RE: RajSharma Stories आई लव यू
“राज, तुम परिवार की स्थितियों को समझ नहीं रहे हो बेटा... मेरे लिए यह मुश्किल है। वह आदमी किसी की लाश के ऊपर भी इस शादी के लिए राजी नहीं हो सकते, अच्छा होगा यह कहानी यहीं खत्म करो।”- माँ ने कहा। ___
“माँ, ऐसा मत कीजिए प्लीज; एक कोशिश कर दीजिए मेरी खातिर, मैं आपका बेटा हूँ... आप ही तो कहती हो आपके लिए मेरी खुशी से बड़ी कोई खुशी नहीं है, तो फिर आज ऐसे मुंह क्या मोड़ रही हो?"
मेरे चेहरे के भाव, शून्य हो चुके थे। जो थोड़ी खुशी थी, बो गायब हो चुकी थी। आँखों से आँसुओं की लड़ी बह रही थी... साथ में मम्मी भी फफक-फफककर रो रही थीं। मैं रोते हुए नीचे बैठ गया। तभी अचानक रसोई के गेट से कुछ गिरने की आवाज आई।
देखा, तो शीतल अपना गिरा हुआ पर्स उठा रही थीं। "अरे! शीतल तुम यहाँ।" ।
"हाँ, अंकल बोल रहे हैं कि निकलना चाहिए।" उन्होंने कहा।
"यह लड़का पता नहीं कब बड़ा होगा; जब भी दिल्ली लौटता है तो रोने लगता है; चलो अब तुम साथ जा रही हो, ध्यान रखना।"- माँ ने बात को छुपाते हुए कहा।
मेरे चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट थी; लेकिन एक डर मेरे चेहरे पर था, कि कहीं शीतल ने मेरी और मम्मी की बातें सुन तो नहीं लीं। शीतल के चेहरे पर न खुशी थी और न ही आँखों में आँसू । सब लोग गेट पर आ चुके थे। पापा और मम्मी के पैर छकर मैं और शीतल गाड़ी में बैठक्कर दिल्ली के लिए निकल पड़े।
दिन छिप चुका था। कार की लाइटें जल्न चुकी थीं। स्ट्रीट लाइटें भी सड़कों को रोशन करने लगी थीं। शीतल बिलकुल शांत थीं।
"क्या हुआ शीतल, कैसा लगा सबसे मिलकर?"- मैंने चुप्पी को तोड़ते हए पूछा।
"कुछ भी तो नहीं राज; सबसे मिलकर बहुत खुश हूँ मैं।"
"तो फिर चुप क्यों हो?"
“राज, मैं बहुत थक गई हूँ, सोना चाहती हूँ।"
"अरे! नींद आ रही तुम्हें; खाना खाकर सोना।"
"नहीं राज, मेरा मन नहीं है, में सोना चाहती हूँ।"
“ठीक है, आराम कर लो तुम फिर।"
“दिल्ली आ जाए तो उठा देना हमें।"- शीतल ने इतना कहा और अपनी आँखें बंद कर ली।
मैं कार में शीतल के साथ होकर भी अकेला था। जानी-मानी गायिका आबिदा परवीन का गीत 'नूर-ए-लाही धीमी आवाज में चल रहा था और कार एक सौ बीस किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से दिल्ली छने को बेताब थी।
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