raj sharma story कामलीला
07-17-2020, 11:54 AM,
#1
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कामलीला

मित्रो आपके लिए छोटी छोटी कहानियों के संग्रह के रूप मे अपनी कामलीला के वो अध्याय लेकर आया हूँ जहाँ मेरा इस्तेमाल किस किस तरह हुआ तो मित्रो चलते इस लंबे सफ़र इस आशा में कि आपका भरपूर साथ मिलेगा

दोस्तो, मैं इमरान, मुंबई में रहता हूँ और एक मोबाइल कम्पनी में काम करता हूँ। ज़िन्दगी अब तक ऐसी गुजरी है कि उस पर कभी तो लानत भेजने का मन करता है और कभी सोचता हूँ क्या बुराई है इसमें…! मुझे ऐसा लगता है जैसे हमेशा मुझे लोगों ने इस्तेमाल ही किया है और किया भी है तो बुराई क्या… अगर दूसरों ने मेरे शरीर के साथ मज़े लिए हैं तो मुझे भी तो आनन्द आया है न !

मुझे सबसे पहले उस लड़की ने इस्तेमाल किया जिसे मेरी घर वालों ने मेरी बीवी बनाया। उसका नाम रुखसार था। शादी मेरे होम टाउन भोपाल में ही हुई थी और लड़की भी रिश्तेदारी से ही थी। मैं उसे पाकर खुश हुआ था। ग़ज़ब का माल थी, लेकिन जल्दी ही मेरी ख़ुशी काफूर हो गई थी जब उसने मुझे सुहागरात तक में हाथ नहीं लगाने दिया, यह कह कर कि उसे माहवारी शुरू हो गई है।

उस दिन तो मैंने सब्र कर लिया, लेकिन फिर मायके जाकर, आने के बाद भी कुछ न कुछ ड्रामा कर के कन्नी काटती रही, तो मैं बेचैन हुआ और फिर एक दिन की घटना ने मेरे होश उड़ा दिए।
उस दिन मेरे घर में कोई नहीं था। बाकी घर वाले मामू के लखनऊ गए हुए थे और घर में हम मियां बीवी ही थे। मैं रात में घर लौटा तो नज़ारा ही कुछ और मिला। बाहर की चाबी मेरे पास थी, मुझे एक बाईक बाहर खड़ी दिखी तो लगा कोई आया है।

मगर जब दरवाज़ा लॉक मिला तो शक हुआ और घन्टी बजाने के बजाय मैंने चाबी से दरवाज़ा खोला और अन्दर घुसा। अन्दर मेरे बेडरूम से कुछ सिसकारियों जैसी आवाज़ आ रही थीं।
मैंने पास पहुँच कर देखा तो दरवाज़ा इतना तो खुला था कि अन्दर का नज़ारा दिख सके। अन्दर बेड पर दो नंगे जिस्म गुत्थमगुत्था हो रहे थे…
एक तो मेरी बीवी रुखसार थी और दूसरा सलमान खान जैसी बॉडी वाला कोई अजनबी। इस वक़्त उस अजनबी का लंड रुखसार की चूत में पेवस्त था और वो धक्के खाने के साथ सिस्कार रही थी। मेरे देखते देखते धक्कों ने जोर पकड़ लिया और वो दोनों ही अंट-शंट बकने लगे…
मैं क्या उसे रोक सकता था? मैंने खुद से सवाल किया। वो मुझसे ड्योढ़ा तो था ही, मेरे ही घर में मुझे पीट डालता।
फिर देखते-देखते दोनों के बदन ऐंठ गए और वो वही बिस्तर पर चिपके चिपके फैल गए। तब रुखसार की नज़र मुझ पर पड़ी, उसने अजनबी को इशारा किया और वो भी मुझे देखने लगा, मगर क्या मजाल कि उनकी पोजीशन में कोई फर्क आया हो।
“आओ आओ मेरे शौहर… तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे।” रुखसार ने ही शुरुआत की और मैं अन्दर आ गया।
“मेरे साथ तो रोज़ कोई न कोई बहाना बना देती हो और यहाँ यह हाल है?”
वो जोर से हंसी।
“हाँ जी, यही हाल है… यह मेरा आल टाइम फेवरेट ठोकू है, मुझे इसके सिवा किसी के भी लंड से इन्कार है, मैं इससे ही शादी करना चाहती थी, मगर इसमें परेशानी यह थी कि एक तो यह गरीब और दूसरे तलाकशुदा…! कहाँ मेरे घर वाले राज़ी होते, तो हमने यह आईडिया निकाला था कि मैं किसी लल्लू से शादी कर लेती हूँ, इसके बाद हम आराम से चुदाई कर सकते हैं। अगर वो सब जान कर चुप रहता है तो भी ठीक और अगर मुझे तलाक दे देता है तो और भी ठीक, क्योंकि तब मैं भी तलाकशुदा हो जाऊँगी और तब हम शादी कर सकते हैं। अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस बात पर राजी होते हो।”
“मतलब तुमने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया?”
“ज़ाहिर है।”
और मैं दूसरे विकल्प पर गया और अगले ही दिन उसे तलाक देकर खुद दिल्ली चला आया, जहाँ तब मेरी नौकरी थी। यह मुझे प्रयोग करने की शुरुआत थी जिसमें मुझे सिवा ज़िल्लत के कुछ न हासिल हुआ। लेकिन इसके बाद मैंने इस प्रयोग में भी अपनी दुनिया तलाश ली।
मैं कृष्ण पार्क के एक मकान में किरायेदार के तौर पर रहता था। मैं अकेला ही रहता था जब कि ऊपर की मंजिल पर दो हिस्से थे और दूसरे हिस्से में एक मियां-बीवी रहते थे। पति का नाम अजय था जो पश्चिम विहार में कहीं नौकरी करता था और पत्नी का नाम अलका था। अलका बाईस-तेईस साल की एक खूबसूरत युवती थी, जिसके जिस्म को शायद ऊपर वाले ने फुर्सत से तराशा था।
वह लोग मेरे बाद रहने आये थे और जैसे ही मैंने अलका को देखा था, मेरी लार टपक गई थी, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श 36 इन्च की चूचियाँ, चूतड़ और चूचियों के बीच कमर ‘डम्बल’ जैसी लगती थी। उसकी कजरारी आँखों ने जैसे मेरा मन मोह लिया था।
अलका घर पर ही रहती थी और उसके चक्कर में मुझे भी जब काम से छुट्टी मिलती थी तो मैं घर पर ही गुजारता था और इस तरह मुझे उसके दर्शन तो हो ही जाते थे। वो कभी सामने से नज़र मिला कर नहीं देखती थी, इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसके मन में कुछ था भी या नहीं।
बाकी जब वो साटन का गाउन पहन कर फिरती थी तो उसके बदन की सिलवटें बताती थीं कि वो मुझे दिखाने के लिए हैं। सामने उभरे उसे दो निप्पल मुझे कहते लगते थे कि आओ हमें चूसो।
धीरे-धीरे हमें साथ रहते तीन महीने हो गए, मगर कोई जुगाड़ न बना। लेकिन एक दिन ऐसी एक बात हुई, जिसने मेरी उम्मीदों को फिर से रोशन कर दिया।
हुआ यह कि उस दिन मेरी छुट्टी थी और मैं कमरे पर ही था जब वह आई। उस वक़्त उसने एक स्लीवलैस गाउन पहना हुआ था और सीना देखने पर साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि उसने नीचे ब्रा नहीं पहन रखी थी। कोई भड़काऊ परफ्यूम लगाया हुआ था जिससे अजीब सा नशा छा रहा था और मन में सवाल उठ रहा था कि क्या यह परफ्यूम मेरे लिए यूज़ किया गया?
“आपको थोड़ा बहुत बिजली वगैरह का काम आता है न? मैंने देखा है आप खुद ही अपनी चीजें सही कर लेते हैं।”
“हाँ हाँ… अब इंजीनियर हूँ तो इतना तो कर ही सकता हूँ।”
“मेरे बोर्ड का सॉकेट जल गया था, वह ले तो आये थे, मगर लगाने का वक़्त ही नहीं मिला। आज कुछ अर्जेंट काम था तो जल्दी ही चले गए। आप लगा देंगे?”
“हाँ… क्यों नहीं !”
“आपकी बड़ी मेहरबानी…” कह कर वो धीरे से हंसी।
और मेरे मन में लड्डू फूटा, मैं उसके साथ हो लिया। कमरे में लाकर वो मेरे साथ ही खड़ी हो गई और मैं काम से लग गया। उसके बदन से उठती महक मुझे बुरी तरह बेचैन कर रही थी। इस बीच उसे हेल्प के लिए बार-बार हाथ उठाने पड़ते थे, जिससे उसके स्लीवलैस गाउन के नीचे बगल से दिखते बाल मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहे थे। ये मेरी एक कमजोरी थे।
“अच्छे हैं।” मेरे मुँह से निकला।
“क्या?” उसने अचकचा कर मेरी आँखों में झाँका।
“यह,” मैंने उसकी बगल की ओर इशारा किया, “मुझे यहाँ पर बाल बहुत पसंद हैं।”
मैंने उसकी आँखों में एक शर्म महसूस की और उसने नज़रें झुका लीं… हाथ भी नीचे कर लिया।
“बहुत ज्यादा साफ़ भी नहीं करना चाहिए, इससे स्किन काली पड़ जाती है। है न?”
“हाँ… छोड़िये।”
“अरे नहीं… इसमें शर्माने की क्या बात है, जब तक आपका काम हो नहीं जाता हम कुछ बात तो करेंगे ही। कितने दिन में बनाती हैं आप?”
“दो ढाई महीने के बाद।”
“और वहाँ के?” मैंने शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
वो शरमा कर परे देखने लगी, मगर उसके होंठों पर एक मुस्कराहट आई थी, जिसे उसने होंठ अन्दर भींच कर दबाने की कोशिश की, मगर वो मुझे इतना तो बता गई कि उसने बुरा नहीं माना। मुझ में एक नई उम्मीद का संचार हुआ।
“बताइये न.. मैं क्या किसी से कहने जा रहा हूँ !”
“साथ में ही !” उसने धीरे से कहा।
“ओहो… मतलब अभी वहाँ पर भी इतनी ही रौनक होगी… असल में कुछ लोगों के पैशन कुछ अलग होते हैं और ये बाल मेरा पैशन हैं। मैं इन्हें तो देख सकता हूँ… काश वहाँ के भी देख पाता।”
“आपकी शादी हो गई?” उसने बातचीत का विषय बदला।
“हाँ… पर किस्मत में शादी का सुख नहीं। पत्नी पहले से ही किसी से फंसी हुई थी, उसने मुझे सिर्फ अपना मतलब निकालने के लिए इस्तेमाल किया और अपने यार के साथ चली गई, मैं तो अकेला ही रह गया।” मैंने कुछ मायूसी भरे अंदाज़ में कहा।
“ओह !” उसके स्वर में हमदर्दी का पुट था।
और फिर उसने जो बात कहीं, उसने मेरे उम्मीदों के दिए एकदम से रोशन कर दिए।
“सुख का क्या है, कई लोग होते हैं, जिनकी किस्मत में शादी टूटने के बाद सुख नहीं होता और कई लोग होते हैं जिनकी किस्मत में शादी होते हुए भी सुख नहीं होता।”
कहते वक़्त उसकी आवाज़ में एक मायूसी थी जिसने मेरे लोअर में हलचल मचा दी। मैंने उसकी आँखों में झांकना चाह मगर उसने निगाहें नीची कर लीं।
“क्या कहीं और कोई कोई लड़की है अजय की ज़िन्दगी में?”
“नहीं।”
“अच्छा, तो इसका मतलब यह है कि वो तुम्हें वैसे शारीरिक सुख नहीं दे पाता जो तुम्हें मिलना चाहिए।” मैंने अगला वार किया।
उसकी काया ‘कांप’ कर रह गई। होंठ हिले मगर कुछ शब्द न निकल सके… उसने एक नज़र उठा कर मेरी आँखों में देखा और वापस नज़रें नीची कर लीं।
मैंने मन ही मन नाप-तौल कर शब्द चुने और कहना शुरू किया, ” देखो, मेरी कहानी भी अजीब है, शादी हुई मगर उस लड़की से जिसने मुझे एक चीज़ की तरह इस्तेमाल किया। अपना मतलब निकल गया और किनारे कर दिया। अब मैं सोचता हूँ तो लगता है कि ठीक है, मैं एक चीज़ ही हूँ जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन मुझे उस इस्तेमाल से ऐतराज़ था। पर अगर तुम इस्तेमाल करना चाहो तो मुझे कोई परेशानी नहीं। मैं दावा तो नहीं कर सकता मगर मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें मायूसी नहीं होगी।”
यह एक वार था, जिसकी प्रतिक्रिया पर मुझे ध्यान देना था। ऐसा लगा नहीं कि वह समझ न पाई हो। मगर फिर भी उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा।
मैंने सॉकेट लगा कर अब बोर्ड को बंद कर दिया और फिर घूम कर उसके कंधे पकड़ लिए। उसके जिस्म में एक थरथरी दौड़ गई।
“तुम मुझे यूज़ कर सकती हो… एक सामान की तरह, जब मन भर जाए निकल फेंकना अपनी ज़िन्दगी से। वादा करता हूँ कि कभी बात मेरे सीने से आगे नहीं बढ़ेगी।”
“मम… मैं… कोई जान… ये ठीक नहीं…” वह समझ ही नहीं पाई कि क्या बोले, क्या कहे और मैं अब और मौका देना नहीं चाहता था। मैंने एकदम से उसके होंठ पर होंठ रख दिए। उसने मेरी पकड़ से निकलना चाहा, लेकिन मैंने उसकी कमर पर अपनी गिरफ्त मज़बूत कर ली थी।
उसने चेहरा हटाना चाहा, मगर मैंने वो भी न करने दिया और ऐतराज़ के सिर्फ चंद पलों बाद उसके होंठ खुल गए और वो खुद से मेरे होंठों को, जीभ को चूसने चुभलाने लगी, उसकी ढीली बाहें मेरी कमर पर सख्त हो गईं। मुझे इसी पल में अपनी जीत का एहसास हो गया।
मैंने उसे थामे-थामे पीछे खिसक कर दरवाज़ा बोल्ट किया और खिसकाते हुए बिस्तर पर लाकर गिरा लिया। अब होंठों से उसके होंठ चूसते हुए एक हाथ से उसकी गर्दन के बालों पर पकड़ बनाते हुए, उसकी कसी-कसी चूचियाँ दबाने मसलने लगा। फिर मैंने होंठ अलग करके उसकी गहरी गहरी आँखों में झाँका।
“जब तुम सही मायने में सम्भोग के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार हो पाती होगी तब तक वो खलास हो चुका होता होगा। है न !!” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।
वो मुस्कराई। मगर उसकी मुस्कराहट में एक उदासी थी, जो कह रही थी कि मैं सही हूँ।
मैंने फिर उसके होंठ दबोच लिए और हाथ नीचे ले जाकर उसके गाउन में घुसा कर ऊपर चढ़ाया तो साथ में वो ऊपर सिमटता चला आया और वो लगभग नग्न हो गई… ब्रा तो थी ही नहीं, पैंटी भी ऐसी फैंसी थी कि सिर्फ चूत को ही ढके थी।
मैंने उसकी रजामंदी के साथ गाउन उसके शरीर से निकाल दिया और खुद भी अपने कपड़े उतार कर वहीं डाल दिए।
सबसे पहले मैंने उसके बदन को कुत्ते की तरह चाट डाला, जी भर के उसके चूचे दबाए, घुंडियों को मसला-चूसा, फिर उसकी पैंटी नीचे खींच कर अलग कर दी।
उसकी चूत मेरे सामने अनावृत हो गई। उस पर उतने ही बाल थे, जितने महीने भर की शेविंग के बाद होते हैं।
मैंने उसमें मुँह डाल दिया… एक महक सी मेरे नथुनों से हो कर मेरे दिमाग में चढ़ गई। उसकी कलिकाएँ गहरे रंग की और बड़ी बड़ी थीं। मैंने उन्हें होंठों से चुभलाना शुरू किया… अलका ऐंठने लगी… साथ में जुबान से उसके दाने से खेलने लगा और पानी-पानी हो रही बुर में एक उंगली सरका दी।
वो जोर जोर से सिस्कारने लगी और ज्यादा देर नहीं लगी जब उसकी चूत पानी से बुरी तरह भीग गई, मैंने दो उँगलियाँ अन्दर सरका दी और अन्दर बाहर करने लगा। यह
वो सिस्कारती रही, ऐंठती रही और जल्दी ही झड़ गई। फिर कुछ शांत हुई तो मैं उसके सर के पास पहुँच गया और अपना अर्ध उत्तेजित लंड उसके होंठों के आगे कर दिया जिसे उसने बड़े प्यार से मुँह में ले लिया और चूसने लगी। साथ ही मैंने उंगली से उसकी बुर सहलाना जारी रखी जिससे वो पुनः उत्तेजित हो गई।
जब मैंने खुद में पर्याप्त उत्तेजना महसूस की तो उसके मुँह से अपना लंड निकल लिया। अब उसके पैरों के बीच में आकर उसकी टांगें फैलाईं और लंड को ठीक छेद से सटा कर एक जोर का धक्का मारा… लंड चूत की दीवारों से रगड़ता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर सरक गया।
वो जोर से सिसकारी और बिस्तर की चादर अपनी मुट्ठियों में भींच ली, लंड पर चूत का चिकना पानी लगा तो वो और चिकना हो गया… मैंने बाहर निकाल कर वापस धक्का मारा तो जड़ तक चला गया। फिर मैंने उसी पोजीशन में उसे चोदना चालू किया। वह हर धक्के के साथ थोड़ा ऊपर सरक जाती।
थोड़ी देर में जब रास्ता बन गया तो मैं उस पर दौड़ने लगा। कमरे में ‘फच्च-फच्च’ की आवाजें गूंजने लगीं और साथ में उसकी ‘आह-आह’ के साथ ही वातावरण में गर्माहट भर गई। कुछ देर की इस रगड़म पेल के बाद उसने दोनों हाथों से मुझे अपने से अलग धकेल दिया।
“क्या हुआ?” मैंने अचकचा कर पूछा।
“मुझे ऐसे मज़ा नहीं आता।”
“तो कैसे आता है…?!” मैंने हैरानी से उसे देखा।
और अगले पल में वो पेट के बल लेट कर अपने चूतड़ उठा कर ऐसे उत्तेजक पोज़ में आ गई कि उसकी चूत पूरे आकर में मेरी आँखों के आगे लहरा गई।
उसने एक हाथ से अपना एक चूतड़ हौले से थपथपाया। इशारा समझते मुझे देर न लगी और मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रख कर धीरे धीरे पूरा अन्दर सरका दिया और चूतड़ों को साइड से कस कर थाम लिया और धक्के लगाने लगा। वो चेहरा चादर से टिकाये मीठी मीठी निगाहों से मुझे देखती सिस्कार रही थी।
“ऐसे मज़ा आता है।” उसने सिस्कारियों के बीच में कहा।
“अच्छा, तो लो… ऐसे ही मज़ा लो रानी।” मैंने धक्कों की स्पीड बढाते हुए कहा।
लंड अन्दर-बाहर होता रहा और वो सिस्कारती रही। मैं पसीना-पसीना हो गया, पर इस तरह चूत की गर्म भट्टी में आते-जाते लंड भी अपनी अंतिम पराकाष्ठा पर पहुँच गया।
“मैं झड़ने वाला हूँ… मेरा रस पियोगी क्या?”
उसने आँखों ही आँखों में स्वीकृति दी और मैंने लंड चूत से निकाल लिया। वो सीधी हो कर बैठ गई और जल्दी से मेरे लंड को हाथ से थाम कर मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं एक कराह के साथ बह गया… एक तेज़ पिचकारी छेद से निकली और आधा उसके मुँह में गया तो आधा होंठ और आस-पास। वो चाटती रही और अंतिम बूँद तक साफ़ कर दी। फिर हम वैसे ही शिथिल हो कर गिर गए और हांफने लगे।
“मुझे पहली बार सेक्स का मज़ा आया।” उसने चेहरा तिरछा कर के मेरी तरफ देखा।
“रियली, चलो मैं जब तक हूँ वादा करता हूँ कि तुम्हें यह मज़ा बराबर मिलता रहेगा… लेकिन मेरे मज़े का भी ख्याल रखना पड़ेगा।” मैंने फिर उसके चूचों को सहलाना शुरू किया।
“क्यों… तुम्हें मज़ा नहीं आया?”
“आया … लेकिन मुझे इस छेद से और ज्यादा मज़ा आता है।” मैंने हाथ नीचे ले जा कर उसकी गांड के छेद को छुआ।
“अच्छा, लेकिन मैंने कभी नहीं करवाया… पर ऐसा क्यों, कुदरती तौर पर तो सेक्स के लिए योनि ही होती है न।”
“अब कुदरत का पता नहीं लेकिन अगर यही छेद चोदने के लिए है तो मेरी समझ से बाहर है कि दूसरे छेद से मारने या मरवाने पर मज़ा क्यों आता है। दरअसल मेरा बचपन से साथ ऐसे लड़कों के साथ रहा जो आपस में गुदामैथुन करते थे और मैं भी अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के की गांड मारता था। मेरा सारा सम्भोग उसी छेद से पैदा हुआ और वो मेरा आज भी पहला शौक है।”
“पर उसमें तो काफी दर्द होगा न?”
“अब पहली बार में तो चूत की चुदाई में भी दर्द होता है और बच्चा पैदा करने में भी। पर दर्द का मतलब यह तो नहीं कि दोनों काम किये ही नहीं जायेंगे। सारा मज़ा तो इस दर्द की देहरी को पार करने के बाद ही मिलता है।”
“ओके, चलो तुम्हारी ख़ुशी के लिए अब ये दर्द भी झेल लूंगी मगर थोड़ा प्यार से… ताकि दर्द कम से कम हो।”
“उसकी फ़िक्र न करो… वो मेरी ज़िम्मेदारी।”
उसकी रजामंदी के साथ ही मैंने उसे फिर गर्म करना शुरू किया। लेटे-लेटे बायां हाथ उसकी पीठ के पीछे से निकाल कर उसकी बाईं चूची दबाने लगा और होंठों में दाहिनी चूची का निप्पल ले कर चुभलाने लगा। दाहिना हाथ नीचे उसकी बुर के दाने से शरारत करने लगा। कुछ देर में उसका बदन ऐंठने लगा और वो अपने दाहिने हाथ से मेरे बाल नोचने लगी।
“बस… अब करो वरना मैं झड़ जाऊँगी।”
“कुछ चिकनी चीज़ है… लगा कर डालूँगा तो कम दर्द होगा।”
उसने सिरहाने से कोई क्रीम उठा कर दे दी… जैली टाइप की ही थी।
“चलो काम चल जाएगा।” मैंने उसके चूतड़ थपथपाए और वो तत्काल किसी चौपाये की तरह हो गई।
मैंने उसकी कमर पर दबाव देकर उसे सुविधाजनक हालत में पहुँचा दिया। अब मैंने उस कसमसाते हुए छेद को निहारा… चुन्नटें सिकुड़ी हुई.. यौन उत्तेजना से दुपदुपाता… गुलाबी-गुलाबी छेद। मैंने उंगली से उसके आस-पास क्रीम लगाई और फिर ‘बिचली’ उंगली अन्दर उतार दी।
उसने एक ‘सीईईईइ’ किया। मैंने उंगली से क्रीम अन्दर तक लगा दी और उंगली से छेद को खोदने सहलाने लगा। क्रीम की चिकनाहट से ऊँगली कुछ देर में आसानी से उतरने लगी। दूसरे हाथ को नीचे डाल कर उसकी चूत के दाने को सहलाना और उंगली करना जारी रखा जिससे उसकी उत्तेजना बनी रहे। जब एक उंगली का रास्ता बन गया तो दो उंगलियाँ घुसाईं। वो एकदम से मचली, मगर फिर एडजस्ट कर लिया और दो उँगलियाँ अपना रास्ता बनाने लगीं।
उसकी उत्तेजना ने काम आसान कर दिया। थोड़ी देर में गांड ने चिकना पानी निकालना शुरू कर दिया और दोनों उंगलियां आसानी से अन्दर बाहर होने लगीं। तब मैंने अपने सुपारे पर क्रीम लगाई और थोड़ी सी और उसके छेद में लगा दी और तब मैंने उसकी छेद से टिका कर सुपारे को अन्दर ठेला। एक तो क्रीम और पानी की चिकनाहट और उसकी उत्तेजना… टोपी को बहुत ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ा और वो अन्दर उतर कर फंस गई। वो दर्द से बिलबिलाई और आगे होकर मेरे लंड की जद से निकल जाना चाहा, लेकिन मैंने चूतड़ सख्ती से थाम लिए और उसी हालत में उसे रोक लिया।
“इजी… इजी… हो गया… बस अब सब्र करो और उसे अपनी जगह बनाने दो।”
उसने खुद को संभाला और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। मैंने फिर उसे चूत सहला कर गर्म करना शुरू किया और इतनी आहिस्ता-आहिस्ता लंड को अन्दर सरकाता रहा कि उसे एहसास न हो पाए।
वो दर्द भूल कर फिर गर्म होने लगी और जब मैंने उसे बताया कि भाई पूरा चला गया तो हैरानी से उसने गर्दन घुमा कर देखा।
“अभी थोड़ा दर्द बर्दाश्त करो, मैं बाहर निकाल कर फिर अन्दर डालूँगा ताकि छेद ठीक से खुल सके। फिर सामने से करेंगे ताकि तुम देख सको ओके?”
उसने मौन स्वीकृति दी और मैंने धीरे-धीरे से लंड को बाहर निकाला, जैसे ही सुपाड़ा बाहर आया उसने जोर से राहत भरी ‘सीईई’ की, पर फिर वापस उसे दो इंच तक घुसेड़ा तो फिर दर्द से मुँह बन गया, लेकिन जब यही प्रक्रिया चार-पांच मर्तबा दोहराई तो गांड का छल्ला इतना फैल गया कि लंड आराम से समागम कर सके।
फिर उसे चित लिटा लिया और उसके दोनों पैर मोड़ कर इतने ऊपर कर दिए कि गांड का छेद मेरे सामने आ गया। अपने पैर उसने खुद से कस लिए और मुस्कराते हुए मुझे उकसाने लगी।
मैंने फिर सुपारा छेद पर लगा कर ठांसा, लंड कुछ कसाव के साथ अन्दर सरकता चला गया।
उसके चेहरे से दर्द की लहरें एक बार फिर गुजरीं लेकिन उसने कोई विरोध न किया… मैं एक हाथ की उँगलियों से चूत को सहलाने में लग गया और लंड को धीरे-धीरे अन्दर बाहर करता रहा।
जब रास्ता सरल हो गया और वो भी ठीक से गर्म हो गई, तो उसने ही कहा- स्पीड बढ़ाओ।
और देखते देखते मैं उसकी गांड तूफानी रफ़्तार से चोदने लगा। वो सिस्कारने लगी। कमरे में तूफ़ान आ गया। मेरी उखड़ी-उखड़ी साँसें उसकी आह…आह के साथ मिल कर कमरे का माहौल में आग भरने लगीं।
फिर वो सर पीछे करके आँखें बंद करके अकड़ गई और उसकी गांड की गर्माहट और कसाव ने मुझे भी कोई बहुत देर दौड़ नहीं लगाने दी और मैं भी जल्दी ही उसके अन्दर ही झड़ गया।
तो दोस्तो, यह थी अलका की दास्ताँ… इस तरह अलका के मुझे यूज़ करने का सिलसिला शुरू हुआ जो कई महीनों बाद तब थमा जब उसके पति को कहीं और शिफ्ट होना पड़ा और वो दोनों चले गए।
मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे ज़रूर बताइए।
Reply
07-17-2020, 11:54 AM,
#2
RE: raj sharma story कामलीला
एक बेवा का शिकार

दोस्तो, एक बात तो मैं ज़रूर कहना चाहूँगा कि पिछले दिनों में छपी मेरी एक कहानी पढ़ने के बाद मुझे ऐसे तो ढेरों मेल आए, पर एक असलम साहब का मेल मुझे खास आकर्षित कर गया जो मेरा स्म्पर्क नम्बर चाहते थे। वजह कुछ अधिक सीरियस थी, बहरहाल मैंने थोड़ी टाल-मटोल के बाद उन्हें मेरा नम्बर दिया और फिर बात-चीत शुरू हुई। वो मुझसे किसी सिलसिले में मुलाकात करना चाहते थे, मैंने अपनी एहतियात के लिए कुछ शर्ते रखीं और फिर उन्हें मुलाकात के लिए बुला लिया।
वो बाकायदा मुम्बई आकर मुझे मिले। उनसे जो बातचीत हुई, वो तो काफी लम्बी थी। मगर जो लब्बोलुआब था वो पेश कर रहा हूँ।
“मैंने आपकी कहानी पढ़ी, अच्छी थी मगर जो बात मुझे आप तक खींच लाई, वो ये थी कि मैं एक समस्या में हूँ और मुझे लगता है कि आप मेरी मदद कर सकते हैं। दरअसल मुस्लिम होने की वजह से मेरी आप से बात करने की हिम्मत हुई वरना मैं शायद कभी ऐसा सोच भी नहीं पाता।
मसला यह है कि मेरी एक छोटी बहन है जिसकी शादी पांच साल पहले हुई थी, लेकिन अभी एक साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में उसके पति की मौत हो गई और अब वो बेवा के रूप में मेरे ही घर ही रह रही है। मेरे माँ-बाप की हम दो ही औलादें थीं, अभी इस वक़्त मेरे घर में मेरी बीवी ज़रीना के सिवा दो बच्चे काशिफ और समीर ही हैं और अब मेरी बहन निदा भी साथ ही रहती है।
समस्या यह है कि अभी वो सिर्फ 25 साल की है और यह उम्र कोई सब्र करके बैठ जाने वाली नहीं होती। उसकी उमंगें, उसकी जिस्मानी ख्वाहिशें ठण्डी तो नहीं पड़ जाएँगी इस उम्र में और उसका जो मरहूम शौहर था, वो अपने पीछे जो भी छोड़ के मरा है वो सब अब मेरी बहन का ही है। उसके सास ससुर पहले ही जन्नत-नशीं हो चुके हैं और वो अकेला ही था।
लिहाज़ा अब जो करोड़ से भी ऊपर की जायदाद है, वो सब उसी की है और यह बात खानदान, रिश्तेदारी और मोहल्ले के ढेरों लोग जानते हैं और वो निदा पर नज़रें गड़ाए बैठे हैं। अब जवान लड़की है, किसके बहकावे में आ जाए कहा नहीं जा सकता और फिर क्या अंजाम हो सकता है, उसका खुदा जाने.. क्योंकि जो पैसे के लालच में उससे शादी करेगा, वो आगे कुछ भी कर सकता है।
मेरी समझ में निदा को बचाने का एक ही रास्ता है, आखिर जिस हाल में वो है उसमें उसके जिस्म की भूख ही तो उसे किसी के पास ले जाएगी। मैं जानता हूँ कि आपको सुन कर अजीब लगेगा लेकिन मैं सोचता हूँ कि अगर मैं ही उसके लिए यह इंतज़ाम कर दूँ तो शायद उसके कदम बहकने से बच जाएँ और वो किसी बुरे अंजाम से सुरक्षित रहे। आगे देखा जाएगा कि उसके लिए और क्या किया जा सकता है, लेकिन इस वक़्त तो मैं आपसे ही यह उम्मीद लेकर आया हूँ कि इस सिलसिले में आप मेरी मदद करेंगे। आपकी मदद के बदले ऐसा नहीं कि मैं आपको कुछ दूँगा नहीं, आप कोई उजरत न लेना चाहें तो भी मैं अपनी तरफ से तो ज़रूर ही करूँगा। बस आपको मुम्बई को छोड़ कर लखनऊ रहना होगा। अगर आपकी नौकरी की वजह से कोई प्रॉब्लम है तो मैं वहाँ नौकरी का भी इन्तजाम कर दूँगा।
बताइये, आप मेरी मदद करेंगे या मैं मायूस होकर वापस लौट जाऊँ?”
मैंने सोचने के लिए एक दिन का समय माँगा और फिर एक दिन बाद मैंने उन्हें फैसला सुना दिया कि मैं उनके साथ ही लखनऊ चल रहा हूँ। मैंने कुछ घरेलू समस्या बता कर अपनी तैनाती लखनऊ में कराने की कोशिश की थी और मुझे 6 महीने के लिए वहाँ शिफ्टिंग मिल गई थी।
और इस तरह मैं नवाबों के शहर में आ गया।
असलम साहब के घर मैं उनके साथ ही करीब दस बजे पहुँचा था, जो कि निशात गंज में था। बंगले टाइप का घर था जो यूँ तो एक मंजिला ही था लेकिन ऊपर एक कमरा, बरामदा भी बना हुआ था जो अब मेरे काम आने वाला था। साइड की दीवारें इतनी तो ऊंची थी कि सड़क से कुछ न दिखे, बाकी आस-पास के ऊंचे मकानों के छतों से तो खैर देखा जा सकता था, लेकिन ऐसे बड़े शहरों में फुर्सत ही किसे रहती है।
असलम साहब की उम्र करीब चालीस की रही होगी तो उस लिहाज से निदा और उनके बीच काफी बड़ा अंतर था। लेकिन उनकी बीवी ज़रीना उनके आस-पास की ही लगीं, वो और निदा बाकी तो दिखने में समान ही थीं लेकिन चेहरे से उम्र का अंतर पता चलता था। जहाँ निदा के चेहरे पर मासूमियत थी वहीं ज़रीना के चेहरे पर परिपक्वता झलकती थी। बाकी चूचियों और चूतड़ों का आकार एक सा था। कमर शायद निदा की कम रही हो लेकिन उसके ढीले कपड़ों से कुछ पता नहीं चलता था, चेहरे दोनों के खूबसूरत थे।
दोनों बच्चे 10 और 8 साल के थे और सीधे-सादे से थे। उन दोनों औरतों में से जहाँ ज़रीना ने मेरा स्वागत अजीब सी बेरुखी से किया वहीं निदा ने तो मुझे जैसे देखना भी गंवारा न किया। ऐसा लगा ही नहीं जैसे मेरे आने से उसकी सेहत पर कुछ असर पड़ा हो, असलम भाई के मुताबिक ज़रीना को इस बात की खबर नहीं थी कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ। उसके और बाकी घर के लोगों की नज़र में मैं उनका बस एक किरायेदार था, जो अब उनके साथ ऊपर ही रहने वाला था और जिसका नाश्ता-खाना भी उन्हें ही करके देना था और उसकी कीमत लेनी थी।
बहरहाल मैंने वहाँ रहना शुरू कर दिया और असलम भाई की बहन पर डोरे डालने शुरू किये। मैं सुबह जब तक घर रहता, इसी कोशिश में रहता कि किसी तरह उसे आकर्षित कर पाऊँ और शाम को जब घर आता तो सोने तक इसी कोशिश में लगा रहता और इसके लिए असलम भाई के बच्चों का सहारा लेता जो धीरे-धीरे मुझसे घुलने-मिलने लगे थे।
लेकिन मैंने पाया कि ज़रीना मेरी कोशिशों को पलीता लगा देती थी, उसकी आँखों में अजीब उद्दंडतापूर्ण लापरवाही रहती थी और वो सीधे तो मुझसे कुछ नहीं कहती लेकिन असके अंदाज़ से लगता था कि मुझे पसंद नहीं करती थी और निदा पर तो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ता था, न पसंद और न ही नापसंद।
इसी तरह जब हफ्ता गुज़र गया और गाड़ी आगे न बढ़ी तो एक दिन मैंने अपनी सीमा लांघने की ठानी।
मैंने अक्सर पाया था कि अपने धुले कपड़े वह लोग ऊपर ही सुखाते थे और अब मैं पहचानने भी लगा था के कौन से कपड़े किसके थे, तो एक दिन मैंने ऊपर फैली निदा की सलवार के नीचे छुपी उसकी पैंटी बरामद की। मैं पहले भी चेक कर चुका था कि दोनों ननद-भाभी अपनी चड्डियाँ अपनी सलवार या कुर्ते के नीचे छिपा कर सुखाती थीं और जल्दी से मुठ्ठ मार कर सारा माल उसमें पोंछा और उसे वापस उसकी जगह टांग दिया।
शाम के अँधेरे में निदा आई और अपने कपड़े लेकर चली गई, लेकिन थोड़ी ही देर में हंगामा मच गया।
वो धमर.. धमर करते गुस्से से आगबबूला होती ऊपर आई और अपनी चड्डी मेरे मुँह पर फेंक मारी।
“यह क्या है?” उसकी आँखें सुर्ख हो रही थीं।
“क्या है?” जानते बूझते मैंने अनजान बनने की कोशिश की।
उसने मेरे हाथ से चड्डी छीनी और उसमें लगे वीर्य के नम दाग दिखाते हुए चिल्लाई, “यह क्या है?”
“मुझे क्या पता क्या है… ! तुम्हारी चीज़ है तुम जानो।”
“तुम्हारा दिमाग ख़राब हुआ है, मैं समझती थी कि कोई शरीफ इंसान हो, इसी लिए भाई ने रखा है लेकिन तुम तो एक नम्बर के कमीने हो.. ये गंदगी करके मेरे कपड़ों में पोंछ दिया, शर्म नहीं आती…!” वह गुस्से में जाने क्या-क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा !
फिर वो रोती हुई नीचे चली गई और मैं शर्मिंदा हो कर रह गया। नीचे उसके रोने की आवाज़ें आती रहीं और मैं सुनता रहा। मुझे लग रहा था कि अब ज़रीना आएगी मुझे ज़लील करने लेकिन वो नहीं आई। फिर जब असलम भाई आए तो उनसे दास्तान बताई गई और वो उनके हिसाब से मुझे समझाने ऊपर आए।
“वो यह सब सोच भी नहीं सकती थी इसलिए ऐसे रियेक्ट किया लेकिन यकीन करो कि आज रात में जब वह सोयेगी तो उसका दिमाग इसी में अटका रहेगा और कल तुम्हें वो किसी और नज़र से देखेगी।”
“और भाभी?”
“उसकी फ़िक्र मत करो, वो जैसी भी है मुझसे बाहर नहीं जा सकती।”
इसके बाद बात खत्म और मैं अगले दिन के इंतज़ार में।
अगली सुबह जब वह ऊपर कपड़े फैलाने आई तो मैं जानबूझ कर उसके सामने गया। उस वक़्त मैं सिर्फ चड्डी में था और मेरा उभार साफ़ प्रदर्शित हो रहा था। उसने मुझे देखा, नीचे देखा और बिना कोई रिएक्शन दिए भावहीन चेहरा लिए कपड़े फैला कर नीचे चली गई।
इसके बाद तो मैंने भी ठान लिया कि अब ये रोये या लड़े लेकिन मैं इसके सामने ऐसे ही रहूँगा और अक्सर तब, जब वो कपड़े फैलाने या उतारने आती तो मैं उसके सामने चड्डी में ही रहता और यहाँ तक कि अपना सामान भी टाइट ही रखता कि ऊपर से साफ़ पता चले।
मैंने एक बात तो महसूस की कि अब वो वैसी बेरूख सी नहीं लगती जैसे पहले लगती थी लेकिन अपनी दिलचस्पी किसी तरह ज़ाहिर भी नहीं करती थी।
एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।
उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई। मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#3
RE: raj sharma story कामलीला
दो दिन बाद मुझे अपने कमरे के बंद दरवाज़े के नीचे एक चिट्ठी पड़ी मिली। जिसमे लिखा था, “मैं भी वही चाहती हूँ जो तुम चाहते हो लेकिन मेरी शर्म मुझे ऐसा करने से रोकती है। आज शाम सभी लोग फ़िल्म देखने जाने वाले हैं, मैं कोई बहाना करके घर रुक जाऊँगी, तुम आओगे तो दरवाज़ा खुला मिलेगा, मैं अपने कमरे में रहूँगी लेकिन बिल्कुल अँधेरे में, मेरी हिम्मत नहीं कि मैं रोशनी में ऐसा कर सकूँ। तुम्हें भी याद रखना होगा कि अँधेरे को कायम रहने दोगे।”
उस रोज़ काम पर मेरा मन बिल्कुल न लगा और मैं शाम होते ही घर की तरफ भागा, लेकिन फिर भी पहुँचते-पहुँचते सात बज गए।
दरवाज़ा वाकई खुला मिला जो मैंने अन्दर होते ही बंद कर लिया,घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने निदा के कमरे की तरफ देखा, अँधेरा कायम था। मैं आहिस्ता से उसके कमरे में घुसा, कपड़ों कि सरसराहट बता गई कि वह मेरे इंतज़ार में थी, बाहर की रोशनी में बेड पर एक साया पसरा दिखा।
मैं आहिस्ता से चल कर उसके पास बैठ गया।
“मैं कब से इस पल के इंतज़ार में था।”
“बोलो मत, वक़्त इतना भी नहीं है।” उसने सरसराते हुए कहा।
फिर मैंने देर करने के बजाय उसे दबोच लिया। वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। मैंने अपनी गर्म हथेलियों की छुअन से उसकी चूचियाँ और कमर सब रगड़ डाली। उसने भी बड़ी बेकली से मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरुआत हो गई।
मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुँह में दे दी जिसे वह बड़ी मस्ती में चूसने लगी। फिर अपनी ज़ुबान उसने मुझे दी तो मैंने भी उसके होंठ और ज़ुबान जी भर के चूस लिए।
मेरा एक हाथ उसकी दाहिनी चूची पर रेंग रहा था और दूसरा उसके बालों को थामे था।
फिर मैंने उसे खुद से अलग किया।
“कपड़े उतारो।”
उसने कोशिश नहीं की, मैंने ही जल्दी-जल्दी उसके सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि चड्डी भी न रहने दी और फिर खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले।
अब बेड पर हम दोनों नंग-धडंग एक-दूसरे से लिपटने लगे, मैं उसे बुरी तरह चूम रहा था चुभला रहा था और वो उसी बेकरारी से मुझे चूम कर जवाब दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यासी हो और आज सारी प्यास बुझा लेना चाहती हो।
उसकी नरम-नरम चूचियाँ.. उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही मुलायम थीं, शायद वैधव्य में अपने हाथों से ही मसलती रहती थी लेकिन निप्पल मज़ेदार थे और किशमिश जैसे मस्त थे जिन्हें चूसने में मज़ा आ गया।
जिस वक़्त मैं एक हाथ से उसके एक चूचे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था, वह पैरों से मुझे जकड़ने की कोशिश करती, मेरे बालों को मुट्ठियों में भींचे थी और सिसकारते हुए अपने हाथ से ही अपनी चूची मेरे मुँह में ठूँसने को ऐसे तत्पर थी, जैसे खिला ही देना चाहती हो।
चूचियों को चूसते हुए मैंने अपना घुटना उसकी जांघों के जोड़ पर लगाया तो चिपचिपा हो गया, तब मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को छुआ तो वहाँ से कामरस की धारा बह रही थी।
अब उसकी चूची छोड़ कर मैंने उसे चूमते हुए नीचे सरका और वहीं रुका जहाँ उसके कामरस के ख़रबूज़े जैसी महक मेरे नथुनों से टकराई। मैंने वहीं मुँह घुसा दिया। अब ज़ुबान से जो कामरस चाटना शुरू किया तो उसकी सीत्कारें और तेज़ हो गई और बदन में ऐंठन पड़ने लगी। उसकी कलिकाएँ मध्यम आकर की थीं, जिन्हें मैं ज़ुबान और अपने होंठ से दबा के पकड़ कर खींचने लगा और साथ में उसके क्लिटोरिस हुड को भी छेड़े जा रहा था और वो किसी नागिन की तरह मचलने लगी थी।
फिर मैंने अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके गीले छेद में अन्दर सरका दी, वह एकदम से तड़प उठी और उसके मुँह से एक ज़ोर की ‘आह’ जारी हुई।
मुँह से लगातार उसकी चूत पर हमला करते मैंने अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो उसकी कराहें और तेज़ हो गयीं। उसने एक हाथ से बिस्तर की चादर दबोच ली थी, तो दूसरे हाथ से मेरे सर के बाल नोचे जा रही थी।
जब मुझे लगा कि अब वो जाने वाली है, तो मैंने मुँह हटा लिया और ऊँगली भी निकाल ली। ऐसा लगा जैसे उसकी जान निकल गई हो, पर जल्दी ही मैंने उसकी खुली बुर के छेद पर अपना लंड रख कर अन्दर सरका दिया। उसने मुझे दबोचना चाहा लेकिन मैंने उसे दूर ही रखा और बाकायदा उसकी टांगों के बीच बैठ कर दो तीन बार में लंड गीला कर के पूरा अन्दर ठांस दिया।
वह होंठ भींचे ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी और मैंने उसके पांव पकड़ कर धक्के लगाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था जैसे हर धक्के पर उसके अन्दर कोई करेंट प्रवाहित हो रहा हो। अपनी तरफ से वह कमर उचका-उचका कर हर धक्के का जवाब देने की कोशिश कर रही थी।
फिर उसी पोजीशन में वह ऐंठ गई और मुझे अपने ऊपर खींच कर दबोच लिया और कांप-कांप कर ऐसे झड़ने लगी, जैसे बरसों का दबा लावा अब फूट-फूट कर निकल रहा हो।
पर अभी मेरा नहीं हुआ था, मैंने उसे फिर से चूमना, सहलाना शुरू किया और लंड बाहर निकाल कर फिर अपनी ऊँगली से उसकी कलिकाओं को छेड़ने लगा और चूचियों को चूसने लगा। जल्दी ही वह फिर तैयार हो गई और मैंने इस बार उसे बेड से नीचे उतार लिया।
एक पांव नीचे और एक पांव ऊपर और इस तरह हवा में खुली चूत में मैंने अपना लंड ठूंस कर उसके नरम गद्देदार चूतड़ों पर, जो धक्के मारने शुरू किये, तो उसकी ‘आहें’ निकल गईं और जल्दी ही वह खुद भी अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके सहयोग करने लगी।
इसी तरह वह सिस्कार-सिस्कार कर चुदती रही और मैंने हांफते हुए चोदता रहा और जब लगा के अब निकल जाएगा तो लंड उसकी बुर से बाहर निकाल कर उसके चूतड़ पर दबा दिया और जो ‘फच-फच’ करके माल निकला, वह उसके चूतड़ों पर मल दिया।
फिर दोनों बिस्तर पर गिर कर हाँफ़ने लगे।
“सुनो, मैं बिना गाँड़ मारे नहीं रह सकता। तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, दर्द हो या छेद फट ही क्यों न जाए मैं बिना मारे छोड़ूँगा नहीं।”
उसने कोई जवाब नहीं दिया।
वह पड़ी रही और मैं उसी हालत में उठ कर कमरे से निकला और रसोई में आ गया। तेल ढूंढने में ज्यादा देर न लगी, मैं उसे लेकर वापस उसके पास पहुँचा और उस पर चढ़ कर फिर उसे गरम करने लगा।
थोड़ी ही कोशिश में वह मचलने लगी और बुर जो उसने पोंछ ली थी, वो फिर से रसीली हो गई।
मैंने इस बार सीधे अर्ध उत्तेजित लंड को उसकी बुर में डाला और धक्के लगाने लगा। वह गर्म होने लगी और उसकी बदन की लहरें मुझे बताती रही। जब उसे चुदने में खूब मज़ा आने लगा और मेरा लंड भी पूर्ण उत्तेजित हो गया तो मैंने लंड निकल कर उसे कुतिया की तरह चौपाया बना लिया और अब तेल में ऊँगली डुबा डुबा कर उसकी गा्ण्ड के कसे छेद में करने लगा।
शुरू में वह कसमसाई पर फिर एडजस्ट कर लिया और य़ू ही एक के बाद दो और दो के बाद तीन ऊँगलियाँ तक उसके कसे चुन्नटों से भरे छेद में डाल दी। जब मुझे लगा कि अब लंड जाने भर का रास्ता बन गया है, तो लंड को तेल से नहला कर मैंने ठूँसना शुरू किया, जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, वह जोर से कराह कर आगे खिसकी.. लेकिन मैं भी होशियार था। मैंने उसकी कमर थाम ली थी और निकलने नहीं दिया, उलटे तेल की चिकनाहट के साथ पूरा लंड अन्दर ठेल दिया।
“उई ई ई .. ऊँ ऊँ …ओ..!
“बस हो गया, डरो मत, तुम अपने हाथ से अपनी क्लिटोरिस सहलाओ, चूत गरम रहेगी तो मरवाने का भी मज़ा आएगा।”
उसने ऐसा ही किया और फिर जब मैंने उसके गुदाज नरम चूतड़ों पर थाप देते हुए उसकी गाँड़ में लंड पेलना शुरू किया, तो थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और इसके बाद फिर उसे नीचे चित लिटा कर, फिर उसकी टांगें उठा कर उसके घुटने पेट से मिला दिए तो उसकी गाँड़ का छेद इतना ढीला हो चुका था कि उसने मेरे लंड का कोई विरोध ना किया और आसानी पूरा अन्दर निगल लिया।
फिर कुछ ज़ोर-ज़ोर के धक्कों के बाद मेरा फव्वारा छूट ही पड़ा और मैंने पूरी ‘ट्यूब’ उसकी गाण्ड में खाली कर दी और उसके बगल में गिर कर हाँफ़ने लगा।
इतनी मेहनत और दो बार के डिस्चार्ज ने इतनी हालत खस्ता कर दी कि होश ही न रहा। होश जब आया जब बाहर घन्टी बजी।
जल्दी-जल्दी दोनों ने कपड़े पहने और मैं ही बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलने पहुँचा, पर ये देख कर हैरान रह गया कि बाहर असलम भाई के साथ उनके दोनों बच्चे तो थे लेकिन उनकी बीवी ज़रीना के बजाय उनकी बहन निदा भी मौजूद थी।
“अरे तुम… ज़रीना कहाँ है?”
मेरी एक ठंडी सांस छूट गई और मैंने आहिस्ता से सर हिला कर कमरे की तरफ इशारा किया और जीने से ऊपर बढ़ आया।
मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कमरे में मेरे लौड़े के नीचे जरीना थी और मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन अजीब कमीनी औरत थी कि इतना चुदने के बाद भी हेकड़ी बरक़रार थी और क्या मज़ाल कि उसके चेहरे से ऐसा लगता कि मुझसे चुद चुकी हो।
बहरहाल जो मेरा शिकार थी, वह पच्चीस साल की बेवा, वो वैसे ही नरमी तो दिखा रही थी लेकिन चुदने जैसा कोई इशारा नहीं दे रही थी, उसके चक्कर में ही मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा खुला रख के ही सोता था कि उसे आने में दिक्कत न हो और अँधेरे में ही अपनी शर्म छुपा कर चली आए।
फिर भाभी की चुदाई के चार रोज़ बाद एक रात ऐसा मौका भी आया… जब रात के किसी पहर मेरी आँख खुल गई। खुलने का कारण मेरे लंड का खड़ा होना और उसका गीला होना था। मैंने अपनी इंद्रियों को सचेत कर के सोचा तो समझ में आया कि कोई मेरे लंड को अपने गीले-गीले मुँह में लिए लॉलीपॉप की तरह चूसे जा रहा था।
मैंने देखने की कोशिश की पर साये से ज्यादा कुछ न दिखा।

अब ऐसी खुली हरकत तो ज़ाहिर था कि ज़रीना ही कर सकती थी, लेकिन मुझे क्या, ननद न सही भाभी ही सही, एक अदद चूत ही तो चाहिए।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसे ऊपर खींच लिया।
और उसे जकड़ कर उसके होंठों का रसपान करने लगा।
वो भी मेरे होंठों और ज़ुबान से खेलने लगी, मैंने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ गूंथनी शुरू की, तो उसकी कराह निकल गई।
“क्या लगा लिया, उस दिन नरम लग रही थी आज तो कुछ सख्त लग रही हैं?”
मैंने उसके कुर्ते को ऊपर करते हुए कहा।
वह कुछ नहीं बोली।
मैंने उसका कुरता उसके सर से ऊपर करके निकाल दिया और उसकी सलवार भी उतार दी। खुद तो वैसे भी चड्डी में ही सोता था। अब दो नंगे बदन की रगड़ा-रगड़ी माहौल में आग भरने लगी।
थोड़ी देर ब्रा के ऊपर से मैं उसके निप्पल कुचलता रहा और वह हौले-हौले सिसकारती रही, फिर उसके स्पंजी वक्षों को ब्रा की कैद से आज़ाद करके दोनों मटर के दानों जैसे निप्पलों को खींचने, चुभलाने लगा।
फिर मेरे हाथों के इशारे पर वो औंधी लेट गई और मैं उसकी पीठ पर लद कर दोनों हाथ आगे ले जाकर उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन मोड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा। उसने भी एक हाथ से मेरा चेहरा थाम लिया था।
इसके बाद मैं नीचे सरकने लगा।
और बिल्कुल नीचे पहुँच कर उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसके नरम-नरम चूतड़ों को चाटने दबाने लगा और पीछे से ही हाथ डाल कर उसकी गर्म भट्टी की तरह दहकती बुर को छुआ तो जैसे वह सिहर गई।
चिपचिपा पानी भरा हुआ था।
मैं उसी हालत में उसे रखे खुद चित लेट गया और अपना मुँह नीचे से उसकी चूत पर ले आया और ज़ुबान से उसकी कलिकाओं से छेड़छाड़ करने लगा।
वह मचलने लगी…
दोनों हाथों से मैंने उसके डबल-रोटी जैसे चूतड़ थाम रखे थे और जब ऊपरी कलिकाओं को काफी गर्म कर चुका, तो ज़ुबान को नुकीला और कड़ा करके उसके छेद में उतार दिया।
वह ‘सिस्स’ करके रह गई।
मैंने धीरे धीरे उसे जीभ से चोदने लगा और वह हौले-हौले ‘आह-आह’ करती रही। फिर ऐसा वक़्त भी आया जब वह बुरी तरह मचलने लगी और मुझे नीचे से धकेल दिया, पर करवट न बदली और वैसे ही औंधी पड़ी कराहती रही।
मैं सीधा होकर उसकी पीठ पर चढ़ आया और दाहिने घुटने से उसकी जांघ पर दबाव बना कर उसे इतनी दूर ठेल दिया कि नीचे उसकी बुर खुल सके और फिर हाथ से लंड को पकड़ कर उसके छेद पर रखा और अन्दर ठेल दिया।
वह एकदम से अकड़ गई…
पर मैंने उसे निकलने न दिया और उल्टा हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल कर उसके चेहरे को अपनी तरफ करके उसके होंठों से अपने होंठ चिपका कर चूसने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी दाहिनी चूची को भी ज़ोर-ज़ोर से भंभोड़ने लगा।
लंड जब उसके पानी से भीग गया तो बाहर निकाल कर वापस पूरा अन्दर ठेल दिया और उसके नरम गद्देदार चूतड़ों का आनंद लेते हुए उसी अवस्था में धक्के लगाने लगा।
वह पहले ही चरम पर पहुँच चुकी थी, इसलिए कुछ ही धक्कों में उसकी चूत बहने लगी और मेरे लंड को नहला गई। मैं भी रुका नहीं बल्कि उसी हालत में धक्कों की स्पीड बढ़ाता चला गया और आखरी धक्के इतनी ज़ोर-ज़ोर से लगाए कि बेड बुरी तरह हिल कर रह गया। ऐसा हो ही नहीं सकता कि नीचे उसके यूँ हिलने की आवाज़ें न गई हों।
फिर मैं उसकी चूत में ही झड़ गया और उसके चूतड़ों पर अपना पेट कस के सारा माल अन्दर ही निकाल दिया।
आधी रात के वक़्त की यह चुदाई मुझे इतना थका गई कि मेरे होश ही न बजा रहे और पता भी न चला कि मैं कब नींद के आगोश में जा समाया।
सुबह जब आँख खुली तो तबियत में भारीपन था और मन ही नहीं हो रहा था कि काम पर जाऊँ। जैसे-तैसे उठा तो ग्यारह बज चुके थे। बिस्तर झाड़ा तो एक बाली मिली, शायद कल रात की धींगा-मुश्ती में रह गई थी।
उसे लिए नीचे पहुँचा तो सन्नाटा छाया हुआ था और ज़रीना अकेली रसोई में थी। मैं उसके पास पहुँचा तो मुझे देखने लगी।
“बाली रह गई थी रात में !” मैंने उसे बाली थमाते हुए कहा।
उसने हैरानी से मुझे देखा और फिर बाली देखने लगी।
“कहाँ रह गई थी?”
“रात में जब तुम ऊपर थी।” मैंने आहिस्ता से कहा कि कहीं निदा न सुन ले।
“ओह ! यह मेरी नहीं, निदा की है और मैं रात में ऊपर नहीं गई।”
मैं अवाक सा उसे देखता रहा और फिर हैरानी से निदा के कमरे की तरफ देखा।
“वह घर नहीं है, बच्चों को लेकर अपनी फूफी के यहाँ गई है ! तो कल रात वह चुदी है तुमसे।”
“कमाल है, जब मैंने उसे समझ कर चोदा तो तुम निकली और जब तुम्हें समझ कर चोदा तो वो निकली। तुम्हें पता है कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ।”
“हाँ, पता है… मेरे लिए।”
“क्या?” मैंने हैरान हो कर उसे देखा।
“हाँ… तुम्हारे भाई साहब आज तक मेरी प्यास नहीं बुझा पाये, बच्चे तो जैसे-तैसे करके हो ही जाते हैं, लेकिन औरत को संतुष्ट कर पाना हर किसी के बस का नहीं होता। कभी गलत संगत में अपनी खराबी कर ली थी।
शादी के बाद से ही यह हाल है कि एक तो ठीक से खड़ा नहीं होता, ऐसा लगता है कि घुसाने के टाइम मुड़-तुड़ कर बाहर ही रह जाएगा, अपनी सील तोड़ने के लिए मुझे खुद बैंगन इस्तेमाल करना पड़ा था और अपनी बुर को इतना ढीला करना पड़ा था कि असलम साहब अपने उस ‘लुंज-पुंज’ से उसे चोद पाएँ लेकिन धीरे-धीरे जब उम्र चढ़नी शुरू हुई तो दूसरी दिक्कत आ गई कि खड़ा हुआ नहीं कि झड़े नहीं। मुद्दतें हो जाती हैं मुझे अपनी प्यास बुझाए और इसी की वजह से मेरे मिजाज़ में भी चिड़चिड़ापन आ गया है।
अब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो चला था, कहाँ तक मैं घर की इज्जत और उनकी मान-मर्यादा का ख्याल रखती। मैं अब बाग़ी होने लगी थी, तभी उन्होंने यह रास्ता निकाला कि कम से कम घर की बात घर में ही रहे।”
“पर उन्होंने तो कहा था के मुझे उनकी बेवा बहन के लिए यहाँ रुकना है कि कहीं वो बहक कर खुद का कोई अहित न कर ले।”
“हाँ, उनका मर्दाना आत्म-सम्मान.., मर्द जो ठहरे, अपनी हार सीधे-सीधे कैसे स्वीकार कर लेते और बहरहाल बात तो निदा की भी थी, आखिर जायदाद किसे प्यारी नहीं होती, किसी और से सैट हो कर चली गई, तो सब गया हाथ से और यहीं चुदती रहेगी, तो बाहर किसी को देखेगी भी नहीं।”
“उसे पता है कि मैं तुम्हारे लिए लाया गया हूँ?”
“नहीं, पर मैं बता दूँगी कि उसके भाई ने हम दोनों के ही लिए एक मर्द का इंतज़ाम किया है और अब तो वो तुमसे चुद भी चुकी है, तो उसे भला क्या इंकार होगा।”
“पर मुझे झूठ बोल कर यूँ उल्लू बनाना पसंद नहीं आया और इस बात का बदला तो मैं असलम भाई से लेकर ही रहूँगा।”
“कैसे?”
“तुम अब उन्हें फोन लगाओगी और बताओगी के मुझे सब पता चल चुका है और अब मैं तुम्हें अभी ही चोदने जा रहा हूँ और तुम अपनी चुदाई की दास्तान उन्हें फोन पर सुनाओगी और वो फोन नहीं काटेंगे… फोन काटा तो मैं बाहर सब को सच बता कर यहाँ से चला जाऊँगा।”
वह हँसी.. उसके चेहरे पर चमक आ गई।
हाँलाकि मेरी तबियत बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी मैं उसे गुसलखाने में पकड़ लाया। फोन उसके हाथ में ही था। उसने नम्बर मिलाया और असलम भाई को बताने लगी। उधर से कोई आवाज़ न आई और मैंने शावर चला दिया, हम दोनों के कपड़े भीग गए।
फोन उसने पानी से दूर ही रखा था, वो फोन पर वो सब बोलती रही जो मैं करता रहा।
मैंने उसके कपड़े उतार दिए और अपने भी…
फिर कम स्पीड में शावर चला कर बहते पानी में उसके भरे-भरे गुब्बारे दबाने, चूसने लगा। उसकी पीठ पर ज़ुबान फिराई और हाथ आगे किए, उसके पेट को सहलाता रहा।
वह फोन पर बताती तो रही, पर जिस क्षण उसे तेज़ आनन्द की लहर कचोटती, उसका स्वर लहरा जाता या चुप हो जाती।
नीचे होते उसके चूतड़ों को चाटने लगा और दोनों मोटी फाँकों को अलग कर के उसकी गांड के छेद में उंगली कर दी। वो सिसक उठी और मैं उसकी टांगों को थोड़ा फैला कर आगे से उसकी पानी से भीगी बुर में मुँह डाल कर उसे मुँह से चोदने लगा और हाथ की उंगली से उसकी गुदा के छेद को। उसके लिए फोन सम्भाल कर बात करते रहना मुश्किल हो गया और आवाज़ लहराने लगी।
जब वह इतनी गर्म हो गई कि उसके लिए बात करना मुमकिन न रह गया तो मैंने अपना मुँह और ऊँगली हटा ली और खुद खड़ा हो गया और उसे नीचे झुका लिया। उसने मेरा इशारा समझने में देर नहीं की। फोन पर बताया कि क्या करने जा रही थी और मेरे लंड को मुँह में ले कर चूसने लगी।
फोन पर उसकी ‘गूं.. गूं.. और चप.. चप..’ असलम भाई को सुनाई दे रही होगी।
जब लंड काफी टाइट हो गया तो मैंने उसे हटा दिया और कमोड पकड़ कर झुका दिया, एक पाँव नीचे फर्श के टाइल पर तो दूसरा कमोड की सीट पर और मैंने पीछे से उसके चूत में अपना लंड सरका दिया। अब वो कुछ और बोलने के काबिल तो नहीं थी बस फोन मुँह के पास रखे ‘आह-आह… ओह’ करती रही और मैं उसके चूतड़ों को पकड़े धक्के पर धक्के लगाता रहा।
इस चुदाई में मैंने कोई और आसन नहीं अख्तियार किया, बस पैर की पोजीशन ही बदलवाई और इसी तरह लगातार धक्के लगाता रहा।
धीरे धीरे मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया और साथ ही वो भी और जिस घड़ी एक तेज़ कराह के साथ हम दोनों झड़े, फोन उसके हाथ से छूट गया और फर्श पर बिखर गया।
मैंने अपने अंतिम पड़ाव पर उसके चूतड़ों में अपनी उँगलियाँ धंसा कर उसे अपने लंड पर ऐसे भींचा था, जैसे उसे खुद में ही समा लेना चाहता हूँ…
उसने भी फोन छोड़ कर कमोड की सीट को दोनों मुट्ठियों में जकड़ लिया और इस तरह हमारी चुदाई संपन्न हुई।

और फिर यहाँ जो ननद-भाभी की चूत के दर्शन सुलभ हुए तो वारे न्यारे हो गए और बाद में जब दोनों के बीच सब कुछ साफ़ हो गया तो मेरी उँगलियाँ समझो कि घी में तैर गईं।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#4
RE: raj sharma story कामलीला
दोनों ने समझौता कर लिया था और अब यह होता था कि भाई साहब ने बीवी और बहन को समझो, मेरे हवाले कर दिया था और अब एक रात मेरे साथ ज़रीना सोती थी तो एक रात निदा। ऐसे ही महीना गुज़र गया।
इस बीच कम्पनी के गुड़गांव ऑफिस से एक मेरी ही उम्र का लड़का नितिन लखनऊ शिफ्ट हुआ था और हफ्ते भर में ही मेरी उससे बड़ी अच्छी छनने लगी थी। दोनों ही अपने घरों से दूर एक नए शहर में अकेले थे तो दोस्ती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी और हमारे बीच अंतरंग बातें भी साझा होने लगी।
वह भी एक नंबर का चोदू था लेकिन यहाँ उसके पास कोई जुगाड़ नहीं था और वो मुझे उकसाता था कि मैं ही उसके लिए कुछ जुगाड़ करूँ।
मैंने डरते-डरते ज़रीना से उसके लिए बात की तो मुझे सीधे धमकी सुनने को मिल गई कि अगर मैं किसी दोस्त को इस नियत से घर भी लाया तो समझो मेरा पत्ता यहाँ से कटा। फिर मैंने निदा से बात की तो जैसे तूफ़ान ही आ गया। वह तो ऐसे भड़की जैसे मैंने पता नहीं कौन सा गुनाह कर दिया।
बकौल उसके यह उसकी मज़बूरी थी कि वो मेरे साथ सो रही थी लेकिन मैं इससे आगे ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ और वो भी एक दूसरे धर्म लड़के के साथ? छि: छि: …
और वो मुझे लटी-पटी सुना कर ऐसे गई कि तीन दिन तो अपनी शकल ही न दिखाई और करीब सात-आठ दिन मुझे उसकी चूत के दर्शन भी न हुए।
इस बीच तीन बार ज़रीना से काम चलाया।
लेकिन कहते हैं न एक बार जब चूत को लंड की लत लग गई तो चुदाई का तय वक़्त होते ही उसमें अपने आप ‘चुल्ल’ मचने लगती है और फिर कुछ सही गलत, अच्छा बुरा नहीं दिखता।
आठ दिन जैसे तैसे गुज़ार कर आखिरकार फिर वो मेरे पास वापस आ ही गई, लेकिन नितिन से चुदने को अब भी तैयार नहीं थी और अपनी जीत होते देख मैंने भी इस प्रकरण को एंड नहीं किया और उसे लैपटॉप और मोबाइल पर ‘एमएमऍफ़’ यानि दो मर्द और एक औरत की चुदाई वाली फ़िल्में दिखा-दिखा कर उस अकूत आनन्द के बारे में बता-बता कर उसकी कल्पनाओं को अपने मनमाफिक उड़ान देता रहा।
कहते हैं न कि बात चाहे कितनी भी गन्दी और घिनौनी क्यों न हो लेकिन बार-बार कानों में पड़ती है तो मन को उसे सुनने की आदत हो जाती है और फिर विरोध भी शनै: शनै: क्षीण हो कर ख़त्म हो जाता है और ऐसा ही निदा के साथ भी हुआ।
जो बात पहली बार सुन कर वो आगबबूला हो गई थी करीब पंद्रह दिन के बाद उसी बात पर उसने यह पूछ लिया कि वो (नितिन) पूरी दुनिया को बताएगा तो नहीं?
मुझे तो जैसे मुँह-मांगी मुराद मिल गई। मैंने उसे भरोसा दिलाया कि वो मेरा खास दोस्त था और बेहद भरोसे का इंसान था और वैसे भी वो परदेसी है एकाध महीने के बाद वापस गुड़गांव चला जाएगा तो किसी को बता कर भी क्या हासिल कर लेगा।
फिर मैंने यह खुशखबरी नितिन को सुनाई…
वह पट्ठा भी सुन कर प्रसन्न हो गया कि चलो उसके लंड के लिए कुछ जुगाड़ तो हुआ।
मैंने निदा को स्कीम समझाई और ज़रीना को भी पटाया कि अब रात का सेक्स बहुत हो चुका, मैंने दिन के उजाले में निदा को देख-देख कर चोदना चाहता हूँ। वह ऐसा करे कि किसी दिन अपने परिवार को लेकर अपने मायके, जो चौक में था, वहाँ चली जाए और रात को ही वापस लौटे।
पहले तो मानी नहीं, लेकिन जब थोड़ा गुस्सा दिखाया और चले जाने को कहा तो लंड हाथ से निकलते देख फ़ौरन तैयार हो गई और रविवार के दिन का प्लान बना लिया।
फिर वह मुरादों वाला रविवार भी आया।
ज़रीना सुबह ही अपने परिवार को लेकर निकल गई और दस बजे मैंने नितिन को बुला लिया।
वह जब आया तो हम दोनों नीचे ही बैठे थे। दिखने में बंदा मुझसे भी हैंडसम था और उसे प्रथम दृष्टया देख कर निदा की आँखों में डर, अरुचि, मज़बूरी या अप्रियता के भाव न आए, बल्कि उसकी आँखें शर्म से झुक गईं तो मुझे तसल्ली हुई कि अब ऐन मौके पे पट्ठी बिदकेगी नहीं। उधर निदा को देख कर नितिन भी गदगद हो गया। इसमें भी कोई शक नहीं कि वह ज़बरदस्त माल थी।
बहरहाल, निदा को मैं नीचे ही छोड़ कर उसे ऊपर अपने कमरे में ले आया और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। नितिन उतावला हो रहा था लेकिन मैं निदा को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए थोड़ा समय देना चाहता था।
करीब आधे घंटे बाद मैंने उसे आवाज़ देकर ऊपर बुलाया।
उसने मेरी पुकार का उत्तर तो दिया, लेकिन ऊपर न आई…
मैंने दो बार और बुलाया लेकिन वह ऊपर न आई तो मैंने नितिन से कहा- नीचे ही चलना पड़ेगा बेटा।
इसके बाद अपने प्रोग्राम के लिए मैंने जो नीचे जुगाड़ करके रखी थी वो सम्भाले नितिन के साथ नीचे पहुँचा तो वह अपने कमरे में पहुँच चुकी थी।
जिस वक़्त हम दरवाज़े की चौखट पर पहुँचे वह अपने बेड के पायताने बैठी अपने पांव के अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी और चेहरा नीचे झुका रखा था। दुपट्टा कायदे से सीने पर व्यवस्थित था।
मैं उसके पास आ बैठा और उसे अपने कंधे से लगा कर उसका सर सहलाने लगा।
मेरे इशारा करने पर नितिन भी निदा के दूसरी तरफ उसके पास आ बैठा और उसकी वजह से निदा जैसे और भी सिमट गई।
मैंने उसके पहलू से हाथ अन्दर घुसा कर उसकी एक चूची सहलानी शुरू की और दूसरे हाथ से उसका चेहरा थाम कर उसके होंठ चूसने लगा। नितिन ने यह देख उसकी जाँघ पर हाथ रखा लेकिन उसने झटक दिया। नितिन ने मुझे देखा तो मैंने आँखों के इशारे से उसे कोशिश करते रहने को कहा और खुद अपने हाथ से उसका दुपट्टा हटा कर अलग फेंक दिया।
नितिन ने फिर उसकी जाँघ पर हाथ रखा… निदा ने फिर उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन इस बार मैंने थोड़ी फुर्ती दिखाते हुए अपने दोनों हाथ उसकी बगलों में घुसा कर ऊपर किए तो उसके दोनों हाथ स्वमेव ही मेरे कन्धों पर आ गए और फिर मैंने अपने होठों से उसके होंठ समेट लिए और उसकी ज़ुबान से किलोल करने लगा।
अब नितिन थोड़ा और सरक के निदा से एकदम सट गया और सीधे हाथ से उसकी जाँघें सहलाते हुए, उलटे हाथ से निदा की कमर थाम ली।
इस नए स्पर्श से निदा एकदम से सिहर गई। उसकी झुरझुरी मैंने भी महसूस की। उसने हिलने, कसमसाने की कोशिश की लेकिन हम दोनों के बंधन ऐसे सख्त थे कि फिर ढीली पड़ गई और नितिन के नए अजनबी हाथों को जैसे आत्मसात कर लिया।
नितिन ने सीधे अपने हाथ को उसके निचले तन पर फिराते हुए, दुपट्टा हटने के बाद कपड़ों के ऊपर से भी टेनिस बॉल जैसे उसके उरोज़ों पर ले आया। निदा ने फिर झुरझुरी ली, लेकिन मैंने उसे छूटने न दिया और आरम्भिक कसमसाहट के बाद जैसे अवरोध ख़त्म हो गया और नितिन बड़े प्यार से उसकी चूचियों को सहलाने, दबाने लगा।
मैंने तो निदा के हाथों को ऊपर किए अपने हाथ उसकी पीठ पर रखे। उसकी गर्दन और पीठ सख्ती से थाम रखी थी, लेकिन नितिन कुछ देर ऊपर से उन स्पंजी चूचियों का मर्दन करने के पश्चात् उसकी कुर्ती के अन्दर हाथ घुसा कर, उसकी त्वचा से स्पर्श करते हुए अब उसकी ब्रा तक पहुँच गया था और उसे ऊपर खिसकाने की कोशिश कर रहा था।
त्वचा पर उसकी गर्म हथेलियों की रगड़ ने पहले तो निदा को सिहराया, फिर इसी रगड़ ने उसे उत्तेजित करना शुरू कर दिया। जब नितिन उसकी ब्रा को ऊपर खिसका कर उसकी नग्न चूचियों तक पहुँचने में कामयाब रहा। अपने सधे हुए हाथों से उन नरम गुदाज गेंदों को सहलाते, दबाते उसके चुचूकों को मसलने और छेड़ने लगा, तो निदा के शरीर में एकाएक बढ़ी उत्तेजना मैं साफ़ अनुभव करने लगा।
उसके चुम्बन में प्रगाढ़ता और आक्रामकता आ गई।
उसकी सहायता के लिए मैंने न सिर्फ अपने हाथों को उसकी पीठ पर रखे हुए निदा की ब्रा के हुक खोल दिए बल्कि हाथ नीचे करके उसकी कुर्ती को एकदम से ऐसा ऊपर उठाया के उसकी भरी-भरी चूचियां नितिन की आँखों के आगे एकदम से अनावृत हो गईं और वह दोनों हाथों से उन पर जैसे टूट पड़ा।
उत्तेजना के अतिरेक से निदा की आँखें बंद सी हो गईं।

मैंने उसके होठों को छोड़ कर उसके गालों, गर्दन और कान को चूमते, चुभलाते और रगड़ते नितिन को संकेत किया और उसने साथ लाये सामान से शहद निकाल लिया।
यह शहद उसने निदा की दोनों भूरी-गुलाबी घुंडियों पर मल दिया और फिर एक चूची को उसने अपने मुँह में समेट लिया और ज़ुबान से उसकी घुंडी पर लगा शहद चूसने लगा। एक हाथ से न सिर्फ वह निदा की दूसरी चूची सहला रहा था, बल्कि उसकी घुंडी पर शहद भी मल रहा था।
मैं निदा के चेहरे को चूम रहा था और रगड़ रहा था, उसकी पीठ को सहला रहा था और नितिन एक-एक कर के दोनों चूचियों और घुंडियों पर शहद मल-मल कर उन्हें चूस रहा था।
निदा की सांसें उखड़ने लगी थीं।
उसके सारे शरीर में लहरें सी दौड़ने लगी थीं और साँसें भारी हो कर ‘सी-सी’ में बदल गई थीं।
नितिन ने ही उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे करने की कोशिश की, लेकिन इस हाल में भी निदा ने अपनी सलवार थाम ली और उसे नीचे नहीं होने दिया। मैंने उसके हाथ फिर बांध लिए और इस बार नितिन को सफलता मिल गई। उसने सलवार नीचे कर दी और खाली हाथ से पैंटी के ऊपर से ही उसकी पाव-रोटी जैसी फूली हुई चूत पर हाथ फिराया तो निदा कांप गई। नितिन के साथ ही मैंने भी अपना हाथ वहाँ पहुँचाया, तो उसकी पैंटी गीली मिली।
नितिन तो नहीं, पर मैंने ही उसके चूतड़ों की तरफ हाथ ले जाकर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे थोड़ा उचका कर पैंटी को नीचे खिसकाने लगा।
अवरोध डालने के लिए निदा ने ताक़त लगाई, लेकिन नितिन ने भी नीचे हाथ डाल कर उसके चूतड़ों को ऊपर उठा दिया और पैंटी चूतड़ से नीचे हो गई और फिर दोनों जाँघों पर हम दोनों ने दबाव डाल कर उसकी पैंटी को उसके घुटनों तक पहुँचा दिया।
और.. यूँ नितिन को उसकी मखमली बुर के दर्शन हुए और मुझे भी दिन के उजाले में पहली बार निदा की उस चूत के दीदार हुए, जिसे मैं रातों के अँधेरे में कई बार अपनी ज़ुबान से भी चख चुका था।
आज बुर बिल्कुल सफाचट थी। लगता था जैसे सुबह ही शेविंग की हो… यानि मन से बंदी तैयार थी इस नए अनुभव के लिए।
बालों की जगह हल्का हरापन था और चूँकि हम बैठे या यह कहो कि अधलेटी अवस्था में थे तो बुर के पूरे दर्शन तो नहीं हो पा रहे थे, लेकिन ऊपर से जो आधी दिख रही थी उतनी भी कम शानदार नहीं थी।
उत्तेजना में हल्का सा उठा छोटा मांस और नीचे रक्षा कवच जैसी क्लियोटोरिस-वाल गहरे रंग में उत्तेजना के कारण अपने पूरे वजूद में दिख रही थी। मेरे साथ नितिन भी इस नज़ारे से मस्त हो गया।
उसने अपनी उँगलियाँ नीचे ले जाकर उसकी सम्पूर्ण योनि पर फिराई तो निदा काँप कर रह गई और उधर योनि से बहा चिपचिपा पदार्थ उसकी ऊँगलियों से लग गया। उसने अपनी ऊँगलियों को नाक के पास ला कर सूंघा और ऐसा लगा जैसे उस महक से नितिन मस्त हो गया हो। नितिन की आँखें बंद हो गईं, कुछ पल के लिए और उसने अपने होंठों से निदा की घुंडी निकाल कर ज़ुबान से उस लिसलिसे कामरस को चखा और फिर उसे उसी चूची पर लगा कर फिर उस पर अपनी ज़ुबान रगड़ने लगा।
अब निदा के चेहरे गर्दन से होकर मैं भी झुकते हुए उसकी बाईं चूची पर पहुँच गया।
अब निदा पीछे की तरफ इतना झुक गई कि उसे सहारे के लिए अपने हाथ बिस्तर पर टिका देने पड़े।
और हम दोनों शहद मल-मल कर उसकी घुंडियों और चूचियों को ऐसे चूसने लगे जैसे कोई भूखे बच्चे दूध पीने में लगे हों। यूँ तो उसकी चूत अनावृत थी लेकिन अभी हम सिर्फ उसे ऊपर से ही सहला रहे थे और इतने में भी निदा की गहरी-गहरी सिसकारियाँ छूटने लगी थीं।
दोनों घुन्डियाँ उत्तेजना से एकदम कड़ी होकर रह गई थीं। फिर मैं अपने पैर समेट कर बिस्तर पर ऊपर आ गया और निदा की पीठ के पीछे होकर उसे अपने सीने से लगाते हुए ऐसे सम्भाल लिया कि एक हाथ से उसका चेहरा दबाव बना कर अपनी तरफ मोड़ लिया और उँगलियाँ शहद से भीगा कर उसके होंठ और चेहरे को गीला कर दिया और अपनी बेक़रार जीभ से उसे चाटने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके दाने को उँगलियों से गर्म करने लगा।
और इस पोज़ीशन में नितिन अपने दोनों हाथ और मुँह से निदा की गदराई चूचियों का स्तनपान करने लगा। साथ ही उसने अपनी पैंट और चड्डी नीचे खिसका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था, जो उत्तेजना से कड़ा हो कर अपने पूरे आकार में फनफना रहा था।
मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि उसका लंड मेरे मुकाबले न सिर्फ लम्बा था, बल्कि मुझसे मोटा भी था और उसका रंग भी इतना गोरा था कि वह किसी को भी पसंद आ सकता।
जब उसने निदा का हाथ थाम कर उसे अपने लंड पर रखा तो निदा ने चौंक कर आँखें खोलीं और उसे देखा और फ़ौरन अपना हाथ वापस खींच लिया लेकिन इस एक पल में मुझे उसकी आँखों में लहराए जो भाव दिखे, वो यह सन्देश दे गए कि उसे नितिन का लंड भा गया था और फिर शर्म से उसने फिर आँख बंद कर लीं और हम फिर अपने काम में लग गए।
यहाँ भी मुझे ही नितिन की मदद करनी पड़ी। मैंने निदा का हाथ ले जाकर उसके लंड पर रख कर ऐसा दबाया कि उसे संकेत समझ कर लंड हाथ में लेना पड़ा और वो उसे पकड़े ही रहती अगर नितिन उसके हाथ को ऊपर-नीचे न करता।
बहरहाल अब मैं निदा के चेहरे और होंठों को चूसे डाल रहा था, नितिन उसकी चूचियों को मसल-मसल कर घुंडियों का हाल बेहाल किए दे रहा था और निदा खुद धीरे-धीरे नितिन के लंड को सहला और दबा रही थी।
जब ऐसे ही कुछ देर हो गई तो मैंने भी अपना लोअर नीचे खिसका कर अपना सामान बाहर निकाल लिया और निदा की गर्दन पर दबाव डाल कर उसे इतना झुका दिया कि वो अधलेटी सी हो कर बाएं करवट हो कर झुकी और मेरे लंड तक पहुँच गई। पहले तो नए शख्स के सामने शर्म के कारण चेहरा इधर-उधर हटाया, लेकिन मेरे ज़ोर डालने पर उसे मुँह में ले ही लिया और उस पर अपनी जीभ रोल करने लगी।
पर इस अवस्था में उसकी दोनों चूचियाँ नीचे हो कर नितिन के आक्रमण से सुरक्षित हो गईं।
तो नितिन ने उसके नग्न गोरे और चमकते हुए चूतड़ों पर ध्यान दिया। वो पीछे से उसके चूतड़ों के बिलकुल करीब हो कर दोनों हाथों से डबल-रोटी जैसे मुलायम और गद्देदार चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी गाण्ड का गुलाबी छेद और पीछे ख़त्म होती उसकी बुर को देखने लगा, जो मुझे तो नहीं दिख रही थी लेकिन मुझे पता है कि उसके कामरस से नहायी पड़ी होगी।
उस रस से उसने अपनी उंगली अच्छे से गीली की और फिर निदा की गाण्ड के छेद को कुरेदने लगा। छेद पर उसकी ऊँगली का स्पर्श पाते ही निदा एकदम कसमसाई लेकिन मैंने उसकी पीठ पर दबाव डाल कर उसे रोक लिया।
और उसी जद्दोजहद के बीच नितिन ने अपनी चिकनाई से भरी ऊँगली उसकी गाण्ड के छेद में अन्दर उतार दी।
निदा उंगली अन्दर होते ही मचली और उसके मुँह से एक ‘आह’ निकल गई। अब ये तो तय था कि मेरे जैसे गाण्ड के शौक़ीन से चुदने के बाद किसी लड़की का पिछला छेद बचने वाला तो था नहीं और नितिन की ऊँगली मेरे लंड से मोटी तो थी नहीं। इसलिए निदा को कोई फर्क अगर पड़ना था तो बस यही कि उसकी उत्तेजना एकदम से अपने चरम पर पहुँच गई और वो ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड पर आक्रमण करने लगी और उतने ही ज़ोर से नितिन भी उसके शरीर की ऐंठन को पढ़ कर अपनी ऊँगली उसकी गाण्ड में अन्दर-बाहर करने लगा।
और निदा की नाक से फूटती साँसों का बेतरतीब क्रम बता रहा था कि वो अपने चरम पर पहुँच चुकी थी और फिर देखते-देखते वह लंड मुँह से निकाल कर एकदम से अकड़ गई और अपना चेहरा बिस्तर की चादर में छुपा लिया।
कुछ पल के लिए हम तीनों ही अलग हो कर हांफते हुए अपने आपको सँभालने लगे।
अब मैं निदा के पास ही अधलेटी अवस्था में था और बीच में निदा एकदम औंधी पड़ी थी और उसके चूतड़ों के पास नितिन कुहनी के बल लेता उसकी गाण्ड को निहार रहा था।
निदा की चूचियाँ भले अब भी नग्न थी और बिस्तर की चादर से रगड़ खा रही थीं, लेकिन पीठ पर उसकी कुर्ती नीचे सरक कर कमर तक पहुँच गई थी और उसकी सलवार और पैंटी उसके घुटनों पर थी जिससे उसके चूतड़ वैसे ही नग्न और आमंत्रण देते लग रहे थे।
तीन-चार मिनट में ही नितिन ने इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उसके चूतड़ों को सहलाने लगा।
दो मिनट की नितिन की मालिश के बाद निदा के जिस्म में जैसे जान आई। उसने चेहरा उठा के मुझे देखा और फिर जैसे शरमा कर चेहरा नीचे कर लिया। मैंने उसे बगलों में हाथ देकर उठाया और इस तरह चूमने लगा जैसे इसी ज़रिये से मैं उसका आभार प्रकट कर रहा होऊँ।
कुर्ती सरक कर नीचे जाने को हुई तो मैंने उसे थाम कर ऐसा ऊपर किया कि जिस्म से अलग करके ही छोड़ा। साथ ही उसकी ब्रा को भी उसकी बाहों से निकाल फेंका।
मैंने यह पाया कि अब वह अवरोध नहीं उत्पन्न कर रही थी, जिससे पता चलता था कि इस रगड़ा-रगड़ी से वो मानसिक रूप से पूरी तरह डबल डोज़ के लिए तैयार हो चुकी थी।
इस तरह का सहवास हालांकि भारतीय समाज में आम नहीं है और किसी सीधी-सादी घरेलू लड़की या महिला के लिए तो असम्भव हद तक मुश्किल भी लेकिन अगर धीरे-धीरे सब्र और इत्मीनान से कोशिश की जाए, तो किसी ऐसी लड़की को भी मानसिक रूप से तैयार किया जा सकता है।
और निदा के इस समर्पण को देख नितिन ने भी उसकी सलवार पैंटी समेत नीचे की और उसके पंजों से निकाल कर नीचे ही डाल दी।
अब हम दो कमीने मर्दों के बीच वो बेचारी एकदम नग्न अवस्था में अधलेटी शर्मा रही थी और उसकी शर्म देख कर मुझे भी ये अन्याय लगा कि हम उसके सामने कपड़ों में रहें। मैंने नितिन को कपड़े उतारने को बोला और निदा को अलग कर के अपने सारे कपड़े उतार फेंके।
अब ठीक था… हम तीनों ही मादरजात नग्न थे और मेरे इशारे पर नितिन भी ऐसा सट गया था कि हम तीनों ही एक-दूसरे से रगड़ रहे थे। नितिन ने उसका चेहरा थाम कर उसे चूमने की कोशिश की, लेकिन निदा ने शर्म से चेहरा घुमा लिया और वो पीछे से उसकी गर्दन पीठ पर चुम्बन अंकित करने लगा। जबकि मैंने सामने से उसके कान की लौ चुभलाते हुए उसकी ढीली पड़ गई चूचियों को दबाने, सहलाने लगा।
ऐसा नहीं था कि नितिन के हाथ खामोश थे… वह भी उसे सहलाए, दबाए और रगड़े जा रहा था।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#5
RE: raj sharma story कामलीला

इस बार उसने इशारा किया जिसे समझ कर मैंने निदा को घुमा कर सीधा किया और इस स्थिति में ले आया कि उसकी पीठ अधलेटी अवस्था में मेरे पेट से सट गई और उसके नितम्ब बेड के किनारे ऐसे पहुँच गए कि जब नितिन बिस्तर से नीचे उतर कर उसकी टांगों के बीच बैठा तो उसका चेहरा निदा की सामने से खुली चूत से बस कुछ सेंटीमीटर के फासले पर था।
उसने दोनों हाथों से निदा का पेट और पेड़ू सहलाते हुए अंगूठे से उसकी क्लियोटोरिस को छुआ व सहलाया और फिर ज़ुबान लगा दी।
निदा ‘सिस्कार’ कर कुछ अकड़ सी गई और अपनी मुट्ठी में मेरी जाँघ दबोच ली। अब नितिन ने उसके नितम्बों के नीचे से हाथ डाल कर उसकी जाँघें दबा लीं और अपनी थूथुन निदा की चूत में घुसा कर उसे चाटने और कुरेदने लगा।
बहुत ज्यादा देर नहीं लगी जब निदा का शरीर कामज्वर से भुनने लगा। मैं उसे अपने से सटाये उसके वक्षों को मसल रहा था और उसे बीच-बीच में चूम रहा था, लेकिन उसे अपने लंड को मुँह में नहीं लेने दे रहा था। मैं नहीं चाहता था कि मेरी उत्तेजना अपने समय से पहले चरम पर पहुँच जाए।
जब लगा कि अब वो काफी गर्म हो चुकी है तो मैंने उसे खुद से अलग किया और नितिन को ऊपर जाने को बोला।
नितिन उठ कर ऊपर हो गया और मैं नीचे उसकी जगह… मैंने हथेली से निदा की कामरस और नितिन की लार से बुरी तरह गीली हो चुकी बुर को पोंछा और फिर खुद अपनी जीभ वहाँ टिका दी। साथ ही अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके छेद में अन्दर सरका दी। ऊँगली अन्दर जाते ही निदा ऐसा ऐंठी कि उसी पल उसके पास अपना चेहरा ले गए नितिन को थाम लिया और नितिन और निदा ऐसे प्रगाढ़ चुम्बन में लग गए, जैसे अब वह कोई और ही न हो, कोई सगा हो।
मैं अपने काम में लगा था। न सिर्फ जुबां से उसके दाने और क्लियोटोरिस को रगड़ रहा था बल्कि ऊँगली से उसकी बुर भी चोद रहा था और निदा की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी।
निदा को चूसते नितिन की निगाह मुझसे मिली तो मैंने उसे आँखों ही आँखों में लंड चुसाने को कहा और उसने अपना चेहरा पीछे कर के खुद घुटनों के बल हो कर अपना लंड निदा के होंठों के एकदम करीब कर दिया। निदा की निगाहें उस हाल में भी मेरी तरफ गईं और मेरे प्रोत्साहित करने पर उसने नितिन के लंड को अपने मुँह में जगह दे दी। नितिन की आँखें आनन्द से बंद हो गईं और उसने निदा का सर थाम लिया।
मैं नीचे निदा की चूत चाटने में और ऊँगली से चोदने में मस्त था और वो लार बहा-बहा कर नितिन का लन्ड चूसने में मस्त थी। पर नितिन के लिए भी यूँ लन्ड चुसाना घातक हो सकता था इसलिए उसने भी स्थिति को समझते हुए अपना लन्ड निकाल लिया और निदा मुँह खोले ही रह गई।
निदा अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी और चुदने के लिए लगातार सिस्कार-सिस्कार कर ऐंठ रही थी।
मैं उठ गया और अपने लंड को थोड़ा थूक से गीला कर के उसकी चूत पर रखा और हल्के से अन्दर सरकाया, सुपाड़े के अन्दर जाते ही निदा की ‘आह’ छूटी और तीन बार में अन्दर-बाहर कर के मैंने समूचा लंड अन्दर सरका दिया और उसके घुटने थाम कर धक्के लगाते हुए उसे चोदने लगा।
अब नितिन उसकी पीठ से टिक गया और उसकी हिलती हुई चूचियों को अपने हाथों से सम्भाल कर उन्हें दबाते और सहलाते पीछे से उसके होंठों को चूसने लगा।
थोड़ी देर के धक्के के बाद मैंने नितिन को आने को कहा।
वो नीचे आ गया और मैंने अलग हट गया। अब निदा बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई और नितिन उसकी जाँघों के बीच आ गया। मेरे लन्ड के अन्दर-बाहर होने से उसका छेद तो अन्दर तक खुल ही चुका था, लेकिन फिर भी नितिन का लंड न सिर्फ मुझसे लम्बा था बल्कि मोटा भी था इसलिए जब उसने आधा लंड पेला, तभी निदा की ज़ोर की ‘कराह’ निकल गई। कुछ सेकेण्ड रुक कर नितिन ने भी अपने लंड के हिसाब से जगह बना ही ली और हचक कर चोदने लगा।
मेरे मुकाबले उसके चोदने में ज्यादा जोश और ज्यादा आक्रामकता थी। उसका कारण भी था कि वो उसके लिए एकदम नया और फ्रेश माल थी, जबकि मैं तो दो महीने से उसे चोद रहा था और इस नए-पन का मज़ा निदा को भी भरपूर आ रहा था। उसका चेहरा उत्तेजना से सुर्ख हो रहा था, साँसें मादक सीत्कारों में बदल गई थी, आँखें जैसे चुदाई के नशे में खुल ही नहीं पा रही थीं और अपनी उत्तेजना को वो बिस्तर की चादर अपनी मुट्ठियों में दबोच कर उसमें जज़्ब कर देने कि कोशिश कर रही थी।
थोड़ी देर की चुदाई के बाद नितिन हटा तो मैं उसकी चूत पर चढ़ गया। हालांकि नितिन के लंड ने जो जगह बनाईं वो उसके लंड निकालते ही एकदम से कम न हो पाई और मेरे लंड डालने पर ऐसा लगा जैसे कोई कसाव ही न रहा हो और उसकी चूत बिलकुल बच्चा पैदा कर चुकी औरत जैसी हो गई हो। शायद निदा के आनन्द में भी विघ्न आई, लेकिन बहरहाल, मैं चोदने से पीछे न हटा और निदा की सिसकारियाँ कम तो हुईं लेकिन ख़त्म न हुईं।
मेरे बाद जब नितिन ने फिर अपना लौड़ा घुसाया तो उसकी सिसकारियाँ फिर उसी अनुपात में बढ़ गईं।
फिर नितिन ने ही लण्ड निकाल कर उसे उठाया और उल्टा कर के ऐसा दबाया कि निदा का बायां गाल बिस्तर से सट गया और कंधे, पीठ नीचे हो गई, ऊपर सिर्फ उसके चौपायों की तरह मुड़े घुटनों के ऊपर रखी गाण्ड ही रह गई। उसके आगे-पीछे के दोनों छेद अब हवा में बिलकुल सामने थे।
कहने की ज़रुरत नहीं कि उसके दोनों छेद एकदम मस्त कर देने वाले थे, लेकिन जहाँ गाण्ड का छेद अभी सिमटा हुआ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था वहीं बुर का छेद इतनी चुदाई के बाद बिल्कुल खुल चुका था और उसने नितिन के लन्ड को निगलने में ज़रा भी अवरोध न दिखाया। जब नितिन उसके दोनों चूतड़ों को उँगलियों से दबोचे गचा-गच अपना लंड उसकी चूत में पेल रहा था, तब मैं निदा की पीठ सहला रहा था।
फिर जब नितिन हटा तो मैं उसकी गाण्ड के स्पर्श के साथ चूत चोदने पर उतर आया। हालांकि नितिन के मोटे लण्ड से चुदने के बाद मुझे वो मज़ा नहीं आ पा रहा था, लेकिन अब छोड़ भी तो नहीं सकता था।
बहरहाल कुछ देर की चुदाई के बाद नितिन ने तो झड़ने के टाइम उसे ऐसे दबोचा के निदा उसके लन्ड से निकल ही ना पाई और पूरी बुर नितिन के वीर्य से भर गई।
झड़ने और लण्ड बाहर निकलने के बाद वह तो निदा के बगल में ही गिर कर हांफने लगा। लेकिन उसने मेरा रास्ता दुश्वार कर दिया। पूरी बुर उसके वीर्य से भरी हुई थी।
तो मैंने एक बार लण्ड अन्दर कर के नितिन के वीर्य से अपने लण्ड को सराबोर किया और निदा की गाण्ड के छेद में उतार दिया और गाण्ड के कसाव और गर्माहट ने कुछ ही धक्कों में मेरा पानी भी निकाल दिया और मैंने उसकी गाण्ड अपने सफ़ेद पानी से भर दी।
फिर मैं भी बिस्तर पर पसर गया और वह भी हम दोनों के बीच में ही फैल कर हांफने लगी। आँखें उसकी अभी भी बंद थी लेकिन चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे।
हम करीब आधे घंटे तक ऐसे ही बेसुध पड़े रहे।
इसके बाद मैं ही पहले उठा और निदा को सहारा देकर उठाया और उसे उसी नंगी हालत में चलाते हुए बाथरूम ले आया। पीछे से नितिन भी आ गया।
अब कपड़े तो वैसे भी तन पर नहीं थे। मेरे कहने पर निदा ने हमारे सामने ही पेशाब किया और हमने भी साथ ही उसकी धार से धार मिलाई। तत्पश्चात, मैंने ही शावर चालू कर दिया और हम नहाने लगे। निदा ने तो हमें नहीं नहलाया, लेकिन हम दोनों ने मिल कर उसे बड़ी इत्मीनान से ऐसे नहलाया जैसे बच्चे को नहलाते हैं। उसके दोनों छेदों में ऊँगली डाल-डाल के सारी ‘मणि’ बाहर निकाली और साबुन से दोनों छेद अच्छी तरह धोए और उसके साथ चिपट और रगड़ कर खुद भी नहाते रहे।
इस अति-उत्तेजक स्नान में सिर्फ निदा ही नहीं बल्कि हम दोनों भी गरम हो गए और उसे गोद में उठा कर वापस बिस्तर पर ले आए।
अब जब नितिन उसके चूचों पर लदा, उसके होंठ चूस रहा था तो मैंने वह मलाई निकाल ली जो मैं अपने साथ ही लाया था। पहले मैंने अपने लंड पर मलाई थोपी। फिर मेरा अनुसरण करते हुए नितिन ने और हम दोनों घुटनों के बल बैठे निदा के चेहरे के इतने पास आ गए कि दोनों के लण्ड उसके गालों को छूने लगे और उसे मलाई चाटने को कहा।
शरमाई तो वह अब भी… लेकिन पहले की तरह आँखें बंद नहीं की, बल्कि चुपचाप पहले मेरा और बाद में नितिन का लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी।
भले हम स्नान से उत्तेजित हो गए हों लेकिन अभी हमारे लण्ड पूर्ण उत्तेजित नहीं थे और हमने इस बहाने उसे ढेर से मलाई खिलाई। तब कहीं जाकर हमारे लौड़े पूर्ण रूप से तन पाए कि उसकी गाण्ड का मज़ा ले सकें।
इसके बाद थोड़ी मलाई छोड़ कर बाकी जो भी थी हमने उसके पेट, कंधे, गर्दन और खास कर चूचियों और जाँघों पर मल दीं और दोनों ऊपर-नीचे हो कर कुत्तों की तरह उसे चाटने में जुट गए। अब आनन्द के अतिरेक से निदा की आँखें मुंद गईं और वह हौले-हौले सिसकारने लगी।
जब सारे शरीर से मलाई साफ़ हो गई तो बची मलाई मैंने आधी तो उसकी चूत में मली और भर दी और बाकी आधी उसकी गाण्ड के छेद के अन्दर और बाहर मल दी।
अब मैंने नितिन को सीधा लेटने को कहा और उसके ऊपर निदा को कुतिया की तरह ऐसे व्यवस्थित किया कि उसकी चूत बिलकुल नितिन के मुँह पर आ गई और नितिन का लण्ड निदा के मुँह में।
नितिन अब उसकी चूत के अन्दर बाहर भरी मलाई चाटने लगा जो कि पक्का उसके रस से मिल कर कुछ ज्यादा ही स्वादिष्ट हो गई होगी और मैंने उसके चूतड़ थाम कर उसकी गाण्ड का छेद चाटने लगा। साथ ही जीभ नुकीली करके छेद के अन्दर भी उतार देता था। उत्तेजना में निदा नितिन के लण्ड को मुँह में लिए पागलों की तरह चूसने लगी। लेकिन चूँकि अभी हम दोनों ही एक बार झड़ चुके थे तो जल्दी झड़ने का सवाल ही नहीं था इसलिए नितिन को भी उसकी लंड चुसाई से कोई फर्क नहीं पड़ना था।
लेकिन इस चाटम-चाट में मेरे और नितिन के चेहरे इतने पास थे कि हम एक-दूसरे की साँसें महसूस कर सकते थे।
कुछ देर बाद निदा अपना एक हाथ उठा कर अपने चूतड़ सहलाने लगी जो कि मेरे लिए इशारा था कि वह अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
मैंने सीधे होकर अपना लण्ड थूक से गीला करके उसके गुलाबी दुपदुपाते हुए छेद पर रखा और थोड़ा ज़ोर लगा कर अन्दर उतार दिया।
निदा की एक गहरी सांस छूट गई और उसने नितिन का लंड बाहर निकाल कर अपनी आँखें बंद की और अपने शरीर के निचले हिस्से में लण्ड और जुबान से पैदा आनन्द की लहरों को एकाग्र होकर अनुभव करने लगी।
लेकिन इस तरह की गाण्ड मराई में मेरी गोलियाँ नितिन की नाक से टकरा रही थीं लेकिन उसने भी आज किसी ऐतराज़ अवरोध को खातिर में नहीं लाना था। वह अपना काम करता रहा और मैं निदा की गाण्ड मारता रहा।
कुछ देर की चुदाई के बाद निदा ने आँखें खोल कर मुझे देखा। वह कुछ बोली नहीं लेकिन मैं उसकी आँखों की भाषा समझ सकता था और मैं हट गया और नितिन को ऊपर आने को बोला।
खुद नीचे होकर निदा के नीचे नितिन की जगह पहुँच गया और नितिन बाहर निकल कर मेरी जगह। मैंने उसकी बहती हुई बुर को हाथ से ही साफ़ किया और फिर खुद जुबान लगा दी। मेरे चेहरे के बिल्कुल पास निदा की गाण्ड का खुला हुआ छेद था, बल्कि नितिन का केले जैसा लन्ड भी जो वो नोक से निदा को घुसा रहा था।
अब ज़ाहिर है कि मेरी बनाई जगह उसके लिए अपर्याप्त थी, तो वह ऐसे लग रहा था जैसे फंस गया हो। निदा को भी पता था कि नितिन के लण्ड से उसकी गाण्ड का हाल बुरा होने वाला था और उसे दर्द सहना पड़ेगा, लेकिन अब जब मिला ही था तो वह इस लण्ड को हर तरह से ग्रहण कर लेने में पीछे नहीं रहना चाहती थी।
मैंने नितिन को थोड़ा पीछे सरका कर अपना ढेर सा गाढ़ा थूक निदा के पानी सहित निदा के छेद पर उगल दिया, जिससे छेद एकदम से चिकना होकर चमक उठा और अब जब नितिन ने टोपी सटा कर ज़रा सा ज़ोर लगाया तो निदा का छल्ला खुद को फैलने से न बचा पाया और नितिन की टोपी एकदम से अन्दर हो गई।
दर्द से निदा ज़ोर से कराही और स्वाभाविक रूप से आगे सरकी ताकि नितिन के लण्ड को निकाल फेंके। लेकिन उसी पल में मैंने और नितिन ने उसे रोक लिया और उसने भी अपनी बर्दाश्त की क्षमता को उपयोग करते हुए खुद को ढीला छोड़ दिया।
नितिन ने कुछ देर लण्ड अन्दर रख कर जो बाहर निकाला तो मेरे एकदम समीप ‘पक्क’ की आवाज़ हुई और नितिन का सुपाड़ा बाहर आते ही निदा का छेद एकदम इस हद तक खुला रह गया कि उसकी चूत में जुबान घुसाते हुए मुझे छेद के अन्दर के गुलाबी भाग तक के दर्शन हो गए।
पऱ अगले पल में नितिन ने फिर अपना लण्ड छेद से सटा कर दबाया तो फिर निदा कराही और लण्ड का अगला भाग अन्दर हो गया। इस बार नितिन ने दो इंच और अन्दर सरकाया, कुछ पल रोक कर छेद को एडजस्ट होने का मौका दिया और फिर बाहर निकाल लिया, छेद फिर उसी तरह खुला और मैंने एक बार और अपना गाढ़ा थूक उसमें उगल दिया।
तीसरी बार नितिन ने जब निदा की गाण्ड में अपना लण्ड घुसाया तो अपेक्षाकृत आसानी से घुस गया और इस बार नितिन ने लण्ड बाहर न निकाल कर धीरे-धीरे ऐसा अन्दर सरकाया कि उसकी गोलियाँ मेरी नाक के पास आ गईं और उसका समूचा लन्ड निदा की गाण्ड में अन्दर तक धंस गया।
बर्दाश्त करने में निदा का पसीना छूट गया और वह हांफने लगी।
यह तो मैं लगातार उसकी चूत में घुसा, उसे गर्म कर रहा था जिससे वह इस दर्द से लड़ पा रही थी वरना उसे पक्का आफत आ जाती। मेरी चटाई उसे उस दर्द के एहसास से बाहर ले आई और फिर नितिन ने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। अजीब नज़ारा था। मेरी आँखों से सिर्फ डेढ़ इंच दूर एक मोटा लम्बा लंड एक कसे हुए छेद में अन्दर-बाहर हो रहा था। उसकी गोलियाँ हिलती हुई मेरे चेहरे से दूर होती और फिर पास आ जाती।
धीरे-धीरे निदा उस दर्द से उबर गई और चूतड़ खुद ही आगे-पीछे करने लगी, तो मुझे अब उसकी चूत की चटाई की आवश्यकता न लगी और मैं उसके नीचे से निकल आया और नितिन को हटा कर खुद लन्ड घुसा दिया।
मुझे छेद बुर की तरह ही एकदम ढीला और फैला हुआ लगा जो मेरे लण्ड को मज़ा न दे पाया, साथ ही मैंने निदा के शरीर में भी मायूसी सी महसूस की जैसे नितिन के लण्ड को लेने के बाद मेरे लन्ड से मज़ा न आ रहा हो। लेकिन बहरहाल हिस्सेदारी ज़रूरी थी और इसी वजह से मैंने अपने धक्कों में कोताही न की, नितिन पास ही बैठ कर हाथ से उसकी चूत सहलाने लगा।
फिर कुछ देर में मैं हटा तो नितिन ने निदा की गाण्ड की पेलाई चालू कर दी।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#6
RE: raj sharma story कामलीला
अब निदा को भी भरपूर मज़ा आने लगा था। उसने एक बार फिर मेरी तरफ निगाहें घुमा कर इशारा किया। जिसे नितिन तो न समझा लेकिन मैं बखूबी समझा और मैंने नितिन को सीधा लेट जाने को कहा।
मेरे आदेश के मुताबिक नितिन बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया और मेरे सहारे से निदा सीधी हो गई। फिर मेरे हाथों की हरकत के हिसाब से संचालित हो कर वो नितिन के लण्ड पर ऐसे बैठी कि नितिन का खड़ा लण्ड उसकी चूत में जगह बनाते हुए अन्दर उतर गया।
पूरा लण्ड अन्दर लेने के बाद निदा नितिन के ऊपर ऐसे झुकी कि उसके होंठ नितिन के होंठों से टकराने लगे और नितिन भी उन्हें चूसने से कहाँ बाज़ आने वाला था।
पर इस पोज़ीशन में उसके दोनों छेद मेरे ठीक सामने हो गए। बुर में नितिन का लण्ड ठुँसा हुआ था और गाण्ड मुझे बुला रही थी।
मैंने छेद में अपना लण्ड उतार दिया। निदा के अगले छेद में नितिन का मोटा और भारी लण्ड होने के कारण उसके पिछले छेद में जगह कम बची थी जिससे मेरे लण्ड पर भी वैसे ही कसाव महसूस हो रहा था जैसे पहले होता था।
और यूँ दो लंडों को एकसाथ अपने दोनों छेदों में लेकर निदा को तो जैसे जन्नत नसीब हो गई। उसने नितिन के चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और आँखें बंद करके इस आनन्द को पूरी तरह महसूस करके सिसकारने लगी और इसी स्थिति में हम दोनों धक्के लगाने लगे।
नितिन इस तरह नीचे होने के कारण ठीक से धक्के नहीं लगा पा रहा था तो निदा ने ही खुद को ऐसे आगे-पीछे करना शुरू किया कि हम दोनों के लंडों को धक्के मिलने लगे और इस तरह वह बेचारी घोर चुदक्कड़ कन्या तब अपने दोनों छेदो को चुदाती रही जब तक कि थक न गई।
थोड़ी देर के बाद हमने जगह बदली।
मुझे नितिन के लण्ड से खाली हुई निदा की बुर फिर एकदम ढीली और फैली लगी लेकिन जैसे ही उसने निदा की गाण्ड में अपना लण्ड पेला, एकदम से कसाव महसूस हुआ। अब थकी निदा तो धक्के न लगा पाई, नितिन ही आगे-पीछे हो कर ऐसे तूफानी धक्के लगाने लगा कि मेरे लन्ड को अपने आप धक्के मिलने लगे।
निदा ने अपनी आँखें फिर भींच ली थी, पर उसके चेहरे पर छाए बेपनाह आनन्द के भाव मुझसे छिपे नहीं थे।
जब नितिन भी कुछ थक गया तो हम दोनों ही अलग हो गए।
अब मैं बेड के किनारे बैठा और अपने ऊपर निदा को ऐसे बिठाया कि उसकी गाण्ड मेरे लण्ड पर फिट हो गई और मैंने उसके घुटनों के नीचे से हाथ निकाल कर उसकी टाँगें ऐसे फैलाईं कि उसकी चूत नितिन के सामने आ गई और उसने भी अपना लन्ड पेलने में ज़रा भी देर नहीं की और यूँ हम दोनों ही आगे-पीछे से धक्के लगाते निदा को बुरी तरह पेलते रहे।
उसकी इस घड़ी बेसहारा हो गई चूचियां बुरी तरह हिलती उछलती रहीं।
जब इस तरह नितिन थक गया तो वो मेरी जगह बैठ गया और मैं उसकी जगह खड़े हो क़र निदा को चोदने लगा।
इस बीच शायद निदा का पानी तीन बार छूट चुका था और अब भी वो वैसे ही मज़ा ले रही थी।
इसी तरह जब पोजीशन बदल-बदल कर उसे चोदते हम तीनों ही थक गए, तो तीनों ही बिस्तर पर ऐसे लेट गए कि उसके दोनों तरफ लन्ड घुसाए मैं और नितिन चिपके थे और बीच में निदा सैंडविच बनी हुई थी। निदा का मुँह नितिन की तरफ था और वो उसके होंठ चूसने में लगा था और मैं निदा की गाण्ड मारते पीठ से चिपका उसकी चूचियों को मसल रहा था।
इसी तरह जब निदा के शरीर में चरम आनन्द की लहरें महसूस हुईं तो हम भी उसी पल में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गए और तीनों ही एक साथ आवाज़ें निकालते ऐसे झड़े कि हम दोनों के बीच भींचने से निदा की हड्डियां तक चरमरा गईं और उसकी बुर और गाण्ड एक साथ ढेर सारे माल से भर गई।
जब हम दोनों के लन्ड एकदम वीर्य से खाली होकर ‘ठुनकने’ लगे तो दोनों ने ही लण्ड बाहर निकाल लिए और चित लेट कर बुरी तरह हांफने लगे।
इस ताबड़तोड़ चुदाई ने हम तीनों को ही इस बुरी तरह थका डाला था कि जब निपट कर हम बिस्तर पर फैले तो दिमाग पर नशा सा सवार था और हमें पता भी न चला कि कब हम नींद के आगोश में चले गए।
मुझे नहीं पता कि कितनी देर बाद मेरी नींद टूटी लेकिन जब उठा तो आवाज़ें कानों में पड़ रही थीं और सामने नज़ारा यह था कि निदा डॉगी स्टाइल में झुकी हुई थी, उसका चेहरा मेरे सामने था और आनन्द के कारण अजीब सा हो रहा था और वह मुझे देख रही थी। जबकि नितिन पलंग के नीचे खड़ा उसकी चूत में अपना लण्ड पेले उसके चूतड़ों को थामे आंधी तूफ़ान की तरह उसे चोद रहा था और उसकी जाँघों से निदा की गाण्ड के टकराने से ‘थप.. थप..’ की पैदा होती आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। इसी आवाज़ ने मुझे जगाया था।
मैं तो निदा को चोदते ही रहता था लेकिन नितिन के लिए निदा नया माल थी और निदा के लिए भी नितिन एक नया और अलग ज़ायका था इसलिए ज़ाहिर था कि वह नहीं बाज़ आने वाले थे।
अच्छा है कि नितिन जी भर के उसे चोद ले … उसकी भी ख्वाहिश पूरी हो जाए।
मेरे होंठों पर मुस्कराहट आ गई और मुझे मुस्कराते देख निदा भी मुस्कराने लगी और मैं अधलेटा हो कर उसे नितिन के हाथों चुदते देखने लगा।
कमरे में निदा की चूत पर चलते नितिन के लन्ड की ‘पक.. पक..’ और दोनों की जाँघें और चूतड़ टकराने से पैदा होती ‘थप.. थप..’ वैसे ही गूंजती रही।
और करीब दो महीने भरपूर अय्याशी में गुज़रे लेकिन अति किसी भी चीज की बुरी होती है और नितिन के साथ मैंने निदा को चोदने की अति कर दी थी तो एक दिन को ज़रीना को पता चलना ही था और पता चलते ही ऐसी आगबबूला हुई कि मुझे घर से निकाल के ही दम लिया।
यार कुछ भी हो और मुझे भले किसी भी मक़सद के लिये बुलाया हो, लेकिन थे वे तो ख़ानदानी लोग ही और मुझे पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी कि बात मुझसे बाहर गई तो मैं भी बाहर हो जाऊँगा और मैं वाकयी बाहर हो गया।

आप को मेरी कहानी कैसी लगी, उत्साहवर्धन के लिए बताइएगा ज़रूर।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#7
RE: raj sharma story कामलीला

मेरी कहानियों के पोस्ट होने के बाद से ही मुझे खूब फैन मेल आती हैं जिनमें कुछ खास महिलाओं की भी होती हैं।
और ऐसी ही एक फैन थीं कोई मैडम एक्स करके जो लगभग रोज़ ही मुझसे बात करती थीं।
निदा का घर छूटने के बाद मैंने कपूरथला में एक कमरा किराये पर ले लिया थ और वहाँ शिफ़्ट हो गया था।
एक दिन मैडम एक्स ने मुझसे फोन पर बात करने की इच्छा व्यक्त की तो मैंने नंबर दे दिया और उनका फोन आया।
आवाज़ खूबसूरत थी पर उससे मैं उम्र का कोई अंदाज़ा न लगा पाया। बस इधर उधर की बातें हुईं, उन्होंने अपने बारे में कुछ नहीं बताया।
फिर पिछले शुक्रवार को उनका फोन आया कि वह मुझसे मिलना चाहती हैं। उन्होंने आगे खुद बतया कि वह भी लखनऊ की ही हैं और वो सात बजे वेव, गोमतीनगर के सामने मेरा इन्तज़ार करेंगी।
मैं नियत समय पर गोमतीनगर वेव के सामने पहुँच गया तो उनका फोन आया कि वो कोक कलर की हांडा सिटी में हैं जो अब मेरे सामने रुक रही है। फिर फोन काटते ही वाकयी एक कोक कलर हांडा सिटी मेरे सामने आ कर रुकी और उसका दरवजा खुला।
मैं अन्दर बैठा और कार चल पड़ी।
धुंधलका फैल रहा था पर मैं फिर भी देख सकता था कि वो 40 के पार की औरत थी जो बेहद गोरी और चिकनी थी, कार वाली थी तो ज़ाहिर है कि बड़े घर की होगी जहाँ की औरतें 30 के बाद बेतरतीब ढंग से फैलने लगती हैं लेकिन वो खुद को ऐसे मेंटेन किये थी कि मैं देख कर दंग रह गया। शरीर पर कहीं भी एक्सट्रा चर्बी का नामोनिशान नहीं।
“कभी मैं मिस देहरादून रही हूँ, मोटापे की लानत मुझपे कभी नहीं आई। वैसे 45 की हूँ पर शायद लगती नहीं।” उन्होंने जैसे मेरी उलझन भांप ली और खुद ही मेरे सवालों के जवाब दे दिये।
मुझे दांत निकाल कर मुस्कराना पड़ा।
आगे अम्बेडकर पार्क होते हुए हज़रतगंज और फिर वापस होते हुए गोमतीनगर और पॉलीटैक्निक से फैज़ाबाद रोड पार करके मुझे कपूरथला ड्राप कर दिया और इस बीच ही सारी बात हो गई।
वो एक ज़मींदार घराने से ताल्लुक रखती थीं और वर्तमान में एक प्रशासनिक अधिकारी की चहेती पत्नी थीं जो कि इस वक़्त नोएडा में तैनात थे।
25 साल पहले दोनों की लव मैरिज हुई थी। दोनों ही उत्तराखंड के थे मगर अब लखनऊ में बस गये थे। वो भी अलीगंज में ही रहती थीं।
उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी जो क्रमशः 22 और 20 वर्ष के हैं और दोनों ही देहरादून अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रहे थे और जब तब घर आते रहते हैं।
उनकी जिन्दगी में सब ठीक ही चल रहा था लेकिन करीब सात साल पहले घटी एक घटना ने उनके जीवन को अधूरा कर दिया था।
एक दुर्घटना में ठाकुर साहब (उनके पति) रीढ़ की निचली हड्डी में ऐसी चोट खाये थे कि सैक्स के लिये पूरी तरह अयोग्य हो गये थे, उन्हें तो अब सीधे खड़े होने य बैठने के लिये भी स्टील के खांचे की ज़रूरत पड़ती थी।
यानी सात साल से वो, चूंकि मैं उनका रियल नाम तो नहीं लिख सकता इसलिए सुविधा के लिये मैं उन्हें प्रमिला लिखूँगा जो उनके नाम से मिलता जुलता ही है… तो सात साल से प्रमिला यों ही प्यासी हैं।
पति ने उनकी वासना की पूर्ति के लिये कई उपाय किये जो मुझे तब नहीं पता थे लेकिन वो संतुष्ट नहीं हैं।
और अब मेरे रूप में कुछ रोमांच चाहती हैं… रोमांच के लिए ही वो पोर्न साइट्स देखतीं हैं, कहानियाँ पढ़तीं हैं जहाँ से उन्हें मेरा मेल अड्रेस मिला था।
पर इसके लिए बकौल उनके मुझे एक कीमत लेनी होगी, चूँकि वह राजा लोग थे, मुफ़्त में कुछ हासिल करना उनकी शान के खिलाफ़ था और दूसरे मुझे इस सिलसिले में अपना मुँह कतई बन्द रखना होगा क्योंकि सवाल उनके पति की इज़्ज़त का था जो ऐसी सूरत में मेरी जान भी ले सकते थे।
मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं यहाँ बाहरी हूँ, मेर कोई सर्कल नहीं और न मैं उनके लोगों को ही जानता हूँ तो कहूँगा किससे।
हाँ, कहानी लिखने की इजाज़त मैंने ज़रूर माँगी जो इस शर्त के साथ मिली कि उनकी पहचान नहीं प्रदर्शित होनी चाहिए।
ये तो ज़रूरी था, मैंने भरोसा दिलाया और सब कुछ तय हो गया।
अगले दिन शनिवार था, मैंने छुट्टी ले ली। परसों तो रविवार की छुट्टी थी ही और दो दिन के लिये मैं गुलाम बनने मैडम प्रमिला के घर पहुँच गया।
उनके घर के मरदाने कामों के लिए एक नौकर था जो स्थायी रूप से वहीं निवास करता था और एक मेड थी, वह भी वहीं रहती थी लेकिन अपने कार्यक्रम के हिसाब से दोनों को दो दिन की छुट्टी दे दी गई थी और अब वह सोमवार को ही आने वाले थे।
उन्हें तीन स्टेप्स वाले सीधे सेक्स में रुचि नहीं थी- ओरल सेक्स, योनि मर्दन और गुदा मैथुन। वे कुछ रोमांच चाहती थीं, तो मैंने यही राय दी कि चलिए कहीं घूमते-टहलते हैं।
वह राज़ी हो गईं और मेरे सुझाव के मद्देनज़र एक फुल कवर्ड लेडी के वेश में, जिसकी सिर्फ़ आँखें देखी ज सकती हों, वो मेरे साथ लखनऊ के सैर सपाटे पर निकल पड़ीं।
हम पूरा दिन घूमे टहले, छोटा-बड़ा इमामबाड़ा, नींबू पार्क, बुद्धा पार्क, शहीद स्मारक, रेजीडेन्सी, लोहिया पार्क, अम्बेडकर पार्क और शाम को सहारा गंज, जहाँ से खा पीकर हम वापस घर लौटे और इस पूरे दिन मैं उनके साथ मज़ाक मस्ती और छेड़छाड़ करते उन्हें यह एहसास कराता रहा कि वे कोई नौजवान लड़की ही हैं न कि 40 पार की कोई महिला।
उन्होंने पूरा दिन मस्ती की और रात थके हारे घर पहुँचे तो थोड़े आराम के बाद उन्होंने थकान की शिक़ायत की।
मैंने मालिश का सुझाव दिया और उन्होंने हामी भरने में देर नहीं लगाई।
मसाज आयल उनके पास मौजूद था और उन्होंने एक तौलिया लपेट लिया और बेह्तरीन साज सज्जा वाले अपने बेडरूम के नर्म गदीले बिस्तर पर औंधी होकर लेट गईं।
कमरे में दूधिया प्रकाश भरा हुआ था जो प्रमिला की कंचन सी कमनीय काया की चमक को और बढ़ा रहा था।
तौलिया जांघों के ऊपर से लेकर वक्ष तक के हिस्से को ढके हुए था। ऊपर की पीठ, मांसल कंधे और गोल पुष्ट चिकनी टांगें अनावृत थीं।
मैंने अंडरवियर को छोड़ अपने बाकी कपड़े उतार दिए और बिस्तर पर उनके पास आ गया।
उंगलियाँ तेल से भिगो कर मैंने आहिस्ता आहिस्ता उनके भरे भरे कन्धों पर चलानी शुरू कीं, उन्होंने आँखें बन्द कर के अपने शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दिया।
“एक बात बताइये… अगर कैसे भी ठाकुर साहब को इस बारे में मालूम पड़ जाये तो?” मैंने तौलिये के आसपास उँगलियाँ चलाईं।
“तो कुछ नहीं, उनकी इजाजत के बगैर मैं कुछ नहीं करती, मैंने पहले ही पूछ लिया था पर तुम अपना मुँह बन्द रखना, वरना मर्द के आत्मसम्मान को चोट बड़ी जल्दी लगती है।” उन्होंने आँखें बन्द किये किये जवाब दिया।
“मेरा मुँह तो बन्द ही रहने वाला है, फ़िक्र मत कीजिये।”
कुछ देर ख़ामोशी से मैं उनके कंधों और गर्दन को मसाज करता रहा और वे सुकून से आँखें बन्द किये मेरी गर्म उन्गलियों की हरारत को अपने जिस्म में जज़्ब होते महसूस करती रहीं।
ऊपर की मालिश हो चुकी तो मैं नीचे आ गया।
मैंने उनकी दोनो टांगों को एक दूसरी के समानांतर करीब दो फ़ुट फैला दिया और तौलिये तक एक-एक टांग की बारी बारी मालिश करने लगा।
जब हाथ ऊपर जाता तो तौलिया थोड़ा और ऊपर खिसक जाता और पीछे की रोश्नी में मुझे उनकी दोनों टांगों का जोड़ कुछ हद तक तो अवश्य दिखता, जो मेरे पप्पू को गनगना देता।
बहरहाल जब अच्छे से ऊपर नीचे की मालिश हो गई तो मैंने उनसे कहा, “अब यह तौलिया हटना पड़ेगा।”
उन्होंने ख़ामोशी से तौलिया खींच कर फेंक दिया।
अब सामने मस्त नजारा था… मैडम का पूरा नंगा पिछवाड़ा मेरे सामने था। कमर मेरे अंदाज़े के मुताबिक ही बिल्कुल डम्बल के आकार में सीने और कूल्हों के बीच तराशी हुई थी, दोनों चूतड़ एक नरम मुलायम स्पर्श वाला उठान लिये थे और बीच में एक गहरी दरार, जिसके बीच में जैसे एक शरमाया सा चुन्नटों भरा छेद छिपने की कोशिश कर रहा था पर स्पंजी चूतड़ ज़रा स दबाव पड़ने पर खिंच जाते और वो बेचारा अनावृत हो जाता।
उसके ठीक नीचे एक गहरी दरार खत्म हो रही थी।

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07-17-2020, 11:55 AM,
#8
RE: raj sharma story कामलीला

मेरा सामान बेचारा लकड़ी हो चला था लेकिन अभी उसकी बारी नहीं आई थी सो उसकी चिन्ता छोड़ मैंने तेल में उँगलियाँ डुबाईं और अपने दक्ष और सधे हुए हाथों से उस हिस्से की मालिश में तल्लीन हो गया जो अब तक तौलिये में छुपा था।
कमर पार करके मैं नीचे हुआ और डबलरोटी जैसे नर्म मुलयम चूतड़ों को मुट्ठियों में भींच भींच कर उनकी मालिश करने लगा जिससे बेचारा गोल छेद बार बार खुल जा रहा था और दोनों नितम्बों को अच्छे से मसलने के बाद मैंने थोड़ा स तेल उस चुन्नट भरे छेद पर डाल दिया और उसे मसलने लगा।
इतनी देर की गर्माहट अब असर करने लगी थी और प्रमिला के शरीर में लहरें पड़ने लगी थीं।मसलते मसलते मैंने बिचली उंगली छेद के अन्दर उतार दी।
उनकी एक सांस छूटी पर शरीर फिर स्थिर हो गया और मैं और तेल लेकर अपनी दो उंगलियाँ उनके छेद के अन्दर धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा।
कुछ मिनट तक इस क्रिया को दोहराने के बाद मैंने अपनी ताक़त से उन्हें सीधा कर दिया।
अब उनका नग्न शरीर सामने से मेरे सामने अनावृत था। उनकी छातियाँ मध्यम आकार की थीं लेकिन उनका एरोला सामान्य से कहीं ज्यादा बड़ा था और उनके बीच दो किशमिश के दाने थे जो अब उत्तेज़ना से खड़े हो चले थे।
मस्त भरी भरी और अब भी कुछ कसाव लिये दोनों चूचियाँ अपने पूरी आकार को नुमाया कर रही थीं और उनके नीचे गहरी नाभि वाला सपाट पेट, जिस पर प्रसव वाले निशानों की कुछ कसर अभी भी बाकी थी, उसकी नीचे साफ़ किये बालों की हरी चमक का आभास देता जांघों का ज़ोड़, जहाँ एक परिपक्व योनि अपने पूरे सुन्दर रूप में जैसे आमन्त्रण दे रही थी।
भगांकुर को छुपाने की कोशिश में लगी दो गहरे रंग की कलिकाएँ जो कामरस से भीगी हुई थीं।
योनि के नीचे चादर भी चूत से निकले पानी से थोड़ी गीली हो गई थी।
बहरहाल मैंने थोड़ा तेल लिया और दोनों चूचियों की भरपूर मालिश करने लगा। साथ ही दोनों घुण्डियों को भी मसल मसल कर खड़ा कर रहा था।
प्रमिला ने आँखें बंद कर रखी थीं लेकिन होंठ खुले हुए थे और जहाँ से गहरी गहरी साँसें निकल रही थीं।
दोनों पिस्तानों को भरपूर ढंग से दबाने, मसलने के बाद मैंने थोड़ा तेल उनके पेट और नाभि के आसपास मला और तत्पश्चात उनकी एक जांघ को अपनी गोद में रख कर उस पर इस तरह तेल की मालिश करने लगा कि मेरा हाथ बार बार उनकी बुर को स्पर्श कर रहा था, जो बुरी तरह गीली हो चली थी।
दोनों जाँघों की मालिश कर चुकने के बाद मैंने तौलिये से उनकी बहती हुई चूत पौंछी और फिर तेल से थोड़ी मालिश और थपथपाहट चूत के ऊपरी हिस्से पर देने के बाद भगनासा की मालिश करने लगा और अब प्रमिला मैडम की कराहें उच्चारित होने लगीं, उन्होंने मुट्ठियों में तकिया और चादर दबोच ली थी और खुद को संभालने की कोशिश कर रही थीं लेकिन यह आसान काम नहीं था।
भगांकुर को छेड़ती, तेल से चिकनी हुईं उंगलियाँ लगातार ज्वालामुखी को दहाने को फ़ट पड़ने को उकसा रही थीं।
जब काफी मसलाई हो चुकी तो मैंने एक उंगली गीले हुए छेद में उतार दी। उनका शरीर कांप कर रह गया।
उंगली को ऊपर की तरफ़ मोड़ कर मैंने उनके जी-स्पॉट को कुरेदना-सहलाना शुरु किया और दूसरे हाथ के अंगूठे से भगांकुर को लगातार मसलने लगा।
अब प्रमिला मैडम को अपनी आवाज़ रोक पाना मुश्किल हो गया और वो बुरी तरह ऐंठती सिसकारने लगीं, साथ ही अस्फुट से शब्दों में कुछ कहती भी जा रही थीं पर मेरे पल्ले न पड़ा।
तभी जब ‘मैं गई – मैं गई’ कहते वह ज़ोर से ऐंठ गईं और मेरे हाथों को हटा कर अपनी टांगें जोर से भींच लीं।
कुछ पलों के लिये हम दोनों ही शान्त पड़ गये और खुद को व्यवस्थित करने लगे। मेरा वीर्य भी इस उत्तेजना के कारण जैसे लिंग के सुपाड़े तक आ पहुँचा था।
‘मेरा भी निकलने वाला है, दिन भर से किनारों से टकरा रहा है, कहिये तो पीछे ही निकाल दूँ?’ मैंने जैसे मैडम से याचना की।
उन्होंने मूक सहमति दी और भिंची हुए टांगें खोल दीं।
मैंने उठ कर सीधे होने में देर नहीं की… उन्हें एकदम सीधे चित लिटा कर उनके पैर ऊपर किये और दोनों घुटने पेट से ऐसे सटा दिये कि अभी उंगली से चुदी चूत हल्क़ा मुंह खोले ऊपर हो गई और नीचे से गाण्ड का छेद सामने आ गया, जो भले पहले शरमा रहा हो पर उंगली चोदन के बाद से अब खिला सा सामने फैला था।
उसमें ज़रूरत भर तेल था ही, फिर भी मैंने अपनी चड्डी उतार फेंकने के साथ लंड की टोपी पर चिकना वाला थूक मला और नोक उनकी छेद से मिलाई।
उन्हें पता था क्या करना है, उन्होंने खुद दोनो पैरों को अपने हाथ से थाम लिया और अन्दर से ज़ोर लगा कर गाण्ड के छेद को बाहर की तरफ़ उभारा और उसी पल में मैंने लंड को अन्दर दबाया।
पकी उम्र का छेद था, कुछ सैकेंड भी संघर्ष ना कर सका और एकदम से ऐसा फैला कि आधा लंड अन्दर धंस गया।
मैडम के मुंह से शोर की आह निकली और मैंने नीचे हाथ देकर उनके चूतड़ थाम लिये।
पूरा अन्दर सरका कर फिर लंड बाहर निकाला और फिर वापस अन्दर ठेला, इस प्रक्रिया को चार पांच बार करने के बाद मैंने पाया कि रास्ता साफ़ हो गया है तो मैं ज़ोर शोर से धक्के लगाने लगा।
धक्के ऐसे ज़ोरदार थे कि बेड हिलने लगा, लेकिन ज़ाहिर था कि मैं अभी ज्यादा देर चलने वाला नहीं था, तो जल्दी ही लंड ने धार छोड़ दी और मैडम का छेद सफेदे से भर गया।
मैंने अपनी ट्यूब पूरी नहीं खाली की बल्कि पहले कुछ फुहारों के साथ ही मैंने एकदम खुद को रोक लिया और लंड बाहर निकाल कर मैडम के पास ही गिर कर हांफने लगा।
उसी अवस्था में पड़े पड़े आधा घंटा गुज़र गया और फिर मैडम ही उठीं।
उन्होंने तौलिये के एक सिरे से मेरे लंड को अच्छी तरह साफ़ किया और मेरे ऊपर बैठ गईं।
“चलो अब मैं तुम्हारी मालिश करती हूँ।” उन्होंने कहा।
उनके हाथों के निर्देशानुसार मैं औंधा लेट गया और उन्होंने तेल लेकर मेरी पीठ, कंधे, गर्दन और चूतड़ों तक फैला दिया और अपने नर्म हाथों से ऊपर से नीचे तक सहलाने मसलने लगीं।
मुझे इतनी भागदौड़ और मेहनत भरी थकन के बाद एक अलौकिक आनन्द की अनुभुति हुई। इस लज्जत भरी राहत से मेरे हवासों पर नशा सा छाने लगा और तय था कि मैं सो ही जाता, पर मालिश करती मैडम मेरे चूतड़ों पर पहुँच चुकी थीं और उन्हें सख्ती से मसलती मेरे कुँवारे छेद में उंगली कर बैठी थीं।
मैं एकदम चिहुंक उठा।
यह अनुभव मेरे लिये नया था, लेकिन बुरा नहीं लगा और जब वो तेल में डूबी उंगलियाँ बार बार अन्दर बाहर करने लगीं तो मेरे दिमाग में भी फुलझड़ियाँ छूटने लगीं। क्या सच में इतना मज़ा आता है?
मैं सोच में पड़ गया कि अगर उंगली से इतना अच्छा लग रहा है तो लंड से कितना अच्छा लगता होगा।
बहरहाल मैडम ने भी मेरे आनन्द को महसूस कर लिया और हॅंसते हुए अपनि उंगलियाँ बाहर निकाल कर मुझे सीधा कर दिया और मेरे पेट पर अपनी गीली चूत रख कर बैठते हुए अब सामने से मेरे सीने, कंधे और गर्दन की मालिश करने लगीं।
मेरे दिमाग पर चढ़ते नशे की दिशा अब बदल चुकी थी।
मालिश करते करते वह नीचे सरकती गईं और मेरे पैरों पर पहुँच गईं, पप्पू को उन्होंने अनाथ ही छोड़ दिया और जाँघों पर उंगलियाँ और हथेलियाँ चलाने लगीं।
मैं आँखें खोले टुकुर टुकुर उनके बड़े बड़े एरोला वाली चूचियों को लटकते, हिलते, उछलते देखता रहा और पैरों की मालिश कर चुकने के बाद उन्होंने मेरे लंड पर तेल लगा कर उसे जो थोड़ी सी ही मसाज दी कि भाई टनटना गया और ज़ंग की घोषणा करने लगा।
उसकी घोषणा की प्रतिक्रिया में मैडम भी उठीं और घुटने बिस्तर से टिका कर मेरे ऊपर ऐसी बैठीं कि पप्पू गच्च से उनकी चूत में जा समाया और वो एकदम नीचे मेरी झांटों वाले एरिये से चिपक गईं।
तदुपरांत मैंने कुहनियों के बल हाथ खड़े कर लिये और उन्होंने मेरे पंजों पर अपने पंजे टिका दिये और आवाज़ें निकालती ज़ोर ज़ोर से ऐसे उछलने लगीं कि लंड गपागप अंदर बाहर होने लगा।
कुछ धक्कों में मुझे मज़ा आने लगा और मैं भी नीचे से उचक उचक कर लण्ड अंदर डालने लगा।
पर ज़ाहिर है कि बड़ी उम्र की औरत थीं तो बहुत देर तक यूँ लड़कियों की तरह नहीं उछलते रह सकती थीं, जल्दी ही थक कर हांफने लगीं तो मैंने उनकी पीठ पर अपने हाथ ले जाकर उन्हें खुद पे ऐसे झुकाया कि उनकी चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ने लगीं, नीचे से अपने कूल्हे उन्होंने खुद से इतने उठा लिये कि धक्के लग सकें और अब मैं नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा कर फ़काफ़क उन्हें चोदने लगा।
पर कुछ देर में मैं भी थक गया तो वह ऊपर से हट गईं।
वो बिस्तर की चादर में मुंह धंसा कर औंधी लेट गईं और अपने चूतड़ों को इतना ऊपर उठा दिया कि मैं घुटनों के बल बैठूं तो योनि लंड के समानांतर रहे और मैंने ऐसा ही किया और इस तरह मेरा सामान्य कद काठी का लंड पीछे से मैडम की परिपक्व योनि में रास्ता बनाता आराम से अंदर उतर गया और मैं उनके चूतड़ों को सहलाता हुआ उन्हें चोदने लगा।
यह मेरा मनपसंद आसन था तो मुझे मज़ा आना ही था…
मैं हचक हचक कर मैडम जी को तब तक उसी मुद्रा में चोदता रहा जब तक कि मुझे यह न लगा कि मेर सफ़र अब खत्म होने को है।
इसके बाद मैंने लंड निकाल कर उन्हें नीचे दबाया और चित करके उनकी दोनों टांगों को फैला कर उनके बीच मैडम पर ऐसे लेटा कि लंड तो चूत में फिट हो गया और मैं मैडम के मुँह तक पहुँच गया और तब मैंने अपने होंठ मैडम के होंठों से सटा दिये।
अब हम एक प्रगाढ़ चुम्बन में लग गये, जहाँ हम एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे, एक दूसरे के मुंह में ज़ुबान डाल कर किलोल कर रहे थे, तो साथ ही एक दूसरे की जीभ को भी चुभला रहे थे और नीचे सहवास के अंतिम पलों में रफतार कम और झटके ज्यादा के अंदाज़ में लंड गीली-ढीली चूत में फचाफच कर रहा था जिसे मैडम भी नीचे से कूल्हे उठा उठा कर समर्थन दे रही थीं और इसी तरह एक साथ हम दोनों के शरीर में एक ज़ोर का कम्पन पैदा हुआ और हम होंठ छोड़ कर एक दूसरे से ऐसे चिपके के हड्डियाँ तक कड़कड़ा उठीं।उनके नाखूनों ने मेरी पीठ पर निशान तक बना दिये और हम अलग तभी हुए जब हमारा सारा रस निकल गया।
इसके बाद हमें कब, कैसे नींद आ गई, हमें एहसास तक न हुआ।

अगली सुबह मैं देर से उठा।
मैडम नहीं दिखीं तो उन्हें ढूंढता मैं रसोई तक पहुँच गया, जहाँ मैडम नाश्ता बनाने में लगी थीं।
उन्होंने इस वक़्त एक ढीली, लम्बी टी-शर्ट पहन रखी थी जिसके नीचे उन्होंने और कुछ नहीं पहना हुआ था।
मैं फर्श पर उकड़ूँ बैठ गया और मैंने उनकी टी-शर्ट ऊपर उठा दी और दोनो हाथों से उनके नितम्बों को बुरी तरह चाटने लगा।
मुझे पता था कि उनके हाथ अब रुक गये होंगे।
दोनों मुलायम चूतड़ों को चाटते हुए मैंने अपनी एक उंगली उनके छेद में अंदर सरका दी और तेज़ी से अंदर-बाहर करने लगा।
अचानक हुए इस हमले से उनका सम्भलना मुश्किल हो गया और वह हौले हौले सिसकारने लगीं।
एकदम से चूत ने पानी देना शुरु किया तो मैं खड़ा होकर अपने सुबह सुबह पेशाब से भरे लकड़ी की तरह कठोर हुए लंड को थोड़ा थूक से गीला करके उनके नीचे लगाया तो उसने चूत से बही चिकनाई की वजह से खुद रास्ता बना लिया और मैं उनके चूचों को पकड़ कर जानवरों की तरह उन्हें चोदने लगा।
लंड के कठोर धक्कों से अभिभूत होकर उनकी टांगें खुद ही सुविधाजनक ढंग से फैलती चली गईं और उनके साथ मुझे भी अपनी टांगें फैला कर कुछ नीचे होना पड़ा।
इस वक़्त कोई ऐसी उत्तेजना तो मुझे थी नहीं कि जल्दी झड़ जाता, सो इतने धक्के लगाये कि मैडम जी का ही पानी छूट गया और तब मैंने बिन झड़े ही लंड बाहर निकाल लिया।
इतनी चुदाई के बाद अब मैं खुद पर इतना तो नियंत्रण पा ही चुका था कि खुद को स्खलित होने से रोक सकूं।
इसके बाद मैं बाथरूम में रोज़मर्रा के कामों से निपटने घुस गया और वे आराम से नाश्ता बनाने में लग गईं।
मैं नहा धो कर जब वापस हुआ तो वे नाश्ता लगा चुकी थीं…
हमने भरपेट नाश्ता किया और फिर मैं अखबार पढ़ने लग गया और मैडम जी घर के दूसरे कामों में लग गईं।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#9
RE: raj sharma story कामलीला
मैं फ्री हुआ तो मैडम जी कुछ ऐसी तस्वीरों के साथ हाजिर हुईं जिनमें शरीर पर अलग अलग चित्र बने हुए थे और उनके साथ दो मेंहदी के कोन थे।
“सुनो, तुम इस तरह मेरे जिस्म को सजा सकते हो?” उन्होंने तस्वीरें दिखाते हुए पूछा।
“हाँ हाँ… क्यों नहीं !”
उन्होंने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकने में देरी नहीं की और मैं कोन सम्भाल के उनके नग्न गोरे और बेहद चिकने शरीर पर मेहंदी से डिज़ाइन बनाने लग गया।
पहले उनकी पीठ पर एक तिरछा चित्र उकेरा, फिर एक ऐसी बेल ली जो दोनो कांधों से ऐसे नीचे उतरती थी जैसे कोई नेकलेस पहने हुए हों।
इसके बाद उनकी नाभि को केन्द्र बना के उसके आसपास ऐसे डिज़ाइन बनाईं कि नाभि खूबसूरत से ज्यादा सेक्सी लगने लगी।
फिर उन्हें आदमकद शीशे के सामने खड़ा करके, जहाँ वो गर्दन घुमा कर अपने चूतड़ों को देख सकें, मैंने उनके चूतड़ों पर दो ऐसे विशाल लिंग उकेरे जो कि उनकी गांड के छेद की ओर तने हुए थे, उनके अंडकोष भी अंकित किये और तत्पश्चात उनके सामने, उनकी प्यारी सी चूत के ऊपर… ऊपर से नीचे आते दो ऐसे पंजे डिज़ाइन किये जो लगता था कि बस नीचे बढ़ के उनक़ी बन्द योनि को खोलने जा रहे हों।
काम पूरा हो गया तो वह इसी नग्न अवस्था में मेहन्दी सूखने तक घर की साफ़ सफाई और फिर खाना बनाने में लग गईं और मैं उन्हीं के डेस्कटॉप पर नैट से जूझने लगा।
इसी तरह दोपहर हो गई… मेहंदी सूख गई तो उन्होंने कॉटन की ढीली ढाली नाईटी पहन ली थी और काम निपटा कर मेरे सामने आ खड़ी हुईं।
“चलो अब मेहंदी छुड़ाने क वक़्त हो गया।” और मेरा हाथ पकड़ कर वे मुझे बाथरूम में ले आईं।
उन्होंने पहले अपनी नाईटी उतार के हैंगर पर टांगी और फिर मेरी चड्डी भी नीचे पहुंचा दी।
फिर शॉवर चालू करके मुझे उसके नीचे खींच लिया और मैं उनका इशारा समझ कर उन्हें चूमने-रगड़ने लगा और मेरे हाथ स्वयमेव उनके पूरे जिस्म पर ऐसे फिरने लगे कि पानी से गीली हुई मेहन्दी मेरे हाथों की रगड़ से छूटने लगी।
फिर जब सारी मेहंदी छूट गई तो वह मेरे होठों को बेकली से ऐसे चूसने लगीं जैसे खा ही जायेंगी और मैं भी उनके मुँह में जीभ डाल कर किलोलें करने लगा।
साथ ही मेरे हाथ उनके भीगे हुए पिस्तानों का ऐसा मानमर्दन कर रहे थे कि उनकी घुण्डियाँ जोश में आकर टन्ना गईं थीं।
मैडम का जोश बढ़ता गया और वह मेरे होठों को छोड़ कर मेरे गर्दन, कंधें, और सीने को चूमने लगीं, साथ ही वह मेरी छोटी छोटी किलोनियों को भी अपनी जीभ से चुभलाने लगीं, मेरे शरीर में सनसनाहट बढ़ने लगी।
मैडम नीचे होती मेरी नाभि तक पहुँची और अपनी जीभ की नोक से उसमें छेड़छाड़ करने लगीं।
इससे मेरे पप्पू में हलचल होने लगी और वह सर उठा कर ऊपर देखने लगा किन्तु उसे ज्यादा देर मैडम जी के मुंह की गीली गर्माहट से महरुम न रहना पड़ा और जल्दी ही मैडम ने उसे अपने मुँह में दबोच लिया और किसी ब्लू फ़िल्म की तरह उसे एकदम सधे हुए अंदाज़ में ऐसे चूसने लगीं कि मेरे दिमाग में फुलझड़ियाँ छूटने लगी।
जब मुझे लगा कि बस काफी हो गया तो मैंने मैडम का चेहरा थाम कर उन्हें अपने लंड से दूर कर दिया और खुद भी नीचे बैठ कर शॉवर के पानी में भीगते हुए ही उनके पूरे जिस्म को कुत्ते की तरह चाटने लगा।
उनकी गर्दन, कंधे, होंठ, चूचियाँ, घुन्डियाँ, पेट और पेड़ू के बाद अंत में जब उनकी योनिद्वार पर पहुँचा तो खरबूजे की महक वाले रस ने मेरि नसिका और जीभ का स्वागत किया।
मैं पहले उनके भगांकुर को जुबान की नोक से छेड़ते रहा, फिर साइड की कलिकाओं को होंठों में दबा दबा कर ज़ोर शोर से खींचने लगा और मैडम पानी की बूंदों में मस्त शरीर को मादक लहरें देतीं मीठी मीठी सिसकारियाँ के साथ मचलने लगीं।
उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया और मैंने अपनी दो उंगलियों को उनकी चूत की गहराई में उतार दिया और जीभ की करामात दिखाते उंगलियों से बुर का चोदन करने लगा।
जल्दी ही उनकी ऐंठन से मुझे उनके चरमोत्कर्ष का अंदाजा होने लगा और मैंने उंगलियाँ निकाल कर उनकी समूची बूर में ऐसे मुँह और जीभ घुसा कर चाटने लगा जैसे ख़ा ही जाऊँगा और एक महक वाले रस क़ी बाढ़ मैंने अपने मुँह पर झेली, लेकिन साथ ही उन्होंने लग्भग चीखते हुए मेरे मुँह पर लिसलिसे पेशाब की तेज़ धार मारी, जिससे मैं थोड़ा पीछे हट गया।
“जल्दी – जल्दी, ऐसे ही फ़क करो मुझे… कम आन…” वो चिल्लाईं।
मैं उठ खड़ा हुआ और उन्हें भी उठा लिया। अगले पल में वो कमोड पर एक पाँव रख कर ऐसे झुक गईं कि पीछे से उनकी चूत उभर आई जिसमें मैंने अपना लंड आराम से अन्दर घुसा दिया और उनके नर्म कूल्हों को मुट्ठियों में दबा कर धक्के लगाने लगा, पन्द्रह-सोलह धक्कों के बाद उन्होंने हाथ पीछे करके मुझे धकेला और ज़ोर से मूत की छछार मारीं। फिर मैं लंड डाल कर उसी अवस्था में चोदने लगा।
थोड़े धक्कों के बाद उन्होंने मुझे धकेला ही नहीं बल्कि मुझे नीचे करके एकदम से मेरे मुँह पर धार मारी और छोटी सी धार के पूरा होते ही फिर मुझे बाथरूम के टाइल वाले फर्श पर चूतड़ों के बल बिठाया और मेरे ऊपर ऐसे बैठीं कि चूत लंड पर फ़िट हो गई और वो उछल उछल कर धक्के लेने लगीं और कुछ धक्कों के बाद एकदम से ऊपर होकर मेरे मुंह की ओर ही फिर एक छोटी धार मारी।
धार मारने के बाद फिर उसी तरह चुदने लगीं।
और कुछ धक्कों के बाद फिर एक अपेक्षाकृत और छोटी धार मार के लेट गईं और आपने पाँव आपने हाथों से समेट लिये और चूतड़ों को इतना उठा दिया कि पीछे का छेद सामने आ सकता और उनके इशारे पर मैंने अपना लंड उसी छेद में ठूंस दिया और खुद पंजों के बल बैठ कर धक्के लगाने लगा, कुछ धक्कों के बाद उनकी चूत से छोटी होती धार निकल पड़ती और फिर वो लगभग चीखने लगीं।
“और ज़ोर से – और ज़ोर से।”
मैं भी उनकी ऊपर उठी जांघों पर पंजे गड़ा कर ज़ोऱ ज़ोर से धक्के लगाने लगा और वो उत्तेज़ना के चरम पर पहुँचती ज़ोर ज़ोर से चिल्लाती रहीं और मुझे बकअप करती रहीं और जब मेरे लंड ने पानी छोड़ने क संकेत दिया तभी उनका भी पानी छूट पड़ा और वो एकदम से ज़ोर की कराह के साथ ढीली पड़ गईं।
मैं उन्हीं के जिस्म पर पसर गया और उन्होंने मुझे दबोच लिया। हम इसी तरह अपनी अन्तिम उर्जा एक दूसरे के शरीर में खपाने लगे।
इस स्नान-सम्भोग के पूर्ण होने के उपरान्त हमने कायदे से स्नान किया और बाहर आ गये।
काफी थकान हो चुकी थी, सो कुछ पल के आराम के बाद हमने खाना खाया और टीवी देखने लगे।

टीवी देखते देखते सर भारी हुआ तो दोनों ही सो गये।
और शाम को आँख खुली तो शाम के नाश्ते के बाद वो ख़ाना बनाने लग गईं और मैं अपनी याहू मेल और फेस बुक पे लग गया।
और इसी तरह जब हम अपने अपने कामों से फारिग हो गये तो मैडम जी मुझे एक अच्छे से सजे धजे कमरे में ले आईं जहाँ काफी ढेर साड़ी सजावट की विदेशी वस्तुएँ मौजूद थीं।
फिर उन्होंने अलमारी खोल और काफ़ी सामान वहाँ सोफों के बीच रखी मेज पर रख दिया और मैं हैरानी से वह सब देखने लगा।
उस सामान में कई तरह के डिल्डो, स्ट्रेप के साथ, बगैर स्ट्रेप के, एक्सटेंडेर, डबल डिक, वाइब्रेटर, ऐनल बीड्स, ऐनल प्लग, सेक्स मशीन विद रेगुलेटर, स्टिंग सेक्स मशीन, डिल्डो में विद रिंग, डॉट्स और गुदा मैथुन के लिये कई तरह के शेप वाले डिल्डो।
‘तीन साल पहले एक सरकारी दौरे पर ठाकुर साहब यूके गये थे तो वहाँ से कुछ लाये थे तो कुछ ऑनलाइन ख़रीदारी में मंगाये। वह नहीं चाहते थे कि मैं उनके सेक्स ना कर पाने को लेकर कभी डिप्रेस होऊँ… इसलिए यह सब चीज़ें खरीदी गईं पर इनका सुख भी किसी गोश्त पोश्त वाले मर्द के साथ ही आता है। जब यह सब आया था तो मैं बहुत रोमाँचित हुई थी लेकिन फिर सब बोर लगने लगा। चलो आज एक ज़िंदा मर्द के साथ इनका लुत्फ़ उठाते हैं।”
उन्होंने अलमारी बन्द की और शरीर पर मौजूद गाउन उतार कर सोफे पर आ गईं।
मैं उनके पास बैठ कर नर्म स्पर्श से उन्हें सहलाने लगा। वह गौर से मुझे देखती ठंडी ठंडी साँसे लेती रहीं।
फिर मैंने वाइब्रेटर आन किया और उसे उनके भगांकुर से स्पर्श कर दिया और हल्के हल्के ऊपर नीचे फिराने लगा।
मैडम जोर की सिसकरि लेतीं पींठ और सर के नीचे के कुशन को भींचने सहलाने लगीं।
फिर एक हाथ से वाइब्रेटर संभाले दूसरे हाथ से मैंने उनके गुदा द्वार में उंगली करनी शुरु की जिस से वह छेद भी ढीला पड़ने लगा और जब थोड़ा ढीला हो गया तो वाइब्रेटर हटा लिया और ऐनल बीड्स की लड़ी सम्भाल ली, वहीं मौज़ूद थोड़े से जेल से उसे गीला करके उसकी बड़े अंगूर जैसे दानों को एक एक करके उनके छेद में उतारने लगा, जब भी उसके दान अपने आकार के कारण छेद पर खिंचाव डालता और फिर पक से अन्दर हो जाता, मैडम के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव आते।
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07-17-2020, 11:55 AM,
#10
RE: raj sharma story कामलीला
एक एक करके ऐनल बीड्स की वह पूरी लड़ी जो लगभग दस इंच लंबी थी, पूरी छेद के अन्दर उतर गई और तब एक रिंग वाला नौ इंच लम्बा डिल्डो उनक़ी चूत में घुस दिया।
वह खुद से उस डिल्डो को पकड़ के धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगीं और मैं बीड्स को एक एक करके बाहर खींचने लगा… जब भी दाना बाहर आने को होता, छेद धीरे धीरे करके पूरा फैल जात और फिर दाने के बाहर आते ही एकदम पक करके सिकुड़ जाता और अगले दाने के लिए फिर जगह बनाने लगता।
वो पूरी लड़ी बाहर निकाल कर वापस फिर अन्दर डाल दी और मैडम उसी रिंग वाले डिल्डो को आहिस्ता आहिस्ता अन्दर बाहर करके उसके रिंग्स का मज़ा लेती रहीं।
करीब दस मिनट के मज़े के बाद मैडम के दोनो छेदों ने मुँह खोल दिया, तब उन्होंने डिल्डो निकाल फेंका और मैंने ऐनल बीड्स किनारे डाल दी।
इसके बाद मैंने ऐनल प्लग उठाया… ऐनल प्लग जो कि भाले की नोक जैसा होता है मगर चपटा न हो कर गोल होता है और नीचे स्टैण्ड जैसा होता है, उसे छेद के अन्दर घुसा दिया और अन्दर फिट छोड़ कर मैडम के बगल में लेट गया और उनके एक उरोज को होंठो से चूसता, दूसरे को चुटकी से मसलने लगा और मैडम वाइब्रेटर आन करके उसे अपनी क्लिटोरिस हुड से छुआने लगीं तो बाएं हाथ से एक डॉट वाला डिल्डो अन्दर घुसा लिया और उसे अन्दर बाहर करने लगीं।
इस घड़ी शायद उन्हें इतना आनन्द आ रहा था कि उनकी आँखें नहीं खुल पा रही थीं।
शायद इसी हालत में उन्होंने पहला पानी छोड़ दिया और कुछ पल के लिये ठण्डी पड़ गईं।
मैं उनकी हल्की भूरी घुंडियों को वैसे ही चूसता चुभलाता रहा और कुछ पल शान्त रहने के बाद वे फिर सक्रिय हो गईं।
मुझे अलग करके उन्होंने ही गाण्ड से ज़ोर लगा कर ऐनल प्लग को बाहर निकाला और डिल्डो भी बाहर करके मेज पर डाल दिया।
अब उन्होंने एक छोटे पेट्रोल जनरेटर जैसी सिटिंग सेक्स मशीन को नीचे कालीन पर रखा, उसके बीच में एक करीब एक फ़ुट लम्बा और घोड़े की मोटाई वाला डिल्डो चूड़ियों के सहारे कस दिया और उस पर अपनी चूत रख कर बैठ गईं।
चूँकि अभी मोटे डिल्डो की चुदाई से छेद ढीला पड़ चुका था तो थोड़े संघर्ष के बाद और थोड़े जेल के सहारे उसने मैडम की चूत में अपने लिये जगह बना ही ली।
उसकी बनावट कुछ इस तरह की थी कि वो जगह, जहाँ मैडम ने जांघे रखी थीं बैठ्ने के लिये, करीब आठ से नौ इंच आगे पीछे हो सकती थी उनके आगे पीछे हिलने पर… और डिल्डो की पोजीशन ऐसी थी कि पीछे होने पर वो चूत से बाहर आता और आगे आने पर जड़ तक अन्दर घुसने को होता।
इस तरह मैडम उस मशीनी कुर्सी पर बैठ कर आगे पीछे हो कर एक मोटे हब्शियों जैसे लंड़ से चुदने का मज़ा ले सकती थीं।
“देख क्या रहे हो, अब मैं ही करूँ?” उन्होंने बनावटी गुस्से से कहा।
जिस रेक्सीन के गदीले पट्ठों पर उनकी जांघें टिकी थीं वहाँ इतनी तो जगह अभी भी थी कि मैं चिपक कर उनकी पीछे बैठ सकता और मैंने बैठने में देर भी नहीं लगाई।
इसके बाद मैं दोनों हाथ उनके सीने पर ले जाकर उनकी चूचियों को गूंथने लगा, उन्होंने गर्दन तिरछी की और मैं उनके होंठों से सट कर उन्हें भी चूसने लगा और साथ ही अपनी कमर की ताक़त से उन्हें आगे पीछे करने लगा।
नीचे वो मोटा सा काला डिल्डो उनकी चूत की गहराइयों में डूबने उतराने लगा और कमरे में उस मशीन की मधुर चूं चूं गूंजने लगी।
थोड़ी देर की चुदाई के बाद उन्होंने मुझे रोक दिया और उठ कर उस डिल्डो की पकड़ से निकल गईं।
बेचारा चूत से निकल कर मैडम का मुँह ताक रहा था कि मैडम ने उसे जेल से और तर कर दिया।
तदुपरांत वो उस पर एक इन्च आगे होकर ऐसे बैठीं कि उसने गोल घर में प्रवेश कर लिया। इस बार मैडम को झेलने में ज्यादा ताक़त लगानी पडी और वह कांखने लगीं, पर बहरहाल अन्दर जगह तो उन्होंने दे ही दी और मैं वापस उनसे चिपक कर पहले वाली क्रिया दोहराने लगा।
वो कृत्रिम काला लंड फिर अन्दर बाहर होने लगा, हाँ इस बार वह दूसरे रुट पर था और कमरे में वापस चूं चूं की आवाज़ पैदा होने लगी।
फिर इस तरह मैं खुद ही थक गया तो रुका और मैडम ने भी मेरी हलत समझते हुए इस चुदनी कुर्सी को किनारे कर दिया और मुझे अपने साथ दीवान पर ले आईं।
वहाँ एक ऐसी मशीन रखी थी जिसमें किसी भी साइज के डिल्डो को फिट किया जा सकता था, वह ऊपर नीचे एडजस्ट हो सकती थी और उसकी बनावट पुराने ज़माने के भाप के इंजन के पहियों जैसी थी जो घिर्रियों के गोल घूमने पर डिलडो आगे पीछे होता और उससे जुङा रेगुलेटर सामने लेटने वाली के हाँथ तक पहुंच सकता था ताकि उसकी घिर्रियों की रफ़्तार को कम ज्यादा किया जा सके।
मैडम ने उसे बिजली से कनेक्ट करके आन किया और उसमे एक नार्मल साइज़ के डिल्डो को फिट कर दिया और उसके ठीक सामने अपनी टांगें फैला कर ऐसे लेटीं कि डिल्डो का मुंह उनकी चूत में घुस गया और फिर आगे खिसकी तो वो अपने आगे पीछे होने की क्रिया के कारण उनकी चूत में अन्दर बाहर होने लगा।
शुरू में स्पीड कम थी लेकिन मैडम उसे बढ़ाती अन्तिम सीमा तक ले गईं और उस सूरत में वो पूरी बेरहमी और तूफानी रफ़्तार से मैडम की चुदाई करने लगा।
“आओ, तुम लेटो नीचे।” उन्होंने मुझसे कहा।
अब मैं मैडम क्या मेरी भी मरवाने वाली थीं? बहरहाल मैं उनके कहे अनुसार उनकी जगह लेट गया। मैडम ने मशीन की ऊंचाई को एडजस्ट किया और फिर मेरे लंड पर बैठ गईं। मुझे ऐसा लगा जैसे अजगर के बिल में कोबरा घुसा हो, कोई कसाव नहीं, एकदम ढीली खुली बुर।
लेकिन उन्होंने उसी पल में उस मशीनी डिल्डो को भी मेरे लंड के ऊपर से अपनी चूत में घुसाया और मेरे सीने से सटी अधलेटी अवस्था में हो गईं और रेगुलेटर से गति मध्यम कर दी।
अब यह हाल था कि मैं नीचे था, मैडम मेरे ऊपर और मेरा लंड उनकी चूत में समाया हुआ था और मेरे लंड के ऊपर से वह डिल्डो भी उसी चूत में घुसा हुआ था और मैं तो धक्के लगाने की हालत में नहीं था लेकिन कमबख्त डिल्डो तेज़ गति से बिना रुके धक्के लगाये जा रहा था।
फिर मैडम जी ने पोजीशन बदली और मेरी तरफ़ चेहरा करके मेरे ऊपर ऐसे लदीं कि उनकी चूचियाँ मेरे सीने से लड़ने लगीं और उसी दशा में नीचे, ऊपर की तरफ़ मेरे लंड को अन्दर लिया और गांड के छेद की तरफ़ से उस डिल्डो को… और उसकी स्पीड फुल कर दी।डिल्डो शोर मचाता फ़काफ़क चोदने लगा।
यह बात और थी कि उसकी रगड़ मेरे पप्पू पर ऐसे लग रही थी कि मुझे मज़ा नहीं आ रहा था।
बहरहाल कुछ देर ऐसे भी चुदाई हो गई तो उन्होंने उस डिल्डो को पीछे वाले छेद में घुसा लिया और फिर मुझे धक्के लगाने को कहा।
मैं धक्के लगाने लगा।
अब यह हाल था कि एक मशीनी लण्ड उनकी गाण्ड मार रहा था और मैं उनकी चूत को चोद रहा था।
वो आवाज़ें निकाल निकाल कर इस भरपूर चुदाई का मजा ले रहीं थीं।
फिर इस आसन में भी ख़ूब चुद चुकीं तो उन्होंने उसी सूरत में मुझे लंड उनकी गाण्ड में घुसाने को कहा।
इतनी भयंकर चुदाई से दोनों छेद बिल्कुल खुल चुके थे और इसीलिए गाण्ड में डिल्डो के घुसे होने के बावजूद जब मैंने लन्ड घुसाने की कोहिश की तो वह भी थोड़ी ताक़त लगाने पर घुस गया और यूँ दो लंड एकसाथ उनकी गाण्ड चोदने लगे।
ऐसे ही चुदते चुदते वह झड़ भी चुकीं तब कुछ जोश हल्क़ा पड़ा तो यह तमाशा बन्द हुआ और हम दीवान से उतरे।
इसके बाद उन्होंने मुझे एक्सटेंडेर लगाने को कहा। यह एक ऐसा खोखला लिंग था, जिसको मैं अपने सामान्य आकार के लंड पर फिट करके इसकी बेल्ट को पीछे बांध सकता था और यह मेरे लिंग के आगे लगभग ४ इंच और निकल के ठोस था और इसकी साइड की दीवारे भी मोटी थीं जो मेरे लिंग को करीब दस इंच लम्बा और ढाई इंच चौड़ा रूप प्रदान कर रहीं थीं।
इसके बाद वह सोफे पर सीधे लेट गईं और एक टांग सोफे की पुश्त पर चढ़ा ली।
मैं उनकी जांघों के बीच में बैठ गया और अब अपने परिवर्तित विशालकाय लिंग को उनकि योनि में प्रवेश करा दिया और फिर पहले धीरे धीरे धक्के लगाये और फिर उनके उकसाने पर धक्कों की स्पीड बढ़ाता गया।
कमरे में उनकी मादक सीत्कारें नशा भरने लगीं।
उनकी सीत्कारों के साथ चुदाई की फच फच मिलजुल कर एक अलग संगीत सा प्रस्तुत कर रही थी।
कुछ देर इस पोजीशन में चोदने के बाद मैं सोफे की पुश्त से टिक कर बैठ गया और वह मेरे लंड पर उलटी बैठ गईं यानि उनकी पीठ मेरी तरफ़ थी, मैंने उनकी कमर थाम ली और उन्हें उचकाने लगा।
वह आवाज़ें निकालती मेरे हाथों की ताक़त के सहारे उछलती भचाभच चुदने लगीं।
फिर जब वह थक गईं तो मैंने उनकी पीठ को सोफे के नीचे टिकाये उन्हे ऐसे टिका दिया जैसे कोई कंधे के बल खड़ा होता है और अपने लिंग को नीचे की दिशा में करके उनक़ी चूत बैठ बैठ के चोदने लगा।
इस आसन में जल्दी ही वह परेशान हो गईं तो उन्हे उठा कर सीधा कर लिया और उन्हें कुतिया की तरह झुका लिया।
उनका एक पांव नीचे था तो एक सोफे पर और मैं पीछे से उनकी चूत में लंड पेल कर धक्के लगाने लगा।
यह मेरे लिये पहला ऐसा मौका था जब मैं अपनी मर्ज़ी की चुदाई कर सकता था क्योंकि जो सारे आसन मैं ब्लू फिल्मों में देखता था वह मेरे छोटे लिंग के कारण असंभव थे लेकिन आज मेरे पास बड़ा लिंग था और एक बड़ी उम्र की खेली खाई औरत, जो न सिर्फ इसे बर्दाश्त कर सकती थी बल्कि हर आसन का जवाब दे सकती थी।
फिर क्या था… अगले आधे घंटे में मैंने जितने आसन पोर्न मूवी में देखे थे, हर आसन से मैंने मैडम जी को बुरी तरह चोदा।
अब चूँकि मेरे लंड पर खोल चढ़ा हुआ था और लंड को स्पर्श मिल ही नहीं रहा था तो मेरे चरम पर पहुँचने का सवाल ही नही उठता था और मैं झड़ने वाला नहीं था।
पर मैडम करीब एक घंटे तक ऐसे बुरी तरह चुदते चुदते बुरी तरह थक चुकी थीं और उन्हें पता था कि मैं ऐसे झड़ने वाला नहीं।
उन्होंने मुझे अलग किया और वह एक्सटेंडर निकाल फेंका।
इसके बाद मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसती हुई मेरे अंडकोषों को सहलाने लगीं और मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी।
जल्दी ही मुझे महसूस हुआ कि मेर निकलने वाला है। मैं उन्हें पीछे करना चाहता था लेकिन अन्तिम पलों में कर न सका और एक तेज़ कराह के साथ मैं मैडम का चेहरा ऐसे भींच लिया कि वह मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल न सकीं और सारा रस भलभल करके उनके मुँह में ही निकल गया।
पूरी ट्यूब खाली करके मैं सोफे पर ऐसे गिर पड़ा कि आँख खोलने की हिम्मत भी न रह गई और जब खुली तो मैडम पास ही बैठीं मेरासर सहला रहीं थीं।
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