Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:05 PM,
#48
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
संजना को देखते ही सहगल अपने ऊपर से नियंत्रण खो बैठा। उसने इस तरह झपट्टा मारकर उसे अपनी बांहों से दबोचा कि क्या बाज अपने शिकार को दबोचता होगा। उसकी इस प्रत्याशित हरकत पर संजना बुरी तरह बौखला गई और उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई। मगर उसकी परवाह किए बिना सहगल ने संजना के गुदाज बदन को अपनी बांहों में उठा लिया और उसे ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया।

"ऊई मां।" संजना के होठों से फिर चीख निकल गई “क्या करते हो?"

“अभी कहां कुछ किया है मेरी जान।” सहगल लिबास के ऊपर से उसके बदन पर हाथ फिराता शरारत से बोला “ वह तो आगे करूंगा।"

"छ...छोड़ो मुझे।" संजना तड़पकर बोली “पहले मेरी बात सुनो।”

“अभी सुनने का वक्त नहीं आया है। थोड़ी देर के बाद सुनूंगा।”

“इ...इतना बेसब्र क्यों हो रहे हो बॉस। मैं क्या कहीं भागी जा रही हूं।” संजना प्रतिरोध भरे स्वर में बोली। “भागोगी तो तब जबकि मैं तुम्हें भागने दूंगा।"

"अरे कम से कम वह तो जान लो कि जिस काम के लिए मैं गई थी, उसका क्या हुआ?"

“उसमें भला क्या पूछना?" सहगल तनिक ठिठक गया था और संजना के गदराये जिस्म के हर उभार तथा हर कटाव को वह भूखी तथा ललचाई नजरों से टटोलने लगा था “तुमने पहले भी कभी मुझे निराश किया है जो आज करोगी। मुझे सौ फीसदी यकीन है मेरा काम एकदम चौकस हुआ होगा।"

“यह तो है। म...मैं बकाया रकम उसे खुद अपने हाथों से देकर आई हूं।”

"देखा।” वह विजेता के से अंदाज से बोला “मैंने कहा था न कि काम एकदम चौकस हुआ होगा। कुछ कह तो नहीं रहा
था वह बदबख्त?"

“वही तो मैं तुम्हें बताना चाहती थी।"

"क...क्या?"

"मैंने रुपयों का सूटकेस देकर तुम्हारी तरफ से उसे शुक्रिया भी बोला था।"

“शु...शुक्रिया?"

“हां। आखिर उसने तुम्हारा काम इतना चौकस जो किया है तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन जानकी लाल को पलक झपकते ठिकाने लगा दिया और तुम्हारा बदला पूरा हो गया।"

“हां।” उसे जैसे याद आया था। उसने स्वीकार किया “यह तो है। शुक्रिया बोलने लायक काम तो उसने सचमुच किया है। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। मुझे पूरा यकीन था कि वह मुझे जरा भी निराश नहीं करेगा।"

“यह यकीन तुम्हें आखिर क्यों था। क्या तुम पहले भी उससे कोई काम करवा चुके हो? मेरा मतलब किसी की सुपारी लगवा चुके हो?"

“वह पन्द्रह साल से जेल में था और जेल से वह भला किसकी सुपारी लगा सकता था मेरी बन्नो।"

"तो फिर?"

“विश्वास हासिल करने के और भी बहुत से तरीके हो सकते हैं। तुम नहीं समझोगी गुले गुलजार।"

“जरूरत भी क्या है मुझे समझने की।" संजना ने मुंह बिसूरा “वैसे तुम खुद उसके पास क्यों नहीं गए? पहले एडवांस तुमने मेरे ही हाथों उसे पहुंचाया भी था।"

“जो बॉस होता है, वह केवल हुक्म देता है, खुद कुछ नहीं करता।" "क्या कहने? मैं बेईमान हो जाती और सारा पैसा लेकर भाग जाती तो?"

“कौन क्या कर सकता है और क्या नहीं, इसका मुझे बहुत पुराना तजुर्बा है।"

"फिर भी...?”

“जाने दो न हनी। तुम्हें उसके पास भेजने की एक और भी वजह थी।"

"क..क्या ?"

"मैं चाहता था कि वह तुम पर लटू हो जाए।"

"म..मुझ पर लटू हो जाए।" वह तनिक चौंकी थी और उलझकर बोली “मगर तुम उसे मुझ पर लटू कराना क्यों चाहते हो?"

“ताकि तुम उसे शीशे में उतार सको।”

“उ...उस किलर को उस हत्यारे को?"

"क्यों भई! वह हत्यारा भी तो आखिरकार एक मर्द है, जिन्हें साबुत हज्म कर जाने का तुम्हें अच्छा तर्जुबा है।"

"लेकिन तुम यह सब क्यों चाहते हो?"

"है कोई वजह?"

“मुझे वह वजह नहीं बताओगे?"

“नहीं! क्योंकि अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है।"

"म...मतलब?"
|

“जानकी लाल सेठ का कत्ल तो केवल आरंभ है। अभी मेरे खून की प्यास बुझी नहीं है। अभी और लाशें गिरने वाली हैं।"

"व्हाट?" वह चिहुंककर उसे देखने लगी थी “अब और किसकी लाश गिरने वाली है?"

“इतनी जल्दी भी क्या है। मालूम हो जाएगा।"

"लेकिन..."

“घबराओ मत जाने तमन्ना। जहन्नुम रसीद होने वालों की उस लिस्ट में तुम्हारा नाम शामिल नहीं है। तुम तो पूरे सौ साल जीने वाली हो।"

“म...मगर जानकी लाल के बाद अब और कौन है जो तुम्हारा दुश्मन है?"

"मैंने कहा न मालूम हो जाएगा।"

“बॉस!” संजना ने अपलक उसे देखा। उसकी आंखों में संदेह के कीड़े गिजबिजाने लगे थे “तुम आखिर खेल क्या खेल रहे हो?"

"बहुत ही दिलचस्प खेल है जाने तमन्ना, तुम जरा भी बोर नहीं होगी?"

"बात अगर केवल कत्ल की है तो वह तुम सुपारी देकर उस किलर से करा सकते हो उसके लिए उसे शीशे में उतारने की भला क्या जरूरत है मुझे मोहरा बनाने की क्या जरूरत है?"

"ताकि वह किलर मेरा खेल समझने न पाए।"

“अगर वह समझ गया तो क्या होगा?"

"अनर्थ हो जाएगा।"

“ओह। लगता है सुपारी देकर सीधे रास्ते से कत्ल करवाने से वह समझ जाएगा कि तुम क्या खेल खेल रहे हो?"

"यकीनन!”

“जबकि अगर मैंने उसे शीशे में उतारकर अपनी जुल्फों में उलझाकर यह काम कराया तो वह नहीं समझ पाएगा?"

"हरगिज भी नहीं।"

"इतना यकीन है तुम्हें।”

“ऑफकोर्स स्वीटी।"

“लगता है उसे काफी करीब से जानते हो?"

"बहुत ज्यादा।"

"इतना ज्यादा तो कोई किसी को तभी जान सकता है जबकि उससे कोई पुराना नाता हो?"

“ ऐसा ही समझ लो?"

“यानी कि मुझे उसके सामने भी कपड़े उतारने होंगे अपने आशिकों की लिस्ट में एक नाम का इजाफा और करना होगा?"
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