RE: RajSharma Stories आई लव यू
पापा को ऑफिस जाना था, तो वो उठ चुके थे। “ठीक है भाई, तुम एनज्वॉय करो, हम चले ऑफिस; शाम को मिलते हैं।"
"ओके पापा,बॉय-बाय।" मेरे कंधे पर एक थपकी देकर पापा ऑफिस चले गए और भाई-बहन कॉलेज। बाहर नमित,ज्योति और शिवांग आ चुके थे।
"आ जाओ, अंदर आ जाओ।"
"नमस्ते आंटी..हाय राज!"- तीनों ने अंदर आते हुए कहा।
"हाय...कैसे हो तुम लोग! आओ नाश्ता करो।"- मैंने उठकर गले मिलते हुए कहा।
"अरे वाह...जलेबी! नाश्ता तो हम लोग करके आए हैं, पर जलेबी खाएँगे।"- ज्योति ने मुस्कराते हुए कहा।
"अरे, लो न यार...खाओ।"
"तो आंटा, माहब आ ही गए तीन महीने बाद । डाँटा नहीं आपने। इतने दिन बाद आए हैं ये।"- ज्योति ने माँ से कहा।
"अब दो दिन के लिए आया है ज्योति ये, क्या डाँटें।"
"हाँ आँटी, आप सही कह रही हैं; चलो फिर फटाफट।"
मैं और ज्योति छठवीं क्लास से लेकर बारहवीं तक एक ही क्लास में थे और नमित और शिवांग दूसरे सेक्शन में थे... पर हम तीनों बहुत पक्के दोस्त थे। नमित और शिवांग, टेलीकॉम कंपनी में इंजीनियर थे और ज्योति, ऋषिकेश में ही बैंक में एक्जीक्यूटिव थी। आज तीनों ने मेरी वजह से अपने-अपने ऑफिस से छुट्टी ली थी। नमित की कार से हम चारों रॉफ्टिंग के लिए निकल चुके थे।
"नमित, मैं ड्राइव करूंगा!"- मैंने कहा।
“ओके...ये पकड़ चाबी।"- नमित ने चाबी मेरी तरफ फेंकते हुए कहा।
"और तुम तीनों पीछे बैठ जाओ...पट सीट खाली रखना।"
ओए क्यों?" - तीनों ने एक साथ कहा।
"अरे कह रहा है नयार; किसी को पिक करना है रास्ते से।"
“किसी को...मतलब कोई और भी चलेगा साथ?"- नमित।
'हाँ।'
"और वो लड़की है?"- ज्योति।
“ऐसा करो तुम ही चले जाओ, मैं जा रही हूँ।”-
ज्योति। "अरे, सुन न ज्योति, तू भी न यार... अरे दोस्त है ऐसे ही; मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है बो।"
"तो तुम कैसे जानते हो उसे और गर्लफ्रेंड नहीं है, तो साथ रॉफ्टिंग पर क्यूँ ले जा रहे हो और कहाँ मिले तुम?"- ज्योति ने कहा।
"अरे यार, दिल्ली से है; आते हुए बस में मिल गई थी... अब ज्यादा तीन-पाँच मत करो, मिलवाता हूँ।"
ज्योति का मूड ऑफ हो चुका था। दसवीं क्लास में कल्चरल फेस्ट के बाद से ज्योति मुझे पसंद करने लगी थी। वो मेरे गाने से इंप्रेस हुई थी, पर कभी कह नहीं पाई। मेरा उसमें कोई इंटरेस्ट नहीं था... बस अच्छी दोस्त थी। तीनों, पीछे वाली सीट पर बैठ गए थे और मैंने कार डॉक्टर कॉलोनी की तरफ डॉली को पिक अप करने के लिए बढ़ा दी।
"हेलो डॉली...बाहर आओ घर के, हम बम पहुँचने वाले हैं।"
"ओके राज।"
"तो डॉली है उसका नाम?"- ज्योति ने कहा।
"अरे मेरी माँ, मिलवाऊंगा...दो मिनट रुको तो।"
"तो नाम ही तो पूछा है।"
"हाँ, डॉली नाम है उसका...और हम आ गए हैं उसके घर।"
डॉक्टर कॉलोनी पहुंचे, तो डॉली अपने घर के गेट पर ही खड़ी थी। मैंने हॉर्न दिया, तो उसने कार की तरफ देखकर हाथ हिलाया।
“ओहो। तो ये हैं मैडम डॉली।"- ज्योति ने कहा।
"ज्योति...चुप हो जाओ यार; बंद करोगी ताना मारना तुम?"
"हाय डॉली!"- मैंने कार का शीशा उतारकर कहा। 'हाय!'
मैं कार से उतरा और डॉली को कार में बिठाया। कार में बैठते ही डॉली ने पीछे वाली सीट पर बैठे तीनों लोगों को हाय बोला। ज्योति को छोड़कर बाकी दोनों ने डॉली को बहुत अच्छे से हाय बोला। ___
"डॉली, ये नमित है, ये शिवांग है और मास्टर गर्ल ज्योति... और ये डॉली है, दिल्ली से।”
कुछ ही देर में हम ब्रह्मपुरी पहुँच चुके थे। यहीं से रॉफ्टिंग का प्लान हम लोगों ने बनाया था। कार से उतरकर हम लोग गंगा किनारे कैंप में पहुंच गए थे। नमित और मैं पहले भी साथ में रॉफ्टिंग कर चुके थे। शिवांग को पानी से डर लगता था, लेकिन हम उसे ले आए थे। डॉली पहली बार रॉफ्टिंग करने जा रही थी, इसलिए उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। वो तो बिना कॉस्टयूम पहने ही पानी में कूद जाने को बेताब थी। पानी से इतना प्यार मैंने पहली बार किसी लड़की के भीतर देखा था। ज्योति का मुँह अभी भी फूला हुआ था।
|