06-19-2018, 12:45 PM,
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RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
तभी संतोष का हाथ मेरी पीठ पर पड़ा मेरा शरीर गनगना उठा। वह धीमे से हाथ चलाते हुए मालिश करने लगा। वह मेरी पूरी पीठ पर हाथ फिराते हुए मालिश करने लगा।
जब मैंने देखा कि वह मेरे पीठ और कमर के आगे नहीं बढ़ रहा है.. तो मैं बोली- संतोष मेरे पैर और जाँघ में भी मालिश कर न..
तभी वह अपने हाथ पर ढेर सारा तेल लेकर धीरे-धीरे मेरे पैरों की ओर से जाँघों तक मालिश करता रहा।
मैं बोली- संतोष तू मेरे लिए कुछ गलत तो नहीं सोच रहा है.. मालिश पूरी तरह नंगे होकर ही कराई जाती है।
‘नहीं मेम..’
‘फिर तू इतना काहे डर रहा है.. मेरे पूरे शरीर की मालिश कर ना..’
मेरा इतना कहना था कि वह मेरी जाँघों से होता हुआ स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे चूतड़ और बुर की दरार.. सब जगह हाथ ले जाकर मुझे मसलने लगा।
काफी देर तक मेरी जाँघों और चूतड़ों पर मालिश करता रहा। संतोष के हाथ से बार बार चूतड़ और बुर छूने से मेरी चुदास बढ़ गई और मैं मादक अंगड़ाई लेते हुए सिसकने लगी।
‘आहह्ह्ह उउईईईईई आहह..’
‘क्या हुआ मेम साहब?’
‘कुछ नहीं संतोष.. मेरे बदन में दर्द है इसी से कराह निकल रही है।’ मैं यह कहते हुए पलट गई।
अब मेरी चूचियाँ और नाभि संतोष की आँखों के सामने थे, वह मालिश रोक कर एकटक मुझे देख रहा था।
‘संतोष मालिश करो ना आहह्ह्ह..’ और मैंने संतोष का हाथ खींच कर अपनी छाती पर रख दिया।
‘इसे मसलो.. इसमें कुछ ज्यादा दर्द है.. संतोष आई ईईईई.. सीईईई..’
संतोष मेरी छातियों को भींचने लगा, मैं सिसकती रही और अब संतोष की भी सांसें कुछ तेज हो चुकी थीं।
संतोष का एक हाथ मेरी चूचियों पर था.. दूसरा मेरी नाभि और पेट पर घूम रहा था।
संतोष मेरी चूचियों की मालिश में इतना खो गया था कि उसका तौलिया खुल गया था और उसमें से उसका लण्ड बाहर दिख रहा था।
मैं संतोष का एक हाथ अपनी जाँघ पर रख कर उसे दबाने को बोली और मैंने अपने हाथ को कुछ ऐसा फैला दिया कि संतोष का लण्ड मेरे हाथ से टच हो।
अब मैंने आँखें मूंद लीं, मेरे मुँह से सिसकारी फूट रही थीं।
अब संतोष कुछ ज्यादा ही खुल के मालिश कर रहा था।
सन्तोष मेरे उरोजों की मालिश में इतना मस्त हो गया था कि उसका तौलिया खुल कर उसमें से उसका लंड बाहर झांक रहा था।
मैंने सन्तोष का एक हाथ अपनी जाँघ पर रखा और उसे दबाने को कहा। साथ ही मैंने अपना हाथ कुछ ऐसा फैला दिया कि सन्तोष का लंड मेरे हाथ से छुए।
अब मेरे मुख से सिसकारी फूट रही थी, मैंने आँखें बंद लीं, और संतोष भी ज्यादा ही खुल कर मालिश करने लगा था।
मैंने अपना हाथ धीमे धीमे संतोष के लण्ड के करीब करते हुए लण्ड से सटा दिया, संतोष के लण्ड का सुपारा मेरे हाथ से छू रहा था, मैं आँखें मूँदे हुए संतोष के सुपारे को स्पर्श कर रही थी।
संतोष मेरे बदन की गर्मी पाकर कर बेहाल होते हुए मेरी चूचियों और नाभि के साथ चूत के आसपास के हिस्से पर हाथ फिरा कर मालिश कर रहा था।
तभी मैंने अपना एक हाथ ले जाकर संतोष के हाथ पर रख कर उसको अपने पेट से सहलाते हुए स्कर्ट के अंदर कर दिया।
जैसे ही संतोष का हाथ मेरी चूत पर पहुँचा, मेरी सिसकारी निकल गई- आहह्ह्ह संतोष यहाँ मालिश कर… यहाँ कुछ ज्यादा ही दर्द है!
संतोष का लण्ड बाहर आकर फुफकार रहा था, मैं अभी भी आँखें बंद किए हुए थी।
अब संतोष का हाल बुरा हो चुका था, वह अब पूरी तरह मेरे शरीर के उस हिस्से को रगड़ रहा था और अपने लण्ड को भी मेरे शरीर के कुछ हिस्सों पर दबा देता।
संतोष की वासना जाग चुकी थी, वह मेरी चूत को मुठी में भर कर दबा देता और कभी मेरी चूचियों को भींचता!
संतोष अब यह सब खुलकर कर रहा था।
तभी संतोष ने मेरे स्कर्ट को खींचकर निकाल दिया, अब मैं मादर जात नंगी थी अपने नौकर के सामने और नौकर भी पूरा नंगा हो चुका था।
संतोष मेरी चूत पर तेल गिरा कर मालिश करते हुए कभी एक अंगुली अंदर सरका देता और कभी फांकों को रगड़ रहा था।
मैं चुपचाप लेट कर संतोष के हाथ का मजा ले रही थी और संतोष भी मेरे जिस्म को देख कर बहक चुका था। वह नौकर और मालिक के रिश्ते को भूल चुका था, यही हाल मेरा भी था, मैं भी सब कुछ भूल आगे की एक नई चुदाई का इन्तज़ाम कर चुकी थी।
संतोष के हाथ मेरे शरीर पर फ़िसलने लगे, उसकी हरकतें मुझे उत्तेजित करने के लिए काफी थी, मुझे स्वयं ही चुदने की बेचैनी होने लगी।
जैसे ही वो मेरे चेहरे की ओर आया, मैंने ही पहल कर दी… उसके लण्ड को अपनी एक अंगुली से दबा दिया, मैं यह जाहिर नहीं करना
चाह रही थी कि मैं कुछ और चाहती हूँ!
मैं इतनी जल्दी नौकर की बाहों में समाना भी नहीं चाह रही थी, मेरा इरादा बस उसे आगे होने वाली चुदाई के लिए तैयार करना था।
पर मैं संतोष का साथ पाक फ़िसल रही थी।
तभी संतोष ने मेरी बुर की फांकों को मुठ्ठी में भर कर दबाया और मेरे मुख से एक तेज सिसकारी निकली- आहह्ह्ह उईईईई सीईई…
संतोष- क्या हुआ मैम… दर्द कुछ ज्यादा है क्या?
मैं कुछ नहीं बोली।
तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरी चूत पर जैसे कोई गर्म-गर्म सांस छोड़ रहा हो, मैंने थोड़ी आँख खोल कर देखा…
यह क्या?
संतोष तो मेरी चूत के बिल्कुल करीब है और मेरी चूत चाटने जा रहा है!
मैंने अनजान बन कर आँखें मूँद ली।
और तभी बाहर से बेल बज उठी, मैं चौंक कर बोली- संतोष कौन होगा? मैं अंदर जा रही हूँ, तुम कपड़े ठीक करो और जाकर देखो कि कौन है!
मैं वहाँ से नंगी हालत में ही रूम में भागी, रूम में पहुँच कर मैं दरवाजे को बंद करके दरार में आँख लगा कर देखने लगी कि कौन है।
तब तक संतोष भी कपड़े सही करके दरवाजा खोलने गया।
जब वह हाल में पहुँचा तो उसके साथ एक हट्टा कट्टा मर्द साथ आया जिसे वह सोफे पर बैठने को बोल कर किचन में गया और पानी का गलास भर कर उस अजनबी के सामने रख कर कुछ कहा और फिर मेरी तरफ बढ़ा।
मैं दरवाजे से हट गई, संतोष अंदर आकर बोला- मैम, वह आप से मिलने आया है, अपना नाम बबलू बताया है और बोला आप से ही
काम है।
मैं बोली- मैं तो उसे जानती तक नहीं… कौन है, कहाँ से आया है और क्या काम है?
‘वह कह रहा था कि यही बगल में रहता है, आप उसे जानती हो यही बोला’
मैंने इसके आगे कुछ और बोलना ठीक नहीं समझा, मैंने एक चीज ध्यान दी संतोष की नजर झुकी थी।
‘संतोष, तुम एक काम करो, उसे बोलो कि वेट करे, मैं आती हूँ।’
‘और एक बात संतोष… तुम्हारे हाथों में जादू है रे… मेरे बदन का सारा दर्द दूर कर दिया रे तूने- मुझे नहीं पता था कि तू मसाज भी कर लेता है!
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RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
मेरे इतना कहने से संतोष एक बार फिर मेरी चूचियों और चूत को घूर रहा था, मैं अब भी नंगी थी।
वह कुछ देर घूरता रहा और जैसे जाने को हुआ, मैंने बुलाया उसे- संतोष सुन तो जरा यहाँ आ!
और करीब वह मेरे से बिल्कुल सटकर खड़ा हो गया, मैंने उसके हाथ को ले जाकर चूत पर रख दिया और बोली- थोडी दर्द यहाँ रह गई है रे!
संतोष ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया, उसने कसकर मेरी चूत को दबाकर चूत की दरार में एक अंगुली डाल दी।
‘आहह्ह्ह सीईईई… संतोष जाओ तुम चाय बनाओ… मैं आती हूँ!’ कहते हुए चूत पर से संतोष का हाथ हटा कर शरीर पर लगे तेल को साफ करने बाथरूम चली गई।
मैं सीधे बाथरूम में जाकर शावर चला कर मस्ती से अपने शरीर और चूत पर साबुन लगा कर मल मल कर धोने के बाद नंगी ही बेडरूम में आकर शीशे के सामने खड़े होकर मैं अपने नंगे बदन को निहारने लगी।
तभी मुझे ध्यान आया कि कोई मेरा इन्तजार कर रहा है!
मैं पहले से ही संतोष से मालिश करा कर पूरी गर्म थी, मुझे चुदाई चाह रही थी, संतोष से बूर और चूचियाँ मसलवा कर मेरे ऊपर वासना हावी हो चुकी थी, मैं दरवाजे से उस हट्टे कट्टे इन्सान को पहले ही देख कर मस्त हो गई थी।
तभी मेरे दिमाग में एक शरारत आई कि क्यों न थोड़ा और मजा लूँ!
मैंने अपनी चिकनी चूत पर एक बहुत ही छोटी स्कर्ट पहन कर और ऊपर एक बिना बांह की बनियान पहन ली।
मैंने अपनी आदत के अनुसार ब्रा पहनी लेकिन पेंटी नहीं पहनी।
मेरी स्कर्ट जो मेरी जांघ नहीं ढक सकती थी, बिना पेंटी के चूत दिखाने को काफी थी।
मैं तैयार होकर बाहर आई तो देखा कि वह चाय पी रहा था।
मैं नमस्ते कह कर उसके सामने बैठ गई।
एक झलक में लगा कि मैंने कहीं देखा है इसे पर मुझे याद नहीं आया।
‘कहिये क्या काम है आपको?’
वह इधर उधर देखकर बोला- चूत का रसपान करने आया हूँ।
मैं उसकी बात सुनकर चौंक गई, कहाँ मैं इसे रिझाने आई थी, कहाँ यह खुला आमंत्रण!
लेकिन सीधे सीधे ऐसी बात बोलने की इसकी हिम्मत कैसे हुई, मैं थोड़ा गुस्से में चौंकने का अभिनय करके बोली- क्या? आप इतनी गन्दी बात और बिना डरे मेरे ही घर में बैठ कर कर रहे हो? आपकी इतनी हिम्मत?
तभी वह फिर बोला- हाँ जान, मैं यहाँ सिर्फ आपकी चूत चोदने आया हूँ, आपकी चाहत मुझे यहाँ खींच लाई है, मैं आपकी जवानी का रस पीने आया हूँ।
उसने दूसरी बार खुली चुदाई की बात बोल कर मेरी बोलती ही बंद कर दी, इस तरह बिना डरे अगर यह खुली चुदाई की दावत दे रहा है मेरे ही घर में बैठकर… तो जरूर कुछ बात है।
मैं फिर भी गुस्से में उसके ऊपर बिफर पड़ी, चल उठ यहाँ से भाग… तेरी इतनी हिम्मत? मेरे सामने इतनी बेहूदगी!
मैं कहते हुए उठ खड़ी हो गई, वह मेरे साथ ही उठ गया पर उसके चेहरे को देखकर नहीं लग रहा था कि वह मेरी बातों से डरा हो या कुछ ऐसा नहीं दिखा।
बल्कि वह एक झटके से मेरे करीब आकर, मुझे बाहों में भर कर मेरी चूचियों को भींच कर मेरे होटों का रसपान करने लगा।
घबराना उसे चाहिए… घबरा मैं रही थी!
अगर संतोष ने देख लिया तो क्या सोचेगा कि मैं कितनी गन्दी हूँ।
मैं उसकी बाहों से छूटने के लिए छटपटाने लगी पर उसने एक हाथ मेरी स्कर्ट डाल कर मेरी खुली चूत को भींच लिया।
तभी मुझे संतोष के आने की आहट हुई और मैं उससे बोली- छोड़ो… मेरा नौकर आ रहा है, मुझे ऐसे देखेगा तो क्या समझेगा!
मेरा इतना कहना था कि उसने मुझे छोड़ दिया और जाकर निडरता से सोफे पर बैठ गया।
मैंने उससे पूछा- आप इतनी गन्दी बात बोल रहे हो, वो भी एक अनजान घर में आकर और एक अनजान औरत के सामने… आपकी हिम्मत यह सब बोलने की कैसे हो गई, आप मुझे समझ क्या रहे हो, मैं लास्ट वार्निंग देती हूँ, चले जाओ नहीं तो अपने पति को फ़ोन करती हूँ।
तभी वह बोला- जी डार्लिंग, बड़े शौक से फ़ोन करना, लेकिन जरा आप अपने नौकर को बुला देती!
मैंने आवाज लगा कर संतोष को बुलाया।
संतोष जैसे ही आया, वह बोला- तुम बाहर दुकान से यह सामान लेकर आओ!
उसके पास एक लिस्ट थी जिसे उसने संतोष को थमा दिया और कुछ पैसे भी।
मैं बैठी देखती रही, तभी संतोष चला गया।
यह क्या… मुझे संतोष को जाने नहीं देना चाहिए था।
जिसकी हिम्मत इतनी है कि मेरे से गन्दी और खुली चुदाई की बात कर रहा है वह अकेले में क्या करेगा।
मैं यही सोच ही रही थी कि तभी वह एक झटके से उठ कर मेरे करीब आया, मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मुझे बेडरूम को ओर ले चला।
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