Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:33 PM,
#51
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
फिर थोडा टाइम हम लोग उन तस्वीरों को ही देखते रहे कुछ बेचैनी सी थी कुछ ख़ामोशी थी कुछ बात थी जो लबो तक आने से पहले ही दम तोड़ रही थी, दिल थोडा सा अजीब हो रहा था देखा जाये तो बस कल का ही दिन तो था मेरे पास जो मैं रति के साथ बिता सकता था, एक दिन जयपुर भी देखना था हमे , मैं चाहे लाख कोशिश करू पर नीनू मानेगी ही नहीं उसको वैसे भी घूमना फिरना बड़ा पसंद था और अगर मैं ज्यादा उसको कहता तो मेरी मनोदशा को मुझसे बेहतर समझती थी वो


मैं चुपचाप उठा और अपने गंदे कपड़ो को धोने लगा तयारी जो करनी थी वापसी की पल पल ऐसे लग रहा था की जैसे हाथो से कुछ छुट रहा हो पर जाना तो था ही, रुके भी तो किस हक से
वो रात भी कुछ मचलते अरमानो की सुलगते अरमानो के बीच बीत गयी, मैं रति को उस हद तक प्यार करना चाहता था उस पूरी रात हम दोनों एक पल भी नहीं सोये कभी वो मुझे छेड़े कभी मैं उसे, उसका गदराया जिस्म मेरे उफनते जज्बात, सुबह अपनी लाल आँखों में चढ़ आई नींद से आंखमिचोली होने लगी, पर हम जैसो को सुकून कहा होता हैं 


नाश्ते के बाद मैं अपने बैग को सही कर रहा था तो रति बोली-“नीनू को लेकर आना मुझे मिलना है उस से ”

मैं- ठीक है 

मैं एसटीडी तक गया और नीनू को बताया की रति उस से मिलना चाहती है तो वो मान गयी वैसे भी टाइम बहुत कम था हमारे पास आज शाम को हमे जयपुर के लिए निकलना था ये बिच्दन भी कमाल की होती है मैं पता नहीं क्यों रति से जुदा नहीं होना चाहता था पर वो बस एक मुकाम थी मेरे लिए मेरी मंजिल नहीं थी मेरे मन में कही ना कही एक आस थी उसको अपना बना लेने की पर अफ़सोस ये मुमकिन नहीं था 


करीब घंटे भर बाद नीनू मुझे मैं चोराहे पर मिली मैं उसको साथ लिए लिए रति के मकान की तरफ बढ़ने लगा

नीनू- कौन है वो 

मैं- मेरी एक खास दोस्त 

वो- अजनबी लोगो से दोस्ती ठीक नहीं होती 

मैं- अब अजनबी कहा रही वो 

वो- अच्छा जी ,आज कल तेवर बदल गयी है आप के 

मैं- मुझे भी ऐसा लगता की मैं बदलने लगा हूँ 

वो- और इस बदलाव की वजह जान सकती हूँ मैं

मैं- क्या पता 

बाते करते करते हम लोग रति के कमरे पर पहूँच गए अन्दर गए तो मैंने देखा की रति ने कमरे को सलीके से सजा सा दिया था , बड़े प्यार से मिली वो नीनू से , 

रति- तो आप हो वो जिसकी बाते ये दिन रात करता रहता है 

नीनू- बस शर्मा कर रह गयी 

रति- मेरी चाह थी आपसे मिलने की, वैसे भी आप लोग आज जा रहे हो तो मैंने सोचा मुलाकात हो जाये एक छोटी सी 

नीनू- मैं भी आपसे मिलना चाहती थी 

नीनू का तो स्वभाव ही था बातूनी और ऊपर से जब दो लडकिया आपस में मिल जाए तो फिर उनकी बाते कहा थमने का सोचती है बातो बातो में दोपहर के खाने का टाइम हो गया रति ने हमे खाना परोषा नीनू को उसके हाथ का खाना बहुत पसंद आया , तीन बजने को आये थे नीनू ने कहा – अब मुझे जाना होगा वो क्या हैं की शाम की ट्रेन है तो थोडा टाइम मामा- मामी की साथ भी बिता लुंगी फिर सीधा स्टेशन ही मिलूंगी तुम्हे


वो चलने लगी तो रति ने उसको रोक लिया और बोली- नीनू मुझे तुमसे कुछ कहना है 

नीनू- जी कहिये 

रति- नीनू, बात ये है की मैं जानती हूँ की तुम दोनों दोस्ती से थोडा सा आगे हो , पिछले कुछ दिनों में इसको मैंने बहुत जान लिया है, नीनू मैं नहीं जानती की मेरा ये बात करना ठीक है या नहीं , क्योंकि मैं नहीं जानती की तुम्हारे विचार क्या है तुम किस तरह से सोचती हो पर हां इतना जरुर है की , मुझे लगता हैं तुम दोनों बेस्ट हो एक दुसरे के लिए 


“ तुम इसका हाथ थामे रखा कभी मत छोड़ना तुम दोनों का जो ये बंधन है ना ये ऐसे ही नहींजुड़ा है , पूरक बनोगे तुम दोनों बस इतना ही कहना था तुमसे बाकी तुम खुद भी समझदार हो आसा करुँगी तुम इस बात पर गौर करोगी ”


नीनू को समझ नहीं आया को वो कैसे रियेक्ट करे और ना मुझे समझ आया नीनू बस इतना बोली की- मैं मैं सोचूंगी इस बारे में और घर से बहार निकल गयी कुछ सवाल अपने साथ ले गयी कुछ मेरे लिए छोड़ गयी 
मैं रति से मुखातिब होते हुए बोला- तुमने ऐसा क्यों कहा उस से वो मुझे नहीं चाहती है 

रति- कहना जरुरी था क्योंकि तुम कभी उस से नहीं कह पाते और ना वो बोल पाती पर मैंने तुम्हारे दिल को समझ लिया है और वैसे भी इस से बेहतर तोहफा मैं तुम्हे कहा दे पाती , कम से कम इस बहाने से मैं तुम्हे याद तो आती रहूंगी 

मैं- मेरे दिल में तुमने एक अलग मुकाम बना लिया है चाहे मैं इस दुनिया को भूल जाऊ, इस खुदाई को भूल जाऊ, अपने आप को भूल जाऊ, पर तुमको ना भूल पायेंगे 

रति की आँखों में आंसू आ गए वो आगे बढ़ी और मेरे लबो को चूम लिया उसके चुम्बन से मेरे बदन में सरसराहट दोड़ गयी पर इस चुम्बन में वासना ना होकर एक पवित्रता थी एक निश्चलता थी मुसाफिर को एक बार अपने अनचाहे सफ़र पर निकल पड़ना था रति का मन भी कुछ भारी भारी सा होने लगा था जैसे की वो खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी पर कामयाब नहीं हो पा रही थी भावनाए उमड़ रही थी पर जज्बातों पे काबू करना बहुत जरुरी था 


तेरी बाहों की पनाह से दूर हो जाना था मुझे सदा के लिए , काश इस वक़्त पर मेरा कोई जोर चलता तो भर लेता तुझे अपने आगोश में इस कदर, की मेरी रूह तेरी रूह में फ़ना हो जाये मैं अपने दिल का एक टुकड़ा तुम्हारे दिल को सौंप कर जा रहा हूँ, क्या फरक पड़ता है हम रहे ना रहे हमारी यादो की मिठास ज़िन्दगी के हर लम्हे में घुलती रहेगी , तुम मैं हूँ म, मैं तुम हूँ इस जब की बनायीं सब रीतो से सब प्रीतो से परे तेरा मेरा नाता जिसे बस तू जाने या मैं समझू 


ये बिछड़ना तो बस एक बहाना भर है कोई मेरी साँसों से तेरी महक को अलग करके तो दिखाए वो जो सहद की चासनी तेरे लबो ने मेरे होंठो पर लपेटी है वो इस तरह से ज़ज्ब हुई है की क्या कहूँ उस मिठास को अपने दिल में भर कर जा रहा हूँ मैं
रति बस एक तक मेरी तरफ देखे जा रही थी, उसकी आँखों से पानी छलकने को ही था पर ना जाने क्यों किनारे 

पर आकर रुक गया था पता नहीं क्यों मुझे ऐसे लग रहा था की वो कुछ कहना चाहती है पर उसके लबो की वो 

ख़ामोशी टूटी ही नहीं, कमरे का माहोल उमस से भरा था कुछ तो मोसम की गर्मी कुछ दिलो से उठे उस गुबार की 

कुछ बाते थी , कुछ यादे थी और उसकी बाहे थी 

सच्चे दिल में मैं ये चाहता था की वो दोड़ कर आये और मेरे गले लग जाये भर ले मुझे अपनी बाहों में मेरी रूह 

को अपने अन्दर पनाह दे दे वो, चाहत बस वो नहीं होती की किसी को पा ही ले हम लोग , किसी से दूर हो जाना 

भी चाहत होती है , महर्बा तेरी मेहरबानी मुझ पर जो तूने मुझे इसका साथ बख्शा कौन थी ये और कौन था मैं 

जो तूने ये मायाजाल रचा, जी तो रहा तह मैं पहल भी पर जिंदगी क्या होती है इन कुछ लम्हों में जाना था 
मैंने ,मेरे ख्वाबो की तामीर में एक अधुरा ख्वाब और जुड़ गया था धड़कने चीख चीख कर अपना हाल उसको 
बताना चाहती थी पर क्या करूँ मैं, ऐन समय पर होठ दगा दे गए 


फिर भी इस ख़ामोशी को तोडना भी ज़रूरी था मैं-“स्टेशन तक तो आओगी न मुझे अलविदा कहने ”

वो-“नहीं ”

मैं-“अब क्या एक पल में ही पराया कर दोगी ”

वो- ऐसी बात नहीं है अब मैं तुमसे जुदा कैसे, सची कहूँ तो मुझमे इतनी शक्ति नहीं है की तुम्हे अपने से यु दूर जाते हुए देख सकू तो नहीं आउंगी 

मैं-“तो फिर दूर जाने ही क्यों दे रही हो ”

रति- उफ्फ्फ , कैसे समझाऊ तुम्हे , बस इतना समझ लो तुम्हारा और मेरा साथ यही तक था , कभी बेवजह हिचकिया आये तो जान लेना किसी अपने ने याद फ़रमाया है तुम्हे 


कहें भी तो क्या कहे समझे भी तो क्या समझे नादाँ उम्र, ऊपर से ज़माने भर का दुःख हमे, ये तो वो बात हो 
गयी के दर्द भी तुम दो और मरहम भी तुम ही लगाओ, ज़ख्म देकर मेरे दिल को मुस्कुराने को कह दिया अब हम 

अपना शिकवा कहे भी तो किस से, जब खुद किनारे से लहरों ने दूर जाने का सोच लिया, 

मैं- जाने से पहले एक बार गले तो लगालो 

रति ने अपनी बाहे मेरे लिए फैला दी बहुत गजब लम्हा था वो मेरे लिए उसकी आँखों से झरते आंसू बहुत कुछ 
कह रहे थे मुझसे, जो उसके लब ना कह पाए थे , जाना नहीं चाहता था मैं पर मेरे पांवो में भी अनजान बेदिया 
पड़ी थी ,

कुछ आहे थी जिनको मैं .................... खैर , मैंने एक आखिरी बार उसको दिल भर कर देखा और 
अपना बैग उठा कर घर से बाहर निकल पड़ा एक एक कदम ऐसे लग रहा था की जैसे मिलो का सफ़र कट रहा 

हो, मुड़कर पीछे देखने की जरा भी हिम्मत नहीं हुई जिंदगी ने एक बार फिर से हँसा कर रुला दिया था खुद पे 
काबू रखना मुश्किल हो रहा था पर किया क्या जाये कुछ भी तो नहीं, ऑटो वाले को स्टेशन का बोला और एक
नया सफ़र शुरू हो गया 


तेरा सहर जो पीछे छुट रहा कुछ अन्दर अन्दर टूट रहा पर ये भी एक सच्ची बात थी की जाना तो हर हाल में ही 

था शर्ट की आस्तीन से अपनी आँखों के पानी को साफ़ किया मैंने और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा स्टेशन 

पहूँच कर टिकेट वगैरा ली और नीनू का इंतज़ार करने लगा , उसके आने में समय था तो वही वेटिंग रूम के पास 

बैग को रखा सिरहाने और लेट गया भीड़ भाड़ में भी मैं अकेला , दिल में उथल पुथल सी थी तो आँख सी लग 
गयी पता नहीं कितनी देर सोया मैं जब आँख कुछ खुली सी तो देखा की पूरा बदन पसीने पसीने हुआ पड़ा है थोडा 

सा पानी पिया और घडी की तरफ देखा मैंने , ट्रेन में अभी भी आधा घंटा भर था फिर मुझे नीनू का ख्याल आया 
तो मैं प्लेटफार्म की तरफ भागा 
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12-29-2018, 02:33 PM,
#52
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
भीड़ को चीरते हुए मैं उसको इधर उधर देखने लगा मैं खुद को कोसने लगा की क्यों सो गया मैं , कहा ढूंढ रही 
होगी वो मुझे काफ़ी देर हो गयी ट्रेन चलने का टाइम होने लगा धीरे धीरे ऊपर से आज भीड़ भी इतनी ज्यादा की 
सारे शहर को ही कही जाना हो जैसे , और तभी मुझे जानी पहचानी सूरत दिखी एक साइड में बदहवास सी खड़ी 
थी वो माथे पर सारे जहाँ की टेंशन लिए मैं भाग कर उसके पास गया उसने मुझे देखा एक रहत की सांस ली और 
फिर गुस्से से पिल पड़ी मुझे पर 
नीनू-“कहाँ, मर गए थे ”

मैं- यार, आ तो मैं काफ़ी देर पहले गया था पर मुझे नींद आ गयी थी 
नीनू- “नींद आ गयी थी, इतनी लापरवाह कैसे हो सकते हो तुम कितनी देर हुई मुझे परेशान होते हुए समझ क्या 
रखा है तुमने , सब कुछ तुम्हारे हिसाब से नहीं चलता है लाइफ में सीरियस होना सीखो देखो ट्रेन छुटने में दस
मिनट बचे है “

मैं-“शांत हो जा मेरी झाँसी की रानी पहले चल सीट का जुगाड़ देखते है फिर डांट लेना ”
मैंने उसके सामान को लादा और ट्रेन में चढ़ गए किस्मत से सीट का जुगाड़ भी हो गया पर उसका गुस्सा कम न 
हुआ, बात उसकी भी जायज थी पर अब जाने भी दो यार मैंने पेप्सी की बोतल खोली और दो चार घूंट भरे नीनू 
जलती नजरो से मुझे घूर रही थी आज तो मार ही डालेगी मुझे ऐसा लग रहा था ,मैंने उसका हाथ पकड़ा पर 

उसने चिटक दिया , मुझे भी गुस्सा आने लगा पर वो भी अपनी गुस्सा भी अपना वो तो अपनी भडास निकाल ले 
मुझ पर हम अपना हाल-इ-दिल किसको बताये ट्रेन चल पड़ी मैंने वॉकमेन की लीड लगायी कानो में और आँखों को 
कर लिया बंद 

“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं एक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं ” ये वाला गाना सुनते हुए मैं रति के बारे में सोचने लगा , दरअसल इस गाने का सुरूर मुझ पर कुछ इस तरह से चढ़ने लगा ऊपर से सफ़र मेरा 

दिल गुस्ताखी पर उतार आया , रति की बड़ी जोर से याद आने लगी , बस याद ही थी अपने पास और क्या 
उसके मिलने से बिछड़ने तक के हर पल मेरी आँखों के सामने से गुजरने लगी , दिल रोने को करने लगा पर यहाँ
कोई तमाशा थोड़ी न बनवाना था अपना तो सोने का नाटक करने लगा जयपुर आने में बहुत समय लग्न था 
से नीनू किलसी पड़ी थी एक बार थोड़ी सी आँख खोलकर देखा तो वो कोई किताब पढ़ रही थी जी तो किया 
इसके चश्मे पर ही एक थप्पड़ दू पर गोर से देखा तो बड़ी प्यारी लग रही थी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान सी आ गयी
उसका ध्यान पूरी तरह से किताब में था और मेरा मन भटक रहा था ऊपर से वॉकमेन में चलते रोमांटिक गाने मेरा 

और दिमाग ख़राब कर रहे थे इस लड़की की पसंद भी अनोखी थी शोखियो में अलग ही अंदाज छुपा रखा था इसने

मैं उस से बाते करना चाहता था पर वो डूबी थी किताब में तो सोने के सिवा और कोई चारा नहीं था मैंने अपनी

टाँगे फैलाई और लम्बा हो गया मद्धम गति से बजते संगीत के सुरूर में नींद ने मुझे अपने आगोश में भर लिया 

पर ये नींद भी बड़ी जुल्मी निकली सपने में रति को ले ही आई वो जो बात दिल में कही दबी रह गयी थी वो 
सपने में आने लगी 

उसके हाथो में मेरा हाथ था उसकी साँसे जैसे मुझसे टकरा रही हो उसके होंठ मुझे जैसे बुला रहे हो अपनी और 

दिल फिर से मचलने लगा , बेकाबू होने लगा और जैस ही मैं उसको किस करना चालू किया सपना टूट गया और 

आँख खुल गयी , आँखों को मिचकाते हुए मैंने अपने अस पास देखा तो ध्यान आया की मैं तो ट्रेन में हूँ , ये कोई 

स्टेशन था ट्रेन रुकी हुई थी दो चार मिनट लग गए खुद को संभालने में , नेनू ने देखा की मैं उठ गया हूँ तो उसने 

मुझे पानी दिया और बोली-“चाय पीने का मन है ले आओ न ”

अलसाया सा मैं चाय और कुछ चिप्स- बिस्कुट ले आया चाय थी तो बेकार सी ही पर फिर भी थोडा तारो तजा सा फील करने लगा मैं 

मैं- टाइम क्या हुआ है 

नीनू- ११ बजे है 

मै- अभी तो थोडा टाइम और लगेगा 

वो- हम्म , और सो लो थोड़ी देर 

मैं- ना यार , तूने खाना खा लिया क्या 

वो- हाँ 

मैं- कुछ बचा है तो दे दे भूख सी लगी है 

वो- बैग में टिफ़िन पड़ा है ले लो 

नीनु मामा के घर से टिफ़िन लायी थी कहाँ भी ठीक था पेट भर गया मजा आ गया मैं कुछ देर के लिए दरवाजे 

पर आकार खड़ा हो गया ठंडी हवा फेफड़ो में गयी तो कुछ चैन मिला मैंने सोचा नया दिन पूरा जयपुर घूमके गाँव

की बस पकडनी है , वहा जाते ही फिर से सब पहले की तरह हो जायेगा बोरिंग सा , काश कोई तरीका मिल

की टाइम टू टाइम कहीं बहार जाने को मिले , मैंने ना जाने कब वो दुआ मांग ली काश उस टाइम पता होता की 

बेवक्त मांगी गयी दुआए भी कभी कभी क़ुबूल हो जाया करती है ,

“क्या सोचने लगे , रति की याद आ रही है क्या ” मैंने मुड के देखा तो मेरे पीछे नींनु खड़ी थी 

मैं- “नहीं तो मुझे भला उसकी याद क्यों आएगी ”

नीनू- झूठ बोलते हुए बिलकुल अच्छे नहीं लगते हो और तुमसे झूठ बोला भी नहीं जाता है कब से देख रही हूँ अपसेट हो यही बात हैं ना 

मैं- मुझे नहीं पता 

वो- तो फिर किसे पता है 

मैं- नीनू बस मेरे सर में दर्द हो रहा है 

वो- तुम्हारे सर में नहीं तुम्हारे दिल में दर्द होने लगा है , तुम क्या सोचते हो मुझसे झूठ बोल सकते हो , कभी नहीं चलो अब बता भी दो क्या बात है 

मैं- हां उसकी याद आ रही है 

वो- तो कोई बात नहीं याद करलो पर इतना भी समझ लो की जिस तरह से उस शहर को पीछे छोड़ आये हो उसको भी पीछे छोड़ना होगा 

मैं- कोशिश करूँगा 

वो- हूँम्म्मम्म्म्म 

मैं- तुम्हे क्या लगता है 

वो- किस बारे में 

मैं- क्या मुझे प्यार है 

वो- किस से 

मैं- खामोश रहा कुछ ना बोला 

जब उसकी समझ में आया की मैं क्या कहना चाहता हूँ तो नीनू थोड़ी टेंशन में आ गयी और बोली- पागल हुए हो क्या , कुछ भी सोचने लगते हो , ऐसा कैसे कर सकते हो तुम मेरा मतलब नहीं , ये नहीं हो सकता है तुम ........ तुम...

मैं- तुम क्या ................

वो- देखो आराम से सोचो, प्यार ऐसे कैसे हो जायेगा, वो भी जब तुम हर लड़की को प्यार की नजर से देखते हो 
वैसे भी वो तुमसे उम्र में कितनी बड़ी है , वो शादीशुदा है उसकी और तुम्हारी लाइफ बिलकुल अलग अलग है तुम सोचो भी मत ये बस थोड़े दिन साथ रहने का अट्रैक्शन है और कुछ नहीं “


मैं- हां, शायद ऐसा ही होगा, अब मेरी मज़बूरी थी की मैं नीनू को बता भी नहीं सकता था की रति के साथ मैंने 
क्या क्या गुल खिलाये है वर्ना वो नाराज तो होती ही क्या पता दोस्ती भी तोड़ देती फिल्मो में बहुत देखा था ऐसी 
बातो को तो इस बात को यही पर दबा दिया मैंने “


बहुत देर तक हम लोग उधर ही बैठे रहे बाते करते रहे रति का नशा तो किसी दारू की तरह था आहिश्ता आहिश्ता 

से ही उतरना था , खुद को करके तक़दीर के हवाले पीछा छुटाने की एक कोशिश और सही ये लम्बी दूरी के सफ़र 

से मुझे बड़ी कोफ़्त सी होती थी ख़तम होने को आता ही नहीं था आदमी थक कर चूर हो जाये पर मंजिल का कोई 

पता नहीं ट्रेन भी साली ऐसे टाइम पे जयपुर पहूँची ना इधर के रहे ना उधर के सुबह होने में टाइम था जो 

काटना मुशिकल था पर क्या कर सकते थे भोर होने का इंतज़ार किया उन्निंदी आँखों से स्टेशन पर ही तैयार 

होकर हम चले जयपुर को नापने मन में रोमांच चाव लिए मैं पहले हवा महल जाना चाहता था जबकि नीनू पहले 

जाना चाहती थी तो मन मारके उसकी बात माननी पड़ी और सिटी बस पकड़ ली हमने सुबह सुबह कोई भी 

हो खूबसूरत दीखता ही है और ये तो राजस्थान का दिल था तो बात निराली होनी थी ही 


आमेर की खूबसुरती ने मन मोह लिया मेरा क्या बात थी इसकी गजब जैसे वहा लगा हुआ एक एक पत्थर अपनी 

शौर्य गाथा की कहानी सुना रहा हो माहौल ऐसा था की जैसे कोई बड़ा मेला लगा हो क्या देसी विदेशी आमेर के 

तीनो किलो का दिल खोल कर नजारा लिया मैंने कैमरे की तीन चार रील भर गयी पर मन नहीं भरा था कुछ 

तस्वीरे मैंने और नींनु ने वहा घूम रहे अंग्रेजो के साथ भी खिचवा ली खुद को अंग्रेज से कम नहीं वाली फीलिंग आ

रही थी 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#53
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं नीनू से बोला –“ यार तू भी ये राजस्थानी ड्रेस पहन न मस्त लगेगी उसमे ”

वो- कुछ भी बोलते हो 

मैं- पहन तो सही 

वो- एक शर्त पर 

मै- बोल

व्- तुम भी ट्राई करो 

मैं – कही पब्लिक हमे लोग- लुगाई नहीं समझने लग जाये 

नीनू ने कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा हमने किराये पर ड्रेस ली और पहन कर तैयार हो गए नीनू कसी हुई 

चोली और घेर वाले घागरे में बड़ी मनमोहक लग रही थी , हाथो में राजस्थानी कड़े ऊपर तक गले में हंसली और 

पांवो में भी कुछ पहना हुआ था जिसका नाम मुझे याद नहीं अपने बालो की चोटी में वो रंग बिरंगे फीते से बांधे 

थे एक दम माल लग रही थी उस टाइम पहली बार मेरे मन में ख्याल आया की चूत तो मस्त है एक दम मैंने भी 

एक कुरता- धोती और सर पर राजस्थानी पगड़ी पहनी ऊपर से मजा जब आया जब लम्बी लम्बी नकली मूंछे 

लगायी 

नीनू – क्या देख रहे हो इस तरह से 

मैं- तुम्हे देख रहा हूँ 

वो- क्यों भला 

मैं- टंच लग रही हो एक दम , करारी 

नीनू- है रब्बा, कैसी बाते करते हो 

मैंने अपना हाथ नीनू की कमर में डाला और उसको अपनी ओर खीचते हुए बोला- तुम्हारे इस रूप को आज से फेले ना देखा मैंने, देखने दो मुझे जी भर के 

नीनू- छोड़ो मुझे, लोग देख रहे है क्या सोचेंगे

मैं- क्या सोचेंगे, की लोग- लुगाई है नया नया ब्याह हुआ होगा 

नेनू- पर हम नहीं है 

मैं- हो तो सकते है ना 

नीनू- बकवास बहुत करते हो तुम 

उन कपड़ो में बहुत एन्जॉय किया हमने कभी नीनू पनिहारन बन कर फोटो खिचवाती तो कभी मैं किसान बन कर 

ये दिन मुझे बेस्ट लग रहा था पर हमारी उस दिन मजबुरिया बहुत थी की टाइम का टोटा था आमेर में ही दोपहर 

होने को आई थी हमे तो वहा से निपटे हम लोग थोडा बहुत सामान लिया और वापिस शहर की तरफ कूच किया 

मेरी बड़ी तमन्ना थी हवा महल देखने की उसके झरोखे देखने की तो पहूँच गए वहा पर , उसके बाद मोती-डूंगरी 

उसके बाद कोई बावड़ी थी वहा पर उस दिन टाइम की कीमत का पता लगा थक कर चूर हो गया था मैं शाम के 

करीब ४ बजे हम पहूँचे बस स्टैंड तो पता चला की ५ बजे की बस है हमारे शहर के लिए तो फटाफट से बस स्टैंड 

के बहार वाले होटल पर पेट पूजा की नीनू ने थोडा सा सामान लिया और पकड़ ली अपनी सीट
बाते करते हुए कभी किताबे पढ़ते हुए, तो कभी एक मीठी सी झपकी लेते हुए हम लोग अपने सहर के पास और 

पास आते जा रहे थे नीनू तो सोयी पड़ी थी पर मैं जाग रहा था घर आने का रोमांच सा हो रहा था अपनी मिटटी 

की खुशबु जो आने लगी थी , पर थकन भी बहुत ज्यादा हो गयी थी लम्बा सफ़र मेरे पाँव बस में मुड़े मुड़े उकता 

गए थे रात के करीब १ बजे बस , बस स्टैंड पर रुकी मैंने नीनू को जगाया अलसाई सी वो उठी समान उतारा 

खुली जमीं पर आकर बहुत अच्छा लगा , नीनू ने मुह धोया पर नींद अभी भी उसके चेहरे पर छाई हुई थी 


मैं- “आ गये अपने शहर ”

नीनू- आ पर घर कैसे जायेंगे इस टाइम कोई साधन भी तो नहीं मिलेगा 

- सुबह तक का इंतज़ार करे 

वो- सब कुछ तो सुनसान पड़ा है , इधर रुकना ठीक रहे गा क्या 

बात तो ठीक ही थी ऊपर से लड़की साथ मेरे तो थोड़ी सी घबराहट सी हो गयी, वक़्त का तकाजा देखो परदेस

घूम आये पर अपने ही सहर में डर लगे , हैं ना अजीब बात गाँव दूर पैदल जा तो सकते थे वैसे पर तीन बैग 

ऊपर 
से फ़ालतू का सामान , नीनू मेरी तरफ देखे मैं उसकी तरफ शहर की सावरिया तो निकल ली थी एक एक करके 

हम कहा जाये , ऊपर से नीनू की जिम्मेदारी खैर, दो बैग मैंने लिए बाकि नीनू ने और बस स्टैंड से बहार निकले 

सुनसान सड़क पर कोई नहीं 


मैं- नीनू, कोई साधन तो मिलने से रहा इस बखत बता क्या करे 

वो- वो ही सोच रही हूँ 

मैं-चलते चलते सोचते है चोक तक चलते है क्या पता कुछ साधन मिल जाये 

तो हम चोक की तरफ बढ़ चले पर उधर आकर भी वो भी हाल काफ़ी देर हो गयी अब इतनी रात को कौन साधन 

मिले सोचने वाली बात थी कुछ सोच कर मैंने कहा 

“एक काम करते है पैदल ही चलते है थोडा समय लगेगा पर पहूँच ही जायेंगे ”

नीनू- सामान में बहुत बोझ है मुश्किल होगा , और फिर तुम तो रास्ते में उतर लोगे मुझे तो आगे जाना है 

मैं- रे बावली, कर दिया न एक मिनट में पराया , तुजे अकेला छोड़ दूंगा ये कैसे सोचा तूने , तू मेरी 

जिम्मेवारी है तू चाहे मुझे पराया मान पर मेरे लिए तू अपनी है 

वो- मेरा वो मतलब नहीं था , तू बुरा मत मान 

मैं- तू अपना मतलब अपने पास रख 

मैंने पेप्सी की बची खुची घूंटो को गले से उतराया और चल पड़े गाँव के रस्ते पर बैग बहुत भारी लगने लगे थे 

पर घर जाना ही था ठंडी हवा चल रही थी हम दोनों ख़ामोशी से चल रहे थे धीमे धीमे कदमो से रास्ता सच में 

बहुत लम्बा लगने लगा था चलते चलते हम लोग सहर की हद से बाहर निकल आये अब गाँव तक थोडा 

सुनसान 

सा रास्ता था इस साइड में आबादी इतनी नहीं थी 

मैं- नीनू, एक कम करियो मेरे घर रुक जाना सुबह चली जाना 

वो- ना तेरे घर कैसे जा सकती हूँ, 

मैं- क्यों ना जा सकती मैं संभाल लूँगा, वैसे भी इतने रात को तेरे घर वाले क्या कहेंगे तुझे की अकेली क्यों 

आई काफ़ी बाते सुनेगी फ़ालतू में 

वो- पर मैं तुम्हारे घर भी तो नहीं जा सकती ना 

मैं- देख , तेरे घर मैं तुझे रात को भी छोड़ आऊंगा दो किलोमीटर और सही पर घरवाले पूछेंगे तो जरुर ही की

किसके साथ आई अकेले आने की क्या जरुरत थी कुछ उल्टा-सीधा हो जाता तो फिर क्या कहेगी 

नीनू मेरी तरफ देखने लगी , और बोली- पर तुम्हारे घर आउंगी तो तुमसे भी काफ़ी सवाल पूछे जायेंगे अपनी बात अलग है पर घर वालो की अलग 


मै- तो क्या करे फिर बता जरा 

वो- सोचने दे ........................................
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12-29-2018, 02:34 PM,
#54
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चलते चलते हम लोग सोच रहे थे मैंने सोचा की इसको लेकर खेत पर चला जाऊ पर क्या पता चाचा हो उधर तो 

बात गड़बड़ा सकती थी , मैंने घडी की तरफ देखा ३ बजने को आये थे बस ५-६ का टाइम हो जाता तो बोल सकते 

थे की रात की बस थी बस सुबह ही पहूँचे , पर ये दो घंटे एडजस्ट करने मुशिकल हो रहे थे एक तो सफ़र की 

थकन ऊपर से पैदल गांड घिस रही हुआ हाल बुरा मेरा तो , धोबी का कुत्ता न घर का घाट का वो बात हो 

गयी 

जिस सड़क पर दिन में हजार साधन गुजरते हो वो सुनसान पड़ी थी 

घिसटते घिसटते हम लोग आखिर मेरे गाँव तक आ गए नीनू को मैंने फिर से कहा की मेरे घर चल पर उसकी 

बात भी जायज थी तो गाँव के अड्डे पर बनी टंकी से पानी पिया और फिर से सामान लाद कर नीनू के गाँव 

की तरफ चल पड़े, गाँव का तो नाम ही था घर तो उसका खेतो पर था , शॉर्टकट ले लिया था पर सुनसान 

होने से डर भी लग रहा था पर वो कहते हैं ना की एक बार चलो तो सही देर सवेर पहूँच ही जाना होता है , जब

करीब दो- तीन खेत उसका घर दूर रह गया तो वो बोली- बस अब मैं चली जाउंगी 


मैं- बड़ी जल्दी है तुम्हे जाने की 

वो- अब घर आ गया है तो जाना ही होगा न 

मैं- दो पल भी न ठहरो गी 

वो- क्या बात है 


मैं- कुछ भी नहीं 


वो- तो फिर जाने दो 

मैं उसके पास आ गया बिलकुल पास , उसके चेहरे के बिलकुल करीब इतना करीब की इंच भर भी जगह 

बाकी न रही नीनू थोडा पीछे होते हुए- क्या कर रहे हो 

मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और उसको अपनी और खीच लिया उस अँधेरी रात में हम दोनों एक दुसरे के 

इतने करीब थे की बस, 

नीनू कांपते हुए- छोड़ो मुझे, जाने दो ना 

मैं- दो पल रुको जरा देख लू तुम्हे जे भर के


वो- इतनी देर से नहीं देखा था क्या 

मैं- चुप रहो तुम कुछ मत बोलो

मुझे उसके दिल की धड़कने साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी मेरे दिल में आया की किस तो बनता है पर मैंने 

किया नहीं थोड़ी देर बाद उसको अपनी बाहों से आजाद कर दिया और बोला फिर कब मिलोगी 

वो- जल्दी ही , 

वो जाने लगी तो मैंने फिर से उसके हाथ को पकड़ लिया तो वो बोली- फाइनल बताओ जाऊ के नहीं जाऊ 


मैं- रोक भी त नहीं सकता तुम्हे , चलो जाओ 

नीनू तो घर पहूँच गयी थी मुझे वापिस जाना था जब तो दो थे अब मैं एक तो डर सा लगने लगा
जैसे तैसे करके घर पहूँच ही गया मैं अँधेरा अभी भी था ही मैंने दो तीन बार किवाड़ खडकाया आवाज लगायी

किसी ने ना खोला सब नींद में मगन पड़े थे मुझे गुस्सा सा आने लगा बदन दर्द कर रहा था वो अलग सफ़र

में टूट कर आया था पर घरवाले अब किवाड़ न खोले तो क्या करू हार कर दरवाजे के पास ही बैठ गया बैठे 

बैठे ही नींद का लटका आ गया , नींद थोड़ी गहरी हुई ही थी की किसी ने दरवाजा खोल दिया तो मेरी आँख

खुली मैंने देखा चाची दरवाजे पर खड़ी थी 


मुझे देख कर बोली – तू कब आया 

मैं- सुबह ४ बजे 

वो- तो इधर क्यों सो गया घंटी बजानी थी ना 

मैं- घंटी कब लगी अपने घर 

वो- ओह! मैं तो भूल ही गयी थी तेरे पीछे से लगवाई है घर में फिटिंग का काम करवाया था तो , चल अन्दर आजा कब से पड़ा है इधर 

मैंने अपना सामान लिया और घर के अंदर घुस गया पहली बार जिंदगी में लगा की घर तो घर ही होता है बड़ा 

अच्छा लगा चाची बोली हाथ मुह धो ले फिर चाय के साथ कुछ खा पीके सो जाना , वैसे सुबह सुबह कैसे आ

गया तू 

मैं- जी, रात की बस से आया हूँ 

वो- हम्म्म, तो कैसा रहा तुम्हारा टूर 

मैं- एक दम मजेदार बहुत मजा आया 

वो- चल ठीक रहा वर्ना फिर हमे ही दोष देता 

मैंने बिना उनकी बात पे ध्यान दिए चाय के साथ रात की बची रोटियों को डकारा और खाट पर लम्बा हो 

गया सफ़र की थकन ऊपर से भरा हुआ पेट तो फिर आँख सीधे दोपहर को ही खुली जब मैं जगा तो घर पर 

कोई नहीं था , उबासी लेते हुए मैं घर से बाहर आया तो देखा की बिमला गेहू साफ़ कर रही है मैं उसके पास 

चला गया और पुछा- घरवाले कहा गए है पता चला की खेत में 



बिमला- कहा घुमने चले गए थे , बड़े दिन लगा दिए आते आते 

मैं- बस भाभी ऐसे ही 

वो- ऐसे ही , पता है मैंने कितना याद किया तुम्हे 

मैं- क्यों याद किया 

वो- तुमने मेरी आदत जो बिगाड़ दी है 

मैं- वो भला कैसे 

वो- ओह! देखो तो सही कितना भोला बन रहा है , जैसे कुछ पता है ही नहीं 

मैं- कोई ना भाभी मैं अब आ गया हूँ, आपकी हर तम्मान्ना पूरी कर दूंगा 

वो- जाओ, बड़े आये तमन्ना पूरी करने वाले 

मैं- तो क्या इरादा है 

वो- कुछ नहीं 

मैं- करे क्या 

वो- आते ही शुरू हो गए 

मैं- अब भाभी , आप चीज़ ही ऐसी हो , आओ करलेते है फटाफट से घर पे कोई नहीं है मैं जाता हूँ आप जल्दी से आ जाना 

वो- देखती हूँ 

मुझे पता था की बिमला पक्का आएगी उसकी चूत को लंड जो चाहिए था और मैं तो हमेशा चूत मारने को 

तैयार कोई भी चूत हो कैसी ही चूत हो बस मिलनी चाइये अपने को , तो करीब दस मिनट बाद बिमला घर में 

दाखिल हुई मैंने उसको बरामदे में ही पकड़ लिया और किस करने लगा , बिमला का बदन मेरी बाहों में झुमने

लगा उसके होंठो को काटते हुए मैं उसकी चोली खोलने लगा तो उसने मन कर दिया वो बोली- ना कपडे नहीं

उतरूंगी, दिन का समय है कोई भी आ निकलेगा इतनी जल्दी पहने ना जायेंगे ऊपर ऊपर से ही कर लो 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#55
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं- कोई ना आएगा बस थोड़ी देर की तो बात है 


पर वो ना मानी , मैंने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और बिमला के हाथ में दे दिया बिमला बड़े प्यार से 

उसको अपनी मुट्ठी में भर कर हिलाने लगी मैं फिर से उसको किस करने लगा काफ़ी देर तक जी भर कर उसके 

लबो का रसपान करने के बाद, मैंने उसको खाट पर लिटा दिया और उसके घाघरे को कमर तक उठा दिया 

बिमला ने कच्छी पहनी नहीं थी तो टांगो को खोलते ही उसकी काली चूत मेरी नजरो के सामने थी बिमला 

की चूत के काले होंठ बहुत ही ज्यादा पसंद थे मुझे , बिमला का काला रंग , उसकी कामुकता को और भी 

ज्यादा बढ़ा देता था 


मैंने अपने होठो पर जीभ फेरी और अपने मुह को उसकी टांगो के बिच घुसा दिया उसकी मस्त चूत की 

नमकीन खुशबू मुझे मस्ताना करने लगी मेरी गरम साँसे जो उसकी चूत पर पड़ी बिमला ने एक आह भारी 

और अपने हाथो से चूत की पंखुडियो को फैलाया उसकी चूत के अंदर का लाल लाल भाग दिखने लगा , मैंने 

झट से बिमला की चूत पर अपने होठ सटा दिए बिमला की टाँगे कांप उठी , “ओह ओह आह आह ”


उसकी टाँगे मचलने लगी , चूत का नमकीन पण बढ़ने लगा , मेरी लम्बी जीभ surpppppppppppp 

सुर्प्पप्प्प्पप्प्प करते हुए उसकी चूत के अनमोल रस को चख रही थी बिमला की आहे पल पल बढती ही 

रही थीइधर मैं अपनी जीभ चला रहा था उधर बिमला अपनी गांड हिलाने लगी थी पर उसने ज्यादा देर चूत 

न चुस्वाई वो बोली- बस अब जल्दी से अंदर डाल दो और फटाफट से कर लो कही कोई आ ना निकले, 


मैं- भाभी, ऐसे मजा नहीं आता 


वो- अभी करलो रात को छत पर आ जाउंगी फिर रगड़ लेना अभी जल्दी से कर लो 


बात तो उसकी सही थी , कोई भी आ निकले , मैंने लंड पर थूक लगाया और भाभी की चूत से रगड़ने लगा 

बिमला की चूत को काफ़ी दिन बाद लंड मिल रहा था चूत ने लंड का स्वागत किया मैंने बिमला की एक टांग 

को कंधे पर रखा और लंड को चूत में सरका दिया 

आह , थोडा धीरे 

मैं- क्या भाभी आप भी 

वो- अरे काफ़ी दिन में इसमें कुछ गया है ना 

मैं- किस्मे क्या क्या गया भाभी 

वो- हट गंदे, मुझसे बुलवाना चाहता है 

मैं- अन्दर ले सकती हो बोल नहीं सकती 

वो- मुझे लाज आती है 

मैं- करती हो जब लाज नहीं आती चलो बताओ किस्मे क्या गया 

भाभी- बड़े शैतान हो तुम, चूत , चूत में लंड गया और क्या 

मैं- जियो भाभी 

कहते ही मैंने पूरा लंड बिमला की चूत में उतार दिया और धक्के मारने लगा बिमला प्यार से मेरी तरफ 

देखते हुए चुदने लगी मैंने उसकी टांग को सहलाते हुए चूत में लंड अन्दर बहार करने लगा “ओह, भाभी,

कितनी गरम चूत है तुम्हारी, मजा ही आ गया ”

बिमला – मेरे उपर आ जाओ पूरी तरह से 

मैं बिमला के ऊपर आकर चोदने लगा उसने अपनी टांगो को ऊपर कर लिया और अपनी कमर को उचकते हुए

चूत में लंड लेने लगी , उसका बदन वास्तव् में ही बहुत गरम था एक नंबर की गरम औरत थी वो मैं उसके 

गालो को खाने लगा तो वो मना करने लगी- बोली=निशाँ पड़ जायेंगे पर मैं कहा रुकने वाला था वो भी जब 

ऐसी गरम चुदाई चल रही हो , फुच फुच फुच फुच करते हुए चूत क पानी से सना हुआ मेरा लंड लगातार चूत 

की गहराइया नाप रही थी बिमला बोली होठ चूसो मेरे 


तो मैं उसको किस करते हुए चूत पर धक्के मारने लगा बिमला में पूरी तरह समा कर हम दोनों स्वर्गिक 

आनंद को भोग रहे थे लापा लापा चूत और लंड का खेल चल रहा था बिमला मेरे बालो को सहला रही थी और 

फिर बिमला कस के मुझ से चिपक गयी बदन पसीने पसीने हो उठा और उसके झड़ते झड़ते ही मैंने भी 

उसके काम रस से अपने वीर्य को मिला दिया और बिमला की चूत को भरने लगा .
जल्दबाजी भरी चुदाई के बाद हमने अपनी सांसो को संयंत किया बिमला ने बिस्तर की चादर से अपनी चूत 
को साफ़ चूत से मेरा वीर्य बह रहा था , देख कर मैं मुस्कुरा पड़ा बिमला बोली- “रात को छत पर मिलना , तब रही सही कसर पूरी कर दूंगी ”

मैं- ठीक है भाभी 

बिमला फिर अपने घर चली गयी मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया चुदाई के बाद ठन्डे पानी से नहाने का भी अपना मजा होता है , तरो ताज़ा होकर मैं आया तो मम्मी चाची दोनों घर आ चुकी थी, मम्मी ने मुझसे पूछा-

“तो, कैसा रहा, तुम्हारा टूर, ”

मैं- जी बहुत बढ़िया 

मम्मी- घर सेबाहर जाते ही तुम लापरवाह हो गये , कम से कम फ़ोन तो कर सकते थे न , 

मैं- जी, मुझे ध्यान नहीं रहा 

वो- ओह! तो ध्यान नहीं रहा , वैसे भी घरवालो को कुछ समझते तो तुम हो नहीं बड़े जो हो गए हो 

मैं- मम्मी, सच में समय ही नहीं मिला , वह जाकर मैं बहुत बिजी हो गया था 

वो- क्या हमे भी पता चलेगा की वहा कौन से तुम्हारे कारखाने चल रहे थे जो माँ- बाप से दो पल बात करने की फुर्सत न मिली तुम्हे 

मैं-मम्मी आप भी शुरू हो गए, इस घर से मैं हूँ , मुझ से ये घर थोड़ी न कुछ पल जी लिए अपने लिए बस इतनी सी बात है 

मम्मी- तुझसे तो बात करना बेकार है , इस बात को तू तब समझेगा जब तू बाप बनेगा चल जाने दे , घुमाई फिराई बहुत हुई, अब थोडा घर के कामो पे ध्यान देना , तुम नहीं थे तो काफ़ी काम अधूरे पड़े है 

मैं- कल कर दूंगा 

फिर चाय पीकर मैं घर से बहार निकल पड़ा , मोहल्ले में आया तो पानी की टंकी के पास खेली पर पिस्ता को देखा , भैंसों को पानी पिला रही थी इधर उधर देख कर मैं उसके पास चला गया उसने मुझे देखा मैंने उसको देखा पानी पीने के बहाने से मैंने धीरे से उस से पुछा- “कैसी हो ”

वो- जीयु या मरू तुमसे मतलब 

मैं- तो किस से मतलब

वो- कितने दिन बाद आज शकल दिखा रहे हो, तुम्हारा काम निकल गया तो मुझे भुला दिया 

मैं- कुछ भी बोल देती है , मेरी तो सुन 

वो- क्या सुनु तुम्हारी 

मैं- सुनेगी तो पता चलेगी ना 

वो- मेरे पास टाइम ना है 

मैं- फ़ालतू में गुस्सा ना हो यार , बात तो सुन 

वो- मेरा मूड ना हैं तू जा अभी यहाँ से 

अब इस को क्या हुआ, ये क्यों खफा हो गयी , जो भी हो मानना तो पड़ेगा ना 

मैं- रात को तेरा इंतज़ार करूँगा कुएँ पर 

वो- मेरा भाई है मैं ना आ सकुंगी 

मैं- तो कब मिलोगी 

वो- घर आजा फुर्सत से सुनूंगी तेरी कहानी 

मैं- घर भाई न होगा के 

वो- डर लगे है 

मैं- तेरे लिए कैसा डर , तू जहा कहे वहा आ जाउंगा 

वो- तो ठीक है मेरे चोबारे में मिलते है रात को 


ये भी साली गजब थी, भाई तो घर पे ही होगा , मरवाने का पूरा जुगाड़ कर रखा था पर उसकी नारजगी को दूर करना भी जरुरी था , ध्यान आया की बिमला ने भी रात को छत पर मिलने को कहा था दोनों का एक समय इक्कारार चुनु भी तो किसे पर पिस्ता बस मेरी हवस ही नहीं थी वो मेरी दोस्त भी थी तो बस हो गया फैसला थोड़ी बहुत घुमाई के बाद घर वापसी हो गयी , पता नहीं क्यों मन लग नहीं रहा था घर पर , पर इसके सिवा जाना भी कहा था 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#56
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
कुछ तस्वीरे थी जोधपुर की उनको देखने लगा कुछ अभी बाकी थी धुल्वानी , रति तस्वीर में भी भी इतनी जीवंत लगती थी की जैसे बस अभी के अभी बोल पड़ेगी दिल में बेचैनी सी बढ़ गयी होंठो पर मेरे मुस्कान थी आँखों में कुछ गीलापन सा था , ये भी अजीब हालात होते है जिंदगी में पल में हंसती है पल में रुलाती है , खाने के टाइम पिताजी से लम्बी बात चीत हुई , कुल मिला के बस टाइम कट रहा था मुझे इंतज़ार था था कब घरवाले सो जाये कब मैं चलूँ पिस्ता की तरफ 


टाइम भी कुछ सुस्त सा हो गया कटे ही ना , तीन बार मैंने चेक किया की सब सो गए है नींद में फिर धीरे से दरवाजा खोला और अँधेरी गलियों को पार करते हुए चोर कदमो से चले जा रहे थे पिस्ता का दिल चुराने की कोशिश को , तो पहूँचे उसकी गली में जाना चोबारे में , देखा लाइट जल रही है मतलब जाग रही है पर सवाल वो ही चढू कैसे दीवार पर, पिछली बार टेलेफोन के पाइप से चढ़ा था पाँव में चोट लग गयी थी पर ना जाने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था उस मस्तानी से तो चलो ये परीक्षा भी दे ते है , 

बड़ी मेहनत लगी उसकी दिवार चढ़ने में पर वो मुलाकात ही क्या जिसमे धड़कने तेज ना हो , जिसमे कोई जुस्तुजू ना हो , दिवार पर चढ़ते ही ऐसी फीलिंग आई जैसे कारगिल ही जीत लिया हो अपनी चप्पल वाही दिवार पर राखी ताकि आवाज ना हो और चल पड़ा चोबारे के तरफ पसीना कुछ ज्यादा ही आने लगा था , दरवाजे को जो धुल्काया तो देखा की पिस्ता आराम से बेड पर बैठी टीवी देख रही थी मुझे देख कर मुस्कुराई 

मैं- घरवाले सो गए क्या , 

वो- घर पे मैं बस अकेली ही हूँ 

मैंने माथा पीट लिया , हद है यार ये लड़की भी ना पहले ना बता सकती थी क्या 

मैं- जब तू अकेली थी , तो खेली पे ही ना बता देती खामखा परेशानी करवाई 

वो- तो कौन सा घिस गए तुम , एक दिवार चढ़ने में ही मेरी नानी की तबियत कुछ ठीक नहीं है एडमिट करवाया है उनको तो भाई और माँ को जाना पड़ा ,

मैं- तो फ़ोन कर देती 

वो- तू भी तो कर सकता था नंबर तो मालुम था ना 

मैं- यार, तेरी नाराज़गी अपनी जगह पर मेरी तो सुन ज़रा मैं जोधपुर गया था तो बता कैसे मिलता तुझे 

वो- पता है मुझे 

मैं- किसने बताया 

वो- तलाश, करने वाले तो खुदा को भी तलाश कर लिया करते है तुम तो फिर भी इंसान ही हो 

मैं बेड पर उसके पास बैठ गया पिस्ता सरक आई मेरे पास मैंने उसके हाथ को पकड़ का अपनी छाती पर रख दिया वो मुझे देखने लगी मैं उसको देखने लगा खामोशिया कुछ कहने का प्रयास कर रही थी मैंने उसको थोडा सा झटका दिया और वो मेरे सीने पे आ गिरी .
कुछ देर मेरे साथ लेटी रही वो ना वो कुछ बोल रही थी न मैं फिर एकाएक वो खी हुई और बोली –“कुछ खाओगे ”

मैं- ना 

वो- कुछ पिओगे 

मैं- तुम्हारे होंठो की शबनब 

वो- उसके आलावा 

मैं – तुम्हारे बोबो का दूध 

वो- दूध तो आता नहीं है 

मैं- कुछ नहीं खाना पीना बस तुम दूर ना जाओ मेरे पास आओ बैठो जरा बाते करने आया हूँ तुम्नसे तुम फॉर्मेलिटी में फसी पड़ी हो 

पिस्ता झट से मेरी गोदी में बैठ गयी और अपने होंठो को मेरे होंठो से रगड़ते हुए बोली-“क्या बाते करोगे ”

मैं- कुछ तो बाते करेंगे ही , पर तुम बताओ मेरे बिना क्या किया 

वो- क्या करना था वो ही रोज का काम भाई की सगाई कर दी है, अगले हफ्ते गोदभराई कर देंगे सब ठीक रहा तो , इस दीवाली के बाद ही शादी भी हो जाएगी 

मैं- ये तो ठीक है , वैसे तेरा भाई कब जायेगा ड्यूटी पे 

वो- क्यों तुझे उसके रहने से कोई दिक्कत है क्या 

मैं- ना मुझे क्या दिक्कत होगी बस तुमसे मिलने में थोड़ी कंजूसी होगी और क्या 

वो- वो तो है, वैसे भाई अभी पंद्रह- बीस दिन तो रहेगा ही 

मैं- फिर हम कैसे मिलेंगे 

वो- जैसे अब मिल रहे है, रे पगले, जिनको मिलना होता है ना उनको कोई ना रोक सके है मेरी छोड़ तू बता क्या करके आया जोधपुर 

मैं- कुछ ख़ास नहीं बस ऐसे ही कभी इधर कभी उधर , हां पर इतना जरुर है की कुछ ऐसी यादे लेकर आया हूँ जो हमेशा दिल में रहेंगी 

वो- ओह ओह हो ! ऐसी कौन सी यादे ले आये हो कही दिल तो ना लगा के आये वहा पर 

uffffffffffffffff ये दिलकी बाते ज़ालिम ने चोट भी वहा कर दी थी जहा पर ज़ख्म गहरा था रति का मासूम चेहरा झट से दिल में उतरता चला गाय , खो ही गया था आइने एक बार फिर से उसके आभास में अगर पिस्ता ने मेरा ध्यान ना तोडा होता तो 

मैं- नहीं रे, ये यार व्यार अपने बस का नहीं है और वैसे भी तू भी तो कहती है न की ये राह बहुत मुश्किल है इस्पे चला न जाये तो फिर क्यों अपने को टेंशन लेनी , और वैसे भी अपन कोई सलमान खान तो है नहीं की लाइन ही लगी है प्यार करने वालियों की , 

पिस्ता बोली- एक किताब में पढ़ा था की जो प्रेम होता है ना, वो तो आम लोगो में ही होता है बड़े लोगो का क्या उनकी वो जाने , हम तो अपनी बता सकते ना ,

मैं- तुझसे मेरा क्या छुपा है , कुछ भी तो नहीं एक तू ही तो है जो मेरे अमन को सबसे बेहतर पढ़ती है 

वो- तो फिर बताते क्यों नहीं 

मैं- यार, तुझे क्या लगता है, तू बता हम जिस से भी बोलते है , बात करते है वो प्यार तो नहीं हो सकता ना 

वो- मैं क्या बोलू- 

मैं- चल फिर जाने दे और बता 

वो- और कुछ नहीं 

मैंने उसके सूट को पकड़ा और ऊपर की तरफ कर दिया काली जालीदार ब्रा में कैद उसके सुकोमल उभार बड़े सुन्दर लग रहे थे , उसकी बगलों में जो हलके हलके बाल थे ना मेरे दिल में सुगबुगाहट सी कर रहे थे , उसकी मोरनी सी सुन्दर गर्दन पर जो चूमा मैंने तो एक आह सी निकल पड़ी उसके गले से, उसकी पीठ पर हाथ गया मेरा और ब्रा के हूँक खुल गए, उसकी मुलायम छातिया मेरे कठोर सीने से टकराने लगी 
उसकी ठोड़ी के निचले हिस्से को जो मैंने चूमना शुरू किया तो पिस्ता बरबस ही मेरे आगोश से निकल गयी और बोली-“तुम तो कह रहे थे की बस बाते ही करनी है ”


मैं- हां, बस बाते ही करनी है

वो- तो बाते करो ना 

मैं- ये भी तो बाते ही है 

वो-ना ना 

मैं- आये, है तो काटेंगे एक रात तुम्हारी बस्ती में , चाहोगे तो कर लेंगे दो बात तुम्हारी बस्ती में 
और मन के सूने आँगन में, अगर एक घटा तुम बन जाओगे , कर देंगे बरसात हम भी तुम्हारी बस्ती में 


पिस्ता- ओह ! बातो को इस तरह मोड़ना भी आता है तुम्हे 

मैं- हमे कुछ पता नहीं है , हम क्यों बहक रहे है , राते सुलग रही है दिन भी सुलग रही है 
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते है, तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे है””


पिस्ता- आज मूड में हो पुरे 

मैं- तो इर तुम दूर क्यों हो आओ मेरे पास जरा 

पिस्ता मेरे पास आकर खड़ी हो गयी 

मैं- बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे है, सुलझी हुई है जुल्फे और हम उलझ रहे है
मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कलि से, तुम भी समझ रहे हो , हम भी समझ रहे है 
अब भी हसीं सपने आँखों में पल रहे है, पलके है बंद फिर भी आंसू निकल रहे है 
नींदे कहा से आये, बिस्तर पर करवटे है, वहा तुम बदलते हो यहाँ हम बदल रहे है “


पिस्ता बस कातिल अदा दिखाते हुए मुस्कुराने लगी उसके होंठ लरज़ने लगे मैं उसकी तरफ बढ़ा और बिना कुछ कहे बड़ी सादगी से उसके लबो को अपने लबो से जोड़ दिया उसकी शैतान सांसे मेरी साँसों से उलझने लगी थी , उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसको चूमने लगा सच में पिस्ता को चूमने में बड़ा ही मजा आता था था उसको दरवाजे से लगाये मैं उसको किस पे किस किये जा रहा था थूक हमारे होंठो से नीचे टपक रहा था ना वो कम थी ना मैं 


मैंने उसकी सलवार के नाडे को जो खीचा तो सलवार उसके पांवो में जा गिरी उसकी गोरी गोरी टाँगे बल्ब की रौशनी में चमकने लगी ब्रा की ही तरह उसने कच्छी भी जालीदार ही पहनी हुई थी मैंने जल्दी से अपने कपडे उतार दिए मैं उसमे समा जाने को पूरी तरह से आतुर हो उठा था ,ना कोई रोक थी ना कोई टोक थी बस वो थी मैं था और हमारी अधूरी हसरते थी होंठो पर एक प्यास थी दिल में एक आस थी कुछ जज्बात थे कुछ उल्फ़ते थी मैंने पिस्ता के सर के बालो में लगे रबड़ को खीच कर उसके बालो को आजाद कर दिया और उसके उस निखरे हुए रूप को निहारने लगा
पिस्ता ने मुझे धक्का देकर खुद से परे किया और बोली-“ मैं अभी आती हूँ ”

वो अपनी गांड को मच्काती हुई नीचे चली गयी उसी हालात में मैं अपने खड़े लंड को हिलाने लगा जल्दी ही वो वापिस आ गयी उसके हाथ में एक बाउल था , मैंने देखा उसमे रसमलाई थी 

मैं- ये किसलिए 

वो- मेरे हूँस्न का स्वाद इसमें मिला के चखो मजा आएगा 

मैं मंद मंद मुस्कुराया पिस्ता ने कटोरे से रसमलाई को अपने होठो से लेकर बोबो पर गिराना शुरू किया आज तो क़यामत ही गिराने का इरादा कर रखा था इसने , उसके हलके गुलाबी होंठ पूरी तरह से रस से भीग चुके थे हूँस्न का छलकता हुआ जाम मेरे सामने था देर कितनी थी उसे अपने लबो से लगाने की, मैं पिस्ता के होंठो पर उसके सीने पर पानी जीभी फिराने लगा वो और रसमलाई गिराने लगी मैं बार बार सुको चाटने लगा पिस्ता के बदन में गर्मी बढ़ रही थी जब जब मैं उसकी रस से भीगी चूचियो की कोमल निप्पल को चूसता तो उसकी सिस्कारिया बता रही थी की पिस्ता के तन में कितनी आग भर गयी है 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#57
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
अब मैं उसकी नाभि तक आ चूका था नाभि के छेद में अपनी जीभ को घुसाने की कोशिश करने लगा पिस्ता का पेट उत्तेजना के मारे कांप रहा था मैं उसकी कच्छी की इलास्टिक में अपनी उंगलिया फंसाई और उसको नीचे को सरका दिया ufffffffffffffffff बिना बालो की वो रेशमी चूत कितनी सुन्दर लग रही थी , पिस्ता ने ढेर सारा रस कटोरे से अपनी टांगो के जोड़ पर गिराना शुरू किया मैं उसकी टांगो के बीच बैठ गया और अपने चेहरे को उसकी चूत पर लगा दिया रसमलाई अन्दर तक चूत में जा चुकी थी , 


चूत से बहता हुआ कामरस रसमलाई से मिलकर और भी स्वादिष्ट और रसीला हो गया था पिस्ता की टाँगे थर थराने लगी थी ओह्ह्हह्ह्ह्ह आह्ह्हह्ह्ह्हह्ह करने लगी थी वो, मेरी लाप्लाप्ती जीभ उसकी चूत में जितना हो सके अन्दर घुसने को बेताब हो रही थी दिवार के सहारे खड़ी वो ऐसी हिल रही थी जैसे की आजकल के मोबाइल को वाइब्रेशन मोड़ पे छोड़ दिया हो जैसे , पिस्ता की चूत को ऊपर से नीचे तक मजे से मैं चाट रहा था पिस्ता की पांवो में पड़ी पायल की झंकार बता रही थी की उसका हाल उस समय क्या था 


मैंने उसको पलता और ढेर सारी रसमलाई उसके कुलहो पर गिरा दी और वहा पर अपनी जीभ फिराने लगा पिस्ता के बदन में अलग अलग फीलिंग आने लगी वो ऊपर से नीचे तक ऐसे लग रही थी जैसे की रसमलाई में पड़ा बड़ा सा मिठाई का टुकड़ा हो ऊपर से वो कामवासना में जलती हुई घायल शेरनी , पिस्ता ने मुझे बेड पर लिटाया और मेरे लिंग प्रदेश को पूरी तरह उसी रस से सरोबार कर दिया और टूट पड़ी उस पर जैसे की किसी जंगली शेरनी को मनपसंद शिकार मिल गया हो 

मेरे लंड के सुपाडे को उसने नीचे को सरकाया और कटोरे से मलाई को उड़ेलने लगी उस पर वो उफ्फ्फ्फफ्फफ्फ्फ़ क्या अदा थी हूँस्न्वाली की , फिर उसने अपने होठो पर जीभ फेर कर उनको गीला किया और टूट पड़ी मेरे लंड पर मेरे सुपाडे में जैसे कर्रुंत आने लगा उसकी लिजलिजी जीभ से , जीभ को गोल गोल घुमा कर वो सारी रसमलाई को चाटने लगी आज से पहले इतना मजा मुझे सच में ही नहीं आया था मेरे पुरे बदन के तार जैसे एक साथ बजने लगे हो अपनी मुट्ठी में भरके मेरी गोलियों को दबा रही थी वो धीरे धीरे करके मेरे पुरे लंड को अपने मुह में ले लिया था उसने थूक और रसमलाई के मिश्रण से सना हुआ मेरा लंड उसके लिए एक मस्त कुल्फी बन गया था जिसे बड़े ही प्यार से वो चूस रही थी 


मेरा लंड एक उम खूंखार अवस्था में आ चूका था मैंने उसको वहा से हटाया पिस्ता को फर्श पर घोड़ी बनाया दिया उसकी गांड का कटाव क्या सुन्दर लग रहा था मैंने उसकी चूत पर लंड को रखा और उसकी कमर को थाम लिया पिस्ता ने अपनी आँखे बंद कर ली और ठीक उसी समय मेरा लंड दनदनाता हुए उसकी चूत में प्रविष्ट होने लगा उसने मजबूती से अपने हाथ फर्श पर जमाये और अपनी गांड को थोडा सा खोल सा दिया मेरा लंड चूत से रगड़ खाते हुए अन्दर जाने लगा 


ooohhhhhhh हाय रे धीरे !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! मैं उसकी कमर को थामे ले चला उसको चुदाई के सफ़र पर अपने साथ पिस्ता के मस्त मस्त चुत्तढ जब हिलते थे तो मुझे और भी जोश आता था उसकी चूत बेहद गीली हो रक्खी थी तो लंड को और आसानी हो रही थी पिस्ता ने अपनी टांगो को बिलकुल आपस में चिपका लिया जिस से की चूत का छल्ला लंड पर बुरी तरह से काफी टाइट कसा जा चूका था ठप्प थाप की थाप देते हुए उसके कुलहो पर चुदाई शुरू हो चुकी थी 


उम्प्फ्फफ्फफ्फ्फ़ आह aahhhhhhhhhhhhhhh ओह्ह्हह्ह्ह्ह रे 

आह अआः ummmmmmmmmmmmmmmm 

बस ऐसी ही मिली जुली प्रतिकिर्या हो रही थी पिस्ता की और मेरी चुदाई का सुरूर हम दोनों पर छा चूका था पर ज्यादा देर उसको घोड़ी नहीं बना पाया था , फर्श उसके घुटने पर लगने लगा था तो वो उठ गयी लंड चूत से बाहर आ निकला ,मैंने उसे देखा पिस्ता की चूत का गाढ़ा रस लगा हुआ था उस पर पिस्ता ने अपने चेहरे पर घिर आई जुल्फों को साइड में किया और लंड को मुह में ले लिया 

मैं- आह चाट जा तेरी चूत के सारे पानी को , देख चख कर कितना मजेदार पानी है तेरा ओह्ह्हह्ह्ह्ह मेरी जान्न्न्नन्न्न्नन्न्न्न बस ऐसे ह्ह्ह्हह्हह्ह्ह choosssssssssssssss 

पर जल्दी ही उसने लंड को अपने मुह से बहार निकाल दिया और बिस्तर पर चढ़ गयी मैंने पास में रखा तकिया उसके कुलहो के नीचे लगाया पिस्ता ने अपनी टांगो को खोल दिया चूत के होंठो को खुलते बंद होते देखा मैंने , मैं अपने लंड के अगले हिस्से को चूत के मुहाने पर आहिस्ता से रगड़ने लगा तो पिस्ता के बदन में आग और भड़कने लगी उसने अपनी गांड को थोडा सा उचकाया और मैं फिर से उसमे समाता चला गया फिर कुछ होश ना रहा मुझे ना उसे कोई खबर थी 


कभी वो मेरे ऊपर कभी मैं उसके ऊपर चुदाई का ख्याल तो बहुत पीछे रह गया था , अब तो बात थी एक दुसरे को पछाड़ने की उसके निचले होंठ को अपने दांतों से दबा रखा था मेरा, हम ऐसी स्टेज पर आ गए थे की अब दर्द भी मजा दे रहा था , पिस्ता दो बार झड चुकी थी, उसके चेहरे से पसीना टप टप करके टपक रहा था वो बदहवास सी हो रही थी पर मेरा भरपूर साथ दे रही थी , बहुत गरम लड़की थी वो सच में जब वो तीसरी बार झड़ी तो मेरा संयम भी टूट गया और लंड हिलोरे मारते हुए उसकी चूत को अपने रस से भरने लगा
आज मैं कुछ इस तरह से झडा था की जैसे पता नहीं कितनी सदियों बाद बंजर जमीन पर बरसात हुई हो बदन की जैसे जान ही निकल गयी हो कतरा कतरा इतनी बुरी तरह से थक गया था मैं पिस्ता के ऊपर से उठने वाला थी था की उसने इशारे से मुझे रोक दिया और अपने ऊपर ही लिटा लिया मुझे पता नहीं कितनी देर हम दोनों एक दुसे से लिपटे पड़े रहे जब कुछ होश सा आया तो हमारा हाल बहुत बुरा था पूरा शरीर चिप छिपा रहा था , गला प्यास से सूख रहा था 

मैं- ठंडा पानी पिला यार 

वो उठते हुए- आजा नीचे चलते है हालत बहुत बुरी है नहाना ही पड़ेगा लगता है 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#58
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं और वो नंगे ही नीचे आ गए, पिस्ता ने एक बोतल निकाली पानी की मैं एक बार में ही आधे से ज्यादा पी गया तब जाकर मेरे गले को थोडा चैन मिला ,बाकी बचा पानी उसने पिया और फिर वो पानी की होदी की तरफ बढ़ गयी मैं भी उसके पीछे पीछे पहूँच गया आधी रात में पानी भी ठंडा कुछ ज्यादा ही हो रखा था पर उसकी ठंडक दूर भाग जानी थी पिस्ता जैसा गरम बम जो कूद पड़ा था पानी में 


पिस्ता और मैं नहाने लगे अपने शरीर से रसमलाई और पसीने को साफ़ करने लगे, हम दोनों एक दुसरे के बेहद करीब ही खड़े थे मेरा लंड बार बार उसके पैरो से रगड़ खा रहा था वो मेरी आँखों में देख रही थी मैं उसकी आँखों में देख रहा था, मैंने पास रखा साबुन उठाया और उसके बोबो पर लगाने लगा जल्दी ही उसकी दोनों छातिया पूरी तरह से झाग में छुप गयी थी ,अच्छे से उसके बोबो पर साबुन लगाने के बाद मैंने पिस्ता को पलट दिया अब उसकी गांड मेरे लंड पर रगड़ खाने लगी थी लंड में फिर से तनाव आने लगा था मैं उसके बोबो को दबाने लगा मसलने लगा 


वो भी अपने हाथ को पीछे ले आयी और मेरे लंड को हिला हिला के खड़ा करने लगी उसकी मुलायम उंगलियों के जादू से जल्दी ही लंड फिर से फुल फॉर्म में आ गया पिस्ता ने पानी का डिब्बा अपने चूचो पर डाला साबुन बह कर नीचे गिरने लगा , मैंने उसके पाँव को थोडा सा खोला और अपने लंड को पीछे से ही चूत की तरफ सरका दिया मैंने आज से पहले पानी में कभी चूत नहीं मारी थी तो , पानी में चूत और लंड का मिलन होना बहुत ही अलग अहसास हो रहा था 


पिस्ता ने अपनी गांड को पीछे की तरफ से पूरी तरह उभार लिया था ताकि मैं मस्त तरीके से उसको चोद सकू उसकी कमर के चारो और अपने हाथो को लपेटे मैं खड़े खड़े ही उसको चोदे जा रहा था हमारे आस पास का पानी बुरी तरह से हिल रहा था पानी की ठंडक अब महसोस नहीं हो रही थी बस एक आग थी जो हमारे जिस्मो में जल रही थी , पुच पुच पुच पुच करते हुए मेरा लंड बार बार पिस्ता की चूत के दरवाजे को खोल रहा था बंद कर रहा था वो बेकरार थी मैं बेताब था 


दनादन दे दनादन मैं उसकी चूत मार रहा था पिस्ता ने खुद को पूरी तरह से मुझे समर्पित कर दिया था और मैंने उसको वो झट से आगे को हुई और मेरी तरफ घूम गयी , वो पानी में ही मेरी गोदी में चढ़ गयी और मैंने फिर से लंड को चूत में सरका दिया पानी में मैं उसको आराम से उठा प् रहा था वो धीरे धीरे करके मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगी , उसकी गोरी बाहे मेरे गले में पड़ी थी , उसकी नागिन सी जुल्फे गीली होकर कभी उसके चेहरे पर कभी मेरे चेहरे पर पड़ रही थी , छप्प छाप्पक करते हुए मजा ही मजा आ रहा था पिस्ता ने अपने होंठ फिर से मेरे होंठो पर सजा दिए थे 


उसके मोटे मोटे चुत्तद को मजबूती से थामे हुए मैं उसको अपनी बाहों में झुला रहा था साँसे सुलग रही थी ऊपर आसमान में चाँद चमक रहा था जिसका नूर उस पानी में दिख रहा था वो बी हमारे प्रेमलाप को देख कर मुस्कुरा रहा था तभी पिस्ता मेरी बाहों ने एकदम से फिसल कर पानी में जा गिरी 

वो- क्या करते हो 

मैं- बहुत भारी हो गयी हो तुम 

वो- ये क्यों नहीं कहते की तुम कमज़ोर हो गए हो 

मैं- फिसलन है फिसल गयी चल आजा फिर से 

पिस्ता खेली की दिवार पर गांड टिका कर बैठ गयी और टांगो को फैला लिया मैंने उन्हें थमा और अपने कंधे पर रख लिया पिस्ता ने अपने दोनों हाथ दिवार पर मजबूती से जमा दिए और फिर से मेरे लंड को चूत में लेने लगी , चुदाई का खुमार कुछ ऐसा चढ़ा था उस पल की ठन्डे पानी में भी माथे से पसीना टपक रहा था मैं और वो इस सफ़र की मंजिल को फिर से पाने को चल दिए थे बड़ा सुना था की पानी में आग लगा दी आज पता चला था की पानी में आग कैसे लगा करती है 


उसकी कसी हुई चूत की रगड़ाई से मेरे लंड को बहुत आनंद आ रहा था उसके मजे की गवाह तो उसकी वो मादक आवाजे थी जो उसके गले से निकल रही थी ,

पिस्ता- मुझीईए उतार नीचे जल्दी से 

मैं- क्यों 

वो- होने वाला है मेरा जल्दी से उतार 

मैंने उसको उतर और वो थोडा झुक कर चुदने लगी उसके पैर बहुत काप रहे थे उसने एक आह भरी और उसकी चूत का रस खेली के पानी में मिलने लगा मैं उसको सुख अनुभव के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था तो मैं तेज तेज धक्के मारने लगा ताकि वो जोर से झड सके , झड़ने के बाद पिस्ता उकताने लगी चिडचिडी होने लगी वैसे तो मैं छुटने को ही था पर निकल नहीं रहा था पिस्ता की चूत की चिकनाई कम होने से वो झालाने लगी थी 

मैं- होने ही वाला है बस दो मिनट रुक जाना 

पिस्ता- अन्दर मत छोदियो 

मैं- तो कहा पर , मुह में लेगी क्या कभी तो मेरा पानी पि ले 

वो- ठीक है तू कौन सा रोज रोज कहे गा , मुह में ही डाल दे 

मैंने लंड को चूत से निकाल कर उसके मुह में दे दिया और पिस्ता गप्प गप्प उसको चूसने लगी उसकी जीभ की करामत को लंड ज्यादा नहीं सह पाया और मेरा वीर्य उसके मुह में गिरने लगा पिस्ता एक एक बूँद भी चाट गयी जब तक लंड मुरझा नहीं गया वो उसको चूसती ही रही आज की इन दो चुदाई ने , बल्कि तीन चुदाई कहना चाहिए दोपहर को बिमला को भी तो चोदा था मेरा बुरा हाल कर दिया था अब हिम्मत ना रही थी बाकी , चूत मारने के बाद जैसे जी ही निकल गया था मेरा,

पिस्ता ने मुझे तोलिया लाकर दिया मैंने शरीर को साफ़ किया और कपडे पहन लिए पिस्ता ने भी एक पतला सा सूट पहन लिया था बिना ब्रा-पेंटी के ही तो वो और भी माल लगने लगी थी मैं- “एक बार और दो गी क्या ”
वो- ना रे कोई रिकॉर्ड थोड़ी ना बनाना है चुदाई का, और ना ही दुनिया का अंत हो रहा है की आज के बाद लंड नसीब ही ना होगा , अब दूंगी तो फिर सुबह मैं तो खाट से ना उठ पाऊँगी , और वैसे भी अपन तो मिलते ही रहते है फिर कभी कर लेंगे 

मैं- क्या करू यार तू है ही इतनी गजब की मुझसे कण्ट्रोल ही नहीं होता 

वो- अब इतनी भी तारीफ़ ना किया कर मेरी 

मैं- भूख लगने लगी है कुछ खाने को है तो ले आ 

वो- होटल खोल रखा है क्या मैंने, जरा घडी में टाइम देख भूख लगी है 

मैं- नखरे ना कर ज्यादा, साली तेरा मेहमान हूँ कुछ तो खातिर कर मेरी 

वो- खातिरदारी में दो बार चूत दे दी वो क्या कम है , रोटी तो ना पड़ी, नमकीन- बिस्कुट है कहे तो चाय बना दू उसके साथ खा लिए 

मैं- तू तो चुदे भी रसमलाई से हमे चाय दे के तरका रही हो 

वो- ना मेरे राजा, तेरे लिए तो 56पकवान बना दू पर जरा वक़्त की नजाकत को समझो अब कौन रसोई में घुसेगा इस टाइम 

मैं- मुझे ना पता कुछ भी , भूख लगी है तो लगी है घर जाके रसोई खोलूँगा तो कोई जाग जायेगा फिर फ़ालतू दो बात सुन नि पड़ेंगी 

पिस्ता- चल ठीक है , अब तो घना ख़ास दोस्त रह गया , तेरी मनचाही तो करनी ही पड़ेगी आजा रसोई में चलते है आज की रात तो मेरी बर्बाद गयी तेरी रोटियों की तस्सली तो करुँगी ही
मैं और वो रसोई में आ गए वो आलू काटने लगी मैं फ्रिज में देखने लगा तो मुझे मक्खन का डिब्बा मिल गया 

मैं- एक काम कर आलू रहने दे, दो चार रोटिय सेक ले मक्खन है काम चल जायेगा 

वो- ठीक है 

पिस्ता आता लगाने लगी मैं उसके पास खड़ा हो गया बाते करने लगा 

मैं- वैसे तू है मस्त माल यार, चोदके तुझे मजा आ जाता है 

वो- झूठी तारीफे ना करा कर , ये सब चूत लेने के पुराने चून्च्ले है 

मैं- तुझे बड़ा पता है नए पुराने का 

वो- बस पता है 

मैं- तूने कभी चुदाई के सीन वाली फिलम देखि है 

वो- बीअफ़ बोल न सीधे सीधे 

मैं- तुझे पता है 

वो- अनपढ़ समझ ली के 

मैं- कहा देखि तूने 

वो- है मेरे पास , भाई पिछले बार आया था तो वो भूल गया था मैंने चलाई तो फिर मैंने ही रख ली 

मैं- तू भी यार , गजब है एक दम 

वो- कोई शक है तन्ने 

मैं- ना री, 

वो- तो फिर बस रोटिया खा और निकल ले इधर से अब बस बाद में ही मुलाक़ात होगी 

मैं- एक बार और दे देना 

वो-फ़ालतू की जिद ना किया करो तुम, मुझे दिन में काफ़ी काम करने होते है सची कह रही हूँ मेरी तो हिम्मत नहीं है , मैंने कभी तुझे मना किया है क्या कभी जो जिद कर रहे हो 
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12-29-2018, 02:34 PM,
#59
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने फिर उस से कुछ नहीं कहा बस तबियत से चार रोटी टांक दी और पिस्ता की दो चार पुप्पिया ली और घर आ गया , गनीमत थी सब लोग सोये पड़े थे तो मैंने चुपके से दरवाजे को अन्दर से कुण्डी लगायी और अपनी खाट पकड़ ली , कुछ तो चूत मारने की थकान थी कुछ रोटियों का असर तो नींद आ गयी जबरदस्त वाली ना कोई सपना आया ना कुछ और बस सो रहा तह मैं गहरी नींद में की किसी ने हिला कर जगा दिया , आँखों को मसलते हुए मैंने देखा की चाचा सामने खड़े है 

मैं- सोने दो न क्यों परेशान कर रहे हो 

वो- उठा तो सही , 

मैंने- नींद भारी आँखों से घडी पर नजर डाली सुबह के साढ़े चार हो रहे थे, अब उस बख्त क्या दिक्कत हो गयी जो जगा दिया 

चाचा- मुझे काम से जाना है जरा सहर छोड़ आ बस अड्डे तक 

मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुबह सुबह गांड क्यों नहीं मार लेते मेरी , अब कौन जायेगा इनको छोड़ने पर मरता क्या ना करता तो खटारा स्कूटर को मारी किक और चाचा को लेकर शहर की तरफ बढ़ चला , अब सुबह सुबह कहा धरना देंगे ये, बड़े ही दुखी मन से उनको छोड़ के आया मैं घर में सन्नाटा पसरा पड़ा था मैं चाची को बताने गया तो देखा की वो सोयी पड़ी है उनकी साडी चुचियो पर से सरक गयी थी ब्लाउज में मस्त ऊपर नीचे होती उनकी गोल मटोल छातिया मेरे मन को भटकाने लगी पर चाची थी अपनी कर भी क्या सकते थे पर मन ना मन तो दो चार मिनट लिया नजारा लंड गरम होने लगा तो निकल लिया वहा से 


मेरी तो नींद हुई ख़राब अब क्या करू सोचा की बिमला के पास पहूँच जाऊ पर इतनी सुबह सुबह किवाड़ पिटूँगा तो कोई और भी जाग सकता फिर क्या कहूँगा तो ये प्लान भी किया कैंसिल, सोचा की पिस्ता के पास पहूँच जाऊ उसको जगा दू एक बार इर से चूत मार लूँगा पर दिन निकलने वाला भी था काफ़ी समस्या थी तो इर बस अपनी खाट ही पकड़ ली और आँखे मीच ली थोड़ी देर के लिए , सुबह सुबह को जो मीठा सा लटका आता है ना नींद का एक बार आँख लग जाये तो फिर 9 बजे से पहले आँख नहीं खुलनी 


और वो ही हुआ मेरे साथ, मैं जगा तो पिताजी ऑफिस जा चुके थे मम्मी मंदिर गयी हुई थी घर पर मैं और चाची ही थे , मैंने उन्हें देखा ऐसा लगता था की वो जैसे अभी अभी नहा कर ही निकली है बदन पर जो पतली सी साडी लपेटी थी उन्होंने उसमे से उनका बहुत बदन दिख रहा था गीले जिस्म से साडी बिलकुल चिपकी पड़ी थी उनको देखने का मेरा नजरिया एक दम से बदल आया उस दिन , चाची ने भी समझ लिया की मैं उनको ताड़ रहा हूँ तो वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी मैं भी घर से बाहर निकला और दूकान की तरफ चल पड़ा इस उम्मीद में की पिस्ता के ही दर्शन कर लूँगा रस्ते में 


पर उम्मीद से क्या होता है कुछ भी नहीं ,नहीं हुए दर्शन अब दिन का टेम तो डायरेक्ट रिस्क भी ना ले सकू मैं ऐसे ही दुकान पर टाइम पास कर रहा था की तभी वहा पर मंजू आई कुछ सामान लेने के लिए, मंजू मेरी हमउमर ही थी पर मुझसे एक क्लास छोटी थी, हम लोग वैसे तो एक ही मोहल्ले में रहते थे पर कभी उस से इतना कुछ बोल चाल हुआ नहीं था मेरा, कभी कभार के सिवाय ,दिखने में भी ठीक ठाक सी ही थी वो ना ज्यादा सुन्दर ना ज्यादा डाउन में थी , मंजू जब झुककर सब्जी उठा रही थी तो उसकी चुन्नी सरक गयी ढीले सूट में से उसके नटखट गेंदे मुझे दिख गयी तो मेरी नजर वहा पर रुक गयी मंजू भी भांप गयी की मैं क्या देख रहा हूँ 


उसने अपने आंचल को काबू में किया और मंद मंद सी मुस्कुरा पड़ी तो मैं भी हस दिया उसने अपना सामान लिया और चल पड़ी, थोड़ी दूर जाने के बाद उसने पलट कर एक नजर फिर से देखा और आगे को बढ़ गयी मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया एक बोतल कोका कोला की गटकने के बाद मैं घर गया तो मम्मी ने कहा की जाके रतिया काका की दूकान से पशुओ के लिए एक बोरी खल की ले आ और एक पीपा तेल का ले आईयो , आजकल मुझे घर के कामो में कोई दिलचस्पी रह नहीं गयी थी पर अपनी भी मजबुरिया थी तो साइकिल उठा कर पहूँच गया काका की दुकान पर 


खल की बोरी लादी , काका को तेल की कही तो वो बोले-“बेटा , दूकान में जो तेल है न उसकी काफ़ी लोगी ने शिकायत दी है की उसमे झाग ज्यादा आता है तो हम इस तेल को बेच नहीं रहे है , तू एक काम कर घर जा वहा पर कुछ नए पीपे है ताजा माल मंगवाया है तो घर से ले ले अब तुझे ख़राब तेल तो दे नहीं सकता ना ”
मैं- जी काका ,जैसा आप कहे 

वो- बेटा, घर पे तेरी काकी होगी तो उनसे कह दियो की आज दोपहर का खाना ना भेजे मैं जरा शहर को जाऊंगा 

मैं- जी, कह दूंगा 


गर्मी में बोरी को ढोना किसी सजा से कम नहीं था मैंने बोरी को प्लाट में रखा और फिर काका के घर पहूँच गया दो तीन आवाज दी तो मंजू निकल कर आई 

मैं- काकी है क्या 

वो- नहीं है , कही गयी है क्या काम है 

मैं- वो काका ने कहा की घर से तेल का पीपा ले लेना 

वो- अन्दर आ जाओ
मंजू को जी भर के देखा और फिर मैं उसके पीछे पीछे घर के अन्दर चला गया , उसने मुझे बैठने को कहा और रसोई में चली गयी, तुरंत ही वो पानी लेकर आई और गिलास मुझे देते हुए बोली- कौन से तेल का पीपा लेना है 

मैं- मतलब 

वो- अरे मतलब, सरसों का या फिर सोयाबीन का 

मैं- जो तुम्हारी मर्ज़ी हो दे दो, मैं तो लेने पर हूँ 

मंजू ने बड़ी गहरी नजरो से देखा मुझे और बोली- क्या कहा तुमने 

मैं- अरे, मेरा मतलब सरसों के तेल का पीपा दे दो 

वो आओ मेरे साथ , मैं और मंजू घर के पीछे वाले हिस्से में आ गए यहाँ पर उन्होंने गोदाम टाइप बनाया हुआ था मंजू बोली –“नया तेल ना उधर ऊपर की तरफ है रुको मैं उतार कर देती हूँ ”

उस कमरे में चारो तरफ बोरिया राखी हुई थी और एक साइड में ऊपर की तरफ तेल के काफ़ी पाइप रखे हुए थे कमरे में मिली-जुली गंध फैली थी तेल के कारण फर्श भी थोडा सा चिकना सा हुआ पड़ा था मैंने कहा – तुम रहने दो मैं उतार लेता हूँ 

मंजू- अरे मैं उतार देती हूँ , मेरा तो रोज का काम है 

वैसे तो वहा पर सीढ़ी भी राखी थी पर मंजू बोरियो पर चढ़ पर पीपा उतारने लगी उसकी कोशिश में मेरा ध्यान तेल से ज्यादा उसकी कुर्ती जो ऊपर हो गयी थी तो मैं उसकी गांड के साइज़ पर ज्यादा ध्यान लगा रहा था , तेल का पंद्रह किलो का पीपा मंजू की नाजुक कलाई ऊपर से बोरी पर बैलेंस गड़बड़ाया हुआ, मंजू का ध्यान थोडा सा आउट हुआ और बस हो गया पीपा हाथ से छुट गया और धडाम से आ गिरा फर्श पर वाह रे छोरी ! चारो तरफ तेल फ़ैल गया ऊपर से मंजू भी फिसली बोरी से मैं उसको पकड़ने आगे को भगा उसको थोडा सा थाम सा लिया था पर इधर तेल पर मेरा पैर फिसला और ऊपर से वो आ गिरी मुझ पर 


पैर जो फिसला मेरा तो फिसलता ही चला गया मंजू को जो थोडा सा थाम रखा था मैंने उसको लिए लिए ही मैं नीचे बोरियो से जा टकराया मैं उसके नीचे वो मेरे ऊपर तेल में सने हुए, पीठ में शायद चोट सी लग गयी थी पर उस से ज्यादा सुकून इस बात का था की मंजू मेरे ऊपर थी उसके संतरे जैसी चूचिया मेरे सीने पर अपना बोझ डाले पड़ी थी मैंने उठने की कोशिश में मंजू के कुलहो को कस के मसल दिया 

“आह” उसने एक सिसकी सी ली , मैंने उसको अपने ऊपर से साइड में किया और उठने लगा पर वह रे तेल क्या खूब साथ दे रहा था तू मेरा उठने की कोशिश में फिर से फिसल गया इस बार मंजू के हाथ की जगह उसका बोबा मेरे हाथ में आ गया , गजब ही हो गया मेरी टाइट पकड़ उसे बोबा बुरी तरह भींच गया “aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh ” चिल्लाई एक दम से मंजू, तो घबरा कर मैंने उसको छोड़ दिया और वो फिर से मेरे ऊपर आ गिरी इस बार मैंने कोई कोशिश नहीं की उसको हटाने की मुझे तो मजा ही आ रहा था 

मेरे मन में पता नहीं क्या आया मैं उसकी गांड को धीरे धीरे सहलाने लगा , मेरे हाथ को अपनी गांड की दरार में महसूस करके मंजू का तन बदन कांप गया , वो बोली- अब छोड़ो भी मुझे उठने दो 

मंजू उठी मैं भी बोरी का सहारा लेकर उठा , उसकी सलवार पूरी तरह तेल से गीली हो गयी थी मस्त लग रही थी वो , मेरे कपडे भी ख़राब हो गए थे 

मैं- सीढ़ी से ना उतार सकती थी क्या, मैंने कहा था मैं ले लेता हूँ देख क्या हो गया 

वो- क्या हो गया , पीपा तो तुमसे भी गिर सकता था ना 

मैं- हां पर मेरे कपडे तो खराब हो गए है ना अब मैं घर कैसे जाऊंगा , लोग देखेंगे तो हसेंगे 

वो- तो तुम्हे किसने कहा था हीरो बन् ने को 

मैं- एक तो तेरे हाड टूटने से बचा लिए और ये बोलती हो 

वो- अच्छा बाबा 

मैं- मुझे तो पीपा दे मैं जाता हूँ 

वो- तू अभी जा, मैं इधर की सफाई करके तुम्हारे घर दे आउंगी तेल 

मैं- ना मैं तो लेके ही जाऊंगा, घर पे मुझे डांट पड़ेगी 

तो- फिर इतंजार कर 

मैं- क्यों करू इंतज़ार , मुझे क्या और काम नहीं है 

वो- होंगे काम तो मैं क्या करू देख इधर चारो तरफ कितनी फिसलन हो गयी है पहले इसको साफ़ करुँगी फिर तेल दूंगी 

मैं- अभी दे मुझे तो 

वो- क्या कहा 

मैं- अभी दे तेल मुझे 

वो – ना देती क्या कर लेगा 

मैं- तेरे बापू को कह दूंगा 

वो जा कहदे 

मैं- मंजू टाइम ख़राब ना कर देख कितनी बदबू आ रही है मुझसे, तू पीपा निकाल मैं नहाऊंगा जाते ही 

वो- कहा न मैं पंहूँचा दूंगी 

मैं- मैं ने कहा की लेके जाऊंगा 

वो- कैसे ले लेगा 

मैं- अच्छी तरह ले लूँगा 

वो- लेके दिखा 

मैं- क्या लेके दिखाऊ 

जब मंजू को मेरी बात का मतलब समझ आया तो वो बुरी तरह से शर्मा गयी उसकी नजरे नीची हो गयी मुझे हँसी आ गयी , लड़की बुरी तरह से झेंप गयी थी मैंने उसको ज्यादा तंग करना उचीत नहीं समझा और कहा ठीक है तू पंहूँचा देना पर एक शर्त है मेरी तू आना चार बजे 

वो- ठीक है 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#60
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं वहा से फिर घर आ गया और बाथरूम में घुस गया कपडे धोने में नहाने में काफ़ी देर लग गयी तीन बार साबुन लगाई पर तेल की बॉस न गयी शरीर , नहा कर मैंने अपने बदन पर बस एक तौलिया लपेटा और अपने कमरे में आ गया मैंने देखा चाची मेरे कमरे में थी और वो एल्बम देख रही थी जिसमे मेरी, जोधपुर वाली तस्वीरे थी, ये कहा हाथ लग गयी इनके 

मैं- चाची, ऐसे किसी के पर्सनल सामान को नहीं देखना चाहिए 

चाची- आज कल कुछ ज्यादा ही पर्सनल नहीं हो गए हो तुम , वैसे तस्वीरे अच्छी है 

मैं- चाची उनको वापिस दे दो और जाओ यहाँ से 

वो- क्यों जाऊ, मैं भी तो देखू की बेटा जोधपुर में क्या गुल खिला के आया है 

मैं- आपको तो बस बात का पतंगड़ बनाना आता है 

वो- बदतमीज होते जा रहे हो दिन दिन तुम 

मैं- आप मेरी तस्वीरे दो मुझे अभी के अभी

वो- ना देती क्या कर लेगा 

मै- छीन लूँगा 

वो- छीन के दिखा

मैं उनके पास गया और तस्वीरे लेने लगा जोर आज्माईश पर उतार आई चाची जी मुझे डर था की कही वो उन तस्वीरों को मम्मी को न दिखा दे फिर ना कोई जवाब दिया जाता और रंगाई होनी थी वो अलग तो इसी कशमकश में मेरा तोलिया साला धोखा दे गया और वो खुल गया मैं हो गया नंगा चाची ने लजब मुझे नंगा देखा , मेरे हवा में झूलते हुए लंड को देखा तो उनका मुह खुला का खुला रह गया , आपाधापी में मुझे समझ नहीं आया करू तो क्या करू , अब 

मैंने खुद को संभाला और जल्दी से तौलिये को फिर से लपेटा शर्म बहुत आ रही थी चाची कमरे से जाने लगी दरवाजे पर पहूँच कर उन्होंने मुझे बहुत गहरी नजर से देखा और फिर बाहर को चली गयी
सबकुछ इतना जल्दी हो गया था की कुछ समझ ही ना आया खैर, अब मैं आया तैयार होकर तो चाची बोली- मैं जीजी के पास प्लाट में जा रही हूँ, शाम को ही आउंगी, घर का ध्यान रखना और घर पर ही रहना 
बोलकर वो चली गयी मैं टीवी देखने लगा , घर पर को था नहीं तो मन में खुराफात आने लगी मैं बिमला के घर गया तो वहा पर ताला लगा था अब ये साली कहा गयी, दिमाग खराब सा हो गया तो वापिस आ के सो गया अब जैसा मैं वैसे ही मेरे सपने , मुझे ऐसा सपना आ रहा था की जैसे मैं पिस्ता की ले रहा हूँ बस मेरा छुटने को ही हो रहा था की किसी ने मुझे जगा दिया तो मेरे मुह से निकल गया – “बस पिस्ता दो मिनट की बात है , रुक जरा ”

“क्या बात है जरा मुझे भी तो पता चले ”

मेरी आँख एक दम से खुल गयी, नींद छूमंतर हो गयी , मैंने देखा सामने मंजू खड़ी थी ,

मैं- क्या बात हो गयी 

वो- तुम ही कह रहे थे, पिस्ता दो मिनट की बात है 

मैं- मैं ऐसा क्यों कहूँगा , भला

वो- वो तो तुम जानो 

मैंने खुद की हालात पे गौर किया शरीर पसीने पसीने हो रहा था मैंने छत की तरफ देखा तो पंखा बंद पड़ा था बिजली नहीं थी ,

मैं- मंजू जरा फ्रिज सी थोडा पानी लाइयो 

वो पानी लेकर आई पानी पीकर मैंने पुछा – तुम कब आई 

वो- जब तुम पिस्ता की बात कर रहे थे 

मैं- कब कर रहा था 

वो- नींद में उसका सपना देख रहे थे तुम 

मैं- नाही नहीं 

वो- और नहीं तो क्या , वैसे तुम भी उसके सपने देखते हो पता नहीं था 

मैं- फ़ालतू की बात न कर ये बता तू यहाँ कैसे आई 

वो- तुमने ही तो बुलाया था

मैं- कब 

वो- बड़े भुल्लाक्कड़ हो तुम, सुबह तुमने ही तो कहा था की चार बजे आना , देख मैं आ गयी 

मैं- याद आया तेल कहा है 

वो- कभी तेल के सिवाय भी इधर उधर देख लिया करो और भी है कुछ हसीं ज़माने में 

मैं- हाँ वैसे तुम भी मस्त खूबसूरत हो 

वो- अच्छा , आने के काकी को कहूँगी 

मैं- कह दी, अब तेरे लिए क्या मैं सच भी न बोलू 

वो- पीपा संभाल अपना मैं तो चली 

मैं- ऐसे कैसे चली थोड़ी देर रुक जा घर पे कोई नहीं है 

वो- कोई नहीं है तभी तो ना रुक रही 

मैं- सबकुछ छोड़ ये बता, कहा रहती है तू आजकल दिखती नहीं 

वो- मैं तो इधर ही रहती हूँ , तुम्हारी नज़ारे औरो से हेट तो मैं दिखूंगी ना 

मैं- क्या कुछ भी बोलती रहती है 

वो- सची तो बोली, उधर तो तुम नीनू से चिपके रहते हो और यहाँ पिस्ता पिस्ता करते हो तो बताओ हमारी तरफ कब ध्यान जायेगा तुम्हारा 

मैं- क्या पिस्ता पिस्ता कर रही हो मेरा उस से क्या लेना देना 

वो- आच्छा , सपने में वो आये तुम्हारे और तुम कहो क्या लेना देना 

मैं- कल को तू सपने में आ गयी तो तुमसे भी लेना देना हो जायेगा इसका मतलब 

वो- तुम्हारे सपने तुम जानो मुझे क्या मैं चलती हूँ देर हो रही है 

मैं- कहा जाएगी जो देर हो रही है घर ही तो जाना है थोड़ी देर रुक जाएगी तो कौन सा आफत आ जाएगी 

वो- एक लड़के एक लड़की का ऐसे अकेले में रुकना गुनाह होता है 

मैं- तुम कहो तो ये गुनाह मैं अपने सर ले लू 

वो- ना, इतनी मेहरबानी की जरुरत नहीं है 

मैं- तो तुम कर दो मेहरबानी 

वो- कैसे 

मैं- ऐसे, कहकर मैंने मंजू को पकड लिया और सीधा उसको किस कर दिया मंजू के लाल होंठ कैद हो गए मेरी कैद में ,झुंझला कर उसने मुझे परे किया और गुस्से से बोली- आने दे काकी तो तेरी तो सारी मस्ती निकलवा दूंगी, दो बात क्या कर ली हंस कर तू तो सर चढ़ गया , अब देख तेरा क्या हाल करवाउंगी , तू तो गया मैं तुझे क्या समझती थी तू क्या निकला जा रही हूँ तेरी मम्मी के पास 

मैं- मंजू सुन तो सही , सुन तो सही 

पर वो कहा सुने, गुस्से में पैर पटकते हुए वो गयी वहा से मैंने अपना माथा पीट लिया आज तो गांड पक्का टूटने ही वाली थी , सारी आशिकी गांड में घुस गयी मेरी तो, अब हम क्या करे पटाने चले थे नयी चूत गांड मरवाने की नोबत आ गयी , मंजू के चक्कर में हाल बुरा होना था अब किया क्या जाये काफ़ी देर हो गयी सोचते सोचते शकल चूहे जैसी हो गयी , शाम हो गयी मैं वैसे ही टेंशन में बैठा रहा मम्मी घर आई पर उन्होंने कोई रिएक्शन न दिया नार्मल सी ही लग रही थी इधर मैं सावधान था रात हो गयी उन्होंने मुझसे कुछ नहीं पुछा तो मुझे लगा की मंजू ने शिकायत की की नहीं 


उसकी असमंजस में रात बीत गयी , अगली सुबह पहूँच गए शहर पढने को, नीनू आज ये नहीं थी मैं क्लास में जा रहा था की मुझे मंजू दिखी तो मैं दोड़ कर उसके पास गया और बोला- मंजू बात करनी है 

वो- दूर हो जा मुझसे मुझे ना करनी कोई बात वात

मैं- एक बार मेरी बात सुन तो ले फिर नाराज हो लेना 

वो- हट जा मेरी क्लास का टाइम हो रहा है, तमाशा मत कर मंजू चली गयी पूरा दिन मेरा मन नहीं लगा फिर दोपहर बाद मैं घर आया भूख भी लग रही थी पर रोटिया भा भी नहीं रही थी, अजीब परिस्तिथि थी ये भी दिमाग ख़राब वो अलग कुछ सोच कर मैंने एक लैटर लिखा जिसमे बार बार मंजू से माफ़ी मांगी थी और शाम को उसके घर की तरफ चल पड़ा , वो बारने में झाड़ू लगा रही थी मैंने गली में इधर उधर देखा कोई ना था मैंने धीरे से वो पर्ची मंजू की तरफ फैंक दी 


मंजू ने घूरते हुए मेरी तरफ देखा और फिर उस पर्ची को झट से उठा कर अपनी कुर्ती में डाल लिया मैं वहा से कट लिया और अपने खेत की तरफ बढ़ गया दिमाग में उधेड़बुन लिए खेत में कौन सा चैन मिला अपने को वहा जाकर ढेर सारी खरपतवार को साफ़ किया जो सब्जिया लगाई थी उनको ठीक से देखा की कोई दिक्कत तो ना हो रही जब घर के लिए चला तो अँधेरा सा होने लगा था मैं जानबूझ कर मंजू के घर की तरफ से निकला पर वो ना दिखी तो घर को हो लिए
घर आते है ऐसे लगता था की जैसे सारे जहाँ की मुसीबते मुझ पर ही टूट पड़ी हो , आज फिर घर में दाल बनी थी मेरा तो दिमाग ही दाल हो गया था हफ्ते में ४-५ बार यही बेस्वाद खाना खाना पड़ता था और शिकायत कर नहीं सकते , बेमन से रोटिया तोड़ने के बाद मैं चाची के कमरे में गया और बोला- मेरा एल्बम मुझे वापिस दे दो 

चाची- ले जा, वर्ना तुझे नींद नहीं आएगी 

मैं वापिस होने लगा तो वो बोली- इधर आ 

मैं उनके पास गया तो वो एल्बम में मेरी और नीनू की राजस्थानी ड्रेस वाली फोटो को देख पर बोली- ये तस्वीर अच्छी है , इसको फ्रेम करवा के अपने कमरे में लगवा लेना 

मैंने चाची को इस तरह से देखा जैसे की उनके सर पर सींग निकल आये हो 

वो- तुम्हारी दोस्त है 

मैं- मेरे साथ पढ़ती है 

वो-हां , तो दोस्त है तुम्हारी 

मैं- नहीं बस साथ पढ़ती है 

वो- बेटा, तुम झूठ क्यों बोलते हो आजकल 

मै- हां, मेरी दोस्त है 

वो- अच्छी बात है , तो छुपाते क्यों हो 

मैं- बस ऐसे ही 

वो-डरते हो 

मैं- डरना तो पड़ता ही है 

वो- तो फिर दोस्ती कैसी जो छुपानी पड़ते है 

मैं- आज आपको हो क्या गया है 

वो- बस तुम्हे कुछ समझाने की कोशिश कर रही हूँ 

मैं- क्या 

वो- ज़माने का दस्तूर , देखो बेटा हम नहीं चाहते की हमारी औलाद हमसे कुछ छुपाये, जानती हूँ तुम्हारी उम्र विद्रोही है, खून में उबाल है पर साथ ही तुम्हारे ऊपर कुछ जिम्मेदारिया है , इस घर की कुछ आस है तुमसे पर इसका मतलब ये नहीं है की तुम अपनी इन छोटी छोटी बातो को भी हमसे छुपाओ, 

मैं- आप सही कह रही है पर एक लड़की और एक लड़के की दोस्ती को कोई नहीं समझता 

वो- अगर तुम सही हो तो छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , जाओ आराम करो 

मैं अपने कमरे में आ गया और उनकी कही बातो को समझने की कोशिश करने लगा पर हमारा छोटा सा दिल तमाम ज़माने की परेशानियों से घिरा कहा उनकी गहरी बात को समझ पता अगले दिन इतवार था तो खूब देर तक सोने का इरादा करके बिस्तर को पकड़ लिया पर नींद साली दगा कर गयी , लाख जतन किया करवटे बदले कभी इस तरफ कभी उस तरफ पर वोही बेचैनी जो कही खो सी गयी थी दुबारा मुझ पर हावी होने लगी थी मैं कमरे से बाहर आया और छत पर बैठ गया रात की ख़ामोशी बेताब थी मुझसे बात करने को पर मेरे पास शब्द नहीं थे, रति की याद बड़ी जोर से आने लगी मुझे 
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