Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:11 PM,
#81
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“मुझे मालूम है आप उस वक्त श्मशान भी गई थीं, जहां जानकी लाल की चिता जलाई गई थी। आप ने सबसे छिपकर दूर से जानकी लाल को अंतिम विदाई दी थी और फिर इससे पहले कि कोई आपको देख पाता, आप वहां से चुपचाप भाग आई थीं। उस वक्त आपकी आंखों में नमी भी थी। और शायद आप वहां मौजूद पहली ऐसी शख्स थीं, जिसकी आंखों में जानकी लाल की जलती चिता को देखकर नमी आई थी।"

नैना के नैना फैल गए, चेहरे पर सारे जहान का आश्चर्य उमड़ आया। “य...यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ?” नैना ने विस्मय से पूछा।

"इत्तेफाक से मालूम हो गया मैडम। विश्वास कीजिए, मैंने इरादतन कुछ नहीं किया था।"

"आपका जानकी लाल के साथ क्या रिश्ता था?"

“प....प्राची..!"

“और आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की। जबकि आप...” उसने एक भरपूर निगाह नैना पर डाली। नैना के ढलते सौंदर्य में भी गजब की कशिश थी। प्राची ने अपनी बात पूरी की “इस उम्र में भी गजब की हसीन हैं। जवानी में इस खूबसूरती का क्या आलम होगा, यह अंदाजा लगा पाना जरा भी मुश्किल नहीं है और आपने इस जवानी को यूं ही जाया कर दिया।”

“हूं।” नैना के होंठ भिंच गए। उसके चेहरे पर सहसा कई रंग आकर चले गए थे।

“बेवजह कोई ऐसा नहीं करता मैडम।” प्राची गौर से नैना का चेहरा देखती हुई बोली “आप भले ही कबूल न करें लेकिन समझने वालों को मालूम है कि कोई ऐसा भेद है जिसे आपने दुनिया से छुपा रखा है और उस भेद की जड़ में कहीं न कहीं जानकी लाल का गहरा दखल है।"

“प्राची।” नैना प्राची को घूरकर सख्ती से बोली “तुम अपनी हद से बाहर जा रही हो। तुम मेरी नवाजिशों का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर रही हो।"

“ऑय एम सॉरी मैडम ।” प्राची के स्वर में खेद का पुट उभर आया “आप शायद ठीक कह रही हैं। मुझे सचमुच अपनी हदें नहीं पार करनी चाहिए थी। आपके निजी मामलों में इस हद तक दखल देने का मुझे कोई हक नहीं है मगर मैं क्या करूं, आपने ही तो मुझे यह हक दिया है, जो कोई भी एम्प्लायर अपने मुलाजिम को नहीं देता। अगेन सॉरी, मैडम। पर इसमें थोड़ा कसूर तो आपका भी है।"

“शायद।” नैना सपाट स्वर में बोली उसके चेहरे पर एक खिंचाव सा आ गया था “क्योंकि मैं एक औरत हूं और मेरे अंदर औरत की कमजोरियां हैं। वरना लड़की तो संजना भी थी और तुमसे कम खूबसूरत नहीं थी। फिर भी वह कभी मुझसे मुलाजिम से ज्यादा दरजा हासिल नहीं कर सकी थी। जानती हो क्यों?” उसने चेहरा उठाकर प्राची को देखा।

"न...नहीं..।"

“क्योंकि उसके चेहरे और मिजाज में शाइस्तगी नहीं थी। भोलापन और सच्चाई नहीं थी, जिसे देखकर एक औरत की ममता उमड़ आती है। इसीलिए वह हमेशा मेरी मुलाजिम ही रही। अगर जानकी लाल की कम्पनी से मेरी कारोबारी प्रतिद्वंद्विता न होती तो वह मेरी मुलाजिम भी नहीं होती।

जतिन समेत ब्लूलाइन कंस्ट्रक्शन के कई अहम लोगों को वह अपने जाल में फंसाकर उनसे जानकी लाल के कारोबारी सीक्रेट हासिल कर लेती थी। और वह सीक्रेट हमें मिल जाया करते थे। उसका किरदार केवल यहीं तक सीमित था और शायद इसीलिए मुझे उसकी मौत का कोई रंज नहीं है। जबकि तुम्हारे साथ ऐसा नहीं है प्राची, जानती हो क्यों?"

“क...क्यों?” प्राची के होठों से खुद-ब-खुद निकल गया।

“क्योंकि तुम्हारे किरदार में सच्चाई है, भोलापन और निश्छलता है, जिसे देखकर खुद ही ममता उमड़ आती है।

अगर मैंने शादी की होती तो मेरी बेटी निश्चित रूप से तुम्हारी ही उम्र की होती। तुम्हें देखकर शायद इसीलिए मैं
अपनी ममता को रोक नहीं पाई थी, और ना चाहते हुए भी तुम मेरे इतने करीब आ गई। जहां तक भेद की बात है प्राची तो भेद कहां नहीं होते राज किस इंसान की जिंदगी में नहीं होते। क्या तुम्हारी जिंदगी में राज नहीं है?"

“ज...जी।” प्राची ने चौंककर सिर उठाया। उसके चेहरे पर उलझन व असमंजस के भाव आ गए थे “आपने क्या कहा मैडम?"

“मैंने कहा, क्या तुम्हारी जिंदगी में कोई राज नहीं है?" नैना ने दोहराया “क्या तुम्हारा अतीत आइने की तरह साफ है? उसमें कहीं कोई भेद नहीं है? और देखो...।” उसके स्वर में सहसा चेतावनी का पुट उभर आया "झूठ मत बोलना। जवाब ईमानदारी से देना।"

“क...क्या आपको मेरे अतीत में कोई भेद नजर आता है मैडम?” “यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है प्राची। फिर भी एक भेद तो मुझे साफ साफ नजर आ रहा है।"

“क...क्या?" प्राची हकला गई थी “कौन सा भेद नजर आ रहा है आपको?"

"तुम्हारा चेहरा ?"

“जी।"

"तुम्हारा जो चेहरा नजर आता है, वह तुम्हारा असली चेहरा नहीं है प्राची।” नैना ने अपलक उसे देखा और अपने अल्फाजों पर बल देती हुई बोली “तुम्हारा यह चेहरा असल में एक फरेब है, जो तुमने दुनिया से कर रखा है। तुमने अपने चेहरे पर कास्मेटिक सर्जरी करा रखी है, जिसने तुम्हारे असली चेहरे को दुनिया से छुपा रखा है। बोलो, क्या यह सच नहीं है? क्या तुम्हारे चेहरे पर प्लास्टिक सर्जरी नहीं है?"

प्राची एक पल के लिए तो बुरी तरह हड़बड़ा गई, लेकिन फिर शीघ्र ही उसने खुद को संभाल लिया।
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05-31-2021, 12:11 PM,
#82
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"ह...हां...।” उसने हिचकिचाते हुए स्वीकार किया “मैंने अपने चेहरे पर प्लास्टिक सर्जरी करा रखी है मैडम, इससे मैं इंकार नहीं कर सकती। लेकिन अगर आपको लगता है कि मैंने दुनिया से अपना असली चेहरा छुपाने के लिए अपने चेहरे की सर्जरी कराई है तो आप गलत सोच रही हैं। चेहरे की सर्जरी की इसके अलावा और भी बहुत सी वजह होती हैं।"

“किसी ने तुम्हारे ऊपर तेजाब फेंक दिया था?"

“जी नहीं।” प्राची ने बताया “मुझे चेचक हो गई थी, और चेचक के दागों ने मेरे खूबसूरत चेहरे को इस कदर बदसूरत बना दिया था कि आइना देखकर मैं खुद से ही डरने लगी थी। और यह तो आपको मालूम होगा कि चेचक के दागों को मिटाने वाली कोई दवा अभी दुनिया में नहीं बनी। उसका केवल एक स्थायी समाधान था जो कि कास्मेटिक सर्जरी थी। इसीलिए मैंने अपने चेहरे पर सर्जरी करा ली।"

“क्या तुम सच कह रही हो प्राची?" नैना ने संदेह भरी निगाहों से उसे देखकर पूछा “क्या सचमुच चेचक के दाग मिटाने के लिए तुमने सर्जरी कराई है?"

“जी चाहे तो यकीन कर लीजिए, मैडम। मैं आपसे झूठ बोलने की हिमाकत नहीं कर सकती।"

लेकिन नैना के चेहरे पर विश्वास के भाव न आए। वह अपलक प्राची को देखती रही।

प्राची जरा भी विचलित हुए बिना उसकी आंखों में देखती रही। नैना ने अपनी नजरें हटा लीं तो प्राची की निगाहें भी स्वतः ही झुक गईं।

तभी केबिन का दरवाजा खोलकर एक लड़का अंदर दाखिल हुआ। नैना के साथ ही प्राची की निगाह भी लड़के की ओर उठ गई।
“इंस्पेक्टर मदारी आए हैं मैडम।” लड़का नैना की ओर मुखातिब होकर अदब से बोला “आपसे फौरन मिलना चाहते हैं।"

नैना मन ही मन चौंक पड़ी। लेकिन उसने अपना चौंकना उजागर नहीं होने दिया।

उस खबर ने प्राची को भी चौंकाया था। उसकी और नैना की आंखें एक पल के लिए मिलीं।

“उसे आने दो।” फिर नैना प्राची से निगाह हटाकर लड़के से बोली। लड़के ने सहमति में सिर हिलाया। फिर वह वहां से चला गया। नैना एकाएक फिक्रमंद नजर आने लगी थी।

“रीनी तुम।” बुरी तरह हकबकाए संदीप के मुंह से कितनी ही देर के बाद निकला था। उसकी आंखें रीनी और उसके हाथ में मौजूद रिवॉल्वर को देखकर फट पड़ी थीं।

"क्यों हरामजादे।” रणचंडी बनी रीनी जख्मी नागिन की तरह फुफकारी और उसने अपने हाथ में मौजूद रिवॉल्वर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। उसके चेहरे पर नफरत के साथ व्यंग के भाव भी आ गए थे “अपनी मौत को सामने देखकर होश उड़ गए न?"

“न...नहीं रीनी।” संदीप जल्दी से खुद को संभालता हुआ बोला "कोई बेवकूफी मत करना। अ...अपना यह रिवॉल्वर नीचे कर लो और पहले मेरी बात सुनो।"

“अब बचा ही क्या है तेरे पास, मुझे सुनाने के लिए कमीने।" रीनी शोले बरसाती निगाहों से संदीप को देखती हुई बोली “सब कुछ तो मैं सुन चुकी हूं। और आज पहली बार मुझे अहसास हुआ कि तुमसे रिश्ता जोड़कर मैंने कितनी भयानक गलती की है। यह तो केवल मैं ही थी, जो तेरे प्यार की दीवानी थी और जिसके लिए मैंने अपने पापा को भी विवश कर दिया। मगर तूने तो कभी मुझे प्यार किया ही नहीं था। तूने तो केवल मेरी दौलत से प्यार किया था और तेरी सारी दीवानगी तो उस कमीनी कोमल के लिए है, जो तेरी पहली बीवी थी और जिसके पास तू फिर वापस जाना चाहता है।"

“ए..ऐसा कुछ भी नहीं है रीनी। मैं...।"

“तू भौंक नहीं कुत्ते केवल मेरी बात सुन ।” रीनी ने उसे बोलने नहीं दिया था। वह अपने अंदर की आग उगलती चली गई “मेरे पापा की मौत का सामान भले ही तूने किया है, लेकिन पापा की मौत की असली जिम्मेदार मैं हूं। लेकिन तू घबरा क्यों रहा है, मेरी मौत का सामान भी तो तूने कर ही दिया है। कितनी मजे की बात है, पहले जिसे मेरे पापा की हत्या की सुपारी दी, अब उसे ही उनकी बेटी की भी सुपारी दे डाली। अब उसे किसी और की सुपारी भी देने जा रहा है। न...न...न, कोई चालाकी दिखाने की कोशिश मत करना जलील आदमी वरना वक्त से पहले ही रुख्सत हो जाएगा।"

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संदीप जहां का तहां जड़ हो गया। उसका चेहरा पीला जर्द पड़ गया था। रीनी सचमुच उस घड़ी रणचंडी बनी हुई थी। उसका जुनून इस बात का गवाह था कि वह जो कुछ भी कह रही थी, उसे करने में जरा भी नहीं हिचकने वाली थी। संदीप मन ही मन उस घड़ी को कोस रहा था जबकि उसने कोमल को फोन लगाया था और भावुक होकर उसे फोन पर ही सब कुछ बता दिया था। उस वक्त वह आखिर क्यों भूल गया था कि वह रीनी का ही घर था और रीनी कभी भी उसके कमरे में आ सकती थी।

लेकिन अब खुद को कोसने से कुछ नहीं होने वाला था। हौसला तो उसे दिखाना ही था, वरना वह रणचंडी बनी रीनी उसे किसी भी सूरत में जीवित नहीं छोड़ने वाली थी।

“म...मेरा कोई चालाकी दिखाने का इरादा नहीं है रीनी।" प्रत्यक्षतः वह अपने लहजे को सुसंयत बनाये रखने का प्रयास करता हुआ बोला उसका इरादा अब रीनी को बातों में उलझाने का था ताकि उसे पासा पलटने का मौका मिल पाता। उसने कहा “म...मगर मैं फिर कहता हूं, जो कुछ तुमने सुना, वह सच नहीं है, सच तो कुछ और ही है। तुम मुझे एक मौका तो दो मैं तुम्हारी सारी गलतफहमी दूर कर दूंगा।"

"क्यों नहीं।” रीनी दांत किटकिटाती हुई बोली। उसकी उसकी अंगुली रिवॉल्वर के ट्रिगर पर सख्ती से कस गई थी “तू एक मौका देने की क्या बात करता है, मैं तुझे बेशुमार मौके देती हूं।" फिर उसने बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा दिया “यह ले।"

पिट...पिट...!
उसके साइलेंसर युक्त बेआवाज रिवॉल्वर ने दो शोले उगले, जिनका निशाना संदीप था।

मगर मासूम रीनी नहीं जानती थी सामने खड़ा इंसान गजब का शातिर था। वह बेहद फुर्ती से एक तरफ को झुक गया था और रीनी के निशाने को उसने बड़ी खूबसूरती से डॉज दे दिया था।

दोनों गोलियां सनसनाती हुई संदीप के सिर के ऊपर से गुजर गयी थीं तथा पीछे दीवार में जाकर धंस गई थीं।

जब यह बात रीनी की समझ में आयी तो वह बुरी तरह हड़बड़ा गई। उसका क्रोध दोबाला हो गया। उसने तमतमाते हुए पुनः रिवॉल्वर सीधा किया, लेकिन इससे पहले कि वह दोबारा संदीप को निशाना बना पाती, संदीप ने झपटकर उसके चेहरे पर एक करारा घूसा रसीद कर दिया।
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05-31-2021, 12:11 PM,
#83
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
उस फौलादी चूंसे ने रीनी को दिन में तारे दिखा दिए। उसके हलक से तेज चीख निकल गई। वह लड़खड़ाकर पीछे दीवार से टकरा गई। संदीप के लिए इतना ही काफी था। उसने बाज की तरह झपटकर रीनी के हाथ से रिवॉल्वर झटक लिया, साथ ही एक और करारा घूसा उसके चेहरे पर रसीद कर दिया।

रीनी के हलक से पुनः चीख निकल गई। उसके गाल और होंठ फट गए, जिससे खून छलक पड़ा। संदीप ने उसके उभरे वक्षों के बीचो-बीच रिवॉल्वर की लम्बी नाल घुसेड़ दी।

“यह खतरनाक खिलौना चूड़ी पहनने वाले हाथों के लिए नहीं बना स्वीट हार्ट।” संदीप होंठों पर शैतानी मुस्कराहट लिए बोला। उसके हाव-भाव एकदम से बदल गए थे “अब यह सही हाथों में पहुंच चुका है। और मेरा निशाना कितना सच्चा है और यह अभी तुम्हें पता चल जाएगा।
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रीनी जहां की तहां फ्रीज हो गई। उसका चेहरा सफेद पड़ गया। सामने खड़े शैतान की आंखों में उसे अपनी मौत साफ नजर आयी थी। अब पूरी तरह से पासा पलट चुका था।

“अब जबकि तुमने मेरा असली चेहरा देख ही लिया है जानेमन तो...।” संदीप जहर बुझे स्वर में बोला “सफाई देने का कोई फायदा नहीं है। वैसे भी अब सफाई देने की जरूरत भी कहां है। अगर तुम्हारी कोई आखिरी ख्वाहिश हो तो कह दो। मैं उसे पूरी करने की जरा सी भी कोशिश नहीं करूंगा। कम ऑन।"

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“त..तू मुझे गोली नहीं मार सकता.... ह...हरामजादे।” रीनी नफरत से धधकती हुई बोली।

“यानी कि कोई आखिरी ख्वाहिश नहीं है।" शैतान तपाक से बोला “तो फिर अब मरने के लिए तैयार हो जाओ।” उसकी पकड़ रिवॉल्वर पर सख्त हो गई। चेहरा पत्थर की तरह कठोर और खुरदरा हो गया।

“त...तू मुझे नहीं मार सकता कमीने।” रीनी हिम्मत जुटाकर बोली “अगर तूने यह हिमाकत की तो तू भी जिंदा नहीं बचेगा। सीधा फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।"

“फिक्र मत करो डार्लिंग, मुझे कुछ नहीं होगा।” संदीप बोला “मैंने सब सोच लिया है। तुम्हारे कत्ल के लिए कम से कम मुझे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। वैसे तुम्हें जहन्नुम रसीद कराने का पूरा इंतजाम, तुम जान ही चुकी हो कि मैंने कर लिया था। लेकिन तुम वहां जाने के लिए इतनी ज्यादा उतावली हो, यह मुझे नहीं पता था। आय एम सो सॉरी स्वीटहार्ट। मेरा आखिरी सलाम कबूल करो और चलती-फिरती नजर आओ।"

रीनी का जिस्म मानो जड़ हो गया। भय से आंखें पथरा गईं। संदीप ने बिना एक पल गंवाये रिवॉल्वर का टि,गर दबा दिया।
पिट...पिट...पिट...!
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अगले ही पल एक दर्दनाक चीख फिजा में गूंजी, फिर पैना सन्नाटा छा गया।

नगाड़े की आवाज के साथ अपने हाथ का रूल हिलाते हुए इंस्पेक्टर मदारी नैना के आफिस में दाखिल हुआ तो तत्काल नैना की भृकुटि चढ़ गई।

“जय भोलेनाथ की।” तभी इंस्पेक्टर मदारी ने अपने अंदाज में जयकारा लगाकर नैना का अभिवादन किया।

“यह डुगडुगी बजाना बंद करो इंस्पेक्टर।” नैना सख्ती से बोली। मदारी हड़बड़ाया। पहले तो जैसे उसकी समझ में ही नहीं आया, कि नैना ने क्या बंद करने के लिए कहा था। जब आया तो उसने फौरन अपना हाथ रोक लिया।

नगाड़े की आवाज गूंजना बंद हो गई।

“शुक्रिया।” नैना रूखे स्वर में बोली फिर उसने नजर उठाकर मदारी को देखा और गहन अप्रसन्नता से बोली “तुम फिर आ गए?"

“वीआरएस का सवाल है मनोरमा जी।” मदारी अपने स्वर में दयनीयता झलकाता हुआ बोला “इसलिए आना पड़ा।"

“ओह।"

“और यह तो सारा मुम्बई जानता है कि इंस्पेक्टर मदारी हराम की तनख्वाह उगाहने में विश्वास नहीं रखता। वह सरकार से हासिल तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने वाला...।"

“जानती हूं।” नैना उसकी बात बीच में काटकर झट से बोल पड़ी “यह बात तुम इतनी बार हर किसी को बता चुके हो कि तुम्हारी इस काबिलियत पर हर कोई हैरान होने लगा है। अब आगे बताओ।”

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“आ...आगे क्या बताऊं?" मदारी ने अचकचाकर पूछा। उसके चेहरे पर आहत के भाव आ गए थे जैसे कि नैना की बातों ने उसे गहरा धक्का पहुंचाया है।

“मेरी याद तुम्हें कैसे आ गयी। इस बार उसकी वजह कहीं संजना का कत्ल तो नहीं है, जो कि मेरी कंपनी की मुलाजिम थी?"

“अब जाने भी दीजिए मनोरमा जी।” मदारी ने लापरवाही को प्रदर्शन किया और पूर्ववत चिकने-चुपड़े स्वर में बोला “वह क्या है कि इधर से गुजर रहा था तो आपकी याद आ गई। बस, चरणरज लेने चला आया। अगर मिल जाती तो धन्य हो जाता। कुत्ते की तरह दुर-दुर करती इस पुलिस की नौकरी से छुटकारा मिल जाता।"

"हूं।” नैना ने संजीदगी से हुंकार भरी और मदारी को ध्यानपूर्वक देखती हुई बोली “लगता है कोई बहुत ही खास बात है। और ऐसी दूसरी खास बात जानकी लाल के कत्ल से ताल्लुक रखती हो सकती है। मैंने...।” उसने अपलक मदारी को देखा “ठीक कहा न इंस्पेक्टर?"

“अब जाने भी दीजिए मनोरमाजी।” मदारी लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ बोला “भला आप जैसी महान शख्सियत का किसी कत्ल से क्या वास्ता हो सकता है। वैसे आपकी आई साइड तो दुरुस्त है न?”
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05-31-2021, 12:12 PM,
#84
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"क...क्या मतलब?"

“मैं इतनी देर से आपके सामने खम्भे की तरह खड़ा हूं मगर आपको नजर ही नहीं आ रहा । क्या आपकी कंपनी में आने वालों के साथ यही सलूक किया जाता है। वैसे मुझे याद है पिछली बार तो मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था, आपने मुझे बाइज्जत कुर्सी पर बैठाया था।"

नैना हड़बड़ाई। उसे तत्क्षण अपनी गलती का अहसास हुआ। “आई एम सॉरी इंस्पेक्टर।" वह खेद भरे स्वर में बोली "प्लीज सिटडाउन।”

“वैसे तो ड्यूटी के दरम्यान मैं सिटडाउन नहीं होता मनोरमा जी। वह क्या है कि उससे सरकारी तनख्वाह में भांजी लगती है। उसकी पाई-पाई हलाल नहीं हो पाती जिसका कि मैं पूरा ख्याल रखता हूं। मगर मैं आपको भी निराश नहीं कर सकता इसलिए बैठ जाता हूं।"

वह धम्म से एक विजिटर चेयर पर ढेर हो गया, जिससे अभी प्राची उठकर गई थी।

“क्या लेना पसंद करोगे इंस्पेक्टर।” नैना ने औपचारिकता निभाई “ठंडा या गर्म?"

“अजी तौबा।” मदारी ने अपने दोनों को हाथ लगाया और झट से बोला “आप क्यों मेरा जायका बिगाड़ना चाहती हैं। बैठना तक तो ठीक है लेकिन डयूटी के दरम्यान ठंडा-गर्म कुछ भी लेना मैं पाप समझता हूं। जो मुझे सरासर रिश्वत लेने जैसा लगता है, जिससे कि मदारी की पुश्तों ने भी तौबा कर रखी है।"

"हूं।” नैना ने उसे घूरकर देखा फिर निःश्वास छोड़ती हुई बोली “ठीक है, आगे से मैं इस बात का ख्याल रखूगी।"

“आपकी मेहरबानी होगी।”

नैना इस बार खामोश रही। लेकिन उसकी निगाहें मदारी के चेहरे पर चिपककर रह गई थीं। वह अच्छी तरह जानती थी कि वह काइयां इंस्पेक्टर बेवजह वहां नहीं आया हो सकता था। जरूर कोई खास बात थी। जरूर उसके खिलाफ उस पुलिसिये के हाथ कोई सबूत लग गया था। कोई ऐसा सबूत, जो पिछली दफा जानकी लाल के कत्ल वाले वाक्ये से ज्यादा दमदार था।

लेकिन अपने चेहरे पर उसने आशंका के एक भी भाव न आने दिए। “अब देखिए न मनोरमा जी।” तभी मदारी बोला। उसका लहजा पहले की तरह चापलूसी वाला ही था “कितनी अजीब बात है, दो कत्ल हुए और दोनों ही कल्लों से आपका कितना गहरा रिश्ता निकल आया। कत्ल के दोनों ही केस में कहीं न कहीं आपका दखल साबित होता है।” वह जरा ठिठका, फिर बोला “मैं समझ नहीं पा रहा हूं, बेगुनाह लोगों के साथ अक्सर ऐसा क्यों होता है?"

“य...यह केवल एक इत्तेफाक है इंस्पेक्टर।”

“एकदम दुरुस्त फरमाया मनोरमा जी।” मदारी तपाक से बोला “यह सचमुच इत्तेफाक के अलावा और कुछ नहीं है। सच्चे इंसान को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी ही पड़ती है। जानती हैं, अक्सर मैं सोचने लगता हूं।”

नैना के चेहरे पर उलझन के भाव आए। उसने सवालिया निगाहों से मदारी को देखा।

“अरे यही कि...।" मदारी उसकी निगाहों को पढ़कर बोला “अगर इस दुनिया में इत्तेफाक न होता तो क्या होता। मगर जवाब है कि कमबख्त मिलकर ही नहीं दिया।"

“तुम यही बताने यहां आए हो?"

“अरे नहीं मनोरमा जी।” मदारी हड़बड़ाया फिर संभलकर बोला “उसकी वजह तो कुछ और ही है।”

“और क्या वजह है?” नैना ने शुष्क स्वर में पूछा।

“वह वजह यह तस्वीर है।" मदारी ने अपनी जेब से एक पोस्टकार्ड साइज की रंगीन फोटोग्राफ निकालकर नैना के सामने मेज पर सरका दिया, फिर बोला “दरअसल मनोरमा जी, मैं आपको इस तस्वीर के दीदार कराने लाया हूं। अगर आप दीदार कर लें तो मैं धन्य हो जाऊंगा और अपनी तशरीफ का टोकरा उठाकर खुशी-खुशी यहां से रुख्सत हो जाऊंगा।"

नैना के माथे पर तत्काल बल पड़ गए। उसने मेज पर अपने करीब सरक आयी तस्वीर को अपनी अंगुलियों से रोका, फिर उसे उठाकर गौर से उसका मुआयना किया।

तस्वीर पर एक नजर डालने से ही अहसास हो जाता था कि वह काफी पुरानी थी। उसका कागज मटमैला हो चला था। तस्वीर में भरे-भरे जिस्म वाली एक नौजवान लड़की नजर आ रही थी, जिसकी उम्र बमुश्किल बाईस-तेईस बरस होगी। उसने जींस-टॉप पहन रखा था, और जो इतनी हसीन थी कि हैरानी होती कि कोई लड़की आखिर इतनी हसीन कैसे हो सकती थी।

मदारी अपलक नैना को ही देख रहा था।
अगले पल नैना हकबकाई।

उसके चेहरे के भाव बेहद तेजी से चेंज हुए थे। एक ही पल में उसके चेहरे पर न जाने कितने रंग आकर चले गए।

“लगता है मनोरमा जी इसे पहचानती हैं?” उसके चेहरे को गौर से देखते मदारी ने कहा।

तब मानों एकाएक नैना की तंद्रा भंग हुई। उसने झटके से चेहरा उठाकर मदारी को देखा।

मदारी को उसकी आंखों में हैरत और अविश्वास का सागर उमड़ता नजर आया। उसके हाव-भाव पूरी तरह बदल चुके थे।

"लगता है आप इस सुंदरी को पहचानती हैं?" मदारी अपने ही अंदाज में इस तरह बोला जैसे कि नैना ने उसकी बात का अनुमोदन कर भी दिया था “कोई पुराना याराना मालूम पड़ता है विश्व सुंदरी से?"

“न...नहीं...।” नैना के होंठ हिले। उसने फौरन प्रतिवाद किया “मैं इसे नहीं जानती। क..क्या यह सचमुच कोई मिस वर्ल्ड है।

“यही तो अफसोस है मनोरमा जी कि यह मिस वर्ल्ड तो क्या मिस इंडिया भी नहीं है। कमबख्त कभी किसी प्रतियोगिता में
खड़ी ही नहीं हुई वरना आप खुद ही समझ सकती हैं कि इसे वह बनने से कोई नहीं रोक सकता था, जिसकी आपने अभी संभावना जताई है। वैसे...।” मदारी की नजरें नैना के चेहरे पर पैनी हुई। उसने खोजपूर्ण निगाहों से उसके चेहरे को देखा “क्या आप सचमुच इसे नहीं जानतीं?"
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05-31-2021, 12:12 PM,
#85
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“न...नहीं। अगर मालूम होता तो क्यों पू...पूछती।"

“आप झूठ बोल रही हैं मनोरमा जी।"

"क...क्या ?"

"आपकी आवाज आपके चेहरे के भावों से मेल नहीं खा रही। दोनों अलग-अलग रास्ते पर जा रहे हैं।"

“म...मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी। इंस्पेक्टर। तुम कहना क्या चाहते हो?"

“जाने दीजिए मनोरमा जी।” मदारी ने गहरी सांस खींचकर बोला “मैं आपकी जनरल नॉलिज में इजाफा करता हूं। इस छप्पनछुरी का नाम भारती है और यह एक जमाने में मुम्बई की कालगर्ल हुआ करती थी।"

“क...कालगर्ल...?” नैना हकबकाई, जैसे कि उस रहस्योद्घाटन ने उसे धक्का पहुंचाया था।

"अरे, आप कालगर्ल का मतलब नहीं समझतीं?" मदारी हैरान हुआ था।

“समझती हूं। तुम आगे बताओ।”

"इस कालगर्ल क्वीन के बारे में पुलिस में जो मालूमात मौजूद हैं, इसके मुताबिक...।” अपनी आदत के अनुरूप मदारी भारती को अपना पसंदीदा नाम देता हुआ बोला “यह निहायत ही अजीबो-गरीब कालगर्ल थी, जिसकी एक रात की कीमत इतनी ज्यादा थी कि आप सोच भी नहीं सकतीं।"

"कि...कितनी कीमत लेती थी यह अपनी एक रात की?" नैना ने कुर्सी पर पहलू बदलकर पूछा “जो मैं सोच भी नहीं सकती।"

“पांच लाख रुपये।"

“क..क्या?” नैना चिहुंककर उसे देखने लगी, फिर उसने पूछा “यह तो सचमुच बड़ी रकम है।"

“जरा तस्वीर में नजर आ रही इस कयामत को देखकर बताइए मनोरमा जी कि इसकी हंगामाखेज जवानी और खूबसूरती के सामने क्या यह रकम सचमुच बड़ी है?"

नैना से जवाब देते न बना।

"हरगिज भी नहीं मनोरमा जी।” मदारी बोला “इसका सबूत यह है कि इतनी भारी कीमत के बावजूद इसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं थी। एक ढूंढो हजार मिलते थे। हजार ढूंढों तो लाख मिलते थे।"

“इसीलिए तु..तुमने इसे अजीबोगरीब कालगर्ल कहा है?"

“नहीं, उसकी वजह दूसरी थी।”

“वह क्या?" नैना न चाहते हुए भी भारती की कहानी में दिलचस्पी लेने के लिए मजबूर हो गयी थी।

“उसकी वजह इस कालगर्ल क्वीन के उसूल थे।"

"उसूल ? कालगर्ल के भी उसूल होते हैं?"

“हां। और उसका सबसे पहला उसूल यह था कि जिस किसी भी कस्टमर के साथ वह एक बार रात बिता लेती थी, दोबारा उसके साथ वर्किंग नहीं लेती थी।"

"तो क्या उसे अपने हर कस्टमर का चेहरा याद रहता था?"

“कहने वाले तो यही कहते हैं कि याद रहता था। इस कालगर्ल क्वीन की याददाश्त बहुत शानदार थी।"

“फिर भी अगर कोई दोबारा उसके साथ रात बिताने की ठान लेता तो?"

"तो उसे 'क्वीन' की कीमत से दस गुना ज्यादा रकम चुकानी पड़ती थी।"

“यानि कि पचास लाख रुपये।"

"हां।"

“यह तो सरासर ब्लैकमेलिंग हुई?"

“नहीं हुई।” मदारी ने इंकार में गरदन हिलाई “बताते हैं कि एक बार किसी ने 'क्वीन' से यह सवाल किया था तो उसने साफगोई से कहा था कि वह किसी को उसके साथ दोबारा रात बिताने का इन्वीटेशन नहीं भेजती। यह तो उसके ग्राहक की मर्जी पर ही निर्भर करता है।"

“जबकि सच तो यह था कि क्वीन के हुस्न में जादू था। जो एक बार उसके साथ रात बिता लेता था, वह दोबारा उसे पाने के लिए पागल होने लगता था और इसके लिए वह कोई भी रकम चुकाने को तैयार हो जाता था।"

"तब तो इसमें किसका कसूर था, कहना मुश्किल होगा। म...मगर भारती ऐसा क्यों करती थी? क्यां महज दौलत की खातिर?"

"शायद नहीं।"

“शायद का क्या मतलब हुआ?"

“यह पच्चीस साल पहले का वाक्या है और इतना अरसा पहले मैं पुलिस की नौकरी में भी नहीं आया था, लिहाजा मैं इसका चश्मदीद गवाह नहीं हूं। मैं आपको जो कुछ भी बता रहा हूं अपनी तफ्तीश और पुलिस के रिकार्ड में दर्ज मालूमात के मद्देनजर ही बता रहा हूं। यह जो तस्वीर आपके हाथ में है, यह भी मैंने पुलिस के रिकार्ड से हासिल की है।"

“क्या भ...भारती कभी गिरफ्तार भी हुई थी?"

“अगर नहीं होती तो फिर पुलिस में उसका रिकार्ड कैसे होता? लेकिन उसकी वह गिरफ्तारी महज एक औपचारिकता थी। अपने धंधे में उसे कभी सजा नहीं हो सकी। वह जब भी गिरफ्तार हुई, संदेह का लाभ देकर उसे रिहा कर दिया गया। जबकि बताते हैं कि वह हमेशा रंगे हाथों पकड़ी गई थी।"

“ऐसा क्यों हुआ?"

“सोचिए मनोरमा जी ऐसा क्यों हुआ?" मदारी ने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा दी “आखिर आप भी तो एक औरत हैं, यह अलग बात है कि आप शादीशुदा नहीं हैं।"

“म...मैं समझ गई।” नैना हड़बड़ाकर बोली “उसे गिरफ्तार करने वाले पुलिस अफसर को वह खुश कर देती होगी?"

“आपने बजा फरमाया मनोरमाजी। बहरहाल, कहते हैं कि क्वीन का मकसद केवल दौलत के अंबार लगाना नहीं था।"

"तो फिर?"

"सुना है उसके अंदर कोई कुंठा छुपी हुई थी। और यह सब करके वह अपनी उस कुंठा को बाहर निकाल रही थी। वह किसी से इंतकाम ले रही थी।"

"खुद...खुद को तबाह करके वह किससे इंतकाम ले रही थी?"

"उसकी इस तबाही से कई गुना ज्यादा उसे हासिल हो रहा था। जानती हैं, अपने इस धंधे से उसने अगले दस सालों में सौ करोड़ रुपये इकट्ठा कर लिये थे।"

“य..यह तो बहुत बड़ी रकम होती है।”

“जाहिर है। क्या आप यह नहीं जानना चाहेंगी कि 'क्वीन' आखिर किससे इंतकाम ले रही थी? वह कुंठित क्यों हो गयी थी?"

नैना के चेहरे पर सवाल उभर आया था। वह अपलक मदारी को देखने लगी थी।

“उसकी वजह एक हादसा था जो क्वीन के साथ पेश आया था और जिसने क्वीन की जीवनधारा ही बदल दी थी।"

“क...कौन था वह रईसजादा?"

“महानगरों में ऐसे रईसजादों की कमी नहीं होती और मुम्बई तो ऐसे रईसजादों की खान है। उस बिगड़े रईसजादे का नाम तो मालूम नहीं हो सका, लेकिन 'क्वीन' को उस अंजाम तक पहुंचाने का जिम्मेदार वही रईसजादा था, जिसके बारे में कहते हैं कि वह हर रात एक नई लड़की के साथ गुजारता था। और जिस लड़की के साथ एक रात गुजार लेता था, दोबारा उसे कभी अपनी रात की हमसफर नहीं बनाता था और अपनी एक रात की संगिनी को रात गुजारने की भरपूर कीमत चुकाता था। क्वीन को भी तो उसने उसके साथ रात गुजारने की इतनी ही कीमत चुकाई थी।"

“कि...कितनी कीमत चुकाई थी उसने?”

“पांच लाख रुपये।"

“इसीलिए भारती ने अपनी एक रात की कीमत पांच लाख रुपये मुकर्रर की थी?"

“लोग तो यही कहते हैं।”

“क्या उस इ...रईसजादे ने भारती को धोखा दिया था? उसने उसके साथ फरेब किया था?”

"क्वीन थी ही ऐसी शानदार कि उस पर कोई भी फिदा हो जाए। फिर अपना वह रंगीला राजा उस पर फिदा हो गया तो इसमें अपने रंगीन राजा का कोई कसूर नहीं था। उसका कसूर केवल इतना ही था कि क्वीन को हासिल करने के लिए उसने उसके साथ खूबसरत फरेब किया ।"

"क्या किया था उसने इस लड़की के साथ?"

“क्वीन एक शरीफजादी थी और शादी से पहले अपने शरीर का कुंआरापन न लुटाने की जैसे वह कसम खाए बैठी थी। जबकि रंगीले राजा को हर कीमत पर क्वीन का कयामत ढाता हुस्न चाहिए था। लिहाजा उसने प्यार के साथ-साथ क्वीन से बाकायदा शादी का भी नाटक रचा लिया।"

“म...मतलब उसने भारती से शादी कर ली?” नैना ने चौंककर पूछा।

“हां। लेकिन वह शादी गाजे-बाजे के साथ नहीं हुई थी। इसके लिए रंगीला राजा, क्वीन को बहलाकर मंदिर में ले गया था, जहां उसने क्वीन के साथ गन्धर्व विवाह रचा लिया था। और इस तरह शादी से पहले कुंआरापन न लुटाने वाली क्वीन की शर्त पूरी हो गई थी और फिर रंगीले राजा ने सारी रात अपनी एक रात की दुल्हन के साथ गोल्डन नाइट मनाई थी। उसके बाद जानती हैं मनोरमा जी फिर क्या हुआ था?"

"क...क्या हुआ था?" नैना पूछे बिना न रह सकी थी।
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05-31-2021, 12:12 PM,
#86
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“अगले रोज सुबह क्वीन ने अपने आपको होटल के उस कमरे में अकेली पाया था, जिसके साथ हजार-हजार के नोटों की पांच गड्डियां भी रखी थीं। वह रंगीले राजा का लैटर था जिसमें लिखा था मुझे माफ कर देना जाने तमन्ना, मुझे केवल आम खाने का शौक है गुठलियां सहेजकर रखने की मुझे आदत नहीं है। वह तो तुमने मुझे मजबूर कर दिया था और क्योंकि तुम्हारे जलवाखेज हुस्न को हासिल करने का कोई और तरीका नहीं था, लिहाजा मैं मजबूर हो गया। वैसे तुम्हारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो तुम यह साबित कर सको कि मैंने तुमसे गन्धर्व विवाह किया था। कहने का मतलब यह कि कोई बेवकूफी मत करना, वरना उससे सिवाय रुसवाई के तुम्हें और कुछ हासिल नहीं होने वाला। मुझे हर रोज एक नई दुल्हन चाहिए। तुमसे क्योंकि मुझे एक अनोखा जिस्मानी सुख हासिल हुआ, इसलिए उस सुख की मैं तुम्हें अनोखी कीमत से नवाज रहा हूं, जो पांच लाख रुपयों की शक्ल में इस पत्र के साथ ही मौजूद है।"

मदारी खामोश हो गया और अपलक नैना को देखने लगा।

नैना टकटकी लगाये मदारी को ही देख रही थी।

“कोई नई बात नहीं है।” आखिरकार नैना बोली। उसके चेहरे पर न जाने कितने रंग आकर चले गए थे “औरत तो हमेशा से ही छली जाती आयी है और पता नहीं कब तक छली जाती रहेगी।"

"अरे, यह आप क्या कह रही हैं मनोरमा जी।” मदारी उछलकर बोला।”

"क्या मैंने कुछ गलत कहा?" नैना ने उल्टा सवाल किया।

“सरासर गलत कहा। औरत का छला जाना अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। यह इक्कीसवीं सदी है और आज सब कुछ उल्टा हो चुका है। आज हर घास खाने वाला आदमी औरत से खौफ खाता है।"

“घ...घास खाने वाला आदमी?" नैना चकराई। उसने उलझकर मदारी को देखा।

"आम आदमी।” मदारी ने उसका असमंजस दूर किया “शरीफ आदमी। जिसके लिए आज के दौर में यही लफ्ज मुनासिब
“और खास आदमी औरत से खौफ नहीं खाता।"

“नहीं। वह क्या है मनोरमा जी कि चोरों में मौसेरे भाइयों की मसल तो आपने जरूर सुनी होगी।"

“खैर।” नैना ने अपने सिर को जुम्बिश दी “तो यह थी उसकी रुपयों वाली वह कुंठा और इस तरह इस हाईप्राइस्ड कालगर्ल ने सौ करोड़ रुपये इकट्ठा कर लिए थे?"

“और क्या?"

"फिर उसने उन रुपयों का क्या किया? अ...और क्या फिर कभी भारती का उस अय्याश रईसजादे से सामना हुआ?"

“जरूर हुआ। यह दुनिया इसीलिए तो गोल बनाई गई है। फासला कितना भी हो जाए लेकिन हर कोई घूम फिर एक न एक दिन जरूर टकराता है। और फिर अब तो अपनी क्वीन भी करोड़पति बन चुकी थी पहले से ज्यादा परिपक्व, समझदार और दुनियादार हो चुकी थी।"

"हूं। दिलचस्प कहानी है।” नैना ने संजीदगी से हुंकार भरी।

फिर जाने क्या हुआ कि उसके हाव-भाव एकदम से चेंज हो गए। वह मदारी को घूरकर सख्त स्वर में बोली “लेकिन यह कहानी तुम मुझे क्यों सुना रहे हो और उस कालगर्ल की तस्वीर तुम मुझे क्यों दिखा रहे हो?"

“जरा धीरज रखिए मनोरमा जी।” मदारी अत्यंत धैर्य का परिचय देता हुआ पहले जैसे ही चिकने-चुपड़े स्वर में बोला “अभी सब पता चल जाएगा। और फिर अभी तो आपका वह रुपयों वाला सवाल भी अधूरा है कि क्वीन ने उन सौ करोड़ रुपयों का आखिर क्या किया?"

नैना फिर खामोश हो गई और टकटकी लगाकर मदारी को देखने लगी।

"जिस रंगीले राजा ने क्वीन को इस अंजाम तक पहुंचाया था...।" मदारी कुछ पलों की खामोशी के बोला “उसका रियल स्टेट का बहुत बड़ा कारोबार था। जिसकी कम्पनी की गिनती शहर की गिनी चुनी रियल स्टेट कम्पनी में होती थी। क्वीन ने उस सौ करोड़ की इंकम से रंगीले राजा की सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी की बीस प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली और उस कंपनी के बोर्ड में उसकी सबसे प्रतिष्ठित सदस्य बनकर शामिल हो गई। कालांतर में उसने और ज्यादा तरक्की की और आखिरकार वह आज अपनी कम्पनी की चेयरमैन बन गई। और आज तो उसका नाम सारा मुम्बई जानता है।"

"कि...किसका?"

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"क्वीन की कंपनी का और...खुद क्वीन का भी। आपने भी जरूर सुना होगा।"

"क...क्या?"

“क्वीन की रियल स्टेट कंपनी का नाम। उसे ड्रीम ड्रैगन कहते हैं। जिसकी मालकिन का नाम...।” मदारी ने एक भरपूर निगाह नैना चौधरी पर डाली फिर उसने अपना सेंटेंस पूरा किया “भोलेनाथ भला करे नैना चौधरी है। और जो इस समय सशरीर मेरे सामने विराजमान है।"

नैना भौंचक्की सी होकर मदारी का मुंह देखने लगी। जबकि मदारी के हाव-भाव में जरा सा भी परिवतन नहीं आया था “और मेरी तफ्तीश कहती है कि आपका वह रंगीला राजा कोई और नहीं बल्कि अपने मरहूम श्री-श्री एक हजार बयालीस उर्फ लाल साहब थे, जिनकी रियल स्टेट कंपनी को ब्लूलाइन के नाम से जाना जाता है। अब अगर आपमें हौसला है तो इंकार करके दिखाइए।"

नैना इंकार करने का हौसला नहीं जुटा सकी।

“यानी कि आप इंकार नहीं कर रहीं मनोरमा जी।” मदारी अपलक उसे देखते हुए बोला “जिसका सीधा और साफ मतलब यह है कि आप इकरार कर रही हैं। आप कबूल करती हैं कि 'क्वीन' के बारे में मैंने जो बताया वह सच है। आप ही कल की जानी-मानी कालगर्ल भारती हैं।"

“त...तुम यह बात कभी साबित नहीं कर पाओगे इंस्पेक्टर।" एकाएक नैना बोली। उसके लहजे में सख्ती भर गई थी।

“मुझे मालूम है।" मदारी बड़े सहज भाव से बोला “आपने ढूंढकर ऐसे हर सबूत मिटा दिए हैं जो आपके शहर की एक प्रतिष्ठित बिजनेसमैन के तार उस कुख्यात कालगर्ल से जोड़ते हों। फिर भी अगर आप भोलेनाथ के इस भक्त को चैलेंज कर रही हैं कि मैं आपको वह साबित नहीं कर सकता जो कि आप हैं तो खातिरजमा रखिए मनोरमा जी, आप मुंह की खाएंगी।"

“म....मैं किसी को चैलेंज नहीं कर रही।” नैना हड़बड़ाकर जल्दी से बोली।

“तो फिर इत्मिनान रखिए, गड़े मुर्दे उखाड़ने का मदारी को कोई शौक नहीं है। खासतौर से तब जबकि उससे मेरी सरकारी तनख्वाह की एक पाई भी हलाल न होती हो।"

“इसके बावजूद मेरा बीता हुआ खोद निकाला?” नैना ने व्यंगात्मक स्वर में पूछा।

“मजबूरी थी मनोरमा जी। आप एक नहीं दो-दो कत्ल के मामले में सस्पैक्ट हैं। और सस्पेक्ट का आगा पीछा खंगालना जरूरी होता है तभी कुछ हाथ आने की उम्मीद होती है।"

“तो मेरी तफ्तीश से तुम्हारे क्या हाथ आया?"
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05-31-2021, 12:12 PM,
#87
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“अभी आएगा न हाथ। अब आप यह नहीं कह पाएंगी कि आप श्री-श्री की केवल कारोबारी प्रतिद्वंदी नहीं थीं, आप निजी जिंदगी में भी श्री-श्री की कट्टर प्रतिद्वंदी थीं। और मरने वाली संजना वह लड़की थी, जिसे आप लगातार श्री-श्री के खिलाफ इस्तेमाल कर रही थीं उसके जरिए ब्लूलाइन प्रोजेक्ट के बिजनेस सीक्रेट हासिल कर रही थीं ब्लू लाइन के चीफ इंजीनियर जतिन को उसकी जुल्फों में उलझाकर। बोलिए मैंने कुछ गलत कहा?” उसने एकटक नैना की आंखों में देखा।

“नहीं। मैं इससे इंकार नहीं कर रही इंस्पेक्टर।” नैना ने स्वीकार किया और कुर्सी पर पहलू बदलकर कठिनता से बोली “यह सच है कि संजना के जरिये मैंने ब्लू लाइन के बेशुमार सीक्रेट हासिल किए हैं और ब्लूलाइन से बहुत सारे अहमतरीन टेण्डर हथियाये हैं। मगर यह भी सच है कि जानकी लाल के कत्ल का कभी मैंने ख्याल भी नहीं किया। मेरा मकसद केवल उसे तबाह और बरबाद करना था उसका कत्ल करना नहीं। और संजना, उसके कत्ल की तो मेरे पास कोई वजह ही नहीं है। अगर हो तो तुम ढूंढकर मुझे बताओ।"

“वजह आइंदा सामने आ सकती है?"

“अगर ऐसा हो जाए तो तुम बेहिचक मुझे फांसी पर चढ़ा देना, मुझे जरा सा भी ऐतराज नहीं होगा।"

“हूं।” मदारी ने हुंकार भरी और कितनी ही देर तक वह खोजपूर्ण निगाहों से नैना को देखता रहा। आखिरकार उसने नैना से निगाहें हटा लीं।

“एक आखिरी सवाल और मनोरमाजी।" फिर वह बोला।

"वह भी पूछो।"

"सुमेश सहगल तो आपको याद होगा?”

“अगर तुम्हारा मतलब जानकी लाल के भूतपूर्व चीफ एकाउंटेंट सुमेश सहगल से है तो मुझे अच्छी तरह याद है।"

“सात साल पहले जब श्री-श्री ने उसे उसकी नौकरी से निकाल दिया था तो आपने ही उसे शरण दी थी उसे अपनी मुलाजमत में रखा था।"

“उसकी वजह भी महज इतनी थी कि मैं जानकी को चोट देने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी, और सहगल मेरे लिए काम का आदमी हो सकता था। उससे भी मुझे ब्लूलाइन के बहुत कारोबारी सीक्रेट हासिल हुए थे। लेकिन फिर भी जानकी ने उसे अच्छा सबक दिया था और उसे लम्बी जेल हुई थी।"

“वह जेल से छूट चुका है। आपको मालूम है?"

“हां। संजना ने बताया था।”

“जेल से छूटने के बाद क्या उसने आपसे मुलाकात की थी?" "नहीं। लेकिन सुमेश सहगल का इस मामले से क्या मतलब है?" मदारी ने जवाब देने के लिए मुंह खोला ही था, कि एकाएक उसका मोबाइल बजने लगा।

“ऊह।” मदारी ने बुरा सा मुंह बनाया और अपार खेद का प्रदर्शन करता हुआ बोला “है न पुलिसवाले का मोबाइल इसीलिए हमेशा गलत वक्त पर बजता है। और जब बजता है तो उठाना ही पड़ता है। एक्सक्यूज मी मनोरमा जी।”

उसने अपना मोबाइल निकालकर कान से लगाया और अपने बोला “जय भोलेनाथ।”

फिर दूसरी तरफ से जो कहा गया, उसे सुनकर मदारी उछल पड़ा। उसके हाथ से मोबाइल छूटते-छूटते बचा था।
“फौरन पहुंचता हूं जजमान।” उसने कहा और जल्दी फोन डिस्कनेक्ट करके फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।
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“अ...अरे क्या हुआ इंस्पेक्टर?” नैना ने चकित होकर पूछा। “वही हुआ जो पिछली बार हुआ था मनोरमाजी।” मदारी ठिठककर बोला।

"क..क्या ?"

"कल।"

"व्हाट?" नैना उछल पड़ी “अब किसका कत्ल हो गया?"

"बताने का वक्त नहीं है। फिर मिलेंगे। जय भोलेनाथ।" उसने अपना रूल वाला हाथ उठाकर एक बार जोर से नगाड़ा बजाया, फिर वह घूमा और हवा के झोंके की तरह नैना के चैम्बर से बाहर निकल गया।

इंस्पेक्टर मदारी अपने पुलिस दल के साथ मेंढक की तरह फुदकता हुआ जानकी लाल की कोठी पर पहुंचा तो रीनी के बेडरूम में संदीप की लाश को औंधे मुंह पड़े पाया।

गोली उसकी पीठ में गरदन के ठीक नीचे लगी थी। जिसके सुराख से ढेर सारा खून बहकर नीचे फर्श पर तालाब की शक्ल अख्तियार कर चुका था।

उसके दाहिने हाथ के करीब ही वह रिवॉल्वर उपेक्षित सा पड़ा था, जिससे अपनी मृत्युपूर्व वह रीनी को निशाना बनाने वाला था।

रीनी एकदम सही सलामत थी और कमरे से बाहर दो लेडी कांस्टेबिलों से घिरी हक्की-बक्की सी खड़ी थी। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था और आंखें अतिरेक से फटी हुई थीं, जैसे कि वहां जो हुआ उस पर उसे तब भी यकीन नहीं आ सका था।

मदारी की पैनी निगाहों ने कुछ ही पलों में मौकाए वारदात का जायजा ले लिया था।

सब-इंस्पेक्टर शर्मा पहले से वहां मौजूद था। मदारी को फोन करके संदीप के कत्ल की खबर शर्मा ने ही दी थी।
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05-31-2021, 12:12 PM,
#88
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“जय भोलेनाथ की।” मदारी ने अपना रूल हिलाकर बड़े अवसाद भरे भाव से नारा लगाया और जैसे भारी अफसोस जताता हुआ बोला “तो एक पापी...ऊह शरीफ और दुनिया से रुख्सत हो गया। भोले भंडारी इसकी आत्मा को शांति दे।”

कोई कुछ न बोला। फिजां में एक अजीब सी तनाव भरी खामोशी छाई रही।

मदारी एकाएक शर्मा की ओर घूमा तो शर्मा सावधान हो गया। “फरमाएं जजमान।" वह शर्मा से बोला “यह कैसे हुआ?"

शर्मा पहले ही रीनी का बयान ले चुका था। उसने सारा वाक्या मदारी को बयान कर दिया।

रीनी ने शर्मा से कुछ भी नहीं छुपाया था। उसने अक्षरशः वह सब बता दिया था जो संदीप की मौत से पहले वहां हुआ था।

उसने शर्मा को यह भी बता दिया था कि संदीप की फोन पर अपनी भूतपूर्व बीवी कोमल से हुई तमाम बातें सुनने के बाद किस तरह उसका खून खौल उठा था, और वह कैसे जख्मी नागिन बनकर संदीप पर टूट पड़ी थी। मगर फिर कैसे एकाएक संदीप ने पासा पलट दिया था और सारा भेद खुल जाने के बाद वह उसी के रिवॉल्वर से उसकी जान लेने पर
आमादा हो गया था।

यह सच है कि भेद खुल जाने के बाद संदीप उसे किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ने वाला था और वह उसे शूट करने का पक्का इरादा भी बना चुका था। और रीनी ने भी अपनी मौत को तकरीबन स्वीकार कर ही लिया था, लेकिन ठीक तभी एक अप्रत्याशित घटना हुई थी।

उस वक्त बेडरूम के प्रवेश द्वार की ओर संदीप की पीठ थी। इससे पहले कि संदीप उसे शूट कर पाता, प्रवेश द्वार की तरफ से एक बेआवाज गोली पीछे से संदीप की पीठ में आकर धंस गई थी।

गोली बेहद नाजुक जगह पर लगी थी। संदीप के हलक से । केवल एक घुटी-घुटी सी चीख निकली थी। अगले ही पल वह रिवॉल्वर समेत औंधे मुंह फर्श पर ढेर हो गया था और देखते ही देखते उसका जिस्म निश्चेष्ट हो गया था।

उसी समय कोठी की एक मैड दूध का गिलास लेकर बेडरूम में यी थी। फिर उसी ने पुलिस को फोन किया था।

संदीप पर किसने गोली चलाई थी, उसे रीनी न देख सकी थी। न ही कोठी में मौजूदा किसी अन्य नौकर ने ही उसे देखा था।

“जय डमरूवाले की।” शर्मा खामोश हुआ तो मदारी ने नारा सा लगाया और बड़े शायराना अंदाज में बोला “फिर तेरी कहानी याद आयी।"

“ज...जी....।” शर्मा के चेहरे पर असमंजस के भाव आए।
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“नहीं समझे श्रीमान।” मदारी ने कहा “कोई बात नहीं, मैं समझाता हूं। जरा इससे पिछले कत्ल के वाक्ये को याद करो। दोनों आपस में काफी मिलते-जुलते हैं।"

“अ...आपका मतलब संजना के कत्ल से है सर?"

“बजा फरमाया शर्मा जजमान। जरा याद करो, वहां भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ था। जो कत्ल करने जा रहा था, मेरा मतलब है कि जा रही थी, खुद वही कत्ल हो गई थी और उसे भी ठीक वैसे ही शूट किया गया था जैसे कि सियावर रामचंद्र जी ने ओट से बालि को शूट किया था।"

“ऑय एम सॉरी सर।” शर्मा ने प्रतिवाद किया “अभी यह स्थापित नहीं हुआ है कि मुल्जिमा ने जो बताया वह सच है।"

"हां। यह तो है श्रीमान।” मदारी तत्काल रीनी की ओर मुखातिब हुआ, फिर उसके करीब पहुंचकर उसके सहमे चेहरे
पर अपनी निगाहें गड़ाता हुआ बोला “माफी चाहता हूं श्रीमती जी। लेकिन हालात बहुत नाजुक हैं। लिहाजा न चाहते हुए भी आपसे यह पुलिसिया सवालात करने पड़ रहे हैं। उम्मीद है आप इसके लिए मुझे क्षमा कर देंगी और पूरे दम-खम से मेरे सवालों का जवाब देंगी।"

“ज..जो कुछ हुआ मैं पहले ही तुम्हारे इंस्पेक्टर को बता चुकी हूं।” रीनी ने अपनी खामोशी तोड़ी “और जो मैंने बताया वही सच है।"

“गुस्ताखी माफ श्रीमतीजी। मैंने आपके दावे को चैलेंज नहीं किया।" "त...तो फिर?" रीनी उलझकर बोली।

“अपनी भूतपूर्व बीवी और आपकी सौतेली बहन कोमल से... ।” मदारी ने एक उड़ती निगाह संदीप की लाश पर डाली, फिर बोला “मरहूम श्रीमान को आपने आखिर ऐसा क्या कहते सुन लिया था जो आप आपे से बाहर हो गई थीं और रिवॉल्वर लेकर फातिहा पढ़ने के लिए...।" उसने फिर संदीप की लाश को देखा “मरहूम श्रीमान पर चढ़ दौड़ी।"

“यह जानकर क्या मैं आपे में रह सकती थी इंस्पेक्टर कि मैंने जिसे दिलोजान से चाहा और सारी दुनिया के खिलाफ जिससे सात फेरे लिए, उसने कभी मुझे चाहा ही नहीं। उसने तो महज मेरे पापा की दौलत की खातिर मुझसे शादी की थी
और..."

“और क्या श्रीमती जी?"

"और यह कि...।” रीनी चाहकर भी अपनी उत्तेजना को दबा नहीं सकी थी “वह आज भी अपनी तलाकशुदा बीवी को प्यार करता है और उसे हर कीमत पर दोबारा हासिल करना चाहता है। इसके लिए वह पूरी तरह कमर भी कसे हुए था।"

“क...क्या कमर कसे हुए था?"

"उसने मेरे पापा के कत्ल की साजिश रची थी। उनके कत्ल के षड्यंत्र में उसने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।"

“उ...उसने फोन पर यह कहा था?" मदारी के चेहरे पर हैरत के भाव आए।

“हां। मैंने अच्छी तरह से सुना था। एक सुपारी किलर को मेरे पापा के कत्ल की सुपारी दी थी, जिसका नाम...।” वह एक क्षण ठिठकी, फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “गोपाल है।"

“ए...ऐसा इसने खुद फोन पर कहा था?"

“हां। मैंने खुद अपने कानों से सुना था। इसने फोन पर कोमल को यह भी बताया था कि उसी किलर गोपाल को यह मेरे कत्ल की सुपारी भी दे चुका था और अब मैं महज कुछ ही दिनों की मेहमान थी। उसके बाद य...यह पूरी तरह से
आजाद था। मेरे पापा की सारी दौलत इस कंगले को हासिल हो जाने वाली थी और वह बहुत जल्द कोमल के पास लौट जाने वाला था।"

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मदारी और शर्मा की निगाह आपस में मिली। मदारी के जेहन में तेजी से कुछ खदकने लगा था।
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05-31-2021, 12:12 PM,
#89
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“उसके बाद ही आपके सब्र का प्याला छलका था और...।" प्रत्यक्षतः मदारी सुसंयत स्वर में बोला “आप रिवॉल्वर लेकर इस पर चढ़ दौड़ी थीं।"

“और क्या? वह सब अपने कानों से सुनने और देखने के बाद भला कौन लड़की होगी तो अपने आप पर कंट्रोल रख पाएगी।"

“यह रिवॉल्वर जो आपके मरहूम श्रीमान के पास पड़ा है, यही आपका रिवॉल्वर है न?"

“हां। इस शैतान ने उसे मुझसे जबरदस्ती हथिया लिया था।" “यह रिवॉल्वर आपके पास कहां से आया?"

“यह मेरे पापा का लाइसेंसी रिवॉल्वर है, जो मैं जानती थी कि हमेशा उनके सोने के कमरे में मौजूद रहता था और जिसे वह हमेशा लोड करके रखते थे। मैं यहां से उल्टे पांव पापा के कमरे में गई थी और यह रिवॉल्वर लेकर वापस लौटी थी। उस वक्त गुस्से की ज्यादती के कारण मेरा बुरा हाल था। इंस्पेक्टर और यह सच है कि मैं इस जलील आदमी को कत्ल कर देने का पूरा इरादा रखती थी। लेकिन...।"

“लेकिन इस जलील श्रीमान ने पासा पलट दिया था और...।" मदारी ने उसकी बात पूरी की “खुद आपकी जान पर बन
आयी थी।"

“ह...हां।” रीनी के शरीर ने जोर की झुरझुरी ली, जैसे कि वह दृश्य उसके दिलोदिमाग पर घूम गया हो “मगर उसके बाद अचानक जो हुआ उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।"

“क्या सबूत है कि आपने जो कहा, सच कहा है? बहुत मुमकिन है कि आपने ही इसका फातिहा पढ़ा हो।” मदारी ने शंका जताई “और फिर रिवॉल्वर इसके पास फेंक दिया हो।"

“सारे सबूत यहीं मौके पर ही मौजूद हैं इंस्पेक्टर।” रीनी बड़े आत्मविश्वास से बोली “मेरे पापा का रिवॉल्वर सामने ही पड़ा है। तुम तस्दीक कर सकते हो कि उससे कोई गोली नहीं चली। वह गोली तो हरगिज भी नहीं चली जिससे कि संदीप की मौत हुई। इसका यह सेलफोन भी यहीं मौजूद है। उसकी कॉल डिटेल तुम्हें बता देंगी कि इस घटना से पहले यह कोमल से बातें कर रहा था। उससे पहले भी अगर इसने किसी और से बात की होगी तो वह भी तुम्हें मालूम हो जाएगा।"

"हूं।” मदारी ने संजीदगी से हुंकार भरी। फिर सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला “क्या इसने कोमल से पहले भी किसी
और से बात की थी?"

"मुझे नहीं पता। मैं जब यहां आयी थी तो यह कोमल से ही बात कर रहा था और काफी घुट-घुटकर बोल रहा था, जैसे कि अपनी आवाज को दबाना चाहता हो। इसी बात से मुझे शक हुआ और मैं छुपकर इसकी बातें सुनने लगी थी। उसके बाद जो मैंने सुना तो म..मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गई। एक पल के लिए मेरा दिमाग जैसे सुन्न हो गया।"

“उसके बाद आप वापस लौट गईं और सीधे श्री-श्री के कमरे में पहुंची, जहां कि हमेशा रिवॉल्वर मौजूद रहता था? उसके बाद आपने..."
-
-
"हां इंस्पेक्टर हां।” रीनी उसकी बात बीच में काटकर जबड़े भींचती हुई बोली। उसके गोरे चेहरे की नसों में फिर तनाव
आ गया था “उसके बाद जो हुआ, वह मैं तुम्हारे इस सब-इंस्पेक्टर को बता ही चुकी हूं।"

“जय भोलेनाथ की।” मदारी ने फिर नारा लगाया, उसके पश्चात् बोला “मुझे याद है आपने शर्मा जजमान को क्या बताया था। फिर भी अगर आप एक आखिरी सवाल का जवाब और दे दें तो यह आपका मेरे वीआरएस पर भारी अहसान होगा। जिस पर कि इस वक्त आप नहीं जानती कितना भयानक खतरा मंडरा रहा है।"

रीनी के चेहरे पर उलझन के भाव आए।

"वह किस्सा फिर कभी।” मदारी उसके चेहरे के भावों को पढ़ता हुआ बोला “क्या आपको अपने पतिदेव श्रीमान मरहूम
की मौत का अफसोस है?"

"बहुत सख्त अफसोस है।” रीनी तमककर अपने होंठ भींचती हुई बोली “और मुझे यह अफसोस हमेशा रहेगा कि यह हरामजादा मेरे अपने हाथों से नहीं मरा।"

मदारी हड़बड़ाया। शर्मा भी हैरानी से रीनी को देखने लगा था। “क्या पता यह आपके ही कर कमलों से मरा हो?" मदारी ने कहा “और आप पुलिस को गुमराह करने के लिए झूठ बोल रही हो?"

“अगर ऐसा है तो फिर तुम मुझे गिरफ्तार करके फांसी पर चढ़ा दो, अब तो मुझे वैसे भी जीने की चाह नहीं है।” उसके लहजे में करुणा फूट पड़ी थी “जिसे मैंने अपना सब कुछ माना, जिसके लिए मैं अपने डियर डैडी से भी बगावत करने में नहीं हिचकी, वह इतना बड़ा शैतान निकला। उसने पहले मेरे पापा का कत्ल करवाया, उसके बाद मुझे भी ठिकाने लगाने का प्लान बनाए बैठा था।"

“अगर ऐसा है तब तो आपकी यह मुराद वैसे ही पूरी हो जाने वाली है श्रीमती।"

"क...क्या मतलब?"

“अगर आपने सही कहा है तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके कत्ल की भी सुपारी दी जा चुकी है और जिस खतरनाक किलर ने, श्री-श्री का फातिहा पढ़ा, अब वह आपका भी फातिहा पढ़ने की कोशिश करेगा और उस गोपालम् को मैं अच्छी तरह जानता हूं। उसके नाकाम होने के चांस बहुत कम हैं।"

“म...मैंने कहा न इंस्पेक्टर, मुझे अब जीने की कोई चाहत नहीं है, क्योंकि मेरे जीने का अब कोई मकसद नहीं है और बिना मकसद की जिंदगी के कोई मायने नहीं होते।" ‘

“यह तो खैर आपने ठीक कहा श्रीमती। लेकिन मकसद मिल सकता है।"

“क...क्या कहा तुमने?" ‘

"बस भोलेनाथ के नाम पर एक सवाल और...?"

"वह भी पू..पूछ लो।" ‘

“अभी आपने फरमाया कि मरहूम जजमान श्री-श्री के कत्ल के षड्यंत्र में शरीक था।”

"ह...हां । मैंने यह कहा था।"

"तो मेरा सवाल यह है कि श्रीमती कि वह षड्यंत्र किसने रचा था? मरहूम संदीप जजमान के अलावा उस षड्यंत्र में
और कौन लोग शामिल थे?"

“मुझे नहीं पता इंस्पेक्टर। फोन पर इस शैतान की बातें सुनकर मैंने जो नतीजा निकाला था, वह यही था। इसने पापा के षड्यंत्र में शामिल अपने साथियों का नाम नहीं लिया था।"

“यह भी ठीक है। लेकिन श्री-श्री के कत्ल से आपके मरहूम जजमान को आखिर क्या हासिल होने वाला था? बात अगर खाली दौलत की थी तो वह तो वैसे ही उसे हासिल हो चुकी थी। आप आखिर श्री-श्री की इकलौती लाड़ली थीं और जो कुछ उनका था आखिरकार तो वह आप दोनों का ही हो जाने वाला था?"

“पापा संदीप को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। हमारी शादी केवल मेरी जिद का नतीजा थी। और संदीप को हमेशा यह खौफ सताता रहता था कि अगर पापा जिंदा रहते तो वह यकीनन हम दोनों का तलाक करा देने वाले थे। और पापा
का जो मिजाज था, उसके मद्देनजर वह सचमुच हमारा तलाक करा देते तो कोई बड़ी बात नहीं थी।"

“क्या श्री-श्री सचमुच आप दोनों का तलाक करा देने वाले थे?” “मैंने कहा न, पापा का जो मिजाज था, उसके जेरेसाया वह ऐसा कर सकते थे।"

"आप तलाक के लिए राजी हो जाती?"

"इसका यह चेहरा पहले मेरे सामने आ जाता तो मेरे इंकार की कहां गुंजाइश थी।"
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05-31-2021, 12:12 PM,
#90
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
मदारी खामोश हो गया। उसने फिर कोई सवाल नहीं किया। “त...तो क्या मैं अपने आपको गिरफ्तार समझू इंस्पेक्टर?" रीनी ने सशंक भाव से पूछा।

“फिलहाल तो ऐसा ही है श्रीमती।” मदारी खेद भरे स्वर में बोला। “यानी कि मैं गिरफ्तार हूं?"

“फ...फारेंसिक आने के बाद?"
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“उसके बाद तफ्तीश में अगर हू-ब-हू वही साबित होता है जो
आपने बताया।"

" तो फिर आपकी गिरफ्तारी की मेरे पास कोई वजह नहीं होगी। अलबत्ता हमारी निगरानी में आप को फिर भी रहना होगा।"

“व...वह क्यों?"

“समझने की कोशिश कीजिए श्रीमती, एक खतरनाक किलर को आपके कत्ल की सुपारी दी जा चुकी है।” मदारी उसे समझाने वाले भाव से बोला “लिहाजा आपके सिर पर मौत का खतरा मंडरा रहा है। तीन कत्ल तो पहले हो चुके हैं, अगर आपका भी राम नाम सत्य हो गया तो समझ लीजिए कि मेरे वीआरएस का बेड़ागर्क हो गया।"

“मगर वह सुपारी देने वाला खुद मर चुका है और यह खबर बहुत जल्द उस किलर तक भी पहुंच जाएगी, फिर उसके लिए मुझे मारना जरूरी नहीं होगा।"

“क्या पता जरूरी होगा, या नहीं होगा। बहरहाल, इस मामले में इंस्पेक्टर मदारी कोई जोखिम नहीं लेने वाला। और फिर इसमें आपको ऐतराज क्यों है?"

रीनी ने कोई जवाब न दिया। वह बेचैनी से पहलू बदलने लगी। तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर उसे खबर दी कि फारेंसिक टीम का स्टाफ वहां पहुंच गया था।

उस शोख हसीना की सोहबत में तीन बरस कब गुजर गए अजय को पता ही न चला। इस दरम्यान आलोका से उसकी अनगिनत मुलाकातें हुईं और काफी वक्त उन दोनों ने साथ-साथ बिताया था। उसके चेहरे पर स्थायी रूप से छा चुके गम और उदासी की परतें अब पिघलने लगी थी और उसकी जगह आलोका नाम की बहार मुस्कराने लगी थी।

आलोका के जिंदगी में आने के बाद वह पहला होली का त्योहार पड़ा था। अगरचे कि पहले भी न जाने कितने होली
के त्योहार आए और चले गए थे, लेकिन अजय ने कभी रंगों व गुलाल के एक कण को भी अपने कपड़ों पर नहीं पड़ने दिया था क्योंकि वह खुशियों और रंगों से नफरत करता था। वह चुलबुली हसीना यह जानती थी, शायद इसीलिए होली से दो रोज पहले उससे मिलने आयी थी, मगर अजय नहीं जानता था कि वह पूरी तैयारी के साथ आयी थी।

उस दिन भी उसने अपना पसंदीदा सलवार-सूट पहन रखा था। सौम्य, स्निग्ध और ताजे गुलाब से खिले चेहरे पर इठलाती मुस्कान, लेकिन अपने दोनों हाथों को उसने पीठ पीछे छिपा रखा था। बालों की शरारती लट उसके माथे को चूम रही थी। इरादों में मुस्कराती खुशियों की धवल चांदनी बिखरी हुई थी।

"जेंटलमैन ।” वह आते ही अजय से बोली थी “होली मुबारक हो।”

“अरे।” अजय चौंक पड़ा और फिर हैरान होकर बोला “आज कहां होली है। उसमें तो अभी दो दिन बाकी हैं।"

“दो दिन बाद ब्रज की होली है। आज दिल्ली की होली है।
और दिल्ली में आलोका रहती है, जो होली की दीवानी है। जानते हो क्यों?"

“नहीं, तुमने कभी बताया ही नहीं।"

“क्योंकि रंगों के बिना जिंदगी की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। इसलिए...।"

“क...क्या इसीलिए?” अजय ने पूछा। उसके चेहरे पर सवाल उभर आया था।

"होली है।” आलोका ने एकाएक नारा सा लगाया और फिर अपनी पीठ-पीछे से दोनों हाथ निकालकर उसने ढेर सारे गुलाल से अजय को तर-बतर कर दिया।

अजय के लिए वह अप्रत्याशित था। वह सोच भी नहीं सकता था कि आलोका ने अपनी मुट्ठियों में ढेर सारा गुलाल छिपा रखा था। अजय की उस पर नजर न पड़ जाए इसीलिए उसने अपने हाथों को पीठ पीछे कर रखा था।

वह बुरी तरह बौखला उठा। जीवन में पहली बार किसी ने उस पर गुलाल उड़ेला था, जिससे वह नफरत करता था। वह बुरी तरह तमतमा उठा। उसने आलोका को सख्ती से डपट दिया।

“अरे, तुम्हें क्या हुआ?” आलोका चिंहुककर बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखने लगी थी।

“ख..खबरदार अगर तुमने दोबारा मेरे ऊपर रंग डाला तो?" अजय तमतमाकर बोला।

“अरे। मगर क्यों?"

“मैं होली नहीं खेलता। मुझे रंगों से नफरत है।"

"रंगों से नफरत है।” वह बला हैरान हुई थी। फिर जैसे उसने गुस्से से फूंक मारकर मस्तक पर लहराती बालों की लट को उड़ाया था। फिर वह तमककर बोली थी “इसीलिए तो तुम्हारी जिंदगी इतनी बेरंग है। रंगों से नफरत करने वाले की जिंदगी
आखिर कैसे रंगीन हो सकती है।"

अजय उसे देखता ही रह गया। उसकी जुबान तालू से जा चिपकी थी।

कितना सही कहा था उसने। रंगों से नफरत करने वाले की जिंदगी रंगीन हो भी कैसे सकती है। शायद इसीलिए उसकी जिंदगी इतनी बदरंग थी।

“अब इस तरह आंखें फाड़-फाड़कर मुझे क्या देख रहे हो?" उसे एकटक अपनी तरफ देखता पाकर वह बोली “पहले कभी कोई खूबसूरत लड़की नहीं देखी क्या? या फिर आज मैं ही ज्यादा हसीन लग रही हूं।"

उसकी दूसरी बात सही थी। पता नहीं वह उस लम्हे की कमजोरी थी या फिर उसके जज्बातों की ठहरी हलचल थी,
जिसे आकर उसने ही उठाया था। लेकिन यह सच है कि उस घड़ी उसकी मादक खूबसूरती में अजय को एक अजीब सी कशिश नजर आयी थी।

“ऑय एम सॉरी आलोका।” अजय धीरे से बोला “तुमने ठीक कहा। आज के बाद मैं रंगों से नफरत नहीं करूंगा। मुझे माफ कर देना।"

"अच्छा ठीक है।" वह अपनी पहले से ही फूली छाती और ज्यादा फुलाकर बोली “अब तुम इतनी रिक्वेस्ट कर रहे हो तो मैंने तुम्हें माफ किया।"

अजय पूर्ववत आंखें फैलाए अपलक उसे देखता रहा।
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