Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
11-30-2020, 12:48 PM,
#51
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
तेज रफ्तार से कार दौड़ाते राज को शहरी सीमा में पहुंचते ही एहसास हो गया कि लीना अब हाथ नहीं आ सकेगी। उसे कार लेकर भागे काफी देर हो गई थी।
मौजूदा हालात में ऐसी किसी भी जगह वापस उसने नहीं जाना था जहां वह रहती या जाती रही थी।
उसकी तलाश में जाने की बजाय बाहर मिसेज सैनी से मिलने चला गया।
*********
हवेली के एक कमरे में रोशनी थी।
दस्तक के जवाब में सेफ्टी चेन के सहारे दरवाजा खोला गया। मिसेज सैनी ने झिर्री से बाहर देखा।
-“कौन है?”
-”राज।”
-“ओह, याद आया......मोटल में मिले थे।”
-“मैं वहीं से आ रहा हूं। आपके पति के साथ दुर्घटना हो गई है।”
-“कार एक्सीडेंट?”
-“नहीं। शूटिंग एक्सीडेंट।”
-“सतीश? क्या उसकी हालत सीरियस है?”
-“बेहद सीरियस। मैं अंदर आ सकता हूं?”
उसने चेन टटोली। उसका हुक निकालकर पीछे हट गई।
राज भीतर दाखिल हुआ।
वह लो कट गले के डिजाइन वाला गाउन पहने थी। उसकी आंखें तनिक सूजी सी थीं। रोने की वजह से या न सो पाने के कारण।
-“मैं सो नहीं सकी। मेरा मन कह रहा था कोई भारी गड़बड़ होने वाली है।” वह दरवाजा बंद करके पलटी तो उसके चेहरे पर निगाहें जम गईं- “तुम्हें भी चोट आई है।”
-“फिलहाल मेरी फिक्र मत करो। मैं सही सलामत हूं।”
-“सतीश कितनी बुरी तरह जख्मी हुआ है?”
-“जितनी बुरी तरह मुमकिन है।”
-“मुझे उसके पास जाना चाहिए।” ऊपर की मंजिल पर जाने वाली सीढ़ियों की ओर बढ़ी फिर पलटकर पूछा- “तुम्हारा मतलब है वह मर गया?”
-“उसका मर्डर किया गया था, मैसेज सैनी। तुम्हें अब वहां नहीं जाना चाहिए। वे लोग आने वाले होंगे।
-“कौन लोग?”
-“पुलिस। इन्सपैक्टर चौधरी तुमसे पूछताछ जरूर करेगा। मुझे भी कुछ पूछना है।”
वह अनिश्चित सी खुले दरवाजे से गुजरकर लिविंग रूम में पहुंची।
राज ने भी उसका अनुकरण किया।
सोफे की साइड से टिकी खड़ी मिसेज सैनी ने अपनी कनपटियां सहलाईं।
-“वह कैसे मारा गया?”
-“शूट किया गया था। मोटल के ऑफिस में कोई घंटा भर पहले।”
-“तुम्हारा मतलब है, मैं मर्डर सस्पेक्ट हूं?”
-“मैं ऐसा नहीं समझता।”
-“क्यों?”
-“शायद इसलिए कि मुझे तुम्हारा चेहरा पसंद है।”
-“लेकिन मुझे अपना चेहरा पसंद नहीं है। कोई और बेहतर वजह बताओ।”
-“ओ के। क्या तुमने उसे शूट किया था?”
-“नहीं।” उसके शुष्क स्वर में दृढ़ता थी- “लेकिन यह समझने की गलती भी मत करना कि मुझे कोई रंज या दुख है। मैं सिर्फ कनफ्यूज्ड हूं। समझ में नहीं आता क्या महसूस करूं। वैसे ज्यादा अहसासात मेरे अंदर बचे भी नहीं है। मैं यह भी नहीं कह सकती कि मुझे खेद है। सतीश अच्छा आदमी नहीं था। और यह शायद उसके लिहाज से ठीक ही था क्योंकि उसके विचार से मैं भी अच्छी औरत नहीं हूं।”
-“पुलिस के सामने ऐसी बातों से काम नहीं चलेगा। वे लोग सीधी और साफ बातें पसंद करते हैं। उनका सबसे पहला शक तुम पर जाएगा। और तुम्हें एलीबी की जरूरत पड़ेगी। क्या तुम्हारे पास एलीबी है?”
-“किस वक्त की?”
-“पिछले एक डेढ़ घंटे की।”
“मैं यहां घर में ही थी।”
-“आपके साथ कोई नहीं था?”
-“नहीं। करीब घंटे भर से मैं यहां सोफे पर ही पड़ी हुई थी। उससे पहले करीब आधे घंटे तक दरवाजे में अपने मोती ढूंढती रही थी। माला टूट जाने की वजह से वहां गिर गए थे। उन सबको उठाकर इकट्ठा करने के बाद मैंने फेंक दिया। यह मेरा पागलपन था न?” वह पुन: अपनी कनपटियां सहलाने लगी- “सतीश कहा करता था, मैं पागल हूं। तुम समझते हो वह ठीक कहता था?”
-“मेरे विचार से तुम एक अच्छी औरत हो जिसे बहुत ज्यादा दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है। मुझे खेद है अभी और भी सहना पड़ेगा।”
राज ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
बस सोफे पर बैठ गई। उसकी आंखों में गीलापन था।
-“हमदर्दी जाहिर मत करो। मुझे हमदर्दी की आदत नहीं है। मैं चाहती हूं मुझ पर उसकी हत्या का इल्जाम लग जाए। अगर मैंने उसकी हत्या की होती तो शायद इतना खालीपन महसूस नहीं करना था।”
-“अगर तुमने हत्या की होती तो क्या होता? तुम इससे इंकार करतीं?”
-“मुझे नहीं लगता कि करती।” वह धीरे से बोली- “ईमानदारी एक ऐसा गुण है, जिसे मैं छोड़ चुकी हूं।”
-“खुद को इतना कमतर क्यों बनाया तुमने?”
-“मुझे कमतर बना दिया गया और बनाने वाला एक्सपर्ट था।”
-“कौन? तुम्हारा पति?”
-“हां। सतीश जब भी नशे में होता पूरा सैडिस्ट बन जाता था और वह अक्सर नशे में रहता था। मुझे सताने में उसे मजा आता था।” उसने अपनी आंखें बंद कर ली- “मैं भी निर्दयी थी। यह सब एकतरफा नहीं था। सच बात यह है, आज रात जब उसने यह घर छोड़ा जब मुझे छोड़कर गया मेरे दिल में आया था उसे जान से मार डालूँ। मैंने उसके पीछे जाकर सड़क पर उसे शूट कर देना था। अगर मेरे पास गन होती तो ऐसा कर भी सकती थी। लेकिन यह पूरी तरह बेकार ही होता। फायदा तो कुछ होना नहीं था।” उसने आंखें खोलकर राज को देखा- “तुम जानते हो, उसकी हत्या किसने की थी?”
-“यकीनी तौर पर कुछ भी कह पाना मुश्किल है। लीना घटनास्थल के पास थी...।”
-“उसकी चहेती वो घटिया औरत?”
राज ने सर हिलाकर हामी भरी।
-“वह एक कार चुराकर वहां से भाग गई। लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि उसे शूट भी उसी ने किया था।”
-“अगर हत्या उसी ने की थी तो अब वो एक मजाक बन गया। सारा सिलसिला ही एक मजाक है। सतीश का कहना था वह एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहा था।” उसके लहजे में कड़वाहट आ गई- “नई जिंदगी।”
-“लेकिन हालात को देखते हुए यह मजाक बिल्कुल नहीं लगता। तुम्हारा पति गले तक अपराध में फंसा हुआ था। इसी ने उसे हिंसक मौत के हवाले कर दिया।”
आशा के अनुरूप उसे शॉक सा लगा। एकदम खड़ी हो गई।
-“सतीश अपराध में फंसा था? नहीं, तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई है।”
-“गलतफहमी या गलती का सवाल ही पैदा नहीं होता। वह अकेला नहीं था। लीना भी उसके साथ इसमें शामिल थी। तुम ट्रक गायब हो जाने के बारे में जानती हो?”
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11-30-2020, 12:48 PM,
#52
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-“हां। इन्सपैक्टर आज रात यहां आया था।”
-“किसलिए? वह क्या चाहता था?”
-“पता नहीं। जब वे बातें कर रहे थे मैं कमरे में नहीं थी। लेकिन उनकी आवाजों से लगा वे किसी बात पर उलझ रहे थे और इसमें जीत सतीश की हुई थी।”
-“तुमने सुना नहीं। किस बात पर उलझ रहे थे?”
-“नहीं। जब बृजेश.....जब इन्सपैक्टर चौधरी जा रहा था मैंने उससे पूछा क्या बात थी। उसने बताया चोरी गए ट्रक का मामला था।”
-“वह तुम्हारे पति पर शक करता था?”
-“नहीं। वह बहुत ज्यादा गुस्से में था लेकिन सतीश के बारे में उसने कुछ नहीं कहा।”
-“वह कब आया था?”
-“करीब दस बजे।”
-“क्या तुम और इन्सपैक्टर एक-दूसरे से काफी बेतकल्लुफ हो?”
-“हां। बृजेश बरसों तक मेरे परिवार के नजदीक रहा है। उसका पिता और मेरे डैडी गहरे दोस्त थे। मेरे डैडी ने उसकी कालेज की पढ़ाई के समय उसकी काफी मदद की थी।”
-“पैसे से?”
-“हां।”
-“यानी इन्सपैक्टर तुम्हारे पिता का अहसानमंद है?”
-“हां।”
-“क्या इन्सपैक्टर से आज रात हुई बहस में तुम्हारे पति के जीतने की वजह इन्सपैक्टर का तुम्हारे पिता के प्रति एहसानमंद होना भी रही हो सकती है?”
-“बिल्कुल नहीं।” पलभर सोचने के बाद वह बोली- “फर्ज अदायगी के मामले में आपसी ताल्लुकात की कोई परवाह बृजेश नहीं करता।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है?”
-“हां। मैं बृजेश को जानती हूं।”
-“उसे बहुत ज्यादा पसंद भी करती हो?”
-“न-नहीं। और मैं नहीं समझती कि कोई भी उसे बहुत ज्यादा पसंद करता है। लेकिन जो उसने किया है उसकी मैं हमेशा तारीफ करती हूं। उसकी ईमानदारी की इज्जत करती हूं।”
-“ऐसा क्या किया है उसने?”
-“वह सेल्फ मेड मैन है। बहुत स्ट्रगल करके तालीम और यह नौकरी हासिल की है। इस पूरे इलाके में उसे मेहनती, ईमानदार, फर्ज का पाबंद और सबसे अच्छा पुलिस अफसर समझा जाता है।”
-“इन्सपैक्टर से हुई झड़प के बारे में तुम्हारे पति ने कुछ बताया था?”
-“झड़प नहीं, वह महज बहस थी। सतीश ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। अगर वह वाकई जुर्म में शामिल था, जैसा कि तुमने बताया है, तो यह समझ में आने वाली बात है।”
-“वह वाकई जुर्म में शामिल था।”
-“तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?”
-“मैंने आज रात लीना से बातें की थीं। जब तक वह मुझे तुम्हारे पति का दोस्त समझती रही उसने कई राजदार बातें मुझे बताईं। मसलन, इस ट्रक को गायब करने में उसके और तुम्हारे पति के अलावा जौनी नाम का एक आदमी भी शामिल था। जौनी एक बदमाश है।” उसका हुलिया बताने के बाद बोला- “अपने पति के साथ तुमने भी उसे देखा हो सकता है।”
हुलिया बताए जाने से पहली बार वह हालात की असलियत को समझती प्रतीत हुई।
-“नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। यह सच नहीं हो सकता। सतीश मेरे साथ मोटल में रहा था।”
-“सारा दिन?”
-“दोपहर बाद के ज्यादातर वक्त। वह लंच बाद एकाउंट्स देखने आया था। फिर उसने ऑफिस में पीना शुरु कर दिया। कुछ अर्से से वह बहुत ज्यादा पीने लगा था।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है, वह ऑफिस से नहीं गया?”
-“हां। इसका मतलब यह नहीं है मैं वहां बैठी उसे वॉच कर रही थी। मगर मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं शूटिंग से कोई ताल्लुक उसका नहीं था।”
-“उसका गहरा ताल्लुक था। वह मौके पर मौजूद था या नहीं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार लोगों में से वह भी एक था।”
-“तुम्हारा मतलब है सतीश ने अपने फायदे की खातिर कोल्ड ब्लडेड मर्डर प्लान किया था?”
-“मुझे पूरा यकीन है ट्रक को गायब कराने की योजना उसकी थी। और मर्डर इसका एक हिस्सा था। इन दोनों वारदातों को अलग नहीं किया जा सकता।”
-“मैं सिर्फ इतना जानती हूं वह मुसीबत में था। मुसीबत कितनी बड़ी थी मुझे नहीं मालूम। उसे मुझको बताना चाहिए था।” एकाएक उसका स्वर धीमा हो गया मानो स्वयं से कह रही थी इस अंदाज में फुसफुसाई- “वह इस हवेली को ले सकता था। कुछ भी ले सकता था।”
-“इस केस में फायदे के लिए मर्डर से भी ज्यादा कुछ है। तुम्हारे पति की हत्या ने इस मामले को और ज्यादा उलझा दिया है।”
-“मेरा ख्याल है तुमने कहा था वह लड़की लीना...।”
-“बेशक, वह लॉजीकल सस्पेक्ट तो है। लेकिन असलियत क्या है मैं नहीं जानता। वे दोनों साथ-साथ यहां से जाने वाले थे। लीना उसे प्यार करती थी।”
-“उसे प्यार करती थी?”
-“अपने ढंग से। उससे और ऐश की जिंदगी से जो उसे देने का वादा उसने किया था। वे नेपाल जाकर हमेशा वहीं रहने वाले थे।”
उसकी आंखों में पीड़ा उभर आई।
-“तुम यह कैसे जानते हो?”
-“खुद लीना ने ही मुझे बताया था। वह झूठ नहीं बोल रही थी। वह जागती आंखों से सपना तो देख रही हो सकती थी लेकिन झूठ नहीं बोल रही थी। और यही एक दिलचस्प बात नहीं थी जो उसने कही थी। दरअसल ओरीजिनल प्लान के मुताबिक ट्रक को हाईजैक कराने में मीना बवेजा ने भी कुछ करना था। लेकिन मनोहर ने लीना को मीना बवेजा के बारे में कुछ ऐसा बताया कि प्लान चेंज करना पड़ गया।”
-“क्या बताया था?”
-“मुझे नहीं मालूम। लीना को मुझ पर शक हो गया और वह मुझे बेवकूफ बना कर भाग गई। मेरा ख्याल था तुम बता सकती हो।”
उसकी आंखें फैल गई।
-“तुमने कैसे समझ लिया।” धीमे स्वर में सावधानीपूर्वक बोली- “कि मीना बवेजा के बारे में मैं कुछ जानती होंऊगी?”
-“मोटल मैं अपने पति द्वारा दखल दिए जाने से पहले तुमने उसके बारे में काफी कुछ बताया था। तुम चाहती थीं उसका पता लगाकर उस पर नजर रखी जाए। याद आया?”
-“मैं इसे भूल जाना पसंद करूंगी। उस वक्त मैं हसद से पागल सी हो गई थी। अब यह खत्म हो गया। सब-कुछ खत्म हो गया। हसद के लिए बचा ही कुछ नहीं।”
-“तुम्हारा मतलब है मीना को कुछ हो गया?
-“मेरा मतलब है, मेरा पति मर चुका है। और किसी के मरे हुए आदमी से जलन या ईर्ष्या नहीं की जा सकती। वैसे भी मेरा अंदाजा गलत था। मीना वह थी ही नहीं।”
-“एक वक्त तो वह थी।”
-“हां। लेकिन वो खत्म हो गया था। पिछले शुक्रवार हुई एक बात से मुझे गलत फहमी हो गई थी। सतीश ने वीकएंड के लिए उसे लॉज इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी। वह चाबियाँ लेने यहां आई और मैंने बातें सुन लीं।” उसके स्वर में पैनापन आ गया- “सतीश को ऐसा करने का कोई हक नहीं था। वो लॉज मेरी है। इसी बात से मैं परेशान हो गई थी।”
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11-30-2020, 12:48 PM,
#53
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“लॉज कहां है?”
-“मोती झील पर।”
-“मीना अभी भी वहां हो सकती है?”
-“मुझे नहीं लगता। सतीश भी मना कर रहा था। जब मीना सोमवार को काम पर नहीं आई तो वह कार लेकर उसे लेक पर देखने गया था। लेकिन तब तक मीना वहां से जा चुकी थी। कम से कम सतीश ने तो यही कहा था।”
-“इसे चैक किया जाना चाहिए। लॉज में फोन है?”
-“नहीं, उस सुनसान जगह में कोई फोन नहीं है।”
-“मुझे वहां जाकर उसको तलाश करने की इजाजत दे सकती हो?”
-“जरूर।”
-“वहां पहुंचूंगा कैसे?”
उसने बारीकी से समझा दिया। अलीगढ़ से पहाड़ पर करीब दो घंटे की ड्राइविंग से वहां पहुंचा जा सकता था।
-“मैं तुम्हें चाबियां दे दूंगी।”
-“डुप्लीकेट?”
-“नहीं। चाबियों का एक ही सैट है।”
-“वह वापस दे गई थी?”
-“सतीश लाया था- सोमवार रात में। जाहिर है वह चाबियां वहीं छोड़ गई थी।”
-“वह सोमवार को सारा दिन बाहर रहा था?”
-“हां। आधी रात के बाद ही वापस लौटा था।”
-“लेकिन मीना को उसने नहीं देखा?”
-“नहीं। रात उसने तो यही कहा था।”
-“तुम समझती हो, वह सच बोल रहा था?”
-“पता नहीं। मैं बरसों पहले उस पर यकीन करना छोड़ चुकी थी।”
-“तुमने पूछा नहीं, सारा दिन क्या करता रहा था?”
-“नहीं।”
-“तुम्हारे विचार से क्या करता रहा हो सकता था?”
-“पता नहीं।”
वह कमरे से चली गई।
मुश्किल से दो मिनट बाद लौटी। कीरिंग में लटकती दो चाबियां लेकर।
-“यह लो। गुडलक।”
राज ने चाबियां ले लीं।
-“थैंक्यू। बेहतर होगा किसी से भी इस बात का जिक्र मत करना। खासतौर पर पुलिस वालों से।”
-“बृजेश चौधरी से?”
-“हां।”
-“वह भी तुम्हें परेशान कर रहा है?”
-“वह मुझसे नफरत करता है। जब मैं पहली बार उससे मिला था तो वह एक अच्छा आदमी लगा और हमारी पटरी बैठ गई थी। फिर सब गड़बड़ हो गया। वह तुम्हारा दोस्त है। बता सकती हो किस फेर में है?”
-“मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं वह अच्छा आदमी है।” वह तनिक मुस्कराई- “तुम दोनों के बीच जो भी है उसके लिए किसी हद तक तुम भी कसूरवार हो सकते हो।”
-“आमतौर पर मेरा ही कसूर होता है।”
-“शायद उसे तुम्हारा दखल देना पसंद नहीं आ रहा है। क्योंकि वह अपनी जिम्मेदारी को पूरी संजीदगी से निभाने वाला आदमी है। खैर, तुम्हारे बारे में उससे कुछ नहीं कहूंगी। मुझे भी तुम पर भरोसा है......।”
तभी बाहर एक कार रुकने की आवाज सुनाई दी।
मिसेज सैनी खिड़की के पास जा खड़ी हुई।
-“शैतान को याद किया और शैतान हाजिर।” हंसकर बोली।
राज ने भी उसके कंधों के ऊपर से देखा।
चौधरी पुलिस कार से उतर रहा था। उसके साथ एस.आई. सतीश भी था।
मिसेस सैनी राज की ओर पलटी।
-“तुम पिछले दरवाजे से निकल जाओ।”
राज ने वैसा ही किया।
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शहरी सीमा से सकुशल बाहर निकलकर राज ने राहत की सांस ली। साथ ही बेहद थकान और न सो पाने के कारण भारी आलस्य उसने महसूस किए।
दस पंद्रह मिनट बाद उसे एक टूरिस्ट कैम्प नजर आया। कार पार्क करके एक कॉटेज किराए पर ली और कपड़ों समेत बिस्तर पर फैल गया।
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11-30-2020, 12:48 PM,
#54
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
मोती झील की चौड़ाई कम होने के कारण दूर से देखने पर वो संकरा जलाशय नजर आती थी। पहाड़ी घुमावदार सड़क पर फीएट ड्राइव करता राज एक टूरिस्ट लॉज, एक रोड साइड रेस्टोरेंट और कुछेक कॉटेजो के पास से गुजरा। वे सभी खाली पड़े थे। सर्दी की वजह से दरवाजे खिड़कियां मजबूती से बंद थे।

पांच-छह मील लंबी झील के लगभग आधे रास्ते में एक पैट्रोल पम्प था। जब राज ने वहां पहुंचकर कार रोकी तो वो भी बंद मिला।

वह कार से उतरा।
पम्प पर कोई नहीं था। गत्ते के एक बड़े से टुकड़े पर सूचना लिखी थी।

-“पानी या हवा की जरूरत हो तो ले सकते हो।

पैट्रोल के लिए सुबह दस बजे तक इंतजार करना होगा।”

राज गर्म रेडिएटर में पानी भर के आगे बढ़ गया।

करीब आधा मील जाने के बाद चीड़ के पेड़ पर लकड़ी का एक पुराना और मौसमों की मार खाया साइन बोर्ड लगा नजर आया।

हिल क्वीन : सी. के. सक्सेना, अलीगढ़।

उसके नीचे अपेक्षाकृत नया और छोटा साइन बोर्ड लगा था।
सतीश सैनी,

राज उसी सड़क पर मुड़ गया।

कथित लॉज ढलान पर बनी और सड़क की ओर पेड़ों से घिरी काठ की एक मंजिला इमारत थी।

राज वरांडे में पहुंचा। खिड़कियों के भारी लकड़ी के पल्ले खुले थे। प्रवेश द्वार की बगल में बनी खिड़की से उसने अंदर देखा।

नीम अंधेरे कमरे में कोई नजर नहीं आया। फर्श पर फायर प्लेस के पास रीछ की खाल जैसा नजर आता मोटा कारपेट बिछा था। आवश्यक फर्नीचर भी नजर आ रहा था।

राज ताला खोलकर भीतर दाखिल हुआ।

अंदर ठंडक ज्यादा थी। बंद कमरे में पार्टी की बासी गंध बसी थी। मुख्य कमरे में पार्टी हुई होने के और भी चिन्ह थे। मेज पर रखी पीतल की बड़ी सी एश ट्रे सिगरेट के अवशेषों से आधी भरी थी। उनमें से अधिकांश पर लिपस्टिक के दाग थे मेज पर मौजूद कांच के दो गंदे गिलासों में से एक पर भी लिपस्टिक के दाग लगे थे। बगैर छुए झुककर सुघंने पर राज को लगा उन्हें बढ़िया स्कॉच पीने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

फायरप्लेस के पास जाकर वहां मौजूद राख को छुआ।
राख ठंडी थी।

सीधा खड़ा होते समय मोटे कारपेट के रेशों के बीच कोई चीज पड़ी दिखाई दी।

स्त्रियों द्वारा बालों में लगायी जाने वाली क्लिप थी।

कारपेट को उंगलियों से टटोलने पर वैसी एक क्लिप और मिली।

राज सोने वाले कमरों में पहुंचा। उनमें से एक में जमी धूल से जाहिर था कि उसे हफ्तों या महीनों से इस्तेमाल नहीं किया गया था। दो बैडरूम अपेक्षाकृत छोटे थे। उनमें से एक की हालत भी वैसी ही थी। लेकिन दूसरा हाल ही में इस्तेमाल किया गया था। फर्श साफ था। बिस्तर को सोने के लिए प्रयोग किया गया था। लेकिन उठने के बाद सही नहीं किया गया था।

राज ने कंबल और चादरें सही कीं। उनके बीच रबर की एक पिचकी ट्यूब पड़ी थी।

कमरे में कपड़े या सामान के नाम पर कुछ नहीं था। लेकिन भारी ड्रेसिंग टेबल पर औरतों द्वारा प्रयोग की जाने वाली कई चीजें मौजूद थीं- नेल कटर फेस क्रीम का छोटा जार जो खुला पड़ा रहने के कारण सूखना शुरू हो गया था, कीमती सन ग्लासेज, वैसी ही और हेयर क्लिप्स जैसी कारपेट पर मिली थीं।

साथ ही बने बाथरूम में कुछ और चीजें मिलीं- टूथपेस्ट, टूथब्रुश, लिपस्टिक और एस्ट्रोजन आयल की शीशी। ये लगभग वही तमाम चीजें थीं जो अलीगढ़ में मीना बवेजा के घर में नहीं मिली थीं।

किचिन हवादार थी। स्टोव पर रखे फ्राइंग पैन में अंडे फ्राई किए जाने पर बचे अवशेष पर मक्खियां भिनक रही थीं। किचन टेबल पर दो व्यक्तियों के खाने के झूठे बर्तन पड़े थे। कोने पर ब्लैक डॉग की खाली बोतल रखी थी।

राज किचिन से पिछले दरवाजे से बाहर निकला।

पिछली दीवार के पास तिरपाल के नीचे सूखी लकड़ियों का ऊंचा ढेर लगा था। आउट हाउस में टूटा फर्नीचर छोटी सी नाव, मछलियां पकड़ने वाली पुरानी रॉड वगैरा भरे थे।

किचन के दरवाजे से लॉज में जाकर राज ने एक बार फिर हरएक कमरे का मुआयना किया। कोई नई चीज तो नजर नहीं आई लेकिन उसे लगा वहां सैक्स और डैथ का वास रहा था।

प्रवेश द्वार लॉक करके अपनी फीएट में सवार होकर लौट पड़ा।

पैट्रोल पम्प पर अब एक अधेड़ औरत मौजूद थी। शलवार सूट पहने खिचड़ी बालों वाली वह औरत दुनियादारी के मामलात में खासी तजुर्बेकार नजर आती थी।

फीएट रुकते ही पास आ खड़ी हुई।
-“पैट्रोल चाहिए?”

-“हां।”

राज ने कार से उतरकर पैट्रोल टंकी का लॉक खोल दिया। औरत पैट्रोल डालने लगी।

-“तुम विराटनगर से आए हो?”

-“हाँ।”

-“आज तुम मेरे पहले कस्टमर हो।”

-“सीजन तो अब खत्म हो गया है?”

-“हाँ। सर्दी काफी पड़ने लगी है। मैं इसी हफ्ते पम्प बंद करके नीचे चली जाऊंगी। स्नो फाल में यहां फंसना नहीं चाहती।”

-“सर्दियों में यहां कोई नहीं रहता?”

-“सिर्फ बूढ़ा डेनियल ही इस पूरे इलाके में रहता है। तुम पहली बार यहां आए हो?”

-“हां।”

-“गर्मियों में तो विराटनगर से काफी टूरिस्ट आते हैं। तुम इतनी देर से क्यों आए?”

-“यूं ही धक्के खाने चला आया था।”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#55
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
टैंक भर गया था। औरत ने पाइप निकाल लिया। मीटर देखा। हिसाब लगाकर पैसे बता दिए।

राज रात में जहां ठहरा था वहां से एक ट्रैवलर चैक कैश करा लिया था। उसने पैट्रोल की कीमत चुका दी।

-“नीचे आस-पास के शहरों से तो लोग यहां आते ही रहते होंगे।”

-“बहुत से लोगों ने यहां अपने कॉटेज बना रखें हैं। गर्मी से निजात पाने के लिए यहां आते रहते हैं। मैं खुद सूरजपुर में रहती हूं। सर्दियों में वही चली जाती हूं। मेरा बेटा रनजीत कालेज में पढ़ता है।”

स्पष्टत: औरत बातूनी थी।

-“आपका बेटा होशियार और मेहनती होगा।” राज ने तारीफी लहजे में कहा।

-“वह बहुत अच्छा लड़का है। मेरी बहुत इज्जत करता है। हर एक बात मानता है मेहनती भी बहुत है। जब भी टाइम मिलता है यहां काम में मेरी मदद करता है।”

-“आजकल के लड़के ऐसे कम ही होते हैं। ज्यादातर लापरवाह, कामचोर और गैर-जिम्मेदार होते हैं।”

-“तुम क्या काम करते हो?”

-“डिटेक्टिव हूं।”

-“रनजीत का पिता-मेरा मतलब है, मेरा पति जसवंत सिंह भी पुलिस में कांस्टेबल था.... हालांकि बाद में वह गलत.... खैर, छोड़ो।” उसने खोज पूर्ण निगाहों से राज को घूरा- “तुम किसी को ढूंढ रहे हो?”

-“आपने सही समझा।”

-“लेकिन यहां तो मेरे और बूढ़े डेनियल के अलावा सिर्फ फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग ही हैं। गैस्ट हाउस बंद हो चुका है।”

राज ने पेड़ों से गुजरती उसकी निगाहों का अनुकरण किया तो झील के ऊपरी सिरे पर गैस्ट हाउस की नीली छतें दिखाई दे गईं।

औरत ने पलटकर आशंकित नजरों से उसे देखा- “रनजीत को तो नहीं ढूंढ रहे? उसने कोई गलत काम किया है?”

-“नहीं। मुझे एक लड़की की तलाश है। उसका नाम मीना बवेजा है। उसकी फोटो भी मेरे पास है।
राज ने फोटो उसे दे दी।

औरत गौर से देखने लगी।

-“मेरा ख्याल सही निकला।” अंत में बोली- “मैं जानती थी यह कोई अच्छी लड़की नहीं है।”

-“आपने इसे देखा है?”

-“बहुत बार। यह उस घटिया आदमी के साथ आया करती थी जिसने रजनी सक्सेना से शादी की थी।”

-“सैनी...... सतीश सैनी।”

-“हां, वही निकम्मा और दूसरी औरतों के पीछे भागने वाला।” औरत के लहजे में हिकारत थी- “क्या रजनी ने उससे तलाक लेने का फैसला कर लिया है?”

-“आपने सही अंदाजा लगाया।” राज ने उसे प्रोत्साहित किया।

-“मैं रजनी सक्सेना को तब से जानती हूं जब छोटी सी थी। बड़ी होशियार और प्यारी बच्ची थी। लेकिन अपने आप को संभालना और दुनियादारी को समझना वह कभी नहीं सीख सकी। हालांकि उसका पिता जज सक्सेना खानदानी रईस, इज्जतदार और भला आदमी था। और उसका कोई दोष इसमें नहीं था। मेरे ख्याल से इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। रजनी की किस्मत ही खराब है। जिससे उसकी सगाई हुई थी वह काश्मीर में आतंकवादियों के हाथों मारा गया। मां-बाप भी मर गए। तब अकेली और बेसहारा रह गई रजनी गलत आदमी से शादी कर बैठी। गलत आदमी से शादी करने पर क्या होता है यह मैं खुद भी अच्छी तरह जानती हूं।” उसने तल्खी से कहा। फिर क्षणिक मौन के पश्चात बोली- “जब भी मैं सोचती हूं सैनी जैसे आदमी से शादी करके रजनी ने खुद को तबाह कर लिया है तो मेरा दिल रो उठता है। उस घटिया आदमी ने जज की लॉज को अपनी रखैलों के साथ ऐश करने का अड्डा बनाकर रख दिया है।”

राज ने उसके हाथ में थमी फोटो की ओर इशारा किया।

-“इस लड़की को आपने आखरी दफा कब देखा था?”

-“सोमवार को। काफी अर्से बाद पहली बार उसने अपना वीकएंड यहां गुजारा था। इस दफा पूरे सीजन में पहले वह नहीं आई। इसलिए उसे देखकर मुझे ताज्जुब हुआ।”

-“क्यों?”

-“क्योंकि सैनी ने अब एक नई लड़की पकड़ ली है।” औरत ने मुँह बनाते हुए गैस्ट हाउस की दिशा में देखा- “पिछली गर्मियों में बात अलग थी। यह लड़की तकरीबन हर एक वीकएंड में उसके साथ कार में आया करती थी। मैं अक्सर सोचती थी कि क्या रजनी इस बारे में जानती है। कई दफा मेरे मन में आया गुमनाम खत लिखकर रजनी को बता दूं। मगर ऐसा किया नहीं।”

-“मेरी दिलचस्पी सिर्फ पिछले वीकएंड में है।”

-“वह शनिवार को कार में आई थी। मुझसे पानी मांगा। उसका रेडिएटर गर्म हो गया था। उसे देखकर मेरा भी पारा चढ़ गया। मेरे जी में आया उससे कह दूं झील में पानी ही पानी है वहां जाकर डूब मरे। लेकिन रनजीत को यह अच्छा नहीं लगना था। वह भी यहीं था और वह हमेशा दूसरों से अच्छे संबंध बनाए रखने की वकालत किया करता है।”

-“कार कैसी थी?”

-“काली फीएट। पता नहीं, उसे खरीदने के लिए उसके पास पैसा कहां से आया?”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#56
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“कार में वह अकेली थी?”

-“हां, मैंने पहली बार उसे अकेली देखा था। जिस तरह सजी धजी वह बैठी थी उससे साफ जाहिर था अपने किसी यार से मिलने निकली थी। मगर मेरे सामने बड़ी भोली बनने का नाटक कर रही थी।”

-“बाद में सैनी भी आ गया था?”

-“वह फिशिंग करके वीकएंड गुजारने तो यहां नहीं आयी थी। सोमवार को मैंने उन्हें साथ-साथ देखा था। जाहिर है पूरा वीकएंड उसने लड़की के साथ लॉज में ही गुजारा था। मुझे और भी काम है मैं हर वक्त उस घटिया आदमी और उसकी रखैल पर तो जासूसी नहीं करती रह सकती। सोमवार तीसरे पहर मैंने उन्हें सड़क पर गेस्ट हाउस की ओर जाते देखा था।”

-“दोनों थे? सैनी और मीना बबेजा?”

-“उसका नाम मैं नहीं जानती। मगर यह सही है उसके साथ एक लड़की थी। उसका चेहरा मैंने नहीं देखा। सर पर स्कार्फ बांधे थी। लेकिन वही रही होगी।”

-“आप पूरे यकीन के साथ कह सकती हैं?”

-“बिल्कुल।”

-“उसकी शक्ल आपने नहीं देखी इसलिए यह भी तो हो सकता है सैनी के साथ वह लड़की नहीं मिसेज सैनी रही हो।”

-“नहीं, बिल्कुल नहीं हो सकता। रजनी को मैं अच्छी तरह जानती हूं। उसके सर पर अगर स्कार्फ की जगह टब भी उल्टा करके रखा होता तब भी मैंने उसे साफ पहचान लेना था। वह रजनी नहीं थी।” उसने हाथ में पकड़ी फोटो हिलाई- “वह यही थी।”

राज ने फोटो उससे ले ली।

-“वह कार चला रही थी?”

-“नहीं, उस रोज वह घटिया आदमी चला रहा था। कार वही काली फीएट थी। वह सीट की पुश्त से पीठ सटाए पसरी थी और चेहरा कोने में घुमा हुआ था। इसलिए मैं उसे साफ-साफ नहीं देख सकी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है उसे पहचाना ही नहीं।”

-“आपका नाम क्या है?”

-“सुखवंत कौर कोहली।”

-“जिस लड़की को आपने सैनी के साथ में देखा था। आपको यकीन है वह जिंदा थी?”

वह बुरी तरह चौंकी फिर हैरान नजर आने लगी।

-“अजीब सवाल है।”

-“आप इसका जवाब दे सकती हैं?”

-“मैं यकीन से नहीं कह सकती। हालांकि उसे हाथ पैर हिलाते या बातें करते तो मैंने नहीं देखा मगर वह मुर्दा भी नजर नहीं आई। क्या उसे मुर्दा समझा जा रहा है?”

-“आज शुक्रवार है और वह सोमवार को देखी गई थी। क्या उसके बाद भी आपने उसे देखा था?”

-“नहीं। आखिर मामला क्या है?”

-“मर्डर। अलीगढ़ में आजकल मर्डर महामारी की तरह फैल रहा है।”

-“ओह! इसका मतलब है रनजीत ने ठीक ही कहा था।”

-“किस बारे में?”

-“शनिवार रात में यहां एक आदमी आया था- करीब दस बजे। वह फोन करना चाहता था। मैंने कहा हमारे पास टेलीफोन नहीं है। इस इलाके में सिर्फ एक ही फोन है- फारेस्ट आफिसर के बंगले में। लेकिन उसे मेरी बात पर यकीन नहीं आया। गुस्से में उल्टी सीधी बकवास करने लगा। उसका कहना था क्योंकि वह मामूली आदमी है इसलिए मैं उसके साथ सही ढंग से पेश नहीं आ रही थी। मैंने उसे समझाना चाहा मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसके पीले चेहरे और बड़ी-बड़ी काली आंखों से लगता था जैसे उसके पीछे भूत लगे थे या उस पर पागलपन का दौरा पड़ रहा था। गनीमत थी रनजीत यहां था। उसे एक तरह से जबरन उस आदमी को यहां से खदेड़ना पड़ा‌।”
-“वह देखने में कैसा था?”
औरत ने जो हुलिया बताया मौजूदा हालात में राज के विचारानुसार वह सिर्फ एक ही आदमी पूरी तरह फिट बैठता था। और उसका नाम था- मनोहर लाल।
-“उसने क्या कहा था?”
-“यही कि उसे बेहद जरूरी फोन कॉल करनी है क्या वह हमारा टेलीफोन इस्तेमाल कर सकता है। मैंने कह दिया हमारे यहां टेलीफोन नहीं है। इस पर उसे गुस्सा आ गया और गालियां बकनी शुरू कर दीं। तब रनजीत ने उसे जबरदस्ती बाहर खदेड़ दिया। तुम उसी को ढूंढ रहे हो?”
-“नहीं। वह तो कल मिल गया था।”
-“देखने में खतरनाक पागल लगता था। क्या उसने किसी का मर्डर कर दिया था?”
-“खुद मर्डर में इन्वाल्व था।”
-“कौन है वह?”
-“उसका नाम मनोहर लाल था।” कहकर राज ने पूछा-” आपने बताया था सोमवार तीसरे पहर सैनी उस लड़की की कार को गैस्ट हाउस की ओर ले जा रहा था?”
-“हां।”
-“गैस्ट हाउस मैं किसी बूढ़े के बारे में भी आपने बताया था।”
-“उसका नाम डेनियल है। वह केअरटेकर है।”
-“आपके बाद क्या उसने भी उन्हें देखा था?”
-“पता नहीं। महीने भर से मेरी उनसे बोलचाल बंद है।”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#57
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“कोई खास वजह थी?”
-“वह बूढ़ा बेवकूफ और गैरजिम्मेदार है उसने अपनी पोती को सैनी के साथ चली जाने दिया तभी से मैं उससे बात नहीं करती।”
-“सैनी की जिस नई लड़की का जिक्र आपने किया था वह वही है।
-“वह महीना भर पहले सैनी के साथ अलीगढ़ गई थी तब से वापस नहीं लौटी। इसका क्या मतलब है?
राज को अचानक कुछ याद आया।
-“उसका नाम लीना है?”
-“एलीनर। एलीनर डेनियल। लेकिन बूढ़ा उसे लीना कहकर ही पुकारता है।”
-“बूढ़ा डेनियल अभी भी यहीं है?”
-“वह कभी कहीं नहीं जाता। साल में एकाध बार ही नीचे जाता है।”
राज उसे धन्यवाद देकर अपनी कार में सवार होने लगा।
-“एक मिनट ठहरो।” औरत ने टोका।
-“कहिए?”
-“अलीगढ़ में क्या कुछ हो रहा है? रजनी ठीक-ठाक है न?”
-“कुछेक घंटे पहले तक तो थी। अब का पता नहीं...।”
-“और उसका पति वह घटिया आदमी?”
-“वह मर चुका है।”
-“उसी का मर्डर किया गया था?”
-“उसका भी किया गया था।”
-“रजनी का तो इससे कोई संबंध नहीं है?”
-“नहीं।”
-“वाहे गुरु की कृपा है। मुझे उस लड़की से हमेशा लगाव रहा है। हालांकि दो साल से उसकी शक्ल तक नहीं देखी फिर भी उसे भूली नहीं हूं मैं। वह अपने मां-बाप के साथ लॉज में आया करती थी। तब छोटी थी और मुझसे काफी घुल-मिल गई थी।” उसकी आंखों में पुरानी यादों की चमक थी- “वक्त कितनी जल्दी गुजर जाता है और इंसान को कैसे कैसे हालात का सामना करना पड़ता है। रजनी को भी वक्त के हाथों काफी कष्ट उठाने पड़े हैं...।”
-“आप ठीक कहती हैं।”
राज ने एक बार फिर उसे धन्यवाद देकर इंजिन स्टार्ट किया। पम्प की सीमा से निकलकर फीएट गैस्ट हाउस की ओर घुमा दी।
******

गैस्ट हाउस की दो मंजिला इमारत काफी लंबी-चौड़ी थी।
सफेद दाढ़ी और बालों वाला एक बूढ़ा पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट फूंक रहा था।
राज फीएट से उतर कर उसके पास पहुंचा।
-“मिस्टर डेनियल?”
बूढ़े ने गौर से उसे देखा।
-“मैं ही हूं। कहिए?”
-“मेरा नाम राज कुमार है। पेशे से प्राइवेट जासूस हूं।” राज गोली देता हुआ बोला- “पुलिस के साथ मिलकर एक गुमशुदा को तलाश कर रहा हूं।”
-“गुमशुदा?”
राज उसके सामने बैठ गया।
-“अलीगढ़ की एक लड़की गायब है।”
-“कौन लड़की? एलीनर तो नहीं?”
-“वह कौन है?”
बूढ़े की झुर्रियों भरे चेहरे पर संदेह के भाव उत्पन्न हुए।
-“मैं नहीं समझता तुम्हारा इससे कोई ताल्लुक है।”
-“ठीक है। जाने दो।” राज ने अभी एलीनर के बारे में बातें न करना ही मुनासिब समझा- “गुमशुदा लड़की का नाम मीना बवेजा है। पिछले शनिवार को सुखवंत कौर ने उसे अपने पैट्रोल पम्प पर देखा था। उसका ख्याल है आप इस मामले में मेरी मदद कर सकते हैं।”
-“वह औरत हमेशा ख्यालों में ही खोई रहती है। खैर, इस मामले का मुझसे क्या ताल्लुक है?”
-“सुखवंत कौर ने सोमवार तीसरे पहर भी इस लड़की को देखा था। लड़की कार में सैनी के साथ थी और वे इस तरफ ही आ रहे थे। आप सतीश सैनी को जानते हैं?”
-“जानता हूं।” बूढ़ा भारी स्वर में बोला- “सोमवार को मैंने भी उन्हें देखा था। वे यहीं से गुजरे थे।”
-“लड़की का हुलिया बता सकते हो?”
-“इतना नजदीक से मैंने उसे नहीं देखा।” बूढ़ा सफेद बालों से भरा अपना सर हिलाकर बोला- “मेरे विचार से वह जवान थी। ब्राउन शलवार सूट पहने थी और सर पर स्कार्फ बांधा हुआ था।”
-“जब आपने यह सब देखा वह कार चला रही थी?”
-“नहीं, यह तो मैंने नहीं देखा। तुम, जबरदस्ती मुझसे यह कहलवाना चाहते हो?”
-“नहीं। माफ कीजिए मुझे ऐसा ही लगा था। खैर, आप बताइए।”
-“मैंने सैनी को कार चलाते हुए देखा था और मैं नहीं जानता था उसके साथ वाली लड़की कौन थी...।” तनिक खांसने के बाद बूढ़ा बोला- “मेरे कहने का मतलब है मुझे सैनी से बदला लेना था- यह मेरा जाति मामला है। मैंने सोचा उसे फटकारने का यही सही मौका था। इस तरफ ज्यादा दूर वह नहीं जा सकता था। यह सड़क आगे जाकर खत्म हो जाती है। इसलिए मैंने उसका पीछा किया- पैदल। वहां तक पहुंचने में काफी देर लगी। कूल्हे में चोट लग जाने के बाद से मैं तेज नहीं चल पाता। एक जमाना था जब एक ही सांस में दूर तक दौड़ता चला जाता था। पहाड़ियों और ऊंची चट्टानों पर चढ़ने में मेरा मुकाबला कोई नहीं कर पाता था....।”
बूढ़े को जवानी की यादों से बाहर लाने के लिए राज ने मीना बवेजा की फोटो जेब से निकालकर उसे दिखाई।
-“यह लड़की थी सैनी के साथ?”
-“हो सकता है।” वह धीरे से बोला- “नहीं भी हो सकता। मैंने तुम्हें बताया था इतनी नजदीक से उसे नहीं देखा। जब मैं पहाड़ी पर पहुंचा तो पेड़ों के बीच से उन्हें देखा। वे गड्ढा खोद रहे थे।”
राज चौंका।
-“क्या कर रहे थे?”
-“चिल्लाओ मत। मैं बहरा नहीं हूं। वे गड्ढा खोद रहे थे।”
-“कैसा गड्ढा?”
-“मामूली। जैसा कि जमीन में खोदा जाता है। यहां शिकार करने पर सख्त पाबंदी है। इसलिए मैंने सोचा उन्होंने गलती से या जानबूझकर कोई हिरन मार डाला था और अब उसे दफना रहे थे ताकि किसी को पता न चल सके। मैं उन पर चिल्लाया। साथ ही मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया। मुझे इंतजार करके चुपचाप उनके पास पहुंचना चाहिए था। लेकिन पिछले कुछेक सालों से बिल्कुल अकेला रह रहा होने के कारण मुझे जल्दी गुस्सा आ जाता है।”
-“खासतौर से सैनी पर?”
-“ओह, तो तुम उसे जानते हो। मेरी आवाज सुनते ही वह कार की ओर दौड़ पड़ा। लड़की भी उसके पीछे भागी। कार थोड़े फासले पर सड़क के पास खड़ी थी। मेरे लिए उन्हें पकड़ पाना नामुमकिन था। मैं गड्ढे के पास गया और उनका फावड़ा उठा लाया। देखना चाहते हो?”
-“मैं वह गड्ढा देखना चाहूंगा। दिखाओगे?”
-“जरूर।”
-“वहां तक कार से जाया जा सकता है?”
-“हां। लेकिन उसमें देखने जैसी कोई बात नहीं। मामूली गड्ढा है।”
-“फिर भी मैं देखना चाहता हूं।”
बूढ़ा खड़ा हो गया।
-“आओ।”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#58
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़े के निर्देशानुसार कार ड्राइव करते राज को चढ़ाई पर बार-बार मोड़ काटने के कारण रफ्तार बहुत धीमी रखनी पड़ रही थी।
अंत में बूढ़े के कहने पर कार रोकनी पड़ी।
दोनों नीचे उतरे।
राज बूढ़े के पीछे चल दिया।
गड्ढा करीब छह फुट गुणा दो फुट आकार का था। हालांकि देखने में कब्र जैसा नजर आता था लेकिन उसकी गहराई मुश्किल से फुट भर थी।
राज ने नीचे बैठकर गड्ढे को चैक किया। मिट्टी नर्म थी। गड्ढा गहरा नहीं खोदा गया था और खोदी गई मिट्टी वापस उसी में भर दी गई थी।
-“मैंने पहले ही कहा था मामूली गड्ढा है।” पीछे खड़ा बूढ़ा बोला- “मगर मेरी समझ में नहीं आता वे बेवकूफ यहां खुदाई कर ही क्यों रहे थे। क्या उन्हें खजाना मिलने की उम्मीद थी?”
राज खड़ा होकर उसकी और पलटा।
-“खुदाई कौन कर रहा था?”
-“लड़की।”
-“क्या उसने लड़की पर पिस्तौल वगैरा तानी हुई थी?”
-“मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा। हो सकता है उसकी जेब में पिस्तौल रही हो। अपनी जेबों में हाथ घुसेडे़ ठीक इसी जगह खड़ा हुआ था जहां मैं खड़ा हूं। बड़ा ही कमीना है। अपना गंदा काम उस लड़की से करा रहा था।”
-“जब वे दोनों भागे तो पहले वही भागा था?”
-“हां। ठीक वैसे ही जैसे सर पर पैर रखकर भागना कहते हैं। लड़की उसके साथ नहीं लग पा रही थी। सड़क तक पहुंचने से पहले वह गिर भी गई थी।”
-“कहां?”
-“आओ दिखाता हूं।”
राज पुनः उसके पीछे चल दिया।
एक स्थान पर रुककर बूढ़े ने झाड़ियां उगी उथली खाई की ओर इशारा किया।
-“यही जगह है। जब लड़की गिरी वह पहले ही कार में जा बैठा था। हरामजादा उसी तरह बैठा रहा। बाहर निकलकर उठने में उसकी मदद नहीं की।”
-“आपको सैनी पसंद नहीं है?”
-“नहीं, बिल्कुल नहीं।”
-“आप उसे किसलिए फटकारना चाहते थे?”
-“इस बारे में ज्यादा बातें करना भी मुझे पसंद नहीं है। यह मेरे परिवार का मामला है। इसका संबंध मेरी पोती से है। वह जवान लड़की है....।”
राज को ध्यान देता न पाकर बूढ़ा खामोश हो गया।
राज की निगाहें धूप में चमकती एक चीज पर जमी थीं। दो पत्थरों के बीच फंसी वह एक जनाना सैंडल की एड़ी थी। उसमें गड़ी कीलो के सिरे धूप में चमक रहे थे।
उसने नीचे झुककर उसे पत्थरों से निकाल लिया।
ब्राउन चमड़े से ढंकी वो औसत ऊंचाई की हील थी।
-“लगता है, लड़की के सैंडल की एड़ी उखड़ गई थी।” बूढ़ा बोला- “मुझे याद है जब उठकर चली तो लंगड़ा रही थी। तब मैंने सोचा उसके पैर में चोट आ गई थी।”
-“यहां से वे कहां गए थे?”
-“यहां से सिर्फ नीचे ही जाया जा सकता है।”
कुछ देर और आसपास का मुआयना करने के बाद राज बूढ़े सहित अपनी कार की ओर चल दिया।
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11-30-2020, 12:49 PM,
#59
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़ा डेनियल गैस्ट हाउस के पीछे कॉटेज में रहता था। राज क्योंकि उससे और पूछताछ करना चाहता था इसलिए उसके साथ वहां पहुंचा।
-“आप सारी सर्दियां यहीं गुजारते हैं?” राज ने बातचीत आरंभ करते हुए पूछा।
-“हां।”
-“अकेले?”
-“इस उम्र में और कौन मेरे साथ रहेगा? वैसे भी बुढ़ापे में अकेले रहने का अपना अलग ही मजा है बशर्तें कि शरीर सही सलामत हो। जवानी में मैंने भी दर्जनों तरह के काम किए हैं। लेकिन शहरी जिंदगी मुझे कभी रास नहीं आई। दूर दराज के कस्बे और गांव ही ज्यादा पसंद है। खासतौर पर पहाड़ी। मैं पहाड़ों का रहने वाला हूं।”
-"आपने शादी नहीं की?”
-“की थी। बाइस साल पहले पत्नी का देहांत हो गया।”
-“कोई औलाद नहीं थी?”
-“एक बेटा था। आज अगर जिंदा होता तो पेंतालीस साल का होना था। ट्रक चलाता था। एक रोज एक्सीडेंट में मारा गया। उसने मेरी मर्जी के खिलाफ एक आवारा लड़की से शादी कर ली थी और घर छोड़कर चला गया।” बूढ़ा अपनी यादों के पन्ने पलटता हुआ सा बोला- “उसकी मौत के बाद उस लड़की ने दूसरी शादी कर ली। इस तरह लीना को न तो मां-बाप का प्यार मिल सका और न ही सही परवरिश। जब उसे पढ़ाई करनी चाहिए थी तब वह सड़कों पर भटकती रहती थी।”
बूढ़ा अपने आप ही लाइन पर आ गया था।
-“आप अपनी पोती की बात कर रहे हैं?” राज ने जानबूझकर टोका।
-“हां।”
-“वह अब कहां है?”
-“आजकल अलीगढ़ में है। तुम भी तो वहीं से आए हो। उसे जानते हो?”
-“हो सकता है। क्या नाम है उसका?”
-“शादी के बाद उसका पूरा नाम मुझे याद नहीं है। वैसे उसका नाम एलीनर डेनियल था। लेकिन खुद को लीना बताती है। यह फैंसी नाम है- स्टेज आर्टिस्टो जैसा। वह प्रोफेशनल सिंगर बनना चाहती है। तुम अलीगढ़ के रॉयल क्लब में गए हो?”
-“हां।”
-“तब तो वहां उसका गाना भी सुना होगा?”
-“नहीं। लेकिन मैं उससे मिल चुका हूं।”
बूढ़े ने उत्सुकतापूर्वक उसे देखा।
-“उस क्लब के बारे में तुम्हारा ख्याल है। घटिया सी जगह है न?”
-“हां।”
-“मैंने भी लीना को यही समझाया था। किसी नई शादीशुदा लड़की के काम करने लायक जगह वो नहीं है। भला बार में गाना भी कोई काम है। ऐसी घटिया बार में गाने से कोई सिंगर नहीं बन सकता। बार जितनी घटिया है उसका मालिक सैनी उससे भी कहीं ज्यादा घटिया है। मैंने बहुत समझाया मगर लीना ने मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं बूढ़ा हूं और वह एकदम जवान है। उसकी निगाहों में मैं बेवकूफ और सनकी हूं। हो सकता है, मैं ऐसा ही हूं लेकिन उसकी फिक्र किए बगैर तो मैं नहीं रह सकता। आखिरकार वह मेरे परिवार की आखिरी निशानी है।”
-“आप ठीक कहते हैं।”
-“जब तुमने उसे देखा वह ठीक थी न?”
-“वह सिंगर बनना चाहती है।” राज उसके सवाल के जवाब को गोल करता हुआ बोला- “क्या उसने संगीत सीखा है?”
-“मुझे नहीं लगता उसने बाकायदा तालीम हासिल की है। लेकिन गाती बहुत अच्छा है। मुझे हिंदी फिल्मों के पुराने गाने पसंद है। मेरे कहने पर सुरैया और शमशाद बेगम के कई गाने उसने सुनाए थे।”
-“यह कब की बात है?”
-“पिछले महीने की। वह पहली दिसंबर के आसपास यहां आई थी। अपने पति को भी साथ लायी थी। तुम उसके पति को भी जानते हो?”
-“क्या नाम है उसका?”
-“नाम तो याद नहीं आ रहा।”
-“देखने में कैसा है?”
-“नौजवान है। लेकिन मुझे पसंद नहीं आया। हर वक्त काला विंडचीटर पहने रहता है....।”
-“जौनी?”
-“हां यही नाम है। जानते हो उसे?”
-“कुछ खास नहीं।”
-“कैसा लड़का है?”
राज तय नहीं कर सका क्या जवाब दें।
-“मैं इसलिए पूछ रहा हूं।” बूढ़े ने कहा- “क्योंकि उसका व्यवहार ऐसा नहीं था जैसा एक जवान पति का अपने हनीमून पर होना चाहिए।”
-“वे हनीमून मनाने आए थे?”
-“उन्होंने कहा तो यही था।”
-“लेकिन आपको इस पर यकीन नहीं है?”
-“मुझे तो इस पर भी यकीन नहीं है कि वे दोनों पति पत्नि थे या सही ढंग से शादी भी की थी। उनमें न तो नए शादी शुदा जोड़े वाला जोश, उमंग और खुशी थी और न ही वह लीना को वो प्यार और इज्जत देता नजर आया जो कि देना चाहिए थी। खैर, अब उनमें सही निभ रही है?”
-“पता नहीं। मैं बस इतना जानता हूं कि कोई भला आदमी वह नहीं है। मेरे चेहरे की हालत देख रहे हो?”
-“हां तुम्हारे आते ही देख ली थी। लेकिन इस बारे में पूछना मुनासिब नहीं समझा।”
-“यह जौनी की वजह से ही हुई थी।”
-“तुम्हारा मतलब है, उसने की थी?”
-“हां।”
-“वह खतरनाक और मारामारी वाला आदमी ही है।”
-“आपके साथ भी हाथापाई की थी?”
-“इतना मौका ही उसे नहीं मिला।” बूढ़े का स्वर कठोर हो गया- “इससे पहले कि वह मेरे साथ ऐसी हरकत करने की कोशिश करता मैंने उसका सामान उठाकर बाहर फेंक दिया। लेकिन कुछ देर के लिए ऐसा माहौल जरूर बन गया था।”
-“क्या हुआ था?”
-“उस रोज मैं अपने कपड़े धो रहा था। वे दोनों बाहर कहीं गए हुए थे। मैंने यह सोचकर उनका सूटकेस खोला कि अगर उसमें मैले कपड़े हों तो उन्हें भी धो दूंगा। उसकी दो मैली कमीजें मिलीं। उन्हें निकालकर हिलाते ही उनमें लिपटी पिस्तौल निकलकर नीचे जा गिरी। उसके बारे में मेरा शक मजबूत हो गया कि वह शरीफ आदमी नहीं था। कुछ और टटोलने पर सूटकेस में नोट भी मिले।”
-“नोट?”
-“बैंक नोट। रुपए। पुराने अखबार में लिपटे बहुत सारे रुपए थे। पांचसों के नोटों की तीसेक गड्डीयाँ रही होंगी। मेरी अक्ल चकराकर रह गई। जिस आदमी के पास ढंग के चार जोड़ी कपड़े तक नहीं थे। जो शक्ल से ही फटीचर नजर आता था उसी के पास करीब पन्द्रह लाख रुपए नगद थे। उस रकम ने मेरा शक यकीन में बदल दिया कि वह कोई डाकू या लुटेरा था।”
राज की उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर थी।
-“फिर आपने क्या किया?”
-“जब वे दोनों वापस आए मैंने रकम और पिस्तौल के बारे में उससे पूछा।”
-“क्या?” आपको डर नहीं लगा?”
-“नहीं।” मैंने अपने बचाव का पूरा इंतजाम कर लिया था। गैस्ट हाउस के मालिकों ने मुझे एक दोनाली बंदूक दे रखी है। उससे बातें करते वक्त मैंने बंदूक को लोड करके अपने घुटनों पर रख लिया था। मेरे पूछते ही उसकी आंखों में खून उतर आया जैसे मेरी जान लेना चाहता था। मगर बंदूक के डर से मेरे पास तक नहीं आया।”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#60
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“उसने रकम की क्या सफाई दी?”
-“कुछ नहीं।”
-“फिर भी कुछ तो कहा ही होगा।”
-“वह मुझे गालियां बकता हुआ कमरे में गया। सूटकेस उठाकर बाहर निकला और अपनी कार लेकर चला गया।”
-“आपकी पोती ने उसे रोका नहीं?”
-“लीना ने काफी कोशिश की मगर उसकी बातों पर कोई ध्यान उसने नहीं दिया। वह उसे धकेलकर चला गया। इसके बाद लीना भी सैनी के साथ चली गई। और इसके लिए लीना को ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता। वह अकेली और करती भी क्या....लेकिन तुमने बताया था अब वापस जौनी के पास चली गई है। यह सही है?”
-“शायद।”
-“जौनी वाकई डाकू लुटेरा ही है?”
-“हां। उसने अपने बारे में आपको बताया था?”
-“कुछ खास नहीं।”
-“कितने रोज ठहरा था यहां?”
-“दो दिन। हां, याद आया। दो एक बार उसने विराटनगर का जिक्र किया था और वहां कई लोगों से उसने ताल्लुकात होने के बारे में भी बताया था।”
-“कैसे ताल्लुकात?”
-“बिजनेस के। शायद शराब के धंधे की कोई बात कही थी। लेकिन मैंने उसकी बकवास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।”
-“उसके चले जाने के बाद उसके बारे में लीना से तो आपने पूछा होगा।”
-“पूछा तो था लेकिन वह भी ज्यादा नहीं जानती। लीना का कहना था हफ्ते भर पहले ही विशालगढ़ में उससे मिली थी। मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि दोबारा उसके पास वापस न जाए।” बूढ़े ने बेचैनी से पहलू बदला- “मेरा ख्याल है मुझे फिर जाकर लीना से मिलना चाहिए।”
-“इसके लिए आपको लंबा सफर तय करना पड़ सकता है।”
बूढ़े ने सवालिया निगाहों से उसे दिखा।
-“क्या मतलब?”
-“आपकी सेहत कैसी है। हार्ट प्राब्लम तो नहीं है?”
बूढ़े ने अपनी छाती पर हाथ मारा।
-“नहीं। क्यों?”
-“आपकी पोती मुसीबत में है।”
-“लीना मुसीबत में है?”
-“हां। पुलिस को उसकी तलाश है। कार चुराने और हत्या के अपराध के संदेह में।”
-“किसकी हत्या के?”
-“पिछली रात सैनी को शूट करके मार डाला गया। मैंने लीना को घटनास्थल से भागते देखा था।”
बूढ़ा देर तक खामोश बैठा रहा।
-“तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो।” अंत में बोला- “यह पहले क्यों नहीं बताया?”
-“मैं आपको चोट पहुंचाना नहीं चाहता था।”
-“मैं बूढ़ा जरूर हूं लेकिन घबरा जाने वाला आदमी नहीं हूं। मैं जानता था, लीना मुसीबत में फंसने जा रही थी। उसे रोकने की बड़ी पूरी कोशिश मैंने की। अलीगढ़ जाकर उसे सैनी से दूर करने की कोशिश की। सैनी से भी और उसके उस शहर से भी....मगर उस जिद्दी लड़की ने मेरी बात नहीं मानी।” संक्षिप्त मौन के पश्चात पूछा- “क्या लीना ने ही हत्या की है?”
-“पता नहीं।”
-“लेकिन उसने कार तो चुराई थी?”
-“हां।”
-“उसे ऐसा करने की क्या जरूरत थी? अगर उसे पैसा चाहिए था तो मेरे पास आ जाती। मैंने अपना सब-कुछ उसे दे देना था।”
-“यह काम उसने पैसे के लिए नहीं किया। उसे वहां से भागने के लिए सवारी चाहिए थी। हो सकता है, उसका इरादा यहां आपके पास आने का रहा हो।”
बूढ़े ने बड़े ही दुखी और निराश मन से सर हिलाया।
-“मेरे पास वह नहीं आई।”
-“कहां गई हो सकती है?”
-“पता नहीं।” पुनः संक्षिप्त मौन के बाद पूछा- “अगर जौनी वाकई उसका पति है तो उसका क्या हुआ? वह कहां है?”
-“उसकी भी पुलिस को तलाश है। वह फरार है।”
-“उसने क्या किया?”
-“विस्की से भरा ट्रक उड़ाया था। उस ट्रक का ड्राइवर मारा गया।”
-“एक और मारा गया?”
-“हां। आप अंदाजा लगा सकते हैं जौनी और लीना भागकर कहां गए हो सकते हैं?”
-“नहीं।”
राज खड़ा हो गया।
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