12-05-2020, 12:40 PM,
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desiaks
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अगले ही पल एक सनसनीखेज घटना का जन्म हुआ ।
उस वक्त जब उन्होंने बैडरूम से निकलकर कोठी के गलियारे में कदम रखा-तभी उनके कानों में किसी के भागते कदमों की आवाज पड़ी ।
एक क्षण-सिर्फ एक क्षण के लिये राज की नजर साये पर पड़ी-क्योंकि अगले ही क्षण वो काला साया गलियारे का मोड़ काटकर अंधेरे में गायब हो चुका था ।
और !
उसी क्षण में राज साये को पहचान गया ।
वो काला भुजंग बल्ले था ।
बल्ले !
खौफ से कांप गया राज ।
शरीर में एक साथ हजारों चीटियां रेंगती चली गयीं ।
ब...बल्ले वहाँ क्या करनी आया था
उ...उसे यह कैसे पता चला कि वो वहाँ है ☐
राज और डॉली ने बल्ले के बारे में जितना सोचा -उतनी ही उनकी रूह कांपी ।
☐☐☐
बल्ले, जगदीश पालीवाल की कोठी से निकलकर भागता चला गया ।
जल्द ही वो एक टेलीफोन बूथ के अंदर जा घुसा था ।
उसने रिसीवर उठाया-फिर बड़ी तेजी से कुछ नम्बर डायल किये ।
शीघ्र ही दूसरी तरफ घण्टी जाने लगी थी ।
कुछ देर बेल बजती रही-बजती रही ।
“हैलो !” फिर लाइन पर एक उनींदा-सा स्वर उभरा-“इंस्पेक्टर योगी स्पीकिंग !”
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने फौरन कॉयन-हॉल में एक रुपये का सिक्का डाल दिया-“मैं बोल रहा हूँ-पहचाना मुझे ?”
“कौन ?”
“यानि नहीं पहचाना ?”
एक पल के लिये खामोशी छा गयी ।
“त...तुम बल्ले हो ।” योगी की नींद अब पूरी तरह उड़ चुकी थी ।
“बिलकुल ठीक ।” बल्ले चहका -वाकई आपकी तारीफ करनी होगी इंस्पेक्टर साहब-जो मुझे सिर्फ आवाज से ही पहचान लिया ।”
“इसमें तारीफ जैसी कोई बात नहीं ।” इंस्पेक्टर योगी खुंरदुरे लहजे में बोला-“हम पुलिस वाले हैं बल्ले-ओर अपराधियों को सिर्फ आवाज से पहचान लेना ही हमारी फितरत होती है । खैर यह बताओ-तुमने इतनी रात को मुझे फोन किसलिये किया है ? क्या वकील यशराज खन्ना की हत्या करने के इल्जाम में अपने आपको कानून के हवाले करना चाहते हो ?”
“नहीं-हरगिज नहीं ।” बल्ले की आवाज में सख्ती उभर आयी-“मैंने आपसे पहले भी कहा था इंस्पेक्टर साहब -आज फिर कहता हूँ-मैं तब तक अपने आपको कानून के हवाले करने वाला नहीं, जब तक मैं राज से अपने चाचा के खून का बदला नहीं चुका लेता ।”
“फिर फोन क्यों किया है ।?”
“मैं राज के बारे में आपको एक बड़ी सनसनीखेज जानकारी देना चाहता हूँ ।”
“कैसी जानकारी ?”
“राज आजकल एक बेहद खतरनाक योजना पर काम कर रहा है इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने और ज्यादा सस्पैंस क्रियेट किया-“मैंने आपको जो बताना था-बता दिया । एक पुलिस इंस्पेक्टर होने के नाते अब आगे की इन्वेस्टीगेशन करना आपका काम है -हाँ, मैं आपको इंवेस्टीगेशन करने के लिये एक हिंट जरूर दे सकता हूँ ।”
“क...कैसा हिंट ?”
“डॉली भी उस योजना में राज की मदद कर रही है-अब बंदे को इजाजत दीजिये-नमस्ते !”
“बल्ले-बल्ले !” इंस्पेक्टर योगी चीखता रह गया ।
जबकि बल्ले बड़े निर्विकार अंदाज में टेलीफोन का रिसीवर हुक पर लटका चुका था ।
उसके होठों पर मुस्कान खेल रही थी ।
वो मुस्कान -जो किसी बेहद चालाक व्यक्ति के होठों पर उस समय खेला करती है, जब वो अपने दो दुश्मनों को लड़ाने के लिये कोई बढ़िया चाल चल दे ।
☐☐☐
सुबह के दस बजने जा रहे थे ।
उस दिन का मौसम पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा गरम था ।
एक बार फिर सब लोग कॉफ्रेंस हॉल में जमा थे ।
सेठ दीवानचन्द आयातकार मेज के एक कोने पर ऊंची पुश्त वाली रिवॉल्विंग चेयर पर विराजमान था-उसने आज अपने चेहरे को नकाब से ढका हुआ था-जिसमें से उसकी सिर्फ दो आंखें बाहर झांक रही थीं ।
साफ लगता था-आज कोई खास बात है ।
कॉफ्रेंस हॉल की अन्य कुर्सियों पर दशरथ पाटिल कान्तिपाण्डे, राज, डॉली ओर उन सबके अलावा , उस दिन का सबसे ज्यादा खास मेहमान जगदीश पालीवाल भी वहाँ बैठा था ।
जगदीश पालीवाल की वहाँ उपस्थिति निःसंदेह चौंका देने वाली थी ।
पालीवाल की वहाँ उपस्थिति से एक बात और भी साबित होती थी कि उसने अपने मासूम बच्चे की जिंदगी बचाने के लिये उन शैतानों के सामने घुटने टेक दिये हैं ।
आज उसने अपने उसूलों को अपने आदर्शों की बलि दे दी है ।
इसके अल्वा एक बाप और कर भी क्या सकता है ?
☐☐☐
सिर्फ एक घण्टा पहले की बात है ।
जगदीश पालीवाल उस समय अपनी कोठी के ड्राइंग हॉल में बेचैनी पूर्वक टहल रहा था ।
उसकी आंखों में आतंक की छाया थी ।
होंठ खुश्क !
जब से वह दोनों गुड्डू का अपहरण करके ले गये थे-तब से उसका यही हाल था ।
कभी वो इस कमरे में चहलकदमी करता-तो कभी उस कमरे में ।
सारी रात सिगरेट-पर-सिगरेट फूंकते हुए गुजरी ।
कई बार उसके दिमाग में यह ख्याल भी आया कि वह उदयपुर टेलीफोन करके उस घटना की अपनी पत्नी को सुचना दे दे ।
लेकिन फिर वो रुक गया ।
उसे सुचना देने से ही क्या होना था-वह परेशान और होती ।
रह-रहकर पालीवाल की आंखों के गिर्द अपने मासूम बेटे का मुखड़ा चक्कर काट जाता ।
एक बाप की बेताब बाहें अपने जिगर के टुकड़े को कलेजे से लगाने के लिये मचल रही थी ।
☐☐☐
और !
तभी गरम लोहे पर चोट हुई ।
मारुती वैन में सवार होकर दुष्यंत पाण्डे उसकी कोठी पर पहुँचा था ।
जगदीश पालीवाल को एक टाइपशुदा पात्र दिया-जिसमें सिर्फ चंद लाइनें लिखी थीं ।
“अगर अपने बेटे की जिंदगी के लिये हमारी शर्त मंजूर है-तो फौरन पत्रवाहक के साथ वैन में बैठकर आ जाओ-इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
तुम्हारे बेटे का शुभचिन्तक
गुमनाम संगठन
पत्र पढ़ते ही जगदीश पालीवाल ने गुस्से में उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले ।
“और अगर मै तुम्हारे साथ न गया ।” जगदीश पालीवाल झपटकर दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पकड़ लिया तथा हलक फाड़कर चिल्ला उठा-“तो तुम क्या कर लोगे-क्या कर लोगे ?”
खतरनाक ढंग मुस्कराया दुष्यंत पाण्डे !
उसकी मुस्कान खून को बर्फ की तरह जमा देने वाली थी ।
गिरेहबान पकड़ने का उसने जरा भी बुरा नहीं माना ।
“अगर तुम मेरे साथ न गये-तो वह हो जायेगा ऑफीसर !” दुष्यंत पाण्डे फुंफकारता-सा बोला-“जिसकी कल्पना भी तुम्हारे लिये दुश्वार है-तुम्हारे गुड्डू के खून के छीटें दूर-दूर तक उड़ेंगे-दूर-दूर तक । और हमारी उस दरिंदगी के जिम्मेदार तुम होओगे-सिर्फ तुम ।”
तत्काल दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पालीवाल के हाथ से छूट गया ।
सारी गर्मी जाती रही ।
वह अपने आपको सौ साल के वृद्ध की तरह कमजोर महसूस करने लगा ।
रात भर की बेचैनी और विवशता के कारण उसमें इतना भी साहस न बचा था-जो ज्यादा विरोध कर सके ।
वह एक हारे हुए जुआरी की तरह निर्जीव कदमों से चलता हुआ चुपचाप मारूति वैन में सवार हो गया ।
उसे आंखों पर पट्टी बांधकर अड्डे पर लाया गया था ।
वहाँ जब उसकी आंखों से पट्टी खोली गयी-तो उसने अपने आपको उसी कॉफ्रेंस हॉल में पाया-जिसमें इस वक्त बैठा था ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
जगदीश पालीवाल गला खंखार कर बोला-“दुर्लभ ताज की जो सिक्योरिटी की गयी है-सिक्योरिटी के सम्बन्ध में मैंने तुम लोगों को लगभग पूरी डिटेल बता दी है । अब इस पूरी सिक्योरिटी के बाद-इस पूरे परफैक्ट इंतजाम के बाद एक आखिरी सिक्योरिटी और है, जो उस दुर्लभ ताज के लिये की गयी है ।”
“क...क्या ?” सेठ दीवानचन्द के नेत्र अचम्भे से फट पड़े-“वडी क्या अभी कोई और सिक्योरिटी भी बची है ?”
“हाँ ।” जगदीश पालीवाल सहज स्वर में बोला-“अभी एक आखिरी सिक्योरिटी और बची है-और मैं समझता हूँ कि वो सिक्योरिटी इन तमाम सिक्योरिटी से ज्यादा परफैक्ट है-ज्यादा सिक्केबंद है ।”
“वडी ऐसी क्या सिक्योरिटी है वो ।” सेठ दीवानचन्द जबरदस्त सस्पैंस के बीच झूलता हुआ बोला-उसके बारे में भी बता ।”
“अब उसी के विषय में बताने जा रहा हूँ । दरअसल ज्यूरी के मैंम्बरों ने दुर्लभ ताज की सुरक्षा व्यवस्था के लिये जो चक्रव्यूह रचा है-वह सिक्योरिटी उस चक्रव्यूह का सबसे आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है । यूं तो म्यूजियम में जितने भी सुरक्षा प्रबन्ध किये गये हैं-वह सब अपने आप में कम्पलीट हैं और उन्हें भेद पाना असंभव है । लेकिन... ।”
“लेकिन क्या ?”
“सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह के उस आखिरी हिस्से को भेदने की बाबत सोचना भी, मैं समझता हूँ कि पागलपन होगा-क्योंकि वहाँ ज्यूरी के मैम्बरों ने इतना जबरदस्त मायाजाल बिछाया है कि अगर उस मायाजाल को भेदने के लिए आज के युग में अर्जुन, अभिमन्यु, भीम, नुकूल, सहदेव या युधिष्ठिर जैसे महान योद्धा भी आ जायें-तो उन्हें भी असफलता का मुँह देखना पडेगा । सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह का वे आखिरी चरण ‘हॉल नम्बर चार’ है । उस हॉल की सिक्योरिटी यह सोचकर की गयी है कि अगर कोई अपराधी किसी तरह तमाम सिक्योरिटी को भेदता हुआ ‘हॉल नम्बर चार’ तक पहुँचने में सफल हो जाता है-तो फिर उसके हाथों से दुर्लभ ताज को किस तरह बचाया जाये ।”
“क...किस तरह बचाया जायेगा नी ?”
“मान लो ।” जगदीश पालीवाल बोला-“जो अपराधी तमाम सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुँचने में सफल होता है-वह अपराधी तुम हो । अब तुम मुझे यह बताओ कि वहाँ पहुँचने के बाद तुम क्या करोगे ?”
“वडी और क्या करता-अंदर घुसने की कोशिश करूंगा नी ।”
“एग्जेक्टली !” जगदीश पालीवाल चहक उठा-“तुम अंदर ही घुसने की कोशिश करोगे-लेकिन सवाल ये है कि तुम अंदर ही घुसोगे कैसे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर तो बड़े भारी-भरकम ताले और चोर ताले लगे हुए हैं-जिन्हें ‘मास्टर की’ कि सहायता से भी नहीं खोला जा सकता ।”
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द थोड़ा झुंझलाकर बोला-“वडी अगर ताला खुल नहीं सकता-तो टूट तो सकता है नी । और अगर ताला टूट भी नहीं सकता-कम-से-कम दरवाजा तो टूट-ही-टूट सकता है ।”
“आई एण्टायरली एग्री विद यू ।” जगदीश पालीवाल पहले की तरह ही चहककर बोला-“मैं तुमसे बिलकुल सहमत हूँ-बल्कि मैं खुद भी यही कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक अपराधी की उस अवस्था में यही मोनोपली होगी । क्योंकि जो इतने पावरफुल सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुंचेगा-उसे वहाँ पहुँचकर खाली हाथ लौटना तो किसी भी हालत में गंवारा न होगा । चाहे उसे कुछ भी क्यों न करना पड़ेगा-कैसा भी जायज या नाजायज तरीका इस्तेमाल क्यों न करना पड़े । अपराधी की इसी मोनोपली को ध्यान में रखकर ज्यूरी के मैम्बरों ने हॉल नम्बर चार की सुरक्षा व्यवस्था की है । अगर तुममें से कोई फिलहाल हॉल नम्बर चार में गया है-तो उसने वहाँ जाकर देखा भी होगा कि उस हॉल की छत और दीवारें फॉल्स सीलिंग तथा प्लास्टर पेरिस की बनी हुई हैं । जिनकी मोटाई लगभग एक फुट के करीब है-दीवार तथा छत को इतनी मोटाई में डेकोरेट करने के पीछे एक खास कारण है ।”
“कैसा कारण ?”
“दीवार और छत-दोनों जगह स्वचालित गनें छिपी हुई हैं । कोई भी अपराधी जैसे ही किसी गलत तरीके से हॉल में घुसेगा-तभी दीवार तथा छत में छिपी हुई स्वचालित गनें हरकत में आ जायेंगी और वो हॉल के हर हिस्से पर हर ऐंगल पर गोलियों की बौछार करना शुरू कर देंगी । यानि अपराधी हॉल में चाहे किसी भी जगह क्यों न खड़ा हो-गोलियां उसे वहीं आकर लगेंगी और वो पलक झपकते ही एक लाश में बदल जायेगा ।”
सेठ दीवानचन्द सहित सब के चेहरों पर कालिख पुत गयी ।
“और अगर अपराधी किसी तरह उन गोलियों से भी बच गया ।”
जगदीश पालीवाल बोला-“जोकि बिल्कुल नामुमकिन काम है-तब भी वो उस दुर्लभ ताज को नहीं चुरा पायेगा ।”
“क...क्यों ?” दशरथ पाटिल के दिमाग पर बिजली-सी गिरी-“फिर उस ताज को चुराने में क्या मुश्किल है ?”
“बहुत बड़ी मुश्किल है । क्योंकि अपराधी उस ताज को निकालने के लिये जैसे ही उसके शीशे के बॉक्स को छुएगा-तभी उस बॉक्स के अंदर बंद दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे एक कुएं जैसी गहराई में चला जायेगा । अपराधी बॉक्स से हाथ हटायेगा तो वह फिर ऊपर आ आयेगा । हाथ लगायेगा-तो फिर नीचे चला जायेगा । बस यही नाटकीय और बेहद तिलिस्मी प्रक्रिया चलती रहेगी-लेकिन दुर्लभ ताज अपराधी के हाथ नहीं लगेगा ।”
“साईं !” दीवानचन्द सनसनाये स्वर में बोला-इसका मतलब वह तिलिस्तमी सिस्टम तो शीशे के बॉक्स में ही फिट हुआ-क्योंकि उसे हाथ लगाते ही दुर्लभ ताज ऊपर-नीचे होता है ।”
बिलकुल ठीक ।”
और अगर हम शीशे के उस बॉक्स को ही तोड़ डालें-तो क्या होगा ?”
“कुछ नहीं होगा-उस पोजीशन में वो दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे चला जायेगा तथा फिर ऊपर नहीं आयेगा । फिर तो वही इंजीनियर उस दुर्लभ ताज को बीस फुट नीचे से निकाल सकते हैं-जिन्होंने वहाँ वो सारे सिक्योरिटी डेवायसिज फिट किये हैं ।”
“ओह !”
वहाँ पुनः शमशान घाट जैसा सन्नाटा छ गया ।
सब स्तब्ध थे ।
बिलकुल मौन !
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द नकाब के पीछे से उसे देखता हुआ हिचकिचाये स्वर में बोला-“वडी यह तो वाकई बड़ा जबरदस्त इंतजाम है ।”
“मैं पहले ही कहता था ।” जगदीश पालीवाल के होठों पर मुस्कान दौड़ी-“कि उस दुर्लभ ताज को चुराना आसान नहीं है-उसका सिक्योरिटी सिस्टम बेइन्तिहाँ मजबूत है । शायद भारत में पहली बार किसी एण्टीक आइटम के लिये इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी की गयी है ।”
“वडी इसमें कोई शक नहीं ।” दीवानचन्द बोला-“कि सिक्योरिटी वाकई बहुत पावरफुल है-लेकिन एक बात मैं फिर भी कहूँगा ।”
“क्या ?”
“सिक्योरिटी चाहे कितनी भी जबरदस्त हो-लेकिन उसे तोड़ा जा सकता है । साईं-दिमाग के ब्लेड से हर धांसू सिक्योरिटी की काट पैदा की जा सकती है ।”
“य... यानि !” राज के नेत्र हैरत से फटे-“यानि तुम यह कहना चाहते हो कि तुम इस सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना लोगे ?”
“मैं अभी कोई दावा नहीं कर रहा-लेकिन पालीवाल साईं, मेरा यह मानना है कि दुनिया का कोई काम मुश्किल नहीं-कोई काम असंभव नहीं । जरुरत है तो इंसान के अंदर बस लगन की-हौंसले की-और एक तंदरुस्त दिमाग की ।”
“म...मुझे तो नहीं लगता कि कोई अपराधी यह करिश्मा कर पायेगा ।”
“वडी तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो नी ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“साईं-अगर तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो, तो हमें तुम्हारा यह चैलेन्ज कबूल है ।”
ठीक है-आप इसे मेरा चैलेन्ज ही समझें । क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि इस परफैक्ट सिक्योरिटी को दुनिया का कोई व्यक्ति नहीं भेद सकता ।”
बढ़िया बात है ।” सेठ दीवानचन्द ने गरमजोशी के साथ कहा-“वडी हम तुम्हें यह करिश्मा करके दिखायेंगे ।”
☐☐☐
फिर वो मीटिंग वहीं बर्खास्त हो गयी ।
जगदीश पालीवाल को जिस तरह आंखों पर पट्टी बांधकर वहाँ लाया गया था । उसी तरह वहाँ से विदा कर दिया गया ।
लेकिन जाने से पहले वो अपने बेटे ‘गुड्डू’ से मिला और बड़े ही जज्बाती होकर मिला ।
“मैं तुमसे एक विनती करना चाहता हूँ मैडम ।” फिर उसने जाने से पहले डॉली से कहा था ।
“क...कहिये ।” डॉली का स्वर कांप उठा ।
“तुम एक स्त्री हो ।” जगदीश पालीवाल की आवाज भावनाओं से भरी हुई थी-“मैं जानता हूँ कि तुम चाहे कितना ही इन अपराधियों से मिली हुई होओ-लेकिन फिर भी तुम उतनी कठोर नहीं हो सकतीं-जितना यह सब हैं-इसीलिये मैं तुमसे यह विनती करने की हम्मत कर पा रहा हूँ । गुड्डू मेरा इकलौता बेटा है-इसकी अच्छी तरह देखभाल करना ।”
डॉली भी जज्बाती हो उठी ।
वह एकदम गुड्डू की तरफ झपटी और उसने उसे अपनी छाती से चिपटा लिया ।
“इ...इसे कुछ नहीं होगा ।” डॉली बोली-“ज...जब तक मैं जिन्दा हूँ- कोई आंच नहीं आयेगी पालीवाल साहब ।”
“मुझे तुम पर भरोसा है ।” जगदीश पालीवाल की आंखें भीग गयीं-“हालांकि तुमने मुझे धोखा दिया-लेकिन फिर भी न जाने क्यों मुझे तुम्हारे ऊपर ऐतबार करने को दिल चाहता है ।”
तड़प उठी डॉली !
जबकि पालीवाल फिर वहाँ से चला गया था ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
थोड़ी देर बाद ही कॉफ्रेंस हॉल में फिर एक मीटिंग हुई ।
उस मीटिंग में इंडियन म्यूजियम का चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर जगदीश पालीवाल भी मौजूद था ।
यह सुनकर पालीवाल के दिमाग में बम-सा फटा कि उन्होंने दुर्लभ ताज को चुराने की कोई मास्टरपीस योजना बना ली है ।
वाकई वो अचम्भे की बात थी ।
“ल....लेकिन योजना क्या है ?” जगदीश पालीवाल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
मुस्कराया दीवानचन्द ।
उसने इस समय भी अपने चेहरे पर नकाब धारण की हुई थी ।
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द अपनी चिर-परिचित ‘सिन्धी’ भाषा में बोला- “वडी हमने सुना है कि कल शाम पांच बजे बंगलुरू से हवाई जहाज द्वारा दो ताबूतों में शेर और चीते की खालें दिल्ली लायी जा रही हैं जिनमें पहले भूसा भरा जायेगा और फिर उन्हें प्रदर्शनी
के लिये म्यूजियम में रखा जायेगा।"
पालीवाल चौंका।
"त...तुम्हें यह सब कैसे मालूम?"
“वडी हमें तो यह भी मालूम है नी ।” सेठ दीवानचंद मुस्कराया- “कि जिन ताबूतों में यह खालें लाया जायेंगी- उन ताबूतों को एअरपोर्ट पर रिसीव करने भी तुम जाओगे ।”
“यह झूठ है- गलत है ।”
“वडी यह सच है ।” दीवानचन्द उससे भी ज्यादा, जोर से चिल्लाया- “साईं- हमें सब मालूम है- हमसे कुछ नहीं छिपा ।”
“लेकिन... ।”
“वडी हमें तो यह भी मालूम है ।” दीवानचन्द पालीवाल की बात काटकर बोला- “कि उन ताबूतों को रिसीव करने का एक अथॉरिटी लैटर तुम्हें मिल भी चुका है ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्का रह गया ।
वह हक्का-बक्का-सा सेठ दीवानचन्द की नकाब में छुपी सूरत को देखने लगा ।
“ल...लेकिन तुम ताबूतों के सम्बन्ध में इतनी छानबीन क्यों कर रहे हो- कहीं तुम्हारा मकसद उन खालों को चुराने का तो नहीं है ?”
“नहीं पालीवाल साईं !” वडी जब दुर्लभ ताज जैसी बेशकीमती चीज आंखों के सामने हो- तो चिड़िया की बीट हाथ लगाना कौन पसन्द करता है ।”
“फिर तुम ताबूतों के बारे में इतने सवाल-जवाब क्यों कर रहे हो ?”
“दरअसल वह दोनों ताबूत दुर्लभ ताज चुराने की दिशा में हमारी बहुत बड़ी मदद करने वाले हैं ।”
“त...ताबूत मदद करने वाले हैं ।” जगदीश पालीवाल की आंखें और ज्यादा आश्चर्य से फैल गयीं- “व...वो कैसे ?”
“वडी- मैं तुम्हें पूरी योजना बताता हूँ- दरअसल कल शाम ठीक पांच बजे वह दोनों ताबूत सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंचेंगे- ठीक ?”
“ठीक ।”
“उन ताबूतों को रिसीव करने तुम इंडियन म्यूजियम की एक स्टेशन वैगन लेकर एयरपोर्ट जाओगे- उस स्टेशन वैगन को एक ड्राइवर चला रहा होगा । सफदरजंग एयरपोर्ट पहुँचते ही खालों के वह ताबूत वैगन में लाद दिये जायेंगे तथा फिर वो स्टेशन वैगन जिस तरह बिना कहीं रुके म्यूजियम से एयरपोर्ट पहुँची थी । फिर वो उसी तरह सफदरजंग एयरपोर्ट से वापस इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी ।”
जगदीश पालीवाल बड़ी उत्सुकता से सेठ दीवानचन्द की एक-एक बात सुन रहा था ।
“वडी तभी एक घटना घटेगी ।” सेठ दीवानचन्द योजना की रूपरेखा समझाता हुआ बोला- “स्टेशन वैगन ताबूतों को लेकर अभी सफदरजंग एयरपोर्ट से थोड़ी ही दूर आयेगी कि तभी तुम्हारे सिर में एकाएक बड़ा तेज दर्द उठेगा ।”
“म...मेरे सिर में दर्द उठेगा ?” पालीवाल चौंका ।
“हाँ ।”
“क्यों उठेगा ?”
“वडी तुमने एक स्पॉट पर पहुँचकर सिरदर्द का नाटक करना है- जानबूझकर स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने ऐसा शो करना है जैसे तुम्हारे सिर में बहुत तेज दर्द उठ रहा हो ।”
“ल...लेकिन मुझे नाटक करने की क्या जरूरत है ?”
“क्योंकि यही हमारी योजना है पालीवाल साईं ।”
“मैं तुम्हारी किसी योजना पर काम करने वाला नहीं ।” एकाएक जगदीश पालीवाल गुस्से में बोला ।
“काम तो तुम करोगे ।”
“नहीं करूंगा ।”
“वडी अगर नहीं करोगे ।” दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “तो तुम्हारी खैर नहीं- तुम्हारे मासूम बच्चे की खैर नहीं ।”
बच्चे के नाम सुनते ही पालीवाल का सारा गुस्सा हवा हो गया ।
“तुम लोग जबरदस्ती कर रहे हो ।” पालीवाल आन्दोलित लहजे में बोला- तुमने गुड्डू की जान के बदले में मुझसे सिक्योरिटी की जानकारी मांगी थी- वह जानकारी मैंने तुम्हें दे दी- किस्सा खत्म । अब मैं तुम्हारी कोई बात मानने के लिये बाध्य नहीं हूँ ।”
“वडी तुम्हें अपने बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“वडी मुझे मेरे सवाल का जवाब दो ।” दीवानचन्द चिंघाड़ा- तुम्हें बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
“अ...अपने बच्चे की जान किसे प्यारी नहीं होती ।”
“अगर उसकी जान प्यारी है पालीवाल साईं- तो तुम्हें वही करना होगा, जो हम कहेंगे- हमारी हर बात माननी होगी ।”
जगदीश पालीवाल कसमसाकर रह गया ।
“वडी अब आगे सुनो ।” दीवानचन्द बोला- “तुमने स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने भयंकर सिरदर्द का नाटक इसलिये करना है- ताकि तुम ड्राइवर को टेबलेट लेने किसी केमिस्ट की दुकान पर भेज सको । इस पूरे ड्रामे का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि ड्राइवर को कुछ देर के लिये स्टेशन वैगन से थोड़ा दूर भेजा जा सके । अब यह पूछो कि ड्राइवर को स्टेशन वैगन से दूर भेजने की क्या जरूरत है ।”
“क...क्या जरूरत है ?”
“साईं- जिस समय तुम्हारी स्टेशन वैगन सफदरजंग एयरपोर्ट से चलेगी- उसी क्षण तुम देखोगे कि एक फियेट स्टेशन वैगन के पीछे लगी हुई है । वडी वो फियेट, हमारी फियेट होगी और उसमें हमारे आदमी सवार होंगे । एक पूर्व निधारित तन्हा-सी जगह पर पहुँचकर जैसे ही तुम सिरदर्द का ड्रामा करोगे और ड्राइवर को टेबलेट लेने के लिये भेजोगे- उसी क्षण फियेट के अंदर से निकलकर हमारा एक आदमी तेजी से तुम्हारे पास पहुंचेगा । वडी हमें यह भी मालूम है कि इंडियन म्यूजियम की स्टेशन वैगन दो पोर्शन में बंटी हुई है । आगे वाला जोकि ड्राइविंग पोर्शन है- सिर्फ चार फुट का है । जबकि पिछला पोर्शन, जिसे बॉक्स पोर्शन कहा जाता है- उसकी लम्बाई पंद्रह फुट है । बॉक्स पोर्शन में ही ताबूत जैसे आइटम रखे जाते हैं और उसके लोहे के मजबूत दरवाजे पर हमेशा एक भारी-भरकम ताला झूलता रहता है । एनी वे- उस दिन भी दोनों ताबूत स्टेशन वैगन की उसी बॉक्स पोर्शन में होंगे और उसके दरवाजे पर ताला लगा होगा । लेकिन ड्राइवर जैसे ही स्टेशन वैगन खड़ी करके टेबलेट लेने केमिस्ट की दुकान की तरफ जायेगा- तभी हमारा आदमी तुम्हारे पास पहुंचेगा और तुमने उसे फौरन बॉक्स पोर्शन के ताले की चाबी दे देनी है ।”
“च...चाबी दे देनी है क्यों ?”
“वही बता रहा हूँ साईं । ताले की चाबी मिलते ही हमारा आदमी आनन-फानन में बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोलेगा- दरवाजा खुलते ही हमारे और दो आदमी जो फियेट में बैठे होंगे, वह डकैती डालने वाले थोड़े से साज-सामान के साथ फुर्ती से स्टेशन वैगन के बॉक्स पोर्शन में दाखिल हो जायेंगे । उसके बाद हमारे बॉक्स पोर्शन का ताला वापस लगायेगा- चाबी तुम्हें देगा- और उसके बाद फियेट लेकर पहले की तरह ही सड़क पर आगे बढ़ जायेगा । यह पूरा काम ड्राइवर द्वारा टेबलेट लेकर लौटने से पहले ही कम्पलीट हो जाना है ।”
“ल...लेकिन तुम्हारे दो आदमी बॉक्स पोर्शन में घुसकर क्या करेंगे ?” जगदीश पालीवाल ने जिज्ञासावश पूछा ।
“दरअसल उन दोनों का काम बड़ा महत्वपूर्ण है ।” दीवानचन्द बोला- वडी उन्होंने ही दुर्लभ ताज की चोरी करनी है । बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उन दोनों का सबसे पहला काम ताबूतों के अंदर घुसना होगा । वडी इस बात से तो तुम भी अच्छी तरह वाकिफ होओगे कि ताबूतों में खाल रखे जाने के बाद साधारणतया इतनी जगह जरूर बची रहती है कि उस खाली जगह में एक आदमी आ जाये- ताबूतों में वह खाली जगह छोड़ने के पीछे भी एक साइंटिफिक रीजन होता । वडी ताबूत में वो खाली जगह इसलिये छोड़ी जाती है- ताकि खाल को हवा सही तरह मिलती रहे और खाल मसाला लगी होने की वजह से खराब न हो ।”
जगदीश पालीवाल पूरी योजना बड़े विस्मय से सुन रहा था ।
“लेकिन यह तो तुमने अभी बताया ही नहीं ।” जगदीश पालीवाल बोला- “कि तुम्हारे वह दोनों आदमी ताबूतों में घुसकर क्या करेंगे ?”
“साईं- यह बात भी तुम्हें योजना में आगे चलकर मालूम होगी कि उन दोनों आदमियों ने ताबूतों में घुसकर क्या करना है । फिलहाल तुम्हारे लिये इतना समझ लेना ही काफी है कि बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उनका एकमात्र उद्देश्य ये होगा- कि वो जल्द-से-जल्द उन ताबूतों के अंदर इस तरह घुस जायें कि बाहर से देखने पर किसी को इस बात की भनक तक न मिले- उन ताबूतों के साथ कैसी भी छेड़खानी की गयी है ।”
“वो इस तरह ताबूतों में कैसे घुस सकते हैं ?”
“क्यों नहीं घुस सकते नी ?”
“क्योंकि ताबूत सीलबन्द होते हैं- उन पर सरकारी मुहर लगी होती है ।”
“साईं- हमारे आदमी सील नहीं तोड़ेंगे- उसे हाथ भी नहीं लगायेंगे ।” दीवानचन्द बोला- “वडी वो ताबूत के नीचे से तख्ते उखाड़ कर उसके अंदर घुसेंगे और अंदर घुसते ही ताबूत के तख्ते ठीक उसी तरह वापस ठोंक देंगे- जैसे वो पहले ठुके थे । इस तरह ताबूतों की सील भी लगी रहेगी- ताला भी पड़ा रहेगा- और हमारे दोनों आदमी अपने पूरे साज-सामान के साथ ताबूत के अंदर भी घुस जायेंगे ।”
पालीवाल हक्का-बक्का रह गया ।
“उ...उसके बाद क्या होगा ?” पालीवाल ने सस्पेंसफुल स्वर में पूछा ।
“वडी उसके बाद स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी । म्यूजियम में हॉल नम्बर चार सहित कुल छः हाल कमरे हैं पालीवाल साईं । यहाँ एक बात ध्यान देने के काबिल है- म्यूजियम के बाकी पांच हॉल शाम के पांच बजे ही बंद हो जाते हैं । सिर्फ चार नम्बर हॉल ही एकमात्र ऐसा हॉल है- जो शाम के छः बजे तक खुला रहता है । जबकि शेर-चीते की खाल के जो ताबूत बंगलुरू से दिल्ली आ रहे हैं- उनके सफदरजंग-एयरपोर्ट पहुँचने का टाइम भी शाम के पांच बजे का ही है । तुम क्या समझते हो- उन ताबूतों को एयरपोर्ट से इंडियन म्यूजियम तक पहुँचने में कितना समय लग जायेगा ?”
“लगभग आधा घण्टा !”
“आधा घण्टा !” दीवानचन्द बोला- “और वडी कल चूंकि स्टेशन वैगन बीच रास्ते में भी रुकेगी- इसलिये उसका इंडियन म्यूजियम पौने छः बजे तक ही पहुँचना मुमकिन होगा । करैक्ट ?”
“करैक्ट ।”
“साईं- पौने छः बजे इंडियन म्यूजियम पहुँचने के बाद तुम दोनों ताबूत किस हॉल कमरे में रखोगे ?”
“तीन नम्बर हॉल में ।”
“लेकिन तब तक तो वह हॉल बंद हो चुका होगा ?”
“निःसन्देह तब तक वह हॉल बंद हो चुका होगा ।” जगदीश पालीवाल बोला- “लेकिन हॉल नम्बर तीन और चार की चाबियां हमेशा म्यूजियम के हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह के पास रहती है- जो चौबीस घण्टे म्यूजियम में मिलता है । दरअसल इंडियन म्यूजियम की बैक साइड का एक क्वार्टर सरदार गुरचरन सिंह के नाम अलॉट किया गया है- इसलिये वह या तो म्यूजियम में मिलेगा या फिर अपने क्वार्टर में मिलेगा ।”
“और वडी बाकी हॉल कमरों की चाबियां किसके पास रहती हैं ?”
“वह अलग-अलग हॉल कमरों के अलग-अलग चीफ एग्जीक्यूटिव के पास रहती है ।”
“यानि अगर तुम कल शाम पौने छः बजे एकदम से उन हॉल कमरों की चाबियां हासिल करना चाहोगे, तो वह चाबियां तुम्हें हासिल नहीं होंगी ।”
“हाँ ।”
“वैरी गुड !” दीवानचन्द की आंखों में खुशी की चमक दौड़ी साईं- अब मैं योजना को दोबारा आगे बढ़ाता हूँ । वडी कल शाम पौने छः बजे जब तुम्हारी स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी- तो सरदार गुरचरन सिंह ताबूतों को रखवाने के लिये हॉल नम्बर तीन का दरवाजा खोलना चाहेगा- लेकिन कल उस हॉल का दरवाजा नहीं खुलेगा पालीवाल साईं ।”
“क्यों ?” पालीवाल के दिमाग में धमाका-सा हुआ- “कल उस हॉल का दरवाजा क्यों नहीं खुलेगा ?”
“क्योंकि कल मैं म्यूजियम जाऊंगा- और खुद अपने हाथों से हॉल नम्बर तीन का ताला खराब करके आऊंगा ।”
“वो कैसे ?”
“वडी यह कोई बड़ी बात नहीं । मुझे मालूम हुआ है कि हॉल नम्बर तीन पूरे म्यूजियम में सबसे ज्यादा तन्हा जगह पर है । इतना ही नहीं- पेशाबघर भी उसके काफी नजदीक है । मैंने कल किसी भी वक्त पेशाब करने के बहाने उस तन्हा जगह पर जाकर हॉल नम्बर तीन के ताले में चाबी डालनी है और उसे कसकर इधर-उधर हिला देना है । वह चाबी चूंकि उस ताले की नहीं होगी- इसलिये कसकर इधर-उधर हिलाने से उस ताले के अंदर के कलपुर्जे हिल जायेंगे तथा फिर थोड़ी देर बाद गुरचरन सिंह के खूब कोशिश करने पर भी वो ताला नहीं खुलेगा ?”
“इससे क्या फायदा होगा ?”
“वडी सारा फायदा ही इससे होगा- पूरी योजना ही इस छोटी-सी घटना पर टिकी है ।”
“वो- कैसे ?”
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द- “वडी जब हॉल नम्बर तीन का दरवाजा तो सरदार गुरुचरन सिंह से खुलेगा नहीं और बाकी हॉल कमरों की चाबियाँ उसके पास होंगी नहीं- तो तुम्हीं बताओ साईं वह उन दोनों ताबूतों को किस हॉल में रखवायेगा ?”
पालीवाल सकपका उठा ।
पलक झपकते ही सारी योजना उसकी समझ में आ गयी ।
“जवाब दो साईं ।” दीवानचन्द मुस्कराकर बोला- “वडी वो उन ताबूतों को किस हॉल कमरे में रखवायेगा नी?
“ए...ऐसी परिस्थिति में तो सरदार गुरचरन सिंह को वह ताबूत हॉल नम्बर चार में ही रखवाने होंगे ।”
“सही- बिल्कुल सही कहा तुमने ।” दीवानचन्द प्रफुल्लित हो उठा ।” और वडी यही हम लोग चाहते हैं- यही हमारी योजना है । पालीवाल साईं- सिर्फ वह ताबूत ही हॉल नम्बर चार में बंद नहीं होंगे बल्कि हमारे दोनों आदमी भी उन ताबूतों के साथ-साथ निर्विघ्न उस हॉल में बंद हो जायेंगे । उस हॉल नम्बर चार में जिसकी सिक्योरिटी के इतने जबरदस्त इंतजाम भारत सरकार ने किये हैं । जिस सिक्योरिटी पर ज्यूरी के मेम्बरों को गर्व है । हमारे दोनों आदमी जिस तरह नीचे से तख्ते उखाड़कर ताबूत में घुसे थे- वह हॉल बंद होने के बाद उसी प्रकार तख्ते उखाड़कर ताबूतों से बाहर निकल आयेंगे । अब एक दूसरी बात सुनो- ऐसी परिस्थिति में फॉल्स सीलिंग की छत और प्लास्टर पेरिस की दीवारों में छिपी स्वचालित गनें भी हमारे आदमियों का कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगी । क्योंकि वह स्वचालित गनें भी उसी वक्त हरकत में आती हैं जब हॉल बंद होने के बाद उसमें कोई गलत तरीके से घुसता है । बिल्कुल यही स्थिति शीशे के तिलिस्मी बॉक्स में बंद दुर्लभ ताज की है- वडी वह बॉक्स भी ताज को ऊपर-नीचे ले जाने वाला करामाती प्रदर्शन तभी दिखाता है, जब कोई हॉल में गलत तरीके से घुस जाये- वरना साधारण स्थिति में वो दुर्लभ ताज अपनी जगह फिक्स ही रहता है । पालीवाल साईं- अब तुम अंदाजा लगा सकते हो कि वो ताज, वह युगों पुराना कजाखिस्तान का दुर्लभ ताज कितनी आसानी से हमारे हाथ लग जायेगा ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्की-सी अवस्था में दीवानचन्द का नकाबशुदा चेहरा देखता रह गया ।
उसे अभी भी अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था ।
वो विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उन अपराधियों ने इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना ली है ।
वो वाकई करिश्मा था ।
करिश्मा!
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द खुश होता हआ बोला- “वडी ज्यूरी के मेम्बर उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी करने में बस एक ही जगह मात खा गये- उन्होंने नम्बर चार में तिलिस्मी मायाजाल तो बिछाया साईं , लेकिन उस मायाजाल में बस एक ही लूज पॉइंट छोड़ दिया कि वो सिक्योरिटी सिस्टम तभी हरकत में आयेगा- जब कोई उस हॉल में गलत तरीके से प्रवेश करे- वरना सब कुछ सामान्य रहेगा । अगर इस सिक्योरिटी सिस्टम में यह लूज पॉइंट न होता- शायदा आज हम किसी भी हालत में उस दुर्लभ ताज को चुराने की योजना न बना पाते । लेकिन इसमें ज्यूरी के उन मेम्बरों की भी क्या गलती है साईं- वडी उन्हें यह कोई ख्वाब थोड़े ही चमका होगा कि कोई इस तरह भी हॉल में घुस सकता है ।”
जगदीश पालीवाल सकते जैसी अवस्था में बैठा ।
“साईं !” दीवानचन्द दोबारा बोला- “मुझे अब शायद यह कहने की जरूरत नहीं कि तुमने मुझे जो चैलेन्ज दिया था- उसमें मैं जीत चुका हूँ । वडी इस परफेक्ट योजना से साबित हो चुका है कि सचमुच इस दुनिया में कोई काम नामुमकिन नहीं ।”
“एक बात बताओ ।” पालीवाल शुष्क स्वर में बोला ।
“पूछो ।”
“मैं मानता हूँ । कि तुम्हारे दोनों आदमी, उस दुर्लभ ताज को आसानी से चुरा लेंगे- लेकिन फिर वो उस दुर्लभ ताज को लेकर हॉल नम्बर चार से किस तरह बाहर निकलेंगे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर बाहर से ताला पड़ा है और म्यूजियम में चप्पे-चप्पे पर सिक्योरिटी गार्डों का पहरा है ।”
सेठ दीवानचन्द ने उनके हॉल नम्बर चार से बाहर निकलने की भी योजना बतायी ।
वह योजना हॉल में घुसने वाली योजना से भी ज्यादा जबरदस्त थी ।
पालीवाल हतप्रभ रह गया ।
पूरी योजना में कहीं सुई की नोंक के बराबर भी लूज पॉइंट नहीं था ।
“इसमें कोई शक नहीं ।” फिर जगदीश पालीवाल थोड़ा रुककर प्रभावित स्वर में बोला- “कि तुमने इतने मजबूत विश्वस्तर के सिक्योरिटी सिस्टम को भेदने की एक मास्टर पीस योजना बना ली है- लेकिन इस योजना को बनाते समय तुम एक बहुत महत्वपूर्ण बात भूल गये ।”
“वो क्या ?”
दीवानचन्द के साथ-साथ सब चौंके ।
सब हैरान हुए ।
“दुर्लभ ताज तो तुम चुरा लोगे- लेकिन उस दुर्लभ ताज के बारे में कहा जाता है कि वो अपनी सुरक्षा खुद करता है । और यह सच भी है- आज तक जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया- वही किसी-न-किसी दुर्घटना में मारा गया या बर्बाद हो गया । आज तक ऐसी दर्जनों कहानियां उस दुर्लभ ताज के साथ जुड़ चुकी हैं- जब अपराधियों ने तुम्हारी तरह ही बड़े जोर-शोर के साथ का प्रयास किया- लेकिन वो अपने मकसद में सफल न हुए ।”
“वडी इस बार हम सफल होंगे ।” दीवानचन्द ने दृढ़ शब्दों से कहा- “यह सब कहानियां, सिर्फ कहानियां है- जिसमें सच्चाई नहीं- हकीकत नहीं । इन कहानियों को सिर्फ इसलिये गढ़ा गया है- ताकि हमारे जैसे अपराधियों के दिलों में खौफ पैदा किया जा सके और उन्हें दुर्लभ ताज चुराने से रोका जा सके ।”
पालीवाल कुछ न बोला ।
वो भांप गया कि उन्हें समझाना बेकार है ।
वह अब कोई-न-कोई गुल खिलाकर रहेंगे और अपने मासूम बच्चे की जिंदगी के लिये उसे भी मजबूरन उनकी योजना में शामिल होना पड़ेगा ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
बहरहाल फिर जगदीश पालीवाल को कुछ जरूरी निर्देश देकर वहाँ से विदा कर दिया गया ।
उसे विदा करते ही सेठ दीवानचन्द ने आनन-फानन योजना में काम आने वाले सामान की एक लिस्ट बनायी ।
एक फायर ब्रिगेड वैन ।
चार अग्निशमन कर्मचारियों की खाकी वर्दियां ।
गैस मास्क ।
गैस टैंक ।
हेलमेट ।
.32 या .38 कैलिबर की स्मिथ एण्ड वैसन या कोल्ट जैसी बेहद उम्दा किस्म की चार रिवॉल्वरें- जो खतरे के समय में सुरक्षा कवच का काम अंजाम दे सकें ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज ।
दस-दस लीटर वाली कैरोसीन ऑयल की दो केनें ।
हथौड़ा ।
कीलें ।
आदि-आदि ।
सामान की लिस्ट तैयार होते ही वह सब फौरन सामान जुटाने के काम में लग गये ।
शनिवार की रात दस बजे तक उन्होंने लगभग सारा सामान एकत्रित कर लिया ।
सबसे ज्यादा परेशानी फायर बिग्रेड वैन के हासिल होने में पेश आयी ।
लेकिन आखिरकार उन्हें प्राइवेट संस्थान द्वारा बेची जा रही बिल्कुल चालू हालत में फायर ब्रिगेड पच्चीस हजार रुपये में मिल गयी ।
अग्निशमन कर्मचारियों का सामान बेचने वाली एक रिटेल शॉप से उन्होंने अग्निशमन कर्मियों की चार सिली सिलाई वर्दियां, बेज, गैस मास्क, गैस टैंक और हेलमेट वगैरह सब खरीद लिये ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज उन्हें जामा मस्जिद के मीना बाजार से हासिल हो गया- उसमें थोड़ी बहुत जो कमी थी, वो दशरथ पाटिल ने ठीक कर दी ।
बाकी इंग्लिश रिवॉल्वरें, कैरोसीन ऑयल, कील, हथौड़ा जैसी बेहद साधारण चीजें भी उन्हें आसानी से उपलब्ध हो गयी ।
वह फिर इकट्ठे हुए ।
इस बार सेठ दीवानचन्द ने सबको यह बताया कि किसने क्या-क्या करना था ।
हॉल नम्बर तीन के ताले को खराब करने की जिम्मेदारी सेठ दीवानचन्द ने खुद संभाली- जो कि सबसे आसान काम था ।
दुष्यंत पाण्डे को सफदरजंग एयरपोर्ट से स्टेशन वैगन का पीछा करते समय फियेट ड्राइव करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी ।
और सबसे खतरनाक मुहिम पर, ताबूतों में घुसकर दुर्लभ ताज चुराने का काम दशरथ पाटिल और राज को सौंपा गया ।
☐☐☐
खुद को इतने जोखिम भरे काम पर नियुक्त होते देख राज का दिल नगाड़े की तरह बज उठा ।
उसका कलेजा मुँह को आ गया ।
वह अपने सवेंट क्वार्टर जैसे छोटे से कमरे में लेटा बेइन्तहा बेचैनी का अनुभव कर रहा था ।
उसे यह पता तक न चला कि डॉली कब उसके नजदीक आकर खड़ी हो गयी ।
“राज !” डॉली ने उसे आहिस्ता से पुकारा ।
राज चुपचाप पड़ा रहा ।
“राज !” इस मर्तबा डॉली ने आवाज देने के साथ-साथ उसे झंझोड़ा भी- तो वह चौंककर पलटा ।
“त...तुम !” डॉली को देखकर उसकी आवाज कांपी- “तुम !”
“क्या सोच रहे हो ?”
“क...कुछ भी तो नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली उसके नजदीक ही बैठ गयी- “क्या मैं नहीं जानती कि तुम इस वक्त क्या सोच रहे हो ।”
“क...क्या सोच रहा हूँ ?”
“तुम कल की योजना को लेकर डर हुए हो- यह सोच-सोचकर तुम्हारी जान निकल रही है कि सेठ दीवानचन्द ने तुम्हें कितने खतरनाक काम पर नियुक्त किया है ।”
“न...नहीं ।” राज की आवाज फिर कांपी- “य...यह सच नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली की आवाज कड़वाहट से भर गयी- “मैं क्या तुमसे वाकिफ नहीं । आज तक पूरी जिंदगी में कभी एक मक्खी तक नहीं मारी- कभी किसी के दस पैसे चुराने तक का हौसला दिल में पैदा नहीं हो सका- और कल तुम्हें इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी में रखा दुर्लभ ताज चुराने के लिये भेजा जा रहा है । ऐसी परिस्थिति में अगर तुम डरोगे नहीं- तो क्या करोंगे ।”
राज अब साफ-साफ सहमा हुआ नजर आने लगा ।
“राज !”
राज चुप रहा ।
“मेरी बात ध्यान से सुनो राज !” डॉली फुसफुसा उठी- “उस दुर्लभ ताज को चुराना तुम्हारे जैसे चूहे दिल वाले आदमी के बस का काम नहीं है । मुझे तो बार-बार यह सोचकर हैरानी हो रही है कि सेठ दीवानचन्द ने इतने खतरनाक काम को अंजाम देने के लिये तुम्हारे जैसे डरपोक व्यक्ति को ही क्यों चुना । एक बात बोलूं राज ?”
“क...क्या ?” राज का सस्पेंसफुल स्वर ।
“मुझे तो इसमें भी सेठ दीवानचन्द की कोई चाल नजर आती है । तुम मानो या मानो- लेकिन मुझे साफ-साफ लगता है कि वह तुम्हें जरुर किसी नये चक्कर में फंसाने जा रहा है वरना वह खुद भी तो हॉल नम्बर चार के अंदर जा सकता था- दशरथ पाटिल के साथ दुष्यंत पाण्डे को भी तो भेजा जा सकता था । लेकिन नहीं- उसने ऐसा कुछ नहीं किया । उसने तुम्हें चुना- तुम्हें- एक बिल्कुल नये, बेहद डरपोक तथा, नातजुर्बेकार आदमी को ।”
“त...तुम कहना क्या चाहती हो ?”
“मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूँ कि अब तुम्हारा यहाँ एक मिनट और भी रुकना खतरे से खाली नहीं है- तुम्हारी जान जोखिम में है- इसलिये जितना जल्द-से-जल्द संभव हो, यहाँ से भाग चलो ।”
“न...नहीं- यह नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ? क्या तुम अड्डे से बाहर निकलने का रास्ता नहीं जानते ?” डॉली फुसफुसाई ।
“वह सब जानता हूँ- ल...लेकिन मैं भागकर कहाँ जाऊंगा डॉली ? राज की आवाज में पीड़ा थी- “कहाँ मुझे आसरा मिलेगा ? म...मेरी जिंदगी अब शै और मात के खतरनाक खेल में फंस चुकी है । पूरे दिल्ली की पुलिस मुझे इस तरह तलाशती घूम रही है- जैसे भूसे के ढेर में सुई तलाश की जाती है ।”
“फ...फिर, तुम क्या करोगे ?”
“मैं कर भी क्या सकता हूँ ।” राज के स्वर में बेहद निराशा थी- “अब तो मेरे सामने यही एक रास्ता है कि मैं सेठ दीवानचन्द के आदेश का पालन करूं । ल...लेकिन मेरे दिमाग में अब एक योजना और है डॉली ।”
“य...योजना- कैसी योजना ?”
“मैंने इन शैतानों को चुपचाप बातें करते सुना है कि दुर्लभ ताज हाथ में आते ही यह तीनों हिन्दुस्तान छोड़कर खामोशी से अपने सुपर बॉस के साथ अमरीका भाग जायेंगे । इसके लिये जाली पासपोर्ट और वीजे वगैरह की भी तैयारियां हो चुकी हैं ।”
“कहीं तुम इस गलतफहमी में तो नहीं ।” डॉली तुरन्त बोली- “कि यह तुम्हें भी अपने साथ अमरीका ले जायेंगे ?”
“मैं इतना बड़ा पागल नहीं हूँ- जो इस तरह के लोगों से ऐसी उम्मीद रखूंगा ।”
“फ...फिर क्या योजना है तुम्हारी ?”
राज अब डॉली की तरफ झुक गया तथा और धीमे स्वर में फुसफुसाया- “अब यह लोग कभी अमरीका नहीं जा सकेंगे डॉली ।”
“य...यह तुम क्या कह रहे हो ?” डॉली के नेत्र आश्चर्य से फैल गये ।
“मैं ठीक ही कह रहा हूँ । इस वक्त तुम मेरी कोई बात अच्छी तरह नहीं समझ सकोगी- लेकिन अब एक बात ध्यान रखना । आज तक तुम मुझे डरपोक और बुजदिल समझती थी न- तो सुनो अब डरपोक राज मर गया । आज से एक एसा नया राज जन्म लेगा- जो अपने आपमें बहादुरी की मिसाल होगा । आज तक लोग मेरे खिलाफ षड्यन्त्र रचते थे- लेकिन अब मैं षड्यन्त्र रचूंगा । ऐसा षडयन्त्र- जो सबके छक्के छुटा देगा ।” बोलते-बोलते राज की आंखों में खून उतर आया- “और...और उस व्यक्ति को तो मैं किसी भी हालत में माफ नहीं करूंगा डॉली- जिसकी वजह से आज मेरी यह हँसती-खेलती जिंदगी नरक बन गयी है ।”
राज का चेहरा ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा ।
होंठ गुस्से से कंपकंपाने लगे ।
वह एक ही पल में दरिन्दा बन चुका था- साक्षात दरिन्दा ।
राज का वह रौद्र रूप देखकर उस साये का कलेजा पत्ते की तरह कांप उठा- जो उस छोटे से कमरे के दरवाजे से आंख और कान सटाये खड़ा उनका वार्तालाप सुन रहा था ।
अगले ही पल वो तेजी से पलटा ।
उसके शरीर में फुर्ती-सी समा गयी थी ।
फिर वो लम्बे-लम्बे डग रखता हुआ कांफ्रेंस हॉल की तरफ बढ़ गया ।
गहन अंधकार में भी उस साये के कदम इस तरह उठ रहे थे- मानो वह उस अड्डे के एक-एक हिस्से से वाकिफ हो ।
वह बल्ले था ।
बल्ले!
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
फिर योजना का अगला चरण शुरू हुआ ।
हॉल में बंद होने के बाद सबसे पहले दशरथ पाटिल अपने ताबूत के तख्ते उखाड़कर बाहर निकला ।
फिर उसके पीछे-पीछे राज भी निकला ।
जैसा कि स्वाभाविक था- फॉल्स सीलिंग की छत और प्लास्टर पेरिस की दीवारों के पीछे छिपी स्वचालित गनों ने उनके ऊपर गोलियां नहीं बरसायी ।
ताबूतों से बाहर निकलते ही वह दोनों उस शीशे के बॉक्स की तरफ बढ़े गये- जिसमें दुर्लभ ताज रखा था ।
और जिसकी कीमत कई अरब रुपये थी ।
पलक झपकते ही वो दुर्लभ ताज दशरथ पाटिल के हाथों में था ।
उसी पल राज ने उस शीशे के बॉक्स में पीतल का वो नकली ताज रख दिया- जिसे उन्होंने जामा मस्जिद के मीना बाजार से खरीदा था ।
इस तरह बिना किसी मुश्किल के- बिना किसी बड़े हंगामे के वो ताज चोरी हो गया ।
अब उन्हें उस दुर्लभ ताज को लेकर सिर्फ उस हॉल से बाहर निकलना बाकी था ।
हालांकि वो काफी मुश्किल काम था ।
लेकिन वो भी हुआ ।
कुशलतापूर्वक हुआ ।
वहाँ से भाग निकलने की योजना रात के दस बजे से शुरू हुई ।
वो योजना काफी हंगामाखेज थी ।
हंगामाखेज भी- और दहला देने वाली भी ।
जैसे ही रात के दस बजे- फौरन दशरथ पाटिल और राज ने अपने साथ लायी कैरोसिन ऑयल की केनों में-से तेल हॉल के अंदर-ही-अंदर चारों तरफ छिड़कना शुरू कर दिया ।
इतना ही नहीं- फिर दशरथ बिलीमारिया ने आग भी लगा दी ।
☐☐☐
फौरन चार नम्बर हॉल के अंदर धूं-धूं करके आग लगने लगी ।
धुंआ तेजी से बाहर निकलने लगा ।
“आग- आग- आग- ।”
इंडियन म्यूजियम की सिक्योरिटी रात होने की वजह से उस वक्त अपनी चरम सीमा पर थी- जब एकाएक चारों तरफ आग-आग का भीषण कोलाहल मच गया ।
सब इधर-से-उधर भागने लगे ।
बाहर तैनात हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह के कानों में भी जैसे ही उस कोलाहल की आवाज पड़ी- वह भी म्यूजियम के अंदर की तरफ भागा ।
“क...क्या हुआ ? अंदर आते ही गुरचरन सिंह ने एक सिक्योरिटी गार्ड से पूछा- “क्या हुआ?”
“ह...हॉल नम्बर चार में आग लग गयी है सर ।” सिक्योरिटी गार्ड ने बुरी तरह बौखलाये हुए कहा- ब...बहुत बुरी तरह आग लगी है ।”
“ल...लेकिन कैसे ?” गुरचरन सिंह के नेत्र फटे- “कैसे लगी आग ?”
“यह मालूम नहीं सर- म...मगर खूब धुआं उठ रहा है- खूब आग की लपटें निकल रही हैं ।”
सरदार गुरचरन सिंह फौरन हॉल नम्बर चार की तरफ दौड़ पड़ा ।
वास्तव में ही धुएं से पूरा गलियारा भरा पड़ा था ।
अंदर उठती भीषण आग की लपटें दरवाजे की झिर्री में से भी साफ नजर जा रही थीं ।
सरदार गुरचरन सिंह को एकाएक न जाने क्या सूझा कि उसने दौड़कर वह सभी वायरें उधेड़नी शुरू कर दीं- जिनकी बदौलत हॉल नम्बर चार में सिक्योरिटी का वह तिलिस्मी जाल बिछाया गया था ।
पलक झपकते ही वो पूरा सिक्योरिटी सिस्टम ठप्प हो गया ।
लेकिन बदहवासी के आलम में उठाये गये इस कदम से सेफ्टी अलार्म बज उठा था ।
परिणामस्वरूप पूरे दिल्ली शहर की पुलिस में हड़कम्प मच गया ।
सभी सीमा चौकियां को सतर्क कर दिया गया ।
रोड क्लॉक कर दिये गये ।
पुलिस की जिप्सियां, पी.आर.सी., वैनें, जीपें- वह सब हथियारबन्द पुलिसकर्मियों से भर-भरकर इंडियन म्यूजियम की तरफ भागने लगी ।
तभी घटना ने एक और मोड़ लिया ।
टन-टन की आवाज आसपास के सारे वातावरण में गूंज उठी थी ।
“फायर ब्रिगेड आ गयी ।” एक सिक्योरिटी गार्ड चीख-पुकार मचाता अंदर की तरफ भागा- “फायर ब्रिगेड आ गयी ।”
वह ‘फायर ब्रिगेड’ आने का ऐसा शोर मचा रहा था- जैसे कोई तोप घुसी चली आ रही हो ।
☐☐☐
फायर ब्रिगेड इंडियन म्यूजियम के प्रांगण में आकर रुक गयी ।
फिर उस फायर ब्रिगेड वैन के अंदर से दो अग्निशमन कर्मचारी बड़ी फुर्ती से बाहर कूदे ।
“नीचे कूदते ही उन्होंने पानी का एक-एक मोटा पाइप अपने हाथों में ले लिया ।
“आग किधर लगी है ?” उनमें से एक अग्निशमन कर्मचारी हलक फाड़कर चिल्लाया ।
“हॉल नम्बर चार में- जल्दी वहाँ पहुंचो- जल्दी ।”
फौरन वह दोनों कर्मचारी हॉल नम्बर चार की तरफ दौड़ पड़े ।
सिर पर हैलमेट और मुँह पर गैस मास्क लगा होने की वजह से उनका पूरा चेहरा छिप गया था ।
पीठ पर गैस टंकियां बंधी थीं ।
वह सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे थे ।
“वडी फौरन इस हॉल का दरवाजा खोलो ।” चार नम्बर हॉल के नजदीक पहुँचकर सेठ दीवानचन्द ने हलक फाड़ा- “वरना सब कुछ जलकर राख हो जाना है ।”
सरदार गुरचरन सिंह- जो अनायास घटे इस हादसे से बुरी तरह बौखलाया हुआ था- उसने फौरन हॉल नम्बर चार का दरवाजा खोल दिया ।
इतना ही नहीं!
हॉल का दरवाजा खोलते ही वह अपनी जान की परवाह किये बिना धधकती आग में उसके अंदर कूद गया ।
फिर वो अपनी सेल्फ लोडिंग राइफल संभाले दौड़ता हुआ दुर्लभ ताज के नजदीक जा खड़ा हुआ ।
हड़बड़ाहट में ही उसने देखा कि दुर्लभ ताज अपनी जगह पर सुरक्षित मौजूद है ।
वह फौरन राइफल संभाले दुर्लभ ताज के पास यूं तनकर खड़ा हो गया- मानो अगर आज उस ताज को चुराने दुनिया की कोई भी ताकत उसके सामने आ गयी, तो वह अकेला ही उसे तहस-नहस कर डालेगा ।
अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित था गुरचरन सिंह ।
लेकिन काश!
काश उसने दुर्लभ ताज को ध्यान से देखा होता ।
तो उसे मालूम पड़ता कि जिस ताज की हिफाजत के लिये वो अपनी जान की बाजी लगाकर वहाँ खड़ा है- वह ताज तो कभी का चोरी हो चुका है ।
उधर- सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे वहाँ एक नया ही नाटक खेल रहे थे । वह पाइप से निकलते पानी के मोटे धारे को आग पर बरसाने की बजाय इधर-उधर दीवारों पर मार रहे थे ।
यही वजह थी- आग बुझने की बजाय हर पल और भीषण रूप धारण करती जा रही थी ।
उन दोनों की नजर हॉल में दीवार से चिपके खड़े दशरथ पाटिल और राज पर भी पड़ चुकी थी ।
उन दोनों के चेहरों पर सफलता की चमक विद्यमान थी ।
वह खुश थे ।
इस बीच म्यूजियम के बाहर पुलिस फोर्स का विशाल जमघट इकट्ठा हो गया ।
तभी अपना कानफोड़ सायरन बजाती हुई फायर ब्रिगेड वैनों का एक बड़ा काफिला म्यूजियम के प्रांगण में आकर रुका ।
देखते-देखते वहाँ चारों तरफ अग्निशमन कर्मचारी-ही-कर्मचारी नजर आने लगे ।
राज, सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे को जैसे उसी पल का इंतजार था ।
वह अग्निशमन कर्मचारियों की भीड़ का फायदा उठाकर वहाँ से भाग खड़े हुए ।
राज और दशरथ पाटिल भी चूंकि अग्नि कर्मचारियों की ड्रेस में ही थे- इसलिये उन्हें वहाँ से भागने में कोई परेशानी न हुई ।
सबने यही समझा कि उनकी फायर ब्रिगेड वैन के टेंकर का पानी खत्म हो गया है- इसलिये वो वापस जा रहे हैं ।
बहरहाल सारे सुरक्षा प्रबन्ध रखे रह गये ।
म्यूजियम के बाहर दिल्ली पुलिस के जत्थे-के-जत्थे खड़े रह गये ।
और वह चार आदमी- सिर्फ चार आदमी उनके बीच से उस बेहद मूल्यवान दुर्लभ ताज को ले उड़े ।
उससे भी ज्यादा डूब मरने की बात यह थी कि किसी को इस बात की कानों-कान भनक तक नहीं थी कि वो दुर्लभ ताज चोरी हो गया ।
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अगले दिन धमाका हुआ ।
अगले दिन के सारे समाचार-पत्र एक ही खबर से रंगे पड़े थे-
बेहद जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद दुर्लभ ताजा चोरी किलेबंद सिक्योरिटी को आसानी से भेदा गया
हर अखबार ने उस समाचार के अलग-अलग शीर्षक बनाये थे ।
उस समाचार को खूब मिर्च-मसाला लगाकर छापा गया था ।
दो-तीन अखबारों ने तो दिल्ली पुलिस की कार्यकुशलता पर व्यंग्य भी कसे थे और फ्रंट पेज पर कार्टून भी प्रकाशित किये थे ।
बहरहाल उस समाचार में एक बात और बड़ी दिलचस्प थी- जिससे वाकई दिल्ली पुलिस की काबिलियत का पता चलता था ।
उस खबर के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने दुर्लभ ताज चुराने के इल्जाम में तत्काल ही एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर लिया था ।
वह व्यक्ति था- इंडियन म्यूजियम का हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह!
गुरचरन सिंह का दोष ये था- उसने अग्निशमन कर्मचारियों के कहने पर हॉल नम्बर चार का दरवाजा क्यों खोला ?
फिर वो उनके आगे-आगे आग में क्यों कूदा ?
इस सम्बन्ध में दिल्ली पुलिस के एक बड़े अफसर की टिप्पणी भी अखबारों में छपी थी- जो काबिलेगौर थी- “यह सब सरदार गुरचरन सिंह की वजह से हुआ । सरदार गुरचरन सिंह अपराधियों का ‘इनसाइड हैल्पर’ था । जरूर उसी न हॉल नम्बर चार में भीषण अग्निकाण्ड किया था और फिर वह आग में आगे-ही-आगे कूदा भी इसलिये था- ताकि दुर्लभ ताज चुराने में अपराधियों की मदद कर सके । बहरहाल गुरचरन सिंह से कठोर पूछताछ की जा रही है तथा उम्मीद है कि बहुत जल्द चोरी से सम्बन्धित कुछ और रहस्य की गुत्थियां भी सुलझेंगी ।”
वाकई- बेचारा सरदार गुरचरन सिंह फंस गया था ।
खामख्वाह फंस गया था ।
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