Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
07-03-2018, 11:27 AM,
#41
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं क्या जवाब देता। जोश ठंडा हो जाने के बाद, मैने अपने सिर को नीचे झुका लिया था, पर गुद-गुदी और सनसनी तो अब भी कायम थी। तभी राखी ने मेरे लटके हुए लौडे को अपने हाथों में पकडा और धीरे से अपनी साडी के पल्लु से पोंछते हुए पुछा,
"बोलना, मजा आया की नहि ?" मैने शरमाते हुए जवाब दिया,
"हाय राखी , बहुत मजा आया। इतना मजा कभी नही आया था।"

तब राखी ने पुछा,
"क्यों, अपने हाथ से भी करता था, क्या ?"

"कभी कभी मांराखी , पर उतना मजा नही आता था जीतना आज आया है।"
"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज्यादा मजा अयेगा ही, पर इस बात का ध्यान रखियो की, किसी को पता ना चले।"

"हां राखी , किसी को पता नही चलगा।"

"हां, मैं वही कह रही हुं की, किसी को अगर पता चलेगा तो लोग क्या, क्या सोचेन्गे और हमारी-तुम्हारी बदनामी हो जायेगी। क्योंकि हमारे समाज में एक बहिन और भाई के बीच इस तरह का संबंध उचित नही माना जाता है, समझा ?"

मैने भी अब अपनी शर्म के बंधन को छोड कर जवाब दिया,
"हां बहिन , मैं समझता हुं। हम दोनो ने जो कुछ भी किया है, उसका मैं किसी को पता नही चलने दुन्गा।"

तब बहिन उठ कर खडी हो गई। अपनी साडी के पल्लु को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउस को ठीक किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए, अपनी बुर को अपनी साडी से हल्के-से दबाया और साडी को चुत के उपर ऐसे रगडा जैसे की पानी पोंछ रही हो। मैं उसकी इस क्रिया को बडे गौर से देख रहा था। मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली,
"मैं जरा पेशाब कर के आती हुं। तुझे भी अगर करना है तो चल, अब तो कोई शरम नही है।"

मैने हल्के-से शरमाते हुए, मुस्कुरा दिया तो बोली,
"क्यों, अब भी शरमा रहा है, क्या ?"मैने इस पर कुछ नही कहा, और चुप-चाप उठ कर खडा हो गया। वो आगे चल दी और मैं उसके पिछे-पिछे चल दिया। झाडियों तक की दस कदम की ये दुरी, मैने बहिन के पिछे-पिछे चलते हुए उसके गोल-मटोल गदराये हुए चुतडों पर नजरे गडाये हुए तय की। उसके चलने का अंदाज इतना मदहोश कर देने वाला था। आज मेरे देखने का अंदाज भी बदला हुआ था। शायद इसलिये मुझे उसके चलने का अंदाज गजब का लग रहा था। चलते वक्त उसके दोनो चुतड बडे नशिले अंदाज में हिल रहे थे, और उसकी साडी उसके दोनो चुतडों के बीच में फंस गई थी, जिसको उसने अपने हाथ पिछे ले जा कर निकाला। जब हम झाडियों के पास पहुंच गये तो बहिन ने एक बार पिछे मुड कर मेरी ओर देखा और मुस्कुराई। फिर झाडियों के पिछे पहुंच कर बिना कुछ बोले, अपनी साडी उठा के पेशाब करने बैठ गई। उसकी दोनो गोरी-गोरी जांघे उपर तक नंगी हो चुकी थी, और उसने शायद अपनी साडी को थोडा जान-बुझ कर पिछे से उपर उठा दिया था। जीस के कारण, उसके दोनो चुतड भी नुमाया हो रहे थे। ये सीन देख कर मेरा लंड फिर से फुफकारने लगा। उसके गोरे-गोरे चुतड बडे कमाल के लग रहे थे। बहिन ने अपने चुतडों को थोडा-सा उंचकाया हुआ था, जीस के कारण उसकी गांड की खाई भी दिख रही थी। हल्के-भुरे रंग की गांड की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा के उस गांड की खाई में धीरे-धीरे उन्गली चलाउं और गांड के भुरे रंग के छेद को अपनी उन्गली से छेडु और देखु की कैसे पक-पकाता है। तभी बहिन पेशाब कर के उठ खडी हुई और मेरी तरफ घुम गई। उसने अभी तक साडी को अपनी झांघो तक उठा रखा था। मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए, उसने अपनी साडी को छोड दिया और नीचे गीरने दिया। फिर एक हाथ को अपनी चुत पर साडी के उपर से ले जा के रगडने लगी, जैसे कि पेशाब पोंछ रही हो, और बोली,
"चल, तु भी पेशाब कर ले, खडा-खडा मुंह क्या ताक रहा है ?"
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07-03-2018, 11:28 AM,
#42
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं जल्दी से वहीं मोढे (वुडन प्लेन्क) पर बैठ गया। सामने राखी ने थोडी सी सब्जी और दो रोटियां दे दी। मैं चुप-चाप खाने लगा। राखी ने भी अपने लिये थोडी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी। रसोई घर में गरमी काफि थी। इस कारण उसके माथे पर पसिने कि बुंदे चुहचुहाने लगी। मैं भी पसिने से नहा गया था। राखी ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा,
"बहुत गरमी है।"

मैने कहा, "हां।"
और अपने पैरों को उठा के, अपनी लुंगी को उठा के, पुरा जांघो के बीच में कर लिया। राखी मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुछ नही। वो चुंकि घुटने मोड कर बैठी थी, इसलिये उसने पेटिकोट को उठा कर, घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी। उसकी गोरी पिन्डलियों और घुटनो का नजारा करते हुए, मैं भी खाना खाने लगा। लंड की तो ये हालत थी अभी की, राखी को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी। यहां राखी मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोडा उपर तक साडी उठा कर, दिखा रही थी। मैने राखी से कहा
"एक रोटी और दे।"

"नही, अब और नही। फिर रात में भी खाना तो खाना है, ना। अच्छी सब्जी बना देती हुं, अभी हल्का खा ले।"

"क्या राखी, तुम तो पुरा खाने भी नही देती। अभी खा लुन्गा तो, क्या हो जायेगा ?"

"जब, जिस चीज का टाईम हो, तभी वो करना चाहिए। अभी तु हल्क-फुल्का खा ले, रात में पुरा खाना।"

मैं इस पर बडबडाते हुए बोला,
"सुबह से तो खाली हल्का-फुल्का ही खाये जा रहा हुं। पुरा खाना तो पता नही, कब खाने को मिलेगा ?"

ये बात बोलते हुए मेरी नजरें, उसकी दोनो जांघो के बीच में गडी हुई थी। हम दोनो बहन भाई को, शायद द्विअर्थी बातें करने में महारत हांसिल हो गई थी। हर बात में दो-दो अर्थ निकल आते थे। राखी भी इसको अच्छी तरह से समझती थी इसलिये मुस्कुराते हुए बोली,
"एकबार में पुरा पेट भर के खा लेगा, तो फिर चला भी न जायेगा। आराम से धीरे-धीरे खा।"

मैं इस पर गहरी सांस लेते हुए बोला,
"हां, अब तो इसी आशा में रात का इन्तेजार करुन्गा कि शायद, तब पेट भर खाने को मिल जाये।"

राखी मेरी तडप का मजा लेते हुए बोली,
"उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। जब इतनी देर तक इन्तेजार किया तो, थोडा और कर ले। आराम से खाना, अपने जीजा की तरह जल्दी क्यों करता है ?"

मैं ने तब तक खाना खतम कर लिया था, और उठ कर लुंगी में हाथ पोंछ कर, रसोई से बाहर निकाल गया। राखी ने भी खाना खतम कर लिया था। मैं ईस्त्री वाले कमरे आ गया, और देखा कि अंगीठी पुरी लाल हो चुकी है। मैं ईस्त्री गरम करने को डाल दी और अपनी लुंगी को मोड कर, घुटनो के उपर तक कर लिया। बनियान भी मैने उतार दी, और ईस्त्री करने के काम में लग गया। हालांकि, मेरा मन अभी भी रसोई-घर में ही अटका पर था, और जी कर रह था मैं राखी के आस पास ही मंडराता रहुं। मगर, क्या कर सकता था काम तो करना ही था। थोडी देर तक रसोई-घर में खट-पट की आवाजे आती रही। मेरा ध्यान अभी भी रसोई-घर की तरफ ही था। पूरे वातावरण में ऐसा लगता था कि एक अजीब सी खुश्बु समाई हुई है। आंखो के आगे बार-बार, वही राखी की चुचियों को मसलने वाला द्रश्य तैर रहा था। हाथों में अभी भी उसका अहसास बाकि था। हाथ तो मेरे कपडों को ईस्त्री कर रहे थे, परंतु दिमाग में दिनभर की घटनाये घुम रही थी। मेरा मन तो काम करने में नही लग रह था, पर क्या करता। तभी राखी के कदमो की आहट सुनाई दी। मैने मुड कर देखा तो पाया की, राखी मेरे पास ही आ रही थी। उसके हाथ में हांसिया (सब्जी काटने के लिये गांव में इस्तेमाल होने वाली चीज) और सब्जी का टोकरा था। मैने राखी की ओर देखा, वो मेरी ओर देख के मुस्कुराते हुए वहीं पर बैठ गई। फिर उसने पुछा,
"कौन-सी सब्जी खायेगा ?"

मैने कहा,
"जो सब्जी तुम बना दोगी, वही खा लुन्गा।"

इस पर राखी ने फिर जोर दे के पुछा,
"अरे बता तो, आज सारी चीज तेरी पसंद की बनाती हुं। तेरा जीजा तो आज है नही, तेरी ही पसंद का तो ख्याल रखना है।"

तब मैने कहा,
"जब जीजा नही है तो, फिर आज केले या बैगन की सब्जी बना ले। हम दोनो वही खा लेन्गे। तुझे भी तो पसंद है, इसकी सब्जी।"

राखी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"चल ठीक है, वही बना देती हुं।"

और वहीं बैठ के सब्जीयां काटने लगी। सब्जी काटने के लिये, जब वो बैठी थी, तब उसने अपना एक पैर मोड कर, जमीन पर रख दिया था और दुसरा पैर मोड कर, अपनी छाती से टीका रखा था। और गरदन झुकाये सब्जीयां काट रही थी। उसके इस तरह से बैठने के कारण उसकी एक चुंची, जो की उसके एक घुटने से दब रही थी, ब्लाउस के बाहर निकलने लगी और उपर से झांखने लगी। गोरी-गोरी चुंची और उस पर की नीली-नीली रेखायें, सब नुमाया हो रहा था । मेरी नजर तो वहीं पर जा के ठहर गई थी। राखी ने मुझे देखा, हम दोनो की नजरें आपस में मिली, और मैने झेंप कर अपनी नजर नीचे कर ली और ईस्त्री करने लगा। इस पर राखी ने हसते हुए कहा,
"चोरी-चोरी देखने की आदत गई नही। दिन में इतना सब-कुछ हो गया, अब भी,,,,,,,,,,,???" मैने कुछ नही कहा और अपने काम में लगा रह। तभी राखी ने सब्जी काटना बंध कर दिया, और उठ कर खडी हो गई और बोली,
"खाना बना देती हुं, तु तब तक छत पर बिछावन लगा दे। बडी गरमी है आज तो, ईस्त्री छोड कल सुबह उठ के कर लेना।"

मैने ने कहा,
"बस थोडा-सा और करदुं, फिर बाकी तो कल ही करुन्गा।"
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07-03-2018, 11:28 AM,
#43
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं ईस्त्री करने में लग गया और, रसोई घर से फिर खट-पट की आवाजें आने लगी। यानी की राखी ने खाना बनाना शुरु कर दिया था। मैने जल्दी-से कुछ कपडों को ईस्त्री की, फिर अंगीठी बुझाई और अपने तौलिये से पसिना पोंछता हुआ बाहर निकाल आया। हेन्डपम्प के ठंडे पानी से अपने मुंह-हाथो को धोने के बाद, मैने बिछावन लिया और छत पर चल गया। और दिन तो तीन लोगो का बिछावन लगता था, पर आज तो दो का ही लगाना था। मैने वहीं जमीन पर पहले चटाई बिछाई, और फिर दो लोगो के लिये बिछावन लगा कर निचे आ गया। राखी, अभी भी रसोई में ही थी। मैं भी रसोई-घर में घुस गया। राखी ने साडी उतार दी थी, और अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में ही खाना बना रही थी। उसने अपने कंधे पर एक छोटा-सा तौलिया रख लिया था और उसी से अपने माथे का पसिना पोंछ रही थी। मैं जब वहां पहुंचा, तो राखी सब्जी को कलछी से चला रही थी और दुसरी तरफ रोटियां भी सेक रही थी।
 
मैने कहा,
"कौन-सी सब्जी बना रही हो, केले या बैगन की ?"

राखी ने कहा,
"खुद ही देख ले, कौन-सी है ?"

"खूश्बु तो बडी अच्छी आ रही है। ओह, लगता है दो-दो सब्जी बनी है।"

"खा के बताना, कैसी बनी है ?"

"ठीक है राखी, बता और कुछ तो नही करना ?"
कहते-कहते मैं एकदम राखी के पास आ के बैठ गया था। राखी मोढे पर अपने पैरों को मोड के और अपने पेटिकोट को जांघो के बीच समेट कर बैठी थी। उसके बदन से पसिने की अजीब-सी खूश्बु आ रही थी। मेरा पुरा ध्यान उसकी जांघो पर ही चला गया था। राखी ने मेरी ओर देखते हुए कहा,
"जरा खीरा काट के सलाड भी बना ले।"

"वाह राखी, आज तो लगता है, तु सारी ठंडी चीजे ही खायेगी ?"

"हां, आज सारी गरमी उतार दुन्गी, मैं।"

"ठीक है राखी, जल्दी-से खाना खा के छत पर चलते है, बडी अच्छी हवा चल रही है।"

राखी ने जल्दी-से थाली निकली, सब्जीवाले चुल्हे को बंध कर दिया। अब बस एक-या दो रोटियां ही बची थी, उसने जल्दी-जल्दी हाथ चलाना शुरु कर दिया। मैने भी खीरा और टमाटर काट के सलाड बना लिया। राखी ने रोटी बनाना खतम कर के कहा,
"चल, खाना निकाल देती हुं। बाहर आंगन में मोढे पर बैठ के खायेन्गे। " मैने दोनो परोसी हुई थालीयां उठाई, और आंगन में आ गया । राखी वहीं आंगन में, एक कोने पर अपना हाथ-मुंह धोने लगी। फिर अपने छोटे तौलिये से पोंछते हुए, मेरे सामने रखे मोढे पर आ के बैठ गई। हम दोनो ने खाना सुरु कर दिया। मेरी नजरें राखी को उपर से नीचे तक घुर रही थी।राखी ने फिर से अपने पेटिकोट को अपने घुटनो के बीच में समेट लिया था और इस बार शायद पेटिकोट कुछ ज्यादा ही उपर उठा दिया था। चुचियां, एकदम मेरे सामने तन के खडी-खडी दिख रही थी। बिना ब्रा के भी राखी की चुचियां ऐसी तनी रहती थी, जैसे की दोनो तरफ दो नारियल लगा दिये गये हो। इतनी उमर बीत जाने के बाद भी थोडा-सा भी ढलकाव नही था। जांघे, बिना किसी रोयें के, एकदम चिकनी, गोरी और मांसल थी। पेट पर उमर के साथ थोडा-सा मोटापा आ गया था। जिसके कारण पेट में एक-दो फोल्ड पडने लगे थे, जो देखने में और ज्यादा सुंदर लगते थे। आज पेटिकोट भी नाभी के नीचे बांधा गया था। इस कारण से उसकी गहरी गोल नाभी भी नजार आ रही थी। थोडी देर बैठने के बाद ही राखी को पसिना आने लगा, और उसकी गरदन से पसिना लुढक कर उसके ब्लाउस के बीचवाली घाटी में उतरता जा रह था। वहां से, वो पसिना लुढक कर उसके पेट पर भी एक लकीर बना रहा था, और धीरे-धीरे उसकी गहरी नाभी में जमा हो रहा था। मैं इन सब चीजो को बडे गौर से देख रहा था। राखी ने जब मुझे ऐसे घुरते हुए देखा तो हसते हुए बोली,
"चुप-चाप ध्यान लगा के खाना खा, समझा !!!!"

और फिर अपने छोटेवाले तौलिये से अपना पसिना पोंछने लगी। मैं खाना खाने लगा और बोला,
"राखी, सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी है।"

"चल तुझे पसंद आयी, यही बहुत बडी बात है मेरे लिये। नही तो आज-कल के लडको को घर का कुछ भी पसंद ही नही आता।"

"नही राखी ऐसी बात नही है। मुझे तो घर का 'माल' ही पसंद है।"
ये, माल शब्द मैने बडे धीमे स्वर में कहा था कि, कहीं राखी ना सुन ले। राखी को लगा की शायद मैने बोला है, घर की दाल। इसलिये वो बोली,
"मैं जानती हुं, मेरा भाई बहुत समझदार है, और वो घर के दाल-चावल से काम चला सकता है। उसको बाहर के 'मालपुए' (एक प्रकार की खानेवाली चीज, जोकि मैदे और चीनी की सहायता से बनाई जाती है, और फुली हुए पांव की तरह से दिखती है।) से कोई मतलब नही है।"

राखी ने मालपुआ शब्द पर शायद ज्यादा ही जोर दिया था, और मैने इस शब्द को पकड लिया। मैने कहा,
"पर राखी, तुझे मालपुआ बनाये काफि दिन हो गये। कल मालपुआ बना, ना ?"

"मालपुआ तुझे बहुत अच्छा लगता है, मुझे पता है। मगर इधर इतना टाईम कहां मिलता था, जो मालपुआ बना सकु ? पर अब मुझे लगता है, तुझे मालपुआ खिलाना ही पडेगा।"

मैने ने कहा,
"जल्दी खिलाना, राखी।"
और हाथ धोने के लिये उठ गया।
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07-03-2018, 11:28 AM, (This post was last modified: 12-10-2023, 01:26 AM by desiaks.)
#44
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
राखी भी हाथ धोने के लिये उठ गई। हाथ-मुंहा धोने के बाद, राखी फिर रसोई में चली गई, और बिखरे पडे सामानो को संभालने लगी। मैने कहा,
"छोडोना राखी, चलो सोने जल्दी से। यहां बहुत गरमी लग रही है।"

"तु जा ना, मैं अभी आती। रसोई-घर गंदा छोडना अच्छी बात नही है।"

मुझे तो जल्दी से राखी के साथ सोने की हडबडी थी कि, कैसे राखी से चिपक के उसके मांसल बदन का रस ले सकु। पर राखी रसोई साफ करने में जुटी हुई थी। मैने भी रसोई का सामान संभालने में उसकी मदद करनी शुरु कर दी। कुछ ही देर में सारा सामान, जब ठीक-ठाक हो गया तो हम दोनो रसोई से बाहर आ गये। राखी ने कहा,
"जा, दरवाजा बंध कर दे।"

मैं दौड कर गया और दरवाजा बंध कर आया। अभी ज्यादा देर तो नही हुई थी, रात के ९:३० ही बजे थे। पर गांव में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते है। हम दोनो बहिन -भाई छत पर आके बिछावन पर लेट गये। बिछावन पर राखी भी, मेरे पास ही आ के लेट गई थी। राखी के इतने पास लेटने भर से मेरे शरीर में, एक गुद-गुदी सी दौड गई। उसके बदन से उठनेवाली खूश्बु, मेरी सांसो में भरने लगी, और मैं बेकाबु होने लगा था। मेरा लंड धीरे-धीरे अपना सिर उठाने लगा था। तभी राखी मेरी ओर करवट ले के घुमी और पुछा,
"बहुत थक गये होना ?"

"हां राखी, जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज्यादा हो ही जाती है।"

"हां, बडी थकावट लग रही है, जैसे पुरा बदन टूट रह हो।"

"मैं दबा दुं, थोडी थकान दूर हो जायेगी।"

"नही रे, रहने दे तु, तु भी तो थक गया होगा।""नही राखी उतना तो नही थका, कि तेरी सेवा ना कर सकु।"

राखी के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई, और वो हसते हुए बोली,
"दिन में इतना कुछ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ गई होगी।"

"हाये, दिन में थकान बढने वाला तो कुछ नही हुआ था।"

इस पर राखी थोडा-सा और मेरे पास सरक कर आई। राखी के सरकने पर मैं भी थोडा-सा उसकी ओर सरका। हम दोनो की सांसे, अब आपस में टकराने लगी थी। राखी ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जांघो को सहलाने लगी। राखी की इस हरकत पर मेरे दिल की धडकन बढ गई, और लंड अब फुफकारने लगा था। राखी ने हल्के-से मेरी जांघो को दबाया। मैने हिम्मत कर के हल्के-से अपने कांपते हुए हाथो को बढा के राखी की कमर पर रख दिया। राखी कुछ नही बोली, बस हल्का-सा मुस्कुरा भर दी। मेरी हिम्मत बढ गई और मैं अपने हाथो से राखी की नंगी कमर को सहलाने लगा। राखी ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था। उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे। इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नजर आ रही थी और मन कर रह था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकड लुं। पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था। राखी ने जब मुझे चुचियों को घुरते हुए देखा तो मुस्कुरातेहाये, राखी तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहां घुर रह था ?"

"चल झुठे, मुझे क्या पता नही चलता ? रात में भी वही करेगा, क्या ?"

"क्या राखी ?"

"वही, जब मैं सो जाउन्गी तो अपना भी मसलेगा, और मेरी छातियों को भी दबायेगा।"

"हाय राखी।"

"तुझे देख के तो यही लग रहा है कि, तु फिर से वही हरकत करने वाला है।"

"नही, राखी।"

मेरे हाथ अब राखी कि जांघो को सहला रहे थे।

"वैसे दिन में मजा आया था ?",
पुछ कर, राखी ने हल्के-से अपने हाथो को मेरी लुन्गी के उपर लंड पर रख दिया। मैने कहा,
"हाये राखी, बहुत अच्छा लगा था।"

"फिर करने का मन कर रह है, क्या ?"

"हाये, राखी।"

इस पर राखी ने अपने हाथो का दबाव जरा-सा, मेरे लंड पर बढा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी। राखी के हाथो का स्पर्श पा के, मेरी तो हालत खराब होने लगी थी। ऐसा लगा रह था कि, अभी के अभी पानी निकल जायेगा। तभी राखी बोली,
"जो काम, तु मेरे सोने के बाद करने वाला है, वो काम अभी कर ले। चोरी-चोरी करने से तो अच्छा है कि, तु मेरे सामने ही कर ले।"


मैं कुछ नही बोला और अपने कांपते हाथो को, हल्के-से राखी की चुचियों पर रख दिया। राखी ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकड कर, अपनी छातियों पर कस के दबाया और मेरी लुन्गी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकड लिया। मैने भी अपने हाथो का दबाव उसकी चुचियों पर बढा दिया। हुए बोली,
"क्या इरादा है तेरा ? शाम से ही घुरे जा रह है, खा जायेगा क्या ?" मेरे अंदर की आग एकदम भडक उठी थी, और अब तो ऐसा लगा रह था कि, जैसे इन चुचियों को मुंह में ले कर चुस लुं। मैने हल्के-से अपनी गरदन को और आगे की ओर बढाया और अपने होठों को ठीक चुचियों के पास ले गया । राखी शायद मेरे इरादे को समझ गई थी। उसने मेरे सिर के पिछे हाथ डाला और अपनी चुचियों को मेरे चेहरे से सटा दिया। हम दोनो अब एक-दुसरे की तेज चलती हुई सांसो को महसुस कर रहे थे। मैने अपने होठों से ब्लाउस के उपर से ही, राखी की चुचियों को अपने मुंह में भर लिया और चुसने लगा। मेरा दुसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रह था, कभी उसके मोटे-मोटे चुतडों को।राखी ने भी अपना हाथ तेजी के साथ चलना शुरु कर दिया था, और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठीया रही थी। मेरा मजा बढता जा रहा था, तभी मैने सोचा ऐसे करते-करते तो राखी फिर मेरा निकाल देगी, और शायद फिर कुछ देखने भी न दे। जबकि मैं आज तो राखी को पुरा नंगा करके, जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था। इसलिये मैने राखी के हाथो को पकड लिया और कहा,
"राखी, रुको।"

"क्यों, मजा नही आ रह है, क्या ? जो रोक रहा है।"

" राखी, मजा तो बहुत आ रह है, मगर ?"

"फिर क्या हुआ ?"

"फिर राखी, मैं कुछ और करना चाहता हुं। ये तो दिन के जैसे ही हो जायेगा।"

इस पर राखी मुस्कुराते हुए पुछा,
"तो तु और क्या करना चाहता है ? तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना, और कैसे निकलेगा ?"

" नही राखी, पानी नही निकालना मुझे।"

"तो फिर क्या करना है ?"

"राखी, देखना है।"

"क्या देखना है, रे ?" " राखी, ये देखना है।",
कह कर, मैने एक हाथ सीधा राखी की बुर पर रख दिया।

" बदमाश, ये कैसी तमन्ना पाल ली, तुने ?"

"राखी, बस एक बार दिखा दो, ना।"

"नही, ऐसा नही करते। मैने तुम्हे थोडी छुट क्या दे दी, तुम तो उसका फायदा उठाने लगे।"

"राखी, ऐसे क्यों कर रही हो तुम ? दिन में तो कितना अच्छे से बातें कर रही थी।"

"नही, मैं तेरी बहिन हुं,भाई ।"

"राखी, दिन में तो तुमने कितना अच्छा दिखाया भी था, थोडा बहुत ?"

"मैने कब दिखाया ? झुठ क्यों बोल रहा है ?"

"राखी, तुम जब पेशाब करने गई थी, तब तो दिखा रही थी।"

"हाये राम, कितना बदमाश है रे, तु ? मुझे पता भी नही लगा, और तु देख रहा था। हाय दैया, आज कल के लौंडो का सच में कोई भरोसा नही। कब अपनी बहिन पर बुरी नजर रखने लगे, पता ही नही चलता ?"

"राखी, ऐसा क्यों कह रही हो ? मुझे ऐसा लगा जैसे, तुम मुझे दिखा रही हो, इसलिये मैने देखा।"

"चल हट, मैं क्यों दिखाउन्गी ? कोई बहिन ऐसा करती है, क्या ?"

"हाय, मैने तो सोचा था कि, रात में पुरा देखुन्गा। "

"ऐसी उल्टी-सीधी बातें मत सोचा कर, दिमाग खराब हो जायेगा।"

" ओह बहिन, दिखा दो ना, बस एक बार। खाली देख कर सो जाउन्गा।"पर बहिन ने मेरे हाथो को झटक दिया, और उठकर खडी हो गई। अपने ब्लाउस को ठीक करने के बाद, छत के कोने की तरफ चल दी। छत का वो कोना घर के पिछवाडे की तरफ पडता था, और वहां पर एक नाली (मोरी) जैसा बना हुआ था, जिस से पानी बह कर सीधे नीचे बहनेवाली नाली में जा गीरता था। बहिन उसी नाली पर जा के बैठ गई। अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी। मेरी नजरें तो बहिन का पिछा कर ही रही थी। ये नजारा देख के तो मेरा मन और बहक गया । दिल में आ रहा था कि जल्दी से जाके, राखी के पास बैठ के आगे झांख लुं, और उसकी पेशाब करती हुई चुत को कम से कम देख भर लुं। पर ऐसा ना हो सका। राखी ने पेशाब कर लिया, फिर वो वैसे ही पेटिकोट को जांघो तक, एक हाथ से उठाये हुए मेरी तरफ घुम गई और अपनी बुर पर हाथ चलाने लगी, जैसे कि पेशाब पोंछ रही हो और फिर मेरे पास आ के बैठ गई। मैने राखी के बैठने पर उसका हाथ पकड लिया और प्यार से सहलाते हुए बोला,
"राखी, बस एक बार दिखा दो ना, फिर कभी नही बोलुन्गा दिखने के लिये।"

"एक बार ना कह दिया तो तेरे को समझ में नही आता है, क्या ?"

"आता तो है, मगर बस एक बार में क्या हो जायेगा ? "

"देख, दिन में जो हो गया सो हो गया। मैने दिन में तेरा लंड भी मुठीया दिया था, कोई बहिन ऐसा नही करती। बस इससे आगे नही बढने दुन्गी।"

बहिन ने पहली बार गंदे शब्द का उपयोग किया था। उसके मुंह से लंड सुन के ऐसा लगा, जैसे अभी झड के गीर जायेगा। मैने फिर धीरे से हिम्मत कर के कहा,
" बहिन क्या हो जायेगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो ? तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना ।"

"तेरा देखा है, इसका क्या मतलब है ? तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हुं। और रही बात चुंची दिखाने और पकडाने की, वो तो मैने तुझे करने ही दिया है ना, क्योंकि बचपन में तो तु इसे पकडता-चुसता ही था। पर चुत की बात और है, वो तो तुने होश में कभी नही देखी ना, फिर उसको क्यों दिखाउं ?"

राखी अब खुल्लम-खुल्ला गन्दे शब्दो का उपयोग कर रही थी। " जब इतना कुछ दिखा दिया है तो, उसे भी दिखा दो ना। ऐसा, कौन-सा काम हो जायेगा ?"

राखी ने अब तक अपना पेटिकोट समेट कर जांघो के बीच रख लिया था और सोने के लिये लेट गई थी। मैने इस बार अपना हाथ उसकी जांघो पर रख दिया। मोटी-मोटी गुदाज जांघो का स्पर्श जानलेवा था। जांघो को हल्के-हल्के सहलाते हुए, मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, राखी ने मेरा हाथ पकड लिया और बोली,
"ठहर, अगर तुझसे बरदास्त नही होता है तो ला, मैं फिर से तेरा लंड मुठीया देती हुं।",
कह कर मेरे लंड को फिर से पकड कर मुठीयाने लगी, पर मैं नही माना और ‘एक बार, केवल एक बार’, बोल के जिद करता रहा। राखी ने कहा"बडा जिद्दी हो गया रे, तु तो। तुझे जरा भी शरम नही आती, अपनी बहिन को चुत दिखाने को बोल रहा है। अब यहां छत पर कैसे दिखाउं ? अगल-बगल के लोग कहीं देख लेन्गे तो ? कल देख लियो।"
" कल नही अभी दिखा दे। चारो तरफ तो सब-कुछ सुम-सान है, फिर अभी भला कौन हमारी छत पर झांकेगा ?"

"छत पर नही, कल दिन में घर में दिखा दुन्गी, आराम से।"

तभी बारीश की बुंदे तेजी के साथ गीरने लगी। ऐसा लगा रहा था, मेरी तरह आसमान भी बुर नही दिखाये जाने पर रो पडा है। बहिन ने कहा,
"ओह, बारीश शुरु हो गई। चल, जल्दी से बिस्तर समेट ले। नीचे चल के सोयेन्गे।"
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07-03-2018, 11:28 AM,
#45
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं भी झट-पट बिस्तर समेटने लगा, और हम दोनो जल्दी से नीचे की ओर भागे। नीचे पहुंच कर राखी, अपने कमरे में घुस गई। मैं भी उसके के पिछे-पिछे उसके कमरे में पहुंच गया । राखी ने खिडकी खोल दी, और लाईट जला दी। खिडकी से बडी अच्छी, ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। राखी जैसे ही पलंग पर बैठी, मैं भी बैठ गया । और राखी से बोला,
" अब दिखा दो ना। अब तो घर में आ गये है, हम लोग।" इस पर राखी मुस्कुराते हुए बोली,
"लगता है, आज तेरी किसमत बडी अच्छी है। आज तुझे मालपुआ खाने को तो नही, पर देखने को जुरुर मिल जायेगा।"

फिर राखी ने अपना सिर पलंग पे टीका के, अपने दोनो पैर सामने फैला दिये और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली,
"इधर आ, मेरे पैरो के बीच में, अभी तुझे दिखाती हुं। पर एक बात जान ले, तु। पहली बार देख रहा है, देखते ही तेरा पानी निकल जायेगा, समझा।"

फिर राखी ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पकडा और धीरे-धीरे उपर उठाने लगी। मेरी हिम्मत तो बढ ही चुकी थी, मैने धीरे-से राखी से कहा,
"राखी, ऐसे नही।"


"तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा ?"

"राखी, पुरा खोल के दिखाओ ना ?"

"पुरा खोल के से, तेरा क्या मतलब है ?"

"हाय, पुरे कपडे खोल के। मेरी बडी तमन्ना है कि, मैं तुम्हारे पुरे बदन को नंगा देखुं, बस एक बार।"

इतना सुनते ही राखी ने आगे बढ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हसते हुए बोली,
"वाह बेटा, अंगुली पकड के पुरा हाथ पकडने की सोच रहे हो, क्या ?"

"राखी छोडो ना ये सब बात, बस एक बार दिखा दो। दिन में तुम कितने अच्छे से बातें कर रही थी, और अभी पता नही क्या हो गया है तुम्हे ? सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं कि, आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो कि,,,,,,,,,,,"

"अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भुल गया। दिन में तो बडा भोला बन रहा था, और ऐसे दिखा रहा था, जैसे कुछ जानता ही नही। पहले कभी किसी को किया है, क्या? या फिर दिन में झुठ बोल रहा था ?"

"हाये कसम से राखी, कभी किसी को नही किया। करना तो दूर की बात है, कभी देखा या छुआ तक नही।"

"चल झुठे, दिन में तो देखा भी था और छुआ भी था।"

"कहां राखी, कहां देखा था ?"

"क्यों, दिन में मेरा तुने देखा नही था, क्या ? और छुआ भी था तुमने तो।"

, हां देखा था, पर पहली बार देखा था। इससे पहले किसी का नही देखा था। तुम पहली हो जिसका मैने देखा था।"
"अच्छा, इससे पहले तुझे कुछ पता नही था, क्या ?"

"नही राखी थोडा बहुत मालुम था।"

"क्या मालुम था ? जरा मैं भी तो सुनु।",
कह कर राखी ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथो में पकड लिया और मुठीयाने लगी। इस पर मैं बोला,
"ओह छोड दो राखी, ज्यादा करोगी तो अभी निकल जायेगा।"

"कोई बात नही, अभी निकाल ले। अगर पुरा खोल के दिखा दुन्गी, तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जायेगा। पुरा खोलके देखना है ना, अभी ?"

इतना सुनए ही मेरा दिल तो बल्लीयों उछलने लगा। अभी तक तो राखी नखरें कर रही थी, और अभी उसने अचानक ही, जो दिखाने की बात कर दी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लंड से पानी निकल जायेगा।

"राखी, सच में दिखाओगी, ना ?"

"हां दिखाउन्गी मेरे राजा भाई , जुरुर दिखाउन्गी। अब तो तु पुरा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी हो गया है। अब तो तुझे ही दिखाना है, सब कुछ। और तेरे से अपना सारा काम करवाना है, मुझे।"
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07-03-2018, 11:29 AM,
#46
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
राखी और तेजी के साथ मेरे लंड को मुठीया रही थी, और बार-बार मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंगुठे से दबा भी रही थी। राखी बोली,
"अभी जल्दी से तेरा निकाल देती हुं, फिर देख तुझे कितना मजा आयेगा। अभी तो तेरी ये हालत है कि, देखते ही झड जायेगा। एक पानी निकाल दे, फिर देख तुझे कितना मजा आता है।"

,,,,,,,,,,,,,,,,,,"ठीक है राखी, निकाल दो एक पानी। मैं तुम्हारा दबाउं ?"

"पुछता क्या है, दबाना ? पर क्या दबायेगा, ये भी तो बता दे ?"
ये बोलते वक्त राखी के चेहरे पर, एक शैतानी भरी कातिल मुस्कुराहट खेल गई।

" वो तुम्हारी छातियां राखी, हाय।"

"छातियां, ये क्या होती है ? ये तो मर्दो की भी होती है, औरतो का तो कुछ और होता है। बता तो सही, नाम तो जानता ही होगाना।"

"चु,,,,,,चु,,,,,, मेरे से नही बोला जायेगा, छोडो नाम को।"

"बोलना, शरमाता क्यों है ? बहिन को खोल के दिखाने के लिये बोलने में नही शरमाता है, पर अंगो के नाम लेने में शरमाता है।"

" तुम्हारी,,,,,,,"

"हां हां, मेरी क्या,,,,,,,,बोल ?"

"तुम्हारी चु उ उ उंची।"
ये शब्द बोल के ही इतना मजा आ गया कि, लगा जैसे लौडा पानी फेंक देगा।

"हां, अब आयाना लाईन पर। दबा मेरी चुचियों को, इससे तेरा पानी जल्दी निकलेगा। हाय, क्या भयंकर लौडा है ? पता नही जब इस उमर में ये हाल है इस छोकरे के लंड का, तो पुरा जवान होगा तो क्या होगा ?"

मैने अपनी दोनो हथेलियों में बहिन की चुचियां भर ली और, उन्हे खूब कस-कस के दबाने लगा। गजब का मजा आ रहा था। ऐसा लगा रहा था, जैसे कि मैं पागल हो जाउन्गा। दोनो चुचियां किसी अनार की तरह सख्त और गुदाज थी। उसके मोटे-मोटे निप्पल भी ब्लाउस के उपर से पकड में आ रहे थे। मैं दोनो निप्पल के साथ-साथ पुरी चुंची को ब्लाउस के उपर से पकड कर दबाये जा रहा था। बहिन के मुंह से अब सिसकारियां निकलने लगी थी, और वो मेरा उत्साह बढाते जा रही थी शाबाश ! ऐसे ही दबा, मेरी चुचियों को। हाय क्या लौडा है ? पता नही, घोडे का है, या सांढ का है ? ठहर जा, अभी इसे चुस के तेरा पानी निकालती हुं।"
कह कर, वो नीचे की ओर झुक गई। जल्दी से मेरा लंड, अपने होंठो के बीच कैद कर लिया और सुपाडे को होंठो के बीच दबा के खूब कस-कस के चुसने लगी। जैसे कि पाईप लगा के, कोई कोका-कोला पीता है। मैं उसकी चुचियों को अब और ज्यादा जोर से दबा रह था। मेरी भी सिसकारीयां निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छुटने वाला ही था।

"हाये रे, निकाल रे निकाल मेरा,,,,, निकल गया,,, ओह बहिन,,,, सारा,,,, सारा का सारा पानी, तेरे मुंह में ही निकल गया रे।"
राखी का हाथ, अब और तेज गती से चलने लगा। ऐसा लगा रहा था, जैसे वो मेरे पानी को गटा-गट पीते जा रही है। मेरे लंड के सुपाडे से निकली एक-एक बुंद चुस जाने के बाद राखी ने अपने होंठो को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई, मुझे देखने लगी और बोली,
"कैसा लगा ?"

मैने कहा,
"बहुत अच्छा।"

और बिस्तर पर एक तरफ लुढक गया । मेरे साथ-साथ राखी भी लुढक के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोडी देर तक चुमती रही।

थोडी देर तक आंख बंध कर के पडे रहने के बाद, जब मैं उठा तो देखा की राखी ने अपनी आंखे बंध कर रखी है और अपने हाथो से अपनी चुचियों को हल्के-हल्के सहला रही थी। मैं उठ कर बैठ गया और धीरे-से राखी के पैरो के पास चला गया । राखी ने अपना एक पैर मोडे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ था। उसका पेटिकोट उसकी झांघो तक उठा हुआ था। पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गेप सा बन गया था। उस गेप से उसकी झांघ, अंदर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज झांघो के उपर हाथ रख के, मैं हल्का-सा झुक गया अंदर तक देखने के लिये। हांलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परंतु फिर भी मुझे उसके काले-काले झांठो के दर्शन हो गये। झांठो के कारण चुत तो नही दिखी, परंतु चुत की खुश्बु जुरुर मिल गई। तभी राखी ने अपनी आंखे खोल दी और मुझे अपनी झांघो के बीच झांखते हुए देख कर बोली,
"हाये दैया, उठ भी गया तु ? मैं तो सोच रही थी, अभी कम से कम आधा घंटा शांत पडा रहेगा, और मेरी झांघो के बीच क्या कर रहा है ? देखो इस लडके को,चूत देखने के लिये दिवाना हुआ बैठा है।"

फिर मुझे अपनी बांहो में भर कर, मेरे गाल पर चुम्मी काट कर बोली,
"मेरे भाई को अपनी बहिन की चूत देखनी है ना, अभी दिखाती हुं मेरे छोरे। हाय मुझे नही पता था कि, तेरे अंदर इतनी बेकरारी है,चूत देखने की।"

मेरी भी हिम्मत बढ गई थी।
" जल्दी से खोलो और दिखा दो।"

"अभी दिखाती हुं, कैसे देखेगा, बताना ?"

"कैसे क्या, खोलोना बस जल्दी से।"

"तो ले, ये है मेरे पेटिकोट का नाडा। खुद ही खोल के बहिन को नंगा कर दे, और देख ले।"

" मेरे से नही होगा, तुम खोलोना।"

"क्यों नही होगा ? जब तु पेटिकोट ही नही खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करेगा ?"

" आगे का भी काम करने दोगी क्या ?"मेरे इस सवाल पर, बहिन ने मेरे गालो को मसलते हुए पुछा,
"क्यों, आगे का काम नही करेगा क्या ? अपनी बहिन को ऐसे ही प्यासा छोड देगा ? तु तो कहता था कि तुझे ठंडा कर दुन्गा, पर तु तो मुझे गरम कर के छोडने की बात कर रह है।"

" मेरा ये मतलब नही था। मुझे तो अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा की, तुम मुझे और आगे बढने दोगी।"

"गधे के जैसा लंड होने के साथ-साथ, तेरा तो दिमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है। लगता है, सीधा खोल के ही पुछना पडेगा, 'बोल चोदेगा मुझे, चोदेगा अपनी बहिन को, बहिन की चूत चाटेगा, और फिर उसमे अपना लौडा डालेगा', बोलना।"

" सब करुन्गा, सब करुन्गा। जो तु कहेगी वो सब करुन्गा। हाये, मुझे तो विश्वाश ही नही हो रहा है कि, मेरा सपना सच होने जा रहा है। ओह, मेरे सपनो में आनेवाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हुं।"

"क्यों, सपनो में तुझे और कोई नही, मैं ही दिखती थी, क्या ?"

"तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी। पुरे गांव में तुमसे सुंदर कोई नही।"

"हाये, मेरे १६ साल के जवान छोकरे को, उसकी बहिन इतनी सुंदर लगती है, क्या ?"

"हां बहिन, सुच में तुम बहुत सुंदर हो, और मैं तुम्हे बहुत दिनो से चोओ,,,,,,,,,"

"हां हां, बोलना क्या करना चाहता था ? अब तो खुल के बात कर बेटे, शरमा मत अपनी बहिन से। अब तो हमने शर्म की हर वो दिवार गीरा दी है, जो जमाने ने हमारे लिये बनाई है।"

" मैं कब से तुम्हे चोदना चाहता था, पर कह नही पता था।"कोई बात नही भाई, अभी भी कुछ नही बिगडा है। वो भला हुआ कि, आज मैने खुद ही पहल कर दी। चल आ, देख अपनी बहिन को नंगा, और आज से बन जा उसका सैयां।",
कह कर बहिन बिस्तर से नीचे उतर गई, और मेरे सामने आ के खडी हो गई। फिर धीरे-धीरे करके अपने ब्लाउस के एक-एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद बादल में से निकल रहा है। धीरे-धीरे उसकी गोरी-गोरी चुचियां दिखने लगी। ओह गजब की चुचियां थी, देखने से लग रहा था जैसे कि, दो बडे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो। एकदम गोल और आगे से नुकिले तीर के जैसे। चुचियों पर नसो की नीली रेखायें स्पष्ट दिख रही थी। निप्पल थोडे मोटे और एकदम खडे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलाबीपन लिये हुए, गोल-गोल घेरा था। निप्पल भुरे रंगे के थे। बहिन अपने हाथो से अपनी चुचियों को नीचे से पकड कर मुझे दिखाती हुई बोली,
"पसंद आई अपनी बहिन की चुंची, कैसी लगी बेटा बोलना, फिर आगे का दिखाउन्गी।"

"तुम सच में बहुत सुंदर हो। ओह, कितनी सुंदर चु उ उ,,,चियां है। ओह,,,,,"
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07-03-2018, 11:29 AM,
#47
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
बहिन ने अपनी चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का-सा हिलाया और बोली,
"खूब सेवा करनी होगी, इसकी तुझे। देख कैसे शान से सिर उठाये खडी है, इस उमर में भी। तेरे जीजा के बस का तो है नही, अब तु ही इन्हे सम्भालना।",
कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नाडे पर ले गई और बोली,
"अब देख भाई , तेरे को जन्नत का दरवाजा दिखाती हुं। अपनी बहिन का स्पेशियल मालपुआ देख, जिसके लिये तु इतना तरस रहा था।",
कह कर बहिन ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया।

पेटिकोट उसकी कमर से सरसराते हुए सीधा नीचे गीर गया, और बहिन ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उछाल कर फेंक दिया और बिस्तर के और नजदिक आ गई, फिर बोली,
" तुने तो मुझे एकदम बेशरम बना दिया।"फिर मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर के बोली,
"ओह, तेरे इस सांढ जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी बहिन को जी भर के।"

मेरी नजरें बहिन की झांघो के बीच में टीकी हुई थी। बहिन की गोरी-गोरी चिकनी रानो के बीच में काली-काली झांठो का एक त्रिकोण बना हुआ था। झांठें बहुत ज्यादा बडी नही थी। झांठो के बीच में से, उसकी गुलाबी चुत की हल्की झलक मिल रही थी। मैने अपने हाथो को बहिन की झांघो पर रखा, और थोडा नीचे झुक कर ठीक चुत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा। राखी ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी, फिर बोली,
"रुक जा, ऐसे नही दिखेगा। तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखाती हुं।"

"ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर। राखी एक बार जरा पिछे घुमोना।"

"ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाडा भी देखना चाहता है, क्या ? चल, पिछवाडा तो मैं तुझे खडे-खडे ही दिखा देती हुं। ले, देख अपनी बहिन के चुतड और गांड को।",
इतना कह कर राखी पिछे घुम गई।

ओह, कितना सुंदर द्रश्य था, वो। इसे मैं अपनी पुरी जिन्दगी में कभी नही भुल सकता। बहिन के चुतड सच में बडे खुबसुरत थे, एकदम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदाज, मांसल। और उस चुतड के बीच में एक गहरी लकिर-सी बन रही थी, जोकि उसकी गांड की खाई थी। मैने बहिन को थोडा झुकने को कहा तो बहिन झुक गई, और आराम से दोनो मख्खन जैसे चुतडों को पकड के अपने हाथो से मसलते हुए, उनके बीच की खाई को देखने लगा। दोनो चुतड के बीच में गांड का भुरे रंग का छेद फकफका रहा था, एकदम छोटा-सा गोल छेद। मैने हल्के-से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के-हल्के उसे सहलाने लगा। साथ में, मैं चुतडों को भी मसल रहा था। पर तभी राखी आगे घुम गई। "चल मैं थक गई खडे खडे, अब जो करना है बिस्तर पर करेन्गे।"

और वो बिस्तर पर चढ गई। पलन्ग कि पुश्त से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली,
"अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तु देखने के बाद क्या करेगा ? कुछ मालुम भी है, तुझे या नही है ?"

"राखी, चो,,,,,,दुन्गाआआ।"

"अच्छा, चोदेगा,,,? पर कैसे, जरा बता तो सही, कैसे चोदेगा ?"

"हाये, मैं पहले तुम्हारी चुं,,,ची चुससस,,,,ना चाहता हुं।"

"चल ठीक है, चुस लेना। और क्या करेगा ?"

"ओह और !!??, औररररर,,,,,,, चुत देखुन्गा और फिरर,,,,,,, ,,, मुझे पता नही।"

"पता नही !! ये क्या जवाब हुआ, पता नही ? जब कुछ पता नही, तो बहिन पर डोरे क्यों डाल रहा था ?"

"ओह राखी, मैने पहले किसी को किया नही हैना, इसलिये मुझे पता नही है। मुझे बस थोडा बहुत पता है, जोकि मैने गांव के लडको के साथ सिखा था।"

"तो गांव के छोकरो ने ये नही सिखाया कि, कैसे किया जाता है। खाली यही सिखाया कि, बहिन पर डोरे डालो।"

"ओह बहिन, तु तो समझती ही नही। अरे, वो लोग मुझे क्यों सिखाने लगे कि, तुम पर डोरे डालो। वो तो,,,,,,, वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, इसलिये मैं तुम्हे देखता था।"

"ठीक है। चल तेरी बात समझ गई भाई , कि मैं तुझे सुंदर लगती हुं। पर मेरी इस सुंदरता का तु फायदा कैसे उठायेगा, उल्लु ये भी तो बता देना, कि खाली देख के मुठ मार लेगा ?"

" नही, मैं तुम्हे चोदना चाहता हुं। राखी तुम सिखा देना, सिखा दोगीना ?"
कह कर मैने बुरा-सा मुंह बना लिया।
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07-03-2018, 11:29 AM,
#48
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
"हाये मेरा भाई,देखो तो बहिन की लेने के लिये कैसे तडप रहा है? आजा मेरे प्यारे, मैं तुझे सब सिखा दुन्गी। तेरे जैसे लंडवाले भाई को तो, कोई भी बहिन सिखाना चाहेगी। तुझे तो मैं सिखा-पढा के चुदाई का बादशाह बना दुन्गी। आजा, पहले अपनी बहिन की चुचियों से खेल ले, जी भरा के। फिर तुझे चुत से खेलना सिखाती हुं, भाई ।" मैं राखी की कमर के पास बैठ गया।राखी पुरी नंगी तो पहले से ही थी, मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसुरत चुचियां थी। ऐसी चुचियां, जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाये। मैं दोनो चुचियों की पुरी गोलाई पर हाथ फेर रह था। चुचियां मेरी हथेली में नही समा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं जन्नत में घुम रहा हुं। राखी की चुचियों का स्पर्श गजब का था। मुलायम, गुदाज, और सख्त गठीलापन, ये सब एहसास शायद अच्छी गोल-मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है। मुझे इन सारी चीजो का एक साथ आनंद मिल रह था। ऐसी चुंची दबाने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है। इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैने दुसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया।

राखी के मुंह से हल्की हल्की आवाजे आनी शुरु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खींच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनुठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया। हम दोनो के होंठ एक दुसरे से मिल गये और मैं राखी कि दोनो चुचियों को पकडे हुए, उसके होंठो का रस ले रह था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी। मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन करीब दो-तीन मिनट तक चला होगा। राखी के पतले होंठो को अपने मुंह में भर कर मैने चुस-चुस कर और लाल कर दिया। जब हम दोनो एक दुसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे। मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचियां पर थे और मैं अब उनको जोर जोर से मसल रह था।

राखी के मुंह से अब और ज्यादा तेज सिसकारियां निकलने लगी थी। राखी ने सिसयाते हुए मुझसे कहा,
"ओह,,,, ओह,,,,, सिस,,सिस,,सि,सि,,,,,,,,,,शाबाश, ऐसे ही प्यार करो मेरी चुचियों से। हल्के-हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा जोर से नही, नही तो तेरी बहिन को मजा नही आयेगा। धीरे-धीरे मसलो।" मेरे हाथ अब बहिन कि चुचियों के निप्पल से खेल रहे थे। उसके निप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे। हल्का कालापन लिये हुए गुलाबी रंग के निप्पल खडे होने के बाद ऐसे लग रहे थे, जैसे दो गोरी, गुलाबी पहाडियों पर बादाम की गीरी रख दी गई हो। निप्पल के चारो ओर उसी रंग का घेरा था। ध्यान से देखने पर मैने पाया कि, उस घेरे पर छोटे-छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं निप्पलों को अपनी दो उन्गलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था, और प्यार से उनको खींच रहा था। जब भी मैं ऐसा करता तो बहिन की सिसकीयां और तेज हो जाती थी। बहिन की आंखे एकदम नशिली हो चुकी थी और वो सिसकारीयां लेते हुए बडबडाने लगी,
"ओह, भाई ऐसे ही,,,,,, ऐसे ही,,,,, तुझे तो सिखाने की भी जुरुरत नही है, रे। ओह क्या खूब मसल रहा है, मेरे प्यारे। ऐसे ही कितने दिन हो गये, जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है। कैसे तरसती थी मैं कि, काश कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे, प्यार से सहला दे, पर आखिर में अपना भाई ही काम आया। आजा मेरे लाल।"
कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड कर अपनी चुचियों पर झुका लिया। मैं राखी का इशारा समझ गया और मैने अपने होंठ राखी की चुचियों से भर लिये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चुंची थी और दुसरी चुंची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे। मैने धीरे-धीरे उसकी चुचियों को चुसना शुरु कर दिया था। मैं ज्यादा से ज्यादा चुंची को अपने राखी में भर के चुस रहा था। मेरे अंदर का खून इतना उबाल मारने लगा था कि, एक-दो बार मैने अपने दांत भी चुचियों पर गडा दिये थे। जिस से राखी के मुंह से अचानक से चीख निकल गई थी। पर फिर भी उसने मुझे रोका नही। वो अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे ले जा कर, मुझे बालो से पकड के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और जोर-जोर से दबा रही थी, और दांत से काटने पर एकदम से घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोली,
"ओह, धीरे भाई, धीरे-से चुसो चुंची को। ऐसे जोर से नही काटते है।"

फिर उसने अपनी चुंची को अपने हाथ से पकडा और उसको मेरे मुंह में घुसाने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे वो अपनी चुंची को पुरी की पुरी मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो, और सिसयाई,
"ओह राजा मेरे निप्पल को चुसो जरा, पुरे निप्पल को मुंह में भर लो और कस-कस के चुसो राजा।
मैने अब अपना ध्यान निप्पल पे कर दिया और निप्पल को मुंह में भर कर अपनी जीभ, उसकी चारो तरफ गोल-गोल घुमाते हुए चुसने लगा। मैं अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था। निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए, निप्पल को चुसने पर राखी एकदम मस्त हुए जा रही थी और उसके मुंह से निकलनेवाली सिसकीयां इसकी गवाही दे रही थी।मैं उसकी चीखे और सिसकीयां सुन कर पहले-पहल तो डर गया था। पर राखी के द्वारा ये समझाये जाने पर कि, ऐसी चीखे और सिसकीयां, इस बात को बता रही है कि, उसे मजा आ रहा है। तो फिर मैं दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था। जिस चुंची को मैं चुस रहा था, वो अब पुरी तरह से मेरी लार और थुक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी थी। फिर भी मैं उसे चुसे जा रहा था, तब राखी ने मेरे सिर को वहां से हटा के अपनी दुसरी चुंची की तरफ करते हुए कहा,
"हाये, खाली इसी चुंची को चुसता रहेगा, दुसरी को भी चुस, उसमे भी वही स्वाद है।"

फिर अपनी दुसरी चुंची को मेरे मुंह में घुसाते हुए बोली,
"इसको भी चुस चुस के लाल कर दे मेरे लाल, दुध निकल दे मेरे सैंया। एकदम आम के जैसे चुस और सारा रस निकाल दे, अपनी बहिन की चुचियों का। किसी काम की नही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आयेगी।"
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07-03-2018, 11:29 AM,
#49
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहलीवाली चुंची दबाते हुए, दुसरी को पुरे मनोयोग से चुसने लगा। बहिन सिसकीयां ले रही थी और चुसवा रही थी। कभी-कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास ले जा के, मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी। इस तरह काफि देर तक मैं उसकी चुचियों को चुसता रहा। फिर बहिन ने खुद अपने हाथों से मेर सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी। मेरे होंठ मेरे खुद के थुक से भीगे हुए थे।बहिन की बांयी चुंची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकि दाहिनी चुंची पर लगा थुक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचियां लाल हो चुकी थी, और निप्पलों का रंग हल्के काले से पुरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चुसने पर खून का दौर भर जाने के कारण हुआ था)।

राखी ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खींच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली,
"खाली दुध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा ? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रह है, राजा।"

मैने भी राखी के होंठो का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालो को, अपने मुंह में भर कर चुसने लगा और फिर उसके नाक को चुम और फिर धीरे से बोला,
"ओह राखी, तुम सच में बहुत सुंदर हो।"

इस पर राखी ने पुछा,
"क्यों, मजा आया ना, चुसने में ?"

"हां राखी, गजब का मजा आया, मुझे आजतक ऐसा मजा कभी नही आया था।"

तब राखी ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा,
"नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है। आजा , आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हुं।" मैं धीरे से खिसक कर राखी के पैरो पास आ गया। राखी ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोडे कर फैला दिया और बोली,
"यहां बीच में। दोनो पैरो के बीच में आ के बैठ। तब ठीक से देख पायेगा, अपनी राखी का खजाना।"

मैं उठ कर राखी के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका। मेरे सामने वो चीज थी, जिसको देखने के लिये मैं मरा जा रहा था। मां ने अपनी दोनो जांघे फैला दी, और अपने हाथों को अपनी चूत के उपर रख कर बोली,
"ले देख ले, अपना मालपुआ। अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा।"

मेरी खुशी का तो ठीकाना नही था। सामने बहिन की खुली जांघो के बीच झांठो का एक त्रिकोण सा बन हुआ था। इस त्रिकोणिय झांठो के जंगल के बीच में से, बहिन की फुली हुए गुलाबी बुर का छेद झांख रहा था, जैसे बादलों के झरमट में से चांद झांखता है। मैने अपने कांपते हाथों को बहिन की चिकनी जांघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया। उसकी चूत के बाल बहुत बडे-बडे नही थे। छोटे-छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकिर से चीरी हुई थी। मैने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा,
"राखी, मैं इसे छु,,,,,लुं,,,,,?"

"छु ले, तेरे छुने के लिये ही तो खोल के बैठी हुं।"

मैने अपने हाथों को राखी की चुत को उपर रख दिया। झांठ के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे। हालांकि आम तौर पर झांठ के बाल थोडे मोटे होते है, और उसके झांठ के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे। हल्के-हल्के मैं उन बालों पर हाथ फिराते हुए, उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रह था। अब चुत की दरार और उसकी मोटी-मोटी फांके स्पष्ट रुप से दिख रही थी। राखी की चूत एक फुली हुई और गद्देदार लगती थी। चुत की मोटी-मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी। मेरे से रहा नही गया और मैं बोल पडा,
" ये तो सच-मुच में मालपुए के जैसी फुली हुई है। "

"हां भाई, यही तो तेरा असली मालपुआ है। आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे, यही खाना।"

"हां बहिन, मैं तो हंमेशा यही मालपुआ खाउन्गा। ओह बहिन, देखोना इस से तो रस भी निकल रहा है।"
(चुत से रिसते हुए पानी को देख कर मैने कहा।)

"भाई, यही तो असली माल है, हम औरतो का। ये रस, मैं तुझे अपनी चूत की थाली में सजा कर खिलाउन्गी। दोनो फांको को खोल के देख कैसी दिखती है ? हाथ से दोनो फांक पकड कर, खींच कर चूत को चिरोड कर देख।" सच बताता हुं दोनो फांको को चीर कर, मैने जब चुत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा, तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जनम सफल हो गया है। चुत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस छेद को छुआ तो मेरे हाथों में चिप-चिपा-सा रस लग गया । मैने उस रस को वहीं बिस्तर की चद्दर पर पोंछ दिया और अपने सिर को आगे बढा कर राखी की चूत को चुम लिया। राखी ने इस पर मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाते हुए हल्के-से सिसकाते हुए कहा,
"बिस्तर पर क्यों पोंछ दिया, उल्लु ? यही बहिन का असली प्यार है, जोकि तेरे लंड को देख के चुत के रस्ते छलक कर बाहर आ रहा है। इसको चख के देख, चुस ले इसको।"
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07-03-2018, 11:29 AM,
#50
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
"हाये बहिन , चुसु मैं तेरी बुर को ? चाटु इसको ?"

"हां भाई चाट ना, चुस ले अपनी बहिन की चुत के सारे रस को। दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ डाल दे, और चुस। और ध्यान से देख, तु तो बुर की केवल फांको को देख रहा है। देख मैं तुझे दिखाती हुं।"

और राखी ने अपनी चुत को पुरा चिरोड दिया और अंगुली रख कर बताने लगी,
"देख, ये जो छोटा वाला छेद है ना, वो मेरे पेशाब करने वाला छेद है। बुर में दो-दो छेद होते है। उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचेवाला जो ये बडा छेद है, वो चुदवाने के काम आता है। इसी छेद में से रस निकलता है, ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चुत को चोद सके। और भाई ये जो पेशाब वाले छेद के ठीक उपर जो ये नुकिला सा निकला हुआ है, वो क्लीट कहलाता है। ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है। इसको छुते ही औरत एकदम गरम हो जाती है, समझ में आया ?"

"आ गया समझ में। हाय, कितनी सुंदर है, ये तुम्हारी चूत। मैं चाटु इसे बहिन ?"

"हां भाई, अब तु चाटना शुरु कर दे। पहले पुरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट, फिर मैं आगे बताती जाती हुं, कैसे करना है ?"

मैने अपनी जीभ निकाल ली, और राखी की बुर पर अपनी जुबान को फिराना शुरु कर दिया। पुरी चुत के उपर मेरी जीभ चल रही थी। मैं फुली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी जुबान से, उपर से नीचे तक चाट रहा था। अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए, मैने ठीक बुर की दरार पर अपनी जीभ रखी और मैं धीरे-धीरे उपर से नीचे तक चुत की पुरी दरार पर जीभ को फिराने लगा। बुर से रिस-रिस कर निकलता हुआ रस, जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मुझे मिल रहा था। जीभ जब चुत के उपरी भाग में पहुंच कर क्लीट से टकराती थी, तो राखी की सिसकीयां और भी तेज हो जाती थी। राखी ने अपने दोनो हाथों को शुरु में तो कुछ देर तक अपनी चुचियों पर रख था, और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही। मगर बाद में उसने अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे लगा दिया और मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाने लगी।मेरी चुत चुसाई बादस्तुर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज हो गया था कि,राखी को सबसे ज्यादा मजा अपनी क्लीट की चुसाई में आ रहा है। इसलिये मैने इस बार अपनी जीभ को नुकिला कर के, क्लीट से भिडा दिया और केवल क्लीट पर अपनी जीभ को तेजी से चलाने लगा। मैं बहुत तेजी के साथ क्लीट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पुरी क्लीट को अपने होंठो के बीच दबा कर, जोर-जोर से चुसने लगा। राखी ने उत्तेजना में अपने चुतडों को उपर उछाल दिया और जोर से सिसकीयां लेते हुए बोली,
"हाये दैया, उईई मां,,,,,,, शी शी,,,,, चुस ले, ओह,,,,,, चुस ले,,,, मेरे भगनशे को। ओह, शीश,,,, क्या खुब चुस रहा है रे तु ???? ओह म,,मैने तो सोचा भी नही थाआआआ,,,, कि तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी। हाये रे,,,,, भाईआ,,,,, तु तो कमाल का निकला,,,,,,,, आह, ओओओह,,,,, ऐसे ही चुस,,, अपने होंठो के बीच में भगनशे को भर के,,,, इसी तरह से चुस ले, ओह भाई चुसो, चुसो भाई,,,,,,,"

राखी के उत्साह बढाने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी। मैं दुगुने जोश के साथ, एक कुत्ते की तरह से लप-लप करते हुए, पुरी बुर को चाटे जा रहा था। अब मैं चुत के भगनशे के साथ-साथ पुरी चुत के मंस (गुद्दे) को अपने मुंह में भर कर चुस रहा था, और राखी की मोटी फुली हुई चुत अपने झांठो समेत मेरे मुंह में थी। पुरी राखी को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुंह में भर कर चुसने के बाद, मैने अपने होंठो को खोल कर चुत के चोदनेवाले छेद के सामने टिका दिया, और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब जोर-जोर से चुसना सुरु कर दिया। बुर का नशिला रस रिस-रिस कर निकल रहा था, और सीधा मेरे मुंह में जा रहा था। मैने कभी सोचा भी नही था कि, मैं चुत को ऐसे चुसुन्गा, या फिर चुत की चुसाई ऐसे कि जाती है। पर शायद चुत सामने देख कर चुसने की कला अपने आप आ जाती है। फुद्दी और जीभ की लडाई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है कि, इसे सिखने और सिखाने की जुरुरत नही पडती। बस जीभ को फुद्दी दिखा दो, बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है। राखी की सिसकीयां और शाबाशी और तेज हो चुकी थी। मैने अपने सिर को हल्का-सा उठा के राखी को देखते हुए, अपने बुर के रस से भीगे होंठो से राखी से पुछा,
"कैसा लग रहा है राखी , तुझे अच्छा लग रहा है ना ?"

राखी ने सिसकाते हुए कहा,
"हाये,भाई मत पुछ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे भाई । इसी मजे के लिये तो तेरी बहिन तरस रही थी। चुस ले मेरी बुर कोओओओओओओ,,,,, और जोर से चुस्स्स्स्स्स्स्,,,,, सारा रस पी लेएएएएए मेरे सैंया, तु तो जादुगर है रेएएएएएएएए, तुझे तो कुछ बताने की भी जुरुरत नही। हाये मेरी बुर की फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चुस भाई , और उसमे अपनी जीभ को लबलबाते हुए अपनी जीभ को मेरी चुत के अंदर तक घुमा दे। हाये घुमा दे, राजा भाई घुमा दे,,,,,,,"
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