Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:02 PM,
#21
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“यह हिन्दी फिल्मी का कॉमन डायलाग है श्रीमान, जो सुनने और देखने में काफी अच्छा लगता है लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। असल में तो कानून को छोड़कर सभी कानून से ऊपर होते हैं।"

“यह लफ्फाजी बंद करो इंस्पेक्टर और मुझे उसका नाम बताओ इंस्पेक्टर। कानून उसका इंसाफ नहीं कर सकता तो यह मैं करूंगा। अपने दुश्मनों का सिर कुचलने की ताकत मुझमें है। तुम केवल उसका नाम अपनी जुबान पर लाओ, जिससे तुम इतना खौफ खाए हुए हो।"

“आप सुनकर घबरा जाएंगे जजमान।"

“बको मत और जो मैं कह रहा हूं वह करो।"

अजय भी असमंजस भरे भाव से मदारी को देखने लगा था। मदारी की बातों ने उसे भी चकित कर दिया था।

“वैसे तो मैं सरकार के अलावा और किसी का हुक्म नहीं बजाया करता जजमान, जिससे कि मैं तनख्वाह पाता हूं, मगर अब जबकि आपने अपना दिल कड़ा कर ही लिया है, बताए देता हूं उसका नाम...।" वह ठिठका। उसने एक उड़ती सी नजर अजय पर डाली तो अजय का दिल जोर-जोर से धड़क उठा। फिर वह वापस जानकी लाल से मखातिब होकर कछ झिझकता सा बोला “जानकी लाल। सेम यू।” उसने अपनी तर्जनी अंगुली खजूर की तरह उसकी ओर तान दी।

"व्हाट?” जानकी लाल उछल पड़ा। फिर एकाएक उसके चेहरे पर तनाव आ गया। वह खीझकर बोला “यह क्या बदतमीजी है इंस्पेक्टर।”

अजय भी हकबकाकर कभी इंस्पेक्टर तो कभी जानकी लाल को देखने लगा था।

“यह बदतमीजी नहीं, सच्चाई है श्रीमान।” मदारी बोला “वह इंसान आपके अलावा इस सृष्टि में दूसरा नहीं हो सकता। वह केवल आप ही हैं जो खुद को खत्म कर सकते हैं। आपके दुश्मनों में उतना हौसला नहीं है जो आपका बाल भी बांका कर सके। फिर भी अगर यह हौसला हुआ है तो वह केवल आप ही के इशारे पर हो सकता है।"

“त..तुम्हारा मतलब है इंस्पेक्टर कि...।” जानकी लाल हकबकाकर बोला “अपने ऊपर बार-बार यह जानलेवा हमला खुद मैं करवा रहा हूं। वह सब मेरे इशारे पर हो रहा है।

"आपने एकदम दुरुस्त समझा श्रीमान।"

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है इंस्पेक्टर।” जानकी लाल इस बार भड़क ही जो उठा था “पागल हो गए हो तुम। तुम्हें पुलिस इंस्पेक्टर नहीं किसी सरकस का जोकर होना चाहिए था, जिसका काम लोगों का मनोरंजन करना होता है।"

"लगता है आप मान गए श्रीमान या फिर लगता है आप घबरा गए हैं इसीलिए मैंने पहले ही आपको ताकीद किया था कि उसका नाम मत पूछिए। मगर आप हैं कि माने ही नहीं। अब देख लीजिए आप डर गए न?"

“अरे बेवकूफ लेकिन मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं खुद अपने ऊपर जानलेवा हमला क्यों करवाऊंगा? मैं खुद अपनी जान लेने की बार-बार कोशिश क्यों करूंगा?"

“जाहिर है कि इंतकाल फरमा जाने के लिए तो नहीं करवाने वाले। खुदकुशी के तमन्नाई भी आप बिल्कुल नहीं मालूम पड़ते हैं।"

"तो फिर?"

“यह सब असल में एक दिखावा है नाटक है हाईटेंशन ड्रामा है। ताकि लोगों को यह यकीन हो जाए कि कोई सचमुच आपकी जान लेना चाहता है। इस शहर में कोई ऐसा है जो आपका राम नाम सत्य कर देने की प्रबल ख्वाहिश रखता है।"

“मगर लोगों को यह यकीन दिलाकर मुझे क्या हासिल होगा?"

"कुछ तो हासिल होगा ही जजमान । वरना आप यह बार-बार यह इतना बड़ा ड्रामा क्यों करते? बिना हासिल के भी भला कोई कुछ करता है इस फानी दुनिया में?"

"लेकिन हासिल क्या होगा मुझे?”

“आपकी माया अपरम्पार है श्रीमान। यह आपको ही बेहतर मालूम होगा कि इससे आपको क्या हासिल होगा या फिर हासिल हो भी चुका है। लेकिन इसमें कोई रहस्य तो यकीनन है कोई भारी रहस्य।”
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05-31-2021, 12:02 PM,
#22
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"बहुत खूब।” जानकी लाल गहरे व्यंग से बोला “इसका मतलब तो यह हुआ कि बीते दिनों यह जो मुझ पर ताजा हमला हुआ, वह भी मेरा ही करवाया हुआ था। जिसकी वजह से मैं इस वक्त यहां अस्पताल में जख्मी हुआ पड़ा हूं।"

“इसमें क्या शक है?" मदारी ने लापरवाही से कंधे झटके।

“तब तो उस हमलावर की जान भी मैंने जान-बूझकर ली होगी, जिससे बकौल तुम्हारे मैंने खुद पर हमला करवाया है
और वह मारा गया?"

“ठीक कहा श्रीमान। मगर यह जरूरी था, वरना यह यकीन कैसे पुख्ता होता कि कोई सचमुच आपकी जान लेने पर आमादा है आपको कत्ल करने का इतनी शिद्दत से तमन्नाई

"चलो एक मिनट के लिए मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं इंस्पेक्टर और कबूल कर लेता हूं कि अपने आप पर बार-बार जानलेवा हमला मैं ही करवा रहा हूं, लेकिन दिखावा करके यह ड्रामा करके मुझे आखिर क्या हासिल होने वाला है?"

“जवाब भी वही है कीर्तिमान, आपकी माया अपरम्पार है। इस सवाल का जवाब आपको ही बेहतर मालूम होगा कि आपको
क्या हासिल होने वाला है?"

"हूं।” जानकी लाल के होंठ भिंच गए अपने आप पर जज्ब करने में उसे कई पल लग गए थे। आखिरकार वह बोला “तो यह थ्योरी है पुलिस की मुझे लेकर। और मानना पड़ेगा, क्या खूब थ्योरी है।"

"देख लीजिए जनाब।” मदारी फूलकर कुप्पा होता हुआ बोला “फिर भी लोग पुलिस के महकमे को निकम्मा कहते हैं हम जैसे टेलेन्टिड पुलिस इंस्पेक्टर को नकारा और रिश्वतखोर कहते हैं।"

“लोग सरासर गलत कहते हैं।"

“वही तो। आप खुद ही देख लीजिए।” उसने अपना सीना चौड़ाया।

“असल में तुम उससे कहीं ज्यादा घटिया हो इंस्पेक्टर, जितना लोग तुम्हें समझते हैं।"

“आं।” मदारी बुरी तरह से हड़बड़ाया था। फिर वह खुद को संयत करके अविश्वास से बोला “य...यह आपने मेरे लिए कहा है?"

“हां। और अब जबकि...।" जानकी लाल, जबड़े भींचकर बोला “मेरे बारे में पुलिस के इतने नेक ख्यालात मुझे मालूम हो ही गए हैं तो फिर अब पुलिस की मदद की मुझे कोई जरूरत नहीं है। अब इस बारे में जो कुछ भी करना होगा खुद मुझे ही करना होगा। और मुझे जो करना है वह मैं कर लूंगा।"

"करेक्शन श्रीमान।"

“मतलब?"

“आपको जो करना है, वह तो आप कर ही रहे हैं। गुस्ताखी की माफी के साथ अर्ज कर रहा हूं कि अब आइंदा वह करने से बाज आ जाएं तो यह आपके साथ-साथ और भी कई लोगों की सेहत के लिए अच्छा होगा।"

"क्या करने से बाज आ जाऊं?"

"वही जो कर रहे हैं।"

“और मैं क्या कर रहा हूं?"

"जो करने से बाज आने का अभी मैंने आप को मशविरा दिया है।”

“तुम शायद मुझसे मसखरी कर रहे हो इंस्पेक्टर।"

“जी नहीं श्रीमान। मैं तो मुस्तैदी से आपके सवालों का जवाब दे रहा हूं जो कि मैं आमतौर पर आम या खास आदमियों को नहीं दिया करता। केवल सरकार के सवालों का ही दिया करता हूं, जिसकी मैं तनख्वाह पाता हूं और...।"

"इंस्पेक्टर!" तब जैसे जानकी लाल के सब्र का बांध एकाएक टूट गया था। वह एकाएक अपना आपा खोकर कर्कश स्वर में बोला “यहां से फौरन दफा हो जाओ। मैं तुम्हारे जैसे जाहिल और नाकारा पुलिस वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहता।"

"मेरी सूरत में तो खैर कोई नुक्स नहीं है जजमान।” उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया और बड़े अरमान से बोला "अलबत्ता आपकी पसंद ज्यादा हाई प्रोफाइल हो तो बात जुदा है। अब क्योंकि आपका हुक्म है तो जाना तो पड़ेगा ही मगर जाने से पहले एक दरख्वास्त करना चाहता हूं।"

“तुम यहां से जाते हो इंस्पेक्टर या मैं तुम्हें धक्के मारकर यहां से बाहर फिंकवा दूं।” जानकी लाल तमतमाकर बोला।

"आपके इस खेल में अब दरअसल खून का रंग शामिल हो गया है।” मदारी ने उसकी धमकी पर कान तक नहीं दिया था। वह अपनी ही धुन में अपने ही अंदाज में बोला, उसके स्वर में साफ चेतावनी का पट आ गया था “भले ही मरने वाला आपका कथित हमलावर था और आपराधिक रिकार्ड वाला आदमी था, जिसे आत्म रक्षा में आपके अंगरक्षकों ने मार गिराया, और जिसके लिए मैं चाहकर भी आपके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं ले सकता, न ही आपके उन अंगरक्षकों को दोषी ठहरा सकता हूं, जिन्होंने उस नन्ही सी जान पर ताबड़तोड़ गोलियां दाग दीं। फिर भी ताकीद कर रहा हूं श्रीमान, कोशिश करना कि यह पहली और आखिरी लाश ही साबित हो इसके बाद आइंदा कोई दूसरी लाश न गिरे। अगर गिरी तो विश्वास रखिए, मुझे बहुत अफसोस होगा।"

“क..क्या अफसोस होगा?" जानकी लाल ने होंठ भींचकर उससे पूछा।

“मेरा मतलब है कि आप जैसे महापुरुष के नाजुक हाथों में लोहे के कंगन पहनाते हुए मुझे बहुत अफसोस होगा। इतना ज्यादा कि आप सोच भी नहीं सकते।"

“गेट आउट।” जानकी लाल अब हत्थे से उखड़ गया था, वह बिफरकर बोला “आई से गेट आउट इंस्पेक्टर, अब अगर तुमने अपने मुंह से एक लफ्ज भी निकाला तो तुम्हें पछताना पड़ेगा। तुम उस घड़ी को कोसने पर मजबूर हो जाओगे जबकि तुमने यहां आने का इरादा किया था।"
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05-31-2021, 12:02 PM,
#23
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“अच्छा जजमान, अब आप इतनी दरयाफ्त कर रहे हैं तो चला जाता हूं। टेक केयर...।” वह कुछ क्षणों के लिए ठिठका फिर धीरे से उसने आगे जोड़ दिया “दिस इज माई एडवाइज। जय भोलेनाथ की।” फिर एक पल के लिए भी वह वहां नहीं रुका। वह मुड़ा और लम्बे डग भरता वहां से बाहर निकल गया।
जाते समय इस बार उसने अपना डमरू नहीं बजाया था।
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छुट्टी वाले रोज संजना सुबह देर से सोकर उठती थी। उस रोज इतवार था इसलिए संजना गहरी नींद सोई हुई थी, जबकि एकाएक उसके फ्लैट की कॉलबेल बजी।

कॉलबेल की आवाज काफी तीखी थी।

फिर भी संजना केवल कुनमुना कर रह गई।

कॉलबेल पुनः बजी।

संजना घोर अनिच्छा के साथ उठकर बैठ गई।
अपनी आंखें मलते हुए उसने अलसाये भाव से वॉल क्लॉक पर निगाह डाली। नौ बजने वाले थे। उसके जेहन को तत्काल झटका सा लगा। वह बिस्तर से उतर गई।

इस बीच कॉलबेल एक बार फिर बज चुकी थी। आने वाला काफी उतावला मालूम होता था। संजना ने अपना नाइट गाउन दुरुस्त किया और जाकर दरवाजा खोला। सामने जतिन खड़ा था।

जतिन मस्के सत्ताइस साल का एक आकर्षक युवक था। उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। उस वक्त वह एक रियल स्टेट कंपनी में बतौर चीफ इंजीनियर तैनात था और दिल्ली के करीब स्थित गुड़गांव के हाई टेक सिटी से जुड़ी वर्किंग साइट पर प्रोजेक्ट मैनेजर (पीएम) के रूप में काम कर रहा था। वहां वह एक बेहद ऊंची इमारत बना रहा था। मगर उसका आशियाना दिल्ली में ही था। उसके हाथ में एक ताजा गुलाब का फूल था।

सुबह-सुबह जतिन को अपने फ्लैट पर आया देख संजना चौंकी। दूसरे ही पल उसके खूबसूरत अलसाये चेहरे पर रौनक फैल गई। “ज..जतिन...।" वह बेअख्तियार खुशी से बोली “जतिन तुम।”

“हैप्पी वेलेन्टाइन डे।” जतिन रोमांटिक स्वर में बोला और अपने हाथ में मौजूद गुलाब का फूल उसने संजना की तरफ बढ़ा दिया। संजना के जेहन को झटका लगा था। तत्क्षण उसे याद आया कि आज चौदह फरवरी का दिन था, जो कि सारी दुनिया के प्रेमियों में प्रेमदिवस के रूप में मनाया जाता था और सोने पे सुहागा यह कि आज चौदह फरवरी को अवकाश भी पड़ रहा था।

इतनी अहम बात वह भूल गई थी। जबकि उसका दिलबर जतिन नहीं भूला था।

"हल्लो।” उसे खामोश देख जतिन ने उसे टहोका “कहां खो गई जानेतमन्ना?"

“खोई नहीं अपने ऊपर खीझ रही थी।” वह संभलकर झेंपती हुई बोली “इतनी अहम बात मैं कैसे भूल गई?"

"होता है।” जतिन बड़ी खुश मिजाजी से बोला “चलता है। बहुत नाजुक दौर होता है यह, जिससे हम गुजर रहे हैं। इस उम्र में अक्सर ऐसा हो जाता है।"

"अच्छा। संजना हंसी तो उसके सच्चे मोतियों जैसे दांत चमक उठे। हवा के एक हल्के से झोंके से माथे पर लहराती जुल्फ पीछे उड़ गई।

“और यह लो, अब तुम दूसरी बात भी भूल रही हो?" जतिन बोला।

“दू...दूसरी बात?” उसके गोरे मुखड़े पर सवालिया चिन्ह उभरे।

जतिन ने अपना गुलाब वाला हाथ ऊपर उठाकर उसे याद दिलाया। “यह कब से इंतजार कर रहा है।” वह बोला।

“ओह।” संजना हड़बड़ाई, फिर उसने जतिन के हाथ से गुलाब लेकर उसकी कोमल पंखुड़ियों को प्यार से चूम लिया और झूमकर बोली “सो क्यूट। थॅंक यू... थॅंक यू सो मच जतिन।"

“वह तो ठीक है स्वीट हार्ट पर कुछ अच्छा नहीं लग रहा।"

“क...क्या ?” संजना ने चौंककर चेहरा उठाया और जतिन को देखते हुए उसने उलझकर पूछा “क्या नहीं अच्छा लग रहा
जतिन?"

“एक गुलाब को दूसरा गुलाब भेंट करते?"

"क्या?" वह अचकचाकर हंसी थी।

"देखा नहीं कैसे फीका हो गया यह तुम्हारे हाथ में पहुंचते ही। पर मैं भी क्या करूं, आज के दिन अपने इस गुलाब के लिए...।" उसका इशारा संजना की ओर था “इससे बेहतर कोई दूसरा तोहफा मुझे सूझा ही नहीं।"

“अब मुझे मस्का ही लगाते रहोगे या अंदर भी आओगे।" संजना खिलखिलाकर उन्मुक्त भाव से हंसी, फिर बोली।

“वह भी आऊंगा।"

"तो फिर आते क्यों नहीं?"

"लेडीज फर्स्ट।"

“ओह।” वह पुनः खिलखिलाकर हंसी। फिर दोनों अंदर पहुंचे। संजना ने उसे एक सोफे पर ढकेल दिया।

“क्या पेश करूं?" उसने इठलाकर पूछा।

“वही, जो आज के दिन एक दिलरुबा अपने दिलबर को पेश करती है।"

“क...क्या ?"

“तुम्हें नहीं मालूम?”

“कहां मालूम है। मालूम होता तो क्या पूछती।"

“मेरी संजना को पेश करो।"

“वह तो तुम्हारे सामने है।"

“सामने रखने में और पेश करने में फर्क होता है मेमसाहब। तुमने संजना को मुझे पेश कहां किया है।"

“जतिन।” संजना फिर इठलाई “तुम आज कुछ ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे?"

“तुम बात को घुमा रही हो।”

“ओके। तो फिर तुम्हीं बता दो, मैं तुम्हारी संजना को तुम्हें कैसे पेश करूं?”

“ईजी।” उसने उसकी बांह पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया और बोला “ऐसे।”

संजना हड़बड़ाकर उसकी गोद में जा गिरी। उसकी उस अप्रत्याशित हरकत पर संजना के मुंह से चीख निकल गई थी।

“चुप करो।” जतिन जल्दी से बोली “वह आ जाएंगे?"

“क..कौन आ जाएंगे?” संजना सकपकाई।

“प्यार के दुश्मन।”

जतिन ने वह इस ढंग से कहा कि न चाहते हुए भी संजना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी।
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05-31-2021, 12:02 PM,
#24
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
जतिन ने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। संजना की खिलखिलाहट उसके होठों के बीच दबकर शहीद हो गई। कितनी ही देर वह संजना के होठों का रस चूसता रहा।

संजना कसमसाई तो उसने उसे आजाद कर दिया। संजना हांफती हुई उससे अलग हो गई। महज इतने से ही उसकी सांसें भारी हो गई थीं। रेशमी गाउन में उभरे वक्ष तेजी से उठने-गिरने लगे थे। जबकि जतिन के चेहरे पर ऐसे भाव आ गए कि जैसे कि मलाई का कटोरा उसके मुंह से लगाकर छीन लिया गया हो।

संजना चिकनी मछली की तरह उसकी गोद से फिसल गई और उठकर अपने पैरों पर खड़ी हो गई।

जतिन ने शिकायती नजरों से उसे देखा।

"इतने बेसब्रे पहले तो तुम नहीं थे।” जतिन को तिरछी नजरों से घूरती हुई गहरी-गहरी सांसों के बीच बोली।

“पहले कभी तुम्हें इस तरह रेशमी गाउन में जो नहीं देखा था।” जतिन बोला।

“ओहो।"

"इस हालत में किसी के सामने जाओगी और उसे तुम्हारे इतना करीब जाने की इजाजत होगी तो भला वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा?"

“ओहो, तो आज से पहले जनाब ने मुझे कभी गाउन में नहीं देखा था?" संजना शोखी से बोली।

“कसम उठवा लो। देखा होता तो आज तक यह गोरा बदन कुंवारा न पड़ा होता।"

"त...तो फिर?”

“इसका कुंवारापन तो मैं कब का लूट चुका होता।"

"तब तो बड़ी गड़बड़ हो गई।”

"कैसी गड़बड़?"

“आज तो बुरे ने घर देख लिया।” संजना ड्रामेटिक अंदाज में बोली “अब तो मेरा कुंआरापन खतरे में पड़ गया लगता है।"

“इसमें क्या तुम्हें अब भी कोई शक है।"

“तौबा। अब मैं क्या करूं?"

“तुम्हें कुछ करने की भला क्या जरूरत है, जो कुछ भी करूंगा मैं ही करूंगा।"

“अब बस भी करो जतिन।”

"अरे, अभी मैंने किया ही क्या है जो बस करूं।"

“ओह नो।”

“क्या ओह नो। आज मैं पक्का इरादा बनाकर आया हूं और किसी के भी रोके नहीं रुकने वाला।”

"हे भगवान ।” संजना घबराकर बोली या फिर शायद उसने घबराने का अभिनय किया था “क्या पक्का इरादा बनाकर आये हो तुम?”

“घबराओ मत।” जतिन ने उसे आश्वस्त किया “तुम्हारा कुंआरापन लूटने का नहीं, आज मैं यह प्यार का दिन सेलिब्रेट करने का पक्का इरादा बनाकर आया हूं और पूरा दिन सेलिब्रेट करने वाला हूं। आज का मैं एक भी लम्हा तुम्हारे बिना नहीं गुजारना चाहता हूं।"

“ओह तो यह बात है।"

"हां, यही बात है। अब तुम फौरन यहां से अंतर्धान हो जाओ, और जल्दी से बिजली गिराने का इरादा लेकर, म..मेरा मतलब है कि तैयार होकर वापस प्रकट हो जाओ।"

“स...समझ गई।” संजना ने फिर सच्चे मोतियों से दांत चमकाए थे “मगर तब तुम क्या करोगे?"

“वही जिसका फल कहते है कि शहद से भी ज्यादा मीठा होता है।”

“मतलब?"
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“इंतजार-तुम्हारे वापस प्रकट होने का इंतजार, और क्या?"

“ओह समझी।"

"फिर भी अभी तक खम्भे की तरह मेरे सामने खड़ी हो। अंतर्धान नहीं हुई अभी तक तुम?"

“मैं सोच रही थी तब तक तुम्हारे लिए कोइ चाय-बाय बना दूं।”

“फौरन दफा हो जाओ।" जतिन कड़ककर बोला।

संजना ने निःश्वास छोड़ी और फिर अपने जिस्म को रिलेक्स की मुद्रा में ढीला छोड़ दिया। फिर वह इठलाती-बल खाती मादक मुस्कान बिखेरती वहां से चली गई।

जतिन सोफे पर इत्मिनान से पसरकर बैठ गया और उसकी पुश्त से सिर लगाकर उसने अपनी आंखें मूंद लीं।
कुछ पल यूं ही गुजरे।

फिर जैसे ही बाथरूम का दरवाजा बंद होने और अंदर से उसकी चिटकनी चढ़ाने की आवाज आई, उसने ‘पट' से अपनी दोनों आंखें खोल दी और उछलकर सोफे से खड़ा हो गया। उसके चेहरे के भाव एकदम से चेंज हो गए थे। उसकी सारी आशिक मिजाजी और उतावलापन एकदम से गायब हो गया था। अब उसके चेहरे के जर्रे-जर्रे पर संजना के लिए नफरत और हिकारत के भाव उभर आए थे।

हालांकि उसे बखूबी मालूम था कि संजना उस फ्लैट में अकेली रहती थी, उसके अलावा वहां और कोई नहीं रहता था। फिर भी उसने ऐहतियातन खोजपूर्ण निगाहों से वहां के हर कोने खुदरे का मुआयना किया। वस्तुस्थिति को पूरी तरह अनुकूल पाकर उसने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सहमति में सिर हिलाया, फिर एकाएक वह हरकत में आ गया। उसने बेहद फुर्ती से अपना काम शुरू कर दिया।
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05-31-2021, 12:02 PM,
#25
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
आसमान में दूर-दूर तक काले बादल उमड़े हुए थे। ठंडी हवा के झोंके चल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कि थोड़ी देर पहले कहीं मूसलाधार बारिश होकर हटी थी, अथवा तब भी हो रही थी और अब वहां पर भी बस शुरू होने वाली थी। फिर तेज हवा के साथ एकाएक जोर से बिजली कौंधी और फिर बादलों की तेज घनगरज के साथ सचमुच बारिश शुरू हो गई। पानी की फुहारों ने धूप में तपती दिल्ली को भिगोना शुरू कर दिया।

अजय काफी देर से अपने फ्लैट की टैरेस पर मौजूद था और एक ईजीचेयर पर अधलेटा सा बैठा था। उसने ढीला-ढाला कुर्ता और चूड़ीदार पाजामा पहन रखा था। ठंडी हवा के झोंके रह-रहकर उसके चेहरे और जिस्म से टकरा रहे थे और उसे सुकून पहुंचा रहे थे। फिर पानी की बौछार पड़ना आरंभ हो गई, लेकिन उसने वहां से उठने का उपक्रम न किया। वह बदस्तूर दूर आसमान की गहराइयों में अपलक देखता रहा था और उनके अंदर कुछ खोजने का प्रयास करता रहा।

उसका एम्प्लायर जानकी लाल, जो कि दुनिया का सबसे घाघ और कमीना आदमी था, उसने आज उस पर सीधे-सीधे शक की अंगुली उठाकर बता दिया था कि वहां पर सब कुछ ठीक नहीं था। हर बात वैसी ही नहीं थी जैसा कि उसने सोच रखा था। जानकी लाल को कहीं न कहीं उस पर शक हो गया था, जो कि किसी भी तरह से ठीक नहीं था। जरूर वह कहीं कोई भूल कर बैठा था कोई ऐसी भूल, जिसने उसे जानकी लाल के शक के दायरे में ला दिया था उसके खिलाफ कोई संदेह का दायरा खींच दिया था। और अगर ऐसा हो गया था तो यह उसके लिए बहुत बड़ी खतरे की घंटी थी। उससे बेहतर इस बात का दसरा कोई जामिन नहीं था कि जानकी लाल किस हद तक खतरनाक आदमी था। वह उसकी लाश का भी पता नहीं लगने देने वाला था, जैसा कि वह पहले भी उसके साथ कर चुका था। इंसानियत का कलेजा चाक-चाक कर देने वाला एक वहशी खेल, खेल चुका था और उसकी जामिन शायद वह बीस मंजिला बुलंद इमारत थी, जो सामने मुख्य सड़क के उस पार उसके फ्लैट के ठीक सामने मौजूद थी और पानी में भीगती हुई साफ नजर आ रही थी।

शून्य से हटकर उसकी निगाहें उस इमारत पर स्थिर हो गई, जिससे कि उसका बहुत पुराना नाता था और वह उस नाते
को निभाना चाहता था, याद रखना चाहता था, एक पल के लिए भुलाना नहीं चाहता था। इसीलिए उसने दिल्ली में अपने खुद के एक नहीं दो-दो एमआईजी फ्लैट होने के बावजूद वह एलआईजी फ्लैट किराए पर लिया हुआ था, जो उसके अपने फ्लैट से क्षेत्रफल में आधे से भी कम था। और यह तभी मुमकिन था जबकि वह इमारत हर पल उसकी आंखों के सामने रहती और उसके दिल के जख्म हमेशा तरोताजा रहते।

धीमी फुहारें कब मूसलाधार बारिश में बदल गयी थीं, पता ही नहीं चला था। अजय के चेहरे और जिस्म से टकराती मूसलाधार बारिश की बूंदों ने उसे सिर से पांव तक पूरी तरह तर-बतर कर दिया था, लेकिन तब भी उसके अंदर की आग जरा सी भी कम नहीं हुई थी।

अतीत की कितनी ही लपटें उसके जिस्म और दिलोदिमाग को गीली लकड़ी की तरह सुलगा रही थीं धधका रही थीं। कितने ही भूले-बिसरे लम्हे, रिश्ते और नाते उसके दिलो-दिमाग में ताजा हो जाते थे और फिर मुरझाकर लोप हो जाते थे। फिर कुछ शेष रह जाता था तो वह केवल वीरानगी, तन्हाई, और तड़प थी और थी बदले की एक धधकती ज्वाला।

फिर उस ज्वाला में कोमल, ठंडी फुहार का झोंका लेकर आया था एक शोख हसीन और निर्दोष चेहरा जिसे देखकर एकाएक बहारों की महफिल भी मुस्करा उठी थी, और जिसकी खनकती हुई निश्छल हंसी ने गमों के संसार को भुला दिया था। कुछ लम्हों के लिए ही सही लेकिन उसे खुशियों का समुंदर बख्श दिया था। उस चुलबुली और शोख हसीना का नाम आलोका था। लेकिन यह तो उसे बहुत बाद में मालूम हुआ था, और यह केवल वही जानता था कि महज उसका यह नाम जानने के लिए वह कितना तड़पा था और उसके लिए उसे कितना लम्बा इंतजार करना पड़ा था।

“अरे जेंटलमैन तुम...।” सहसा उसके जेहन में जैसे कोई चहका था “यह तो सेंट परसेंट तुम्हीं हो।"

“हां।" वह मुस्कराया था उसने नजर भरकर उसके बला के हसीन मुखड़े को देखा, जो खूबसूरत कम सैक्सी, भोली और मासूम ज्यादा नजर आती थी। उसके लावण्य और मिजाज में बच्चों से कहीं ज्यादा चंचलता-चपलता और वाचालता थी “हूं। तो मैं ही, कोई ऐतराज?”

"सवाल ही नहीं उठता।" वह निडरता से बोली थी "मुझे भला क्यों ऐतराज होने लगा तुमसे?"

"तब तो फिर जरूर तुम्हें मुझसे डर लग रहा होगा?" उसने जान बूझकर उसे छेड़ा था।

"डर। वह क्यों भला?"

“हालात ही ऐसे हैं। और माहौल भी। जरा सोचो, अगर मेरी नियत खराब हो जाए और मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती पर आमादा हो जाऊं, तो क्या होगा?"

"क...क्या होगा?" वह गहरी उलझन व असमंजस में नजर आने लगी थी, जैसे कि वह अपने नारी होने के रहस्य से बिल्कुल ही अंजान थी।

“तुम लुट जाओगी बरबाद हो जाओगी?” अजय ने उसे बताकर उसकी दुविधा दूर की।

“अच्छा।” वह सख्त हैरान हुई थी, जैसे कि वह बात तभी उसकी समझ में आई थी।

"हां। जो कि होने की सूरत में...।” उसकी हर प्रतिक्रिया में अदा थी एक अबोध अदा, जिसने सबसे ज्यादा अजय को उसका दीवाना बनाया था। वह उसकी उस अदा को आत्मसात करता हुआ बोला “बालीवुड फिल्मों की पुरानी अभिनेत्रियां खुदकुशी कर लिया करती थीं।"

“नानसेंस।” वह मुंह बिगाड़कर बोली “मैं उन कमजोर लड़कियों में से नहीं हूं।"

“यानि कि तुम बहादुर लड़की हो और तुम खुदकुशी नहीं करोगी। अपना सब कुछ लुटाकर भी फख से जीती रहोगी?"

“अरे उसकी नौबत ही कहां आएगी जेंटलमैन?” उसने अपना सीना चौड़ाया।

“वह क्यों भला?"

"क्योंकि उससे पहले ही मुझे लूटने वाला खुद ही लुट चुका होगा और लंगड़ा-लूला होकर मेरी पुश्तों को कोस रहा होगा
और मेरी मोहिनी सूरत से सपने में भी खौफ खा रहा होगा। मगर मैं सपनों में भी उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली।"

“तौबा।” अजय ने आंखें फैलाई थीं “इतनी डेंजर हो तुम?”

“और नहीं तो क्या?" वह गर्व से बोली थी “मैंने कराटे सीख रखा है।"

“त..तुम्हें कराटे आता है?” अजय ने चकित होकर पूछा।
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05-31-2021, 12:02 PM,
#26
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"और क्या?” उसने एकदम से कराटे का एक्शन बनाया था “अकेले कराटे की क्यों बात करते हो, मैंने तो जूडो भी सीख रखा है। कूगफूं और मास्टर आर्ट में भी माहिर हूं। ब्लैक बेल्ट तो बस...।”उसने एकाएक ठंडी सांस छोड़ी थी “जीतते-जीतते रह गई थी।"
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"अरे बाप रे।"

“इसीलिए तो पहले ही वॉर्न कर रही हूं, होश में रहना अपने जज्बातों को कंट्रोल में रखना। तुम तो खैर अकेले हो, मैं तो दो-चार के भी काबू में नहीं आने वाली और उन्हें यूं...।" उसने अंगुली और अंगूठे से मजबूत चुटकी बजाकर दिखाई “चुटकी बजाकर हवा में उड़ा सकती हूं।”

तभी वातावरण में किसी वाहन की हैडलाइट चमकी। दोनों की नजरें फौरन दिशा में उठ गईं। वह एक कार थी जो बेहद तेजी से उधर ही आ रही थी।

उस चंचल तितली आलोका से उसकी वह तीसरी मुलाकात थी। उससे पहली-दूसरी मुलाकात तो कहीं और ही हुई थी और वह भीइ कोई कम रोचक नहीं थी। एक बार उसका जेहन अतीत के आइने में अटका तो फिर भटकता ही चला गया।

मूसलाधार बारिश पूरे वेग से उसके जिस्म को भिगोती जा रही थी। लेकिन वह उससे पूरी तरह बेखबर था और अपने ख्यालात के बादलों में रूई की तरह उड़ता जा रहा था उड़ता जा रहा था।
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संदीप महाजन क्लब से बाहर निकला तो वह हल्के नशे में था और उसके कदमों में हल्की लड़खड़ाहट भी साफ नजर आ रही थी। वह उस वक्त अकेला था। अस्पताल में उसके ससुर जानकी लाल ने जिस तरह उसे मुहब्बत और नफासत से जलील किया था, वह वो भूला नहीं था। और अकेले अस्पताल ही क्यों, उसका वह फादर इन लॉ उसे जलील करने का कोई भी मौका कहां छोड़ता था। और बात जब अकेले की होती थी, जबकि उसकी बीबी और जानकी लाल की बेटी उसके साथ नहीं होती थी तो तब तो फिर वह जंगल का शेर हो जाता था। फिर बस यही गनीमत रहती थी कि जानकी लाल उसे कच्चा चबाकर हज्म नहीं कर जाता था।

वह केवल रीनी ही थी जो कि उसके फॉदर इन लॉ के खिलाफ उसका सबसे बड़ा हथियार थी, और यही वह इकलौता हथियार था जो दुनिया के उस सबसे शातिर इंसान जानकी लाल को बेबस कर देता था।

संदीप ने पार्किंग में पहुंचकर अपनी कार का दरवाजा खोला और ड्राइविंग डोर बंद करके इग्नीशन में चाबी घुमाई। कार स्टार्ट न हुई। उसका इंजन दो तीन बार घुर्र-घुर्र करके शांत हो गया। उसने फिर कोशिश की। कोई नतीजा न निकला। उसकी अंगुलियां एक बार फिर से चाबी पर कसीं, तभी एकाएक उसका मोबाइल बजने लगा।
संदीप ठिठक गया।
उसने चाबी को छोड़कर डेशबोर्ड पर रखा अपना मोबाइल उठाया और उस पर फ्लैश होता नम्बर देखा। नम्बर सरासर अजनबी था। उसने असमंजस भरे भाव से काल रिसीव किया और मोबाइल अपने कान से लगाकर बोला "हल्लो।"

"कोई फायदा नहीं महाजन साहब।" दूसरी तरफ से एक नितांत अजनबी स्वर ने कहा “इस वक्त आपकी कार हड़ताल पर है, स्टार्ट नहीं होगी।"

“क...कौन बोल रहा है?" वह चिहुंककर बोला।

“घबराओ मत। मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं दोस्त हूं बहुत ही करीबी दोस्त।”

“म...मगर तुम हो कौन?"

“तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो।”

“मगर तुम चाहते क्या हो?”

“फोन पर नहीं बता सकता। यह रूबरू बैठकर बताने वाली बात है। मैं बहुत बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"

“क...कहां इंतजार कर रहे हो?"

"मुड़कर पीछे देखो। तुम्हारी कार के ठीक पीछे दूसरी लेन में एक सफारी खड़ी है। उसका रंग गहरा बादामी है।"

संदीप की गरदन मशीनी अंदाज में पीछे घूमी। बताई गई जगह पर सचमुच गहरे बादामी रंग की एक सफारी खड़ी थी।

"गुड।" फोन पर कहा गया “मैं उसी सफारी के अंदर हूं। लेकिन तुम मुझे नहीं देख सकते क्योंकि शीशों पर सफेद परदे पड़े हैं। उसकी बीच वाली पैसेंजर सीट पर बैठा मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"

“म...मगर तुम आखिर हो कौन?" संदीप ने सशंक भाव से पूछा। वह जबरदस्त असमंजस में नजर आने लगा था।

“कहा न, तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो। तुम्हारे लिए मैं न तो अजनबी हूं, न ही तुम्हारा दुश्मन हूं।"

"लेकिन..."

“हुज्जत के लिए तुम आजाद हो खुशी से जा सकते हो। नमस्ते।” फोन डिस्कनेक्ट हो गया।

संदीप कसमसाया।
उसने मोबाइल कान से हटा लिया। उसे समझते देर न लगी कि कार के इंजन के साथ छेड़खानी की गई थी और यह निश्चित रूप से उसी अजीबोगरीब आदमी का काम था, जो कि पीछे सफारी में मौजूद था और उसे अपने पास बुला रहा था। नामालूम वह रहस्यमय शख्स कौन था और उसे क्यों बुलाना चाहता था?

वह खुद को दोस्त बताता था लेकिन उसका कोई दुश्मन भी हो सकता था। जिज्ञासा ने उसे विवश कर दिया। वह हल्के सुरूर के हवाले था। वह सुरूर गायब हो चुका था। वह कार से नीचे उतरा और प्रत्याशा के हवाले से डूबता-उतराता सफारी के करीब पहुंचा।
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05-31-2021, 12:03 PM,
#27
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
तभी सफारी का पिछला दरवाजा खुला।

“वैलकम।" कोई बोला। वह स्वर अंदर से आया था और वह वही स्वर था जो उसने मोबाइल पर सुना था।

संदीप ने सावधान मुद्रा में खुले दरवाजे से झांककर अंदर देखा और अंदर मौजूद शख्स को देखते ही उसके जेहन को तेज झटका लगा था। वह सचमुच उसके लिए अजनबी नहीं था और यह भी सच है कि वह उसे अच्छी तरह से पहचानता था। उसे पहचानते ही उसका सारा संशय दूर हो गया। वह कोई और नहीं, सुमेश सहगल था। संदीप निःसंकोच सफारी के खुले दरवाजे में समा गया।

सफारी का दरवाजा भड़ाक से वापस बंद हो गया।
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अजय की उस ग्लैमरस गुड़िया से पहली मुलाकात कनाट प्लेस में हई थी। उस वाक्ये को आज पांच साल से ऊपर हो गए थे। वह अपनी कम्पनी के किसी काम से कनॉट प्लेस गया था, जहां की एक मल्टीस्टोरी इमारत के बीसवें फ्लोर पर उस कंपनी का ऑफिस था। वहां का काम निबटाकर वह वापस लौट रहा था। लिफ्ट में उसके साथ केवल दो लोग ही और मौजूद थे जो कि नीचे के अगले फ्लोर पर उतर गए थे, जबकि अजय को ग्राउंड फ्लोर पर जाना था। सोहलवें फ्लोर पर जैसे ही वह दोनों उतरे और लिफ्ट का दरवाजा वापस बंद होने को हुआ, तभी एक लड़की तेजी से भागती हुई वहां पहुंची और लिफ्ट के तब तक आधे से ज्यादा बंद हो चुके दरवाजे की झिरी में उसने अपना पर्स फंसा दिया। बंद होता दरवाजा बीच में अवरोध आ जाने के कारण जहां का तहां रुक गया और वापस खुल गया।

अगले पल वह हवा के स्वच्छंद झोंके की तरह अंदर दाखिल हुई तो न चाहते हुए भी अजय की निगाह उसकी ओर उठ गई और फिर उस पर ही चिपक कर रह गई ठीक वैसे ही जैसे कि शक्तिशाली चुम्बक लोहे को खींचकर अपने साथ चिपका लेता है।
अजय की इसमें कोई गलती नहीं थी। वह दिलफरेब हुस्न की मल्लिका थी ही ऐसी कि उससे नजर हटा पाना मुमकिन नहीं था। उसकी उम्र बमुश्किल बीस साल होगी। सुलगता-सुलगता सा ऐसा किताबी चेहरा जो केवल ख्वाबों में ही नजर आता था और ख्वाब टूटते ही गायब हो जाता था और फिर खुद को यकीन दिला पाना संभव नहीं होता था कि कोई ऐसी कयामत दुनिया में मौजूद हो सकती थी। मगर वह साक्षात दुनिया में मौजूद थी और अजय के सामने खड़ी थी।

उसने येलो शेड का बड़े छापों वाला कालरदार सूट पहन रखा था और खिलती रंगत वाली लैंगिंग, जो चूड़ीदार सलवार की तरह ही उसकी टांगों से चिपकी हुई थी और जिसमें उसकी शानदार फिगर बड़े दिलकश अंदाज में नुमायां हो रही थी। उसके चेहरे से कहीं ज्यादा शानदार उसकी फिगर थी। पैरों में वी शेप की साधारण चप्पल, बेतहाशा लम्बे और घने बालों को उसने रबर बैंड से पीठ पीछे बांध रखा था। हाथों में साधारण सा लेकिन आंखों को भाने वाला वैनिटी बैग, चेहरे पर मेकअप का नामोनिशान तक नहीं था। सच तो यह था कि उसका कयामत ढाता नैसर्गिक सौंदर्य किसी मेकअप का मोहताज था भी नहीं। वह तो खूबसूरती की जीती-जागती तस्वीर थी। मगर सबसे ज्यादा कशिश, उसकी आमंत्रण देती आंखों में थी, जिनमें अंदर गहराई तक शोखियों और अंदाजों का समुंदर नजर आता था। रसीले, गुलाबी होठों पर शरारत और जिंदादिली में डूबी निश्छल मुस्कान छिपी हुई।

भागकर आने के कारण उसकी सांसें फूल गई थी। जिसके साथ ही उसके उन्नत उभार बार-बार ऊपर उठ-गिर रहे थे। एक मकसद के पीछे बेतहाशा भागते अजय के जीवन का वह पहला क्षण था, जबकि उसने नजर भरकर किसी लड़की को देखा था और जिसे देखने के बाद उसके दिल में गुदगुदी सी मचने लगी थी, अरमान मचलने लगे थे, हसरतें उभरने लगी थीं। सच तो यह था कि वह पहली ही नजर में सीधे अजय के दिल में उतरती चली गई थी।

उस कयामत की नजर अजय पर पड़ी, जो अपलक उसे ही देखे जा रहा था एकदम नदीदों की तरह। लिफ्ट का दरवाजा बंद हो चुका था। उसके बाद कोई अन्य लिफ्ट में नहीं आया था और अकेले उन दोनों को लेकर ही लिफ्ट पुनः नीचे चल पड़ी थी।

अजय को यूं नदीदों की तरह आंखें फाड़े खुद को देखते ही हुस्नपरी की भृकुटि तन गई थी। उसने अजय का ध्यान बंटाने के लिए खंखारकर अपना गला साफ किया और उसकी आंखों के सामने ले जाकर अंगुली व अंगूठे से चुटकी बजाई तो अजय की तंद्रा भंग हुई और वस्तुस्थिति का अहसास होते ही वह हड़बड़ाया और बुरी तरह झेंप गया।

"हल्लो।" वह खनकते स्वर में बोली। उसके लहजे में शैशवावस्था का अल्हड़पन और किसी अबोध बच्चे जैसी मिठास थी “आर यू ओके मिस्टर?"

“ज...जी...हां ।” अजय तनिक हड़बड़ाकर बोला “ऑय एम ऑलराइट।"

"क्या आलराइट। पहले कभी कोई लड़की नहीं देखी क्या?"

“बहुत देखी हैं।” अजय अब किसी हद तक सहज हो चुका था और उससे बातें करने का उसे बेहतर मौका भी हासिल हो गया था। वह जानबूझकर शरारत से बोला “लेकिन आप जैसी एक भी नहीं देखी।"

“इसीलिए मुझे नजर लगाने पर आमादा हो।”

“मैं तो केवल आपको देख रहा था।” वह शाइस्तगी से बोला “और नजर लगाने लायक तो सचमुच ही आप हैं।"

“बातचीत से तो कोई शरीफ मालूम पड़ते हो।” वह तनिक नर्म हुई थी या शायद अपनी संजीदा तारीफ से खुश हुई थी "लेकिन असल में हो नहीं।"

“यह आप कैसे कह सकती हैं?"

“एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, तुम्हें मुझसे सॉरी बोलना चाहिए था।"

“सॉरी किसलिए।”

“मुझे इस तरह घूर-घूरकर देखने के लिए।”

“किसी को घूरकर देखने पर सॉरी बोलना पड़ता है?"

“किसी और के बारे में तो मुझे पता नहीं, क्यों कि मैंने आज तक किसी को घूरकर नहीं देखा। लेकिन मुझे देखने पर बोलना पड़ता है।”

"अच्छा ।"

“हां।” उसने अपनी सुराहीदार गरदन ऊपर-नीचे हिलाई।

“और फिर अगर मैं सॉरी न बोलूं तो?" अजय ने उसे फिर जानबूझकर छेड़ा। उससे बातें करके उसे मजा आ रहा था।

"तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम कोई शरीफ आदमी नहीं हो। यू आर नॉट ए जेंटलमैन।”

“ओह नो। फिर तो मैं फौरन सॉरी बोलता हूं।” वह बौखलाया और जल्दी से बोला “ऑय एम सॉरी।"
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05-31-2021, 12:03 PM,
#28
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ऑल राइट।” उसने गहरी सांस भरी और अपनी जिद तोड़ती हुई बोली “अब मुझे विश्वास हो गया कि तुम सचमुच एक जेंटलमैन हो। वैसे...।” वह एक पल ठिठकी फिर बोली “एक बात कहूं।"

“ज...जी हां...। जरूर कहिए।”

"मैंने तुम्हारे बारे में झूठ कहा था।"

"क..क्या झूठ बोला था?"

“यही कि तुम शरीफ आदमी नहीं हो। तुम सचमुच एक जेंटलमैन हो।"

“य...यह कैसे जाना आपने?”

तभी लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर रुक गई। उसका दरवाजा खुला और दोनों बाहर निकल आए।

“अरे जेंटलमैन।" वह अपना हाथ उठाती एकाएक पटाक्षेप वाले अंदाज में बोली “तुम्हारे साथ लिफ्ट का सफर कब कट गया पता नहीं चला। अच्छा अब मैं चलती हूं। बॉय।"

“अ..अरे एक मिनट...।” अजय हड़बड़ाकर जल्दी से बोला “एक मिनट प्लीज।”

वह ठिठक गई। उसने सवालिया निगाहों से अजय को देखा।

"मेरे सवाल का जवाब तो देती जाइए।"

“क...कौन से सवाल का जवाब देती जाऊं?" उसने अपना सवाल दोहराया।

“ओह हां।” उसे जैसे याद आया “यह तो मैं भूल ही गई थी। दरअसल क्या है कि यह तो तुम्हें मालूम ही होगा कि लड़की अगर जवान हो, खूबसूरत हो और दुनिया के बाजार में निकली हो तो उसे बहुत तरह की नजरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें ज्यादातर नजरें अच्छी नहीं होतीं। बल्कि अच्छी नजर तो होती ही नहीं हैं। सारी की सारी नजरें एक जैसी ही होती हैं, जिनमें वासना कम हवस ज्यादा तैर रही होती है।”

"ह...हां। यह तो है।” अजय ने स्वीकार किया।

“और तुम यह भी जानते होगे कि उन नजरों को भांप लेने की कूव्वत हर लड़की कुदरत से लेकर पैदा होती है। तो लब्बोलुबाब यह जेंटलमैन कि कम से कम तुम्हारी आंखों में मुझे अपने लिए ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया न वासना न ही हवस ।

“ओहो...। यह तो फिर मेरे लिए गुड न्यूज है।” अजय का चेहरा रोशन हुआ था।

“न ही मुझे अपने इतना करीब पाकर और ऐसे मुमकिन माहौल में भी तुमने मेरे साथ ऐसी कोई छिछोरी हरकत की, जो कि अगर कोई दूसरा सड़कछाप होता तो किए बिना बाज न आता।"

“लिहाजा मैं जेंटलमैन हूं?” अजय हर्ष के साथ बोला।

“पहली नजर में तो ऐसा ही लगता है।"

“और अगर तुम्हारा अंदाजा गलत निकला तो मेरा मतलब है कि मैं जेंटलमेन न हुआ, दूसरों के जैसा ही सड़कछाप हुआ तो?"

“तो मुझे क्या?” उसने अपने कंधे झटके और अपने माथे पर फिसल आई बालों की एक जिद्दी लट को फूंककर उड़ाती हुई लापरवाही से बोली “मैंने तुमसे कोई रिश्ता थोड़े ही न जोड़ना है। रोजाना बहुत मुसाफिर मिलते हैं जिंदगी के सफर में, और नजरों से हटते ही भूल जाते हैं। उस लाखों-करोड़ों के स्कोर में एक का इजाफा और हो जाएगा, ईजी।"

अजय के दिल को न जाने क्यों धक्का सा लगा था। आज तक उसके एटीट्यूड से हसीनों को धक्का लगता आया था। वह पहला मौका था जब किसी हसीना के एटीट्यूड ने उसे धक्का पहुंचाया था।
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"इस ज...जेंटलमैन की दोस्ती कबूल नहीं करोगी!" फिर भी उसने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“लड़कों की दोस्ती मैं कबूल नहीं किया करती।” उसने सपाट स्वर में जवाब दिया।

“क...क्यों...भला?"

“क्योंकि उसमें दोस्ती कम और आकर्षण ज्यादा होता है। जबकि दोस्ती में आकर्षण का कोई दखल नहीं होता।"

“ओह।” उसके दिल को फिर धक्का सा लगा था। फिर वह बोला “अपना नाम भी नहीं बताएंगी।"

“क्या फायदा। अच्छा अब मैं चलती हूं। बॉय।” उसने फिर से अपने माथे पर ढलक आई जिद्दी लट को फूंककर पीछे उड़ाया फिर अपने पीछे अजय को ठगा सा छोड़कर वह अप्सरा वहां से अंर्तधान हो गई।

इतने बरसों से जिंदगी के तपते रेगिस्तान में भटकते अजय के नीरस जीवन में आज पहली बार ठंडी हवा का एक सुखद झौंका आया था, मगर वह उसे केवल स्पर्श करके ही निकल गया था। कहते हैं चेहरा दिल का आईना होता है और आज उसने वह पवित्र आइना देख लिया था, जिसमें दुनियादारी की रत्ती भर मिलावट नहीं थी। वह सख्त हैरान था कि ऐसी पाकीजा दिल लड़कियां अभी भी दुनिया में मौजूद थीं। जितनी वह खूबसूरत थी, उतनी ही बेबाक भी थी और कितनी बेबाकी से उसने उसके साथ जरा सी भी बेतकल्लुफी बढ़ाने से इंकार कर दिया था।

वह भी उसका सच्चाई का एक अकाट्य सबूत था।
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05-31-2021, 12:03 PM,
#29
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
अपने बारे में उसने अजय को एक लफ्ज भी नहीं बताया था। फिर भी न जाने क्यों अजय को लगा, उस हुस्नपरी से उसकी वह मुलाकात महज इत्तेफाक नहीं था और यदि वह इत्तेफाक नहीं था तो जाहिर सी बात थी कि उसमें कोई कहानी छुपी हुई थी कोई अंजानी कहानी यानि कि वह चंचल तितली उसे दोबारा फिर मिलने वाली थी और जरूर मिलने वाली थी।

अजय का दिल एक अंजाने उल्लास से भरकर धड़क उठा। मगर साथ ही उसे आशंकाएं भी सताने लगी थीं। कहीं उस ख्यालों की हसीना के दिल का कोना भर तो नहीं चुका था। जो कोमल भावनाएं वह उसके लिए अपने दिल में संजोये बैठा था, कहीं वह किसी और के लिए तो संजोये नहीं बैठी थी।

मगर ऐसा कुछ भी नहीं निकला था। वहां तो सचमुच एक कहानी लिखी थी। और क्योंकि कहानी लिखी थी लिहाजा उस हुस्नपरी से उसकी अगली मुलाकात भी बहुत जल्द हुई।

उससे उसकी वह अगली मुलाकात एक पीवीआर शापिंग मॉल में हुई थी।

वह नया बना शॉपिंग मॉल था, जो बीते माह ही चालू हुआ था। वह तब भी कम्पलीट नहीं हुआ था। उसकी ऊपर की मंजिलों पर काम चल रहा था। वह शॉपिंग माल का टेंडर दरअसल में जानकी लाल की ब्लूलाइन कंस्ट क्शन के पास था और अजय का दौरा अक्सर वहां होता रहता था।

उस रोज भी वहां उसका आफिशियल दौरा था और अपनी टीम के साथ वह वहां पहुंचा था। उसका काम शाम तक खत्म होने वाला था। वह दोपहर के लंच का वक्त था। उसका और उसकी टीम का लंच का इंतजाम करीब ही स्थित एक स्टार सुविधाओं वाले रेस्टोरेंट में था। लेकिन उस रोज उसका नाश्ता जरा हैवी हो गया था इसलिए उसे खाने की कतई इच्छा नहीं थी। बस एक कप कॉफी और टोस्ट से ही उसका काम चल जाने वाला था जो कि नीचे माल में ही उपलब्ध था।

वह सीढ़ियों से उतरकर नीचे पहुंचा। कॉफी शाप से पहले ही एक लेडीज गारमेंट्स का शोरूम था। वह उसे पार करके आगे बढ़ने ही लगा था कि तभी एकाएक उस शानदार शोरूम का एक्जिट वाला पारदर्शी ग्लास डोर खुला। अगले पल उस खुले ग्लासडोर से एक लड़की तेजी से लपकती हुई निकली और सीधी अजय की छाती से टकरा गई।

अजय के शरीर को तेज धक्का लगा। वह बौखला उठा।
हालांकि इसमें अजय की कोई गलती नहीं थी। सारी गलती तो आने वाली हसीना की थी, जो बेहद जल्दबाजी में मालूम पड़ती थी और उस भीड़ की जगह पर वह इतनी फास्ट तथा लापरवाह मूव कर रही थी।

टकराने के बाद वह भी लगभग फौरन ही संभल गई थी।

फिर जैसे ही अजय की उस पर निगाह पड़ी, वह बुरी तरह चौंक पड़ा।
“अ...आप...।” उसके मुंह से बेसाख्ता निकला और वह मुंह बाए अपलक उसे देखने लगा। वह हसीना कोई और नहीं, उसके ख्वाबों की वही मलिका थी, जो उसके ख्वाबों से निकलकर एकाएक धरती पर आ गई थी। उस वक्त उसकी वह मुलाकात अप्रत्याशित थी, जिसने उसे भी चौंका दिया था।

“अ...अरे तुम...।" वह जरा चकित हुई थी। मगर इस बार अजय के लिए उसके लहजे और नजरों में अजनबीपन नहीं था, जिसने अजय को बहुत सुकून पहुंचाया था। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसे यूं फिर से अपने सामने पाकर अजय के दिल में खुशियों के कितने अनार फूट पड़े थे। एक अजीब सी हर्षभरी उत्तेजना उस पर छा गई थी, जैसे कि कोई खोया खजाना वापस मिल गया हो।

"हूं तो मैं ही मोहतरमा।” अपने जज्बातों को छुपाता अजय उसके सिंदूरी मुखड़े को देखता हुआ बोला “लेकिन बराये मेहरबानी, पहले एक बात बताइए।"

“तो, मिलते ही सवाल-जवाब शुरू कर दिया?" वह तमककर बोली।

“तो फिर मुझे और क्या करना चाहिए था?"

“मुझे सॉरी बोलना चाहिए था।"

“स...सॉरी किसलिए?"

"अरे हद करते हो। तुमने मुझे टक्कर मारी, मैं नीचे गिरते-गिरते बची हूं।”

“मैं संभाल लेता।”

"व्हॉट?"
“मैं हरगिज भी आपको नीचे गिरने नहीं देता। फौरन संभाल लेता।”

“तब तो हिन्दी फिल्मों वाला एक अच्छा-खासा स्क्रीन प्ले हो जाता, जिसमें फिल्म का हीरो अपनी हीरोइन की मुलाकात पर उसे ऐसे ही नीचे गिरने से संभाल लेता है।"

“मैं फिल्में नहीं देखता।” अजय मुस्कराया था। उसकी वही वाचाल अदा तो न चाहते हुए भी अजय को गुदगुदा जाती थी।

“लिहाजा सॉरी बोलना कैंसल ?” उसने नथुने फुलाए।

“सॉरी तो आपको बोलना चाहिए, क्योंकि टक्कर आपने मुझे मारी है। मेरे समझ में नहीं आता कि आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों होती हो, जैसे कि आपकी ट्रेन छूटने वाली हो। उस दिन लिफ्ट में भी आपने ऐसे ही तूफानी अंदाज में ऐंट्री की थी।"

“यही पूछना चाहते थे मुझसे?”

“हां। क्या नहीं पूछना चाहिए?"

"इस बारे में ब...बाद में फैसला करेंगे।” एकाएक उसका लहजा धीमा हो गया था “उसके लिए यह वक्त मुफीद नहीं

“अरे, मगर क्यों?”

"आस-पास के लोग जमा हो गए हैं।” वह सकुचाती सी बोली और उसने एक दबी निगाह अपने आस-पास घुमाई “और ह...हमें ही देख रहे हैं, वह देखो। एक सिक्योरिटी गार्ड भी इधर ही चला आ रहा है।"
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05-31-2021, 12:03 PM,
#30
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ओह।" अजय ने महसूस किया, वह सही कह रही थी।

“आओ, यहां से चलें।” अजय ने बेध्यानी में उसका हाथ पकड़ा और तेजी से एक ओर बढ़ता हुआ बोला।

हसीना ने ऐतराज न किया। वह उसके साथ खिंचती चली गई। फिर जैसे ही वह दोनों लोगों की निगाहों से बाहर हुए, उसने झटककर अजय से अपना हाथ छुड़ा लिया और थमककर खड़ी हो गई।

अजय भी ठिठककर रुक गया।

“थ..थैक्यू...।" वह पलकें झुकाकर धीरे से बोली।

कितने ही पल खामोशी में बीते। दोनों में से कोई कुछ न बोला।

“त...तुम यहां क्या कर रहे हो?” फिर उसने नजर उठाकर पूछा। उसका संकोच किसी हद तक जाता रहा था।

“वही जो आप कर रही हैं।"

“ओह नो।” वह तत्काल खिलखिलाकर उन्मुक्त भाव से हंसी फिर बच्चों जैसी चपलता से बोली “मगर यह कैसे हो सकता है?"

“क्यों नहीं हो सकता?” अजय चकराया।

“म..मैं तो यहां अपने लिए सूट खरीदने आई थी।” वह बोली।

अजय तनिक हड़बड़ा गया लेकिन वह फौरन ही संभल गया। “आ..आप हमेशा सूट ही पहनती हैं?" उसने पूछा “जींस और
टॉप नहीं पहनतीं।"

"वह तो मैं कभी नहीं पहनती।"

“मगर क्यों? जबकि आप पर तो जींस बहुत अच्छी लगेगी। बहुत शानदार फिगर है आपकी।"

“फिर भी मैं नहीं पहनती।"

"लेकिन क्यों?"

“शानदार फिगर दिखाने के लिए अकेले जींस और टॉप ही नहीं होता।" वह निःसंकोच बोली “और भी बहुत सारे लिबास होते हैं।”
"अच्छा ।"

उसने माथे पर फिसल आई अपनी उसी जिद्दी लट को फूंककर ऊपर उड़ाया।

“जो लिबास...।” फिर वह बोली “मैंने इस वक्त पहन रखा है, क्या वह जींस-टॉप है?"

"नहीं।"

"फिर भी क्या उसमें मेरी फिगर साफ नहीं दिख रही?"

“सरासर दिख रही है।"

“सो देयर।” उसने लापरवाही से कंधे उचकाये “फिर वही पोशाक क्यों न पहनी जाए, जो औरत के लिए ही बनी है, जिसमें हमारा मुल्क-कल्चर भी झलकता है। सबसे बड़ी बात जिस पर कोई इल्जाम लगाती अंगुली नहीं उठती।"

“इसीलिए आप जींस-टॉप नहीं पहनतीं, हमेशा सूट ही पहनती हैं?”

“आप ऐसा कह सकते हैं।"

“काफी शानदार नजरिया है आपका।” अजय उसके ख्यालात से प्रभावित हुए बिना न रह सका था “एकदम आपकी ही तरह। मगर कितनी लड़कियां इस तरह से सोचती हैं?"

“कोई तो सोचती ही होगी। कौन नहीं जानता जनाबेआली कि औरत के रूप में कुदरत ने आदमी को एक नायाब तोहफा दिया है। क्यों दिया है, यह भी हर कोई जानता है। मगर क्या कोई उस तोहफे के रहस्य की परतें सरे बाजार उधेड़ने बैठ जाता है।"

“न..नहीं....?” अजय हड़बड़ाया और जल्दी से बोला। वह जितनी बुद्धिमान थी, उतनी ही बेबाक भी थी।

"फिर उस रहस्य को जताने का इतना उतावलापन क्यों?"

“जींस के काफी खिलाफ मालूम पड़ती हैं आप?"

“नहीं। मैं जींस के खिलाफ नहीं हूं। हर वह लिबास अच्छा है जिसमें औरत का बदन पूरा छिपता है। मगर यह तहजीब तो आखिर इंसान को होनी ही चाहिए कि बदन को किस तरह छिपाया जाए उसे छिपाने के लिए या फिर उसे दिखाने के लिए। खैर...जाने दो, मैं भी क्या बकवास लेकर बैठ गई।"

अजय मुग्ध हो उठा था और प्रभावित नजरों से उसे देखने लगा था।

“लेकिन...।" सहसा वह संभली थी और हैरान होकर बोली “यह सब मैं तुम्हें क्यों बता रही हूं। तुम तो मेरे लिए अजनबी हो।"

“अब कहां अजनबी हूं।” अजय ने फौरन प्रतिवाद किया “हम एक बार पहले भी तो मिल चुके हैं।"

“अजनबी दोबारा भी मिल सकते हैं। अच्छा अब मैं चलती हूं। बॉय...."

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“ब..बस एक सवाल।” अजय व्यग्र होकर जल्दी से बोला "प्लीज।"

“क्या पूछना चाहते हो तुम?" वह रुक गई थी। उसने फिर चेहरे पर ढलक आई बालों की जिद्दी लट को फूंक मारकर यथास्थान पहुंचाया था।

"आपका नाम?"

“अरे पागल हुए हो?" वह इस तरह बोली, जैसे कि अजय ने कोई अनहोनी बात पूछ ली हो "पिछली बार बताया तो था

मैंने कि मैं अजनबियों को अपना नाम नहीं बताती।"

“ओह...।” अजय के चेहरे पर मायूसी फैल गई। एक बार फिर उसके दिल को धक्का लगा था और यह बात शायद उस
लड़की से छिप नहीं सकी थी।

“मायूस मत होना जेंटलमैन।” वह कोमल भाव से बोली। उसने अपलक उसे देखा था “कहते हैं हर दो अजनबी के बीच अक्सर कहानी लिखी होती है, जो आखिरकार अपने अंजाम को पहुंचकर ही रहती है। अगर हमारे दरम्यान भी सचमुच कोई कहानी लिखी है तो हम फिर से मिलेंगे और फिर उस कहानी के किरदार बनकर सिलसिला शुरू करेंगे।
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