Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:07 PM,
#61
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“य...यह क्या कर रहे हो ज...जतिन।” वह उसकी गिरफ्त में मचलती कठिनाई से बोली, उसका दम घुटने लगा था “पा...पागल हो गये हो क्या, छोड़ो म...मुझे।”

“वैसे तेरे हौसले की दाद देने को मन कर रहा है।” जतिन होंठ चबाता बोला। उसने अपने हाथों का दबाव जरा सा भी कम नहीं किया था “ऊपर वाला तुम हसीनाओं को गजब की हिम्मत देकर दुनिया में भेजता है। रंगे हाथों पकड़ी गई, फिर भी जरा सा भी पश्चाताप नहीं उभरा चेहरे पर। उल्टा मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रही है। चोरी और सीनाजोरी की ऐसी मिसाल कहां मिलती है देखने को। मगर कोई बात नहीं, अब सब ठीक हो जाएगा?"

“क...क्या ठीक हो जायेगा। तुम्हें फांसी ह..हो जाएगी।"

“कल क्या होगा किसने देखा है! वैसे भी तू अभी-अभी सहगल के साथ हमबिस्तर होकर हटी है। जानकी लाल के कत्ल के षड्यंत्र में भी तूने बराबर उसका साथ दिया। अगर जिंदा रहती तो आइंदा कत्लों में भी पूरा-पूरा उसका साथ देने वाली थी। ऐसे अगर तेरे कत्ल का कोई सबसे बड़ा सस्पेक्ट होगा तो वह तेरा बूढ़ा यार सहगल ही होगा और अगर फांसी पर लटकने की नौबत आएगी तो मैं नहीं वह लटकेगा।"

उसका दम घुटने लगा था चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था। आंखें कटोरियों से बाहर उबलने लगी थी।

“ज...जतिन।” वह बड़ी कठिनाई से कह पाई थी “छ..छोड़ो मुझे प्लीज।”

“बस थोड़ा सा सब्र और कर जहरीली नागिन ।” जतिन जबड़े भींचकर खूनी स्वर में गुर्राया और अपने हाथ का दबाव उसने
और बढ़ा दिया था “फिर सब ठीक हो जाएगा। तुझे सारे कष्टों से निजात मिल जाएगी।"

बोलने की कोशिश में संजना के होठों से इस बार केवल गूं...गूं की आवाज ही निकल सकी थी। उसका प्रतिरोध क्षीण पड़ने लगा था। अपनी मौत उसे साक्षात आंखों के सामने नजर आने लगी थी।

जतिन पर जैसे खून सवार हो गया था। मौत को एकदम सामने देखकर पस्त पड़ती संजना ने आखिरी प्रयास किया। उसने अपनी समूची शक्ति पांव में समेटकर दाहिने पैर का घुटना जतिन की जांघों के जोड़ पर दे मारा।
भड़ाक...!

प्रहार बेहद तेज था जो कि अंततः निर्णायक साबित हुआ था। जतिन के हलक से चीख निकल गई। वह तड़पकर पीछे हट गया।
संजना की गरदन से उसका हाथ हट गया। वह दोनों हाथों से अपनी जांघे थामकर फर्श पर कूदने लगा।

संजना ने एक पल भी बरबाद नहीं किया था। उसने जल्दी-जल्दी दो-तीन गहरी सांसें लीं, फिर वह तेजी से बिस्तर की ओर झपटी।

उसने गद्दे के नीचे हाथ डाला तो उसके हाथ में बाईस कैलीबर का एक छोटा सा रिवॉल्वर नजर आने लगा। उसने रिवॉल्वर एक झटके से जतिन की ओर तान दिया।

“खबरदार...।” वह दोनों हाथों से रिवॉल्वर को थामे कहर भरे स्वर में बोली। उसकी आंखें धौंकनी की तरह चल रही थीं “कूदना बंद कर दे कमीने और सीधा खड़ा हो जा ताकि मैं तेरी छाती में सही जगह पर सुराख बना सकूँ।"

जतिन ने सचमुच कूदना बंद कर दिया। संजना के रिवॉल्वर पर नजर पड़ते ही वह जैसे खुद-ब-खुद क्रीज हो गया था।
चेहरे पर सारे जहान का आश्चर्य सिमट आया था।

“क्यों, हैरान हो गया न?" संजना व्यंग से बोली “सोच रहा होगा कि यह रिवॉल्वर मेरे पास कहां से आया। जान लेने में कोई हर्ज नहीं है। यह रिवॉल्वर मेरे उसी बूढ़े यार ने मुझे दिया था, ऐसे ही किसी आड़े वक्त के लिए। इसे मैं अक्सर अपने पर्स में रखती हूं। रात को इत्तेफाक से बिस्तर पर सिरहाने रख लिया था और जरा देख तो सही, आज इसका कितना सही इस्तेमाल निकल आया।"

"त...तू मुझे मारेगी?"

“क्यों हरामजादे , तू मेरा गला घोंट सकता है और मैं तेरी लाश नहीं गिरा सकती?"

“पुलिस को क्या जवाब देगी?"

“मेरे ब्वॉयफ्रेंड की नीयत आज बद हो गई थी। उसने मेरे साथ जबरदस्ती कर डाली मेरा शील उजाड़ डाला।”

"श...शील उजाड़ डाला?" वह सकपकाकर बोला। उसकी आंखें फैल गई थीं “कब शील उजाड़ डाला मैंने तेरा?"

“अभी। यहीं इसी बिस्तर पर।"

"म..मगर वह तो...वह तो...।"

"मेरे बूढ़े यार ने किया था।" वह हंसी निहायत ही कुटिल मुस्कराहट थी उसकी “यही कहना चाहता है न तू? लेकिन यह कौन बताएगा? तू तो हरगिज भी नहीं बताने वाला, क्योंकि तू कहां जिंदा रहेगा यह बताने के लिए। और क्योंकि उजड़ा तो सचमुच है मेरा शील, लिहाजा मेरा मेडिकल चैकअप झूठ क्यों बोलेगा। उसके बाद तू मेरी जान लेने का इरादा रखता था, क्योंकि मैं पुलिस के पास जाने वाली थी, इसलिए तूने मेरी जान लेने की कोशिश की। मेरा गला घोंट डालने में कसर नहीं छोड़ी। यह भी मेडिकल रिपोर्ट में तस्दीक होगी। मजबूरन मैंने तुझे शूट कर दिया आत्मरक्षा में, सेल्फ डिफेंस में, जिसका कि कानूनन हर किसी को हक होता है। मुझ जैसी हंगामाखेज हसीना को तो दोहरा हक होता है। नहीं?" वह फिर वही कमीनी हंसी, हंसी।

जतिन के होठों से बोल न फूटा।
वह भौंचक्का सा होकर संजना को देखने लगा था, जो उस वक्त उसे मादक अदाओं वाली हसीन गुड़िया नहीं, बल्कि शैतान की खाला नजर आ रही थी, जिसकी आंखों में मौत की परछाईया नाच रही थी।

जतिन की अपनी मौत की परछाईया।

“त...तू ऐसा नहीं कर सकती संजना।” जतिन के मुंह से निकला। एकाएक पासा पूरी तरह पलटा देख उसका सारा
आवेग खौफ में बदल गया था।
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05-31-2021, 12:07 PM,
#62
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
जतिन के होठों से बोल न फूटा।
वह भौंचक्का सा होकर संजना को देखने लगा था, जो उस वक्त उसे मादक अदाओं वाली हसीन गुड़िया नहीं, बल्कि शैतान की खाला नजर आ रही थी, जिसकी आंखों में मौत की परछाईया नाच रही थी।

जतिन की अपनी मौत की परछाईया।

“त...तू ऐसा नहीं कर सकती संजना।” जतिन के मुंह से निकला। एकाएक पासा पूरी तरह पलटा देख उसका सारा
आवेग खौफ में बदल गया था।

“करना कौन चाहता है मेरे भोले सनम।” सजना अब मूड में आ गई थी “लेकिन मजबूरी है। अब तुम्हें जिंदा छोड़ने की गलती मैं नहीं कर सकती। सारा भांडा फूट जाने के बाद अगर मैंने यह गलती की तो सुमेश मेरी जान ले लेगा। अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ। अलविदा डार्लिंग।"

उसकी अंगुलियां ट्रिगर कस गईं। आंखों में कहर नाच उठा दातों पर दांत जम गए।

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“नहीं स...संजना...।” जतिन जल्दी से बोला। वह विचलित हो उठा था “मेरी बात सुनो प्लीज।"

मगर संजना तो जैसे कुछ भी न सुनने का फैसला कर चुकी थी। उसकी अंगुली रिवॉल्वर के ट्रिगर पर कस गई।
अगले ही पल!

'पिट' की एक हल्की सी आवाज गूंजी साथ ही उसके जिस्म को एक तेज झटका लगा इतना तेज कि वह उछलकर पीछे बिस्तर पर जा गिरी।

हाथों में मौजूद रिवॉल्वर छिटककर दूर जा गिरी।

सीना तो यकीनन छलनी हुआ था। लेकिन वह जतिन का नहीं बल्कि संजना का सीना था, जो उसका सीना छलनी करने पर आमादा थी।

वह कुछ देर तड़पी और फिर शांत हो गई। उसके बाएं वक्ष से ताजे गर्म खून का झरना उबलने लगा था।
जतिन हक्का-बक्का सा खड़ा रह गया।
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सुगंधा तो अपनी राह लग गई थी, मगर अजय के अंदर मौजूद ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंककर उसने जो लहरें उठा दी थीं, वह एक बार फिर उसकी रग-रग में बेचैनी घोलने पर आमादा हो गयी थीं।

दिल की हलचल ने यादों में दस्तक दी तो एक बार फिर वही चेहरा सिर उठाने लगा था जो अक्सर उसके दिल को तड़पाया करता था।
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फिर एक वक्त ऐसा भी आया कि उसे महसूस होने लगा, वह कार के स्टेयरिंग पर कंट्रोल नहीं रख पाएगा, तो उसने साइड लगाकर कार रोक दी। लेकिन उसका इंजन बंद नहीं किया, क्योंकि इंजन बंद करते ही एसी भी बंद हो जाने वाला था।

उसने हैंड ब्रेक खींचकर अपना सिर आरामदायक ड्राइविंग सीट की पुश्त से सटा लिया। लेकिन विंडस्क्रीन उसे तब भी साफ नजर आ रही थी और उससे बाहर का नजारा भी साफ दिख रहा था।

अजय की उससे तीसरी अहम और बहुप्रतीक्षित मुलाकात किसी मॉल में या लिफ्ट में नहीं, बल्कि सड़क पर हुई थी सुनसान सड़क पर। जबकि वह अपनी कार पर जा रहा था

और वह लिफ्ट मांगने के लिए एकाएक सामने सड़क पर आ गई थी और वह ऐसी जगह थी जहां उससे मुलाकात की उसने कल्पना भी नहीं की थी।

अजय की कंपनी की एक साइट उत्तर प्रदेश में चल रही थी, जहां से एकाउंटेंट ने कंपनी को पिछले साल भर का जो ब्यौरा मेल किया था, उससे कंपनी संतुष्ट नहीं हुई थी। उसमें उसे किसी बड़े हेर-फेर का अंदेशा नजर आ रहा था, लिहाजा उस साइट के सारे वित्तीय लेन-देन को रोक दिया गया था और इंस्पेक्शन के लिए अजय को वहां भेजा गया था।
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05-31-2021, 12:07 PM,
#63
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
वह भी अपनी सहेलियों के साथ एक ग्रुप में टूर पर लखनऊ गई थी और एक सप्ताह का टूर खत्म करके दिल्ली वापस लौट रही थी तो बस का पहिया अचानक पंक्चर हो गया था।

वह रास्ते में एकदम सुनसान सड़क थी, जहां चारों तरफ पेड़-पौधों के जंगल के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता था। सूरज बस अस्त होने ही वाला था।

बस का पहिया बदलने में आधा घंटा लग गया था, तब तक सारी सवारियां प्रवृत्ति के नजारों का लुत्फ लेने के लिए नीचे उतर आई थीं।

वह भी प्रकृतिप्रेमी थी। पक्षियों से तो उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था। अन्य जीव-जंतुओं में खरगोश उसे बहुत प्रिय था और नीचे उतरते ही उसे एक प्यारा सा खरगोश दिख गया था। फिर क्या था, वह उसके पीछे दौड़ पड़ी थी और इतनी दूर निकल गई थी कि वापस लौटने में उसे एक घंटा लग गया था।

वापसी पर उसने पाया था कि उसकी बस वहां से जा चुकी थी और सुनसान व सपाट सड़क के अलावा वहां अब और कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसके पैरों तले जमीन खिसक गई थी।

उसका ट्रेवल बैग भी बस के साथ ही चला गया था। उसी बैग में उसका अपना मोबाइल भी रखा हुआ था।

उसकी ट्रेवल की सारी मस्ती हवा हो गई थी। उसे अपने ऊपर खीझ पैदा होने लगी थी कि उसे ऐसी बेवकूफी करने की क्या जरूरत थी? खरगोश तो उसके हाथ आया नहीं था, बस भी हाथ से निकल गई थी। उन लोगों ने उसका इंतजार तो जरूर किया होगा, मगर उसके इंतजार में आखिर कब तक वहां खड़े रहते, लिहाजा बस वहां से चली गई थी।

अब क्या हो सकता था।
किसी दूसरी बस के आने का इंतजार करने के अलावा और रास्ता भी क्या था, जो कि पता नहीं कितनी देर में वहां आने वाली थी।
ऊपर से रात होने वाली थी।

इस दरम्यान एक-दो कारें भी उधर से गुजरी थीं, लेकिन उनसे लिफ्ट लेने की उसकी मजाल नहीं हो सकी थी। नामालूम कौन किस मिजाज का आदमी होता और एक अकेली जवान, खूबसूरत लड़की की मजबूरी का क्या फायदा उठाता।
एक बस उधर से गुजरी।

लेकिन ड्राइवर ने बस नहीं रोकी और उसी रफ्तार से आगे भगा ले गया।
वह अपना सा मुंह लेकर रह गई थी।

“कमबख्त रोक देता तो उसका क्या चला जाता।” वह झुंझलाई। उसने बस के ड्राइवर को भी जी भरकर कोसा अब वह क्या करेगी। रात भी बस घिरने ही वाली थी।

अब उसे डर भी लगने लगा था। अगली बस पता नहीं कब आने वाली थी? आने वाली भी थी या नहीं। अब तो बस एक ही रास्ता था, जो वह नहीं अपनाना चाहती थी और वह रास्ता वहां से आते-जाते वाहन से लिफ्ट लेना ही था, फिर भले ही कुछ भी होता।

आखिर महफूज तो वह वहां सुनसान सड़क पर भी नहीं थी। एक कार उधर से गुजरी, मगर उसने उसे लिफ्ट नहीं दी। दूसरी और तीसरी कार भी उधर से गुजरी मगर उसमें किसी ने भी लिफ्ट नहीं दी।

वह परेशान और फिक्रमंद हो उठी कमबख्तों ने एक जवान, हसीन और मुसीबतजदा लड़की पर जरा सा भी रहम नहीं खाया था। जरूर उन्होंने उसे डाकुओं की कोई संगी-साथी समझा होगा, जो ‘चारे' के तौर पर उसका इस्तेमाल कर रहे थे। जमाना ऐसा ही तो खराब था इसीलिए जमाने वाले इतने होशियार हो गए थे। अब वातावरण में अंधेरे की कालिमा छा गई थी और वाहनों की हैडलाइटें जल गई थीं। उसकी परेशानी दोगुनी हो गई।

एक बार फिर कोई वाहन आता नजर आया, जो कि इत्तेफाक से अजय की कार थी और जो उस वक्त यूपी से अपना काम निबटाकर वापस दिल्ली लौट रहा था।

वह लपककर आगे आई और सड़क पर लगभग बीचोबीच खड़ी होकर वह कार को रुकने का इशारा करने लगी।

उसे अंदेशा था कि कहीं वह कार वाला भी उसे डाकू-लुटेरों की संगी-साथी न समझ बैठे और बदस्तूर फर्राटें भरती कार आगे निकल जाए।

अजय ने हैडलाइट की रौशनी में दूर से ही उसे देख लिया था,
और फौरन पहचान लिया था।

पहचानता भी कैसे नहीं। वही तो वह चेहरा था, जिसने उसका सारा सुकून छीन रखा था और ना चाहते हुए भी वक्त-बेवक्त उसके दिलो दिमाग पर दस्तक देने लगता था। जिससे दो-दो इतनी खुशगवार मुलाकातें हो चुकी थीं, लेकिन उस कमबख्त ने अभी तक उसे अपना नाम भी नहीं बताया था।

क्योंकि वह कहती थी कि वह दोनों मुलाकातें इत्तेफाक भी हो सकती थीं। मगर तीसरी मुलाकात इत्तेफाक नहीं हो सकती थी, इसलिए वह तीसरी मुलाकात पर ही उसे अपना नाम बताने वाली थी। और तीसरी मुलाकात की घड़ी आ पहुंची थी। लेकिन जिस लम्हें और जिन हालात में वह घड़ी आई थी उस पर वह चकित हुए बिना नहीं रह सका था।

लेकिन वह सुखद आश्चर्य था अद्भुत संयोग था। उसने कार को इस तरह उसकी बगल में जाकर रोका कि उसकी ड्राइविंग विंडो ठीक लड़की के सामने आ गई और अब वह दोनों एक-दूसरे को भली भांति देख सकते थे।
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05-31-2021, 12:07 PM,
#64
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
इस बार भी उसने सलवार-सूट पहन रखा था। गले और सीने पर शालीनता से दुपट्टा ढका हुआ था। मेकअप रहित चेहरा। खास बात यह कि अपने बालों को उस वक्त उसने जूड़े की शक्ल में बांध रखा था। और उस वक्त वह उसे पहली दोनों मुलाकात से कहीं ज्यादा हसीन महसूस हुई थी।

कार को रुकते देख लड़की ने तनिक चैन की सांस ली थी। हैडलाइट्स की तेज रोशनी में उसकी आंखें कुछेक पलों के लिए चौंधिया गई थीं, इसीलिए वह तुरंत अजय को नहीं पहचान सकी थी, जबकि अजय ने ड्राइविंग विंडो का शीशा भी नीचे गिरा दिया था। फिर जैसे ही उसने अंदर की डिम लाइट ऑन की, वह जोर से उछल पड़ी थी। कई पलों तक तो जैसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ था।

--
.
.
“ज...जेंटलमैन तुम?” फिर उसके होठों से बेअख्तियार निकला था। उसके बाद उसने आगे जो कुछ भी कहा था, झोंक में नहीं, बल्कि अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा था। वह उसे आखिर यह कैसे बता सकती थी कि वह अपनी किस बेवकूफी की वजह से उस मुसीबत में फंसी थी।

अजय को उसका मजाक उड़ाने का मौका जो मिल जाता।
फिर उसने अपनी दिलेरी का ऐसा समां बांधा था कि खुद को
जूडो, कराटे, मार्शल आर्ट और कुगफूं की मास्टर तक बता डाला था।
ब्लैक बेल्ट तो वह बस हासिल करते-करते रह गई थी।
ठीक तभी आने वाले किसी अन्य वाहन की हैडलाइट चमकी,
जो विपरीत दिशा से आ रही थी।

वह एक कार थी, जिसमें मवाली टाइप के चार लड़के सवार थे, जो कि जरूर बिगड़े रईसजादे थे। और करेला नीम पर चढ़ा कि उन्होंने उस वक्त शराब भी पी रखी थी। वह कार तेजी से उनकी बराबर से निकलती चली गई।

संशय खत्म हो गया था। दोनों ने उधर से अपना ध्यान हटा लिया। लेकिन फिर थोड़ा आगे जाने के बाद लगभग फौरन ही उस कार के ब्रेक एकाएक चिंघाड़े और वह एक झटके से रुक गई।
फिर वह तेजी से बैक होती हुई उनके एकदम करीब आकर रुक गई।

चारों मवाली टाइप के युवक नीचे उतरे और उन्होंने इस तरह से चारों तरफ से उसे घेर लिया जैसे कि उन्हें अंदेशा हो कि वह वहां से भाग निकलने वाली थी।

उन चारों की सांसों से शराब की दुर्गंध आ रही थी। उस हसीन कयामत को काटो तो खून नहीं।

सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई उसकी।
“ये..ये...ये...लोग कौन हैं।" वह उनके तेवर देखकर हकलाई
और अपने आप में सिमट गई थी “ क...कोई तुम्हारे मिलने वाले हैं क्या?”

"हम केवल तुम्हारे मिलने वाले हैं स्वीट हार्ट।” उनमें से एक ने हाथ बढ़ाकर उसका दुपट्टा खींच लिया और ठहाका लगाकर बेहद अश्लील भाव से बोला “और चाहते हैं कि जब हमारा 'मिलन' हो तो हम चारों के अलावा वहां और कोई भी मौजूद न हो।"

उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई थी। उसने अपने नग्न सीने को हाथों की कैंची बनाकर ढक लिया और सहमकर दो कदम पीछे हट गई थी। मुंह से सहमा हुआ स्वर निकला था “न...नहीं।"

“नहीं क्या हां कह न? वैसे यहां है न यह कमबख्त कबाब में हड्डी।" दूसरा बोला था। उसका इशारा निश्चित रूप से अजय की ओर था “लिहाजा यह जगह हमें पसंद नहीं।"इस बार भी उसने सलवार-सूट पहन रखा था। गले और सीने पर शालीनता से दुपट्टा ढका हुआ था। मेकअप रहित चेहरा। खास बात यह कि अपने बालों को उस वक्त उसने जूड़े की शक्ल में बांध रखा था। और उस वक्त वह उसे पहली दोनों मुलाकात से कहीं ज्यादा हसीन महसूस हुई थी।

कार को रुकते देख लड़की ने तनिक चैन की सांस ली थी। हैडलाइट्स की तेज रोशनी में उसकी आंखें कुछेक पलों के लिए चौंधिया गई थीं, इसीलिए वह तुरंत अजय को नहीं पहचान सकी थी, जबकि अजय ने ड्राइविंग विंडो का शीशा भी नीचे गिरा दिया था। फिर जैसे ही उसने अंदर की डिम लाइट ऑन की, वह जोर से उछल पड़ी थी। कई पलों तक तो जैसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ था।

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“ज...जेंटलमैन तुम?” फिर उसके होठों से बेअख्तियार निकला था। उसके बाद उसने आगे जो कुछ भी कहा था, झोंक में नहीं, बल्कि अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा था। वह उसे आखिर यह कैसे बता सकती थी कि वह अपनी किस बेवकूफी की वजह से उस मुसीबत में फंसी थी।

अजय को उसका मजाक उड़ाने का मौका जो मिल जाता।
फिर उसने अपनी दिलेरी का ऐसा समां बांधा था कि खुद को
जूडो, कराटे, मार्शल आर्ट और कुगफूं की मास्टर तक बता डाला था।
ब्लैक बेल्ट तो वह बस हासिल करते-करते रह गई थी।
ठीक तभी आने वाले किसी अन्य वाहन की हैडलाइट चमकी,
जो विपरीत दिशा से आ रही थी।

वह एक कार थी, जिसमें मवाली टाइप के चार लड़के सवार थे, जो कि जरूर बिगड़े रईसजादे थे। और करेला नीम पर चढ़ा कि उन्होंने उस वक्त शराब भी पी रखी थी। वह कार तेजी से उनकी बराबर से निकलती चली गई।

संशय खत्म हो गया था। दोनों ने उधर से अपना ध्यान हटा लिया। लेकिन फिर थोड़ा आगे जाने के बाद लगभग फौरन ही उस कार के ब्रेक एकाएक चिंघाड़े और वह एक झटके से रुक गई।
फिर वह तेजी से बैक होती हुई उनके एकदम करीब आकर रुक गई।

चारों मवाली टाइप के युवक नीचे उतरे और उन्होंने इस तरह से चारों तरफ से उसे घेर लिया जैसे कि उन्हें अंदेशा हो कि वह वहां से भाग निकलने वाली थी।

उन चारों की सांसों से शराब की दुर्गंध आ रही थी। उस हसीन कयामत को काटो तो खून नहीं।

सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई उसकी।
“ये..ये...ये...लोग कौन हैं।" वह उनके तेवर देखकर हकलाई
और अपने आप में सिमट गई थी “ क...कोई तुम्हारे मिलने वाले हैं क्या?”

"हम केवल तुम्हारे मिलने वाले हैं स्वीट हार्ट।” उनमें से एक ने हाथ बढ़ाकर उसका दुपट्टा खींच लिया और ठहाका लगाकर बेहद अश्लील भाव से बोला “और चाहते हैं कि जब हमारा 'मिलन' हो तो हम चारों के अलावा वहां और कोई भी मौजूद न हो।"

उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई थी। उसने अपने नग्न सीने को हाथों की कैंची बनाकर ढक लिया और सहमकर दो कदम पीछे हट गई थी। मुंह से सहमा हुआ स्वर निकला था “न...नहीं।"

“नहीं क्या हां कह न? वैसे यहां है न यह कमबख्त कबाब में हड्डी।" दूसरा बोला था। उसका इशारा निश्चित रूप से अजय की ओर था “लिहाजा यह जगह हमें पसंद नहीं।"
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05-31-2021, 12:08 PM,
#65
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"हमारी पसंद की जगह तो ऐसे में केवल हमारी कार ही हो सकती है।" तीसरा हंसकर कुत्सित भाव से बोला था। उसकी आंखों में भी हवस के कीड़े गिजबिजाने लगे थे “जो देखो तुम्हारे इंतजार में कैसे बेचैन हो रही है। उसकी बेचैनी खत्म कर दो और हमारी भी।”

“आओ बहारों की मल्लिका।” चौथा बड़े ओज से बोला “चलते हैं हम अपने झोंपड़े की तरफ।"

वह एकाएक बाज की तरह झपटा। दूसरे पल उसने किसी हल्की-फुल्की गुड़िया की तरह आलोका को अपनी बाहों में उठा लिया और अपनी कार की तरफ बढ़ गया।

अजय इस तरह खामोशी से सब कुछ देख रहा था जैसे कि वहां कोई दिलचस्प तमाशा चल रहा हो। दिलचस्प भी और मजेदार भी।

“अ..अजय...।” तभी आलोका ने आर्तनाद किया। अपने अपहरणकर्ता की गिरफ्त में मचलती हुई विरोधपूर्ण स्वर में चीखी “म..मुझे बचाओ।”

“क्या फायदा मेरी बन्नो।” चारों फिर ठहाका लगाकर हंसे थे। एक बोला था आज तो तुझे भगवान भी नहीं बचा सकता है फिर यह तो अकेला वन पीस है। हा...हा...हा...।"

“अ...अरे तुम खामोश क्यों बैठे हो अजय।” बुरी तरह आतंकित-आशंकित आलोका फिर चीखी थी “तु....तुम्हारे सामने यह लोग मुझे उठाकर ले जा रहे हैं और तुम चुपचाप बुजदिलों की तरह बैठे तमाशा देख रहे हो।"

अजय ने तब भी कोई रिएक्ट नहीं किया था।

मगर उसके दिल के किसी कोने में अनायास ही खुशी की कोपलें फूटी थीं। मुसीबत की उस घड़ी में आलोका ने दो बार उसे पुकारा था और दोनों बार उसने उसका नाम लिया था, उसे जेंटलमैन नहीं कहा था।
यानि कि उसे उसका नाम याद था।

आलोका फिर पुरजोर अंदाज में मचली और मदद के लिए छटपटाई थी।

"लेकिन मैं क्या कर सकता हूं देवी जी।" इस बार अजय बोला। उसके लहजे में शराफत थी “मुझे कराटे नहीं आते। मार्शल आर्ट और कुंगफू भी नहीं आता। ब्लैक बैल्ट की तो मैंने शक्ल भी नहीं देखी। वैसे भी दो-चार लोग तो तुम्हारा कुछ बिगाड़ ही नहीं सकते।”

प्रत्युत्तर में उसने क्या कहा, अजय ने नहीं सुना था। क्योंकि उन चारों ने उसे जबरदस्ती कार में ढकेल दिया था और खुद भी उसमें सवार होकर कार के दरवाजे बंद कर दिए थे। अजय को लगा कि अब निर्णायक घड़ी आ पहुंची थी। देर करना मुनासिब नहीं था।

फिर जैसे ही उन चारों की कार स्टार्ट हुई, और आगे सरकी, अजय ने अपनी पहले से स्टार्ट कार को बैक गियर में डाला और फिर उसने एक्सीलेटर पूरा दबाकर क्लच छोड़ दिया।
भड़ाक ऊ....!

अगले पल बैक होती उसकी कार इतने प्रचंड वेग से उस लड़कों की कार से टकराई कि पीछे मौजूद कार सपाट सड़क पर फिरकनी की तरह नाच गई और फिर पता नहीं क्या हुआ कि उसका पिछला दरवाजा अपने आप ही खुल गया।

फिर उस खुले दरवाजे से छिटककर कोई बाहर सड़क पर गिरा और फिर वह उठकर फुर्ती से उसकी कार की तरफ भागा।
वह आलोका थी।

“जियो मेरे शेर।” उसने सहसा नारा सा लगाया था। इसी के साथ उसने अजय की कार का दरवाजा खोला और बगोले की तरह लपककर उसमें सवार हो आई। वह भागकर उसकी बगल वाली सीट पर बैठती हुई झट से बोली “तुमने तो सचमुच कमाल कर दिया। मैंने तो सोचा था आज मैं गई।"

“क..कहां गई?” अजय ने उसके कोमल मुखड़े पर निगाह गड़ाते हुए पूछा।

“बता दूंगी। मगर पहले यहां से फौरन निकलो, नहीं तो मेरे साथ-साथ तुम भी जाओगे। उन होनहार लड़कों में से दो को जबरदस्त चोटें आई हैं। उनके पास हथियार भी मौजूद है। मुझ पर तो वे एक बार रहम भी खा सकते हैं, लेकिन तुम्हारे ऊपर रहम खाने की उनके पास कोई वजह मझे नजर नहीं आ रही।”
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05-31-2021, 12:09 PM,
#66
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ऑलराइट।” अजय ने गियर बदलकर कार को एकदम से आगे बढ़ा दिया।

उसने पीठ की पुश्त से अपना सिर टिका लिया और फिर यूं ही खामोशी से बैठी वह कुछ पलों तक गहरी-गहरी सांसें भरती रही। सांसों के साथ ही उसका उभरा वक्षस्थल भी उठता-गिरता रहा और अजय के अंदर गुदगुदी पैदा करता रहा।

बैकव्यू मिरर के जरिये अजय तस्दीक कर चुका था कि पीछे जो कार उसने ठोकी थी, वह लड़के उसके पीछे नहीं आए थे और अब वह नटखट, चुलबुली हसीना दिल्ली तक उसकी हम सफर थी, जो अब किसी हद तक सामान्य हो चली थी। उसके चेहरे की स्वाभाविक लालिमा भी वापस लौट आई थी। उसने अपने बालों को दुरुस्त कर लिया था, जो कुछ देर पहले हुई उठा पटक में बुरी तरह अस्त व्यस्त हो गए थे। इसके बावजूद उसके बालों की जिद्दी लट फिर से उसका मस्तक चूमने लगी थी, जिसे उसने फूंक मारकर उड़ा दिया था।

“शुक्रिया।” तभी एकाएक अजय बोला। वह अपनी बगल में बैठी हसीना पर क्षण भर के लिए एक नजर डालकर फिर से
कार की विंडस्क्रीन के पार देखने लगा था।

“अरे....।” वह बला सजग हुई। उसने किंचित हैरानी से अजय को देखा, फिर अपनी सीप सी पलकें झपकाती हुई बोली “तुम मुझे शुक्रिया क्यों कह रहे हो। शुक्रिया तो मुझे बोलना चाहिए था। उफ्फ् मैं भी इतनी भुलक्कड़ हूं, तुमने मुझ पर इतना बड़ा उपकार किया, मेरे लिए अपनी जान को जोखिम में डाला, उन गुंडों से मेरी हिफाजत की, और मैंने तुम्हें शुक्रिया तक नहीं कहा। लानत है?" उसने झुंझलाकर अपने एक हाथ का चूंसा दूसरी हथेली पर जमाया।

"मु...मुझ पर?" अजय ने हड़बड़ाकर पूछा।

“अरे नहीं जैटलमैन।” वह उछलकर बोली “मुझ पर। लानत तो मैं अपने आप पर भेज रही हूं।"

“ओह, फिर ठीक है।" उसने राहत की सांस ली थी।

"क्या ठीक है?" उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखे निकाली “सवाल तो यह उठता है जेंटलमैन कि तुमने मुझे शुक्रिया क्यों बोला? उसके कोमल सिन्दूरी चेहरे पर सवाल उभर आया था “अब चुप क्यों हो? जवाब दो।”

“अरे, जवाब देने का जब तुम मौका दोगी तभी तो जवाब दूंगा। दरअसल तुम्हें शुक्रिया बोलने की एक नहीं दो-दो वजह हैं।"

“अच्छा।” उसका हैरानी बढ़ गई थी “और वह दोनों वजह क्या हैं?"

“पहली वजह तो ये है कि मैंने आज तुम्हें आप की बजाये तुम कहकर बुलाया और तुमने ऐतराज नहीं किया।” अजय ने पहली वजह बयान की।

“अरे, वह तो तुम पहले भी मुझे तुम कहकर बुलाते तब भी मैं बिल्कुल ऐतराज नहीं करती। अब फौरन दूसरी वजह बोलो।”

“तुमने मुझे सजा-ए-मौत से बचाया।”

“कब? कब? कब?" वह चिहुंककर जल्दी से बोली। उसके सुंदर मुखड़े पर गहन हैरानी के भाव आ गए थे “मैंने तुम्हें सजा-ए-मौत से कब बचाया? और तुम क्या कोई सजायाफ्ता मुजरिम हो?"

“वह तो मैं बन जाने वाला था।"

"त..तुम सजायाफ्ता मुजरिम क्यों बन जाने वाले थे जेंटलमैन?”

“अरे, अगर मैं तुम्हें अपनी कार से ठोक देता और तुम जन्नतनशीन हो जाती तो फिर मैं मुजरिम बनने से कैसे बच सकता था? और मुजरिम को तो सजा मिलती ही है? मुझे भी निश्चित रूप से सजा-ए-मौत ही मिलने वाली थी।"

लेकिन तुम मुझे अपनी कार से ठोककर जन्नतनशीन ही क्यों बनाते? मुझसे भला तुम्हारी क्या दुश्मनी है?"

"कोई दुश्मनी नहीं है। मगर वह क्या है कि तुम पहले जितनी भी बार मुझे मिली, बेहद जल्दबाजी में मिली हो और मुझसे टकराकर ही तुमने चैन लिया है। पहले तो खैर शुक्र है कि हर बार मैं कार में नहीं था, लिहाजा तुम चोट खाने से बच गई, लेकिन इस बार मैं अपनी कार में था और कार की रफ्तार बहुत ज्यादा थी। अगर ऐसे में तुम जल्दबाजी में मेरी निर्दोष कार से टकरा जाती तो तुम्हें जन्नतनशीन होने से कोई भी नहीं बचा सकता था। और अगर तुम जन्नतनशीन हो जाती तो बता ही चुका हूं कि फिर मेरा फांसी पर चढ़ना निश्चित था।"

"हूं।” उसने अजय को देखकर आंखें तरेरी “और क्योंकि ऐसा नहीं हुआ इसीलिए तुमने मुझे शुक्रिया कहा?"
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05-31-2021, 12:10 PM,
#67
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“और क्या? आखिर वह तुम्हीं तो हो, जिसकी वजह से मैं बच गया। अगर तुम आज भी पहले की तरह जल्दबाजी में होती तो..."

"वह तो ठीक है जेंटलमैन।" वह अजय की बात बीच में काटती हुई बोली “मगर एक्सीडेंट के केस में फांसी की सजा कहां मिलती है?"

"नहीं मिलती, मुझे मालूम है। लेकिन वह सजा कानून मुझे थोड़े ही न देता।"

“तो फिर?" वह असमंजस में पड़ती हुई बोली।

"वह सजा तो मैं खुद अपने आपको देने वाला था।” अजय हिचकिचाया, फिर धीरे से बोला “सजा-ए-मौत।"

"स...सजा-ए-मौत?"

"हां।"

“मगर क्यों?"

“जान चली जाने के बाद भला कोई कैसे जिंदा रह सकता है? अपनी जिंदगी खुद अपने हाथों से खत्म करने के बाद भला मैं कैसे जिंदा रह सकता था।” अजय ने बड़ी खूबसूरती से अपना दिल उस पर खोल दिया था।

एक पल के लिए तो उसकी समझ में ही न आया कि अजय क्या कह गया था। जब आया तो वह चौंकी और बुरी तरह हकबकाकर अजय को देखने लगी थी।

उसके चेहरे पर कितने ही रंग आकर चले गए थे।

"हे भगवान...।” फिर सहसा उसके होठों से निकला था। उसका स्वर लरज गया था। वह एकटक अजय को देखने लगी थी और जो उसने महसूस किया, उसने उसे अंदर तक हिला दिया था “यह मैं क्या देख रही हूं। कितना आगे निकल गए हो तुम मुझे लेकर जेंटलमैन?"

“तुम्हारी उम्मीद से बहुत ज्यादा?"

“जबकि अभी तक तुम मेरे बारे में कुछ भी तो नहीं जानते ? मेरा नाम तक नहीं मालूम तुम्हें ?"

“मुझे तुम्हारे नाम ने नहीं, तुम्हारी पहचान ने नहीं, बस तुमने दीवाना बनाया है। तुम जो भी हो बस इतना जान लो, तुम केवल मेरे लिए ही दुनिया में आई हो। ताकीद कर रहा हूं, मेरी चाहत का इम्तहान मत लेना, वरना तुम्हें पछताना पड़ेगा।"
“य...य...यह तो दीवानगी है जेंटलमैन ?" उसका स्वर एकाएक लरज गया था।

“यह दीवानगी ही तो है।” अजय ने कहा।

“मैं...मैं किसी और की अमानत भी हो सकती हूं? मेरे दिल में कोई और बसा हो सकता है?"

“अगर ऐसा हुआ तो खातिरजमा रखो, मैं आइंदा कभी तुम्हें अपनी सूरत भी नहीं दिखाऊंगा तुम्हारी यादों का आखिरी कतरा भी अपने दिल से खुरचकर निकाल दूंगा।"

“इ...इतना विश्वास है तुम्हें अपनी चाहत पर?"

“वह चाहत ही क्या जिसमें हिमालय को हिला देने वाला चट्टानी विश्वास न हो।”

“ह...हो सकता है मैं तुम्हारी इस चाहत के लायक ही न होऊं? यह भी हो सकता है कि मेरा यह जिस्म तुम्हारे लायक ही न हो? कोई दाग लगा हो सकता है इसमें?"

“मैंने पहले ही ताकीद किया था, मेरी चाहत का इम्तहान मत लेना। तुम्हें पछताना पड़ेगा। फिर भी तुम्हारे सवाल का माकूल जवाब यह है मेरी जिंदगी, कुदरत के चांद में दाग हो सकता है पर मेरा यह चांद बेदाग है। इसका रोम-रोम उतना ही पाक-पवित्र है जैसा कुदरत ने उसे बनाकर भेजा था।"

“तुम...तुम सचमुच दीवाने हो जेटलमैन?"

“हो सकता है। लेकिन इंकार करने के तमाम हक तो तुम खुद ही खो चुकी हो। खुद तुमने ही तो कहा था, हर दो अजनबी के बीच एक कहानी लिखी होती है। अगर हमारे बीच भी कोई कहानी लिखी है तो हम फिर मिलेंगे और उस कहानी के किरदार बनकर सिलसिला शुरू करेंगे। और जब ऐसा होगा तो मुझे उससे कोई ऐतराज नहीं होगा। वह सिलसिला तो शुरू हो चुका है, फिर ऐतराज का क्या मतलब है?"

उससे इस बार फिर जवाब देते न बना था। उसके चेहरे पर अंदरूनी कशमकश के भाव आ गये थे और वह व्याकुल भाव से पहलू बदलने लगी थी।

कार तब तक दिल्ली की सीमा में दाखिल हो चुकी थी। पता ही नहीं चला उसके साथ कब वक्त गुजर गया था।

“जवाब दो।” अजय ने उसे कुरेदा और अपने अल्फाजों पर जोर देता हुआ बोला “अब ऐतराज क्यों?"

“म..मेरी शरारतें अचानक ही इस तरह मुझे जिंदगी के दोराहे पर लाकर खड़ा कर देंगी, मैंने कभी सोचा तक नहीं था।” वह कम्पित स्वर में बोली “म..मैं एक धर्मसंकट में फंस गई हूं जेंटलमैन।”

“इसमें मेरा कोई कसूर नहीं।"

“तुम एक सच्चे इंसान हो। तुम्हारा किरदार भी मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे जैसा ही सच्चा होगा। तुम्हारा घराना भी बहुत ऊंचा लगता है। जबकि मैं तो बहुत साधारण सी लड़की हूं, जो तुम्हारे लायक हरगिज भी नहीं हूं। क्या मुझे माफी नहीं मिल सकती?"

“यानि कि अपने ही वचन से मुकरना चाहती हो?"

“कहां मुकरना चाहती हूं। मुकरना न पड़े, इसीलिए तो माफी मांग रही हूं।"

“और अगर मैंने तुम्हें माफ न किया तो...।” अजय के होठों पर एकाएक मुस्कराहट उभरी, वह क्षणभर के लिए उस पर निगाह डालता हुआ शरारत से बोला “तो तुम मुकर नहीं पाओगी। राइट।"

"ओह नो जेंटलमैन।"

“और अभी तक तुमने मुझे अपना नाम भी नहीं बताया?"

"तुमने पूछा ही कब था। वैसे मेरा नाम आलोका है।"

“आ...आलोका!"

"हां।"

"इतना प्यारा नाम अब तक मुझसे छुपाकर रखा।"
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05-31-2021, 12:10 PM,
#68
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"लेकिन छुपाकर रख तो नहीं पाई?"

“माई लक। तो फिर तुमने क्या फैसला किया? बहुत सूनी और वीरान जिंदगी है मेरी? कब आकर इसे अपने प्यार की खुशबू से महका रही हो?"

"तौबा। तुम तो मेरे साथ फेरे लेने का भी पूरा प्रोग्राम बनाए बैठे हो?” वह किसी हद तक सहज हो चली थी “और जैसे मुझसे फेरों की तारीख जानना चाहते हो?"

“तुमने ठीक समझा आलोका।"

“माफी वाली अर्जी पर तो लगता है तुमने नजर भी नहीं डाली?"

"इस जन्म में तो यह मुमकिन नहीं है।”

वह पुनः कसमसाई।

“मेरा विश्वास करो आलोका।” अजय उसका असमंजस भांपकर बोला “मेरा प्यार बहुत सच्चा है। मैं सारी दुनिया की खुशियों से तुम्हारा दामन भर दूंगा। इतना प्यार दूंगा तुम्हें कि अपनी किस्मत पर तुम इतराने लगोगी। तुम मुझे अपने घर का पता दो, मैं कल खुद जाकर तुम्हारे पापा से बात करूंगा और उन्हें हमारे रिश्ते के लिए राजी कर लूंगा।"

“अरे नहीं... नहीं।” वह एकाएक उछलकर बोली “ऐसा गजब मत करना।"

"क्यों भला? और इसमें गजब कैसा?"

"म....मेरा मतलब है कि वक्त आने पर इस बारे में मैं खुद अपने घरवालों को बता दूंगी। तुम थोड़ा धीरज से काम लो,
और आने वाले वक्त का इंतजार करो।"

अजय के दिलोदिमाग में बेशुमार खुशियों के अनार फूट पड़े। उसका दिल किया मारे खुशी के वहीं नाचने लगे। आखिर उस कयामत ने उसका प्यार कबूल कर ही लिया था।

“इंतजार तो मैं केवल एक ही शर्त पर कर सकता हूं?" प्रत्यक्षतः वह बोला।

“वह क्या?" आलोका ने चौंककर अजय को देखा। उसका मासूम स्वर सहसा रुंआसा हो गया था। खूबसूरत मुखड़े पर
शंका के भाव आ गए थे।

“पहले मुझे अपने मोबाइल का नम्बर बताओ।” अजय बोला।

“म...मेरा मोबाइल तो बस में ही छूट गया है?"

"मैं तुमसे तुम्हारा मोबाइल नहीं केवल उसका नम्बर मांग रहा हूं।" वह कसमसाई फिर उसने थोड़ी सी हुज्जत के बाद उसे अपना मोबाइल नम्बर बता दिया।

“गुड।” अजय उसका मोबाइल नम्बर अपने जेहन में नोट करता हुआ बोला “अब यह बताओ कि कल तुम कब फ्री होगी?"

“यह मैं आज कैसे बता सकती हूं। यह तो कल होने पर ही पता चलेगा।"

“ठीक है।” अजय ने लापरवाही से कंधे उचकाए। शरारत से बोला “फिर मैं सुबह होते ही तुम्हारा मोबाइल बजाना शुरू कर दूंगा और..."

“अरे नहीं...।" वह फिर उछल पड़ी और जल्दी से बोली "ऐसा मत करना जेंटलमैन प्लीज।"

"क्यों?"

“मैं बहुत लापरवाह हूं, अपना मोबाइल कहीं भी छोड़ देती हूं। अगर तुम्हारे फोन पर घर में किसी और ने उठा लिया तो मैं मुसीबत में फंस जाऊंगी।”

“तो फिर मुझे अपने फ्री होने का वक्त बताओ?"

“श...शाम को पांच बजे। कार यहीं रोक दो। मेरा घर यहां से करीब ही है। मैं चली जाऊंगी।"

अजय ने किनारे लगाकर कार रोक दी और अपलक उसकी तरफ देखने लगा।

आलोका ने जल्दी से अपनी तरफ का दरवाजा खोला। उसने जानबूझकर अजय से नजरें नहीं मिलाई थीं।

"गुड नाइट । स्वीट ड्रीम।” अजय उससे बोला।

“गुडनाइट।” रूखा सा जवाब मिला। फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया था। वह वापस घूमी और खिड़की पर झुकती हुई अजय की ओर देखकर बोली “अरे सुनो जेंटलमैन । मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं।”

“जरूर कहो।” अजय फिर मुस्कराया था।

“मैंने तुम्हें अपना जो मोबाइल नम्बर बताया है, उसे भूल जाना।”

“वह क्यों?" अजय की मुस्कराहट में कोई फर्क नहीं आया था। वह और गहरी हो गई थी।

"क्योंकि वह मेरा मोबाइल नम्बर नहीं है।” उसने बताया। उसकी निगाहों में फिर से शोखी घुल गई थी “वह नम्बर तो मैंने अभी पीछे एक ग्लोसाइन पर लिखा देखा था, अगर तुमने उस नम्बर पर फोन लगाया तो वह उस ग्लोसाइन वाले शोरूम में जाकर बजेगा। बॉय।"

उसने फिर अपनी जिद्दी लट को फूंककर मस्तक से उड़ाया, फिर वह सीधी होकर पलटी और खिलखिलाती हुई तेजी से वहां से भाग खड़ी हुई।
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05-31-2021, 12:10 PM,
#69
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
अजय एक पल के लिए तो बुरी तरह बौखला गया। फिर वह संभला, उसने तत्काल आवाज देकर आलोका को रोकना चाहा, लेकिन तब तक वह हिरणी की तरह कुलांचे भरती वहां से दूर जा चुकी थी और एक अंधेरी गली में दाखिल होकर दिखाई देना बंद हो गई थी।

अजय ने कार से निकलकर उसके पीछे जाना चाहा, लेकिन फिर किसी अज्ञात भावना ने उसके कदमों को रोक दिया। फिर भी उसने अपना मोबाइल निकालकर उस पर आलोका का बताया नम्बर डायल किया।
मोबाइल स्विच ऑफ जा रहा था।

अजय आशंकित हो उठा। इसका मतलब वह कयामत सही कह रही थी। वह जरूर किसी शोरूम का कामर्शियल नम्बर था, जो केवल दिन में ही चालू रहता था और रात को शोरूम बंद होते ही ऑफ हो जाता था।

"लेकिन कोई बात नहीं।” उसने खुद को सांत्वना दी। उसका घर वहीं-कहीं आस-पास ही था, जिसका पता लगाया जा सकता था।

अपनी उस बात से उसे बहुत राहत महसूस हुई। उसने मोबाइल वापस डेशबोर्ड पर रखा और कार आगे बढ़ा दी। वह पूरी रात अजय की आंखों में ही बीती। उस रात एक पल के लिए भी वह सो न सका था। सारी रात आलोका के ख्यालों में ही कट गई।
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05-31-2021, 12:10 PM,
#70
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
अगले रोज सुबह उठते ही उसने सबसे पहले काम यह किया कि फिर आलोका का नम्बर ट्राई किया। मगर वह तब भी स्विच्ड ऑफ था। वह तो होना ही था। दिल्ली के तकरीबन व्यावसायिक प्रतिष्ठान दस-ग्यारह बजे के लगभग खुला करते थे। कुछ दोपहर बारह बजे के बाद भी खुलते थे। तभी शायद वह नम्बर चालू होने वाला था। वह चंचल तितली सचमुच उसके साथ शरारत कर गई थी।

फिर भी उसने आलोका का नम्बर लगाना बंद नहीं किया। ग्यारह बजे के लगभग उसका बताया मोबाइल नम्बर पर ऑन हो गया और उस पर घंटी जाने लगी।

अजय का दिल जोर-जोर से धड़क उठा। वह दूसरी ओर से फोन उठाये जाने का इंतजार करने लगा। यह सोचकर वह बुरी तरह आशंकित था कि अगर वह नंबर सचमुच किसी शोरूम का निकला तो क्या होगा? मन ही मन वह अपने बनाने वाले से दुआ कर रहा था कि ऐसा न हो। आलोका ने इस मामले में उससे झूठ बोला हो, वह आलोका का अपना नम्बर ही निकले।

लेकिन उसकी दुआ कबूल न हुई। उधर से कॉल रिसीव हुई और दूसरी तरफ से एक भारी-भरकम पुरुष स्वर मोबाइल पर सुनाई दिया “कौन?"

अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी। वह फुलझड़ी सचमुच शरारत कर गई थी। वह यकीनन किसी शोरूम का ही नम्बर था।

अजय का चेहरा मायूसी से भर गया। उसने धीरे से फोन डिस्कनेक्ट कर दिया और खीझकर मोबाइल एक ओर उछाल दिया था।

तभी उसका मोबाइल बजना शुरू हो गया। उसने देखा उसी नम्बर से कॉल बैक आ रही थी, जिस पर उसने कॉल लगाई थी। एक बार उसका मन हुआ कि फोन डिस्कनेक्ट कर दे। लेकिन फिर जाने क्या सोचकर उसने फोन रिसीव कर लिया।

अगले ही पल बिल्कुल अप्रत्याशित रूप से एक मधुर, जनाना खिलखिलाहट उसके मोबाइल पर उभरी, जो अचानक अजय
के कानों में शहद घोलती चली गई।

वह निश्चित रूप से आलोका की ही हंसी थी, जिसे पहचानने में वह भूल नहीं कर सकता था।

"हल्लो जेंटलमैन।” फिर वह अपनी खिलखिलाहट रोककर शोखी से बोला “देखा मेरा कमाल। कैसे डरा दिया न?"

"अ..आलोका...।” अजय अपनी खुशी को दबाता, हर्ष मिश्रित अविश्वास से बोला “यह तो तुम्हारा नम्बर है। इसका मतलब तुमने झूठ कहा था? यह तुम्हारा अपना नम्बर ही है?"

“क्या इसमें अब भी तुम्हें कोई संदेह है?"

“नहीं है, लेकिन अभी जब मैंने इस पर फोन लगाया था तो कौन बोल रहा था?"

“वह भी मैं ही थी बुद्धू।" वह चहकती हुई बोली। जैसे कि उसे परेशान करके उस कमबख्त को मजा आ रहा था।

"लेकिन वह आवाज...?" यह विस्मित हो उठा था।

“वह आवाज भी मेरी ही थी जेंटलमैन । मुझे मिमिक्री आती है, किसी की भी आवाज की हूबहू नकल उतार सकती हूं। बताओ तो तुम्हारी आवाज की नकल उतारकर दिखा दूं।"

वह आखिरी अल्फाज आलोका ने एकदम अजय के स्वर में कहे थे। अजय अवाक् सा हो गया। उसके मुंह से बोल न फूट सका।

“हल्लो जेटलमैन।” तभी आलोका का शरारत भरा व्यग्र स्वर उसके कानों में पड़ा “तुम लाइन पर हो?"

“हां।” अजय ने कहा “लेकिन तुम्हारा फोन सुबह से ऑफ क्यों जा रहा था?"

"सुबह से नहीं रात से ऑफ जा रहा होगा।" आलोका ने बताया “तुम शायद भूल गए, मेरा फोन रात बस में ही रह गया था, और वह बस मेरे घर में नहीं खड़ी होती। रात को मेरी सहेली मेरा बैग अपने साथ ले गई थी जो कि अभी मेरे हाथ लगा है। और जानते हो?"

"क्या?"

“मैंने अभी जैसे ही अपने मोबाइल का स्विच ऑन किया, उसे ऑन करते ही तुम्हारा फोन आ गया और मेरा मन तुमसे शरारत करने का हो गया। जनाबेआली, कहीं तुम सुबह से यही एक काम तो नहीं कर रहे थे?"

"क...कौन सा काम?"

“मेरा फोन ट्राई करने का! काश...।" एकाएक उसने ठंडी आह भरी फिर बोली “अगर मैंने अपने फोन पर मिस्ड काल अलर्ट की सुविधा ले रखी होती तो इस मामले में तुम्हारा झूठ नहीं चलने वाला था।"

“अरे मैंने अभी कुछ बोला ही कहां है, जो झूठ-सच का सवाल उठा रही हो।"

“यानि कि तुम सचमुच सुबह से मेरा फोन बजाने के प्रोगाम पर लगे थे?"

“यही बात है।” अजय ने झिझकते हुए स्वीकार किया, फिर संजीदा होकर बोला “तुम नहीं जानती आलोका, इस वक्त मेरी क्या हालत है। मैं खुद हैरान हूं कि कोई अजनबी किस तरह चुपके से किसी इंसान की जिंदगी का हिस्सा बन जाता है। तुम मेरी हालत को कभी नहीं समझ सकती आलोका।"

“अरे जेंटलमैन ।” उसने फौरन प्रतिवाद किया “औरत पर इल्जाम लगा रहे हो। एक आदमी के दिल की हालत औरत से ज्यादा दूसरा कोई नहीं समझ सकता।"

"तो फिर बताओ, मिलने कब आ रही हो?"
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