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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
तेज रफ्तार से कार दौड़ाते राज को शहरी सीमा में पहुंचते ही एहसास हो गया कि लीना अब हाथ नहीं आ सकेगी। उसे कार लेकर भागे काफी देर हो गई थी।
मौजूदा हालात में ऐसी किसी भी जगह वापस उसने नहीं जाना था जहां वह रहती या जाती रही थी।
उसकी तलाश में जाने की बजाय बाहर मिसेज सैनी से मिलने चला गया।
*********
हवेली के एक कमरे में रोशनी थी।
दस्तक के जवाब में सेफ्टी चेन के सहारे दरवाजा खोला गया। मिसेज सैनी ने झिर्री से बाहर देखा।
-“कौन है?”
-”राज।”
-“ओह, याद आया......मोटल में मिले थे।”
-“मैं वहीं से आ रहा हूं। आपके पति के साथ दुर्घटना हो गई है।”
-“कार एक्सीडेंट?”
-“नहीं। शूटिंग एक्सीडेंट।”
-“सतीश? क्या उसकी हालत सीरियस है?”
-“बेहद सीरियस। मैं अंदर आ सकता हूं?”
उसने चेन टटोली। उसका हुक निकालकर पीछे हट गई।
राज भीतर दाखिल हुआ।
वह लो कट गले के डिजाइन वाला गाउन पहने थी। उसकी आंखें तनिक सूजी सी थीं। रोने की वजह से या न सो पाने के कारण।
-“मैं सो नहीं सकी। मेरा मन कह रहा था कोई भारी गड़बड़ होने वाली है।” वह दरवाजा बंद करके पलटी तो उसके चेहरे पर निगाहें जम गईं- “तुम्हें भी चोट आई है।”
-“फिलहाल मेरी फिक्र मत करो। मैं सही सलामत हूं।”
-“सतीश कितनी बुरी तरह जख्मी हुआ है?”
-“जितनी बुरी तरह मुमकिन है।”
-“मुझे उसके पास जाना चाहिए।” ऊपर की मंजिल पर जाने वाली सीढ़ियों की ओर बढ़ी फिर पलटकर पूछा- “तुम्हारा मतलब है वह मर गया?”
-“उसका मर्डर किया गया था, मैसेज सैनी। तुम्हें अब वहां नहीं जाना चाहिए। वे लोग आने वाले होंगे।
-“कौन लोग?”
-“पुलिस। इन्सपैक्टर चौधरी तुमसे पूछताछ जरूर करेगा। मुझे भी कुछ पूछना है।”
वह अनिश्चित सी खुले दरवाजे से गुजरकर लिविंग रूम में पहुंची।
राज ने भी उसका अनुकरण किया।
सोफे की साइड से टिकी खड़ी मिसेज सैनी ने अपनी कनपटियां सहलाईं।
-“वह कैसे मारा गया?”
-“शूट किया गया था। मोटल के ऑफिस में कोई घंटा भर पहले।”
-“तुम्हारा मतलब है, मैं मर्डर सस्पेक्ट हूं?”
-“मैं ऐसा नहीं समझता।”
-“क्यों?”
-“शायद इसलिए कि मुझे तुम्हारा चेहरा पसंद है।”
-“लेकिन मुझे अपना चेहरा पसंद नहीं है। कोई और बेहतर वजह बताओ।”
-“ओ के। क्या तुमने उसे शूट किया था?”
-“नहीं।” उसके शुष्क स्वर में दृढ़ता थी- “लेकिन यह समझने की गलती भी मत करना कि मुझे कोई रंज या दुख है। मैं सिर्फ कनफ्यूज्ड हूं। समझ में नहीं आता क्या महसूस करूं। वैसे ज्यादा अहसासात मेरे अंदर बचे भी नहीं है। मैं यह भी नहीं कह सकती कि मुझे खेद है। सतीश अच्छा आदमी नहीं था। और यह शायद उसके लिहाज से ठीक ही था क्योंकि उसके विचार से मैं भी अच्छी औरत नहीं हूं।”
-“पुलिस के सामने ऐसी बातों से काम नहीं चलेगा। वे लोग सीधी और साफ बातें पसंद करते हैं। उनका सबसे पहला शक तुम पर जाएगा। और तुम्हें एलीबी की जरूरत पड़ेगी। क्या तुम्हारे पास एलीबी है?”
-“किस वक्त की?”
-“पिछले एक डेढ़ घंटे की।”
“मैं यहां घर में ही थी।”
-“आपके साथ कोई नहीं था?”
-“नहीं। करीब घंटे भर से मैं यहां सोफे पर ही पड़ी हुई थी। उससे पहले करीब आधे घंटे तक दरवाजे में अपने मोती ढूंढती रही थी। माला टूट जाने की वजह से वहां गिर गए थे। उन सबको उठाकर इकट्ठा करने के बाद मैंने फेंक दिया। यह मेरा पागलपन था न?” वह पुन: अपनी कनपटियां सहलाने लगी- “सतीश कहा करता था, मैं पागल हूं। तुम समझते हो वह ठीक कहता था?”
-“मेरे विचार से तुम एक अच्छी औरत हो जिसे बहुत ज्यादा दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है। मुझे खेद है अभी और भी सहना पड़ेगा।”
राज ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
बस सोफे पर बैठ गई। उसकी आंखों में गीलापन था।
-“हमदर्दी जाहिर मत करो। मुझे हमदर्दी की आदत नहीं है। मैं चाहती हूं मुझ पर उसकी हत्या का इल्जाम लग जाए। अगर मैंने उसकी हत्या की होती तो शायद इतना खालीपन महसूस नहीं करना था।”
-“अगर तुमने हत्या की होती तो क्या होता? तुम इससे इंकार करतीं?”
-“मुझे नहीं लगता कि करती।” वह धीरे से बोली- “ईमानदारी एक ऐसा गुण है, जिसे मैं छोड़ चुकी हूं।”
-“खुद को इतना कमतर क्यों बनाया तुमने?”
-“मुझे कमतर बना दिया गया और बनाने वाला एक्सपर्ट था।”
-“कौन? तुम्हारा पति?”
-“हां। सतीश जब भी नशे में होता पूरा सैडिस्ट बन जाता था और वह अक्सर नशे में रहता था। मुझे सताने में उसे मजा आता था।” उसने अपनी आंखें बंद कर ली- “मैं भी निर्दयी थी। यह सब एकतरफा नहीं था। सच बात यह है, आज रात जब उसने यह घर छोड़ा जब मुझे छोड़कर गया मेरे दिल में आया था उसे जान से मार डालूँ। मैंने उसके पीछे जाकर सड़क पर उसे शूट कर देना था। अगर मेरे पास गन होती तो ऐसा कर भी सकती थी। लेकिन यह पूरी तरह बेकार ही होता। फायदा तो कुछ होना नहीं था।” उसने आंखें खोलकर राज को देखा- “तुम जानते हो, उसकी हत्या किसने की थी?”
-“यकीनी तौर पर कुछ भी कह पाना मुश्किल है। लीना घटनास्थल के पास थी...।”
-“उसकी चहेती वो घटिया औरत?”
राज ने सर हिलाकर हामी भरी।
-“वह एक कार चुराकर वहां से भाग गई। लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि उसे शूट भी उसी ने किया था।”
-“अगर हत्या उसी ने की थी तो अब वो एक मजाक बन गया। सारा सिलसिला ही एक मजाक है। सतीश का कहना था वह एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहा था।” उसके लहजे में कड़वाहट आ गई- “नई जिंदगी।”
-“लेकिन हालात को देखते हुए यह मजाक बिल्कुल नहीं लगता। तुम्हारा पति गले तक अपराध में फंसा हुआ था। इसी ने उसे हिंसक मौत के हवाले कर दिया।”
आशा के अनुरूप उसे शॉक सा लगा। एकदम खड़ी हो गई।
-“सतीश अपराध में फंसा था? नहीं, तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई है।”
-“गलतफहमी या गलती का सवाल ही पैदा नहीं होता। वह अकेला नहीं था। लीना भी उसके साथ इसमें शामिल थी। तुम ट्रक गायब हो जाने के बारे में जानती हो?”
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हां। इन्सपैक्टर आज रात यहां आया था।”
-“किसलिए? वह क्या चाहता था?”
-“पता नहीं। जब वे बातें कर रहे थे मैं कमरे में नहीं थी। लेकिन उनकी आवाजों से लगा वे किसी बात पर उलझ रहे थे और इसमें जीत सतीश की हुई थी।”
-“तुमने सुना नहीं। किस बात पर उलझ रहे थे?”
-“नहीं। जब बृजेश.....जब इन्सपैक्टर चौधरी जा रहा था मैंने उससे पूछा क्या बात थी। उसने बताया चोरी गए ट्रक का मामला था।”
-“वह तुम्हारे पति पर शक करता था?”
-“नहीं। वह बहुत ज्यादा गुस्से में था लेकिन सतीश के बारे में उसने कुछ नहीं कहा।”
-“वह कब आया था?”
-“करीब दस बजे।”
-“क्या तुम और इन्सपैक्टर एक-दूसरे से काफी बेतकल्लुफ हो?”
-“हां। बृजेश बरसों तक मेरे परिवार के नजदीक रहा है। उसका पिता और मेरे डैडी गहरे दोस्त थे। मेरे डैडी ने उसकी कालेज की पढ़ाई के समय उसकी काफी मदद की थी।”
-“पैसे से?”
-“हां।”
-“यानी इन्सपैक्टर तुम्हारे पिता का अहसानमंद है?”
-“हां।”
-“क्या इन्सपैक्टर से आज रात हुई बहस में तुम्हारे पति के जीतने की वजह इन्सपैक्टर का तुम्हारे पिता के प्रति एहसानमंद होना भी रही हो सकती है?”
-“बिल्कुल नहीं।” पलभर सोचने के बाद वह बोली- “फर्ज अदायगी के मामले में आपसी ताल्लुकात की कोई परवाह बृजेश नहीं करता।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है?”
-“हां। मैं बृजेश को जानती हूं।”
-“उसे बहुत ज्यादा पसंद भी करती हो?”
-“न-नहीं। और मैं नहीं समझती कि कोई भी उसे बहुत ज्यादा पसंद करता है। लेकिन जो उसने किया है उसकी मैं हमेशा तारीफ करती हूं। उसकी ईमानदारी की इज्जत करती हूं।”
-“ऐसा क्या किया है उसने?”
-“वह सेल्फ मेड मैन है। बहुत स्ट्रगल करके तालीम और यह नौकरी हासिल की है। इस पूरे इलाके में उसे मेहनती, ईमानदार, फर्ज का पाबंद और सबसे अच्छा पुलिस अफसर समझा जाता है।”
-“इन्सपैक्टर से हुई झड़प के बारे में तुम्हारे पति ने कुछ बताया था?”
-“झड़प नहीं, वह महज बहस थी। सतीश ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। अगर वह वाकई जुर्म में शामिल था, जैसा कि तुमने बताया है, तो यह समझ में आने वाली बात है।”
-“वह वाकई जुर्म में शामिल था।”
-“तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?”
-“मैंने आज रात लीना से बातें की थीं। जब तक वह मुझे तुम्हारे पति का दोस्त समझती रही उसने कई राजदार बातें मुझे बताईं। मसलन, इस ट्रक को गायब करने में उसके और तुम्हारे पति के अलावा जौनी नाम का एक आदमी भी शामिल था। जौनी एक बदमाश है।” उसका हुलिया बताने के बाद बोला- “अपने पति के साथ तुमने भी उसे देखा हो सकता है।”
हुलिया बताए जाने से पहली बार वह हालात की असलियत को समझती प्रतीत हुई।
-“नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। यह सच नहीं हो सकता। सतीश मेरे साथ मोटल में रहा था।”
-“सारा दिन?”
-“दोपहर बाद के ज्यादातर वक्त। वह लंच बाद एकाउंट्स देखने आया था। फिर उसने ऑफिस में पीना शुरु कर दिया। कुछ अर्से से वह बहुत ज्यादा पीने लगा था।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है, वह ऑफिस से नहीं गया?”
-“हां। इसका मतलब यह नहीं है मैं वहां बैठी उसे वॉच कर रही थी। मगर मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं शूटिंग से कोई ताल्लुक उसका नहीं था।”
-“उसका गहरा ताल्लुक था। वह मौके पर मौजूद था या नहीं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार लोगों में से वह भी एक था।”
-“तुम्हारा मतलब है सतीश ने अपने फायदे की खातिर कोल्ड ब्लडेड मर्डर प्लान किया था?”
-“मुझे पूरा यकीन है ट्रक को गायब कराने की योजना उसकी थी। और मर्डर इसका एक हिस्सा था। इन दोनों वारदातों को अलग नहीं किया जा सकता।”
-“मैं सिर्फ इतना जानती हूं वह मुसीबत में था। मुसीबत कितनी बड़ी थी मुझे नहीं मालूम। उसे मुझको बताना चाहिए था।” एकाएक उसका स्वर धीमा हो गया मानो स्वयं से कह रही थी इस अंदाज में फुसफुसाई- “वह इस हवेली को ले सकता था। कुछ भी ले सकता था।”
-“इस केस में फायदे के लिए मर्डर से भी ज्यादा कुछ है। तुम्हारे पति की हत्या ने इस मामले को और ज्यादा उलझा दिया है।”
-“मेरा ख्याल है तुमने कहा था वह लड़की लीना...।”
-“बेशक, वह लॉजीकल सस्पेक्ट तो है। लेकिन असलियत क्या है मैं नहीं जानता। वे दोनों साथ-साथ यहां से जाने वाले थे। लीना उसे प्यार करती थी।”
-“उसे प्यार करती थी?”
-“अपने ढंग से। उससे और ऐश की जिंदगी से जो उसे देने का वादा उसने किया था। वे नेपाल जाकर हमेशा वहीं रहने वाले थे।”
उसकी आंखों में पीड़ा उभर आई।
-“तुम यह कैसे जानते हो?”
-“खुद लीना ने ही मुझे बताया था। वह झूठ नहीं बोल रही थी। वह जागती आंखों से सपना तो देख रही हो सकती थी लेकिन झूठ नहीं बोल रही थी। और यही एक दिलचस्प बात नहीं थी जो उसने कही थी। दरअसल ओरीजिनल प्लान के मुताबिक ट्रक को हाईजैक कराने में मीना बवेजा ने भी कुछ करना था। लेकिन मनोहर ने लीना को मीना बवेजा के बारे में कुछ ऐसा बताया कि प्लान चेंज करना पड़ गया।”
-“क्या बताया था?”
-“मुझे नहीं मालूम। लीना को मुझ पर शक हो गया और वह मुझे बेवकूफ बना कर भाग गई। मेरा ख्याल था तुम बता सकती हो।”
उसकी आंखें फैल गई।
-“तुमने कैसे समझ लिया।” धीमे स्वर में सावधानीपूर्वक बोली- “कि मीना बवेजा के बारे में मैं कुछ जानती होंऊगी?”
-“मोटल मैं अपने पति द्वारा दखल दिए जाने से पहले तुमने उसके बारे में काफी कुछ बताया था। तुम चाहती थीं उसका पता लगाकर उस पर नजर रखी जाए। याद आया?”
-“मैं इसे भूल जाना पसंद करूंगी। उस वक्त मैं हसद से पागल सी हो गई थी। अब यह खत्म हो गया। सब-कुछ खत्म हो गया। हसद के लिए बचा ही कुछ नहीं।”
-“तुम्हारा मतलब है मीना को कुछ हो गया?
-“मेरा मतलब है, मेरा पति मर चुका है। और किसी के मरे हुए आदमी से जलन या ईर्ष्या नहीं की जा सकती। वैसे भी मेरा अंदाजा गलत था। मीना वह थी ही नहीं।”
-“एक वक्त तो वह थी।”
-“हां। लेकिन वो खत्म हो गया था। पिछले शुक्रवार हुई एक बात से मुझे गलत फहमी हो गई थी। सतीश ने वीकएंड के लिए उसे लॉज इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी। वह चाबियाँ लेने यहां आई और मैंने बातें सुन लीं।” उसके स्वर में पैनापन आ गया- “सतीश को ऐसा करने का कोई हक नहीं था। वो लॉज मेरी है। इसी बात से मैं परेशान हो गई थी।”
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
मोती झील की चौड़ाई कम होने के कारण दूर से देखने पर वो संकरा जलाशय नजर आती थी। पहाड़ी घुमावदार सड़क पर फीएट ड्राइव करता राज एक टूरिस्ट लॉज, एक रोड साइड रेस्टोरेंट और कुछेक कॉटेजो के पास से गुजरा। वे सभी खाली पड़े थे। सर्दी की वजह से दरवाजे खिड़कियां मजबूती से बंद थे।
पांच-छह मील लंबी झील के लगभग आधे रास्ते में एक पैट्रोल पम्प था। जब राज ने वहां पहुंचकर कार रोकी तो वो भी बंद मिला।
वह कार से उतरा।
पम्प पर कोई नहीं था। गत्ते के एक बड़े से टुकड़े पर सूचना लिखी थी।
-“पानी या हवा की जरूरत हो तो ले सकते हो।
पैट्रोल के लिए सुबह दस बजे तक इंतजार करना होगा।”
राज गर्म रेडिएटर में पानी भर के आगे बढ़ गया।
करीब आधा मील जाने के बाद चीड़ के पेड़ पर लकड़ी का एक पुराना और मौसमों की मार खाया साइन बोर्ड लगा नजर आया।
हिल क्वीन : सी. के. सक्सेना, अलीगढ़।
उसके नीचे अपेक्षाकृत नया और छोटा साइन बोर्ड लगा था।
सतीश सैनी,
राज उसी सड़क पर मुड़ गया।
कथित लॉज ढलान पर बनी और सड़क की ओर पेड़ों से घिरी काठ की एक मंजिला इमारत थी।
राज वरांडे में पहुंचा। खिड़कियों के भारी लकड़ी के पल्ले खुले थे। प्रवेश द्वार की बगल में बनी खिड़की से उसने अंदर देखा।
नीम अंधेरे कमरे में कोई नजर नहीं आया। फर्श पर फायर प्लेस के पास रीछ की खाल जैसा नजर आता मोटा कारपेट बिछा था। आवश्यक फर्नीचर भी नजर आ रहा था।
राज ताला खोलकर भीतर दाखिल हुआ।
अंदर ठंडक ज्यादा थी। बंद कमरे में पार्टी की बासी गंध बसी थी। मुख्य कमरे में पार्टी हुई होने के और भी चिन्ह थे। मेज पर रखी पीतल की बड़ी सी एश ट्रे सिगरेट के अवशेषों से आधी भरी थी। उनमें से अधिकांश पर लिपस्टिक के दाग थे मेज पर मौजूद कांच के दो गंदे गिलासों में से एक पर भी लिपस्टिक के दाग लगे थे। बगैर छुए झुककर सुघंने पर राज को लगा उन्हें बढ़िया स्कॉच पीने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
फायरप्लेस के पास जाकर वहां मौजूद राख को छुआ।
राख ठंडी थी।
सीधा खड़ा होते समय मोटे कारपेट के रेशों के बीच कोई चीज पड़ी दिखाई दी।
स्त्रियों द्वारा बालों में लगायी जाने वाली क्लिप थी।
कारपेट को उंगलियों से टटोलने पर वैसी एक क्लिप और मिली।
राज सोने वाले कमरों में पहुंचा। उनमें से एक में जमी धूल से जाहिर था कि उसे हफ्तों या महीनों से इस्तेमाल नहीं किया गया था। दो बैडरूम अपेक्षाकृत छोटे थे। उनमें से एक की हालत भी वैसी ही थी। लेकिन दूसरा हाल ही में इस्तेमाल किया गया था। फर्श साफ था। बिस्तर को सोने के लिए प्रयोग किया गया था। लेकिन उठने के बाद सही नहीं किया गया था।
राज ने कंबल और चादरें सही कीं। उनके बीच रबर की एक पिचकी ट्यूब पड़ी थी।
कमरे में कपड़े या सामान के नाम पर कुछ नहीं था। लेकिन भारी ड्रेसिंग टेबल पर औरतों द्वारा प्रयोग की जाने वाली कई चीजें मौजूद थीं- नेल कटर फेस क्रीम का छोटा जार जो खुला पड़ा रहने के कारण सूखना शुरू हो गया था, कीमती सन ग्लासेज, वैसी ही और हेयर क्लिप्स जैसी कारपेट पर मिली थीं।
साथ ही बने बाथरूम में कुछ और चीजें मिलीं- टूथपेस्ट, टूथब्रुश, लिपस्टिक और एस्ट्रोजन आयल की शीशी। ये लगभग वही तमाम चीजें थीं जो अलीगढ़ में मीना बवेजा के घर में नहीं मिली थीं।
किचिन हवादार थी। स्टोव पर रखे फ्राइंग पैन में अंडे फ्राई किए जाने पर बचे अवशेष पर मक्खियां भिनक रही थीं। किचन टेबल पर दो व्यक्तियों के खाने के झूठे बर्तन पड़े थे। कोने पर ब्लैक डॉग की खाली बोतल रखी थी।
राज किचिन से पिछले दरवाजे से बाहर निकला।
पिछली दीवार के पास तिरपाल के नीचे सूखी लकड़ियों का ऊंचा ढेर लगा था। आउट हाउस में टूटा फर्नीचर छोटी सी नाव, मछलियां पकड़ने वाली पुरानी रॉड वगैरा भरे थे।
किचन के दरवाजे से लॉज में जाकर राज ने एक बार फिर हरएक कमरे का मुआयना किया। कोई नई चीज तो नजर नहीं आई लेकिन उसे लगा वहां सैक्स और डैथ का वास रहा था।
प्रवेश द्वार लॉक करके अपनी फीएट में सवार होकर लौट पड़ा।
पैट्रोल पम्प पर अब एक अधेड़ औरत मौजूद थी। शलवार सूट पहने खिचड़ी बालों वाली वह औरत दुनियादारी के मामलात में खासी तजुर्बेकार नजर आती थी।
फीएट रुकते ही पास आ खड़ी हुई।
-“पैट्रोल चाहिए?”
-“हां।”
राज ने कार से उतरकर पैट्रोल टंकी का लॉक खोल दिया। औरत पैट्रोल डालने लगी।
-“तुम विराटनगर से आए हो?”
-“हाँ।”
-“आज तुम मेरे पहले कस्टमर हो।”
-“सीजन तो अब खत्म हो गया है?”
-“हाँ। सर्दी काफी पड़ने लगी है। मैं इसी हफ्ते पम्प बंद करके नीचे चली जाऊंगी। स्नो फाल में यहां फंसना नहीं चाहती।”
-“सर्दियों में यहां कोई नहीं रहता?”
-“सिर्फ बूढ़ा डेनियल ही इस पूरे इलाके में रहता है। तुम पहली बार यहां आए हो?”
-“हां।”
-“गर्मियों में तो विराटनगर से काफी टूरिस्ट आते हैं। तुम इतनी देर से क्यों आए?”
-“यूं ही धक्के खाने चला आया था।”
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11-30-2020, 12:49 PM,
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
टैंक भर गया था। औरत ने पाइप निकाल लिया। मीटर देखा। हिसाब लगाकर पैसे बता दिए।
राज रात में जहां ठहरा था वहां से एक ट्रैवलर चैक कैश करा लिया था। उसने पैट्रोल की कीमत चुका दी।
-“नीचे आस-पास के शहरों से तो लोग यहां आते ही रहते होंगे।”
-“बहुत से लोगों ने यहां अपने कॉटेज बना रखें हैं। गर्मी से निजात पाने के लिए यहां आते रहते हैं। मैं खुद सूरजपुर में रहती हूं। सर्दियों में वही चली जाती हूं। मेरा बेटा रनजीत कालेज में पढ़ता है।”
स्पष्टत: औरत बातूनी थी।
-“आपका बेटा होशियार और मेहनती होगा।” राज ने तारीफी लहजे में कहा।
-“वह बहुत अच्छा लड़का है। मेरी बहुत इज्जत करता है। हर एक बात मानता है मेहनती भी बहुत है। जब भी टाइम मिलता है यहां काम में मेरी मदद करता है।”
-“आजकल के लड़के ऐसे कम ही होते हैं। ज्यादातर लापरवाह, कामचोर और गैर-जिम्मेदार होते हैं।”
-“तुम क्या काम करते हो?”
-“डिटेक्टिव हूं।”
-“रनजीत का पिता-मेरा मतलब है, मेरा पति जसवंत सिंह भी पुलिस में कांस्टेबल था.... हालांकि बाद में वह गलत.... खैर, छोड़ो।” उसने खोज पूर्ण निगाहों से राज को घूरा- “तुम किसी को ढूंढ रहे हो?”
-“आपने सही समझा।”
-“लेकिन यहां तो मेरे और बूढ़े डेनियल के अलावा सिर्फ फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग ही हैं। गैस्ट हाउस बंद हो चुका है।”
राज ने पेड़ों से गुजरती उसकी निगाहों का अनुकरण किया तो झील के ऊपरी सिरे पर गैस्ट हाउस की नीली छतें दिखाई दे गईं।
औरत ने पलटकर आशंकित नजरों से उसे देखा- “रनजीत को तो नहीं ढूंढ रहे? उसने कोई गलत काम किया है?”
-“नहीं। मुझे एक लड़की की तलाश है। उसका नाम मीना बवेजा है। उसकी फोटो भी मेरे पास है।
राज ने फोटो उसे दे दी।
औरत गौर से देखने लगी।
-“मेरा ख्याल सही निकला।” अंत में बोली- “मैं जानती थी यह कोई अच्छी लड़की नहीं है।”
-“आपने इसे देखा है?”
-“बहुत बार। यह उस घटिया आदमी के साथ आया करती थी जिसने रजनी सक्सेना से शादी की थी।”
-“सैनी...... सतीश सैनी।”
-“हां, वही निकम्मा और दूसरी औरतों के पीछे भागने वाला।” औरत के लहजे में हिकारत थी- “क्या रजनी ने उससे तलाक लेने का फैसला कर लिया है?”
-“आपने सही अंदाजा लगाया।” राज ने उसे प्रोत्साहित किया।
-“मैं रजनी सक्सेना को तब से जानती हूं जब छोटी सी थी। बड़ी होशियार और प्यारी बच्ची थी। लेकिन अपने आप को संभालना और दुनियादारी को समझना वह कभी नहीं सीख सकी। हालांकि उसका पिता जज सक्सेना खानदानी रईस, इज्जतदार और भला आदमी था। और उसका कोई दोष इसमें नहीं था। मेरे ख्याल से इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। रजनी की किस्मत ही खराब है। जिससे उसकी सगाई हुई थी वह काश्मीर में आतंकवादियों के हाथों मारा गया। मां-बाप भी मर गए। तब अकेली और बेसहारा रह गई रजनी गलत आदमी से शादी कर बैठी। गलत आदमी से शादी करने पर क्या होता है यह मैं खुद भी अच्छी तरह जानती हूं।” उसने तल्खी से कहा। फिर क्षणिक मौन के पश्चात बोली- “जब भी मैं सोचती हूं सैनी जैसे आदमी से शादी करके रजनी ने खुद को तबाह कर लिया है तो मेरा दिल रो उठता है। उस घटिया आदमी ने जज की लॉज को अपनी रखैलों के साथ ऐश करने का अड्डा बनाकर रख दिया है।”
राज ने उसके हाथ में थमी फोटो की ओर इशारा किया।
-“इस लड़की को आपने आखरी दफा कब देखा था?”
-“सोमवार को। काफी अर्से बाद पहली बार उसने अपना वीकएंड यहां गुजारा था। इस दफा पूरे सीजन में पहले वह नहीं आई। इसलिए उसे देखकर मुझे ताज्जुब हुआ।”
-“क्यों?”
-“क्योंकि सैनी ने अब एक नई लड़की पकड़ ली है।” औरत ने मुँह बनाते हुए गैस्ट हाउस की दिशा में देखा- “पिछली गर्मियों में बात अलग थी। यह लड़की तकरीबन हर एक वीकएंड में उसके साथ कार में आया करती थी। मैं अक्सर सोचती थी कि क्या रजनी इस बारे में जानती है। कई दफा मेरे मन में आया गुमनाम खत लिखकर रजनी को बता दूं। मगर ऐसा किया नहीं।”
-“मेरी दिलचस्पी सिर्फ पिछले वीकएंड में है।”
-“वह शनिवार को कार में आई थी। मुझसे पानी मांगा। उसका रेडिएटर गर्म हो गया था। उसे देखकर मेरा भी पारा चढ़ गया। मेरे जी में आया उससे कह दूं झील में पानी ही पानी है वहां जाकर डूब मरे। लेकिन रनजीत को यह अच्छा नहीं लगना था। वह भी यहीं था और वह हमेशा दूसरों से अच्छे संबंध बनाए रखने की वकालत किया करता है।”
-“कार कैसी थी?”
-“काली फीएट। पता नहीं, उसे खरीदने के लिए उसके पास पैसा कहां से आया?”
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