RE: RajSharma Stories आई लव यू
एक बेड पर बैठे होने के बावजूद हम दोनों के बीच बातें कम हो रही थीं। दिल की हालत किसी प्यासे पंछी की तरह हो गई थी। पानी मामने था, लेकिन पी नहीं सकते थे। कमरे में एक अजीब-मा सन्नाटा था और इस सन्नाटे को तोड़ा, कॉफी लेकर आए बेटर ने। कमरे का दरवाजा अब तक खुला ही था।
शीतल के चेहरे पर कॉफी जल्दी आने की खुशी नहीं थी। उन्हें शायद लग रहा था कि कॉफी इतनी जल्दी क्यों आ गई। खैर, कर भी क्या सकते थे। अपनी बात बताने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं कर पा रहा था। कॉफी का एक-एक चूंट मटका नहीं जा रहा था। कॉफी अंदर जा रही थी और आँखों से आँसू निकलने को बेताब हो रहे थे। चाय जल्दी से खत्म कर मैं अपने कमरे में जाकर जी भरकर रो लेना चाहता था आज। शीतल तो कॉफी पी ही नहीं पा रही थीं।
“ओके शीतल, मैं जा रहा हूँ अब; कल मिलते हैं।'' मैंने उठते हुए कहा। "अरे यार, अभी..."
"हाँ शीतल, सुबह छह बजे की ट्रेन है: चार बजे उठना होगा और डेढ़ बज चुके हैं ... अब तुम भी सो जाओ, वरना उठ नहीं पाओगी सुबह।"
"ठीक है तुम सो जाओ, मैं कुछ देर और जागना चाहती हूँ अभी।"
"न चाहते हुए भी मैं उन्हें गुडनाइट बोलकर उनके कमरे से बाहर निकल आया। कमरे से निकलते हुए शीतल की तरफ देखा तक नहीं। शायद मैं जानता था कि उनकी आँखें रो रही हैं। आँखें तो मेरी भी बहने लगी थीं।
अपने कमरे में आते ही बिना कपड़े बदले मैं बिस्तर में घुस गया और जी भर के रोया। "हेलो, सो गए।" फोन पर शीतल का बाँदसएप मैसेज था।
"नहीं, अभी नहीं।" मैंने मैसेज किया।
"तो बात कर पाएंगे।" उनका मैसेज था।
“नहीं यार, कमरे की लाइट ऑफ है और बॉम हमारे साथ रुके हैं; मोबाइल की लाइट से उनको परेशानी होगी,कल बात करते हैं।"
"क्या राज मियाँ, कुछ घंटे बात कर लेंगे तो क्या हो जाएगा? घर जाकर आराम से मो जाएगा, अभी बात कर लीजिए प्लीज।"
"नहीं कर पाएँगे यार।" मैं हैरान था। अक्सर लोग कहते हैं कि थोड़ी देर बात कर लेंगे तो क्या हो जाएगा? लेकिन पहली बार कोई ये कह रहा था कि "कुछ घंटे बात कर लेंगे तो क्या हो जाएगा।"
"ठीक है, तुम सो जाओ, में कुछ देर आँख बंद कर लेटे रहना चाहती हूँ।"
"राज, दिन निकलने वाला है, सपना टूटने का वक्त आ गया है।"
"क्या मतलब है इसका?"
"अरे तुम नहीं समझोगे, सो जाओ।"
"ओके, गुडनाइट, टेक केयर; सुबह मिलते हैं।"
"हम्म... गुडनाइट" शीतल से रात भर बात करते रहना चाहता था, लेकिन बॉस मेरे कमरे में ही सो रहे थे, तो कर नहीं सकता था। फोन हाथ में लेकर सोने की एक कोशिश में कर रहा था, जो शायद ही पूरी होने वाली थी। आँखें बंद की, तो शीतल का चेहरा एक दम सामने आ गया। उस क्रीम कलर की साड़ी में वो ऐसे लग रही थीं, जैसे किसी संगमरमर की मूरत पर बर्फ की चादर पड़ी हो। इस खूबसूरत चेहरे को कैद कर मेरी आँखें कब अचेत हो गई, पता ही नहीं चला।
'गुडमानिंग, गुडमानिंग, गुडमानिंग, गुडमानिंग, गुडमानिंग!” फोन में अलार्म बज रहा था।
सुबह के साढ़े चार बजे थे। अलार्म बंद कर थोड़ी देर आँख खोलकर लेटा ही रहा। आँखें नींद से दुखने लगी थीं। दो घंटे ही तो हुए थे अभी सोए हुए। कमरे में रखे कॉफी मेकर में एक कप हाई कॉफी बनाई और बिस्तर पर बैठकर धीरे-धीर एक-एक चूंट पीने लगा। पहली बार वो कॉफी का कप मुझे भारी लग रहा था। हर छूट सटकने में हिम्मत करनी पड़ रही थी। और जब थक गया हिम्मत करते-करते तो कप साइड में रखा और सीधे बॉशरूम में चला गया। मन को समझा लिया था। दिल मानने को तैयार ही नहीं था कि वापस लौटने का वक्त आ चुका है, लेकिन दिमाग ने दिल को डाँटकर हकीकत समझा दी थी। तैयार होने से लेकर बैग पैक करने तक एक बात खटक रही थी। बो बात थी कि मैं शीतल को अपने दिल की बात बता नहीं पाया। अभी भी खयाल आया था कि स्टेशन के रास्ते में सब बता दूंगा, लेकिन खुद को समझा लिया। शायद दिल पर दिमाग हावी था।
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