SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:23 PM,
#61
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
ब्लेड वाला फौरन वहां से हटा और सड़क छोड़कर डिप्टीगंज की गलियों में कहीं गायब हो गया।
उसको दाएं-बाएं से थामे दोनों आदमियों ने भी उसे छोड़ दिया और वे भीड़ में मिल गए।
कौशल का बुरा हाल था। आंखों में खून भर आने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वह अपना माथा थामे हौले-हौले कराह रहा था। उसका जी चाह रहा था कि वह वहीं बैठ जाए या लेट जाए।
कौशल के चेहरे पर खून देखकर वहां भी भीड़ इकट्ठी होने लगी थी लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि क्या हुआ था।
रईस अहमद कार से बाहर निकल आया था और लोगों को सुनाने के लिए कह रहा था—“क्या जमाना आ गया है! दिन-दहाड़े लोगों पर हमले हो रहे हैं! ऐसी सरकार किस काम की जो अपने शहरियों के जान माल की हिफाजत तक नहीं कर सकती।”
तभी रईस अहमद ने उन दोनों पुलिसियों को वहां पहुंचते देखा जो पीछे नकली लड़ाई में फंसे हुए थे और जो आखिरकार किसी तरह वहां से निकल आने में कामयाब हो गए थे। उन पर निगाह पड़ते ही वह पूर्ववत् उच्च स्वर में बोला—“भाइयो, यह बेचारा बहुत बुरी तरह से जख्मी है। वक्त रहते इसे डाक्टरी इमदाद न मिली तो यह मर जाएगा। इसे मेरी कार में बिठा दीजिए। पास ही हिन्दूराव हस्पताल है, मैं इसे वहां पहुंचा देता हूं।”
कौशल को वे शब्द अपने कानों में अमृत की तरह टपकते लगे। शुक्र था भगवान का कि शरीफ और हमदर्द लोग दुनिया से कतई खतम नहीं हो गए थे।
कुछ लोगों ने उसे सम्भाला और फिएट की पिछली सीट पर लाद दिया। अपनी उस हालत में कौशल को नहीं मालूम था कि वह उसी कार में बिठाया जा रहा था जिसमें बैठने से इनकार करने की वजह से उस पर आक्रमण हुआ था।
रईस अहमद कार में सवार हुआ।
पुलिसियों के कार के समीप पहुंच पाने से पहले ही उसने कार को वहां से भगा दिया।
पुलिसियों में से एक ने भीड़ लगाए खड़े लोगों से पूछा कि क्या मामला था।
“किसी ने एक आदमी को लूटने की कोशिश की थी। बेचारे पर चाकू या छुरे से हमला किया गया था। बदमाश हमला करते ही भाग गए थे। कोई भला आदमी घायल को अपनी कार पर हिन्दूराव हस्पताल ले गया है।”
पुलिसियों ने दूर होती फिएट की तरफ देखा।
चौराहे से कार तेलीवाड़े की तरफ बायें मुड़ने की जगह जब दायें मुड़ गई तो पुलिसियों का माथा ठनका।
जिस रास्ते पर कार घूमी थी, वह तो हिन्दूराव हस्पताल नहीं जाता था। वह रास्ता तो पहाड़गज जाता था।
क्या कार वाला उसे किसी और हस्पताल ले जा रहा था?
लेकिन नजदीकी हस्पताल तो हिन्दूराव ही था। नजदीक के हस्पताल को छोड़कर वह उसे दूर कहीं क्यों ले जा रहा था?
जरूर कुछ घोटाला था।
“जिस आदमी पर हमला किया गया था।”—उसने फिर सवाल किया—“वह देखने में कैसा था?”
कई लोगों ने उसका कद काठ और हुलिया बयान किया।
वह सरासर कौशल का हुलिया था।
“कुछ घोटाला है”—वह व्यग्र भाव से अपने साथी से बोला—“मुझे लगता है कौशल का अगवा किया गया है। पीछे जो झगड़ा हुआ था, वह भी मालूम होता है कि हमें वहां फंसाए रखने के लिए स्टेज किया गया था।”
“अब क्या किया जाए?”—दूसरा पुलिसिया घबराकर बोला।
“तुम फौरन सदर थाने पहुंचो और वहां जाकर सारा वाकया सुनाओ। उस सलेटी रंग की फिएट का नम्बर डी एस डी 4153 था, याद रखना।”
“और तुम?”
“मैं जरा यहां हमलावर के बारे में पूछताछ करता हूं और फिर वहीं आता हूं।”
सदर थाना पास ही था। उस पुलिसिये ने एक राह चलते आटो को रोका और उस पर सवार होकर थाने की तरफ बढ़ चला।
पीछे रह गया पुलिसिया भीड़ से पूछताछ करने लगा। लेकिन ज्यों ही उसने बताया कि वह पुलिसिया था, लोग वहां से खिसकने लगे। पहले जो लोग अपने अपने तरीके से वाकया बयान करने के लिए मरे जा रहे थे, तब यूं खामोश हो गये जैसे उन्हें जुबान खोलते डर लग रहा हो।
किसी ने हमलावर को नहीं देखा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि हमला करके वह किधर भागा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि वह अकेला था या उसके साथ और भी लोग थे।
कोई कार वाले का हुलिया बयान न कर सका।
हर किसी को एकाएक कोई बहुत जरूरी काम याद आ गया था।
हर किसी ने फौरन कहीं पहुंचना था।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#62
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रईस अहमद ने मोड़ काटते ही अपने उन तीनों साथियों को कार में बिठा लिया जिन्होंने कि नकली लड़ाई शुरू करके पुलिसियों को उलझाया था। उनमें से दो पीछे कौशल के साथ बैठ गए और एक आगे रईस अहमद के साथ जा बैठा।
पीछे बैठे दोनों व्यक्तियों ने अपनी अपनी जेब से अपने रूमाल निकाले, एक ने दोनों रूमालों को बांधा और उसकी पट्टी सी कौशल के माथे पर बांध दी। पट्टी इस प्रकार बांधी गई कि कौशल की आंखें भी ढक गईं। अब वह बड़ी हद कार के फर्श को देख सकता था।
उसने पट्टी जरा ऊपर सरकाने की कोशिश की तो उसे रोक दिया गया।
“मुझे दिखाई नहीं दे रहा।”—वह बोला।
“कोई बात नहीं।”—उत्तर मिला—“अभी डांस शुरू होने में देर है।”
कौशल को वह जवाब बड़ा अजीब लगा।
“तुम लोग मुझे कहां ले जा रहे हो?”—उसने पूछा।
“अभी मालूम हुआ जाता है, पहलवान।”
कौशल खामोश हो गया।
उसका दिल गवाही दे रहा था कि वह किसी भारी झमेले में फंस गया था।
थोड़ी देर बाद कार कहीं रुकी।
एक शटर उठाए जाने की खड़-खड़ की आवाज हुई।
कार फिर आगे बढ़ी।
शटर वापिस नीचे गिराए जाने की आवाज हुई।
उसे कार से बाहर निकाला गया।
एक दरवाजा खुला।
उसे दोनों तरफ से पकड़कर आगे चलाया गया।
पट्टी के नीचे से वह अपने पैर और पैरों के आसपास की जमीन देख सकता था।
सबने दरवाजा पार किया।
दरवाजा पीछे बन्द कर दिया गया।
कौशल के नथुनों से केलों और सेबों की गन्ध टकराई।
जरूर वह किसी फलों के गोदाम में था।
कार ज्यादा देर तक नहीं चली थी, इससे लगता था कि वह गोदाम पहाड़गंज में ही कहीं था।
भीतर दो तीन बत्तियां जलीं।
उसने फिर आंखों से पट्टी हटाने की कोशिश की लेकिन उसे फिर वैसा करने से रोका गया।
“पहलवान!”—रईस अहमद बोला—“हम तुमसे चन्द सवालात पूछना चाहते हैं। उनका सही सही जवाब दे दो और फिर तुम्हारी छुट्टी। फिर जाकर अपने जख्म में टांके-वांके भरवा लेना। जल्दी ठीक हो जाओगे।”
कौशल खामोश रहा।
“अब जरा आसिफ अली रोड वाली चोरी के अपने साथियों के बारे में बताओ।”
“मेरा किसी चोरी से क्या मतलब?”
“मतलब है, पहलवान, तभी तो चोरी का माल तुम्हारे पास था!”
“ओह! तो वे तुम लोग थे जिन्होंने मेरी गली में मुझ पर हमला किया था!”
“सवाल करके वक्त जाया मत करो, पहलवान। जवाब देने की तरफ तवज्जो दो। अपने साथियों के बारे में बताओ। तुम तीन थे न?”
कौशल ने उत्तर न दिया।
“एक तो रंगीला था। दूसरा कौन था, पहलवान?”
“मुझे नहीं पता”—कौशल नफरतभरे स्वर में बोला—“कि तुम क्या बक रहे हो!”
एक जोरदार घूंसा उसकी कनपटी से आकर टकराया। प्रहार इतना प्रचंड था कि कौशल को अपनी खोपड़ी में अपना दिमाग हिलता महसूस हुआ। उसके घुटने मुड़ने लगे लेकिन उसे गिरने न दिया गया। दो जनों ने उसकी बगलों में हाथ डालकर उसे धराशायी होने से रोका। जब उसके पैरों ने उसका वजन सम्भाल लिया तो उसे छोड़ दिया गया।
आवाजों से कौशल महसूस कर रहा था कि वे कई थे। उसकी आंखों पर पट्टी न बंधी होती तो अपनी उस हालत में भी वह दो चार से तो निपट ही लेता।
“अपने तीसरे साथी का नाम बोलो।”—रईस अहमद कहरभरे स्वर में बोला—“बोलो, कौन था वो?”
“दारासिंह।”—कौशल बोला।
आंखों पर पट्टी बंधी होने की वजह से उसे यह भी नहीं मालूम हो सकता था कि उस पर अगला प्रहार किधर से होने वाला था। आवाजों से ऐसा लग रहा था कि उसके चारों तरफ आदमी थे।
उस बार प्रहार पीछे से हुआ।
किसी के भारी जूते की ठोकर उसकी पीठ से टकराई। लम्बा तड़ंगा शरीर बांस की तरह लचका। एड़ी से लेकर चोटी तक उसके शरीर में पीड़ा की लहर दौड़ गई। उसके घुटने मुड़ गये।
उसे फिर बड़ी बेरहमी से उठाकर सीधा खड़ा कर दिया गया।
“जवाब दो!”
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09-29-2020, 12:23 PM,
#63
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कौशल ने फिर अपनी आंखों से पट्टी नोच फेंकने की कोशिश की लेकिन उसके हाथ वापिस नीचे झटक दिए गए। कौशल ने अन्धाधुंध अपना एक हाथ अपने सामने चलाया। उसका हाथ घूंसे की शक्ल में किसी के चेहरे से टकराया। कोई जोर से कराहा।
“मारो साले को।”—फिर कोई चिल्लाया।
तुरन्त चारों तरफ से उस लात घूंसों की बरसात होने लगी।
मार से पहले उसने घुटने मुड़े, फिर सिर और कंधे झुके और फिर वह मुंह के बल फर्श पर लोट गया। तब भी लोगों के जूतों की ठोकरें उसकी खोपड़ी और पसलियों से टकराती रहीं।
उसे फिर उठा कर पैरों पर खड़ा किया गया।
वह बांस की तरह झूलता-लहराता अपने आपको धराशायी होने से रोकने की कोशिश करता रहा।
“हरामजादे!”—रईस अहमद चिल्लाया—“यहां पायल नहीं है जिसका आसानी से तू गला घोंट लेगा।”
कौशल कुछ न बोला। उसे अपना सिर फटता महसूस हो रहा था और उसे यूं लग रहा था जैसे उसके सारे जिस्म में भाले भोंके जा रहे हों।
“अपनी जुबान से कबूल कर कि पायल का गला तूने घोंटा था। बोल! बोल, साले!”
“तेरी मां की...”
इस बार घूंसा उसके पेट में पड़ा। उसका शरीर दोहरा हो गया। उसकी आंखों में आंसू छलक आए। किसी ने उसे बालों से पकड़ कर बड़ी बेरहमी से सीधा कर दिया।
नहीं, मैं अपनी जुबान नहीं खोलूंगा—कौशल मन ही मन दोहरा रहा था—पायल को हीरे की अंगूठी दिखा कर मैं एक बार अपने साथियों के विश्‍वास की हत्या कर चुका हूं, अब मैं दोबारा ऐसा नहीं करूंगा। अपने साथियों के बारे में अपनी जुबान मैं नहीं खोलूंगा। नहीं खोलूंगा। नहीं खोलूंगा। रंगीला का इन्होंने कहीं से नाम सुन लिया है लेकिन इन्हें पक्का पता नहीं है कि रंगीला मेरे साथियों में से एक है। मैं रंगीला के बारे में चुप रहूंगा।
वे लोग पायल के कत्ल के बारे में, उसके साथियों के बारे में, खास तौर से रंगीला के बारे में, उससे सवाल पूछते रहे। सवालों के साथ साथ उस पर लात घूंसों की बरसात भी होती रही लेकिन कौशल ने अपनी जुबान न खोली।
इस बार मार के आगे हथियार डालकर जब वह धराशायी हुआ तो लोगों के उठाए से भी न उठ सका। उसे उठता न पाकर वे यूं उसकी खोपड़ी पर ठोकरें मारने लगे जैसे ऐसा करने से उसका निष्क्रिय मस्तिष्क सक्रिय हो जाएगा, वह शरीर को उठ खड़ा होने का निर्देश देगा और वह फिर अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा।
लेकिन ऐसा कुछ न हुआ। इस बार तो उसकी खोपड़ी पर पड़ती हर चोट उसे बेहोशी के गहरे, और गहरे गर्त में धकेलती चली गई।
“रुक जाओ।”—एकाएक रईस अहमद ने आदेश दिया—“साला कहीं मर न जाए!”
उसकी खोपड़ी पर ठोकरें पड़नी बन्द हो गईं।
“एक नम्बर का बेवकूफ है हरामजादा।”—कोई असहाय भाव से बोला—“बताओ तो! अक्ल से काम लेने वाला कोई आदमी इतनी मार खा सकता है?”
“इसके मुंह पर पानी के छींटे मारो। होश में लाओ इसे।”
उसके मुंह पर पानी के छींटे मारे जाने लगे। कोई उसका चेहरा थपथपाने लगा। कोई उसके जिस्म को हिलाने डुलाने लगा।
लेकिन कौशल होश में न आया।
उसका चेहरा बुरी तरह से सूज आया था। और मार खा-खाकर विकृत हो गया था। उसकी सांस यूं फंस फंस कर निकल रही थी जैसे वह खर्राटे भर रहा हो।
“इसे कोई दौरा-वौरा तो नहीं पड़ गया?”—उसे होश में न आता पाकर अन्त में कोई बोला।
“राधे”—रईस अहमद अपने समीप खड़े एक आदमी से बोला—“जरा देखना तो।”
सूरत से अपेक्षाकृत सयाना और पढ़ा लिखा लगने वाला राधे आगे बढ़ा। उसने घुटनों के बल झुक कर कौशल का मुआयना किया। उसने उसके माथे पर से पट्टी की सूरत में बंधे रूमालों को सरका कर उसकी आंखों में झांका।
“उस्ताद जी!”—वह तनिक आतंकित स्वर में बोला—“इसे तो ब्रेन हैमरेज हो गया है। इसकी दाई आंख देखो। कैसे खून से भरी हुई है और बाहर को उबली पड़ रही है। इसका चेहरा ही बता रहा है कि इसके सारे दाएं हिस्से को लकवा मार गया है। अब यह बोलने से तो गया। अब यह होश में आ भी जाएगा तो बोल नहीं पाएगा।”
“सालो! हरामजादो!”—गुस्से में रईस अहमद अपने आदमियों पर बरसा—“यूं अन्धाधुन्ध क्यों मारा इसे? अब यह हमारे किस काम का रहा?”
“एक ही हिस्से में तो लकवा है, उस्ताद जी।”—कोई नर्मी से बोला—“बोल नहीं सकेगा तो लिख तो सकेगा!”
“हफ्ता दस दिन से पहले यह लिख सकने वाला भी नहीं।”—राधे बोला।
“जो बोलने को तैयार नहीं।”—रईस अहमद चिल्लाया—“वह लिखने को तैयार जरूर ही होगा।”
कोई कुछ न बोला।
“और हफ्ता दस दिन हम इसे कहां छुपा कर रखेंगे? पुलिस क्या इसे तलाश नहीं कर रही होगी? जब यह पुलिस को मिलेगा नहीं तो वे समझ नहीं जाएंगे कि यह किन हाथों में पहुंचा हुआ होगा? हरामजादो! इसे कार में लादो और कहीं फेंक कर आओ।”
गोदाम का दरवाजा खोला गया।
कौशल को राधे समेत तीन आदमियों ने उठाया और उसे फिएट में लाद दिया। उन्हीं तीनों में से एक आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। राधे और उसका साथी पीछे कौशल के साथ सवार हो गए। एक और आदमी ने आगे बढ़ कर शटर उठाया।
कार बाहर निकल आई।
वह कार चोरी की थी इसलिए कौशल को कार समेत कहीं भी छोड़ा जा सकता था।
“कहां चलूं?”—ड्राईवर बोला।
“शंकर रोड चलो।”—राधे बोला।
कार आगे बढ़ चली।
“गुरु।”—राधे का साथी बोला—“अब तो पहलवान हमसे जुदा हो रहा है।”
“तो?”—राधे बोला।
“इसकी अंटी में कोई नावां पत्ता भी तो होगा?”
“होगा तो?”
“यह क्या करेगा उसका? कहो तो जेबें टटोलूं?”
“क्या हर्ज है?”
उस आदमी ने बड़े ललचाए भाव से कौशल की जेबें टटोलीं।
अगले ही क्षण कौशल की जेब में मौजूद सौ सौ के नोटों की गड्डी उसके हाथ में थी।
“कितने हैं?”—राधे उत्सुक भाव में बोला।
उसके साथी ने जल्दी जल्दी नोट गिने और फिर धीरे से बोला—“छत्तीस।”
“आधे मुझे दो।”
“गुरु।”—ड्राइवर रियरव्यू मिरर में उन्हें देखता चेतावनीभरे स्वर में बोला—“अपुन को भूल रहे हो।”
“दो तिहाई मुझे दो।”—राधे बोला।
उसके साथी ने चुपचाप चौबीस नोट उसे थमा दिए।
राधे ने बारह नोट अपनी जेब में रख लिए और बारह आगे ड्राइवर की तरफ बढ़ा दिए।
कार अब मन्दिर मार्ग पर दौड़ रही थी।
“गुरु”—एकाएक राधे का साथी बोला—“अब यह खर्राटे नहीं भर रहा। न ही यह नाक से सीटी बजा रहा है।”
राधे के नेत्र सिकुड़ गए। उसने झुककर कौशल की नब्ज टटोली।
नब्ज गायब थी।
उसने उसके दिल की धड़कन टटोली।
दिल की धड़कन गायब थी।
“यह तो मर गया”—राधे के मुंह से निकला।
“मर गया?”—उसका साथी घबरा कर बोला—“हम लाश के साथ कार में पकड़े गए तो चौदह-चौदह साल के लिए नप जाएंगे।”
ड्राइवर ने कार एक तरफ करके रोक दी।
“क्या कर रहे हो?”—राधे बोला।
“ठीक कर रहा हूं, गुरु।”—ड्राइवर बोला—“इसे कार में छोड़ कर फूटने की तैयारी करो।”
ड्राइवर जल्दी-जल्दी स्टियरिंग पर और उन तमाम जगहों पर, जिन्हें कि उसने छुआ था, रूमाल फेरने लगा।
राधे और उसके साथी ने भी उसका अनुसरण किया।
फिर तीनों कार से बाहर निकले और चुपचाप सड़क के साथ-साथ बने बहुमंजिला सरकारी क्वार्टरों के बीच की एक राहदारी में घुस गए।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#64
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
कार से निकलकर क्वार्टरों की तरफ जाते उन तीन आदमियों की तरफ किसी ने ध्यान न दिया। लोगबाग यूं कार पर क्वार्टरों में रहते रिश्‍तेदारों से मिलने-जुलने आते ही रहते थे।
फियेट कार मन्दिर मार्ग पुलिस स्टेशन से मुश्‍किल से एक फर्लांग दूर खड़ी थी, सारे शहर में उस नम्बर की फियेट की तलाश हो रही थी लेकिन फिर भी रात को सड़कों पर पुलिस की गश्‍त शुरू हो जाने के बाद कहीं जाकर किसी की तवज्जो उसकी तरफ गई। कार के समीप से गुजरते पुलिसियों में से एक ने इत्तफाकिया कार के भीतर झांका तो उसे भीतर पड़ी लाश दिखाई दी।
और आधे घण्टे में कौशल की लाश की बरामदी की खबर एसीपी भजनलाल और फिर उसके माध्यम से इन्स्पेक्टर चतुर्वेदी और इन्स्पेक्टर भूपसिंह तक पहुंची।
तुरन्त वे तीनों पुलिस अधिकारी मन्दिर मार्ग पुलिस स्टेशन पहुंचे।
उन्हें लाश दिखाई गई।
उन्होंने मार से विकृत हुए चेहरे पर निगाह डाली।
“वही है।”—भजनलाल बोला।
“बहुत बेरहमी से पीटा गया मालूम होता है इसे।”—इंस्पेक्टर भूपसिंह बोला।
“तुम्हारे खयाल से किसकी करतूत होगी यह?”
“दारा के आदमियों के अलावा और किसकी करतूत होगी?”—उत्तर चतुर्वेदी ने दिया—“उन्हीं हरामजादों ने दिन-दहाड़े बाराटूटी के इलाके से इसका अगवा किया था।”
“हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है”—भजनलाल बोला—“जिससे यह जाहिर हो सके कि यह काम दारा के आदमियों का था।”
“और किसका होगा, सर? उन लोगों के अलावा और किसी की इस आदमी में दिलचस्पी नहीं हो सकती। उन लोगों की निगाह में इस आदमी की वजह से उनका बॉस पुलिस के चंगुल में आया हुआ था। जरूर उन्होंने इससे पायल के कत्ल का अपराध जबरदस्ती कुबुलवाने की कोशिश की होगी।”
भजनलाल खामोश रहा। अब तक वे लोग कौशल का चेहरा ही देख रहे थे, भजनलाल ने आगे बढ़कर उसके ऊपर से चादर खींच दी तो कौशल का नग्न शरीर एड़ी से चोटी तक उन लोगों के सामने आ गया। उसके बाकी के सारे जिस्म पर भी ऐसे निशान थे जो साबित करते थे कि उसकी बुरी तरह से धुनाई की गई थी।
लेकिन घने वालों से भरी उसकी छाती पर बनी आठ लम्बी लम्बी खरोंचें नयी नहीं थीं।
तीनों अधिकारी लगभग ठीक हो चुके खरोंचनुमा जख्मों का मुआयना करने लगे।
“ये खरोंचे”—भजनलाल बोला—“कम-से-कम चार-पांच दिन पुरानी हैं।”
“यानी कि”—भूपसिंह यूं बोला जैसे उस बात को कुबूल करने को उसका जी न चाह रहा हो—“इसकी छाती पर ये खरोंचे मंगलवार रात को आयी हो सकती हैं।”
“और ये पायल नाम की उस लड़की की दस्तकारी हो सकती है जिसके कत्ल के इलजाम में दारा गिरफ्तार है।”
“यानी कि”—भूपसिंह भारी निराशापूर्ण स्वर में बोला—“दारा के खिलाफ केस की छुट्टी।”
“हमने बुधवार को इसके हाथों का, गर्दन का, गले का, चेहरे का मुआयना किया था लेकिन हमें इसकी छाती का मुआयना करने का भी खयाल आना चाहिए था।”
“अब हमें दारा को रिहा करना पड़ेगा।”
“अगर कौशल के कत्ल का रिश्‍ता दारा के गैंग से जोड़ सको, अगर यह साबित करके दिखा सको कि कौशल पर कातिलाना हमला दारा की शह पर हुआ था तो नहीं रिहा करना पड़ेगा। कत्ल करवाना भी उतना ही संगीन जुर्म है जितना कि कत्ल करना।”
“यह साबित करना आसान न होगा।”
“खासतौर से तब”—चतुर्वेदी बोला—“जब कि दारा अभी, इस वक्त भी हवालात में है।”
तभी कहीं टेलीफोन की घन्टी बजी।
कुछ क्षण बाद एक हवलदार दौड़ा हुआ वहां पहुंचा।
“सर”—वह भजनलाल से बोला—“हैडक्वार्टर से आपका टेलीफोन है। डिस्पैचर कह रहा है कोई बहुत जरूरी बात है।”
भजनलाल फौरन हवलदार के साथ हो लिया।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#65
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
शनिवार : रात
शनिवार शाम को राजन बड़ी मुश्‍किल से डेजी के साथ ईवनिंग शो में पिक्चर देखने जाने का जुगाड़ कर पाया। उसकी बहुत जिद पर डेजी ने घर पर बहाना बनाया था कि उसने अपनी किसी सहेली की बर्थ-डे पार्टी पर जाना था। अभी परसों ही वह राजन के साथ ईवनिंग शो में ही पिक्चर देखने जाकर न हटी होती तो बर्थ-डे पार्टी वाले बहाने की शायद जरूरत न पड़ती। इतनी जल्दी-जल्दी रात को लेट आने का सिलसिला दो बार बन जाने की वजह से वैसा बहाना उसके लिए जरूरी हो गया था। राजन रिट्ज सिनेमा की बॉक्स की दो टिकटें पहले से लाया हुआ था। वहां ‘प्रेम रोग’ लगी हुई थी। राजन ने सुना था कि वह बड़ी ‘इश्‍किया’ फिल्म थी, इसलिए वह उसे डेजी के साथ ही देखना चाहता था। बॉक्स में फिल्म देखने का वैसे भी अपना अलग से मजा था। हाथापाई का खूब मौका जो मिल जाता था।
फिल्म अच्छी थी। दोनों का उसमें बहुत दिल लगा।
इण्टरवल में जब हाल की रोशनियां जलीं तो राजन को हाल में दामोदर दिखाई दिया। उसके साथ जामा मस्जिद के इलाके के कोई आधी दर्जन लड़के और थे जिनमें मदन भी था।
राजन का दिल किसी अज्ञात आशंका से डरने लगा। अगर वे लोग उसे शो शुरू होने से पहले सिनेमा के आसपास कहीं दिखाई दे गए होते तो वह डेजी के साथ हरगिज वहां कदम न रखता। अब पता नहीं हाल में से बॉक्स में बैठे लोगों की सूरतें दिखाई देती थीं या नहीं। देख तो साला उधर ही रहा था लेकिन उसके थोबड़े पर ऐसे कोई भाव तो नहीं थे जिससे लगता हो कि बॉक्स में उसने कोई परिचित सूरत देखी थी। जरूर हाल में से बॉक्स में बैठे लोगों की सूरतें पहचानी नहीं जा सकती होंगी।
तभी हाल की बत्तियां बुझ गयीं।
बाकी की फिल्म राजन ने पहले जैसे आनन्द के साथ न देखी। न ही अन्धेरे का फायदा उठाकर उसका हाथ डेजी के जिस्म पर कहीं रेंगा। डेजी ने उसकी उदासीनता की वजह भी पूछी लेकिन राजन ने किसी तरह उसे टाल दिया।
फिल्म अपने क्लाइमैक्स पर पहुंची तो एकाएक राजन डेजी के कान में बोला—“आओ, चलें।”
“अरे!”—वह हैरानी से बोली—“फिल्म खतम तो होने दो!”
“अब कुछ नहीं रखा फिल्म में। इसे खतम ही समझो। आओ, निकल ही चलते हैं।”
“खामखाह! दो मिनट और रुकने से क्या हो जाएगा? इतनी देर से नहीं बैठे हुए?”
“बाहर भीड़ हो जाएगी। सवारी नहीं मिलेगी।”
“मिल जाएगी।”
“लेकिन...”
“चुप करो।”
राजन कसमसाकर चुप हो गया।
डेजी को समझाना मुहाल था कि वह दामोदर और उसके साथियों के डर से वहां से उन लोगों से पहले निकल जाना चाहता था। दामोदर अभी परसों उससे मार खाकर और बेइज्जती करवाकर हटा था। उस वक्त वह अपने कई साथियों के साथ था। उस वक्त वह उसे वहां देखकर शेर हो सकता था और उससे अपनी बेइज्जती का बदला लेने की कोशिश कर सकता था।
फिल्म खत्म हुई।
“चलो।”—राजन उतावले स्वर में बोला।
“अभी ठहरो।”—डेजी स्क्रीन पर से निगाह हटाए बिना बोली।
“अब क्या है?”—वह झल्लाया—“फिल्म खत्म हो तो गई है!”
“जरा क्रेडिट्स पढ़ने दो।”
स्क्रीन पर फिल्म खतम हो जाने के बाद फिल्म की कास्ट और कैरेक्टर्स के नाम आ रहे थे।
“अरे, छोड़ो भी।”
“हद है तुम्हारी भी। पता नहीं एकाएक तुम्हें इतनी जल्दी क्यों पड़ गयी है?”
“अरे, दस बज गए हैं। फिर तुम्हीं कहोगी कि देर हो गई।”
दस बज गए सुनकर डेजी सकपकाई। उसने भी अपनी कलाई पर बंधी नन्ही-सी घड़ी पर निगाह डाली और फिर तत्काल उठकर खड़ी हो गई।
“जीसस!”—उसके मुंह से निकला—“दस बज गए।”
“और नहीं तो क्या?”—राजन उसके साथ बॉक्स से बाहर निकलता हुआ बोला—“इसीलिए तो कह रहा था, जल्दी चलो, जल्दी चलो।”
डेजी के साथ वह एक बगल के दरवाजे से बाहर निकला और पीछे पार्किंग की तरफ बढ़ा।
“इधर कहां जा रहे हो?”—डेजी बोली—“सड़क तो सामने है!”
राजन ने उत्तर न दिया। वह उसकी बांह थामे भीड़ में से रास्ता बनाता पिछवाड़े की तरफ बढ़ता रहा।
पीछे पार्किंग में से होकर सिनेमा की इमारत की एक तरह से परिक्रमा काट कर वे उसके दूसरे पहलू में पहुंचे। वहां से वह पिछवाड़े की सुनसान सड़क की तरफ बढ़ा।
“अब इधर कहां जा रहे हो?”—डेजी तनिक व्याकुल भाव से बोली।
“चुपचाप चली आओ।”—राजन बोला।
“बात क्या है?”
“कुछ नहीं। इधर से भी रास्ता है।”
“लेकिन इधर से बस कहां से मिलेगी?”
“रिक्शा मिल जाएगा।”
“लेकिन बताओ तो सही, बात क्या है?”
“बात तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। कहना मानो। चुपचाप चलती रहो।”
“कमाल है!”
वह खिंचती सी उसके साथ चलती रही।
पिछवाड़े की सड़क उस वक्त बिल्कुल सुनसान पड़ी थी। राजन उस रास्ते से वाकिफ था। उधर से कश्‍मीरी गेट के बस स्टैंड पर या और आगे जीपीओ के बस स्टैंड पर या पीछे रिंग रोड पर जाया जा सकता था जहां कि थोड़ा ही आगे जमना बाजार के नुक्कड़ पर रिक्शा वालों का अड्डा था।
राजन का इरादा पिछवाड़े से चुपचाप जमना बाजार के नुक्कड़ तक पहुंचने का था।
दामोदर ने अगर उन्हें देख भी लिया था तो वह सिनेमा के सामने या बड़ी हद कश्‍मीरी गेट के स्टैंड तक ही उन्हें तलाश करने वाला था। राजन को पूरा भरोसा था कि उसे जमना बाजार का खयाल नहीं आने वाला था।
रह रह कर राजन की आंखों के सामने उसके साथियों के चेहरे उभर रहे थे। दामोदर और मदन को मिला कर वे कम से कम आठ जने थे—या शायद नौ थे। इतने लोगों से आमना-सामना होने के खयाल से ही उसका दम निकल रहा था।
ऊपर से उसे डेजी की फिक्र थी।
कहीं वे लोग उसके साथ भी कोई बद्तमीजी करने की कोशिश न करें।
डेजी की बांह पकड़े वह तेज कदमों से सुनसान रास्ते पर आगे बढ़ता रहा।
“राजन!”—डेजी ने कहना चाहा।
“चुप करो।”—राजन घुड़क कर बोला।
“मैं इतनी तेज नहीं चल सकती।”—वह रुआंसे स्वर में बोली—“मैं गिर जाऊंगी।”
राजन ने अपनी रफ्तार तनिक घटा दी और आश्‍वासनपूर्ण स्वर में बोला—“बस, थोड़ा ही फासला और चलना है, फिर रिक्शा मिल जाएगा।”
“लेकिन बात क्या है? कुछ पता तो चले!”
“बताऊंगा। बात रिक्शा में बैठ कर बताऊंगा।”
वे इन्जीनियरिंग कालेज के बन्द दरवाजे के सामने पहुंचे। वहां वे बाएं मुड़ने ही लगे थे कि राजन को दाईं ओर स्थित चर्च की तरफ से आती सड़क पर आहट सुनाई दी। उसने घूम कर उधर देखा तो दामोदर का सारा गैंग उसे उस सड़क पर दिखाई दिया।
और उन्होंने उन्हें देख भी लिया था।
शायद वे समझ गए थे कि वे दोनों सिनेमा हाल से निकल कर सामने सड़क पर आने के स्थान पर पिछवाड़े के रास्ते से खिसक गए थे।
“डेजी!”—राजन दांत भींच कर बोला—“भागो!”
“क्यों?”—डेजी आतंकित भाव से बोली।
“उधर चर्च वाली गली में जो लड़के दिखाई दे रहे हैं, वे मेरे पीछे पड़े हुए हैं। इन्हीं की वजह से मैं इधर से आया था। अगर हम भाग कर मेन रोड तक पहुंच जाए तो ये हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे।”
“ये मुझे... मुझे कुछ कहेंगे?”
“कह सकते हैं। मुझे अपनी नहीं, तुम्हारी ही फिक्र है। भागो, डेजी।”
राजन उसकी बांह पकड़ कर सड़क पर दौड़ने लगा।
डेजी उसके साथ लगभग घिसटती चली गई।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#66
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“मैं गिर पड़ूगी।”—वह लगभग रोती हुई बोली—“मैं सैंडलों में नहीं भाग सकती।”
“कोशिश करो। बस पास ही जाना है। अगर हम उन लोगों के हाथ में पड़ गए तो बहुत बुरा होगा।”
“मैं सैंडलें उतार लूं?”
“खबरदार! रुकना नहीं।”
लेकिन डेजी रुकने से बाज न आई।
वह रुकी तो राजन को मजबूरन रुकना पड़ा।
वह जोर जोर से हांफती हुई अपने एक पैर से सैंडल उतारने की कोशिश करने लगी।
राजन ने व्याकुल भाव से पीछे देखा।
यह देखकर उसके छक्के छूट गए कि उनमें से एक लम्बा-तगड़ा लड़का तो लगभग उनके सिर पर पहुंच ही चुका था।
राजन का जी चाहा कि वह डेजी को वहीं छोड़कर भाग खड़ा हो। वे लोग डेजी को क्या कहेंगे? उनकी अदावत तो उससे थी। लेकिन अगर वह उनके हाथ न आया तो उसका बदला वह डेजी से उतार सकते थे।
लम्बा लड़का उनके समीप आकर ठिठक गया। अपनी लंबी टांगों की वजह से वह अपने साथियों से पहले तो वहां पहुंच गया था, लेकिन अकेले कुछ करने की उसकी हिम्मत न पड़ी। वह ठिठका खड़ा अपने साथियों के वहां पहुंचने का इन्तजार करने लगा।
डेजी ने सैंडल उतारने की कोशिश छोड़ दी। वह सीधी हुई और राजन के कन्धे के साथ चिपक कर खड़ी हो गई। आतंकित नेत्रों से वह एक-एक, दो-दो करके वहां पहुंचते बाकी लड़कों को देखने लगी।
सब उनके सामने अर्द्धवृत बनाकर यूं खड़े हो गए, जैसे सोच रहे हों कि वे उन दोनों को फौरन ही जान से मार डालें या पहले उठा उठाकर पटकें।
सबसे पहले वहां पहुंचे लम्बे लड़के ने शायद यह सोचा कि क्योंकि उसने वहां पहुंचने में पहल की थी इसलिए अब उन लोगों की फजीहत की पहल भी उसे ही करनी चाहिए थी।
उसने आगे बढ़कर डेजी की बांह थाम ली और बड़े कुत्सित भाव से हंसते हुए उसे अपनी तरफ घसीटने की कोशिश की।
राजन का खून खौल गया। उसके दायें हाथ का एक प्रचंड घूंसा लम्बे लड़के के जबड़े पर पड़ा। डेजी की बांह पर से लम्बे लड़के की पकड़ छूट गई और वह भरभराकर अपने साथियों पर जाकर गिरा।
राजन दो कदम पीछे हटा। उसने डेजी को अपने पीछे कर लिया।
तभी अपने नथुनों से स्टीम इंजन की तरह सांस निकालता ड्रम की तरह लुढ़कता दामोदर वहां पहुंचा। वह अपने साथियों से आगे निकल आया और हांफता हुआ राजन से बोला—“अब क्या हाल है लमड़े यार?”
“अब भी अच्छा हाल है।”—राजन कठोर स्वर में बोला—“पहले भी अच्छा हाल था।”
“और आगे? आगे का क्या सोच रिया है?”
“आगे भी अच्छा ही हाल रहेगा।”
“और तेरी इस क्रिस्तान छोकरी का?”
“इसे यहां से जाने दे।”—राजन दांत पीस कर बोला—“फिर मैं तुझे भी देख लूंगा और तेरे हिमायतियों को भी।”
“हा... हा... हा।”—दामोदर गधे की तरह हिनहिनाया—“इसे जाने दे। इसे जाने दे कह रिया है अपना लमड़ा। अबे, हम तो तुझे मार कर भगा रिए हैं और इसे रख रिए हैं। क्यों बे, लम्बू? क्या कह रिया है?”
“खलीफा।”—लम्बा लड़का बोला—“लमड़िया थाम लो तो मैं अपनी बेइज्जती भूल जाऊंगा।”
“अगर”—राजन कहरभरे स्वर में बोला—“किसी ने इसको हाथ भी लगाने की कोशिश की तो मैं उसे जान से मार डालूंगा।”
“अबे, सुन रिए हो, पियारो।”—दामोदर ने फिर अट्हास किया—“अपना लमड़ा यार हमें जान से मार डालने की धमकी दे रिया है। यह अकेला हम सबको जान से मार डालेगा। हम तो आदमी न हुए, मुर्गी के चूजे हई गए।”
उसके साथी भी उसके साथ हंसे।
“मार के गेर दो स्साले को।”—दामोदर कहरभरे स्वर में बोला और फिर आगे बढ़ा।
उसके साथी भी आगे बढ़े।
तभी एकाएक राजन ने अपनी पतलून की जेब में मौजूद रिवॉल्वर निकाल ली और उसे अपनी तरफ बढ़ते लड़कों की तरफ तान दिया।
“खबरदार!”—वह फुंफकारा।
दामोदर ठिठका।
उसके साथी भी रुक गए।
“यह क्या है?”—दामोदर संदिग्ध भाव से बोला।
“तुझे क्या दिखाई देता, हरामजादे?”
“नकली तमंचा होगा।”—दामोदर बोला—“फिल्मों में काम आने वाला। मुम्बई से निशानी के तौर पर लाया होगा अपना अमिताभ बच्चन।”
“मोटे, भैंसे! अगर एक कदम भी और आगे बढ़ाया तो भेजा उड़ा दूंगा।”
अब राजन भयभीत नहीं था। रिवॉल्वर हाथ में आते ही जैसे उसमें नई शक्ति का संचार हो गया था। उसने रिवॉल्वर कभी चलाई नहीं थी लेकिन इतना वह खूब जानता था कि नाल का रुख दुश्‍मन की तरफ करके बस सिर्फ घोड़ा खींचना होता था, बाकी काम अपने आप हो जाता था। और दामोदर तो इतना मोटा था कि निशाना ठीक न भी बैठता तो भी उसे कहीं तो गोली लगती! उसे न लगती तो उसके आसपास खड़े उसके चमचों में से किसी को लगती। एक को गोली लगते ही, उसे मालूम था कि, बाकी सबने भीगी बिल्ली की तरह से वहां से भाग खड़ा होना था।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#67
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
दामोदर बहुत दुविधा में था। राजन के हाथ में रिवॉल्वर देख कर उसका दिल उसके जूतों में उतरा जा रहा था। उसका दिल यही कह रहा था कि रिवॉल्वर नकली थी। आखिर असली रिवॉल्वर उस लुहार के लौंडे के पास कहां से आती? लेकिन अगर वह रिवॉल्वर असली हुई तो? उसके साथी तो सिनेमा के बाद सीधे घर जाना चाहते थे। उसी के उकसाने पर वे राजन के पीछे पड़े थे। अब अगर रिवॉल्वर से डरकर वही पीछे हट गया तो उसकी क्या इज्जत रह जाएगी? वह अभी परसों ही राजन के हाथों बेइज्जती कराकर हटा था। अब अपने इतने साथियों की मौजूदगी में भी उसका बढ़ा हुआ कदम पीछे हट गया तो उसकी हमेशा-हमेशा के लिए नाक कट जानी थी। किस सांसत में फंसा ली थी उसने अपनी जान? अब वह उस घड़ी को कोस रहा था जब उसने राजन के पीछे पड़ने का इरादा किया था और बजरंगबली से मन-ही-मन प्रार्थना कर रहा था कि कोई ऐसी सूरत निकल आए कि वह पीछे भी हट जाए और उसकी नाक भी कटने से बच जाए। और नहीं तो उस वक्त उधर कोई भूला भटका पुलिसिया ही निकल पड़े ताकि उन्हें वहां से भाग खड़े होने का एक न्यायोचित बहाना मिल जाए और उसकी इज्जत का जनाजा निकलने से रह जाए। पुलिसिया नहीं तो कोई राहगीर ही उधर आ निकले।
उसने अपने चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
रास्ते सुनसान पड़े थे। कहीं कोई नहीं था।
जिस इमारत की चारदीवरी के साथ पीठ लगाए राजन और डेजी खड़े थे, उसकी पहली मंजिल की एक खिड़की अभी एक क्षण पहले खुली थी और उस पर एक आदमी प्रकट हुआ था जो खिड़की से बाहर झांकता हुआ शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि बाहर शोर-शार कैसा था! काश वही आदमी कोई शोर शार मचा दे।
लेकिन कुछ न हुआ।
वातावरण की स्तब्धता में कोई व्यवधान न आया।
“खलीफा!”—उसके कानों में एकाएक मदन की आवाज पड़ी—“ऐसा तमंचा कुतुब रोड पर साढ़े पांच रुपये में बिकता है।”
“मार के गेर दो स्साले को।”—लम्बा लड़का दांत पीसता हुआ बोला।
दामोदर को लगा जैसे उसके साथी उसे ललकार रहे हों।
बड़ी हिम्मत करके उसने एक कदम आगे बढ़ाया।
“खबरदार!”—राजन आतंकित भाव से बोला—“वहीं रुक जाओ वर्ना शूट कर दूंगा।”
दामोदर न रुका। अब उसे लगभग विश्‍वास आ गया था कि तमंचा वाकई नकली था। उसने बड़ी हिम्मत के साथ एक कदम और आगे बढ़ाया।
डेजी के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली।
राजन ने इतनी जोर से दांत भींचे कि उसके जबड़े दुखने लगे। रिवॉल्वर का ट्रीगर जैसे उसकी उंगली ने नहीं, डेजी की आतंकभरी चीख ने खींचा।
दो बार धांय-धांय की आवाज हुई।
दामोदर का उसकी तरफ बढ़ता अगला कदम हवा में ही जमकर रह गया। फिर वह एक भयंकर धड़ाम की आवाज के साथ मुंह के बल सड़क पर गिरा।
उसके गिरने की देर थी कि उसके साथियों के पैरों में जैसे पर लग गए। उनके जिधर सींग समाए, वे भाग निकले। अब किसी को खलीफा के अंजाम की फिक्र नहीं थी। अब हर किसी को अपनी जान की फिक्र थी।
अगले ही क्षण गली खाली हो गई और उसमें मरघट का-सा सन्नाटा छा गया।
डेजी उससे अलग हट गई। उसने एक निगाह नीचे गिरे पड़े दामोदर पर डाली और फिर यूं फटी-फटी आंखों से राजन की तरफ देखा जैसे एकाएक उसके सिर पर सींग निकल आए हों।
“तुमने इसे मार डाला!”—वह आतंकित भाव से बोली—“तुमने खून कर दिया!”
“मैंने जो किया है”—राजन बोला—“तुम्हारी इज्जत बचाने के लिए किया है।”
“तुम हत्यारे हो। तुम...”
“बकवास बन्द!”
वह फौरन चुप हो गई।
राजन को अपने पीछे इमारत की कोई खिड़की जोर से बन्द होने की आवाज आई।
“चलो!”—वह डेजी की बांह पकड़कर उसे जबरन घसीटता हुआ बोला।
डेजी उसके साथ खिंचती चली गई।
गोली की आवाज किसी ने गली में सुनी हो सकती थी और कोई अब पुलिस को उस घटना की सूचना दे भी चुका हो सकता था। उनका फौरन वहां से निकल चलना निहायत जरूरी था।
अब क्योंकि उसे दामोदर के साथियों से खतरा नहीं था इसलिए पीछे रिंग रोड पर जाने का खयाल छोड़कर वह चर्च के पहलू से लगकर गुजरती गली में आगे बढ़ा।
उधर मेन रोड करीब थी।
डेजी के व्यवहार ने उसके दिल को बहुत चोट पहुंचाई थी। उस घड़ी उसके प्यार पर से उसका विश्‍वास उठ गया था। उसने उसकी इज्जत बचाने के लिए इतना बड़ा कदम उठाया था और वह उसको नफरत और तिरस्कारभरी निगाहों से देख रही थी, उसे हत्यारा करार दे रही थी।
गली के दहाने पर पहुंचकर वह सड़क पर कदम रखने ही वाला था कि एकाएक उसे दूर से एक पुलिस की जीप आती दिखाई दी। वह घबराकर पीछे हट गया। डेजी को भी उसने वापिस गली के नीमअन्धेरे में खींच लिया।
जीप आगे गुजर गई।
उन्होंने फिर रोशनी से जगमगाती सड़क पर कदम रखा। पीछे कश्‍मीरी गेट के मेन बस स्टैण्ड पर न कोई बस थी और न आसपास कोई और सवारी थी।
वह डेजी का हाथ थामे लम्बे डग भरता सड़क पर लाल किला की दिशा में चलने लगा। उसका जी तो चाह रहा था कि वह वहां से सरपट भाग निकले लेकिन वह बड़ी कठिनाई से अपने-आप पर जब्त कर रहा था। भागने से हर किसी का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हो सकता था।
वे अभी कोई एक फलांग ही आगे बढ़े थे कि पुलिस की जीप उन्हें लौटती दिखाई दी। सामने ही एक पेड़ था। दोनों उसके पीछे दुबक गए। जीप उनके सामने से गुजरी और फिर उस गली में दाखिल हो गई जिसमें से वे अभी निकले थे। जीप के उनके पास से गुजरते समय उसने देखा कि उसमें कई पुलिसिये मौजूद थे।
वे पेड़ की ओट से निकले और फिर आगे बढ़े। डेजी को राजन लगभग घसीट रहा था। कभी डेजी पर वह बलिहार जाता था, उसके बारे में सोच लेने भर से उसका दिल बाग-बाग हो जाता था लेकिन एक बार अपनी आंखों के सामने अपने विश्‍वास की हत्या होती देख चुकने के बाद अब डेजी उसे एक फालतू बोझ लग रही थी, गले पड़ा ढोल मालूम हो रही थी।
किसी ने ठीक ही कहा था कि इन्सान की जात संकट की घड़ी में, दुश्‍वारी के आलम में ही सामने आती थी।
डेजी को वह पीछे छोड़कर भी नहीं जा सकता था। अगर पुलिस उसे भी पकड़ लेती तो भी वह उससे राजन के बारे में सब कुछ कुबुलवा सकती थी। और फिर पुलिस उससे पहले उसके घर पहुंची हुई हो सकती थी।
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09-29-2020, 12:23 PM,
#68
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
तभी उसे खयाल आया कि रिवॉल्वर अभी उसके हाथ में थी।
उसके छक्के छूट गये।
वह उसकी मूर्खता की इन्तहा थी।
अगर किसी राहगीर की ही निगाह उसके हाथ में थमी रिवॉल्वर पर पड़ जाती तो क्या होता!
उसे आगे सड़क पर सीवर का एक मेनहोल खुला हुआ दिखाई दिया।
उसके समीप से गुजरते समय उसने रिवॉल्वर सीवर में फेंक दी।
टन्न की आवाज सुनकर डेजी ने सकपकाकर उसकी तरफ देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोली।
अब वह अपने कोट की भीतरी जेब में मौजूद शनील की थैली के बारे में सोच रहा था जिसमें कि उसके हिस्से के जवाहरात मौजूद थे।
रिवॉल्वर फेंकना आसान था लेकिन लाखों रुपये के माल से भरी वह थैली वह भला कैसे अपने से अलग कर सकता था? वैसे वह इस हकीकत से नावाकिफ नहीं था कि उसके पास जवाहरात की थैली की बरामदी भी उसे उतना ही फंसा सकती थी, जितना कि रिवॉल्वर की बरामदी।
अब वह भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचा रहे और किसी तरह सुरक्षित अपने घर पहुंच जाए।
हांफते, कांखते, कराहते वे भर्ती दफ्तर के चौक में पहुंचे। वहां तीन-चार रिक्शा मौजूद थे, लेकिन राजन की खुली रिक्शा में बैठने की हिम्मत न हुई। मेन रोड पर अपनी मौजूदगी से वह बुरी तरह खौफ खाये था।
प्रेजेन्टेशन कान्वेंट स्कूल की ऊंची दीवार के साये में चलते हुए वे आगे बढ़े। जहां दीवार खत्म हुई वहां से सीधा आगे जाने के स्थान पर वे उस अन्धेरी गली में घुस गए जो कि लाजपतराय मार्केट के पीछे से होती मोती सिनेमा के पहलू से गुजरती चांदनी चौक में जाकर निकलती थी। वहां से वह सड़क पार करता तो एस्प्लेनेड रोड पर पहुंच जाता और फिर वहां से चारहाट का फासला मुश्‍किल से दो फलांग था।
“यह तुम मुझे कहां ले जा रहे हो?”—उनके अन्धेरी गली में कदम रखते ही डेजी त्रस्त भाव से बोली।
“चुपचाप चलती रहो।”—राजन बोला—“इसी में हमारी खैरियत है।”
“तुम्हारी खैरियत होगी। मैंने क्या किया है?”
“डेजी, मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैंने जो कुछ किया है, क्या तुम्हारी खातिर नहीं किया?”
“मैं कुछ नहीं जानती। मुझे घर पहुंचाओ। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
“घर ही तो पहुंच रहे हैं!”
“यह कौन-सा रास्ता है?”
“शार्टकट है।”
“हम जीपीओ से रिक्शा पर बैठ सकते थे।”
“और पुलिस द्वारा पकड़े जा सकते थे।”
“पुलिस! पुलिस को क्या मालूम कि जो कुछ हुआ था वह हमने... तुमने किया था?”
“लगता है किसी ने गोली की आवाज सुनकर पुलिस को फोन कर दिया था। भगवान न करे पुलिस के वहां पहुंचने तक दामोदर अभी जिन्दा हो और वह पुलिस को मेरा नाम-पता बता चुका हो। भगवान न करे, दामोदर का कोई साथी पुलिस के हत्थे चढ़ गया हो।”
“जीसस!”—वह रोने लगी।
“हौसला रखो, डेजी, सब ठीक हो जायेगा।”
“यह तुमने मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया?”
“मैंने फंसाया है?”
“और नहीं तो क्या? वे लड़के तुम्हारे ही पीछे तो लगे हुए थे!”
“मुझे क्या ख्वाब आना था कि वे भी सिनेमा देखने पहुंचे हुए होंगे?”
“मैं पहले ही कह रही थी , मैं ईवनिंग शो में नहीं जाऊंगी।”
“तो फिर गई क्यों थी?”
“तुम्हारी जिद पर गई थी।”
“जब मेरा तुम्हें इतना खयाल है तो अब क्यों मुझसे बाहर जा रही हो?”
“मैं क्या करूं? मेरे घर वाले सुनेंगे तो क्या कहेंगे?”
“अरे, क्या सुनेंगे?”—वह झल्लाया।
“यही कि जब तुमने एक लड़के का खून किया था तो मैं तुम्हारे साथ थी।”
“कैसे सुनेंगे? किससे सुनेंगे?”
“मुझे कुछ नहीं पता लेकिन अगर...”
“तुम्हें यह तो पता है कि अगर तुम उन लड़कों के काबू में आ जातीं तो वे तुम्हारी क्या गत बनाते?”
“तुम्हारी वजह से ही तो वे मेरे पीछे पड़ते! अगर तुम मुझे साथ न लाते तो...”
“बेवकूफ, अगर मैं तुझे न लाया होता तो मैं खुद क्यों आया होता? अगर तू साथ न होती तो मैं गोली चलाता ही क्यों? वे लोग बड़ी हद मुझे पीट लेते, और मेरा क्या बिगाड़ लेते?”
“तो फिर तुमने गोली क्यों चलाई?”
“तेरी खातिर चलाई!”—राजन कलप कर बोला—“हजार बार कह चुका हूं, तेरी इज्जत बचाने की खातिर चलाई।”
“मुझे कुछ नहीं पता...”
“नहीं पता तो चुप कर। इतना तो कर सकती है या यह भी बहुत मुश्‍किल काम है तेरे लिए?”
“मुझे नहीं पता था कि तुम इतने खराब आदमी हो।”
“अब तो पता लग गया?”
“हां, लग गया।”
राजन खामोश रहा।
थोड़ी देर दोनों चुपचाप चलते रहे। रास्ते में राजन ने एक बार उसका हाथ थामने की कोशिश की तो उसने उसका हाथ परे झटक दिया।
वे एस्प्लेनेड रोड पर दाखिल हुए।
“देखो”—राजन नम्र स्वर में बोला—“जो हुआ, उसे भूल जाओ। और दो मिनट में तुम घर पहुंच जाओगी। तुम समझ लो कि कुछ हुआ ही नहीं है। मैं तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारे ऊपर किसी तरह की कोई आंच नहीं आएगी। मैं अपनी जान दे दूंगा लेकिन तुम्हारी तरफ कोई गलत उंगली नहीं उठने दूंगा।”
वह खामोश रही।
“डेजी, क्या तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्‍वास नहीं रहा?”
“मुझे तुम पर पूरा विश्‍वास है।”—वह धीरे से बोली।
“तो फिर कहना क्यों नहीं मानती हो?”
“मानती तो हूं!”
“मानती हो तो सबसे पहले रोना बन्द करो।”
“अच्छा।”
“आंसू पोंछो। हुलिया सुधारो।”
उसने आंसू पोंछे और अपने बालों को व्यवस्थित किया।
“मुझ पर भरोसा रखो। तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा।”
“अच्छा।”
राजन उसके उत्तर से आश्‍वस्त न हुआ।
खामोशी से वे दरीबे के आगे से गुजरे।
“अब मेरे साथ-साथ चलना तो बन्द करो।”—डेजी तनिक तीखे स्वर में बोली—“कोई देख लेगा।”
“अच्छा।”—राजन बोला।
“तुम आगे बढ़ जाओ।”
“ठीक है।”
राजन ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और उससे आगे निकल गया।
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09-29-2020, 12:24 PM,
#69
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
अब ऐसा नहीं लग रहा था जैसे वे दोनों एक साथ हों।
अपनी गली के दहाने से वह अभी कोई पचास गज दूर था कि वह एकाएक थमक कर खड़ा हो गया।
गली के दहाने पर एक पुलिसिया खड़ा था।
उससे थोड़ा परे गली के भीतर एक चबूतरे पर दो और पुलिसिये बैठे थे।
उसने घबरा कर सोचा क्या उनकी वहां मौजूदगी महज इत्तफाक थी या वे उसी के स्वागत के लिए वहां मौजूद थे।
उसने घूम कर पीछे देखा।
उसके यूं बीच रास्ते में ठिठक कर खड़े हो जाने से उलझन में पड़ी डेजी धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रही थी।
उसने वापिस गली की तरफ देखा।
उसे लगा कि पुलिसियों का ध्यान उसकी तरफ नहीं था।
क्या वह भाग खड़ा हो?
लेकिन उसके ऐसी कोई कोशिश करते ही उनका ध्यान उसकी तरफ जा सकता था।
अपने कोट की भीतरी जेब में मौजूद शनील की थैली अब उसे अपने कलेजे पर बैठा सांप मालूम हो रही थी।
तभी डेजी उसके समीप पहुंची।
“सुनो।”—वह फुसफुसाया।
डेजी ठिठकी। उसने सशंक भाव से राजन की तरफ देखा।
किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर राजन ने अपनी जेब से शनील की थैली निकाली और उसे जबरन डेजी के हाथ में ठूंसता बोला—“इसे मेरी अमानत के तौर पर अपने पास रख लो।”
“यह क्या है?”
“बाद में बताऊंगा। डेजी, प्लीज मुझ पर इतनी मेहरबानी करो।”
“अच्छा!”
“इसे छुपा लो!”
डेजी ने थैली अपने पर्स में ठूंस ली।
“अब गली में इधर से दाखिल होने की जगह परली तरफ से चली जाओ।”
“वह क्यों?”
“सवाल मत करो।”
“लेकिन...”
तभी राजन को लगा कि तीनों पुलिसिये उन्हीं की तरफ देख रहे थे। चबूतरे पर बैठे दोनों पुलिसिये भी उठ कर अपने गली के दहाने पर खड़े साथी के पास आ खड़े हुए थे।
“जाओ।”—राजन फुंफकारा—“जल्दी करो। चलो।”
डेजी उससे अलग हटी और गली के दहाने की तरफ बढ़ने के स्थान पर उससे परे चलने लगी।
तभी तीनों पुलिसियों में से एक डेजी की दिशा में बढ़ा और दो दृढ़ कदमों से राजन की तरफ बढ़े। राजन ने देखा कि उन दोनों में से एक सशस्त्र सब-इन्स्पेक्टर था।
राजन को अपना गला सूखता महसूस हुआ। वह एक क्षण बुत बना वही खड़ा रहा, फिर एकाएक वह घूमा और बन्दूक से छूटी गोली की तरह वहां से भागा।
“खबरदार!”—उसे पीछे से चेतावनी मिली—“रुक जा वर्ना शूट कर दूंगा।”
राजन भागता हुआ दरीबे में दखिल हुआ और सीधा किसी की छाती से जाकर टकराया।
उस आदमी ने उसे जकड़ लिया।
तब पुलिसिये भी उसके सिर पर पहुंच गए।
जिस आदमी ने उसे पकड़ा था, वह इलाके का चौकीदार था जो पुलिसियों की पुकार सुनकर चौकन्ना हो गया था।
राजन को पुलिसियों ने पकड़ लिया।
राजन ने देखा, वे दो थे। तीसरा पता नहीं डेजी के पीछे गया था या यूं ही उधर बढ़ गया था जिधर कि डेजी जा रही थी।
अब वह इस सस्पेंस में भी मरा जा रहा था कि क्या पुलिसियों ने उसे डेजी को कुछ देते या उससे बात करते देखा था।
“कौन है तू?”—सब-इन्स्पेक्टर कड़क‍ कर बोला।
“मेरा नाम राजन है।”—राजन बोला।
“ऊंचा बोल। मिमिया नहीं।”
“मेरा नाम राजन है।”
“कहां रहता है?”
“चारहाट में।”
“अभी कहां जा रहा था?”
“घर जा रहा था।”
“तेरे साथ कौन था?”
“कोई भी नहीं।”
“एक लड़की नहीं थी तेरे साथ?”
“नहीं।”
“हमने देखी थी।”
“एक लड़की मेरे पास से गुजरी थी लेकिन वह मेरे साथ नहीं थी।”
“तू भागा क्यों था?”
“मैं डर गया था।”
“किस बात से?”
राजन को जवाब न सूझा।
“अबे, किस बात से डर गया था तू?”
“मैंने समझा था”—राजन कठिन स्वर में बोला—“कि आप लोग कोई गुण्डे बदमाश थे।”
“क्या कहने! हमारी वर्दी दिखाई नहीं दी थी तुझे?”
“अन्धेरे में नहीं दिखाई दी थी।”
“इतना अन्धेरा तो नहीं था!”
राजन चुप रहा।
“अभी कहां से आया है?”
“सिनेमा देख कर आया हूं।”
“कहां देखा सिनेमा?”
“कश्‍मीरी गेट।”
“कश्‍मीरी गेट पर कहां?”
“रिट्ज पर।”
“वहां कौन सी पिक्चर लगी है?”
“प्रेम रोग।”
“किसके साथ देखी?”
“किसी के साथ नहीं। अकेले देखी।”
“अभी सीधा वहीं से आ रहा है?”
“हां।”
“हवलदार, इसकी तलाशी लो।”
हवलदार आगे बढ़ा।
“चुपचाप खड़े रहना।”—सब-इन्स्पेक्टर घुड़क कर बोला—“वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”
राजन ने सहमति में सिर हिलाया।
ले लें तलाशी स्साले। अब उसकी जेब में क्या रखा था!
लेकिन एक चीज रखी थी।
हवलदार ने उसकेे कोट की बाहरी जेब में से रिट्ज की दो टिकटों के अधपन्ने बरामद किए।
उसने वे अधपन्ने सब-इन्स्पेक्टर को दिखाए।
“क्यों बे?”—सब-इन्स्पेक्टर घुड़क कर बोला—“तू तो कहता था कि तू अकेला सिनेमा गया था! फिर ये दो टिकटें कैसी हैं?”
राजन के मुंह से बोल न फूटा।
“जवाब दे।”
“गेटकीपर ने गलती से किसी और की दो टिकटें मुझे थमा दी होंगी।”
“क्या बकता है? तूने उसे एक टिकट दी। बदले में उसने तुझे दो अधपन्ने दे दिए?”
राजन खामोश रहा।
“और फिर तू भागा क्यों?”—सब-इन्स्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला।
राजन ने जवाब नहीं दिया, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वे लोग दामोदर के कत्ल के बारे में कुछ नहीं जानते थे। वे कोई गश्‍त के सिपाही थे, जो इत्तफाक से ही रात के उस वक्त गली के दहाने पर मौजूद थे।
फिर तो वह तीसरा पुलिसिया भी जरूर इत्तफाकिया ही डेजी की दिशा में बढ़ा था, वास्तव में उसका डेजी से कोई मतलब नहीं था।
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09-29-2020, 12:24 PM,
#70
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
बौखलाहट में भाग खड़े होकर उसने खामखाह मुसीबत मोल ले ली थी।
फिर भी इस बात से वह खुश था कि वक्त रहते उसने शनील की थैली डेजी का सौंप दी थी। वह थैली अगर उस वक्त उसकी जेब से बरामद होती तो उसका काम हो गया था।
“तू रहता वाकई चारहाट में है?”—सब-इन्स्पेक्टर ने उसे घूरते हुए पूछा।
“हां।”—राजन बोला।
“वहां तुझे कोई जानता है?”
“सब जानते है। हम चारहाट के पुराने रहने वाले हैं। मेरे बाप का नाम रामप्रसाद है। चावड़ी की नुक्कड़ पर उसकी दुकान है।”
“घर में और कौन कौन है?”
“बस हम दो जने हैं। मैं और मेरा बाप।”
वह जवाब देते समय तब पहली बार उसे रंगीला का खयाल आया जो उसके घर की बरसाती में छुपा हुआ था।
उसका दिल फिर बड़ी जोर से धड़का।
अगर पुलिसियों ने उसके घर की तलाशी लेने की जिद की तो?
एक नई चिन्ता उसे सताने लगी।
“चल, अपना घर दिखा।”—सब-इन्स्पेक्टर बोला।
“चलो।”—राजन बोला।
दो पुलिसियों के बीच में चलता राजन आगे बढ़ा।
वे गली के समीप पहुंचे तो उसने देखा कि तीसरा पुलिसिया अपना डण्डा हिलाता वहां चबूतरे पर बैठा था।
राजन की जान में जान आई।
तो वह डेजी के पीछे नहीं गया था।
वह पहले से ज्यादा हौसले के साथ आगे बढ़ा।
वे गली में दाखिल हुए तो तीसरा सिपाही भी उनके साथ हो लिया।
तभी गली में एक और शख्स दाखिल हुआ।
राजन ने देखा वह उसके पड़ोसी का लड़का था। उम्र में वह राजन से कम से कम आठ साल छोटा था, लेकिन एक नम्बर का हरामी था।
सब-इन्स्पेक्टर ने उसे अपने पास बुलाया।
“तू इसी गली में रहता है?”—उसने पूछा।
“हां, दारोगाजी।”—वह बोला।
“क्या नाम है तेरा?”
“शंकर।”
“इसे जानता है?”—सब-इन्स्पेक्टर ने राजन की तरफ संकेत किया।
“जानता हूं, दारोगा जी।”—शंकर बड़े शरारती स्वर में बोला—“इसे कौन नहीं जानता!”
“कौन है यह?”
“अमिताभ बच्चन।”
“क्या बकता है?”
“मेरा मतलब है, साहब, कि बाल बाल बचा है अमिताभ बच्चन बनने से।”
राजन ने खा जाने वाली निगाहों से शंकर की तरफ देखा, लेकिन शंकर ने उसके देखने की रत्ती भर परवाह न की, दारोगा जी की शह जो थी उसे।
“मतलब?”—सब-इन्स्पेक्टर बोला।
“साहब, यह मुम्बई गया था एक्टर बनने।”—शंकर बोला—“लेकिन...”
“बकवास नहीं। समझा?”
“समझा।”
“कौन है यह?”
“इसका नाम राजन है “
“इसके बाप का क्या नाम है?”
“रामप्रसाद।”
“काम क्या करता है इसका बाप?”
“ताले बेचता है और चाबियों में ताले लगाता है। चावड़ी की नुक्कड़ पर उसकी लोहे की दुकान है, जहां होली-दीवाली अपने ये अमिताभ बच्चन भी जाकर बैठते हैं।”
“फिर बकवास!”
“खता हुई, दारोगाजी।”—शंकर खींसें निपोरता बोला।
“इसका घर कौन सा है?”
“दारोगाजी, वो सामने वाला दो मंजिला पीला मकान इसका घर है और वो परे से इतनी रात गए पता नहीं कहां से चली आ रही जींस वाली क्रिस्तान मेम की छोकरी इसकी चैंट है।”
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