RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
आख़िर मैने आधे से ज़्यादा केला निगल लिया सात आठ इंच केला मेरे मुँह मे था और आधा मेरे गले के नीचे था मेरा गला बारबार थूक निगलने की कोशिश करता और उससे वह केला और अंदर घुसता जाता आख़िर पूरा केला मेरे मुँह मे चला गया, सिर्फ़ एक छोर बचा जो रघू ने पकड़ कर रखा था
"शाबास मेरे बच्चे, मालकिन, अम्मा, ये तो पाँच मिनिट मे सीख गया" रघू खुश होते हुए मेरे गाल चूम कर केले को मेरे गले मे थोड़ा अंदर बाहर करते हुए कहा "देख मुन्ना, जब मैं तेरे गले को चोदून्गा तो ऐसे लगेगा घबराना मत" और वह केले से मेरा गला चोदने लगा
मा को अब अपने बेटे के नन्हे गले मे अपने चोदू नौकर का तगडा लौडा घुसते देखने की जल्दी हो रही थी "मुन्ना, अनिल बेटे, अब निगल ले रे रघू का लौडा, आख़िर मैं भी देखूं कि इस चुदैल मा के गान्डू बेटे मे कितना दम है!"
रघू का लंड अब तक खड़ा हो गया था कस कर नहीं फिर भी अच्छा ख़ासा लंबा हो गया था "एकदम सही खड़ा है बेटे, तुझे भी तकलीफ़ नहीं होगी आ जा, बैठ जा मेरे सामने" कहकर रघू ने केला मेरे मुँह से निकाल लिया और बाजू मे टेबल पर एक प्लेट मे रख दिया
मैं मुँह खोल कर रघू की जांघों के बीच बैठ गया उसका सुपाडा तो मैने बहुत बारे चूसा था इसलिए उसमे मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हुई अब रघू ने मेरे सिर के पीछे एक हाथ रखकर उसे सहारा दिया और दूसरे हाथ से अपना लंड पकडकर पेलने लगा
लंड आराम से मेरे गले मे धँसने लगा केले से मेरा मुँह और गला भी चिकने हो गये थे इसलिए आराम से लंड मेरे मुँह मे उतर रहा था जल्द ही आधे से ज़्यादा लंड मेरे मुँह मे था सुपाडा अब मेरे गले को चौड़ा कर रहा था मेरा दम अब कुछ घुट रहा था पर मैं फिर भी लंड निगलने की भरसक कोशिश कर रहा था पर लंड अब अंदर सरकना बंद हो गया था
रघू ने कुछ देर लंड पेलना बंद कर दिया मेरे बाल सहलाते हुए बोला "कोई बात नहीं मुन्ना, आज काफ़ी सीख गया है, अब बस कुछ देर ऐसा ही बैठा रहा, फिर मैं निकाल लूँगा, तू बस गले को ढीला छोड़ और लंड को गले मे रखने की प्रैक्टिस कर"
मैं रघू का लंड मुँह मे लिए बैठा रहा अब गले मे फँसे उस मासल कड़े होते हुए लंड से मेरा जी घबरा रहा था पर मज़ा भी आ रहा था लगता था लंड नहीं रसीला गन्ना है
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