06-02-2020, 02:02 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
ऐसा नहीं था कि डॉली को अनुमान नहीं था या वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है लेकिन राज के हाथों की रेंगती हुई उंगलियां उसे सुखद अनुभव की ओर ले जा रही थीं।
उस सुखद एहसास की अनुभूति से वह आनन्दित हो रही थी। ब्लाउज का पहला हुक खुला...फिर दूसर...फिर तीसरा। डॉली के नेत्र बंद हो गए। ब्लाउज के दोनों पट ढीले होकर अलग हो गए। काले रंग की चोली की बैलट नजर आने लगी।
राज के हाथ की उंगलियों ने चोली की बैल्ट के हुक भी निकाल दिए।
वक्ष के समूचे बंधन शिथिल पड़ गए। बंधन मुक्त होते ही डॉली के मुख से गहरी सांस निकली। उस गहरी सांस में कामुक कराह का भी संगम था। वह एकाएक ही पलटकर राज के अॅक से लिपट गई। अधरों से अधर टकराए। गर्म सांसें घुलने लगीं। धमनियों में रेंगने वाला खून ज्वार-भाटे की लहरों की तरह मचलने लगा। डॉली ने राज के जिस्म से एक-एक वस्त्र नोंचकर अलग कर दिया। फिर नग्न स्निग्ध बाहें आपस में गुंथ कर स्पर्शित हुई तो एकाएक ही वासना का ज्वर उमड़ पड़ा। और फिर! फिर कठोर अहसास ने डॉली के अंदर जो आग लगाई तो उसके मुख से रह-रहकर कामुक सीत्कार उभरने लगे। बदनतःोड़ ढंग से वह राज को सहयोग करने लगी। यहां तक कि दोनों की सांसें उफनने लगीं। बुरी तरह हांफने लगे। तत्पश्चात् अंत में सांसों का बांध टूट गया। दोनों थककर चूर एक-दूसरे की बांहों में गुंथे हुए देर तक अपनी सांसों को संयत करने का प्रयास करते रहे।
शीघ्र ही निद्रा ने उन्हें अपनी बांहों में दबोच लिया। वे उसी प्रकार गुंथे हुए गहरी नींद में सो गए।
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अगले रोज।
सुबह-सवेरे ही जय आ धमका।
"कामरेड की हालत कैसी है?" राज ने सिगरेट सुलगाते हुए उससे पूछा।
"पहले से तो बहुत ठीक है। अपुन कामरेड का वास्ते डाक्टर का इंतजाम किएला है बाप...क्या मस्त डाक्टर है। एकज इंजेकशन में कामरेड सीधा होएला है...।" जय उत्साहित स्वर में बोला।
"घाव वगैरह...।"
"बरोबर हैं...सब ठीक हो जाएंगा। फिकर नेई करने का...क्या!"
"हां...फिक्र तो नहीं करने का लेकिन उसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। गरीब को आज के वक्त में जो तकलीफ हासिल हुई है वो महज हम लोगों की...बल्कि मेरी वजह से। न मैं उसे जोश दिलाकर अखबार में सच्चाई छापने को बोलता...न वो छापता और न उसके सामने इतनी बड़ी मुसीबत पेश आती।"
"ऐसा काय कू सोचता बाप...?"
"सच्चाई से मुंह नहीं मेड़ना चाहिए...जो सच है वो सच है। उसका जो भी अहित हुआ है...मेरी वजह से हुआ है। बेचारे की जान पर बन आयी थी। रंजीत सावन्त के आदमियों ने उसे कष्ट ही दिया था अगर वक्त पर मैं पहुंच न गया होता।"
"बरोबर बोलता बाप।"
"मैं उससे मिलना चाहता हूं।"
"कभी भी मिलने को सकता...बस हुकुम करने का अपुन कू...अपुन फौरन ले चलेगा।"
इसी बीच...।
डॉली कॉफी बनाकर ले आयी। उसने कॉफी के मग टेबल पर रख दिए और ट्रे टेबल के बेस में। वह उन दोनों के बीच में बैठ गई। उसे मालूम था कि कोई भी ताजातरीन खबर जय से ही हासिल हो सकती थी। इसीलिए वह उनके करीब बैठकर उनका वार्तालाप सुनने लगी।
"कामरेड को बाहर निकलने मत देना।" राज ने सिगरेट की राख ऐश-ट्रे में झाड़ते हुए कहा
___ "पन काय कू?" जय ने आश्चर्यमिश्रित दृष्टि से उसकी ओर देखा।
"इसलिए कि उसके लिए बाहर खतरा होगा। वह कलम का सिपाही है...तलवार से नहीं लड़ सकता।"
"एक दो पे तो भारी पड़ जाएगा।"
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06-02-2020, 02:03 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
डॉली कुछ कहना चाहती थी किन्तु बाद में वह खामोश हो गई। वह जान रही थी कि राज जो भी कर रहा है, उसके भाई की खोज की बाबत ही कर रहा है। ऐसे में उसे किसी बात पर टोकना उचित न होगा। उसे इसी बात की खुशी थी कि मुसीबत की उस घड़ी में एक मददगार उसके साथ था...ऐसी मददगार जो जान की बाजी लगाने से कतई हिचकिचाता नहीं था। उसकी जगह कोई भी दूसरा होता तो इतने बड़े खतरे को सामने देख कब का भाग खड़ा होता। बल्कि...सावन्त बन्धुओं का नाम ही उसके लिए काफी होता और वह डॉली का साथ छोड़कर एक किनारे हो जाता।
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गहरे नीले रंग की एस्टीम तेज रफ्तार से चौड़ी सड़क को रौंदती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी। एस्टीम स्वयं जय ड्राइव कर रहा था। उसके बराबर मैं बैठा राज सिगरेट फूंकने में व्यस्त था।
कार बोरीवली के घनी बस्ती वाले क्षेत्र की ओर बढ रही थी।
" ऐन उसके ठिकाने पर पहुंचने के बाद ये कहने की जरूरतें नहीं है कि ये जोगलेकर का घर है...क्या समझा।" राज उसे समझाता हुआ बोला।
"तो..."
"ठिकाना आने से पहले ही बोल देना।"
"बरोबर।"
घनी आबादी वाला क्षेत्र आ जाने की वजह से एस्टीम की गति अब काफी कम हो गई थी। जय को गति कम करने पर मजबूर हो जाना पड़ा था। थोड़ी देर बाद एक चौड़ी गली कै मोड़ से पहले ही जय ने एस्टीम को किनारे पार्क करके उसको इंजन बंद कर दिया।
राज न सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछालने के बाद उसकी ओर देखा।
"क्या हुआ...जोगलेकर का ठिकाना आ गया क्या...।"
"हां...।" जय ने कार से बाहर निकलते हुए कहा-"आ गया ठिकाना।"
"किधर है।"
"अभी दूर से दिखाना पड़ेगा। नेई तो तुम बोलेगा ऐन सिर पर पहुंच को बोला।"
"होशियारी की बात की।"
राज मुस्कराता हुआ एस्टीम से बाहर आ गया। जय पहले ही बाहर आ चुका था। वह पेंट की जेब में हाथ डालकर इस प्रकार इधर-उधर देख रहा था मानो बाहर से आया हुआ एकदम नया आदमी हो।
"आगे चले...।" राज के बाहर आने पर उसने सहज स्वर में पूछा।
"हां...चल।"
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वह आगे-आगे चलने लगा। राज उससे एक कदम पीछे रहा। थोड़ी दूर निकलने के बाद मोड़ क्रॉस हुआ और मोड़ क्रॉस होने के बाद सामने ही एक बड़ी-सी चाल नजर आने लगी। उस चाल का क्षेत्रफल इतना बड़ा था कि उसमें कम से कम चार सौ आदमी आ सकते थे। जय ने केवल आ संखों से उस चाल की ओर संकेत करते हुए कहा
"बाप...वो चाल देखेला है...।"
___"वही है जोगलेकर का ठिकाना...।" राज ने उत्सुकतावश पूछा।
"नेई...वो जोगलेकर का ठिकाना नेई।"
"फिर...।"
"उस चाल का पीछ एक पुराना टाइप का मकान है। एकदम फटेला सा...उजड़ा रईस जैसा स्टाइल में।"
"वो है जोगलेकर का ठिकाना।" राज ने सामने देखते हुए जय से सवाल किया।
" हां..अपुन लोग जभी उधर से गुजरेगा तब तुम अच्छे से देख लेना उधर...बरोबर।"
दोनों धीमी गति से चलते हुए आगे बढ़ते रहे। चाल की सीमा समाप्त हो जाने के बाद राज ने पूर्व निर्देशित दिशा की ओर देखा। वर्णित मकान सचमुच जीर्ण अवस्था में था। मकान के आसपास किसी प्रकार अतिक्रमण नहीं था और न ही किसी ने आसपास किसी प्रकार का अपना कोई काम फैलाने की कोशिश की थी। मकान के दरवाजे बंद थे। गली के दूसरे छोर पर चाय का छोटा-सा होटल था।
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06-02-2020, 02:04 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
"ले, फोन कर और जिस आदमी को भी इधर फिट करे वो होशियार होना चाहिए। मैंने एक ही नजर में समझ लिया है कि इस जगह चालाक आदमी की ही जरूरत है अगर आदमी चालाक नहीं होगा तो धोखा खा जाएगा...समझा।"
"समझ गया। अपुन इधर चालाक आदमी ही फिट करेंगा...एकदम श्याना। क्या।"
"उसने जोगलेकर के लड़के की सारे दिन की गतिविधियां नोट करनी हैं। वह कहां-कहां...किस-किस के साथ जाता है। स्कूल उसे कौन छोड़ने जाता है और उसका स्कूल कब से कब खुलता है।"
"इस काम के वास्ते एकदम फिट आदमी है अपुन का पास...।"
___"उसे फौरन काम पे लगा डाल...क्या।" राज ने एक बार फिर उसके स्वर की नकल उतारी।
जय उसकी ओर देखकर मुस्कराया।
फिर वह एक हाथ से मोबाइल पर नम्बर पुश करता हुआ कार आगे बढ़ाने का प्रयास करने लगा।
"गाड़ी खड़ी रहने दे। यहां आसपास कोई नहीं है। आराम से बात कर ले।"
जय ने एक साथ दो काम करने का प्रयास छोड़ दिया। कार जहां की तहां खड़ी रहने दी और मोबाइल पर सम्पर्क स्थापित होने के बाद वार्ता आरंभ कर दी।
शीघ्र ही उसकी बात समाप्त हो गई।
"आदेश दे दिया...।" राज ने अपनी ओर उसके द्वारा बढ़ाए गए मोबाइल फोन को ग्रहण करते हुए पूछा।"
"दे दिया बाप...दे दिया।" जय कार स्टार्ट करता हुआ बोला।
"कितनी देर में पहुंच जाएगा वो इधर...।"
"एक क्लाक का अंदर-अंदर में पहुंच जाएंगा। फिकर नेई करने का...क्या।"
"चल आगे बढ़ा।"
जय ने एस्टीम को धीरे-से आगे बढ़ा दिया।
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लड़के की उम्र आठ या नौ साल की थी। उस कमरे में ले जाए जाने के बाद वह बुरी तरह सहम गया था।
राज ने पहले से जय द्वारा तैयार की गई औरत को उसे बहलाने के लिए उसके पास भेज दिया। टॉफी बिस्कट आदि की भी व्यवस्था बना दी गई।
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