RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“जिनमें से बकौल त...तुम्हारे मैं भी एक हूं।” वह व्यग्र हो उठा था लेकिन अपनी बेचैनी उसने इंस्पेक्टर मदारी पर उजागर नहीं होने दी थी।
“करेक्ट?" वह निःसंकोच बोला था।
“और लाल साहब अपने उन तमाम के तमाम दुश्मनों को जानते हैं? उन्हें यह भी मालूम है कि उन पर हुए ताजा हमले में किसका हाथ है?"
"इसका जवाब क्या अलग से देना पड़ेगा श्रीमान?"
"इसके बावजूद क्या तुम यह बताने की जहमत करोगे इंस्पेक्टर कि लाल साहब आज तक इतना खामोश क्यों बैठे रहे? क्या वे अपने ऊपर होने वाले तीसरे हमले का ही इंतजार कर रहे थे? या फिर तब तक पानी सिर से ऊपर नहीं हुआ था? और साफ कहूं तो तब तक इंतहा नहीं हुई थी?"
“वह सब तो खैर पहले ही हो चुका था।"
"तो फिर?"
“तो फिर यह श्रीमान कि श्री-श्री इंतजार कर रहे थे।"
“किसका इंतजार कर रहे थे तुम्हारे श्री-श्री?"
“माकूल वक्त का, जो कि आज आया है?"
“आज आया है?" अजय के माथे पर आड़ी तिरछी रेखाएं उभरी थीं “आज ऐसा क्या हो गया?"
“आपको सचमुच नहीं मालूम?”
“क्या नहीं मालूम मुझे।” \
“क्या आपको सचमुच नहीं मालूम श्रीमान?” मदारी सख्त हैरान हुआ था।
“देखो इंस्पेक्टर, पहेलियां मत बुझाओ। तुम्हें जो कहना है साफ-साफ कहो।"
"जय गोविंदम्, जय गोपालम।"
"क्या?"
“गोपाल नाम है उस माकूल वक्त का। कुछ याद आया इस नाम से?"
“ग...गोपाल के नाम से?"
"हां।"
"नहीं?"
"बहुत मनहूस नाम है यह लेते ही उबकाई आने लगती है। शुक्र है कि इस वक्त नहीं आई।"
“क..कौन है यह गोपाल?"
“एक खूखार कातिल । जो कभी एक कुख्यात सुपारी किलर हुआ था, जिसका नाम सुनते ही राजधानी सिहर जाती थी।"
"फिर?"
"फिर क्या? राजधानी के अंदर भला कोई प्राइवेट किलर बिना परमीशन के अपनी दुकान कैसे चला सकता है, लिहाजा धर लिया गया और सीधे तिहाड़ में पहुंचा दिया गया पन्द्रह साल उम्र कैद की सजा भुगतने के लिए।"
“कि...किस जुर्म में?"
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"क्या पता किस जुर्म में? मुझे तो याद नहीं कि उसने कल के अलावा भी कभी कोई और जुर्म किया है, अलबत्ता कभी-कभी टेस्ट बदलने के लिए एक-दो बलात्कार भी कर लिया करता था लेकिन उस पर दोष कत्ल का ही साबित हुआ था।"
“कि...किसके कत्ल का?"
"ठीक से याद नहीं है। कैसे याद रख पाता कोई एक आध कत्ल तो किए नहीं थे उसने कत्लों की तो चलती-फिरती दुकान था वह।"
“फिर भी उसे केवल पन्द्रह साल की ही सजा हुई? सीधे-फांसी पर ही नहीं लटका दिया गया उसे?"
“फांसी पर तो उसे तब लटकाया जाता जबकि उसके सारे जुर्म साबित हो जाते उसके हर गुनाह का अदालत में पर्दाफाश होता। वह तो होकर भी नहीं दिया था।"
"क्यों? क्यों नहीं हुआ था वह ?"
“होने नहीं दिया गया था। कोई बीच में आ गया था।
“कौन?”
“क्या पता कौन? हम पुलिस इंस्पेक्टरों के पास याद रखने को और भी बहुत कुछ होता है, ऊपर से तब तो मैं इंस्पेक्टर भी नहीं था। बस इतना याद है कि कोई था जो बड़ी वफादारी से उस वक्त इस गोविंदम्-गोपालम और अदालत के बीच आ गया था। जिसने उसे फांसी से बचाने के लिए रात-दिन एक कर दिया था और पुलिस-अदालत से गठजोड़ करके उसके केस को बहुत कमजोर कर दिया था, जिससे उसके बाकी तमाम गुनाह साबित नहीं हो सके थे। केवल एक ही कत्ल का जुर्म उस पर साबित हो सका था, जिसके ऐवज में उसे पन्द्रह साल उम्र कैद बामुशक्कत मिली थी। वैसे देखा जाए तो यह इतनी सजा भी कुछ कम नहीं होती।"
“और अगर वह आदमी बीच में नहीं आया होता तो उसे जरूर सजा-ए-मौत ही मिली होती?"
"यकीनन।"
“और उस आदमी के बारे में तुम्हें कुछ भी नहीं मालूम?"
“गंगाजल रखते हो तो ला दो। हाथ में उठाकर कह दूं ।”
"उसकी जरूरत नहीं है।" अजय का स्वर शुष्क हो गया था "मगर इस कांट्रेक्ट किलर का जिक्र इस वक्त किसलिए? उसका मौजूदा हालात से क्या वास्ता?"
"वास्ता हो सकता है।"
"वह कैसे?"
"इंस्पेक्टर मदारी का अंदाजा है कि गोपालम् का वह नामालूम बेचारा मददगार, कहते दिल फड़कता है, अपने श्री-श्री हो सकते हैं?"
"व्हाट? अजय चिहुंककर बोला था “लाल साहब?"
"हां।"
"लेकिन यह तुम कैसे कह सकते हो?"
"क्योंकि सूत्र कहते हैं कि श्री-श्री का गोपालम से याराना था?"
“ल..लाल साहब जैसे इंसान का भला किसी कांट्रेक्ट किलर से क्या याराना हो सकता है?"
"उस वक्त श्री-श्री की हैसियत, सूत्र कहते हैं कि आज के जैसी नहीं थी, लेकिन बुरी भी नहीं थी। घास खाने वाले तो वह बिल्कुल भी नहीं थे।"
“मतलब?"
"आम आदमी भी वह नहीं थे। सूत्र कहते हैं कि बहुत फंदेबाज टाइप के महापुरुष थे उस दौर में वह। आज भी कुछ कम नहीं हैं। और ऐसे महापुरुषों को गोपालम् जैसे भद्रपुरुषों की जरूरत अक्सर पड़ जाया करती है।"
“क...क्यों पड़ जाया करती है?” अजय के दिल में उथल-पुथल मच गई थी। वह अपलक मदारी को देखने लगा था।
“
किन्हीं महान कामों को अंजाम देने के लिए।"
“म..महान काम?" उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं।
“जिन्हें अंजाम देने के लिए ही तो ‘महापुरुष' दुनिया में आते हैं।”
“कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते इंस्पेक्टर कि...कि पन्द्रह साल पहले ल..लाल साहब ने उस कुख्यात किलर गोपाल से कोई जुर्म कराया था?"
“तौबा।” उसने बड़े नाटकीय अंदाज में अपने कानों को छुआ है “मेरी इतनी मजाल कहां हो सकती है जजमान कि इतने बड़े महापुरुष पर इतना घटिया इल्जाम लगाऊं। पर...।"
“रुक क्यों गए तुम, आगे बोलो?” उसने व्यग्र होकर पूछा “पर क्या?"
“कहीं तो कुछ ऐसा जरूर था जो नहीं होना चाहिए था। वरना कहां श्री-श्री जैसा महापुरुष और कहां गोपाल जैसा ठू-ठां वाला आदमी। उसके लिए भला श्री-श्री अपने सिर-धड़ की बाजी क्यों लगाते। वैसे अभी यह निश्चित नहीं है कि अपने श्री-श्री ही वही आदमी थे।"
"फिर इतनी बकवास का क्या मतलब?"
"है न?"
"क..क्या ?"
“उस भद्रपुरुष गोपालम् की पन्द्रह साल की सजा पूरी हो चुकी है। और... दोनों हाथ से अपना दिल थाम लो श्रीमान, कल वह जेल से रिहा भी हो चुका है।”
“क...कौन?” अजय न चाहते हुए भी हकला गया था “वह कुख्यात किलर गोपाल?"
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