Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:01 PM,
#11
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“कोई फायदा नहीं माई चाईल्ड।” जानकी लाल इत्मिनान से सांस भरकर बोला “बहुत लम्बी लिस्ट है ऐसे लोगों की, जिन्हें मुझे जिंदा देखना मंजूर नहीं है। तुम उन्हें याद नहीं रख पाओगी।"

“इ...इसका मतलब आप उन्हें जानते हैं?" उसने अपने पिता को घूरकर देखा था “आप अपने उन तमाम दुश्मनों को जानते हैं जो आपको जीवित रहने देना नहीं चाहते।"

“सवाल बहुत हैं बेटी, मगर जवाब एक ही है।"

“और वह एक जवाब क्या है डियर डैडी?"

“धीरज रखो और इंतजार करो।"

“किसका इंतजार करूं?"

“आने वाले वक्त का? वही वक्त तुम्हारे तमाम सवालों का जवाब देने वाला है।"

“और वह वक्त कब आएगा?” उसने बच्चों जैसी जिद के साथ पूछा।

जवाब देने के बजाये जानकी लाल ने उसकी बगल में खड़े संदीप पर नजर डाली तो अभी तक खामोश पुतले की तरह खड़े संदीप के चेहरे पर सहसा बेचैनी के भाव उभरे। उसकी नजरों में ऐसा तीखापन था कि संदीप एक पल भी उन नजरों का सामना न कर सका और वह जल्दी से परे देखने लगा।

“अ...आप संदीप को ऐसे क्या देख रहे हैं डैडी?” रीनी पूछे बिना न रह सकी थी “अगर आपका शक संदीप पर है तो खातिर जमा रखिए, संदीप की गारंटी मैं लेती हूं। यह मुजरिम हरगिज भी नहीं है।"

“म...मैं इसे मुजरिम कहां ठहरा रहा हूं बेटी।” जानकी लाल हड़बड़ाकर जल्दी से बोला “न ही इस पर कोई इल्जाम लगा रहा हूं। यह भला मुजरिम कैसे हो सकता है। यह तो मेरा अपना है। मेरी बेटी का सुहाग है मेरा दामाद है।"

“फिर भी आप इसे ऐसे संदेह की नजर से देख रहे हैं?"

“आज कोई पहली बार थोड़े ही न देख रहा हूं।” जानकी लाल ने अपने दामाद पर फिर से एक उड़ती नजर डालकर अपनी सफाई पेश की और चिकने-चुपड़े स्वर में बोला “हमेशा ही देखता हूं। यह जब भी मेरी आंखों के सामने आता है, मैं इसे नजर भर देखने लगता हूं और इसमें कुछ खोजने लगता हूं।"

“क...क्या खोजने लगते हैं आप संदीप में?"

“वह खूबी, जिसने तुझे इसका दीवाना बना दिया। तू जानती है न बेटी, तेरी इस पसंद से मुझे जरा भी इत्तेफाक नहीं था और फिर यह शादीशुदा था। इसने अपनी बीवी को तलाक देकर तुमसे शादी की है। यह शादी नहीं असल में एक समझौता था और सबकुछ केवल तेरी जिद का नतीजा था।"

“ड...डैडी...।” रीनी आहत होकर बोली “आप बात को घुमा रहे हैं। यह भी भला कोई वक्त है इन बातों का?"

"ठीक कहा तमने बेटी। यह इन बातों का वक्त नहीं है।"

“और फिर संदीप और मेरे रिश्ते के बीच में आप ही विलेन बनकर खड़े हुए थे। तब बहुत मजबूर होकर संदीप ने अपना वह पहला रिश्ता कबूल किया था और बेबसी में उस कोमल से शादी की थी, जो इसकी नहीं इसके मां-बाप की पसंद थी। आपका वह कारनामा आखिरकार मुझ पर उजागर हो ही गया था। तब मैंने...”

“अब खत्म करो न बेटी। क्यों बात को बढ़ा रही हो?"

रीनी खामोश हो गई।

“अब अगर तुम लोग इजाजत दो तो..।” जानकी लाल बोला "मैं अपने एकाउंटेंट साहब से जरा कुछ कारोबारी गुफ्तगू कर लूं।"

“जरूर कीजिए डैड। हमें कोई ऐतराज नहीं है?"

“लेकिन मुझे ऐतराज है बेटी। सीक्रेसी नाम का भी कोई आखिर कोई लफ्ज होता है दुनिया में?"

“ओह। तो हमारे यहां रहने से आपके बिजनेस की सीक्रेसी जा रही है।” रीनी नथुने फुलाकर बोली।
उसका चेहरा तमतमाने लगा था।

“तुम्हारे यहां होने से सीक्रेसी नहीं जा रही है बेटी।" जानकी लाल ने संशोधन किया “तू तो मेरी जिंदगी है, भला तुझसे मुझे क्या गिला।”

"तो फिर?"

“समझो।" उसका लहजा एकाएक अर्थपूर्ण हो गया। उसने एक तिरछी कुटिल निगाह संदीप पर डाली और फिर परे देखता हुआ बोला “समझो माई डॉल ।”

रीनी ने मतलब समझा तो उसका खूबसूरत सफेद मुखड़ा पलक झपकते ही अपमान से टमाटर की तरह सुर्ख हो गया।
“य..यह मेरे संदीप का अपमान है डैडी।" वह तमतमा कर बोली।

“हो सकता है।” जानकी लाल पूरी ढिठाई से बोला, फिर उसकी निगाह भटककर पुनः संदीप पर ठहर गई।

भोली-नासमझ रीनी उन निगाहों का मतलब क्या समझती, लेकिन संदीप नासमझ और भोला नहीं था।
उससे बेहतर उन खामोश निगाहों का मतलब दूसरा कोई नहीं समझ सकता था।
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05-31-2021, 12:01 PM,
#12
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“अ...अब मैं संदीप का और अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती डैडी।” रीनी एकाएक बिफर पड़ी। वह संदीप का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लगभग खींचती सी बोली “यहां से चलो फौरन।"

संदीप हिचकिचाया। लेकिन फिर उसने रीनी का प्रतिरोध नहीं किया। वह वार्ड का दरवाजा खोलकर रीनी के साथ बाहर निकल गया और वार्ड का दरवाजा पुनः बंद हो गया।

लेकिन जाते-जाते भी रीनी से बचाकर वह जानकी लाल की तरफ मुस्कराहट उछालना नहीं भूला था।

एक भेदभरी कुटिल मुस्कराहट, जिसमें जानकी लाल के लिए एक चैलेंज छिपा था। उस चैलेंज को जानकी लाल ने फौरन समझ भी लिया लेकिन प्रत्युत्तर में उसने कोई रियेक्ट नहीं किया।
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जब वह लोग वार्ड से बाहर निकल गए और फिजां में पैना सन्नाटा छा गया तो जानकी लाल को एकाएक जैसे अजय का खयाल आया। वह अजय की ओर मुखातिब हुआ जो टकटकी लगाये कभी जानकी लाल को तो कभी संदीप को ही देख रहा था और दोनों की कटार जैसी तीखी नजरों के खामोश सवाल-जवाब को भी महसूस कर रहा था।

“एक मजे की बात बताऊं एकाउंटेंट साहब।” जानकी लाल उससे मुखातिब होकर बोला।

"ज...जी.. ।” अजय सावधान हुआ। उसने जानकी लाल को देखा।

“सारा शहर जानता है कि यह जलील लड़का मेरा दामाद है। मगर यह केवल मैं जानता हूं कि..।” जानकी लाल के चेहरे पर एकाएक घृणा और नफरत के भाव फैल गए “यह मेरा कैसा दामाद है। यह केवल फसाना बनाने के लिए मेरे घर में आया है। और जब यह परी बेहयाई से आमादा ही है तो फसाना तो यकीनन बनकर रहेगा।"

"ज..जी.... मैं आपका मतलब नहीं समझा।" अजय असमंजस में नजर आने लगा था।

“फिलहाल केवल इतना ही समझ लो, आने वाले कल में अगर मुझे कुछ होता है तो यकीन मानो, मेरी मौत का गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ यही इंसान होगा, या फिर इसका इसके जैसा ही कमीना बाप।"

“य...यह आप क्या कह रहे हैं सर?” अजय हैरानी से बोला था।

“अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई सोल्जर। और अगर इसे कुछ होता है तो इसके कत्ल के गुनाहगार के तौर पर तुम निःसंकोच मेरा नाम ले सकते हो।"

“ज...जी...।” अजय हैरत से भर गया। उसने गहन अविश्वास से अपने एम्प्लायर को देखा।

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“खैर... । जानकी लाल ने खुद को सामान्य किया और सहज होकर बोला “उस टेंडर का रिजल्ट क्या रहा जो कल खुलने वाला था?"

अजय के चेहरे पर एकाएक मायूसी फैलती चली गई। फिर कोई जवाब देने के बजाये उसने अपना चेहरा झुका लिया।

"तुम्हारा जवाब मुझे मिल गया ब्रेवमैन।" जानकी लाल गहरी सांस भरकर बोला “यह टेंडर भी ड्रीम ड्रैगन ने हमसे हथिया लिया। राइट?”

“ए..ऐसा कैसे चलेगा सर।” अजय ने इस बार अपना चेहरा उठाया और तनिक फिक्रमंद स्वर में बोला "इतना अरसा हो गया और हमारी कम्पनी को एक भी नया टेंडर नहीं मिला। ड्रीम ड्रैगन की मालकिन नैना चौधरी हमारी कम्पनी से न जाने कैसी दुश्मनी निकाल रही है। वह चुन-चुनकर वह सारे टेंडर हथिया रही है, जो आज से पहले केवल हमें ही मिलते आए थे?"

“क्या महज यही बात यह स्पष्ट इशारा नहीं है एकाउंटेंट साहब कि कहीं डैमेज है। हमारी कंपनी में कोई भेदिया पैदा हो गया है, जो हमारे तमाम के तमाम टेंडर सीक्रेट नैना चौधरी तक पहुंचा रहा है।"

"भ..भेदिया?"

"तकरीबन सात साल पहले भी एक बार ऐसा हुआ था। इस कम्पनी में एक भेदिया पैदा हो गया था, जिसने ऐसे ही हमारे सीक्रेट ड्रीम ड्रैगन को पहुंचाकर हमें बहुत चोट पहुंचाई थी हमें करोड़ों का नुकसान उठाने पर मजबूर कर दिया था। मजे की बात यह है कि वह मेरा बहुत करीबी और बहुत विश्वासपात्र था। जानते हो उसका क्या नाम था?"
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"आ...आप कहीं सुमेश की बात तो नहीं कर रहे हैं सर?" अजय के जेहन को झटका सा लगा था। वह अपने दिमाग पर जोर डालता हुआ बोला।

“ठीक कहा तुमने?” जानकी लाल ने फौरन सहमति में सिर हिलाया “उसका नाम सुमेश सहगल था। तुमसे पहले वही हमारी कम्पनी का चीफ एकाउंटेंट था।”

“लेकिन वह तो इस वक्त जेल में होगा? जहां तक मुझे याद है, उसे अदालत ने काफी लम्बी सजा सुनाई थी।"

“एकदम सही याद है तुम्हें ? अदालत ने उसे सात साल बामुशक्कत कैद की सजा सुनाई थी, जिसे पूरी होने में अभी पूरा एक साल बाकी है। लेकिन यह सजा उसे कंपनी से गद्दारी करने के जुर्म में नहीं मिली थी। दरअसल कानून में ऐसी कोई दफा नहीं है, जिसके चलते ऐसे दगाबाजों को एक घंटे की भी सजा दिलाई जा सके। कमीने सहगल को वह सजा अपहरण और बलात्कार के जुर्म में मिली थी। उसने एक नाबालिग लड़की का अपहरण किया था, फिर उसके साथ कई-कई दिनों बलात्कार किया था।"

“क...क्या सचमुच सहगल ने ऐसा किया था सर?” अजय ने संदिग्ध भाव से जानकी लाल को देखा।
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05-31-2021, 12:01 PM,
#13
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“मैंने कहा न, जो जुर्म उसने किया था उसके लिए कानून में कोई सजा नहीं है। जबकि जुर्म तो उसने बराबर किया था और कड़ी सजा का भी वह हकदार था। लिहाजा उसका इंसाफ तो करना ही था।”

अजय जानकी लाल को देखता ही रह गया।

“वह इंसान सहगल ही था एकाउंटेंट साहब, जिसने हर किसी से मेरा विश्वास उठा दिया।" जानकी लाल ने आगे कहा “इस सहगल की नजीर मैंने इसीलिए बनाई थी ताकि दूसरे उससे सबक लेते और फिर हमारी कम्पनी में कोई गद्दार पैदा नहीं होता। लेकिन लगता है वह नजीरें धुल चुकी हैं उसका असर खत्म हो गया है। यह काम फिर से करना पड़ेगा।" उसने सहसा अजय की आंखों में अपलक देखा “अपने बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है।"

"जी?" अजय उछल पड़ा था। "क्या मतलब?"

“वह तुम जानते हो?" जानकी लाल का स्वर स्लेट की तरह सपाट व सख्त हो गया “ मेरे लिए किसी इंसान को दुनिया से उठा देना बहुत आसान है। लेकिन रहम उन पर आ जाता है, जो उस इंसान के पीछे होते हैं। सहगल के पीछे भी बहुत लोग थे. जो अगर वह दनिया से उठ जाता तो बेसहारा हो जाते। इसीलिए मैंने उसे दुनिया से नहीं उठाया था। तुम्हारे पीछे भी एक इंसान है। सुगंधा बहुत अच्छी लड़की है। तुम्हें जानकर हैरानी होगी, मैं उससे एक बार मिल चुका हूं।"

“सु...सुगंधा।” अजय चकित होकर बोला था। उसके जेहन को जबरदस्त झटका सा लगा था “आ...आप सुगंधा को जानते हैं?"

"बहुत अच्छी लड़की है बहुत प्यारी भी। दिलोजान से चाहती है तुम्हें। वैसे तो यह सरासर गलत है। अपने किसी एम्पलाई की व्यक्तिगत जिंदगी में ताक-झांक करना बहुत बुरी बात है। लेकिन कभी-कभी इंसान न चाहते हुए भी करने पर मजबूर हो जाता है अपनी न सही तो सुगंधा की खातिर ही लिहाज करना एकाउंटेंट साहब और मुझे आइंदा कोई नजीर बनाने पर मजबूर मत करना। अगर कुछ किया भी हो तो आगे कसम खा लेना। बदले में मैं आज तक की सारी तुम्हारी गलतियां माफ कर दूंगा।"

“आ...आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है सर...।” अजय का स्वर ना चाहते हुए भी लरज गया था “मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो मुझे नहीं करना चाहिए।"

“नहीं किया तो फिर कैसा डर!"

“मुझे कोई डर नहीं है। आप जैसे भी चाहें अपनी तसल्ली कर सकते हैं।"

"वह तो अब करना ही पड़ेगा, क्योंकि अगला टेंडर दो सौ करोड़ का है। और उस कंसाइनमेंट का हर टेंडर आज तक केवल ब्लूलाइन को ही मिलता है। यह मेरी कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल है। इस टेंडर को मैं हर कीमत पर हासिल करके रहूंगा उसे नैना चौधरी को मैं हरगिज भी नहीं हथियाने दूंगा।"

“म...मैं भी तो यही चाहता हूं सर।"

“खैर...।" जानकी लाल ने अचानक विषय बदला “जाने दो। फिलहाल एक काम है जो तुम्हें फौरन करना होगा एकाउंटेंट
साहब?"

“ज...जी कहिए।” अजय ने अनिश्चित भाव से उसे देखा।

जानकी लाल ने बताने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि एकाएक उसे ठिठक जाना पड़ा।

अचानक ही वातावरण में डुगडुगी की आवाज उभरना आरंभ हो गई। डुगडुगी की ठीक वैसी ही आवाज जैसे कि कोई मदारी बंदर की कलाबाजी का तमाशा दिखाते वक्त बजाता है।
दोनों चौंके।

“जहांपनाह का काम अगर मुझसे ताल्लुक रखता है तो किसी को भी तकल्लुफ करने की जरूरत नहीं है।" तभी एक नई आवाज फिजां में उभरी “मिलने के लिए बंदा यहीं हाजिर हो रहा है।"

दोनों की निगाहें तत्क्षण आवाज की दिशा में घूमी। उसी क्षण वार्ड का दरवाजा एक झटके से खुला और फिर किसी ने अंदर कदम रखा। उसके साथ ही डुगडुगी की आवाज भी तेज हो गयी थी।

जानकी लाल के साथ ही अजय ने भी उसे फौरन पहचाना। और उसे पहचानते ही वह दोनों बेसाख्ता चौंक पड़े। निगाहें आगंतुक पर इस तरह चिपक गईं जैसे कि फेवीकोल से चिपका दिया गया हो।
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05-31-2021, 12:01 PM,
#14
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
कोमल एक रेस्टोरेंट कम बियर बॉर के हॉल में मौजूद थी।
उसके हाथ में व्हिस्की से लबालब भरा गिलास था। वह कोने की एक खाली मेज पर अकेली बैठी थी। उस वक्त शाम के चार बजे का वक्त था इसलिए वहां भीड़भाड़ बिल्कुल भी नहीं थी। हाल में गिनती के ग्राहक ही बैठे थे।

कोमल बाईस साल की फैशन मॉडलों जैसी एक हसीन युवती थी। उसने मॉड स्टाइल में काला चुस्त सलवार-सूट पहन रखा था जो उस पर खूब फब रहा था। उस काले लिबास में उसका गोरा मुखड़ा चांद की तरह चमक रहा था और वह बेहद हसीन व सेक्सी लग रही थी।

वैसे तो उसका संजीदगी से कोई वास्ता नहीं था लेकिन उस वक्त उसके चेहरे पर संजीदगी छाई हुई थी। ऊपर से वह शांत और सहज नजर आ रही थी, पर अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा आंदोलित थी। जब उसकी बेचैनी ज्यादा बढ़ जाती थी तो वह पहलू बदलने लगती थी। फिर भी जब बेचैनी काबू में नहीं आती थी तो वह सिगरेट सुलगा लेती थी। इसके बावजूद बेचैनी बेकाबू होती थी तो वह अपने सामने मौजूद व्हिस्की के गिलास को उठाकर ड्रिंक का चूंट भरने लगती थी। उसके हाथों में एक ताजा सुलगाया सिगरेट था, जिसका अभी-अभी उसने एक लम्बा कश लिया था। लेकिन उसकी हालत में कोई फर्क नहीं आया था।

“एक्सक्यूज मी।” तभी एक अजनबी स्वर उसके कानों में पड़ा। उसने चौंककर चेहरा उठाया। उसकी सोचों की लड़ियां अचानक ही बिखर गईं। एकाग्रता भंग हो गई थी।

सामने सुमेश सहगल खड़ा था। उसने कीमती सूट पहन रखा था, जो उस पर काफी जंच रहा था। आंखों पर स्टाइलिश चश्मा, पैरों में चमकते लैदर शू, होठों पर सौम्य शिष्ट मुस्कान।

एक नजर में ही वह कोई बड़ी कम्पनी का घुटा हुआ एग्जीक्यूटिव नजर आ रहा था।

“क्या मैं आपके पास बैठ सकता हूं?” सहगल अपने स्वर को सौम्य बनाए रखने का भरसक प्रयास करता हुआ बोला। उसकी मुस्कराहट में कोई फर्क नहीं आया था।

जवाब देने के बजाये कोमल ने सिर से पांव तक सहगल का बारीकी से मुआयना किया, फिर उसने सिगरेट का कश लेकर अपने सामने गोल मेज के पार पड़ी खाली कुर्सी को देखा। उसके बाद उसकी निगाह अपने आस-पास खाली कुर्सियों पर घूम गई।

सहगल बड़े धैर्य के साथ उसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था।

"उधर क्या समस्या है?" कोमल का इशारा आस-पास की खाली मेजों की तरफ था।

“यह समस्या कम है क्या कि उधर कोई साथी नहीं है?" सहगल अपने स्वर में मिठास घोलता हुआ बोला “साथी भी आप जैसा दिलकश, जवान और हसीन।”

कोमल के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

“डैडियो।” वह बोली “काफी आशिक मिजाज पाया लगता है वह भी इस उम्र में। अगर तुम्हारी कोई बेटी होगी तो वह जरूर मेरी उम्र की ही होगी।"

“बजा फरमाया मोहतरमा।” सहगल पूर्ववत शांत भाव से बोला। उसने कोमल की बातों का जरा भी बुरा नहीं माना था “मैं इस उम्र में भी सचमुच बहुत आशिक मिजाज हूं और मेरी बेटी भी तुम्हारे जैसी ही ग्लैमरस गुड़िया है। लेकिन मेरा तुम पर लाइन मारने का इरादा नहीं है।”

“तो फिर ?” कोमल के माथे पर बल पड़ते चले गए।

“इसमें तुम्हारा भी फायदा है, बल्कि इसमें तुम्हारा ज्यादा फायदा है।”

"ओह, मेरा भी फायदा है।” उसने अपलक सहगल को देखा “एक बात कहूं डैडियो।”

“क्यों नहीं। जरूर कहो?"

“पहनावे से तुम जितने सलीकेदार लग रहे हो, शक्ल-सूरत से असल में उतने ही कमीने लग रहे हो।"

"क...क्या?" सहगल इस बार हडबडाया।

"फौरन यहां से चलते-फिरते-नजर आओ। और खबरदार...।" एकाएक उसके लहजे में चेतावनी उभरी “दोबारा मेरे करीब भी मत फटकना, वरना शोर मचाकर सारा शहर यहां इकट्ठा कर दूंगी। समझे।”

“समझा।" क्या मजाल जो सहगल ने उसके सख्त तेवरों का जरा सा भी बुरा माना हो। वह उसकी कड़ी चेतावनी को नजरंदाज करता हुआ पहले जैसे ही सहज और शांत भाव में बोला “मगर आप बिल्कुल भी नहीं समझ रही हैं मैडम। अगर ऐसी ही नासमझ बनी रहीं तो आपका अगला मुकाम निश्चित रूप से जेल होगी।”

"व्हाट नानसेंस!” कोमल पहले चौंकी फिर वह एकाएक भड़क उठी “यह क्या बकवास कर रहे हो तुम? किसका अगला मुकाम जेल होगा?"

“अगर..।” सहगल के होठों पर सहसा एक रहस्यमय मुस्कराहट उभरी “तुम्हारा वह आदमी जानकी लाल के बाडीगार्ड्स की गोलियों से हलाक न हुआ होता तो पुलिस अब तक उससे सबकुछ कबूलवा चुकी होती और तुम्हारा वह कांट्रेक्ट किलर गा..गाकर बल्कि बाकायदा डीजे की धुन के साथ ताल देकर पुलिस को यह बता चुका होता कि जानकी लाल सेठ के कत्ल की सुपारी उसे किसी और ने नहीं दी थी।"
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05-31-2021, 12:01 PM,
#15
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
कोमल बुरी तरह से हकबकाई। उस वक्त वह हल्के सुरूर में आ चुकी थी। उसका वह सुरूर पलक झपकते काफूर हो गया।"

“क...क्या बकते हो तुम?" वह बिफरकर बेअख्तियार बोली। लेकिन उसके बिफरने में खोखलापन साफ उजागर हो रहा था।

"तुम इस वक्त जो यह गमजदा बनी बैठी हो...।" सहगल अपने एक-एक लफ्ज को तोलता हुआ बोला “यह तुम्हारी कमअक्ली है मोहतरमा। जानकी लाल सेठ का जिंदा बच जाना तुम्हारे लिए जरा भी फिक्र की बात नहीं है। तुम्हें तो अपने किलर की मौत का जश्न मनाना चाहिए जो तुम्हारा नाम लेने के लिए इस वक्त दुनिया में मौजूद नहीं है। सच तो यह है कि मौजूदा हालात पूरी तरह तुम्हारे साथ हैं और इसके लिए तुम्हें अपने आपको मुबारकवाद देना चाहिए। नहीं?"

“ब..बको मत।” कोमल बिफरकर बोली लेकिन फिर अपनी गलती का अहसास होते ही फौरन खुद को नियंत्रित किया। उसने गरदन मोड़कर सावधानीपूर्वक अपने आसपास का मुआयना किया, फिर वह वापस सहगल से मुखातिब होती हुई अपेक्षाकृत दबे स्वर में बोली “सिटडाउन ।”

“केवल सिटडाउन ।” सहगल की भवें उठीं। उसने अपलक कोमल को देखा।

“प..प्लीज...।” कडुआहट को वह किसी तरह पी गई और सहगल की नजरों का मतलब समझकर आगे जोड़ती हुई बोली
"प्लीज सिटडाउन।”

“आलराइट।” सहगल ने बड़े अधिकारपूर्ण ढंग से कोमल के सामने की खाली कुर्सी खींची और उस पर बड़ी शान से पसरता हुआ बोला “थैक्यू।"

“अ...और खबरदार जो दोबारा यह कहा तो।” कोमल सहसा फिर चेतावनी भरे स्वर में बोली।

“क...क्या?” सहगल ने निरा अंजान बनकर पूछा।

“म..मैंने किसी को कोई सुपारी नहीं दी है। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, मैंने वैसा कुछ नहीं किया जो तुम बकवास करते फिर रहे हो।” वह भिंचे स्वर में बोली।

"तो फिर इतने धीमे से क्यों बोल रही हो। जोर से बोलो न। जब तुमने कुछ किया ही नहीं तो कैसा डर?"

वह कसमसाई। उसके चेहरे पर साफ-साफ व्याकुलता के भाव आए। आंखों में परेशानी तैरने लगी। सिगरेट का कश लेना वह भूल गई थी। व्हिस्की का गिलास तो वह कब का भुला चुकी थी। सहगल के वहां आने के बाद फिर उसका चूंट लेना उसे नसीब नहीं हुआ था।

“क...क्या चाहते हो तुम?" वह सहगल को खोजपूर्ण निगाहों से घूरती हुई सशंक भाव से बोली “रुपया? कितनी रकम चाहिए तुम्हें?"

“यानि कि तुम कबूल कर रही हो कि तुमने ही जानकी लाल सेठ के कत्ल की सुपारी लगाई है?"

“मैं ऐसा कुछ भी कबूल नहीं कर रही।” कोमल सख्ती से बोली थी “मैंने पूछा है तुम कितनी रकम हासिल करने की उम्मीद करके यहां आए हो?"

"म...मैडम..."

"और मुझे तुम्हारी सूरत जानी पहचानी सी क्यों लग रही है। मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैंने पहले कहीं तुम्हें देखा है? वैसे नाम क्या है तुम्हारा?" तब उसने इतनी देर में कहीं जाकर वह सवाल पूछा, जो उसे सबसे पहले पूछना चाहिए था।

“अपने कोमल हाथों से एक प्यारा सा जाम बनाकर मुझे अर्ज करें तो बताता हूं।” सहगल उसकी व्याकुलता का पूरा-पूरा मजा लेता हुआ बोला।

"शटअप। बको मत।"
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05-31-2021, 12:01 PM,
#16
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"ठीक है।" उसने उठने का उपक्रम किया “फिर मैं जाता हूं।"

"अरे नहीं...नहीं...।" कोमल उसके उस अप्रत्याशित कदम पर बौखला उठी और जल्दी से बोली “ऐसा म...मत करो।"

"तो फिर...।" वह उठते-उठते ठिठक गया था।
“म..मैं...।” वह बेबसी से दांत किटकिटाती हुई बोली “करती हूं।”

सहगल अपने स्थान पर वापस बैठ गया।

कोमल ने मरती क्या न करती वाली हालत में सहगल के लिए उसकी पसंद का एक जाम मंगवाया और सहगल की सात-सात पुश्तों को गालियां देते हुए उसे अपने हाथों से पेश किया।"

“अगेन थैक्स।” सहगल उसकी मनःस्थिति का भरपूर लुत्फ लेता हुआ बोला और फिर उसने व्हिस्की के गिलास को चेहरे के सामने आंखों के ठीक बराबर लाकर गिलास के हाई वाल को अपलक देखा “वह क्या है कि हसीन हाथों से जाम पेश किया जाए तो उसका नशा दोगुना हो जाता है। चलो अब ऐसी ही शराफत से मेरे साथ चियर्स बोलो।"

कोमल ने कलपते हुए वह भी किया।

“अब बोलो।" फिर वह बोली “अपना नाम बताओ।"

सहगल ने इस बार बिना किसी हुज्जत के उसे अपना नाम बता दिया।

“स...सुमेश सहगल ।” वह आहिस्ता से चौंकी। उसकी नजरें सहगल पर फौरन पैनी हुई थीं “याद आया। तुम पहले मेरे डैड की कम्पनी में काम करते थे, फिर तुम्हें जेल हो गई थी एक लड़की के अपहरण और उससे रेप के जुर्म में?"
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"वह सब तुम्हारे उसी हरामजादे बाप का कारनामा था।" सहगल के चेहरे पर एकाएक नफरत धधकी “उसने मुझे झूठा फंसाया था।"

“वह तुम्हें भला क्यों झूठा फंसाने लगा?"

"क्यों कि जो मैंने किया था, वह उसका इल्जाम मुझ पर साबित सात जन्म नहीं कर सकता था। अगर करता भी तो वह आधा-अधूरा होता और दस-बारह दिन की जेल काटकर मैं जमानत पर बाहर आ जाता।"

“इसीलिए उसने तुम्हें झूठा फंसाया और बकौल तुम्हारे एक नाकर्दा गुनाह उसने तुम्हारे ऊपर थोप दिया।"

“अब वह गुनाह नाकर्दा नहीं रहा।"

"क्या मतलब?"

“क्यों कि जेल से बाहर आते ही सबसे पहले मैंने वही गुनाह किया। जो कल तक नाकर्दा था।

“अपहरण, बलात्कार?"

"अपहरण की जरूरत ही नहीं थी और बलात्कार की परिभाषा आज बहुत बदल गई है। शायद तुम यकीन न 'करो' उस रोज संजना नाम की जिस लड़की के साथ मैंने शाम चार बजे से लेकर अगले रोज सुबह चार बजे तक जो कुछ भी किया,वह लड़की उम्र में तुमसे बहुत छोटी है। मेरी बेटी से भी एक-दो साल छोटी होगी।”

“लिहाजा तुम्हारा गुनाह अब नाकर्दा नहीं रहा।"

“हां, यही तो मैंने कहा है और मैंने यह प्रण किया है कि अब मैं हर रोज यह गुनाह करूंगा। मैं हर रोज तुम्हारे और कानून की भाषा में कहूं तो एक नई लड़की से बलात्कार करूंगा। और अभी तक इंशाअल्लाह यह सिलसिला पूरे जोर शोर से जारी है। बीती रात भी मैं एक लड़की से रेप करके आया हूं। तुम फिर हैरान होगी, उस लड़की की उम्र किसी भी तरह तुमसे ज्यादा नहीं होगी। और देख लो, इतना कुछ करने के बावजूद भी मैं इस वक्त पूरी तरह आजाद हूं। बेफिक्री से तुम्हारे सामने बैठा हूं जाम चुसक रहा हूं।” उसने गिलास से एक घूँट भरा।

“बहुत खूब।” कोमल व्यंग से हंसी “काफी अच्छा बदला ले रहे हो तुम कानून और अपने एम्प्लायर जानकी लाल सेठ से।"

"थोड़ा गलत कह गई मोहतरमा, मेरा यह बदला केवल कानून से है। जानकी लाल सेठ का बदला अभी अधूरा है।"

“आई सी।"

“तुम्हें लग रहा है कि मैं तुम्हें ब्लैकमेल करने आया हूं तुमसे मोटी रकम ऐंठने का इरादा रखता हूं? जब मेरे बारे में जान गई हो मोहतरमा तो यह भी जान लो कि अपनी पैंतरेबाजी के कमाल से बहुत दौलत जुटा रखी है मैंने। दोनों हाथों से भी खर्च करूंगा तो इस जन्म में खत्म नहीं कर पाऊंगा। कम से कम रुपयों की खातिर तो मैं यहां नहीं आया हूं।"

“तो...तो फिर क्यों आए हो?"
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05-31-2021, 12:02 PM,
#17
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
कोमल के चेहरे पर गहन असमंजस के भाव आ गए थे। मगर साथ ही सहगल को लेकर किसी ब्लैकमेलिंग की आशंका भी उसके जेहन से जाती रही थी और उसके दिल के किसी कोने में किंचित राहत के भाव आ गए थे।

“अब तक तो तुम्हें समझ जाना चाहिए था।” सहगल ने अपलक उसे देखा।

“मैं तुम्हारे जितनी समझदार नहीं हूं।"

“मैं दुश्मन के दुश्मन से दोस्ती करने आया हूं, जो कि तुम हो। सारा शहर जानता है कि तुम्हारा सौतेला बाप जानकी लाल तुम्हारा कितना बड़ा दुश्मन है।"

"हूं।” उसके होंठ एकाएक भिंच गए।

“तुम्हारी यह सूनी मांग बहुत कुछ कह रही है।” सहगल ने उसकी सूनी मांग पर नजर डालकर उसके जख्मों को कुरेदा "कभी यह आबाद हुआ करती थी। संदीप महाजन नाम का सिंदूर झिलमिलाया करता था इसमें, जो तुम्हारी दुनिया था तुम्हारा दिलबर था तुम्हारा पहला प्यार था। वह आज भी है, इस दुनिया और इसी शहर में है, मगर तुम्हारा नहीं है। वह किसी और की मांग का सिंदूर बना हुआ है। जानकी लाल सेठ की अपनी सगी बेटी की मांग का सिंदूर बना हुआ है। और...।"

कोमल के चेहरे पर सहसा एक लहर सी आकर चली गयी थी।

“और यह सब किसी और ने नहीं, तुम्हारे अपने बाप ने किया है।" सहगल ने एक क्षण ठहरकर उसके अंदर उठते जज्बातों को महसूस किया और वह आगे बोला “अपनी सगी बेटी की खातिर उसने अपनी सौतेली बेटी का बसा-बसाया घर उजाड़ दिया उसकी झिलमिलाती मांग की रंगत छीन ली। ऐसी जलील हरकत केवल जानकी लाल जैसा जलील इंसान ही कर सकता है। ऐसा इंसान गोली से नहीं तोप से उड़ा देने के लायक है। वह दुनिया का शायद पहला ऐसा इंसान है जिसने अपनी मुकम्मल जिंदगी में जलालत भरे काम करने के अलावा और कुछ भी नहीं किया।"

“जज्बातों को क...क्यों भड़का रहे हो सहगल?" कोमल का स्वर कम्पित हुआ था।

“मैं तुम्हें सच याद दिला रहा हूं, जिसने तुम्हें अपने सौतेले बाप का जानी दुश्मन बना दिया है। बात केवल इतनी सी नहीं है। इससे पहले भी जानकी लाल तुम्हारे साथ जलालत की एक कहानी लिख चुका है। जो जख्म तुमने दिये हैं,उससे कहीं ज्यादा बड़ा जख्म वह पहले तुम्हारी मां को दे चुका है। उसने दूसरी बार तुम्हारी दुनिया उजाड़ी है।"

"इ...इसीलिए तो मैं उस जलील इंसान का नामोनिशान मिटा देना चाहती हूं।” कोमल का गोरा मुखड़ा सुर्ख हो गया। आंखों में खून तैरने लगा था। वह अपने शब्दों को चबाती हुई बोली “उसे दुनिया से उठा देना चाहती हूं।"

“इसीलिए उसकी सुपारी लगाई थी?"
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05-31-2021, 12:02 PM,
#18
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
कोमल ने जवाब देने का उपक्रम न किया। वह जानबूझकर खामोश रही और परे देखने लगी।

“बहुत ही बचकानी हरकत की थी मोहतरमा। बस मुकददर से ही बची हो।”

“वह भी मुकद्दर से ही बचा है।” कोमल तीव्र स्वर में बोली “और हर बार मुकद्दर किसी का साथ देता नहीं रह सकता।"

“यानि कि आइंदा फिर यही बचकानी हरकत करने का इरादा रखती हो?"

उसने तमककर चेहरा उठाया।
“यह बचकानी हरकत नहीं है। और अगर है भी तो तुम्हें क्या?”

“है न। तभी तो तुम्हारे पास आया हूं।"

“त...तुम आखिर चाहते क्या हो?"

"फिलहाल तो केवल वार्न करना चाहता हूं कि दोबारा ऐसी कोई हरकत मत करना। बहुत बुरी फंसोगी।"

“तो फिर मुझे क्या करना चाहिए?"

“अच्छा सवाल है। जवाब भी उतना ही अच्छा है और जवाब यह है कि जो दोस्त बनकर आया है, उससे हाथ मिला लेना चाहिए।"

“उससे क्या होगा?”

“एक से भले दो। और...फिर मैं आखिर मर्द हूं जबकि तुम औरत। और ऐसे मामलों में आदमी ही ज्यादा तजुर्बेकार और सामर्थ्यवान होता है।"

“तुम भी जानकी लाल की जान लेना चाहते हो?"

“अपनी जिंदगी के सात कीमती सात सर्फ किये हैं मैंने जेल की कालकोठरी में। जेल की यातना क्या होती है, तुम जानती हो?"

“न...नहीं...।"

“समझ भी नहीं सकती। हर पल घुट-घुटकर जिया है मैंने उस नारकीय जिंदगी को। उस वक्त हर पल अपनी मौत की कामना की है। हर क्षण यही लगता था मुझे कि इससे बेहतर अदालत मुझे फांसी पर लटका देती तो कम से कम वह असहनीय यातना तो नहीं उठानी पड़ती। कैसे भूल सकता हूं मैं उन नारकीय लम्हों को, जो मैंने एक-एक दिन गिनकर जेल के नरक में गुजारे हैं।”

कोमल फिर खामोश रही और केवल सहगल को देखती रही।

“नहीं भूल सकता।” सहगल अपनी तड़प को पीता हुआ बोला। उसके सपाट चेहरे पर खिंचाव आ गया था “चाहकर भी नहीं भूल सकता। सात सालों से जेल में गुजारी गई मेरी हर यातना का हिसाब तो जानकी लाल सेठ को चकाना ही होगा।"

“म..मगर तुम क्या करोगे? बल्कि यह पूछना चाहिए कि कैसे करोगे?"

“कम से कम वैसी तो कोई अहमकाना हरकत हरगिज भी नहीं करूंगा, जो तुम लोग करते हो?"

“तुम लोग से तुम्हारा क्या मतलब?"

"अकेली तुम्हीं तो नहीं हो जिसने जानकी लाल की जान लेने की कोशिश की। उससे पहले भी और दो बार यह कोशिश हो चुकी है?"

"म...मगर वह सब मैंने नहीं किया।” कोमल ने फौरन अपनी सफाई पेश की “मेरा यकीन करो, पहले जो हुआ उसमें मेरा
कोई हाथ नहीं है।"

“मैं जानता हूं।”

“क्या?” उसने चौंककर सहगल को देखा और सख्त हैरान होकर बोली “तुम जानते हो?"

“ऑफकोर्स मोहतरमा।” सहगल के होठों पर मद्धिम सी मुस्कान उभरी उसने फिर से खुद को सामान्य कर लिया और कोमल के हाथों पेश व्हिस्की के जाम का अगला चूंट भरता हुआ बोला “मैं तो यह भी जानता हूं कि पहले दो बार जानकी लाल सेठ के साथ जो हुआ, उसमें किसका हाथ है।"

“त...तुम यह भी जानते हो?” कोमल चिंहुक उठी थी।
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05-31-2021, 12:02 PM,
#19
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"हां।” सहगल आराम से बोला “जानकी लाल जैसे पापी इंसान के दुश्मनों की इस शहर में कोई कमी नहीं है। बहुत पाप किए हैं उसने अपनी जिंदगी में। उसके इन्हीं पापों का नतीजा है कि कदम-कदम पर उसके दुश्मन कुकुरमुत्तों की तरह उगे पड़े हैं। वह दोनों भी उसके इन्हीं पापों के बीज से उपजी फसल हैं, जिसने तुमसे पहले उसकी जान लेने का प्रयास किया।"

"हैरानी की बात है कि तुम बीते सात सालों से जेल में थे।" “तुम हाल में खुद को जेल से छूटकर आया बताते हो और इतने कम वक्त में इतना ज्यादा जान लेना सचमुच हैरानी की बात है। बहरहाल कौन हैं वह दोनों?"

“बहुत जल्द तुम्हारे सामने होंगे।"

"अच्छा।” कोमल मुग्ध भाव से बोली थी।

"बहुत सख्तजान और मुकद्दर का सिकंदर है जानकी लाल सेठ। इतनी आसानी से वह किसी के काबू में नहीं आने वाला। अगर मर सकता तो कब का मर चुका होता। इसीलिए मैंने उसके उन तमाम दुश्मनों को इकट्ठा करने का फैसला किया है और उन सबको एक छत के नीचे लाने का अहद लिया

"उससे भी क्या होगा?"

"कुछ तो होगा। सुना है संगठन में बहुत बड़ी ताकत होती है, हुकूमत का भी तख्ता पलट देती है। जबकि यहां तो केवल एक इकलौता ही इंसान है।"

"तुमने बिल्कुल ठीक सुना है।” कोमल एकाएक मुक्त कंठ से बोली “और तुम्हारा इरादा भी बुरा नहीं है।”

“और इस इरादे की शुरूआत तुमसे कर रहा हूं। क्या तुम्हें मेरे इस छोटे से संगठन में शामिल होना मंजूर है?"

कोमल तुरंत कोई जवाब न दे सकी थी। वह सोच में नजर आने लगी। “इंकार की कोई वजह तो नहीं है।” फिर उसने ठंडी सांस भरते हुए कहा।

“यानि कि तुम्हें मंजूर है।”

“जब इंकार की कोई वजह ही नहीं है जो जाहिर सी बात है कि मंजूर ही है।"

“गुड। तो फिर...।” उसने गिलास को आजाद करके अपना हाथ आमंत्रण की मुद्रा में कोमल के सामने ऊपर उठाया।

कोमल के होठों पर एकाएक मोहक मुस्कान उभरी। उसने अपनी गोरी कलाई आगे बढ़ाकर सहगल का हवा में उठा हाथ गर्म जोशी से थाम लिया।

सहगल की आंखें तत्काल कंचों की मानिंद चमक उठीं। होठों की कुटिल मुस्कान गहराना आरम्भ हो गयी। जानकी लाल के पहले जानी दश्मन को अपने साथ मिलाने में वह परी तरह से कामयाब हो गया था।
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आने वाला इंस्पेक्टर मदारी था। उसका पूरा नाम योगेश मदारी था। उसकी उम्र पचास साल से ऊपर थी और उसकी शक्ल बालीवुड फिल्मों के खलनायक और चरित्र अभिनेता मोहन जोशी से काफी हद तक मिलती थी। अपना हेयर स्टाइल और यूं भी वह मोहन जोशी की तरह रखता था और नियमित उन पर हेयर डाई किया करता था। वह दिल्ली पुलिस की विशेष अपराध शाखा का तीन सितारों वाला इंस्पेक्टर था,जो किसी खास मिशन अथवा पुलिस के खुफिया आपरेशन के वक्त ही हरकत में आता था। लेकिन जब ऐसा कोई आपरेशन नहीं होता था तो वह हैडक्वार्टर में ही मौजूद रहता था और तब एकाएक पेश आने वाले जटिल केसों में उसकी शिरकत हो जाया करती थी।

वह क्योंकि पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच से ताल्लुक रखता था, लिहाजा उसके लिए ड्यूटी के वक्त अपनी पुलिस इंस्पेक्टर की तीन सितारों वाली वर्दी पहनना जरूरी नहीं होता था। वैसे तो वह अपने बेशुमार अजीबो-गरीब शौक व आदतों के लिए जाना जाता था। यह भी उसका एक अजीब शौक था कि वह सिविल ड्रेस में भी अपना पुलिसिया रूल हर वक्त अपने हाथ में रखता था। उस रूल के अग्रभाग पर रबर के तीन छोटे गोले छोटी सी रबर डोरियों से बंधे होते थे। जब मदारी रूल को अपने हाथों में लेकर एक खास अंदाज में हिलाता था तो उससे एकदम डमरू जैसी आवाज निकलने लगती थी ठीक वैसे डमरू की आवाज जैसे कि फुटपाथ पर तमाशा दिखाते वक्त कोई मदारी बजाया करता था।

वही इंस्पेक्टर मदारी उस वक्त जानकी लाल के वार्ड में पहुंचा था। उस वक्त उसने एकदम नया सिलवाया कीमती थ्री पीस सूट पहन रखा था, जिसमें कि वह खूब-खूब जंच रहा था और अपने पसंदीदा अभिनेता मोहन जोशी का डबल लग रहा था।

अकेले जानकी लाल ही नहीं अजय भी उसे बखूबी पहचानता था। उसके ऊपर होने वाले पिछले दिनों जानलेवा हमलों के दौरान भी इन्वेस्टीगेशन के लिए आखिर वही तो आया था और मामले की तफ्तीश तब भी उसी के हाथ में थी। जिसमें कि अभी तक उसे कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई थी और जानकी लाल पर फिर से अगला जानलेवा हमला हो गया था।

“जय भोलेनाथ की।” आते ही उसने एक नारा बुलंद किया। नारा बुलंद करने का उसका अंदाज ऐसा था जैसे कि वह पुलिस इंस्पेक्टर न होकर फुटपाथ का कोई भिखारी था और इस वक्त भीख मांगने के लिए किसी घर के दरवाजे पर पहुंचा था। डमरू की आवाज सुनाई देना अब बंद हो गई थी।

जानकी लाल के होंठों से बेसाख्ता ठंडी सांस निकल गई थी। “यह कमबख्त कहां से आ गया।" वह होठों में बुदबुदाया उसके चेहरे पर सहसा वितष्णा के भाव आ गए थे “कमीना हमेशा गलत वक्त पर आता है।

अजय ने सकुचाते हुए संजीदगी से उसके अनुमोदन में सहमति से सिर हिलाया।

“अ...आओ इंस्पेक्टर।” अपने मनोभावों को दबाता प्रत्यक्षतः जानकी लाल सहज भाव से बोला “तुम एकदम सही वक्त आए हो। तशरीफ रखो।"

“थैक्यू जजमान।” मदारी ने बड़ी अदा से सिर नवाकर उसका आभार जताया फिर बोला “वह क्या है कि ड्यूटी के दरम्यान मैं तशरीफ नहीं रखता। खड़े होकर पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी बजाता हूं और सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह का एक-एक रुपया हलाल करता हूं।"

“जानकर खुशी हुई।” जानकी लाल ने मुंह बिसूरा “वैसे यह तो मैं देख रहा हूं, इंस्पेक्टर कि तुम कितनी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाते हो। कभी-कभी मुझे हैरानी होती है कि पुलिस का महकमा बना ही क्यों है। इस मुल्क में पहले ही क्या अराजक तत्वों की कमी थी जो हर दस कदम पर पुलिस स्टेशन के तौर पर उसकी एक-एक मंडी खोल दी गई?"

“अ...अरे क्या गजब कर रहे हो श्रीमान।” मदारी हड़बड़ाया था “पुलिस के महकमे को अराजकता की मंडी कह रहे हो?"

“खैर मनाओ कि इससे ज्यादा कड़वा कोई दूसरा लफ्ज पुलिस के लिए फिलहाल मुझे नहीं सूझ रहा।"

“म..मुझे मालूम है जजमान, पुलिस के बारे में आम आदमी के ख्यालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं।"

“खास आदमियों के भी अच्छे नही हैं। और मैं खास आदमी ही हूं।”

“अब आप तो खैर आप ही हैं श्रीमान, मैं आपकी तारीफ में क्या कहूं?"

"कुछ मत कहो। केवल यह बताओ कि यहां क्यों आए हो?"
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05-31-2021, 12:02 PM,
#20
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“आपकी चरणरज लेने आया हूं जजमान। मिल जाती तो जीवन धन्य हो जाता।” उसने गजब की दयनीयता दर्शाई। जो कि जानकी लाल के साथ-साथ अजय भी जानता था कि कितनी फर्जी थी उसने कहा “कुत्ते की दुर-दुर करती पुलिस की नौकरी से मुक्ति पा जाता।”

“काम की बात करो इंस्पेक्टर । जानकी लाल शुष्क स्वर में बोला।

“वही तो कर रहा हूं ।” वह बोला। सहसा उसकी निगाह अजय पर पड़ी और वह तत्क्षण उसकी ओर मुखातिब होकर बोला “लेकिन उससे पहले जरा इन छोटे श्रीमान का तआरूफ हो जाता तो बड़ा अच्छा रहता।”

“अच्छा ही रहेगा।” जानकी लाल बोला। फिर उसने उससे अजय का तआरूफ कराया।

"धन्यवाद श्रीमान।” मदारी ने खुश होकर एक बार जोर से डमरू बजाया “ऐसे महान लोगों के दर्शन करके मैं धन्य हो गया।"

"और जरा अपनी इस 'नगाड़ा' बजाने वाली आदत पर कंट्रोल रखो।” जानकी लाल ने उसे याद दिलाया “मत भूलो कि यह हास्पिटल का वार्ड है। यहां जोर से बोलने पर भी पाबंदी होती है। मरीजों को डिस्टर्ब होता है।"

“सारी श्रीमान। बताने का शुक्रिया। मैं आगे से ख्याल रखंगा।”

“और यह श्रीमान जजमान के अलावा क्या सामने वाले के लिए कोई और सम्बोधन नहीं आता है?"

“सरासर आता है जजमान।"

"तो फिर बोलते क्यों नहीं।"

"क्योंकि वह संबोधन खास लोगों के लिए नहीं है आम लोगों के लिए है, जिन्हें घास खाने वाला भी कहते हैं। आपको तो बिल्कुल पसंद नहीं आएगा।"

“फिर भी बताओ।” जानकी लाल अधिकारपूर्ण स्वर में बोला।

“आप बुरा मान जाएंगे।"

"नहीं मानूंगा।"

मदारी एक पल के लिए सोच में नजर आया।
“क..कीर्तिमान।” फिर वह बोला।

“यह तो जजमान और श्रीमान से भी ज्यादा अच्छा सम्बोधन है।” जानकी लाल ने कहा “इसमें बुरा मानने वाली भला क्या बात है?"

“बुरा मानने वाली बात इसके आगे है।” वह सकुचाते हुए बोला।

“आगे क्या है?"

"अंडमान।” उसने बताया “बेइमान।"

जानकी लाल तत्क्षण हड़बड़ाया।

“म..मैंने कहा था न श्रीमान, आप बुरा मान जाएंगे।” मदारी बोला।

“सचमुच बुरा मानने वाली बात है। बहरहाल...।” । उसने ठंडी सांस ली, फिर उसके लहजे में एकाएक व्यंग घुल गया “अगर तुम्हारी मुस्तैद ड्यूटी पूरी हो गयी हो तो अब तुम यहां से तशरीफ ले जा सकते हो?”

“अरे कीर्तिमान..।” वह चिहुंककर बोला “क्यों जुल्म कर रहे हो, ड्यूटी निभाने वाला अभी मैंने किया ही क्या है?”

“है भी नहीं कुछ तुम्हारे पास करने के लिए? मैं क्या जानता नहीं हूं दो-चार घिसे-पिटे सवाल छोड़ने के अलावा तुम्हारे पास और है ही क्या? गुनाहगार कहां पुलिस से पकड़े जाते हैं?"

“गुनाहगार से आपका क्या मतलब है जजमान?"

"तुम नहीं जानते? मुझे आफिस में घुसकर सरेआम शूट किया गया है। एक नहीं तीन-तीन गोलियां दागी गई हैं मुझ पर। अगर मैंने बुलेटप्रूफ न पहन रखा होता और मेरे अंगरक्षकों ने इतनी मुस्तैदी न दिखाई होती तो अब तक मेरी लाश का पोस्टमार्टम भी हो चुका होता। तुम सुन रहे हो न इंस्पेक्टर?"

"दोनों कान से सुन रहा हूं श्रीमान।"

“कल या कत्ल की कोशिश गुनाह होता है और गुनाह करने या करवाने वाला गुनाहगार कहलाता है। इस केस में भी एक गुनाहगार है। यह मुझ पर तीसरा जानलेवा हमला है, जिसमें इस बार बस मैं अपने मुकद्दर से ही बचा हूं। और मेरा वह गुनाहगार आज भी आजाद घूम रहा है।"

“कहां आजाद घूम रहा है कीर्तिमान। वह तो भोले भंडारी उसकी आत्मा को शांति दे, फना हो चुका है। आपके जांबाज अंगरक्षकों ने उसे मार गिराया। अब मरने के बाद कोई भला कैसे आजाद घूम सकता है। यह रहस्य मेरी समझ में कदापि नहीं आ रहा। वह आजादी तो केवल उसकी रूह को ही हासिल हो सकती है।"

“इंस्पेक्टर।” जानकी लाल ने उसे बेहद कड़ी निगाहों से देखा था “या तो तुम खुद को बेवकूफ दर्शा रहे हो या मुझे बेवकूफ समझने की गलती कर रहे हो? जो मरा, उसके बारे में मालूम हो चुका है वह एक किलर था, किराये पर कत्ल करना जिसका पेशा था और उसका बाकायदा पुलिस रिकार्ड भी था। उस किलर की मुझसे कोई दुश्मनी नहीं हो सकती। उसे निश्चित रूप से मेरे कत्ल के लिए हायर किया गया था। उसे मेरे कत्ल की बाकायदा सुपारी दी गई थी। असली गुनाहगार वह है, जो पुलिस की पकड़ से दूर है। आजाद घूम रहा है कानून की खिल्ली उड़ा रहा है और तुम आज तक उसका पता नहीं लगा पाए। शर्म आनी चाहिए तुम्हें इंस्पेक्टर बल्कि चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।"

“वह क्या है कीर्तिमान कि ड्यूटी के दौरान मैं चुल्लू तो क्या कटोरे भर पानी में डूबकर भी नहीं मर सकता। पूरी मुस्तैदी से ड्यूटी जो निभाना होता है और सरकार की मोटी तनख्वाह को हलाल करना होता है।"

“बकवास बंद करो इंस्पेक्टर, पुलिस का निकम्मापन किसी से छिपा नहीं है।"

“यह मुझ पर सरासर गलत इल्जाम है जजमान।” मदारी ने प्रतिवाद किया “इंस्पेक्टर मदारी और चाहे कुछ भी हो सकता है लेकिन वह निकम्मा नहीं हो सकता।”

“तो फिर वह गुनाहगार अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? वह आज तक खुला क्यों घूम रहा है?"

"क्योंकि वह बहुत रसूख वाला इंसान है। मेरी तो क्या, उसे गिरफ्तार करने की मजाल मेरे डीसीपी साहब की भी नहीं हो सकती। चुटकी बजाने से पहले वह हम दोनों की वर्दी उतरवा देगा। मैं तो खैर वर्दी पहनता ही नहीं हूं लेकिन समस्या । डीसीपी साहब की है, जो वर्दी के अलावा और कुछ भी नहीं पहनते। और भोलेनाथ न करे, अगर उनकी वर्दी उतर गई तो नंगे हो जाएंगे।”

"शटअप इंस्पेक्टर, कानून से ऊपर कोई नहीं है।"
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