RajSharma Stories आई लव यू
09-17-2020, 12:36 PM,
#31
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"राज, सच में यार...हमें प्यार हो गया है आपसे।"- उन्होंने कहा। शीतल को मुझसे प्यार तो हो गया था, लेकिन हम दोनों के बीच छह साल का जो अंतर था, वो शीतल के कदमों को बढ़ने से रोक रहा था। वो इस प्यार से डर रही थीं।
शीतल ने कहा था

"राज, हम बहुत डर रहे हैं। हम चाहकर भी आपके साथ कोई रिश्ता सोच नहीं सकते हैं। आप बहुत छोटे हैं हमसे; आपको हम कुछ दे नहीं पाएंगे, उल्टा आपकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे हम। आपसे प्यार करते हैं इसलिए आपकी जिंदगी बर्बाद नहीं होने देंगे हम... इसलिए आज के बाद हम कभी बात नहीं करेंगे आपसे हम सिर्फ दोस्त बनकर रहेंगे आपके। आपका मिलना किसी बेशकीमती चीज मिलने से कम नहीं है, हमारे दोस्त बनकर हमारे साथ हमेशा रहना। जो पल आपके साथ बिताए हैं, वो हमारे लिए काफी हैं।"

मैं जानता था कि शीतल ने अपनी जिंदगी में इतने सारे दुःख झेले थे, कि शायद उतना भर सोचकर किसी की रुह तक काँप सकती है। एक रिश्ते में पूरी तरह टूट जाने के बाद दोबारा किसी से प्यार करना शायद मुश्किल था उनके लिए। शीतल के लिए मेरे दिल में जो प्यार था, वो अब इजहार का रूप ले चुका था। उम्र के अंतर को भुलाकर मैं शीतल को अपना बना लेना चाहता था। मैं शीतल के साथ जिंदगी बिताना चाहता था, लेकिन मेरे इजहार करने पर हर बार शीतल मुझे रोकती थीं। वो बताती थीं कि जो हम दोनों कर रहे हैं, वो गलत है। लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि प्यार में कुछ गलत नहीं होता है।

प्यार रंग नहीं देखता है, प्यार रूप नहीं देखता है, प्यार उम्र भी नहीं देखता है,

और प्यार, परिस्थितियाँ भी नहीं देखता है। तो मैं कैसे अपने प्यार से पीछे हट सकता था? अगर दिमाग की बात होती तो समझा लेता, लेकिन दिल किसके समझाने पर समझा है आज तक। अगर लोग अपने दिल को समझा लेते, तो इस दुनिया में कोई परेम कहानी ही नहीं होती। अगर लोग अपने दिल को समझा पाते, तो ये दुनिया इतनी खूबसूरत ही न होती।

दोपहर से लेकर रात के तीन बज चुके थे फोन पर बात करते-करते। आँखें रो-रोकर थक चुकी थीं। दोनों एक-दूसरे के प्यार में इतना रोए थे कि अब आँखों से आँसू भी नहीं निकल रहे थे। मैं तो कुछ समझने के लिए तैयार ही नहीं था। शीतल बार-बार समझाने की कोशिश कर रही थीं कि हम दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं बन सकता है। शीतल ने कुछ सवाल छोड़े थे, जिनके जवाब मेरे पास नहीं थे।

राज, क्या हमारे बीच कोई रिश्ता हो सकता है?

क्या आप छह साल बड़े हो सकते हैं या हम छह साल छोटे? क्या कुछ बदल सकता है और आप हमारे हो सकते हैं? इन सवालों का बस मेरे पास एक ही जबाब था और वो जवाब था "मुझे कुछ नहीं पता शीतल:" मुझे बस इतना पता है कि मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आपके बिना एक साँस भी लेना मुश्किल है।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#32
RE: RajSharma Stories आई लव यू
चंडीगढ़ से लौटने के बाद अगले दिन हम ऑफिस में पहली बार मिलने वाले थे। ऑफिस में जिस शीतल से में मिलने वाला था, वो मेरा प्यार थीं और में उनका। चंडीगढ़ में हमारे दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार था और अब हम दोनों की जुबां पर प्यार था। मैं बेसब्री से उस पल के इंतजार में था, जब ऑफिस में मेरी आँखें उन्हें देखती। ठीक 12 बजे मैं ऑफिस में था। शीतल एक प्रोग्राम में गई थीं और तकरीबन एक बजे ऑफिस आई थीं। उनके इंतजार में एक-एक पल एक-एक घंटे से कम नहीं लग रहा था। आखिरकार बो वक्त आया। लंच के बाद शीतल जब मेरे सामने आई, तो उनकी आँखें एक पल के लिए झुक गई। हाय-हलो के बाद उनकी धीरे से उठती नजरों ने मुझे इस कदर देखा था, जैसे पहाड़ से किसी नदी ने अभी बना शुरू किया हो।

जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो चौबीस घंटे की एक-एक सेकेंड आपको बेहद खूबसूरत लगती है और हर सेकेंड आप बस उसी के बारे में सोचते हैं। मैं और शीतल एक ऑफिस में जरूर थे, लेकिन हमारे फ्लोर अलग-अलग थे। मुझे पाँचवें फ्लोर पर बैठना होता था और उनका डिपार्टमेंट टॉप फ्लोर यानि छठवें फ्लोर पर था। शीतल को ऑफिस ज्वाइन किए चार महीने ही हुए थे और मैंने इस ऑफिस में चार साल पूरे कर लिए थे।

शीतल के डिपार्टमेंट के सामने कैंटीन थी, म्बुली छत थी। जब भी काम से ब्रेक लेने का मन होता था, तो छत पर बुली हवा में घूमा करता था। लंच तो कैंटीन में होता ही था, दिन की एक चाय भी कैंटीन में ही होती थी। लेकिन इन चार सालों की नौकरी में मैं कभी इतनी बार टॉप फ्लोर पर नहीं गया, जितनी बार उस एक दिन में गया था।

शाम हो चुकी थी। शीतल के जाने का समय हो चुका था। "आई एम रेडी टू लेफ्ट'- उनका मैसेज था। "ओके, आई एम कमिंग ऑन टेरेस"- मैंने रिप्लाई किया। टॉप फ्लोर जाकर शीतल के साथ बाहर पाकिंग तक छोड़ने में काफी कुछ बदल चुका था। उन्हें ड्रॉप करने में एक जिम्मेदारी का अहसास हो रहा था। शीतल से जब भी दूर होने का जिक्र आता था, मन भर आता था।

इस देश के एक बड़े कवि हैं, डॉ. विष्णु सक्सेना। उन्होंने एक बेहद खूबसूरत लाइन लिखी है।

"जब भी कहते हो आप हमसे कि अब चलते हैं हमारी आँख से आँसू नहीं संभलते हैं अब न कहना कि संगे दिल नहीं रोते जितने दरिया हैं पहाड़ों से ही निकलते हैं।"

डॉ. विष्णु सक्सेना ने यह पंक्तियाँ शायद मेरी हालत को बयां करने को ही लिखी होंगी।

शीतल, स्कूटी से ऑफिस आती थीं। हम दोनों उनकी स्कूटी के पास खड़े होकर बात कर रहे थे। कुछ पल में वो जाने वाली थीं। धीरे-धीरे मैं अपनी बातों को खत्म करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन बातें तो बातें ही हैं, कब खत्म होती हैं।

"राज, हम लेट हो रहे हैं।"- शीतल ने कहा था।

"ओके, जाइए आप आराम से; अपना ध्यान रखना।"- मैंने मुस्कराते हुए रिप्लाई किया।

"हम्म, बाय!"- शीतल ने कहा।

“मुनिए , घर जाकर मैसेज कर दीजिएगा।"- मैंने कहा।

'हम्म' उन्होंने रिप्लाई किया।
शीतल को अपने घर पहुँचने में पैंतालीस मिनट लगते थे। ठीक छियालीस मिनट बाद मैंने उन्हें फोन किया। वो अपने घर में एंट्री ही कर रही थीं। बो ठीक से घर पहुंच चुकी हैं,

ये जानकर मैं भी ऑफिस से निकल गया था। _पूरे रास्ते मन में शीतल के साथ बिताए हर खूबसूरत पल को मैं याद कर रहा था। एक्टिवा अपने आप चल रही थी...तीन साल में शायद उसे भी मेरे घर का रास्ता याद हो गया था। अब एक्टिवा को ये बताने की जरूरत नहीं थी कि किधर जाना था। मैं शीतल के खयालों में ही घर पहुँच चुका था।

शीतल एक माँ भी थीं। दिनभर ऑफिस में उन्हें अपनी बेटी मालविका की चिंता रहती थी। एक चार-पाँच साल की नन्ही और बहुत प्यारी बच्ची उनका इंतजार कर रही होती थी। मालविका के लिए शीतल, टाइम से पहले ही ऑफिस से घर के लिए निकल जाती थीं। शीतल, घर पहुँचकर सबसे पहले उसे गोद में उठाती थीं। उसे अपने हाथों से खाना खिलाना और अपनी गोद में उसे मुलाना; घर जाकर सबसे जरूरी ये दो काम होते थे उनके।

मालविका उनकी जिंदगी थी; वो शीतल की ताकत थी, बो शीतल की शक्ति थी, वो शीतल की खुशी थी, वो उनकी साँसें थी, बो उनकी धड़कन थी... वो उनकी खुशी का कारण थी।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#33
RE: RajSharma Stories आई लव यू
चंडीगढ़ में शीतल ने ये बताया था मुझे। शीतल ने कहा था, "राज, आज हम जो कुछ हैं, अपनी बेटी मालविका के लिए हैं: मालविका ही है जिसकी वजह से आज हम जिंदा हैं। हमारे ससुराल और हमारे एक्म हसबैंड ने हमें जिंदा लाश बना दिया था। उस शख्म से प्यार करना तो हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी और इस गलती की सजा हम जिंदगीभर भुगतते रहेंगे। उसने हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ हमारी जिंदगी में कोई बड़ी खुशी आ ही नहीं सकती है। हम अपनी जिंदगी से तंग आ चुके थे। हमने इतने दुःख झेले थे, कि फैसला कर लिया था अपनी जिंदगी को खत्म करने का। एक रात हमने खुद को खत्म करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी। कमरे में लगे पंखे पर हमने अपने दुपट्टे से फंदा भी लगा लिया था। हमारी आँखों में आँसू थे और हम फांसी के फंदे पर लटकने वाले थे। तब मालविका ही थी, जो अपने बॉकर में चलकर आई थी और हमारे पैरों को पकड़कर रोने लगी थी। पता नहीं उस छोटी-मी नादान बच्ची को कैसे पता चला कि उसकी माँ उसे इस दुनिया में अकेला छोड़कर मरने जा रही है। तब हमने अपना इरादा बदला था।" __ सच में वो जान थी शीतल की और यू कहें कि अब मेरी भी। बो स्कूल जाने लगी थी। शीतल के घर पहुँचने के बाद हम उसके सोने तक बात नहीं करते थे, इसलिए दस बजे तक शीतल को कोई फोन नहीं किया। रात ग्यारह बजे के आस-पास शीतल को फोन किया। चंडीगढ़ जाने से लेकर चंडीगढ़ में तीन दिन के एक-एक पल को याद करते हुए रात के तीन बज चुके थे। कई बार हम स्खूब खिलखिलाए भी और कई बार आँसू इस कदर बहे कि थमे ही नहीं। ___ शीतल प्यार कर बैठी थीं, पर ये डर उनके मन में था कि इस रिश्ते को हम क्या नाम देंगे।

“राज, मेरी एक बेटी है और मैं एक बार शादी कर चुकी है; मैं चाहकर भी तुम्हारी नहीं हो पाऊँगी और न तुम मेरे। हमें जिंदगी भर इस बात का अफसोस रहेगा। काश! मुझे पहली बार आपसे ही प्यार हुआ होता, तो जिंदगी का रंग कुछ और ही होता।" शीतल ने कहा था।

मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। बस मैं नदी के उन दो किनारों की तरह प्यार करना चाहता था, जो जानते हैं कि कभी एक नहीं हो पाएंगे, फिर भी ताउम्र साथ चलते हैं एक-दूसरे के। __

चार घंटे तक एक-दूसरे से बात करने के बाद भी फोन रखने का मन किसी का नहीं था। हाँ, इतनी देर बात करने के बाद हम दोनों ने अपने रिश्ते को एक नाम जरूर दे दिया था... 'दोस्ती का नाम।

हम दोनों के दिल को सुकून मिल गया था...जैसे एक-दूसरे को पा लिया हो उमर भर के लिए। सुबह ऑफिस आना था। एक-दसरे की झलक पाने को मन बेचैन था। मेरा मन तो था कि अभी आँखें बंद होते ही सुबह हो जाए और मैं ऑफिस में है। लेकिन वक्त की अपनी रफ्तार होती है, सो सोना जरूरी था रात को बिताने के लिए।

"ओके शीतल, अपना ध्यान रखना।" मैंने फोन रखने से पहले कहा।

"हम्म, आप भी।"- उन्होंने कहा।

"आई लव यू"- मंने कहा।

एक लंबी चुप्पी थी शीतल की। शायद वो कुछ कहना चाहती थीं लेकिन उन्होंने अपने होठों को एक-दूसरे से चिपका लिया था। मने फिर कहा, "शीतल आई लव यू।"

"राज, हम दोस्त हैं न।" - उन्होंने कहा था।

"हाँ, पर आई लव यू दोस्ती बाला।"- मैंने कहा था।

"ओके, ओके, गुड नाइट"- उन्होंने कहा था।

"हम्म, गुड नाइट, टेक केयर।"- मैंने कहा था।

'मुनिए'- उन्होंने कहा।

"हाँ, कहिए।"- मैंने पूछा

"कुछ नहीं।"- उन्होंने कहा।

"ओक'- मैंने कहा। "अच्छा सुनिए।"- शीतल ने कहा।

'हाँ'- मैंने फिर कहा।
“आई लव यू"- शीतल ने बड़े प्यार से कहा था।

"आई लब यू ट्र'- मैंने रिप्लाई किया। गुलाब की पंखुरियों जैसे उनके होंठों से 'आई लव यू' सुनने को मेरे कान बेताब रहते थे। उनकी आवाज कानों में पड़ी, तो आँखें खुद-ब-खुद नींद के नशे में डूब गई।

जब आपके दिल में किसी के लिए प्यार होता है, तो सामने खड़े होकर भी आप उसकी आँखों में नहीं देख पाते हैं। ऑफिस की छत पर शीतल से मिलना-मिलाना शुरू हो गया था। ऑफिस पहुंचते ही शीतल को मैसेज करता था। उसके बाद हम कंटीन में मिलते थे

और नाश्ता करते थे; दोपहर में साथ खाना खाते थे। दिनभर की बातों के साथ पुरानी यादों को हम छत पर घूमकर ताजा करते थे। मैं शीतल की आँखों में देखकर हर बात कहना चाहता था, लेकिन वो हर पल आँखें चुरा लेती थीं। जब शीतल कुछ कहती थीं और मैं उनकी आँख में देख भर लेता था, तो बो भूल जाती थीं कि आगे क्या कहना है। वो किसी नासमझ और नादान से बच्चे की तरह मेरे चेहरे की तरफ देखने लगती थीं। उनकी आँखों में मेरे लिए प्यार साफ झलकता था।

उनकी बस यही शिकायत होती थी- “राज, आप हमारी आँखों में देखना बंद करेंगे।" __“आप आँखों में देखने लगते हैं, तो हमारी धड़कनें तेज हो जाती हैं और हम भूल जाते हैं कि क्या बात कर रहे थे।"

मैं सॉरी बोल देता था, लेकिन जैसे ही शीतल मुझे फिर से कुछ बताने लगती थीं, तो मैं अचानक उनकी आँखों में देखकर कह देता था- "आई लब यू।"

शीतल बड़ी हैरानी से मुझे देखतीं और नजरें हटा लेतीं। उनकी तेज होती साँसों को मैं

महसूस कर लेता था। उनकी साँसें बढ़ते ही उनके होंठ सूखने लगते थे। __

मैं जान लेता था कि शीतल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा है। उनके दिल की धड़कनों को तेज करने के लिए में जान-बूझकर कुछ नया करता था। कभी नजरें झुकाकर उन्हें देखता था, तो कभी नजर उठाकर।

मेरी डेस्क पर जो एक्सटेंशन लगा था, उसकी घंटी आज तक इतनी बार नहीं बजी थी, जितना अब बजने लगी थी। हर आधे घंटे पर एक्सटेंशन 'ट्रिन-ट्रिन' करता था। मेरी टीम में बीस लोग थे। प्रोग्राम से लौटते ही टीम में सबने पूछा था, कैसा रहा प्रोग्राम? बाकी लोगों को तो प्रोग्राम के बारे में ही बताया था, लेकिन दीपाली, शिवांगी और दीपक को मैंने शीतल के बारे में बता दिया था। तीनों जान गए थे कि कुछ तो हो गया है चंडीगढ़ के उन तीन दिनों में। एक्सटेंशन कॉमन था, कई बार बाकी लोग उठा लेते थे। जब भी शीतल का फोन आता था, तो पूरी टीम मेरी तरफ देखने लगती थी।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#34
RE: RajSharma Stories आई लव यू
चंडीगढ़ जाने से पहले, या यूँ कहें कि हमारी इस लव स्टोरी के शुरू होने से पहले तक शीतल कभी-कभार या शायद दिन में एक बार पाँचवें फ्लोर पर आती थीं। उनके बॉस का केबिन इसी फ्लोर पर था। अगर बॉस से भी कोई काम होता था, तो वह फोन पर ही निपटा लेती थीं... लेकिन अब उनको बहाना चाहिए होता था मेरे फ्लोर पर आने का। अगर बॉस ने कोई पेपर भी माँगा है, तो वो किसी से भिजवाने की बजाय खुद नीचे चली आती थीं। उनके किसी टीम मेट को भी अगर उनसे बात करनी होती थी, तो वो उसे ऊपर बुलाने की बजाय नीचे दौड़ आती थीं; यहाँ तक की टॉप फ्लोर की बजाय बो पाँचवें फ्लोर के वॉशरूम को इस्तेमाल करने लगी थीं।

और पाँचवें फ्लोर पर आते ही उनका मैसेज आता था- 'पलटिए।' पाँचवें फ्लोर के एंट्री गेट की तरफ मेरी पीठ जो होती थी। शीतल, जब अपने फ्लोर पर जाती थीं, तो भी उनका मैसेज होता था- “पलटिए जनाब, पीछे देखिए।"

मैं पलटकर तब तक उन्हें देखता रहता था, जब तक शीतल, लिफ्ट में एंट्री नहीं कर जाती थीं।

प्यार दिल में होता है, दिमाग में होता है। लेकिन शीतल मेरी आदत में शामिल हो गई थीं। प्यार में डूबने की हकीकत ये ही होती है कि कोई आपकी आदतों में इस कदर शामिल हो जाए कि उसका खयाल आपके दिल और दिमाग से दूर न हो। तभी तो घर से निकलने से पहले शीतल को मैसेज करना, कि वो ठीक से ऑफिस पहुँची या नहीं, ऑफिस आकर उन्हें ठीक से पहुँचने का मैसेज करना, उसके बाद उनके साथ चाय पीना, लंच के बाद मिलना और साथ घूमना; फिर शाम की चाय और छत पर घूम-घूमकर बातें करना और सबसे खूबसूरत बो पल... शाम को उन्हें टॉप फ्लोर से पाकिंग तक छोड़ने जाना।

शीतल जिस दिन छुट्टी पर होती थीं, तब मैं ये सब करता था। छत पर घूमता था, चाय पीता था,पाकिंग तक जाता था। बस अंतर इतना होता था कि उस दिन शीतल नहीं, उनकी यादें साथ होती थीं। पूरी रात बात करते ही गुजरती थी। मेरे कानों में पड़ने वाला आखिरी शब्द उनका होता था और सुबह की पहली किरण के साथ जो शब्द सुनाई देता था, बो भी शीतल का ही होता था।

प्यार में जी रहे इंसान के दिन के चौबीस नहीं अड़तालीस घंटे होते हैं। चौबीस बो, जो साथ बिताए और चौबीस उन पलों की यादों के। जब शीतल साथ होती थीं, तो समय हवाई जहाज की स्पीड से भागता था और जब शीतल साथ न होकर यादों और खयालों में होती थी, तो हर घंटा खिंचकर दो घंटे के बराबर लगता था। शीतल थीं, तो तेज धूप भी तन को ठंडक देती थी। वही थीं, जिनकी वजह से ऑफिस के रास्ते में लगने वाला जाम भी परेशान नहीं करता था। जाम में फंसकर भी लगता था कि कुछ पल में तो ऑफिस पहुँच ही जाएंगे और शीतल से मिलना होगा। शीतल की वजह से कैंटीन की बेकार- मी चाय भी टेस्ट देती थी। उनकी ही बजह से हवा सुहानी लगती थी और रात दीवानी लगती थी।

शीतल ने पूछ लिया था, "हम एक कैसे हो सकते हैं?" तब मैंने उनसे कहा था, "कुछ पल साथ बिताने से ही जिंदगानी बनती है कुछ तेरे कुछ मेरे शब्दों से ही कहानी बनती है। जब से तुम हो मुझमें शामिल, मुझमें अब तुम ही तुम हो सुबह-शाम और दिन के हर पल, हवा मुहानी लगती है। तेरे हाथों की खुशबू में रंग हिना का महका है गोरी-नाजुक हथेलियों में तस्वीर प्यार की बनती है। तारे, चंदा और चाँदनी, ये सब फीके लगते हैं तेरी बातें और यादों से रात दीवानी लगती है।" हम दोनों के दिल में बस प्यार था एक-दूसरे के लिए। हम दोनों हर पल साथ बिताना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे का हो जाना चाहते थे। बात करते-करते सपनों का एक आलीशान महल बनाने लगते थे। उस महल का नाम रखने से लेकर, उसकी सजावट तक में इस्तेमाल होने वाली चीजों और उसके रंगों पर रात-रात भर बातें करते। __ और जब बात खत्म कर मोने का वक्त आता, तो बस एक बात मुंह से निकलती थी

"काश! ऐसा हो पाता कि आप हमेशा के लिए हमारे हो जाते।"

ये सुनते ही सपनों का वो बेहद खूबसूरत महल एक पल में धराशाई हो जाता था, हर उम्मीद काँच की तरह बिखर जाती थी। काँच को बिखरते तो देखा ही होगा... बिखरने के बाद संवारना मुश्किल होता है काँच को।।

बचपन में जब सब बच्चे पानी की बोतल साथ लेकर स्कूल जाते थे, तो मैं बोतल के साथ एक गिलास भी लेकर जाता था। मुझसे बोतल से पानी नहीं पिया जाता है। ऑफिस में भी डेस्क पर पानी की बोतल के साथ एक गिलास आज भी साथ रखता हूँ। __

“राज, जब आप चंडीगढ़ में हमारे कमरे में पहले दिन आए थे, तो याद है आपने गिलास से पानी पिया था?" - शीतल ने कहा था।

"हाँ, याद है।"- मैंने जवाब दिया था।

"आप और हम जब हमारे कमरे में बैठे होते थे, तो आप अक्सर उसी गिलास में पानी पीते थे और बो गिलास आपको वहीं रखा मिलता था।"- शीतल ने कहा था।

शीतल, पानी पीने की इस बात को क्यों कर रहीं थीं, मैं समझ नहीं पाया था।

“एक बात कहें राज?"- शीतल ने पूछा था।

"हाँ, कहिए न।"- मैंने कहा था।

"राज, जब आप हमारे कमरे में आते थे और जिस गिलास से पानी पीते थे न... उस गिलास में जो पानी रह जाता था, आपके जाने पर हम उस पानी को पीते थे।" - शीतल ने बताया।

'क्या।'- मैंने चौंकते हुए पूछा था।

"हाँ राज, हम आपके जूठे पानी को पीते थे और फिर उस गिलास को उतना ही भर देते थे, ताकि आप पता न कर सकें।"- शीतल ने बताया था। __

“और जब आपने हमारे कमरे में आकर कहा था न, कि ये गिलास कल से ऐसे ही रखा है, तो मैं एक पल के लिए डर गई थी; मुझे लगा था कि कहीं आप समझ न जाएं कि हमने गिलास को छेड़ा है।"- उन्होंने कहा था।

प्यार में एक-दूसरे के हाथ से खाना या एक-दूसरे का जूठा खाना, जो खुशी देता है, वो कोई बेशकीमती डिश भी नहीं दे सकती है।

एक-दूसरे का जूठा खाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती है, लेकिन प्यार में ये छोटी छोटी चीजें काफी मायने रखती हैं।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#35
RE: RajSharma Stories आई लव यू
ऑफिस में जब भी हम चाय के लिए कैंटीन में मिलते थे, वो तो बस मेरा कप खाली होने का इंतजार करती थीं। बात करते-करते वो हमारी आँख हटते ही हमारा खाली और जूठा कप फेंकने के लिए उठा लेती थीं।

वो कहतीं थीं "राज, हम आपको अपने हाथ से बनाकर जिंदगी भर चाय पिलाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि आपकी हर सुबह हमारे हाथ की चाय पीकर ही हो... लेकिन हम जानते हैं हमारी किस्मत में आप नहीं हैं। हम आपको अपना नहीं बना पाएंगे और आप हमारे कभी नहीं हो पाएंगे, इसलिए हम आपका जूठा कप उठाने में ही अपनी जिंदगी की खुशी हँद लेते हैं; और हाँ, आपसे एक रिक्वेस्ट; हमसे अपना जूठा कप उठाने वाला अधिकार मत छीनिएगा कभी।”

शीतल हमसे ऐसी चीज माँग रही थीं, जो हमारे लिए देना बड़ा मुश्किल था। हम कभी किमी से अपने जूठे बर्तन नहीं उहवाते हैं, लेकिन यहाँ बात किसी की खुशी की थी, तो हमने नहाँ किया और नन जब भी हम साथ चाय पीते थे, तो हम चाय खत्म करने के बाद अपने कप को हाथ से पकड़कर रखते थे। लेकिन हमारी जरा-सी भी नजर चूकने पर शीतल एक झटके से हमारे हाथ से जूठा कप ले लेती थीं और फेंकने चल देती थीं। उन्हें इसमें बहुत खुशी मिलती थी। बिलकुल एक छोटी बच्ची की तरह थीं वो। उन्हें देखकर बचपन की उन गुलाबी तितलियों की याद आती थी, जो हमारे घर के पार्क में आ जाया करती थीं।

तितली की तरह तो है ही शीतल... मनमस्त उड़ना फितरत है उनकी । वो जहाँ जाती हैं, सबको बना लेती हैं। वो अपने बिंदास अंदाज में नए-नए एक्सप्रेशन के साथ अपनी दिनभर की बातें बताती थीं। मैं बेफिक्र होकर उनकी हर बात सुनता रहता था।

जी चाहता था कि बस बो बोलती रहें और मैं बस सुनता रहूँ।

मैं चाहता हूँ कि उनके बोलने और मेरे सुनने का सिलसिला हम दोनों की आखिरी साँस तक चलता रहे।

घर के बड़े बच्चे को हमेशा ज्यादा प्यार मिलता है। बड़ा बच्चा सबका दुलारा होता है, सबका लाडला होता है। और अगर पहला बच्चा बड़ी उम्मीदों और बहुत समय के बाद हुआ हो, तो उसे और भी ज्यादा प्यार करते हैं सब। उसकी हर छोटी ख्वाहिश; हर छोटी जरूरत, एक पल में पूरी हो जाती है।

शीतल अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनकी एक छोटी बहन और एक छोटा भाई था।

शीतल ने अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहा था, वो उन्हें मिला था। बीस साल की उम्र तक वो किसी आजाद पंछी से कम नहीं थीं। जहाँ मन किया घूमती थीं, जो मन किया खाती थीं; जो चाहा, उसे उनके पापा तुरंत उनके सामने ला देते थे। हर वो चीज, जिसे वो चाहती थीं, वो उनके माँगने से पहले उनके पास होती थी।

लेकिन जिस शख्म को उन्होंने चाहा था, उस शख्स ने उनकी दुनिया उजाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

शीतल अपने भाई-बहनों में सबसे सुंदर हैं। अच्छी खासी लंबाई के साथ आकर्षक पर्सनालिटी है उनकी। उनकी छोटी बहन को हमेशा उनसे ये शिकायत होती थी, कि शीतल जो चाहती हैं, वो उन्हें मिल जाता है।

शीतल किसी पार्टी या फंक्शन में जाती थीं, तो उस पार्टी में वो सबका ध्यान खींच लेती थी और जिस पार्टी में वो नहीं जाती थीं, वहाँ उनके परिवार के लोगों से लोग पूछने लगते थे, "शीतल नहीं आई?"

शीतल की छोटी बहन को ये भी अखरता था। उनकी छोटी बहन अक्सर उनसे कहती थी, "तेरी तो किस्मत बहुत अच्छी है; सब तुझे इतना प्यार करते हैं...तू कहीं जाए या न जाए, सब तुझे पूछते हैं।"

शीतल की बहन को भी नहीं पता था कि बीस-इक्कीस साल की उम्र में जिसकी जिंदगी अनगिनत खुशियों से भरी है, उसकी जिंदगी एक दिन बिखर जाएगी और ये खुशियाँ हाथ से रेत की तरह फिसल जाएंगी। शीतल को भी ये नहीं पता था कि बर्फ बहुत खूबसूरत होती है, लेकिन उसे भी पिघलना पड़ता है। बाईस साल की उम्र में शीतल शादी के बंधन में बंध चुकी थीं। उनकी शादी की कोई तस्वीर या वीडियो उन्होंने मुझे नहीं दिखाया था। सच कहूँ तो उस शख्म को, जिसने मेरी शीतल को आँसू दिए और ऐसे निशान दिए जो जिंदगी भर नहीं जाएंगे; उसकी मनहूस शक्ल मैं देखना भी नहीं चाहता हूँ।

लेकिन शीतल अपनी शादी के वक्त कितना खुश थीं, ये उन्होंने बता दिया था। पावभाजी शीतल की सबसे पसंदीदा डिश है। उनका मूड ठीक करना हो, तो बस पावभाजी खिला दो। शादी के वक्त लड़कियाँ इतनी नर्वस होती हैं कि उनके चेहरे की खुशी ही गायब हो जाती है। लेकिन शीतल, जयमाला स्टेज पर बैठकर पावभाजी खा रही थीं। शीतल इतनी खुश थीं इस बात से, कि जिस लड़के से वो प्यार करती हैं, उससे उनकी शादी हो रही है।

शीतल जब भी अपनी शादी या अपने गुजरे वक्त की बात करती हैं, तो मैं भीतर तक हिल जाता है। उन्होंने क्या-क्या नहीं सहा? मार मही, जलना सहा, गालियाँ सही और उसके बाद अलग होना तक महा। रिश्ता टूटना कोई सामान्य बात नहीं होती है; न जाने कितने लोग अपनी जान दे देते हैं रिश्ता टूटने पर... कितने लोग जिंदगी भर के लिए जिंदा लाश बन जाते हैं रिश्ता टूटने पर। जानती हो डॉली!

ये सारी बातें करते-करते शीतल की आँखें भी नम हो जाती हैं, इसलिए मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि मैं अपनी बातों में उनका ध्यान लगाए रखू। मैं उनको और परेशान नहीं देख सकता हूँ। मैं उनकी आँखों में और आँसू नहीं देखना चाहता हूँ। उनका छोटे बच्चों की तरह इतराना, जान-बूझकर नादान बन जाना, आँखों और दिल के प्यार का पागलपन चेहरे, हावभाव और हरकतों में दिखना बहुत प्यारा होता है। जब शीतल मेरे सामने होती हैं, तो मेरी तरह ही बन जाती हैं: बो सब-कुछ भूल जाती हैं।

मैं तो भगवान से माँगता हूँ कि जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी शीतल को मिले... और अगर मुझे कुछ देना चाहते हैं भगवान; तो उन्हें, मुझे दे दें।

"जो भी माँगो तुम्हारे नाम आज कर देंगे लेके गम आपके झोली खुशी से भर देंगे। आके करीब तुमने हमको अपना कह दिया अपनी हर एक साँस अब तो तेरे नाम कर देंगे।"

बस, एक बार फिर उसी ढाबे पर रुक गई थी, जहाँ ऋषिकेश जाते वक्त रुकी थी। यही बो जगह थी, जहाँ डॉली से मेरी पहली मुलाकात हुई थी।

"चलो राज कुछ खाते हैं, फिर तुम्हारी स्टोरी कंटीन्यू करेंगे।"- डॉली ने कहा। "ओके...आओ।"- मैंने कहा। “पर मच में राज, तुम्हारी कहानी बहुत प्यारी है।''- बस से उतरते हुए डॉली ने कहा।

"हम्म...वो तो है।" पता है डॉली, जब मेरे जेहन में पहली बार शीतल के लिए प्यार का अहसास हुआ था, तब से मैं ये जानता था कि शीतल कभी मेरी नहीं हो पाएँगी और मैं कभी उन्हें अपना नहीं बना पाऊँगा।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#36
RE: RajSharma Stories आई लव यू
फिर भी मैं दिल और जान से ज्यादा प्यार करने लगा था उन्हें । उनके दिल की हर बात को पूरा करने के लिए मैं पागलपन की हद तक चला जाता था और आज भी चला जाता

शीतल कहती थीं, “राज, आप जानते हैं कि आपके और हमारे बीच कभी कोई रिश्ता नहीं बन पाएगा; हम शादी नहीं कर पाएंगे आपसे, हम जिंदगी नहीं बिता पाएंगे आपके साथ... फिर भी आप हमें इतना प्यार कर रहे हैं, क्यों? आपको डर नहीं लगता ये सोचकर, कि एक दिन सब खत्म हो जाएगा?"

"शीतल, बो प्यार ही क्या, जो ये सोचकर किया जाए कि क्या हाथ आएगा। पता है,

प्यार कितना अंधा है, ये तो तब ही पता चलता है, जब आपको ये पता हो कि आपके हाथ कुछ भी नहीं आएगा और आप पाने की उम्मीद छोड़कर प्यार करते हैं। कुछ रास्ते किसी मंजिल की ओर नहीं जाते हैं; बस शहरों के बीच से गुजर जाया करते हैं। और ऐसे रास्तों पर चलने का अलग मजा है। ये रास्ते आपको जीवन के अनुभव और कुछ यादगार पल दे देते हैं।"- मैंने कहा था।

हम दोनों ने अपने प्यार और रिश्ते के ऊपर 'दोस्ती' नाम का ऐसा कबर चढ़ा दिया था, जो न उन्हें पसंद था और न मुझे; लेकिन हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए इसके अलावा कोई और नाम नहीं था। हम दोनों के दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार भरा था, लेकिन उसे दुनिया के सामने स्वीकार करना किसी के बस में नहीं था, शायद इसीलिए हमने यह तय कर लिया था कि हम सिर्फ अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे।

बात करते-करते जब कभी मैं उनकी आँखों में देखकर दिल से जुड़ी कोई बात करता था, तो शीतल का जवाब तुरंत आता था, "राज, हम सिर्फ दोस्त हैं।" और इतना कहने के साथ वो अपनी आँखें चुरा लेती थीं और मुस्करा देती थीं।

हम दोनों प्यार का इजहार कर चुके थे, लेकिन आज तक एक-दूसरे को कभी छुआ तक नहीं था...आज तक शीतल से हाथ भी नहीं मिलाया था। शीतल ने रात में बात करते हुए कहा था, "आपने कभी हाथ नहीं मिलाया हमसे।"

रात से लेकर अगले दिन ऑफिस पहुँचने तक मैं उस पल का इंतजार कर रहा था, जब मैं शीतल की तरफ अपना हाथ बढ़ाऊँ और उनके हाथ को अपने हाथ में लूँ।

ऑफिस पहुँचकर शीतल को चाय के लिए मैसेज किया ही था, कि तुरंत उनका रिप्लाई आया, "या, कम इन कैंटीन।"

मैं दौड़कर कैंटीन पहुँचा। शीतल, कैंटीन के बाहर ही मेरा इंतजार कर रही थीं। उन्हें देखकर जैसे-जैसे मेरे कदम उनकी तरफ बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे धड़कन बढ़ती जा रही थीं। शीतल के चेहरे पर भी एक अजीब-सी खुशी थी। उनके करीब पहुँचते ही उनके चेहरे पर मुस्कराहट छा गई थी और उनकी नजरें शर्म से झुक गई थीं।

"हाय, शीतल!"- मने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा था।

उन्होंने एक झटके से अपना झुका हुआ चेहरा ऊपर उठाया और मेरी आँखों में देखा। मेरा हाथ अभी भी उनकी तरफ बढ़ा हुआ था। शीतल धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ा रही थीं। जैसे ही उनका हाथ थोड़ा-सा आगे आया, मैंने उसे अपने हाथ से थाम लिया था। कितना नाजुक था उनका हाथ। लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे का हाथ अपने हाथ में ले लिया हो। पहली बार मैंने शीतल को छुआ था। पहली बार किसी लड़की का हाथ पकड़ने पर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे।

शीतल का हाथ अभी भी मेरे हाथ में था। मैं अभी तक उस सुखद अहसास की दुनिया में था। मेरे दिल और दिमाग के बीच संपर्क खत्म हो चुका था। मैं भूल गया था कि हम ऑफिस की छत पर हैं। शीतल अपना हाथ खींच रही थीं, पर मैं उनका हाथ नहीं छोड़ना चाहता था। ये कोमल-सा हाथ जो मेरे हाथ में था, इसे उमर भर के लिए बस पकड़ लेना चाहता था।

आज भी दिन की शुरूआत हमेशा की तरह ही हुई थी। खिड़की से आने वाली चमकीली रोशनी को सबसे पहले देखना अब मुझे अच्छा नहीं लगता था। मुझे तो बस अच्छा लगता था कि शीतल के फोन से मेरे दिन की सुबह हो।

उठने के बाद हर काम बहुत जल्दबाजी में करने लगा था। फ्रोश होने और नहाने में केवल आधा घंटा लगता था। हाँ, तैयार होने में थोड़ा समय लगता था। ऑफिस आकर शीतल के चहकते चेहरे को देखने की उत्सुकता में ऑफिस का पैंतालीस मिनट का रास्ता कब कट जाता था,पता ही नहीं चलता था।

आज भी ऑफिस पहुँचकर शीतल को चाय के लिए मैसेज किया था। कुछ देर इंतजार किया, लेकिन रिप्लाई नहीं मिला था।

थोड़ी देर बाद शीतल का मेल मेरे इनबॉक्स में था। राज! हमने बहुत सोचा कल हमारे बारे में। देखिये, जिस तरह हम चल रहे हैं, उस तरह आगे चलकर काफी परेशानी में पड़ जाएंगे। आपमें और हममें उम्र के साथ काफी चीजों का अंतर है और बहुत जरूरी है उसे समझना।।

अभी आपकी जिंदगी शुरू होनी है और हमारी बीत चुकी... काफी हद तक। कुछ पा नहीं पाएंगे हम। आज जो छोटी-छोटी चीजें खुशी दे रही हैं, वही आगे चलकर बहुत दुःख देंगी। सही वक़्त पर रुकना बहुत जरूरी है।

मेरी जिंदगी में बहुत कुछ हो चुका है और हो रहा है। काफी जिम्मेदारियाँ हैं मेरे ऊपर। एक बार फिर भावनाओं के लिए न तो समय है और न जरूरत। भूल गई थी ये सब-कुछ, मेरी गलती है बो।

चंडीगढ़ बहुत खूबसूरत था...हर पल याद आएगा। पर...

वो वक़्त बीत चुका है... लौटकर नहीं आएगा; हमें भी हकीकत में आना चाहिए, सपनों की दुनिया से बाहर।

माफ कीजियेगा, पर हमारी शुभकामनाएँ हैं आपके साथ...आपके भविष्य के लिए।"

नेहा के इस मेल का खयाल भी नहीं था मेरे दिमाग में। मेल पढ़कर मैं हिल गया था। मैंने बस रिप्लाई किया था

"मुझे नहीं पता कि आप क्या कर रही हैं। लेकिन जो कर रही हैं वो मेरी समझ में नहीं आ रहा है। एकदम से ये सब हुआ, मुझे उम्मीद ही नहीं थी इसकी तो। आपका मेल पढ़ने के बाद बस रोए जा रहे हैं। आप सच में बहुत अच्छे हैं। मुझे नहीं पता कि हमारा रिश्ता कहाँ तक जाना चाहिए... बस इतना पता है कि प्यार करने लगे हैं आपको। आपके बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे हमारी सबसे प्यारी चीज हमसे दूर हो गई एक पल में। पलक झपकते ही हमने सब-कुछ खो दिया। दिल बैठा जा रहा है ये सोचकर कि क्या हुआ ये?

हम सच में प्यार करने लगे हैं आपको।" शीतल ने भी मेरी बात का रिप्लाई मेल में ही दिया था "राज,

नहीं पता आपने हमें सही समझा या ग़लत; पर यकीन मानिए, रात भर बहुत रोये हैं हम। हिम्मत नहीं है आपका सामना करने की, इसीलिए लिख भर दिया।

हर शब्द बहुत मुश्किल था। शब्दों में बयां करना उससे भी अधिक मुश्किल । हम आपसे छह साल बड़े हैं।

हाँ, आपसे बहुत कुछ कहना है...बहुत कुछ सुनना है...बात करनी है आपसे एक बार। राज, हम टूट रहे हैं... मर रहे हैं; समझ नहीं आ रहा क्या करें?

बस इसमें आपकी भलाई है...यही सोचकर कर रहे हैं। क्या हम दोस्त भी नहीं बन सकते हैं?" शीतल ने प्यार खत्म कर दोस्ती करने की बात कही थी। वो बात करना चाहती थीं। मैं सब-कुछ खत्म होने से डर गया था। आज पहली बार इस बात का अहसास उन्होंने मुझे कराया था कि मैं जो कर रहा हूँ वो गलत है। फिर भी उनसे बात करने का मन था।

दोपहर को ऑफिस की छत पर मैंने उन्हें मिलने बुलाया था। शीतल हमारे प्यार की तमाम शर्ते और अपनी मजबूरियाँ मुझे गिना रहीं थीं। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। मैं रो न दे, इसलिए उनकी आँखों में देख भी नहीं सकता था। बस ये कह कर चल दिया...हम दोस्त हैं आज से।

शीतल नीचे तक साथ आना चाहती थीं। हम दोनों एक साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गए थे। शीतल, लिफ्ट में हाथ मिलाना चाहती थीं और मैंने अपने दोनों हाथ अपने दराउजर के पॉकेट में कर लिए थे। बिना एक-दूसरे की तरफ देखे, हम अकेले लिफ्ट में थे और नीचे आ गए।

एक पल के लिए भी ये बुरा खयाल दिल और दिमाग से निकल ही नहीं रहा था। कुछ देर बाद शीतल का एक और मेल था

"आज लिफ्ट में बहुत कुछ था मन में। आपकी बाँहों में छप जाना चाहती थी, आँख बंद कर आपको गले लगाकर कुछ आँसू बहाना चाहती थी; आपकी झकी नज़रों में खुद को तलाशना चाहती थी, आपका हाथ थाम कर आँसू पोछना चाहती थी। आपके गाल पर हाथ रख कर इजहार करना चाहती थी। पर... आपकी झुकी नज़रों ने हमें रोक-सा लिया। लगा, हमें ये गुस्ताखी करने का हक नहीं है। आपके बिना रुके चले जाने से लगा, शायद आपने वो सुना ही नहीं, जो हम कह गए।

आज खुद से नज़रें भी नहीं मिला पा रहे हैं। आपके हर आँसू के लिए खुद को कोस रहे हैं। क्यों नजदीकी बढ़ाते गए? क्यों खुद को रोक नहीं पाए?

इसकी सजा हम खुद को देंगे...आपसे दूर रहकर।

जानते हैं कि आप हमें दोस्त नहीं बनाएंगे। आपका चेहरा, बात करने का तरीका; सब बता गया आज। शायद वो हमारी मजा भी होगी।

माफ कीजियेगा हमें राज जी।" लिफ्ट से आते हुए शीतल ने आज कहा था- “आई लव यू"

शायद वो नहीं जानती थीं कि में उनसे दर नहीं रह पाऊँगा... उनके लिए प्यार कभी कम नहीं होगा। मैंने खुद को बस इस तरह समझाया था कि तूफान आते हैं, चले जाते हैं;

मुश्किलें आती हैं और लोग पारहो जाते हैं।

शायद थोड़ी देर बाद हमारे रिश्ते की एक नई शुरुआत होगी।

बस, ढाबे से दिल्ली के लिए रवाना हो चुकी थी। कहानी सुनते-सुनते डॉली भी भावुक हो गई थी।

"आगे बताओ न राज ...फिर क्या हुआ?"- डॉली ने आँसू पोंछते हए कहा। पता है डॉली; प्यार और रिश्तों में अनबन बहुत जरूरी है। अनबन, रिश्तों और प्यार में रिनोवेशन का काम करती है। शीतल और मेरे रिश्ते में भी हम एक दिन की अनबन ने रिनोवेशन का काम किया था। जो शीतल, सब कुछ खत्म करने का मन बना चुकी थीं, उन्हें मैंने रोक लिया था। उन्होंने रिश्ता तोड़ने का इरादा बदल दिया था।

रात एक बार फिर रोते हुए गुजरी थी। अगले दिन चाय की टेबल पर हम दोनों एक दूसरे से नजरें मिला रहे थे और चुरा रहे थे।

हकीकत ये थी कि हम दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को छोड़ना नहीं चाहता था।

"शीतल, आज शाम को क्या आप मुझे इराप कर देंगी?" - मने कहा था।

'कहाँ?'- उन्होंने चौंकते हुए पूछा था।

"रास्ते में।"- मैंने जवाब दिया था।

"क्यूँ भई?"- उन्होंने पूछा था।

"ठीक है, रहने दीजिए, हम चले जाएँगे।"- मैंने जवाब दिया।

“अरे, मतलब कि, चलिएगा?"- उन्होंने कहा था।

'ओके - मैंने कहा था।

“पर जरा टाइम से निकलना, जल्दी चलेंगे।" उन्होंने कहा। 'हाँ- मैंने कहा।

आज शाम पहली बार शीतल के साथ स्कूटी पर जाना था। शाम के उस सफर के बारे में सोचकर मेरा दिल तो अभी से भाँगड़ा करने लगा था। इतनी खुशी थी कि काम ही नहीं हो पा रहा था। बस दिल चाहता था कि जल्दी से शाम हो और मैं शीतल के साथ स्कूटी पर निकल जाऊँ। आखिरकार एक-एक घड़ी इंतजार के बाद शाम के छह बज गए थे। निकलने के लिए शीतल का मैसेज आ चुका था। हम दोनों पार्किंग की तरफ साथ-साथ चल रहे थे। दोनों के चहरे पर हल्की-सी मुस्कराहट थी और दोनों ही इस मुस्कराहट को छिपाने की कोशिश कर रहे थे।

“राज, स्कूटी आप ड्राइब कीजिएगा?" - शीतल ने कहा था। 'क्यों?'- मैंने पूछा।

"नहीं, आप ही चलाइएगा, बस ऐसे ही।" उन्होंने कहा था।

“रिस्क है आपको पीछे बिठाने में।"- शीतल ने बहुत धीरे कहा था।

"क्या कहा आपने?'- मैंने पूछा।

"कुछ नहीं; कुछ सुना आपने?" - शीतल ने बिलकुल बच्चों की तरह पूछा था।

"नहीं, कुछ नहीं।"- मैंने कहा। आज पहली बार शीतल और मैं एक स्कूटी पर बैठकर घर जाने वाले थे। ये दिन किसी त्योहार से कम नहीं था मेरे लिए। शीतल बड़े आराम से पीछे बैठ गई थीं। उन्होंने अपना बैग हम दोनों के बीच में रखा था। वो मुझसे छ भी न जाएं, इसलिए अपने बैग को कम कर अपनी बाँहों में भर रखा था। पूरे रास्ते में और शीतल बातें करते रहे थे। जनवरी की मर्दी, दिल्ली में कहर बरपा रही थी। आज तो कैंपकपाने बाली ठंडी हवा भी चल रही थी। लेकिन इस सफर में ठंड लगने के बावजूद शीतल ने एक भी बार मुझे छुआ तक नहीं। कभी ब्रेक लगने पर भी बो मेरे पास नहीं आई थीं और मैं रास्ते भर उनका हाथ अपने कंधे पर आने का इंतजार ही करता रहा। सफर खत्म हो गया था। शीतल मुझे छोड़कर जाने वाली हाँ, जाते हुए उन्होंने ये जरूर पूछा था, “क्या मिला आपको स्कूटी पर साथ आकर?"

“जो प्यार करते हैं, बो कहाँ सोचते हैं कि कुछ मिले; हर इनवेस्टमेंट रिटर्न के लिए थोड़ी न होता है।''- मैंने जवाब दिया।

मेरे इस जवाब के जवाब में शीतल बस मुस्करा दीं।

उन्हें गुडबॉय बोलकर मैं अपने रास्ते चल दिया था। लेकिन उनकी इस बात का जवाब मेरे दिल में था। अगले दिन जब शीतल मिली, तो मैंने कहा
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#37
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"आपने पूछा था न, कि हमारे साथ स्कूटी पर चलने से आपको क्या मिलेगा? कल आपके साथ स्कूटी पर बाहर जाना हमेशा याद रहेगा। मन की खुशी सबसे बड़ी खुशी होती है। कल साथ जाने की जिद मेरी जरूर थी: पर खुशी आपको भी उतनी ही थी, जितनी मुझे। मैं चाहता था कि वो सफर खत्म ही न हो... आपके साथ बस चलते जाएँ, कहीं दूर तक, इतना दूर तक जहाँ सिर्फ आप और हम हों। कुछ पल मुकून से आपके साथ बात करना चाहता था, इसीलिए स्कूटी रोककर खड़ा हो गया था। आपके सामने खड़े होकर कहना चाहता था, कि मैं आपसे प्यार करता हूँ। आपकी नजरों में खुद के लिए पैदा हुए प्यार को देखना चाहता था, लेकिन ये सब मैं नहीं कर पाया। अच्छा होता कर दिया होता। पहले जब ऑफिस में आपसे मिलता था, तो एक डर मन में होता था कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा? लेकिन अब छत पर बिना डरे आपके आने का इंतजार करता हूँ। में हमेशा आपसे बात करना चाहता हूँ: में रोजाना आपको देखना चाहता हूँ, रोज आपसे हाथ मिलाना चाहता हूँ।"

अपने सवाल का जवाब जानकर शीतल रोने लगी थीं। उनकी आँखें प्यार के आँसुओं से भर चुकी थीं। उन्होंने मेरी नजरों में देखा और देखती रह गई। शायद इस वक्त वो यही मोच रही थीं, क्या में कभी उनका हो पाऊँगा?

शीतल के साथ एक शाम स्कूटी पर साथ जाना मुझे इतना पागल कर देगा, इसका खयाल भी नहीं था। अब मैं हर रोज उनके साथ शाम को जाना चाहता था। मैं सुबह कैब से ऑफिस जाने लगा था, ताकि शाम को शीतल के साथ स्कूटी पर जा सकू।

मुझे ऑफिस से अपने घर पहुँचने में पैंतालीस मिनट का समय लगता था और शीतल के साथ जाने पर मैं अपने घर दो घंटे में पहुँचता था। उनके साथ जाने पर मेरे घर का रुट एकदम उल्टा पड़ता था, लेकिन उनके प्यार में पागलपन की धुन इस कदर मबार थी मेरे ऊपर, कि मुझे जल्दी घर पहुँचने की बजाय उनके साथ दो घंटे बिताना अच्छा लगता था।

अब तो मैं उनके साथ शाम को जाने के बहाने ढूँढ़ता था।

आज शाम फिर उनके साथ स्कूटी पर जाना था। मैंने स्कूटी, पाकिंग से निकाल ली थी। शीतल का बैग उनके कंधे पर था। आज में उनके और मेरे बीच बैग की दीवार नहीं रहने देना चाहता था, इसलिए अपना बैग मैंने पहले ही आगे रख लिया था। स्कूटी चल चुकी थी। हम दोनों दिनभर की बातें करते जा रहे थे। आज फिर मौसम बहुत सर्द था। स्कूटी पर कैपकपी लग रही थी। शीतल के हाथ बहुत ठंडे हो गए थे, फिर भी वो एक दरी बनाकर बैठी थीं; शायद जान-बूझकर। मैं हर पल चाह रहा था कि कब शीतल का हाथ मेरे कंधे पर आएगा।

"थोड़ा पास आहए न।"- मैंने कहा।

'क्या?'- उन्होंने चौंकते हुए पूछा था।

"थोड़ा पास आहए न; अपना हाथ मेरे कंधे पर रख लीजिए न।" - मैंने कहा। शीतल शरमा गई थीं। उन्होंने अपने हाथों को दबा लिया था। उनके हाथ आगे बढ़ना चाहते थे, मुझे छना चाहते थे लेकिन उन्होंने खुद को रोक लिया था।

लेकिन मैं भी कहाँ रुकने वाला था? मैं तब तक उनसे कहता रहा, जब तक उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख नहीं दिया।

आज शीतल ने पहली बार मेरे कंधे पर हाथ रखा था। इतने भर से उनकी साँसें तेज हो गई थीं। बो बार-बार अपना हाथ झटके से हटा रही थीं और मैं हर बार उनका हाथ अपनी तरफ खींच लेता था। स्कूटी इतनी धीरे चल रही थी कि साइकिल भी आगे निकल जा रही थी।

शीतल बार-बार कह रही थीं, "ये स्कूटी चलेगी?" मैं जानता था कि वो भी चाहती थीं कि स्कूटी यूँ ही धीरे-धीरे चलती रहे और कहीं रुके ही न।

अब हमारी स्कूटी एक ऐसे रास्ते पर थी, जहाँ ट्रैफिक कम होता था। मेरा फोन बज रहा था। मैंने स्कूटी रोकी, हेलमेट उतारा और फोन रिसीव किया। फोन रखने के बाद मैंने अपना चेहरा पीछे घुमाया था। शीतल मेरी आँखों में अपनी आँखें डालकर देख रही थीं।

'शीतल... - मैंने उनकी आँखों में देखकर कहा था।

“राज....नहीं।"- उन्होंने डरते हुए कहा था।

“शीतल, ये मौका दोबारा नहीं आएगा; प्लीज मेरे गालों को छु लीजिए न!" - मैंने कहा था।

इतना सुनकर उनकी गर्म साँसे मेरे गालों को छने लगीं। उनकी आँखें नम हो गई। आँखें बंदकर शीतल ने अपने होंठ मेरे गालों की तरफ बढ़ाए और बहुत धीरे-से मेरे गाल को छ लिया।

उनके होंठों ने जैसे ही मेरे गाल को छुआ, मैं भीतर तक काँप गया था। शीतल की धड़कनें जोर से चलने लगी थीं। जो शीतल मेरे कंधे पर हाथ नहीं रख पा रही थीं, उन्होंने अब मुझे कसकर अपनी बाँहों में भर लिया। शीतल का शरीर मेरे शरीर से लिपट गया। उनके अंगों को मैं अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था। इस भीषण ठंड में दो सुलगते बदन करीब आए तो ऐसे लगा, मानो दोनों के बीच अंगारे दहक उठे हों। हम दोनों के शरीर का तापमान इस कदर बढ़ चुका था कि ठंड कहीं गुम हो गई थी। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था। उनका शरीर काँप रहा था। मेरे भी दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। स्कूटी कहाँ और कैसे चल रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। आस-पास से गुजरती गाड़ियों की आवाज मेरे कानों में नहीं पड़ रही थी, बस आँखों के सामने कोई फिल्म चल रही थी और बैकग्राउंड में वहीं पल घूम रहा था, जिस पल उन्होंने मुझे छुआ था।

शीतल अभी भी मेरी पीठ से लिपटी हुई थीं। उनका दिल अब भी जोर से धड़क रहा था।

"शीतल, क्या हुआ, कुछ तो बोलिए।"- मने पूछा था। शीतल के होंठ आपस में चिपक गए थे। उनका गला सूख गया था। उनके मुँह से शब्दही नहीं निकल रहे थे।

“राज, थोड़ी देर शांत रहेंगे आप।" उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे समझाया था। मैं भी थोड़ी देर चुप रहना चाहता था। शीतल का नॉर्मल होना बहुत जरूरी था। धीरे-धीरे बो नॉर्मल हो रही थीं। मैंने पीछे मुड़कर उनके चेहरे की ओर देखा, तो उन्होंने अपनी नजरें फेर ली थीं। उनके चेहरे की मुस्कराहट उनके दिल की खुशी को बयां कर रही थी। शीतल आज बहुत खुश थीं। थोड़ी ही दूरी पर बो जगह थी, जहाँ वो मुझे ड्रॉप करती थीं। स्कूटी रुक चुकी थी। मैं स्कूटी से उतर चुका था और शीतल स्कूटी पर बैठ चुकी थीं। मैंने एक नजर उन्हें देखा, तो उन्होंने फिर अपनी नजरें घुमा ली। वो जाने वाली थीं। शीतल सामने देख रही थी, तभी मैंने आगे बढ़कर उन्हें साइड से अपनी बाहों में भर लिया। उन्होंने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा, तो मैंने अपने होंठों से उनके गालों को लिया।

शीतल संभल नहीं पाई थीं। बो समझ नहीं पाई थी, कि अचानक मेरे होंठों ने उनको छ लिया है। उनकी स्कूटी अपने आप स्टार्ट हो गई थी। शीतल एक पल रुक नहीं पा रही थीं। शायद उनमें हिम्मत नहीं थी और रुकने की। उनके हाथों ने स्कूटी की स्पीड को बढ़ा दिया और शीतल चली गईं। मैं बस उन्हें जाते हुए देखता रहा था और तब तक देखता रहा, जब तक वो मेरी आँखों से ओझल न हो गई।

घर पहुँचा ही था कि शीतल का फोन आ गया था। शायद वो मेरे घर पहुँचने का इंतजार ही कर रही थीं।

"राज, आज आप ज्यादा पास नहीं आ गए थे हमारे?"- उन्होंने पूछा था।

"हाँ, हम खुद को रोक नहीं पाए थे।"- मैंने जवाब दिया था।

“सुनसान रास्ते पर आपने स्कूटी जान-बूझकर रोकी थी न..।" उन्होंने कहा।

"नहीं तो।"- मैंने कहा था।

“राज, हम तो होश ही खो बैठे थे, जब आपने हमारी आँखों में पीछे मुड़कर देखा था और जब आपने कहा कि ये मौका दोबारा नहीं आएगा, तो हम डर गए थे और कब हमने आपके गालों को चूम लिया, हमें पता ही नहीं चला। हम पागल से हो गए थे, तभी तो आपको अपनी बाँहों में कम कर भर लिया था।" - शीतल ने कहा था।
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#38
RE: RajSharma Stories आई लव यू
___“मैं जानता हूँ, आपने जिस तरह मेरी आँखों में देखा था, आपकी खुशी साफ दिख रही थी। आज पहली बार आपके होंठों ने मुझे और मेरे होंठों ने आपको छुआ था। ये दिन सच में बहुत यादगार और खूबसूरत रहेगा दोनों के लिए।"- मैंने कहा।

"हाँ, राज ... और ये बताइए, जब हम नॉर्मल हो गए थे और हम जाने वाले थे, तो क्यों हग किया हमें और क्यों किस किया हमें? जानते हैं, हमारा दिमाग ही बंद हो गया था; स्कूटी कब चल दी हमें पता ही नहीं... अगर हम कोई एक्सीडेंट कर देते तो?"- शीतल ने कहा था। __

“आप जा रहे थे, तो अच्छा नहीं लग रहा था... बस कुछ समझ नहीं आया तो आपको अपनी बाहों में भर लिया। आपने भी तो नजरें उठाकर मुझे देखा था; बस, आपके गालों को चूम लिया हमने भी।"- मैंने कहा था।

“एक बात पूछे? घर जाकर शीशे के सामने क्यूँ खड़े रहे थे और बार-बार अपने हाथ से गाल को क्यों छरहे थे?"- मने पूछा था।

"आपको कैसे पता...'- उन्होंने चौंकते हुए पूछा।

"बस प्यार करते हैं आपसे, जानते हैं इतना तो..."- मैंने कहा।

"खाना खाया आपने?" - मैंने पूछा

"नहीं, थोड़ी देर में खाएंगे अभी।"- उन्होंने जवाब दिया।

"तो सुनिए; अभी खाना खाइए आराम से और हाँ, सुबह हम एक इवेंट में जाएंगे, तो ऑफिस देर से आएंगे।" - मैंने बताया था।

मेरे ऑफिस में न होने पर बो परेशान ही रहती थीं। यही हाल होता है प्यार में। आप जिससे प्यार करते हैं न, चाहते हैं वो बस आस-पास ही रहे, भले ही बात हो या न हो।

"क्यूँ, कौन-सी इवेंट?"- उन्होंने परेशान होते हुए पूछा था।

“यहीं होटलली मेरेडियन में"- मैंने कहा।

"तो कब तक आएंगे ऑफिस?"- उन्होंने पूछा।

"एक बजे तक।"- मैंने जवाब दिया।

"अच्छा सुनिए, कल आप शाम को ड्रॉप कर देंगे मुझे? हम स्कूटी नहीं लाएँगेन; सुबह कैब से इवेंट में जाएंगे।"- मैंने बताया।

शीतल ये सुनकर बहुत खुश हो गई थीं। उनकी हँसी रुक नहीं रही थी, फिर भी उन्होंने कहा था- “राज, कल फिर..."

"हाँ, अगर छोड़ सकते हैं तो।"- मैंने कहा था।

"ठीक है, छोड़ देंगे आपको; लेकिन पौने सात बजे चल दीजिएगा, बरना हम लेट हो जाएंगे।"-उन्होंने कहा था।

“याह! श्योर, एट 7:45"- मैंने कहा।

"चलो, गोइंग फॉर डिनर, टॉक टू लेटर।" उन्होंने कहा था।

"ओके, एनज्वॉय यॉर डिनर टेक केयर"- मैंने कहा। अगले दिन शाम को शीतल के साथ स्कूटी से आने का जितना इंतजार मुझे था, उससे कहीं ज्यादा बेसब्री उनको थी उस पल की। शीतल न जाने कितनी बार उस शाम की तस्वीर अपने खयालों में बना चुकी थीं। हम दोनों के रिश्ते में एक खास बात थी, कि हम खयालों में मिलते, तो ऐसे लगता था जैसे हकीकत में मिल रहे हों।

रातभर बात करते हुए हमारे बीच जो कुछ होता था, वो हम दोनों महसूस करते थे। मैं रात में अपनी आँख बंद करके जब उनसे कहता था "थोड़ा पास आहए।" और वो मेरे सामने आकर मुझे गले लगाती थीं, तो लगता था, जैसे सचमुच हमारे शरीर एक-दूसरे की बाहों में हों।

जब रात में मैं उनके होंठों को छूता था, तो लगता था जैसे हकीकत में मैं शीतल को छ रहा हूँ। लेकिन सच्चाई ये थी कि आज शाम पहली बार मैंने अपने होंठों से उन्हें और उन्होंने अपने होंठों से मुझे छुआ था।

रात, बात करते-करते गुजर चुकी थी और दिन चढ़ चुका था। सुबह-सुबह बाहर से आती मीठी-मीठी चहलकदमी की आवाज अब भागमभाग में बदल चुकी थी। विंडो से आती सूरज की तेज रोशनी ने कमरे को सुनहरी रोशनी से भर दिया था।

कैब ड्राइवर के फोन कॉल से आँख खुली, तो सुबह के दस बज चुके थे।

"हेलो सर, मैं महेश, आपका कैब ड्राइबर; नीचे खड़ा हूँ आपके घर के।"
Reply
09-17-2020, 12:37 PM,
#39
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"हाँ, रुको पंद्रह मिनट, चलते हैं।" - मैंने कहा था। फटाफट उठा, फ्रेश हुआ, तैयारहुआ। बैग उठाया और हाथ में एक रियल जूस की केन लेकर मैं घर के नीचे उतरा था।

"चलो महेश जी, थोड़ा तेजी से; लेट हो गए हैं हम।"

"कोई बात नहीं सर, अभी पहुंचते हैं हम होटल ली मेरेडियन।" "

हाँ, चलो।"

बहुत स्पीड से मैं गाड़ी में होटल ली मेरेडियन के लिए जरूर जा रहा था, लेकिन हकीकत में ये जल्दी, होटल से ऑफिस पहुँचने और शाम को शीतल के साथ स्कूटी से जाने के लिए थी। मैं बस जल्दी से दिन ढल जाने का इंतजार कर रहा था। बस जल्दी से शाम हो जाए और शीतल मेरे साथ स्कूटी पर हों।

ईवेंट खत्म कर मैं एक बजे ऑफिस पहुँच गया था। रोजाना की तरह शीतल को 'रीच्ड' का मैसेज किया और लंच के लिए कैंटीन पहुँच गया।

लंच के बाद कुछ देर के लिए उनसे मिलना होता था। आज भी हम मिले... लेकिन आज शीतल के चेहरे में एक चमक थी, उनके होंठों पर मुस्कराहट थी। शायद वो शाम के बारे में ही सोच रही थी।

"बहुत खुश हैं आप आज।”- मैंने कहा।

"हाँ, मैं तो हमेशा खुश होती हूँ।" - उन्होंने अपनी हँसी को छपाते हुए कहा।

"नहीं, आज ज्यादा खुश हैं: कहीं शाम के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं?"- मैंने कहा।

"नहीं नहीं, हम क्यों सोचेंगे; बम ऐसे ही खुश हैं।"- शीतल इतना कहकर मुस्करा पड़ी। इंतजार करते-करते आखिरकार शाम हो ही गई और शीतल की कॉल आई।

"जनाब, चलें; 7:45 हो गए।"
"हाँ बिलकुल, चलिए।"

"पाकिंग में मिलिए।" उन्होंने कहा।

'ओके'- मैंने कहा।

अब हम दोनों घर के लिए उनकी स्कूटी पर निकल चुके थे। मैं ड्राइव कर रहा था और वो मेरे पीछे बैठी थीं। आज न तो हम दोनों के बीच बैग था और न ही दूरी। शीतल मुझे अपनी बाहों में भरकर बैठी थीं।

स्कूटी की स्पीड कोई तीस के आस-पास होगी। हर स्पीड ब्रेकर से मैं बहुत धीरे स्कूटी पास कर रहा था। मैं चाहता था कि ब्रेकर पर शीतल मुझसे दूर न हो जाएं। उनकी एक खास बात थी... जब वो मेरे साथ स्कूटी पर बैठी होती थीं, तो धीरे से मेरे कंधे पर किस करती थीं।

वो हर बार मेरे कंधे पर किस करतीं और मैं अपना चेहरा पीछे घुमाकर मुस्करा देता।

"राज, आपको कैसे पता चल जाता है हर बार? हम तो दर से आपको किस करते हैं।" उन्होंने कहा था। __

“आपसे बहुत प्यार करता हूँ मैं; आप जब भी पास आते हैं, तो आपकी साँसों और आपकी खुशबू से मुझे पता हो जाता है।" - मैंने कहा था।

वो मुझसे बड़ी थीं, तो मुझसे समझदार भी थीं। मैं कभी कुछ गलत करता था, तो समझाती भी थीं। लेकिन जब वो मेरे इतने करीब होती थीं, तो वो बिलकुल मेरी ही उम्र की हो जाती थीं। एक समझदार लड़की को एक बच्ची की तरह बनते देखता था मैं।
फिर उसी कम भीड़भाड़ वाले रास्ते पर स्कूटी मुड़ चुकी थी।
Reply
09-17-2020, 12:38 PM,
#40
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"शीतल और पास आहए न कम के हग कर लीजिए न।" - मैंने कहा था। शीतल ने अपनी बाँहों को और कस लिया। जैसे ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में भरा, तो मैं बिलकुल पागल हो गया। मैंने अपने एक हाथ से उनकी उँगलियों को कसकर पकड़ लिया। अब मेरी उँगलियाँ धीरे-धीरे उनके हाथ की कलाई की तरफ और उसके बाद ऊपर तक बढ़ती जा रही थीं। उन्होंने अपनी बाँहों को और कस लिया। उनकी मॉमें एक बार फिर गर्म होने लगी, उनका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। उनका पेट भी ऊपर-नीचे होने लगा था। मैंने अपना हाथ पीछे की तरफ किया, तो उनके होंठों से मेरी उँगलियाँ टकरा गई।

दूर-दूर तक कोई गाड़ी आती और जाती नहीं दिख रही थी। मैं इस मौके को जाने देना नहीं चाहता था। शायद यही वो मौका था, जब मैं शीतल को सबसे बड़ी खुशी दे सकता था। उनको तो शायद कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। वो तो बस मुझे कस कर पकड़े हुए थीं। तभी मैंने स्कूटी रोकी और हेलमेट उतारा, तो वो डर गई।

"क्या हुआ राज? चलिए न।"- उन्होंने कहा। “

शीतल, ये मौका दोबारा नहीं आएगा, प्लीज।”- मैंने कहा। मेरे इतना कहने पर उन्होंने एक गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद कर ली। मेरे और उनके रिश्ते में एक अच्छी बात ये थी, कि वो क्या चाहती हैं, मैं अच्छे से समझता था और मैं क्या चाहता है, वो अच्छे से समझती थीं।

उनकी आँखें बंद होते ही मैंने अपना चेहरा पीछे घुमाया और अपने हाथों से उनके चेहरे को पकड़ लिया। इसके बाद अपने होंठों को धीरे-धीरे उनके होंठों की तरफ बढ़ाया। मरे होंठ उनके नजदीक आ रहे थे और उनके होठ काँप रहे थे। जैसे ही मेरे होंठों ने उनके होंठों को छुआ, तो ऐसे लगा जैसे हम दोनों आसमान में सैर कर रहे हैं। आस-पास कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। हम दोनों भूल गए थे कि हम सड़क पर है। तकरीबन एक मिनट एक इस बेहद खूबसूरत चुंबन के दौरान मेरे हाथ उनके बालों में चले गए। हम दोनों एक दूसरे में खो गए थे। सामने से आती कार की रोशनी अगर कुछ देर न आती, तो इस हसीन पल का आनंद कुछ देर और ले सकते थे।

उनकी आँखें अभी भी बंद थीं। मैं कुछ भी बोलकर शीतल को उस पल से बाहर नहीं लाना चाहता था। स्कूटी चल चुकी थी।

शीतल ने इतना कस कर मुझे पकड़ रखा था, कि उनके नाखून मुझे लग रहे थे, फिर भी मैं कुछ नहीं कह रहा था।

स्कूटी अपने रास्ते खुद चल रही थी, क्योंकि दिल-दिमाग में तो बही पल चल रहा था। शीतल को छोड़कर मैं कब घर पहुंच गया, पता ही नहीं चला। आज जो हम दोनों के बीच हुआ, वो खुमारी के लिए काफी था। खाना खाकर वाट्सएप चालू किया तो शीतल का मैसेज सबसे ऊपर था।

“राज, हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं और उसी नाते आपसे कुछ कह रहे हैं। सच में आज आपके साथ स्कूटी पर आकर बहत अच्छा लगा। एक पल के लिए हम अपने सारे दुःख और अपने अतीत को भूल गए थे। आपने चंडीगढ़ के दिनों की याद दिला दी।

आपको पता है, पहली मंजिल पर आजकल कुछ ज्यादा ही आने लगी हूँ। हँसी भी आती है, जब कई बार उटपटाँग हरकतें करती हूँ आपके प्यार में। सच बोलूँ तो कई बार आपके लिए भी बुरा लगता है।

हैरान हो गए न? पर राज जी, सच में कई बार बुरा लगता है आपके लिए।

हमें आपके दिल की बात पता है, कि आप हमें बेहद प्यार करते हैं; बावजूद इसके, हम आपसे उसे भूलने को कहते हैं। चाहते भी हैं कि हम दोस्त बने रहें... फिर सोचते हैं कि वो आपके साथ ज्यादती होगी।

अगर आपको लगता है कि आप हमें सिर्फ दोस्त की नज़र से नहीं देख पाएँगे, तो अभी भी समय है, बता दीजिये; क्योंकि उससे ज्यादा हमसे कुछ हो न पायेगा... हम आपको कोई खुशी दे नहीं पाएंगे और आपको आगे कोई परेशानी हो, बो हम बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। यकीन मानिए, हम आपसे दूरी बना लेंगे।"

"शीतल, चंडीगढ़ से पहले और चंडीगढ़ में पहले दिन तक आपके चेहरे की हँसी मैंने देखी ही नहीं थी। अगर आप मुस्कराए भी हों, तो कभी गौर नहीं किया। चंडीगढ़ ने आपके चेहरे पर जो मुस्कान दी है, उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। मैं अपना दु:ख बर्दाश्त कर लूँगा, पर आप खुश रहें, मैं यही चाहता है। आपके साथ चलते-चलते, कदम मिलाते-मिलाते, लगता है दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मेरी झोली में ही है। आप बात करते हैं, तो लगता है सब-कुछ है मेरे पास । मैं हमेशा आपसे बात करते रहना चाहता हूँ, मैं हमेशा आपके चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता हूँ। आपकी छोटी-छोटी हरकतें, आपका बेफिक्रपन, सच में बेहद खूबसूरत है; आपका अंदाज तो जुदा है सबसे।

आप मेरी परवाह किए बिना यूँ ही बात करते रहिए, मिलते रहिए।

आप जैसा कोई शब्म मुझे कभी मिलेगा भी, यह तो मैंने सोचा भी नहीं था। मुझे भी कभी किसी से प्यार हो जाएगा, विश्वास ही नहीं था। लेकिन अब आप मिले हैं, तो मैं खोना नहीं चाहता हूँ।"- मैंने जवाब दिया था।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,299,745 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,281 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,151,085 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,905 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,542,180 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,986,879 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,796,744 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,515,284 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,825,548 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,178 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)