Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:40 PM,
#51
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
डॉली ने डरते-डरते दरवाजा खोला-सामने रौद्र रूप में जगदीश पालीवाल खड़ा था ।
उसकी कनपटी की नसें तनी हुई थीं-नथुने फूल-पिचक रहे थे ।
राज उसके दरवाजा खोलने से पहली ही बैड के नीचे जा छिपा था ।
“अ...आप !” जगदीश पालीवाल का वो रौद्र रूप देखकर डॉली कांप गयी-“अ...आप इस वक्त !”
“पीछे हटो ।” पालीवाल गुर्राया ।
डॉली सहमकर पीछे हो गयी ।
उसके हाथ-पैर ‘जूड़ी’ के मरीज की तरह कांपने लगे ।
“कौन हो तुम ?” अंदर आते ही पालीवाल चिंघाड़ा ।
“स...संध्या-म...मैं संध्या हूँ ।”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल कहर भरी नजरों से उसे घूरता हुआ धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा-“तुम संध्या नहीं हो-तुम संध्या नहीं हो सकतीं ।”
“क...क्यों ?” संध्या के शरीर में झुरझुरी दौड़ी-“म...मैं संध्या क्यों नहीं हो सकती ?”
“क्योंकि तुम किसी अपराधी संगठन की मैम्बर हो ।” पालीवाल चीखकर बोला-“और...और तुम्हारा यह नाम भी नकली है ।”
“डॉली हक्की-बक्की रह गयी ।
उसके दिमाग में भयंकर विस्फोट हुआ ।
जबकि जगदीश पालीवाल ने उसी क्षण आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ रिवॉल्वर निकालकर डॉली के ऊपर तान दी थी ।
☐☐☐
पसीनों में लथपथ होती चली गयी डॉली !
“यह झूठ है ।” वो हलक फाड़कर डकरायी-“म...मैं किसी अपराधी संगठन की मैम्बर नहीं-मैं अपराधी नहीं ।”
मुझे बेवकूफ मत बनाओ ।” जगदीश पालीवाल ने दांत किटकिटाते हुए डॉली के माथे पर रिवॉल्वर रखी-“बहुत हो चुका अब यह नाटक-मैं तुम्हारी तमाम हरकतों से वाकिफ हो चुका हूँ चालाक लड़की । मुझे मालूम हो चुका है कि तुमने गवर्नेस की यह नौकरी भी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ।”
क...कौन कहता है ।” डॉली ने हिम्मत करके पूछा-“कि मैंने गवर्नेस की यह नौकरी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ?”
“मैं कहता हूँ ।” पालीवाल डकराया-“हालात कहते हैं तुम्हारी वह झूठी कहानी कहती है-जो तुमने मुझे इण्टरव्यू के दौरान सुनायी ।”
“कौन-सी कहानी ?”
“यही कि तुम चण्डीगढ़ के किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो-जिसका नाम दीनदयाल मिश्रा था-जिसके परिवार की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी-तुम्हारी वह तमाम बातें-तमाम तर्क झूठे हैं लड़की-सब कुछ मनगढंत है ।”
“झूठ बोल रहे हैं आप !” डॉली बिफरकर बोली-“इस तरह का आरोप लगाकर आप एक निर्दोष और मजबूर लड़की के अकेलेपन का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“शट अप ।”
चिंघाड़ा जगदीश पालीवाल -फिर उसके हाथ का एक ऐसा झन्नाटेदार झांपड़ डॉली के गाल पर पड़ा कि उसके मुँह से चीख निकल गयी-आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे झिलमिला उठे ।
“यू शुड बी अशेम्ड ऑफ योअर सैल्फ !” पालीवाल चीखता चला गया-“खबरदार जो ऐसा वाहियात इल्जाम मेरे ऊपर लगाया तो ।”
“ल...लेकिन आपके पास इस बात का क्या सबूत है ।” डॉली बोली-कि मेरी कहानी झूठी है ? मनगढंत है ?”
“सबसे पहला और सबसे बड़ा तोयही सबूत है । जगदीश पालीवाल दांत किटकिटाकर बोला-“कि तुम न तो चण्डीगढ़ की रहने वाली हो और न दीनदयाल मिश्रा नामक किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“बताता हूँ-सब कुछ बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हिलाता हुआ बोला-“इसमें कोई शक नहीं कि तुमने पूरा ड्रामा बड़े ही शानदार ढंग से किया था-मुझे शायद सात जन्म तक भी तुम्हारे ऊपर शक न हो पाता । लेकिन आज सुबह नेशनल म्यूजियम से लौटते समय काफी हद तक तुम्हारी हकीकत का पर्दाफाश हो गया ।
“क...क्यों-उस समय मैंने ऐसा क्या बोल दिया था-जो पर्दाफाश हो गया ।”
“तुम्हें याद है ।” पालीवाल बोला-“नेशनल म्यूजियम से लौटते समय तुम्हारे दिल-दिमाग पर एक ही चीज हावी थी-ताज और दुर्लभ ताज ! उस बेहद मूलयवान ताज के बार तुमने मुझसे एक ऐसा सवाल पूछा-जिसने तुम्हारी हकीकत की सारी कलई खोल दी । याद है तुम्हें -तुमने मुझसे उस ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में पूछा था और तुम्हारे मुँह से उस सवाल को सुनते ही मैं उछल पड़ा ।”
“क्यों-उछल क्यों पड़े तुम ?”
“क्योंकि आमतौर पर साधारण आदमियों को गुप्त सिक्योरिटी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती-वो यही समझते हैं कि जो दिखाई दे रही है-वही सारी सिक्योरिटी है । इसके पीछे महत्वपूर्ण वजह भी है-क्योंकि गुप्त सिक्योरिटी के बारे में न तो लोगों को कोई जानकारी ही होती है और न इस तरह की सिक्योरिटी की पब्लिसिटी ही की जाती है । ऐसी परिस्थिति में एक बेहद सामान्य लड़की के मुँह से गुप्त सिक्योरिटी की बात सुनकर भला कौन ऑफीसर न चौंक पड़ेगा । फौरन मेरे दिमाग में यह बात खलबली मचाती चली गयी कि जरूर कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ है-जरूर तुम कोई खतरनाक खेल, खेल रही हो । मैंने फौरन तुम्हारी हकीकत पता लगाने का फैसला कर लिया और इसी दिशा में मैंने सबसे पहले तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम पूछा ।”
डॉली भौंचक्की निगाहों से पालीवाल को देखने लगी ।
“प...पिताजी का नाम क्यों पूछा तुमने ?”
“बताता हूँ-वह भी बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल एक के बाद एक धमाका करता हुआ बोला-दरअसल तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम मालूम करके मैंने चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया-वहाँ के कमिश्नर को मैंने तुम्हारे पिताजी का नाम बताया और तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी पूरी कहानी बतायी । मैंने वहाँ के कमिश्नर से आग्रह किया कि वो पूरी जांच-पड़ताल कराकर मुझे रिपोर्ट दें ।
“ल...लेकिन जब उन्हें मेरे चण्डीगढ़ के घर का एड्रेस ही मालूम नहीं था ।” डॉली बोली-“तो वह मेरे बारे में जांच-पड़ताल कैसे कर सकते थे ?”
“एड्रेस पता लगा लेना बहुत मामूली काम है ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हाथ में लिये-लिये बोला-“तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि लगभग सभी शहरों में वस्त्र व्यापारी संघ के नाम से कपड़ा व्यापारियों का एक संगठन होता है-और छोटे-बडे सभी कपड़ा व्यापारी उस संगठन के मैम्बर होते हैं ऐसा ही एक वस्त्र व्यापारी संघ चण्डीगढ़ में भी है-मैंने जैसे ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर को तुम्हारे बारे में रिपोर्ट भेजी-तो फौरन हैडक्वार्टर के एक सब-इंस्पेक्टर ने चण्डीगढ़ के वस्त्र व्यापारी संघ से सम्पर्क स्थापित किया-संघ के पास शहर के सभी व्यापारियों की एक लिस्ट होती है । सब-इंस्पेक्टर ने जब तुम्हारे द्वारा बताया गया कथित दीनदयाल मिश्रा का नाम संघ के संचालक को बताया-तो फौरन तुम्हारे ड्रामे का पर्दाफाश हो गया । क्योंकि दीनदयाल मिश्रा नाम के कपड़ा व्यापारी तो चण्डीगढ़ में कई थे-लेकिन उनमें ऐसा कोई न था-जिसका परिवार आतंकवादियों के हाथों मारा गया हो या जिसके घर दुकान में आतंकवादियों ने आग लगायी हो । बहरहाल थोड़ी देर पहले ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर से मेरे पास रिपोर्ट आ चुकी है और साबित हो गया है कि तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी कहानी पूरी तरह झूठी है ।”
डॉली को अपने दिमाग में अनार छूटते हुए लगे ।
उसका चेहरा सफेद झक्क् पड़ गया ।
“अब अगर अपनी जिंदगी चाहती हो” जगदीश पालीवाल ने बेहद हिंसक अंदाज में रिवॉल्वर से उसका माथा ठकठकाया-“अगर चाहती हो कि तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म एक लाश में न बदल जाये-तो सच-सच बताओ, कौन हो तुम ? तुम्हें यहाँ किसने भेजा है ?”
तभी उस घटना ने बड़े अप्रत्याशित ढंग से करवट बदली ।
“उस लड़की से क्या पूछते हो साहब !” बैडरूम में धमाका-सा करती एक नई आवाज गूंजी थी-“मैं बताता हूँ कि यह कौन है और इसे यहाँ किसने भेजा है ।”
☐☐☐
जगदीश पालीवाल के दिल-दिमाग पर बम-सा गिरा ।
वह झटके से उस दिशा में घूमा-जिधर से आवाज आयी थी ।
अगले पल उसके होश उड़ गये ।
उसके सामने पौने छः फुट लम्बा सामान्य से बदन वाला राज खड़ा मुस्करा रहा था-राज की गोद में गुड्डू था-जिसकी कनपटी पर उसने रिवॉल्वर रखी हुई थी ।
“क...कौन हो तुम ?” जगदीश पालीवाल के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“दुश्मन का कोई नाम नहीं होता साहब-वह किसी भी रूप में, सामने आ सकता है ।”
“पहेलियां मत बुझाओ ।” पालीवाल गुर्राया-“सच-सच बताओ-कौन हो तुम ?”
“फिलहाल तुम्हारे लिये इतना ही जान लेना काफी है कि मैं संध्या का सहयोगी हूँ ।”
“ओह !”
“यह नाटक न जाने कितना लम्बा चलता मिस्टर !” राज बोला-“इसलिये ये अच्छा ही हुआ कि इस नाटक का यहीं अंत हो गया ।”
“लेकिन यह नाटक रचा क्यों क्या ?”
“वही बताने जा रहा हूँ-मगर उससे पहले अपनी यह रिवॉल्वर मेरे हवाले कर दो ।”
पालीवाल हिचकिचाया ।
“जल्दी करो ऑफीसर-वरना तुम्हारे बेटे की जान को नुकसान पहुँच सकता है-जिसके लिये फिर मैं जिम्मेदार नहीं होऊंगा ।”
जगदीश पालीवाल ने खून का-सा घूंट पीते हुए राज को रिवॉल्वर सौंप दी ।
“गुड !” मुस्कराया राज-“काफी समझदार आदमी हो-हमारा अच्छा साथ निभेगा ।”
“मैं तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुनना चाहता ।” पालीवाल फुंफकारा -“मुझे सिर्फ यह बताओ कि तुम लोग कौन हो ।”
“वही बता रहा हूँ । पहली बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल सही है कि संध्या किसी अपराधी संगठन के लिये काम कर रही है । दूसरी बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल भी सही है कि संध्या ने तुम्हें जो कहानी सुनायी वह बिलकुल मनगढंत है । दरअसल वह कहानी तुम्हें इसलिये सुनाई गयी थी-ताकि तुम्हारी हमदर्दी हासिल करके इस कोठी के अंदर घुसा जा सके ।”
“लेकिन इस ड्रामें के पीछे वजह क्या थी ?”
“वजह !” मुस्कराया राज-“वजह सुनोगे, तो उछल जाओगे ऑफीसर !”
“मैं उछलना ही चाहता हूँ ।”
“ठीक है-तो सुनो ।” राज के चेहरे पर अब थोड़ी कठोरता उभर आयी-“तुमने दिल्ली शहर में सक्रिय उस संगठन के बारे में तो सुना ही होगा-जो दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करता है ।”
“उस संगठन के बारे में कौन नहीं जानता ।”
“वैरी गुड-अगर उस संगठन के बारे में जानते हो-तो अब वही संगठन उस दुर्लभ ताज को भी चुराना चाहता है ।”
“परन्तु तुम दोनों का उस संगठन से क्या सम्बन्ध है ?”
“हमारा सम्बन्ध !” राज ने गले का थूक सटका -“हम उस संगठन के मैम्बर हैं ।”
जगदीश पालीवाल के नेत्र अचम्भे से फैल गये ।
“तुम...तुम उस संगठन मैम्बर हो ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
“दरअसल हमारे संगठन को उस दुर्लभ ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में मालूम नहीं है ।”
“और तुम्हारा संगठन यह सोचता है ।” पालीवाल गुर्राया-“कि मैं तुम्हें उस सिक्योरिटी से वाकिफ करा दूंगा ।”
“बिल्कुल ।” राज ने दृढ़तापूर्वक कहा-हमारा संगठन जो सोचता है-वही होता है ।”
“अफसोस-बेहद अफसोस ! इस बार तुम्हारा गलत व्यक्ति से वास्ता पड़ गया है-मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में नहीं बताऊंगा ।”
“इस नन्ही-सी जान की कीमत पर भी नहीं ?”
“क...क्या मतलब ?” बौखला गया जगदीश पालीवाल ! मतलब यह कि मैं और संध्या फिलहाल तुम्हारे इस बेटे को अपने साथ लेकर जा रहे हैं-हमारे जाने के बाद पूरी रात तुम्हारे पास होगी-तुम खूब अच्छी तरह हमारे प्रस्ताव पर गौर करना-अगर तुमने हमें गुप्त सिक्योरिटी के बारे में बता दिया-तो तुम्हारे बेटे को छोड़ दिया जायेगा । वरना... ।”
“वरना क्या ?”
“वरना हमारा संगठन सिर्फ इतना करेगा ।” राज खूंखार लहजे में बोला-“कि इस मासूम बेटे की गर्दन धड़ से अलग करके तुम्हारे पास भेज देगा-ताकि तुम और तुम्हारी सरकार दोनों ही उस कटे हुए सिर पर दुर्लभ ताज की ताजपोशी कर सको ।”
“न...नहीं । जगदीश पालीवाल दहल गया -“नहीं । तुम ऐसा नहीं करोगे ।”
“हम ऐसा ही करेंगे ।” राज सख्त लहजे में बोला-“अभी तो मैंने सिर्फ तुम्हें उस दृश्य के बारे में बताया है-लेकिन जरा कल्पना करो कि कल जब तुम्हारे मासूम बेटे का कटा हुआ सिर साक्षात् तुम्हारी आंखों के सामने रखा होगा, तब तुम पर क्या बीतेगी । उस समय क्या तुम पागल नहीं हो जाओगे-चीखने नहीं लगोगे-और तुम्हारी पत्नी !” राज ने दांत किटकिटाये-“तुम्हारी पत्नी क्या उस दृश्य को देखकर जिन्दा रह सकेगी ऑफीसर ?”
“नहीं-नहीं ।” जगदीश पालीवाल चिंघाड़ उठा-“तुम दरिंदे हो-वहशी हो ।”
राज के होठों पर मुस्कान खेलती रही ।
“फिलहाल हम जा रहे हैं । ऑफीसर !” राज सहज स्वर में बोला-“कल तुमसे फिर किसी जरिये से सम्पर्क स्थापित किया जायेगा-तब तक अपना फैसला सोचकर रखना ।”
“सुनो-सुनो ।” पालीवाल चीख उठा ।
लेकिन वह नहीं रुके ।
जगदीश पालीवाल चीखता रहा और वो चले गये ।
उसके गुड्डू को लेकर चले गये ।
☐☐☐
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12-05-2020, 12:40 PM,
#52
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अगले ही पल एक सनसनीखेज घटना का जन्म हुआ ।
उस वक्त जब उन्होंने बैडरूम से निकलकर कोठी के गलियारे में कदम रखा-तभी उनके कानों में किसी के भागते कदमों की आवाज पड़ी ।
एक क्षण-सिर्फ एक क्षण के लिये राज की नजर साये पर पड़ी-क्योंकि अगले ही क्षण वो काला साया गलियारे का मोड़ काटकर अंधेरे में गायब हो चुका था ।
और !
उसी क्षण में राज साये को पहचान गया ।
वो काला भुजंग बल्ले था ।
बल्ले !
खौफ से कांप गया राज ।
शरीर में एक साथ हजारों चीटियां रेंगती चली गयीं ।
ब...बल्ले वहाँ क्या करनी आया था
उ...उसे यह कैसे पता चला कि वो वहाँ है ☐
राज और डॉली ने बल्ले के बारे में जितना सोचा -उतनी ही उनकी रूह कांपी ।
☐☐☐
बल्ले, जगदीश पालीवाल की कोठी से निकलकर भागता चला गया ।
जल्द ही वो एक टेलीफोन बूथ के अंदर जा घुसा था ।
उसने रिसीवर उठाया-फिर बड़ी तेजी से कुछ नम्बर डायल किये ।
शीघ्र ही दूसरी तरफ घण्टी जाने लगी थी ।
कुछ देर बेल बजती रही-बजती रही ।
“हैलो !” फिर लाइन पर एक उनींदा-सा स्वर उभरा-“इंस्पेक्टर योगी स्पीकिंग !”
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने फौरन कॉयन-हॉल में एक रुपये का सिक्का डाल दिया-“मैं बोल रहा हूँ-पहचाना मुझे ?”
“कौन ?”
“यानि नहीं पहचाना ?”
एक पल के लिये खामोशी छा गयी ।
“त...तुम बल्ले हो ।” योगी की नींद अब पूरी तरह उड़ चुकी थी ।
“बिलकुल ठीक ।” बल्ले चहका -वाकई आपकी तारीफ करनी होगी इंस्पेक्टर साहब-जो मुझे सिर्फ आवाज से ही पहचान लिया ।”
“इसमें तारीफ जैसी कोई बात नहीं ।” इंस्पेक्टर योगी खुंरदुरे लहजे में बोला-“हम पुलिस वाले हैं बल्ले-ओर अपराधियों को सिर्फ आवाज से पहचान लेना ही हमारी फितरत होती है । खैर यह बताओ-तुमने इतनी रात को मुझे फोन किसलिये किया है ? क्या वकील यशराज खन्ना की हत्या करने के इल्जाम में अपने आपको कानून के हवाले करना चाहते हो ?”
“नहीं-हरगिज नहीं ।” बल्ले की आवाज में सख्ती उभर आयी-“मैंने आपसे पहले भी कहा था इंस्पेक्टर साहब -आज फिर कहता हूँ-मैं तब तक अपने आपको कानून के हवाले करने वाला नहीं, जब तक मैं राज से अपने चाचा के खून का बदला नहीं चुका लेता ।”
“फिर फोन क्यों किया है ।?”
“मैं राज के बारे में आपको एक बड़ी सनसनीखेज जानकारी देना चाहता हूँ ।”
“कैसी जानकारी ?”
“राज आजकल एक बेहद खतरनाक योजना पर काम कर रहा है इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने और ज्यादा सस्पैंस क्रियेट किया-“मैंने आपको जो बताना था-बता दिया । एक पुलिस इंस्पेक्टर होने के नाते अब आगे की इन्वेस्टीगेशन करना आपका काम है -हाँ, मैं आपको इंवेस्टीगेशन करने के लिये एक हिंट जरूर दे सकता हूँ ।”
“क...कैसा हिंट ?”
“डॉली भी उस योजना में राज की मदद कर रही है-अब बंदे को इजाजत दीजिये-नमस्ते !”
“बल्ले-बल्ले !” इंस्पेक्टर योगी चीखता रह गया ।
जबकि बल्ले बड़े निर्विकार अंदाज में टेलीफोन का रिसीवर हुक पर लटका चुका था ।
उसके होठों पर मुस्कान खेल रही थी ।
वो मुस्कान -जो किसी बेहद चालाक व्यक्ति के होठों पर उस समय खेला करती है, जब वो अपने दो दुश्मनों को लड़ाने के लिये कोई बढ़िया चाल चल दे ।
☐☐☐
सुबह के दस बजने जा रहे थे ।
उस दिन का मौसम पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा गरम था ।
एक बार फिर सब लोग कॉफ्रेंस हॉल में जमा थे ।
सेठ दीवानचन्द आयातकार मेज के एक कोने पर ऊंची पुश्त वाली रिवॉल्विंग चेयर पर विराजमान था-उसने आज अपने चेहरे को नकाब से ढका हुआ था-जिसमें से उसकी सिर्फ दो आंखें बाहर झांक रही थीं ।
साफ लगता था-आज कोई खास बात है ।
कॉफ्रेंस हॉल की अन्य कुर्सियों पर दशरथ पाटिल कान्तिपाण्डे, राज, डॉली ओर उन सबके अलावा , उस दिन का सबसे ज्यादा खास मेहमान जगदीश पालीवाल भी वहाँ बैठा था ।
जगदीश पालीवाल की वहाँ उपस्थिति निःसंदेह चौंका देने वाली थी ।
पालीवाल की वहाँ उपस्थिति से एक बात और भी साबित होती थी कि उसने अपने मासूम बच्चे की जिंदगी बचाने के लिये उन शैतानों के सामने घुटने टेक दिये हैं ।
आज उसने अपने उसूलों को अपने आदर्शों की बलि दे दी है ।
इसके अल्वा एक बाप और कर भी क्या सकता है ?
☐☐☐
सिर्फ एक घण्टा पहले की बात है ।
जगदीश पालीवाल उस समय अपनी कोठी के ड्राइंग हॉल में बेचैनी पूर्वक टहल रहा था ।
उसकी आंखों में आतंक की छाया थी ।
होंठ खुश्क !
जब से वह दोनों गुड्डू का अपहरण करके ले गये थे-तब से उसका यही हाल था ।
कभी वो इस कमरे में चहलकदमी करता-तो कभी उस कमरे में ।
सारी रात सिगरेट-पर-सिगरेट फूंकते हुए गुजरी ।
कई बार उसके दिमाग में यह ख्याल भी आया कि वह उदयपुर टेलीफोन करके उस घटना की अपनी पत्नी को सुचना दे दे ।
लेकिन फिर वो रुक गया ।
उसे सुचना देने से ही क्या होना था-वह परेशान और होती ।
रह-रहकर पालीवाल की आंखों के गिर्द अपने मासूम बेटे का मुखड़ा चक्कर काट जाता ।
एक बाप की बेताब बाहें अपने जिगर के टुकड़े को कलेजे से लगाने के लिये मचल रही थी ।
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और !
तभी गरम लोहे पर चोट हुई ।
मारुती वैन में सवार होकर दुष्यंत पाण्डे उसकी कोठी पर पहुँचा था ।
जगदीश पालीवाल को एक टाइपशुदा पात्र दिया-जिसमें सिर्फ चंद लाइनें लिखी थीं ।
“अगर अपने बेटे की जिंदगी के लिये हमारी शर्त मंजूर है-तो फौरन पत्रवाहक के साथ वैन में बैठकर आ जाओ-इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
तुम्हारे बेटे का शुभचिन्तक
गुमनाम संगठन
पत्र पढ़ते ही जगदीश पालीवाल ने गुस्से में उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले ।
“और अगर मै तुम्हारे साथ न गया ।” जगदीश पालीवाल झपटकर दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पकड़ लिया तथा हलक फाड़कर चिल्ला उठा-“तो तुम क्या कर लोगे-क्या कर लोगे ?”
खतरनाक ढंग मुस्कराया दुष्यंत पाण्डे !
उसकी मुस्कान खून को बर्फ की तरह जमा देने वाली थी ।
गिरेहबान पकड़ने का उसने जरा भी बुरा नहीं माना ।
“अगर तुम मेरे साथ न गये-तो वह हो जायेगा ऑफीसर !” दुष्यंत पाण्डे फुंफकारता-सा बोला-“जिसकी कल्पना भी तुम्हारे लिये दुश्वार है-तुम्हारे गुड्डू के खून के छीटें दूर-दूर तक उड़ेंगे-दूर-दूर तक । और हमारी उस दरिंदगी के जिम्मेदार तुम होओगे-सिर्फ तुम ।”
तत्काल दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पालीवाल के हाथ से छूट गया ।
सारी गर्मी जाती रही ।
वह अपने आपको सौ साल के वृद्ध की तरह कमजोर महसूस करने लगा ।
रात भर की बेचैनी और विवशता के कारण उसमें इतना भी साहस न बचा था-जो ज्यादा विरोध कर सके ।
वह एक हारे हुए जुआरी की तरह निर्जीव कदमों से चलता हुआ चुपचाप मारूति वैन में सवार हो गया ।
उसे आंखों पर पट्टी बांधकर अड्डे पर लाया गया था ।
वहाँ जब उसकी आंखों से पट्टी खोली गयी-तो उसने अपने आपको उसी कॉफ्रेंस हॉल में पाया-जिसमें इस वक्त बैठा था ।
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12-05-2020, 12:41 PM,
#53
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द उसे काली नकाब के पीछे से घूरता हुआ बोला-“वडी हमें खुशी है कि तुमने ज्यादा हील-हुज्जत किये बिना हमारा प्रस्ताव कबूल कर लिया-वडी तुम तो वाकई बहोत समझदार आदमी निकले नी ।”
“गुड्डू कहाँ है ?” जगदीश पालीवाल ने बेचैनीपूर्वक पहलु बदला ।
“साईं- वोजहाँ है, कुशल-मंगल है और फिर वैसे भी ज्यादा फिक्र नहीं करनी-आखिर उसकी देखभाल के वास्ते तुम्हारी गवर्नेस तो हमारे पास है ही ।”
वह बात कहकर बड़े खतरनाक ढंग से हंसा दीवानचन्द ।
“म...मैं फिर भी गुड्डू को एक बार देखना चाहता हूँ ।” जगदीश पालीवाल अपने बेटे को देखने के लिये व्याकुल हुआ जा रहा था ।
“इतनी जल्दी भी क्या है साईं !” दीवानचन्द बोला-“देख लेना उसे भी । बारह घण्टे में उसकी सूरत थोड़े ही बदल जानी है । मेल-मिलाप का यह सिलसिला भी चलेगा-लेकिन पहले तुम हमें दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में बताओ ।”
“देखो ।” जगदीश पालीवाल सब्र के साथ बोला-“तुम लोग जिस गुप्त सिक्योरिटी की जानकारी के लिये इतने व्याकुल हो रहे हो-मेरा दावा है कि सिक्योरिटी को जानने के बाद भी तुम लोग कुछ नहीं कर पाओगे- ताज को चुराना बिलकुल नामुमकिन है ।”
“क्यों है नामुमकिन ?”
“क्योंकि उस ताज की सिक्योरिटी बहुत परफैक्ट है-बहुत अभेद्य है ।”
मुस्कराया सेठ दीवानचन्द-फिर बोला-“वडी पालीवाल साईं-भारत सरकार हर एण्टीक आइटम की ऐसी ही परफैक्ट सिक्योरिटी करती है-भारत सरकार हर बार यही सोचती है कि इस दुर्लभ वस्तु को दुनिया की कोई ताकत नहीं चुरा सकती । लेकिन होता क्या है-कोई चालाक अपराधी सुरक्षा के सारे तामझाम को रेत के ढेर की तरह भेदता हुआ दुर्लभ वस्तु चुरा ले जाता है । भारत सरकार को तब मालूम होता है कि वास्तव में वो सिक्योरिटी कितनी परफैक्ट थी-कितनी सिक्केबंद थी-वडी मैं ठीक कह रहा हूँ या नहीं ?”
“बिलकुल ठीक कह रहे हो ।” जगदीश पालीवाल ने कबूल किया-“लेकिन अगर तुम लोग दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी को भी ऐसी ही कमजोर सिक्योरिटी समझ रहे हो-तो यह तुम्हारी बहुत बड़ी भूल है-बहुत बड़ी गलतफहमी है । उसकी सिक्योरिटी वाकई बहुत परफैक्ट है ।”
“वडी वो चाहे कितनी ही परफैक्ट सिक्योरिटी है-हम उसके बारे में फुल जानकारी चाहते हैं ।”
“जैसी तुम लोगों की इच्छा ।” जगदीश पालीवाल बोला-“ओपन सिक्योरिटी से तो आप लोग वाकिफ होंगे ही ?”
“हम किसी चीज से वाकिफ नहीं साईं ! तुमने हमें जो बताना है-सिरे से बताओ । यह सोचकर बताओ कि हम सिक्योरिटी के बारे में कुछ नहीं जानते-इसके अलावा एक बात और अच्छी तरह सुन लो ।”
“क्या ?”
“अगर तुमने हमारे साथ कोई चालाकी खेलने की कोशिश की ।” सेठ दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये-“अगर तुमने हमें पुलिस के किसी पचड़े में फांसने का प्रयास किया तो फिर तुम्हारी खैर नहीं । फिर हम तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे बच्चे के भी ऐसी ढोल-तासे बजायेंगे कि तुम तमाम उम्र कलपोगे-तमाम उम्र खून के आंसू रोओगे । एक बात और-जब तक हम अपनी योजना में कामयाब नहीं हो जाते-तब तक तुम्हारा बेटा भी यहीं हमारे कब्जे में रहेगा ?”
जगदीश पालीवाल का चेहरा सफेद झक्क् पड़ गया ।
“वडी तुम्हें अब जो कहना है-कहो ।” दीवानचन्द बोला-“सबसे पहले यह बताओ-नेशनल म्यूजियम में आजकल दिन में क्या सिक्योरिटी रहती है ?”
पालीवाल ने बेचैनीपूर्वक पहलू बदला ।
हालात उसे अच्छे नजर नहीं आ रहे थे ।
“द...दिन में लगभग सौ सिक्योरिटी गार्ड म्यूजियम के चरों तरफ तैनात रहते हैं ।” जगदीश पालीवाल ने खून का सा घूंट पीते हुए उन लोगों को सिक्योरिटी के बारे में बताना शुरू किया-“लेकिन रात के समय उन्हीं सिक्योरिटी की संख्या बढ़कर दो गुनी हो जाती है ।”
“यानि दो सौ !”
“हाँ ।”
“ठीक है-आगे बोलो ।”
“इसके अलावा नेशनल म्यूजियम की आसपास की इमारतों पर भी चौबीस घण्टे लगभग तीस-चालीस सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहते हैं ।”
“एक मिनट !” दीवानचन्द ने उसे फिर टोका-“म्यूजियम के आसपास की इमारतों पर सिक्योरिटी गार्ड्स को किसलिये तैनात किया गया है ?”
“अच्छा सवाल है । दरअसल उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी करने से पहले भारत में ज्यूरी के मेम्बरों की एक मीटिंग हुई थी-बेहद खास मीटिंग-उस मीटिंग में उन केस फाइलों का अध्ययन किया गया, जिनमें ऐसी ही दुर्लभ वस्तुओं की लूट के बारे में कई रिपोर्टें दर्जे थीं । प्रत्येक केस फाइल में यह ब्यौरा बड़े विस्तार से लिखा था कि फलां दुर्लभ वस्तु का सिक्योरिटी सिस्टम यह था कि उसे अपराधियों ने चुराने के लिये यह योजना बनायी ।”
“फिर ?”
“ज्यूरी के मैम्बरों ने दुनिया भर की ऐसी दर्जनों केस फाइलों का अध्ययन किया-उन फाइलों का अध्ययन करने से यह फायदा था कि दुर्लभ ताज की एक बहुत परफैक्ट सिक्योरिटी की रूपरेखा बनायी जा सकती थी । फाइलों का अध्ययन करते-करते ही ज्यूरी के मैम्बरों के हाथ में एक ऐसी फाइल लगी-जिसमें न्यूयार्क के एक सर्राफा बाजार की लूट का मामला दर्ज था । लिखा था-सर्राफा बाजार की सिक्योरिटी के लिये स्थानीय पुलिस प्रशासन ने बड़े जबरदस्त सुरक्षा इंतजाम कर रखे थे-सर्राफा बाजार के चारों तरफ सैकड़ों की संख्या में हमेशा सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहते थे-उनकी बिना आज्ञा के एक चूहा तक सर्राफा बाजार में नहीं घुस सकता था । लेकिन इतनी पॉवरफुल सुरक्षा के बावजूद सर्राफा बाजार में डकैती पड़ी-और ऐसी डकैती पड़ी कि पूरा सर्राफा बाजार लूट लिया गया, लेकिन बाहर-खड़े उन सिक्योरिटी गार्डों को कानों-कान भनक तक न लगी ।”
“वह कैसे ?” दशरथ पाटिल ने हैरान होकर पूछा ।
“दरअसल अपराधियों ने सर्राफा बाजार को लूटने के लिये जो योजना बनायी-वह गजब की योजना थी ।” जगदीश पालीवाल बोला-“उन्होंने सर्राफा बाजार को लूटने के लिये जो योजना बनायी-वह गजब की योजना थी ।” जगदीश पालीवाल बोला-“उन्होंने सर्राफा बाजार को लूटने के लिये उसकी बगल की एक इमारत का इस्तेमाल किया । वह सबके सब लूट में काम आने वाला अपना साज-सामान लेकर किसी तरह उस बगल वाली इमारत की छत पर पहुँच गये-सर्राफा बाजार और उस इमारत के बीच में चार-साढ़े चार फुट चौड़ी एक पतली-सी गली थी । अपराधियों ने उस बगल वाली इमारत की छत से सर्राफा बाजार की छत तक लोहे की एक मजबूत सीढ़ी डाली-फिर वो एक-एक करके उसी सीढ़ी पर चलते हुए बगल वाली इमारत की छत से सर्राफा बाजार की छत पर पहुँच गये ।”
“वैरी गुड !” दुष्यंत पाण्डे भी चहका-“फिर ?”
“सर्राफा बाजार की छत पर पहुँचने के बाद उन्होंने ड्रिल मशीन की मदद से सर्राफा बजार की छत में एक बीस इंच व्यास का काफी चौड़ा छेद बनाया-फिर वो उसी छेद में से होकर सर्राफा बाजार के अंदर घुस गये-उसके बाद उन्होंने अंदर ही अंदर बड़े इत्मीनान से पूरा सर्राफा बाजार लूटा फिर वापस छेद में से होकर ऊपर पहुंचे तथा सीढ़ी द्वारा ही दूसरी इमारत की छत पर पहुँचकर वहाँ से फरार हो गये । सर्राफे में इतना बड़ा काण्ड हो गया-वह सर्राफा बाजार पूरा-का-पूरा लुट गया-लेकिन नीचे पहरा देते सिक्योरिटी गार्डों के कानों पर जूं तक न रेंगी-उन्हें भनक तक न पड़ी कि क्या हो गया था । बहरहाल भारत के ज्यूरी मैम्बरों ने उस डकैती से प्रेरणा ली-और नेशनल म्यूजियम के आसपास की इमारतों पर भी इसीलिये सिक्योरिटी गार्ड तैनात कर दिये-ताकि कोई अपराधी संगठन बिलकुल उसी तरह की योजना बनाकर दुर्लभ ताज को न ले उड़े ।”
“ओह !”
सभी के मुँह से सिसकारी छूटी ।
सभी सर्राफा बाजार लूटने की उस योजना से बड़े प्रभावित हुए ।
“इस तरह नेशनल म्यूजियम के अंदर दाखिल होने के फिलहाल सभी रास्ते पूरी तरह बंद हैं ।” जगदीश पालीवाल बोला-“न तो कोई अपराधी म्यूजियम के मेन गेट से ही अंदर घुस सकता है और न किसी अगल-बगल वाली इमारत को ही जरिया बनाकर । अगर किसी ने नीचे-ही-नीचे लम्बी सुरंग खोदकर भी म्यूजियम के हॉल नम्बर चार तक पहुँचने का प्रयास किया-तब भी वो सफल नहीं हो पायेगा । क्योंकि म्यूजियम में जगह-जगह ऐसे इलैक्ट्रॉनिक संयंत्र लगाये गये हैं-जो सुरंग खोदने की पोजीशन में एक विशेष ध्वनि पैदा करके सिक्योरिटी गार्डों को खतरे का संकेत दे देंगे-जिससे पुलिस अपराधियों को फौरन पकड़ लेगी ।”
सब स्तब्ध बैठे रहे ।
“अब आगे सुनो ।” जगदीश पालीवाल बोला-“अगर कोई अपराधी जादू के जोर से या किसी करिश्में की बदौलत फिर भी म्यूजियम के अंदर घुसने में कामयाब हो जाता है-तो वह सबसे पहले म्यूजियम के लॉन में पहुंचेगा ।
वहाँ भी मौत मुँह फाड़े उसका इन्तजार कर रही होगी-क्योंकि न सिर्फ म्यूजियम के लॉन में बल्कि म्यूजियम के प्रत्येक गलियारे के अंदर भी हर समय बड़ी संख्या में सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहते हैं । जिनकी प्रत्येक आठ घण्टे के बाद ड्यूटी बदल जाती है ।”
“इसके अलावा और क्या इंतजाम है ?”
“और भी कई महत्वपूर्ण बंदोबस्त हैं ।” जगदीश पालीवाल ने कुर्सी पर बैठे-बैठे पहलु बदला-“सबसे पहले तो उन्हीं सुरक्षा प्रबंधों को भेदकर म्यूजियम के अंदर घुसना नामुमकिन है-लेकिन अगर फिर भी कोई इन सुरक्षा प्रबंधों को भेदने में सफल हो जाता है-तो वह जैसे ही हॉल नम्बर चार की दीवार को छुएगा, तो फौरन उससे कनेक्टिड सेफ्टी अलार्म की घण्टी नजदीक के तीन पुलिस स्टेशनों के साथ-साथ पुलिस हैडक्वार्टर में भी जोर से बज उठेगी । उस घण्टी के बजते ही क्या होगा-इसका अंदाजा तुम लोग बखूबी लगा सकते हो । फौरन पूरे दिल्ली शहर में दौड़ती पुलिस पेट्रोलिंग वैनों को हैडक्वार्टर से वह खतरे की सूचना सर्कुलेट कर दी जायेगी-पलक झपकते ही पेट्रोलिंग वैनें नेशनल म्यूजियम की तरफ भागने लगेंगी-म्यूजियम के आसपास के सारे रोड ब्लॉक कर दिये जायेंगे-सीमा चौकियां सील कर दी जायेंगी और बड़ी संख्या में पुलिस नेशनल म्यूजियम पर पहुँचकर उसे चारों तरफ से घेर लेंगी । इससे तुम आसानी के साथ अंदाजा लगा सकते हो कि सैफ्टी अलार्म बजते ही म्यूजियम के आसपास कितना हंगामाखेज माहौल बन जायेगा । ऐसी परिस्थिति में अपराधियों के लिये वहाँ से दुर्लभ ताज चुराकर भागना तो बहुत बड़ी बात है-उनके लिये अपनी जान बचाना भी मुश्किल काम होगा ।”
“सेफ्टी अलार्म की जो बेल बजेगी ।” दशरथ पाटिल एक-एक प्वॉइण्ट पर अच्छी तरह गौर करता` हुआ बोला-क्या उसकी आवाज म्यूजियम के अंदर या बाहर खड़े सिक्योरिटी गार्डों को भी सुनायी देगी ?”
“बिलकुल सुनायी देगी ।”
“वडी वो कैसे नी ?”
“दरअसल दिल्ली पुलिस ने सभी गार्डों को एक-एक खास किस्म की रिस्टवॉच दी है ।” जगदीश पालीवाल ने बताया-“और वो रिस्टवॉच सेफ्टी अलार्म से कनेक्टिड है-इसलिये अलार्म बजने की वो तीखी ध्वनि रिस्टवॉच पर बिलकुल साफ-साफ सुनाई देगी ।”
“ओह !”
“एक बात बताओ ।” दुष्यंत पाण्डे बोला ।
“पूछो ।”
“अगर कोई दिन में हॉल नम्बर चार की दीवार को छूएगा, तो क्या तब भी अलार्म बज उठेगा ?”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल गहरी सांस लेकर बोला-“दिन के समय सेफ्टी अलार्म डैड रहता है । लेकिन अगर तुम लोग उस दुर्लभ ताज को दिन-दहाड़े लूटने की योजना बना रहे हो-तब भी तुम्हारी योजना सिरे नहीं चढ़ने वाली ।”
“किसलिये ?”
“क्योंकि दिन में प्रत्येक दर्शक को कड़ी जांच-पड़ताल के बाद ही अंदर म्यूजियम में घुसने दिया जाता है-यहाँ तक कि दर्शकों को मेटल डिटेक्टर के ऊपर से भी गुजरना होता है । ऐसी परिस्थिति में तुम लोग हथियार लेकर म्यूजियम के अंदर नहीं घुस सकते और घुसने की कोशिश करोगे तब भी मैं समझता हूँ कि तुम्हें नाकामी ही हाथ लगेगी-क्योंकि स्वचालित हथियारों से लैस इतने सारे सिक्योरिटी गार्डों का सामना तुम लोग किसी हालत में नहीं कर पाओगे ।”
कॉफ्रेंस हॉल में सन्नाटा छा गया ।
सनसनीखेज सन्नाटा !
सेठ दीवानचन्द सहित सबके चेहरों पर गंभीरता की परत पुत गयी ।
डॉली के तो उस सिक्योरिटी के विषय में सुनते ही हाथ-पांव फूल गये थे ।
उसे साफ-साफ लग रहा था कि वह लोग अपने मकसद में सफल होने वाले नहीं ।
डॉली मन-ही-मन प्रार्थना करने लगी-“हे भगवान-तू इन लोगों को सद्बुद्धि दे ।“
“अक्ल दे ।”
“यह दुर्लभ ताज को चुराने का ख्याल भी अपने दिमाग से निकाल दें ।”
लेकिन भगवान भी उन्हें सद्बुद्धि कहाँ देता-उनके दिमाग पर तो लालच ने पर्दा डाल दिया था ।
लालच !
जो उनका सर्वनाश करने पर तुला था ।
☐☐☐
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12-05-2020, 12:41 PM,
#54
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
जगदीश पालीवाल गला खंखार कर बोला-“दुर्लभ ताज की जो सिक्योरिटी की गयी है-सिक्योरिटी के सम्बन्ध में मैंने तुम लोगों को लगभग पूरी डिटेल बता दी है । अब इस पूरी सिक्योरिटी के बाद-इस पूरे परफैक्ट इंतजाम के बाद एक आखिरी सिक्योरिटी और है, जो उस दुर्लभ ताज के लिये की गयी है ।”
“क...क्या ?” सेठ दीवानचन्द के नेत्र अचम्भे से फट पड़े-“वडी क्या अभी कोई और सिक्योरिटी भी बची है ?”
“हाँ ।” जगदीश पालीवाल सहज स्वर में बोला-“अभी एक आखिरी सिक्योरिटी और बची है-और मैं समझता हूँ कि वो सिक्योरिटी इन तमाम सिक्योरिटी से ज्यादा परफैक्ट है-ज्यादा सिक्केबंद है ।”
“वडी ऐसी क्या सिक्योरिटी है वो ।” सेठ दीवानचन्द जबरदस्त सस्पैंस के बीच झूलता हुआ बोला-उसके बारे में भी बता ।”
“अब उसी के विषय में बताने जा रहा हूँ । दरअसल ज्यूरी के मैंम्बरों ने दुर्लभ ताज की सुरक्षा व्यवस्था के लिये जो चक्रव्यूह रचा है-वह सिक्योरिटी उस चक्रव्यूह का सबसे आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है । यूं तो म्यूजियम में जितने भी सुरक्षा प्रबन्ध किये गये हैं-वह सब अपने आप में कम्पलीट हैं और उन्हें भेद पाना असंभव है । लेकिन... ।”
“लेकिन क्या ?”
“सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह के उस आखिरी हिस्से को भेदने की बाबत सोचना भी, मैं समझता हूँ कि पागलपन होगा-क्योंकि वहाँ ज्यूरी के मैम्बरों ने इतना जबरदस्त मायाजाल बिछाया है कि अगर उस मायाजाल को भेदने के लिए आज के युग में अर्जुन, अभिमन्यु, भीम, नुकूल, सहदेव या युधिष्ठिर जैसे महान योद्धा भी आ जायें-तो उन्हें भी असफलता का मुँह देखना पडेगा । सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह का वे आखिरी चरण ‘हॉल नम्बर चार’ है । उस हॉल की सिक्योरिटी यह सोचकर की गयी है कि अगर कोई अपराधी किसी तरह तमाम सिक्योरिटी को भेदता हुआ ‘हॉल नम्बर चार’ तक पहुँचने में सफल हो जाता है-तो फिर उसके हाथों से दुर्लभ ताज को किस तरह बचाया जाये ।”
“क...किस तरह बचाया जायेगा नी ?”
“मान लो ।” जगदीश पालीवाल बोला-“जो अपराधी तमाम सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुँचने में सफल होता है-वह अपराधी तुम हो । अब तुम मुझे यह बताओ कि वहाँ पहुँचने के बाद तुम क्या करोगे ?”
“वडी और क्या करता-अंदर घुसने की कोशिश करूंगा नी ।”
“एग्जेक्टली !” जगदीश पालीवाल चहक उठा-“तुम अंदर ही घुसने की कोशिश करोगे-लेकिन सवाल ये है कि तुम अंदर ही घुसोगे कैसे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर तो बड़े भारी-भरकम ताले और चोर ताले लगे हुए हैं-जिन्हें ‘मास्टर की’ कि सहायता से भी नहीं खोला जा सकता ।”
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द थोड़ा झुंझलाकर बोला-“वडी अगर ताला खुल नहीं सकता-तो टूट तो सकता है नी । और अगर ताला टूट भी नहीं सकता-कम-से-कम दरवाजा तो टूट-ही-टूट सकता है ।”
“आई एण्टायरली एग्री विद यू ।” जगदीश पालीवाल पहले की तरह ही चहककर बोला-“मैं तुमसे बिलकुल सहमत हूँ-बल्कि मैं खुद भी यही कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक अपराधी की उस अवस्था में यही मोनोपली होगी । क्योंकि जो इतने पावरफुल सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुंचेगा-उसे वहाँ पहुँचकर खाली हाथ लौटना तो किसी भी हालत में गंवारा न होगा । चाहे उसे कुछ भी क्यों न करना पड़ेगा-कैसा भी जायज या नाजायज तरीका इस्तेमाल क्यों न करना पड़े । अपराधी की इसी मोनोपली को ध्यान में रखकर ज्यूरी के मैम्बरों ने हॉल नम्बर चार की सुरक्षा व्यवस्था की है । अगर तुममें से कोई फिलहाल हॉल नम्बर चार में गया है-तो उसने वहाँ जाकर देखा भी होगा कि उस हॉल की छत और दीवारें फॉल्स सीलिंग तथा प्लास्टर पेरिस की बनी हुई हैं । जिनकी मोटाई लगभग एक फुट के करीब है-दीवार तथा छत को इतनी मोटाई में डेकोरेट करने के पीछे एक खास कारण है ।”
“कैसा कारण ?”
“दीवार और छत-दोनों जगह स्वचालित गनें छिपी हुई हैं । कोई भी अपराधी जैसे ही किसी गलत तरीके से हॉल में घुसेगा-तभी दीवार तथा छत में छिपी हुई स्वचालित गनें हरकत में आ जायेंगी और वो हॉल के हर हिस्से पर हर ऐंगल पर गोलियों की बौछार करना शुरू कर देंगी । यानि अपराधी हॉल में चाहे किसी भी जगह क्यों न खड़ा हो-गोलियां उसे वहीं आकर लगेंगी और वो पलक झपकते ही एक लाश में बदल जायेगा ।”
सेठ दीवानचन्द सहित सब के चेहरों पर कालिख पुत गयी ।
“और अगर अपराधी किसी तरह उन गोलियों से भी बच गया ।”
जगदीश पालीवाल बोला-“जोकि बिल्कुल नामुमकिन काम है-तब भी वो उस दुर्लभ ताज को नहीं चुरा पायेगा ।”
“क...क्यों ?” दशरथ पाटिल के दिमाग पर बिजली-सी गिरी-“फिर उस ताज को चुराने में क्या मुश्किल है ?”
“बहुत बड़ी मुश्किल है । क्योंकि अपराधी उस ताज को निकालने के लिये जैसे ही उसके शीशे के बॉक्स को छुएगा-तभी उस बॉक्स के अंदर बंद दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे एक कुएं जैसी गहराई में चला जायेगा । अपराधी बॉक्स से हाथ हटायेगा तो वह फिर ऊपर आ आयेगा । हाथ लगायेगा-तो फिर नीचे चला जायेगा । बस यही नाटकीय और बेहद तिलिस्मी प्रक्रिया चलती रहेगी-लेकिन दुर्लभ ताज अपराधी के हाथ नहीं लगेगा ।”
“साईं !” दीवानचन्द सनसनाये स्वर में बोला-इसका मतलब वह तिलिस्तमी सिस्टम तो शीशे के बॉक्स में ही फिट हुआ-क्योंकि उसे हाथ लगाते ही दुर्लभ ताज ऊपर-नीचे होता है ।”
बिलकुल ठीक ।”
और अगर हम शीशे के उस बॉक्स को ही तोड़ डालें-तो क्या होगा ?”
“कुछ नहीं होगा-उस पोजीशन में वो दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे चला जायेगा तथा फिर ऊपर नहीं आयेगा । फिर तो वही इंजीनियर उस दुर्लभ ताज को बीस फुट नीचे से निकाल सकते हैं-जिन्होंने वहाँ वो सारे सिक्योरिटी डेवायसिज फिट किये हैं ।”
“ओह !”
वहाँ पुनः शमशान घाट जैसा सन्नाटा छ गया ।
सब स्तब्ध थे ।
बिलकुल मौन !
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द नकाब के पीछे से उसे देखता हुआ हिचकिचाये स्वर में बोला-“वडी यह तो वाकई बड़ा जबरदस्त इंतजाम है ।”
“मैं पहले ही कहता था ।” जगदीश पालीवाल के होठों पर मुस्कान दौड़ी-“कि उस दुर्लभ ताज को चुराना आसान नहीं है-उसका सिक्योरिटी सिस्टम बेइन्तिहाँ मजबूत है । शायद भारत में पहली बार किसी एण्टीक आइटम के लिये इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी की गयी है ।”
“वडी इसमें कोई शक नहीं ।” दीवानचन्द बोला-“कि सिक्योरिटी वाकई बहुत पावरफुल है-लेकिन एक बात मैं फिर भी कहूँगा ।”
“क्या ?”
“सिक्योरिटी चाहे कितनी भी जबरदस्त हो-लेकिन उसे तोड़ा जा सकता है । साईं-दिमाग के ब्लेड से हर धांसू सिक्योरिटी की काट पैदा की जा सकती है ।”
“य... यानि !” राज के नेत्र हैरत से फटे-“यानि तुम यह कहना चाहते हो कि तुम इस सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना लोगे ?”
“मैं अभी कोई दावा नहीं कर रहा-लेकिन पालीवाल साईं, मेरा यह मानना है कि दुनिया का कोई काम मुश्किल नहीं-कोई काम असंभव नहीं । जरुरत है तो इंसान के अंदर बस लगन की-हौंसले की-और एक तंदरुस्त दिमाग की ।”
“म...मुझे तो नहीं लगता कि कोई अपराधी यह करिश्मा कर पायेगा ।”
“वडी तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो नी ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“साईं-अगर तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो, तो हमें तुम्हारा यह चैलेन्ज कबूल है ।”
ठीक है-आप इसे मेरा चैलेन्ज ही समझें । क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि इस परफैक्ट सिक्योरिटी को दुनिया का कोई व्यक्ति नहीं भेद सकता ।”
बढ़िया बात है ।” सेठ दीवानचन्द ने गरमजोशी के साथ कहा-“वडी हम तुम्हें यह करिश्मा करके दिखायेंगे ।”
☐☐☐
फिर वो मीटिंग वहीं बर्खास्त हो गयी ।
जगदीश पालीवाल को जिस तरह आंखों पर पट्टी बांधकर वहाँ लाया गया था । उसी तरह वहाँ से विदा कर दिया गया ।
लेकिन जाने से पहले वो अपने बेटे ‘गुड्डू’ से मिला और बड़े ही जज्बाती होकर मिला ।
“मैं तुमसे एक विनती करना चाहता हूँ मैडम ।” फिर उसने जाने से पहले डॉली से कहा था ।
“क...कहिये ।” डॉली का स्वर कांप उठा ।
“तुम एक स्त्री हो ।” जगदीश पालीवाल की आवाज भावनाओं से भरी हुई थी-“मैं जानता हूँ कि तुम चाहे कितना ही इन अपराधियों से मिली हुई होओ-लेकिन फिर भी तुम उतनी कठोर नहीं हो सकतीं-जितना यह सब हैं-इसीलिये मैं तुमसे यह विनती करने की हम्मत कर पा रहा हूँ । गुड्डू मेरा इकलौता बेटा है-इसकी अच्छी तरह देखभाल करना ।”
डॉली भी जज्बाती हो उठी ।
वह एकदम गुड्डू की तरफ झपटी और उसने उसे अपनी छाती से चिपटा लिया ।
“इ...इसे कुछ नहीं होगा ।” डॉली बोली-“ज...जब तक मैं जिन्दा हूँ- कोई आंच नहीं आयेगी पालीवाल साहब ।”
“मुझे तुम पर भरोसा है ।” जगदीश पालीवाल की आंखें भीग गयीं-“हालांकि तुमने मुझे धोखा दिया-लेकिन फिर भी न जाने क्यों मुझे तुम्हारे ऊपर ऐतबार करने को दिल चाहता है ।”
तड़प उठी डॉली !
जबकि पालीवाल फिर वहाँ से चला गया था ।
☐☐☐
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12-05-2020, 12:41 PM,
#55
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज की जिंदगी अब एक बिल्कुल नया मोड़ ले चुकी थी ।
कल का ऑटो रिक्शा ड्राइवर हालात की चक्की में पिसकर अब पूरी तरह एक अपराधी बन चुका था ।
सेठ दीवानचन्द ने उसे अपने संगठन का मेम्बर बना लिया था ।
इतना ही नहीं- उसे अड्डे से बाहर आने-जाने की इजाजत भी सेठ दीवानचन्द ने दे दी थी ।
तब राज को पहली बार यह मालूम हुआ कि वो अड्डा सेठ दीवानचन्द की विशाल ज्वैलरी शॉप के नीचे तहखाने में बना हुआ था ।
लेकिन उस अड्डे में आने का रास्ता एक तीन मंजिले मकान के अंदर से था- वह मकान ज्वैलरी शॉप के बिल्कुल पीछे वाली गली में था । वह पुराना-सा मकान भी सेठ दीवानचन्द की मिल्कियत था- वह ढाई सौ वर्ग गज में फैला था और उस मकान के तहखाने से होकर एक छोटी-सी सुरंग पार करते हुए अड्डे तक पहुँचा जाता था ।
वह सुरंग सीधे कांफ्रेंस हॉल में खुलती थी ।
दरअसल कॉफ्रेंस हॉल में एक अर्द्धनग्न लड़की की विशाल पेंटिंग लगी थी- उस पेंटिंग के बराबर में एक नन्हा-सा लाल बटन था जब वह बटन दबाया जाता, तो वह पेंटिंग किसी स्लाइडिंग डोर की तरह एक तरफ सरक जाती ।
फिर उस पेंटिंग के पीछे स्टेयरिंग व्हील जैसा लोहे का एक चक्कर नजर आता ।
इस चक्के को घुमाने पर ही दीवार का एक बड़ा भाग दायीं तरफ सरकता था । और तब कहीं सुरंग का दहाना दिखाई देता ।
वह अड्डा उस विशालकाय ज्वैलरी शॉप के नीचे जरूर बना हुआ था- लेकिन उस अड्डे में आने-जाने का रास्ता पिछली गली में बना वही पुराना मकान था ।
राज ने जब पहली बार दशरथ पाटिल के साथ उस रास्ते के दर्शन किये- तो वह उस पूरे सिस्टम से बड़ा प्रभावित हुआ ।
हद से ज्यादा प्रभावित हुआ ।
ऐसे करिश्मे तो उसने सिर्फ कभी-कभार फिल्मों में ही देखे थे । आम जिन्दगी में भी इस तरह का कुछ होता है- यह तो उसने सोचा भी न था ।
☐☐☐
बहरहाल- फिर दुर्लभ ताज चुराने के लिये योजना पर काम शुरू हुआ ।
सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे- वह तीनों उस ताज को चुराने का दृढ़ संकल्प ले चुके थे ।
हालांकि सिक्योरिटी वाकई बहुत पावरफुल थी- लेकिन वो निराश नहीं थे ।
उन्हें लग रहा था कि वो वाकई कोई ‘करिश्मा’ कर डालेंगे ।
उस सिक्योरिटी को भेदने के लिए उन्होंने खूब दिमाग लड़ाया ।
उसी शाम उन तीनों के बीच उस सब्जेक्ट पर एक मीटिंग हुई ।
काफी देर तक उन्होंने विचार-विमर्श किया ।
लेकिन ‘नतीजा’ कुछ न निकला ।
वह सारा दिन और सारी रात उस सिक्योरिटी को भेदने की कोशिश करते रहे ।
प्रत्येक दो-दो घण्टे के बाद उनके बीच मीटिंग होती । इन दो घण्टे में जिसने जो कुछ सोचा होता- वह अपना आइडिया एक-दूसरे के सामने रखता ।
कुल मिलाकर उनके बीच सात मीटिंगें हुई ।
लेकिन नतीजा फिर भी जीरो ही रहा ।
उनके द्वारा खूब दिमाग भिड़ाकर सोचा गया आइडिया कूड़े का ढेर साबित हुआ ।
☐☐☐
शनिवार- सुबह दस बजे ।
वह तीनों कॉफ्रेंस हॉल में पुनः सिर-से-सिर जोड़े बैठे थे ।
लेकिन इस समय उनके चेहरे पर ऐसी फटकार बरस रही थी- जैसी सारी रात किसी ने उनकी जमकर धुनाई की हो ।
कल का उत्साह अब निराशा में बदल चुका था ।
राज भी उनके बीच बिल्कुल खामोश काठ का उल्लू बना बैठा था ।
“बॉस- अब उस दुर्लभ ताज को वापस कजाखिस्तान लौटने में तीन दिन रह गये हैं ।” दशरथ पाटिल शुष्क स्वर में बोला- “सिर्फ तीन दिन ! और अभी तक हमारे पास उस दुर्लभ ताज को चुराने की कोई सॉलिड योजना नहीं है ।”
“मैं एक बात कहूँ बॉस ?” राज बोला ।
“वडी तू भी बोल- तू ही क्यों खामोश रहता है नी ।”
“उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी वाकई बहुत मजबूत है बॉस ।” राज बोला- “हमें उसे चुराने का ख्याल भी अपने दिमाग से निकाल देना चाहिये ।”
“वडी तू पागल है ।” सेठ दीवानचन्द भड़क उठा- “साई, तू क्या समझता है - अगर अभी तक योजना नहीं बनी, तो आगे भी नहीं बनेगी ? ऐसा भी कहीं होता है ? साईं- हमें निराशा से भरी बातें अपने दिमाग में नहीं लानी । इंसान वो होता है- जो हारने के बावजूद दिल से अपनी हार कबूल नहीं करता- बल्कि वो और संघर्ष करता है- और लड़ाई लड़ता है । वडी ऐसे ही लोगों की जिंदगी में करिश्मे होते हैं- ऐसे ही लोगों को फतेह मिलती है ।”
“ल...लेकिन... ।” दुष्यंत पाण्डे ने कुछ कहना चाहा ।
“कुछ नहीं- कुछ नहीं सुनना मुझे ।” दीवानचन्द भुनभुना उठा- “वडी हमने वो ताज चुराना है- हर हालत में चुराना है- अंडरस्टैंड ?”
सब खामोश हो गये ।
तभी एक बेहद सनसनीखेज घटना घटी ।
ऐसी घटना- जिसने सबको चौंकाकर रख दिया ।
लम्बे फल वाला एक चाकू बड़े अकस्मात् ढंग से सनसनाता हुआ कॉफ्रेंस हॉल में घुसा था- और फिर वह खचाक की तेज आवाज करता आयताकार मेज के बीचों-बीच जा धंसा ।
चारों उछल पड़े ।
हलचल-सी मच गयी ।
सबके सब बिजली जैसी रफ्तार से दौड़ते हुए कॉफ्रेंस हॉल से बाहर निकले ।
पूरा गलियारा सुनसान पड़ा था ।
कहीं कोई नहीं ।
उन चारों ने पूरा अड्डा छान मारा- लेकिन उस व्यक्ति के कहीं दर्शन न हुए जिसने चाकू फेंककर मारा था ।
आखिरकार वो थक-हारकर वापस कांफ्रेंस हाल में लौटे ।
चारों बुरी तरह डरे हुए थे ।
वापस कॉफ्रेंस हॉल में लौटते ही एक और धमाका हुआ ।
तेज धमाका!
उनकी नजर मेज में धंसे चाकू पर पड़ी थी- उन्होंने देखा कि उस चाकू की नोंक में एक कागज भी फंसा हुआ है ।
जरूर किसी ने वो कागज उन तक पहुँचाने के लिये ही चाकू वहाँ फेंककर मारा था ।
दुष्यंत पाण्डे बेपनाह फुर्ती से चाकू की तरफ झपटा ।
जल्द ही उसने चाकू की नोंक में फंसा कागज निकाल लिया और फिर उसे खोलकर जल्दी-जल्दी पढ़ने लगा ।
जैसे-जैसे उसने कागज पढ़ा- ठीक वैसे-वैसे उसकी आंखें हैरत से फटती चली गयीं ।
कागज के अन्त तक पहुँचते-पहुँचते उसकी आंखें अचम्भे के मारे अपनी कटोरियों से बाहर निकलने को तैयार थीं ।
☐☐☐
“ब...बॉस !” पूरा कागज पढ़ते ही दुष्यंत पाण्डे खुशी से चिल्ला उठा- “बॉस- ह...हमें योजना मिल गयी- हमें दुर्लभ ताज चुराने की मास्टरपीस योजना मिल गयी ।”
“वडी तू क्या कह रहा है ?” सेठ दीवानचन्द भी बौखलाया-सा उसकी तरफ झपटा- क्या कह रहा है ?”
“य...यह देखो बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने वह कागज उन सबके सामने लहराया- उसका खुशी से बुरा हाल था- य...यह देखो- एकाएक हमारे हाथ कितनी जबरदस्त योजना लग गयी है ।”
“लेकिन यह योजना आयी कहाँ से साईं- वडी किसने भेजी ?”
दुष्यंत पाण्डे ने फौरन उस कागज पर लिखे आखिरी दो शब्द पढ़े- तत्काल उसके चेहरे पर गंभीरता छा गयी ।
“वही क्या हुआ- चुप क्यों हो गया ?”
“इ...इस पर तो डॉन मास्त्रोनी का नाम लिखा है बॉस ।”
“ड...डॉन मास्त्रोनी !” कांप उठी दीवानचन्द की भी आवाज- “य...यानि सुपर बॉस !”
सबके नेत्र हैरत से फैल गये ।
जबकि सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे के हाथ से अब वो कागज झपट लिया था- फिर वो एक ही सांस में पूरी योजना पढ़ता चला गया ।
ज्यों-ज्यों उसने योजना पढ़ी- ठीक उसी अनुपात में उसकी आंखों की चमक बढ़ती चली गयी ।
पूरी योजना पढ़ते ही उसकी आंखें भी कई-कई हजार वाट के बल्ब की मानिन्द जगमगाने लगी थीं ।
“स...साई- पाण्डे साईं !” दीवानचन्द ने हर्षनाद-सा किया- “वडी यह तो सचमुच बड़ी धांसू योजना है ।”
“हाँ बॉस- हाँ ।”
इस बीच दशरथ पाटिल भी योजना को पढ़ गया था ।
“अगर हम इस योजना पर काम करें साईं ।” दीवानचन्द पागलों की तरह बोला- “तो हमें ताज चुराने से कोई नहीं रोक सकता- फिर तो हमने हर हालत में कामयाब होना ही है ।”
“अ...आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं बॉस !” दशरथ पाटिल भी खुशी से कंपकंपाये स्वर में बोला- “म...मुझे तो अब यह सोच-सोचकर हैरानी हो रही है कि इतनी साधारण-सी योजना हमारे दिमाग में क्यों नहीं आयी- सुपर बॉस के दिमाग में ही क्यों आयी ।”
“वडी मैं पहले ही बोलता था ।” दीवानचन्द ने कहा- “पहले ही बोलता था कि इस दुनिया में हर चीज की काट मौजूद है । वडी देखा तुमने- देखा- ज्यूरी के मेम्बर जिस सिक्योरिटी को परफेक्ट समझ रहे थे- सिक्के बंद समझ रहे थे- सुपर बॉस ने उस सिक्योरिटी को भेदने की योजना भी बना डाली । वडी जब ज्यूरी के मेम्बरों को यह पता चलेगा कि दुर्लभ ताज इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी के बावजूद यूं आसानी से चोरी हो गया- तो वह अपना माथा पीठ लेंगे- कलप कर रह जायेंगे ।”
वह शब्द कहते हुए जोर-जोर से खिलखिलाकर हँसने लगा दीवानचन्द- और जोर-जोर से- ऐसा लग रहा था जैसे उसके ऊपर खुशी का दौड़ा पड़ गया हो ।
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12-05-2020, 12:42 PM,
#56
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
थोड़ी देर बाद ही कॉफ्रेंस हॉल में फिर एक मीटिंग हुई ।
उस मीटिंग में इंडियन म्यूजियम का चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर जगदीश पालीवाल भी मौजूद था ।
यह सुनकर पालीवाल के दिमाग में बम-सा फटा कि उन्होंने दुर्लभ ताज को चुराने की कोई मास्टरपीस योजना बना ली है ।
वाकई वो अचम्भे की बात थी ।
“ल....लेकिन योजना क्या है ?” जगदीश पालीवाल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
मुस्कराया दीवानचन्द ।
उसने इस समय भी अपने चेहरे पर नकाब धारण की हुई थी ।
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द अपनी चिर-परिचित ‘सिन्धी’ भाषा में बोला- “वडी हमने सुना है कि कल शाम पांच बजे बंगलुरू से हवाई जहाज द्वारा दो ताबूतों में शेर और चीते की खालें दिल्ली लायी जा रही हैं जिनमें पहले भूसा भरा जायेगा और फिर उन्हें प्रदर्शनी
के लिये म्यूजियम में रखा जायेगा।"
पालीवाल चौंका।
"त...तुम्हें यह सब कैसे मालूम?"
“वडी हमें तो यह भी मालूम है नी ।” सेठ दीवानचंद मुस्कराया- “कि जिन ताबूतों में यह खालें लाया जायेंगी- उन ताबूतों को एअरपोर्ट पर रिसीव करने भी तुम जाओगे ।”
“यह झूठ है- गलत है ।”
“वडी यह सच है ।” दीवानचन्द उससे भी ज्यादा, जोर से चिल्लाया- “साईं- हमें सब मालूम है- हमसे कुछ नहीं छिपा ।”
“लेकिन... ।”
“वडी हमें तो यह भी मालूम है ।” दीवानचन्द पालीवाल की बात काटकर बोला- “कि उन ताबूतों को रिसीव करने का एक अथॉरिटी लैटर तुम्हें मिल भी चुका है ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्का रह गया ।
वह हक्का-बक्का-सा सेठ दीवानचन्द की नकाब में छुपी सूरत को देखने लगा ।
“ल...लेकिन तुम ताबूतों के सम्बन्ध में इतनी छानबीन क्यों कर रहे हो- कहीं तुम्हारा मकसद उन खालों को चुराने का तो नहीं है ?”
“नहीं पालीवाल साईं !” वडी जब दुर्लभ ताज जैसी बेशकीमती चीज आंखों के सामने हो- तो चिड़िया की बीट हाथ लगाना कौन पसन्द करता है ।”
“फिर तुम ताबूतों के बारे में इतने सवाल-जवाब क्यों कर रहे हो ?”
“दरअसल वह दोनों ताबूत दुर्लभ ताज चुराने की दिशा में हमारी बहुत बड़ी मदद करने वाले हैं ।”
“त...ताबूत मदद करने वाले हैं ।” जगदीश पालीवाल की आंखें और ज्यादा आश्चर्य से फैल गयीं- “व...वो कैसे ?”
“वडी- मैं तुम्हें पूरी योजना बताता हूँ- दरअसल कल शाम ठीक पांच बजे वह दोनों ताबूत सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंचेंगे- ठीक ?”
“ठीक ।”
“उन ताबूतों को रिसीव करने तुम इंडियन म्यूजियम की एक स्टेशन वैगन लेकर एयरपोर्ट जाओगे- उस स्टेशन वैगन को एक ड्राइवर चला रहा होगा । सफदरजंग एयरपोर्ट पहुँचते ही खालों के वह ताबूत वैगन में लाद दिये जायेंगे तथा फिर वो स्टेशन वैगन जिस तरह बिना कहीं रुके म्यूजियम से एयरपोर्ट पहुँची थी । फिर वो उसी तरह सफदरजंग एयरपोर्ट से वापस इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी ।”
जगदीश पालीवाल बड़ी उत्सुकता से सेठ दीवानचन्द की एक-एक बात सुन रहा था ।
“वडी तभी एक घटना घटेगी ।” सेठ दीवानचन्द योजना की रूपरेखा समझाता हुआ बोला- “स्टेशन वैगन ताबूतों को लेकर अभी सफदरजंग एयरपोर्ट से थोड़ी ही दूर आयेगी कि तभी तुम्हारे सिर में एकाएक बड़ा तेज दर्द उठेगा ।”
“म...मेरे सिर में दर्द उठेगा ?” पालीवाल चौंका ।
“हाँ ।”
“क्यों उठेगा ?”
“वडी तुमने एक स्पॉट पर पहुँचकर सिरदर्द का नाटक करना है- जानबूझकर स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने ऐसा शो करना है जैसे तुम्हारे सिर में बहुत तेज दर्द उठ रहा हो ।”
“ल...लेकिन मुझे नाटक करने की क्या जरूरत है ?”
“क्योंकि यही हमारी योजना है पालीवाल साईं ।”
“मैं तुम्हारी किसी योजना पर काम करने वाला नहीं ।” एकाएक जगदीश पालीवाल गुस्से में बोला ।
“काम तो तुम करोगे ।”
“नहीं करूंगा ।”
“वडी अगर नहीं करोगे ।” दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “तो तुम्हारी खैर नहीं- तुम्हारे मासूम बच्चे की खैर नहीं ।”
बच्चे के नाम सुनते ही पालीवाल का सारा गुस्सा हवा हो गया ।
“तुम लोग जबरदस्ती कर रहे हो ।” पालीवाल आन्दोलित लहजे में बोला- तुमने गुड्डू की जान के बदले में मुझसे सिक्योरिटी की जानकारी मांगी थी- वह जानकारी मैंने तुम्हें दे दी- किस्सा खत्म । अब मैं तुम्हारी कोई बात मानने के लिये बाध्य नहीं हूँ ।”
“वडी तुम्हें अपने बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“वडी मुझे मेरे सवाल का जवाब दो ।” दीवानचन्द चिंघाड़ा- तुम्हें बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
“अ...अपने बच्चे की जान किसे प्यारी नहीं होती ।”
“अगर उसकी जान प्यारी है पालीवाल साईं- तो तुम्हें वही करना होगा, जो हम कहेंगे- हमारी हर बात माननी होगी ।”
जगदीश पालीवाल कसमसाकर रह गया ।
“वडी अब आगे सुनो ।” दीवानचन्द बोला- “तुमने स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने भयंकर सिरदर्द का नाटक इसलिये करना है- ताकि तुम ड्राइवर को टेबलेट लेने किसी केमिस्ट की दुकान पर भेज सको । इस पूरे ड्रामे का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि ड्राइवर को कुछ देर के लिये स्टेशन वैगन से थोड़ा दूर भेजा जा सके । अब यह पूछो कि ड्राइवर को स्टेशन वैगन से दूर भेजने की क्या जरूरत है ।”
“क...क्या जरूरत है ?”
“साईं- जिस समय तुम्हारी स्टेशन वैगन सफदरजंग एयरपोर्ट से चलेगी- उसी क्षण तुम देखोगे कि एक फियेट स्टेशन वैगन के पीछे लगी हुई है । वडी वो फियेट, हमारी फियेट होगी और उसमें हमारे आदमी सवार होंगे । एक पूर्व निधारित तन्हा-सी जगह पर पहुँचकर जैसे ही तुम सिरदर्द का ड्रामा करोगे और ड्राइवर को टेबलेट लेने के लिये भेजोगे- उसी क्षण फियेट के अंदर से निकलकर हमारा एक आदमी तेजी से तुम्हारे पास पहुंचेगा । वडी हमें यह भी मालूम है कि इंडियन म्यूजियम की स्टेशन वैगन दो पोर्शन में बंटी हुई है । आगे वाला जोकि ड्राइविंग पोर्शन है- सिर्फ चार फुट का है । जबकि पिछला पोर्शन, जिसे बॉक्स पोर्शन कहा जाता है- उसकी लम्बाई पंद्रह फुट है । बॉक्स पोर्शन में ही ताबूत जैसे आइटम रखे जाते हैं और उसके लोहे के मजबूत दरवाजे पर हमेशा एक भारी-भरकम ताला झूलता रहता है । एनी वे- उस दिन भी दोनों ताबूत स्टेशन वैगन की उसी बॉक्स पोर्शन में होंगे और उसके दरवाजे पर ताला लगा होगा । लेकिन ड्राइवर जैसे ही स्टेशन वैगन खड़ी करके टेबलेट लेने केमिस्ट की दुकान की तरफ जायेगा- तभी हमारा आदमी तुम्हारे पास पहुंचेगा और तुमने उसे फौरन बॉक्स पोर्शन के ताले की चाबी दे देनी है ।”
“च...चाबी दे देनी है क्यों ?”
“वही बता रहा हूँ साईं । ताले की चाबी मिलते ही हमारा आदमी आनन-फानन में बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोलेगा- दरवाजा खुलते ही हमारे और दो आदमी जो फियेट में बैठे होंगे, वह डकैती डालने वाले थोड़े से साज-सामान के साथ फुर्ती से स्टेशन वैगन के बॉक्स पोर्शन में दाखिल हो जायेंगे । उसके बाद हमारे बॉक्स पोर्शन का ताला वापस लगायेगा- चाबी तुम्हें देगा- और उसके बाद फियेट लेकर पहले की तरह ही सड़क पर आगे बढ़ जायेगा । यह पूरा काम ड्राइवर द्वारा टेबलेट लेकर लौटने से पहले ही कम्पलीट हो जाना है ।”
“ल...लेकिन तुम्हारे दो आदमी बॉक्स पोर्शन में घुसकर क्या करेंगे ?” जगदीश पालीवाल ने जिज्ञासावश पूछा ।
“दरअसल उन दोनों का काम बड़ा महत्वपूर्ण है ।” दीवानचन्द बोला- वडी उन्होंने ही दुर्लभ ताज की चोरी करनी है । बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उन दोनों का सबसे पहला काम ताबूतों के अंदर घुसना होगा । वडी इस बात से तो तुम भी अच्छी तरह वाकिफ होओगे कि ताबूतों में खाल रखे जाने के बाद साधारणतया इतनी जगह जरूर बची रहती है कि उस खाली जगह में एक आदमी आ जाये- ताबूतों में वह खाली जगह छोड़ने के पीछे भी एक साइंटिफिक रीजन होता । वडी ताबूत में वो खाली जगह इसलिये छोड़ी जाती है- ताकि खाल को हवा सही तरह मिलती रहे और खाल मसाला लगी होने की वजह से खराब न हो ।”
जगदीश पालीवाल पूरी योजना बड़े विस्मय से सुन रहा था ।
“लेकिन यह तो तुमने अभी बताया ही नहीं ।” जगदीश पालीवाल बोला- “कि तुम्हारे वह दोनों आदमी ताबूतों में घुसकर क्या करेंगे ?”
“साईं- यह बात भी तुम्हें योजना में आगे चलकर मालूम होगी कि उन दोनों आदमियों ने ताबूतों में घुसकर क्या करना है । फिलहाल तुम्हारे लिये इतना समझ लेना ही काफी है कि बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उनका एकमात्र उद्देश्य ये होगा- कि वो जल्द-से-जल्द उन ताबूतों के अंदर इस तरह घुस जायें कि बाहर से देखने पर किसी को इस बात की भनक तक न मिले- उन ताबूतों के साथ कैसी भी छेड़खानी की गयी है ।”
“वो इस तरह ताबूतों में कैसे घुस सकते हैं ?”
“क्यों नहीं घुस सकते नी ?”
“क्योंकि ताबूत सीलबन्द होते हैं- उन पर सरकारी मुहर लगी होती है ।”
“साईं- हमारे आदमी सील नहीं तोड़ेंगे- उसे हाथ भी नहीं लगायेंगे ।” दीवानचन्द बोला- “वडी वो ताबूत के नीचे से तख्ते उखाड़ कर उसके अंदर घुसेंगे और अंदर घुसते ही ताबूत के तख्ते ठीक उसी तरह वापस ठोंक देंगे- जैसे वो पहले ठुके थे । इस तरह ताबूतों की सील भी लगी रहेगी- ताला भी पड़ा रहेगा- और हमारे दोनों आदमी अपने पूरे साज-सामान के साथ ताबूत के अंदर भी घुस जायेंगे ।”
पालीवाल हक्का-बक्का रह गया ।
“उ...उसके बाद क्या होगा ?” पालीवाल ने सस्पेंसफुल स्वर में पूछा ।
“वडी उसके बाद स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी । म्यूजियम में हॉल नम्बर चार सहित कुल छः हाल कमरे हैं पालीवाल साईं । यहाँ एक बात ध्यान देने के काबिल है- म्यूजियम के बाकी पांच हॉल शाम के पांच बजे ही बंद हो जाते हैं । सिर्फ चार नम्बर हॉल ही एकमात्र ऐसा हॉल है- जो शाम के छः बजे तक खुला रहता है । जबकि शेर-चीते की खाल के जो ताबूत बंगलुरू से दिल्ली आ रहे हैं- उनके सफदरजंग-एयरपोर्ट पहुँचने का टाइम भी शाम के पांच बजे का ही है । तुम क्या समझते हो- उन ताबूतों को एयरपोर्ट से इंडियन म्यूजियम तक पहुँचने में कितना समय लग जायेगा ?”
“लगभग आधा घण्टा !”
“आधा घण्टा !” दीवानचन्द बोला- “और वडी कल चूंकि स्टेशन वैगन बीच रास्ते में भी रुकेगी- इसलिये उसका इंडियन म्यूजियम पौने छः बजे तक ही पहुँचना मुमकिन होगा । करैक्ट ?”
“करैक्ट ।”
“साईं- पौने छः बजे इंडियन म्यूजियम पहुँचने के बाद तुम दोनों ताबूत किस हॉल कमरे में रखोगे ?”
“तीन नम्बर हॉल में ।”
“लेकिन तब तक तो वह हॉल बंद हो चुका होगा ?”
“निःसन्देह तब तक वह हॉल बंद हो चुका होगा ।” जगदीश पालीवाल बोला- “लेकिन हॉल नम्बर तीन और चार की चाबियां हमेशा म्यूजियम के हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह के पास रहती है- जो चौबीस घण्टे म्यूजियम में मिलता है । दरअसल इंडियन म्यूजियम की बैक साइड का एक क्वार्टर सरदार गुरचरन सिंह के नाम अलॉट किया गया है- इसलिये वह या तो म्यूजियम में मिलेगा या फिर अपने क्वार्टर में मिलेगा ।”
“और वडी बाकी हॉल कमरों की चाबियां किसके पास रहती हैं ?”
“वह अलग-अलग हॉल कमरों के अलग-अलग चीफ एग्जीक्यूटिव के पास रहती है ।”
“यानि अगर तुम कल शाम पौने छः बजे एकदम से उन हॉल कमरों की चाबियां हासिल करना चाहोगे, तो वह चाबियां तुम्हें हासिल नहीं होंगी ।”
“हाँ ।”
“वैरी गुड !” दीवानचन्द की आंखों में खुशी की चमक दौड़ी साईं- अब मैं योजना को दोबारा आगे बढ़ाता हूँ । वडी कल शाम पौने छः बजे जब तुम्हारी स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी- तो सरदार गुरचरन सिंह ताबूतों को रखवाने के लिये हॉल नम्बर तीन का दरवाजा खोलना चाहेगा- लेकिन कल उस हॉल का दरवाजा नहीं खुलेगा पालीवाल साईं ।”
“क्यों ?” पालीवाल के दिमाग में धमाका-सा हुआ- “कल उस हॉल का दरवाजा क्यों नहीं खुलेगा ?”
“क्योंकि कल मैं म्यूजियम जाऊंगा- और खुद अपने हाथों से हॉल नम्बर तीन का ताला खराब करके आऊंगा ।”
“वो कैसे ?”
“वडी यह कोई बड़ी बात नहीं । मुझे मालूम हुआ है कि हॉल नम्बर तीन पूरे म्यूजियम में सबसे ज्यादा तन्हा जगह पर है । इतना ही नहीं- पेशाबघर भी उसके काफी नजदीक है । मैंने कल किसी भी वक्त पेशाब करने के बहाने उस तन्हा जगह पर जाकर हॉल नम्बर तीन के ताले में चाबी डालनी है और उसे कसकर इधर-उधर हिला देना है । वह चाबी चूंकि उस ताले की नहीं होगी- इसलिये कसकर इधर-उधर हिलाने से उस ताले के अंदर के कलपुर्जे हिल जायेंगे तथा फिर थोड़ी देर बाद गुरचरन सिंह के खूब कोशिश करने पर भी वो ताला नहीं खुलेगा ?”
“इससे क्या फायदा होगा ?”
“वडी सारा फायदा ही इससे होगा- पूरी योजना ही इस छोटी-सी घटना पर टिकी है ।”
“वो- कैसे ?”
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द- “वडी जब हॉल नम्बर तीन का दरवाजा तो सरदार गुरुचरन सिंह से खुलेगा नहीं और बाकी हॉल कमरों की चाबियाँ उसके पास होंगी नहीं- तो तुम्हीं बताओ साईं वह उन दोनों ताबूतों को किस हॉल में रखवायेगा ?”
पालीवाल सकपका उठा ।
पलक झपकते ही सारी योजना उसकी समझ में आ गयी ।
“जवाब दो साईं ।” दीवानचन्द मुस्कराकर बोला- “वडी वो उन ताबूतों को किस हॉल कमरे में रखवायेगा नी?
“ए...ऐसी परिस्थिति में तो सरदार गुरचरन सिंह को वह ताबूत हॉल नम्बर चार में ही रखवाने होंगे ।”
“सही- बिल्कुल सही कहा तुमने ।” दीवानचन्द प्रफुल्लित हो उठा ।” और वडी यही हम लोग चाहते हैं- यही हमारी योजना है । पालीवाल साईं- सिर्फ वह ताबूत ही हॉल नम्बर चार में बंद नहीं होंगे बल्कि हमारे दोनों आदमी भी उन ताबूतों के साथ-साथ निर्विघ्न उस हॉल में बंद हो जायेंगे । उस हॉल नम्बर चार में जिसकी सिक्योरिटी के इतने जबरदस्त इंतजाम भारत सरकार ने किये हैं । जिस सिक्योरिटी पर ज्यूरी के मेम्बरों को गर्व है । हमारे दोनों आदमी जिस तरह नीचे से तख्ते उखाड़कर ताबूत में घुसे थे- वह हॉल बंद होने के बाद उसी प्रकार तख्ते उखाड़कर ताबूतों से बाहर निकल आयेंगे । अब एक दूसरी बात सुनो- ऐसी परिस्थिति में फॉल्स सीलिंग की छत और प्लास्टर पेरिस की दीवारों में छिपी स्वचालित गनें भी हमारे आदमियों का कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगी । क्योंकि वह स्वचालित गनें भी उसी वक्त हरकत में आती हैं जब हॉल बंद होने के बाद उसमें कोई गलत तरीके से घुसता है । बिल्कुल यही स्थिति शीशे के तिलिस्मी बॉक्स में बंद दुर्लभ ताज की है- वडी वह बॉक्स भी ताज को ऊपर-नीचे ले जाने वाला करामाती प्रदर्शन तभी दिखाता है, जब कोई हॉल में गलत तरीके से घुस जाये- वरना साधारण स्थिति में वो दुर्लभ ताज अपनी जगह फिक्स ही रहता है । पालीवाल साईं- अब तुम अंदाजा लगा सकते हो कि वो ताज, वह युगों पुराना कजाखिस्तान का दुर्लभ ताज कितनी आसानी से हमारे हाथ लग जायेगा ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्की-सी अवस्था में दीवानचन्द का नकाबशुदा चेहरा देखता रह गया ।
उसे अभी भी अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था ।
वो विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उन अपराधियों ने इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना ली है ।
वो वाकई करिश्मा था ।
करिश्मा!
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द खुश होता हआ बोला- “वडी ज्यूरी के मेम्बर उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी करने में बस एक ही जगह मात खा गये- उन्होंने नम्बर चार में तिलिस्मी मायाजाल तो बिछाया साईं , लेकिन उस मायाजाल में बस एक ही लूज पॉइंट छोड़ दिया कि वो सिक्योरिटी सिस्टम तभी हरकत में आयेगा- जब कोई उस हॉल में गलत तरीके से प्रवेश करे- वरना सब कुछ सामान्य रहेगा । अगर इस सिक्योरिटी सिस्टम में यह लूज पॉइंट न होता- शायदा आज हम किसी भी हालत में उस दुर्लभ ताज को चुराने की योजना न बना पाते । लेकिन इसमें ज्यूरी के उन मेम्बरों की भी क्या गलती है साईं- वडी उन्हें यह कोई ख्वाब थोड़े ही चमका होगा कि कोई इस तरह भी हॉल में घुस सकता है ।”
जगदीश पालीवाल सकते जैसी अवस्था में बैठा ।
“साईं !” दीवानचन्द दोबारा बोला- “मुझे अब शायद यह कहने की जरूरत नहीं कि तुमने मुझे जो चैलेन्ज दिया था- उसमें मैं जीत चुका हूँ । वडी इस परफेक्ट योजना से साबित हो चुका है कि सचमुच इस दुनिया में कोई काम नामुमकिन नहीं ।”
“एक बात बताओ ।” पालीवाल शुष्क स्वर में बोला ।
“पूछो ।”
“मैं मानता हूँ । कि तुम्हारे दोनों आदमी, उस दुर्लभ ताज को आसानी से चुरा लेंगे- लेकिन फिर वो उस दुर्लभ ताज को लेकर हॉल नम्बर चार से किस तरह बाहर निकलेंगे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर बाहर से ताला पड़ा है और म्यूजियम में चप्पे-चप्पे पर सिक्योरिटी गार्डों का पहरा है ।”
सेठ दीवानचन्द ने उनके हॉल नम्बर चार से बाहर निकलने की भी योजना बतायी ।
वह योजना हॉल में घुसने वाली योजना से भी ज्यादा जबरदस्त थी ।
पालीवाल हतप्रभ रह गया ।
पूरी योजना में कहीं सुई की नोंक के बराबर भी लूज पॉइंट नहीं था ।
“इसमें कोई शक नहीं ।” फिर जगदीश पालीवाल थोड़ा रुककर प्रभावित स्वर में बोला- “कि तुमने इतने मजबूत विश्वस्तर के सिक्योरिटी सिस्टम को भेदने की एक मास्टर पीस योजना बना ली है- लेकिन इस योजना को बनाते समय तुम एक बहुत महत्वपूर्ण बात भूल गये ।”
“वो क्या ?”
दीवानचन्द के साथ-साथ सब चौंके ।
सब हैरान हुए ।
“दुर्लभ ताज तो तुम चुरा लोगे- लेकिन उस दुर्लभ ताज के बारे में कहा जाता है कि वो अपनी सुरक्षा खुद करता है । और यह सच भी है- आज तक जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया- वही किसी-न-किसी दुर्घटना में मारा गया या बर्बाद हो गया । आज तक ऐसी दर्जनों कहानियां उस दुर्लभ ताज के साथ जुड़ चुकी हैं- जब अपराधियों ने तुम्हारी तरह ही बड़े जोर-शोर के साथ का प्रयास किया- लेकिन वो अपने मकसद में सफल न हुए ।”
“वडी इस बार हम सफल होंगे ।” दीवानचन्द ने दृढ़ शब्दों से कहा- “यह सब कहानियां, सिर्फ कहानियां है- जिसमें सच्चाई नहीं- हकीकत नहीं । इन कहानियों को सिर्फ इसलिये गढ़ा गया है- ताकि हमारे जैसे अपराधियों के दिलों में खौफ पैदा किया जा सके और उन्हें दुर्लभ ताज चुराने से रोका जा सके ।”
पालीवाल कुछ न बोला ।
वो भांप गया कि उन्हें समझाना बेकार है ।
वह अब कोई-न-कोई गुल खिलाकर रहेंगे और अपने मासूम बच्चे की जिंदगी के लिये उसे भी मजबूरन उनकी योजना में शामिल होना पड़ेगा ।
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12-05-2020, 12:42 PM,
#57
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
बहरहाल फिर जगदीश पालीवाल को कुछ जरूरी निर्देश देकर वहाँ से विदा कर दिया गया ।
उसे विदा करते ही सेठ दीवानचन्द ने आनन-फानन योजना में काम आने वाले सामान की एक लिस्ट बनायी ।
एक फायर ब्रिगेड वैन ।
चार अग्निशमन कर्मचारियों की खाकी वर्दियां ।
गैस मास्क ।
गैस टैंक ।
हेलमेट ।
.32 या .38 कैलिबर की स्मिथ एण्ड वैसन या कोल्ट जैसी बेहद उम्दा किस्म की चार रिवॉल्वरें- जो खतरे के समय में सुरक्षा कवच का काम अंजाम दे सकें ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज ।
दस-दस लीटर वाली कैरोसीन ऑयल की दो केनें ।
हथौड़ा ।
कीलें ।
आदि-आदि ।
सामान की लिस्ट तैयार होते ही वह सब फौरन सामान जुटाने के काम में लग गये ।
शनिवार की रात दस बजे तक उन्होंने लगभग सारा सामान एकत्रित कर लिया ।
सबसे ज्यादा परेशानी फायर बिग्रेड वैन के हासिल होने में पेश आयी ।
लेकिन आखिरकार उन्हें प्राइवेट संस्थान द्वारा बेची जा रही बिल्कुल चालू हालत में फायर ब्रिगेड पच्चीस हजार रुपये में मिल गयी ।
अग्निशमन कर्मचारियों का सामान बेचने वाली एक रिटेल शॉप से उन्होंने अग्निशमन कर्मियों की चार सिली सिलाई वर्दियां, बेज, गैस मास्क, गैस टैंक और हेलमेट वगैरह सब खरीद लिये ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज उन्हें जामा मस्जिद के मीना बाजार से हासिल हो गया- उसमें थोड़ी बहुत जो कमी थी, वो दशरथ पाटिल ने ठीक कर दी ।
बाकी इंग्लिश रिवॉल्वरें, कैरोसीन ऑयल, कील, हथौड़ा जैसी बेहद साधारण चीजें भी उन्हें आसानी से उपलब्ध हो गयी ।
वह फिर इकट्ठे हुए ।
इस बार सेठ दीवानचन्द ने सबको यह बताया कि किसने क्या-क्या करना था ।
हॉल नम्बर तीन के ताले को खराब करने की जिम्मेदारी सेठ दीवानचन्द ने खुद संभाली- जो कि सबसे आसान काम था ।
दुष्यंत पाण्डे को सफदरजंग एयरपोर्ट से स्टेशन वैगन का पीछा करते समय फियेट ड्राइव करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी ।
और सबसे खतरनाक मुहिम पर, ताबूतों में घुसकर दुर्लभ ताज चुराने का काम दशरथ पाटिल और राज को सौंपा गया ।
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खुद को इतने जोखिम भरे काम पर नियुक्त होते देख राज का दिल नगाड़े की तरह बज उठा ।
उसका कलेजा मुँह को आ गया ।
वह अपने सवेंट क्वार्टर जैसे छोटे से कमरे में लेटा बेइन्तहा बेचैनी का अनुभव कर रहा था ।
उसे यह पता तक न चला कि डॉली कब उसके नजदीक आकर खड़ी हो गयी ।
“राज !” डॉली ने उसे आहिस्ता से पुकारा ।
राज चुपचाप पड़ा रहा ।
“राज !” इस मर्तबा डॉली ने आवाज देने के साथ-साथ उसे झंझोड़ा भी- तो वह चौंककर पलटा ।
“त...तुम !” डॉली को देखकर उसकी आवाज कांपी- “तुम !”
“क्या सोच रहे हो ?”
“क...कुछ भी तो नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली उसके नजदीक ही बैठ गयी- “क्या मैं नहीं जानती कि तुम इस वक्त क्या सोच रहे हो ।”
“क...क्या सोच रहा हूँ ?”
“तुम कल की योजना को लेकर डर हुए हो- यह सोच-सोचकर तुम्हारी जान निकल रही है कि सेठ दीवानचन्द ने तुम्हें कितने खतरनाक काम पर नियुक्त किया है ।”
“न...नहीं ।” राज की आवाज फिर कांपी- “य...यह सच नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली की आवाज कड़वाहट से भर गयी- “मैं क्या तुमसे वाकिफ नहीं । आज तक पूरी जिंदगी में कभी एक मक्खी तक नहीं मारी- कभी किसी के दस पैसे चुराने तक का हौसला दिल में पैदा नहीं हो सका- और कल तुम्हें इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी में रखा दुर्लभ ताज चुराने के लिये भेजा जा रहा है । ऐसी परिस्थिति में अगर तुम डरोगे नहीं- तो क्या करोंगे ।”
राज अब साफ-साफ सहमा हुआ नजर आने लगा ।
“राज !”
राज चुप रहा ।
“मेरी बात ध्यान से सुनो राज !” डॉली फुसफुसा उठी- “उस दुर्लभ ताज को चुराना तुम्हारे जैसे चूहे दिल वाले आदमी के बस का काम नहीं है । मुझे तो बार-बार यह सोचकर हैरानी हो रही है कि सेठ दीवानचन्द ने इतने खतरनाक काम को अंजाम देने के लिये तुम्हारे जैसे डरपोक व्यक्ति को ही क्यों चुना । एक बात बोलूं राज ?”
“क...क्या ?” राज का सस्पेंसफुल स्वर ।
“मुझे तो इसमें भी सेठ दीवानचन्द की कोई चाल नजर आती है । तुम मानो या मानो- लेकिन मुझे साफ-साफ लगता है कि वह तुम्हें जरुर किसी नये चक्कर में फंसाने जा रहा है वरना वह खुद भी तो हॉल नम्बर चार के अंदर जा सकता था- दशरथ पाटिल के साथ दुष्यंत पाण्डे को भी तो भेजा जा सकता था । लेकिन नहीं- उसने ऐसा कुछ नहीं किया । उसने तुम्हें चुना- तुम्हें- एक बिल्कुल नये, बेहद डरपोक तथा, नातजुर्बेकार आदमी को ।”
“त...तुम कहना क्या चाहती हो ?”
“मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूँ कि अब तुम्हारा यहाँ एक मिनट और भी रुकना खतरे से खाली नहीं है- तुम्हारी जान जोखिम में है- इसलिये जितना जल्द-से-जल्द संभव हो, यहाँ से भाग चलो ।”
“न...नहीं- यह नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ? क्या तुम अड्डे से बाहर निकलने का रास्ता नहीं जानते ?” डॉली फुसफुसाई ।
“वह सब जानता हूँ- ल...लेकिन मैं भागकर कहाँ जाऊंगा डॉली ? राज की आवाज में पीड़ा थी- “कहाँ मुझे आसरा मिलेगा ? म...मेरी जिंदगी अब शै और मात के खतरनाक खेल में फंस चुकी है । पूरे दिल्ली की पुलिस मुझे इस तरह तलाशती घूम रही है- जैसे भूसे के ढेर में सुई तलाश की जाती है ।”
“फ...फिर, तुम क्या करोगे ?”
“मैं कर भी क्या सकता हूँ ।” राज के स्वर में बेहद निराशा थी- “अब तो मेरे सामने यही एक रास्ता है कि मैं सेठ दीवानचन्द के आदेश का पालन करूं । ल...लेकिन मेरे दिमाग में अब एक योजना और है डॉली ।”
“य...योजना- कैसी योजना ?”
“मैंने इन शैतानों को चुपचाप बातें करते सुना है कि दुर्लभ ताज हाथ में आते ही यह तीनों हिन्दुस्तान छोड़कर खामोशी से अपने सुपर बॉस के साथ अमरीका भाग जायेंगे । इसके लिये जाली पासपोर्ट और वीजे वगैरह की भी तैयारियां हो चुकी हैं ।”
“कहीं तुम इस गलतफहमी में तो नहीं ।” डॉली तुरन्त बोली- “कि यह तुम्हें भी अपने साथ अमरीका ले जायेंगे ?”
“मैं इतना बड़ा पागल नहीं हूँ- जो इस तरह के लोगों से ऐसी उम्मीद रखूंगा ।”
“फ...फिर क्या योजना है तुम्हारी ?”
राज अब डॉली की तरफ झुक गया तथा और धीमे स्वर में फुसफुसाया- “अब यह लोग कभी अमरीका नहीं जा सकेंगे डॉली ।”
“य...यह तुम क्या कह रहे हो ?” डॉली के नेत्र आश्चर्य से फैल गये ।
“मैं ठीक ही कह रहा हूँ । इस वक्त तुम मेरी कोई बात अच्छी तरह नहीं समझ सकोगी- लेकिन अब एक बात ध्यान रखना । आज तक तुम मुझे डरपोक और बुजदिल समझती थी न- तो सुनो अब डरपोक राज मर गया । आज से एक एसा नया राज जन्म लेगा- जो अपने आपमें बहादुरी की मिसाल होगा । आज तक लोग मेरे खिलाफ षड्यन्त्र रचते थे- लेकिन अब मैं षड्यन्त्र रचूंगा । ऐसा षडयन्त्र- जो सबके छक्के छुटा देगा ।” बोलते-बोलते राज की आंखों में खून उतर आया- “और...और उस व्यक्ति को तो मैं किसी भी हालत में माफ नहीं करूंगा डॉली- जिसकी वजह से आज मेरी यह हँसती-खेलती जिंदगी नरक बन गयी है ।”
राज का चेहरा ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा ।
होंठ गुस्से से कंपकंपाने लगे ।
वह एक ही पल में दरिन्दा बन चुका था- साक्षात दरिन्दा ।
राज का वह रौद्र रूप देखकर उस साये का कलेजा पत्ते की तरह कांप उठा- जो उस छोटे से कमरे के दरवाजे से आंख और कान सटाये खड़ा उनका वार्तालाप सुन रहा था ।
अगले ही पल वो तेजी से पलटा ।
उसके शरीर में फुर्ती-सी समा गयी थी ।
फिर वो लम्बे-लम्बे डग रखता हुआ कांफ्रेंस हॉल की तरफ बढ़ गया ।
गहन अंधकार में भी उस साये के कदम इस तरह उठ रहे थे- मानो वह उस अड्डे के एक-एक हिस्से से वाकिफ हो ।
वह बल्ले था ।
बल्ले!
☐☐☐
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12-05-2020, 12:42 PM,
#58
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
फिर आखिरकार वो महत्वपूर्ण समय भी आ ही गया- जिसका सेठ दीवानचन्द और उसके संगठान के मेम्बरों को पिछले कई दिनों से इंतजार था ।
सचमुच वह रोमांचकारी क्षण थे ।
रोमांचकारी भी और रहस्य से भरे हुए भी ।
कोई नहीं जानता था कि आगामी कुछ घण्टों में अब क्या होने वाला है ।
खेल शुरू हुआ ।
पत्ते बिछाये जाने लगे ।
वह रविवार की खून में डूबी हुई शाम थी- जैसे ही पांच बजे, इंडियन म्यूजियम की एक स्टेशन वैगन ताबूत लेने के लिये सफदरजंग एयरपोर्ट की विशाल मारकी में जाकर रुकी ।
स्टेशन वैगन में उस समय जगदीश पालीवाल के अलावा छत्रपाल सिंह नाम का एक बेहद लम्बा-चौड़ा ड्राइवर भी मौजूद था- जो हरियाणा का रहने वाला था और जिसके कंधे पर हमेशा एक दुनाली बंदूक टंगी रहती थी । वह बंदूक सरकारी थी और म्यूजियम की तरफ से उसे इसलिये हासिल हुई थी- ताकि कोई भी खतरा देखते ही वह उसका इस्तेमाल कर सके ।
लगभग दस मिनट बाद ही शेर और चीते की खालों के दोनों ताबूत स्टेशन वैगन के बॉक्स पोर्शन में रख दिये गये ।
फिर छत्रपाल सिंह के सामने ही जगदीश पालीवाल ने दरवाजे पर पीतल का भारी-भरकम ताला लगाकर चाबी अपनी जेब में रखी ।
उसके बाद स्टेशन वैगन तूफानी रफ्तार से म्यूजियम की तरफ दौड़ पड़ी ।
छत्रपाल सिंह पूरी तन्मयता से वैगन ड्राइव कर रहा था ।
वैसे भी वो दिलखुश आदमी था ।
हमेशा मस्त रहता ।
उसकी बराबर में बैठे जगदीश पालीवाल ने रियर व्यू में देख लिया था कि एयरपोर्ट से ही सफेद रंग की एक फियेट उनकी वैगन के पीछे लग गयी है ।
वैगन अपना फासला तय करती रही ।
वह अभी मुश्किल से एक किलोमीटर भी न चली होगी कि जगदीश पालीवाल ने एकाएक जोर से सिसकारी भरकर अपना सिर पकड़ा और फिर एकदम से ड्राइविंग सीट पर ढेर होता चला गया ।
वो सीधा छत्रपाल सिंह की गोद में जाकर गिरा ।
“साहब जी- साहब जी !” छत्रपाल सिंह के हाथ-पांव फूल गये- उसने जल्दी से स्टेशन वैगन के ब्रेक अप्लाई किये- “के होया साहब जी ?”
पालीवाल कुछ न बोला ।
वह जख्मी सांड की भांति बुरी तरह हाँफता रहा- जोर-जोर से हाँफता रहा ।
“कुछ तो बोलो साहब जी- क...के होया जी?” छत्रपाल सिंह बुरी तरह दहशतजदां हो उठा था ।
“म...मेरे सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है छत्रपाल ।” पालीवाल पीड़ा से बुरी तरह कराहकर बोला- “द...दर्द के मारे सिर फटा जा रहा है ।”
“स...सिरदर्द में इतनी बुरी हालत साहब जी ?”
“यह कोई साधारण सिरदर्द नहीं है छत्रपाल ।” वह पीड़ा से और बुरी तरह छटपटाया- “क...कभी-कभी मेरे सिर में एक गोला-सा टकराता है- त...तुम एक काम करोगे छत्रपाल ।”
“हुकुम करो साहब जी- हुकुम ।”
“तुम फौरन कहीं से सिरदर्द की एक टेबलेट ले आओ- वरना आज मेरे यहीं प्राण निकल जाने हैं ।”
बेचारा छत्रपाल !
घबरा तो वह पहले ही काफी चुका था ।
उसकी आंखें बड़ी तेजी से चारों तरफ घूम गयीं ।
आसपास के इलाके में केमिस्ट की दुकान तो क्या कैसी भी कोई दुकान न थी ।
हाँ- पांच या छः सौ गज के फासले पर उसे एक कॉलोनी जरूर दिखाई दी ।
अगले ही पल वो बदहवास स्थिति में पैदल ही कॉलोनी की तरफ दौड़ पड़ा ।
सफेद फियेट जो मन्थर गति से चलती हुई वैगन से आगे निकल गयी थी- छत्रपाल सिंह के कूच करते ही टर्न होकर दोबारा वैगन के नजदीक पहुँची ।
फिर फियेट में- से बेहद आनन-फानन दुष्यंत पाण्डे बाहर निकला ।
जगदीश पालीवाल भी अब बड़ी चुस्त अवस्था में, वापस सीट पर बैठ चुका था ।
पलक झपकते ही दुष्यंत पाण्डे ने जगदीश पालीवाल से चाबी हासिल की ।
फिर उसने दौड़कर बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोला ।
उसके बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोलते ही फियेट में पहले से तैयार बैठे दशरथ पाटिल और राज तुरन्त केरोसीन ऑयल की केनें तथा डकैती में काम आने वाला कुछ जरूरी साज-सामान लेकर फुर्ती के साथ फियेट से बाहर निकले तथा फिर चीते की तरह दौड़ते हुए बॉक्स पोर्शन के अंदर घुस गये ।
उस वक्त दोनों ने अग्निशमन कर्मचारियों की ड्रेस पहन रखी थी ।
उन दोनों के बॉक्स पोर्शन में घुसते ही दुष्यंत पाण्डे ने फौरन बाहर से दरवाजे का ताला लगा दिया ।
चाबी जगदीश पालीवाल को सौंपी ।
उसके बाद वो पहले की तरह ही आनन-फानन फियेट में जाकर बैठ गया ।
फिर फियेट यह जा और वह जा ।
मुश्किल से एक मिनट में ही सारा काम हो गया था ।
☐☐☐
थोड़ी देर बाद ही छत्रपाल सिंह की वापसी हुई- वह सांड की तरह हाँफ रहा था ।
जगदीश पालीवाल को बिल्कुल ठीक-ठाक अवस्था में सीट पर बैठे देखकर वह चौंका ।
“अ...आपका सिरदर्द ठीक हो गयो साहब जी ?” छत्रपाल सिंह के स्वर में हैरानी थी ।
“हाँ छत्रपाल ।” पालीवाल ने गहरी सांस ली- “तुम्हारे जाते ही सिर का दर्द बड़े आश्चर्यजनक ढंग से ठीक हो गया था । मैंने तुम्हें पीछे से कई आवाजें भी दीं- लेकिन तुमने सुना ही नहीं- क्या तुम टेबलेट ले आये ?”
“हाँ साहब जी- टेबलेट तो मैं ले आया ।” छत्रपाल सिंह ने टेबलेट फौरन पालीवाल की तरफ बढ़ा दी ।
“कोई बात नहीं ।” पालीवाल ने टेबलेट जेब में रखी- “यह टेबलेट फिर कभी काम आयेगी । चलो- तुम अब जल्दी से म्यूजियम चलो ।”
अगले ही पल स्टेशन वैगन पुनः इंडियन म्यूजियम की तरफ भागी जा रही थी ।
☐☐☐
छः बजने में उस समय दस मिनट बाकी थे- जब स्टेशन वैगन म्यूजियम के विशाल प्रांगण में जाकर रुकी ।
जगदीश पालीवाल के लिये वो सबसे ज्यादा नाजुक क्षण थे ।
हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह और छत्रपाल सिंह- उन दोनों ने मिलकर वैगन के बॉक्स पोर्शन में- से वह दोनों ताबूत उतारे ।
लेकिन ताबूत उतारने में उन्हें अपनी भरपूर ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा ।
“साहब जी !” छत्रपाल सिंह एक ताबूत उतारते ही बुरी तरह हाँफने लगा- “यह बक्से आते-आते इत्ते भारी कैसे ही गयो जी ?”
पालीवाल हड़बड़ाया ।
“ओये पापे !” सरदार गुरचरनसिंह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोला- “रास्ते में चुड़ैल-शुड़ैल तो नहीं घुस गयी इन ताबूतों विच ।”
छत्रपाल सिंह की चुड़ैल-शुड़ैल के नाम हंसी छूट गयी ।
पालीवाल भी मुस्करा दिया ।
इस तरह मजाक में ही वो बात आई-गई हो गयी ।
दोनों ताबूत उठाकर हॉल नम्बर तीन के नजदीक लाये गये ।
सरदार गुरचरन सिंह ने हॉल का ताला खोलना चाहा- तो ताला न खुला ।
जरूर सेठ दीवानचन्द वहाँ आकर अपने हाथों की कारीगरी दिखाने में सफल हो गया था ।
सरदार गुरचरन सिंह ने फिर कोशिश की- लेकिन इस बार भी उसे असफलता ही मिली ।
“क्या हुआ ?” पालीवाल जानबूझ कर अंजान बना- “ताला कैसे नहीं खुल रहा ?”
“असी पता नहीं शाह जी ।” गुरचरन सिंह के चेहरे पर उलझनपूर्ण भाव उभरे- “पंज बजे तब मैंने ताला बंद किया था- तब तो सब कुछ ठीक-ठीक था ।”
“फिर इतनी जल्दी क्या हो गया ?”
गुरचरन सिंह से एकाएक जवाब देते न बना ।
“सरदार जी!” छत्रपाल सिंह थोड़ा हेकड़ी से बोला- “जरा ताल्ली मेरे को दिखाना जी- मैं देख्खूं यह ससुरा कैसे ना खुले ।”
सरदार गुरचरन सिंह ने चाबियों का गुच्छा छत्रपाल सिंह को सौंप दिया ।
अगले ही पल गैंडे जैसा शक्तिशाली छत्रपाल सिंह ताले से उलझ गया ।
जबकि पालीवाल के चेहरे पर अब सस्पेंसफुल भाव उभर आये थे ।
छत्रपाल सिंह ने बेइन्तहा कोशिश की ।
चाबी की मूठ पकड़कर खूब जोर लगाये- लेकिन आखिरकार ताला उससे भी न खुला ।
“अब क्या होगा ?” जगदीश पालीवाल ने नकली चिन्ता जाहिर की- “कहाँ रखेंगे इन ताबूतों को ?”
“शाह जी !” एकाएक सरदार गुरचरन सिंह बोला- “असी-अभी एक ताले वाले को बुलाकर लाता है- उसने पंज मिनट में ताला खोल देना है ।”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल फौरन बोला- “ऐसी गलती कभी मत करना गुरचरन सिंह ।”
“क्यों शाहजी ?”
“यह सारे ताले वाले एक नम्बर के बदमाश होते हैं- इन्होंने एक बार जिस ताले की चाबी बना ली, दोबारा उसी की डुप्लीकेट खुद-ब-खुद बना लेते हैं । फिर तुम्हें तो मालूम ही है कि इस हॉल में कितना कीमती सामान रखा रहता है- अगर यहाँ कभी चोरी हो गयी, तो तुम्हारी आफत आ जायेगी ।”
“आप बिल्कुल ठीक बोले साहब जी ।” छत्रपाल सिंह फौरन सहमति में गर्दन हिलाई- “हमारे गांव में ससुरों एक बिल्कुल ऐसा ही केस हो गयो था ।”
“फिर असी क्या करें शाहजी ?” सरदार गुरचरन सिंह विचलित हुआ ।
“करना क्या है- इन ताबूतों को रात भर के लिये किसी भी सुरक्षित जगह पर रख दो । सुबह इस हॉल का ताला तोड़कर जब नया ताला लगाया जायेगा- तभी इन ताबूतों को भी इसके अन्दर रख देना ।”
“ऐसी चंगी जगह तो अब बस एक ही है शाह जी- जहाँ इन ताबूतों को रातभर के लिये रखा जा सकता है ।”
“कौन-सी जगह ?”
“चार नम्बर हॉल ।”
“तो फिर पूछते क्या हो- उसी में रख दो । सुबह निकाल लेना ।”
ठीक छ: बजे उन दोनों ताबूतों को हॉल नम्बर चार में रखकर हॉल बंद कर दिया गया ।
इस तरह दशरथ पाटिल और राज सिक्योरिटी के इतने बड़े तामझाम को भेदकर सहज ही हॉल नम्बर चार में घुसने में सफल हो गये ।
वह हॉल में बंद हो गये थे ।
लेकिन किसी को पता तक न था कि थोड़ी ही देर बाद वहाँ कितना बड़ा हंगामा होने वाला है ।
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12-05-2020, 12:42 PM,
#59
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
फिर योजना का अगला चरण शुरू हुआ ।
हॉल में बंद होने के बाद सबसे पहले दशरथ पाटिल अपने ताबूत के तख्ते उखाड़कर बाहर निकला ।
फिर उसके पीछे-पीछे राज भी निकला ।
जैसा कि स्वाभाविक था- फॉल्स सीलिंग की छत और प्लास्टर पेरिस की दीवारों के पीछे छिपी स्वचालित गनों ने उनके ऊपर गोलियां नहीं बरसायी ।
ताबूतों से बाहर निकलते ही वह दोनों उस शीशे के बॉक्स की तरफ बढ़े गये- जिसमें दुर्लभ ताज रखा था ।
और जिसकी कीमत कई अरब रुपये थी ।
पलक झपकते ही वो दुर्लभ ताज दशरथ पाटिल के हाथों में था ।
उसी पल राज ने उस शीशे के बॉक्स में पीतल का वो नकली ताज रख दिया- जिसे उन्होंने जामा मस्जिद के मीना बाजार से खरीदा था ।
इस तरह बिना किसी मुश्किल के- बिना किसी बड़े हंगामे के वो ताज चोरी हो गया ।
अब उन्हें उस दुर्लभ ताज को लेकर सिर्फ उस हॉल से बाहर निकलना बाकी था ।
हालांकि वो काफी मुश्किल काम था ।
लेकिन वो भी हुआ ।
कुशलतापूर्वक हुआ ।
वहाँ से भाग निकलने की योजना रात के दस बजे से शुरू हुई ।
वो योजना काफी हंगामाखेज थी ।
हंगामाखेज भी- और दहला देने वाली भी ।
जैसे ही रात के दस बजे- फौरन दशरथ पाटिल और राज ने अपने साथ लायी कैरोसिन ऑयल की केनों में-से तेल हॉल के अंदर-ही-अंदर चारों तरफ छिड़कना शुरू कर दिया ।
इतना ही नहीं- फिर दशरथ बिलीमारिया ने आग भी लगा दी ।
☐☐☐
फौरन चार नम्बर हॉल के अंदर धूं-धूं करके आग लगने लगी ।
धुंआ तेजी से बाहर निकलने लगा ।
“आग- आग- आग- ।”
इंडियन म्यूजियम की सिक्योरिटी रात होने की वजह से उस वक्त अपनी चरम सीमा पर थी- जब एकाएक चारों तरफ आग-आग का भीषण कोलाहल मच गया ।
सब इधर-से-उधर भागने लगे ।
बाहर तैनात हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह के कानों में भी जैसे ही उस कोलाहल की आवाज पड़ी- वह भी म्यूजियम के अंदर की तरफ भागा ।
“क...क्या हुआ ? अंदर आते ही गुरचरन सिंह ने एक सिक्योरिटी गार्ड से पूछा- “क्या हुआ?”
“ह...हॉल नम्बर चार में आग लग गयी है सर ।” सिक्योरिटी गार्ड ने बुरी तरह बौखलाये हुए कहा- ब...बहुत बुरी तरह आग लगी है ।”
“ल...लेकिन कैसे ?” गुरचरन सिंह के नेत्र फटे- “कैसे लगी आग ?”
“यह मालूम नहीं सर- म...मगर खूब धुआं उठ रहा है- खूब आग की लपटें निकल रही हैं ।”
सरदार गुरचरन सिंह फौरन हॉल नम्बर चार की तरफ दौड़ पड़ा ।
वास्तव में ही धुएं से पूरा गलियारा भरा पड़ा था ।
अंदर उठती भीषण आग की लपटें दरवाजे की झिर्री में से भी साफ नजर जा रही थीं ।
सरदार गुरचरन सिंह को एकाएक न जाने क्या सूझा कि उसने दौड़कर वह सभी वायरें उधेड़नी शुरू कर दीं- जिनकी बदौलत हॉल नम्बर चार में सिक्योरिटी का वह तिलिस्मी जाल बिछाया गया था ।
पलक झपकते ही वो पूरा सिक्योरिटी सिस्टम ठप्प हो गया ।
लेकिन बदहवासी के आलम में उठाये गये इस कदम से सेफ्टी अलार्म बज उठा था ।
परिणामस्वरूप पूरे दिल्ली शहर की पुलिस में हड़कम्प मच गया ।
सभी सीमा चौकियां को सतर्क कर दिया गया ।
रोड क्लॉक कर दिये गये ।
पुलिस की जिप्सियां, पी.आर.सी., वैनें, जीपें- वह सब हथियारबन्द पुलिसकर्मियों से भर-भरकर इंडियन म्यूजियम की तरफ भागने लगी ।
तभी घटना ने एक और मोड़ लिया ।
टन-टन की आवाज आसपास के सारे वातावरण में गूंज उठी थी ।
“फायर ब्रिगेड आ गयी ।” एक सिक्योरिटी गार्ड चीख-पुकार मचाता अंदर की तरफ भागा- “फायर ब्रिगेड आ गयी ।”
वह ‘फायर ब्रिगेड’ आने का ऐसा शोर मचा रहा था- जैसे कोई तोप घुसी चली आ रही हो ।
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फायर ब्रिगेड इंडियन म्यूजियम के प्रांगण में आकर रुक गयी ।
फिर उस फायर ब्रिगेड वैन के अंदर से दो अग्निशमन कर्मचारी बड़ी फुर्ती से बाहर कूदे ।
“नीचे कूदते ही उन्होंने पानी का एक-एक मोटा पाइप अपने हाथों में ले लिया ।
“आग किधर लगी है ?” उनमें से एक अग्निशमन कर्मचारी हलक फाड़कर चिल्लाया ।
“हॉल नम्बर चार में- जल्दी वहाँ पहुंचो- जल्दी ।”
फौरन वह दोनों कर्मचारी हॉल नम्बर चार की तरफ दौड़ पड़े ।
सिर पर हैलमेट और मुँह पर गैस मास्क लगा होने की वजह से उनका पूरा चेहरा छिप गया था ।
पीठ पर गैस टंकियां बंधी थीं ।
वह सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे थे ।
“वडी फौरन इस हॉल का दरवाजा खोलो ।” चार नम्बर हॉल के नजदीक पहुँचकर सेठ दीवानचन्द ने हलक फाड़ा- “वरना सब कुछ जलकर राख हो जाना है ।”
सरदार गुरचरन सिंह- जो अनायास घटे इस हादसे से बुरी तरह बौखलाया हुआ था- उसने फौरन हॉल नम्बर चार का दरवाजा खोल दिया ।
इतना ही नहीं!
हॉल का दरवाजा खोलते ही वह अपनी जान की परवाह किये बिना धधकती आग में उसके अंदर कूद गया ।
फिर वो अपनी सेल्फ लोडिंग राइफल संभाले दौड़ता हुआ दुर्लभ ताज के नजदीक जा खड़ा हुआ ।
हड़बड़ाहट में ही उसने देखा कि दुर्लभ ताज अपनी जगह पर सुरक्षित मौजूद है ।
वह फौरन राइफल संभाले दुर्लभ ताज के पास यूं तनकर खड़ा हो गया- मानो अगर आज उस ताज को चुराने दुनिया की कोई भी ताकत उसके सामने आ गयी, तो वह अकेला ही उसे तहस-नहस कर डालेगा ।
अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित था गुरचरन सिंह ।
लेकिन काश!
काश उसने दुर्लभ ताज को ध्यान से देखा होता ।
तो उसे मालूम पड़ता कि जिस ताज की हिफाजत के लिये वो अपनी जान की बाजी लगाकर वहाँ खड़ा है- वह ताज तो कभी का चोरी हो चुका है ।
उधर- सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे वहाँ एक नया ही नाटक खेल रहे थे । वह पाइप से निकलते पानी के मोटे धारे को आग पर बरसाने की बजाय इधर-उधर दीवारों पर मार रहे थे ।
यही वजह थी- आग बुझने की बजाय हर पल और भीषण रूप धारण करती जा रही थी ।
उन दोनों की नजर हॉल में दीवार से चिपके खड़े दशरथ पाटिल और राज पर भी पड़ चुकी थी ।
उन दोनों के चेहरों पर सफलता की चमक विद्यमान थी ।
वह खुश थे ।
इस बीच म्यूजियम के बाहर पुलिस फोर्स का विशाल जमघट इकट्ठा हो गया ।
तभी अपना कानफोड़ सायरन बजाती हुई फायर ब्रिगेड वैनों का एक बड़ा काफिला म्यूजियम के प्रांगण में आकर रुका ।
देखते-देखते वहाँ चारों तरफ अग्निशमन कर्मचारी-ही-कर्मचारी नजर आने लगे ।
राज, सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे को जैसे उसी पल का इंतजार था ।
वह अग्निशमन कर्मचारियों की भीड़ का फायदा उठाकर वहाँ से भाग खड़े हुए ।
राज और दशरथ पाटिल भी चूंकि अग्नि कर्मचारियों की ड्रेस में ही थे- इसलिये उन्हें वहाँ से भागने में कोई परेशानी न हुई ।
सबने यही समझा कि उनकी फायर ब्रिगेड वैन के टेंकर का पानी खत्म हो गया है- इसलिये वो वापस जा रहे हैं ।
बहरहाल सारे सुरक्षा प्रबन्ध रखे रह गये ।
म्यूजियम के बाहर दिल्ली पुलिस के जत्थे-के-जत्थे खड़े रह गये ।
और वह चार आदमी- सिर्फ चार आदमी उनके बीच से उस बेहद मूल्यवान दुर्लभ ताज को ले उड़े ।
उससे भी ज्यादा डूब मरने की बात यह थी कि किसी को इस बात की कानों-कान भनक तक नहीं थी कि वो दुर्लभ ताज चोरी हो गया ।
☐☐☐
अगले दिन धमाका हुआ ।
अगले दिन के सारे समाचार-पत्र एक ही खबर से रंगे पड़े थे-
बेहद जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद दुर्लभ ताजा चोरी किलेबंद सिक्योरिटी को आसानी से भेदा गया
हर अखबार ने उस समाचार के अलग-अलग शीर्षक बनाये थे ।
उस समाचार को खूब मिर्च-मसाला लगाकर छापा गया था ।
दो-तीन अखबारों ने तो दिल्ली पुलिस की कार्यकुशलता पर व्यंग्य भी कसे थे और फ्रंट पेज पर कार्टून भी प्रकाशित किये थे ।
बहरहाल उस समाचार में एक बात और बड़ी दिलचस्प थी- जिससे वाकई दिल्ली पुलिस की काबिलियत का पता चलता था ।
उस खबर के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने दुर्लभ ताज चुराने के इल्जाम में तत्काल ही एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर लिया था ।
वह व्यक्ति था- इंडियन म्यूजियम का हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह!
गुरचरन सिंह का दोष ये था- उसने अग्निशमन कर्मचारियों के कहने पर हॉल नम्बर चार का दरवाजा क्यों खोला ?
फिर वो उनके आगे-आगे आग में क्यों कूदा ?
इस सम्बन्ध में दिल्ली पुलिस के एक बड़े अफसर की टिप्पणी भी अखबारों में छपी थी- जो काबिलेगौर थी- “यह सब सरदार गुरचरन सिंह की वजह से हुआ । सरदार गुरचरन सिंह अपराधियों का ‘इनसाइड हैल्पर’ था । जरूर उसी न हॉल नम्बर चार में भीषण अग्निकाण्ड किया था और फिर वह आग में आगे-ही-आगे कूदा भी इसलिये था- ताकि दुर्लभ ताज चुराने में अपराधियों की मदद कर सके । बहरहाल गुरचरन सिंह से कठोर पूछताछ की जा रही है तथा उम्मीद है कि बहुत जल्द चोरी से सम्बन्धित कुछ और रहस्य की गुत्थियां भी सुलझेंगी ।”
वाकई- बेचारा सरदार गुरचरन सिंह फंस गया था ।
खामख्वाह फंस गया था ।
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Reply
12-05-2020, 12:42 PM,
#60
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
उसी दिन एक आश्चर्यजनक घटना और घटी ।
दोपहर के दो बज रहे थे- जब सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी एकाएक सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर आ गया ।
डॉन मास्त्रोनी को देखकर सब हैरान रह गये- बेहद भौंचक्के क्योंकि उसके आने की पहले से कोई सूचना नहीं थी ।
एक बार फिर वह सब कॉफ्रेंस हॉल में आयताकार मेज के इर्द-गिर्द जमा हुए ।
आज ऊंची पुश्त वाली उस रिवॉल्विंग चेयर पर डॉन मास्त्रोनी बैठा था- जिस पर हमेशा सेठ दीवानचन्द बैठता था ।
जबकि दीवानचन्द उसके पहलू में ही पड़ी एक कुर्सी पर भीगी बिल्ली-सी बना बैठा था ।
अन्य कुर्सियों पर दशरथ पाटिल, दुष्यंत पाण्डे और राज बैठे थे ।
डॉली भी मासूम गुड्डू को गोद में लिये वहीं बैठी थी ।
डॉन मास्त्रोनी के सामने दुर्लभ ताज रखा था । दुर्लभ ताज- जिसे वो हाथों में ले-लेकर बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रहा था ।
डॉन मास्त्रोनी की उम्र लगभग चालीस-पैंतालीस के आसपास थी । कद लम्बा था- नैन-नक्श आकर्षक थे और उसके बाल बेहद विशिष्ट अंदाज में पीछे की तरफ कढ़े हुए थे- जिससे उसका व्यक्तित्व काफी रौबदार बन गया था ।
डॉन मास्त्रोनी ने अपने गठे हुए शरीर पर इस समय ब्राउन कलर का सूट पहना हुआ था ।
डॉन मास्त्रोनी काफी देर तक दुर्लभ ताज को हसरत भरी निगाहों से देखता रहा ।
“म...मुझे इस वक्त आपको यहाँ देखकर हैरानी हो रही है सुपर बॉस !” सेठ दीवानचन्द थोड़े सकपकाये स्वर में बोला- “व...वडी आपको इतनी जल्दी न्यूयार्क में यह खबर कैसे मिल गयी कि हमने दुर्लभ ताज चुरा लिया है- अ...और आप इतनी जल्दी न्यूयार्क से इधर दिल्ली कैसे आ गये ?”
मुस्कराया डॉन मास्त्रोनी !
उसके लाल-सुर्ख होंठों पर बाल जैसी बारीक मुस्कान दौड़ी थी ।
“तुम दोनों ही बात गलत ढंग से सोच रहे हो दीवानचन्द ।”
डॉन मास्त्रोनी ने एकदम शुद्ध हिन्दी में जवाब दिया ।
“क...क्या मतलब ?”
“दरअसल तुम लोगों ने दुर्लभ ताज चुरा लिया है- मुझे यह खबर न्यूयार्क में नहीं पता चली थी ।” डॉन मास्त्रोनी बोला- “बल्कि दिल्ली आने के बाद पता चली । मैं कल ही न्यूयार्क से दिल्ली आने के लिये उड़ान भर चुका था और आज सुबह जब मैंने दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर कदम रखा- तभी एक अखबार के जरिये से मुझे यह खुशखबरी मिली । हाँ- यह इत्तेफाक जरूर हुआ कि मेरे कदम ऐसे शानदार मौके पर दिल्ली शहर में पड़े- जब तुम अपनी योजना में कामयाब हो चुके थे ।”
सब सनसनायी-सी अवस्था में बैठे रहे ।
“ऐनी वे !’ डॉन मास्त्रोनी ने अपने पीछे को कढ़े बालों पर हाथ फेरा- “अब कुछ काम की बातें कर लें । सबसे पहले तुम लोग मुझे यह बताओ कि क्या तुम सभी ने अपने-अपने पासपोर्ट और वीजे तैयार करा लिये हैं ?”
“यस सुपर बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने आदर से गर्दन झुकाई- हम सभी के पासपोर्ट और वीजे पूरी तरह तैयार हो चुके हैं तथा हम सब हिन्दुस्तान छोड़ने के लिये एकदम तैयार हैं ।”
“सुपर बॉस !” दशरथ पाटिल भी बोला- “हम लोगों को अब जल्द-से-जल्द हिन्दुस्तान छोड़ देना चाहिये ।”
“क्यों ?” डॉन मास्त्रोनी की आंखें सिकुड़ीं- “जल्द-से-जल्द क्यों ?”
“क्योंकि अब हमारे लिये यहाँ खतरा-ही-खतरा है वडी ।” सेठ दीवानचन्द अपने चिर-परिचित अंदाज में बोला- “आपको तो मालूम ही होगा नी- हमने इस पूरी योजना को कामयाब बनाने के लिये इंडियन म्यूजियम के चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर जगदीश पालीवाल की इनसाइड हेल्प हासिल की है । वडी जगदीश पालीवाल एक देशभक्त आदमी है- ईमानदार आदमी है- उसने इस पूरी डकैती में हमारी मदद भी इसलिये की, क्योंकि उसका बेटा गुड्डू हमारे कब्जे में था । लेकिन हमने जैसे ही उसका बेटा उसे लौटाना है सुपर बॉस- उसने उसी क्षण हमारी सारी करतूत का पुलिस के सामने भंडाफोड़ कर देना है । वडी उसने मेरी सूरत नहीं देखी- लेकिन बाकी सबकी सूरत देखी है- वो बाकी सबको पहचानता है । इसलिये इससे पहले कि वो हमारे लिए कोई आफत पैदा करे-“कोई मुश्किल पैदा करे- उससे पहले ही हम हिन्दुस्तान छोड़कर भाग जायें ।”
“ओ.के. ।” डॉन मास्त्रोनी धीरे-धीरे गर्दन हिलाने लगा- “ओ.के.- आइ एन्टायरली ऐग्री विद यू । मैं कुछ बंदोबस्त करता हूँ ।”
“थैंक्यू थैंक्यू सुपर बॉस !”
डॉन मास्त्रोनी की आंखें फिर दुर्लभ ताज पर जाकर टिक गयीं ।
“देट्स वंडरफुल !” डॉन मास्त्रोनी ने फिर उस दुर्लभ ताज को अपने हाथों में लहराया- “वाकई इस दुर्लभ ताज को चुराकर तुम लोगों ने कमाल कर दिखाया है । एक ऐसा दुर्लभ ताज- जिसे शान्ति और खुशहाली का प्रतीक बताया जाता है- जिसे आज तक कोई नहीं चुरा सका । जिस दुर्लभ ताज के बारे में प्रसिद्ध है कि जिसने भी उसे चुराने का प्रयास किया- वही बर्बाद हो गया- वही मारा गया । और उसी दुर्लभ ताज को चुराने का कमाल तुम लोगों ने कर दिखाया- दैट वाज वेरी ब्रेव ऑफ यू ।”
“इसमें हमारा क्या कमाल है सुपर बॉस !” दशरथ पाटिल मुस्कराकर बोला- “सारा कमाल तो आपका है- आपके द्वारा बनायी गयी अद्भुत योजना का है । दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी इतनी परफेक्ट थी कि हम लोग तो लगभग हार ही मान बैठे थे- हमें लगने लगा था कि हम दुर्लभ ताज चुराने में कभी सफल नहीं हो पायेंगे । लेकिन तभी आपने दुर्लभ ताज चुराने की मास्टर पीस योजना भेजकर हमारी सारी परेशानियां दूर कर दीं ।”
दशरथ पाटिल की बात सुनकर डॉन मास्त्रोनी के नेत्र एकाएक बुरी तरह फैल गये ।
उसने दशरथ पाटिल को यूं अचम्भे से देखा- मानों उसके सिर पर सींग उग आये हों ।
“म....मैंने तुम लोगों को योजना भेजी ।” डॉन मास्त्रोनी के मुँह से तेज सिसकारी छूटी- “य...यह कैसे हो सकता है- यह क्या कह रहे हो तुम ?”
“वडी पाटिल वही तो कह रहा है- जो सच है । दीवानचन्द बोला- “अगर आपने हमें वो धांसू योजना न भेजी होती सुपर बॉस- तो आज हम इस दुर्लभ ताज को चुराने में ही कैसे कामयाब होते?”
“ल...लेकिन मैंने तो तुम लोगों को कोई योजना नहीं भेजी ।” डॉन मास्त्रीनी ने एकाएक उनके बीच जबरदस्त विस्फोट कर दिया था- “और मैं कोई योजना बनाकर भेजता भी कैसे- मुझे तो ये भी जानकारी नहीं थी कि इस दुर्लभ ताज की इंडियन म्यूजियम में क्या सिक्योरिटी की गयी है ।”
सब दंग रह गये ।
बुरी तरह दंग ।
सबको ऐसा लगा- मानो उनके दिमाग में ‘एटम-बम’ फट रहे हों ।
ज्वालामुखी फट रहा हो ।
☐☐☐
सचमुच वो एक हंगामाखेज सस्पेंस था जिसका राज उन लोगों के बीच अब जाकर खुला ।
दुष्यंत पाण्डे ने रूमाल निकालकर फौरन अपने चेहरे पर छलछला आये ढेर सारे पसीने साफ किये- फिर खौफ से कंपकंपाये स्वर में बोला- “ल...लेकिन अगर वह योजना हमें आपने नहीं भेजी सुपर बॉस- तो फिर किसने भेजी ?”
“मैं क्या बता सकता हूँ कि वह योजना तुम्हें किसने भेजी ?”
डॉन मास्त्रोनी के चेहरे पर भी जबरदस्त सस्पेंस के चिन्ह थे ।
सबके दिल धाड़-धाड़ करके पसलियों को कूटने लगे ।
“ब...बॉस !” दशरथ पाटिल एकाएक दीवानचन्द से सम्बोधित होकर कंपकंपाये स्वर में बोला- “म...मैं एक बात बोलूं बॉस ?”
इस समय उसका पूरा शरीर जूड़ी के मरीज की तरह थर-थर कांप रहा था ।
“बोल ।”
“ह...हम पर कोई आफत आने वाली है बॉस !” दशरथ पाटिल एक और धमाका करता हुआ बोला- “क...कोई अनर्थ होने वाला है- म...मुझे लगता है कि अब हमारा सर्वनाश होकर रहेगा ।”
“वडी यह क्या बकता है तू ।” दीवानचन्द भड़क उठा- “तू पागल हो गया है ।”
“न...नहीं- मैं पागल नहीं हुआ ।” दशरथ पाटिल के जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा था- “म...मैं आपसे पहले ही बोलता था बॉस- इस दुर्लभ ताज को मत चुराओ- मत चुराओ । इसने जिस प्रकार आज तक दूसरे अपराधियों को बर्बाद किया है- उसी तरह यह हमें भी बर्बाद कर डालेगा। और देखो- इस दुर्लभ ताज के आते ही हमारे ऊपर संकट की शुरुआत हो चुकी है ।”
“वडी बंदकर-बंदकर अपनी यह बकवास ।” दीवानचन्द दहाड़ उठा- “तू पागल हो गया है- और तू अपने साथ-साथ हम सबको भी पागल करके छोड़ेगा ।”
सेठ दीवानचन्द के वह शब्द अभी पूरे भी न हुए थे । कि तभी एकाएक कॉफ्रेंस हॉल में किसी के जोर-जोर से खिलखिलाकर हँसने की आवाज गूंज उठी ।
वह हँसी ऐसी थी- जैसे कब्र में से निकलकर कोई शैतान हँसा हो ।
“पाटिल ठीक ही कहता है सेठ दीवानचन्द !” फिर एक भयानक आवाज पूरे कॉफ्रेंस हॉल में गूंजी- “सचमुच तुम सबकी बर्बादी का समय शुरू हो चुका है ।”
☐☐☐
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