RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
शिवानी ने डॉली के कमरे को अपने हाथों से सजाया था। कमरे में कई स्थानों पर ताजा फूलों के गुलदस्ते रखे थे और बिस्तर पर धनिया तथा चमेली की कलियां मुस्कुरा रही थीं।
किन्तु डॉली का ध्यान इस सबकी ओर न था। सुर्ख जोड़े में लिपटी वह अपनी ही किन्हीं सोचों में गुम खिड़की से बाहर देख रही थी। आकाश में चांद न था। स्याह अंधेरी रात थी और डॉली इस अंधकार से अपने जीवन की तुलना कर रही थी। आज तक अंधेरों में ही तो जीयी थी वह। कभी कोई खुशी न देखी-कभी कोई उजाला न देखा। उन अंधेरों से घबराकर वह रामगढ़ से निकली तो अंधकार के सायों ने फिर भी साथ न छोड़ा। जय के मिल जाने से एक खुशी मिली थी-उसके मन में आशाओं की किरण चमकी थी। सोचा था जय उसके जीवन को उजालों से भर देगा किन्तु फिर वही हुआ।
आशाओं ने सिसक-सिसककर दम तोड़ दिया और उजाले की किरणें फिर उसी अंधकार में हो गईं। जिंदगी ने फिर करवट बदली।
दुर्भाग्य ने उसे एक बार फिर छला और उसे अपनी तमाम आशाओं को कुचलकर राज से विवाह करना पड़ा। सच तो यह था कि वह विवशताओं एवं परिस्थितियों के ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई थी जिससे निकलने का अन्य कोई मार्ग न था।
जय को बचाना आवश्यक था उसके लिए। इसलिए नहीं कि वह उसे मन-ही-मन चाहने लगी थी। इसलिए नहीं कि वह उसके जीवन का सबसे पहला प्यार था, बल्कि इसलिए क्योंकि जय ने उसकी आबरू बचाई थी। इसलिए क्योंकि जय ने सिर्फ और सिर्फ उसे बचाने के लिए अपने पिता से झगड़ा किया था और जेल चला गया था।
डॉली यह भी सोच रही थी कि भले ही उसने केवल जय को बचाने के लिए ही राज से विवाह किया था किन्तु ऐसा करके उसने जय के साथ विश्वासघात भी किया था।
तभी उसकी विचारधारा भंग हुई। उसने देखा-व्हील चेयर के पहिए घुमाते हुए राज ने अंदर प्रवेश किया। राज को सहारा देने के लिए डॉली को बिस्तर से उतरना पड़ा। उसने आगे बढ़कर द्वार बंद किया और राज को सहारा देकर बिस्तर पर बैठा दिया। राज ने बैठते ही डॉली का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला- 'एक बात पूछू?'
'पूछिए।'
'कैसा लगा यह सब?'
'क्या?'
'यह विवाह। तुम्हारा संयोगवश यहां आना और विवाह बंधन में बंध जाना।'
'यह संयोग न था।'
'और?'
'कुछ परिस्थितियां और कुछ मेरी विवशताएं।'
'विवशताएं क्यों?'
'जीवन का सफर अकेले न कटता।'
...
'ओह!' राज को डॉली के इस उत्तर से आघात-सा लगा। उसने डॉली का हाथ छोड़ दिया और बोला- 'किन्तु मेरी चाहत-मेरा प्रेम?'
'यह आपकी भावनाएं थीं-मेरी नहीं।'
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'तो क्या मैं यह समझू कि तुम्हारी कोई इच्छा न थी?'
'जो बीत चुका है-आप उसे क्यों दोहरा रहे हैं।' डॉली ने कहा। फिर एक पल रुककर वह बोली- 'और वैसे भी संसार में प्रत्येक दिन इतनी शादियां होती हैं-क्या सभी शादियां लड़के-लड़की की इच्छा से होती हैं? क्या यह आवश्यक होता है कि विवाह से पूर्व एक-दूसरे को पसंद करते हों अथवा चाहते हों?'
'यह तो है।' राज बोला- 'फिर भी जिससे विवाह का बंधन बांधा जाए, उसके हृदय में अपने साथी के लिए प्रेम की भावना न हो, यह भी तो ठीक नहीं। खैर छोड़ो! फिलहाल तो सोचने वाली बात यह है कि हमने अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार किया है, आज हमारे मिलन की पहली रात है।'
डॉली मौन चेहरा झुकाए रही।
'और।' राज फिर बोला- 'आज की इस रात हमें यह वायदा करना चाहिए कि हम एक-दूसरे के प्रति ईमानदार बने रहेंगे।'
डॉली ने पूछा- 'इस संबंध में बेईमानी क्या हो सकती है?'
राज को इस प्रश्न का उत्तर न सूझ सका। साथ ही उसे यह भी अनुभव हुआ कि उसे डॉली से ऐसी बात न कहनी चाहिए थी। अतः बात बदलकर वह बोला- 'नहीं, मेरा मतलब था कि हम-दूसरे को जीवन भर यूं ही चाहते रहेंगे। वैसे मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।' इतना कहकर उसने डॉली को अपनी ओर खींच लिया और बोला- 'क्या सोच रही हो?'
'कुछ भी तो नहीं।'
'वैसे एक बात कहूं?'
'वह क्या?'
'तुम्हारे आने से मेरा यह घर उजालों से भर गया है। यों लगता है मानो आकाश का चांद हमारे आंगन में उतर आया हो।'
'पहले क्या था?'
'घोर अंधकार, निराशा की बदलियां और पीड़ाएं।' राज ने कहा। इसके पश्चात डॉली के कपोलों को अपनी हथेलियों में लेकर वह बोला- 'सच कहता हूं-जीना कठिन हो गया था मेरे लिए। इतनी पीड़ाएं थीं कि हर पल बेचैनी बनी रहती और ऊपर से वह अतीत जब भी अवसर मिलता वार कर बैठता।'
'ज्योति की वजह से?' डॉली बोली।
'हां, उसी की वजह से। बहुत चाहता था मैं उसे। उसकी स्मृतियां मेरे हृदय में इतने गहरे तक समा गई थीं कि लाख प्रयास करने पर भी उन्हें निकाल न सका।'
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