raj sharma story कामलीला
07-17-2020, 11:58 AM,
#31
RE: raj sharma story कामलीला
यह और बात थी कि दिमाग इस चीज़ पर एकाग्र था कि क्या हो रहा था और जो हो रहा था उससे मुझे क्या महसूस हो रहा था।
उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्ब सहलाये थे… मेरी कमर को रगड़ते हुए अपने हाथ ऊपर खींचे थे और ऊपर अपनी दोनों मुट्ठियों में मेरे अवयव कस लिए थे।
मेरे पूरे शरीर में लज्जत भरी गर्महाहट और कंपकपाहट पैदा हो गई थी, दिमाग पर ऐसा नशा छाने लगा था जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता।
फिर उसने हाथ नीचे किये और मेरे कुर्ते के दामन को ऊपर उठा कर पकड़ लिया।
नीचे मैंने लेगिंग पहनी हुई थी, उसने लेगिंग को एकदम से ऐसे नीचे किया कि मेरे कूल्हे अनावृत हो गये।
शर्म का एक तेज़ अहसास हुआ मुझे और मैंने अपने हाथ से उसे फिर ऊपर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में भी मैंने अपनी दिशा नहीं बदली थी।
मैंने ऊपर चढ़ाया तो उसने फिर नीचे कर दिया…
मैंने फिर चढ़ाया, उसने फिर नीचे कर दिया और कई बार की कोशिश ने मेरी शर्म को हरा दिया और हाथ वापस ऊपर सिंक की तरफ आ गया।
मैं पीछे मुड़ कर उस इंसान का सामना नहीं करना चाहती थी, जिसे हमेशा किसी और नज़र से देखती आई थी।
बस सामने देखते मन की आँखों से उसे महसूस कर रही थी।
फिर उसने अपनी पैंट आगे से खोली थी शायद… क्योंकि अगले ही पल उसके लिंग की तेज़ गर्माहट मुझे अपने नितम्ब पर महसूस हुई थी।
वह फिर मुझसे इस तरह सट गया कि बीच में उसका सख्त लिंग मुझे चुभन देने लगा।
कुछ देर की गर्माहट के बाद वह हट गया और फिर एक हाथ से कुर्ते का दामन थामे दूसरे हाथ से शायद अपना लिंग पकड़ के मेरे नितंबों की दरार में फिराने लगा।
‘रंजना दी ने मुझे बता दिया था कि आपको कोई ऐतराज़ नहीं, बस आगे मुझे बढ़ना होगा।’
उसने लिंग की छुअन नितम्ब की दरार में मौजूद छेद पर देते हुए कहा।
जानकार मुझे हैरानी नहीं हुई और मैंने कुछ रियेक्ट भी नहीं किया। बस पूरी एकाग्रता से उस स्पर्श को अनुभव करती रही जो मुझे सर से पांव तक रोमांचित कर रहा था।
फिर उसने दामन छोड़ दोनों हाथों से दोनों कूल्हों को एकदूसरे के समानांतर खींचा… ऐसे दोनों के फट जाने से न सिर्फ उसे मेरा गुदाद्वार दिख गया होगा बल्कि योनि का निचला सिरा भी दिखा होगा।
उसने एक उंगली उस घडी गीली हो चुकी योनि में फिराई।
मुझे करेंट सा लगा और मैंने चिहुंक कर हटने की कोशिश की पर उसने उसी पल ताक़त लगा कर मुझे रोक लिया और अपना लिंग नीचे झुकाते हुए पीछे से ऐसे घुसाया कि योनि को छूते हुए आगे आ गया।
इस स्थिति में मैं उसके लिंग को अपनी जांघों के बीच पा रही थी और मेरी योनि के खुले अधखुले लब उसके ऊपरी सिरे को रगड़ते हुए गीला कर रहे थे।
वह इस तरह मेरी योनि के अंदरूनी भाग की गर्माहट महसूस कर सकता था और साथ ही मेरी जाँघों की कसावट भी!
इसके बाद वह फिर मेरी पीठ से सट गया।
अपने हाथ उसने मेरे कुर्ते में पेट की तरफ से घुसा लिये थे और ऊपर चढ़ाते, मेरी ब्रा को ऊपर की तरफ धकेल कर, दोनों उभारों को बाहर निकाल लिया था और उन्हें मसलने लगा था।
अब जो महसूस हो रहा था वह यह कि जितना मज़ा आ रहा था उससे ज्यादा एक अजीब किस्म की बेचैनी हो रही थी। उसके हाथों से मेरे वक्षों का मसलना जितना मज़ा दे रहा था उससे ज्यादा निप्पल्स पर मिलने वाली रगड़ रोमांचित कर रही थी।
तभी बाहर किसी ने घंटी बजा दी, सारी कल्पनाएं झटके से छिन्न-भिन्न हो गईं और हम एकदम आसमान से ज़मीन पर आ गये। जल्दी से एकदूसरे से अलग होकर कपड़े दुरुस्त किये और उसे बरामदे में बैठने का इशारा करके मैं दरवाज़ा खोलने भागी।
उम्मीद के मुताबिक आकृति ही आई थी।
सोनू तो घर का ही बंदा था इसलिये शक़ की कोई गुंजाईश नहीं थी।
उसे चाय पिलाई और आकृति से कह कर कि मैं रंजना के पास जा रही हूं… घर से चल दी।
रंजना मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।
उसे मैंने आज की बात बताई तो उसे ख़ुशी हुई कि मैंने एक बाधा तो पार की।
फिर उसने बताया कि उसने इसीलिये मुझे बुलाया था क्योंकि आज माँ-बाबा बाराबंकी गये हैं किसी काम से और शाम तक आएंगे।
बच्चे भी चार बजे आने हैं… बीच में हमारे पास दो घंटे पूरी तरह अपने तरीके से गुज़ारने का मौका है और चाहे तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
मेरी ज़ुबान गुंग हो गई… मैं कह न पाई कि घर में जो आग सोनू ने लगाई थी वह अभी भी अधूरी है और बिना अंत तक पहुंचे मुझे चैन नहीं देगी।
पर वह सब समझती थी, मुझे बाद में पता चला कि उसे ऐसे हालात में इंसान पर क्या गुज़रती है इसका इल्म था… वह खुद मुझे ऊपर सोनू के पास ले के पहुंची थी।
‘सोनू, ध्यान से करना… जानवरों जैसा बर्ताव न करना और रानो… तू दिमाग से सबकुछ निकाल दे और दो घंटों के लिए खुद को हालात के भरोसे छोड़ दे। जो होता है होने दे। किसी मदद की ज़रूरत पड़ी तो मैं हूँ न।’ उसने मुझे भरोसा दिलाया था और कमरे से निकल गई थी।
सोनू ने लपक के दरवाज़ा बंद किया और एकदम से मुझ पर जैसे टूट ही पड़ा।
अब तक वह मेरे लिए बच्चा ही था लेकिन अब मर्द महसूस हो रहा था, उसके पसीने की गंध मुझे उत्तेजित कर रही थी।
उसने मुझे बिस्तर पर गिरा लिया था और मेरे सीने को मसलते मेरे गालों पर अपने होंठ रगड़ रहा था। दिमाग में अभी भी कहीं न कहीं, गलत, अनैतिक जैसी क्षीण सी भावनाएं मौजूद थीं और साथ ही ये अहसास भी कि वह कितना छोटा था।
फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ सटा दिये।
अजीब सा गीला-गीला लगा लेकिन जब उसने होंठों को चूसना शुरू किया तो जल्दी ही मुझे अहसास हो गया कि मैं खुद को उसका मज़ा लेने से रोक नहीं सकती थी।
पहली बार मैंने महसूस किया कि मैं अपने खोल से बाहर निकली हूँ… मैंने खुद से आगे बढ़ कर उस चीज़ को हासिल करने की कोशिश की है जो मुझे आनन्द प्रदान कर रही थी।
मैंने खुद से उसके होंठों को चूसना शुरू किया और मेरी तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलते ही उसमें और जोश आ गया।
वह ऐसे मेरे होंठ चूसने खींचने लगा जैसे चबा ही डालेगा।
फिर जाने किस भावना के वशीभूत होकर मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुंह में पहुंचा दी और वह वैसी ही बेताबी और जोश से उसे भी चूसने लगा।
फिर मैंने जीभ खींची तो पीछा करते उसने जीभ मेरे मुंह में घुसा दी जिसे मैं चूसने लगी।
उसके दोनों हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे, मेरे वक्ष का मर्दन कर रहे थे, कपड़े के ऊपर से ही मेरी योनि को रगड़ रहे थे और अब मेरे हाथ भी वर्जना को तोड़ कर उसकी पीठ पर फिरते उसे मसलने लगे थे।
दरअसल हम दोनों ही अनाड़ी थे, अनुभवहीन थे इसलिए दोनों के यौन-व्यवहार में उतावलापन था, बेताबी थी, जंगलीपन था, जल्दी ही सब सुख पा लेने की होड़ थी।
और इसीलिये दोनों ही एक दूसरे को मसले दे रहे थे, रगड़े दे रहे थे… वह कम नहीं था तो मैं भी पीछे नहीं थी।
पहली बार तो मैंने लक्ष्मणरेखा लांघी थी… अब कुछ भी हो, मैं इन पलों को अच्छे से जी लेना चाहती थी।
बिस्तर की हालात तहस-नहस हो गई थी।
फिर उसने मेरे कपड़े उतारने चालू किये, सबसे पहले कुर्ते को ऊपर खींचते उतार फेंका… शर्म ने मुझे कुछ देर तो बांधे रखा लेकिन जैसे ही उसने मेरी ब्रा को उतार कर अपने मुंह से मेरी चूचियों को रगड़ना-चुभलाना शुरू किया…
उत्तेजना ने शर्म को फ़ना कर दिया।
मैंने भी उसकी टी-शर्ट नीचे से ऊपर की तरफ खींची और उसे उतार फेंका।
फिर वह मेरे ऊपर लद गया… नग्न शरीर से नग्न शरीर का स्पर्श।
‘आह’ ! बता नहीं सकती कि इसमें क्या लज्जत है।
ऐसा लगा जैसे खून में चिंगारियां उड़ने लगीं हों।
हम फिर ‘किस’ करने लगे और किस करते करते उसने मेरी सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और फिर एक झटके से उठ बैठा। उसने उंगलिया मेरी पैंटी के दोनों साइड ऐसे फंसाई कि नीचे खींचने पर सलवार समेत पैरों से निकलती चली गई।
अब मेरी बालों से ढकी योनि उसके सामने थी।
उसने उत्तेजना भरी एक सांस खींचते हुए उसे मुट्ठी में दबोच लिया और झुक कर मेरे होंठ चूसने लगा।
दूसरा हाथ उसने सपोर्ट के लिए मेरे सर के पीछे लगा लिया था।
जबकि योनि पर उसकी पकड़ ने मेरे अंदर की कामवासना और भड़का दी थी।
मैंने हाथ से उसकी पैंट की बेल्ट पकड़ कर उसे खींचने की कोशिश की तो उसने खुद अपने योनि को पकड़ने वाले हाथ से बेल्ट खोल दी और सामने से अंडरवियर नीचे सरक दी।
उसका लिंग भी पूरी तरह तना हुआ था और लगभग खीरे जैसे उसके लिंग को मैंने हाथ से पकड़ लिया।
कुछ नर्म कुछ सख्त अजीब सा अहसास हुआ।
वह पहला लिंग था जिसे मैंने थामा था।
मैंने उसे ऊपर नीचे किया… ऐसा लगा जैसे वहाँ दो प्रकार की चमड़ी हो, एक अंदरूनी चमड़ी जो एक जगह स्थिर थी, दूसरी ऊपरी चमड़ी जो उस पर फिसल रही थी।
फिर उसने मुझे छोड़ा और अपनी पैंट उतार कर फेंक दी।
अब वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और मेरे दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर उन्हें इस तरह फैला लिया कि योनि खुल कर उसके सामने आ गई।
मैं खुद से नहीं देख सकती थी, मैंने आँखें बंद कर ली और एक हाथ से मुट्ठी में चादर दबाते हुए दूसरे हाथ से स्वयं अपने वक्ष दबाने लगी।
जबकि सोनू ने उंगली से मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया था, वह वैसे ही गर्म भाप छोड़ रही थी।
सोनू की उँगलियों की रगड़ ने उसे और तपा दिया, मेरे शरीर में लहरें पड़ने लगीं।
मैंने आँख खोल कर उसे ऐसे देखा जैसे कहने की कोशिश की हो कि अब घुसाओ।
उसने भी जैसे मेरी बात समझ ली हो और अपने लिंग पर थूक लगा के उसे मेरी योनि के छेद पर टिका दिया, फिर अपने हाथों की पकड़ मेरे मुड़े घुटनों पर बनाईं और एकदम से तेज़ धक्का लगा दिया।
चिकनाहट इतनी थी कि लिंग फिसल कर नीचे चला गया।
उसने दोबारा और बेहतर ढंग से कोशिश की और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सर पर आसमान टूट पड़ा हो।
एकदम जैसे कोई खंजर मेरे तन को चीरता अंदर घुसा हो और आधी दूरी पर फंस गया हो।
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07-17-2020, 11:58 AM,
#32
RE: raj sharma story कामलीला
हलक से एक बिलबिलाती हुई चीख निकली थी और तड़प कर पैर सीधे करके उसे धकेलने की कोशिश की थी लेकिन सोनू ने घुटनों पर ऐसे सख्ती से हाथ जमाये थे कि सफल न हो सकी।
दिमाग में अँधेरा भर गया… सांय-सांय होने लगी।
दर्द की तेज़ लहर के बीच मैंने महसूस किया कि सोनू ने फिर धक्का मारा था और मुझे ऐसा लगा कि उसका लिंग रुकेगा ही नहीं और मुझे अंदर तक फाड़ डालेगा।
उसके गड़ने की, बच्चेदानी से टकराने की अनुभूति हुई।
‘ओऊं… आह… निकाsssss..लाल… लो….’ फंसी फंसी आवाज़ के साथ दर्द से छटपटाते मैं बस इतना कह पाई, जबकि सोनू ने वापस लिंग को योनि के मुंह तक खींचा था और फिर अगले धक्के में अंदर घुसा दिया था।
बर्दाश्त की इन्तहा हो गई। दर्द को सहन करने की कोशिश में मैंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी… इस हद तक कि दिमाग में अँधेरा भर गया और मैं संज्ञाशून्य हो गई।
मुझे अहसास था कि मैं उस वक़्त बेहोश ही हो गई थी और होश तब आया था जब बाहर दरवाज़ा पीटने के साथ रंजना की आवाज़ सुनी थी ‘दरवाज़ा खोल पगले… सोनू… सोनू… खोल…’
सोनू भी शायद किसी हद तक डर गया था मेरी हालत देख के, उसने खुद को ढकने का भी ख्याल नहीं किया और दरवाज़ा खोल दिया। रंजना लपक कर मेरे पास आई थी और मुझे संभालने लगी थी।
‘हाय राम… ज़रा भी तमीज नहीं… दोनों के दोनों अनाड़ी हो। कुछ सीखा ही नहीं अब तक!’ वह मेरे सर को सहलाती डांटने के अंदाज़ में बोली थी।
सोनू पास ही खड़ा मूर्खों की तरह देख रहा था।
‘ऐसे करते हैं किसी कुंवारी लड़की के साथ?’ उसने सोनू को देख डपटते हुए कहा- एकदम जंगली की तरह घुसा दिया। अरे बंद कर ये बम्बू… मुझे दिखा रहा है… शर्म नहीं आती।’
उसके डपटने पर सोनू को अपने नंगेपन का ख्याल आया और उसने वही पड़ा मेरा दुपट्टा उठा कर कमर से लपेटते हुए रंजना को घूर कर पूछा- तुम्हें कैसे पता कैसे करते हैं?
‘मुझे सब पता है… समझे, जल्दी से थोड़ा पानी गुनगुना करके ला और अपने बम्बू को देख, उस पर खून लगा है, उसे भी साफ़ कर लेना। जा जल्दी।’
‘खून!’ मैंने भी सहमते हुए नीचे देखा, जहाँ अभी भी तेज़ पीड़ा की लहरें उठ रही थीं, वहीं जांघों के पास थोड़ा खून लगा था और थोड़ा नीचे चादर पर भी लग गया था।
‘कुछ नहीं, झिल्ली फटी है तेरी… कोई नहीं यार, कभी न कभी तो फटनी ही थी। थोड़ा ध्यान हटा दर्द की तरफ से, पहली बार में सबको झेलना पड़ता है। इसके पर ही सुख का समंदर है समझ।’
‘तुझे सेक्स के बारे में ये सब कैसे पता… कभी किया तो नहीं।’
‘किया है मेरी जान, बस कभी बताया नहीं।’
‘क्यों?’ मुझे सख्त हैरानी हुई कि हम दोनों के बीच कोई ऐसी भी बात थी जो उसने मुझसे छिपाई थी।
‘क्योंकि मैं अकेली नंगी थी और तूने कपड़े पहने हुए थे। समझ… अपना नंगापन छुपाने की ज़रूरत तब तक रहती है जब तक सामने वाले के कपड़े न उतर जायें, एक बार वह भी नंगा हुआ न तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
‘कब किया? किसके साथ?’ मुझे अपनी हालत से ज्यादा दिलचस्पी उसका सच जानने में थी।
‘बाद में फुरसत से बताऊँगी, अभी इतना समझ कि पिछले साल जब गांव गई थी तो वहीँ मामा के जो लड़के हैं अवि भैया… उन्होंने ही मेरे साथ किया था।
पहली बार ज़बरदस्ती, मेरी मर्ज़ी के खिलाफ, दूसरी बार मौके का फायदा उठा कर मुझे डरा कर और तीसरी बार मुझे खुद अच्छा लगा और चौथी बार मैंने खुद से कह कर कराया।
यह ऐसा ही मज़ा है और मैं तो तरसी हुई थी और न आगे भविष्य में कोई उम्मीद दिख रही थी, जो मौका मिला उसे न भुनाती तो और क्या करती।
वह शादी शुदा हैं, उनके बच्चे हैं… उन्होंने वचन लिया था कि जब तक उनसे हो सकेगा मेरी इस ज़रूरत को पूरा करते रहेंगे पर मैं कभी किसी को यह बात न बताऊं।
अभी भी जब कभी वह आते हैं, हम में सेक्स होता है… पहले तुझे बताती तो अपनी मज़बूरी समझा न पाती पर अब तू खुद समझ सकती है तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
तब तक सोनू पानी ले आया था, जिससे कपड़े को भिगा कर रंजना मेरी योनि को अच्छे से साफ़ करने लगी थी और सोनू सामने ही खड़ा देख रहा था।
अपने नंगेपन और योनि को उन दोनों के बीच साफ़ कराने में मुझे खासी शर्म आ रही थी।
‘सोनू तुम बाहर जाओ, मैं अभी बुलाती हूं।’ मेरी बेचैनी और शर्म को समझते हुए रंजना ने सोनू से कहा और वह मुंह बनाता बाहर चला गया।
‘सुन, अवि भैया इस मामले में बेहद तजुर्बेकार थे और उन्होंने ऐसे किया था कि मुझे कोई खास तकलीफ नहीं हुई थी… तुझे बताऊं तो उस पगले को समझा पायेगी।’
‘नहीं… यह सब मेरे बस का नहीं, उसे ही समझाओ। मुझसे नहीं होगा।’
‘यार समझ मेरी जान, कुछ भी है, कितना भी खुलापन है हम दोनों के बीच मगर भाई है। कैसे मैं उससे समझाऊं कि क्या क्या करना है। कितनी बेशरम हो जाऊं।’
‘तो रहने दे आज… फिर कभी करेंगे, समझ लेगा किसी से कि कैसे करते हैं।’ मेरा दिमाग अजीब सा हो रहा था और मैं फैसला नहीं कर पा रही थी कि मैं रुकूँ, या चली जाऊं।
‘अच्छा चल तेरे लिए मैं बेशर्म ही हो जाती हूँ, जो हिम्मत तूने आज की है उसे पूरे तौर पर कर… जो शुरू हुआ है उसे अधूरा मत छोड़।’ वह पानी, कपड़ा समेटती उठ खड़ी हुई।
उसके जाने के बाद मैंने खुद को बिस्तर की चादर से ढक लिया और अगले तूफ़ान के आने की प्रतीक्षा करने लगी… योनि से सम्बंधित मांसपेशियां दर्द से ऐंठ रही थीं वह अलग।
पांच मिनट बाद वह आया और मेरे पास बैठ गया- सॉरी दीदी, शायद मैं ही अनाड़ी हूँ, आप तो लड़की हो, मुझे ही सही से हैंडल करना चाहिए था।
‘तो अब कैसे हैंडल करोगे?’ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
तो उसने मुझे फिर दबोच लिया और मेरे ऊपर लदते हुए मेरे होंठों से अपने होंठ टिका दिये।
उसकी कमर पर बंधी लुंगी भी खुल गई थी और मेरे शरीर पर मौजूद चादर भी हट गई थी।
एक दूसरे के नग्न शरीरों के घर्षण से फिर चिंगारियाँ उड़ने लगीं।
इस बार उसने अपने हाथों से मुझे सहलाते, दबाते मेरे होंठों को चूमने के बाद मेरी गर्दन, कंधों को चूमना शुरू कर दिया था और मेरे उरोजों तक आ पहुंचा था।
उसने जिस तरह मेरे निप्पलों के आसपास जीभ फिराई और फिर अंत में चूचुकों को मुंह में लेकर चुभलाया, मैं उत्तेजना से ऐंठ गई, योनि का दर्द जैसे दिमाग से ही निकल गया।
एक हाथ से एक वक्ष को दबाता, भींचता और दूसरे को मुंह से चूसता, चुभलाता… मेरे मुंह से मस्ती में डूबी आहें निकलने लगी थीं।
मैंने दोनों हाथों से उसका सर थाम लिया था।
जब वह अच्छे से दोनों स्तनों का मर्दन कर चुका तो सीने को बीच से चूमते हुए नीचे सरकने लगा और नाभि पर रुक गया।
उसकी जीभ गोल होकर नाभि के गड्ढे में फिरने लगी और एक मादकता भरी गुदगुदाहट मेरी समस्त नसों में दौड़ने लगी।
पर वह वहाँ भी ज्यादा देर न रुका और नीचे सरकते मेरी योनि तक पहुंच गया।
पहले उसने वहाँ कई चुम्मियाँ लीं जहाँ योनि के बाल फैले थे, फिर दोनों टांगें फैला दीं और खुद चौपाये की तरह झुकते हुए अपना मुंह मेरी योनि तक ले आया।
अब उसकी जीभ योनि के किनारों से छेड़छाड़ करने लगी।
मैं कुहनियों के बल उठकर अधलेटी अवस्था में उसे देखने लगी… मुझे ताज्जुब हो रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है।
जी तो कर रहा था कि उसे रोक दूं लेकिन जिस तरह का सुख हासिल हो रहा था, वह मेरी कल्पना से भी परे था इसलिए लालच ने मुझे रोकने न दिया और वह वैसे ही पूरी योनि को चाटता रहा।
जल्दी ही मेरी यौन-उत्तेजना मुझे पर इस तरह हावी हो गई कि अभी दर्द से मसकती योनि अब वह मज़ा दे रही थी जो मुझे स्वर्ग की सैर कराये दे रही थी।
मैं खुद को अधलेटी अवस्था में और न रख पाई और लेट गई।
मेरी कामुक सीत्कारें अब कमरे की हदें तोड़ कर बाहर तक जाने लगी थीं।
जब उसने सुनिश्चित कर लिया कि मेरी योनि पूरी तरह तप चुकी है और मैं उसके लिंग को सहन कर सकती हूँ तो वह उठ कर मेरी जांघों के बीच में बैठ गया।
मैंने आँखें बंद कर ली थीं लेकिन महसूस कर सकती थी कि उसने अपने लिंग को, फिर मेरी योनि को फैला कर बीच छेद पर उसे टिकाया हुआ है और मेरे घुटनों पर फिर पहले जैसी पकड़ बना ली है।
मैंने भी आगे मिलने वाले सुख की कल्पना से खुद में सहने की ताक़त पैदा की और आघात के लिए तैयार हो गई।
उसने थोड़ा ज़ोर लगाया तो अभी ही खुल चुके छेद में उसका अग्रभाग मुझे तेज़ पीड़ा का अहसास कराते हुए अंदर धंस गया।
मैंने होंठ भींच लिये।
इस बार उसने आगे बढ़ने की बजाय खुद को वहीं रोक लिया और अपने हाथ से मेरी योनि के ऊपरी सिरे को जहाँ भगांकुर होता है, उसे सहलाने लगा।
यह योनि का सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है… मैंने उस हिस्से में पैदा होने वाली हलचल पर ध्यान लगाया तो आश्चर्यजनक रूप से दर्द में कमी महसूस होने लगी।
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07-17-2020, 11:58 AM,
#33
RE: raj sharma story कामलीला
फिर वह मेरे ऊपर लद गया और मेरे होंठों को चूमते-चूसते मेरी गोलाइयों को मसलने सहलाने लगा। मैंने आँखें खोल ली थीं और उसकी आँखों में देख रही थी जो मुझे देखता जैसे कह रहा था…
बस दीदी, बैरियर टूट गया… अब आगे का रास्ता क्लियर है।
ऐसा नहीं था कि योनि में दर्द ख़त्म हो गया था लेकिन उसमे कमी ज़रूर आ गई थी और मैंने भी उधर से ध्यान हटाने के लिए उसकी पीठ को अपने हाथों से सहलाना शुरू कर दिया।
सारा ध्यान, होंठों के चूषण और वक्ष के मर्दन और उनसे पैदा होने वाली उत्तेजना में लगाये हुए भी मैंने महसूस किया कि अपनी कसावट को हथियार बना कर विरोध करके भी मेरी योनि उसके लिंग को रोक नहीं पा रही थी।
और वह हर पल आगे बढ़ रहा था, धीरे-धीरे अंदर सरक रहा था और योनि में जगह कम होती जा रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंतर में कोई खालीपन बाकी रहा हो जो अब भर रहा हो।
यकीनन दर्द के अहसास के साथ लेकिन साथ ही उत्तेजना और प्यार से मिश्रित छुअन, घर्षण उस दर्द को कम ज़रूर कर रहे थे।
‘दीदी… पूरा चला गया।’ उसने मेरे एक वक्ष को मसलते हुए कहा।
‘हट- नहीं!’
पर वह गलत नहीं कह रहा था, मैंने हाथ लगा कर देखा तो अंदाज़ा हुआ था कि पूरा अंदर था। साथ ही उसके बालों और अंडकोषों की छुअन भी महसूस की।
मुझे ताज्जुब हुआ कि इतना लंबा लिंग मेरी योनि में घुस कर पूरा गायब हो गया था… क्या इतनी जगह होती है उसमें, हालांकि मैं यह भी महसूस कर रही थी कि वह अंदर कहीं लड़ रहा है।

पर इस बात की ख़ुशी थी कि मैंने दर्द की बाधा पर कर ली थी और अब ये सोच कर और उत्तेजना भर रही थी कि आखिरकार मैं सहवास कर रही थी और एक परिपक्व लिंग को अपनी योनि में लिये थी।
फिर उसने उठने की कोशिश की तो लिंग बाहर निकल गया।
ऐसा लगा जैसे ‘पक’ की आवाज़ हुई हो और योनि की मांसपेशियों में बना हुआ खिंचाव एकदम छूट गया हो और थोड़ी राहत सी मिल गई हो।
वह फिर वैसे ही बैठ कर मेरे भगांकुर को रगड़ने लगा और कुछ देर में फिर लिंग को घुसाया… ऐसा नहीं था कि दर्द न हुआ हो लेकिन इस बार आगे का लुत्फ़ पता था तो अनुभूति बहुत कम हुई।
उसने भगांकुर को सहलाते हुए ही धीरे-धीरे पूरा लिंग अंदर सरका दिया। मैं अपने हाथों से अपने वक्षों को मसलने लगी थी।
हालांकि अंदर की कसावट अभी भी इतनी ज्यादा थी कि लग रहा था जैसे योनि ने लिंग को जकड लिया हो… जैसे लिंग अंदर फंस कर रह गया हो।
पर उन दीवारों से चिकना पानी भी रिस रहा था जो उस फंसे हुए लिंग को अंदर बाहर सरकने में सहायता प्रदान कर रहा था।
शुरुआत में उसने धीरे-धीरे लिंग को अंदर पहुंचाया, बाहर निकाला लेकिन जल्दी ही जब फिसलन मनमुताबिक हो गई तो धक्कों में तेज़ी आने लगी।
जल्दी ही यह स्थिति हो गई कि वह मेरे दोनों वक्षों को दबोचे, मेरी जांघों के के बीच बैठा ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहा था और मैं मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोचे ‘सी-सी-आह-आह’ करती हर धक्के पर ऐंठ रही थी।
हम दोनों ही नये थे, हम दोनों का ही यह पहला सम्भोग था जिसमे हम बहुत देर तक यह उन्माद कायम न रख सके और जब उसने महसूस किया कि वह चरमोत्कर्ष की तरफ बढ़ रहा है तो मेरे ऊपर लद कर धक्के लगाने लगा।
मैंने भी उसकी पीठ दबोच ली थी और उसे इस तरह खुद से चिपकाने लगी थी जैसे खुद में ही समां लेने का इरादा रखती होऊँ।
फिर एकदम मुझे मेरी नसों में खिंचाव पैदा होता महसूस हुआ और यह खिंचाव एकदम छूटा तो ऐसा लगा जैसे मेरी नसों से कुछ निकल पड़ा हो।
शरीर एकदम से ऐंठ कर झटके लेने लगा और योनि उन क्षणों में इतनी संकुचित हो गई कि सोनू के लिए लिंग चलाना संभव न रह गया और उसने भी एकदम जैसे उस कसाव से निपटने के लिए फूल कर कुछ उगल दिया जो मुझे गर्म-गर्म लगा और उन पलों में उसने भी मुझे एकदम ‘आह’ करते हुए इस कदर सख्ती से भींच लिया कि लगा हम दोनों ही की हड्डियाँ कड़कड़ा जाएंगी।
जब इस दशा से गुज़र चुके तो दिमाग में इतनी सनसनाहट थी कि कुछ सुध न बाकी रही।
तभी दरवाज़ा खुला और रंजना अंदर आई… उसे आते देख मैं भी उठ बैठी और सोनू भी उठ गया।
‘चल जा, साफ़ कर जाकर अपने को!’ उसने सोनू से आँखें तरेरते हुए कहा और वह मुंह बनाता मेरी चुन्नी लपेटता बाहर चला गया।
वह मेरे पास बैठ गई- सच बोल, आया मज़ा या नहीं?
उसके स्वर में किसी बच्चे जैसी ख़ुशी थी।
‘हाँ!’ मैं इससे ज्यादा और क्या कह सकती थी।
‘चल मैं तुझे साफ़ कर देती हूँ।’ वह उठ कर बाहर निकल गई और फिर वही गर्म पानी वाला बर्तन लेकर और साथ में दूसरा कपडा लिये लौटी।
‘देख तो सही, कितना वीर्य निकाला है कमीने ने!’
उसके कहने पर मैंने नीचे देखा तो ढेर सा सफ़ेद वीर्य मेरी योनि से निकल रहा था, जिसे मेरे देखने के बाद रंजना गीले कपडे से पोंछने लगी।
वह कुछ बोलती रही और मैं अपनी सोच में पड़ी रही कि आज मुझे अपने शरीर से वह सुख हासिल हो गया जो मेरा हक़ था लेकिन आज मैंने ये वर्जना न तोड़ी होती तो क्या मैं इसे कभी हासिल कर सकती थी।
अच्छे से मुझे साफ़ कर चुकने के बाद उसने मुझसे पूछा कि अगर मैं अब हिम्मत कर सकूं तो वह मुझे कुछ ज्ञान और दे।
मुझे भी लगा कि अब नंगी तो हो ही चुकी थी, ना-नुकुर से हासिल भी क्या था।
मैंने सहमति जताई और वह मुझे और कई प्रकार की सेक्स से जुड़ी बातें बताने लगी जिनसे मैं और ज्यादा मज़ा पा सकती थी।
मुझे ताज्जुब हो रहा था कि वह मन में कितनी बाते छुपाये थी। बहरहाल मेरी सफाई करके वह बाहर चली गई और शायद सोनू को कुछ समझाने लगी होगी।
करीब दस मिनट बाद वह कमरे में आया- दीदी, सच बोलना… मज़ा आया ना, मैंने अच्छे से तो किया न?
मैं क्या जवाब देती, शर्मा कर सर नीचे करके ‘हाँ’ में सर हिला दिया और उसने मेरी बाहें थाम लीं और मुझे अपने सीने से चिपका लिया।
थोड़ी देर हम ऐसे ही चिपके बैठे एक दूसरे के बदन की गर्माहट को महसूस करते रहे।
फिर धीरे-धीरे पारा चढ़ने लगा।
ज़ाहिर है कि हम नग्न थे और हमारे दिमागों में सेक्स घुसा हुआ था तो और दूसरी भावना और क्या पैदा होती।
मेरे हाथ खुद-बखुद नीचे जाकर उसके मुरझाये लिंग को सहलाते उसमे तनाव पैदा करने लगे और उसके हाथ मेरे वक्ष और नितंबों पर मचलते मुझमे ऊर्जा का संचार करने लगे।
वह फिर मेरे होंठों को चूसने लगा और मैं सहयोग देने लगी।
‘दीदी चलो कुछ नए ढंग से करते हैं।’
‘कैसे?’
वह मुझे छोड़ के चित लेट गया और मुझे देखते हुए बोला कि मैं उस पर इस तरह बैठूं कि मेरी पीठ उसके चेहरे की तरफ रहे और मेरी योनि ठीक उसके मुंह के सामने रहे।
जब मैं इस तरह बैठी तो उसने मेरी पीठ पर दबाव डालते हुए मुझे इस तरह झुका दिया कि मैं किसी चौपाये की तरह हो गई।
उस स्थिति में मेरा मुंह उसके लिंग के सामने था।
‘अब मैं आपकी वेजाइना को मुंह से चूसता हूँ, आप मेरे पेनिस को करो।’
मैंने साफ़ इंकार कर दिया लेकिन उसके ऊपर इस बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा… हालांकि रंजना मुझे जो समझा कर गई थी उसमें ये भी शामिल था पर मैं खुद को एकदम से तैयार नही कर पाई थी।
पर उसने अपनी जुबां से मेरी योनि के किनारों को छेड़ना चालू कर दिया था और मेरे शरीर में लहरें दौड़ने लगी थीं।
मैं योनि की मांसपेशियों को सिकोड़ने-छोड़ने लगी और ‘आह-आह’ करने लगी।
अब मेरा ध्यान उसके लिंग की तरफ नये नज़रिये से गया, मैं इतनी नादान तो नहीं थी कि मुझे मुखमैथुन के बारे में पता न हो पर कभी खुद पर इसकी कल्पना नहीं की थी तो इसलिये असहज थी।
पर अब जो सिलसिला चला है उसमे आज नहीं तो कल ये करना ही है, क्यों न इसका अनुभव भी कर लूं, अच्छा या बुरा, बिना चखे कैसे पता चलेगा।
मैंने उसके पेट पर गिरे लिंग को मुट्ठी में उठा कर जीभ से उसके अग्रभाग को छुआ।
शिश्नमुंड के छिद्र पर एक बूंद चमक रही थी जो मेरी जीभ पर आ गई थी। लसलसी सी… तार सा बनाती और स्वाद में नमकीन सी।
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07-17-2020, 11:58 AM,
#34
RE: raj sharma story कामलीला
नमकीन स्वाद बुरा नहीं था मगर दिमाग में भरी वर्जना ने उसे गले में स्वीकारने न दिया और मैंने उसे थूक दिया।
फिर शिश्नमुंड पर जीभ फिराते जैसे उसे साफ़ किया और साइड में थूकती रही।
फिर जब मन में तसल्ली हो गई कि अब वह साफ़ हो चुका है तो उसे होंठों का छल्ला बनाते मुंह में लिया और मुंह जितनी नीचे तक उतार सकती थी उतार लिया।
यहाँ तक कि वह गले में घुसने लगा और उबकाई सी महसूस हुई तो एकदम से बाहर निकाल कर हाँफने लगी।
एक बार फिर कोशिश की, फिर उबकाई महसूस होने पर उसे बाहर निकाल दिया। कुछ सेकेंड खुद को संभाल कर अगली कोशिश की।
थोड़ी देर में समझ में आ गया कि उसे गले में उतारने की ज़रुरत नहीं थी। जितना सहज रूप से मुंह में ले सकती थी उतना ही लेना था और ‘गप-गप’ करके ऐसे चूसना है जैसे बचपन में लॉलीपॉप चूसा करते थी।
थोड़ी देर की कोशिशों के बाद मुझे लिंग-चूषण आ गया और फिर मैं अपनी योनि में उठती तरंगों से ध्यान हटा कर उसके लिंग को चूसने लग गई।
अब फिर उसी नमकीन स्वाद का मुंह में अनुभव हुआ तो उसका कोई प्रतिकार न किया और सहजता से उसे गले में उतार गई।
उधर सोनू भी अपनी पूरी तन्मयता से योनि के चूषण और जीभ से भेदन में लगा हुआ था।
सच कहूँ तो उस वक़्त दिमाग में अनार से छूट रहे थे और नस-नस में ऐसी मादकता भरी ऐंठन हो रही थी कि उसे शब्दों में ब्यान नहीं कर सकती।
फिर उसने मेरे कूल्हों को थाम कर साइड में किया तो मेरी एकाग्रता भंग हुई।
वह मेरी तरफ विजयी नज़रों से देखता, मुस्कराता नीचे उतर कर खड़ा हो गया- दीदी, इधर आओ और इस तरह झुको जैसे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठते हुए चारपाई के नीचे घुसते हैं न… बिल्कुल वैसे ही!
उसने आगे बढ़ कर मुझे थामते हुए कहा- जहाँ तक रंजना के बताये मुझे मालूम था कि वह ‘डॉगी स्टाइल’ की बात कर रहा था।
मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया और उसने मुझे बिस्तर के किनारे खींच कर उसी अंदाज़ में झुका दिया।
अब मैं किसी बिल्ली की तरह खुद का चेहरा, सीना, दोनों हाथ बिस्तर से सटाये, घुटनों पर बल दिये झुकी बैठी थी और मेरा पिछले हिस्सा हवा में ऊपर उठा हुआ था।
मैं अपने पीछे नहीं देख सकती थी मगर कल्पना कर सकती थी कि इस तरह मेरी योनि और गुदा दोनों उसके सामने साफ़ नुमाया रहे होंगे और उन हिस्सों को इतने नज़दीक से और साफ साफ देख रहा होगा जिन्हें मैं भी आज तक नही देख पाई थी।
यह सोच कर मुझे इतनी शर्म आई कि मैंने आँखें बंद कर लीं।
वह थोड़ा झुक कर नीचे हुआ और मेरे नितंबों को दबाते हुए योनि पर जीभ इस तरह फेरने लगा जैसे कोई रसीली चीज़ मज़े ले लेकर चाट रहा हो।
मेरे खून में कुछ पलों के लिए ठंडी हुई चिंगारियाँ फिर उड़ने लगीं।
और जब उसने महसूस कर लिया होगा कि योनि अंदर तक उसकी लार और मेरे रस से भीग चुकी है और समागम के लिए पूरी तरह तैयार है तो उसने मेरे नितंबों को थोड़ा नीचे दबाते हुए अपने लिंग के हिसाब से एडजस्ट कर लिया।
फिर अपने लिंग को पकड़ कर उसे योनि के छेद से सटाया और आहिस्ता से अंदर धकेलने की कोशिश करने लगा।
अवरोध चिकनेपन के कारण बेहद कमज़ोर साबित हुआ और लिंग योनिमुख की संकुचित दीवारों को चीरता हुआ अंदर धंस गया।
दर्द ने एक बार फिर मेरी खैरियत पूछी लेकिन मैंने दांत पर दांत जमाये उसे झेलने में ही भलाई समझी।
उसने अंदर सरकाते हुए नितम्बों पर मज़बूत पकड़ बना रखी थी।
ऐसे में निकल तो सकती नहीं थी, अलबत्ता यह कर सकती थी कि खुद अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर अपनी योनि को रगड़ने लगी थी।
भगांकुर पर उंगलियों का घर्षण उस दर्द से लड़ने में मददगार था जो इस घड़ी मेरे रोमांच के असर को कम कर रहा था।
जब सोनू पूरा लिंग घुसा चुका तो रुक कर नितंबों को मसलने लगा।
शायद लिंग को अपने हिसाब से जगह बनाने का पर्याप्त अवसर दे रहा था। साथ ही थोड़ा झुक कर एक हाथ मेरे वक्षों की तरफ ले आया और उन्हें मसलने लगा।
‘करो।’ थोड़ी देर बाद खुद मेरे मुंह से निकला।
वह इशारा मिलते ही सीधा हो गया और दोनों हाथों से मज़बूती से नितंबों को थाम कर अपने लिंग को आगे पीछे करने लगा।
हर बार उसकी चोट मैं अपनी बच्चेदानी पर महसूस करती और कराह उठती।
‘पूरा मत घुसाओ… मुझे गड़ रहा है।’ अंततः मैंने उसे रोकते हुए कहा।
उसने नितम्ब थपथपा कर सहमति जताई और लिंग को पूरा अंदर करने के बजाय तीन चौथाई लिंग को ही अंदर-बाहर करते सम्भोग करने लगा।
मुझे उससे कहीं ज्यादा मज़ा आया जितना पहले आ रहा था और मैं खुद भी अपने चूतड़ों को आगे-पीछे करते उसे सहयोग देने लगी जिससे उसमें और अधिक उत्साह का संचार हुआ।
फिर कमरे में उसकी भारी सांसों के साथ, मेरी सीत्कारें मिल कर संगीत पैदा करने लगीं और सम्भोग से जो लगातार ‘थप-थप’ की ध्वनि उच्चारित हो रही थी वह हम दोनों के कानों में रस घोल रही थी।
चूंकि काफी देर की चूसा चाटी के कारण हमारी उत्तेजना वैसे भी उफान पर थी तो बहुत ज्यादा देर तक ये धक्कों का सिलसिला चल न सका।
वैसे भी नये लोगों में अधीरता ज्यादा होती है जो चरमोत्कर्ष पर जल्दी ले आती है।
जल्दी ही मैं स्खलन के अकूत आनन्द का अनुभव करते हुए अकड़ गई और ज़ोर की ‘आह’ के साथ बिस्तर ही नोच डाला और उन पलों में योनि भी ऐसी कस गई जैसे उसके लिंग का गला ही घोंट देगी।
और इस कसावट ने उसे भी स्खलन की मंज़िल पर पहुंचा दिया।
वह वैसे ही गर्म धातु की फुहार छोड़ता आखरी बूंद तक धक्के लगाता रहा और पूरी गहराई में अपना लिंग घुसाता मुझे बिस्तर पर रगड़ते हुए खुद मेरे ऊपर ही लद गया।
जब शरीर की अकडन ख़त्म हुई तो मुझसे अलग होकर बिस्तर पर ऐसे फैल गया जैसे बेसुध ही हो गया हो… कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी थी।
कुछ देर बाद जब रंजना अंदर आई तब हमारा ध्यान भंग हुआ। वह दो गिलास दूध लिये थी जो उसने हम दोनों को ही पिलाया।
फिर सोनू को अपनी सफाई की ताकीद करके मेरी सफाई की और उस दिन यह सिलसिला वहीं ख़त्म हुआ।
यह बात पिछले साल की है दी, तब से अब तक हमें जितने भी मौके मिले हैं हमने सेक्स का भरपूर आनन्द उठाया है, उसके फोन से ही सेक्स के बारे में जितना जान सकती थी, जाना है।
और जितने आसान उपयोग में लाये जा सकते हैं, उन सबका प्रयोग किया है।
रंजना खुद से अपने सगे भाई के साथ यौन-आनन्द नहीं ले सकती थी लेकिन वह हमेशा हमें सेक्स करते देखती है और खुद अपने हाथों से उन पलों में हस्तमैथुन करती है।
हाँ कभी-कभी अवि भैया जब लखनऊ आये हैं तो उसने भी सेक्स की ज़रूरत को पूरा किया है।
सोनू को यह बात मैंने बता दी थी और अपनी बहन की हालत समझते हुए उसने भी इसे स्वीकार कर लिया था।
जब भी कभी अवि भैया आते हैं, वह खुद से कोशिश करके दोनों को ऐसे मौके उपलब्ध करा देता है कि वह अकेलेपन का मज़ा ले सकें।
सुनने में कितना अजीब और गन्दा लगता है न दी कि मैं अपने से सात साल छोटे भाई जैसे लड़के से सेक्स करती हूँ, रंजना अपने सगे भाई को सेक्स करते देखती है और उससे खुद भी डिस्चार्ज होने का रास्ता निकालती है और अपने मौसेरे शादीशुदा भाई से अवैध सम्बन्ध बनाये हुए है।
कोई समाज का ठेकेदार सुन लेगा तो हमें फांसी की सजा दे देगा लेकिन क्या कोई इस सवाल का जवाब भी देगा कि हम करें तो क्या?
ज़ाहिर है कि इतनी देर से ख़ामोशी के साथ उसकी रूदाद सुनती शीला के पास भी क्या जवाब था।
चाचा के लिंग से उठते वक़्त भी उसकी उत्तेजना अधूरी रह गई थी और अब जब तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते रानो की दास्तान ने उसमें लगी आग और भड़का दी थी, जिसके अंत के बगैर उसमें चैन नहीं पड़ने वाला था।
‘क्या हुआ दी… चुप क्यों हो?’ उसे खामोश देख कर रानों ने उसे टोका।
‘इतना सीख गई और यह न सीख सकी कि ऐसी दास्तान सुन कर इंसान की हालत क्या होगी। क्या स्खलन के बगैर मैं चैन पा सकती हूँ? क्या मैं अभी कुछ सोच-समझ सकती हूँ?’
हाँ, उसने ध्यान भले न दिया हो मगर समझ सकती थी, उसने खुद से शीला की नाइटी को खींचते हुए ऊपर कर दिया।
शीला ने खुद से नितम्ब, कमर ऊपर करते उसे नाइटी खींचने में मदद की थी।

रानो उसके वक्ष उभारों पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरने लगी। आज से पहले ऐसी हिम्मत न कभी रानो की हुई थी और न ही शीला कभी ऐसा करने की इज़ाज़त देती, लेकिन आज बात दूसरी थी।
आज उन्होंने शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था और हर वर्जना को तोड़ने की ठान ली थी तो अब क्या रोकना… अब तो हर चीज़ स्वीकार थी।
आज रानो का उसके वक्ष पे फिरता हाथ उसे भला लग रहा था और उसे खुद से उसने धकेल कर नीचे कर दिया था और अपने ही हाथों से अपने वक्ष का मर्दन करने लगी थी।
रानो ने हाथ नीचे करते उसके भगांकुर तक पहुंचा दिया था और उसकी योनि से ही रस लेकर उससे उंगलियाँ गीली करके उसे रगड़ने लगी थी।
शीला के मुख से कामुक सी सीत्कारें जारी होने लगी थीं।
यहाँ तक कि थोड़ी देर शीला के भगांकुर को रगड़ने के बाद उसने बीच वाली उंगली उसके छेद के अंदर सरका दी थी और शीला ‘उफ़ आह’ करके अकड़ गई थी।
‘दीदी, तुम्हारी झिल्ली अभी बाकी है क्या?’ उसने उंगली अंदर-बाहर करते पूछा।
‘न नहीं… बचपन में… एक… बार साइकिल… चलाते… में फट… गई थी।’ शीला ने अटकते-अटकते जवाब दिया।
रानो ने अब उंगली और गहराई में धंसा दी और अंदर-बाहर करने लगी।
शीला का पारा चढ़ने लगा, जल्दी ही स्खलन की घड़ी आ गई और मुंह से तेज़ सिसकारियाँ निकालते शीला कमान की तरह अकड़ गई और झटके लेने लगी।
फिर एकदम ढीली पड़ गई और बेसुध सी हो गई।
‘दी…’ थोड़ी देर बाद रानो ने उसे पुकारा।
‘ह्म्म्म?’ शीला ने जवाब देते हुए आँखें खोली और ठीक से ऊपर चढ़ के लेट गई।
‘देखो, अगर वर्जनाओं को लात मारनी ही है तो हमारे लिए बेहतर यही है कि हम घर में मौजूद चाचा के लिंग का उपयोग करें।
लेकिन चूंकि चाचा का लिंग ही समस्या है जिससे पार पाने के लिये हमें अपनी योनियाँ इस हद तक ढीली करनी पड़ेंगी कि समागम संभव हो सके।
और योनि ढीली करना कोई दो चार बार उंगली करने से तो हो नहीं जाएगा। इसके लिए बाकायदा हमें सम्भोग करना पड़ेगा। जैसे मैंने किया है, आज मैं तो इस हाल में पहुंच गई हूँ कि कोशिश करूं तो चाचा के साथ सहवास बना सकती हूँ।
लेकिन बात तुम्हारी है, मान लो जैसे तैसे करके घुसा ही लो तो घुसाना ही तो सब कुछ नहीं है, चाचा कोई समझदार इंसान तो है नहीं कि उसे पता हो कि कैसे करना है, कितना करना है।
वह ठहरा बेदिमाग जानवर सा… क्या भरोसा एकदम जोश में आकर सांड की तरह जुट जाये। तो समझो कि फाड़ के ही रख देगा।’
‘यह ख्याल तो मुझे भी आया था कि अगर कहीं चाचा घुसाने और करने के लिए बिगड़ गया तो संभालूंगी कैसे? ये तो ऐसा मसला है कि किसी को बुला भी नहीं सकती थी।’
‘हाँ वही तो… इसीलिये चाचा के लिंग के बारे में तब सोचना जब उसे संभाल पाने की क्षमता आ जाये। फ़िलहाल किसी ऐसे इंसान के बारे में सोचो जो तुम्हारे साथ ऐसा रिश्ता भी बना सके और हमेशा के लिए सर पे भी न सवार हो।’
‘ऐसा इंसान?’ वह सोच में पड़ गई।
‘अवि भैया जैसा जिसकी अपनी मज़बूरी हो कि खुद से कभी न सवार हो या सोनू जैसा जो तुम्हारी ज़रूरत भी पूरी कर दे और फेविकोल भी न बने।’
एक-एक कर उसके दिमाग में वह सारे चेहरे घूम गये जिनके साथ उसका उठना-बैठना था, बोलना था, मिलना-जुलना था लेकिन उन तमाम चेहरों में उसे एक भी चेहरा ऐसा न दिखा जिसपे वह भरोसा कर सके।
‘नहीं।’ उसने नकारात्मक अंदाज़ में सर हिलाते कहा- जो हैं, उनमें मुझे भोगने की लालसा रखने वाले तो कई हैं लेकिन ऐसा एक भी नहीं जिस पे मैं भरोसा कर सकूँ।’
‘फिर… घर के अंदर ही जैसे रंजना को अवि भैया उपलब्ध हैं या मुझे सोनू उपलब्ध है, ऐसा भी तो कोई नहीं… जो हमारी मुश्किल हल कर सके?’
दोनों सोच में पड़ गईं।
थोड़ी देर बाद रानो उसे अजीब अंदाज़ में देखती हुई बोली- दी, अगर तू कहे तो सोनू से बात करूं?
‘क्या!’ शीला एकदम चौंक कर उसे देखने लगी- पागल तो नहीं हो गई रानो? सोच भी ऐसा कैसे लिया तूने? मैं और सोनू… छी!’
‘दी… अब यह तुम्हारे खून में दौड़े संस्कार बोले। ज़रा बताना तो यह छी कैसे हुआ?’
‘नहीं रानो, यह नहीं हो सकता। कहाँ सोनू और कहाँ मैं? मैं भला कैसे… अरे बच्चा है वह। जब पैदा हुआ तो मैं बारह साल की थी। अक्सर मैं संभालती थी उसे जब चाची को ज़रूरत होती थी।’
‘गोद तो मैंने भी खिलाया था न उसे, मुझे भी दीदी ही कहता था, आज भी कहता है पर हमारे बीच यह रिश्ता संभव हुआ न! तो तुम्हारे साथ कौन सी ऐसी वर्जना है जो तोड़ी नहीं जा सकती।’
वह चुप रह गई।
‘सोच के देख दी, क्या बुराई है इसमें? मर्द ही है वह भी, जैसे चाचा मर्द है… हमें एक मर्द ही तो चाहिये जो हमारी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा कर सके। चाचा भी तो रिश्ते में है न? तो जब उसके साथ सम्भव है तो सोनू के साथ क्यों नहीं?’
सवाल पेचीदा था।
उसके अंदर मौजूद नैतिकता के बचे खुचे वायरस उसे कचोट रहे थे, उन वर्जनाओं की याद दिल रहे थे जिन्हें उसने बचपन से ढोया था, लेकिन अब उसमें एक बग़ावती शीला भी मौजूद थी।
जो उन वर्जनाओं से पलट कर सवाल पूछ सकती थी कि उन्होंने उसके लिए क्या सम्भावना छोड़ी है। वह जिधर भी जायेगी होगा तो सब अनैतिक ही न। तो जो चाचा के साथ हो सकता है वह सोनू के साथ क्यों नहीं?
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07-17-2020, 11:58 AM,
#35
RE: raj sharma story कामलीला
थोड़ी देर लगी उसे समझने में कि वह चूज़ करने का हक़ नहीं रखती और उसके लिए जो भी है शायद आखिरी विकल्प ही है। या अपनाओ या इस सिलसिले को भूल जाओ।
‘मगर सोनू… भला मैं उसके साथ कैसे…?’ फिर भी उसने आखिरी बार प्रतिरोध किया।
‘तो क्या सोचती हो दीदी, तुम्हारे लिए कोई सपनों का राजकुमार आएगा?’ रानो झुंझलाहट में कह तो गई मगर फ़ौरन ही अहसास भी हो गया कि उसने गलत कह दिया।
बात चुभने वाली थी, चुभी भी और चोट दिल पे लगी।
अपनी स्थिति पे उसकी आँखें छलक आईं।
वह गर्दन मोड़ कर शिकायत भरी नज़रों से रानो को देखने लगी।
‘सॉरी दी, मेरा मतलब तुम्हें चोट पहुँचाने से नहीं था बल्कि यह कहने से था कि क्या हमारे पास चुनने के लिए विकल्प हैं?’
‘सोनू तैयार होगा भला इसके लिये?’
‘हह…’ रानो एकदम से हंस पड़ी- दीदी, फितरतन आदमी जानवर होता है, जहाँ भी उसे एक अदद योनि का जुगाड़ दिखता है, वह घोड़े की तरह उस पर चढ़ दौड़ने के लिए तैयार हो जाता है। रिश्ते भला क्या मायने रखते हैं।’
वह असमंजस से उसे देखने लगी।
‘वह मन से कितना भी अच्छा हो, मगर है तो मर्द ही और भले तुम्हें हमेशा बड़ी दीदी की जगह रखा हो… मगर जब तुम पर चढ़ने का मौका मिलेगा तो इंकार नहीं करेगा। मैं कल बात करूंगी उससे, अब सो जाओ।’
कह कर वह चुप हो गई।
शीला के दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा था।
आज एक नई सम्भावना पैदा हुई थी जो भले वर्जित थी मगर उसकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकती थी।
वह काफी देर तक इन्हीं संभावनाओं को टटोलती रही, फिर आखिरकार नींद ने उसे आ घेरा।
सुबह नया दिन उसके लिए नई उम्मीदें लाया था।
वह दिन भर रोज़ के के काम निपटाते खुद को मन से इस वर्जित समागम के लिये तैयार करती रही। उसे यह ठीक नहीं लग रहा था मगर यह भी सच था कि उसके पास चुनने के लिये विकल्प नहीं था।
जैसे तैसे करके दिन गुज़रा… रात को चाचा के परेशान करने की सम्भावना इसलिये नहीं थी क्योंकि कल ही उसका वीर्यपात कराया गया था।
वह जानने के लिये बेताब थी कि रानो की सोनू से क्या बात हुई होगी… कई तरह की संभावनाओं के चलते उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
रात के खाने के बाद उसके सिवा बाकी तीनों ऊपर अपने कमरों में चले गये और रात के ग्यारह बजे रानो अपना तकिया कम्बल लिए उसके पास आई।
‘मैंने आकृति को समझा दिया है कि चाचा अब ज्यादा परेशान करता है और दीदी अकेले नहीं संभाल पाती इसलिये मैं अब से दीदी के साथ नीचे ही सोऊँगी।’ रानो ने दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।
‘सोनू से क्या बात हुई।’ शीला के लिये जिज्ञासा को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था।
‘बताती हूँ दी… सांस तो लेने दो।’ वह बिस्तर पर अपना ठिकाना बनाते हुए बोली, फिर खुद भी लेट गई और उसे भी लेटने का इशारा किया।
अजीब उधेड़बुन में फसी शीला उसके बगल में आ लेटी और उसे देखने लगी।
‘पहले मैंने रंजना से बात की थी… उसे बताना ज़रूरी था मेरे लिये। और जैसी मुझे उम्मीद थी कि सुन कर उसने राहत की सांस ली थी कि इतनी देर से सही पर दीदी की समझ में यह बात तो आई।
फिर उसके सामने ही सोनू से बात की थी, इस अंदाज़ में नहीं कि तुम सेक्स के लिये मरी जा रही हो और तुम चाहती हो कि वह तुम्हें फ़क करे आ के।
बल्कि उसे तुम्हारी मज़बूरी, तुम्हारी तड़प और बेबसी का हवाला दिया था और यह जताया था कि हम दोनों, मतलब मैं और रंजना यह चाहते हैं कि वह इस मामले में हमारी मदद करे!
मदद ज़ाहिर है कि तुम्हारी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने की थी, उसे यकीन नहीं कि तुम इसके लिये कभी तैयार होगी।
आखिर हम सबने तुम्हारे चरित्र को देखा है जाना है, कैसे सोच ले कोई कि तुम टूट गई।
मैंने उसे यकीन दिलाया कि मैं इसके लिये तुम्हें तैयार करूंगी… चाहे कैसे भी करके, बस सवाल यह है कि क्या वह इसके लिये तैयार है।
उसमें वही हिचक थी कि भला कैसा लगेगा बड़ी दीदी के साथ सम्भोग करना।
लेकिन मैं भी तो बड़ी दीदी ही थी उसके लिये। मेरे पीछे तो खुद पागल था लेकिन अब खुद की ज़रूरत पूरी होने लगी थी तो संस्कारी हिचक सामने आने लगी थी।
लेकिन फिर दिमाग ने इस सिरे से सोचना शुरू किया कि बड़ी दीदी कुंवारी हैं और अब उसे फिर एक कुंवारी योनि भोगने को मिलेगी तो आखिरकार तैयार हो गया और एक बार दिमाग ने स्वीकार कर लिया…
तो अब यह जानो कि उसे किसी चीज़ की फ़िक्र न रही होगी बल्कि दिमाग में नई योनि की कल्पनाएँ उसे और उकसा रही होंगी।’
‘भला रंजना क्या सोचती होगी… कि हम उसके भाई का इस्तेमाल कर रहे हैं।’
‘अच्छा… और वह हमें नहीं इस्तेमाल कर रहा। ताली क्या एक हाथ से बज रही है… किसने रास्ता दिखाया मुझे? तुम कुछ ज्यादा सोच रही हो दी… वह ऐसी बात सोच भी नहीं सकती।’
शीला सोच में पड़ गई।
‘फिर… कब होगा यह?’
‘आज रात ही… अभी दस पंद्रह मिनट में आएगा। हम चुपके से उसे अंदर ले लेंगे और एक घंटे बाद चला जाएगा।’
‘क्या— अभी! यहाँ!’ वह चौंक कर उठ बैठी और झुरझुरी लेती हुई बोली- नहीं, किसी को पता चल गया तो क्या सोचेगा?’
‘किसी को क्या पता चलेगा, हमारा घर जिस गली में है उसमें अंधेरा ही रहता है और कौन आता है कौन जाता है क्या पता चलता है और किसी ने देख भी लिया तो वह कौन सा अजनबी है, देखने वाला यही सोचेगा किसी काम से आया होगा।’
‘पर…’ वह उलझन में पड़ गई।
‘पर क्या? तुम ख्वामखाह उलझ रही हो। सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो, कोई बात बिगड़ेगी तो मैं अपने ऊपर ले लूंगी। तुम फ़िक्र मत करो और दिमाग सेक्स पर एकाग्र करो।’
पर यह उसके लिये आसान नहीं था, तरह-तरह की आशंकायें, संभावनायें उसे डरा रही थीं और तभी रानो के फोन पर मिस्ड काल आई।
‘आ गया… मैं उसे लेकर आती हूँ, मैं जानती हूँ कि तुम एकदम से उसका सामना नहीं कर पाओगी, इसलिये अपनी आँखों पर स्टोल बांध लो, मैं हर तरफ घुप्प अंधेरा कर देती हूँ।’
रानो उठते हुए बोली थी और उसने तेज़ी से धड़कते दिल के साथ पास ही पड़ा अपना स्टोल उठा कर अपनी आँखों पर बांध लिया था।
अब दिमाग से ही देखना था, जो भी महसूस होता उसे दिमाग के सहारे ही कल्पना देनी थी।
रानो ने कमरे से निकलते वहाँ जलते नाईट बल्ब को बुझा दिया था और बाहर निकल गई थी और एक मिनट बाद जब वापस आई थी तो उसे महसूस हुआ कि साथ में कोई और है।
रानो ने दरवाजा बंद किया होगा और अंधेरा और गहरा गया।
‘कितना अंधेरा है दी।’ उसे फुसफुसाहट सुनाई दी और वह अनुमान लगा सकती थी कि वह सोनू ही था।
‘तुझे कौन से तीर चलाने हैं जो अंधेरे में नहीं चला सकता। मेरा हाथ पकड़ ले और मुंह बंद ही रखना।’ वह उसे बिस्तर पे ले आई।
उसके बदन की अजनबी सी गंध शीला महसूस कर सकती थी और सोनू के समीप्य से उसकी धड़कनें और बेतरतीब हो उठी थीं।
‘देख सोनू, मुझे पता है कि दी कितनी मुश्किल से तैयार हुई है, पर फिर भी उसमे हिम्मत नहीं कि तेरा सामना कर सके इसलिये अंधेरा भी किया है और आँखों पे पट्टी भी बांधी है।
तुम उनकी शर्म कायम रहने दो, वह खुद से समझेगी तो पट्टी हटायें या अंधेरा दूर करें, पर तुम इसके साथ ही जो करना है करोगे और उज्जडी बिल्कुल नहीं।
दीदी को न पता है इन सब के बारे में और न ही कोई आदत है, जो भी होगा इसके लिए सब नया होगा इसलिए इत्मीनान से और कायदे से करना कि उसे ये न लगे कि उसने मेरी बात मान कर गलती की।’
‘दी… आप दोनों को कोई शिकायत नहीं होगी।’ वह आहिस्ता से बोला।
‘शाबाश! चल फिर शुरू हो जा।’
उसने धक धक करते दिल के साथ महसूस किया था कि रानो उसके साइड में अधलेटी सी बैठ गई थी और सांत्वना भरे अंदाज़ में उसका सर सहलाने लगी थी जैसे कह रही हो ‘चिंता न करना, मैं हूँ!’।
फिर उसे सोनू के सख्त हाथों की चुभन अपने सीने पर महसूस हुई… वह उसके वक्ष सहला रहा था और एक अजनबी स्पर्श को महसूस करते ही उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई।
सोनू के हाथ वह अपने सीने पर फिरते और फिर सीने से उतरते, पेट से होते, नाइटी के ऊपर से ही अपनी योनि पर रुकते महसूस किया था।
उसे तेज़ शर्म का अहसास हुआ और वह मचल कर रह गई।
उस पल में रानो ने उसे सर से ज़ोर से दबा कर जैसे इशारा किया था कि ‘खुद में समेटो मत, जो हो रहा है, उसमें मस्ती महसूस करो!’
और उसने अपने दोनों हाथ ऊपर करते रानो को पकड़ लिया था।
कुछ देर सोनू के हाथ को योनि पर फिसलते देने से, उसमे अपनी शर्म को उतारने का मौका मिल गया और वह उस स्पर्श में मस्ती का अहसास करने लगी और उसके मुख से सिसकारी छूट गई।
इस सिसकारी को न सिर्फ सोनू ने महसूस किया बल्कि रानो ने भी महसूस किया और अपने हाथ से उसका हाथ ऐसे दबाया जैसे प्रोत्साहित कर रही हो।
फिर सोनू का स्पर्श गायब हो गया और उसने महसूस किया कि उसकी नाइटी ऊपर सरक रही है। वह जांघों तक उठ कर फंस गई और उसे खींचते देख उसने अपने कूल्हे ऊपर उठा लिये।
बाहर की ठंडी हवा का स्पर्श उसने पिंडलियों से लेकर अपने पेट तक अनुभव किया लेकिन अब भी नाइटी के उठने का सिलसिला अभी थमा नहीं था।
उसे पीठ की तरफ से रानो ने सपोर्ट करके थोड़ा ऊपर किया था जिससे ऊपर उठती नाइटी उसके गले तक पहुँच गई थी और अब उसके वक्ष भी हवा के उस ठन्डे स्पर्श को महसूस कर सकते थे।
यह तो वह अब आदत बना चुकी थी कि सोने से पहले अपने अंतः वस्त्रों को वह उतार देती थी।
उसने सोनू के हाथों को अपनी पिंडलियों पर फिरते महसूस किया और उसके पूरे जिस्म में एक मस्ती भरी सरसराहट दौड़ने लगी।
पहले पिंडलियां, फिर जांघें और जांघों का अंदरूनी भाग, कुछ भी उस छुअन से बाकी न रहा और उसने इस स्पर्श की सरसराहट अपनी योनि में गहरे तक महसूस की।
उसकी जांघों को सहलाते सोनू अपने हाथ बिना उसकी योनि को छुआए उसके पेट से गुज़ारते, उसके वक्ष उभारों पर ले आया।
वह एक कसक, एक तड़प सी महसूस करके रह गई।
जैसे उस घड़ी खुद से चाह रही हो कि वह उसकी योनि को छुए जो उसने नहीं छुई थी।
जबकि वह बड़े आहिस्ता-आहिस्ता उसके स्तनों का मर्दन करने लगा था और चूचुकों को चुटकियों से मसलने लगा था।
उसने अपनी नस-नस में एक अजीब सी सनसनाहट महसूस की जो दिमाग पर इस तरह हावी हो रही थी जैसे वह किसी गहरे नशे के ज़ेरे असर होती जा रही हो।
फिर उसके हाथ हट गए और उसकी रगों में होती अकड़न थम गई। कपड़ों की सरसराहट से उसने महसूस किया कि वह अपने कपड़े उतार रहा था।
कुछ पलों के ब्रेक के बाद उसने सोनू के हाथों को फिर अपनी कमर पर महसूस किया जो वहाँ ज़ोर लगा रहा था।
उसके ज़ोर को समझते हुए वह तिरछी हुई और फिर सोनू ने उसे उल्टा कर दिया।
अब इस हालत में उसकी पीठ वाला हिस्सा उसके सामने था।
हालांकि इस हालत में भी उसने रानो के हाथ थाम रखे थे और ऐसा जता रही थी जैसे उसे रानो की हर हाल में ज़रूरत है।
सोनू उसकी जांघों के ऊपर बैठ गया था। वह उसके नितंबों और जांघों की छुअन को साफ़ महसूस कर सकती थी। फिर उसके हाथ शीला ने अपने नितंबों पर फिरते महसूस किये।
वह दोनों हाथों से कुछ सख्ती से उन्हें दबा रहा था, रगड़ रहा था और इस तरह फैला रहा था जैसे पीछे से ही दोनों छेदों को देख लेना चाहता हो… वहाँ घिरे अंधेरे के बावजूद।
उसकी रगों में फिर मस्ती भरी अंगड़ाइयाँ पैदा होने लगीं।
काफी देर उसके नितंबों को मसलने के बाद वह अपने हाथ फिसलाते उसकी कमर और कन्धों पर चलाने लगा और इस क्रम में अपने जिस्म का भार उसके शरीर पर डालता चला गया।
यहाँ उसके भार से ज्यादा मायने वह नग्न स्पर्श रखता था जो सोनू के सीने और पेट की तरफ से उसकी पीठ को मिल रहा था और उससे ज्यादा रोमांचित उसे अपने नितंबों के बीच वह सख्त स्पर्श कर रहा था जो सोनू के लिंग का था।
फिर उसका पूरा भार उसने अपने शरीर पर अनुभव किया, वह उसके शरीर पर अपना शरीर रगड़ रहा था और यह रगड़ उसके सख्त लिंग की चुभन के साथ और कामोत्तेजना पैदा कर रही थी।
इसके बाद सोनू ने फिर उसे पलट लिया और आधा बिस्तर और आधा उसके शरीर पर चढ़ आया। अब उसका लिंग शीला को अपनी कमर पर महसूस हो रहा था।
अचानक उसने गर्म गर्म सांसें अपने चेहरे पर महसूस कीं… फिर दो होंठों का स्पर्श अपने होंठों पर…
कई ठंडी-ठंडी लहरें जैसे ऊपर से नीचे तक दौड़ीं और पहली बार उसने किन्ही होंठों को इतने नज़दीक पाया।
वे उसके होंठों को छू रहे थे, उन्हें रगड़ रहे थे और खोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्त्रीसुलभ लज्जा और संकोच उन्हें बांधे हुए था।
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07-17-2020, 11:59 AM,
#36
RE: raj sharma story कामलीला

भले उसके दिमाग में छोटे बड़े का फर्क निकल गया था पर वर्जना अभी भी कहीं बाकी थी जो उसके होंठों को बंद गठरी में बांधे थी। सोनू अपने गीले होंठों से उन्हें कुचल रहा था, मसल रहा था और अपने होंठों में खींच कर चूसने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन वह सहयोग नही कर पा रही थी।
ऐसा नहीं था कि उसे बुरा लग रहा हो मगर वह उस झिझक से नहीं जीत पा रही थी जो उसके दिल-दिमाग पर अभी तक हावी थी।
फिर वे दो गीले होंठ उसके होंठों को छोड़कर नीचे उतरते गये, पहले उसकी ठुड्डी पर, फिर गर्दन पर और फिर नीचे जहाँ से उसके उभार शुरू होते थे…
वे गीली गीली छुअन देते उनकी चोटियों पर जा थमे थे और चोटियों के गिर्द गोल घेरा बनाते फिर रहे थे।
उसने अपने निप्पलों में कड़ापन आता अनुभव किया था और जैसे वे खुद उन होंठों में जाने को आतुर हो गए थे।
फिर उन होंठों से एक जीभ बरामद हुई जो उसके एरोला पर फिरने लगी।
उसके बदन में दौड़ता नशा और बढ़ गया।
जीभ एरोला से होती उन चुचुकों पर चढ़ आई और उन्हें लपेटती फिरने लगी।
ऐसा लगा जैसे उसके बदन में उन निप्पलों से लेकर योनि की गहराइयों तक करेंट की धारा प्रवाहित होने लगी हो।
वह ऐंठने लगी, मचलने लगी।
उसने अपना एक निप्पल सोनू के मुंह में जाते महसूस किया और एकदम से गनगना कर ज़ोर की ‘आह’ कर बैठी, जिस पर बाद में उसे खुद शर्म आई।
‘दीदी के निप्पल कितने मोटे हैं।’ उसने चूषण के बीच में आवाज़ सुनी।
वह समझ न सकी कि यह तारीफ थी या बुराई। निप्पल का मोटा होना अच्छा था या ख़राब…
लेकिन प्रत्युत्तर में रानो सिर्फ ‘हूँ’ करके रह गई।
दोनों चूचुकों को चुसाते उसने अनुभव किया था कि उसकी योनि से उस रस का रिसाव होने लगा है जो इस बात का सूचक था कि वह अब समागम को आतुर है।
लेकिन समागम करने वाला तो बड़े इत्मीनान से उसके वक्ष से खेल रहा था।
फिर उसने सोचा कि अच्छा ही है यह खेल जितना लंबा चले उतना ज्यादा मज़ा।
आखिर इस सिलसिले का अंत हुआ और वह उसके चूचुकों को छोड़ कर नीचे उतरने लगा और उसके सीने के नीचे हर हिस्से पर अपनी जीभ की छुअन देते, उसके पेट तक पहुंच गया।
उसकी जीभ शीला की नाभि के गड्ढे से किलोलें करने लगी।
उसमें और सिहरनें दौड़ने लगीं.. और जब योनि के ऊपर मौजूद घने बालों से गुज़र कर नीचे गीली हुई पड़ी योनि तक पहुँचा तो इस सिहरन की इन्तहा हो गई।
वह खुद से महसूस कर सकती थी कि उसके भगोष्ठ गीले हुए पड़े थे और वह उन पर बाहर से ही जीभ चलाता, अपनी लार से और गीला करने लगा।
फिर उसने उंगलियों से योनि के होंठ खोले थे और अंदर के नर्म और गर्म भाग में उंगली फिराने लगा।
उसके पूरे शरीर में ऐसी तेज़ झनझनाहट पैदा हुई कि जिस्म अकड़ गया।
सोनू उंगली ऊपर-नीचे करके, फिर बीच वाली उंगली योनि के सबसे निचले सिरे पर मौजूद छेद में थोड़ी दूर तक उतार ले गया और अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि की कलिकाओं को चूसने-खींचने लगा।
उन पलों में उसे ऐसा लगा जैसे उसका खुद पर अब कोई नियंत्रण न बाकी रह गया हो और उसने रानो को छोड़ दिया और हाथ नीचे करके बिस्तर की चादर ऐसे मुट्ठियों में दबोच ली जैसे अपनी ऊर्जा उसमें जज़्ब कर देना चाहती हो।
कुछ देर उन कलिकाओं को खींचने चूसने के बाद सोनू अपनी जीभ की नोक से उसके भगांकुर को छेड़ने दबाने और खोदने लगा।
उसके शरीर में दौड़ती लहरें और तेज़ हो गईं।
जबकि सोनू की उंगली लगातार अंदर-बाहर हो रही थी।
‘दीदी की झिल्ली है क्या?’ अचानक उसने मुंह उठा कर पूछा।
‘नहीं, बचपन में साइकलिंग की नज़र हो गई।’ जवाब रानो ने दिया था।
फिर उंगली और गहरे तक धंसती गई और जितनी जा सकती थी पूरी अंदर चली गई।
शीला की तड़प और बढ़ गई… उसके दिमाग में वह सब चल रहा था कि कैसे उसने रानो के साथ पहला सम्भोग किया था।
वह भी खुद को उसी मनःस्थिति में पा रही थी कि जल्दी से सब हो जाये, सोनू एकदम उसकी योनि में अपना लिंग घुसा दे और उसे इतने धक्के लगाये कि उसकी बरसों की चाह पूरी हो जाये।
लेकिन सोनू तब नया था, अनाड़ी था जबकि अब वह एक अनुभवी खिलाड़ी था, उसमें अधीरता लेशमात्र भी न रही थी और सब इतने सब्र के साथ कर रहा है जैसे…
जैसे इस सिलसिले का कोई अंत नहीं करना चाहता हो!
जैसे उसे बस तड़पाते रहना चाहता हो।
‘अब करो भी।’ अचानक उसे रानो की सख्त गुर्राहट सी सुनाई दी।
रानो उसे बेहतर समझ सकती थी कि वह किस हाल से गुज़र रही थी।
‘दीदी, मेरा भी तो तैयार करो।’ उसे सोनू की बेशर्म बात सुनाई दी।
‘वह दी से नहीं होगा।’ रानो ने टालने वाले अंदाज़ में कहा।
‘तो आप करो न।’ सोनू ने ज़िद की।
फिर उसने बिस्तर पर खिसकने की सरसराहट महसूस की और यह महसूस किया जैसे सोनू अब उसके सीने की तरफ आ गया हो।
इसके बावजूद वह अब ऊपर की तरफ से उसकी योनि से मुंह भी लगाए था और उंगली से योनिभेदन भी कर रहा था।
लेकिन अब उसे एक नई किस्म की आवाज़ अपने चेहरे के पास सुनाई देने लगी थी जैसे मुंह से कोई चीज़ चूसी जा रही हो।
इतनी नादान नहीं थी कि समझ न सकती… जो वह नहीं कर सकती थी वह रानो कर रही थी, वह सोनू का लिंग चूषण कर रही थी।
शुरुआत में उसमे वितृष्णा के भाव पैदा हुए लेकिन जल्दी ही योनि से उठती सिहरनों ने उसकी विचारधारा बदल दी।
एक मर्द अगर किसी स्त्री की योनि को अपनी जीभ से चूस सकता है तो स्त्री के लिये वही चीज़ कैसे वर्जित हो गई।
हालांकि अभी वह खुद को इसके लिए तैयार नहीं पाती थी लेकिन रानो को लिंगचूषण करते देखना चाहती थी, पर पट्टी हटाने की भी हिम्मत नहीं थी।
फिर वह आवाज़ें थमी और एक बार फिर सरसराहट हुई और उसने महसूस किया कि सोनू उसकी टांगों के बीच आ बैठा हो।
तो वक़्त आ गया अब उसके पहले सम्भोग का।
उसने मानसिक रूप से खुद को लिंग के स्वागत और भेदन के लिये कर लिया।
उसने दरवाज़े पर मेहमान की छुअन महसूस की और वह परदे सरकाता हुआ अंदर झाँका, कुछ सेकेंड उसने नीचे से ऊपर चलते-फिरते जैसे टोह ली हो।
फिर उसने योनि के छेद पर उसके शिश्नमुंड का दबाव महसूस किया और उसने दोनों हाथों से उसकी जांघों के निचले हिस्से को सख्ती से थाम लिया।
वह परिपक्व थी, दर्द को ऐसे क्षणों में तवज्जोह नहीं देना चाहती थी इसलिये दिमाग से हर पल में आनन्द अनुभव करना चाहती थी।
फिर ऐसा लगा जैसे वह उसके संकुचित से छेद पर गहरा दबाव डाल रहा हो, कसी हुई दीवारें फैल रही हों।
उसने उन दीवारों को ढीला कर दिया और एकदम ऐसा लगा जैसे बंधन टूट गया हो।
जैसे रबर का छल्ला एकदम खिंच कर फैल गया हो और एक मोटा चिकना ऑब्जेक्ट अंदर प्रवेश कर गया हो।
दर्द की एक तेज़ लहर उसके दिल दिमाग को हिला गई।
उसके मुख से एक ज़ोर की ‘आह’ ख़ारिज हुई थी और उसने एक हाथ से तकिये और दूसरे हाथ से रानो की बांह दबोच ली थी और उस दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी थी।
पर कुछ भी था, वह उम्र के उस दौर में नहीं थी जहाँ ऐसे वक़्त में लड़की तड़पने मचलने लगती है।
इसका कारण भी था, कि कम उम्र में योनि की मांसपेशियाँ काफी सख्त होती हैं और जब उन पर लिंग के प्रथम प्रवेश का दबाव पड़ता है तो वे खिंचते वक़्त ज्यादा तकलीफ देती हैं।
जबकि उम्र बढ़ने के साथ उन्हीं मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ जाता है और वे ढीली हो जाती हैं। जिस दर्द को झेलने में रानो कुछ वक़्त के लिये मूर्छित हो गई थी, उसने वह दर्द झेल लिया था।
सोनू ने उसके घुटनों से पकड़ नहीं हटाई थी मगर शीला को मचलते या उसे परे धकेलते न पाकर पकड़ ढीली ज़रूर कर दी थी और उसे यह भी समझ में आ गया था कि शीला वैसे नहीं रियेक्ट करेगी जैसे वह अपेक्षा कर रहा था।
उसने लिंग को आधी दूरी पर ही रोक लिया था और योनि की मांसपेशियों को पूरा मौका दे रहा था कि वे उसके साइज़ के हिसाब से एडजस्ट हो सकें।
साथ ही उसने अपने हाथ शीला के घुटनों से हटा कर एक हाथ से उसके वक्ष को मसलने लगा था तो दूसरे हाथ से उसके भगांकुर को रगड़ने लगा था।
जबकि रानो अपने एक हाथ से शीला के सर को सहलाती उसे हिम्मत बंधाने का अहसास पैदा कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके एक वक्ष को नर्मी से सहला रही थी।
उन दोनों की ही कोशिशों से वह जल्दी ही इस झटके से उबर गई और उसने महसूस किया कि उसकी योनि में उठी दर्द की लहरें अब ठंडी पड़ रही थीं।
उसके चेहरे पर राहत के आसार आते देख सोनू ने लिंग को पीछे खींचा और शिश्नमुंड तक बाहर निकाल कर फिर वापस अंदर ठेल दिया।
सख्त दीवारों की चरमराहट में उसने दर्द की आमेज़िश फिर महसूस की लेकिन इस बार वह बर्दाश्त के लायक था।
उसे पता था कि योनि की बनावट उलटी बोतल जैसी होती है। शुरुआत में बोतल के मुंह की तरह संकरा मार्ग होता है और संवेदना पैदा करने वाली सारी मांसपेशियाँ इसी कुछ इंच के मार्गे में होती हैं।
इसके आगे योनि खुल कर फैल जाती है, अंदर उसकी गहराई शरीरों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है मगर यह तय है कि दर्द का रिश्ता इसी शुरुआती मार्ग से होता है।
लिंग की लंबाई कई तरह के आसनों के लिये मैटर कर सकती है लेकिन सम्भोग के लिये कोई मैटर नहीं करती।
जो लिंग आधा घुसने में जितना दर्द देगा उतना ही पूरे में भी महसूस होगा।
योनि के लिये लिंग की मोटाई मैटर करती है, जितना ज्यादा मोटा लिंग, शुरुआत में उतना ही ज्यादा दर्द और योनि के ढीली हो जाने पर शायद मज़ा भी कुछ ज्यादा हो जाता हो।
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07-17-2020, 11:59 AM,
#37
RE: raj sharma story कामलीला
सोनू इतना ज्ञानी नहीं था, आधे लिंग को ही अंदर बाहर कर रहा था और हर धक्के के साथ लिंग को दो सूत ज्यादा ठेल देता था और जल्दी ही उसने लिंग को जड़ तक शीला की योनि में घुसा दिया।
जैसा कि उसे अंदाज़ा था, कोई अतिरिक्त दर्द न हुआ और जो था भी वो अब धीरे-धीरे मन्द पड़ता लगभग नगण्य हो चला था।
जब एक बार गाड़ी ठीक रफ़्तार में दौड़ पड़ी तो उसे उस सुख की अनुभूति हुई जिसके लिये वह तड़प रही थी, जिसके लिये उसने वर्जनाओं को ठोकर मारी थी।
रग-रग में हर धक्के के साथ ऐसी आनन्द की लहरें दौड़ रही थीं जिन्हें वह बस महसूस कर सकती थी, बयान नही कर सकती थी।
अंधेरे कमरे में उन दोनों की भारी सांसों के साथ योनि और लिंग के समागम की मधुर आवाज़ गूंज रही थी।
सोनू चाहता था कि वह किसी और आसन में आये लेकिन उसके हाथ के इशारे के बाद भी शीला ने सकारात्मक प्रतिक्रिया न दी तो उसने भी ज्यादा ज़ोर न दिया।
बस इतना किया कि जब यूँ उकड़ूं बैठे धक्के लगाते वह थक गया तो उसे बिस्तर के किनारे खींच लाया और खुद नीचे उतर कर खड़ा हो गया।
अब इस पोजीशन में वह ज्यादा थके बिना और ज़ोर से धक्के लगा सकता था।
उसने लिंग को खुल चुकी शीला की योनि में घुसाया और एक लयबद्ध ताल पर उसकी कमर थिरकने लगी। कमरे में समागम की वह मधुर आवाज़ फिर जारी हो गई जो शीला सुनने को बेइंतिहा तरसी थी।
अब उसने बिस्तर या रानो को पकड़ने की कोशिश नहीं की, बल्कि हर धक्के पर हिलते अपने वक्ष उभारों को उसी ताल पर सहलाने लगी थी।
रानो उन पलों में उसके लिए नगण्य हो गई थी।
वह तरसी थी… तड़पी थी, कब से इस पल के लिए बेक़रार थी… जल्द ही उसकी उत्तेजना अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगी।
उसने अपनी नसों में वह मादक ऐंठन महसूस की जो उसे निचोड़ देना चाहती थी और उसकी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं। कमरे की सरहदों को तोड़ने लगीं।
फिर चरम पर पहुँचने के सुख ने उसे बेलगाम कर दिया। वह खुद से अपनी कमर ऊपर उठा-उठा कर सोनू के लिंग को अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी और साथ ही आवाज़ों पर भी नियंत्रण न रहा।
फिर ऐसा लगा जैसे उसके पेट कि निचले हिस्से की मांसपेशियाँ एकदम सिकुड़ कर फैल गईं हों और उसके अंतर से कोई लावा सा फूट पड़ा हो।
शरीर को एक तेज़ झटका लगा और स्खलन के उन क्षणों में वह कांपने लगी।
योनि की मांसपेशियाँ बार-बार फैलने सिकुड़ने और सोनू के लिंग को भींचने लगीं।
योनि का यह संकुचन और अंदर से उठती भाप ने सोनू के लिंग को भी फुला दिया और वह भी कुछ ऐसे ज़ोरदार धक्कों के साथ, जिन्होंने शीला को हिला दिया… फट पड़ा।
उसने अपने अंतर में उसके लिंग से निकलते गर्म-गर्म वीर्य का अनुभव किया और सोनू किसी जानवर की तरह गुर्राता हुआ उसके ऊपर ढेर हो गया और उसे स्खलन के अंतिम पलों में इतने ज़ोर से भींच लिया कि उसकी हड्डियाँ कड़कड़ा उठीं।
जब यह गुबार थमा तो वह शीला के ऊपर से हट कर बगल में ढुलक गया और अपनी उखड़ी उखड़ी सांसें दुरुस्त करने लगा।
कई मिनट लग गये उसे खुद को संभालने में… दिमाग में चलती सनसनाहट से लड़ कर जीतने में और जब इस अवस्था से बाहर आ सकी तो आसपास के माहौल का अहसास हुआ।
कमरे में छाया अंधेरा और सन्नाटा महसूस हुआ, सिरहाने परछाईं की तरह पड़ी रानो महसूस हुई और अपने पास ही चित पड़ा सोनू महसूस हुआ।
वह एकदम उठ बैठी और सिरहाने सिमट आई… आँख से बंधा स्टोल उसने उतार फेंका था।
उसे एकदम से संज्ञान हुआ कि अब वह पहले वाली कुंवारी शीला न रही थी, उसका शील भंग हो चुका था और यह समाज के बनाये किसी नियम के अन्तर्गत नहीं हुआ था बल्कि प्रकृति के बनाये नियम के अन्तर्गत हुआ था।
आज उसने सामाजिक नियमों की अनदेखी की थी, बड़े बूढ़ों की निर्धारित वर्जनाओं को तोड़ा था, अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था।
उसे अपराधबोध की अनुभूति होने लगी।
जो मज़ा, जो अकूत आनन्द अभी कुछ क्षण पहले उसने महसूस किया था, वह दिमाग से निकल गया और रह गई तो खुद की बगावत और इस अपराध का अहसास कि उसने मर्यादा तोड़ी थी।
सोचते-सोचते उसकी आँखें भीग गईं और सांसे बेतरतीब होकर सिसकियों में बदल गईं।
‘क्या हुआ दी?’ उसके बदन की कंपकंपाहट महसूस कर के रानो बोल पड़ी।
‘मम्म… मैं पापिन हूं… सोनू, मेरे भैया… मुझे माफ़ कर दे।’ उसने सिसकियों के बीच कहा।
‘दीदी, यह क्या कह रही हो?’ ज़ाहिर है कि सोनू के लिये यह अनपेक्षित था, तो वह सकपका कर उठ बैठा- दीदी!
रानो उसके दिमाग में चलते झंझावात को बेहतर समझ सकती थी, उसने अपनी बांहों में शीला को संभाल लिया और थोड़ा सहारा मिलते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ी।
‘दीदी!’ सोनू भी उसके पास आ गया- तुम रो क्यों रही हो… तुमने कोई पाप नही किया। यह सही है या गलत… यह कौन तय करेगा?’
‘भगवान्…? क्या वह सब नहीं देख रहे।’
‘देख रहे तो उन्होंने यह अन्याय किया ही क्यों… दुनिया में ढेरों लोगों को शरीर का सुख जायज़ तरीके से दिया और ढेरों को वंचित कर दिया। जिन्हें वंचित कर दिया, क्या उनके लिये कोई रास्ता सुझाया।’
‘नहीं पता… पर आज जो हुआ वह गलत है।’
‘दीदी… कुछ नहीं गलत है। जिन्हें गलत कहना है वे ही आकर बता दें कि इतनी उम्र तक बिना शादी के बैठी रहने वाली लडकियाँ, औरतें आखिर करें भी क्या?’
सोनू उम्र में छोटा था लेकिन फिर भी इस किस्म की गंभीर बातें समझता था।
उससे सान्त्वना मिली तो शीला का सुबकना कम होने लगा।
सोनू ने रानो की जगह खुद उसे बाहों में ले लिया और उसका सर अपने कंधे से टिकाये, उसकी पीठ सहलाने लगा।
वह वही सब शब्द दोहराने लगा जो वह रानो के मुंह से सुनती आ रही थी।
कहा नहीं जा सकता कि यह उसकी खुद की सोच थी या उसकी सोच पर रानो और रंजना की छाप।
पर उसके शब्द शीला के विचलित मन को सुकून दे रहे थे और उसकी सिसिकियाँ मद्धम पड़ते-पड़ते ख़त्म हो गई थीं।
जब आप बिना कपड़ों के सम्पूर्ण नग्नता से विपरीत लिंगी शरीर के इतने निकट हों और शरीर घर्षण का अनुभव कर रहा हो तो भावनाएं बदलते देर नहीं लगती।
खुद उन दोनों को भी यह अहसास नहीं हो सका था कि कब शीला अपने अपराधबोध से मुक्त हो गई और कब सोनू उसे सांत्वना देने, समझाने की ज़िम्मेदारी से बरी हो गया।
दोनों ने बस यह महसूस किया था कि सोनू के उसकी पीठ पर फिरते हाथ गर्माहट का अहसास दे रहे थे और सोनू ने यह महसूस किया था कि उससे रगड़ता शीला का जिस्म उसे उत्तेजित करने लगा था।
उसने कंधे पर टिका शीला का आंसुओं से भीगा चेहरा उठा कर आंसू पोंछे तो उसके होंठों ने सोनू को जैसे किसी चुम्बक की तरह खींच लिया।
शीला के गालों पर होंठ फिराते वह उसके होंठों तक पहुँचा तो इस बार वह पहले की तरह बंद न रहे, बल्कि उन्होंने पूरे उत्साह से उनका स्वागत किया।
और वे एक प्रगाढ़ चुम्बन में लग गये।
शीला की मनोदशा अजीब हो रही थी, कहीं न कहीं उसके मन में गलत और सही की जंग अब भी जारी थी, मगर जो हो रहा था, उसके आकर्षण से खुद को मुक्त नहीं कर पा रही थी।
इस बार खुद से उसने सोनू के होंठों को चूसा था और जब सोनू ने जीभ को उसके होंठों तक पहुँचाया था तो उसने जीभ को भी चूसने से गुरेज न किया था।
कहीं न कहीं शीला को अहसास इस बात का भी था कि जब वर्जित फल खाना ही है तो अगर-मगर और इसे-उसे छोड़ कर क्यों खाया जाये।
यह प्रगाढ़ चुम्बन लम्बा चला और उन्होंने न सिर्फ एक दूसरे के होंठ चूसे बल्कि जीभ भी उसी अंदाज़ में चूसी।
रानो अब जैसे दोनों के लिये अप्रासंगिक थी और उसे इस स्थिति से आपत्ति भी नहीं थी, वह बस अपनी दीदी का सुख चाहती थी।
इस गहरे चुम्बन ने दोनों की भंगिमाएं बदल दीं… सोनू ने उसे खींच कर अपनी गोद में ऐसे बिठा लिया कि उसके वक्ष सोनू के सीने से दबने लगे और शीला के नितम्ब उसकी जांघों में टिक गये।
चुम्बन अब भी जारी था लेकिन शीला ने एक हाथ से उसकी पीठ का सहारा लेते हुए, दूसरे हाथ से उसके मुरझाये पड़े लिंग को सहलाना शुरू कर दिया था।
जबकि सोनू उसके दोनों नितंबों को अपने हाथों से मसल रहा था, दबा रहा था और उन्हें एक दूसरे के सामानांतर खींचने की कोशिश कर रहा था।
फिर इसी अंदाज़ में बैठे-बैठे उसने शीला को थोड़ा पीछे की तरफ झुकाया और एक हाथ से उसके एक वक्ष को मसलते हुए दूसरे को मुंह से चूसने चुभलाने लगा।
शीला के खून में चिंगारियाँ उड़ने लगीं।
उसने अपनी योनि में वही गर्म तरंगें उभरती महसूस की जो थोड़ी देर पहले तब महसूस की थी जब लिंग प्रवेश नहीं हुआ था।
दोनों बेताबी से एक दूसरे के अंगों को मसलते रहे और सोनू ने शीला को झुकाते हुए अपने पंजों पर गिरा लिया था और उसकी नाभि में जीभ चलाने लगा था।
दोनों हाथों से उसके स्तनों का भरपूर मर्दन करते हुए उसने शीला की पीठ के नीचे से अपने पांव निकाल लिये और उसे बिस्तर पर टिका दिया।
खुद पीछे खिसकते शीला के पैरों के बीच में आ गया और उसके घुटनों को मोड़ते हुए दोनों पांवों को फैला दिया, जिससे शीला की योनि खुल कर उसके सामने आ गई।
और वह फिर ज़ुबान से उसके बाहरी किनारों से खिलवाड़ करने लग गया।
नसों में ऐंठन होने लगी और ऐसा लगने लगा जैसे कोई अपराधबोध नहीं, कोई वर्जना नहीं, बस आनन्द ही आनन्द… अकूत आनन्द!
वह खुद अपने हाथों से अपने कुचों का मर्दन करने लगी।
सोनू ने उसकी उत्तेजना को जब उस स्तर पर पहुँचा दिया कि शीला के दिमाग में सिवा सम्भोग के कुछ बाकी न रहा तो वह उसके बगल में इस तरह लेट गया कि उसका सर शीला के पैरों की तरफ हो गया और पैर शीला के सर की तरफ।
इस तरह वह शीला की साइड से सट कर सीधे हाथ से उसके वक्ष दबाने लगा तो उलटे हाथ से शीला की जांघ का सहारा ले कर उसकी योनि पर जीभ चलाने लगा।
इस तरीके का जो मुख्य कारण था वह यह था कि इस तरह उसका अर्ध उत्तेजित लिंग अब शीला के मुंह के पास हो गया था। इच्छा स्पष्ट थी जिसे समझना शीला के लिये कोई मुश्किल नहीं था।
पर उसने खुद से सवाल किया… क्या वह ऐसा कर पाने में सक्षम थी?
लेकिन जब वह कर रहा था तो क्या शीला का इन्कार उसे बुरा नहीं महसूस होगा।
उसने थोड़ा तिरछा होते हुए अपने सीधे हाथ से उसे थाम लिया और सहलाने लगी।
पहले आँखों पर पट्टी बंधी थी लेकिन अब आँखें खुली थीं… भले अंधेरा था लेकिन आँखे इस अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थी और वह धुंधला ही सही उसे देख सकती थी।
वह सात इंच के केले जितने साइज़ का था, चाचे के लिंग से उसकी लंबाई भी कम थी और मोटाई भी, मगर फिर भी आकर्षक था और योनिभेदन के लिये एकदम उपयुक्त था।
वह उसे सूंघने के लिए नाक के पास ले आई, अजीब सी सोंधी-सोंधी गंध का अहसास हुआ, जिसने उसमें और उत्तेजना का संचार किया।
नीचे से जो तरंगें उठ रही थीं, वे हर बाधा के बैरियर गिराये दे रही थीं।
खुद से उसका दिल होने लगा कि वह भी उसे मुंह में रखे।
उसने जीभ निकाल कर उसके अग्रभाग को छुआ।
अजीब सा नमकीन स्वाद महसूस हुआ… उसने मन की वर्जनाओं को किनारे कर के खुद से सवाल किया… क्या उसमें ऐसा कुछ था जो अस्वीकार्य कर देने लायक हो?
जब तक आप किसी चीज़ को मन से स्वीकार नहीं कर पाते, वह आपके लिये घृणित हो सकती है लेकिन जैसे ही आप स्वीकार करते हैं, कोई घृणा बाकी नहीं रह जाती।
पहली बार में उसने उस नमकीन ज़ायके को थूक में उड़ा दिया लेकिन फिर से ज़ुबान लगाने पर जो स्वाद महसूस हुआ, उसने स्वीकार कर लिया।
उसने होंठ खोले और लिंग के अग्रभाग को अंदर समेट लिया। उसे अहसास था कि रानो उसे देख रही होगी मगर अब वह खुद में कोई लाज का चिह्न नहीं पा रही थी।
लिंग के ऊपर होंठों का छल्ला बनाये उसने वहाँ तक अपने होंठ उतारे जहाँ तक शिश्नमुंड उसके हलक से न जा टकराया, फिर वापस खींच लिया।
बचाते-बचाते भी लिंग जीभ से स्पर्श किया और जीभ ही तो स्वाद का पता बताती है, वह जैसे पूरा नमकीन हो रहा था।
फिर उसकी सिमटी ज़ुबान खुल गई और मुंह में मौजूद लिंग पर लिपट गई। लसलसा नमकीन स्वाद उस रस की बिना पर था जो खुद उसकी योनि और सोनू के लिंग से निकला था।
सोनू ने शायद बिस्तर की चादर में ही पोंछ दिया था, लेकिन धोया तो नहीं ही था और इसीलिये उसे यह स्वाद आ रहा था, मगर जब तक वह इस विषय में सोच पाती, स्वाद जीभ पर घुल गया।
उसे उबकाई सी आई… बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला और लिंग बाहर निकाल कर थूकने लगी।
लेकिन उसे फिर से मुंह में लेने का लोभ संवरण न कर सकी… उसने पास पड़े अपने स्टोल से उसे पौंछा और फिर से हाथ में थाम लिया।
ऐसा नहीं था कि सोनू उसकी हरकत से बेखबर था लेकिन उसे अंदाज़ा था कि किसी भी लड़की के लिये मुख मैथुन पहली बार में आसान नहीं होता।
वह उसकी योनि को छेड़ते-गर्म करते उसे पूरा मौका दे रहा था कि वह अपने अंतर के विरोध और बाधाओं से पार पा ले।
शीला ने उसके लिंग को फिर से मुंह में लिया और दबा कर वैसी ही अवस्था में रुक कर यह देखने लगी कि अब उसका शरीर कैसे प्रतिक्रिया कर रहा है।
रोके रखने से तो कुछ नहीं हुआ मगर जैसे ही उसे चारों तरफ से जकड़ कर अंदर बाहर करने की कोशिश में ज्यादा हलक तक ले गई फिर उबकाई सी आई और उसने लिंग को फिर मुंह से निकाल लिया।
उसे इतनी समझ थी कि जो रास्ता उसने वर्जनाओं को तोड़ कर खोला था वहाँ ये सब क्रियाएँ सामान्य हैं और आज नहीं तो कल उसे सब करना ही है तो किसी ज़िद पर कायम क्या रहना।

उसने बाहर से ही उसके लिंग पर जीभ चला कर उसे चाटना शुरू किया।
ये शुरुआत करने के लिए उसे ज्यादा बेहतर तरीका लगा।
वह उसके अंडकोषों को सहलाती लिंग को बाहर से ही चरों तरफ से चाटने लगी।
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07-17-2020, 11:59 AM,
#38
RE: raj sharma story कामलीला
सोनू की जीभ उसके अंतर की गहराइयों में अब कुरेदने लगी थी जिससे उसकी रगों में उड़ती चिंगारियाँ अपने उफान पर पहुँच रही थीं।
थोड़ी देर की ऊपरी चटाई के बाद शीला ने उसे फिर मुंह के अंदर समेट लिया और इस बार ज्यादा गहराई तक ले जाने के बजाय आधे लिंग को ही चूसने लगी।
इस बार उसे उबकाई न आई और ये चूषण खुद उसे इतना भाया कि उसने सोनू के तिरछे शरीर को धकेलती उसे चित कर लिया और खुद अपने घुटने उसकी पसलियों के आसपास मोड़ते उसके ऊपर आ गई।
अब उसका मुंह ठीक सोनू के लिंग के ऊपर था और सोनू के मुंह के ठीक ऊपर उसकी योनि… सोनू ने उसके नितंबों को सहलाते उसे थोड़ा नीचे करके अपनी सुविधानुसार एडजस्ट कर लिया था।
जो 69 सिक्सटी नाइन की अवस्था उसने रानो की ज़ुबानी सुन कर अपनी कल्पना में ढाली थी, उसे खुद अपने ऊपर साकार कर लिया था।
इस घड़ी उसके जिस्म में फैलती कामाग्नि उस पर इतना हावी थी कि उसे परवाह नहीं थी कि उसे देखती उसकी बहन उसके बारे में क्या सोच रही होगी।
वह भरपूर ढंग से इस सुख को पा लेना चाहती थी, इसमें जी लेना चाहती थी।
और दोनों तरफ के भरपूर चूषण से उसमे फैली उत्तेजना का पारा जल्दी ही अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगा तो वह उठ के सीधी हो गई।
उसने खुद से अपनी योनि सोनू के लिंग के ऊपर पहंचाई और अपने हाथ से सोनू के लिंग को पकड़ कर अपने छेद से सटा लिया…
संकेत साफ़ था।
सोनू ने अपनी कमर ऊपर उठाते हुए अपने लिंग को ऊपर की तरफ उमसाया, जिससे शिश्नमुंड छेद पर दबाव बनाते अंदर धंस गया।
एक मादक, उच्च सिसकारी शीला के मुख से ख़ारिज हुई।
और वह ‘सीईईई’ करते उसपे बैठती चली गई। ऐसा लगा जैसे कोई गर्म सुलगता नश्तर उसके योनिद्वार को भेदता, कसी हुई दीवारों को रगड़ता अंदर पेवस्त हो गया हो।
जितनी तकलीफ का अनुभव हुआ उससे कहीं ज्यादा आनन्द की अनुभूति हुई।
एक अजीब सी अनुभूति उसे और हुई… जैसे उसकी योनि में खुजली सी हो रही हो और जिसे मिटाने के लिये उसे अपनी योनि को ऊपर नीचे करके उसे घर्षण देना होगा।
घर्षण के लिये उसे थोड़ा आगे सोनू के सीने की तरफ झुकना पड़ा और सहारे के लिये सोनू के सीने पर हाथ टिकाने पड़े और यूँ उसके भारी वक्ष बेसहारा हो कर झूलने लगे।
तब उसे घर्षण के लिये अपने शरीर को आगे पीछे करने में आसानी हुई जिससे योनि में पैदा होती वह कसक मिटने लगी। दीवारें कसावट लिये थीं इसलिए रगड़न भी भरपूर मिल रही थी।
यूँ जनाने आघातों पर उसके बेसहारा लटकते वक्ष आगे पीछे झूल रहे थे जिन्हें सोनू अपने हाथों में लेकर मसलने दबाने लगा था।
कुछ देर में उसे इस पोजेशन में असुविधा होने लगी तो वह सीधी हो कर बैठ गई… लिंग वैसे ही उसकी योनि में समाया हुआ था। उसने सोनू को बाहों से पकड़ कर ऊपर खींचा, जिससे सोनू उठ कर बैठ गया।
अब उनकी पोजीशन ऐसी थी कि सोनू दोनों पैर सीधे फैलाये बैठा हुआ था और शीला उसके लिंग को अपनी योनि में दबाये उसकी गोद में बैठी हुई थी।
वह सोनू के कंधों पर पकड़ बनाते ऊपर नीचे होने लगी जिससे घर्षण की निरंतरता फिर चालू हो गई।
वह जल्दी ही चरम पर पहुंचने लगी… जबकि सोनू अपने पर पूरा नियंत्रण रखे हुए था। अंतिम चरण में वह सोनू के मुंह पर अपने वक्ष मसलती ऊपर नीचे होने लगी थी।
और सोनू भी उन्हें मुंह से चूमता, काटता, दबाता अपने हाथों से उसकी पीठ, नितम्ब दबाने सहलाने और मसलने लगा था।
उस घड़ी जैसे दोनों एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में लग गये थे… और अंतिम सीढ़ी पर पहुंचते ही शीला के अंतर से एक झरना फूट पड़ा।
ज़ोर-ज़ोर से सिसकरते हुए वह सोनू के शरीर को अपने शरीर से रगड़ते भींचने लगी, योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं और कंपकंपाहट के साथ वह स्खलित होने लगी।
जब उसकी मांसपेशियों में आया तनाव ख़त्म हुआ तो वह सोनू से बुरी तरह चिपटी हुई ढीली पड़ गई।
सोनू भी अब अनुभवी खिलाड़ी था, इस अवस्था को समझता था इसलिये उसने अपने शरीर को शिथिल कर लिया था और अपने हाथ की क्रियाएँ थाम ली थीं।
करीब तीन मिनट तक वे शिथिल से उसी अवस्था में बैठे रहे लेकिन सोनू का गर्म, कड़कता लिंग अभी भी उसकी योनि की दीवारों को यह अहसास करा रहा था कि खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ।
धीरे धीरे सोनू ने फिर उसकी नितंबों को मुट्ठी में भींचते मसलना शुरू किया और शीला ने चेहरा ऊपर उठाया तो उसके होंठ थाम लिए और उन्हें भी चूसने लगा।
उसके होंठों के आसपास शीला की योनि का रस लगा था जिसका स्वाद शीला ने उसके होंठों के मर्दन के साथ ही अनुभव किया लेकिन इससे उसके मन में कोई घिन जैसी अनुभूति न पैदा हुई।
वह चुम्बन में सहयोग करने लगी और एक प्रगाढ़ चुम्बन ने उसकी रगों में वही रोमांच फिर पैदा कर दिया। वह सोनू की पीठ सहलाने लगी और सोनू थोड़ा तिरछा हो कर एक हाथ से उसके वक्ष मसलने लगा और दूसरे हाथ से उसके नितंबों की दरार को ऐसे रगड़ने, खोदने लगा कि उसकी उंगलियों की छुअन जब शीला के गुदाद्वार पर होती तो उसे बेचैन कर जाती।
फिर वह उसी छेद को उंगली से इस तरह खोदने लगा कि उंगली से घुसाने के लिए दबाव तो डालता मगर घुसाता नहीं।
एक अलग क़िस्म का रोमांच उसके नसों में चिटकन पैदा करने लगा।
इस चूषण और रगड़न से जब वह इस स्थिति में पहुंच गई कि खुद उसकी कमर में एक लयबद्ध थिरकन पैदा हो गई तो सोनू ने उसे अपनी गोद से हटा दिया।
वह फिर बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा हो गया और शीला को खींच कर किनारे कर लिया, अपनी तरफ शीला की पीठ करके, उसके कंधे पर दबाव बनाते, उसे इतना नीचे झुकाया कि वह बिस्तर से लग गई।
वह पहले भी यही करना चाहता था मगर शीला ने सहयोग नहीं किया था लेकिन अब वह उसके हाथ के इशारे पर नाच रही थी।
अब सूरते हाल ये थी कि वह बिस्तर के एकदम किनारे पर अपने घुटने टिकाये इस तरह झुकी हुई थी कि उसके नितम्ब हवा में ऊपर उठे थे मगर सीना, चेहरा बिस्तर से लगा था।
सोनू ने थोड़ा नीचे झुक कर उसकी बहती, चूती योनि को चाटना शुरू किया।
उसके मुंह से मदमस्त सी कराहें फूटने लगीं।
थोड़ी देर में ही वह फिर उत्कर्ष की बुलंदियों पर उड़ने लगी और तब सोनू ने खड़े होकर अपना लिंग उसके थोड़े खुल चुके छेद पर टिका कर दबाया और अंदर उतार दिया।
इस रुख में दीवारों की कसावट और ज्यादा महसूस हुई। और उसके लिंग की अंतिम चोट शीला को अपनी बच्चेदानी पर महसूस हुई।
वह उसके नितंबों को थपथपाते, भींचते लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला यौनानन्द के समंदर में गोते लगाने लगी। दिमाग से सिवा इस आनन्द के और सबकुछ निकल गया।
आघातों की गति क्रमशः बढ़ती गई और एक नौबत यह भी आई की उसके धक्कों ने तूफानी गति पकड़ ली और कमरे में ज़ोरों की ‘थप-थप’ गूंजने लगी।
हर चोट पर शीला के मुंह से भिंची-भिंची आह-आह निकल रही थी जो धीरे-धीरे तेज़ होती जा रही थी।
फिर जब सोनू का इस आसन से दिल भर गया तो वह उसे लिये इस तरह बिस्तर पर आ गया कि लिंग बाहर न निकला और वैसे ही शीला के पैर सीधे हो गये।

अब वह उसकी पीठ की तरफ से उसे भोग रहा था।
उसकी एक टांग सोनू ने अपनी जांघ के ऊपर उठा दी थी, उसके शरीर को तिरछा कर लिया था जिससे योनिभेदन के साथ ही वह एक हाथ से उसके वक्ष मसल रहा था।
मसल क्या रहा था बल्कि पूरी ताक़त से भींच रहा था, नोच रहा था और साथ ही थोड़ा चेहरा आगे कर के, अपने दूसरे हाथ से उसका चेहरा घुमा कर होंठ भी बीच-बीच में चूस रहा था।
और इन्हीं आघातों में दोनों चरम पर पहुंच गये।
ज़ोर की आवाज़ों के साथ दोनों ही अकड़ गये… जिस सुख में शीला अकड़ गई, उसकी योनि ने सोनू के लिंग को भींच लिया और इसी संकुचन में सोनू भी फट पड़ा।
उसके लिंग ने सख्त और संकुचित होती दीवारों से अपना प्रतिरोध जताते हुए फूल कर ढेर सा वीर्य उगल दिया जिसकी गर्माहट शीला को एकदम अपने गर्भाशय में महसूस हुई।
पूरी तरह स्खलित हो कर वह अलग हो गये और हांफने लगे।
करीब दो मिनट बाद रानो ने सोनू को टहोका- चलो, अब जाओ, वरना चाचा जी खबर ले लेंगे।
थका थका सोनू अनमने भाव से उठ खड़ा हुआ और कपड़े पहनने लगा, जबकि शीला वैसे ही खामोश पड़ी रही।
कपड़े पहन कर वह बाहर निकल गया… साथ ही रानो भी।
सोनू को रुखसत कर के रानो वापस आई तो उसने कमरे की बत्ती जला दी।
तेज़ रोशनी ने शीला को चौंका दिया और वह उठ कर बैठ गई, उसने जल्दी से अपनी नाइटी दुरुस्त की और उठ खड़ी हुई।
जाने क्यों उसे इस घड़ी रानो ने निगाहें मिलाने में शर्म आ रही थी। वह उठ कर बाहर बाथरूम की तरफ चली गई।
जब तक वापस आई, बिस्तर की चादर चेंज कर के रानो बिस्तर की हालात सुधार चुकी थी और उसके लेटते ही उसने लाइट बंद कर दी और खुद भी आ लेटी।
‘ह्म्म्म… तो कैसा लगा?’ थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद उसने शीला को छेड़ा।
शीला जैसे इस सवाल से बचना चाहती थी।
थोड़ी देर चुप रही और बोली भी तो यह कि वह उन क्षणों में कैसी बेशर्म हो गई थी, सारी लोक लाज किनारे रख दी थी।
‘यह अच्छी बात थी कि तुमने जल्द ही इस बात को समझ लिया कि सम्भोग के इन पलों में खुद को समेटे रखना अपने आप से अन्याय करने जैसा है। ऐसे हालात में यही बेशर्मी इस सुख को दोगुना कर देती है। पर मेरा सवाल अभी भी है दी… कैसा लगा?’
‘हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा है, नीचे भी और ऊपर भी।’
‘हाँ वह रहेगी शुरुआत में, कल दर्द और सूजन की मैं दवा ला दूंगी, दो दिन में नार्मल हो जायेगा। आगे से दर्द ख़त्म हो जायेगा। पर यह कहो कि मज़ा आया या नहीं?’
‘बहुत…’ सिर्फ तीन अक्षर बोलने में उसे बड़ी मेहनत लगी और बोल कर शर्म ऐसी आई कि उसने चेहरा ही घुमा लिया।
‘आत्मा पर चढ़ा बोझ उतर गया?’
‘उतर गया या और भारी हो गया?’
‘यह तो देखने वाले के नज़रिये पर डिपेंड करता है कि वह आधा खाली गिलास देख रहा है या आधा भरा हुआ। दोनों ही नज़रिये अपनी जगह ठीक हैं पर ये आप पे डिपेंड है कि आप क्या देख रहे हैं।’
‘इतना आसान नहीं बचपन के संस्कारों से लड़ना और जीतना।’
‘हम जैसी अभिशप्त औरतों के लिये तो दुनिया में सांस लेना भी आसान नहीं दीदी। बस दिमाग में भरे हुए इस कचरे को निकाल फेंको कि हम कोई सामाजिक मर्यादा या वर्जना तोड़ रहे हैं। ये छोटे-छोटे शब्द जिनका वज़न पहाड़ों से भी ज्यादा है, उन लोगों के लिये हैं जिनके पास विकल्प हैं। हम तो वे विकल्पहीन औरतें हैं जिनके पास चुनने के लिये कुछ है ही नहीं।’
‘सुन… अगर गर्भ रह गया तो?’
‘गर्भ ओव्युलेशन पीरियड के दौरान सम्भोग करने से होता है और जहाँ तक मुझे पता है कि तुम्हारी माहवारी आये बीस दिन से ज्यादा हो चुके हैं इसलिये इसकी कोई सम्भावना नहीं।’
‘आज की बात नहीं… वैसे? जैसे तू करती है जब तब?’
‘मैं शुरू में गर्भनिरोधक गोलियाँ खाती थी लेकिन बाद में छोड़ दिया। ओव्यूलेशन पीरियड के दौरान हम अगर करते हैं तो कंडोम इस्तेमाल कर लेते हैं और जब रिस्क नही रहती तो ऐसे ही करते हैं।’
‘मगर…’
‘तुम चिंता न करो… मैं देख लूंगी। कुछ नहीं होगा। अब छोड़ो इन बातों को और जो पल अभी गुज़रे उन्हें याद करते सो जाओ। गुड नाइट!’
कह कर वह तो चुप हो गई।
मगर शीला को बहुत देर तक फिर भी नींद नहीं आई। उसे अभी भी लग रहा था जैसे सोनू उसके जिस्म का मर्दन कर रहा हो, वक्ष वैसे ही कसक रहे हों, योनि वैसे ही मसक रही हो।
जैसे तैसे करके बड़ी मुश्किल से वह सो सकी।
अगले दिन सुबह ही रानो से सोनू से दवा मंगा दी थी ताकि उसे किसी किस्म की परेशानी न हो और वह घर के काम निपटा के अपने काम पे निकल गई थी।
शाम को वापसी में सीधे अपने घर न जाकर रंजना के घर चली आई थी। चाचा जी तो अभी आये नहीं थे और चाची भी पड़ोस में गई हुई थीं।
अकेली रंजना ही थी और उसे रंजना से लिपट कर जी भर के रोने का मौका मिल गया था। रंजना उसके हालात से अनजान तो नहीं थी, सब समझती थी… खुद भी उससे अलग नहीं थी।
वह उसे संभालने की कोशिश करती रही… मगर शीला तब ही चुप हुई जब उसके मन में भरा सारा गुबार निकल गया।
जितनी परिपक्वता से रंजना ने रानो को समझाया था उसी परिपक्वता से उसने शीला से छोटे होने के बावजूद उसे भी समझाया और शीला को उससे बात करके बड़ी तसल्ली मिली।
उनकी बातें तब ही ख़त्म हुईं जब चाची आ गईं और फिर वह अपने घर आ गई।
बचे खुचे घर के सारे काम निपटा के दस बजे जब दोनों बहनें बिस्तर पे लेटी तो दिमाग में वही सिलसिला फिर चल निकला।
रानो की दी हुई दावा का असर हुआ था और उसे दर्द से राहत रही थी।
अब दिन भर के काम और थकन के बाद जब पीठ बिस्तर से लगी थी और तन को थोड़ा आराम मिला था तो ख्याली रौ फिर सहवास की कल्पनाओं की तरफ मुड़ चली थी।
कल अनअपेक्षित था लेकिन आज जैसे खुद वह उस सोनू का इंतज़ार कर रही थी जिससे उसका लगाव अब एक अलग शक्ल अख्तियार कर चुका था।
ग्यारह दस पर आज वह आया और फिर कल की ही तरह रानो उनके लिए नगण्य हो गई और दोनों ने एक भरपूर ढंग से सहवास किया जिसमे शीला दो बार स्खलित हुई और सोनू एक बार।
हालांकि शीला के लिए यह अनुभव नया था और वह इसे ज्यादा से ज्यादा पा लेना चाहती थी लेकिन रानो के लिये यह भी ज़रूरी था कि वह सोनू का इस वजह से भी ख्याल रखे कि उसे रानो को भी भोगना होता था।
इसलिये एक बार में ही उसे चलता कर दिया और दोनों सुकून से सो गई। रानो का तो नही कहा जा सकता मगर शीला तो वाकई सुकून से ही सोई थी।
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07-17-2020, 11:59 AM,
#39
RE: raj sharma story कामलीला
प्रथम सम्भोग के हिसाब से देखें तो तीसरा दिन तो रोज़ जैसा व्यस्तताओं से भरा गुज़रा और रात भी शांति से ही गुज़री क्योंकि आज सोनू को चाचा जी ने अपने साथ किसी काम से लगा लिया था तो उसके आने की सम्भावना ख़त्म हो गई थी।
और चौथी रात चाचा ने पुकार लगा दी।
दोनों बहनें साथ ही चाचा के कमरे में पहुंची थीं जहां चाचा अपना स्थूलकाय लिंग पाजामे से बाहर निकाले दरवाज़े की तरफ देख रहा था।
उन दोनों को देख उसके चेहरे पर चमक आ गई थी।
‘सुन रानो, अगर यह लाइट बंद कर दें तो? हमेशा धड़का लगा रहता है मन में कि बबलू या आकृति में से कोई नीचे न आकर देख ले जैसे तूने देख लिया था।’
‘दीदी, चाचा को अंधेरे की आदत नहीं। थोड़ी देर में ही उलझने लगेगा। उन दोनों की फ़िक्र मत करो, दोनों वक़्त से पहले ही समझदार हो चुके हैं। कभी ऐसी नौबत आ भी गई तो हमें समझेंगे।’
‘आज करें क्या चाचा के साथ?’
‘तुम नहीं दी, अभी दो दिन तो हुए तुम्हारी योनि खुले, अभी तो पगला जाओगी। कल बिस्तर से उठना दूभर हो जायेगा।’
बातें करती दोनों बिस्तर पे आ बैठीं और शीला नर्म हाथों से चाचा के लिंग को सहलाने लगी।
रानो ने तेल लेकर चाचा के लिंग पर चुपड़ दिया और थोड़ा शीला के हाथों में लगा कर थोड़ा खुद के हाथों में लगाने के बाद वह भी चाचा के लिंग से छेड़छाड़ करने लगी।
चाचा की आंतरिक भावनायें क्या थीं, यह उसके चेहरे या आँखों से परिलक्षित नहीं होती थीं लेकिन वह उन दोनों को देख रहा था जैसे समझने की कोशिश कर रहा हो।
वह किसी भी उम्र का हो दिमाग में किसी बच्चे जैसा था जिसे रिश्तों की समझ नहीं थी… बस जो शरीर को अच्छा लगता था उसे महसूस करना चाहता था।
जबकि वह दोनों भी पिछली बातों और बाधाओं से उबर कर अब सिर्फ उस सुख को ही अनुभव करना चाहती थीं जो ऐसे हालात में शरीर को मिलता था।
एक-एक हाथ से न सिर्फ वह चाचा के लिंग को सहला रही थीं— मसल रही थीं बल्कि उसके अंडकोषों को भी सहला रही थीं— दबा रही थीं।
थोड़ी देर बाद जब लिंग एकदम सख्त हो गया तो शीला ने ही पहल करते हुए थोड़ा तेल अपनी योनि में लगाया और नाइटी ऊपर उठाते चाचे के लिंग पर इस तरह बैठी कि लिंग लेटी अवस्था में चाचा के पेट से सटा हुआ था और उसके ऊपर शीला की योनि दोनों होंठ खोल कर इस तरह रखी थी कि ऊपर नीचे के क्रम में रगड़ने पर अंदरूनी भाग में घर्षण का अनुभव हो।
न सिर्फ उसे लिंग की नर्म गर्माहट मिले बल्कि चाचा को भी उसकी योनि के अंदरूनी भाग की गर्माहट और घर्षण मिलता रहे।
अब चाचा की आँख मुंद गईं और वह शायद उस रोमांच में डूब गया।
शीला अब आगे पीछे होने लगी थी और रानो पीछे से चाचा के अंडकोषों को सहला रही थी।
‘अभी सोनू आएगा न… क्यों उतावली हो रही हो दी?’ रानो ने हंसते हुए कहा।
‘तो क्या… दो बार नहीं मज़ा ले सकती।’ कहते हुए शीला ने महसूस किया कि जैसे अब वह भी किसी हद तक बेशर्म हो चली है।
‘ज़रूर लो… पर थोड़ा मेरा भी ख्याल करो…’
उसकी बात पर शीला के दिमाग को झटका सा लगा। उसे ख्याल आया कि उसे ख़ुशी देने के चक्कर में रानो ने अपनी ख़ुशी की क़ुर्बानी दी थी।
अगर सोनू शीला की वासना शांत कर रहा था तो रानो की प्यास का क्या?
वह चाचा के ऊपर से हट गई।
चाचा आँखें खोलकर उन्हें देखने लगा।
‘तुम आओ।’
पहले रानो ने उसकी आँखों में झांक कर ये सुनिश्चित किया कि उसे बुरा तो नहीं लगा था, फिर नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने पर वह अपनी नाइटी उठाते हुए उसी के अंदाज़ में चाचा के लिंग पर आ बैठी।
और आगे-पीछे सरकती घर्षण का मज़ा लेने लगी… देने लगी।
लेकिन थोड़ी देर के घर्षण ने ही रानो के शरीर में दौड़ते खून को उबाल दिया। कई दिनों की दबी हुई प्यास बुरी तरह भड़क उठी।
‘दीदी, मैं अब बिना किये नहीं रह सकती। तुम हेल्प करो।’ उसने बेबसी से शीला को देखा।
‘कैसे?’
वो चाचा के ऊपर झुकती हुई उसके सीने से इस तरह सट गई कि उसकी योनि ठीक चाचे के लिंग की नोक के ऊपर आ गई।
‘इसे छेद से सटाओ।’
पीछे से शीला को उसके बिना चर्बी के कसे हुए नितम्ब दिख रहे थे, नितंबों की दरार में गुदा का छेद दिख रहा था और उसके साथ लगी योनि भी पूरे आकार में दिख रही थी।
उसने चाचा के लिंग के अग्रभाग को उसकी योनि के कुछ हद तक खुले छेद से सटाया।
‘पकड़े रहना, इधर उधर मत होने देना।’
शीला ने सहमतिसूचक ‘हूँ’ की और रानो अपनी योनि को नीचे धकेलने लगी।
चाचा का शिश्नमुंड आलू की तरह बड़ा सा था जो ऐसे तो एकदम से घुस जाने लायक नहीं था।
शीला लिंग को थामे न होती तो तय था कि वह फिसल कर ऊपर नीचे चला जाता मगर चूँकि वह स्थिर था तो इधर उधर होने के बजाय छेद पर ही दबाव डाल रहा था और योनिमुख की दीवारें दबाव झेलती फैल रही थीं।
मांसपेशियों में इस तरह के खिंचाव की तकलीफ रानो ने पहले भी झेली थी, पर पहले किसी और ने दी थी और अब वह खुद से झेल रही थी।
फिर खिंचाव बढ़ते-बढ़ते एकदम शिश्नमुंड अंदर घुस पड़ा।
रोकते-रोकते भी रानो के मुंह से दबी-दबी चीख निकल गई… उसे ऐसा लगा था जैसे उसकी योनि फट ही गई हो।
तकलीफ कुछ इसी तरह की थी, शरीर ने हल्की ठंड के बावजूद पसीना छोड़ दिया।
वह खुद को स्थिर कर के दांत पे दांत जमाये, होंठ भींचे उस तकलीफ को बर्दाश्त करने लगी।
‘बहुत ज्यादा दर्द हो रही है क्या?’ शीला ने चिंतित स्वर में कहा।
‘हम्म… पर यह तो एक न एक दिन झेलनी ही है। तुम हाथ चलाती रहो वर्ना चाचा ने धक्के लगाने शुरू कर दिये तो मैं संभाल नहीं पाऊँगी।’
उसकी बात समझ के शीला जल्दी से लिंग पर हाथ चलाने लगी।
अब स्थिति यह थी कि चाचा का स्थूलकाय लिंग ऊपर की तरफ ऐसे रानो की योनि में फंसा हुआ था कि पीछे से देखने पर वो रानो की तीसरी टांग जैसा लग रहा था।
नीचे हस्तमैथुन के अंदाज़ में शीला हाथ ऊपर नीचे कर रही थी और रानो एकदम स्थिर उस बड़े से शिश्नमुंड को अपनी योनि में एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी।
फिर खुद से अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी ही योनि के भगांकुर को सहलाने रगड़ने लगी, जिससे उसमें वासना की तरंगें फिर उसी तेज़ गति से दौड़ें जैसे अभी दौड़ रही थीं।
उसे देख शीला भी अपने दूसरे हाथ से अपनी योनि सहलाने मसलने लगी।
थोड़ी देर की कोशिशों के बाद जब रानो इस प्रवेश आघात के झटके से उबर पाई तो उसने हाथ योनि से हटा कर चाचा की पसलियों के साइड में टिका लिया।
और अपनी योनि को धीरे-धीरे नीचे सरकाने लगी… ऐसा लगा जैसे एक विशालकाय गर्म सलाख उसकी योनि की संकुचित दीवारों को अपनी रगड़ से परे हटाती अंदर धंसती जा रही थी।

तकलीफ तो निश्चित ही थी मगर इसे पार कर के ही आनन्द के स्रोत को पाया जा सकता था।
उसे योनि नीचे दबाते देख शीला अपना हाथ नीचे करके अंडकोषों पे ले आई।
और चाचा को चूँकि पहली बार योनि के अंदर की गर्म भाप का आनन्द मिल रहा था तो अब उसकी साँसें भी भारी हो चली थीं।
रानो ने योनि उस अंतिम सिरे तक नीचे सरकाई जहां लिंग उसकी बच्चेदानी से टकराता पेट में गड़ने की अनुभूति देने लगा।
फिर अंतिम बैरियर तक पहुंच कर वह थम गई।
‘कितना बचा?’ उसने गर्दन घुमा कर शीला को देखा।
‘एक चौथाई… तीन चौथाई अंदर है।’
‘बस, इससे ज्यादा और नहीं अंदर ले सकती। यह मेरी अंतिम हद है।’
‘इससे क्या चाचे को कोई फर्क पड़ेगा?’
‘पता नहीं— पड़ना तो नहीं चाहिये लेकिन क्या पता, कहीं ये पूरा घुसाने पर तुल गया तो मैं मारी जाऊँगी। तुम नीचे के हिस्से पर हाथ चलती रहना।’
‘ठीक है।’
अपनी अंतिम सीमा तक लिंग को अपनी योनि में समाहित कर के थोड़ी देर तक वह खिंची फैली योनि की दीवारों को मौका देती रही कि वे उसे ठीक से स्वीकार कर लें।
फिर धीरे-धीरे करके वह ऊपर नीचे होने लगी।
लिंग जैसे उसकी योनि में एकदम फंसा हुआ था जिसे ऊपर नीचे करने में भी रानो को तकलीफ महसूस हो रही थी, लेकिन अंदर जैसे जैसे चिकनाई और मांसपेशियों का लचीलापन बढ़ेगा उसे राहत हो जाएगी, यह उसे पता था।
वासना में सराबोर घड़ियां गुज़रती रहीं।
और धीरे-धीरे जब योनि-रस इतना हो गया कि समागम में आसानी हो सके तो मांसपेशियां भी ढीली पड़ गईं और वो तेज़ गति से धक्के लगाने लगी।
लेकिन चूंकि औरत का शरीर प्राकृतिक रूप से आघात करने के लिये नहीं बल्कि आघात सहने के लिये बना होता है तो वह जल्दी ही थक भी गई और रुक कर हांफने लगी।
‘बड़ी मुश्किल है… यह काम मर्दों का होता है, खुद करो तो कितनी जल्दी थकन आ जाती है।’ वह हांफते हुए बोली।
रुकते वक़्त उसने योनि ऊपरी सिरे पर पहुंचा ली थी जिससे शीला नीचे के लिंग पर हाथ चला सके और शीला वही कर रही थी।
‘किसी मंदबुद्धि के साथ सम्भोग करने में बड़ी मुश्किलें हैं। मैं ऊपर बैठ कर करुं तो थोड़ी आसानी तो होगी मगर साथ ही डर भी है कि ज्यादा घुसने पर तकलीफ देगा।’
पर थोड़ी देर बाद उसने किया यही।
आगे पीछे होने से ज्यादा आसान था ऊपर नीचे होना।
मगर यहां अपने घुटनों पर खास ज़ोर देना था कि कहीं एकदम पूरा ही न बैठ जाये और लिंग की लंबाई उसे तकलीफ दे जाये।
पर ऐसा कुछ न हुआ और वह ठीक ढंग से सम्भोग करने में कामयाब रही।
ये और बात थी कि वह इस तरह चरम तक तो पहुंच गई मगर चरमानन्द न पा सकी।
जबकि चाचा पहली बार के योनि से समागम की गर्माहट बहुत ज्यादा देर न झेल सका और जल्दी ही स्खलित हो गया।
उसे अच्छे से स्खलित करा के वह एकदम से उस पर से हट कर, दोनों टांगें फैला कर साइड में चित लेट गई।
‘दीदी, जल्दी से उंगली से कर दो। मेरा भी होने वाला है।’
शीला, जो अब तक उन्हें देखती अपनी योनि सहलाने में लगी थी, एकदम उठ कर उसकी टांगों के बीच में आ गई और बीच वाली उंगली रानो की योनि में घुसा कर अंदर बाहर करने लगी।
उसकी योनि में भरा चाचा का वीर्य जो पहले से बह रहा था… और तेज़ी से बाहर आने लगा।
‘दीदी, दो उंगलियों से करो।’ रानो अपने स्तन मसलते हुए बोली।
शीला ने एक की जगह दो उंगलियां घुसा दीं और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी।
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07-17-2020, 11:59 AM,
#40
RE: raj sharma story कामलीला
रानो एक हाथ से अपने वक्ष मसलती दूसरे हाथ से अपने भगांकुर को रगड़ने लगी।
और इस तरह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई, शरीर एक बार ज़ोर से कांपा और फिर झटके लेने लगा।
शीला तब तक उंगली चलाती रही जब तक वह शांत न पड़ गई।
तभी उसके फोन पर सोनू की मिस्ड आ गई।
‘तुम ही जाओ दी, मुझमें हिलने की भी हिम्मत नहीं, मुझे पूछे तो कह देना कि मैं आज आकृति के पास ही सो गई हूँ।’ रानो बेहद शिथिल स्वर में बोली।
‘और यहां की सफाई?’
‘थोड़ी देर में मैं कर दूंगी। तुम जाओ।’
अपनी नाइटी दुरुस्त करती शीला उठ कर कमरे से बाहर निकल आई।
सोनू के चक्कर में बाहर अंधेरा ही रखा जाता था, उसी अंधेरे में जा कर शीला ने चुपके से सोनू को अंदर ले लिया।
उसे देख कर वह चौंका था और अपेक्षित रूप से रानो के बारे में पूछा था तो रानो का बताया जवाब उसे दे के शीला ख़ामोशी से अपने कमरे में ले आई थी।
वह पहले से काफी गर्म थी और अब सम्भोग के लिये एक मर्द भी उपलब्ध था, उसकी ख्वाहिशें बेलगाम हो उठीं।
आज उसने खुद से पहल की।
जो भी उसके दिमाग में था, जो जो वह सोचती आई थी मगर अपनी स्त्री सुलभ लज्जा और झिझक के कारण करने में असमर्थ रही थी, आज उसने वह सब किया।
उसने जिस खुलेपन और आक्रामक अन्दाज़ में वासना के इस खेल को पूरा किया, उसने सोनू को भी चकित कर दिया जो उसके इशारों पर अलग अलग आसनों से बस उसे भोगता रहा।
आज रोकने के लिये रानो भी नहीं थी। उसने जी भर के दो घंटे में तीन बार पूर्ण सम्भोग करने के बाद ही सोनू को मुक्त किया और उसके जाने के बाद सुकून की गहरी नींद सो गई।
अगली सुबह उसके लिये तो नार्मल ही थी मगर रानो दर्द से बेहाल थी और उसकी योनि भी बुरी तरह सूज गई थी— जिसके लिये उसे बाकायदा दवा भी लेनी पड़ी थी।
बहरहाल, यह सिलसिला चल निकला… लगभग हर रोज़ ही रात को एक निश्चित वक़्त पे सोनू आने लगा और उसके साथ सम्भोग का अवसर शीला को ही मिलता था।
रानो ने जैसे खुद पर सब्र की बंदिशें लगा ली थीं उन दिनों… उसने जैसे खुद को चाचा के लिये ही सुरक्षित कर लिया था।
चाचा ने अगले बार जब पुकार लगाई तो उसकी योनि सही हालात में आ चुकी थी और इस बार उसे कम तकलीफ और हल्की सूजन का ही सामना करना पड़ा था जो दो दिन में ठीक हो गई थी।
और फिर उसकी योनि चाचा के स्थूलकाय लिंग की आदी हो गई थी जिससे उसे न सिर्फ कष्ट से छुटकारा मिल गया था बल्कि मज़े में भी वृद्धि हो गई थी।
हालांकि ऐसा नहीं था कि शीला को आत्मग्लानि न होती हो… वह जिस रास्ते पर चल पड़ी थी वहां उसे शरीर का सुख तो हासिल था मगर ये ग्लानि किसी भी पल में उसका पीछा न छोड़ती थी।
सोनू के साथ जितने पल होती थी, दिमाग पर वासना हावी रहती थी मगर उसके जाते ही वो अपराधबोध से घिर जाती और इसी तरह चाचा के पास उन पलों में जाने भी उसे अपने ग़लत होने का अहसास होता था।
भले अब चाचा के लिंग का इस्तेमाल रानो करती थी मगर उन क्षणों में उसके साथ वह भी तो होती थी।
बस जैसे तैसे करते महीना भर यूँही गुज़र गया।
और फिर एक दिन…
उस रात भी हस्बे मामूल सोनू उसके साथ ही था। रानो भी साथ ही थी, हालांकि अब अक्सर वह सहवास के वक़्त उनके पास से हट जाती थी कि एकांत में शीला उन्मुक्त हो सके।
मगर उस रात साथ ही थी जब किसी ने दरवाज़ा पीटा था…
उस वक़्त शीला और सोनू के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था और दोनों एक आसन में संभोगरत थे जब इस अनपेक्षित व्यधान ने दोनों की भंगिमाओं को ठहरा दिया।
‘मैं देखती हूँ।’ रानो उठती हुई बोली।
वह अंधेरे के बावजूद अभ्यस्त नेत्रों से देखती बाहर निकल गई और वे दिमाग में चलते विचारों और शंकाओं के झंझावात के चलते उसी अवस्था में बाहर की आवाज़ें सुनने लगे।
‘कौन हो सकता है?’ सोनू ने प्रश्न सूचक निगाहों से उसे देखा।
‘मुझे खुद ताज्जुब है इस वक़्त कौन हो सकता है… शायद किसी ने गलती से दरवाज़ा खटखटाया है।’
दूर-दूर तक किसी के भी इस वक़्त उनके यहाँ आने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए शीला ने त्वरित प्रतिक्रिया दिखाने की ज़रूरत नहीं समझी थी और उसे लग रहा था किसी से गलती हुई है।
पर एकदम से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और साथ ही रानो की घुटी-घुटी सी आवाज़ और ऐसा लगा जैसे कोई अंदर घुसा हो।
कोई अप्रत्याशित खतरा भांपते ही शीला ने सोनू को खुद से अलग किया और अंधेरे में कपड़े ढूंढने की कोशिश कर ही रही थी कि आगंतुक कमरे तक पहुंच गया।
‘लाइट जला मादरचोद।’ गुर्राती हुई आवाज़ कमरे में गूंजी।
फिर शायद रानो ने ही कमरे की लाइट जलाई थी और दरवाज़े पर रानो के बाल पकड़े चंदू किसी शैतान की तरह खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं दो चमचे भी साथ ही खड़े थे।
और जिस घड़ी रोशनी हुई— सोनू अधलेटा सा समझने की कोशिश में उलझन ग्रस्त था कि यह हो क्या रहा था और शीला चौपाये की तरह झुकी अपने कपड़े ढूंढने के प्रयास में थी।
रोशनी होते ही वह एकदम सिमट कर बैठ गई।
‘ओहो… तो यहाँ यह रंडापा हो रहा है। हरामज़ादी… जब कहे थे कि कोई जुगाड़ न बना हो तो हमें बताना तो हमें नहीं बताया और यह लौंडे को बुला लिया।
तुझे क्या लगता है कि छोटे लौंडे से चुदवायेगी तभी मज़ा आएगा। हमारे कांटे हैं क्या? और तू बे लौंड़ू… साले दुनिया के सामने इन्हें दीदी बोलता है और रात में चोदने आता है।
अबे यह तो तरसी नदीदी थी लौड़े की— तुझे भी चूत नसीब नहीं थी कि इन बड़ी उम्र की चूतों पर फांद पड़ा। रोज़ रात को तुझे इस गली की परिक्रमा करते देखते थे पर दिमाग में ही नहीं आया कि यहाँ मुंह काला करने आता है।
परसों से पता चला कि इस घर में चरण कमल पड़ते हैं तो जुगाड़ में हम भी लग गये।’
चंदू के शब्दों से जितना ज़लील महसूस कर सकती थी… उसने किया और सोनू की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे रो ही देगा।
वह जैसे का तैसा उठ कर खड़ा हो गया था।
चंदू की दहशत ही ऐसी थी और सोनू तो उसके सामने बच्चा ही था।
रानो को चंदू ने एक झटके से आगे धकेला कि वह भी उनके पास बिस्तर पे आ टिकी। उसके बोलने से वह उस भभूके की महक को महसूस कर सकते थे जो बता रहे थे कि वह शराब के नशे में है।
उसके साथ जो दो चमचे थे उन्हें भी वह जानते ही थे, एक तो भुट्टू था और दूसरा बाबर… दोनों ही मोहल्ले के थे और चंदू के जैसे ही बिगड़े हुए लफंगे थे।
‘जा बे… इसके बाप और महतारी को बुला ला और तू जा के जो मोहल्ले की जो तोपें हैं उन सब को बुला के ला! जो न आने को कहे उसके खोपड़े पे घोड़ा रख के लाना। आज इन ब्लू फिल्म के हीरो हीरोइन की बारात निकालते हैं।’
‘नहीं नहीं…’ सोनू कांप कर चंदू के पैरों में पड़ गया, ‘भाई नहीं… ऐसा मत करो। जूते से मार लो आप। जो पास पल्ले पैसे हों वो ले लो पर ऐसा मत करो।’
‘तेरे पास क्या है बे गांड मारें तेरी। क्यों गुठली, तू बोल, बुलायें सबको और निकालें जनाज़ा तुम लोगों की इज़्ज़त का।’
शीला कुछ बोल तो न सकी… बस सूखे होंठों पर जीभ फिरा कर रह गई।
इस हालत में उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो चली थीं और जिस्म पसीने से नहा गया था।
‘ऐसा मत करो दादा।’ उसकी जगह रानो ज़रूर गिड़गिड़ाई।
‘क्यों न करें। साली दुनिया हमें ही गलत बोलती है, ज़रा दुनिया को तो पता चले कि मोहल्ले में गलत कौन कौन कर रहा है।’
‘हमारी इज़्ज़त ख़राब करके आपको क्या मिलेगा दादा?’
‘सुकून… कई बार फरियाद की तुम लोगों से, हमें भी मौका दे दो— क्या हम नहीं समझते कि इतनी उम्र तक जब चूत को लौड़ा न मिले तो कैसी आग लगती है। इसीलिये कहते थे कि हमसे काम चला लो।
तो हमें बड़े गुरूर से ठुकरा देती थी और यह गुठली… यह तो बाकायदा आगबबूला हो जाती थी जैसे सती सावित्री हो और यहाँ… किया वही काम। ऊ का कहते हैं बे… हमारा ईगो हर्ट हुआ है। समझी।’
‘मम… माफ़ कर दो।’
‘तू ही बोल रही है। गुठली तो कुछ नहीं बोल रही।’
‘मम… मुझे माफ़ कर… दो।’ बड़ी मुश्किल से शीला बोल पाई।
‘एक शर्त पे।’
‘कक… कैसी शर्त?’
‘सुन बे लोड़ू— कल शाम तक कहीं से भी दो हज़ार रूपये पहुंचायेगा! समझा? और तुम दोनों— जैसे इसे एंटरटेन कर रही थी अभी इसके जाने के बाद हमें करोगी।
या दोनों लोग सीधे-सीधे हाँ बोलो या बुलाने दो हमें मोहल्ले के चौधरियों को।’
‘हह… हाँ-हाँ… मैं कल कहीं से भी आपको पैसे दे दूंगा भाई, आप मुझे जाने दो।’ सोनू गिड़गिड़ाया।
‘और तुम क्या बोलती हो?’
दोनों बहनों ने एक दूसरे को देखा।
ज़ाहिर है कि विकल्प नहीं था और न करने की स्थिति में वह नहीं थीं। उसकी बात से तो ज़ाहिर था कि वह कुछ भी कर सकता था।
बिना कोई लफ्ज़ अदा किये दोनों ने सहमति से सर हिला दिया।
‘शाबाश— चल बे कपड़े पहन… भुट्टू, छोड़ के आ इसे और दरवाज़ा ठीक से बंद कर लियो।
और तू सुन, अब से इधर आने की ज़रूरत नहीं, इनकी देखभाल हम कर लेंगे। समझा?’
‘जी भाई।’
‘चल फूट!’
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