RE: RajSharma Stories आई लव यू
ठीक दस बजे मैं शीतल के अपार्टमेंट के नीचे था। चारों तरफ बादलों का अँधेरा था।
हल्की-हल्की बारिश हो रही थी।
"शीतल जल्दी आओ, मैं नीचे हूँ।"- मैंने फोन पर कहा।
"बम आ रही हूँ...दो मिनट बस।" कार में दानिश अलीगढ़ी साहब' की वही गजल बज रही थी, जो शीतल को बेहद पसंद थी और कार में बैठते ही शीतल डिमांड करती थीं।
"दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं। यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितने लोग आते हैं फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं। बाम से उतरती हैं जब हसीन दोशीज़ा जिस्म की नजाकत को सीढियाँ समझती हैं। तुम तो खुद ही कातिल हो, तुम ये बात क्या जानो क्यों हुआ मैं दीवाना बड़ियाँ समझती हैं। जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर ‘दानिश उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।" मैंने अपनी तरफ का शीशा नीचे किया हुआ था। शीतल, आते हुए भीग न जाएँ, इसलिए कार बिलकुल उनके अपार्टमेंट के गेट पर ही खड़ी थी। मेरी निगाहें उनकी सीढ़ियों पर ही टिकी थीं, कि कब शीतल नीचे उतरें और मेरी आँखों को चैन आए। तकरीबन दस मिनट बाद सीढ़ी से उतरती हुई शीतल की छवि दिखाई दी। सबसे पहले गोल्डन कलर की मोती जड़ी चप्पलों पर नजर पड़ी। शीतल के दमकते कदम, जैसे-जैसे एक-एक सीढ़ी नीचे उतर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे आसमान से कोई परी उतर रही हो। सुनहरी चूड़ीदार पजामी के साथ सुनहरा पाकिस्तानी सूट पहने शीतल को देखकर मुझसे, कार से बाहर आए बिना रहा ही नहीं गया। खुले बाल, कानों में झूमते चौड़े-चौड़े झमके, आँखों में काजल और होंठों पर लिपलॉस... मेरेहोश उड़ाने के लिए ये सब काफी था। मेरे कार से उतरते ही शीतल ने अपने दिल की मुराद पूरी कर ली। उन्होंने तेजी से दौड़कर मुझे अपने गले से लगा लिया। मैंने भी शीतल के आस-पास अपनी बाँहों का घेरा बना लिया।
"बहुत खूबसूरत लग रहे हो तुम।"- शीतल के कान के पास अपने होंठ ले जाकर मैने कहा।
"लब यू मेरी जान।"
'चलें?'
"हाँ चलो...कितना प्यारा मौसम है न आज।"
"हाँ, बताया था मैंने...अब तो बारिश भी हो रही है।"
"अरे वाह!...दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं..."- शीतल ने कार में बैठते ही गुनगुनाना शुरू कर दिया।
कार अब नोएडा के लिए बढ़ चली थी। मौसम बहुत खुशनुमा था। झमाझम बारिश हो रही थी। कार में शीतल के पसंद की गजलें माहौल को कमानी कर दे रही थीं। ऊपर से शीतल के बदन की खुशबू, पूरी कार को महका रही थी। शीतल, बीच-बीच में मेरे करीब आकर अपने होंठों से मेरे गालों को छू लेती थीं, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे। मैं मना भी करता, पर शीतल कहाँ मानती...वो तो बस किसी बच्ची की तरह मेरे गले से लिपट जाती। बारिश में कार चलाना मुश्किल होता है। मैं कई बार शीतल को बोल चुका था, बावजूद इसके वो अपनी छेड़खानी से बाज नहीं आने वाली थीं। कभी मेरे हाथों पर अपने हाथ रख देना, कभी मेरी आँखों में अपनी आँखें डाल देना। कभी मेरे कंधे पर अपने हाथ रख देना और कभी मेरी गर्दन पर चुंबन रख देना। ऑफिस तक के एक घंटे के सफर में शीतल की ये शरारतें बंद नहीं हुई थीं। शीतल, मस्ती में डांस कर रही थीं। वो कार के अंदर हूटिंग कर रही थीं। ऐसे लग रहा था जैसे शीतल के अंदर कोई चौदह-पंद्रह साल की लड़की छिपी है, जो इस मौसम का पूरा आंनद लेना चाहती है। हम दोनों अब ऑफिस पहुँच चुके थे। मैंने कार, पाकिंग की तरफ बढ़ा दी थी। कार खड़ी करके शीतल उतरने के लिए जैसे ही मुड़ी तो मैंने उनका हाथ थाम लिया। शीतल ने मुड़कर मेरी आँखों में देखा, तो वो समझ गई कि ये शरारत है मेरी। शीतल वापस सीट पर आराम से बैठ गई। इस बार मैं शीतल के करीब आ रहा था। शीतल मेरी आँखों में देखे जा रही थीं। मैंने अपना एक हाथ शीतल की पीठ की तरफ बढ़ाया, तो उनके बदन में एक बाइब्रेशन हो उठा। दूसरे हाथ से शीतल के चेहरे को पकड़कर अपनी तरफ किया, तो उनकी साँसें तेज हो गई। शीतल अब मेरी तरफ मुड़ चुकी थीं। मैं और शीतल एक-दूसरे के करीब आते जा रहे थे। अगले ही पल शीतल की आँखें बंद हो गई और मेरे होंठों ने उनके होंठों पर अपने प्यार की चादर चढ़ा दी। शीतल ने भी अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ लिया। हम दोनों एक-दूसरे में डूबते जा रहे थे। एक-दूसरे की गर्म साँसें टकराने लगी थीं। एक-दूसरे के भीतर की गर्माहट को हम दोनों महसूस कर रहे थे। कोई भी इस पल को गवाना नहीं चाहता था। कार के शीशों पर बारिश की बूंदें थीं। अंदर ऐसे लग रहा था जैसे हम किसी कमरे में बंद हैं। मैं भी कभी उनके होंठों को चूमता, तो कभी उनकी गर्दन को। कभी मैं उनके बालों से खेलता, तो कभी उनकी ऊंगलियों से।
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