RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
उसका साथी अभी तक उसकी राह देख रहा था। राजन के मुख पर बिखरे उल्लास को देखते हुए बोला-
‘क्यों भैया! काम बन गया?’
‘जी-कल प्रातःकाल आने को कहा है।’
‘क्या किसी नौकरी के लिए आए थे?’
‘जी...!’
‘और वह पत्र?’
‘मेरे चाचा ने दिया था। वह कलकत्ता हैड ऑफिस में काफी समय इनके साथ काम करते रहे हैं।’
‘और ठहरोगे कहाँ?’
‘इसकी चिंता न करो-सब ठीक हो जाएगा।’
‘अच्छा-तुम्हारा नाम?’
‘राजन!’
‘मुझे कुंदन कहते हैं।’
‘आप भी यहीं।’
‘हाँ-इसी कंपनी में काम करता हूँ।’
‘कैसा काम?’
‘इतनी जल्दी क्या है? सब धीरे-धीरे मालूम हो जाएगा।’
‘अब जाओ-जाकर विश्राम करो। रास्ते की थकावट होगी।’
‘और आप।’
‘ड्यूटी!’
‘ओह... मेरी गठरी?’
‘जाकर काकी से ले लो- हाँ-हाँ वह तुम्हें पहचान लेंगी।’
‘अच्छा तो कल मिलूँगा।’
‘अवश्य! हाँ, देखो किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो कुंदन को मत भूलना।’
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