SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:11 PM,
#41
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“तुम्हें, पुलिस के सामने यूं पेश होना पड़ रहा है, इससे तुम्हें कोई हैरानी हुई नहीं लग रही!”
“हैरानी की क्या बात है, साहब? सच पूछिए तो मुझे तो पूरी उम्मीद थी कि देर सवेर मेरे नाम पुलिस का बुलावा जरूर आना था।”
“अच्छा! वह किसलिए?”
“कर्जन रोड पर जो लड़की मरी है, वो मेरी वाकिफकार जो थी! मेरी पायल से यारी दोस्ती की बहुत लोगों को जानकारी है, साहब।”
“आई सी! तो तुम्हारी मरने काली से यारी दोस्ती थी?”
“वैसी यारी दोस्ती नहीं थी, साहब, जैसी आप सोच रहे हैं। सीधी-सादी यारी दोस्ती थी मेरी उससे। हाल ही में मेरी इत्तफाकिया उससे मुलाकात हो गई थी। बेचारी रुपए पैसे से परेशान थी। मैंने कुछ रुपया उधार दिया था उसे।”
“तुम्हारा कभी उससे लड़ाई झगड़ा हुआ था?”
“नहीं।”
“कितने पैसे उधार दिए थे तुमने उसे?”
“पांच सौ रुपए।”
“उम्मीद थी कि वापस मिल जाएंगे?”
“पहले थी इसलिए दिए थे। लेकिन बीच में नहीं रही थी।”
“क्यों?”
“वह मुझसे कन्नी कतराने लगी थी।”
“फिर?”
“फिर उसकी मकान मालकिन से मुझे पता लगा कि वह अब बड़े ठाठ-बाट के साथ कर्जन रोड के बढ़िया फ्लैट में रहने लगी थी। मैंने सोचा जब उसके इतने ठाठ-बाट हो गए थे तो अब तो वह मुझे मेरे पैसे भी वापिस कर सकती थी। कल सुबह मैं उसके फ्लैट में उससे मिलने गया था। साहब, फ्लैट की चकाचौंध ही इस बात की चुगली कर रही थी कि वह किसी रईस आदमी की छत्रछाया में पहुंच गई थी। वह मुझे वहां आया देखकर बहुत खफा हुई थी। तब मेरी उससे थोड़ी-सी तकरार भी हुई थी लेकिन उसे झगड़ा-फसाद नहीं कहा जा सकता।”
“तकरार क्यों हुई थी?”
“एक तो इसलिए कि मैं उसके पीछे वहां आया क्यों? दूसरे वह मेरे रुपये मुझे लौटने को तैयार नहीं थी।”
“क्यों?”
“वजह तो उसने बताई नहीं! बस, कहने लगी कोई पैसा-वैसा नहीं है। भाग जाओ। मुझे बहुत तौहीन लगी, साहब। इसलिए एकाध सख्त बात मैंने भी कह दी।”
“फिर?”
“फिर क्या, साहब। उस औरत जात से जबरन तो मैं अपनी रकम वसूल कर नहीं सकता था! फिर मैं उसे यह जताकर कि मैं खूब समझता था कि वह किसी पैसे वाले आदमी की रखैल बन गई थी, मैं ठण्डे-ठण्डे वहां से लौट आया।”
“दोबारा तुम वहां कभी नहीं गए?”
“नहीं, साहब।”
“कल रात दो बजे के करीब तुम उसके फ्लैट पर नहीं गए थे?”
“नहीं, साहब। मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि कल रात मैं कमला नाम की एक लड़की के साथ था।”
“लेकिन इस बात को तुम साबित नहीं कर सकते। पायल का कत्ल कल रात दो बजे के करीब हुआ था। अगर तुम यह साबित कर सको कि कल रात दो बजे के आस-पास तुम कर्जन रोड से बहुत दूर फतहपुरी के इलाके में थे तो तुम अभी उठकर यहां से जा सकते हो।”
“लेकिन साहब यह तो आपकी मेरे साथ ज्यादती है कि क्योंकि मैं साबित नहीं कर सकता कि कल रात मैं कमला के साथ था इसलिए मैं कातिल हूं!”
“यही इकलौती वजह नहीं है। और भी वजह है।”
“और क्या वजह है?”
“तुम दारा को जानते हो?”
“कौन दारा। वह पुरानी दिल्ली का मशहूर दादा?”
“वही।”
“उसे कौन नहीं जानता?”
“दारा कहता है कि पायल का कत्ल तुमने किया है।”
“क्या!”—कौशल चिल्लाया।
“धीरे बोलो। चिल्लाओ नहीं।”
“लेकिन, साहब, वो ऐसा क्यों कहता है? ऐसी उसकी क्या दुश्‍मनी है मेरे साथ?”
“तुम बताओ।”
“मुझे नहीं मालूम लेकिन जो कुछ वह कहता है, झूठ कहता है।”
“हूं।”
“उसका भी पायल के कत्ल से कोई रिश्‍ता है, साहब?”
“पायल के कत्ल से हो सकता है। पायल से शर्तिया है।”
“अच्छा!”
“हां। दारा ही वो आदमी है जिसकी पायल रखैल थी।”
“ओह।”
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09-29-2020, 12:12 PM,
#42
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
भजनलाल ने हाथ बढ़ाकर कौशल की जेबों में से निकले सामान में से नोटों का पुलन्दा उठा लिया। उसने खामोशी से नोट गिने। फिर बोला—“दारा यह भी कहता है कि पायल के फ्लैट के सामने कल रात तुमने उस पर आक्रमण किया था और उसकी जेब से कोई चार हजार रूपये निकाले थे। यह तकरीबन उतनी ही रकम तुम्हारी जेब से बरामद हुई है।”
“साहब!”—कौशल आवेशपूर्ण स्वर में बोला—“वह झूठ बोलता है। बकवास करता है। मैंने तो आज तक उस आदमी की सूरत भी नहीं देखी। बस सिर्फ नाम सुना है मैंने उसका। और तारीफ सुनी है कि वह असल में क्या चीज है। साहब, जरूर वह अपनी खाल बचाने के लिए मुझे फंसाना चाहता है।”
भजनलाल ने बड़ी संजीदगी से गर्दन हिलायी लेकिन कौशल न समझ सका कि यूं गरदन हिलाकर वह अपनी सहमति जता रहा था या असहमति। फिर भजनलाल ने नोटों का पुलन्दा वापिस मेज पर रख दिया और हाथ बढ़ाकर पीतल का मुक्का उठा लिया। उसने मुक्के में अपने दायें हाथ की उंगलियां पिरोकर उंगलियां बन्द कीं और मुक्के का मुआयना किया।
“यह मुक्का तो बड़ा मजबूत और खतरनाक है।”—भजनलाल बोला—“ऊपर से तुम पहलवान हो। इस मुक्के का एक ही वार दारा को धूल चटा देने के लिए काफी था।”
“मैंने उस पर वार नहीं किया। मैंने उस पर उंगली तक नहीं उठाई। मैंने उसकी कभी सूरत तक नहीं देखी।”
“यह मुक्का कब से है तुम्हारे पास?”
“कल सुबह से। कल सुबह मैंने इसे जामा मस्जिद के एक कबाड़ी के पास देखा था और मैने दस रूपये में इसे खरीद लिया था।”
“क्यों?”
“अपनी हिफाजत के लिए, साहब। आजकल राह चलते तो हमले हो रहे हैं लोगों पर! आप क्या जानते नहीं कि शहर में राहजनी और बटमारी की वारदातें किस कदर बढ़ती जा रही हैं! अभी परसों रात ही किसी ने जमुना बाजार में मुझे लूटने की कोशिश की थी।”
“अच्छा!”
“जी हां। साले ने पीछे से आकर यह मोटा डण्डा मेरे सिर में दे मारा। यह देखिए।”—कौशल सिर झुकाकर उसे अपनी खोपड़ी दिखाता बोला—“कैसे खोपड़ी फुलाकर रख दी हरामजादे ने। वह तो मैं ही था जो वह वार झेल गया, कोई और होता तो मरा पड़ा होता।”
“च-च-च।”—भजनलाल बड़ी हमदर्दी के साथ बोला—“यहां से तो खून भी बहा मालूम होता है!”
“बहा था।”
“वह हमलावार फिर कहां गया?”
“मुझे वार से गिरता न देखकर भाग गया साला।”
“तुमने उसे पकड़ने की कोशिश न की?”
“साहब उस वक्त मैं अपना सिर थामता या उसे पकड़ता?”
“यह भी ठीक है। तुमने इस हमले की रिपोर्ट तो पुलिस में लिखवाई होगी?”
“नहीं, साहब।”
“नहीं?”
“नहीं, साहब।”
“क्यों?”
“क्या फायदा होता, साहब?”—कौशल दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला।
“तुम्हें पुलिस पर कोई खास भरोसा नहीं मालूम होता कौशलसिंह।”
“ऐसे ही है, साहब।”
“हूं। तो यह मुक्का तुमने अपनी हिफाजत की खातिर अपने पास रखा हुआ है।”
“जी, साहब। और हिफाजत की तो अब मुझे और भी ज्यादा जरूरत है।”
“मतलब?”
“साहब, अगर दारा यह कहता है कि मैने उस पर वार किया है और उसकी जेब से पैसे निकाले हैं तो उसके आदमी तो मार-मारकर भूस भर देंगे मेरे में।”
“ऐसा नहीं होगा।”—भजनलाल सख्ती से बोला—“इतनी बद्अमनी नहीं हैं दिल्ली शहर में।”
कौशल चुप रहा।
“लेकिन दारा का यह दावा अपनी जगह पर अटल है कि उस पर हमला तुमने किया था।”
“वह झूठ बोलता है, साहब।”—वह चिल्लाया, लेकिन फिर उसे भजनलाल की चेतावनी याद आ गई और उसकी आवाज दब गई—“वह कैसे कह सकता है कि उस पर हमला मैने किया था? क्या उसने मेरी सूरत देखी थी?”
“सूरत तो उसने नहीं देखी थी तुम्हारी! इतना तो वह मानता है! वह कहता हैं कि तुम दबे पांव तब उसके पीछे पहुंचे थे जब वह अपनी कार में दाखिल होने जा रहा था। तुमने एक हाथ से फिरकनी की तरह उसे घुमाया था और दूसरे हाथ का एक भीषण प्रहार उस पर किया था।”
“मैंने नहीं।”
“वह कहता है कि ऐसा तुमने किया था।”
“जब उसने मेरी सूरत नहीं देखी तो वह ऐसा कैसे कह सकता है?”
भजनलाल ने उत्तर न दिया। उसने अपने सहयोगी पुलिसियों की तरफ देखा। दोनों ने गम्भीरता से सिर हिलाया।
“यह रकम”—भजनलाल ने मेज पर पड़े नोटों की तरफ संकेत किया—“अगर तुमने दारा से नहीं छीनी तो यह तुम्हारे पास कहां से आई?”
“यह क्या बहुत बड़ी रकम है साहब।”—कौशल आहत भाव से बोला—“जो मेरे पास नहीं हो सकती? अच्छे खाते पीते घर का आदमी हूं मैं। कोई मंगता तो नहीं हूं!”
“हूं।”—भजनलाल बोला, फिर उसने कालबैल बजाई। तुरंत दरवाजा खोलकर एक हवलदार भीतर दाखिल हुआ। वह हवलदार से बोला—“साहब को जरा बाहर बिठाओ।”
हवलदार कौशल को अपने साथ ले गया।
“क्या खयाल है?”—भजनलाल बोला।
“अगर वह झूठ बोल रहा था”—दरियागज थाने का इन्चार्ज चतुर्वेदी बोला—“तो मानना पड़ेगा कि बड़ी होशियारी से और बड़े आत्माविश्‍वास के साथ बोल रहा था।”
“झूठ तो वह शर्तिया बोल रहा था। छोकरा होशियार है, हो सकता है दोनों ही वारदातों में इसका हाथ हो।”
“सर।”—कनाट प्लेस थाने का इन्चार्ज भूपसिंह बोला—“मेरे वाले केस में तो मुझे दारा इससे कहीं ज्यादा बड़ा सस्पैक्ट लगता है। उसका चेहरा नुचा हुआ पाया गया है, जबकि इस छोकरे के चेहरे पर एक खरोंच भी नहीं है।”
“तुम यह कहना चाहते हो कि यह”—भजनलाल ने फिर नोटों की तरफ संकेत किया—“दारा की जेब से निकला हुआ रुपया नहीं है!”
“हो सकता है यह दारा का ही माल हो। लेकिन यह जरूरी नहीं कि कत्ल इस छोकरे ने किया हो। मेरी राय में इस छोकरे ने दारा पर तब आक्रमण किया होगा जब वह पायल का कत्ल करके बाहर सड़क पर आकर अपनी कार में सवार होने का उपक्रम कर रहा था।”
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09-29-2020, 12:12 PM,
#43
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“दारा खुद कत्ल करे, यह बात मेरे गले से नहीं उतरती। वह इतना बड़ा गैगस्टर है। वह किसी से भी पायल का कत्ल करा सकता था।”
“यह एक खूबसूरत औरत के कत्ल का मामला है, सर। ऐसी औरत के कत्ल का मामला है जो कि उसकी रखैल थी। हो सकता हैं उसका कत्ल का कोई इरादा न रहा हो लेकिन किसी वक्ती जुनून के काबू में आकर उसने ऐसा कर डाला हो।”
“हूं।”
“सर, चतुर्वेदी बोला—“आपने उससे मेरे इलाके वाली वारदात से ताल्लुक रखता तो कोई सवाल पूछा ही नहीं।”
“मैने जान-बूझकर नहीं पूछा।”—भजनलाल बोला—“उसकी सूटकेस वाली कहानी ने ही मुझे इस बारे में खामोश रहने पर मजबूर कर दिया था। वह कहता है कि सूटकेस चोरी हो गया है लेकिन मेरा खयाल है कि उस सूटकेस में कामिनी देवी के यहां से लुटा माल है जो उसने कहीं छुपाया है। हो सकता है कि वह उस सूटकेस को क्लॉकरूम में जमा कराने की नीयत से ही स्टेशन पर गया हो। हो सकता है कि वह सूटकेस इस क्षण भी पुरानी दिल्ली स्टेशन के क्लॉकरूम में मौजूद हो। उसने सूटकेस का हुलिया बयान किया है। कल की तारीख में वहां जमा करवाए गये वैसे सूटकेस कोई सौ-पचास तो नहीं होंगे!”
“यस, सर।”
“अगर सूटकेस स्टेशन पर न हुआ तो कौशल हमें उस तक पहुंचाएगा। हम उसके पीछे लगे रहकर सूटकेस तक पहुंच सकते हैं।”
“लेकिन, सर, हमारे पास क्या सबूत है कि कौशल का आसिफ अली रोड वाली चोरी से कोई रिश्‍ता है? सिर्फ दारा ने एक हीरे की अंगूठी का जिक्र किया है लेकिन, वह खुद कहता है कि, वह अंगूठी उसने अपनी आंखों से कौशल के पास नहीं देखी थी। क्या पता ऐसी कोई अंगूठी कौशल के पास रही ही न हो, रही हो तो हीरे की न हो, हीरे की हो तो कामिनी देवी की न हो।”
“इन्स्पेक्टर, कौशल का अपना घर छोड़कर एकाएक यहां से कूच कर जाने का इरादा रखना बिना वजह नहीं हो सकता। जरूर वह चोरी के माल के साथ यहां अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा था। जरूर उसके मन में यह डर पैदा हो गया था कि यहां वह माल उससे छीना जा सकता था। वह दारा का इलाका है। अगर दारा का बयान सच माना जाए तो वह कौशल के पास एक हीरे की अंगूठी की मौजूदगी से वाकिफ था। वह आसिफ अली रोड से चोरी गए जवाहरात से भी नावाकिफ नहीं हो सकता। क्या वह दो जमा दो जोड़कर चार जवाब नहीं निकाल सकता? क्या वह कौशल से माल झपटने की कोशिश नहीं कर सकता?”
“आपका कहना है कि कौशल को ऐसे किसी खतरे की भनक पड़ गई और उसने माल के साथ अपना ठिकाना छोड़ जाने में ही अपना कल्याण समझा!”
“हां। और अगर वह स्टेशन पर गया था तो जरूर माल वाला सूटकेस क्लॉकरूम में जमा करवाने ही गया था। ऐसा माल छुपाकर रखने के लिए स्टेशन के क्लॉकरूम से ज्यादा सुरक्षित और फौरन बड़ी सहूलियत से हासिल हो जाने वाली और कौन-सी जगह हो सकती है!”
“लेकिन अगर इसने सूटकेस क्लॉकरूम में रखा है तो इसकी जेब से क्लॉकरूम की रसीद भी बरामद होनी चाहिए थी जो कि नहीं हुई है।”
“वह इसने या तो कहीं छुपा दी होगी और या उसे अपने किसी दोस्त के पते पर अपने ही नाम मेल कर दिया होगा।”
चतुर्वेदी एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला—“सर, हमें उस पर दवाव डालना चाहिए।”
“कोई फायदा नहीं होगा। वह आसिफ अली रोड की चोरी के बारे में हारगिज कुछ बक के नहीं देगा। वह सिर्फ चोरी का नहीं, एक कत्ल का भी केस है। उससे ताल्लुक रखती हामी भरने से वह बहुत लम्बा नप सकता है। और फिर वह चोरी इस अकेले आदमी का काम नहीं हो सकता। जरूर उस चोरी में उसके कोई साथी भी थे। अपनी जुबान खोलकर वह अपने साथियों के अपने पर विश्‍वास की हत्या नहीं कर सकता।”
“लेकिन उसने दारा पर आक्रमण किया है, वह बात उससे कुबूलावाई जा सकती है। उस आक्रमण के सबूत के तौर पर हमारे पास उसका पीतल का मुक्का और नोटों का पुलंदा जो हैं। अगर वह दारा पर आक्रमण किया होना कबूल कर ले तो वह यह बयान भी दे सकता है कि दारा के इमारत से निकलकर कार के पास पहुंचने के बाद जब उसने उस पर आक्रमण किया था, उस वक्त दारा के चेहरे पर खरोंच पहले से मौजूद थीं। यह बात दारा को निर्विवाद रूप से हत्यारा सिद्ध कर देगी।”
“और साथ ही कौशल को कत्ल के इलजाम से बरी भी करा देगी।”
“तो करा दे। हम उसे पकड़कर वैसे भी नहीं रखना चाहते। वह आजाद घूमेगा तभी तो वह हमें सूटकेस तक पहुंचाएगा!”
“अगर वह फरार हो गया तो?”
“तो यह हमारी कमजोरी होगी। यह हमारे महकमे के लिए शर्म की बात होगी कि हमने उसे फरार हो जाने दिया।”
इन्स्पेक्टर खामोश रहा।
तभी एक हवलदार ने भीतर कदम रखा।
“झंडेवालान से रिपोर्ट आई है, सर।”—वह बड़े अदब से एक लिफाफा भजनलाल के सामने रखता हुआ बोला।
झंडेवालान में पुलिस की फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्री थी।
भजनलाल ने लिफाफा खोलकर रिपोर्ट पढ़ी।
“रिपोर्ट कहती है”—फिर उसने अपने साथियों को बताया—“कि पायल के नाखूनों के नीचे से बरामद खून के सूखे कण तथा दारा का खून एक ही ब्लड ग्रुप का है।”
“यह रिपोर्ट तो”—भूपसिंह बोला—“दारा के खिलाफ मेरे केस को और भी पुख्ता कर देती है।”
भजनलाल ने सहमति में सिर हिलाया। फिर उसने हवलदार को आदेश दिया—“उस छोकरे को वापिस लाओ।”
हवलदार चला गया।
कौशल को फिर वहां पेश किया गया।
“देखो”—भजनलाल कठोर स्वर में बोला—“हम तुम्हारी कहानी से सन्तुष्ट नहीं। तुम सच नहीं बोल रहे हो। सच बोल रहे हो तो मुकम्मल तौर से सच नहीं बोल रहे हो। जितनी तुम पायल से अपनी रिश्‍तेदारी कबूल कर रहे हो, जरूर उससे कहीं आगे की रिश्‍तेदारी थी तुम्हारी उसके साथ। तभी तो जब तुम्हें यह पता लगा था कि वह मोरी गेट वाला अपना घर छोड़ गई थी और जाकर कर्जन रोड पर रहने लगी थी तो तुमसे सब्र नहीं हुआ था और तुम फौरन दौड़े-दौड़े कर्जन रोड पहुंच गए थे।”
“साहब, मैं इस बात से इनकार नहीं करता।”—कौशल बड़े विनीत भाव से बोला—“कि मैं उस लड़की पर दिल रखता था। यह भी सच है कि मैं दौड़ा दौड़ा उसके पीछे कर्जन रोड पहुंच गया था। लेकिन जब मुझे यह पता लगा था कि मेरे प्यार की रत्ती भर भी कद्र किए बिना वह किसी पैसे वाले आदमी की रखैल बन गई थी तो मेरे लिए यह कहानी उसी घड़ी खत्म हो गई थी। मैने दो चार सख्त लफ्जों में उसे उसकी औकात जतानी चाही थी तो उसने मुझे बेइज्जत करके अपने फ्लैट से बाहर निकाल दिया था।”
“और इसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए तुमने उसका कत्ल कर दिया।”
“मैंने उसका कत्ल नहीं किया, साहब। तब मेरा तो ऐसा दिल टूटा या कि मुझे तो उस पर दोबारा निगाह डालना भी गवारा नहीं रहा था।”
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09-29-2020, 12:12 PM,
#44
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“अगर हम तुम्हारा खून टैस्ट करवाना चाहें तो तुम्हें कोई एतराज?”
कौशल हिचकिचाया।
“अगर तुम बेगुनाह हो तो इतनी मामूली-सी बात से तुम्हें कोई एतराज नहीं होना चाहिए।”
“मुझे कोई एतराज नहीं, साहब।”—कौशल मन ही-मन भयभीत होता लेकिन ऊपर से दिलेरी दिखाता बोला।
“तसवीर खिंचवाने से कोई एतराज?”
“एतराज तो नहीं, साहब, लेकिन तसवीर तो मुजरिमों की खिंचती है!”
“सम्भावित मुजरिमों को भी खिंचती है।”
“लेकिन गिरफ्तारी के बाद ही तो खिंचती होगी! मैं क्या अपने-आपको गिरफ्तार समझूं?”
“समझ लो।”
“लेकिन किस इलजाम में, साहब? आप जानते हैं आप मेरे खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर सकते।”
“कौशलसिंह, तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए तुम्हारे पास से बरामद यह मुक्का ही काफी है। यह एक खतरनाक हथियार है। और खतरनाक हथियार अपने पास रहना इरादायेकत्ल की चुगली माना जाता है।”
“लेकिन यह तो सिर्फ आत्मरक्षा के लिए मैंने अपने पास रखा हुआ था!”
“तुम्हीं तो कहते हो! तुम्हारे कहने से क्या होता है?”
“यह तो ज्यादती है आप लोगों की!”
“यह हमारी ज्यादती नहीं, हमारा सबक है तुम्हारे लिए। अगर तुम कानून छांट सकते हो तो हम भी कानून छांट सकते हैं।”
कौशल को जवाब न सूझा!
“अब बोलो। तसवीर खिंचवाने को तैयार हो?”
“जी, साहब।”
“शाबाश।”
भजनलाल ने घंटी बजाकर हवलदार को बुलाया और उसे आवश्‍यक निर्देश देकर कौशल को उसके साथ रवाना कर दिया।
एक घण्टे बाद कौशल फिर हवा की तरह आजाद सड़क पर मौजूद था। मुक्के के अलावा उसका सारा सामान—नोटों का पुलन्दा भी—उसे लौटा दिया गया था। उसकी अपनी निगाह में पायल के कत्ल से वह मुकम्मल तौर से बरी किया जा चुका था और कामिनी देवी के कत्ल और उसके यहां हुई चोरी से उसके रिश्‍ते की तो पुलिस को भनक तक नहीं थी। इस बात से यह भी साबित होता था कि दारा ने उस बारे में अपनी जुबान वहीं खोली थी। अलबत्ता उसने कौशल के पायल का कातिल होने की बात बार-बार दोहराई थी।
लेकिन जुबानी जमा-खर्च करने से क्या होता था! जो कहा जाता था, उसे साबित भी तो करना पड़ता था!
और दारा उसके खिलाफ कुछ साबित नहीं कर सकता था।
कौशल अब पूरी तरह से आश्‍वस्त था कि उसका बाल भी बांका नहीं होने वाला था।
कितनी गलतफहमी में था पहलवान!

गुरुवार : सुबह
राजन का अपने घर और अपने मौहल्ले से सिर्फ इतना रिश्‍ता था कि घर उसको रात को सोने के लिए जाना पड़ता था और घर पहुंचने के लिए मौहल्ले से उसकी गुजरना पड़ता था। नाकामयाबी की लानत के साथ जब से वह मुम्बई से लौटकर आया था, उसके बाप ने उसके टोका-टाकी करनी कतई छोड़ दी थी। राजन किस राह जा रहा था, भविष्य में उसका क्या बनेगा, इन बातों की बाप को फिक्र तो होती थी लेकिन वह उन्हें जुबान पर नहीं लाता था, इसलिए नहीं लाता था कि राजन कहीं फिर न घर से भाग खड़ा हो। उसकी निगाह में सब्र और इन्तजार ही राजन का इलाज था। लड़का हमेशा ही यूं लापरवाह नहीं बना रह सकता था। अभी तो उसे अपनी रिजक कमाने की जिम्मेदारी का अहसास होना ही था। उस मुबारक दिन के इन्तजार में जुबान को ताला लगाए बाप अपने बेटे के साथ रह रहा था। बाप बेटे जैसा नजदीकी रिश्‍ता होने के बावजूद, दोनों के एक ही छत के नीचे रहते होने के बावजूद, कई बार ऐसा होता था कि तीन-तीन चार-चार दिन बाप-बेटा एक-दूसरे के रूबरू नहीं हो पाते थे। बेटा जब रात को घर लौटता था तो बाप सो चुका होता था, बाप जब सुबह अपने काम धन्धे के लिए घर से रवाना होता था तो बेटा अभी जागा नहीं होता था।
चारहाट में कोई दर्जन भर उसके हमउम्र लड़कों का एक गैंग था जिसका एक्टर बनने की नीयत से मुम्बई भाग जाने तक वह भी अंग था। वापिसी पर जब उसने उस गैंग का फिर अंग बनने की कोशिश की थी तो उसे ऐसा माहौल मिला था जो उसके मिजाज को रास नहीं आया था। वही उसके वो हमउम्र लड़के थे जो कि उसका मजाक उड़ाया करते थे कि साला गया था अमिताभ बच्चन बनने, बन उसका डुप्लीकेट भी न सका।
अपने पुराने गैंग में आज राजन की स्थिति एक बेहद अवांछित व्यक्ति जैसी थी। लड़के न सिर्फ उसका मजाक उड़ाते थे बल्कि उससे उलझने की, उसे बेइज्जत करने की भी कोशिश करते थे। इसीलिए राजन की कोशिश यही होती थी कि वह दिन को चारहाट से निकल जाए और रात को सोने के वक्त ही वहां पहुंचे।
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09-29-2020, 12:12 PM,
#45
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
उसके पुराने गैंग में दामोदर नाम का एक लड़का था जो उससे खास तौर से खुन्दक खाता था। जैसे राजन कभी ऐक्टर बनने के ख्वाब देखता था, वैसे ही दामोदर अपनी कल्पना दिल्ली के ही नहीं बल्कि हिन्दोस्तान के सबसे बड़े दादा के रूप में किया करता था। वह अपनी कल्पना ऐसे फिल्मी गैंगस्टर के रूप में करता था जिसके आगे सब गर्दन झुकाते थे, जिससे पुलिस तक डरती थी, जो ‘बॉस’ के फैंसी नाम से पुकारा जाता था और जो जब भी कहीं जाता था, उसके दो चमचे दाएं-बाएं उसके साथ होते थे। अभी वह उम्र में छोटा था इसलिए छोटे-मोटे कारनामों की बाबत सोचता था लेकिन वह बड़े फिल्मी स्टाइल में हमेशा कहा करता था कि एक दिन उसने दिल्ली के अन्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बनना था, एक दिन उसने अपनी ऐसी धाक जमाकर दिखानी थी कि दारा भी उसका हुक्का भरता दिखाई देता। दामोदर बहुत मोटा और बेढंगा बना हुआ था, सूरत उसकी सूअर की थूथनी जैसी थी और उसको अपनी कुरूपता का अहसास भी था। दामोदर शुरू से ही राजन से इस बात से भी खुन्दक खाता था कि इलाके की सारी नौजवान लड़कियां राजन पर ही मक्खियों की तरह भिनभिनाती दिखाई देती थीं। दामोदर ने सोचा था कि मुम्बई से पिटा-सा मुंह लेकर लौटने के बाद तो राजन की लड़कियों में साख घटेगी, लेकिन राजन के लौट आने के चन्द ही दिनों में यह साबित हो गया था कि लड़कियों में उसकी लोकप्रियता रत्ती भर भी कम नहीं हुई थी। एक डेजी नाम की क्रिश्‍चियन लड़की तो खास तौर से राजन पर बुरी तरह से फिदा थी। राजन जब घर से भाग गया था तो दामोदर ने उस पर बहुत डोरे डालने की कोशिश की थी लेकिन डेजी ने न उसको घास डाली थी और न इलाके के किसी और लड़के को। राजन वापिस लौटा था तो वह पहले से भी ज्यादा जोशोखरोश से उससे मिलने जुलने लगी थी। दामोदर उन दोनों को इकट्ठे देखता था तो उसका जी चाहता था कि वह दोनों का नहीं तो राजन का तो जरूर ही खून कर दे।
राजन के लिए उसके मन में घर कर चुकी घृणा और विद्वेष की भावना उसे सदा राजन से उलझने, उसे जलील और बेइज्जत करने के लिए प्रेरित करती रहती थी।
खुद राजन डेजी से बहुत मुहब्बत करता था। वह उससे शादी करना चाहता था। लेकिन अपने बाप पर आश्रित रहकर या उसका ताले-चाबियों का धन्धा अपनाकर वह डेजी से शादी नहीं करना चाहता था। यह भी एक अहम वजह थी कि वह आसिफ अली रोड वाली चोरी में रंगीला का साथ देने के लिए फौरन तैयार हो गया था।
दामोदर देखने में हर लिहाज से राजन से ज्यादा लम्बा-चौड़ा और बलशाली लगता था, लेकिन फिर भी राजन से सीधे टक्कर लेने की उसकी आज तक हिम्मत नहीं हुई थी। वह राजन से हमेशा तभी उलझता था—बल्कि तब जरूर उलझता था—जबकि उसके दो-चार हिमायती उसके साथ होते थे। राजन को नीचा दिखाना, उसे बेइज्जत करना एक तरह से उसके जीवन का उद्देश्‍य बन गया था। अपने इस उद्देश्‍य में अगर उसे एक छोटी कामयाबी हासिल हो जाती थी तो वह उससे बड़ी कामयाबी हासिल करने के लिए तड़फड़ाने लगता था। वह चाहता था कि राजन उससे डरे, उससे फरियाद करे कि यार दामोदर, तू क्यों मेरे पीछे पड़ा हुआ है लेकिन राजन ऐसा नहीं करता था। वह ऐसा करता तो शायद दामोदर के कलेजे को ठण्ड पड़ जाती और वह किसी हद तक उसका पीछा छोड़ देता लेकिन राजन तो अपमान सहकर भी उसे यह जताकर ही जाता था कि वह जरूरी नहीं समझता था कि जो भी कुत्ता उस पर भौंके, वह पत्थर लेकर उसे मारने दौड़ पड़े।
राजन का वह रवैया दामोदर पर ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ता था कि वह और आग बगूला हो जाता था।
मौजूदा हालत यह थी कि दामोदर को यह बात अपने लिए बेइज्जती की लगती थी कि राजन उसके सामने से बेइज्जत हुए बिना गुजर जाए। ऐसी नौबत न आने पाए, इसलिए वह अपने कम-से-कम दो चमचे हमेशा अपने साथ रखता था।
उस रोज राजन दस बजे सो कर उठा।
उसका बाप कब का अपनी दुकान पर जा चुका था।
वह नित्यकर्म से निवृत्त हुआ और दरीबे के मोड़ की दुकान से पूरी खाकर आने की नीयत से घर से निकला।
उसने गली से बाहर कदम रखा तो उसने दामोदर को अपने एक साथी के साथ एक दुकान के चबूतरे पर बैठे पाया।
“अबे लमड़े यार।”—राजन अभी उनके पास पहुंचा भी नहीं था कि दामोदर ने फबती कसी—“अपना अमिताभ बच्चन आ रिया है।”
उसके साथी का नाम मदन था और राजन उसे भी खूब जानता था।
“खलीफा।”—मदन खी-खी करके हंसता हुआ बोला—“साथ में रेखा तो नहीं दिखाई दे री।”
“अबे, रेखा ने तो शादी कल्ली। अब कहां धरी है रेखा!”
“खलीफा, अपने अमिताभ के लिए बहुत रेखा धरी हैं। अपनी क्रिश्‍चियन रेखा को भूल रिए हो क्या?”
“हाय-हाय! बेचारा मजनूं हो रिया है उसकी खातिर।”
राजन ने उसकी फबतियों की तरफ ध्यान दिए बिना उनके सामने से गुजर जाना चाहा। सड़क पर उस वक्त रिक्शे बहुत थे जिनकी वजह से न चाहते हुए भी उसे उनके करीब से होकर गुजरना पड़ा। ज्यों ही वह दामोदर के आगे से गुजरा, दामोदर ने अपनी टांग सामने फैला दी।
उसकी टांग से उलझकर राजन गिरता-गिरता बचा।
उसने किसी प्रकार जब्त किया और बिना दामोदर की तरफ निगाह उठाए आगे बढ़ गया।
दामोदर शेर हो गया। उसने मदन के कन्धे पर हाथ मारा और उठकर खड़ा हो गया। दोनों लपककर राजन के दाएं बाएं पहुंचे और फौजियों की तरह पांव पटक-पटककर उसके साथ चलने लगे।
“लैफ्ट राइट।”—दामोदर बोलने लगा—“लैफ्ट राइट। लैफ्ट राइट...”
कई लोग हंसने लगे।
राजन ठिठक गया। क्रोध और अपमान से उसका चेहरा लाल भभूका हो गया।
“हाल्ट!”—दामोदर सड़क पर पांव पटककर रुकता हुआ बोला—“अटैन्शन!”
तभी राजन के दाएं हाथ का एक प्रचण्ड घूंसा दामोदर के पेट में पड़ा।
दामोदर का शरीर दोहरा हुआ और फिर सड़क पर ढेर हो गया।
राजन का आक्रमण उसके लिए बेहद अप्रत्याशित था। पहले हमेशा गाली गलौच और तकरार होती थी फिर लड़ाई-झगड़े की नौबत आती थी। तब तक बीच बचाव करने वाले लोग जमा हो जाते थे लेकिन उस रोज वैसा कुछ नहीं हुआ था।
राजन आंखों में कहर लिए मदन की तरफ घूमा।
अपने खलीफा को सड़क की धूल चाटता पाकर मदन वैसे ही भयभीत हुआ हुआ था। वह फौरन दो कदम पीछे हट गया।
“पीछे कहां हट रहा है, हरामजादे!”—राजन गुर्राया—“अब फारवर्ड मार्च क्यों नहीं करता?”
मदन और दो कदम पीछे हट गया और व्याकुल भाव से उसे देखने लगा। उसका हर एक्शन उसकी इस नीयत की चुगली कर रहा था कि राजन का उसकी तरफ पहला कदम बढ़ते ही उसने वहां से भाग खड़ा होना था।
राजन ने बड़ी मुश्‍किल से अपने आप पर काबू किया और फिर घूमकर आगे बढ़ गया।
दामोदर तब भी सड़क पर गिरा पड़ा था। ऐसा प्रचंड घूंसा उसने अपनी सारी जिन्दगी में कभी नहीं खाया था। राजन के उस एक ही अप्रत्याशित वार ने उसका मनोबल तोड़ दिया था। आज उसे यह पता लग गया था कि राजन जब चाहता उसे पीट सकता था।
फिर वह उठकर अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करने लगा। मदन ने आगे बढ़कर उसे सहारा देना चाहा तो उसने मदन का हाथ परे झटक दिया।
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09-29-2020, 12:12 PM,
#46
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“छोड़ूंगा नहीं, स्साले।”—दामोदर अपने से दूर जाते राजन की तरफ मुंह करके चिल्लाया—“काट के गेर दूंगा। तू समझ क्या रिया है अपने आपको?”—जब उसने राजन को ठिठकते न पाया तो वह और भी जोर से गरजा—“तन्दूर में लगा दूंगा साले तुझे भी और तेरी उस क्रिस्तान छोकरी कू भी। जानता नहीं किसके सामने फैल रिया है, स्साला! मेरा जरा पांव फिसल गया तो स्साले यह मति न समझ लियो कि दामोदर को चित्त कर लिया है तूने...”
राजन उसकी हर बकवास सुन रहा था। वह जानता था कि उसके वापिस घूम पड़ने भर से ही वह बकवास बन्द हो सकती थी लेकिन उसने रुकना मुनासिब न समझा। हो सकता था ताव खाकर वह ज्यादा मार कुटाई कर बैठता। तब पुलिस चौकी का मुंह भी देखना पड़ सकता था और मौजूदा हालात में पुलिस के फेर में तो वह किसी कीमत में भी नहीं पड़ना चाहता था।
‘अगर डेजी की तरफ एक उंगली भी उठाई इस मोटे भैंसे ने’—वह अपने आपसे बोला,—‘तो साले का खून कर दूंगा। अब तो मैं जरूर ही रिवॉल्वर अपने पास रखूंगा, फिर देखूंगा बहादुरी सालों की। रिवॉल्वर देखकर न पेशाब निकल जाए सबका तो कहना।’
यूं ही अपने आपको समझाता राजन आगे बढ़ता गया।
उस वक्त केवल पूरी खाने की नीयत से मोड़ तक जाते वक्त भी जवाहरात वाली शनील की थैली उसकी जेब में थी। अब वह इसलिए भी थैली अपने पास रखना चाहता था कि पुलिस अगर कभी उसके पीछे पड़ ही जाए तो वह थैली को कहीं भी फेंक सकता था। थैली उसके घर से बरामद होने पर तो वह फंसता ही फंसता।
गुरुवार : शाम
अपनी थैली के बारे में रंगीला भी कम फिक्रमन्द नहीं था। अपने घर में उसे ऐसी कोई जगह सूझ नहीं रही थी जहां कि उसकी बीवी का हाथ न पड़ता हो। और हर वक्त थैली जेब में रखे रहना खतरनाक नहीं तो असुविधाजनक तो था ही।
लेकिन जेब में थैली रखने का एक फायदा भी था।
गिरफ्तारी के डर से कभी उसे एकाएक खड़े पैर भागना पड़ गया तो कम-से-कम माल तो उसके साथ होगा।
उसने सलमान अली से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन मौलाना ने उसे डांटकर भगा दिया था और कहा था कि वह कभी भूल कर भी उसके घर में आने की कोशिश न करे।
रंगीला के बहुत जिद करने पर उसने उसे टेलीफोन नम्बर बता दिया था, बहुत ही सख्त जरूरत आ पड़ने पर जिस पर वह उससे सम्पर्क स्थापित कर सकता था। उसने रंगीला को यह नहीं बताया था कि वह टेलीफोन कहां था लेकिन रंगीला को शक था कि वह टेलीफोन उसी इमारत में कहीं था जिसमें कि वह रहता था।
फेथ डायमंड के टुकड़ों को तराशने का काम वह अभी भी कर रहा था, ऐसा मौलाना ने उसे आश्‍वासन दिया था।
इस बात से रंगीला खुश था कि मौलाना को कर्जन रोड पर हुए कत्ल की या उससे कौशल के किसी ताल्लुक की खबर नहीं थी। कौशल के बाकी बखेड़ों की खबर भी उसे नहीं थी।
पिछली रात कौशल के उसके पास न पहुंचने की वजह से रंगीला को और भी विश्‍वास हो गया था कि वह पायल के कत्ल के सिलसिले में पुलिस की हिरासत में था। और अगर पुलिस उसके पास से जवाहरात बरामद कर चुकी थी तो अब वे उससे यह जानने की भरपूर कोशिश कर रहे होंगे कि उस चोरी में उसके साथी कौन थे?
क्या कौशल अपने दोस्तों के विश्‍वास की हत्या करेगा?
रंगीला को यूं लग रहा था जैसे वह बारूद के एक ऐसे ढेर पर बैठा था जो किसी भी क्षण भक्क से उड़ सकता था।
अगर पुलिस कौशल से उसके साथियों का नाम उगलवा चुकी थी तो किसी भी क्षण उसकी तलाश में वह चान्दनी महल भी पहुंच सकती थी।
उसके लिए यह फैसला करना मुहाल हो रहा था कि वह कौशल पर भरोसा रखे या वहां से भाग खड़ा हो।
पूछे जाने पर वह साफ मुकर सकता था कि वह किसी कौशल को या किसी राजन को जानता ही नहीं था लेकिन जवाहरात! जवाहरात का क्या करे वह?
अजीब सांप-छछूंदर जैसी हालत हो गई थी उसकी। न उगलते बनता था और न निगलते।
दरीबे से पैदल चलता वह घर तक पहुंचा।
घर में उसने अपनी बीवी को कहीं जाने की तैयारी करते पाया।
वह कई क्षण अपलक उसे देखता रहा।
कितनी खूबसूरत थी उसकी बीवी! रंग-रोगन लगाकर तो एकदम फिल्म स्टार लगने लगती थी।
उसके दिल में अनुराग की भावना जागने लगी।
वह याद करने की कोशिश करने लगा कि कब से प्यार से कहीं लेकर नहीं गया था वह अपनी बीवी को।
मुद्दतें ही हो गई थीं दोनों को एक साथ घर से निकले हुए।
बीवी बेचारी भलीमानस मिल गई थी उसे जो कभी शिकायत नहीं करती थी।
उसने आगे बढ़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया।
कोमल पहले तो सकपकाई, फिर उसने मुस्कराते हुए अपना शरीर उसकी पकड़ में ढीला छोड़ दिया।
“कहां जाने की तैयारी हो रही है?”—उसने पूछा।
“सिनेमा।”—वह बोली—“तुम्हारी तो आजकल आधी रात से पहले लौटने की उम्मीद होती नहीं है। मैं अकेली बैठी बोर होती रहती हूं। बड़ी मुश्‍किल से गली की एक लड़की को पटाया है साथ सिनेमा चलने के लिए।”
“कौन-सी पिक्चर देखने जा रही हो?”
“बगावत।”
“कहां?”
“गोलचा पर।”
“कौन है उसमें?”
“धर्मेन्द्र। हेमा मालिनी।”
“नयी पिक्चर है?”
“हां, लेकिन उसे लगे हुई कई हफ्ते हो गए हैं।”
“अच्छी पिक्चर है?”
“कहते तो हैं कि अच्छी है। मैंने ट्रेलर देखा था। उससे तो अच्छी ही मालूम हो रही थी।”
“टिकट मिल जाएगा?”
“उम्मीद तो है!”
“चलो, आज मैं तुम्हारे साथ चलता हूं।”
“अच्छा! आज तो किस्मत खुल गई मेरी जो तुम मेरे साथ जा रहे हो।”
रंगीला ने और कसकर उसे अपने साथ लिपटा लिया।
“छोड़ो।”—कोमल बोली—“मैं जरा गली की लड़की को कह आऊं कि मैं उसके साथ नहीं जा रही हूं।”
“उसे भी साथ ले चलो।”
“अजी, झाड़ू मारो। वह वैसे ही बहुत नखरे झाड़ रही थी मेरे साथ चलने में। तुम मुझे सिनेमा दिखाने ले जाया करो तो मुझे क्यों साथ के लिए गलीवालियों के तरले करने पड़ा करें।”
“मुझे सिनेमा का तुम्हारे जितना शौक नहीं है न!”
“कभी-कभार तो ले जा ही सकते हो!”
“आगे से कभी-कभार जरूर ले जाया करूंगा।”
“अब छोड़ो।”
रंगीला ने उसे बन्धनमुक्त कर दिया।
वह घर से निकल पड़ी।
पिक्चर देखने वह श्रीकान्त के साथ जा रही थी। कई दिनों से रंगीला को आधी रात से पहले घर न लौटता पाकर आज उसने श्रीकान्त के साथ ईविनिंग शो देखने जाने का हौसला किया था लेकिन आज रंगीला शाम से पहले ही वापिस लौट आया था।
यूं ही थोड़ी दूर तक गली का चक्कर लगाकर वह वापिस लौट आई।
“मना कर आई सहेली को?”—रंगीला ने पूछा।
“हां।”
“अब चलें?”
“चलो।”
दोनों घर से निकल पड़े।
वहां से गोलचा बहुत करीब था। वे पैदल ही आगे बढ़े।
“एक बात है।”—रास्ते में रंगीला बोला।
“क्या?”—कोमल बोली।
“मुझे पिक्चर देखने का तुम्हारे जैसा शौक नहीं है। मैं बोर हो जाता हूं सिनेमा में बैठा-बैठा। अगर मुझे पिक्चर न जंची तो मैं बीच में उठकर चला आऊंगा।”
“मुझे अकेली छोड़कर?”
“क्या हर्ज है? पड़ोस में तो सिनेमा है। तुम पूरी पिक्चर देखकर आ जाना।”
“सिनेमा में अकेली औरत के पीछे लोग पड़ जाते हैं।”
“उसके पीछे पड़ जाते होंगे जो वहां पहुंचती अकेली होगी। तुम तो मेरे साथ जा रही हो।”
“लेकिन फिर भी...”
“अरे, जरूरी थोड़े ही है कि मैं तुम्हें अकेली छोड़ कर चला ही आऊं। हो सकता है फिल्म मुझे बहुत दिलचस्प लगे।”
“अच्छा।”
रंगीला के साथ सड़क पर चलती कोमल कनखियों से अपने दाएं-बाएं देख रही थी। श्रीकान्त उसे रास्ते में ही कहीं मिलने वाला था लेकिन अभी तक वह उसे दिखाई दिया नहीं था।
रंगीला नोट कर रहा था कि राह चलते लोग बहुत आंख भर-भरकर कोमल को देख रहे थे। लोगों की ऐसी निगाहबीनी का गुस्सा करने के स्थान पर वह बड़ा अभिमान महसूस कर रहा था कि जिस औरत पर हर कोई लार टपका रहा था, वह उसकी मिल्कियत थी।
तभी सड़क पर खड़े एक सूट-बूटधारी खूबसूरत युवक पर उसकी निगाह पड़ी। उस युवक ने उन दोनों की तरफ देखा और फिर हर किसी की तरह आंख भरकर कोमल को देखने के स्थान पर उसने उन दोनों की तरफ से पीठ फेर ली और लपक कर एक संकरी गली में घुस गया।
पुलिस के बारे में सोचते-सोचते जैसी मानसिक स्थिति में रंगीला पहुंचा हुआ था, उसमें उस युवक की वह हरकत उसे चौंकाए बिना न रह सकी। जब वे संकरी गली के दहाने पर पहुंचे तो उसने दूर तक उसके भीतर झांका।
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09-29-2020, 12:12 PM,
#47
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
सूट वाला युवक उसे कहीं दिखाई न दिया।
“तुमने”—वह कोमल से बोला—“उस सूट वाले लौंडे को देखा जो अभी खरगोश की तरह कुलांचें भरता इस गली में घुसा था?”
“कौन सूट वाला?”—कोमल लापरवाही से बोली—“मैंने किसी सूट वाले को नहीं देखा।”
वास्तव में उसने उस सूट वाले युवक को बाखूबी देखा था।
वह श्रीकान्त था, कोमल के साथ रंगीला को देखकर जिसका दम निकल गया था और इसीलिए जो फौरन भाग खड़ा हुआ था।
रंगीला सोच रहा था कि क्या वह सूट वाला कोई पुलिसिया हो सकता था।
नहीं, नहीं—फिर उसने खुद अपने आपको तसल्ली दी—ऐसे बबुए पुलिस में कहां भरती किए जाते थे!
तो क्या वह कोई दारा का आदमी था?
नहीं। दारा की संगत करने वाले लोगों की किस्म का आदमी भी तो वह नहीं लगता था!
उंह! वह खामखाह तिल का ताड़ बना रहा था।
वे ‘गोलचा’ पहुंचे।
बाल्कनी की टिकट उन्हें बड़े आराम से मिल गई।
रंगीला कोमल के साथ बाल्कनी को जाती सीढ़ियों पर कदम रखने ही लगा था कि एकाएक उसकी निगाह बाहर सड़क पर पड़ी।
वही सूट वाला युवक उसे वहां फिर दिखाई दिया। उसके देखते-देखते वह सिनेमा के आगे के फुटपाथ पर से गुजर गया।
अगर वह छोकरा भी दरियागंज की तरफ ही आ रहा था—रंगीला ने अपने आपको समझाया—तो इसमें हलकान होने की क्या बात थी? तिराहा बैरम खां से दरियागंज एक वही तो रास्ता निकलता था जिस पर से वह और कोमल चल कर आए थे! वह छोकरा दरियागंज आने के लिए वही रास्ता न पकड़ता तो और क्या करता!
सिनेमा खत्म होने के बाद—उसने अपने आपको तसल्ली दी—अगर वह वापिसी में भी हमारे पीछे मुझे दिखाई दिया तो देख लूंगा साले को।
वे बाल्कनी में जा बैठे।
इत्तफाक से उन्हें साइड कॉर्नर की सीटें मिली थीं।
पिक्चर शुरू होने में अभी वक्त था इसलिए हाल में रोशनी थी। रंगीला ने चारों तरफ गरदन घुमाई तो उसे अपने से कोई चार लाइन पीछे कोने की दो सीटों पर राजन एक लड़की के साथ बैठा दिखाई दिया। दोनों की निगाहें एक क्षण के लिए मिलीं लेकिन दोनों ने ही किसी तरह के अभिवादन का आदान-प्रदान करने की या कोई बात करने की कोशिश न की।
शायद अपनी सहेली की वजह से राजन नहीं चाहता था—रंगीला ने सोचा—कि वह राजन से मुखातिब हो।
तभी हाल की बत्तियां बुझ गईं।
रंगीला का ध्यान स्क्रीन की तरफ चला गया।
विज्ञापन चित्रों वगैरह के बाद फीचर फिल्म शुरू हुई।
राज-रजवाड़ों के जमाने की मारधाड़ वाली उस फिल्म में रंगीला का कतई मन न लगा। उसे विस्की की तलब लगने लगी। तब पहली बार उसके ध्यान में आया कि ठेके तो आठ बजे बन्द हो जाते थे, जबकि फिल्म साढ़े नौ बजे तक चलने वाली थी।
अन्धेरे में ही उसने घड़ी का रुख प्रकाशित रजत पट की तरफ करके टाइम देखा।
आठ बजने में सिर्फ दस मिनट बाकी थे।
“मैं चलता हूं।”—वह कोमल के कान में बोला—“तुम आ जाना पिक्चर देख कर।”
“क्या?”—कोमल बोली—“नहीं जंची पिक्चर?”
“न।”
“मुझे तो बहुत अच्छी लग रही है!”
“तो तुम बैठो। तुम्हें तो उठकर साथ चलने को नहीं कह रहा हूं मैं!”
“ठीक है।”
रंगीला उठ खड़ा हुआ।
सड़क से पार ही फ्लोरा होटल के नीचे ठेका था जहां वह बड़े इत्मीनान से आठ बजे से पहले पहुंच सकता था।
दरवाजे की तरफ बढ़ते समय वह राजन के पास से गुजरा। राजन ने भी उसे उठकर वहां से जाते देखा लेकिन उसने फिर भी रंगीला को न बुलाया।
रंगीला अगर इण्टरवल की रोशनी में वहां से विदा हुआ होता तो उसे राजन से तीन लाइन पीछे बैठा वह सूट वाला बबुआ सा छोकरा जरूर दिखाई दे गया होता तो अब तक दो बार उसे दिखाई दे चुका था।
लेकिन श्रीकान्त ने रंगीला को बाखूबी देखा। राजन की तरह उसने भी यही समझा कि वह टायलेट वगैरह के लिए गया होगा। लेकिन जब सवा आठ बजे के करीब इण्टरवल हुआ और रंगीला तब भी वापिस न लौटा तो श्रीकान्त समझ गया कि रंगीला पक्का ही जा चुका था, अब वह वापिस लौटकर आने वाला नहीं था।
डेजी के साथ बैठे राजन ने भी यही नतीजा निकाला।
राजन रंगीला की बीवी की मौजूदगी में एक बार रंगीला के घर जा चुका था इसलिए वह उसे पहचानता था।
कुछ क्षण बाद उसने रंगीला की बीवी को राजन से पीछे कहीं किसी की तरफ हाथ हिलाते देखा। उत्सुकतावश राजन ने गरदन घुमाकर अपने पीछे देखा।
उसने अपने से तीन लाइन पीछे बैठे एक सूटधारी सुन्दर युवक को अपने स्थान से उठते देखा। युवक राहदारी पर चलता उसकी सीट के समीप से गुजरा।
तभी हाल की बत्तियां गुल हो गईं।
राजन ने उस युवक को आगे रंगीला की बीवी की बगल में रंगीला द्वारा खाली की सीट पर बैठते देखा।
तुरन्त दोनों एक दूसरे की तरफ झुके और खुसर पुसर करने लगे।
हूं—राजन ने मन ही मन सोचा—तो रंगीला की बीवी ने यार पाला हुआ था।
तभी पिक्चर दोबारा शुरू हो गई।
राजन पिक्चर में और डेजी में मग्न हो गया। फिलहाल उसने अपना यह फैसला मुल्तवी कर दिया था कि उसे रंगीला को उसकी बीवी की करतूत के बारे में बताना चाहिए था या नहीं।
शुक्रवार : दोपहरबाद
अगले दिन सुबह के अखबार में रंगीला को दोनों हत्याओं के बारे में कोई विशेष बात नहीं मिली। पुलिस ने उस बारे में कोई खास तरक्की की हो, ऐसा कम से कम अखबार से नहीं मालूम होता था।
दोपहरबाद वह चौक में गया और अखबार का सांध्य संस्करण खरीदकर लाया।
उसने खिड़की के पास एक कुर्सी घसीट ली और अखबार लेकर उस पर बैठ गया। खिड़की से धूप भीतर आ रही थी जो कि उसे उस वक्त बहुत अच्छी लग रही थी।
उसने देखा अखबार में एक ऐसी बात छपी थी जिसे पढ़कर उसे बड़ी राहत महसूस हुई।
पायल के कत्ल के सिलसिले में पुलिस ने कौशल को नहीं, दारा को हिरासत में लिया था।
और दारा अभी भी हिरासत में था।
एक बार अखबार में वह खबर छपी देखने की देर थी कि वह कूदकर इस नतीजे पर पहुंच गया कि पायल का कत्ल दारा ने ही किया था।
अब उसे इस बात पर अफसोस होने लगा कि वह और राजन नाहक कौशल पर शक करते रहे थे। उसका तो तब शायद पायल से कोई रिश्‍ता ही नहीं रहा था। पुलिस ने कौशल से पूछताछ की थी लेकिन, यह भी अखबार में छपा था कि, उसे हिरासत में नहीं लिया गया था। इसका साफ मतलब यही था कि पुलिस ने रूटीन के तौर पर उसे इसलिए तलब कर लिया था क्योंकि कभी पायल से उसकी वाकफियत थी।
लेकिन वह था कहां?
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09-29-2020, 12:12 PM,
#48
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
धूप को कुछ ज्यादा ही तीखी पाकर उसने धूप से परे हटने के स्थान पर अपना कोट उतारकर कुर्सी की पीठ पर टांग दिया।
उसका जी चाहा कि वह कूचा मीर आशिक जाए और मालूम करे कि कौशल कहीं वहीं पर तो नहीं था।
लेकिन वहां जाना उसे मुनासिब न लगा।
दारा के आदमी कौशल के घर की निगरानी करते हो सकते थे और वह खामखाह उनकी निगाहों में आ सकता था।
तभी कोट कुर्सी की पीठ से सरककर नीचे फर्श पर जा गिरा।
“लाओ, तुम्हारा कोट अलमारी में टांग दूं।”—कोमल बोली।
“नहीं, नहीं।”—रंगीला झपटकर कोट उठाता बोला—“कोई जरूरत नहीं।”
उसने कोट वापिस कुर्सी की पीठ पर टांग लिया।
बात मामूली थी लेकिन कोमल का माथा ठनके बिना न रह सका।
रंगीला को चीजें इधर उधर फेंकने की आदत थी। वह घर आकर कपड़े बदलता था तो जूते कहीं फेंकता था, जुराबें कहीं फेंकता था, कोट कहीं होता था तो पतलून कहीं होती थी। खुद वैसी बेतरतीबी फैलाने के बाद शिकायत वह हमेशा कोमल से करता था कि वह चीजों को ठीक से उठाकर भी नहीं रख सकती थी।
उसके कोट में ऐसी क्या चीज थी जो वह आज यूं लसूड़े की तरह उससे चिपका हुआ था?
मन ही मन हैरान होती कोमल रसोई में घुस गई।
कोई पौने घण्टे बाद काफी सारे काम करके जब वह रसोई से बाहर निकली तो उसने रंगीला को कुर्सी पर ही सोया पड़ा पाया। अखबार उसकी गोद में से उड़कर उससे दूर जा पड़ा था और उसका कोट कुर्सी की पीठ पर से सरककर फिर फर्श पर गिरा पड़ा था। उसकी नाक में से सीटी जैसी आवाज निकल रही थी और वह गहरी नींद सोया पड़ा मालूम होता था।
कोमल हिचकिचाती हुई उसके समीप पहुंची।
डरते-डरते उसने कोट को फर्श पर से उठाया।
क्या वह उसकी जेबें टटोले?
अगर बीच में ही रंगीला की नींद खुल गई और उसने चंद्रा को कोट की जेबें टटोलते देख लिया तो वह उस पर हाथ उठाए बिना नहीं रहने वाला था।
एकबारगी तो उसका जी चाहा कि वह कोट को वापिस फर्श पर डाल दे लेकिन उसकी स्वभावसुलभ उत्सुकता ने उसे ऐसा न करने दिया।
बड़े आतंकित भाव से जल्दी जल्दी उसने कोट की जेबें टटोलनी आरम्भ कीं।
कोट की बायीं ओर की भीतरी जेब में एक शनील की थैली मौजूद थी। बहुत हिम्मत करके उसने थैली को जेब से बाहर खींचा और उसे उंगलियों से टटोला।
भीतर कोई कंकडों की तरह खड़कती चीज थी।
उसने कोट को अपनी बांह पर डाल लिया और थैली का मुंह खोलकर भीतर झांका।
थैली के भीतर झिलमिल-झिलमिल हो रही थी।
सांस रोके उसने थैली को अपने बायें हाथ की हथेली पर उलटा।
उसकी हथेली पर विभिन्न आकार के बेशुमार हीरे मोती जगमगाने लगे।
कोमल के छक्के छूट गए।
उसकी आतंकित निगाह अभी भी सोये पड़े रंगीला के चेहरे पर पड़ी। ऐसे में अगर वह जाग गया तो वह जरूर उसे जान से ही मार डालेगा।
उसने तमाम जवाहरात वापिस थैली में डाल दिए।
एक हीरा उसके हाथ से फिसलकर नीचे फर्श पर गिरा। एक हल्की सी टन्न की आवाज हुई लेकिन कोमल को वह आवाज यूं लगी जैसे बम फटा हो। उसने जल्दी में हीरा फर्श पर से उठा कर थैली में डाला, थैली का मुंह बन्द किया, उसे वापिस कोट की भीतरी बायीं जेब में डाला और कोट को पूर्ववत् कुर्सी के पास फर्श पर फेंक दिया।
वह किचन में आ गई। उसने सिंक के नल से ढेर सारा पानी पिया और एक स्टूल पर बैठ गई। वह अपनी धौंकनी की तरह चलती सांस पर काबू पाने की कोशिश करने लगी।
उसका दिल गवाही दे रहा था कि शनील की उस थैली में लाखों रुपये का माल था।
लेकिन इतना माल रंगीला के पास आया कहां से?
नौकरी छूटने के बाद से क्या वह किसी चोरी या स्मगलिंग जैसे धन्धे में पड़ गया था?
क्या चक्कर था?
तभी एकाएक उसे याद आया कि सोमवार की रात को रंगीला घर नहीं आया था। सोमवार शाम का गया हुआ वह मंगलवार सुबह घर लौटा था।
और मंगलवार शाम के अखबार में सोमवार रात को हुई आसिफ अली रोड की एक धनाड्य महिला की हत्या की खबर छपी थी जिसके फ्लैट में से उसके कीमती रत्नजड़ित जेवर भी चुराए गए थे।
उसके शरीर ने एक जोर की झुरझुरी ली।
क्या उस औरत का खून उसके पति ने किया था?
क्या उसका पति चोर और खूनी था?
अब एकाएक उसे अपने पति से डर लगने लगा। जैसी उसकी उस वक्त हालत थी, उससे वह बहुत कुछ भांप सकता था। एक बार उसे यह मालूम हो जाने पर कि वह उसकी जेबें टटोल चुकी थी, उसकी खैर नहीं थी।
उसने थोड़ी देर के लिए घर से निकल जाने का फैसला किया।
अब वह अपने पति के सामने तभी पड़ेगी जब वह पूरी तरह से अपने आप पर काबू पा चुकी होगी। उस वक्त वह अक्सर सब्जी खरीदने के लिए घर से निकलती थी। रंगीला जागने पर आज भी उसे घर पर न पाता तो समझ जाता कि वह सब्जी लेने गई थी।
उसने टोकरी उठाई और घर से निकल पड़ी।
वह चौक में पहुंची।
वास्तव में वह वक्त उसकी और श्रीकान्त की एक संक्षिप्त सी मुलाकात का होता था। उस संक्षिप्त मुलाकात में ही वे आगे का कोई प्रोग्राम निर्धारित करते थे।
श्रीकान्त उसे वहीं खड़ी मिला जहां हमेशा मिलता था।
“शुक्र है अकेली आई हो।”—श्रीकान्त तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला—“शुक्र है आज साथ पहरेदार नहीं है।”
“मैं सब्जी खरीदने आई हूं।”—वह बोली—“अगर वह सब्जी खरीदने मेरा साथ आ सकता हो तो वह खुद ही मुझे सब्जी न ला दे।”
“छोड़ो, अब बोलो, क्या प्रोग्राम है?”
“अभी कोई प्रोग्राम मुमकिन नहीं। अभी वो घर पर है।”
“ओह!”
“लेकिन आजकल वह शाम को घर से जाता जरूर है और लौटता भी बड़ी देर से है।”
“कोमल, आज शाम को अगर तुम घर से निकल सको तो आज मैं तुम्हें अपने घर ले जा सकता हूं।”
“अपने घर?”
“हां! मेरे घर वाले सब एक शादी में जा रहे हैं जहां से वे आधी रात से पहले नहीं लौटने वाले। कोमल, ऐसा मौका फिर दोबारा हाथ नहीं आएगा।”
“अगर किसी ने देख लिया तो...”
“जब घर में कोई होगा ही नहीं तो देखेगा कौन?”
“अगर किसी ने मुझे तुम्हारे घर में घुसते देख लिया तो?”
“कोई नहीं देखेगा। अभी और थोड़ी देर बाद अन्धेरा हो जाएगा। आजकल हमारे अड़ोस पड़ोस वाले अन्धेरा होते ही घरों में घुस जाते हैं।”
“लेकिन...”
“लेकिन वेकिन छोड़ो।”—श्रीकान्त तनिक बेसब्रेपन से बोला—“अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार करती हो तो आज मेरा कहना मानो। याद है मंगलवार रात को तुमने क्या कहा था? तुमने कहा था कि तुम हर तरह से मेरी बनना तो चाहती थीं लेकिन कोई मौका तो लगता! अब आज मौका लग रहा है तो तुम बात को टालने की कोशिश कर रही हो।”
“यह बात नहीं है।”
“तो फिर और क्या बात है?”
वह श्रीकान्त को जवाहरात के बारे में बताना चाहती थी और ऐसा सड़क पर खड़े होकर करना उसे जंच नहीं रहा था।
तो क्या वह श्रीकान्त के घर जाना कबूल कर ले?
हर्ज क्या था?
उसके मानसपटल पर अपने और श्रीकान्त के बड़े अश्‍लील दृश्‍य उभरे।
ऐसी तनहाई में उससे मिलकर श्रीकान्त अपनी मनमानी किए बिना नहीं मानने वाला था।
उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
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09-29-2020, 12:13 PM,
#49
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“क्या सोच रही हो?”—श्रीकान्त बोला—“जवाब क्यों नहीं देती हो?”
“अगर वह घर से न गया तो?”—वह बोली।
“कमाल है! खुद ही कहती हो रोज जाता है, खुद ही कहती हो न गया तो।”
“रोज जाता है लेकिन आज न गया तो?”
“न गया तो न सही। लेकिन अगर चला गया तब तो आ जाओगी?”
वह फिर हिचकिचाई।
“फिर वही बात!”—श्रीकान्त आहत भाव से बोला—“लगता है तुम्हें मुझसे कतई कोई प्यार नहीं है।”
“ऐसा मत कहो, श्रीकान्त।”
“क्यों न कहूं? तुम तो...”
“ठीक है। अगर वह चला गया तो मैं आ जाऊंगी।”
“यह हुई न बात!”—श्रीकान्त हर्षित स्वर में बोला—“जी चाहता है यही तुम्हें बांहों में भरकर तुम्हारा मुंह चूम लूं।”
“खबरदार!”
“ठीक है। ठीक है। अन्धेरा होने के बाद से मैं यहीं तुम्हारा इन्तजार करूंगा।”
कोमल ने सहमति में सिर हिला दिया।
श्रीकान्त वहां से हट गया।
कोमल ने सब्जी खरीदी और घर वापिस लौटी।
रंगीला को उसने शीशे के सामने खड़े होकर बालों में कंघी फिराते पाया। कोट उसने पहन लिया हुआ था।
“जा रहे हो?”—कोमल ने पूछा।
“हां।”—रंगीला ने बिना उसकी तरफ निगाह उठाए जवाब दिया।
“वापिस कब लौटोगे?”
“पता नहीं।”
“आकर खाना तो खाओगे न?”
“तुम बना कर रख देना। खाना होगा तो खा लूंगा।”
उसका वह जवाब ही इस बात का सबूत था कि उसका घर जल्दी लौट आने का कोई इरादा नहीं था।
वह तनिक आश्‍वस्त हुई।
रंगीला बिना बीवी से कोई बात किए घर से निकल पड़ा।
कोमल रसोई में घुस गई।
हीरे जवाहरात की शक्ल में अपने पति की जेब में पड़ी शनील की थैली में गिरफ्तार विपुल धनराशि के बड़े सुन्दर सपने देखती वह खाना पकाने में जुट गई।
उस रोज श्रीकान्त के घर कोमल ने उसके सामने सम्पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया। श्रीकान्त की मन की मुराद तो पूरी हो गई लेकिन ऐसा करने के लिए उसको कोमल को घर की तनहाई में दबोच लेने के बाद भी जो पापड़ बेलने पड़े, जो सेल्समैनशिप दिखानी पड़ी, उसे उसी का दिल जानता था। जन्म जन्मान्तर तक साथ देने का वादा उसे पता नहीं कितनी बार दोहराना पड़ा। यह बात उसे उसके दिमाग में हथौड़े की तरह ठोक कर भरनी पड़ी कि जो ‘बेपनाह मुहब्बत’ वह उससे करता था, वह पति नाम का कोई जीव कभी कर ही नहीं सकता था।
एक बार वर्जित फल खा लेने के बाद कोमल की भी शर्म झिझक खत्म हो गई। अब उसे श्रीकान्त अपने इतना करीब लगने लगा और इतना विश्‍वसनीय लगने लगा कि उसने बेहिचक उसे रंगीला की जेब में मौजूद जवाहरात की थैली की बात कह सुनाई।
कोमल से श्रीकान्त पहले ही सुन चुका था कि सोमवार रात को रंगीला घर नहीं आया था।
और सोमवार रात को ही कामिनी देवी नामक महिला का कत्ल हुआ था और उसके फ्लैट में चोरी हुई थी।
सारा सिलसिला उसे दो जमा दो चार जैसा आसान लगा।
अब वह सोचने लगा कि वह जवाब क्या कोमल भी निकाल चुकी थी?
दोनों बातों में जो रिश्‍ता है—उसने मन ही मन सोचा—अगर कोमल को न ही सूझे तो अच्छा था।
लेकिन इतनी आसान बात जब उसे सूझ सकती थी तो भला कोमल को क्यों न सूझती!
कोमल ने वही बात अपने मुंह से कही।
उसे बड़ी मायूसी हुई।
“जरूरी नहीं।”—वह सावधानी से बोला—“कि तुम्हारे पति की जेब में आसिफ अली रोड वाली चोरी का ही माल हो।”
“वह वही माल है।”—कोमल निश्‍चयात्मक स्वर में बोली—“मेरा दिल गवाही दे रहा है कि यह वही माल है। और इसी वजह से डर से मेरा दम खुश्‍क हुआ जा रहा है। मेरा पति हत्यारा है, यह सोचकर ही मुझे दहशत होती है।”
“तुम खामखाह डर रही हो। वह तुम्हारा पति है। वह तुम्हें थोड़े ही कोई नुकसान पहुंचा सकता है!”
“लेकिन उसका कोई भीषण अन्जाम तो हो सकता है! फिर मेरा क्या होगा?”
“तुम घबराओ नहीं। कुछ नहीं होगा।”
“लेकिन...”
“और फिर मैं जो हूं तुम्हारे साथ!”—श्रीकान्त उसके एक गाल पर एक चुम्बन अंकित करता हुआ बोला।
कोमल तनिक आश्‍वस्त हुई।
“लेकिन मैं करूं क्या?”—कुछ क्षण बात वह बोली।
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09-29-2020, 12:21 PM,
#50
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“कुछ भी नहीं। चुपचाप बैठो और मेला देखो। रंगीला तुम्हारा पति है। अगर वह अपराधी है भी तो तुम्हें यह थोड़े ही शोभा देता है कि तुम उसकी रिपोर्ट करने पुलिस के पास पहुंच जाओ। तुम कतई खामोश रहो, कोमल।”
“कितने ढेर सारे जवाहरात थे!”—वह बड़े अरमान से बोली—“एक सच्चे मोतियों की पूरी लड़ी तो ऐसी थी कि मेरा जी चाह रहा था कि मैं तभी उसे गले में पहन लूं। लाखों के जवाहरात होंगे वह।”
“तुम उनका खयाल कतई मन से निकाल दो।”—श्रीकान्त तीखे स्वर में बोला—“मैं नहीं चाहता कि रंगीला के साथ तुम भी किसी मुसीबत में फंस जाओ। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा, मेरी जान?”
वह प्रेम प्रदर्शन कोमल को बहुत अच्छा लगा। वह कसकर श्रीकान्त के साथ लिपट गई।
“मैं कुछ नहीं करूंगी।”—वह बोली।
“और किसी से जिक्र भी मत करना इस बात का।”
“नहीं करूंगी।”
“अब छोड़ो यह किस्सा। खामखाह वक्त बरबाद हो रहा है।”
दोनों फिर गुत्थमगुत्था होने लगे।
रंगीला और राजन प्लाजा के सामने मिले, जहां से हटकर वे कनाट प्लेस के सैन्ट्रल पार्क में जा बैठे।
“हफ्ता होने को आ रहा है।”—राजन बोला—“अभी तक तो किसी की तवज्जो हम लोगों की तरफ गई मालूम होती नहीं!”
“फिर भी अभी हमें और सावधान रहना होगा।”—रंगीला बोला—“पुलिस से भी और दारा के आदमियों से भी। खास तौर से उस जुम्मन के बच्चे से जिसने हमारी सूरतें देखी हुई हैं।”
“उससे सावधान रहना क्या मुश्‍किल है! वह तो अगर हमें ढूंढ़ रहा होगा तो जामा मस्जिद के इलाके में ही ढूंढ़ रहा होगा और वहां अब हम कदम तक नहीं रखते।”
“ठीक।”
“कौशल कहां होगा?”
“क्या पता! वैसे वह अच्छा ही कर रहा है जो हमारे पास नहीं फटक रहा।”
“तुमने गलत सोचा था कि वह पुलिस की हिरासत में था। आज शाम के अखबार में...”
“हां। मैंने पढ़ा है।”
“कल पिक्चर कैसे पहुंच गए?”
“यूं ही।”
“तुम्हारे साथ तुम्हारी बीवी थी न?”
“और कौन होगी?”
“रंगीला”—राजन हिचकिचाता हुआ बोला—“एक बात है। समझ में नहीं आ रहा है कि तुम्हें कहूं या न कहूं।”
“क्या बात है?”—रंगीला उत्सुक भाव से बोला।
“तुम मेरे दोस्त हो। इसलिए बात को तुमसे छुपाकर रखने को भी जी नहीं मान रहा।”
“पहेलियां बुझा रहो हो, यार। कल मेरे सिनेमा जाने का ताल्लुक रखती कोई बात है क्या?”
“है तो ऐसी ही बात।”
“कोई कोमल की बात तो नहीं?”
“कोमल की ही बात है।”
“तो बता भी चुको।”
“यार, तुम खफा तो नहीं हो जाओगे?”
“ओफ्फोह! तुम तो पहेलियां बुझा रहे हो।”
“तुम... तुम कल पिक्चर से जल्दी उठकर चले गए थे न?”
“हां। मेरा मन नहीं लगा था पिक्चर में। तुम अपनी बात कहो।”
“तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही इण्टरवल हो गया था तो तुम्हारी बीवी ने उठकर बाल्कनी में सब तरफ निगाह दौड़ाई थी और फिर मेरे पीछे कहीं किसी के लिए हाथ हिलाया था और वापिस अपनी सीट पर बैठ गई थी।”
“फिर?”—रंगीला बड़े बेसब्रेपन से बोला।
“फिर एक युवक पीछे से आया और बत्तियां गुल होने के जरा बाद तुम्हारी खाली की हुई सीट पर कोमल के बगल में बैठ गया। मुझे ऐसा भी लगा था जैसे वे दोनों युवक के वहां पहुंचते ही खसुर-पुसर करने लगे थे।”
“तुम्हारे खयाल से उसी युवक को इशारा करके कोमल ने अपने पास बुलाया था?”
“मुझे नहीं पता लेकिन उस इशारे के बाद पहुंचा उसके पास वही युवक था।”
“फिर भी तुम्हारा खयाल क्या है?”
“मेरे खयाल से”—राजन हिचकिचाया—“कोमल ने उसी युवक को हाथ हिलाकर बुलाया था। पिक्चर खत्म होने के बाद भी वे दोनों हाल से इकट्ठे ही विदा हुए थे।”
“देखने में कैसा था वो?”
“सूट-बूटधारी खूबसूरत युवक था। कद दरम्याना था, बाल झबराले थे, दुबला नहीं था लेकिन मोटा भी नहीं था, दाढ़ी-मूंछ साफ थीं...”
“हूं।”—रंगीला एकाएक बेहद गम्भीर हो गया—“तो वह खरगोश मार्का लौंडा इत्तफाकिया ही मुझे दो बार अपने आसपास नहीं दिखाई दिया था!”
“तुमने भी देखा था उसे?”
“हाल में नहीं देखा था लेकिन सिनेमा के रास्ते में और सिनेमा के बाहर दो बार देखा था। मैंने तो उसे कोई राहगीर समझा था लेकिन वह तो पट्ठा मेरी बीवी का यार मालूम होता है।”
वैसे यह उसके लिए संसार का आठवां आश्‍चर्य था कि उसकी गुड़िया जैसी बीवी यार पालने जैसा हौसला कर सकती थी, वह यारबाश किस्म की औरत हो सकती थी।
“तुम जानते हो उस लौंडे को?”
“जान जाऊंगा।”—रंगीला विषभरे स्वर में बोला—“आखिर साला रहता तो हमारे ही इलाके में कहीं होगा!”
“मैं तो तुम्हें बात बताते डर रहा था लेकिन इतनी बड़ी बात सुनकर तुमने कोई खास ताव नहीं खाया, उस्ताद।”
“हमारे दूसरे बखेड़ों की वजह से आजकल ताव खाने का माहौल नहीं है। कोई और दिन होता तो मैंने अभी तक घर जाकर अपनी बीवी की चमड़ी उधेड़ दी होती। लेकिन इस वक्त बीवी की बेवफाई से ज्यादा विकट समस्याओं से दो-चार होना वक्त की जरूरत बना हुआ है।”
“यानी कि इस मामले में खामोश रहोगे?”
“खामोश तो रहूंगा लेकिन हाथ-पर-हाथ धरकर बैठा नहीं रहूंगा। बात की तह तक तो मैं जरूर पहुंचूंगा। उस लौंडे का भी पता मैं जरूर लगाऊंगा। इस काम के लिए मैं अपनी बीवी की निगरानी करूंगा और उसे उस लौंडे के साथ रंगे-हाथों पकड़ने की कोशिश करूंगा।”
“उसके बाद क्या करोगे?”
“यह अभी कहना मुहाल है।”—रंगीला दांत किटकिटाता हुआ बोला—“यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा मैं क्या करूंगा लेकिन अगर उनकी आशनाई हर हद लांघ चुकी है तो फिर जो कुछ मैं करूंगा, बहुत बुरा करूंगा।”
“रंगीला के वर्तमान मूड को देखते हुए राजन ने खामोश रहना ही मुनासिब समझा।
शनिवार : सुबह
श्रीकान्त चान्दनी चौक की एक केमिस्ट शॉप पर सेल्समैन की नौकरी करता था। अगले रोज शॉप पर पहुंचने के कोई आधे घण्टे बाद ही वह वहां से निकला और मोती सिनेमा के कम्पाउण्ड में पहुंचा। वहां लगे पब्लिक टेलीफोन से उसने 100 नंबर पर टेलीफोन किया।
“पुलिस कन्ट्रोल रूम।”—दूसरी ओर से तुरन्त उतर मिला।
श्रीकान्त ने जल्दी से कॉयन बॉक्स में सिक्का डाला और बोला—“क्या आप बता सकते हैं कि सोमवार रात को आसिफ अली रोड पर जो चोरी और कत्ल की घटना हुई थी, उसकी तफ्तीश का इन्चार्ज कौन है?”
“आप कौन बोल रहे हैं?”
“यह मैं इन्चार्ज को ही बताऊंगा।”
“आप क्या कहना चाहते हैं इन्चार्ज से?”
“कोई ऐसी बात जो कत्ल की तफ्तीश में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।”
“कौन-सी बात?”
“बार-बार एक ही सवाल करने का कोई फायदा नहीं। मैंने जो बताना है, सही आदमी को बताना है।”
“होल्ड कीजिए।”
“ठीक है।”
श्रीकान्त रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा।
“हल्लो।”—थोड़ी देर बाद उसके कान में फिर आवाज पड़ी।
“हां।”—वह बोला।
“आप दरियागंज पुलिस स्टेशन जाकर इंस्पेक्टर चतुर्वेदी से बात कर सकते हैं।”
“कामिनी देवी के कत्ल और उसके फ्लैट पर हुई चोरी की तफ्तीश वे कर रहे हैं?”
“हां।”
“शुक्रिया।”
श्रीकान्त ने लाइन काट दी।
उसने दरियागंज पुलिस स्टेशन जाने का कोई उपक्रम न किया।
उसने डायरेक्ट्री इन्कवायरी का नम्बर डायल करके दरियागंज पुलिस स्टेशन का नम्बर मालूम किया। फिर उस नम्बर पर फोन करके उसने इंस्पेक्टर चतुर्वेदी से बात करने की इच्छा व्यक्त की।
“आप कौन बोल रहे हैं?”—वहां से भी पूछा गया।
“मैं वह शख्स बोल रहा हूं”—श्रीकान्त बड़े धीरज के साथ बोला—“जो कामिनी देवी के कत्ल के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी रखता है।”
“कैसी जानकारी?”
“यह मैं इंस्पेक्टर चतुर्वेदी को ही बताऊंगा और अगर मुझे लटकाने की कोशिश करोगे तो मैं लाइन काट दूंगा।”
“होल्ड करो।”
एक मिनट बाद इंस्पेक्टर चतुर्वेदी लाइन पर आया।
“मैं इंस्पेक्टर चतुर्वेदी बोल रहा हूं।”—श्रीकान्त के कान में एक अधिकारपूर्ण आवाज पड़ी।
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