RE: RajSharma Stories आई लव यू
कार, हौजखास की तरफ बढ़ चुकी थी। शीतल की बातें कानों में इस कदर चाशनी घोल रही थीं कि मैंने कार में म्यूजिक ऑफ कर दिया था। शीतल की इन बातों से मेरे चेहरे पर अजीब-सी खुशी थी। शीतल मेरी आँखों में देखकर बस बोलती जा रही थीं और मैं बीच बीच में उनकी आँखों में देख रहा था।
पता है राज, हमारी जिंदगी में न कोई खुशी नहीं थी; हम सुबह छह बजे उठते थे, फिर अपनी बेटी को प्यार से उठाते थे। उसके लिए लंच बनाना और फिर उसे तैयार कर स्कूल भेजना। उसके लिए जो लंच हम बनाते थे, उसमें से थोड़ा हम ऑफिस आते वक्त खाकर आते थे। ऑफिस आकर हम कैंटीन में ही अपना ब्रेकफास्ट और लंच करते थे। अपने अतीत को भुलाकर दिनभर काम में डूबे रहते थे। बहुत ज्यादा किसी से बात नहीं करते थे। कोई हमारी जिंदगी के बारे में पूछ भी लेता था, तो हम बेहिचक बता देते थे कि हमारा तलाक हो चुका है और फिर अकेले में जाकर बहुत रोते थे। जब घर जाने का वक्त होता था, तो हम रास्ते से ही कुछ खाकर जाते थे। हमें अच्छा नहीं लगता है कि हम अपने पापा-मम्मी पर बोझ बनकर रहें। लेकिन कर भी क्या सकते हैं...हम अलग भी नहीं रह सकते और अपने घर में अब पराए की तरह रह रहे हैं। राज, हमारे घर में हमारा अलग कमरा भी नहीं है,हम मालविका के साथ इरॉइंग रूम में सोते हैं। हम टूट चुके थे बिलकुल । मालविका के अलावा हमारी कोई जीने की वजह नहीं थी, इसलिए बस जिंदा थे हम। हम न हँसते थे और न किसी फंक्शन में शामिल होते थे। हमें सजने-संवरने का भी मन नहीं करता था। लेकिन जबसे आप हमारी जिंदगी में आए हैं, हम खिल से गए हैं। आपने इस मुरझाए शरीर में जान डाल दी है। आपने सजाया है हमें, सँवारा है हमें। आज आपकी वजह से हम किसी फंक्शन में जा रहे हैं। ये जो सूट हमने पहना है न, हमें बहुत प्यारा लगता है। लेकिन हमारा मन नहीं कहता था कभी इसे पहनने को। पता नहीं क्यू, आज आपके सामने इतना सजकर आने का मन किया। सच कहें, तो अब हर रोज कुछ नया और अच्छा पहनने का मन करता है, क्योंकि आपसे मिलना होता है।"
शीतल की आँखों से आँसू छलक रहे थे। बो अपने आँसुओं को बार-बार पोंछती जा रही थीं। मैं उनकी आँखों में देखकर बस मुस्करा रहा था।
राज, सच कहूँ, तो तुमने मेरी दुनिया फिर से रोशन कर दी है। अब हम हँसने लगे हैं, मुस्कराने लगे हैं, खिलखिलाने लगे हैं। ऑफिस में सब हमारे इस बदले व्यवहार से चौंके हुए हैं, पर सब ये देखकर खुश हैं कि हम खुश हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ तुम ही हो राज । मैं अपनी जिंदगी में किसी खुशी की उम्मीद छोड़ चुकी थी। मुझे प्यार में ऐसे धोखा मिला, कि प्यार से मेरा भरोसा ही उठ गया था। मैं सोचती भी नहीं थी कि कोई ऐसा शख्म मेरी जिंदगी में आएगा, जो मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर देगा। मैं कितनी बड़ी हूँ तुमसे, फिर भी तुम कितना प्यार करते हो मुझे मेरे अलावा किसी और के बारे में खयाल तक नहीं आता तुम्हारे मन में। तुम्हारे दोस्त मुझे बताते हैं कि तुम कितने पागल हो मेरे लिए। सच में तुम मेरी जिंदगी में एक नई रोशनी लेकर आए हो। तुमने ही कहा था कि अभी तो मैं तुम्हारी जिंदगी में आई भी नहीं हैं, फिर भी ढेर सारी खुशियाँ लेकर आई हूँ। ___
“राज, हकीकत तो ये है कि अभी तो तुम पूरी तरह मेरी जिंदगी में आए भी नहीं हो, फिर भी मेरी जिंदगी में बड़े बदलाव लेकर आए हो। मैं भी नहीं जानती हूँ कि तुम मेरे हो पाओगे या नहीं, फिर भी तुम्हारा आना एक उम्मीद जगाता है मेरे मन में। मैं टूट गई थी, बिखर गई थी, डरने लगी थी। सब-कुछ खो जाने का डर था। लगता था, अब जिंदगी कैसे जी पाऊँगी? लेकिन तुम्हारे आने के बाद डर नहीं लगता है अब। जब तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ चलते हो, जब तुम मेरी आँखों में आँखें डालकर खिलखिलाकर हँसते हो, मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरी परेशानी बाँटते हो, तो लगता है जैसे तुम इसी दिन का इंतजार कर रहे थे मेरी जिंदगी में आने का। तुम सच में बिलकुल ठीक बक्त पर आए हो; जरूरत थी मुझे तुम्हारी इस वक्त... बिखरने से बचाया है तुमने मुझे।"- शीतल ये कहते कहते रोने लगी थीं।
“शीतल, जब मैं इतनी सारी खुशियाँ लेकर आया हूँ, तो आँखों में आँसू क्यों? सब बहुत अच्छा है...रोना बंद करो बाबू; में कभी टूटने नहीं दूंगा तुम्हें, कभी बिखरने नहीं दूंगा... जान हो तुम मेरी शीतल, आपकी खुशी ही मेरी जिंदगी का मकसद है अब तुम्हें डरने और घबराने की कोई जरूरत नहीं है। मैं हमेशा तुम्हारी जिंदगी में रहूँगा... कभी दूर नहीं जाऊँगा। बस तुम कभी रोना मत...तुम्हारे आँसू बहुत कीमती हैं, इन्हें फिजूल में मत बहाना।"- मैंने कहा।
मेरे इतना कहने भर से शीतल के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। उनका चेहरा खिल उठा था।
"राज, फंक्शन में खाली हाथ जाएंगे हम?"- शीतल ने आँसू पोंछते हुए कहा।
“अर हाँ...मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा; क्या लेकर चलें सागर के लिए?"
"ऐसा करते हैं कुछ मीठा और बुके ले चलते हैं।"
"ओके...गुड आइडिया; आगेहल्दीराम से कुछ ले लेते हैं।"
ठीक सवा छह बजे थे और हम सागर के रेस्तरां के बाहर खड़े थे।
बाहर से किसी खूखार भूत जैसे डिजाइन का यह रेस्तराँ काफी डरावना था। लंबे-लंबे दाँतों वाले विशाल राक्षस का मुंह, दरवाजे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। मैं और शीतल भी इसी भूतिया रेस्तराँ में दाखिल हो रहे थे। अंदर घुसते ही इंसानी हड्डियाँ गैलरी में लटकी हुई थीं। कहीं खोपड़ियों के आगे दिये जल रहे थे, रंग-बिरंगी रोशनी और धुआँ पूरे माहौल में इस कदर फैला था, मानो हम किसी पुरानी हवेली में आ गए हों। यह सब देखकर शीतल थोड़ा डर-सी गई थीं। उनके एक हाथ में गुलदस्ता था, तो दूसरे हाथ से उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया। जैसे ही हम आगे बढ़े, तो भूतिया बेश में कुछ बेटर, प्लेट में रिंक लेकर टहल रहे थे। ये गैलरी जहाँ खत्म होती थी, वहाँ आत्माओं के कराहने जैसी आवाजें भी आ रही थीं। हम जैसे ही इस कंपार्टमेंट में दाखिल हुए, एक डरावनी आवाज बाला शख्म हमारी तरफ झपटा। शीतल ने तो अपना चेहरा मेरे कंधे पर रख दिया। जैसे ही शीतल चीखीं, तो सागर अपने असली रूप में सामने था।
"क्या राज, डर गए यार तुम लोग...इसका मतलब मेरा ये रेस्तराँ बनाना सफल रहा।"- सागर ने कहा।
“यार कमाल का रेस्तराँ बनाया है....लगता है जैसे पुरानी हवेली में आ गए हों।"
"तो तुझे पसंद आया?"
"अरे बहुत पसंद आया...अच्छा शीतल, ये सागर है...ये रेस्तराँ इसी का है और सागर, ये शीतल है...मेरी सबसे अच्छी दोस्त।"- मैंने दोनों का परिचय कराया और शीतल ने
गुलदस्ता सागर की तरफ बढ़ा दिया।
गुलदस्ता लेकर सागर हमें हॉल में लेकर पहुंचा, जहाँ सब लोग अपनी-अपनी टेबल पर बैठे थे। हर तरफ डरावनी कलाकृतियाँ थीं। कई कलाकृतियाँ ऐसी थीं, जिन्हें देखकर लग रहा था कि अभी चुडैल बाहर निकलेगी और खा जाएगी। सागर ने मुझे और शीतल को एक कॉर्नर बाली टेबल पर बिठाया और बाकी मेहमानों को लेने चला गया।
"शीतल, कैसा लगा?" - मैंने पूछा।
“यार राज, बहुत डरावना है न सब; इंसान डर के मारे खाना ही नहीं खा पाएगा।" शीतल ने कहा।
"हाँ सच में...अरे! वो देखो चुडैल।"- मैंने एक बेटर की तरफ इशारा करते हए कहा।
"राज, कितनी डरावनी है वो...पास आएगी तो डर लगेगा यार।"- शीतल ने कहा और वो डरावनी बेटर हमारी तरफ ही आ गई।
"सर, क्या लेंगे आप लोग?"- उसने पूछा। मैंने अपने लिए कोल्ड कॉफी और शीतल के लिए कोक ऑर्डर कर दिया। इस बीच सामने खड़े सागर की आवाज आई।
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