Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
11-30-2020, 12:49 PM,
#61
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़ा विचारपूर्वक उसे देख रहा था।
-“उस लड़की का इस सबसे क्या ताल्लुक है?”
-“कौन सी लड़की का?”
-“वही जो गायब है और जिसकी सैंडल की टूटी एड़ी तुम्हें मिली थी।”
-“यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मैं भी जानना चाहता हूं।”
-“तुम अलीगढ़ जा रहे हो?”
-“हां। अगर आप चलना चाहे तो मैं आपको लिफ्ट दे सकता हूं।”
-“इस मेहरबानी के लिए शुक्रिया। लेकिन मैं अभी इस बारे में सोचना चाहता हूं।”
-“अगर लीना यहां आती है तो क्या आप मुझे बता देंगे? मिसेज सैनी के जरिए आप मुझे कांटेक्ट कर सकते हैं।”
-“इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। हो सकता है, बता दूं और हो सकता है न भी बताऊँ। बूढ़े ने गहरी सांस ली- “यहां मेरे पास वह नहीं आएगी।”
-“मैं लीना की भलाई की खातिर ही कह रहा हूं।” दरवाजे से निकलता राज बोला- “अगर वह यहां आए तो मुझे बता देना।”
बूढ़ा दोनों हाथों से सर थामें खामोश बैठा रहा।
*********
झील के किनारे के साथ जाती सड़क पर फीएट ड्राइव करता राज सैनी की लॉज के पास से गुजरने के बाद चौंका।
लॉज तक गई प्राइवेट रोड के सिरे पर जिप्सी खड़ी थी। ड्राइविंग सीट पर मौजूद मिसेज सैनी विंडशील्ड के पीछे से जोर-जोर से उसकी ओर हाथ हिला रही थी।
सड़क की साइड में फीएट पार्क करके राज उसके पास पहुंचा।
सफेद शलवार सूट में आश्चर्यजनक ढंग से खूबसूरत नजर आने के बावजूद उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था।
-“मुझे उम्मीद नहीं थी तुम यहां मिलोगी।” राज बोला।
-“सुखवंत कौर ने बताया तुम यहां आए हो। मैं समझ गई इधर से ही वापस लौटोगे इसलिए यहां आकर इंतजार करने लगी।”
-“इनके लिए?” राज ने कहा और चाबियां निकालकर उसे दे दीं।
-“मैं इसलिए नहीं आई।” नर्वस भाव से हाथ में चाबियां थामें वह बोली- “अब जबकि मैं यहां आ गई हूं तो लॉज को देखना चाहती हूं। तुम साथ चलोगे?”
-“अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो वहां नहीं जाना था।”
-“मीना वहीं है?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“मैंने दरवाजे पर दस्तक दी थी।” वह कहती गई- “लेकिन कोई नहीं बोला। क्या वह अंदर छिपी हुई है?”
-“नहीं, वह वहां कहीं नहीं है। जैसा कि तुम्हारे पति ने कहा था मीना बवेजा गायब हो गई है।”
-“लेकिन उसने सोमवार के बारे में मुझसे झूठ बोला था। सोमवार को सुखवंत कौर ने उन्हें साथ-साथ देखा था।”
-“उसने ही नहीं बूढ़े डेनियल ने भी उन्हें देखा था। बूढ़े ने जंगल में उन्हें अजीब सा काम करते हुए भी पकड़ा था।”
मिसेज सैनी के चेहरे पर शर्म की सुर्खी दौड़ गई।
-“ऐसा क्या कह रहे थे? क्या वे....?”
-“नहीं। वह जमीन में गड्ढा खोद रही थी और तुम्हारा पति उसे खुदाई करते देख रहा था।”
-“क्या? गड्ढा खोद रही थी?”
-“हां।”
-“लेकिन क्यों? किसलिए?”
-“यह मैं भी नहीं जानता। तुम्हारे साथ बैठ सकता हूं?”
-“जरूर। आओ।”
वह बगल वाली सीट पर खिसक गई।
राज ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसने ब्राउन चमड़े की एड़ी निकालकर उसे दिखाई।
-“इसे पहचानती हो?”
उसने एड़ी को उलट पुलट कर गौर से देखा।
-“लगता तो है। किसकी होनी चाहिए?”
-“तुम बताओ।”
-“मीना बवेजा की?”
-“यह जानती हो या अंदाजा लगा रही हो?”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#62
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“पूरे यकीन के साथ नहीं कर सकती। मेरा ख्याल है पिछले शुक्रवार को जब उसे देखा वह ऐसी ही सैंडल पहने थी। तुम्हें यह कहां से मिली?”
-“जंगल में। बूढ़े डेनियल ने उन्हें चिल्लाकर टोका तो वे घबराकर भाग खड़े हुए। इसी हड़बड़ी में वह गिरी और उसके सैंडल की हील उखड़ गई।”
-“आई सी।” एड़ी वापस राज को लौटाकर बोली- लेकिन वे जंगल में गड्ढा क्यों खोद रहे थे?”
-“वे नहीं। वह खोद रही थी। तुम्हारा पति वहां खड़ा उसे खुदाई करती देख रहा था।”
-“लेकिन क्यों?”
-“इससे सवाल तो कई पैदा होते हैं मगर जवाब शायद एक ही हो सकता है। राज बोला- “मैंने ऐसे सैडिस्टिक हत्यारों के बारे में सुना है जो अपने शिकार को सुनसान जगह पर ले जाते हैं। फिर जबरन उसी से उसकी कब्र खुदवाते हैं। अगर वह मीना की हत्या की योजना बना रहा था...।”
-“मैं नहीं मान सकती।” तीव्र स्वर में प्रतिवाद करती हुई बोली- “सतीश ऐसा आदमी नहीं था। ऐसा कुछ उसने नहीं किया हो सकता।”
-“तुम्ही ने तो बताया था वह सैडिस्ट था।”
-“लेकिन मेरा यह मतलब तो नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैंने उसे सिर्फ इसलिए सैडिस्ट कहा था क्योंकि मुझे दुखी परेशान करने और सताने में उसे मजा आता था।”
-“खैर, मुझे जो एक संभावना सूझी मैंने बता दी।” राज बोला- “क्या मैं सिगरेट पी सकता हूं?”
-“श्योर।”
राज ने प्लेयरज गोल्ड लीफ का एक सिगरेट सुलगाया।
-“सोमवार रात में जब तुम्हारा पति घर लौटा तुमने उसे देखा था?”
-“हां। हालांकि काफी रात गए लौटा था लेकिन मैं जाग रही थी।”
-“तुमसे कुछ कहा था उसने?”
-“याद नहीं।” वह विचारपूर्वक बोली- “नहीं, याद आया, मैं बिस्तर में थी। वह बिस्तर पर नहीं आया। पहले बैठा विस्की पीता रहा फिर देर तक घर में इधर-उधर घूमने की उसके कदमों की आहटें सुनाई देती रही। आखिरकार मैं एक स्लीपिंग पिल निगलकर सो गई।”
-“यानी तुमसे कोई बात उसने नहीं की?”
-“नहीं।” अचानक उसने राज की बाँह पर हाथ रख दिया- “तुम कैसे कह सकते हो, सतीश ने उसे मार डाला? जबकि तुम यह तक नहीं जानते वह मर चुकी है।”
-“मैं मानता हूं उसकी लाश नहीं मिली है। लेकिन बाकी जो भी बातें सामने आयी हैं इसी ओर संकेत करती हैं। अगर वह मरी नहीं तो कहां है?”
राज कि बाँह पर एकाएक उसकी उंगलियां जोर से कस गई और आंखों में विषादपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए।
-“मुझसे पूछ रहे हो? क्या तुम समझते हो, मैंने उसे मार डाला?”
-“नहीं, बिल्कुल नहीं।”
राज के इंकार की ओर ध्यान देती प्रतीत वह नहीं हुई।
-“सोमवार को सारा दिन मैं घर में रही थी।” उसने कहना जारी रखा- “इसे साबित भी मैं कर सकती हूं। दोपहर बाद मेरी एक सहेली मेरे पास आई थी। उसने लंच मेरे साथ लिया था फिर रात के खाने पर भी ठहरी थी। जानते हो, वह कौन थी?”
-“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे सामने अपनी एलीबी पेश करने की कोई जरूरत तुम्हें नहीं है।”
-“जरूरत भले ही न हो मगर मैं बताना चाहती हूं। तुम्हें सुनने में एतराज है?”
-“नहीं।”
-“मेरी वह सहेली थी- सुमन चौधरी। एस. एच.ओ. समर सिंह चौधरी की पत्नि। हम अपनी महिला समिति की ओर से गरीब औरतों में सिलाई मशीनें बांटने के प्रोग्राम पर विचार करते रहे थे। हालांकि यह चार दिन पुरानी बात है मगर मुझे लगता है जैसे चार साल पुरानी बात हो। काफी सोच-विचार के बाद भी हम ठोस और कारआमद नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं। हमने बेकार ही वक्त जाया किया।”
-“तुम ऐसा समझती हो?”
-“अब समझ रही हूं। अब मुझे हर एक बात बेकार और बेवकूफाना लगती है। क्या तुम्हें कभी ऐसा लगा है कि वक्त तुम्हारे लिए ठहर गया है और तुम ऐसे शून्य में जी रहे हो जिसमें भविष्य कोई आएगा नहीं और भूत कोई था नहीं?”
-“मेरे साथ तो ऐसा नहीं हुआ लेकिन अक्सर लोगों के साथ होता रहता है। मगर ज्यादा दिन ऐसा रहता नहीं है। तुम्हारे साथ भी नहीं रहेगा। वक्त बड़े से बड़े जख्म को भर देता है।”
-“तसल्ली देने के लिए शुक्रिया।” संक्षिप्त मौन के पश्चात वह बोली- “तुमने कल रात भी मेरे साथ हमदर्दी जाहिर की थी और अब भी यही कर रहे हो। क्यों?”
राज मुस्कराया।
-“मुसीबतजदा या परेशान हाल औरतों के साथ हमदर्दी करना मेरी आदत है। अब मैं एक सीधा सा सवाल पूछता हूं- तुम, आज यहां क्यों आई हो?”
-“शायद तुमसे दोबारा मिलना चाहती थी। पिछली रात और आज सुबह बृजेश से हुई बातों ने मुझे बहुत ज्यादा डरा दिया था।”
-“ऐसा क्या कहा था उसने?”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#63
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हालांकि कोई इल्जाम तो मुझ पर नहीं लगाया मगर उसका व्यवहार अजीब था। किसी ऐसे आदमी जैसा जिसे मैं बिल्कुल नहीं जानती और जो मुझे नहीं जानता। एकदम अजनबियों की तरह पेश आया था वह। और उसका मातहत एस. आई.।
-“सतीश।?”
-“हां। वह तुम्हारी जान लेने की धमकी दे रहा था। उसका कहना था, तुम्हें देखते ही गोली मार देगा। बृजेश ने उसे शांत कराने की कोशिश तक नहीं की। बस चुपचाप खड़ा रहा।”
-“तुम्हारे डरने की वजह यही थी?”
-“हां। मेरी समझ में नहीं आया एक ईमानदार अफसर होते हुए भी बृजेश ने अपने मातहत की इतनी गलत और गैर जिम्मेदाराना बात बर्दाश्त कैसे कर ली।”
-“हो सकता है इतना ईमानदार वह नहीं है जितना तुम उसे समझती हो....।”
-“नहीं। उसकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता।”
-“इस बारे में तुमसे बहस मैं नहीं करूंगा। इन्सपैक्टर चौधरी की खामोशी का मतलब था- अपने मातहत के उस हरादे से वह खुद भी सहमत था।”
-“लेकिन क्यों?”
-“यह मेरी सरदर्दी है। तुमसे कुछेक और सवाल मैं करना चाहता हूं।”
-“बृजेश के बारे में?”
-“नहीं। तुम्हारे पति और मीना बवेजा के बारे में।”
-“क्या?”
-“तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?”
-“नहीं।”
-“क्या उन दोनों में अभी भी आशनाई थी?”
-“मुझे तो नहीं लगता।”
-“क्यों?”
-“उसने मुझे बताया था कि मीना के साथ उसके ताल्लुकात महीनों पहले खत्म हो गए थे। पहले तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं आया लेकिन जब मैंने मोटल में उन्हें साथ-साथ देखा तो उनके आपसी व्यवहार से मुझे ऐसा नहीं लगा...।”
-“कि वे अभी भी प्रेमी प्रेमिका थे?”
-“हां।”
-“मान लो तुम्हारा अंदाजा सही था तो तुम्हारे विचार से उनके ताल्लुकात खत्म होने की क्या वजह रही हो सकती थी?”
-“वह मीना से ऊब गया होगा- किसी भी औरत के साथ ज्यादा देर चिपके रहना उसकी आदत नहीं थी। या फिर मीना उससे ऊब गई होगी।” उसकी आंखों में नफरत भरे भाव थे- “इस मामले में मीना भी वैसी ही थी जैसा वह था।”
-“लेकिन जिस्मानी ताल्लुकात खत्म होने के बाद भी उनमें दोस्ती थी?”
-“वो तो जाहिर ही है। पिछले हफ्ते तक मीना उसके लिए काम करती रही थी।”
-“तुम मीना को अच्छी तरह जानती हो?”
-“हां।”
-“कितनी अच्छी तरह?”
-“इतनी ज्यादा अच्छी तरह कि जब मुझे अपने आप पर अफसोस नहीं होता तो उस पर अफसोस होता है। मैं उसे बरसों से जानती हूं। जब वह दसवीं क्लास में थी मैं बी.ए. में थी। मीना उन दिनों भी बदनाम थी।”
-“तब कितनी उम्र रही होगी उसकी?”
-“पंद्रह-सोलह साल। तब भी लड़कों के पीछे पागल रहती थी। लेकिन इस सबके लिए सिर्फ उसी को दोष नहीं दिया जा सकता। वह बहुत ज्यादा खूबसूरत थी और इतनी ज्यादा तेजी से जवान हुई कि पंद्रह-सोलह की उम्र में ही पूरी तरह विकसित औरत लगती थी। उसकी घरेलू जिंदगी भी अच्छी नहीं थी। उसकी मां बहुत पहले मर चुकी थी और बाप दरिंदा था- पूरी तरह दरिंदा।”
-“तुमने उनकी पूरी स्टडी की लगती है।”
-“मैंने नहीं, मेरे पिता ने की थी। डैडी को मीना और उसके परिवार की बहुत ज्यादा फिक्र रहती थी। इस बारे में मुझसे अक्सर बातें किया करते थे। उन दिनों वह किशोरों की अदालत के भी जज थे। मीना का केस भी उनकी अदालत में आया था और उन्हें तय करना था उस सबके बाद मीना का क्या किया जाए।”
-“ऐसा क्या हुआ था?”
उसने सर झुका लिया।
-“मीना के बाप पर शैतान सवार हो गया था।”
-“तुम्हारा मतलब है, बवेजा ने अपनी ही बेटी के साथ.....।”
-“हां।”
-“तो फिर बवेजा को तो जेल में होना चाहिए था।”
-“काश ऐसा हो जाता।”
-“ऐसा हुआ क्यों नहीं?”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#64
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मीना ने अदालत में अपना बयान बदल दिया। बाप पर सीधा इल्जाम नहीं लगाया। क्योंकि उसका बाप पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका था इसलिए मीना की डॉक्टरी जांच में भी कुछ नहीं आया। उस वक्त घर में कोई और नहीं था इसलिए मीना के साथ हुई वारदात का गवाह भी कोई नहीं था। नतीजतन सही मायने में कोई केस बवेजा के खिलाफ नहीं बन सका। लेकिन मीना की आइंदा हिफाजत के लिए उसे उसके बाप के साथ घर में न रहने देने का फैसला किया गया। तभी कौशल ने उसकी बहन से शादी कर ली और वे दोनों मीना को अपने साथ रखने लगे। मीना कई साल तक उनके साथ रही। फिर कभी कोई झमेला उसके साथ नहीं हुआ... कम से कम कानूनी तौर पर।”
-“अभी तक।”
अचानक वह पलटकर लॉज की ओर जाती सड़क को देखने लगी।
-“मेरे साथ लॉज में नहीं चलोगे?
-“किसलिए?”
मैं देखना चाहती हूं वो किस हालत में है।”
-“किसलिए?”
-“उसे बेचना चाहती हूं।”
-“बेहतर होगा उससे दूर ही रहो।”
-“क्यों? क्या उसकी लाश...?”
-“ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हें वहां जाकर ठीक नहीं लगेगा। अच्छा होगा की चाबियां मुझे लौटा दो।”
-“क्यों? चाबियों का तुम क्या करोगे?”
-“बाद में बताऊंगा।”
उसने अपने हैंडबैग से निकालकर चाबियां दे दीं।
-“धन्यवाद।” राज ने कहा- “मैं यह चाबियां अलीगढ़ के किसी ईमानदार पुलिस वाले को सौपूंगा। तुम किसी ईमानदार पुलिस वाले को जानती हो?”
-“मैं तो कौशल को ईमानदार समझती थी। अभी भी समझती हूं। अगर तुम्हें उस पर भरोसा नहीं है तो समरसिंह चौधरी के पास चले जाना।”
-“एस. एच.ओ. के?”
-“हां।”
-“तुम्हें भरोसा है उस पर?”
-“हां। लेकिन....।”
-“लेकिन क्या?”
-“तुम्हारा वापस शहर लौटना तुम्हारे हक में ठीक रहेगा?”
-“पता नहीं। अलबत्ता दिलचस्प जरूर रहेगा।”
-“यह जानते हुए भी कि वहां की पुलिस तुम्हारी दुश्मन है?”
-“हां।”
-“तुम बहादुर आदमी हो।”
-“तारीफ के लिए शुक्रिया। मैं गुंडों और बदमाशों की मनमानी बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
-“तुम उन्हें कानून के हाथों से बचने नहीं दोगे?”
-“नहीं।”
रजनी ने उसका चेहरा हाथों में थाम कर उसके होठों पर चुंबन जड़ दिया।
सीने पर पड़ते उसके वक्षों के दबाव से राज ने महसूस किया रजनी का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसकी बाहें रजनी की पीठ पर कसने के लिए बढ़ी तो वह उसे धकेलकर दूर खिसक गई।
राज जिप्सी से उतरकर अपनी फीएट की ओर बढ़ गया।
दोनों कारें आगे-पीछे अलीगढ़ की ओर दौड़ने लगीं।
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11-30-2020, 12:49 PM,
#65
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़ा बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी के अपने ऑफिस में बैठा मिला। उसके सामने डेस्क पर कागजात फैले थे। अपनी सुर्ख आंखों से उसने राज को घूरा।
-“तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ?”
-“शेव करते वक्त कट गया था।” राज ने लापरवाही से कहा।
-“घास काटने वाली मशीन से शेव कर रहे थे?”
-“हां। आपको मेरे आने की उम्मीद नहीं थी?”
-“नहीं। मैं समझ रहा था, मैदान छोड़कर भाग गए हो।”
-“क्यों?”

-“तुम गायब जो हो गए थे।”
-“अब यकीन आ गया कि भागा नहीं हूं?”
-“हां। कौशल चाहता है, तुमसे कह दूं तुम्हारी मदद नहीं चाहिए।”
-“तो?”
-“तो कुछ नहीं। मैं जो करता हूं अपनी मर्जी से करता हूं किसी के हुक्म से नहीं।” बवेजा आगे झुक गया। उसका चेहरा किसी बूढ़े लूमड़ जैसा नजर आ रहा था- “लेकिन अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो उसके आड़े आने की कोशिश नहीं करता। उसे यह कतई पसंद नहीं है।”
-“पसंद तो मुझे नहीं है।”
-“हो सकता है। लेकिन तुम जो कर रहे हो वो सब करने की कोई अथारिटी भी तुम्हारे पास नहीं है।”
-“मैं एक प्रेस रिपोर्टर हूं। सच्चाई का पता लगाकर उसे जनता के सामने लाना मेरा फर्ज भी है और हक भी।”
-“खैर, तुम रहे कहां?”
-“मोती झील पर।”
-“वहां क्या करने गए थे?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“मैं तुम्हें यहां कांटेक्ट करने की कोशिश करता रहा था।” बवेजा बोला- “मैं ही नहीं एस. एच.ओ. चौधरी भी तुमसे मिलना चाहता है। तुम मोती झील की सैर कर रहे थे और यहां इस मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। जानते हो एयरबेस पर एक मारुती छोड़ दी गई थी.....।”
-“हाँ।” मैंने ही पुलिस को उसकी इत्तिला दी थी।”
-“पुलिस ने उस कार का पता लगा लिया है। वो विशालगढ़ में एक पुरानी कारों के डीलर से खरीदी गई थी और वह आदमी- क्या नाम था उसका?”
-“जौनी?”
-“जौनी ने पहली सितंबर के आसपास उसे खरीदा था। कीमत नगद चुकाई थी पांच सौ रुपए के नोटों में। जब वो डीलर उस रकम को बैंक में जमा कराने गया तो केशियर ने पुलिस बुला ली....।”
-“रकम चोरी की थी?”
-“वे नोट अगस्त में करीमगंज में हुई एक बैंक डकैती में डाकुओं द्वारा ले जायी गई रकम का हिस्सा थे। करीमगंज पुलिस ने उन नोटों के नंबरों की लिस्ट सभी बड़े शहरों के बैंकों को भिजवा दी थी। डकैती में करीब बीस लाख रुपए गए थे।”
-“जौनी ने बैंक से बीस लाख रुपए लूटे थे?”
-“हां। और जौनी की गिरफ्तारी पर पचास हजार रुपए का इनाम है। यह इनाम तुम्हें इस केस पर काम करते रहने का जोश दिलाने के लिए काफी है।”
-“मुझे इनाम का कोई लालच नहीं है।”
-“ठीक है। अगर तुम्हें मिले तो खुद मत लेना मुझे दिला देना।”
राज के जी में आया उस हरामी खूसट का मुंह तोड़ दे लेकिन अभी उसे बूढ़े की जरूरत थी। इसलिए प्रगट में बोला- “दिला दूंगा।”
-“अब यह भी बता दो मोती झील पर क्या करने गए थे?”
-“इसी केस के सिलसिले में गया था।”
-“वहां से कुछ पता चला?”
-“हां।” राज ने सैंडल की ब्राउन हील उसके डेस्क पर रख दी- “क्या यह तुम्हारी बेटी मीना के सैंडल की है?”
बवेजा ने हिल उठाकर यू उंगलियों में घुमाई मानो उससे उसकी मालकिन का अंदाजा लगाना चाहता था।
-“पता नहीं।” अंत में बोला- “औरतें क्या पहनती हैं। इस ओर ज्यादा ध्यान देना मेरी आदत नहीं है। तुम्हें यह कहां से मिली।”
राज ने बता दिया।
-“मुझे नहीं लगता यह मीना की है।” बबेजा हील को डेस्क पर लुढ़काता हुआ बोला- “तुम इससे क्या नतीजा निकाल रहे हो?”
राज ने एक सिगरेट सुलगाई।
-“मेरा ख्याल है, वह कब्र खोद रही थी।”
-“क्या? किसलिए?”
-“वो खुद उसके लिए भी हो सकती थी और किसी और के लिए भी।”
-“और किसके? सैनी के लिए?”
-“नहीं, सैनी के लिए नहीं। वह खुदाई का मुआयना कर रहा था।”
-“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा। तुम्हें यकीन है उसके साथ मीना ही थी?”
-“मेरे पास दो गवाह है। उनमें से किसी ने भी पक्की शिनाख्त तो नहीं की है लेकिन मुझे लगता है वे जानबूझ कर इस मामले में अहतियात बरत रहे हैं। अगर यह हील मीना के सैंडल की है तो शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहेगी।”
बवेजा पुनः हील को उठाकर गौर से देखने लगा।
-“रंजना को पता हो सकता है।” अंत में बोला।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया।
-“हेलो.... कौशल, रंजना है....नहीं, कहां गई है....तुम्हें पता नहीं....।” फिर देर तक मुंह लटकाए सुनने के बाद बोला- “तुम उस बारे में क्या जानते हो....जहां तक मैं समझता हूं, वह बड़ी भारी गलती कर रही है।” उसने रिसीवर यथा स्थान रख दिया- “कौशल का कहना है, वह चली गई।”
राज चकराया।
-“कहां?”
-“उसे छोड़कर। अपने कपड़े भी साथ ले गई।”
-“उसने वजह नहीं बताई?”
-“नहीं, लेकिन मैं जानता हूं।”
-“क्या?”
-“उन दोनों की आपस में कभी नहीं बनी।” बवेजा के चेहरे पर अजीब सी व्याकुलता मिश्रित उपहासपूर्ण मुस्कराहट थी- “रंजना बताया करती थी कि वह बड़ी बेरहमी से उसके साथ पेश आता है। फिर जब से कौशल ने उसे रोक दिया तो रंजना ने इस बारे में बातें करना ही बंद कर दिया।”
-“बेरहमी से?”
-“हां।” लेकिन इसका मतलब यह नहीं है, कौशल उसकी पिटाई करता था। और अगर करता भी था तो ऐसी जगहों पर नहीं कि पिटाई के निशान नजर आए। मैं मानसिक यातना की बात कर रहा हूं। वह मैंटली टॉर्चर करता होगा ताकि रंजना खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाए।”
-“क्या रंजना ने खुदकुशी करने की कोशिश की थी?”
-“हां।”
-“कब?”
-“शादी के थोड़े अर्से के बाद ही रंजना ने काफी सारी स्लीपिंग पिल्स निगल ली थीं। कौशल ने इस बात को दबाने और एक्सीडेंट की शक्ल देने की कोशिश की मगर मैंने मीना से सच्चाई जान ली थी। उन दिनों मीना उन्हीं के साथ रह रही थी।”
-“रंजना को ऐसा क्यों करना पड़ा?”
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11-30-2020, 12:49 PM,
#66
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मेरा ख्याल है, कौशल ने उसकी जिंदगी इतनी ज्यादा नर्क बना दी थी कि वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैं किसी औरत को कभी नहीं समझ पाया। जहां तक मेरी बेटियों का सवाल है उनसे तो बात करना भी दूभर है। उनसे मेरी राय कभी नहीं मिली। हमारे बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा है।”
-“तुम्हारे विचार से वह कहां हो सकती है?”
-“पता नहीं।”
-“क्या वह तुम्हारे घर हो सकती है?”
-“पता नहीं।”
-“ट्राई करो।”
बवेजा ने पुनः रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया।
-“रंजना?” चंद क्षणोंपरांत हैरानी भरे स्वर में बोला- “तुम वहां क्या कर रही हो.....नहीं, ठहरो, मैं तुमसे बात करना चाहता हूं.....राज भी तुम्हें कुछ दिखाना चाहता है.....हम आ रहे हैं।”
उसने संबंध विच्छेद कर दिया।
-“आओ।”
राज उसके साथ ऑफिस से निकला। फीएट में सवार होकर बवेजा की कार के पीछे ड्राइव करने लगा।
*************
दिन की रोशनी में बवेजा का निवास स्थान और भी ज्यादा मनहूस नजर आ रहा था।
बवेजा सहित प्रवेश द्वार की ओर जाते राज ने सोचा अगर इस भूतिया घर की खातिर रंजना ने अपने पति का घर छोड़ दिया तो जरूर उस घर में कोई भारी गड़बड़ रही होगी। इसका सीधा सा मतलब था- उसकी विवाहित जिंदगी सुखी नहीं थी।
दस्तक के जवाब में रंजना ने दरवाजा खोला।
बवेजा ने सर से पांव उसे घूरा। बगैर कुछ बोले उसकी बगल से गुजरकर अंदर चला गया।
दरवाजे में खड़ी रंजना की हालत से जाहिर था उसकी रात बहुत बुरी गुजरी थी। धुंधलाई सी सूनी आंखों के नीचे छाईयां नजर आ रही थीं। जबरन पैदा की मुस्कराहट में फीकापन था।
-“आइए।”
राज ने अंदर प्रवेश किया।
ड्राइंग रूम की ओर जाती रंजना की चाल में हिचकिचाहट सी थी। राज को लगा मानो पूरी तरह जवान औरत की बजाय वह एक ऐसी सहमी सी छोटी लड़की के पीछे चल रहा था जिसे दुनिया में हर तरफ खतरा ही खतरा नजर आता था।
राज सोफे पर बैठ गया। कमरा साफ-सुथरा और प्रत्येक चीज व्यवस्थित नजर आ रही थी। स्पष्ट था रंजना वहां सफाई, झाड़पोंछ वगैरा कर चुकी थी।
लेकिन बवेजा इस ओर ध्यान देता प्रतीत नहीं हुआ।
रंजना ने धूल भरे हाथ एप्रन पर रगड़कर फटाकार भरी निगाहों से अपने बाप को देखा।
-“मैंने तुम्हारे घर की सफाई कर दी है।”
-“तुम्हें यहां रहकर मेरे घर को संभालने की जरूरत नहीं है।” बेटी की ओर देखे बगैर बवेजा बोला- बेहतर होगा अपने घर जाकर अपने पति को संभालो।”
-“मैं वापस नहीं जाऊंगी।” वह तीव्र स्वर में बोली- “अगर तुम नहीं चाहते मैं यहां रहूं तो चली जाऊंगी और अपने लिए कोई ठिकाना ढूंढ लूंगी- मीना की तरह।”
-“मीना को बीच में मत लाओ।”
-“क्यों?”
-“उसकी कहानी अलग है।”
-“कैसे?”
-“उसका कोई स्थाई बंधन नहीं है और वह सैल्फ सपोर्टिंग है।”
-“अगर मुझे यहां नहीं रहने दोगे तो मैं भी खुद को सपोर्ट कर सकती हूं।”
-“ऐसी बात नहीं है।”
-“फिर कैसी बात है?”
-“अगर तुम यहां रहने का फैसला कर ही चुकी हो तो मुझे कोई एतराज नहीं है। लेकिन लोग क्या कहेंगे?”
-“कौन लोग?”
-“इस शहर में रहने वाले। पुलिस विभाग में और शहर में कौशल की इज्जत है। अगर तुम इस तरह अपना परिवार तोड़ दोगी तो लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे।”
-“मेरा कोई परिवार नहीं है।”
-“अगर तुम चाहती तो परिवार बना सकती थी। अभी भी बना सकती हो। बूढ़ी तो नहीं हो गई हो।”
-“तुम इस बारे में कुछ नहीं जानते। मैं वापस नहीं जाऊंगी। यह मेरा आखिरी फैसला है। आखिरकार जिंदगी मेरी है।”
-“यह उसकी जिंदगी भी है तुम उसे तबाह कर रही हो।”
-“उसने ख़ुद अपनी तबाही का सामान किया है। वह अपनी जिंदगी का जो चाहे कर सकता है। मैं मिल्कियत नहीं हूं उसकी या किसी और की।”
बवेजा हैरान सा नजर आया।
-“तुमने पहले तो कभी इस तरह की बातें नहीं कीं।”
-“कौशल ने भी पहले कभी ऐसा नहीं किया।”
-“क्यों? ऐसा क्या किया उसने?”
-“रंजना की आंखों में आंसू छलक आए।”
-“यह तुम्हें नहीं बताऊंगी मैं......मैं शर्मिंदगी उठाना नहीं चाहती।” क्षणिक मौन के पश्चात बोली- “तुम हमेशा मीना और मेरे पीछे पड़े रहते थे कि यहां आकर घर की देखभाल करें। अब जबकि मैं ऐसा कर रही हूं तो तुम खुश नहीं हो। मेरा कोई भी काम तुम्हें अच्छा नहीं लगता।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#67
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मुझे सब अच्छा लगता है रंजना।”
बवेजा ने उसके कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की तो वह पीछे हट गई।
बाप बेटी की बहस और उनके बीच पैदा हो गई टेंशन को खत्म करने के विचार से राज खड़ा हो गया।
-“मिसेज चौधरी, मैं तुम्हें एक चीज दिखाना चाहता हूं।”
उसने कहा और सैंडल से उखड़ी हील उसे थमा दी- “तुम्हारे पिता का ख्याल है तुम इसे पहचान सकती हो।”
रंजना ने खिड़की के पास जाकर पर्दा हटा दिया। अंदर आती रोशनी में चमड़े की हील को देखा।
-“यह तुम्हें कहां से मिली?”
-“मोती झील के पास पहाड़ियों से। क्या तुम्हारी बहन के पास ऐसे ब्राउन कलर के सैंडल थे?”
-“शायद थे। नहीं, मुझे अच्छी तरह याद है ऐसे सैंडल उसके पास थे।” वह पैर पटकती हुई थी राज के पास आ गई- “मीना को कुछ हो गया है न? उसका स्वर उत्तेजित था- क्या हुआ उसे?”
-“काश, मैं जानता होता।”
-“क्या मतलब?”
-“अगर यह उसी के सैंडल की हील है तो सोमवार को वह उस जंगल में सैनी के साथ थी और गड्ढा खोद रही थी।”
-“हो सकता है, अपनी ही कब्र खोद रही थी।” बवेजा बोला।
रंजना ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।
-“तुम समझते हो, वह मर चुकी है?”
-“बेवजह तुम्हें डराने का कोई इरादा मेरा नहीं है लेकिन फिलहाल ऐसा ही लगता है।”
रंजना ने अपनी मुट्ठी में भिंची हील पर निगाह डाली। फिर मुट्ठी खोली तो राज ने देखा उसकी हथेली में किलें गड़ने के निशान बने थे। वह हील को अपने मुंह के पास ले गई और आंखें बंद कर लीं।
पल भर के लिए राज को लगा वह बेहोश होने वाली थी। उसका शरीर तनिक आगे-पीछे लहराया। लेकिन वह गिरी नहीं।
उसने आंखें खोलीं।
-“बस? या कुछ और है?”
-“सैनी की लॉज में ये और मिली थीं।” राज ने कारपेट से उठाई हेयर क्लिप निकालकर दिखाईं।
-“मीना हमेशा ऐसी ही क्लिप बालों में लगाती थी।” रंजना ने कहा।
बवेजा ने बेटी के कंधे के ऊपर से देखा।
-“मीना पूरे घर में इन्हें फैलाए रखती थी। इसका मतलब है, उसने वीकएंड सैनी के साथ गुजारा था। क्यों?”
-“मुझे ऐसा नहीं लगता। लेकिन उसके साथ एक आदमी जरूर था। बता सकते हो वह कौन था?”
बाप बेटी के मुंह से बोल नहीं फूटा। दोनों एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे।
-“मनोहर लाल पिछले शनिवार रात में मोती झील पर था।” राज ने कहा।
-“वह वहां क्या कर रहा था?” बवेजा ने पूछा।
-“मनोहर ही वह आदमी रहा हो सकता था। एक वक्त में वह और मीना एक-दूसरे के बहुत ज्यादा करीब रह चुके थे।”
रंजना का सफेद पड़ गया चेहरा कठोर था।
-“मैं नहीं मानती। मेरी बहन ने उस घटिया आदमी से सीधी मुंह बात तक नहीं करनी थी।”
-“यह सिर्फ तुम ही समझती हो।” बवेजा बोला- “तुम नहीं जानती मीना कैसी लड़की थी। तुम बस यह वहम पाल बैठी हो कि वह सती सावित्री थी। मगर मैं अच्छी तरह जानता हूं क्या थी। दिल फेंक किस्म की लड़की थी। मनोहर के साथ भी उसने वही किया जो दूसरे मर्दों के साथ करती रही थी। आखिरकार मनोहर को उसके साथ सख्ती से पेश आना पड़ा।”
-“यह सच नहीं है।” रंजना राज की ओर पलट कर बोली- “मेरे बाप की बात पर ध्यान मत दो। मीना एक भली लड़की थी। इतनी ज्यादा भोली कि कभी नहीं समझ सकी स्कैंडल में इन्वाल्व हो सकती थी।”
-“भली और भोली।” बवेजा गुर्राया- “वह बारह साल की उम्र से ही लड़कों की सोहबत में रहने लगी थी। मैंने इसी घर के इसी कमरे में रंगे हाथों से पकड़ा था.... और तगड़ी मार लगाई थी।”
-“तुम झूठे और कमीने हो।”
बवेजा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया।
-“मैं झूठा और कमीना हूं?”
-“हां। तुम खुद उसे अपने लिए चाहते थे इसलिए लड़कों से जलते थे....।”
-“तुम पागल हो। एक अजनबी के सामने अपने बाप पर बेहूदा इल्जाम लगा रही हो।”
गुस्से से कांपते बवेजा की आवाज गले में घुट गई। उसने बेटी के मुंह पर जोरदार तमाचा जड़ दिया।
-“नहीं।” रंजना चिल्लाई।
राज उन दोनों के बीच आ गया।
बवेजा सोफे पर गिरकर हाँफने लगा।
राज उसके पास पहुंचा।
-“तुम्हारी बेटी की हत्या किसने की थी?”
-“मैं नहीं जानता।” वह फंसी सी आवाज में बोला- “वह मर गई है। यह भी तुम यकीन से कैसे कह सकते हो?”
-“मुझे पूरा यकीन है। क्या उसकी हत्या तुमने की थी?”
-“तुम पागल हो गए हो जैसे रंजना है। मैंने मीना को हाथ भी नहीं लगाना था।”
-“तुमने एक बार उस पर हाथ डाला था। तुम वाकई कमीने हो।”
-“यह तुमसे किसने कहा?”
-“एक ऐसे शख्स ने जो तुम्हारी गुजिश्ता जिंदगी के बारे में जानता है और वो भी जानता है जो तुमने मीना के साथ किया था।”
बवेजा उठ कर बैठ गया।
-“वो दस साल पुरानी बात है।” वह सर हिलाता हुआ बोला- “मुझमें थोड़ा बहुत जोश बाकी था। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया।” उसके स्वर में आत्म करुणा थी- “उसमें सारा कसूर मेरा ही नहीं था। वह घर में अक्सर नाम मात्र के कपड़े पहने या नंगी घूमती थी। मेरे साथ भी उसी ढंग से पेश आती थी जैसे अपने दोस्तों के साथ आया करती थी। मैं खुद को रोक नहीं सका और.....। मेरी हालत को तुम नहीं समझ सकते.......म.....मैंने बरसों बगैर औरत के गुजारे थे.....।”
-“तुम्हारे इस रोने का मुझ पर कोई असर नहीं होगा, बूढ़े। एक आदमी जो अपनी बेटी के साथ वह सब कर सकता है जो तुमने किया था उसका मर्डर भी कर सकता है।”
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11-30-2020, 12:50 PM,
#68
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“नहीं! नहीं! वह एक गई गुजरी बात थी। उसके बाद मीना को हाथ तक मैंने नहीं लगाया।”
-“तुमने कहा था कि उसे गन दी थी। क्या यह सच है?”
-“बिल्कुल सच है। मैंने उसे एक पुरानी गन दी थी। क्योंकि वह मनोहर से डरती थी। उसकी हत्या अगर किसी ने की थी तो मनोहर ने ही की थी।”
-“और मनोहर की हत्या किसने की?”
-“मैंने नहीं कि। अगर तुम समझते हो मैंने अपने ही ड्राइवर की जान ली है तो तुम पागल हो।” बवेजा की गरदन की नसें तन गई- “तुम्हारा यह रवैया मुझे जरा भी पसंद नहीं आया है.....।”
-“जहन्नुम में जाओ।”
दरवाजे की ओर बढ़ते राज ने देखा रंजना वहां नहीं थी। तभी प्रवेश द्वार बंद किए जाने की आवाज सुनाई दी। राज उधर ही दौड़ गया।
*********************
रंजना लान में जाती दिखाई दी।
राज उसके पीछे लपका।
कदमों की आहट सुनकर रंजना ने पीछे देखा। फिर पलटकर भाग खड़ी हुई।
अचानक उसका पैर घास में उलझा। वह नीचे जा गिरी।
राज ने उसे उठाया। उसे सहारा दिए रखने के लिए पीठ में बांह डाल दी।
-“कहां जा रही हो?”
-“पता नहीं। यहां उसके साथ में नहीं रह सकती। मुझे उससे डर लगता है।” रंजना की तेज चलती सांसों के साथ हिलते वक्ष राज के सीने से रगड़ रहे थे- “वह शैतान है। मुझसे नफरत करता है। हम दोनों से ही नफरत करता था। शुरू से ही जब से हम पैदा हुई थी। मुझे वो दिन याद है जब मीना पैदा हुई थी। मेरी मां मर रही थी। लेकिन यह शैतान उसे कसाई जैसी आंखों से घूर रहा था। क्योंकि यह बेटा चाहता था और वह इसे बेटा नहीं दे सकी। मैं भी मर जाती तो खुश होता। मैं बेवकूफ थी। मुझे यहां आना ही नहीं चाहिए था।”
-“तुम अपने पति को क्यों छोड़ आई?”
-“उसने मुझे धमकी दी थी अगर उसके घर से बाहर निकली तो मुझे जान से मार देगा। लेकिन यहां ठहरने की बजाय कहीं भी रहना बेहतर होगा।”
तभी एक कार गेट के भीतर दाखिल हुई।
वो पुलिस कार थी। ड्राइविंग सीट पर इन्सपैक्टर चौधरी बैठा था।
-“कौशल।” रंजना के मुंह से निकला। उसका चेहरा सफेद पड़ गया था। आंखें दहशत से फैल गईं।
राज स्तब्ध सा रह गया।
*************
Reply
11-30-2020, 12:50 PM,
#69
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
इन्सपैक्टर चौधरी कार से उतरकर लंबे-लंबे डग भरता हुआ उसकी ओर आ रहा था।
राज रंजना को स्वयं से अलग करके उसकी तरफ बढ़ा।
दोनों एक दूसरे के सामने आ रुके।
-“तुम मेरी पत्नि के साथ क्या कर रहे हो?”
-“उसी से पूछ लो।”
-“मैं तुमसे पूछ रहा हूं।” साइडों में झूलते चौधरी के हाथों में कंपन था- “मैंने तुमसे कहा था इससे दूर रहना। यह भी कहा था इस मामले में टांग मत अड़ाना।”
-“इस मामले ने खुद मेरी टांग अपने अंदर अड़ाई है और अब मैं उसे अड़ी ही रहने दूंगा।”
-“देखेंगे। अगर तुम समझते हो मेरी बात पर अमल न करके और मेरे मातहतों पर हाथ उठाकर भी बच जाओगे.....।” उसने शेष वाक्य अधूरा छोड़ दिया- “मैं तुम्हें आखरी मौका दे रहा हूं। एक घंटे के अंदर या तो मेरे शहर से चले जाओ वरना मैं तुम्हें लॉकअप में ठूँस दूंगा।”
-“तुम शहर के मालिक हो?”
-“यहीं ठहरो। पता लग जाएगा।”
-“मैं भी पता लगाना ही चाहता हूं, चौधरी। हर बार जब भी तुमसे सामना होता है तुम मुझे इस मामले से अलग हो जाने की एक नई धमकी देते हो। जब बार-बार यही स्थिति सामने आती है तो मुझे धमकी देने वाले की नियत पर शक होने लगता है।”
-“तुम्हारे शक में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।”
-“एस. एच.ओ. चौधरी की हो सकती है अगर वह तुम्हारे जैसा आदमी नहीं है और अगर वह भी तुम्हारे जैसा है तो मैं और बड़े अफसरों के पास जाऊंगा।”
-“बको मत।”
चौधरी के स्वर के खोखलेपन से जाहिर था उसकी किसी मजबूरी ने उसकी ईमानदारी को सचमुच शक के दायरे में ला दिया था।
-“यह बकवास नहीं असलियत है। तुम ना तो एक ईमानदार अफसर हो और न ही भले आदमी। खुद भी यह जानते हो। मैं भी जानता हूं और तुम्हारी पत्नि भी जानती है।”
चौधरी का चेहरा एक पल के लिए पीला पड़ गया।
-“मुझे मजबूर करने की कोशिश कर रहे हो कि तुम्हारी जान ले लूं?”
-“इतना दम खम अब तुममें नहीं है।”
चौधरी के होठ गुर्राहटपूर्ण मुद्रा में खिंच गए। आंखें सुलगती सी नजर आईं और गरदन तन गई।

राज उस पर निगाहें जमाए सतर्क खड़ा था।

अचानक चौधरी का दायां घूंसा उसकी ओर लपका।

राज ने झुकाई देकर स्वयं को बचाया। घूंसा उसके कान को छूता हुआ गुजर गया और संतुलन बिगड़ जाने के कारण स्वयं चौधरी लड़खड़ा गया। उस स्थिति में बाएं हाथ से उसके जबड़े पर दाएं से पेट पर वार किए जा सकते थे।

राज ने दायां घूंसा चलाया।

कपड़ों के नीचे चौधरी का पेट सख्त था। राज के बाएं घूंसे को दायीं कलाई पर रोककर उसने अपने बाएं हाथ से प्रहार किया। कनपटी पर पड़े घूंसे ने राज को घुमा दिया।

रंजना भयभीत हिरनी सी अलग खड़ी थी। उसकी फैली आंखें सूजी थीं और मुंह मूक चीख की मुद्रा में खुला था।
राज के पलटते ही चौधरी उस पर घूंसे बरसाने लगा।

दाएं-वाएं उछलकर स्वयं को बचाने की कोशिश करते राज को मौका मिला और उसने चौधरी की ठोढ़ी पर घूंसा जमा दिया।
चौधरी की भी कैप सर से उतर गई। वह लड़खड़ाकर पीछे हटा और नीचे गिर गया।

उसकी ओर झपटते राज का पैर घास में उलझा और वह भी लान में जा गिरा।

तब तक चौधरी उठकर उसकी ओर झपट चुका था।

उठने की कोशिश करते राज के गाल पर ठोकर पड़ी। उसे अपना आधा चेहरा सुन्न हो गया महसूस हुआ। गाल कट जाने के कारण खून बह रहा था।

चौधरी ने पुनः ठोकर चलाई।

राज ने इस दफा उसका पैर पकड़ लिया। उसी स्थिति में उसे आगे खींचकर पीछे धकेल दिया।

चौधरी बुरी तरह लड़खड़ाता पीछे हटता चला गया।

राज उठकर उसकी ओर लपका और उसे घूंसों पर ले लिया।

चौधरी कोशिश करने के बावजूद स्वयं को बचा नहीं पाया।

-“स्टॉप इट।” अचानक रंजना चिल्लाई- “स्टॉप इट।”

राज के हाथों में ब्रेक लग गया।

बुरी तरह हांफते चौधरी की हालत खस्ता थी। लेकिन उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। आंखों में खून उतर आया था। उसका दायां हाथ अपने हीप हौलेस्टर पर जा पहुंचा।
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11-30-2020, 12:50 PM,
#70
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज सर से पांव तक कांप गया। उसकी अपनी जेब में भी रिवाल्वर थी। मगर उसे निकालने का कोई उपक्रम उसने नहीं किया। चौधरी पुलिस इन्सपैक्टर था। उसके रिवाल्वर निकालते ही चौधरी ने सैल्फ डिफेंस में उसे शूट कर डालना था।

विवश खड़े राज का मुंह सूख गया। पीठ पर पसीने की धार बह रही थी। चौधरी ने सर्विस रिवाल्वर उस पर तान दी।
राज को साक्षात मृत्यु नजर आने लगी।

अचानक रंजना उन दोनों के बीच आ गई।

-“कौशल, इस आदमी ने मेरी मदद की है। कोई गलत इरादा इसका नहीं था। इसे शूट मत करो।” रंजना ने दोनों हाथों से पति की दायीं कलाई दबाकर रिवाल्वर नीचे कर दी। और उससे सटकर उसके कंधे पर चेहरा रख दिया- “तुम इसे शूट नहीं करोगे, प्लीज। कोई और हत्या नहीं होनी चाहिए।”

चौधरी ने यूं उसे देखा मानों पहली बार देख रहा था। धीरे-धीरे उसकी निगाहें उस पर केंद्रित हो गई।

-“नहीं होगी।” उसकी आवाज कहीं दूर से आती सुनाई दी- “मैं तुम्हें घर ले जाने के लिए आया था। मेरे साथ चलोगी?”

रंजना ने सर झुका लिया।

-“हां।”

-“तो फिर जाओ, कार में बैठो। मैं आता हूं।”

-“और फसाद नहीं होगा ? वादा करते हो?”

-“हां, वादा करता हूं।”

चौधरी ने रिवाल्वर वापस हौलेस्टर में रख ली।

रंजना धीरे-धीरे पति से अलग हो गई। अपने ही ख्यालों में खोई सी कार की ओर चल दी।

चौधरी उसे देखता रहा जब तक कि अगली सीट पर बैठकर उसने दरवाजा बंद नहीं कर लिया। फिर अपनी पी कैप उठाकर वर्दी की आस्तीन पर झाड़कर सर पर जमा ली।

-“मैं इस सब को भुला देने के लिए तैयार हूं।” राज की ओर पलटकर बोला।

-“मगर मैं तैयार नहीं हूं।”

-“तुम गलती कर रहे हो।”

-“मैं खामियाजा उठा लूंगा।”

-“क्या हम समझौता नहीं कर सकते ?”

-“कर सकते हैं लेकिन तुम्हारी शर्तों पर नहीं। मैं यही अलीगढ़ में रहूंगा जब तक यह किस्सा खत्म नहीं हो जाता। अगर उल्टे सीधे आरोप लगाकर मुझे लॉकअप में बंद कराओगे तो मैं भी तुम्हें नहीं बख्शूंगा।”

-“क्या करोगे?”

-“तुम पर जवाबी आरोप लगा दूंगा।” '

-“किस बात का?”

-“अपना फर्ज अदा करने में जानबूझकर कोताही करने और बदमाशों के साथ मिली-भगत का।”

-“नहीं।” चौधरी ने उसकी बांह पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया- “समझने की कोशिश करो।”
राज पीछे हट गया।

-“मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूं कि दो हत्याओं के मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहा हूं और कोई चीज मुझे रोकने की कोशिश कर रही है। एक ऐसी वर्दीधारी चीज जो देखने में कानून जैसी लगती है। बातें भी कानून की करती है लेकिन उससे कानून की बू जरा भी नहीं आती। उससे बदबू आती है। बेईमानी, खुदगर्जी, मतलबपरस्ती और लालच की।”
चौधरी ने विवशतापूर्वक उसे देखा।

-“मैंने हमेशा अपने फर्ज को पूरी ईमानदारी से अंजाम दिया है।” उसके स्वर में जरा भी जोश नहीं था।

-“पिछली रात भी जब वो ट्रक तुम्हारी आंखों के सामने से निकल गया था?”

उसने जवाब नहीं दिया। कुछेक पल जमीन को ताकता रहा फिर उसी तरह सर झुकाए थके कदमों से पुलिस कार की ओर बढ़ गया।
****************
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