुल नंगी मेरे सामने खड़ी हो गयी , उसकी कामुक नजरो से नजर मिलाते हुए मैं भी अपने जिस्म को कपड़ो की कैद से आजाद करने लगा 
बिमला अपना हाथ चूत पर ले गयी और उसको सहलाने लगी धीरे धीरे वो मेरी उत्तेजना के बारूद को सुलगाने लगी थी मैंने उसको पकड़ा और घुमा दिया नीचे बैठा और उसके कुलहो को थोडा सा फैलाते हुए अपना मुह घुसा दिया और उसकी योनी पर चुम्बनों को बरसात करने लगा बिमला सिस्कारिया भरने लगी उसने अपने हाथ घुटनों पर रखे और झुक गयी मैंने योनी को उंगलियों की मदद से फैलाया और अपनी सपनीली जीभ से योनी को कुरेदने लगा 

मद्धम गति से हिलते उसके चुतड मेरी ताल में ताल मिलाने लगे थे योनी की बेहद प्यारी पंखुडियो को अपने होठो में दबा कर चूसे जा रहा था मैं बिमला की टांगो में थरथराहट हो रही थी ये चूत का पानी ऐसे मेरे मुह लगा था की बस ना पूछो बिमला की टांगे अपने आप खुलती चली गयी और मैं पूरी तरह से उसके पांवो के बीच आ पंहूँचा बिमला की रसीली चूत से टपकते रस को चाट ते हुए पर उसने ज्यादा देर ये सब ना चलने दिया वो भी बहुत गरम हो गयी थी 

वो तुरंत पलंग पर चढ़ गयी और घोड़ी बन गयी मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और उसको बिमला की चूत की गहराइयों में उतार दिया और थाम लिया उसके मोटो मोटे कुलहो को और हो गयी चुदाई शुरू टपा ताप बिमला की चूत पिस्ता की तरह टाइट तो थी नै पर अपने लिए सही थी आखिर पहली बार बिमला की चूत ही तो मारी थी उसके काले चुतड बल्ब की रौशनी में बड़े मस्त लग रहे थे मैंने प्यार से उन पर हाथ फेर उसकी गांड का छोटा सा छेद बड़ा सुन्दर लग रहा था 

ऊपर से चुदाई का जोश मैं अपनी ऊँगली गांड के छेद पर रख कर कुरेदने लगा तो चुदते हुए उसने अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमाई और बोली- नाआआआआआआआ उधर छेड़खानी मत करो 
मैं- करने दो न तुम्हारा क्या बिगड़ता हैं 
वो- मेरी ही बिगड़ेगा जो बिगड़ेगा वहा से हाथ हटाओ और काम पर ध्यान दो 
मैंने अपने लंड को किनारे तक बाहर निकला और फिर से घुसेड दिया बार बार मैं ऐसे करने लगा तो बिमला बोली क्यों तद्पाते हो वैसे ही इतने दिन से ठंडी पड़ी थी आज तो मेहरबानी करो मैंने अब अपने लंड को बाहर निकल लिया और फिर से उसके चुतद पर किस करने लगा उसकी चूत को पीने लगा बिमला से वैसे ही अपनी गर्मी नहीं संभल रही थी वो और कामुक होने लगी 

और वो 69 में घूम गयी और मेरे लंड को मुह में भर कर जीभ से चाटने लगी मैं जैसे जैसे उसकी चूत से शरारत करता वैसे ही वो करती , जैसे बदला उतार रही हो काफ़ी देर तक चुसी करते रही अब मैंने उसको अपने ऊपर से उतारा और फिर से हम दोनों एक दूजे में समाते चले गए उसके लिपस्टिक लगे होटो को बुरी तरह से चूसते हुए मैं बिमला को चोदने लगा वो अपने हाथो से मेरे कुलहो को बार बार दबा रही थी 

अपनी टांगो को कभी पटकती कभी मेरी कमर पर लपेटती उसके बाल बिखर गए थे पर जोश भरपूर था धीरे धीरे मेरे धक्को की रफ़्तार बढ़ गयी थी बार बार वो अपनी कमर उचकाती मैं उसके गालो को खाए जा रहा था मेरे दांतों के निशान पड़ गए थे उनपर उसकी चूचियो को दबाता कभी अपने मुह से काटता वहा पर बिमला इतनी गरम हो गयी थी की पूछो ही मत उसकी चूत से बहता पानी उसकी जांघो तक पहूँच गया था नीचे बस चिप चिप ही हो राखी थी हम दोनों की साँसे उफान पर थी 

बिमला ने अब अपनी टांगो को बिलकुल सीधा सपाट कर लिया और मेरे लंड को बुरी तरह से भींच लिया और अपनी चूत मरवाने लगी उसकी चूत में अब लंड कैद हो गया था जितना वो पैरो को आपस में कसती उतना ही टाइट होता जाता बिमला मेरे नीचे पिस रही थी उसकी हरकतों से मुझे अंदाजा हो गया था की बस अब ये जाने ही वाली हैं मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही था मैं और जोर लगाने लगा १ मिनट २ मिनट और फिर उसकी चूत ढीली पड़ गयी चिकनी हो गयी जो पकड़ बिमला ने बनायीं थी वो खुलती चली गयी बिमला अभी झड ही रही थी की मैंने उसके मजे को दुगना कर दिया 

मेरे लंड से निकलता हुआ गरमा गरम लावा उसकी चूत के रस से मिलने लगा हम दोनों के बदन किसी गरम भट्टी की तरह से ताप रहे थे झड़ने के बाद मैं उसक ऊपर ही पड़ गया फिर कुछ पता नहीं कब आँख लगी कब नींद आई ,सीधा सुबह ही होश आया तो देखा की मैं अकेला बिस्तर पर नंगा ही पड़ा हूँ उठा कपडे पहने बिमला पहले ही जाग चुकी थी तो एक चाय पीकर घर आ गया आज पढने जाना था तो सुबह का टाइम थोडा व्यस्त था नाश्ता करते ही मैं निकल गया साइकिल उठा कर 

लगातार चार पीरियड अटेंड करने के बाद में थोडा आलस सा छा गया था मैंने नीनू को इशारा किया और हम बाहर आ गए रोड पार किया और एक छोटे से रेस्टोरेंट में आकर बैठ गए 
नीनू- क्या हुआ यहाँ क्यों आ गए देखो वैसे ही तुम कोर्स में काफी पीछे रह गए हो ऊपर से क्लास बंक कर दी 
मैं- शांत हो जा झाँसी की रानी, शांत हो जा कोर्स तो कवर कर लूँगा नोट्स तुम दे देना कब काम आओगी तुम 
नीनू- अच्छा जी, फिर यहाँ आने की क्या जरुरत है तुमको, घर ही रह जाते नोट्स तो तब भी मैं दे ही देती 
मैं- यार क्या फरक पड़ता है अगर एक क्लास ना ली तो दिल तुमसे बाते करने का कर रहा था तो आ गए 
नीनू- मुझसे क्या बात करनी है जो इतने उतावले हो रहे हो
मैं- एक तुम ही तो हो जिस से अपने मन की बात बोल पता हूँ अब तुम भी ऐसे 

करने लगी हो 

वो- मस्का मत मारो 

मैं- हद है यार अब सच बोलने का जमाना ही नहीं रहा झूटी तारीफ करो तो सब 
खुश पर सच बोलो तो दोष देते है लोग 

नीनू-अच्छा बाबा नाराज ना होवो और बताओ क्या बात करनी है 

मैं- पहले प्रोमिस करो हसोगी नहीं 

वो- हा पक्का 

मैं- कल रात मुझे यार एक सपना आया जी तुम और एक साथ है 

वो- तो उसमे मैं क्या करू, तुम्हारा सपना है जिसकी मर्जी साथ रहो अब तुम्हारे 
सपनो में कौन आये कोन जाये उसपे मेरा क्या जोर है 

मैं- सुन तो सही यार, सपने में समंदर किनारे एक छोटा सा घर था झोंपड़ी टाइप का
बस तुम थी मैं था और लहरों का शोर था 

वो- अपनी कोहनी से सर को टिकाते हुए, अच्छा और फिर 

मैं- मेरे हाथ में तेरा हाथ था 
वो- और आगे 

मैं- मैं तुमसे कुछ कहने ही वाला था की तभी आँख खुल गयी 

वो- कमीने, कुत्ते तभी आंख खोलनी जरुरी थी क्या

मैं- यार अब सपनो पर कहा मेरा बस चलता है 

वो- वैसे कुछ तो आईडिया होगा तुम्हे क्या कहना चाहते थे

मैं- अब मुझे क्या पता यार 
वो- सपना तो तुम्हारा था न तो तुम्हे पता होना चाहिए 

मैं- इस से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ बस कल ही तुम सपने में आई 

वो- सच बोल रहे हो या मुझ पर लाइन मारने का कोई नया तरीका ढूँढा हैं 

मैं- मैं तुझ पर लाइन क्या मारनी तू तो अपनी ही है न

वो- दिखा कहा बोर्ड लगा हैं तेरी प्रॉपर्टी का 

मैं- दोस्त नहीं है क्या मेरी ले देकर इस दुनिया में बस तू ही तो हैं जिसे अपना माना है अब तुझ पे क्या कोई हक नहीं मेरा 

वो- तुम बस चुप रहा करो कितनी बकवास करते हो तुम, तुम्हारी सांगत में रह रह कर मुझ पर भी तुम्हारा असर होने लगा हैं पता है वेल्ली होने लगी हूँ मुझे कल तो मेरी एक सहेली ने मुझे झल्ली बोल दिया 

मैं- झल्ली क्या होता हैं 

वो- कुछ तो होता ही होगा 
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12-29-2018, 02:29 PM,
#22
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
हम दोनों हसने लगे उसके मोतियों से चमकते दांत वो मासूम मुस्कान वैसे नीनू भी ठीक लड़की थी बस मैंने उसको उस नजर से देखा नहीं था एक प्यारी सी गुडिया जिसे देखते ही मेरा दिल चुलबुला हो जाता था 

नीनू- यार मैं न दस दिन के लिए जोधपुर जा रही हूँ, 

मैं- मुझे भी ले चल

वो- ले तो चलूंगी पर फिर हर कोई कहेगा किस पगलेट को साथ ले आई

मैं- हां, अब पगलेट ही कहोगी

वो- अबे, कैसे लेके जा सकती हूँ मैं तुझे तू लड़का मैं लड़की 

मैं- तो क्या हुआ अब तुम्हारे लिए जेंडर थोड़ी ना चेंज करवा सकता हूँ 

नीनू मेरी बात सुनकर हस्ते हुए लोटपोट हो गयी जब उसकी हंसी रुकी तो बोली हद है यार जबरदस्त हो तुम भी , बताओ मैं तुम्हे कैसे ले जा सकती हूँ मैं तो मामा के घर रहूंगी तुम कहा रहोगे और फिर किस हक़ से ले जाउंगी तुम्हे 


मैं- दोस्त नहीं है क्या हम, तुम्हारे मामा मेरे मामा 

वो- देखो दोस्त हैं पर हम एक लड़का लड़की भी है , तो जरा दिमाग में जोर डालो और सोचो, जमाना है फिर घर वालो को तो नही बोल सकती ना की तुम मेरे दोस्त हो 

मैं- क्यों ना बोल सकती 

वो- मेरी सुताई करवाओगे क्या , और फिर एक लड़के लड़की की दोस्ती को कौन मानता है 

मैं- बोल देना मेरा बॉयफ्रेंड हैं 

वो- कब बने तुम 

मैं- कभी ना कभी तो बन जाऊंगा 

वो- हट पगले 

मैं- जा चुड़ैल 

वो- बात न करो मुझसे 

मैं- दूर ना जाओ मुझसे 

मैं- देख यार मैं भी कभी ना गया घुमने ले चल ना 

वो – ना ना, नहीं मुमकिन मेरे लिए भारी हो जायेगा 

मैं- बोल देना की मेरा लव हैं 

वो- झल्लाते हुए लव और तुमसे 

मैं- सलमान से कम नहीं समझा कभी खुद को क्यों न करोगी लव 

वो- सीरियस हो जा यार 
मैं- ओके 

वो- दस- पंद्रह दिन के लिए जाउंगी 

मैं- कैसे काटेंगे दिन जुदाई के 

वो- ओह ओह 
मैं-नीनू मेरे आओगी कभी

वो- आ जाउंगी कब आना है 

मैं- जल्दी ही बताऊंगा 
वो- पर क्यों बुला रहे हो इरादे क्या हैं तुम्हारे 

मैं- हवस जाग गयी है शिकार होगा तुम्हारा 

वो पास रखा गिलास मेरे माथे मारते हुए- कमीने कही के 

मैं- हा हा 
वो- वैसे अच्छा रहता तुम भी होते जोधपुर में मजा आ जाता तुम साथ हो तो टाइम पास अच्छा हो जाता हैं 

मैं- साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहती आदत होने लगी हैं मेरी 

वो- ना जी ना तुम्हारी आदत करके मरना है क्या मुझे फिर कभी बिछड़ने में तकलीफ होगी 

मैं- दूर किसलिए जाना तुम मुझसे ही शादी कर लेना साथ रहेंगे फिर 

वो- कभी तो सीरियस हो जाया करो मैं – ठीक हैं मैं भी आ रहा हूँ, तुम कब जा रही हो बता देना मैं भी जुगाड़ कर लूँगा

वो- शायद परसों मैं- ट्रेन में साथ ही चलेंगे 

वो- देखते हैं , अच्छा मैं चली एक क्लास तो अटेंड करलू मैंने कहा मैं भी आता हूँ

वापिस आते आते शाम के ५ बज गए थे बहुत थकान हो गयी थी घर आया हाथ मुह धोकर चाय पि रहा था की चाची बोली- मेरे साथ खेत तक चलो घास लानी है थोड़ी सी 
मैंने- कहा जे ठीक है और चल पड़े 
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12-29-2018, 02:29 PM,
#23
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
रस्ते में चाची आगे आगे चल रही थी मैं पीछे- पीछे तो मेरी निघाह उनकी गांड पर पड़ गयी दो तीन दिन पहले ही उनको बाथरूम में नंगी देखा था वो बात फट से मेरे जेहन में आ गया बिना बात के ही मैं उन्हें ताड़ने लगा मेरे मन में ख्याल आया की चाची भी मस्त माल है देख कितनी बड़ी गांड है इनकी ऐसे ही मेरे मन में गलत विचार आने लगे मेरे बदन में रोमांच सा भरने लगा मेरे दिल दिमाग में चाची की कामुक छवि बनने लगी 

खैर, खेतो तक पहूँचे और फटाफट से घास की पोट बना ली मैंने उसको चाची के सर पर रख वाया तो वो बोली- अँधेरा होने वाला है शॉर्टकट से चलते हैं मैंने कहा ठीक हैं और चल पड़े अब हम खेतो को पगडण्डी से होकर आ रहे थे दो तीन खेत आगे पानी का पाइप टूटा पड़ा था जिस से पूरी पगडण्डी पर कीचड हो गया था तो हम थोडा बच के चल रहे थे पर चाची के सर पे बोझ था तो उनका बैलेंस बिगड़ गया और वो धम्म से जा गिरी कीचड़ में 
अब ये नयी मुसीबत आन पड़ी चाची धडाम से गिरी कीचड में घास गयी किधर वो किधर मुझे हंसी आ गयी तो वो मेरी तरफ जलती नजरो दे देखते हुए बोली- कमबख्त हस रहा हैं इधर मेरा सत्यानाश हो गया लगता है मेरी कमर तो गयी जरा आ उठा मुझे 

मैं-जी चाची ,

और मैंने उनको उठाया पूरी साडी कीचड में सन गयी थी वो एक हाथ से मेरे कंधे को पकडे थी दुसरे हाथ से अपनी कमर और पीठ पर हाथ फिरा रही थी बोली- लगता है पीठ गयी मेरी तो अच्छा शॉर्टकट लिया लग गयी मेरी तो कपडे ख़राब हुए सो अलग अब घर कैसे जाऊ ऐसे कपड़ो में 

मैं- कुए पर चलो इनको साफ़ करलेना फिर चलना घर वैसे भी इस हाल में कोई देखेगा तो लगेगा की कौन पागल औरत जा रही हैं 

चाची मेरी तरफ ऐसे देखने लगी जैसे की आज तो खा ही जाएँगी मुझे , पर उन्हने खुद के गुस्से को कण्ट्रोल किया और बोली हम्म, कुए पर ही चलके सोचेंगे 

मैंने घास की पोटली अपने सर पे लादी और लचकती मचकती चाची के साथ वापिस कुए पर आ गया 

मैंने पानी चला दिया और उनसे कहा साफ़ कर लो खुद को 

चाची- साफ़ कैसे करू पूरी साडी ही कीचड से ख़राब हो गयी हैं इसको तो धोना ही पड़ेगा लगता हैं 

मैं- तो धो लो न पानी की कौन सी कमी है साबुन अन्दर होगा मैं ला देता हूँऔर इर देर भी कितनी लगनी है इस काम में

चाची- बात वो नहीं है साडी तो मैं धो लुंगी पर फिर मैं पहनूंगी क्या इधर मेरे दुसरे कपडे भी नहीं हैं 


मैं- आप भी कमाल ही करती हो साड़ी सूखने में कोनसा बरस लगेंगे जैसे ही थोड़ी सूख जाये पहन लेना घर जाते ही कपडे चेंज कर लेना 

वो- वो तो है पर जब तक साडी सूखेगी नहीं तब तक मैं कैसे रहूंगी 

मैं- मुझे क्या पता आप देख लो जो भी करना है वैसे भी अँधेरा होने वाला है घर भी चलना है 

चाची- पर मुझे ठीक नहीं लग रहा ऊपर से तू भी है लाज आएगी मुझे 

मैं- तो अब मैं कहा चला जाऊ मेरा तो मूड ही नहीं था आप के साथ आने का ऊपर से अब आप के नाटक तो फिर ऐसे ही चलो घर पे 

वो- ठीक है मर मन तो नहीं करता पर मज़बूरी है 

कहकर चाची ने अपनी साड़ी उतारना शुरू कर दिया जैसे ही उनका आँचल सरका उनके रसीले आम देख कर मेरा मन ललचा गया पर मैं उनके आगे कुछ भी शो नहीं करना चाहता था वर्ना मेरे लिए मुसीबत बढ़ सकती थी धीरे धीरे वो अपनी साडी उतार रही थी उनकी पतली कमर गोरा रूप देख कर मेरे लंड ने पेंट में डिंग दोंग करना शुरू कर दिया था अब इसको समझाऊ भी तो क्या इसको तो बस नजरे लुभाने से मतलब 

चाची अब ब्लाउस और पेटीकोट में ही थी बड़ी क़यामत लगी मुझे मेरी नजरे तहर सी गयी उन पर 

वो- क्या घूर रहा है मुझे 

मैं सकपकाते हुए- कुछ नहीं चाची जी 

वो- बेटा तेरा दोष नहीं है उम्र ही ऐसी है और हंस पड़ी 

अब कौन समझाए उनको दोष तो बस हमारी इन ठरकी नजरो का ही हैं जो अपनी चाची पर ही फ़िदा होने लगी उनके रूप की ज्वाला में झुलसने से लगे थे , तो करे भी क्या ये जिस्म हर पल सुलगता ही रहता था नया नया खून मुह लगा था मोटी मोटी छातियो पर कसा हुआ ब्लाउस गला भी कुछ खुला खुला था उसका चाची की आधे से ज्यादा चूचिया नुमाया हो रही थी मेरी नजर चूची पर उस काले तिल पे जो पड़ी कसम से दिल साला ठहर सा ही गया 

अब हम तो ठहरे आवारा , अपनी फितरत जुदा जुदा सी ताड़ने लगे चाची की जवानी को वो जल्दी जल्दी साडी धो रही थी घर जाने में वैसे ही देर हो रखी थी ऊपर से उनकी कमर में शायद मोच सी आ गयी थी कपडे धोते समय उनका पेटीकोट भी भीग सा गया था और उनकी मांसल टांगो से चिपक सा गया था जिस से मुझे उनका पूरा वी शेप दिख रहा था समझ चाची भी रही थी पर अब किया क्या जाए आँख थोड़ी ना मूँद लू मैं , खड़े लंड के उभार को मैं छुपा न अपया उन्होंने अपनी भरपूर नजर उस पर डाली पर कहा कुछ नहीं 

उफ़ ये हालात हमारे, सब इन लम्हों का ही तो खेल होती हैं , उन्होंने साडी को पास तार पर सुखा दिया जब वो साडी सुखा रही थी उनकी पीठ मेरी तरफ थी , तो पीछे का हिस्सा देख कर मैं तो जैसे मर ही गया हॉट कितनी थी वो पेटीकोट उनके कुलहो में फंसा पड़ा था कितने विशाल नितम्ब थे उनके पहले मैं कभी उनके बारे में नहीं सोचता था पर आज पता नहीं क्यों मैं बेईमान होने लगा था , पशुओ के लिए घास भी ले जानी जरुरी थी अब चाची की कमर में मोच थी तो वो तो उठाने से रही तो मैंने कमरे से साइकिल निकाली और पीछे स्टैंड पर लाद दी पोटली को 

मैं- चाची देखो न साडी, थोड़ी बहुत सूख गयी हो तो पहन लो अँधेरा होने लगा हैं लेट हो रहा हैं 

वो- अभी भी काफी गीली हैं 

मैं- लपेट लो ना उसको घर पे चेंज तो करना ही है 

वो- हम्म , ठीक है वैसे भी लेट काफी हो गए हैं 

तो उन्होंने जल्दी से वो गीली साडी ही पहनी मैंने कहा आप साइकिल पे आगे डंडे पर बैठ जाओ पीछे घास है फटाफट से पहूँच जायेंगे वो ना नुकुर करने लगी पर अँधेरा हो रहा था तो वो मान गयी इतना जबर माल मेरी साइकिल पे आगे बैठा वो बोली- आराम से चलाना वैसे ही मुझे चोट लगी हैं कही गिरा ना देना 

मैं- बैठो तो सही 

मैं साइकिल चलाने लगा जब मैं पैडल मारता तो मेरे पाँव चाची की टांगो से रगड़ खाते मुझे बहुत मजा आता वो कुछ कह भी नहीं सकती थी मैंने अपने आप को आगे को झुका लिया उनकी पीठ पर रगड़ खाती मेरी छाती मजा आ रहा था , उनके बदन से आती मनमोहक महक मेरा हाल बुरा कर रही थी उनके नितम्बो में फंसा साइकिल का आगे वाला डंडा अब और क्या बताऊ मैं घर आते आते पुरे रस्ते फुल मजे लिए मैंने एक बार तो उनकी कमर पर भी हाथ फेर दिया चाची मन मसोस कर रह गयी 

घर आके मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ गया थोडा पढाई का काम पेंडिंग था तो उसको रहने ही दिया मेरा मन पिस्ता की तरफ घुमा, मैं सोचा यार आज उसका भाई आ गया होगा उस साले को भी अबी आना था थोडा बातचीत ही कर लेते मिल लेता उस से तो ठीक रहता पर अपने चाहने से क्या होता है रात हो चुकी थी मैं अपने घर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे अपनी चारपाई पर पड़ा आसमान की और देख रहा था रेडियो पर धीमी आवाज में बजते रोमांटिक गाने मेरा और दिमाग ख़राब कर रहे थे 

ये रात और ये दूरी, साला थोड़े दिन पहले तक सब सही था बस लंड हिला के चुपचाप सो जाते थे अब ज़िन्दगी ने ऐसी करवट ले डाली थी की बस पूछो ही ना, न इधर के थे ना उधर के कुछ हम शरीफ ना थे कुछ वो बेईमान थी धड़कने जवान बेबसी का आलम कुछ शोले फड़क रहे थे चिंगारी अपना काम कर चुकी थी रात आधी से ज्यादा बस इसी कशमकश में कट गयी पर दिल को करार नहीं आया बस आई तो नींद जो फिर सुबह ही टूटी
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12-29-2018, 02:30 PM,
#24
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
सुबह से ही सर में भयंकर दर्द हो रहा था तबियत ठीक ना लग रही थी उठ कर बिस्तर समेटा खाट खड़ी की और घर के अन्दर गया नहा धोकर उठाई किताबे और अपनी खतरा साइकिल को लेकर चल पड़ा सहर की ओर मन तो बिलकुल नहीं था पर पहले ही काफी छुट्टिया कर ली थी तो इर कौन घरवालो की दो बात सुनता आधे रस्ते में ही नीनू दिख गयी मस्तमोला, अल्हड अपनी लेडीज साइकिल की घंटी बजाती हुई मुझे देख कर वो रुक गयी और हम पैदल पैदल हो लिए 

रस्ते में मैंने पूछा – हो गयी तैयारी 

वो- हां, इस सोमवार की ट्रेन से जाउंगी

मैं- मुझे ना ले चलोगी क्या 

वो- सुबह सुबह शुरू हो गए तुम 

मैं- कभी इस सहर से आगे गया नहीं , मैं भी घूम लूँगा 

वो- तो चलो फिर पर रहोगे कहा, खाओगे क्या 

मैं- तुम उसकी चिंता ना करो 

वो- तो फिर चलो जब परेशानी होगी तब सारा घुमने का शौक हवा हो जायेगा 

मैं- कितने रूपये बहुत रहेंगे 

वो- मैं क्या जानू , पर हां हजार- पंद्रह सौ तो होने ही चाहिए कम से कम 

मैं- मेरे पास तो 500 भी ना होंगे , तू कुछ रूपये उधार देगी क्या 

वो- मैं कहा से दूंगी, मेरे पास ज्यादा से ज्यादा २००-300 ही होंगे पर उतने में क्या होगा 
मैं- क्या होगा 

वो- मुझे क्या पता यार पैसो की छोड़ो ये बताओ की घर से क्या बोल कर जाओगे 

मैं- वो तो मैंने सोचा ही नहीं तुम ही बताओ कुछ 

वो- ऐसे कह देना की , टूर जा रहा है तो शायद काम बन जाये तुम्हारा 

मैं- आईडिया तो ठीक है ट्राई करता हूँ

तो फिर तय रहा सोमवार को मिलते है स्टेशन पर पर तुम अकेली ही आओगी या और कोई भी होगा 

वो- कितनी बार कहू अकेली ही जा रही हूँ 

मैं- फिर ठीक हैं , पर यार पैसो का जुगाड़ कहा से करूँगा वो थोड़ी टेंशन हो रही हैं 

वो- मैं तो लास्ट 500 तक कर पाऊँगी जैसे तैसे करके उसका भी पक्का नहीं बोल सकती 

मैं- देखता हूँ क्या जुगाड़ होता है कुछ भी करूँगा जाना है तो जाना हैं 

बाते करते करते मंजिल आ गयी साइकिल को लगाया स्टैंड पर और क्लास में पहूँच गए मास्टर लोग भी बहुत पकाते थे उन दिनों ऐसा नहीं था की मेरा पढाई में मन नहीं लगता था पर वो साला टाइम ही ऐसा था मन भटकता भी ज्यादा ही था लगातार 4 क्लास के बाद मैं और नीनू एक खाली क्लास रूम में बैठ गए अपने अपने टिफिन खोल कर 

नीनू- ये जो तुम कैरी का आचार लाते हो न मुझे बहुत पसंद है दिल करता है बस खाती ही जाऊ 

मैं- कहो तो पूरी बरनी ही ला दू , मेरी मम्मी बहुत अच्छा आचार बनाती है ऐसा काफ़ी लोग कहते है कल तुम्हारे लिए अलग से लाऊंगा 

वो- पर कल तो मैं आउंगी ही नहीं, अब तो जोधपुर से वापसी के बाद ही खाऊँगी आचार 

मैं- कहो तो जोधपुर ले चले 

वो हसने लगी जोर जोर से मैं भी मुस्कुरा दिया 

घर आया तो घर पर कोई नहीं था , कपडे- लत्ते चेंज किये चाची आ गयी तब तक बोली चाय बना दू- मैंने कहा बना दो 

वो रसोई में चली गयी मैं भी पहूँच गया 

मैं- जी वो एक बात कहनी थी 

वो- हां सुन रही हूँ 

मैं- जी कुछ रूपये चाहिए 

वो- खुल्ले नही है मेरे पास, मेरी ड्रेसिंग की दराज में १०० का नोट पड़ा है जितने चाहिए दुकान से खुले करवा के रख देना बाकि वापिस कर देना 

मैं- जी, 100 से काम नहीं चलेगा , 

वो- तो जनाब को कितने चाहिए 

मैं- जी, हजार पंद्रह सो 

चाची- दिमाग ख़राब हुआ हैं क्या इतने पैसो का क्या करोगे 

मैं- कुछ काम हैं चाहिए 

वो- क्या काम आ गया जो इतने पैसो की जरुरत पड़ गयी 

मैं- अभी नहीं बता सकता 

वो- कही जुआ, तो नहीं खेलने लगा है तू या कोई लड़की वडकी का कोई पंगा हैं 

मैं- ऐसा कुछ नहीं है 

वो- तो फिर शाम को जब तुम्हारे पिताजी या चाचा आये उनसे मांग लेगा 100-५० की बात होती तो मैं देख लेती कल को कुछ गड़बड़ कर दोगे तो फिर मुझे सुनना पड़ेगा तो मुझे तो माफ़ ही करो 


मैं- तो ठीक है आप भी अपनी ये सड़ी हुई चाय अपने पास रखो उकता गया हूँ मैं इस बेहूदा गरम पानी को पी, पी कर मुझे नहीं पीनी कभी इसमें चीनी की चासनी के सिवाय कुछ मिलता भी है , हर बात में रोक टोक, ये मत करो वो मत करो नोकर से भी बदतर हालत है मेरी घर में , अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं आकर सकता मैं 

अचानक से ही मैं अपनी सारी भड़ास निकाल बैठा ,चाची का मुह खुला का खुला रह गया 

इस घर में आज तक कभी खाना भी अपनी मर्जी से नहीं खाया मैंने हर बात में बस रोक टोक और भी तो लोग हैं मोहाले में सब मोज से रहते हैं मैं अपने ही घर में कैदी की तरह रहता हूँ, तंग आ गया हूँ मैं पानी का गिलास भी आपकी परमिशन से पीना पड़ता है मुझे 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#25
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची का पारा गरम हो गया उन्होंने लिया चिमटा और फडाक से पेल दिया मुझे मैंने कहा- बस मार ही सकते हो मार लो चिमटे से क्यों लाठी से मारो इसके सिवा और आता क्या है आप लोगो को मैं बस बोले जा रहा था 

और हां- कोई गलत काम में नहीं चाहिए थे पैसे मुझे टूर जा रहा है घुमने तो मैं भी जोधपुर जाना चाहता था इतनी बात थी पर जासूस लगे है मेरे तो हर बात बताओ इनको कोई कैमरा लगा दो मेरे अन्दर हर मिनट की जानकारी लेते रहना दो चार चमाट और टिक गए 

गुस्से में मैं घर से बाहर आ गया और घूमता रहा इधर उधर सांझ हुई घर तो जाना ही था घर जाते ही पिताजी के सामने पेशी लगी आजकल बहुत बदतमीज होते जा रहे हो तुम 
मैं खामोश ही रहा 

पिताजी- अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी होता है जब तुम्हारी चाची ने कहा था की शाम तक इंतज़ार करो तो फिर इतना गुस्सा दिखाने की क्या जरुरत थी मुझे नहीं लगता , एक सामान्य बात के लिए इतना बखेड़ा कर दिया 

मैं- पिताजी, तंग आ गया हूँ अपने ही घर में अजनबी सा लगता है मुझे जिधर देखू कोई ना कोई बस पीछे हो पड़े रहते है 

पिताजी- जिधर भी देखो सब तुम्हरे अपने ही तो है अगर गुस्सा करते है तो प्यार भी करते है तुमसे सबको फ़िक्र होती है तुम्हारी इसलिए करते है 

मैं- माफ़ी चाहूँगा आपकी बात काटने के लिए पर , अब मैं बच्चा नहीं रहा 

पिताजी- तभी तो ज्यादा चिंता रहती है तुम्हारी यही उम्र इंसान के लिए सबसे खतरनाक होती है बस थोड़े टाइम की बात है फिर देखना कोई नहीं टोकेगा तुमको 

रही बात जोधपुर जाने की तो तुम कभी अपने सहर ठीक से गए नहीं हो कैसे एडजस्ट करोगे इतनी दूर , इर खाने पीने की समस्याए 


मैं- पिताजी प्लीज , 
पिताजी- देखो बेटे , हम मामूली लोग है बेशक मैं और तुम्हारे चाचा नोकरी करते है भगवान् का दिया सबकुछ है पर मैं चाहता हूँ मेरी औलाद एक आम बच्चे की तरह पले और फिर 1500 रूपये कम भी तो नहीं होते है इतने रूपये में १.5 किवंटल गेहू आता है जिसे हम ३ महीने में रोटी खाते है , पैसे तो मैं तुम्हे दे दूंगा पर बेटे पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है मैं जानता हूँ तुम्हे मेरी बाते इस टाइम बहुत बुरी लग रही होंगी पर जो पैसा तुम खर्च करते हो तुम्हे पता भी होना चाहिए की वो कितनी मेहनत से कमाया जाता है तुम कह सकते हो मेरा बाप कंजूस है पर एक दिन तुम्हे पता होगा की तुम्हारा बाप कितना सही था हम बहुत सामान्य लोग है इस तरह की घुमाई फिराई के लिए मैं खर्च नहीं कर सकता 

मैं- पिताजी अगर मैं खुद कोई काम करके कुछ रूपये कमा लू तो 

पिताजी- कोशिश कर लो कुछ ना कुछ अनुभव ही मिलेगा आगे भविष्य के लिए सीख मुफ्त मिलेगी
एक बार फिर रोटियों से नाराजगी सी हो गई थी , बस यही काम हो गया था अपना, घर वालो के सामने जोश्स जोश में बड़ी बड़ी बाते कर डाली थी पिताजी की अनुभवी आँखे तैयार कड़ी थी मुझ परखन को दिमाग के सरे घोड़े दोडा लिए पर पैसो का जुगाड़ हो तो कहा से हो काम इतनी जल्दी मिलने से रहा ५/6 दिन बाद तो जाना था जोधपुर अब करू तो क्या करू सांप गले में लटकाया था तो इलाज भी करना था आँखों आँखों में रात कट गयी समस्या गहरी हल कोई ना सूझे कहा जाऊ अब कौन माद करी मेरी 



सुबह हुई नास्ता पानी किये बिना ही पहूँच गए पढने को, नीनू आज बहुत व्यस्त थी अपना पूरा टाइम टेबल सेट जैसे आज ही करना था उसको मेरी सुन ही न रही थी , लंच करते टाइम उसको मैंने अपना दुखड़ा सुनाया तो वो बोली- तुम क्या किसी फिल्म के हीरो को की चैलेंज ले लिया अमीर बनके दिखाऊंगा फिर हेरोइन से ब्याह करूँगा , अब मार ली ना पांव पे कुल्हाड़ी घर वालो से मिन्नतें कर लेते ज्यादा ना तो थोड़े पर जुगाड़ तो हो जाना था न अब बताओ क्या होगा 



मैं- यार मैं तुझसे मदद मान रहा हूँ और तू मुझ पर ही किलस रही हैं 

नीनू- तो क्या करू मैं , बताओ काश मैं तुम्हे अपने प्लान के बारे में ना बताती न तुम झन्झट में पड़ते 

मैं- कुछ ना कुछ तो कर लूँगा पर चलूँगा तेरे साथ 

वो- पर करोगे क्या सवाल तो वो ही हैं , 

मैं- सोचने दे फिर कुछ ना कुछ पर आधा दिन बीत गया कुछ नहीं सूझा तो मैं घर को चल दिया एक बनियान भी खरीदनी थी तो मार्किट के तरफ मोड़ थी अपनी साइकिल को 


मार्किट के साइड में नगरपालिका का काम चल रहा था रोड बन ने का एक अफसर कर्मचारियों पर झीख रहा था तो मैं भी देखने लगा तो पता चला की कुछ मजदूर कम पर नहीं आये थे और काम जल्दी करवाना था मेरे दिमाग में आईडिया आया मैं उस अफसर के पास गया और बोला- साहिब मुझे काम की सख्त जरुरत है मुझे लगा लो मेहरबानी होगी 

अफसर- तू करलेगा देख ले सड़क बनाने का काम है बजरी- रोड़ी पकडानी पड़ेगी कोयला गरम करना पड़ेगा 

मैं- साहिब, आप बस हां कहो रुपयों की सख्त जरुरत हैं काम कुछ भी हो करूँगा 

मेरी चमकती आँखों को देखते हुए वो अफसर बोला – ठीक है फिर लग जा अभी से रोज का 125 रूपया मिलेगा 

मैंने कहा साहिब ये तो बहुत कम है थोडा सा और बढ़ा तो 

साहिब- चल ठीक है तुझे 135 दूंगा पर काम पुरे 7 घंटे करना होगा बीच में बस आधे घंटे की रेस्ट मिलेगी 

मैं- ठीक है साहब 

और संभाल ली पराती को आज से पहले कभी काम तो किया नहीं था आधे पोने घंटे तक तो जोश जोश में लगा रहा पर फिर थकने लगा हाथो में दर्द होने लगा पर पैसो की जरुरत थी तो जैसे तैसे करके लगा रहा पूरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था सर पर सूरज की गर्मी पड़ रही थी बार बार प्यास लगे पर हार नहीं मानी शाम को जब हाथ में मजदूरी आई तो सूखे होंठ मुस्कुरा पड़े, ये ऐसी मुस्कान थी जो लाखो करोडो में भी नहीं मिलती कही पर 


थका- हारा घर पर आया आते ही बिस्तर पर पड़ गया शारीर में दर्द की तीसे चल रही थी हाथो में छाले पड़ गए थे पर एक आस थी की पैसो का जुगाड़ हो ही जायेगा अगले चार दिन तक बस रोड ही बनाया न किसी से शिकवा न किसी से शिकायत हां घर वालो को शक ना हो इसलिए बैग में एक जोड़ी पुराने कपडे रख लिए थे जो मैं काम के समय पर पहनता था , चार दिन की हाड तुड़ाई के आड़ भी 550 रूपये ही जोड़ पाया था अब बस १ दिन ही बचा था दिल में थोडा गुस्सा भी था की इतनी मेहनत के बाद भी कुछ पैसे ही हाथ आये थे 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#26
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वही रोड के किनारे पर एक पेड़ के नीचे बैठे बैठे काफ़ी बार पैसो को गिन चूका था पर उनको तो उतना ही रहना था , तभी एक बूढी माई आकर मेरे पास ही बैठ गयी एक पोटली सी थी उसके पास मैंने ऐसे ही पूछ लिया – कुछ परेशां सी दिखती हो माँ 

वो- क्या बताऊ बेटे, मैं ये बादाम, पिसते बेच कर गुजरा करती हूँ पर आज सुबह से ५ पैसे भी ना कमाए दोपहर हो गयी भूख सी भी लगी है तो बस यही परेशानी है 

मैं- माँ काम तो ऐसे ही चलता है तू एक काम कर रोटी खा मैंने अपना टिफिन उसको दे दिया 

वो बोली- ना बेटा तेरे हिस्से का खाना मैं कैसे खा सकती हूँ, 

मैं- माँ ये रोटी तेरे भाग में ही लिखी है खा ले और उसको खाना दे दिया 

भूख तो मुझे भी लगी थी पर किसी और की भूख मिटाने का सुख क्या होता है उस दिन पता चला मुझे 


सोचते सोचते मुझे आईडिया आया , मैंने कहा – माँ अगर मैं तेरा सामान बिकवा दू तो 

माई- बेटा मेरे पास २२००-२३०० का माल है अगर तू सारा बिकवा दे तो मैं तुझे 250-300 रूपये दूंगी 

मैं- माँ मुझ पर विश्वाश करेगी तू शाम को यही मिलना मुझे मैं इसको बेच कर आऊंगा और मैं भाग्गने वाला नहीं हूँ इधर ही नगरपालिका में मजदूरी करता हूँ कभी भी पता कर लेना 


माई- बेटा इन बूढी आँखों ने दुनिया देखि थी है, तुझे भी परख लिया ठीक है मैं शाम को 6 बजे इधर ही मिलूंगी 

मैंने सामान लिया और पुरे सहर में घुमने लगा बादाम ले लो पिसते ले लो किसी को दो रूपये ज्यादा तो किसी को कम में बेचा घर घर दरवाजा खडकाया जिन्दगी भी सीख देने पर उतारू ह गयी थी पर अपन भी पक्के इरादे वाले थे माई की पोटली खाली कर ही दी वो अलग बात थी की बहुत मस्सक्कत करनी पड़ी माई ने भी वादे के अनुसार 250 रूपये दिए और खूब सारी दुआ मिली वो अलग 


कुल मिला के 800 का जुगाड़ हो गया था अब दुखी मन से सोचा की कम से कम १००० तो हो घर में पुराणी रद्दी अख़बार पड़े थे 150 में सलटाया उनको ५० इधर उधर से कबाड़े 1000 का जुगाड़ तो सॉलिड हो गया अपना कल कल और काम करूँगा तो हो जायेंगे ११५० पर अगले दिन मजदुर पुरे थे तो काम मिला नहीं बस आज का ही दिन था मेरे पास कुछ भी करके आज अगर जुगाड़ न हुआ तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी 


यही सोचते सोचते मैं हताश बैठा था मन में उधेड़बुन चल रही थी जोरो से पिताजी ने सही तो कहा था पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है कम से कम 200 रूपये और होते तो भी काम चल ही जाना था मदद की सख्त जरुरत थी पर मेरी मदद करे कौन ऐसे ही हताशा में सहर की गलिया नाप रहा था की एक जगह बड़ा सा टेंट लगा था तो पता चला की किसी सेठ की लड़की की सगाई है मैंने सोचा इधर कोई जुगाड़ बन सकता हैं क्या 


तो हलवाई जो लगा था उधर उस से बात की, वो बोला ना भाई कोई काम नहीं है तेरे लायक तो मैं बोला- भाई जी, थोड़े पैसो की जरुरत है कोई भी काम हो कैसा भी हो करूँगा तो वो बोला- भाई देख अब मैं क्या करू, पर तू इतना कह रहा हैं तो देख अभी थोड़ी देर में जीमना शुरू होगा तो लोगो की झूठी पत्तल उठालेगा क्या 


मैंने अपना माथा पीट लिया हाई रे किस्मत पर फिर मुस्कुराते हुए बोला- भाई कहो तो बर्तन मांज दू तो बात तय हो गयी की 150 रूपये देगा वो मुझे 

सगाई शाम को थी पर सेठ बड़ा कारोबारी था तो सबको जीमा रहा था शाम तक कमर दुःख गयी पत्तल उठाते उठाते , प्रोग्राम हुआ ख़तम बस अब सगाई का ही कार्यक्रम था जिसमे बस सेठ के कुछ ख़ास मेहमान ही शामिल थे और कुछ लड़के वालो की तरफ से आने वाले थे 

तभी सेठ का लड़का आया और बोला- की कोई एक्स्ट्रा बाँदा है क्या मेहमानो का गेट पर स्वागत करने के लिए चाहिए था मैंने कहा मैं करूँगा जी, तो उसने कहा आजा मुझे एक पगड़ी दी हाथो में फूल और खुसबू वाली बोतल उस काम में करीब घंटाभर लगा पर सेठ का लड़का खुश हो गया चलते समय उसने मुझे 500 का एक पत्ता दिया और बोला – जा ऐश कर 

500 का नोट मैंने अपने हाथ में पहली बार देखा था मैंने कहा- आपने मुझे ज्यादा पैसे दे दिए हैं तो वो बोला नहीं तेरा हक़ है रख ले 

पता नहीं क्यों आँखों से आंसू छलक आये, घर आया और बैग को ज़माने लगा कल जाना जो था आज की रात चैन की नींद आने वाली थी मुझे , बैग पैक कर रहा था की पिताजी कमरे में आ गए हाल चाल पूछा मेरा , माँ भी आ गयी थोड़ी बाते होने लगी मैंने उनको बताया कल जोधपुर जा रहा हूँ मैं 

पिताजी ने जेब से पैसे निकाले और मेरे हाथ में रख दिए 

मैं- मेरा जुगाड़ हो गया हैं पिताजी इनकी मुझे जरुरत नहीं 

पिताजी- मुझे पता है पर फिर भी रख लो 

मैं-सच में जरुरत नहीं है ,मेरे पास कुल मिला के १६५० रूपये है 

माँ- कहा से लाया तू इतने रूपये 

मैं- मेहनत की है 

पिताजी- बेटा मैं जनता हूँ तुम्हारे दिल में इस वक़्त बहुत गिले शिकवे है जिन्हें दूर करने का शायद ये सही टाइम नहीं है मुझे आज बहुत ख़ुशी है की मेरा बेटा जिमेदार होने लगा है कल तुम जा रहे हो घर से बाहर पहली बार अपना ख़याल रखना एन्जॉय करना पिताजी कमरे से बाहर चले गए 

माँ- ने एक पैकेट मुझे दिया बोली रख ले 

मैं- क्या हैं इसमें 

बोली- तेरे पिताजी लाये है कुछ तेरे लिए ............
खोल कर देखा तो एक कैमरा था , मैं खुश हो गया माँ बोली अब बेटा बाहर जा रहा हैं तो कुछ अच्छी यादे लेकर आना थोड़ी और बातो के बाद वो चली गयी ये घर वाले भी ना इनका सिस्टम कभी समझ आता ही नहीं कभी ये बुरे लगते हैं कभी अच्छे लगते है मैंने पैकिंग के बाद अपनी चटाई ली और छत पर पहूँच गया रात रोज की तरह से ही खामोश थी घर के पीछे वाला कीकर के पेड़ कभी कभी आवाज करके ख़ामोशी में अपने होने का सबूत दे रहा था पिस्ता के दर्शन किये बिना काफ़ी दिन हो गए थे उसका भाई जो आ गया था अब मैं चला जाऊंगा फिर कैसे जुगाड़ हो चांस था ही नहीं 

दिल कर तो रहा था की थोड़ी देर भी उस से बात कर पाता तो ठीक रहता आँखों से नींद गायब थी , ये भी दुश्मन ही थी मेरी दिल में एक और कल के लिए थोड़ी ख़ुशी थी पर थोडा अजीब सा भी लग रहा था मैं और नीनू जोधपुर की गलियों में मस्ती मारेंगे वो भी गजब लड़की थी , सच कहू तो गुस्ताखी कूट कूट कर भरी थी उसके अन्दर, लडकियों वाले गुण कम ही थे उसके अन्दर पिछले कुछ दिनों में कैसे मुझसे घुल मिल गयी थी वो ऐसे लगता था जैसे की मुझमे ही कही हो वो 

सोचते विचारते रात कट गयी, सुबह हुई मैं तैयार हुआ, माँ ने खाने पीने का काफी सामान रख दिया था मना करते करते तो फिर मैं चल दिया अपने नए सफ़र की ओर , स्टेशन पहूँचने में करीब घंटा भर लग गया प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ नहीं थी तो नीनू को ढूंढने में परेशानी ना हुई, उसने बताया की पहले जयपुर जाना होगा वहा से ट्रेन चेंज करेंगे मैं बोला- जहा मर्जी हो ले चलो सरकार हमे सफ़र से क्या लेना देना हमारी मंजिल तो बस आप हो 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#27
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
नीनू मुस्कुराई और बोली- तुम हो क्या मुझे समझ ही नहीं आता ट्रेन आने में थोडा टाइम है तब तक इंतज़ार करते है तो फिर क्या था पकड़ ली बेंच और लगे ताकने आते जाते लोगो को आज मैं बहुत खुश था ज़िन्दगी में पहली बार अपनी मर्जी से कुछ करने वाला था बस मैं था और ये नीला आसमान साथ में मेरी सबसे प्यारी गुडिया 

मैं- नीनू, तुम तो पहले भी गयी होगी जोधपुर 

वो-काफ़ी बार 

मैं- वहा क्या क्या है देखने को 

वो- अब चल ही रहे हो तो फिर खुद ही देख लेना 

मैं- हां ये भी सही हैं 

नीनू- अरे तुम्हारे हाथ में ये बैंड ऐड कैसा लगा है 

मैं- जाने दे ना 

वो- चोट लगी हैं क्या 

मैं- ना ना वैसे ही बस 

वो- अब बता भी ना 

मैं- यार, वो पैसो के जुगाड़ करने के लिए थोडा बहुत काम करना पड़ा तो हाथ में छाले पड़ गए है तो बस वो ही हैं 


नीनू- पर उसकी क्या जरुरत थी तुम्हे, दिखाओ जरा मुझे उसने बैंड ऐड उतरा और मेरे हाथ को देखने लगी उसकी आँख में थोडा पानी सा आ गया , उसने अपने होंठो से मेरे हाथो को चूमा और कहा – यार तुम सच में बस तुम ही हो, ये सब तुमने इसलिए किया ताकि मेरे साथ कुछ वक़्त बिता सको ,इतनी ख्वाहिश मेरी , बात क्या हैं 


मैं- कुछ भी तो नहीं मैं भी घर से बाहर निकलना चाहता था , उड़ना चाहता था इन पक्षियों की तरह नील गगन में घूमना चाहता हूँ ये दुनिया अपने मन की करना चाहता हूँ ,

वो- पर इन सब में मैं कहा फिट होती हूँ क्यों मुझे काफ़ी बार लगता है की हमतुम क्यों ऐसे है 

मैं- क्या कैसे हैं 

वो- ज्यादा बनो ना मैं जो कह रही हूँ, वो इतना भी मुश्किल नहीं की तुम समझ ना सको 

मैं- मुझे क्या पता ,बस इतना है की एक तुम ही हो जो मुझे जानती हो, समझती हो वो तुम ही हो जिसके साथ बस अच्छा लगता हैं , 

हम अपने सवाल जवाब कर ही रहे थे की ट्रेन आने की अन्नौंस्मेंट हो गयी हमारी बात अधूरी रह गयी ,सामान लिए और चढ़ गए ट्रेन में जयपुर तक ही करीब साढ़े चार- पांच घंटे लग जाने थे नीनू बोली मैं खिड़की के पास बैठूंगी मैंने कहा तेरी मर्जी 


इंजन ने दी सीटी और चल पड़ी रेल किसी नागिन की तरह मचलते हुए, मेरा पहला सफ़र शुरू हो रहा था दिल में ख़ुशी थी होंठो पर एक अजनबी मुस्कान, 

नीनू- क्या हुआ 

मैं- आज से पहले कभी ट्रेन में नहीं बैठा था न तो थोडा सा अजीब लग रहा हैं 

वो हंस पड़ी , अगले कुछ ही मिनट में मैं जान गया की क्यों लोग कहते है की किसी को अगर हिन्दुस्तान के बारे में जान न हो तो ट्रेन के जनरल डिब्बे में सफर करे, भीड़ सी भी थी, पर सफ़र शुरू होते ही सब सेट हो गया अजनबी लोगो में बाते शुरू हो गयी,कोई चाय बेच रहा कोई, नमकीन तो कोई कुछ नीनू ने कोई किताब निकाल ली और पढने लगी मैं खिड़की से बाहर देखने लगा भागते हुए, खेत खलिहान पेड़ ये कुदरत का नजारा दिल को मोहने लगा देखते देखते झपकी सी लग गयी पर नीनू ने जगा दिया 


वो- सो गए थे क्या 

मैं- नहीं बस ऐसे ही 

वो- लो चाय पियो 

मैं चाय का कप पकड़ते हुए- बिस्कुट है क्या 

वो- होटल खोल रखा हैं क्या मैंने 

मैं- जा फिर चाय भी रख ले तेरी 

नीनू बिस्कुट का पैकेट मुझे देते हुए, ले खा ले पेटू 

चाय की चुस्कि लेते हुए मैं नीनू को देखने लगा उसके चेहरे पे जो सादगी थी मेरे दिल को बहुत सुकून देती थी वो 

नीनू- क्या घूर रहे हो दे तो दिए बिस्कुट अब क्या मेरे पेट में दर्द करोगे

मैं-तुम इतनी खूबसूरत क्यों हो 

नीनू ने बड़े अजीब तरीके से देखा मेरी और फिर बोली- किस एंगल से तुम्हे खूबसूरत लगी मैं 

मैं- अब सच भी ना बोल सकता क्या मैं 

वो- जगह तो देखो, हम कहा हैं कोई क्या सोचेगा 

मैं- हम्म तो तुम ही बता दो कब करू तारीफ़ तुम्हारी 

वो- जब बस तुम हो बस मैं होऊ 

मैं- अब भी तो बस हमतुम ही हैं 

ऐसे ही खट्टी मिट्ठी बाते करते करते गाड़ी लग गयी जयपुर , स्टेशन पर बहुत भीड़ थी चहल पहल थी अंगड़ाई लेते हुए मैं गाड़ी से उतरा थोडा सा थक भी गया था पर मंजिल आनी अभी बाकि थी ....
सबसे पहले अगली ट्रेन का पता किया करीब दो घंटे बाद की थी थोडा सा आलास सा भी हो आहा था तो मुह वगैरा धोया तरो तजा हुआ फिर हम लोग स्टेशन से बाहर आ गए अब उधर करते भी तो क्या वाही पर एक कोने में पटका सामान अपना और बैठ गए दो घंटे का समय तो काटना ही था किसी न किसी तरह से कुछ थोडा बहुत खाया पिया और लगे सुस्ताने 

मैं-यार जयपुर के बारे में भी बड़ा सुना है, एक दम मस्त सहर है इधर भी घूमके देखना चाहिए 

नीनू- क्यों, नहीं वापिस आते टाइम एक दिन इधर देख लेंगे 

मैं- हां मजा आएगा 

वो- वो सब छोड़ो पर ये बताओ तुम रहने का क्या जुगाड़ करोगे 
मैं- तुम टेंशन ना लो 
वो- टेंशन तो होगी ना, मैं तो मामा के घर रहूंगी मजे से तुम पता नहीं कहा धक्के खाओगे 
मैं-बड़ी फिकर करती हो मेरी 
वो- अब जब तुम साथ चिपक ही गए हो तो थोड़ी बहुत फिकर तो करनी ही पड़ेगी ना 
मैं- देख लो फिर कही तुम्हे आदत ना हो जाये 
वो बड़ी तेजी से खिलखिलाते हुए- आदत और तुम्हारी ना जी ना 
मैं- तो फिर जाने दो , तुम आराम से मामा के घर रहना अपनी तो जैसे तैसे कट जाएगी 

वो- तुम जानो तुम्हारा काम जाने ट्रेन टाइम से मिल जाती तो थोडा पहले पहूँच जाते 
मैं- अब इसका दोष भी मुझे ना देना यारा 
वो- दोष क्या देना तुम तो हो ही पनोती मेरे लिए 
मैं- हां जैसे तुम तो पक्का ही गुड लक हो मेरे लिए 
वो- मैं अगर इतनी ही बुरी हूँ तो फिर क्यों मेरे आगे पीछे मंडराते रहते हो जाओ मुझे नहीं करनी तुमसे कोई बात
अब इन लडकियों के नखरे हजार , ना कुछ कहो तो परेशानी कुछ कहो तो परेशानी आदमी करे तो क्या करे अगले कुछ मिनट उसके रूठने मनाने में चले गए जयपुर की उफनती गर्मी में हमारी बातो की नरमी मैं बाहर से दो आइसक्रीम ले कर आया वो झट से खुश हो गयी बातो बातो में टाइम का कुछ पता ही नहीं चला वैसे भी जब वो मेरे साथ होती थी तो समय कब कट जाता था पता ही नहीं चलता था कुछ तो था मेरे और उसके दरमियान जिसका पता नहीं चल रहा था 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#28
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
धुप में छाँव का अहसास करवाती उसकी मोजुदगी जब वो खिलखिलाए तो लगे की जसे बागो में कोई कोयल कूकने लगी हो , खैर टाइम था बीत गया नियत समय से कुछ लेट चली रेल जोधपुर की तरफ गाडी में जबरदस्त भीड़ थी तो जगह मिली नहीं तो वाही दरवाजे के पास ही बैठ गए ठंडी हवा में लहराती उसकी वो घनी जुल्फे खाए हिचकोले मारा मन , ये मन भी बड़ा बावला सा ना वो कुछ कहे ना मैं बस मुस्कुराये एक दूजे को देख देख कर , ट्रेन में एक बंजारों का समूह सफ़र कर रहा था , शायद नाचने गाने वाले थे 

सफर शुरू हुआ तो एक लड़की ने छेड़ दिया तराना अक्य गाना गा रही थी वो “साथ छोडू ना तेरा चाहे दुनिया जो जुदा ”
ऐसा ही कुछ गाना था पर कसम से समा से बाँध दिया था उसने सभी मुसाफिरों को मन मोह लिया उन्होंने नीनू ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और हल्का सा दबा दिया मैंने पूछा- कुछ कहना है है उसने बस ना में गर्दन हिला दी पर आँखे बहुत कुछ कह गयी थी रास्ता लम्बा स्टेशन आये जाये पर जाने हमारा सफ़र कब ख़तम होगा कभी इतना लम्बा सफ़र किया तो था नहीं तो थोड़ी परेशानी सी होने लगी पर अपने बस में क्या था , रात हो गयी थी ठण्ड सी भी हो गयी थी कुछ नीनू बोली- मैं तो मामा के घर चली जाउंगी पर तुम कहा रुकोगेमैं- बार बार एक ही सवाल ना पूछ 

वो- पर फिर मुझे नींद नहीं आएगी वहा 
मैं- क्यों ना आएगी भला 
वो- ख्यालो पर तो कब्ज़ा तुमने कर लिया है 
मैं- ये इल्जाम गलत है तुम्हारा 
वो- अच्छा जी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे 

ऐसे ही हमारी नोक-झोंक चलती रही और हम लोग पहूँच गए रजवाडो की नगरी में ट्रेन से उतर कर ऐसी फीलिंग आई जैसे की कोई जंग ही जीत ली हो रात आधी से ऊपर हो गयी थी पर स्टेशन पर रोनके आबाद थी, मैं और नीनू ने पकड़ी एक बेंच और कर लिया कब्ज़ा, 
वो- मैं तुम्हारे साथ ही रूकती हूँ रात भर सुबह होते ही मामा के घर जाउंगी 
मै- रात अभी बाकी पड़ी है एसटीडी से मिलाओ फ़ोन और चली जाओ 
वो- तुम्हे छोड़ के जाने का जी नहीं कर रहा 
मैं- तो फिर एक काम करो जाओ ही मत ना 
वो- जाना तो पड़ेगा ही ना 
मैं – तो जाओ फिर 
वो- जाना भी नहीं चाहती 
मैं- तो मुझे भी ले चलो 
वो- टांग ना खीचो बार बार 
मैं- तुम टेंशन ना लो, मैं कर लूँगा जुगाड़ कुछ न कुछ मैंने सुना है की बड़े शहरों में धर्मशाला भी तो होती है उधर ही देखूंगा क्या होता है आज की रात तो इधर ही काट लूँगा कल का कल देख्नेगे 
वो- हम्म
मैं- पर हम मिलेंगे कैसे 
वो- तुम उसका मत सोचो देखो कल तो मैं बिजी रहूंगी , मामा मामी दोनों मास्टर है तो वो जायेंगे स्कूल और मैं आ जाउंगी तुम्हारे साथ गलिया नापने 
मैं- कामिनी हो पक्की वाली 
वो- सब तुम्हारी सोहबत का असर हैं जनाब 
मैं- तो फिर दूर क्यों नहीं जाती 
वो- जिस दिन जाउंगी तकलीफ होगी तुम्हे 
मैं- मैं जाने ही ना दूंगा 
वो- रोक भी तो ना पाओगे 
मैं- तब की तब देखेंगे 
वो- तुम्हारे बड़े सपने 
मैं- साथ दोगी मेरा 
वो- किस चीज़ में 
मैं- तुम्हे सब है पता 
वो- तुम्हारी बाते तुम ही जानो 
मैं- तो फिर जीकर क्यों करती हो 
वो- बस ऐसे ही 
मैं- यु कहर ना ढाया करो 
वो- मैंने क्या किया 
मैं- अपने आप से पूछो 
वो- तुम ही बता दो 
मैं- चलो फिर जाने दो
सफर की थकन बोझिल जिस्म रात का समय आँखों में चढ़ने लगी नींद की खुमारी पर सुबह होने में कुछ ही घंटे बचे थे तो सोना किसे था वोस अमे भी नीनू के साथ सची झूठी बाते करके गुजर गया भोर हुई दिन निकला अब हमे हम लोग अलग नीनू ने ऑटो लिया और चली गयी मामा की घर मैंने अपने बैग को टंका कंधे पर और ढूँढने लगा कोई धरमशाला , अजनबी सहर अनजान लोग दोपहर हो गयी एक दो जगह ट्राई किया पर पता चला की आई डी के बिना कमरा किराये पर नहीं मिला करता है अब हुई परेशानी जोर की एक तो वैसे ही आँखों में बड़ी नींद उमड़ रही थी ऊपर से कोई जुगाड़ हो नहीं रहा था अब किया तो क्या जाये नीनू के सामने तो बड़ी बड़ी डींगे मारी थी पर हकीकत में अब बैंड बजने वाला था 


भूख भी लग आई थी तो पहले दबा कर भोजन किया बेस्वाद सा कुछ मजा नहीं आया पेट तो भर गया था पर जीभ नहीं मान रही थी शाम होने को आई सहर को नाप रहे इधर से उधर दो चार और धरमशाला के चक्कर लगाये पर वो कहते है न की जब तकदीर हो गांडू तो क्या करे पांडू तो बस वही हाल अपना , किसी ने बताया की सहर में जो फोर्ट बना हुआ है न उधर टूरिस्ट बहुत आते है कुछ लोग वहा पर भी रात- दो रात के लिए कमरे दे देते है उधर देख ले क्या पता तेरा काम बन जाये अब अनजान सहर ऊपर से रात होने वाली कुछ पैसे मेरे पास डर सताए की कही कोई लूट ना ले समस्या बड़ी विकट होती जा रही 


ऐसे ही रात के दस से ऊपर ह गए शारीर मेरा दर्द से बुरी तरह फट रहा नींद सताए वो अलग से रोड किनारे बने फुटपाथ पर बैठा मैं गहन सोच में डूबा था की तभी मैंने देखा एक स्कूटी को कार वाले ने साइड मार दी और भाग गया ओह तेरी ये क्या हुआ , अब सुनसान सड़क ऊपर से ये घटना मैं दोड़ता हुआ भगा स्कूटी की तरफ तो देखा की एक महिला रोड के साइड में गिरी हुई थी गनीमत थी की होश में थी मैंने उसको जी तैसे उठाया और पुछा – ठीक हो आप पर वो बहुत ही घबराई सी हो रही थी अब चोट भी लगी उसका मुझे अंदाजा नहीं था 


मेरा पैर मेरा पैर दर्द से रोते हुए बोली वो – मैंने देखा की उसके पैर से खून निकल रहा है उसकी सलवार खून से लाल हो रही थी , मैंने कहा- आप घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा लो पहले थोडा सा पानी पियो मैंने बैग से पानी को बोतल दी उसको तब जाके वो थोड़ी सी संयंत हुई 


मैंने पुछा- पैर को देखू, उसने हां में सर हिलाया मैंने उसके पैर को सीधा किया और देखा जांघ के ऊपर और पिंडलियों पर चोट लगी थी वो दर्द से बेहाल हो रही थी मैंने कहा आप हिम्मत रखिये मैं अभी आपको हॉस्पिटल ले चलता हूँ , अब मैंने कह तो दिया की हॉस्पिटल पर अजनबी सहर का मुझे क्या पता 


तभी वो औरत बोली- इधर पास में ही एक प्राइवेट नर्सिंग होम है वहा तक पंहूँचा दो मुझे मैंने स्कूटी को उठाया डेंट पड़ गया था लाइट टूट गयी थी पर किस्मत की बात स्टार्ट हो गयी मैंने उस महिला को मस्सक्त करके एडजस्ट किया और उसके बताये रस्ते प् चल दिया अब स्कूटर तो खूब छापा हुआ था पर ये स्कूटी जिसमे गियर ही न था चलाने में अजक सी आये पर उसको पंहूँचा ही दिया डॉक्टर ने उसको कर लिया एडमिट मैं वाही पर बैठ गया एक तो वैसे ही थका हुआ मैं नींद करे परेशान अलग से करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर ने मुझे बुलाया और कहा की आप के साथ जो लेडी थी उनकी ड्रेसिंग कर दी हैं हमने शुकर है उनको ज्यादा चोट नहीं लगी जांघ पर खाल चिल गयी थी उधर पट्टी बाँध दी है हां पर कमर पर ज्यादा लगी है 


तो उधर का थोडा ध्यान देना होगा , मैंने दवाई लिख दी है मेडिकल से ले लेना और एक घंटे बाद आप उन्हें घर ले जा सकते है मैंने पर्ची ली और मेडकल पे दवाई लेकर आया इलाज का खर्च और दवाई इनसब में २२०० रूपये लग गए , फिर मैं अन्दर गया उस औरत के पास वो लेती हुई थी मैंने- कहा अब ठीक है आप 

वो- हां थैंक्स आपने हेल्प की 

मैं- ये तो मेरा फ़र्ज़ था अभी आप ज्यादा स्ट्रेस ना लो डॉक्टर ने बोल दिया है की बस थोड़ी देर मं् आप घर जा सकती है वो मुस्कुराई और बोली- सच में मेरे लिए तो आप किसी फ़रिश्ते से कम नहीं है अगर राईट टाइम पर आप मेरी हेल्प को नहीं आते तो पता नहीं क्या होता मैं आप खामखा ही ऐसे बोल रही है बस आपकी किस्मत अच्छी है की ज्यादा चोट नहीं लगी 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#29
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वो मुस्करा पड़ी मैंने भी स्माइल दे दी, बाते करते करते मैंने उसके ऊपर गोर किया उम्र में कोई २७-२८ की ही होगी थोड़ी सी सुन्दर से लम्बी सी और पतली सी पर बस इतना ही ध्यान दिया मैंने उस पर कुछ देर बाद डॉक्टर ने हमे छुट्टी दे दी वो मेरे सहारे बाहर तक आई उसने कहा – रात बहुत हो गयी है एक हेल्प और करेंगे प्लीज 

मैं- जी कहिये 

वो- मुझे मेरे घर तक पंहूँचा देंगे 

मैं – जी ठीक है 

तो करीब आधे-पोने घंटे बाद हम उसके घर पर थे उसने अपना बैग मुझे दिया और बोली चाबी निकाल के ताला खोलो मैंने वैसे ही किया और हम अन्दर आये बस एक ही कमरा था वो मैंने उसको बिस्तर पर लिटाया और कहा जी अब आप आराम कीजिये मैं चलता हूँ 

वो- अरे रुकिए तो सही, आपने मेरी हेल्प की कम से कम मुझे शुक्रिया कहने का मोका तो दीजिये 

मैं- जी आप मुझे शर्मिंदा कर रही है वो बस डॉक्टर के यहाँ २२०० रूपये खर्च हुए है वो दे दीजिये वो क्या हैं न की मैं इस सहर में नया हूँ इतने ही पैसे तो वो डॉक्टर ने ले लिए अभी मुझे दस पंद्रह दिन यही रहना है तो पैसे तो चाहेंगे ही 


वो- हां क्यों नहीं तो आप कहा रुके हैं 

मैं- जी कही नहीं काफ़ी धरम शाला में कमरे के लिए ट्राई किया पर वो आई दी नहीं है तो रूम नहीं मिला 

वो- तो अभी इत्ती रात को कहा जाओगे 

मैं- कुछ ना कुछ जुगाड़ तो कर ही लूँगा 

वो- आप यही रुक जाओ , 

मैं- नहीं नहीं मैं यहाँ कैसे रुक सकता हूँ 

वो- आपने मेरी हेल्प की तो क्या मैं आपको अपने घर पर रोक भी नहीं सकती
मैं- जी आपकी बाते ठीक हैं पर मेरी ना थोड़ी समस्या हैं 
वो- बताओ जरा 
मैं- वो दरअसल बात ये है की आज तो आप के यहाँ रह जाऊंगा पर कल फिर अपन को तो कोई ठिकाना ढूंढना ही है अब करीब दस बारह दिन तो इस सहर में रहना है बताओ क्या करू 

वो- बस इतनी सी बात, आप का जब तक जी करे आप मेरे घर रुक सकते है आज से आप मेरे ख़ास मेहमान हुए 
मैं- आपको खामखा तकलीफ होगी 
वो- कैसी तकलीफ वैसे भी हम राजस्थानी लोगो की मेहमान नवाजी तो पुरे विश्व में मशहूर है दूसरी बात ये ही आप के अन्दर एक इंसान है वर्ना आजकल कौन कहा इस सहर में किसी की बिना स्वार्थ से मदद करता है 

तो जनाब अपने को ठोर मिल गयी मैंने वाही फर्श पर डेरा लगाया और सो गया दो दिनों की जबर्स्दस्त थकन आँख ऐसी लगी की बस पूछो ना होश जब आया तो मैं उठा पर बदन में थोडा सा दर्द सा हो रहा था मैंने घडी देखि तो उस पर दस बज रहे थे , मैंने हालात पर गोर किया तो कल रात की कहानी नजरो के सामने आई , मैंने देखा वो औरत भी सोयी पड़ी थी मैंने उसको जगाना मुनासिब ना समझा नींद में चूर खोयी होगी अपने रंग-बिरंगे सपने में वो कुछ दवाई का असर भी था 

हाथ-मुह धोया थोड़ी ताजगी मिली पास में ही उसका गैस स्टोव रखा था मैंने सोचा चाय ही पि लू फिर सोचा एक कप इसके लिए भी बना देता हूँ ये जिंदगी का सफ़र भी बड़ा अजीब सा होता हैं कुछ बाते अचानक से ऐसी हो जाती है जिनके बारे में हम कभी सोचते भी नहीं अब देखो मैं एक अनजान के घर चाय बना रहा था जिसका नाम भी मुझे मालूम नहीं था चाय को कपो में डाला और मैंने उस मोहतरमा को जगाया 

अंगड़ाई लेती सी उठी वो, मैंने कहा चाय लो एक बार तो मुझे देख कर वो भी चक्कर में पड़ गयी पर थोड़ी नींद खुली तो उसको भी समझ आया 

वो- आपने क्यों तकल्लुफ किया मैं बना देती 
मैं- कोई ना 
अभी ठीक हो , 
वो- हम्म दर्द है पीठ में 
मैं- हो जायेगा ठीक 
वो चाय की चुस्की लेते हुए मुस्कुराई 
आप अकेली रहती हो पूछा मैंने 
वो- हां, कुछ महीने पहले ही इधर तबादला हुआ हैं 
मैं- नोकरी करती हो 
वो- हां, अध्यापिका हूँ प्राइमरी में पढ़ाती हूँ 
मैं- बहुत बढ़िया 
और घरवाले 
वो- मेरे पति भी नोकरी करते इनकम टैक्स में , सास-ससुर गाँव में रहते अब नोकरी करनी है तो धक्के खाने पड़ते 
मैं- वो तो है पर अकेले रहने में परेशानी तो आती होगी ना 
वो- अब नोकरी भी तो जरुरी है 
आप क्या करते 
मैं- जी अभी तो स्टूडेंट हूँ एक ब्रेक था कुछ दिन का तो इस सहर में घूमने चला आया 
वो- अकेले 
मैं- ना जी एक दोस्त भी है 
वो- कहा है वो 
मैं- उसके मामा है इधर तो वो उधर रुकी है 
वो- लड़की है 
मैं बस हस दिया 
वो- गर्लफ्रेंड है तुम्हारी 
मैं- नाना बस दोस्त है 
वो- कही घर से भाग कर तो ना आ गए हो 
मैं- आपको क्या लगता 
वो- डॉन’टी वोर्री मजाक कर रही थी मैं जरा फ्रेश उप हो लू फिर आराम से बाते करुँगी आपसे 
मैं- जी बिलकुल 
वो दिवार का सहारा लेकर खड़ी हुई, उसके पैर में दर्द था मैंने कहा – ज्यादा दर्द है 
वो- हम्म 
मैं- आप आराम कीजिये 
वो थोडा सा सकुचाते हुए- बाथरूम यूज़ करना था 
मैं- मैं पैर मुद पायेगा 
वो- कोशिश तो करनी पड़ेगी 
ये थोडा सा अजीब हो रहा था अगर वो नीनू, या पिस्ता होती तो अलग बात थी पर यहाँ पर कहानी थोड़ी अलग थी 
मैं- देखिये इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता 
वो भी समझी मेरी बात को और बोली – थोडा सहारा देकर बाथरूम तक छोड़ दो मुझे 
मैंने वैसा ही किया अब सुख पाए या दुःख थोडा बहुत तो एडजस्ट करना ही पड़ेगा करीब आधे घंटे बाद वो बाथरूम स बाहर आई मैंने उसको कुर्सी पर बिठा दिया 
ठीक हो मैंने कहा 
वो- हूँ 
मैं- वो डॉक्टर ने कहा था की पीठ और जांघ पर दवाई से मालिश करनी है उसका ध्यान रखना मैं बाहर जाता हूँ कुछ खाने पीने को ले आता हूँ 

और मैं आ गया, लोगो से होटल के बारे में पूछा थोडा दूर था पर मैं पहूँच ही गया दो लोगो के लिए खाना पैक करवाया फिर एसटीडी पे जाके जो नंबर नीनू ने दिया था उसपे कॉल किया थोड़ी देर रिंग जाती रही फिर कॉल पिक हुई, दूसरी तरफ जो आवाज सुनी तो दिल को करार आया 
बाते शुरू हुई- 
मैं- क्या कर रही हो 
वो- बस अभी फ्री हुई 
मैं- कल कहा मिलोगी 
वो- मैं ११ बजे तक फोर्ट आ जाउंगी एंट्रेंस पर ही मिलना मुझे 
मैं- ठीक है , यार तेरे बिना बन नहीं लग रहा है 
वो- बाते बहुत बनाते हो तुम 
मैं- सच तो बोला 
वो- रात को क्या हुआ , रूम मिला 
मैंने उसको पूरी राम कहानी बताई 
वो- चलो जो हुआ ठीक हुआ तुम्हारी एक परेशानी तो दूर हुई 
मै- हां यार चल फिर कल मिलते है अभी फ़ोन का बिल आ रहा है रखता हूँ 
मैंने पैसे चुकाए अपना पैकेट संभाला और पैदल पैदल चल दिया
जब मैं घर पंहूँचा तो अध्यापिका जी अपने पैर पर दवाई लगा रही थी मुझे देख पर उन्होंने अपनी मैक्सी को नीचे कर लिया मैंने खाने का पैकेट रखा साइड में और उनके पास ही बैठ गया 

मैं- मास्टरनी जी खाना खाले 

वो- मास्टरनी तो मैं स्कूल में इधर नहीं 

मैं- तो इधर क्या हो 

वो- थोडा सा हस्ते हुए, इधर मैं बस रति हूँ 

मैं- बड़ा प्यारा नाम है आपका 

वो- अब ये तो नहीं पता की प्यारा है या नहीं पर बस नाम है 

मैं- आप अपने घरवालो को तो खबर कर देते कोई ना कोई आ जाता आपके पास 

वो- नहीं करनी कोई खबर उनको मैं ऐसे ही ठीक हूँ 

मैं- देखो मुझे नहीं पता ये बात कहनी चाहिए या नहीं पर इस समय आपको उनकी जरुरत है मुझे ऐसे लगता है 

वो- चलो खाना खाते है इस बारे में बाद में बात करेंगे 
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12-29-2018, 02:30 PM,
#30
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
अगला कुछ वक़्त बस ख़ामोशी में बीत गया काफ़ी दिनों बाद मैंने बाहर का खाना खाया था तो मुझे तो मजा आ गया , अब करने को कुछ था नहीं तो खाते ही मैं थोड़ी देर लेट गया फिर सीधा शाम को ही उठा, रति पास म ही बैठी कुछ कर रही थी वो मेरी और देखि और बोली 

रति- सोते बहुत हो तुम 

मैं- हां, सभी ऐसा कहते हैं मुझे आप बताओ 

वो- मैं क्या बताऊ, 

मैं- कुछ अपने बारे में 

वो- कुछ खास नहीं है बस लाइफ कट रही है इतना काफी हैं मेरे लिए सब ठीक ठाक ही था पर कल मुसीबत आन पड़ी ये पूरी टांग ही छिल गयी है दोपहर में मैंने देखा काफ़ी दिन लगेंगे जख्म ठीक होते होते और निशाँ तो रह ही जायेंगे 

मैं- आपके भाग की बात है वर्ना हादसे में क्या हो जाये 

वो- हां, 

मैं- रति बुरा ना मानो तो एक बात पूछ सकता हूँ 

वो- बुरा मानने की क्या बात है पूछो जो पूछना है 

मैं- तुम्हारी इन खूबसूरत आँखों में एक अजीब सी ख़ामोशी नजर आती हैं मुझे 

वो- ऐसा क्यों लगा तुम्हे 

मैं- तुम्हे मुझसे ज्यादा पता हैं ना 

वो- हां 

मैं- अब जो औरत अजनबी को घर में पनाह दे सकती है वो दिल कि बुरी तो हो नहीं सकती तो फिर तुमको क्या गम हो सकता है 

वो- सच मेमें सही हूँ मस्त हूँ 

मैं- देखो मेरा कोई हक तो नहीं है पर दिल में कोई बात हो तो उसे बता देना चाहिए क्या होता है काफ़ी बार हम घुटते रहते है दो पल के लिए मुझे अपना दोस्त मान कर ही शेयर कर लो 

वो- अब छोटी मोटी परेशानिया तो चलती ही रहती हैं ना उसके बारे में क्या सोचना 

मैं- हां बिलकुल चलो छोड़ो इन सब बातो को बस जल्दी से ठीक हो जाओ आप यही दुआ हैं मेरी तो 

वो मुस्कुराई 

मैं- कल तो सहर को घुमुंगा अच्छे से शाम को ही आऊंगा मैं 

वो- ठीक है जैसे आप चाहो 

वो- अपने बारे में बताओ कुछ बातो से तो बड़े दिलचस्प टाइप लगते हो 

मैं- कुछ ख़ास नहीं है मेरे बारे में बस जिंदगी शुरू हो रही है धीरे धीरे से आँखों में कुछ सपने है छोटे मोटे ख्वाब पुरे करने की आस है बस यही अपनी कहानी हैं 

वो- हम्म 

मैं- आपने तो पूरा सहर अच्छे से देख लिया होगा ना, मैंने मेहरानगढ़ के किले के बारे में बहुत सुना है और ये भी की जोधपुर का तक़रीबन हर घर नीला है 

वो- नहीं जी, काम से इतनी फुर्सत ही नहीं मिलती हां थोडा बहुत देखा है पर पूरी तरह से नहीं 

मैं- तो जब आपके वो आये तो जाओ उनके साथ कही पे 

वो- उनके पास वक़्त ही कहा मेरे लिए 

मैं- ऐसा क्यों भला वो- कभी समझ ही नहीं पाई उनको 

३ साल हुए शादी को , कुछ ज्यादा बात नहीं हूति हमारे बीच में बस हाय- हेल्लो इ फॉर्मेलिटी के अलावा पता नहीं उन्हें मुझ में क्या कमी नजर आती है ३ साल में एक बार भी नहीं देखा उन्होंने मेरी तरफ , बात करने की कोशिश की मैंने पर कुछ नहीं ...............


कमरे में एक ठंडी सी ख़ामोशी च गयी थी हम दोनों के दरमियान कुछ निजी सवाल अपने लिए जवाब मांग रहे थे रति जूझ रही थी अपनी ही परेशानियों से और मैं एक मुसाफिर अनजाना 

पर तुम में क्या कमी है 

वो- मेरे पति किसी और को चाहते हैं पर घरवालो के दवाब में उनको मुझसे शाद्की करनी पड़ी अब बताओ इसमें मेरा क्या दोष हैं अगर उनको प्रॉब्लम थी तो बात कर सकते थे अब मुझे लटका दिया गरीब माँ- बाप की बेटी हूँ नोकरी मिल गयी तो अच्छे रिश्ते के कारण ब्याह कर दिया मेरा पर अब हाल देखो मैं अपना हाल किस से कहू, कहते कहते रती की आँखे डबडबा आई मोटे मोटे आंसू बह चले 



मैं भी थोडा सा उदास सा हो गया पर इन हालातो पर किसका काबू होता है जनाब उसकी सिसकिय कही ना कही मरे दिल में घाव कर रही थी हम तो अपने आप को कोसते थे की हम दुखी है जब रखा घर से बाहर कदम तो मालूम हुआ की गम होता क्या हैं मैंने रुमाल उसको दिया और कहा – पोंछ लो इन आंसुओ को ये बहुत कीमती होते है , अगर आंसुओ से किसी समस्या का हल निकलता तो आज कोई दुखी नहीं होता लो थोडा पानी पियो जी हल्का होगा तुम्हारा 


रती देखो तुम्हारे पति का जो भी मेटर हो , वो उनका पर्सनल है पर जब उन्होंने तुम्हारा हाथ थमा तो उसी लम्हे से वो तुमसे जुड़ गए और फिर कहते हैं न की पति पत्नी तो जन्म-जन्मान्तर के साथी होते है देखो तुम अब जब भी मिलो उनसे तस्सली से बात करो उम्मीद है सब ठीक हो जायेगा ये दुरिया कब मिट जाएगी तुम्हे पता भी नहीं चलेगा 

बातो बातो में रात काफी हो गयी थी तभी उसके पाँव में दर्द होने लगा 

मैं- लाओ मैं दवाई लगा देता हूँ 

वो- नहीं मैं लगा लुंगी 

मैं- अपने इस दोस्त को इतना भी हक़ ना दोगी उसने बिना कुछ कहे ट्यूब मुझे दी और लेट गयी 


मैंने मैक्सी को थोडा सा ऊपर किया काफी खाल चिल गयी थी उसकी वो जख्म ऐसा लगा जैसे की चाँद में दाग लगा दिया हो किसी ने मैंने दवाई ली और धीमे से उसको टच किया आः आह हलके से वो सिसक पड़ी ..
रती की दूधिया जांघो पर वो जख्म ऐसे लग रहा था जैसे की चाँद पर कोई दाग हो , मैंने उसकी टांग को थोडा सा और अपनी तरफ खीचा तो वो बोल पड़ी- आहिस्ता से


उसकी मैक्सी थोड़ी सी और ऊपर को हो गयी मुझे उसकी आधे से ज्यादा जांघो का नजारा मिल रह था पर मैं उस चीज़ के बारे में सोचना नहीं चाहता था मैंने फिर से मेरे हाथ से उसकी जांघ को दबाया पर पुरुष के स्पर्श से रती को थोडा सा तनाव भी हो रहा था उसकी केले के तने जैसी चिकनी टांगे बहुत मस्त लग रही थी उन मक्खन सी टांगो पर मेरे खुरदुरे हाथो को सपर्श अब मैं इस से ज्यादा और क्या कहू


मैंने रुई के फाहे को डेटोल से भिगोया और उसके जख्म को साफ़ करने लगा सीईईई की आवाज निकली उसके मुह से अब डेटोल की वजह से दर्द तो होना ही था मैंने कहा – बस बस हो गया दो तीन बार अच्छे से रुई को फिराया मैंने आस पास फिर क्रीम लगाने लगा मैं बहुत आहिस्ता से उसके पाँव पर अपना हाथ फिर रहा था रती के गोरे चेहरे पर एक गुलाबीपन सा उतर आया था धीरे धीरे से मैंने पूरी दवाई वहा पर लगा दी और उसकी मैक्सी को नीचे कर दिया 


शुक्रिया- कहा उसने पीठ पर भी दवाई लगा दो कल भी नहीं लगा पाई थी मैं 

मैं- वो थोडा सा मुश्किल होगा क्योंकि उसके लिए . मैंने बात अधूरी छोड़ दी

वो- मैं खुद तो लगा नहीं पाऊँगी , और फिर दर्द के मारे पूरी रात नींद भी नहीं आएगी 


मैं- पर मैं कैसे .......... 

वो- मैं समझती हूँ तुम्हारी कशमकश पर तुम्हे दोस्त समझा है तो इतना तो ट्रस्ट कर ही सकती हूँ ना 

मैं- हां, तभी मुझे आईडिया आया मैंने बल्ब बंद कर दिया मैंने कहा अब ठीक है इस तरह तुम्हारे मेरे बीच पर्दा भी रहेगा और दवाई भी लगा दूंगा एक्चुअली मेरे मन में उसके प्रति थोडा सा अलग भाव था तो मैं उसको उस नजर से नहीं देखना चाहता था वर्ना मैं तो ठरकी नंबर वन


अंदाजे से मुझे पता चल गया था की रती साइड में होकर लेती है मैंने कहा मैं हाथ रखता हूँ तुम बताना कहा पर स्पॉट है वो- ठीक हैं 
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