SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:10 PM,
#31
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“नहीं। ऐसी उम्मीद तो मुझे तुमसे नहीं है। लेकिन कौशल, तुम्हारे लिए अब भारी सावधानी बरतने की जरूरत है। यूं किसी की तवज्जो तुम्हारी तरफ जाना तुम्हारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है।”
“तो मैं क्या करूं?”
“मेरे खयाल से तुम फौरन से पेश्‍तर अपना कूचा मीर आशिक वाला ठीया छोड़ दो। तुम यह इलाका छोड़ दो और रहने के लिए यहां से कहीं दूर चले जाओ। आज ही रात कोई नई जगह तलाश कर लेना तुम्हारे लिए मुश्‍किल होगा, इसलिए बेशक मेरे घर चले आओ। कल यहां से दूर कहीं, जमना पार के इलाके में या तिलक नगर वाली साइड में या किसी और दूर दराज जगह में कोई नया ठिकाना तलाश कर लेना। अपना नाम भी कोई नया रख लो तो और भी अच्छा होगा। तब दारा के आदमी तुम्हें सहूलियत से तलाश नहीं कर सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि अपने मौजूदा ठिकाने को तो तुम जितनी जल्दी नमस्ते करोगे, उतना ही अच्छा होगा।”
“ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।”
मन-ही-मन वह उस इलाके को क्या, उस शहर को ही छोड़ देने की सोच रहा था। पहला मौका हाथ आते ही वह दिल्ली से इतनी दूर निकल जाएगा कि दारा हरगिज भी उसे तलाश नहीं कर पाएगा। फेथ डायमंड में अपना हिस्सा उसे पीछे छोड़ना पड़ेगा लेकिन मामला ठण्डा पड़ जाने के बाद वह एकाध‍ दिन के लिए चुपचाप दिल्ली लौट सकता था और अपना हिस्सा हासिल करके चुपचाप वापिस खिसक सकता था।
“अभी सीधे घर ही चले जाओ।”—रंगीला ने राय दी।
कौशल ने सहमति में सिर हिलाया।
“हम हवामहल में होंगे। जब निपट जाओ तो वहां आ जाना।”
“ठीक है।”—कौशल बोला।
सुभाष पार्क के सामने से वह एक रिक्शा पर सवार हो गया। उसने अपने साथियों से विदा ली और रिक्शा पर चावड़ी बाजार की तरफ रवाना हो गया।
रंगीला और राजन बदस्तूर पैदल चलते रहे।
पीछे कोई पन्द्रह मिनट बाद जुम्मन को होश आया। वह कांपता कराहता उठा। बड़ी मुश्‍किल से वह अपनी टांगों को अपने शरीर का वजन सम्भालने के काबिल बना पाया। सबसे पहले उसने अपने चारों तरफ निगाह डालकर इस बात की तसल्ली की कि उसकी वह गत बनाने वाले उसके दुश्‍मन वहां से जा चुके थे फिर वह लड़खड़ाती चाल से चलता हुआ पैट्रोल पम्प की तरफ बढ़ा।
उसने फौरन कहीं फोन करना था।
जो कुछ हुआ था, उसकी खबर फौरन कहीं कर पाने में असफल रहने की सूरत में उसकी अभी और—पहले से ज्यादा—धुनाई हो सकती थी।
मंगलवार : रात
कौशल अपने एक कमरे के घर में पहुंचा। उसका कमरा निचली मंजिल पर था और उसका दरवाजा बाहर गली में खुलता था। नीचे वैसे ही तीन कमरों में तीन किरायेदार और थे, ऊपर सारे में मकान मालिक रहता था।
वहां पहुंचते ही उसने अपना सारा सामान एक सूटकेस में पैक करना आरम्भ कर दिया।
तभी एक आदमी बाहर गली में पहुंचा। दाएं-बाएं झांके बिना वह सीधा ऊपर की सीढ़ियां चढ़ गया। उसने गली में खेलते बच्चों से पहले ही पूछताछ कर ली थी कि मकान मालिक ऊपर पहली मंजिल पर रहता था।
उस आदमी की सूरत पर एक निगाह पड़ते ही मकान मालिक का चेहरा पीला पड़ गया। वह उस आदमी को जानता था। वह दारा का आदमी था। दारा के आदमी का किसी गृहस्थ आदमी के घर आना किसी अच्छी बात का द्योतक नहीं होता था। उस आदमी ने जब उससे उसके किरायेदार कौशलसिंह डबराल के बारे में सवाल पूछने शुरू किए तो उसने यूं जल्दी-जल्दी जवाब देने आरम्भ किए जैसे उसने किसी इम्तहान में पास होना था।
उसके जवाबों से सन्तुष्ट होकर जब वह आदमी वहां से विदा हो गया तभी मकान मालिक की जान में जान आई।
कोई दस मिनट बाद कौशल उसके पास पहुंचा।
“मैं कहीं जा रहा हूं।”—उसने मकान मालिक को चाबी सौंपते हुए कहा—“यह नीचे की चाबी है। इसे आप काशीनाथ को दे देना। काशीनाथ को कह देना कि मैं दो-तीन महीने बाद लौटूंगा।”
मकान मालिक ने सहमति में सिर हिला दिया। उसका कौशल को यह बताने का हौसला नहीं हुआ कि उस इलाके के सबसे बड़े बदमाश का कोई आदमी उसके बारे में पूछताछ करने आया था।
कौशल अपना सूटकेस सम्भाले वहां से विदा हो गया।
नीचे के ताले की दूसरी चाबी काशीनाथ के पास भी थी लेकिन अब जब कि वह वहां लौटने का कोई इरादा ही नहीं रखता था तो उसने अपनी वाली चाबी अपने पास रखना मुनासिब नहीं समझा था।
बाहर गली में नीमअन्धेरा था। मकान से कुछ ही कदम आगे गली एक डयोढ़ी में से गुजरती थी, जिसकी मेहराब के नीचे के छोटे से टुकड़े में दूर जलती स्ट्रीट लाइट की रोशनी बड़ी ही मुश्‍किल से पहुंच रही थी।
कौशल मेहराब के नीचे कदम रखते ही ठिठक गया।
सामने दायें बायें की दीवारों से टेक लगाये दो आदमी खड़े थे और उन दोनों की निगाहें उसी पर टिकी थीं।
कौशल सकपकाया, उसने गरदन घुमाकर अपने पीछे देखा।
वैसे ही दो आदमी उसे अपने पीछे भी दिखाई दिये।
उसके कानों में खतरे की घंटियां बजने लगीं।
उसके पीछे मौजूद आदमी अभी उससे दूर थे। उसने घूमकर वापिस मकान में घुस जाना चाहा लेकिन तभी मेहराब के नीचे मौजूद दोनों आदमी उस पर झपट पड़े। एक आदमी ने उसे पीछे से पकड़कर वापिस मेहराब के नीछे घसीट लिया और दूसरे ने एक मजबूत डन्डे का भारी प्रहार उसके सिर पर किया।
कौशल की आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गये।
सूटकेस पर से उसकी पकड़ छूट गई। सूटकेस धम्म से नीचे गली में गिरा। उसका एक हाथ अपनी पतलून की एक जेब से सरक गया, जिसमें कि वह एक पीतल का मुक्का रखता था।
तभी डन्डे का एक और प्रहार उसकी कनपटी पर पड़ा।
तब तक उसके पीछे वाले दोनों आदमी भी उसके सिर पर पहुंच चुके थे।
चारों ने उसे घेर लिया।
एक और प्रहार उसकी खोपड़ी पर पड़ा। इस बार वह अपने पैरों पर खड़ा न रह पाया। उसके घुटने मुड़ गये और वह जमीन चाट गया।
तुरन्त कोई उसके ऊपर चढ़ बैठा।
फिर कई हाथ उसके सारे शरीर पर फिरने लगे।
एक हाथ ने उसकी जेब में मौजूद नोटों का पुलन्दा निकाल लिया। एक और हाथ ने उसकी बनियान की जेब में रखी शनील की थैली अपने अधिकार में कर ली। एक तीसरा हाथ हीरे की उस अंगूठी पर पड़ा, जिसे कौशल पायल को देना चाहता था। फिर एक चौथा हाथ उसके जमीन पर पड़े सूटकेस पर भी पड़ा।
अगले ही क्षण चारों यह जा वह जा।
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09-29-2020, 12:10 PM,
#32
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
कौशल औंधे मुंह गली की धूलभरी जमीन पर पड़ा रहा। वह होश में था लेकिन उसमें उठकर अपने पैरों पर खड़े हो पाने की शक्ति नहीं थी।
जो कुछ उसके साथ बीती थी, उसमें मुश्‍किल से पूरा एक मिनट लगा था और उस दौरान किसी ने भी उस गली में कदम नहीं रखा था।
तभी उसका एक पड़ोसी वहां पहुंचा। वह कौशल को पहचानता था। उसने बड़े आतंकित भाव से उसे सहारा देकर उठाया। वह उसे ड्योढ़ी से बाहर ले आया और उसने उसे एक मकान के सामने बने चबूतरे पर बिठा दिया।
कौशल वहां बैठा रहा और अपने गोल-गोल घूमते सिर को काबू में रखने की कोशिश करता रहा। उसके सिर में से कहीं से खून रिस रहा था जो कि उसकी उंगलियां भिगो रहा था।
“क्या हुआ?”—पड़ोसी ने पूछा।
कौशल उत्तर न दे सका।
तभी गली के तीन-चार और लोग वहां जमा हो गये।
कौशल का सिर घूमना कुछ बन्द हुआ तो सबसे पहले उसका हाथ अपनी बनियान की जेब पर पड़ा।
शनील की थैली गायब थी।
उसने जल्दी-जल्दी अपनी सारी जेबें टटोलीं।
उसे अपनी जेबों में एक रूमाल और थोड़ी सी खरीज के अलावा कुछ न मिला।
उसने ड्योढ़ी की तरफ निगाह डाली तो वहां से अपना सूटकेस भी गायब पाया।
पीतल का मुक्का उन लोगों की निगाह में शायद इसलिए नहीं आया था, क्योंकि वह उसकी जेब में होने की जगह उसकी उंगलियों पर चढ़ा हुआ था।
उसने मुक्का वापिस जेब में डाल लिया।
“तुम्हें लूटा गया है?”—पड़ोसी ने हमदर्दी से पूछा।
“हां।”—कौशल क्षीण स्वर में बोला।
“ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ?”
“नहीं। पचासेक रुपये ही थे मेरी जेब में।”
“हरामजादे! कमीने! ऐसे ही सूरमा थे तो जाकर कोई बैंक लूटते!”
“हद हो रही है गुन्डागर्दी और बद्अमनी की।”—कोई और बोला—“बताओ तो! राह चलते डाकू पड़ रिये हैं।”
“अरे, उस्ताद, लौंडे के सिर से तो खून बह रिया हैगा।”
“इसे डाक्टर के पास लेकर चलो।”
“नहीं।”—कौशल बोला—“मैं ठीक हो जाऊंगा।”
“चोट गहरी नहीं है।”—उसका पड़ोसी बोला—“तुम मेरे घर चलो। मैं ही दवा लगा देता हूं।”
कौशल ने सहमति में सिर हिलाया।
पड़ोसी उसे अपने घर ले आया।
वहां कौशल ने सबसे पहले अपने हाथ और चेहरा धोया। उसके सिर पर लगी चोट गहरी नहीं थी। पड़ोसी ने उस पर टिंचर लगा दी और उसे थोड़ी रम पिलाई।
कौशल की जान में जान आई।
वह और आधा घण्टा वहीं पड़ोसी के घर ठहरा। उसके बाद उसका धन्यवाद करता वह वहां से विदा हो गया।
हौजकाजी चौक से वह कनाट प्लेस को जाते एक तांगे पर सवार हो गया। मिन्टो ब्रिज के नीचे वह तांगे से उतरा और पैदल कर्जन रोड की तरफ बढ़ा।
वह पायल के फ्लैट वाली इमारत के सामने पहुंचा।
उसे उसके फ्लैट की किसी भी खिड़की में रोशनी न दिखाई दी।
प्रत्यक्षत: पायल कहीं गई हुई थी।
सड़क से पार एक बस स्टैंड था। कौशल उसके सायबान के नीचे बने बैंच पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा।
उसकी खोपड़ी में सांय-सांय सी हो रही थी लेकिन अब उसका सिर घूम नहीं रहा था और उसमें दर्द भी कम था।
आधी रात को दारा की लाल शेवरलेट वहां पहुंची।
पायल उसे कार में दारा के साथ बैठी दिखाई दी।
दोनों कार से बाहर निकले। दारा ने कार को लॉक किया। और फिर पायल की कमर में हाथ डाले इमारत में दाखिल हुआ।
दो मिनट बाद पायल के फ्लैट की कई खिड़कियों में रोशनी दिखाई देने लगी।
कौशल प्रतीक्षा करता रहा।
गश्‍त का एक सिपाही सड़क पर प्रकट हुआ। उसका कौशल की तरफ ध्यान नहीं था। वह इमारत वाली साइड के फुटपाथ पर चल रहा था। दारा की कार के पास वह एक क्षण के लिए ठिठका। उसने कार के भीतर झांका और फिर अपना डण्डा हिलाता आगे बढ़ गया।
कौशल यथास्थान बैठा रहा।
उसका दिमाग जिस योजना का ताना बाना बुन रहा था, उस पर अमल करना उसे कोई कठिन काम नहीं लग रहा था।
अन्त में जब दारा ने इमारत से बाहर कदम रखा, उस वक्त रात के दो बजने वाले थे।
उस वक्त रास्ते एकदम सुनसान पड़े थे और गश्‍त का सिपाही भी कौशल को दोबारा दिखाई नहीं दिया था।
कौशल उठकर खड़ा हो गया।
दारा लम्बे डग भरता कार की तरफ बढ़ा।
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09-29-2020, 12:10 PM,
#33
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
कौशल ने अपना पीतल का मुक्का अपने दायें हाथ की उंगलियों पर चढ़ा लिया। कार की ड्राइविंग साइड के दरवाजे का लॉक खोलने के उपक्रम में जब दारा की उसकी तरफ पीठ हो गयी तो कौशल दबे पांव आगे बढ़ा। बिल्ली की तरह उसने चौड़ी सड़क पार की और दारा के सिर पर पहुंच गया। दारा नीचे झुककर कार में दाखिल होने ही लगा था कि कौशल ने अपने बायें हाथ से पीछे से उसका कन्धा थामकर उसे फिरकनी की तरह अपनी तरफ घुमाया, फिर उसने अपने मुक्का चढ़े हाथ का एक अत्यन्त शक्तिशाली प्रहार दारा पर किया। दारा की तुरन्त चेतना लुप्त हो गई और वह कार के दरवाजे के पास सड़क पर ढेर हो गया।
कौशल ने अपनी उंगलियों पर से मुक्का उतारकर जेब में डाल लिया और उकड़ू होकर दारा के अचेत शरीर के पास बैठ गया। उसने अपने दोनों हाथों से दारा का चेहरा थाम लिया और फिर अपने दोनों हाथों की उंगलियों को साथ-साथ मिलाकर उनके नाखूनों से दारा के दोनों गालों को नोच डाला। दारा के गालों में आठ खूनी लकीरें खिंच गयीं लेकिन उसके अचेत जिस्म में कोई हरकत न हुई। कौशल ने अपनी उंगलियों को जान-बूझकर बहुत करीब-करीब रखा था, ताकि दारा के गालों पर खिंची लकीरें किन्हीं जनाना हाथों की करामात लगतीं।
चाबियों का गुच्छा अभी भी दारा के हाथ में था। उसने गुच्छा वहां से निकाल लिया। उस गुच्छे में कार की चाबियों के अलावा और भी चाबियां दिखाई दे रही थीं। उन और चाबियों में से एक चाबी शर्तियां पायल के फ्लैट की भी होनी थी।
फिर उसने दारा की जेबें टटोलीं।
उसका पर्स उसके कोट की भीतरी जेब में था। उसने पर्स निकाल कर उसे खोला। वह नोटों से ठुंसा पड़ा था। सौ सौ के सारे नोट उसने पर्स में से निकाल लिए और पर्स वापिस दारा की जेब में रख दिया। पर्स में उसने दस और बीस के कुछ नोट ही छोड़े थे।
फिर दारा को वहीं कार के पहलू में अचेत छोड़ कर वह आगे बढ़ा। उसने इमारत की लॉबी में कदम रखा।
वह एक लिफ्ट में दाखिल हो गया।
लिफ्ट के तीसरी मन्जिल पर पहुंचने तक उसने दारा की जेब से निकाले नोट गिने।
पूरे चालीस नोट थे।
लिफ्ट तीसरी मंजिल पर जाकर रुकी तो उसने उसमें से बाहर निकलने का उपक्रम न किया। उसने लिफ्ट का दरवाजा बन्द करने वाला बटन दबाया और दरवाजों की पटड़ी के बीच अपना एक पांव रख दिया। दोनों दरवाजे उसके पांव के साथ टकरा कर रुक गए। अब लिफ्ट किसी और फ्लोर से बुलाई जाने पर भी वहां से हिल नहीं सकती थी। उसी स्थिति में पांव को टिकाए-टिकाए उसने अपना कोट कमीज और जेब वाली बनियान उतारी। कमीज और कोट को उसने दोबारा पहन लिया ओर बनियान को अपने कोट की एक बाहरी जेब में ठूंस लिया। उसने अपनी कमीज के ऊपरले तीन बटन जान-बूझ कर खुले छोड़ दिए। खुले कॉलर में से उसकी बालों भरी चौड़ी छाती बाहर झांकने लगी। फिर उसने लिफ्ट का दरवाजा खोलने वाला बटन दबाया और लिफ्ट से बाहर कदम रखा।
वह पायल के फ्लैट के मुख्यद्वार पर पहुंचा।
दारा की चाबियों में से एक चाबी से मुख्यद्वार का ताला खुल गया।
अपने पीछे दरवाजा खुला छोड़ कर वह दबे पांव फ्लैट में दाखिल हुआ। उसने ड्राइंगरूम में झांका।
वह खाली था।
वह पूर्ववत् दबे पांव चलता बैडरूम के दरवाजे पर पहुंचा।
भीतर पायल मौजूद थी। वह सम्पूर्ण नग्नावस्था में अपनी ड्रैसिंग टेबल के आदमकद शीशे के सामने खड़ी थी और बड़े मुग्ध भाव से अपने नौजवान, पुष्ट, सुडौल शरीर के प्रतिबिम्ब को निहार रही थी। जिन कपड़ों में उसने उसे दारा के साथ इमारत में दाखिल होते देखा था, वे एक ओर एक कुर्सी की पीठ पर पड़े थे। डबल बैड की हालत ऐसी थी जैसे उस पर दंगल हुआ था।
कौशल ने धीरे से बैडरूम में कदम रखा।
तभी शायद उसकी परछाईं पायल को शीशे में दिखाई दे गई। उसके मुंह से एक चीख सी निकली और वह तुरन्त कौशल की तरफ घूमी।
कौशल छलांग मारकर उसके सिर पर पहुंच गया। उसने पायल को उसके गले से पकड़ लिया और कहरभरे स्वर में बोला—“खबरदार! आवाज न निकले। नहीं तो गला घोंट दूंगा।”
आवाज उसके मुंह से न निकली लेकिन भयभीत वह इतनी थी कि उसकी आंखें अपनी कटोरियों में से उबली पड़ रही थीं।
कौशल उसे घसीटता हुआ पलंग तक ले आया। उसका गला छोड़े बिना उसने उसको पलंग पर धकेल दिया।
“कैसी हो़ पायल बाई?”—वह दांत निकाल कर हंसता हुआ बोला।
उसे हंसता देख कर पायल के चेहरे से भय के भाव गायब हो गए और उनका स्थान नफरत ने ले लिया। भयभीत अब वह इसलिए नहीं रही थी, क्योंकि वह कौशल के यूं वहां घुस आने का मतलब कुछ और ही समझ रही थी। लेकिन वह उसकी गलती थी और इसीलिए कौशल को हंसी आ गई थी।
एकाएक कौशल ने उसका गला दबाना शुरू कर दिया।
पायल फिर आतंकित हो उठी। उसके दोनों हाथ कौशल की नंगी छाती पर पड़े और वह अपनी पूरी शक्ति के साथ उसे अपने ऊपर से परे धकेलने की कोशिश करने लगी। कौशल ने उसके गले पर अपना दबाव और बढ़ाया तो पायल के हाथों के नाखुन कौशल की छाती में गड़ने लगे।
इसी बात की कौशल को अपेक्षा थी। इसी बात की कौशल को प्रतीक्षा थी।
पायल के नाखूनों के नीचे से खून और नुची हुई चमड़ी के अंश बरामद होना जरूरी था।
ज्यों ही उसे लगा कि उसका वह मन्तव्य पूरा हो गया था, उसने पायल का गला घोंट कर उसे मार डाला।
पायल पर बिना दोबारा निगाह डाले वह वहां से विदा हो गया। फ्लैट को उसने बदस्तूर ताला लगा दिया और लिफ्ट में पहुंचा।
वहां उसने कोट और कमीज उतार कर बनियान फिर पहन ली। पायल के नाखूनों से उसकी छाती पर आई खरोंचें उसके घने बालों में छुपी हुई थीं। उसने अपने कॉलर वाले बटन को छोड़ कर कमीज के सारे बटन बन्द कर लिए।
वह नीचे पहुंचा।
नीचे अभी भी सन्नाटा था। कहीं कोई नहीं था।
वह दारा की कार के पास पहुंचा।
दारा कार के पहलू में वैसे ही पड़ा था, जैसे वह उसे छोड़कर गया था। उसने उसकी कार की चाबियां दरवाजे के ताले में लटका दीं ओर वहां से हट गया। फिर लम्बे डग भरता वह कार से परे चलने लगा।
तभी उसके पीछे एक कार की हैडलाइट्स चमकीं।
वह फौरन एक पेड़ की ओट में हो गया और कार के सड़क पर से गुजर जाने की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन कार वहां से गुजरने के स्थान पर दारा की कार के समीप रुक गई। कार में से चार आदमी बाहर निकले और दारा के इर्द गिर्द जमा हो गए। किसी ने कौशल की दिशा में निगाह तक न डाली।
कौशल पेड़ की ओट में से निकला और फिर लम्बे डग भरता फुटपाथ पर आगे बढ़ गया।
कनाट सर्कस की गोल सड़क पर उसका पहला कदम पड़ा तो उसने चैन की गहरी सांस ली।
अब उसे कोई खतरा नहीं था।
और अपना बदला उसने ले लिया था।
वह सन्तुष्ट था कि उसने यूं ही मार नहीं खा ली थी, वह यूं ही नहीं लुट गया था।
कनाट प्लेस पहुंच कर भी उसने पुरानी दिल्ली की तरफ जाने का उपक्रम न किया। वह रंगीला के घर जा सकता था लेकिन रंगीला उससे बहुत सवाल पूछता और अभी फिलहाल वह किसी पूछताछ के मूड में नहीं था।
जाने को वह अपने घर भी जा सकता था लेकिन उसके दिल ने गवाही न दी कि वह वहां जाता।
वह रीगल के करीब पहुंचा।
उसके बरामदे के एक खम्भे से लगी खड़ी एक लड़की उसे दिखाई दी। उसके खड़े होने का अन्दाज ऐसा था जैसे वह किसी सवारी के इन्तजार में हो लेकिन कौशल जानता था कि उसे किस चीज का इन्तजार था।
कौशल उसके समीप पहुंच कर ठिठका।
वह पच्चीस के करीब की थी और उसके नयन नक्श भी बुरे नहीं थे।
लड़की ने एक सरसरी निगाह कौशल पर डाली और फिर सामने सड़क पर देखने लगी।
“कितने?”—कौशल धीरे से बोला।
लड़की ने फिर उसकी तरफ देखा और उसे दो उंगलियां दिखाईं।
“अपना कोई ठिकाना है?”
लड़की ने सहमति में सिर हिलाया और फिर उसे तीन उंगलियां दिखाईं।
कौशल ने उसे दो उंगलियां दिखाई और धीरे से बोला—“ठिकाने समेत। सुबह तक।”
“फूट।”—लड़की दांत भीच कर बोली।
कौशल ने आगे कदम बढ़ाया।
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09-29-2020, 12:11 PM,
#34
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
लड़की ने व्याकुल भाव से चारों तरफ देखा और फिर बोली—“ठहर।”
कौशल ठहर गया।
“चल।”—वह बोली—“पास ही जाना है।”
“पास कहां?”
“बंगाली मार्केट।”
कौशल उसके साथ हो लिया।
रंगीला और राजन हवामहल में बैठे थे।
हवामहल दिल्ली गेट के पहलू में बना एक रेस्टोरेन्ट था जिसमें एक पंडालनुमा अस्थाई हाल में रात को कैब्रे भी चलता था। कैब्रे की वजह से वहां आधी रात के बाद तक हलचल रहती थी। वे दोनों उस पंडाल से बाहर खुले में बिछी मेज-कुर्सियों में से एक पर बैठे थे। वे विस्की की एक पूरी बोतल पी चुके थे। लेकिन टुन्न उन दोनों में से फिर भी कोई नहीं था। कौशल की चिन्ता में नशा उन पर हावी नहीं हो रहा था।
रेस्टोरेन्ट बन्द होने का वक्त हो रहा था और कौशल अभी तक वापिस नहीं लौटा था।
“गुरु।”—अन्त में इन्तजार से तंग आकर जगदीब बोला—“पहलवान फूट गया लगता है।”
“फूट गया हो तो अच्छा ही है।”—रंगीला गम्भीरता से बोला—“साली चिंता तो मिटे कि कहीं वह हमें न फंसवा दे। मुझे तो उससे खतरा लगने लगा है। उसी की वजह से वह जुम्मन नाम का आदमी हमारे पल्ले पड़ गया। अभी पता नहीं और क्या गुल खिलाएगा वो।”
“हूं।”
“मुझे तो उसकी पायल नाम की माशूक का भी कोई चक्कर लगता है, लेकिन साला कुछ बक कर तो देता नहीं! बड़ी खुदगर्ज और कमीनी लड़की है। कौशल कहता है वो उससे नहीं मिला, लेकिन अगर वह उससे मिला हुआ और उसे उसने बताया हुआ कि उसके पास चार पैसे आ गए हैं तो वह जरूर उसकी खाट खड़ी करवा कर छोड़ेगी।”
“पहलवान जाए भाड़ में लेकिन, गुरु, साथ में हमारी खाट नहीं खड़ी हो जानी चाहिए।”
“इसी बात से तो मुझे डर लग रहा है।”
राजन खामोश रहा।
“राजन, फिलहाल दारा की निगाह में आने से तो हमें हर हाल में बचना चाहिए। मैं चाहता हूं कि दारा अगर हमें ढूंढ़ना भी चाहे तो न ढूंढ़ सके। इसके लिए अब आगे से हमें जामा मस्जिद के इलाके में नहीं दिखाई देना चाहिए।”
“तो फिर हम मिला कहां करेंगे?”
“कनाट प्लेस में। प्लाजा के सामने से जो गली ओडियन को जाती है, उसमें ‘कोलाबा’ नाम का एक छोटा सा रेस्टोरेन्ट है, कल दिन में दो बजे मुझे वहां मिलना। अगर किसी वजह से वहां हमारी मुलाकात न हो सकी तो शाम को सात बजे मैं तुम्हें प्लाजा के सामने मिलूंगा।”
“ठीक है।”
“इस बात का खास खयाल रखना कि कोई तुम्हारे पीछे न लगने पाए। न पुलिस, न दारा का कोई आदमी, न कोई और।”
“मैं खयाल रखूंगा।”
“अपना माल तुमने कहां छुपाया है?”
“कहीं भी नहीं। मेरा माल इस वक्त भी मेरी जेब में है। इसे छुपाने की कोई बढ़िया जगह मुझे नहीं सूझी है अभी तक।”
तभी कैब्रे वाले पंडाल से लोग बाहर निकलने लगे।
वे दोनों भी उठ खड़े हुए।
उन्होंने वेटर को बुलाकर बिल चुकाया और उन्हें चोरी-छिपे वहां विस्की पीने देने की एवज में उसे बीस रुपए टिप दी।
वे सड़क पर पहुंचे।
राजन वहीं से फव्वारे को जाते एक फटफटे पर सवार हो गया। वह चारहाट में रहता था। लालकिले के सामने उतर कर वह पैदल चारहाट जा सकता था। चारहाट में उसके घर में वह और उसका बाप बस दो ही जने रहते थे लेकिन फिर भी अपनी शनील की थैली उसने अपने घर पर नहीं छुपाई थी। न जाने क्यों अभी इतने माल को अपने से अलग कर देने को उसका दिल नहीं मान रहा था। ऊपर से वह दारा से भयभीत था। क्या पता दारा पहले ही मालूम करवा चुका हो कि राजन कौन था और कहां रहता था। दिन में उसका बाप अपने काम पर चला जाता था और वह भी घर पर नहीं होता था। खाली घर में इतना माल वह असुरक्षित नहीं छोड़ सकता था।
दिल्ली गेट से रंगीला के घर का फासला कुछ भी नहीं था। बस चितली कबर बाजार पार किया और घर।
वह घर पहुंचा।
उसे घर अन्धेरे में डूबा मिला।
मंगलवार को गली में कहीं कथा होती थी जहां कोमल ने उसे दिन में ही बताया था कि उसने जाना था। प्रत्यक्ष था कि कोमल अभी तक कथा से वापिस नहीं लौटी थी।
वह ताला खोलकर भीतर दाखिल हुआ। उसने एक दो बत्तियां जलायीं और भीतर जाकर पलंग पर लेट गया।
उसने घड़ी देखी।
एक बजने को था।
कोमल बस आती ही होगी।
जिस कथा में कोमल गई थी, वह, उसने बताया था कि, शुरू ही रात के दस बजे होती थी इसलिए उसका एक डेढ़ बजे तक चलना मामूली बात थी। इलाके का दुकानदार तबका वह कथा करा रहा था। दुकानदारी और भोजन से फुरसत हासिल होने तक उन लोगों को दस बज जाना मामूली बात थी। रंगीला कोमल को ऐसी जगहों पर जाने से या कभी गली की किसी लड़की के साथ सिनेमा वगैरह चले जाने से कभी रोकता नहीं था, इसलिए नहीं रोकता था क्योंकि वह खुद उसे कहीं ले जा नहीं पाता था और कथा सुनने जैसे कामों में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी।
वह आराम ले पलंग पर पसरा रहा।
अगर उसे पता होता कि उसकी उससे ज्यादा पढ़ी-लिखी, खूबसूरत बीवी उस वक्त कथा में बैठी होने की जगह कहीं और थी तो वह यूं आराम से लेटा न रह पाता। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि उसकी सूरत से इतनी भोली भाली और मासूम लगने वाली बीवी उसके साथ बेवफाई कर सकती थी।
जबकि ऐन यही काम वह उस वक्त कर रही थी।
उस वक्त वह गली के एक नए बनते मकान के अन्धेरे बरामदे में एक युवक के साथ खड़ी थी। दोनों कसकर एक दूसरे के साथ लिपटे हुए थे। रात के उस वक्त गली सुनसान थी, मकान में अन्धेरा था और तिराहा बैरम खां के चौक में कथा अभी भी चल रही थी। युवक का नाम श्रीकांत था। उसके होंठ कोमल के होंठों से जुड़े हुए थे, एक हाथ से वह उसके शरीर को अपने शरीर के साथ लगाए था और उसका दूसरा हाथ कोमल के कपड़ों के नीचे घुसा उसके सारे शरीर को सहलाता हुआ भटक रहा था। कोमल की व्याकुल आंखें रह रहकर सुनसान गली की तरफ उठ जाती थीं, वह बड़ी मुश्‍किल से कह पाती थी कि श्रीकान्त अब उसे जाने दे लेकिन श्रीकान्त ‘एक मिनट और’ कहकर उसे फिर पहले से ज्यादा मजबूती से दबोच लेता था। वह ‘और’ वाला एक मिनट पन्द्रह मिनट लम्बा पहले ही खिंच चुका था। श्रीकांत चाहता था कि वह अपनी ‘जाऊं-जाऊं’ बन्द करे और आज वह उसे उस बनते मकान की नंगी ऊबड़ खाबड़ जमीन पर ही लंबी लिटा ले।
श्रीकान्त कोमल के साथ हाथापाई के कई मौके हासिल कर चुका था लेकिन उसके मन की असली मुराद आज तक पूरी नहीं हुई थी। अपनी वह मुराद पूरी करने के लिए वह उसे अच्छी तरह विश्‍वास दिला चुका था कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता था और अगर वह पहले से विवाहित न होती तो वह पलक झपकते उसके साथ शादी कर लेता। कोमल को उसकी बातों पर पूरा विश्‍वास था, वह समझती थी कि श्रीकान्त वाकई उससे दिल से प्यार करता था लेकिन कोमल अभी तक अपने आप को श्रीकान्त के सामने समर्पित कर देने के लिए तैयार नहीं कर पाई थी। जब कभी भी उस क्षण जैसी कोई नौबत आती थी और हालात उसके काबू से बाहर होते नजर आते थे तो हमेशा या तो कोई व्यवधान आ जाता था और या फिर वही किसी तरह से अपने आपको काबू कर लेती थी।
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#35
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
श्रीकान्त बार-बार की नाकामियों से झुंझला जाता था। वह नहीं समझता था कि कोमल कोई आदतन हरजाई या बद्कार औरत नहीं थी, गुनाह का मजा उसके ख्यालात पर अभी इस कदर हावी नहीं हुआ था कि वह अपनी अन्तरात्मा की वह आवाज न सुन पाती जो ऐसे वक्त पर हमेशा उसके विवेक के दरवाजे पर दस्तक देने लगती थी कि पति के साथ बेवफाई करना कोई भला काम नहीं होता था। ऊपर से उसे इस बात का भय भी सताता था कि अगर उसके पति को खबर लग गई तो वह तो जरूर मार मारकर उसका दम ही निकाल देगा। भय और लालसा की उस लड़ाई में आज तक आखिरी जीत भय की ही होती आई थी। वह श्रीकान्त के साथ चोरी छुपे सिनेमा देख आने में, कभी उस प्रकार की हाथापाई कर लेने में, जैसी कि उस वक्त हो रही थी, ही सन्तुष्ट थी। लेकिन श्रीकान्त उतने से सन्तुष्ट नहीं था। वह तो कोमल के पीछे पड़ा ही उसके साथ हमबिस्तर होने की नीयत से था और यह बात उसे बहुत हलकान कर रही थी कि असली मकसद टलता चला जा रहा था।
श्रीकान्त एक सुन्दर युवक था, उसके रख-रखाव में बड़ा सलीका था और औरतों को रिझाने के सारे लटके वह जानता था। यही वजह थी कि अभी वह केवल छब्बीस साल का था, लेकिन दर्जन से ज्यादा औरतों का मानमर्दन कर चुका था। बातें वह ऐसी रसीली करना जानता था कि औरतें उसकी सूरत से ज्यादा उसकी बातों पर मुग्ध होती थीं। कोमल भी पहले उसकी वाकपटुता की वजह से ही उसकी तरफ आकर्षित हुई थी। श्रीकांत अपने मनमोहक अन्दाज में जब कोई दिलचस्प बात कहता था तो कोमल के मन में जो पहला खयाल आता था—बड़े वितृष्णापूर्ण ढंग से जो पहला खयाल आता था—वह यह होता था कि वैसी बढ़िया बातें उसके साथ रंगीला क्यों नहीं कर पाया था? उसे कोई ऐसी बात कहनी क्यों नहीं सूझती थी जिसे सुनकर औरत का दिल मर्द पर बलिहार जाने को करने लगता था।
वैसे डरता रंगीला से श्रीकान्त भी था। रंगीला श्रीकान्त को नहीं जानता था लेकिन श्रीकान्त रंगीला को खूब जानता था। वह जानता था कि अगर कभी रंगीला को पता लग गया कि श्रीकान्त का उसकी बीवी से अफेयर था तो वह श्रीकान्त के हाथ पांव तोड़े बिना नहीं मानने वाला था।
लेकिन कोमल पर वह इस कदर फिदा हो चुका था कि वह खतरा मोल लेने को वह तैयार था।
“अब मुझे जाने दो।”—कोमल हांफती हुई पता नहीं कितनवी बार बोली—“अगर रंगीला को पता लग गया कि मैं कथा में नहीं बैठी हुई थी तो वह मुझे जान से मार डालेगा।”
उसे जाने देने की जगह श्रीकान्त ने और कसकर उसे अपने साथ लिपटा लिया।
“श्रीकान्त!”—कोमल बड़े भावुक स्वर में फुसफुसाई—“तुम मुझे प्यार करते हो न?”
“दिलोजान से।”—श्रीकान्त बोला—“हद से ज्यादा।”
“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता।”
मन ही मन वह कह रहा था—अगर लेटेगी नहीं तो छोड़ूंगा नहीं तो और क्या करूंगा। कितना तो वक्त पहले ही बरबाद कर चुका हूं।
“लेकिन हमारी यह कहानी पहुंचेगी किस अंजाम तक?”
अभी तीन दिन पहले उसने श्रीकान्त के साथ जगत के बाक्स में बैठकर जो फिल्म देखी थी, उसमें वह डायलॉग था जो कि फिल्म में रेखा ने बोला था। अपनी तरफ से कोमल ने रेखा जैसे ही खूबसूरत अन्दाज से वह बात कहने की कोशिश की थी।
“अगर हम दिल से एक दूसरे को प्यार करते हैं”—श्रीकान्त भी अपने स्वर में धर्मेन्द्र जैसी भावुकता भरता बोला—“तो हमारी कहानी किसी गलत अंजाम तक तो पहुंच नहीं सकती। देख लेना, हमारा साथ हमेशा हमेशा बना रहेगा। लेकिन, कोमल, जब तक मुझे मन वचन कर्म से मेरी नहीं बनकर दिखाओगी तब तक मुझे कैसे विश्‍वास होगा कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करती हो जितना कि मैं तुम से करता हूं?”
“मैं हूं तो सही तुम्हारी।”
“मन से ही, वचन से हो लेकिन कर्म से नहीं हो।”
“मैं हर तरह से तुम्हारी हूं।”
“तो फिर”—श्रीकान्त और कसकर उसे अपने साथ लिपटाता हुआ बोला—“ऐतराज कैसा?”
“लेकिन कोई मौका तो लगे?”
“आज है मौका। कोमल, आज मेरी बन जाओ। आज मेरे शरीर का रोम रोम तुम्हारे सहवास के लिए तड़प रहा है। आज...”
श्रीकान्त ने ऐसी बातों के अपने स्टॉक में से और ऐसी कई चुनिंदा, लच्छेदार बातें कोमल को कहीं।
कोमल उस दिन पूरी तरह से पिघल गई।
श्रीकान्त ने भी फौरन महसूस किया कि उसका शरीर किसी समर्पिता की तरह शिथिल पड़ने लगा था। वह उसे फर्श पर लिटाने ही लगा था कि एकाएक कोमल छिटककर उससे अलग हो गई।
“क्या हुआ?”—श्रीकान्त हड़बड़ाया।
“कोई आ रहा है।”—वह त्रस्त भाव से बोली।
वासना के कुएं में गोते खाता श्रीकान्त तनिक उतराया तो उसे भी गली में पड़ते भारी कदमों की आवाज सुनाई दी।
“होगा कोई।”—वह कोमल से तनिक परे हटता बोला—“गुजर जाएगा।”
दोनों सांस रोके खड़े रहे।
कदमों की आवाज करीब आती जा रही थी।
जो आदमी गली में प्रकट हुआ, वह गुजर जाने की जगह वहीं, बनते मकान के सामने, ठिठक गया।
श्रीकान्त अन्धेरे में था, लेकिन गली में रोशनी थी। उसने देखा, वह उस इलाके का चौकीदार था।
“कौन है?”—चौकीदार तनिक उच्च स्वर में बोला।
कोमल का दम खुश्‍क हो गया। उसने पीछे को सरक कर सीधी खड़ी कुछ बल्लियों की ओट ले ली।
तभी चौकीदार के हाथ में थमी टॉर्च जली। उसने टॉर्च का प्रकाश भीतर की तरफ डाला और फिर पूछा—“कौन है रे भित्तर?”
अब चौकीदार से छुपा रहना असम्भव था। श्रीकान्त तुरन्त बाहर गली में आ गया।
“क्यों शोर मचा रहे हो, चौधरी?”—वह चौकीदार के पास जाकर बोला।
ऊपर से वह दिलेरी दिखा रहा था लेकिन भीतर से उसका दम निकला जा रहा था।
चौकीदार ने एक सरसरी निगाह उसके अस्त-व्यस्त कपड़ों पर और फक चेहरे पर डाली, फिर कठोर स्वर में बोला—“कौन हो तुम? और भीतर क्या कर रहे थे?”
“इधर आओ।”—श्रीकान्त बोला—“बताता हूं।”
“हियां ही कह जो कहना है।”
“अरे, आओ तो।”—श्रीकान्त जेब से एक बीस का नोट निकाल कर उसे दिखाता हुआ बोला।
चौकीदार दो-चार कदम उसके साथ चला और ठिठक गया। श्रीकान्त जान बूझकर उसके सामने यूं खड़ा हुआ कि मकान की तरफ चौकीदार की पीठ हो गई।
“क्या माजरा है?”—चौकीदार बोला।
“यह तो पकड़ो।”—श्रीकान्त जबरन उसकी मुट्ठी में नोट ठूंसता हुआ बोला—“माजरा भी बताता हूं।”
तभी पीछे कोमल मकान से बाहर निकली और सिर नीचे किए तीर की तरह गली में आगे उधर बढ़ गई जिधर उसका घर था।
पीछे आहट सुनकर चौकीदार ने घूमकर देखा।
“ओहो!”—वह बोला—“इब समझा मैं माजरा।”
श्रीकान्त खिसियाई सी हंसी हंसा।
“हियां ही रहे है?”
श्रीकान्त ने सहमति में सिर हिलाया।
“कहां?”
“कूचा चेलान में।”
“ऐसी एक पर्ची और निकाल।”
“क्या?”
“सुना नहीं। जल्दी कर ले नहीं तो मैं अभी उस छोरी के पिच्छे भाज के उसे धड़ पकडूं सूं।”
श्रीकान्त ने फौरन उसे बीस का एक और नोट थमा दिया।
“भाज जा इब।”—चौकीदार सन्तुष्ट भाव से बोला—“फिर की मति न करियो ऐसी हरकत। चल फूट।”
चौकीदार गली में आगे बढ़ गया।
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09-29-2020, 12:11 PM,
#36
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
अपनी तकदीर को कोसता, बीस रुपये की चपत का मातम मनाता और अगला मौका हाथ आने पर कोमल को हरगिज न छोड़ने का संकल्प लेता श्रीकान्त अपने घर की तरफ चल दिया।
बुधवार : दोपहरबाद
दो बजे ‘कोलाबा’ में रंगीला और राजन की मुलाकात होने तक उस रोज के अखबार का सांध्य संस्करण प्रकाशित हो चुका था और उसमें वे पायल की मौत की खबर पढ़ चुके थे। पायल की लाश तब बरामद हुई थी जब अगली सुबह घर की सफाई करने के लिए आने वाली नौकरानी वहां पहुंची थी। हत्प्राण के बारे में अखबार में स्पष्ट संकेत था कि वह किसी की दिलजोई का सामान थी।
सुर्खियों में ही यह भी लिखा गया था कि कत्ल के उस केस में एक आदमी पहले ही हिरासत में लिया जा चुका था।
उस बात को पढ़ते ही वे दोनों ही कूदकर इस नतीजे पर पहुंचे कि जरूर कौशल पकड़ा गया था। और हो ही कौन सकता था! कौशल ने खुद ही उन्हें बताया था कि पायल अब कर्जन रोड पर रहती थी। उसके कत्ल के चक्कर में और कौन हिरासत में लिया जा सकता था?
हकीकतन उन्हें कौशल की या उसके किसी बुरे अंजाम की फिक्र नहीं थी। फिक्र उन्हें अपनी थी। वे यह सोच-सोचकर हलकान हो रहे थे कि क्या कौशल की वजह से वे भी पुलिस के फेर में आ सकते थे?
“साला! गधा!”—राजन एकाएक दांत पीसता फुंफकारा—“एक रण्डी की खातिर अपना खाना खराब करने पर तुला है।”
“पहलवान जो ठहरा।”—रंगीला वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला—“अक्ल से उसका क्या काम?”
“गुरु, तुम्हारा क्या खयाल है। वह पुलिस को हमारे बारे में बता देगा?”
“उम्मीद तो नहीं। उसे मैं बहुत...बहुत समझा चुका हूं कि जो रिश्‍तेदारी हम तीनों में पैदा हो चुकी है, वह विश्‍वास से बनती है और विश्‍वास की हत्या से बिगड़ती है। लेकिन फिर भी उसके दिमाग के ऊंट का क्या कहा जा सकता है कि वह किस करवट बैठेगा। एक तो वह वैसे ही कोई बढ़िया आदमी नहीं, ऊपर से उस छोकरी के इश्‍क ने उसका दिमाग खराब किया हुआ है। क्या पता क्या करेगा वो!”
“हमने तो उसका कुछ बिगाड़ा नहीं है! हमारे खिलाफ क्यों जाएगा वो? अगर वह फंसा है तो अपनी गलती से फंसा है। उसे फंसाने में हमारा तो कोई हाथ नहीं!”
“वह तो ठीक हे लेकिन क्या पता पुलिस कैसे पेश आएगी उसके साथ। पुलिस के हथकण्डों से तो हम वाफिक नहीं न! उसकी जुबान खुलवाने के लिए पुलिस उसके साथ जोर जबरदस्ती भी तो कर सकती है!”
“पहलवान छोटी-मोटी जोर जबरदस्ती से टूट जाने वाला आदमी तो नहीं लगता!”
“लेकिन अगर कामिनी देवी के जवाहरात उसके पास से बरामद हो गए तो उसकी गिरफ्तारी का ताल्लुक सिर्फ उसकी माशूक के कत्ल से नहीं रह जाएगा। फिर उससे यह भी पूछा जाएगा कि बाकी के जवाहरात कहां थे? फिर उससे यह भी पूछा जाएगा कि फेथ डायमंड कहां था? जवाहरात का एक बटा तीन हिस्सा उसके पास से बरामद होना...खास तौर से तीन लड़ियों वाले मोतियों के हार की एक लड़ी जब उसके पास से बरामद होगी तो पुलिस फौरन समझ जाएगी कि आसिफ अली रोड वाली चोरी में तीन आदमी शामिल थे। हम दोनों भी गिरफ्तार हो गए और फेथ डायमंड फिर भी बरामद न हुआ तो पुलिस को किसी चौथे आदमी के दखल का भी सूत्र मिल जाएगा।”
“लेकिन फिलहाल तो पहलवान कत्ल के ही केस में फंसा हुआ है न? वह तो फंसा ही हुआ है, हमारी सलामती के लिए हो सकता है वह हमारा नाम अपनी जुबान पर न लाए। आखिर हम उसके यार हैं, कोई गैर तो नहीं!”
“ठीक है। लेकिन फिर भी हमें सावधान रहना होगा। हमें किसी भी क्षण भाग खड़े होने के लिए तैयार रहना होगा। अगर हम पकड़े गए तो बहुत दुरगत होगी हमारी।”
“मैं तो मत पकड़ा गया।”—राजन बोला।
उस क्षण वह उस रिवॉल्वर को याद कर रहा था जो कामिनी देवी की थी और जिसे उसने अपने घर में छुपाया हुआ था। भविष्य में उसने उस रिवॉल्वर को हर वक्त अपने साथ रखने का फैसला कर लिया।
कौशल उस वक्त ‘कोलाबा’ में बैठे अपने दोनों साथियों से केवल एक फर्लांग दूर कनाट प्लेस के सैन्ट्रल पार्क में बैठा शाम का अखबार पढ़ रहा था। एक आदमी हिरासत में लिया जा चुका था, यह पढ़कर वह बहुत खुश हो रहा था। अपने साथियों की तरह उसे उस आदमी के बारे में कोई धोखा नहीं था। वह खूब जानता था कि वह आदमी दारा था। आखिर उसी ने दारा की गिरफ्तारी का सामान किया था।
‘अच्छी हुई साले के साथ’—वह मन-ही-मन बोला—‘आया बड़ा दादा। चला था मेरी माशूक छीनने। चला था मेरा माल झपटने। अब देखता हूं कैसे बचता है पुलिस के चंगुल से!’
पिछले चन्द दिनों में जिन्दगी की बाबत कौशल का नजरिया बहुत बदल गया था। पहले वह आदतन, नेकनीयत और गलत कामों की तरफ तवज्जो न देने वाला आदमी था लेकिन रंगीला की शागिर्दी में एक अपराध कर चुकने के बाद दूसरा अपराध करना उसे कोई भारी काम नहीं लगा था। कामिनी देवी का गला तो उसने इत्तफाक से दबा दिया था क्योंकि वक्त की वही जरूरत थी, लेकिन पिछली रात पायल का गला जान-बूझकर घोंटते समय भी उसका दिल नहीं लरजा था। उस वक्त उसने इंसाफ किया था, अपने साथ ज्यादती करने वालों से उसने बदला लिया था।
फिर दोबारा उसके जेहन पर दारा का अक्स उभरा।
यह लाजमी था कि गिरफ्तार होते ही दारा ने कौशल के बारे में शोर मचाना आरम्भ कर दिया होगा। उसने पुलिस को यही कहना था कि कौशल ने पायल का कत्ल किया था, खुद उस पर आक्रमण करके उसकी जेब से चार हजार रुपया निकाला था और फिर उसे पायल के कत्ल के इलजाम में फंसाने की कोशिश की थी। पुलिस को उसकी बात पर विश्‍वास आता या न आता लेकिन पुलिस ने कौशल का बयान लेने के लिए फौरन उसकी तलाश करवानी जरूर आरम्भ कर देनी थी। चाहे वह खानापूरी ही होती लेकिन दारा के बार-बार कौशल के नाम की दुहाई देने पर उसको एक बार तो पुलिस के सामने पेश होना ही पड़ना था।
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09-29-2020, 12:11 PM,
#37
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
अब सवाल यह पैदा होता था कि अपनी गरदन बचाने के लिए दारा किस हद तक पुलिस के सामने कौशल के बारे में अपनी जुबान खोल सकता था? वह पुलिस को यह तो बताने का हौसला कर नहीं सकता था कि उसके कहने पर उसके आदमियों ने कामिनी देवी के जवाहरात में कौशल का हिस्सा उससे छीना था क्योंकि ऐसा करने से उसके वे चार आदमी भी फंस सकते थे जिन्होंने कि कौशल पर हमला करके उसे लूटा था। दारा कितना ही बड़ा दादा क्यों नहीं था, अगर वह नाहक अपने चार आदमियों को फंसाता तो वे चारों शर्तिया उसके खिलाफ हो जाते और फिर पता नहीं दारा की कैसी-कैसी पोलें खोल डालते।
वह पुलिस को उस हीरे की अंगूठी के बारे में बता सकता था जो कौशल ने पायल को देने की कोशिश की थी।
लेकिन वह अंगूठी तो अब कौशल के पास थी नहीं। वह यही कैसे साबित कर सकता था कि उसके पास ऐसी कोई अंगूठी कभी थी? अंगूठी पायल ने देखी थी लेकिन वह मर चुकी थी।
उसके वे कपड़े तक चोरी हो चुके थे जो वह कामिनी देवी के यहां चोरी वाली रात को पहने था।
उन दोनों ही अपराधों से उसका रिश्‍ता साबित कर सकने वाली किसी मामूली सी बात में भी तो उसका दखल नहीं रहा था।
पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी।
उसने एक चैन की सांस ली। उसके होंठों पर एक सन्तुष्टिपूर्ण मुस्कराहट उभरी।
पिछली रात को जो लड़की उसे मिली थी, उसके ठिकाने से वह अभी कोई आधा घण्टा पहले ही निकला था। उसने उसे पचास रुपये और दिए थे तो वह तब तक उसे अपने घर में रखने के लिए मान गई थी।
उस लड़की के घर में उसने एक निहायत जरूरी काम यह किया था कि उसने अपने दोनों हाथों की उंगलियों के नाखून खूब बारीक काट लिए थे और उंगलियों के अगले पोरों को रगड़-रगड़ कर धोया था।
अब उसके नाखूनों के नीचे से नुची हुई चमड़ी के भग्नावशेष बरामद नहीं हो सकते थे।
अब उसके सामने जो सबसे अहम सवाल था, वह यह था कि वह अब जाए तो कहां जाए?
उसे अपने पहलवानी के जमाने के एक दोस्त का खयाल आया।
उसका वह पहलवान दोस्त शाहदरा में रहता था। कौशल को उम्मीद थी कि कुछ दिन वह उसे अपने पास रख सकता था और बाद में वह उसे अपने आसपास कहीं कोई कमरा दिलवा सकता था।
उसने अखाड़े में जाने का फैसला किया।
वहां या तो उसे उसका वह दोस्त ही मिल सकता था और या फिर कोई और ऐसा बन्दा मिल सकता था जिसे कि उसका शाहदरा का पता मालूम होता।
पार्क से निकल कर वह बस स्टैण्ड पर पहुंचा। एक बस पर सवार होकर वह इन्टरस्टेट बस टर्मिनल पहुंचा और फिर वहां से पैदल चलता जमना के किनारे पर स्थित मास्टर चन्दगीराम की व्यायामशाला की ओर बढ़ा।
व्यायामशाला के बाहर एक चबूतरे पर दो आदमी बैठे थे। उनमें से एक को कौशल पहचानता था। वह एक मालशी था जो पहलवानों की मालिश करता था और वहीं पड़ा रहता था।
दूसरे आदमी की कौशल ने कभी शक्ल नहीं देखी थी। वह एक कठोर चेहरे वाला व्यक्ति था जो एक सूती पतलून और एक ढीला ढाला सा स्वीटर पहने था। उसके बेहद मोटे सोल वाले भारी जूतों पर निगाह पड़ने पर सूरत तनिक सकपकाया।
उसके वहां पहुंचते ही मालशी ने स्वीटर वाले को कोहनी मारी और स्वयं परे देखने लगा।
स्वीटर वाला चबूतरे पर से उठा।
उसकी कौशल से निगाह मिलीं।
कौशल हिचकिचाता-सा ठिठका खड़ा रहा।
फिर स्वीटर वाला लम्बे डग भरता उसके समीप पहुंचा।
“तुम्हारा नाम कौशल है?”—वह बोला।
“हां।”—कौशल बोला।
“कौशलसिंह डबराल?”
“हां। क्या बात है? कौन हो तुम?”
“पुलिस।”
“पुलिस?”
“हां। एक केस के सिलसिले में तुम्हारे बयान की जरूरत है। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।”
“कहां?”
“हैडक्वार्टर।”
“वह कहां हुआ?”
सिपाही ने बताया।
“वहां क्यों?”
“मुझे नहीं पता। मुझे तुम्हें वहीं लाने का हुक्म हुआ है।”
“तुम्हें मालूम था कि मैं यहां आने वाला था?”
“नहीं।”
“तो?”
“मेरी ड्यूटी यहां इस उम्मीद में लगाई गई थी कि शायद तुम यहां आओ। तुम्हारी और भी कई जगह तलाश हो रही है।”
“ओह!”
“चलो।”
“चौधरी साहब, मेरा किसी केस से क्या मतलब?”
“मुझे नहीं मालूम। यह साहब लोग बताएंगे। अब चलो।”
कौशल उसके साथ हो लिया।
एक बस में सवार होकर वे इन्द्रप्रस्थ एस्टेट में स्थित पुलिस हैडक्वार्टर की बहुमंजिला इमारत तक पहुंचे।
अपने इस विश्‍वास के बावजूद कि उसे कोई खतरा नहीं था, कौशल एकाएक व्याकुल होने लगा था। यह बात उस पर भारी मनोवैज्ञानिक दबाव डाल रही थी कि उसे किसी पुलिस चौकी या थाने तलब नहीं किया गया था बल्कि उसे पुलिस हैडक्वार्टर ले जाया जा रहा था।
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09-29-2020, 12:11 PM,
#38
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
जरूर वहां उसे पुलिस के बड़े अफसरान के सामने पेश किया जाने वाला था।
लेकिन—उसने अपने-आपको तसल्ली देने की कोशिश की—जब उसके खिलाफ कुछ साबित ही नहीं किया जा सकता था तो बड़े अफसरान भी उसका क्या बिगाड़ सकते थे? उसे अपनी बेगुनाही साबित करने की जरूरत नहीं थी। उन लोगों ने उसे गुनहगार साबित करके दिखाना था जो कि उसे पूरा विश्‍वास था कि वे नहीं कर सकते थे।
सिपाही ने उसे लॉबी में ही बैठे एक एएसआई के सामने पेश किया।
एएसआई ने दोनों को बैठने के लिए कहा और स्वयं उठ कर कहीं चला गया।
पांच मिनट बाद वह वापिस लौटा।
“आओ।”—वह कौशल से बोला।
कौशल उसके साथ हो लिया।
लिफ्ट पर सवार होकर वे पांचवी मंजिल पर पहुंचे।
वहां एक बड़े सलीके से सजे रिसैप्शननुमा हाल में उसे ले जाया गया।
एएसआई एक बन्द दरवाजे के बाहर खड़े एक हवलदार से बात करने लगा। हवलदार ने सहमति में सिर हिलाया और बन्द दरवाजा खोलकर भीतर घुस गया।
कौशल का गला सूखने लगा।
रिसैप्शन हाल के बाहर उसने एक नेमप्लेट लगी देखी थी जिस पर असिस्टेंट कमिश्‍नर लिखा था।
क्या इतना बड़ा साहब उसका बयान लेने वाला था!
एएसआई फिर कौशल के पास आ खड़ा हुआ।
हवलदार बन्द कमरे से बाहर निकला। उसने एएसआई को संकेत किया।
एएसआई ने कौशल की बांह पकड़ कर उस आगे धकेल दिया।
कौशल झिझकता हुआ आगे बढ़ा और हवलदार द्वारा दिखाये दरवाजे से भीतर दाखिल हो गया।
अब उसे अपनी छाती पर बनी खरोंचों की फिक्र होने लगी थी। क्या उसे सारे कपड़े उतारे जाने के लिए कहा जा सकता था?
नहीं—उसके विवेक ने जवाब दिया—खरोंचें गला घोंटने वाले के हाथों पर, कलाइयों पर, चेहरे पर और बड़ी हद गले और गर्दन पर हो सकती थीं और शरीर के उन अंगों का मुआयना कपड़े उतारे बिना भी हो सकता था।
लेकिन फिर भी एकाएक उसके पेट में फुलझड़ियां सी फूटने लगी थीं और चेहरा तपने लगा था।
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09-29-2020, 12:11 PM,
#39
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
भीतर एक विशाल मेज लगी हुई थी, जिसके पीछे शानदार वर्दी पहने एक रोबदाब वाला पुलिसिया बैठा था। उसके दाएं पहलू में दो और पुलिसिये बैठे थे जिनकी वर्दी के तीन सितारे बता रहे थे कि वे इन्स्पेक्टर थे। कौशल पुलिस वालों के रुतबे को सिर्फ तीन फीतियों और तीन सितारों तक समझता था। मेज के पीछे बैठे आदमी की वर्दी के कील कांटे और ही तरह के थे। लेकिन जिस अदब के साथ वे दोनों इन्स्पेक्टर तनकर कुर्सियों पर बैठे थे, उससे साफ जाहिर होता था कि मेज के पीछे वाला आदमी उनसे बड़ा अधिकारी था।
“आओ!”—बड़ा अधिकारी उसे देख कर मुस्कराता हुआ बोला—“बैठो।”
कौशल झिझकता हुआ आगे बढ़ा और उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।
उसके पीछे कमरे का दरवाजा बन्द हो गया।
“तुम्हारा नाम कौशल है?”—बड़ा साहब बोला—“कौशलसिंह डबराल?”
“जी, साहब।”—कौशल बड़े अदब से बोला।
“मुझे भजनलाल कहते हैं। मैं यहां असिस्टैंट कमिश्‍नर ऑफ पुलिस होता हूं।”
“जी, साहब।”
“ये इन्स्पेक्टर चतुर्वेदी हैं।”—उसने एक इन्स्पेक्टर की तरफ इशारा किया—“ये दरियागंज थाने से आए हैं। आसिफ अली रोड, जहां कामिनी देवी नामक धनाढ्य महिला का कत्ल हुआ था, इनके इलाके में पड़ता है और ये कनाट प्लेस थाने के इन्स्पेक्टर भूपसिंह हैं। कल रात कर्जन रोड के एक फ्लैट में पायल नाम की एक नौजवान लड़की का कत्ल हो गया था। अखबार में खबर तो पढ़ी ही होगी तुमने?”
“जी, साहब! पढ़ी थी।”
“हम तुमसे चन्द सवाल पूछना चाहते हैं। तुम्हें कोई एतराज?”
कौशल हिचकिचाया।
“एक बेगुनाह आदमी को”—भजनलाल उसे घूरता हुआ बोला—“पुलिस के चन्द सवालों का जवाब देने से एतराज नहीं होना चाहिए। एक नेक शहरी को तो उल्टे पुलिस की मदद करनी चाहिए।”
“आप कुछ भी पूछिए, साहब।”—कौशल हड़बड़ा कर बोला—“मुझे कोई एतराज नहीं।”
“गुड! अपनी जेबों का सामान निकाल कर मेज पर रख दो।”
“जी!”
“अपनी जेबों को मेज पर खाली करो।”
कौशल ने जेबों में मौजूद एक एक चीज निकाल कर मेज पर रखनी आरम्भ कर दी।
पीतल का मुक्का मेज पर रखते समय उसका दिल लरज गया। इतने बखेड़े के बाद वह मुक्का उसे अपने पास नहीं रखे रहना चाहिए था।
“बस!”—सौ सौ के नोटों के पुलन्दे समेत सब सामान जब मेज पर पहुंच चुका तो भजनलाल बोला।
“जी, साहब!”
भजनलाल ने इन्स्पेक्टर चतुर्वेदी को संकेत किया।
उसने उठकर खुद कौशल की सारी जेबें टटोलीं। उसने उसकी जुर्राबों के भीतर तक झांका। फिर उसने उसके दोनों हाथों का कोहनियों तक तथा गरदन और गले का मुआयना किया।
कौशल ने इस बात से बड़ी राहत महसूस की कि उसे छाती नंगी करके दिखाने के लिए नहीं कहा गया था।
“अपने हाथों के नाखून।”—इन्सपेक्टर चतुर्वेदी बोला—“तुमने आज ही काटे मालूम होते हैं।”
“जी, साहब।”—कौशल बोला।
“क्यों?”
“क्या क्यों?”—कौशल तनिक हड़बड़ाए स्वर में बोला।
“तुमने नाखून आज ही क्यों काटे?”
“साहब, नाखून कभी तो मैंने काटने ही थे! मेरी उनकी तरफ आज तवज्जो गई, मैंने आज काट दिए।”
“बस! यही वजह है?”
“जी हां।”
“और कोई वजह नहीं?”
“और क्या वजह होगी, साहब?”
“हूं।”
चतुर्वेदी वापिस अपनी कुर्सी पर जा बैठा।
कुछ क्षण खामोशी रही।
“तुम रहते कहां हो?”—अन्त में भजनलाल ने खामोशी भंग की।
“कहीं भी नहीं।”—कौशल बोला—“पहले मैं कूचा मीर आशिक में अपने एक दोस्त के साथ रहता था लेकिन कल रात को मैंने वह ठिकाना छोड़ दिया था।”
“क्यों?”
“मैं यह शहर छोड़कर जा रहा था।”
“वह क्यों?”
“क्योंकि मैं इस शहर से तंग आ चुका हूं।”
“तो फिर गए क्यों नहीं?”
“क्योंकि कल रात स्टेशन पर से मेरा सामान चोरी हो गया था। मैं बुकिंग से टिकट ले रहा था कि कोई मेरे पहलू में रखा मेरा सूटकेस उठा कर ले गया। मेरे सब कपड़े लत्ते और जरूरत का सामान उसी सूटकेस में था।”
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09-29-2020, 12:11 PM,
#40
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
“च-च-च। रेलवे स्टेशनों पर सामान की चोरी की वारदातें बहुत बढ़ती जा रही हैं। तुमने चोरी की रिपोर्ट लिखाई?”
“नहीं, साहब।”
“क्यों?”
“ऐसे चोरी गया माल पुलिस कभी बरामद तो कर नहीं पाती, साहब!”
“कभी कभी कर पाती है।”
कौशल चुप रहा।
“तुम रेल से जा कहां रहे थे?”
“हिसार! मैं हिसार का रहने वाला हूं।”
“तो फिर गए क्यों नहीं?”
“मेरा सामान जो चोरी चला गया था! खाली हाथ सर्दियों की रात का सफर मुझे परेशान कर सकता था।”
“हूं! फिर स्टेशन से तुम अपने कूचा मीर आशिक वाले ठिकाने पर वापिस चले गए थे?”
“नहीं, साहब। वह ठिकाना मैं हमेशा के लिए छोड़ चुका हूं।”
“तो फिर कहां गए तुम?”
कौशल हिचकिचाया।
“पिछली रात तुमने कहां गुजारी थी, कौशल सिंह?”
“पिछली रात मैं एक औरत के साथ था।”
“कौन औरत?”
“वह मेरी कोई जानकार नहीं थी। यूं ही राह चलते मिल गई थी।”
“ओह! कोई कालगर्ल?”
कौशल ने यूं सिर नीचा किए हामी भरी, जैसे वह बात अपनी जुबान पर लाने में उसे बहुत शर्म आ रही थी।
“मिली कहां वह तुम्हें?”
“स्टेशन के बाहर ही मिल गई थी। मैं रात किसी होटल में गुजारने की नीयत से फतहपुरी की तरफ जा रहा था कि वह मुझसे टकरा गई थी।”
“वह तुम्हें अपने ठिकाने पर ले गई थी?”
“हां, साहब।”
“कहां है उसका ठिकाना?”
“मुझे मालूम नहीं।”
भजनलाल ने उसे घूरकर देखा।
“साहब वह मुझे नावल्टी सिनेमा के पीछे की गलियो में दाएं-बाएं घुमाती कहीं ले गई थी। मैंने रास्ते की तरफ ध्यान नहीं दिया था। वैसे भी उस इलाके की मुझे वाकफियत नहीं है।”
“लड़की का नाम क्या था?”
“मुझे उसने अपना नाम कमला बताया था।”
“जो कि जरूरी नहीं कि उसका असली नाम हो!”
“जी, साहब।”
“कब मिली थी वह तुम्हें?”
“रात कोई साढ़े दस बजे के करीब।”
“रात भर तुम उसके साथ रहे थे?”
“जी हां। रात भी और अब तक का दिन भी मैंने उसी के यहां गुजारा था।”
“हूं। इस लड़की कमला का हुलिया बयान कर सकते हो?”
“हां, साहब। वह खुले खुले हाथ पांव वाली कोई पच्चीस-छब्बीस साल की लड़की थी। उसका रंग सांवला था, नयन-नक्श अच्छे थे, बाल कटे हुए थे, गले में वह एक सोने की जंजीर पहने थी, माथे पर बिन्दी लगाती थी। वह भूरे रंग की शलवार कमीज और तकरीबन उसी रंग का पुलोवर पहने थी।”
“तुम्हें तो बहुत बातें याद हैं उसके बारे में!”
“साहब, आखिर मैंने एक रात और आधा दिन उसके साथ गुजारा था।”
“अगर तुम्हारी अपनी भलाई की खातिर तुम्हें यह साबित करने की जरूरत पड़ जाए कि कल रात तुम उस लड़की के साथ थे, कहीं और नहीं थे, तो क्या साबित कर सकोगे?”
“मैं कैसे साबित कर सकूंगा, साहब? मैं तो जानता नहीं उस लड़की को। हां, इत्तफाक से वह फिर टकरा जाए मेरे से तो बात दूसरी है।”
“अब तुम्हारा हिसार जाने का इरादा नहीं है?”
“फिलहाल तो नहीं है, साहब।”
“अब क्या इरादा है?”
“पहले तो रहने की कोई जगह ही तलाश करने का इरादा है। मास्टर चन्दगी राम की व्यायामशाला में भी मैं इसी चक्कर में गया था। मेरा एक दोस्त शाहदरा रहता है जिसके मुझे वहां मिलने की उम्मीद थी।”
“हूं। कौशल सिंह!”
“जी, साहब।”
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