Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:30 PM,
#31
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
उसने अपनी मैक्सी को पीठ की तरफ से पूरा ऊपर कर लिया मैंने अपना हाथ उसकी पीठ पर टच किया कसम से बहुत जबदस्त फीलिंग आई इतनी मुलायम खाल थी उसकी मेरे छुते ही उसके बदन में सनसनाहट हुई , उसकी झुरझुरी को महसूस किया मैंने ,अपने हाथ को पीठ पर फिराते हुए थोडा सा ऊपर को किया मैंने तो उसकी ब्रा की स्ट्रेप से टकरा गया वो मैंने तुरंत हाथ हटाया वहा से और पूछा- कहा पर 

वो- नीचे की तरफ मैं हाथ को लाया यहाँ 

वो- नहीं और नीचे 

मैं- यहाँ 

वो- थोडा सा और नीचे 

अब मेरा हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से पर था मैंने कहा यहाँ 

वो- थोडा सा और नीचे और इसी के साथ मेरा हाथ उसकी पेंटी के इलास्टिक से जा टकराया यहाँ से उसके कुलहो का हिस्सा शुरू होता था ,वो थोडा सा शरमाते हुए- बोली बस यही पर ही बहुत दर्द है 

मैं- ठीक है, पर रती ये जो जगह हैं ना , देखो मेरा मतलब है की ........ 

वो- हां मैं समझ गयी तुम टेंशन ना लो 

मैं- ठीक हैं 

मैंने दवाई लगाना शुरू किया यहाँ पर थोड़ी मालिश करनी थी मैंने उसकी कच्छी को थोडा सा अपने स्थान से सरकाया उसके चुतद मेरे हाथो से टच होने लगे, हम दोनों में अब कोई बात नहीं हो रही थी बस चुपचाप मैं अपने हाथो को वहा पर फिर रहा था उसके बदन में गर्मी बढती सी लग रही थी मुझे , उसकी सांसो की सरगर्मिया चुहलबाजी सी करती लगी मुझे 


मैं- क्या हुआ 

वो- कुछ कुछ नहीं 

मैं- खामोश क्यों हो 

वो- पता नहीं 

मैं- कुछ तो बात हैं 

वो- कुछ नहीं 

तभी मेरी चिकनी उंगलिया उसकी गांड की दरार की तरफ फिसली वो चिहुंकी उसका एक साइड का कुल्हा मेरे हाथ में था अबकी बार जान कर मैंने उसपर अपना हाथ फेर दिया रती के बदन में कंपकंपी छुट गयी पर तुरंत ही मैंने वहा से अपना हाथ हटा लिया वो बहुत लरजने से लगी थी मैं धीरे धीरे उसकी मालिश कर रहा था ये बात और भी की बीच बीच में मुझसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी हो जाया करती थी करीब १५-२० मिनट तक ऐसा ही चलता रहा उसका तो पता नहीं पर मेरा हाल बहुत बुरा हो गया था मेरा लंड फटने को तैयार था 



मैंने- कहा हो गया , 

उसने शुक्रिया अदा किया . 

टाइम भी ज्यादा हो गया था तो अब बस सोना ही था रती अपने बिस्तर पर थी मैं पास में एक गुदड़ी पर लेट गया अब घर जैसा कहा मिले पर अजनबी सहर में इतना आसरा भी किसी फाइव स्टार से कम नहीं था नींद भी जल्दी ही आ गयी पता नहीं रात के कितने बजे थे कमरे में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था बस पंखे के चलने की ही आवाज आ रही थी मेरी आँख खुली तो मैंने अपने शारीर पर कुछ महसूस किया तो पता चला की मेरी छाती पर रती का हाथ है 

वो सरक कर मेरी और खिसक गयी थी मेरे गालो पर उसकी साँसे पड़ रही थी , ये बात मेरे ध्यान में आते ही मेरा लंड हरकत में आ गया चूत मेरे इतने पास थी , पर मुझे ख्याल आया की कही ये मुझे परख तो नहीं रही पर जल्दी ही पता चल गया की वो बस एक ख्याल था वो तो मस्त थी अपनी नींद की दुनिया में हम जागती आँखों से परेशां 

अब मीच ली आँखे और करने लगे प्रयास सोने का देर सवेर नींद आ ही गयी
अगला दिन काफ़ी अरमान लिए आया कल का पूरा दिन बेफआलतू में ही कट गया था सुबह उठा तो रति मुझ को दिखी नहीं थोडा फ्रेश वगैरा होकर आया तब भी वो नहीं थी ये कहा गयी थोडा इंतज़ार किया पर वो ना आई करीब आधा घंटा हो गया तब वो आई, 


कहा गए थे 


वो- बस जरा पास की दुकान तक गयी थी 


मैं- मै चला जाता पैर में लगी पड़ी है फिर भी , ये लापरवाही ठीक नहीं हैं 


वो- पर जाना भी जरुरी था 


मैं- आप जानो मैं ये कह रहा था की मैं चलता हूँ शाम को आऊंगा कुछ काम हो तो बताओ 


वो- काम कुछ भी नहीं 


मैं- तो मैं जाता हूँ 


वो- एक मिनट रुको , वो तुम्हारे पैसे तो लेते जाओ तुम्हे जरुरत पड़ेगी उसने अपनी अलमारी खोली और मुझे मेरे पैसे दिए मैंने मन ही मन शुक्रिया कहा उसको और ये पंछी निकल पड़ा आजाद आसमान में उड़ने को , अब समय था रंगीले राजस्थान के रंगों में रंग जाने का , ऑटो पकड़ा उसको पता बताया और सफ़र शुरू हो गया टाइम तो अभी कुछ ना हुआ था पर धुप काफी हो गयी थी ऑटो में बैठे मैं सहर को देख रहा था हवा मेरे बालो से टकरा रही थी 



औटोवाला भी साला लीचड़ ही था , बहुत देर लगादी उसने पर शुकर था की पंहूँचा ही दिया ,राजे महाराजो के किस्से कहानिया तो बहुत सुने थे हमने आज उनको अनुभव करने का समय था अपने बैग को सँभालते हुए मैं उतरा और वही पास में खड़े होकर नीनू का इंतज़ार करने लगा मेरे चारो तरफ चहल पहल मची पड़ी थी कुछ देसी- कुछ विदेशी लोग वो छोटा सा बाजार तरह तरह के सामान जैसे की कोई मेला लगा हो , 



थोड़ी देर बाद मेहरबान भी आ गयी, क्या गजब लग रही थी वो आज एक दम फैशन में आँखों पर चश्मा लगाये खुले बाल हमारा तो दिल ही धडक गया मैं तेजी से बढ़ा उसकी और , वो मुझे देख कर मुस्कुराई 


कैसी हो पूछा मैंने 


वो- मस्त तुम बताओ 


मैं- मैं भी ठीक बस तुम्हारी यद् आई 


वो- आ तो गयी हूँ 


बाते करते करते हम लोगो ने पास लिए और चल दिए सच कहू कुछ तो बात थी राजस्थान में किले का नजारा बड़ा मस्त था ऐसे लग रहा था की जैसे ये ही अपने आप में एक शहर हो क्या ठाठ बात आज तो ये फिर भी समय की मार झेल रहा है पर अपने दिनों में जब ये जवान होगा खूब होगा मैंने नीनू का हाथ पकड़ा और हम एक साइड में बैठ गए 


वो- क्या हुआ 

मैं- थोडा सा थक गया हूँ 


वो- अभी से , अभी तो कुछ भी नहीं देखा 


मैं- हां यार सुबह से कुछ खाया पिया भी नहीं थोड़ी प्यास भी लग आई है 


वो- लो पानी पियो और चलो फिर ऊपर से पुरे सहर को देखोगे तो भूख प्यास सब मिट जाएगी 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#32
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं पानी पीते हुए ठीक हैं तो फिर चलो ओर जल्दी ही हम उस अद्भुद नज़ारे को देख रहे थे शहर ऐसे लग रहा था की कोई नील का खेत हो हर तरफ एक आभा सी छाई हुई थी मनमोहक नजारा मैंने बैग से कैमरा निकाला और फोटो खीचने लगा तभी मेरी नजर दूर बहुत दूर रेत के समंदर पर पड़ी , सहर दूर कड़ी धुप में चमकता हुआ सा वो नजारा अब क्या कहू मैं उसके बारे में खो सा गया मैं तो 


नीनू- क्या हुआ क्या देखने लगे 


मैं- कुछ नहीं ऐसे ही 


वो- मस्त दीखता हैं न इधर से 


मैं- हां यार 


मैं- तेरी फोटू खीछु क्या 


वो- हां वो जो तोप है न बड़ी सी उधर चल के खीच 


नीनू की काफ़ी तस्वीरे खीची, अलग अलग तरह से हंसती मुस्कुराती अपने आप में मस्त लड़की दो चार फोटो हमने साथ खिचवाई आज का दिन बड़ा शानदार था बस हम दोनों थे मैं बस नीनू के साथ इन्ही लम्हों को तो जीना चाहता था ऐसा ख्याल मेरे दिल में आया 



मैं- इस किले की भी कोई कहानी होगी न 


वो- होगी पर मुझे पता नहीं वैसे भी कितनी सदियों से ये ऐसे ही हैं कितनी कहानिया यहाँ बनी होंगी और मिट गयी होंगी


मैं- बात तो तेरी सही हैं 


मैं- नीनू, कितनी छोटी- मोटी प्रेम कहानियो को जवान होते देखा होगा ना इसने 


वो- छोटी- मोटी क्या होता, प्यार तो प्यार होता हैं चाहे राजाओ का हो या आम इंसानों का 


मैं- तुझे बहुत पता है प्यार के बारे में 


वो- मैं कोई ना समझ हूँ क्या तेरी तरह 


बाते करते करते हम लोग एक ऐसी जगह पर आ गए जहा थोड़ी सी छाया थी और शान्ति भी हम बैठ गए वहा पर की मेरी नजर पड़ी दीवार पर कुछ लोगो ने अपने नाम लिख रखे थे जैसे – मनोज- पिंकी 

रेखा- राज फलाने फलाने 


मैं- देख नीनू हम भी अपना नाम लिखे क्या 


वो- ये तो कोई प्रेमी जोड़ी की कारस्तानी लगती है पर हम कोई प्रेमी थोड़ी ना है 


मैं- दोस्त तो हैं ना 

वो- दोस्तों का नाम कौन लिखे है रे पगले 


मैं- तो नाम लिखने के लिए प्यार करू के तुमसे 


वो- प्यार और मुझसे मजाक मस्त करते हो तुम 


मैं- तुमसे प्यार नहीं कर सकता क्या 


वो – छोड़ो ना बेकार की बाते, तुम्हे नाम लिखना है लिख दो तुम्हारी तस्सली हो जायगी 


मैं- और कही सच में प्यार हो गया तो 


वो- नहीं होगा 


मैं – हो गया तो 


वो- तुम्हारी दिक्कत होगी वो मेरी ना वैसे भी ये प्यार वफ़ा सब किताबो फिल्मो में ही ठीक लगते है अपने पास और भी तो बाते है वो करो ना 


मैं- अगर कही मुझे तुमसे प्यार हो गया तो ........... 


वो काफ़ी देर तक खामोश रही फिर बोली- देखो अभी तो नहीं हुआ हैं ना तो फिर अभी क्यों सोचना जब होगा तब की तब सोचेंगे हम उस पल के लिए अपने इस पल को क्यों ख़राब करे चलो आओ खाना खाते है मुझे पता था तुम तो भूखे ही मिलोगे तो मैं ले आई थी 



उस भोली सी लड़की की यही बाते तो मार जाती थी मुझे बड़ी ही खूबसूरती से बातो का रुख मोड़ दिया था उसने हँसी ठिठोली करते हुए हमने खाना ख़तम किया और फिर से लगे टहलने कभी इधर कभी उधर खुद को किसी राजा से कम न समझ रहा था मैं , मैंने देखा की एक औरत कुछ सामान बेच रही है उसके पास एक झुमको की जोड़ी देखि मुझे भा गयी बिना मोल भाव किये मैंने खरीद लिए 


नीनू- झुमके किसके लिए लिए तुमने 


मैं- है कोई 

वो- बताओ ना 

मैं- कहा ना है कोई 

वो- कही मेरी सौतन तो नहीं
मैं उसकी बात को सुन कर हंस पड़ा और कहा – अच्छा जी तो बात यहाँ तक पहूँच गयी है बस हम ही अनजान रह गये


वो- ऐसे ही कह रही थी तुम्हे जलाने को तुम सच मान बैठे 


मैं- हम तो इसी ग़लतफहमी में भी उम्र गुजार दे तुम कहो तो सही 


वो= बड़े शायराना हो रहे हो आजकल बात क्या है कही सची में तो किसी से दिल नहीं लगा लिया है तुमने 


मैं- हमारी ऐसी किस्मत कहा 


वो- तुम्हारा कुछ पता नहीं फितरत जो आवारा है तुम्हारी 


मैं- तो फिर इस आवारापन को कोई मुकाम दे क्यों नहीं देती तुम 


वो- मैं ही क्यों 


मैं- तुम ही क्यों नहीं 


वो- ना जी ना 


मैं- कह भी दो हां 


वो- दिल्लगी करते हो 


मैं- मोहबात है जो छह नाम दे दो 


वो- सच में 


मैं- तुम जानो 


वो- इतनी अच्छी लगती हूँ क्या 


मैं- तुम ही जानो 


वो- तुम तो बताओ 


मैं – कुछ नहीं बताने को 


वो- क्यों भला 


मैं- जो सब कुछ जाने उसको क्या बताना मेरा हाल कहा तुमसे जुदा है 


वो- बातो में कोई ना जीते तुमसे 


मैं- कुछ बाते समझो भी तुम 


वो- समय का इशारा किस और 


मैं- ढलती छाँव में जवान मोहब्बत की और 


वो- और अंजाम क्या 


मैं- मैं ना जानू 


वो- तो फिर किसको पता 


मैं- जो उसके रंग में रंगे 

वो- पर कौन 

मैं – हम तुम 

वो- ना ना 

मैं क्यों नहीं , 

वो- चलो छोड़ दो वक़्त की लहरों पर खुद को देखते है क्या लिखा तकदीर की कलम ने 


मैं- तुम भी ना 

वो- चलो अब ये झुमके दे भी दो मुझे जानती हूँ मेरे लिए ही ख़रीदे हैं तुमने मैं मुस्कुराया और झुमके उसके हाथो में दे दिया 



मैं- झुमको के साथ पायल भी खरीद लू 


वो- एक लड़की को पायल पहनाने का मतलब जानते हो 


मैं- हर चीज़ का मतलब होना जरुरी हैं क्या 


वो- कुछ चीज़े बेमतलब भी तो नहीं होती ना 


मैं- चल फिर जाने दे 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#33
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
साँझ ढलने लगी थी तपता सूरज अब ठंडा हो रहा था उसकी लालिमा में मेरे अरमान अपने सवालों का जवाब तलाश रहे थे नीनू बोली- अब मैं चलती हूँ कल तुम फ़ोन करना फिर मैं बताउंगी मैं- ठीक हैं उसने ऑटो पकड़ा और चली गयी मैं भाग कर वापिस गया और एक जोड़ी पायल पिस्ता के लिए खरीद ली वो भी मुझसे कही ना कही जुड़ गयी थी , ये और बात थी की कुछ बाते बस बाते ही थी उनका कोई मतलब नहीं था कुछ एर के लिए मैं कही खो सा गया था सोचने लगा की वो मेरी ज़िन्दगी में कहा फिट होती है कुछ बातो का अंजाम तक पंहूँचा भी तो जरुरी होता हैं 



दिल में एक तीस सी लगने लगी पिस्ता से मिलने की ललक सी उठी पर अब वो कहा मैं कहा था मैंने सोचा क्या उसके घर फ़ोन करू पर फिर ये ख्याल भी कुछ जंचा नहीं चला था मैं जो खुद को तलाशने इस राहे सफ़र पर लोग मिलते गए मैं उलझ ता गया , पूरा दिन हंसी ख़ुशी बीता था मेरा पर अब ये शाम की उदासी अपना असर दिखाने लगी थी मुझ पर ये पता नहीं क्या बात थी मेरे साथ पता नहीं कौन सा दुःख था जो कभी दूर होता नही थी जिंदगी एक हसीं साए की तरह बाहे फैलाये खड़ी थी मेरे इस्तकबाल के लिए बस मुझे ही कदम बढ़ाना था 



सिटी बस के धक्के खाते हुए थका हारा मैं मास्टरनी के घर पंहूँचा और बिस्तर पर पड़ गया 


रति- कैसा दिन बीता तुम्हारा , थके हाल लगते हो 


मैं- दिन तो मस्त बीता एकदम जिंदगी में पहली बार खुली हवा में साँस जो ली, पर थक भी बहुत गया हूँ, 


वो- नाहा लो तब तक मैं तुम्हारी लिए चाय बनाती हूँ 


मैं- ठीक है जी 


पसीने से भीगे शरीर पर जो ठंडा पानी पड़ा तो कसम से लगा की ज़िन्दगी के सबसे बड़े सुख को पा लिया हैं काफ़ी देर तक खूब मल मल कर नहाया रूह तक ताजगी का एहसास हो गया मुझे , फिर रति के हाथो से बनी मस्त अदरक वाली चाय मजा आ गया 



चाय पीने के बाद मैंने पूछा- डॉक्टर को फिर से दिखाया क्या 

वो- ना, 

मैं- तो ठीक है चलो फिर अभी चलते है 

वो- पर अभी कैसे चल सकते है 


मैं- काम तो होता रहेगा उसने वैसे भी तीन दिन का कहा था जल्दी से तैयार हो जाओ चलते है अभी के अभी 



तो करीब आधे घंटे बाद पब्लिक ऑटो में एक दुसरे से सटे हुए हम हिचकोले खाते हुए जा रहे थे रति ने एक ढीला सा सूट डाला हुआ था नार्मल सा बस चेकअप ही तो करवाना था शाम का समय लोगो के घर आने का टाइम थोड़ी सी भीड़ मैं सरका उसकी ओर हमारे पाँव एक दुसरे से सटे हुए रगड़ खाए मेरे मन में कुछ कुछ होने लगा अब मन पर किसका जोर वो तो कभी भी बहक जाये उसको क्या लाज शर्म मेरी कोहनी उसकी छातियो से हल्का हल्का सा छु रही थी इसका अहसास उसको भी था ऊपर से ऑटोवाले ने एक सवारी को और एडजस्ट करने को कहा थोडा बहुत सरकम सरकाई हुई मैं और सरका उसकी और उसकी मांसल जांघो से मेरी टाँगे उलझने लगी रति ने अपना हाथ मेरे घुटने पर रख दिया 


मैंने- पूछा कोई परेशानी 


वो- नहीं और मुस्कुराई 

मेरे शारीर में उन हरकतों से गर्मी बढ़ने लगी सफ़र अपनी जगह पर मेरे दिमाग में कुछ और ही चलने लगा मैं थोडा सा बहकने अलग और बार बार अपनी कोहनी से उसके बोबो को टच करने लगा थोड़ी देर बाद ऑटो ने ब्रेक लगाये तो मैंने अपने हाथ से उसकी कोमल जांघ को दबा दिया पर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया मेरे दिल का चोर थोडा सा गुस्ताख होने लगा 



ऑटो फिर से चल पड़ा पर मैंने अपना हाथ उसकी जांघ से नहीं हटाया बल्कि थोडा थोडा सा उसको सहलाता रहा रति के चेहरे पर काफ़ी तरह के भाव आते जा रहे थे जिन्हें मैं समझने की कोशिश करने लगा ये छोटे मोटे सफ़र भी अक्सर कुछ ऐसे काम कर दिया करते है जो हमेशा हमे याद रहते है अब जो मैंने उसकी जांघ को थोडा सा दबाया तो उसने फ़ौरन अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और थोडा सा दबा दिया कठोरता से .
मेरी तो जैसे साँस ही रुक गयी उसने अपना हाथ वैसे ही रखा उसके बाद मैंने कुछ नहीं किया और ख़ामोशी से बैठा रहा कुछ देर बाद नर्सिंग होम आया , हम उतरे , डॉक्टर ने चेक वगैरा किया कुछ खास था नहीं ज़ख्म भरने में टाइम तो लगना ही था एक दो दवाई और जोड़ दी करीब घंटे भर बाद हम फारिग हुए बड़े शहरों की रात हम वहा से थोड़ी दूर पैदल ही आ गए एक जगह पर आइसक्रीम वाला खड़ा था रति बोली- आओ कुल्फी चखते है और हम वहा पर पहुँच गए 


वो काफी रिलैक्स लग रही थी उसके चेहरे को छूती जुल्फे जिन्हें वो बार बार साइड में करती थी कुल्फी चखते हुए मेरा ध्यान उसके नरम होंठो पर था जो कुल्फी की मलाई से सने हुए थे ऐसे लग रहा था जैसे की उन से ही मलाई टपक रही हो मेरा चंचल मन मचलने लगा वैसे ही काफ़ी दिनों से अपना काम हुआ नहीं था ऊपर से चढ़ती जवानी हाल मेरा बुरा करू तो क्या करू गाँव में होता तो पिस्ता थी बिमला थी पानी निकाली का जुगाड़ था अपने ख्यालो में कुछ ज्यादा ही खो गया था मैं कुल्फी कब पिघल कर नीचे गिर गयी पता ही नहीं चला तन्द्रा तब टूटी जब रति ने मुझे हिलाया कहा खो गए तुम देखो कुल्फी भी ख़राब हो गयी रुको मैं एक और लेती हूँ तुम्हारे लिए 
मैं- नहीं कोई जरुरत नहीं पर वो कहा सुनने वाली थी मेरी 

एक बार फिर से हम चलने लगे की उसने पूछा- गर्लफ्रेंड की याद आ गयी थी क्या 
मैं- मेरी गर्लफ्रेंड है ही नहीं 
वो- तो फिर किसके ख्यालो में खो गए थे 
मैं- कहा खोया था मैं कही भी तो नहीं 

वो-झूट क्यों बोलते हो , कही तुम्हारी उसी दोस्त की याद तो नहीं आ गयी जिसके साथ आये हो 
मैं- ना 
वो- पर किसी का तो ख्याल था ही 
मैं- वो तो बस ऐसे ही 
वो- ओह कम ओन्न बता भी दो न देखो चेहरे का रंग कैसे उड़ गया हैं तुम्हारा 

मैं- बस ऐसे ही कुछ याद आ गया था 
वो- वो ही तो मैं पूछ रही हूँ की क्या याद आ गया , अगर मुझे अपनी दोस्त मानते हो तो फिर बता भी दो वर्ना मैं ये समझूंगी की तुम मुझे दोस्त नहीं समझते हो 
मैं उलझा उसकी बातो में 
मैं- कही सुनकर तुम नाराज ना हो जाओ 
वो- नहीं होउंगी 
मैं- पक्का 
वो- हां बाबा पक्का 
मैं- वो दरअसल जब तुम कुल्फी चख रही थी तो मेरा ध्यान तुम्हारे होंठो पर चला गया था 
रति एक पल के लिए शॉक हो गयी पर फिर बोली- तो क्या ओब्सेर्व किया तुमने 
मैं- तुम बहुत खूबसूरत हो 
वो- हम्म , क्या सच में 
मैं- तुम्हे नहीं पता क्या 
वो- अगर ऐसा हैं तो मेरे पति मेरी तरफ क्यों नहीं देखते 
मैं- मैं कुछ नहीं कह सकता तुम लोगो के आपस का मामला है तुम्ह ही बात करनी होगी 
वो- तुम मेरे पति होते तो तुम्हारा क्या नजरिया होता 
मैं- मैं कैसे कह सकता हूँ 
वो- क्यों नहीं कह सकते जब तुम मेरी खूबसूरती को निहार सकते हो उसके बारे में बात कर सकते हो फिर ये इमेजिन करने में क्या दिक्कत हैं 
मैं- दिक्कत हैं क्योंकि मैं नहीं जानता की उनकी सोच किस तरह से हैं मेरा मतलब हर व्यक्ति के विचार अलग अलग होते है जैसे की देखो मुझे तुम्हारे लम्बे बाल पसंद है जबकि किसी को तुम छोटे बालो में पसंद आओगे 
वो मेरे हाथ को थामते हुए, एक बार इमेजिन तो करो ना अच्छा चलो तुम्हारे तरीके से तो बताओ 
मैं- किस तरीके से बताऊ, मैं तुम्हे जानता ही कितना हूँ 
वो- अच्छा जी तो किसी अजनबी को उस तरह की नजर से देख सकते हो लड़की को ताड़ लो एक्सरा कर लो उसका अपनी निगाहों से वो ठीक है पर जब कोई डायरेक्ट पूछ ले तो बोलती बंद हो गयी 

मैं- देखो तुम मेरी बात समझ नहीं रही हो 
वो- तुम मेरी बात समझो , देखो ऐसा मान लो की मैं ही वो लड़की हूँ जिसकी तलाश हैं तुम्हे इस से तुम्हारे लिए थोडा आसन होगा 
मैं- उलझाओ न मुझे इन बातो के तार में 
वो- सच में 
मैं- देखो मुझे नहीं पता की वो कौन होगी कैसी होगी जो मेरे दिल को धड़का पाएगी और फिर कहा आसन होता है अगर कोई पसंद भी आ जाये तो उसको अपना बना लेना अपने चाहने ना चाहने से क्या हो 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#34
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वो मेरे और थोडा पास आई और बोली- अपनी आँखे बंद करो और उसके बारे में सोचो जिसे तुम पसंद करते हो जिसके ख्याल हमेशा तुम्हारे तस्सवुर में रहते है 
मैं- पर तुम तो अभी बोल रही थी की तुम्हे इमेजिन करू 
वो- तो कहा कर रहे हो तुम 
मैं- कोशिश करता हूँ मैंने एक ठंडी सांस ली और अपनी आँखे बंद की और सोचने लगा मुझे पता था की शायद नीनू आएगी मेरे ख्यालो में पर जो चेहरा मेरी नजरो में आया मैं खुद हैरान रह गया 

मैंने झट से अपनी आँखे खोली चेहरे पर हैरानी थी मेरे 
क्या हुआ कहाःउसने 
मैं- कुछ नहीं 
वो- कौन दिखी 
मैं- जाने दो ना 
वो- अरे सस्पेंस में ना छोड़ो 
मैं- रति, पता है मैं सोच रहा था की या तो नीनू होगी या पिस्ता भी हो सकती है पर ये तो कुछ और ही दिखा बस एक अजनबी सी परछाई सी दिखी मुझे झलक भर कुछ देख भी ना पाया मैं ठीक से पर जाने दो इनसब को विअसे भी तकदीर जिस ओर ले जाएगी उधर ही जाना होगा आओ चलो घर चलते है मुझे भूख भी बहुत लगी है 
उसके बाद उसने भी कोई सवाल नहीं किया हम ने ऑटो लिया और घर आ गए मुझ मेरी उसी उदासी ने घेर लिया था ख़ामोशी में ही खाना हुआ मैंने बिस्तर का एक कोना पकड़ लिया मेरी धड़कने थोडा अजीब व्यवहार कर रही थी मैंने सोचा की आखिर मुझे इसके बारे में सोचना ही क्यों है रति ने खामखा मुझे उलझा दिया था ये बस महज बाते थी कोरी बाते वैसे भी जिंदगी की बस शुरुआत ही थी अब कौन जाने भविष्य में क्या हो 

सो गए क्या पूछा उसने 
मैं- नहीं तो 
वो- क्या सोच रहे हो 
मैं – तुम्हारी खूबसूरती के बारे में 
वो- सच में 
मैं- और नहीं तो क्या 
वो- तुम्हे अच्छी लगी मैं 
मैं- हां 
वो- कितनी अच्छी 
मैं- कितनी तो पता नहीं पर अच्छी हो देखो तुमने मेरे रहने और खाने का खर्चा जो बचा दिया 
वो- पर बाजार में तो किसी और नजर से देख रहे थे तुम 
मैं- अब नजरो की कारस्तानी नजरे जाने उनपे कहा मेरा बस चलता है 
वो- बाते बड़ी चोखी करते हो तुम 
मैं- जी मैं तो बस बात करता हूँ 
मुझे थोड़ी नींद आ रही है मैं सोता हूँ , आदमी को रात को नरम बिस्तर मिल जाये ये भी जिन्दगी का परम सुख है उस एक गुदड़ी की एक साइड में रति थी दूसरी तरफ करवट लिए मैं उअर हमारे आलावा एक पंखा जो चल कम रहा था आवाज ज्यादा कर रहा था , रात को मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की रति बिलकुल मरे पास ही है उसकी पीठ मेरी तरफ थी मैक्सी घुटनों से थोडा ऊपर तक चढ़ी पड़ी थी रति की गोल मटोल छातिया किसी धोंकनी की भांति ऊपर नीचे हो रही थी उसके इस रूप को देख कर मेरे अन्दर बेईमानी आने लगी 


मेरे लंड में कब कसावट आ गयी पता ही नहीं चला मैं थोड़ी देर तक उसको देखता रहा लालच मुझ पर सवार होने लगा मैंने उठ कर बल्ब बंद किया और धीरे से उसके पास सरक गया हालाँकि मैं जनता था की इस औरत ने मुझे पराये सहर में आसरा दिया है पर हवस मेरे सोचने समझने की शक्ति को थोडा सा कम कर रही थी , मैं थोडा सा सरका और उस से चिपक गया उसकी गांड पर मेरे लंड को धीरे धीरे से रगड़ने लगा मेरा बदन ऐसे हो गया की पता नहीं कितने दिन इ बुखार चढ़ा हो 

मैंने अपने कांपते हाथ को उसकी चूची पर रख दिया और उसकी तरफ देखा वो नींद में बेखबर सोयी पड़ी थी हौले से उसको दबा मैंने बड़ा अच्छा लगा बिना ज्यादा दवाब डाले मैं सहलाने लगा दो दो को चोद दिया था पर आज ऐसे लग रहा था की जैसे पहली बार हो मैंने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और उसकी गांड पर रगड़ने लगा अब डर तो था पर मजा भी बहुत आ रहा था थोड़ी देर ऐसे ही निकल गयी फिर रति ने करवट ली और मेरी तरफ हो गयी मेरे पास बहुत पास 

उसकी साँसे मेरे गालो पर पड़ने लगी मुझे लगा की जैसे मेरी तो सांस ही रुक गयी हो मैं वहा से सरकने ही वाला था की हद हो गयी नींद में ही उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और अपनी एक टांग को मेरे ऊपर रख दिया अब मैं भाग भी नहीं सकता था वहा से इधर औरत के हाथ की गर्मी पाते ही लंड महाराज और फुफ्करनी लगे मेरी परेशानी हुई दुगनी इधर बदन में वासना के कीड़े तैर रहे थे दूसरी तरफ दिमाग कुछ और कह रहा था बदन क रोंगटे खड़े हो गए थे पर ये पता नहीं था की डर के है या रोमांच के 


मैंने रति के हाथ को अपने लंड पर दबाया तो मजा आया मैंने सोचा थोडा सा मजा लेना चाहिए मैं उसके हाथ को अपने हाथ से लंड पर हिलाने लगा धीरे धीरे से जैसे की वो ही मेरी मुठ मार रही हो धीरे धीरे से लंड और खूंखार होने लगा दिलो दिमाग चीख चीख कर कह रहा था की चोद दे इसको चोद दे इसको पर हाई रे किस्मत पर थोड़ी देर बाद मुझे ऐसे लगा की जैसे उसकी पकड़ लंड पर कसती जा रही हो मैं सोचा कही रति जाग तो नहीं गयी तो मैं रुक गया और उसको गोर से देखने लगा पर वो वैसे ही शान्ति से सो रही थी 

पर लंड को जो गन्दी आदत थी वो बिना पानी निकाले कहा मानने वाला था वर्ना फिर वो जीने नहीं देता तो मैं फिर से उसके हाथ से लंड को हिलाने लगा बीच बीच के एक दो बार और लगा मुझे की उसकी पकड लंड पर कसी हो पर अब मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया और थोड़ी देर बाद मेरा सख्लन हो गया ढेर सारा वीर्य उसके हाथ पर गिर गया थोड़ी शान्ति सी बी मिली मैंने अपनी शर्ट से उसके हाथ को साफ़ किया और फिर सो गया
सुबह मैं उठा तो रति बिस्तर पर ही बैठी अखबार पढ़ रही थी उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा और बोली- रात को अच्छी नींद आई 
ये सुनते ही मैं थोडा सा सकपका गया पर फिर खुद को सँभालते हुए बोला- हां ठीक नींद आई 
रति- कल रात को गर्मी बहुत थी ना, ये पंखा भी न बराबर ही हैं सोच रही हूँ की एक कूलर ले ही लू अब ये गर्मी सही नहीं जाती 
उसने मेरी और देखते हुए कहा उसकी नजरे मुझ पर ही जमी थी मुझे बिलकुल नहीं समझ आया की ये बात वो किस रूप में कह रही है मैं बस उठा और बाथरूम में घुस गया वो ही सही लगा मुझ को बार बार यही ख्याल सटा रहा था की कही रात को रति जाग तो नहीं रही थी फिर मैंने सोचा की अगर ये जाग रही होती तो रात को ही कुछ ना कुछ तो बोलती जरुर काश कोई उपाय होता जिस से दुसरे के मन की बात को समझ सकते तो मेरी ये मुश्किल आसन हो जाती पर ऐसा मुमकिन नहीं था 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#35
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
खैर नाहा धोकर हुआ तैयार , 
मैंने रति से पूछा की स्कूल कब जाओगे 
वो- कुछ दिन के लिए छुट्टी ली है और फिर मेरी स्कूटी भी ठीक करवानी है 
मैं- मैं करवा लाता हूँ उसको 
वो- नहीं इधर पास में ही एक ऑटो शॉप है उधर ही हो जायेगा 
मैं- ठीक है और कुछ काम हो तो बताओ कुछ सामान वगैरा मंगवाना हो या कुछ भी 
वो- नहीं सब ठीक ही है वैसे तो मुझे आज मंदिर जाना था पर तुम अपना प्रोग्राम एन्जॉय करो मैं फिर कभी हो आउंगी इतना भी जरुरी नहीं हैं 
मैं- जरुरी क्यों नहीं है जब जाना है तो जाना है तुम फटाफट से तैयार हो जाओ चलते है फिर मेरा क्या हैं मैं तो इधर घुमने ही आया हूँ तुम्हारे साथ घूम लूँगा इसी बहाने क्या पता मेरी भी कोई दुआ कबूल हो जाये 
रति हंस पड़ी और बोली- तुम आखिर हो क्या चीज़ 
मैं- बस एक मुसाफिर 
वो- ठीक है मैं बस यु तैयार हो जाती हूँ 
मैं- हां 
रति बाथरूम में घुस गयी मैंने सोचा की नीनू को फ़ोन करलू तो मैं घर से बाहर आ गया एसटीडी की तरफ मैंने नीनू को किस्सा बताया तो वो काफी नाराज हुई , अब मेरी वजह से उसके प्लान की बैंड जो बजनी थी मैंने उसको समझाया जैसे तैसे करके तो उसने कहा की वो कल नहीं चल पायेगी उसके मामा की छुट्टी है कल तो अब परसों ही मिलेंगे मैंने कहा ठीक है जैसे तुम कहो 

ये ज़िन्दगी कैसे कैसे रंग दिखा रही थी मुझको कहा तो मैं क्या था और अब क्या हो गया था करीब आधे घंटे बाद जब मैं वापिस गया तो रति साडी पहन रही थी उसको उस तरह देख कर फिर से मन में उछल कूद सी होने लगी बिना आँचल के उसके ब्लोउज का कातिल नजारा उसके ठोस संतरे जैसे कह रहे हो दूर क्यों खड़े हो आओ हमारा रस निचोड़ लो मुझे देख कर रति ने अपने पल्लू को ऊपर किया और बोली बस ५ मिनट तैयार हो ही गयी हूँ 

मेरा मन तो कर रहा था की तुम कभी तैयार होना ही मत बस ऐसे ही इस सेक्सी नज़ारे को मुझे दिखाती रहो मेरी धडकनों की सरगोशिया कुछ तेज सी हो गयी थी रति की पतली कमर ऊपर से उसने अपनी साडी को नाभि से थोडा नीचे की तरफ बाँधा हुआ था तो गजब लग रही थी वो ५ फूट के सांचे में ढली वो सुंदर मूरत कही ना कही उसके प्रति मेरी भावनाओ को बहका रही थी मैं चाह कर भी उसके आकर्षण में कैद होने स खुद को बचा नहीं पा रहा था 

कहा खो गए कहा उसने 
मैं- बस तुम्हे ही देख रहा था 
वो- अगर देखना हो गया हो तो अब चले 
मैं- हां चलो 

गहरे गुलाबी रंग की साडी में क्या गजब लग रही थी आज तो जैसे की कोई अप्सरा ही कहर ढाने के मूड में हो उसके गीले बाल जो कमर से भी नीचे तक आकर उसके पुष्ट नितम्बो को जैसे चूम रहे हो मेरा तो मन कर रहा था की हर लाज शर्म छोड़ कर रति को अपनी बाहों में भर लू और जी भर कर प्यार करूँ उसके योवन की झुलसा देने वाली गर्मी से तपने लगा था मेरा क्या करू मैं किस किस को समझाऊ अपने इस भटकते हुए दिल को पेंट के ताने हुए लंड को दोनों की अपनी अपनी हसरते थी 

कहा खो गए चलना नहीं है क्या –कहा उसने 
मैं- हां हां 
बाते करते हुए हम लोग मेन चोराहे तक आये तो रति ने बताया की वो मंदिर ना सहर से करीब १५ किलोमीटर दूर है एक गांवमे पर हैं बहुत अच्छा तुम्हे भा जायेगा 
मैं- अब तुम कह रही हो तो अच्छा ही होंगा न 
हमने बस ली शुकर था की सीट मिल गयी रति खिड़की वाली साइड पे बैठी थी हवा उसकी जुल्फों को चूम चूम कर जा रही थी मैं बस उसको ही निहार रहा था चोर नजरो से पर चोरी तो चोरी होती है कभी भी पकड़ी जाए उसने भी पकड़ ली 

रति- अब इतना भी यु ना देखो मुझे कोई खामखा गलत मतलब निकाल लेगा 
मैं- पता नहीं क्यों मैं खुद को रोक नहीं प् रहा हूँ 
रति- होता है इस उम्र में अट्रैक्शन होता है 
मैं- वो बात नहीं है पर ऐसे लगता हैं की जैसे कोई डोर है जो मुझे तुम्हारी और खीच रही हो 
वो- लाइन मारने का इरादा कर लिया क्या तुमने 
मैं- नहीं , नहीं पर सच कहू तो तुम अच्छी भी लगने लगी हो मुझे 
वो- पर मैं किसी और की अमानत हूँ 
मैं- जानता हूँ पर मान ने को जी नहीं करता 
वो- पर सच हमेशा ऐसा ही होता है और सच तो ये है की कुछ डोर उलझी होती है इस तरह से की वो कभी खुल नहीं सकती बल्कि उलझती ही जाती हैं 
मैं- पर कुछ चीज़े हर बंधन से दूर होती है 
वो- जैसे की 
मैं- जैसे तुम्हारा मेरा रिश्ता 
वो- मुझे नहीं लगा की ऐसा कोई रिश्ता है 
मैं- उसके हाथ को थामते हुए तक़दीर का रहा होगा कुकन हा कुछ तो वास्ता जो तुमसे यु मिला दिया 
वो- मुझे शब्दों के जाल में बांध रहे हो 
मैं- अपना हाल बता रहा हूँ तुम्हे
सफ़र बदस्तूर जारी था वो थी मैं था और कुछ खामोशियाँ थी जो हम दोनों के दरमियान आ कर खड़ी हो गयी थी बीते तीन दिनों में ही रति को अपने बहुत करीब महसोस करने लगा था मैं जैसे की वो मेरा ही कुछ हिस्सा हो उसके मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे दर्द को महसूस करता था मैं हर पल हमारी हसरते, हमारी आरजुएं ये पागल भटकता हुआ मन बावरा कहा ज़माने के दस्तूर समझता है कुछ भी तो नहीं लगती थी वो मेरी पर फिर भी अपनी सी लगने लगी थी उस सफ़र में हमारी बातो का सिलसिला तो कब का ख़तम हो गया था उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख लिया और आँखे मूँद ली बातो को टालने का हूँनर अच्छा था उसका 


पर ये छोटा सा सफ़र भी जल्दी ही ख़तम हो गया और हम अपनी मंजिल की तलाश में चल दिए रति ने मुझे बताया की किस तरफ चलना है , ये कोई गाँव था जिसकी बहरी तरफ में ये मंदिर था सबकुछ अपना सा ही लग रहा था पर अगर कुछ दोष था तो मेरी नजरो में जो रति के जिस्म को अपनी हवस के तीरों से बींध रही थी मैं बहुत कोशिश कर रहा था पर चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पल पल हर पल उसको पा लेने का मेरे लालच बढ़ता ही जा रहा था उसका मैं क्या जानू पर मेरा हाल ऐसा ही था बस किसी तरह पा लू उसको इतनी हसरत में ही सिमट गया था मैं 


रति ने बताया की ये एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो भी दुआ दिल से मांगो हमेशा पूरी होती है मैंने कहा - फिर तुम्हारे हिस्से की ख़ुशी कहा है क्यों तुम्हारी दुआ कबूल नहीं होती है 

रति- शायद मेरे में ही कोई कमी होगी 

मैं- ऐसा न सोचो 

रति ने कुछ जवाब नहीं दिया हमने प्रसाद की थाली खरीदी और लाइन में लग गए एक तो गर्मी का मोसम ऊपर से लाइन भी बहुत लम्बी, भीड़ हद से ज्यादा मैं रति के जस्ट पीछे खड़ा था भीड़ में जो कसमसाहट हुई तो मैं उस से बिलकुल चिपक सा ही गया उसकी भारी गांड को मैं अपने अगले हिस्से पर महसूस करने लगा मेरे दिमाग के तार बुरी तरह से झनझना गए उस पल उस अजीब से माहौल में मुझे उसके इस तरह से नजदीक आने का मोका मिल रहा था मेरा दिमाग मुझे रोके बार बार पर मेरा बेचैन दिल मुझे आगे बढ़ने को कहे 



मेरा लंड खड़ा होना शुरू हो गया हालात पे मेरा जोर कहा चलता था वैसे भी मैं जरा सा आगे और सरका और अपने खड़े लंड को रति की गांड से छुआ ने लगा उसके ठोस चूतड बड़े कमाल के पर तभी मुझे लगा की जैसे रति ने अपने कुलहो को खुद पीछे की तरफ किया हो मेरा लंड तो जैसे पेंट की कैद को तोड़कर भागने की फ़िराक में था उस पल को लाइन किसी चींटी की तरह रेंग रेंग कर आगे को बढ़ रही थी मेरा दिल बार बार कह रहा था की इस मोके का पूरा फायदा उठा ये ही रास्ता है रति की चूत तक पहूँचने का और मैं मजबूर इंसान 


तभी भीड़ में पीछे से मुझे धक्का सा लगा तो आप धापी में मैंने बैलेंस बिगड़ने के दर से रति की कमर को पकड़ लिया मक्खन सी चिकनी उसकी कमर पर मेरी पकड़ कस गयी रति को चिकोटी काटने जैसा दर्द हुआ उसने पीछे मुड कर देखा और बस मुस्कुरा कर रह गयी मैंने अपना हाथ उसकी कमर से नहीं हटाया बल्कि धीरे धीरे से कमर को सहलाने लगा एक तो जबरदस्त भीड़ ऊपर से गर्मी जान खाए रति के बदन से आती पसीने की खुशबू मेरे रोम रोम में एक उत्तेजना सी जगा रही थी इधर मेरा लंड जैसे उसकी साडी समेत ही उसकी गांड में घुसने को बेताब हो रहा था मुझे पता था की रति को भी लंड की उसकी गांड पे मोजुदगी का पूरा एहसास होगा पर वो कुछ शो नहीं कर रही थी बस हाथो में पूजा की थाली लिए निश्चिन्त खड़ी थी 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#36
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरी हिम्मत थोड़ी सी और बढ़ी मैंने अपनी उंगलियों से उसकी नाभि से छेड़खानी शुरू कर दी रति के पेट वाला हिस्से में कम्पन होने लगा मुझे भी मजा आने लगा रति ने अपने सर को बिना घुमाये ही मेरी तरफ किया और बोली क्या कर रहे हो गुदगुदी होती है 

मैं- अच्छा लग रहा है तुम्हे 

रति- हाथ हटाओ वहा से आस पास कितने लोग है और तुम मुझे छेड़ रहे हो 

मैं- सच में 

वो- और नहीं तो क्या 

मैं- तो फिर छिड लो ना थोड़ी देर 

वो- ना जी ना 

मैं उसकी नाभि को धीरे से कुरेदते हुए उसके कान के पास फुसफुसाया - अच्छा नहीं लग रहा क्या 

वो- बेकार की बाते न करो और चुप चाप खड़े रहो लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे 

मैं- क्या कहेंगे 

वो- कहेंगे नहीं बल्कि मुझे छेड़ने के लिए सुताई कर देंगे तुम्हारी 

मैं- वो भी मंजूर है पर इस मोके को ना छोडूंगा 

रति फुसफुसाते हुए- क्यों तंग कर रहे हो मुझे 

मैं- कुछ कुछ होता है क्या 

वो- कुछ क्यों होगा 

मैं- क्यों नहीं होगा 

वो- बस मान भी जाओ ना आराम से खड़े रहो अपना नंबर आने ही वाला है थोड़ी देर में 

मैं- कहा देखो कितनी देर से इधर ही खड़े है 

वो- तो थोड़ी देर और खड़े रहो ना बस कुछ देर की बात है 


पर वो कुछ देर बहुत थी कुछ देर ऐसे ही मैं चुपचाप अपने लंड को उसकी गांड से सटाए खड़ा रहा लाइन बिलकुल धीमी गति से सरक रही थी ऊपर से जब रति अपनी गांड को जानबूझ कर हिलती जिस से मेरा लंड और रगड़ खता वहा पर ऐसे लगता था की जैसे वो आज तो मेरे ऊपर फुल बिजलिया गिराने का ही इरादा करके आये थी गर्मी को सहना बहुत ही मुस्किल हो रहा था वातावरण में काफी उमस हो रही थी रति के गले से बहती पसीने की बूंदे उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी , मुझ से कण्ट्रोल नहीं हुआ उसके कान के साइड के पसीने को मैंने हौले से चाट लिया नजर बचा कर मेरी जीभ के स्पर्श से रति का पूरा बदन किसी सूखे पत्ते की तरफ कांप उठा 


उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को कस कर दबाया और कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और तभी मेरे दिल को एक ख़ास एहसास छुते हुए निकल गया

रति के साथ वो थोड़े से पल मुझे ऐसे लगने लगे थे जैसे की काफ़ी सदियाँ बीत गयी हो ऐसा लगता था की जैसे बहुत गहरे से जुडी हो मुझसे वो कही न कही उसको पा भर लेने की लालसा मेरे अन्दर बेचैनी बन कर दोड़ रही थी उसके बदन से उठती वो पसीने की महक मुझे पागल किये जा रही थी जैसे जैसे लाइन आगे बढती जा रही थी भीड़ का दवाब महसूस होने लगा था रति ने बताया की आज यहाँ विशेष पूजा है इसलिए भीड़ ज्यादा है पर मुझे तो बस रति ही दिख रही थी वहा पर इन्सान की भी अदि अजीब फितरत होती है जब उसको ठरक चढ़ती हैं तो क्या माहौल है क्या जगह है कुछ नहीं देखता अगर कुछ देखता है तो बस अपना नजरिया 


मैं रति से बहुत चिपक के खड़ा हुआ था अबकी बार उसने जो खुद को थोडा सा एडजस्ट किया मेरा लंड बिलकुल उसकी गांड की दरार पर सेट हो गया करार आ गया मुझे तो रति के कुलहो ने झुरझुरी सी ली पर उसने पीछे मुड के नहीं देखा मैंने उसकी गांड पर थोडा सा और दवाब डाला रति के बदन में कम्पन होने लगी उसका चेहरा एक दम लाल हो गया था जैसे की सूरज की पूरी आभा उसके मुख पर ही आ गयी हो , उसकी सांसो की गति बढ़ने लगी पर मैं भी क्या करता मेरी भी मज़बूरी ऐसी ही थी थोड़ी थोड़ी देर बाद मौका देख कर मैं अपने लंड को गांड पर रगड़ने लगा 


हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे बल्कि जो हो रहा था उसको समझ नहीं पा रहे थे उसके चेहरे पर काफ़ी भाव आ जा रहे थे तभी उसने मुझे टोका और कहा –“ प्यास लगी है बड़ी तेज ”


मैंने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उसको दी थोड़ी हड़बड़ी में वो पानी पि रही थी जिस से कुछ घूँट छलक कर उसके ब्लाउज पर गिर गए है रे तेरा कटीला हूँस्न मार ही डालोगी क्या उसकी चूचियो की घाटी वाली जगह पानी से गीली हो गयी थी बड़ा सेक्सी सा नजारा था वो मैं एक तक देखता ही गया तो उसने टोक ही दिया “ क्या देख रहे हो इतनी गोर से ” 

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही 

और फिर से हम अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए हमारा नंबर आने में ज्यादा देर नहीं थी हमे तो फिर मैं भी चुप चाप ही खड़ा रहा धीरे धीरे हम लोग मंदिर के गर्भ गृह में पहूँच गए अन्दर बेहद ही अद्भुद नजारा था रति पूजा करने लगी मैंने अपने कैमरे से कुछ तस्वीरे निकाल ली पूजा करते टाइम रति के चेहरे पर जो तेज था कसम से मेरा दिल मुझसे कहने लगा की यही है तेरी तलाश थाम ले इसका हाथ पर कहा ये मुमकिन था मेरे लिए उसने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और पूजा करने को कहा मैं भी उसका साथ देने लगा करीब दो घंटे बाद हम लोग फ्री हुए वहा से और थोड़ी साइड में एक पेड़ के नीचे बैठ गए गर्मी बहुत भयंकर पड़ रही थी पूरा बदन पसीना पसीना हो रहा था मैंने अपना रुमाल उसको दिया और कहा “पसीना पोंछ लो ”

मुझसे रुका नहीं गया मैंने उसको कह ही दिया – रति आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो 

रति- सच में 

मैं- हां 

वो- तभी तुम कुछ ज्यादा ही एडवांटेज ले रहे थे लाइन में 

मैं- वो तो ऐसे ही 

वो- ऐसे ही क्या , ऐसा भला कोई करता है क्या तुम्हारी जगह कोई और ऐसा करता तो वाही के वही चप्पल 
उतार के तगड़ी रंगाई करती उसकी 

मैं- तो की क्यों नहीं , मुझे भी तो सजा मिलनी चाहिए ना 

वो- सजा तो मिलेगी तुम्हे भी पर अभी नहीं 

मैं- जो मैंने किया उसके लिए हो सकते तो माफ़ करना पर मैं सच कहता हूँ की तुम्हारे रूप की ज्वाला में मैं पिघलने लगा था खुद को लाख समझाया पर कण्ट्रोल कर नहीं पापय मुझे शर्मिंदगी भी है तुम्हारी हर सजा मंजूर है मुझे 

रति- बस तुम्हारी यही साफगोई तुम्हारा बचाव कर जाती है वर्ना मैंने तो इरादा कर लिया था पक्का 

मैं- तो फिर हर सजा सर आँखों पर 

वो- मुझे भूख लगी है आओ पहले कुछ खाना पीना हो जाये बाते तो फिर भी होती रहेंगे 

पर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया और कहा –“रति, मरे मन में कुछ उलझाने है कौन सुलझाएगा उनको मुझे कुछ कहना है तुमसे ”


वो- कहा ना फिर बात करेंगे 

मैं- फिर कब अभी क्यों नहीं 

वो- क्योंकि मैं बचना चाहती हूँ तुम्हारी बातो से नहीं सुनना चाहती क्योकि कुछ सवालों के कभी कोई जवाब नहीं होते है और फिर क्या कहोगे तुम वो बाते जो कभी हो नहीं सकती है तुम्हारा मेरा साथ है भी कितना बस जब तक तुम यहाँ हो फिर उसके बाद क्या रहना तो मुझे है अपने उसी अकेलेपन के साथ जिसके साथ मैं रह रही हूँ, तुम पता नहीं कहा से एक ठन्डे झोंके की तरह आ गए पर एक झोंके की उम्र भला कितनी है सच कहू तो मैं डरती हूँ जो पल महसूस कर रही हूँ मैं कल को जब मैं अपने आप से जुन्झुंगी तब कैसे संभाल पाऊँगी खुद को 


मैं- जानता हूँ रति पर क्या तुम्हे कोई हक नहीं है अपनी ज़िन्दगी को खुसी से जीने का 

वो- जब मेरा हक़दार ही इस बात को नहीं समझता तो फिर दुनिया को क्या 

मैं- सब ठीक होगा भरोसा रखो 

वो- कुछ ठीक नहीं होगा 

मैं- भरोसा रखो कोशिश करो ज़िन्दगी हर दिन एक नया दरवाजा खोलती है 

वो- मुझे भूख लगी है 

मैं- ठीक है खाना खाते है 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#37
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मंदिर में जो भंडारा लगा था उधर ही हम लोगो ने अपना दोपहर का भोजन खाया रति के चेहरे की मायूसी मर दिल जला रही थी मैंने घडी में टाइम टाइम देखा शाम के ४ बज रहे थे मैंने उसको चलने का कहा तो उसने कहा थोड़ी देर में चलेंगे बहार कुछ दुकाने सी लगी थी मैंने नीनू के लिए एक चेन खरीद ली रति बोली- तुम्हारी गर्लफ्रेंड के लिए 

मैं- वो बस दोस्त है मेरी पर उसी के लिए ली है 

वो मुस्कुरा पड़ी और बोली- आओ तुम्हे कुछ दिखाती हूँ मेरे साथ आओ
वहां से थोड़ी दूर आने पर एक साइड में खेतो का इलाका शुरू होता था और रोड के दूसरी तरफ पर थोडा जंगली टाइप इलाका था रति ने वो राह पकड़ी मैंने कहा तो कुछ नहीं पर मन में सोचने जरुर लगा की ये कहाँ ले जा रही है पर मैं उसके साथ ही चलता रहा करीब १० मिनट चलने के बाद हम लोग एक ऐसी जगह पर पहूँचे जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी घने पेड़ पोधो झाड झंखाड़ के बीच में ये एक पुरानी छत्री सी थी बीते ज़माने में मुसाफिर लोग थकान मिटाने के लिए इसका प्रयोग करते होंगे राजस्थान के निराले रंग ये तो वक़्त की मार से इसका ये हाल हो गया था पर रुतबा वैसे का वैसे ही था 


रति- अच्छा लगा तुम्हे 

मैं- बहुत शानदार 

वो- हां 

मैं- पर तुम्हे कैसे पता लगा इसका 

वो- एक बार किसी के साथ आई थी इधर तभी से आ जाती हूँ यहाँ 

मैं- किसके साथ आई थी जरा हमे भी तो बता दो 

रति- क्या तुम भी कुछ भी सवाल कर बैठते हो

मैं- वो सब छोड़ो पर यहाँ हम आये क्यों है वो बताओ 

वो- देखो कितनी शांति है यहाँ पर मन को कितना सुकून मिलता है 

मैं- मेरा सुकून तो तुमने चुरा लिया है 

वो- तुम फिर से शुरू हो गए 

मैं- तुम बार बार रोक जो देती हो 

रति वही सीढियों पर बैठ गयी उसका आँचल एक बार फिर से सरक गया ठोस उभार जैसे कपड़ो की हर कैद को तोड़कर आजाद होने को मचल रहे थे उसकी धोंकनी की तरह ऊपर नीचे होते उभार किसी को भी दो पल में गरम कर दे अच्छे अच्छो को धर्म भ्रष्ट कर दे मैं भी उसके पास ही बैठ गया सच कहू तो थकन सी हो रही थी मैंने अपना सर उसके घुटनों पर रखा और वाही पर लेट गया 

रति- क्या कर रहे हो कपडे ख़राब हो जायेंगे तुम्हारे 

मैं- होने दो क्या फरक पड़ता है , वैसे ज्यादा फिकर हो रही है तो अपनी साडी को बीचा दो मैं तो बुरी तरह से थक गया हूँ पैरो में अब जान न रही 

रति- अब तुम इतने भी ख़ास ना हो जो तुम्हारे लिया इतना भी किया जाये

मैं- तो किसके लिए करोगी 

वो- कोई तो है ही 

मैं- थोड़ी नेमत मुझ गरीब पर भी कर दो 

वो- हर दुआ थोड़ी ना कबूल हुआ करती है मुसाफिर बाबु 

मैं- तो क्या तुम्हारे दर से भी खाली हाथ जाना पड़ेगा 

वो- वैसे कितने दरो पर ठोकर खायी है तुमने 

मैं- पहले का तो पता नहीं पर तुम्हारे दर से खाली न जाऊंगा 

वो- तुम्हारे हसीं सपने 

मैं- सपने कभी कभी सच भी हो जाते है 

वो- मैं ना मानु 

मैं- तुम्हारी मर्जी 

हमारी बाते मेरे तन बदन को रोमानियत से भर रही थी एक कमबख्त मेरा लंड मुझे दो पल भी चैन नहीं लेने दे रहा था सुनसान सी उस जगह पर हम दोनों अपने मन की बाते बतला रहे थे मुझे ख्याल आ रहा था की कही रति यहाँ मुझसे चुदना तो नहीं चाहती पर ख्यालो का क्या वो तो ऐसे ही आते जाते रहते लेते लेटे ही मैं उसके पेट पर उंगलिया फिराने लगा वो बोली- मत करो ना शरारत गुदगुदी होती है 

मैं- होने दो मैं क्या करू 

वो- मानो ना 

हमे वहा पर काफ़ी देर हो गयी थी रति की निगाह मेरी घडी पर पड़ी तो वो बोली बाप रे साढ़े पांच हो गए देर हो रही है हमे वापिस भी तो चलना है वो कह ही रही थी की मोसम अजीब सा होने लगा धुल भारी हवा चलने को लगे 

रति- उफ्फ्फफ्फ्फ़ लगता है आंधी आने वाली है 

मैं- गर्मी को देख कर अंदाजा हो रहा था मुझे भी अब क्या करे 

वो- आंधी तो सर पर आ गयी दिवार की ओट ले लो थोड़ी देर में ये बवंडर चला जायेगा फिर अपन लोग भी चल पड़ेंगे 


हम खड़े हुए दिवार की ओट में ऊपर से गर्मी बहुत थोड़ी ही देर में धुल भरी हवा चलने लगी हर तरफ बस मिटटी सी उड़ने लगी रति सरक कर मेरे पास आ गयी हम दोनों एक दुसरे के आमने सामने खड़े थे 

वो- ऐसे क्या देख रहे हो 

मैं- तुम्हे देख रहा हूँ 

वो- इस तरह मत देखो मुझे 

मैं- क्यों ना देखू देखने की चीज़ तो देखि ही जाएगी ना 

वो- तो मैं तुम्हे चीज़ लगी 

वो कह ही रही थी की झरोखे से धुल हमारी तरफ आई और हमे ढूल्म धुल कर गयी रति के पुरे बाल मिटटी से सन गए वो खांस ने लगी इसी में उसका पल्लू उसके हाथ से छुट गया वो थोडा सा पीछे को हुई पर मैंने उसकी बांह को पकड़ लिया और रति को खीच लिया अगले ही पल वो मेरे सीने से आ लगी , ये मेरे लिए एक बहुत ही कमजोर लम्हा था जिसमे मैं अपने आप पर बिलकुल भी काबू ना रख पाया मेरा हाथ उसकी नाजुक पीठ पर कसता चला गया और बिना कुछ सोचे समझे मैंने अपने होंठ उसके अनछुए रस से भरे मदिरा के प्यालो पर रख दिए मेरे लबो का अहसास पाते ही रति के तन बदन में एक आग सी लग गयी उसने खुद को मुझसे अलग करने की कोशिश की पर मेरी पकड़ मजबूत थी 


वो जैसे कुछ कहना चाहती थी मुझे रोकना चाहती जैसे ही उसके होंठ खुले मैंने अपने होंठो में उसके निचले होंट को भर लिया और कास कर उसे चूसने लगा वो लगातार मुझसे दूर होना चाह रही थी पर मैंने उसे नहीं छोड़ा जबतक की हमारी साँसे फटने के कगार पर नहीं आ गयी हांफते हुए वो मुझसे दूर हुई उसके होंठ से खून रिसने लगा 

वो मुझसे थोडा दूर गयी और बोली- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की कैसे किस किया मुझे तुमने 
मैं उसके पास गया और अपनी ऊँगली को उसके होठो पर रखते हुए बोला- रति कुछ सवालों के जवाब मेरे पास नहीं है बेहतर होगा की तुम अपने आप से पूछ लो 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#38
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वो साइड में जाने लगी पर मैंने फिर से उसको अपने आगोश में ले लिया और एक बार फिर से हमारे लब एक दुसरे के संपर्क में आ गए रति दिवार के सहारे खड़ी थी मैं बेबाकी से उसके अधरों के शाहद को निचोड़े जा रहा था हालाँकि वो अपना विरोध जाता रही थी पर मैंने अपने मन की बात उस पर मोहर लगा दी थी उसकी हर सजा मंजूर थी मुझको पर ये गुस्ताखी तो करनी ही थी अब अचानक से मुझे लगा की रति की बाहे मुझ पर कसी हो जैसे उस धुल भरी आंधी में मैं पागलो की तरह उसके लबो का रसपान किये जा रहा था 


उसके हाथो की उंगलिया मेरे हाथो में फंस कर जोर आजमाइश कर रही थी उसके लबो को पीते पीते मैं अपने एक हाथ से उसकी गांड को दबाने लगा पर तभी रति मुझ से अलग हो गयी और अपनी साँसों को संभालते हुए बोली- मुझे लगता है यही रुकना बेहतर होगा कुछ चीज़े अपनी हदों में ही रहे तो बेहतर होता है 

मैं- रति मैं तुम्हारा हाथ थामना चाहता हूँ 

वो- छोड़ो इन बातो को 

मैं- मेरी सुनो तो सही 

वो- कहा ना छोड़ो इन बातो को आंधी रुकने लगी है अपना हूँलिया ठीक करलो समय भी बहुत हो गया है चलते है थोड़ी देर में 


फिर उसने कुछ कहा ना मैंने कुछ कहा वो पंद्रह बीस मिनट का समय बड़ी बेचैनी में बीता जब हम वहा से चले तो शाम के साढ़े ६ हो रहे थे आंधी की वजह से सब कुछ बहुत बुरा लग रहा था पर गनीमत थी की हवा से गर्मी कुछ कम हो गयी थी हम लोग मेन सडक पर आये और बस का इंतज़ार कर ने लगे ऊपर आसमान में बिना वजह के ही बादल अंगड़ाईयाँ लेने लगे 

लगता है बारिश होने वाली है बिन मोसम के 

रति- ये और मुसीबत आज ही आनी थी बस जल्दी से बस आ जाये 

पर आज वो भी मेहरबान ही था शायद बस तो नहीं आई पर हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी अब हम लोग कहा जाये रति होने लगी परेशान उसके माथे पर बल पड़ने लगे वो हड़बड़ी में कभी इधर देखे कभी उधर 

मैं- कितनी देर में आती है बस , बरसात तेज होने लगी है 

वो- बस का टाइम ऐसा ही है आये तो अभी आ जाये मैं आज से पहले शाम तक रुकी नहीं तो पता नहीं 
बारिश की मोटो बूंदे गिरने लगी थी 

मैं- आसपास कोई खड़े होने की जगह भी नहीं दिख रही 

वो- ह्म्म्म 

हमारे कपडे गीले होने लगे थे रति उस गीली साडी में बहुत खूबसूरत लगने लगी थी मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी 

वो पूछ बैठी- परेशानी के समय भी हस रहे हो 

मैं- बात ही ऐसी है 

वो लगभग झल्लाते हुए- क्या 

मैं- तुम मोहरा की रवीना टंडन से कम नहीं लग रही हो कसम से .
रति- यहाँ पर मैं भीग रही हूँ तुम्हे मसखरी सूझ रही है बारिश अब तेज होने लगी है मुझे दर है कही मेरा पाँव के ज़ख्म में कोई दिक्कत न हो जाये 

मैं- कुछ नहीं होगा और वैसे भी इस हालात में मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ एक काम कर सकते है या तो वापिस उसी छत्री में चलते है अब मंदिर तो दूर रह गया वर्ना वाही पर शरण ले लेते बताओ क्या कहती हो 
वो- नहीं उधर नहीं जा सकते छत्री सुनसान इलाके में है ऊपर से अब अँधेरा भी घिरने लगा है उधर जायेंगे तो बस या और कोई साधन कब आया कब गया पता भी नहीं चलेगा और हमे कोई रात थोड़ी ना काटनी है मंदिर जायेंगे तो भी वही दिक्कत है जाना तो हमे घर ही हैं ना 


मैं- तो फिर इंतज़ार करो और क्या कर सकते है कमबख्त इस रोड पर कोई दूकान भी नहीं है वर्ना उधर ही खड़े हो जाते , एक काम करो तुम मेरा बैग सर पर रख लो 



रति- उस से कौन सा मैं भीगने से बच जाउंगी , 


मैं- तो फिर चुपचाप इंतजार करो जो भी साधन आता दिखेगा उसी में चल पड़ेंगे 

बारिश धीरे धीरे से अपने सुरूर पर आती जा रही थी बादल कड कड़क करके गरज रहे थे रति के माथे की चिंता मैं साफ़ पढ़ रहा था फ़िक्र तो मुझे भी थी पर अब किया क्या जाये बुरे फंसे आज तो अँधेरा भी होने लगा था 

मैं- डर लग रहा है क्या 

वो- नहीं तो , बस थोड़ी सी घबराहट हो रही है , अँधेरा भी घिर आया है अगर टाइम से घर पहूँच जाते तो ऊपर से इस कमबख्त मोसम को भी आज ही बिगड़ना था 

मैं- मोसम की गुज्जारिश है की हम दोनों थोडा टाइम साथ जिए 

रति- कही तुमने ही तो को पनौती ना लगा दी 

मैं- रति , वो थोडा आगे एक पेड़ सा है उसके नीचे खड़े होते है कम से कम बारिश से सीधा सीधा तो ना भींगेंगे 

उसको भी ख्याल जंच गया और हम पेड़ के नीचे आ गए पर वो घना पेड़ नहीं था तो भीगना तो इधर भी पड़ ही रहा था पानी की मस्त बूंदे उसके पेट और नाभि से होते हुए नीचे को लुढ़क रही थी काश वो पिस्ता की तरह होती तो अभी इसी वक़्त इस पेड़ के नीचे ही उसकी चुदाई शुरू हो चुकी होती पर यहाँ पर थोडा थोडा करके आगे बढ़ना था मुझे दिल तो कर रहा था की दो चार चुम्मिया तो यही पर ले डालू पर खुले रस्ते पर क्यों रिस्क लिया जाए 


तभी वो बोली- तुम जरा थोडा दूर जाओ 

मैं- क्यों इधर ही सही है फुहार ही पड़ रही है इधर 

वो- जाओ ना थोड़ी देर 

मैं- बात क्या है वो बताओ 

वो शर्माते हुए, मुझे सुसु करना है 

मैं- ओह, एक काम करो पेड़ की दूसरी साइड में करलो 

वो- उधर काफी झंखाड़ है कही कोई जानवर सांप, बिच्छु न निकल आये

मैं- तो यही पर करलो मैं नहीं जाने वाला कही पे भी 

वो- प्लीज मान भी जाओ ना बहुत तेज लगी है 

मैं- ठीक है बाबा, मैं उधर मुह करके खड़ा होता हूँ, जल्दी से करलो 

वो –हूँ 

मैंने अपना मुह दूसरी तरफ कर लिया और रति मूतने बैठ गयी दिल तो कर रहा था की उस को देखू पर अँधेरा भी था तो कोई फायदा नहीं था करीब दो मिनट बाद मैंने पुछा- हो गया 

वो- हां 
Reply
12-29-2018, 02:31 PM,
#39
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं उसको छेड़ते हुए, वैसे बताने की क्या जरुरत थी ऐसे ही खड़े खड़े कर लेती कपडे तो वैसे बुरी तरह से गीले है किसको पता चलना था 

वो- सबको तुम्हारी तरह से समझा है क्या 

मैं- बुरा मान गयी क्या 

वो- बात ही ऐसी गन्दी करते हो तुम 

मैं- तो तुम अच्छी बाते सिखा क्यों नहीं देती 

मैं थोडा सा उसकी और हुआ और उसको अपनी तरफ खीच लिया वो कसमसाते हुए बोली – ये सब ठीक नहीं है क्यों मुझे तंग करते हो 

मैं- सच बताओ अच्छा नहीं लगता क्या तुम्हे 

वो- तुम बस चुप रहो 

मैं- सच बोलने से डरती हो ना तुम 

वो- कोई फायदा नहीं इन बातो का कितनी बार बताऊ तुम्हे 

मैं- एक बार मुझे समझो तो सही इस , 

वो- छोड़ो मुझे वैसे ही तुम्हरे दांत की वजह से मेरा होंठ कट गया है अभी तक दर्द हो रहा है 

मैं- अब तुम्हारे लब इतने मुलायम है तो मैं क्या करू सच कहता हूँ कितनी मीठी हो तुम 

वो- अपनी बातो से मुझे ना फंसाओ 

मैं- सच बोला मैंने तो बस , कहो तो एक किस और करलू 

वो- पागल हुए हो क्या 

मैं- पहले तो था नहीं अब तुमने कर दिया वो अलग बात है 

वो- मत सताओ ना मुझे 

मैं- और जो मेरा हाल बुरा हुआ है उसका क्या 

वो खामोश खड़ी रही मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और अपने प्यासे होंठो को एक बार फिर से मधुशाला के प्यालो पर रख दिया वो बस कसमसा कर रह गयी उस अँधेरे का फायदा उठाते हुए मैं उसकी सासों को अपनी साँसों में घोलने लगा मुझे ना किसी की फ़िक्र थी ना किसी का डर मैं बस चाहता था की ये लम्हा यही पर रुक जाये कुछ देर के लिए मक्खन से भी चिकने मीठे रस के प्याले उसके अधरों को चूसने लगा मैं पर रति जल्दी ही मुझसे अलग हो गयी और वो बोली- क्या करते हो सुजाओ गे क्या 


वो कह ही रही थी की तभी दूर सड़क पर हेडलाइट की रौशनी सी पड़ी और हम भाग कर सड़क पर आये
मैं सड़क के बीचो बीच खड़ा हो गया ताकि जो भी साधन आ रहा है उसको रुकवा सकू पर पास आते ही लगा की मर प्रयत्न वेस्ट हो गया , दरअसल वो एक कबाड़ का टेम्पो था अब क्या किया जाये पर जाना तो था ही उस बारिश में थोड़ी ना फंसे खड़े रेस सकते थे मैंने टेम्पो वाले को पुछा की भाई सहर तक छोड़ दोगे क्या 


टेम्पो वाला- “भाई जी, आगे तो बस ड्राईवर की ही जगह है और पीछे कबाड़ भरा पड़ा है कहा पर एडजस्ट करू ”


मैं- भाई दुगना किराया दूंगा , बस सिटी तक पंहूँचा दे बहुत देर हुई राह देखते देखते बस नहीं आई बारिश में भीग रहे है कब से मदद कर दे यार 


वो सोचते हुए- भाई जी बात ऐसी है की पीछे खड़े हो जाओ कबाड़ को इधर उधर करके जगह हो जाएगी खड़े होने की तो पर भीगना फिर भी पड़ेगा मेरे पास कोई तिरपाल भी नहीं है देख लो आपको जंचे तो 


मैं- ठीक है भाई खड़े हो जायेंगे बस तू पंहूँचा दे जल्दी से 


कबाड़ी ने उठा पटक करके जगह बनायीं मैंने पहले रति को चढ़ाया और फिर खुद भी चढ़ गया टेम्पो चल पड़ा सहर की और चारो तरफ घुप्प अँधेरा छाया हुआ था काफी देर भीगने के कारन सर्दी सी लगने लगी थी रति भी मेरे पास खड़ी हलकी हलकी सी कांप रही थी हालात के मारे यहाँ जाके अटके हम 


मैं- क्या सोच रही हो 

वो- मेरे पाँव का जख्म पूरा गीला हो गया है डर है कही जो थोडा बहुत जख्म ठीक हुआ है फिर से हरा ना हो जाये

मैं- चिंता मत करो कुछ नहीं होगा 


तभी टेम्पो ने हिचकोला खाया और मैं रति पर झुक गया 

वो- क्या करते हो 

मैं- पकड़ने की जरा भी जगह नहीं है क्या करूँ 


रति थोडा सा साइड में हुई मैं अब बिलकुल उसके पीछे आ गाया था हम दोनों के शरीर आपस में फिर से रगड़ खाने लगे ठंडी बरसात में दोनों के शरीर की गर्मी जो मिली तो सरसराहट होने लगी मैंने अपने कांपते हाथ उसके पेट पर रख दिए 


आआआआआह उसके नाजुक होंठो से आह सी फूट पड़ी ,”क्या कर रहे हो ”


मैं- कुछ भी तो नहीं 

मैंने उसको बिलकुल अपने से चिपका लिया और धीरे धीरे से उसके पेट को सहलाने लगा उसके पेट वाले हिस्से में कम्पन होने लगी रति की भारी गांड बिलकुल मेरे लंड पर सेट हो चुकी थी वो मेरी बाहों में सिसकने लगी थी थोड़ी देर तक मैं उसके पेट को सहलाता रहा फिर मैंने बेबाकी से अपने दोनों हाथो में उसके कबूतरों को थाम लिया और कस के भींच दिया रति ने अपने हाथो से मेरे हाथो को थाम लिया और बोली-“ मत करो ना क्यों मुझे सता रहे हो मैंने कहती हूँ मान भी जाओ ना ”


पर मैं कहा रुकने वाला था मैं अपने लबो को उसकी गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर रखते हुए बोला-“ रति, ये सफ़र फिर ना आएगा न फिर कभी तुम साथ होगी, मुझे ना रोको बहने दो मुझे इस हवा के साथ “


रति- पर ये गलत हैं 

मैं- कुछ गलत नहीं की तुम्हे अच्छा नहीं लगता जब मैं तुम्हे छूता हूँ क्या तुम्हारा दिल नहीं करता की कोई तुम्हे जी भर के प्यार करे , क्या तुम नहीं चाहती की किसी की मजबूत बाहों में पनाह मिले तुम्हे 


रति- तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हूँ 

मैं- पता नहीं क्यों पर शायद कुछ तो हक मेरा भी हैं ना 


रति अब खामोश थी उसने अचानक से अपने हाथ मेरे हाथो से हटा लिए मैंने धीरे से उसके बोबो को फिर से दबाया रति के बदन ने झुरझुरी सी ली उसकी मोरनी सी गर्दन को चूमते हुए उसके बॉब से खेलने लगा मैं मेरा लंड उसकी गांड में घुसने को बेचैन हो रहा था मैंने अपने लंड को उसकी गांड पर रगड़ने लगा उसको भी पता तो था ही की क्या हो रहा है धीरे धीरे उसकी गांड अपने आप हिलने लगी मैं अब तेजी से उसके बोबो को मसल रहा तह वो हूँस्न का मदमस्त प्याला मेरी बाहों में मचलने लगा था उस पल में 


मैं खुद तो बेकाबू था ही उसको भी बेकाबू कर देना चाहता था मैं मैंने उसके ब्लाउज के हूँको को खोलना चालू किया तो वो मुझे रोकने लगी पर अब कहा रुकना था मैंने उसके हूँको को खोला और ब्रा के ऊपर से ही चूचियो को दबाने लगा रति के बदन में बिजलिया दोड़ने लगी मैंने रति के हाथ को लिया और अपनी पेंट में बने लंड के उभार पर रख दिया उसने हाथ हटा लिया मैंने फिर से रखा और अपने हाथ से दबा दिया इस बार उसने हाथ नहीं हटाया 


भारी बरसात में धीमी रफ़्तार से हिचकोले खाता हुआ वो टेम्पो सहर की और बढ़ रहा था पिछले हिस्से में हम दोनों खामोश थे बेशक पर अरमान अपने ज़ोरों पर थे मैंने उसकी ब्रा को ऊपर किया और उसके निप्पल्स को अपनी उंगलियों से मसलने लगा रति के बदन में करंट दोड़ने लगा उसका हाथ मेरे लंड वाले हिस्से पर कसता चला गया ठीक तभी मैंने उसकी चूचियो को अपनी पकड़ से आजाद किया और रति की चूत को साडी के ऊपर से दबा दिया रति खुद पर काबू नहीं रख पायी और वो पलती और मेरी बाहों में समां गयी उसकी बढ़ी हुई धडकनों को मैं अपने सीने पर महसूस करने लगा 
Reply
12-29-2018, 02:32 PM,
#40
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
काफ़ी देर तक वो ऐसे ही मेरे सीने से लगी रहे मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके रसीले होंठो को फिर से चाटने लगा इस बार वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी उसने अपनी बहे मेरे कंधो पर रख दी और अपने मुह को मेरे होंठो के लिए खोल दिया मेरा लंड अब उसकी चूत वाली जगह पर रगड़ खा रहा था शराब की बोतल से भी नशीले उसके लबो को पीते हुए मैंने अपने हाथ उसके पेट पर रखा और फिर धीरे से उसको नीचे को सरका दिया चूत की तरफ रति का बदन उस तेज बरसात में अब बुरी तरह से कांप रहा था 


मैं बस चूत को छूने ही वाला था की वो बोल पड़ी- यहाँ नहीं 

मैं कुछ नहीं वो बोला 

वो- सहर आने वाला है देखो बस्तिया शुरू हो गयी है रौशनी भी दिखने लगी है किसी की नजर पड़ेगी तो क्या सोचेगा 

मैंने उसको अपने आगोश से आजाद कर दिया उसने अपने ब्लाउज को सही किया और सलीके से खड़ी हो गयी सिटी थोड़ी ही दूर थी मैं कहा मान ने वाला था मैंने उसको अपने से चिपका लिया और उसके चुतद को सहलाने लगा एक हल्का सा किस मैंने उसकी गले के नीचे किया तभी वो बोली ये मेरी जांघो पर क्या चुभ रहा है 

मैं- तुम्हे नहीं पता क्या 

वो- नहीं तो 

मैं- मुझे भी नहीं पता खुद ही देख लो 

रति ने अपने हाथ को नीचे किया और मेरे लंड को पेंट के ऊपर से ही सहलाने लगी मर खुद से काबू छुटने लगा मैंने उसके कान में कहा इसको बहार निकाल लो 


पर वो ऐसे ही सहलाती रही मेरी जान ही लने का इरादा कर लिया था उसने जैसे रति को खुद में ऐसे घोल लेना चाहता था मैं जैसे की किसी शरबत में गुलाब की खुशबू घुल जाया करती है मैं उसको वो ख़ुशी देना चाहता था जिस से वो वंचीत थी मैं उसको कोई नहीं लगता था सच था की वो किसी और की थी उसका असली हक़दार मैं नहीं था पर शायद अमानत में खयानत करने का वक़्त आ गया था ख्यालो में गम हुए इस कदर की कब सहर आ गया पता ही नहीं चला
शहर आ गया था बारिश इस साइड भी जोरो से हुई थी टेम्पो वाले को पैसे दिए मैंने रति के घर तक जाने में अभी भी कम से कम बीस मिनट लगने थे अगर ऑटो जल्दी मिल जाये तो पर कमसे कम अब ये तो था की घर पहूँच हो जायेंगे अपने गीले बालो पर हाथ मारते हुए मैंने एक ऑटो को हाथ दिया और एड्रेस बताया थोड़ी ना नुकुर के बाद वो चलने को तैयार हो गया एक बार फिर से हम दोनों साथ साथ बैठे थे काफ़ी देर गीली रहने से रति को ठण्ड सी लग रही थी बस थोड़ी देर की और बात हम लोग घर पहूँचने वाले होंगे 


मैंने उसके हाथ को थाम लिया और अपनी आँखों से उसकी तरफ देखा उसने नजर दूसरी तरफ कर ली हमारी टाँगे एक दुसरे से रगड़ खा रही थी थोडा गर्मी का अहसास हो रहा था मैं लगातार उसके हाथ को सहलाता जा रहा था रति के चेहरे पर कोई भाव नहीं था हां पर इतना पक्का था की उसके दिल में भी कुछ तो ज़रूर चल्र रहा होगा उस समय चलती हुई ठंडी हवा अपने साथ बारिश की बूंदों को लेकर आ रही थी मैं अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगा पिछले महीने-डेढ़ महीने में मैं का से क्या बन गया था एक दम से अल्गने लगा था की मैं बहुत बड़ा हो गया था 


“क्या सोचने लगे ” पुछा उसने 

मैं – कुछ नहीं बस ऐसे ही घर की याद आ गयी 

वो मेरे पास सरकते हुए, “ क्या याद किया बताओ मुझे भी ”

मैं- बस ऐसे ही सोचने लगा की पिछले कुछ दिनों में मेरी ज़िन्दगी कितनी बदल गयी है देखो तुम और मैं कितने अजनबी कैसे मिल गए शायद पिछले किसी जनम में अवश्य ही तुमसे कोई नाता रहा होगा ऐसे लगता नहीं नहीं की बस कुछ रोज़ पहले ही मुलाकात हुई है तुमसे , ऐसे लगता है जैसे जन्मो से जानता हूँ तुम्हे 


वो – तुम्हारी बहुत सी बाते समझ से परे लगती है मुझे 

मैं- वो क्यों भला, मैं क्या दूसरी भाषा में बोलता हूँ 

रति- हँसते हुए, नहीं बाबा ऐसा कब कहा मैंने 

मैं उसकी जांघ को सहलाते हुए- तुम भी कहा मुझे अपना मानती हो 

वो- तुम मेरे अपने हो ही कहा 

मैं- क्या पता तकदीरो का कभी कभी कभी अजनबी भी अपने बन जाया करते है 

वो- हां पर तुम वो नहीं हो 

बाते करते करते मैं चोराहा आ गया आगे गली में ऑटो नहीं जा सकता था तो वही उतरे और चल पड़े उसके घर की तरफ चारो तरफ अँधेरा छाया हुआ था लाइट नहीं थी मोहाल्ले में मैंने कहा तुम घर चलो मैं पास के होटल से कुछ खाने के लिए ले आता हूँ 

वो- नहीं कोई जरुरत नहीं मैं बना लुंगी देर कितनी लगनी है 

मैं- नहीं यार, तुम भी तो मेरे साथ परेशान हुई हो, तुम चलो मैं बस यु गया और यु आया 

मैं वाही से मुदा और होटल पहूँच गया टाइम वैसे तो करीब सवा आठ ही हुआ था पर बारिश के कारन रात ज्यदा हो गयी हो ऐसा लग रहा था बरसात का मस्त मोसम थोड़ी भीड़ भी थी मुझे अपना पार्सल लेने में करीब आधा घंटा लग गया भीगते भिगाते मैं घर पंहूँचा तो देखा की रति के आँगन में काफी पानी भरा है उसी पानी में चप्प चप्प करते हुए मैं कमरे के दरवाजे तक पंहूँचा और दरवाजा खटकाया 


रति ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला अन्दर मोमबत्ती जल रही थी मैंने देखा उसने कपडे चेंज कर लिए थे और वो ही ढीली सी मैक्सी डाली हुई थी मैं अन्दर आया उसको खाना दिया और कहा जरा मेरा बैग देना मैं भी कपडे चेंज कर लेता हूँ ,

रति- “ पूरा बैग गीला हो गया था मैंने अपने कपडे चेंज किये तो तुम्हरे बैग स भी कपडे निकाल कर बाथरूम में पटक दिए सुबह ही सूख पायेंगे वो तो ”

मैं- तो अब क्या करू मैं ऐसे गीला तो नहीं रह सकता ना 

वो मुझे तौलिया देते हुए बोली- पहले इन कपड़ो को निकाल आओ वर्ना तुम्हे ठण्ड लग जाएगी रात तो तौलिये में ही रह लेना सुबह धुप आते ही कपडे सूख जाने है 
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 521,961 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,149,931 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,204 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,540,901 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,985,655 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,794,688 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,508,001 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,823,020 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 265,903 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Incest Kahani पापा की दुलारी जवान बेटियाँ sexstories 231 6,142,542 10-14-2023, 03:46 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 16 Guest(s)