XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
05-22-2020, 03:15 PM,
#61
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
जब पूरी तरह मरहम-पट्टी के बाद चैम्बूर से प्रश्न किया गया तो बिना किसी हुज्जत के वह बोला—“यह तो आप जानते ही हैं कि एक छोटा-सा उपग्रह अपनी कक्ष में पृथ्वी के चारों तरफ घूम रहा है—उसका नाम कोहिनूर पर नजर रखना हैं उसका सम्बन्ध एक कंट्रोल रूम से है—ये कंट्रोल रूम गार्डनर की कोठी के तहखाने में है।”
“हमें इस उपग्रह की कार्यशैली जाननी है प्यारे।”
“कोहिनूर जहां भी रखा है, उसके निचले तले में एक बहुत ही छोटा और विशेष ट्रांसमीटर चिपका दिया गया है, इस ट्रांसमीटर का सम्बन्ध उपग्रह से है और ये ट्रांसमीटर कोहिनूर पर किसी का हाथ लगते ही ऑन हो जाएगा।”
“कैसे?”
“इंसानी जिस्म की ऊष्मा से!”
“ओह!”
“सभी प्राणियों की अपेक्षा इंसानी जिस्म में सबसे कम ऊष्मा है और इस ट्रांसमीटर में उस कम ऊष्मा से भी ऑन होने की क्षमता है अर्थात किसी भी किस्म की ऊष्मा मिलते ही, जो किसी के कोहिनूर पर हाथ लगाते ही उसे मिल जाएगी, ट्रांसमीटर ऑन हो जाएगा और कंट्रोल रूम में बैठे लोग जान जाएंगे कि किसी ने कोहिनूर को हाथ लगाया है।”
“कैसे?”
“ट्रांसमीटर का सम्बन्ध उपग्रह से है और उपग्रह का सम्बन्ध कंट्रोल रूम से—कंट्रोल रूम में एक टी.वी. स्क्रीन रखी है, इस स्क्रीन पर उपग्रह चौबीस घण्टे सिग्नल देता रहता है।”
“उपग्रह सिग्नल किस रूप में देता है?”
“स्क्रीन पर रह-रहकर 'टिंग-टिंग' की आवाज के साथ एक टेढ़ी-मेढ़ी हरी रेखा चमकती रहती है, कुछ वैसे ही अन्दाज में जैसे बादलों के बीच चमकती हुई नजर आती है—“टिंग-टिंग” की आवाज के साथ इस हरी बिजली के चमकते रहने का अर्थ है कि सब कुछ ठीक है—उधर किसी ने कोहिनूर के छुआ तो ऊष्मा से ट्रांसमीटर ऑन हो जाएगा, उपग्रह बिजली की-सी गति से उसे कैच करेगा और तुरन्त ही सूचना को कंट्रोल रूप में रिले करेगा।”
“उसके रिले करने का क्या तरीका है?”
“स्क्रीन पर चमकने वाली बिजली का रंग लाल हो जाएगा और कंट्रोल रूप में 'टिंग-टिंग' के स्थान पर 'पिंग-पिंग' की आवाज गूंजने लगेगी—कंट्रोल रूम के अन्दर ये सिग्नल सिर्फ एक क्षण के अन्दर मिल जाएगा, यानी उधर किसी ने कोहिनूर को स्पर्श किया और इधर सिग्नल मिला।”
“इस कंट्रोल रूम तक जाने का रास्ता?”
“मिस्टर गार्डनर के बेडरूम से है।”
“ये कैसे खुलता है?”
“बेडरूम में एक मजबूत सेफ रखी है, यह सेफ कोई विशेष नम्बर सैट करने से खुलती है।”
“नम्बर क्या है?”
“वह मैं नहीं जानता।”
आगे बढ़कर विकास गुर्रा उठा—“तुम झूठ बोलते हो।”
“मैं सच कह रहा हूं, जब आपको सभी कुछ बता रहा हूं तो भला नम्बर क्यों छुपाऊंगा, इस सेफ को हमेशा मिस्टर गार्डनर ही खोलते हैं और उनके अलावा शायद सेफ के नम्बर को कोई नहीं जानता, यही वो कुछ बातें हैं, जिन्हें जानने के लिए अलफांसे को इर्विन से शादी करके गार्डनर के घर में घुसना पड़ा।”
विकास उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था, जबकि विजय ने कहा—“खैर, आगे बढ़ो।”
“इस सेफ के अन्दर एक लाल रंग का टेलीफोन रखा है, मिस्टर गार्डनर इसका रिसीवर उठाकर कोई नम्बर डॉयल करते हैं, डॉयल करने के बाद जैसे ही वो रिसीवर क्रेडिल पर रखते हैं, वैसे ही बेडरूम के साथ अटैड बाथरूम का टायलेट फर्श बिना किसी प्रकार की आवाज उत्पन्न किए अपने स्थान से हट जाता है।”
“ये नम्बर भी तुम्हें पता नहीं होगा?”
“सिर्फ इतना बता सकता हूं कि वे सात नम्बर रिंग करते हैं।”
विकास उसे इस तरह घूर रहा था कि कच्चा चबा जाएगा, मगर कुछ बोला नहीं।
“इसके बाद?” विजय ने पूछा।
“बाथरूम से नीचे तहखाने तक एक लोहे की सीढ़ी के जरिए पहूंचा जाता है—जैसे ही आप सीढ़ी के सबसे निचले डंडे पर कदम रखेंगे, वैसे ही सारा रास्ता यानी सेफ आदि बन्द हो जाएगी।”
“गुड, फिर क्या होगा?”
“जब तक आप सीढ़ियों पर रहेंगे, तब तक आपके चारों तरफ अंधेरा रहेगा और आपके द्वारा अंतिम डंडा पार करते ही एक बल्ब ऑन हो उठेगा—तब आप खुद को एक छोटी-सी कोठरी में पाएंगे— इस कोठरी में चौबीस घण्टे एक गार्ड की ड्यूटी रहती है—आपके साथ यदि मिस्टर गार्डनर हैं तो ठीक, वरना एक क्षण को भी विलम्ब किए बिना वह आपको रायफल से शूट कर देगा।”
“उफ्फ, बड़ा जालिम है साला, खैर—यदि हमारे साथ मिस्टर गार्डनर हों तो क्या करेगा?”
“जो बल्ब आपके कोठरी में आते ही ऑन हुआ है, उसका दूसरा स्विच कोठरी की दाईं दीवार पर है और इसी स्विच के बराबर में एक ऐसा तीन छिद्रों वाला स्विच है—जिसमें एक विशेष प्लग फिट हो सकता है—गार्डनर का आदेश होने पर ही गार्ड अपनी जेब से प्लग निकालकर स्विच पर फिक्स करेगा।”
“उससे क्या होगा?”
“कोठरी की बाईं तरफ की पूरी-की-पूरी दीवार किसी शटर की तरह जमीन में धंस जाएगी और अब, आपके सामने करीब पांच फीट चौड़ी दूर तक एक लम्बी गैलरी पड़ी होगी, इस गैलरी की छत पर जगह-जगह बल्ब लगे हैं, जिनके प्रकाश से गैलरी हमेशा चकाचौंध रहती है, दोनों तरफ—दीवारों से सटे सशस्त्र गार्ड खड़े रहते हैं— आपको इनके बीच में से होकर गुजरना होगा—करीब एक फर्लांग के बाद गैलरी बाईं तरफ मुड़ेगी—इस मोड़ पर एक कम्प्यूटर आपका असली नाम कंट्रोल रूम को रिले कर देगा—कंट्रोल रूम में रखी इस कम्प्यूटर से सम्बन्धित एक स्क्रीन पर उन सभी के नाम उभर आएंगे, जो इसके सामने से गुजरे हैं।”
“यानी बंटाधार?”
चैम्बूर के होंठों पर एक उदासी भरी और फीकी मुस्कान उभर आई, बोला—“ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जिनकी वजह से सारी व्यवस्थाओं की जानकारी होने के बावजूद भी मैं कभी कोई कोई योजना नहीं बना सका।”
“आगे बढ़ो प्यारे, ये साला कम्प्यूटर एक क्षण में किसी भी मेकअप को बेकार कर देगा।”
“आगे फिर एक फर्लांग लम्बी, सीधी गैलरी है और उसी तरह से गार्ड खड़े हैं, गैलरी का अंतिम सिरा इस्पात की एक दीवार है यानी यहां गैलरी बन्द हो गई प्रतीत होती है, परन्तु असल में इस्पात की ये दीवार कंट्रोल रूम का दरवाजा है, जिसे केवल अन्दर से ही खोला जा सकता है।”
“मिस्टर गार्डनर इसे किस तरह खोलते हैं?”
“विशेष सांकेतिक अन्दाज में दस्तक देकर!”
“तुमने देखा और सुना तो होगा, ये सांकेतिक अंदाज क्या है?”
“मिस्टर गार्डनर इस्पात की उस चादर पर हाथ से एक बार, सा—रे—गा—मा—यानी पूरी सरगम बजाते हैं और उसके पन्द्रह सेकण्ड बाद इस्पात की वह दीवार कोठरी की दीवार की तरह ही जमीन में समा जाती है।”
“यानी वहां पहुंचने से पहले संगीतकार बनना भी जरूरी है?”
“बस, अब आप कंट्रोल रूम में पहुंच गए हैं, यहां हर समय पांच व्यक्तियों की ड्यूटी रहती है—एक उपग्रह से सम्बन्धित स्क्रीन पर, दूसरा कम्प्यूटर से सम्बन्धित स्क्रीन पर, तीसरे की उस स्क्रीन पर जिस पर हर समय पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता उपग्रह चमकता रहता है, चौथे की उस अलार्म पर जिसके बजते ही तहखाने में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति को मालूम हो जाएगा कि तहखाने में कोई गलत व्यक्ति घुस आया है और पांचवां व्यक्ति एक इंजीनियर है, जो कंट्रोल रूम में रखी मशीनों की नस-नस से वाकिफ है।”
“इस कंट्रोल रूम की भौगोलिक स्थिति क्या है?”
चैम्बूर ने बता दी, तब विजय ने अगला सवाल किया—“तहखाने में चौबीस घण्टे क्या उन्हीं गाड्र्स और पांच व्यक्तियों की ड्यूटी रहती है या ड्यूटियां बदलती रहती हैं?”
“वे तीन टीमें हैं—एक टीम की ड्यूटी केवल आठ घण्टे रहती है, तीन शिफ्टें हैं—सुबह के सात बजे से दोपहर तीन बजे तक—तीन से रात के ग्यारह बजे तक और रात के ग्यारह से फिर सुबह सात बजे तक!”
“ये टीमें तहखाने में किस रास्ते से आती-जाती हैं?”
“मैंने उन्हें तब्दील होते कभी नहीं देखा, इसलिए इस बारे में कुछ नहीं जानता—मगर हां, इतना जानता हूं कि जिस व्यक्ति की ड्यूटी जहां है, वह वहां के अलावा तहखाने के बारे में कुछ नहीं जानता।”
“खैर, अब ये बताओ प्यारे कि इस तहखाने में साला कोहिनूर कहां रखा है?”
“कोहिनूर इस तहखाने में नहीं है।”
“फिर?”
“वह यहां से काफी दूर टेम्स नदी के किनारे बनी एक इमारत में है।”
“वह कम्बख्त वहां क्या कर रहा है, हमारा मतलब—यदि कोहिनूर यहां नहीं है तो फिर गार्डनर की कोठी में सुरक्षा के इतने कड़े प्रबन्ध क्यों हैं?”
“सिर्फ कंट्रोल रूम की सुरक्षा के लिए, ताकि कोई उपग्रह को खराब न कर सके, क्योंकि अगर उपग्रह खराब हो गया तो कोहिनूर पर किसी का हाथ लगने की सूचना नहीं मिल सकेगी।”
“अगर कंट्रोल रूम की सूरक्षा के लिए ये प्रबन्ध किए गए हैं तो माशाअल्लाह, फिर कोहिनूर तक पहुंचना तो निश्चय ही साला एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने से कई गुना ज्यादा कठिन काम होगा?”
“असम्भव की सीमा तक कठिन है, मगर आप थोड़े गलत ढंग से सोच रहे हैं—दरअसल इस व्यवस्था को भी कोहिनूर के लिए की गई सुरक्षा-व्यवस्था ही मानना होगा, क्योंकि अत: कंट्रोल रूम और उपग्रह का सम्बन्ध आखिर है तो कोहिनूर से ही।”
“मान रहे हैं प्यारे, सवा सोलह आने मान रहे हैं।”
विकास ने पूछा—“कोहिनूर कहां रखा है?”
“टेम्स के किनारे बनी सैकड़ों इमारतों में से एक पांच मंजिली इमारत है, इमारत के मस्तक पर लगे बोर्ड पर लिखा है—“बैंक संस्थान।”
“बैंक संस्थान?”
“हां!” चैम्बूर ने बताया—“आम व्यक्ति यही जानता है कि इस इमारत में बैंकों से सम्बन्धित कोई सरकारी दफ्तर है, जिसमें लंदन के सभी बैंकों के खाते हैं और उनका हिसाब-किताब रखा जाता है—आम जनता का इस सरकारी दफ्तर से कोई सम्पर्क नहीं है—असल में यह सारी इमारत के.एम.एस. के अधिकार में है, यानी अगर इसे के.एस.एस. का ऑफिस कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।”
“कोहिनूर इस इमारत में है?”
“सुनते रहिए, दरअसल यदि आप इतनी जल्दी कोहिनूर तक पहुंचेंगे तो समझ कुछ नहीं सकेंगे?” चैम्बूर ने कहा—“दफ्तर सुबह नौ बजे खुलता है—और शाम छ: बजे बन्द हो जाता है—दफ्तर के बन्द होने पर ये सशस्त्र गार्ड अन्दर ही बन्द रह जाते हैं।”
“इसका क्या मतलब?”
“शाम छ: बजे छुट्टी होने के बाद, साढ़े छ: बजे—यानी सबसे अंत में मिस्टर गार्डनर इमारत से बाहर निकलते हैं, तब तक वे पांच सशस्त्र गार्ड मुख्य द्वार पर ही रहते हैं, जिनकी ड्यूटी दरअसल सारे दिन मुख्य द्वार पर ही रहती है—हां, तो मैं कह रहा था कि साढ़े छ: बजे मिस्टर गार्डनर इमारत से बाहर निकल आते हैं और शेष दो इमारत के अन्दर ही रह जाते हैं, गार्डनर के आदेश पर इमारत का मुख्य दरवाजा तीन बाहर वाले गार्ड बन्द कर देते हैं, इस द्वार की चाबी गार्डनर के पास रहती है—जिसे वह उसी समय निकालकर उन बाहर वाले तीन गाडर्स में से किसी एक को देते हैं—वह गार्ड दरवाजे को लॉक करके चाबी पुन: गार्डनर को दे देता है और इसके बाद गार्डनर अपने और वे तीनों गार्ड अपने-अपने रास्तों पर चले जाते हैं।”
“यानी वे दो गार्ड सारी रात अन्दर ही बन्द रहते हैं?”
“जी हां!”
“वहां रात को क्या वे मटर छीलते हैं?”
“रात भर वे क्या करते हैं, यह तो मैं नहीं बता सकता, मगर इतना जानता हूं कि जिस तरह मुख्य द्वार को बाहर से लॉक किया जाता है, उसी तरह ये गार्ड उसे अन्दर से भी लॉक कर लेते हैं—यानी अब मुख्य द्वार को किसी भी एक चाबी से नहीं खोला जा सकता।”
“सुबह को?”
“वे तीन गार्ड और मिस्टर गार्डनर ठीक पौने नौ बजे इमारत के मुख्य द्वार पर पहुंच जाते हैं, गार्डनर से चाबी लेकर गार्ड बाहर वाला लॉक खोलते हैं और दरवाजा नौ बजने में दस मिनट रह जाने पर तभी खुलता है जब अन्दर वाले गार्ड अन्दर वाला लॉक खोल देते हैं।”
“इसके बाद!”
“इमारत में दाखिल होकर मिस्टर गार्डनर अपने ऑफिस में चले जाते हैं और पांचों गार्ड मुस्तैदी के साथ दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं—अब, ऑफिस में काम करने वालों का आगमन शुरू हो जाता है—ये गार्ड प्रत्येक को अच्छी तरह से चैक करने के बाद ही इमारत में दाखिल होने देते हैं और पूरे स्टाफ के आ चुकने के बाद द्वार पुन: बन्द करके अन्दर से लॉक कर लेते हैं, अब यह दरवाजा शाम छ: बजे ही खुलेगा और साढ़े छ: बजे तक पुन: पहले जैसी स्थिति में ही दोनों तरफ से बन्द हो जाएगा।”
“बड़ा चक्करदार चक्कर है, खैर—इस दरवाजे के अन्दर तो घुसो।”
“मैं तो घुस जाऊंगा लेकिन उम्मीद है कि आप लोग समझ गए होंगे—इस इमारत के अन्दर दिन या रात के समय दाखिल होना एक समस्या है, यह बात दिमाग में अच्छी तरह से बैठा लीजिए कि इस मुख्य द्वार के अलावा इमारत में एक चिड़िया तक के दाखिल होने की कोई जगह नहीं है।”
“हम सब समझ रहे हैं प्यारे, तुम आगे बढ़ो।”
“ग्राउंड फ्लोर पर ही मिस्टर गार्डनर का ऑफिस है, ऑफिस नहीं बल्कि उसे इस्पात की बनी हुई एक बहुत बड़ी टंकी कहा जाए तो ज्यादा उचित होगा, मुख्य द्वार में दाखिल होने के बाद गार्डनर के ऑफिस की तरफ जाने के लिए बाईं तरफ मुड़ना होगा—एक ऐसे हॉल में से गुजरना होगा जिसमें मौजूद सीटों और काउंटर्स पर पचासों वर्कर्स अपना काम करते रहते हैं।”
“ये वर्कर्स वहां क्या काम करते हैं?”
“इनका काम सचमुच लंदन के सभी बैंकों का हिसाब-किताब रखना है।”
“ओह!”
“इन वर्कर्स की नजरों से बचे रहकर हॉल पार करना लगभग असम्भव ही कहा जाएगा और किसी भी अजनबी को हॉल के अन्दर देखकर ये चौंक सकते हैं, क्योंकि इमारत के अन्दर किसी बाहरी व्यक्ति का कोई काम नहीं पड़ता—इस हॉल के दाईं तरफ से एक गैलरी चली गई है, गैलरी हमेशा ट्यूब लाइट के दूधिया प्रकाश से भरी रहती है, यह गैलरी सीधी गार्डनर के ऑफिस तक गई है, परन्तु बीच ही में यहां भी एक वैसा ही कम्प्यूटर रखा है जो अपने सामने से गुजरने वाले व्यक्ति का असली नाम उस कम्प्यूटर को प्रेषित कर देता है जो गार्डनर के कमरे में रखा है। यानी अपने ऑफिस में बैठा गार्डनर दो मिनट पहले ही, स्क्रीन पर—दो मिनट बाद ऑफिस में आने वाले का नाम जान लेता है, ऑफिस के दरवाजे के बाहर एक बैल लगी है—गार्डनर से मिलने के इच्छुक व्यक्ति को बैल बजानी पड़ती है—अन्दर बैठा गार्डनर जैसे ही बैल की आवाज सुनता है, वैसे ही मेज पर लगा बटन दबा देता है—इस बटन के दबाने से ऑफिस के दरवाजे में छुपा एक गुप्त कैमरा अपनी आंखों से आगन्तुक को देखने लगता है, आगन्तुक को इल्म तक नहीं हो पाता, जबकि अन्दर गार्डनर के सामने एक स्क्रीन पर यह स्पष्ट चमक रहा होता है—संतुष्ट होने के बाद गार्डनर पहला बटन ऑफ करके एक अन्य बटन दबाता है और उसके दबने से दरवाजा खुल जाता है, आगन्तुक से यदि उसे न मिलना हो तो एक अन्य बटन दबाने से ऑफिस के दरवाजे के बाहर मस्तक पर लगा बल्ब तीन बार स्पार्क करके शान्त हो जाता है।”
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05-22-2020, 03:15 PM,
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“क्या इस दरवाजे को बाहर से नहीं खोला जा सकता?”
“केवल मिस्टर गार्डनर खोल सकते हैं।”
“क्या मतलब?”
“दरवाजे में विशेष लॉक लगा हुआ है, इस लॉक की चाबी गार्डनर के पास रहती है—वे उसी दरवाजे को खोलकर ऑफिस में दाखिल होते हैं और जाते वक्त इस लॉक को बन्द कर जाते हैं।”
“ऑफिस के अन्दर की सिच्युएशन?”
“यह तो मैं बता ही चुका हूं कि उसकी दीवारें, छत और फर्श आदि सभी कुछ मजबूत इस्पात से बने हैं, इस्पात की ये चादर दो इंच मोटी है, अन्दर दाखिल होने के लिए एकमात्र वही दरवाजा है, जिससे गार्डनर दाखिल होता है—यह कमरा बिल्कुल किसी कुएं की तरह गोल है—शायद आपको यह बताने की जरूरत तो नहीं है कि ऑफिस साउण्ड प्रूफ और एयर कण्डीशण्ड है—खैर, कमरे के बीचोबीच गार्डनर की विशाल मेज और रिवॉल्विंग चेयर है, इस तरफ—आगन्तुक के बैठने के लिए एक कुर्सी है—इसका सीधा-सा मतलब है कि उसके ऑफिस में, एक समय में गार्डनर से केवल एक ही व्यक्ति मिल सकता है।”
वे चारों चुपचाप चैम्बूर का मुंह ताकते रहे।
उसने आगे कहा—“गौर करने की बात है कि इस चैम्बर जैसे कमरे के अंदर मौजूद सारा फर्नीचर इस्पाती फर्श के साथ जुड़ा हुआ है—मेज पर फोन आदि वे सभी चीजें मौजूद हैं, जो किसी भी सरकारी अफसर की मेज पर हो सकती हैं और कोहिनूर तक के लिए इसी ऑफिस से एकमात्र रास्ता जाता है।”
“वह रास्ता भी बता दो प्यारे!”
“वहां जाने के लिए गार्डनर को एक विशेष चाबी से अपनी मेज की सबसे नीचे वाली दराज खोलनी होती है, इस दराज के अन्दर एक स्विच बोर्ड है, बोर्ड पर पूरे छब्बीस स्विच हैं और हर स्विच पर अक्षर लिखे हैं, अंग्रेजी भाषा के छब्बीस अक्षर—जिस स्विच पर 'एम' लिखा है उसे ऑन करने से चक्की के पाट की तरह इस्पाती ऑफिस का पूरा फर्श धीरे-धीरे घूमने लगता है।”
“बाकी पच्चीस स्विच किस मर्ज की दवा हैं?”
“ये मैं नहीं जानता, क्योंकि मेरे सामने गार्डनर ने कभी उनमें से किसी को इस्तेमाल नहीं किया।”
“खैर प्यारे, हां, तो तुम कह रहे थे कि चक्की चलने लगती है, उसके बाद?㝢”
“धीरे-धीरे घूमता हुआ फर्श नीचे की तरफ जाने लगता है और उसी के साथ फर्श पर मौजूद प्रत्येक वस्तु भी। कमाल की बात ये है कि फर्श के घूमने से आवाज इतनी कम होती है कि यदि उस वक्त कोई व्यक्ति ऑफिस के दरवाजे के बाहर भी खड़ा हो तो उसे सुन नहीं सकता और न ही कमरे की दीवारों में किसी प्रकार का कम्पन होता है। फर्श ज्यों-ज्यों नीचे धंसता जाता है त्यों-त्यों चैम्बर की गोल दीवारों में बनी चूड़ियां हमें चमकने लगती हैं और तब हमें पता लगता है कि घूमता हुआ फर्श एक-एक करके इन चूड़ियों पर उतरता चला जा रहा है—तीस मिनट बाद, करीब सौ फीट नीचे जाकर ये फर्श रुक जाता है—अब यदि हम फर्श पर खड़े होकर ऊपर की तरफ देखें तो हमें महसूस होगा कि हम किसी एक सौ पन्द्रह फीट गहरे सूखे कुएं के फर्श पर खड़े हैं, अब इस स्थान को चैम्बर भी नहीं, बल्कि टंकी कहना चाहिए—इस अवस्था में फर्श से टंकी की छत एक सौ पन्द्रह फीट ऊपर होती है।”
“आगे बढ़ो चैम्बूर प्यारे!”
“फर्श के रुकने तक ये तीस मिनट का सफर गार्डनर अपनी कुर्सी पर ही बैठा-बैठा तय करता है और फर्श के रुकते ही कुर्सी से उठ खड़ा होता है, कुर्सी के ठीक सामने इस्पात की दीवार पर फर्श से साढ़े चार फीट ऊपर बराबर-बराबर में दो-दो सूत व्यास के दो गोल छिद्र हैं, गार्डनर इस दो छिद्रों में अपनी दो उंगलियां डालकर दाईं तरफ को घुमा देता है और ऐसा करने से टंकी की दीवार में एक दरवाजा बन जाता है।”
“यानी अब हम पाताल में पहुंच गए।”
“इस दरवाजे को पार करते ही आपके सामने दस फीट चौड़ी और दूर तक सीधी चली गई बाकायदा एक सड़क होगी, फर्क सिर्फ ये है कि सड़क पत्थर और तारकोल से बनी होती है, मगर ये सड़क इस्पात की चादर से बनी है, दूर तक चली गई एक चिकनी सड़क—दोनों तरफ दीवारें और पन्द्रह फीट ऊपर छत—कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह एक इतनी विशाल गुफा है कि आप पूरी सुविधा के साथ एक कार में सफर कर सकते हैं।”
“यहां कार कहां से आएगी प्यारे?”
“टंकी के दरवाजे से बाहर निकलते ही आपको खड़ी मिलेगी।”
“क्या मतलब?” चारों ने एक साथ चौंककर पूछा।
“दरअसल इस कार का उपयोग गार्डनर कोहिनूर तक पहुंचने के लिए करता है। सफेद—बड़ी ही खूबसूरत नजर आने वाली मर्सिडीज है ये—ड्राइविंग सीट पर बैठिए और स्टार्ट करके मस्ती से यात्रा कीजिए—सड़क के कई मोड़ आपको पार करने होंगे—मगर चिन्ता न कीजिए, यदि आप मर्सिडीज को साठ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलाएंगे तो सड़क पन्द्रह मिनट बाद आप को आपकी मंजिल पर छोड़ देगी।”
“यानी कोहिनूर के पास?㝢”
“बिल्कुल पास तो नहीं, लेकिन अब आप कोहिनूर के बहुत नजदीक पहुंच चुके हैं।”
“क्या मतलब?”
“जहां ये सड़क खत्म हो, मर्सिडीज को आप वहीं रोक दीजिए—वैसे भी, जब सड़क ही खत्म हो गई है तो मर्सिडीज आपको रोकनी ही होगी, गाड़ी से बाहर निकल आइए, बाईं तरफ आपको एक संकरी-सी गली नजर आएगी, गली इतनी संकरी है कि उसमें मर्सिडीज दाखिल नहीं हो सकती अत: विवशता है, इस गली में से आपको पैदल ही गुजरना होगा।”
विजय ने अपनी राय प्रकट की—“हमारा ख्याल यह है कि मर्सिडीज में पन्द्रह मिनट की यात्रा करने के बाद जहां हम पहुंचेंगे, वह स्थान म्यूजियम के ठीक नीचे है।”
“आपका अनुमान बिल्कुल सही है।”
विक्रम के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला—“यानी कोहिनूर म्यूजियम के ठीक नीचे रखा है?”
“बल्कि ठीक म्यूजियम के उस हॉल के नीचे जहां उसका प्रतिबिम्ब नजर आता है।Ⲹ”
“ओह!” विकास की आंखों में ये सारी व्यवस्था करने वालों के लिए प्रशंसा के भाव उभर आए।
चैम्बूर ने कहा—“अब आपको उस संकरी गली से जरूर गुजरना पड़ेगा, लेकिन सावधान—गली में कदम रखते ही आपके जिस्म में सैकड़ों गोलियां भी धंस सकती हैं।”
“अरे, वह क्यों चैम्बूर भाई?”
“यह गली केवल एक गज चौड़ी तथा साठ गज लम्बी है, गली में केवल एक मोड़ है—इसकी दीवारों और छत में जगह-जगह स्वचालित गनें फिक्स हैं—इन गनों का सम्बन्ध गली के फर्श से है—यानी आपके गली में कदम रखते ही गनें गरज उठेंगी और आप एक सेकण्ड में धराशायी हो जाएंगे।”
“वह कैसे प्यारे?”
“उन सभी स्वचालित गनों का सम्बन्ध गली के फर्श से है, जहां आपने कदम रखा है—वहां मौजूद छुपे हुए एक ही स्विच से तीन गनों का सम्बन्ध होगा—दो, दोनों तरफ की दीवारों में और एक छत पर—वे तीनों गनें एक साथ गरज उठेंगी, निशाना होगा वही 'स्पॉट' जहां आप खड़े हैं—सोचने के लिए आपको एक क्षण का सौवां हिस्सा भी नहीं मिलेगा—इस प्रकार साठ गज लम्बी उस गली के फर्श में छुपे हुए पूरे सौ स्विच हैं—वे आपको चमकेंगे नहीं और इतने नसीब वाले आप हो नहीं सकते कि पूरी गली को पार कर जाएं और पैर सौ में से किसी एक भी स्विच पर न पड़े—एक भी स्विच पर पैर पड़ने का नतीजा मैं आपको बता ही चुका हूं।”
“कमाल का सिस्टम है!” अशरफ तारीफ कर उठा।
“गली में एक इंच भी जगह ऐसी नहीं है, जो कम-से-कम तीन गनों के निशाने पर न हो।”
“गार्डनर इस गली को कैसे पार करता है, प्यारे?”
“गली के बाहर ही एक टेलीफोन बूथ जैसा 'खोखा' बना हुआ है, गार्डनर जितनी बार भी मुझे कोहिनूर तक ले गया, उतनी ही बार मुझे कार के पास खड़े रहने के लिए कहकर उस बूथ में गया।”
“बूथ में क्या है?”
“एक फोन!”
विजय ने संभावना व्यक्त की—“वह कोई नम्बर रिंग करता होगा?”
“हां।”
“उस नम्बर से गली में छुपे हुए सभी स्विचों का सम्बन्ध, सम्बन्धित गनों से विच्छेद हो जाता होगा और फिर निर्विघ्न गली से गुजरा जा सकता है, तुम्हें यह नम्बर मालूम नहीं होगा।”
“एक बार फिर आपने बिल्कुल सही अनुमान लगाया है।”
“खैर, समझ लो कि हम गली भी पार कर गए हैं—अब आगे बढ़ो।”
“यह गली उस हॉल के द्वार पर जाकर खत्म होती है जिसके अन्दर कोहिनूर रखा है—इस्पात का बना यह हॉल लगभग वैसा ही है जैसा म्यूजियम का वह हॉल है, जहां लोग कोहिनूर का अक्स देखा करते हैं, हां—इतना फर्क जरूर है कि म्यूजियम वाले हॉल में दो दरवाजे हैं, जबकि इसमें एक ही है, एकमात्र वही जिस पर आप गली पार करके पहुंचेंगे—दरवाजे सहित इस हॉल की सभी दीवारों, फर्श और छत पर चौबीस घंटे करेंट रहता है—यदि आपका रत्ती बराबर भी कोई अंग किसी दीवार से स्पर्श हो गया तो करेंट आपको झट पकड़कर अपने से चिपका लेगा और तभी छोड़ेगा जब आपके जिस्म में खून की एक भी बूंद न रहेगी।”
“इस करेंट की काट?”
“हॉल के दरवाजे में दो बहुत ही बारीक से सुराख हैं, इतने ज्यादा बारीक कि गौर से देखने पर ही आप उन्हें पा सकेंगे और अब मैं आता हूं, गार्डनर पर—यदि आपमें से किसी ने गार्डनर को देखा है, उछटती नजर से नहीं बल्कि ध्यान से, तो उसके गले में पड़ा एक ताबीज जरूर देखा होगा—इस ताबीज को गार्डनर एक क्षण के लिए भी नहीं उतारता है, क्योंकि इसके अन्दर उस हॉल के दरवाजे की चाबी है।”
“चाबी?”
“जी हां, इस चाबी का आकार बड़ा ही अजीब-सा है, ऐसा कि देखकर आपयह सोच भी नहीं सकते कि वह चाबी है, हैयर पिन जैसा आकार है उसका—पीछे की तरफ रबर की एक छोटी-सी गिट्टक लगी है, अग्रिम भाग दो पतले-पतले तारों में विभक्त है। जैसे सांप की जीभ होती है—ताबीज में से निकालने के बाद गार्डनर इसे सावधानी से 'रबर' की गिट्टक से पकड़ता है।”
“शायद करेंट से बचने के लिए।” विक्रम बड़बड़ाया।
“गिट्टक से पकड़कर वह हेयर पिन-सी नजर आने वाली चाबी के दोनों अग्रिम तार दरवाजे में बने उन बारीक सुराखों में डाल देता है और फिर बड़ी ही सावधानी से उसे बाईं तरफ को घुमाता है, 'कट' की हल्की-सी आवाज होती है और वह हैयर पिन को वापस घुमाकर बाहर खींच लेता है—उसके ऐसा करते ही, इस्पात की चादर का एक हिस्सा फर्श में धंस जाता है, यही हॉल में जाने का एकमात्र रास्ता है।”
“और करेंट?”
“दरवाजा खुलते ही करेंट का प्रवाह भी कट हो जाता है।”
“गुड, अब?”
“सामने ही कोहिनूर नजर आ रहा है, हॉल के बीचोबीच एक रीडिंग टेबल रखी है—टेबल के ऊपर छोटी चौकी—चौकी पर लाल रंग का शानदार शनील बिछा है और उसके ऊपर रखा है दुनिया का वह नायाब और एकमात्र हीरा, उसकी चमक—उससे विस्फुटित होती सप्तरंगी किरणें दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को बरबस ही यूं खींचती हैं कि सब कुछ भूलकर इंसान उसकी तरफ बढ़ जाता है—लेकिन सावधान, अगर कोहिनूर के आकर्षण में आप फंस गए तो समझिए कि आपका अगला कदम मौत के मुंह में है।”
“मतलब?”
“कोहिनूर बहुत पास जरूर नजर आ रहा है, लेकिन असल में इस वक्त भी वह आपसे बहुत दूर है—कोहिनूर और आपके बीच मौत आपको निगलने के लिए जबड़ा फाड़े खड़ी है।”
“यह मौत किस रूप में है?”
“वेव्ज के रूप में।”
“वेव्ज?”
“हां, जो आपको बिल्कुल नजर नहीं आ रही होंगी—अदृश्य वेव्ज हैं वे—लेकिन यदि कोई भी वस्तु उनकी रेंज में दाखिल होती है तो तुरन्त ही—नीली-पीली आग का एक चकाचौंध कर देने वाला गोला नजर आता है जैसे बारूद जल उठा हो—'वेव्ज' से जब कोई वस्तु जलती है तो एक क्षण के लिए ऐसी चिंगारियां बिखरती हैं जैसी आप किसी भी वैल्डिग करने वाले की दुकान पर देख सकते हैं—सिर्फ एक क्षण के लिए वह वस्तु जलती हुई नजर आती है, अगले ही क्षण राख में बदलकर फर्श पर गिर जाती है। कोहिनूर और आपके बीच का वातावरण पुन: सामान्य नजर आता है, वेव्ज पुन: अदृश्य हैं।”
“इनकी काट?”
“मैं नहीं जानता।”
“क्या मतलब?”
“न गार्डनर ही कभी मुझे उस दरवाजे से आगे ले गया और न ही मेरे सामने स्वयं गया, इसलिए मैं नहीं जान सका कि उन वेव्ज को रास्ते से कैसे हटाया जा सकता है।”
“ठीक से समझाओ, वेव्ज की स्थिति क्या है?”
“जिस मेज पर कोहिनूर रखा है, बस यूं समझ लीजिए कि वह मेज इन वेव्ज के दायरे में है—मेज से तीन फीट दूर, उसके चारों तरफ ये वेव्ज एक वृत्त-सा बनाए हुए हैं—इनकी कल्पना आप उस रिंग से कर सकते हैं जिसमें आग लगा दी जाए—बिना वेव्ज के अन्दर से गुजरे आप दरवाजे से मेज तक नहीं पहुंच सकेंगे और वेव्ज के रहते, मेज से तीन फीट इधर ही जलकर खाक हो जाएंगे, सबसे खतरनाक बात तो वेव्ज का नजर न आना है—मुझे सारी स्थिति समझाने के लिए गार्डनर ने जेब से एक लोहे का टुकड़ा निकालकर मेज की तरफ फेंका, परन्तु मैंने उसे बीच ही में 'फक' से जलकर फर्श पर गिरते देखा।”
“खैर, मान लो कि कोई वेव्ज पार कर जाता है—उसके बाद?”
“मेज के पास जाकर आप आसानी से हीरे को उठा सकते हैं, लेकिन ठहरिए, कोहिनूर को वहां से उठाते ही एक साथ की मुसीबतें आप टूट पड़ेंगी?”
“हम जान चुके हैं।” विकास ने कहा—“कण्ट्रोल रूम से उपग्रह सिग्नल देने लगेगा।”
विजय ने कहा—“कोहिनूर के यहां से हटते ही म्यूजियम के उस हॉल में जार के अन्दर नजर आने वाला उसका अक्स भी गायब हो जाएगा और वहां की सिक्योरिटी सतर्क हो जाएगी।”
“इनके अलावा तीन काम और होंगे।”
“वे क्या-क्या?”
“चारों तरफ की इस्पाती दीवार में छुपे कैमरे आपका फोटो खींच लेंगे।”
“ओह!”
“कोहिनूर के अपनी जगह से हटते ही हॉल का वह दरवाजा 'खट्ट' से बन्द हो जाएगा।”
“इसका क्या मतलब?”
“आप कोहिनूर को उसकी जगह रख दीजिए, दरवाजा खुल जाएगा।”
“क....कमाल है!”
“मगर दुर्भाग्य की बात ये है कि आपको कोहिनूर को वापस मेज पर रखने का अवसर नहीं मिलेगा।”
“क्यों?”
“कोहिनूर के वहां से हटते ही तीसरा काम आप पर अन्धाधुन्ध गोली बरसाना होगा।”
“ये सारा सिस्टम किस तरह किया गया है?”
इसकी टैक्निकल जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन इतना पता है कि हॉल की दीवारों में बीस स्वचालित स्टेनगनें छुपी हुईं हैं, जिनका रुख मेज और उसके आसपास के इलाके की तरफ है—कोहिनूर के हटते ही वे सब चल पड़ेगी—उसी तरह, कोहिनूर के हटते ही दीवारों में छुपे स्वचालित कैमरे आपके फोटो खींच लेंगे और दरवाजा बन्द हो जाएगा— अब यह दरवाजा केवल दो ही तरीकों से खुल सकता है, अन्दर से तब जबकि आप कोहिनूर को वापस मेज पर रख दें और बाहर से इसे केवल अपनी विशेष चाबी से मिस्टर गार्डनर खोल सकते हैं।”
“अजीब मुसीबत है, कोहिनूर को मेज पर रखते ही दरवाजा खुल जाएगा और उठाते ही बन्द, फिर भला कोहिनूर को लेकर कोई बाहर कैसे निकल सकता है?”
“ये सारे इन्तजाम इसीलिए किए गए हैं कि कोई कोहिनूर को लेकर निकल ही न सके।”
“म....मगर!”
“हालांकि छुपी हुई गनें जो गोलियां आप पर बरसा रही होंगी, आप उनसे और कमरे के अन्दर एक रिंग के रूप में मौजूद वेव्ज से ही नहीं बच सकेंगे और यदि मान लिया जाए कि किसी तरह बचे रहे तो भी, जब तक हीरा (मेज पर नहीं है) आपके हाथ में है, अन्दर से दरवाजा नहीं खुलेगा, सीधी-सी बात है कि आप इस इस्पाती हॉल में कैद होकर रह गए हैं—म्यूजियम और उपग्रह द्रवारा कोहिनूर के अपनी जगह से हट जाने की सूचना बाहर हो चुकी है, मिस्टर गार्डनर पूरी फोर्स के साथ वहां आकर आपको गिरफ्तार कर लेंगे।””
“इस व्यवस्था में अब कोई ऐसी बात तो नहीं रह गई है जिसे तुम बताना भूल गए हो?”
“भूला तो नहीं था, मगर हां—फ्लो में चन्द बातें बताने से रह जरूर गई हैं।”
“जैसे?”
“बैंक संस्थान की इमारत के अन्दर, गार्डनर वाले ऑफिस का फर्श धीरे-धीरे घूमता हुआ नीचे जाता है, मैं बता ही चुका हूं कि ऐसा दराज में मौजूद 'एम' बटन के ऑन होने से होता है, मगर इसके अन्दर एक और फैक्टर भी है।”
“वह क्या?”
“यह फर्श ऑफिस टाइम यानी केवल सुबह के नौ बजे से शाम के छह बजे तक ही ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर आ-जा सकता है इस टाइम के बाद या पहले नहीं।”
“एम बटन ऑन करने पर भी नहीं?”
“नहीं।”
“ऐसा क्यों?”
“गार्डनर के बताए मुताबिक इस फर्श में कहीं एक 'टाइम लॉक' फिट किया गया है—यह लॉक स्वयं ही सुबह के ठीक नौ बजे खुल जाता है और शाम छह बजे तक खुला रहता है—छह पांच पर लॉक स्वयं ही पुन: बन्द हो जाता है और फिर अगले दिन सुबह नौ बजे ही खुलता है—यदि शाम के छ: पांच पर फर्श अपने रास्ते में कहीं बीच में है तो टाइम लॉक के बन्द होते ही यथास्थान रुक जाएगा।”
“बड़ा अजीब चक्कर है!”
“ऐसा इन्तजाम शायद यह सोचकर किया गया है कि चोर ऑफिस टाइम के बाद ही कोहिनूर तक पहुंचने में सुविधा महसूस करेगा, ऐसी अवस्था में यदि वह किसी प्रकार ऑफिस में पहुंच भी जाए तो फर्श का उपयोग न कर सके।”
“फर्श केवल नौ और छह के बीच ही चल सकता है और इस समय में गार्डनर वहां मौजूद रहता है, इसका मतलब तो ये हुआ कि गार्नडर की नजरों से बचकर कोई इस फर्श का उपयोग नहीं कर सकता?”
“इन्तजाम करने वालों की कोशिश तो यही है।”
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05-22-2020, 03:15 PM,
#63
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“क्या गार्डनर ऑफिस से एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेता?” विजय ने पूछा।
“लेता है, लेकिन बहुत कम—किसी आवश्यक कार्य के आ पड़ने पर ही, जिस दिन वह ऑफिस नहीं जाता उस दिन ऑफिस बन्द ही रहता है, उसके अलावा उस सीट पर अन्य कोई नहीं बैठता।”
“इसका मतलब ऐसे किसी दिन इस फर्श का इस्तेमाल किया जा सकता है?”
“किया तो जा सकता है, लेकिन...।”
“लेकिन....?”
“इस फर्श का कुछ-न-कुछ सम्बन्ध गार्डनर की कलाई में बंधी विशेष रिस्टवॉच से भी है, जैसे ही यह फर्श 'एम' बटन के ऑन होने पर घूमना शुरू करेगा वैसे ही गार्डनर की कलाई में बंधी रिस्टवॉच से एक सुई निकलकर गार्डनर की कलाई में रह-रहकर चुभने लगेगी और साथ ही 'पिक-पिक' की आवाज के साथ उसमें एक नन्हां-सा बल्ब भी जलने-बुझने लगेगा—ऐसा जरूर होगा—भले ही गार्डनर उस वक्त लंदन से हजारों मील दूर हो।”
“यानी कोहिनूर की तरफ कोई बढ़ रहा है, यह जानकारी गार्डनर को फर्श के घूमते ही मिल जाएगी।”
“बेशक!”
“तुमने फर्श को ऊपर से नीचे जाने की तरकीब तो बता दी लेकिन नीचे से ऊपर को...।”
“उसी 'एम' बटन को 'ऑफ' कर दीजिए।”
“कोई और ऐसी बात जो रह गई हो?”
“फिलहाल मुझे याद नहीं आ रही है और वैसे भी, अभी तो आप मुझसे अलफांसे की योजना जानना चाहेंगे—जब मैं आपको बताऊंगा, तो सम्भव है कोई बात निकल आए।”
“तो देर किसी बात की है प्यारे—हो जाओ शुरू!”
“यानी अलफांसे की योजना भी आप इसी वक्त जानना चाहते हैं?”
“हम तो प्यारे कबीरदास की बुद्धि का लोहा मानने वाले हैं—यह उसी ने कहा था कि—'काल करे सो आज कर, आज करे सो अब—पल में परले होएगी, बहुरि करैगो कब'—अगर हो सकता है प्यारे तुम कबीरदास से परिचित ही न हो—इसलिए केवल इतना ही समझ लो कि यह भी एक चीज थी और उसकी बात मानते हुए तुम फौरन टेपरिकॉर्डर की तरह चालू हो जाओ।”
चैम्बूर सचमुच चालू हो गया।
वे बहुत ही ध्यान से अलफांसे की योजना सुनने लगे, जब कोई बात समझ में नहीं आती थी या उलझनपूर्ण होती थी तो वे बीच-बीच में सवाल पूछ लेते थे, मगर ये हकीकत थी कि चैम्बूर के मुंह से वे ज्यों-ज्यों योजना सुनते गए त्यों-त्यों प्रशंसा और हैरत से उनकी आंखें फटती चली गईं—मगर पूरी योजना सुनने के बाद विजय की आंखें अजीब-से अंदाज में सिकुड़ गईं, उसे लगा कि या तो यह योजना अलफांसे की है ही नहीं या उसने चैम्बूर को पूरी ईमानदारी से नहीं बताई है, ऐसी कई समस्याएं थीं, जिनका योजना में कोई समाधान नहीं था।
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05-22-2020, 03:16 PM,
#64
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“न...नहीं...आह...नहीं...अ...आह...मैं आशा नहीं हूं—मैं ब्यूटी हूं...ब...ब्यू...आह...आह!” उस छोटे-से, परन्तु पूरी तरह सुसज्जित टॉर्चर रूम में आशा की मर्मान्तक चीखें गूंज रही थीं—उसके चेहरे पर तेज वॉट तीन-चार बल्बों का प्रकाश पड़ रहा था—इस वक्त वह टॉर्चर चेयर पर बैठी थी।
बिजली के शॉक दिए जा रहे थे उसे, ठीक सामने जेम्स बॉण्ड खड़ा सिगरेट पी रहा था—टॉर्चर रूम का दरवाजा अन्दर से बन्द था—रूम में केवल तीन ही व्यक्ति थे—आशा, बॉण्ड और बिजली के शॉक देने वाला शक्ल से ही जल्लाद नजर आता व्यक्ति।
बॉण्ड ने हाथ उठाकर जल्लाद को रुक जाने का संकेत दिया तो उसने शॉक देने बन्द कर दिए—टॉर्चर चेयर पर बंधी आशा निढाल-सी बड़बड़ाए जा रही थी—“न...नहीं...मैं आशा नहीं हूं—मेरा नाम ब्यूटी है—मैं किसी आशा को नहीं जानती।”
बार-बार यही बड़बड़ाती हुई वह निढाल-सी हो गई।
यह क्रम पिछले एक घण्टे से चल रहा था—टॉर्चर के दौरान आशा दो बार बेहोश हो चुकी थी—दोनों ही बार उसे अप्राकृ-तिक रुप से होश में लाया गया और पुन: तड़पाने वाली यातनाओं का सिलसिला शुरू किया गया, सवाल एक ही था—तुम आशा हो, भारतीय जासूस हो। आशा का एक ही जवाब था—मेरा नाम ब्यूटी है, मैं जापानी हूं—किसी आशा को नहीं जानती।”
यदि सच कहा जाए तो यह कोई ऐसा सवाल नहीं था, जिसका जवाब बॉण्ड को मालूम न हो—वह आशा ही है—इस सच्चाई को वह उतनी ही अच्छी तरह जानता था जितनी अच्छी तरह ये जानता था कि वह बॉण्ड है—फिर भी यह बात कि वह आशा है, आशा के मुंह से ही स्वीकार करवाना उसके लिए निहायत जरूरी था—आशा के चेहरे पर मौजूद मेकअप और उसके बालों को बाण्ड कई प्रकार के कैमिकल्स से धो चुका था, परन्तु न चेहरे पर ही कोई फर्क पड़ा और न ही बालों पर।
यह समझने में बॉण्ड को देर नहीं लगी कि मेकअप उन पदार्थों से किया गया है, जिन पर कोई रसायन कान नहीं करेगा, एक महीने के बाद मेकअप स्वयं ही कमजोर पड़ना शुरू होगा और दो महीने पूरे होते-होते चेहरा पूरी तरह साफ हो जाएगा।
अब यह साबित करने का कि कोहिनूर को प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन में भारतीय जासूस सक्रिय हैं, उसके पास एक ही रास्ता था— वह यह कि आशा के मुंह से कहलावाए कि वह आशा है।
इसी के लिए वह प्रयत्न भी कर रहा था।
एक कदम बढ़ाकर वह टॉर्चर चेयर के बिल्कुल करीब आ गया, दोनों होथों से आशा के गाल थपथपाता हुआ बोला—“आशा—आशा!”
“आं!” निढाल-सी आशा ने आंखें खोलने की कोशिश की। अधखुली आंखों से बाण्ड को देखती हुई वह बोली—“आशा—आशा!”
“तुम शायद यह सोच रही हो कि यदि तुमने अपना आशा होना स्वीकार कर लिया तो मैं बड़ी आसानी से विश्व के सामने यह सिद्ध कर दूंगा कि भारत के जासूस होने से विश्व स्तर पर भारत की गरिमा को आघात पहुंचेगा।”
“एक जापानी लड़की को जबरदस्ती भारतीय जासूस साबित करना चाहते हो मिस्टर बॉण्ड?”
“तुम न भी कहो, तब भी दुनिया के सामने हकीकत को साबित करने के लिए मेरे पास बहुत-से रास्ते हैं।”
“झूठ, झूठ ही रहता है।”
“मेरे पास भारतीय सीक्रेट सर्विस के सभी जासूसों की उंगलियों के निशान हैं, उस फाइल में तुम्हारी उंगलियों के निशान भी हैं, आशा, मैं तुम्हारे निशानों को उनसे मिलाकर साबित कर सकता हूं।”
“क्या सबूत है कि जिन निशानों से तुम मेरे निशानों को मिलाओगे वे भारतीय जासूस आशा के ही हैं?”
“त...तुम!” बेबसीवश तिलमिलाते हुए बॉण्ड ने दांत पीसे, दरअसल कुछ सूझ नहीं रहा था उसे—अजीब बात थी, उसके लिए आशा को आशा साबित करना एक समस्या बन गई थी—झुंझलाहट में उसने अपनी पूरी ताकत से एक जोरदार घूंसा आशा की नाक पर मारा।
आशा के कण्ठ से चीख निकल गई।
खून की धारा फूट पड़ी।
बॉण्ड ने बेरहमी से उसके बाल पकड़े, दांत भींचकर गुर्राया—“मैं सब जानता हूं कि ये मेकअप किन पदार्थों से किया गया है, अभी तक इन पदार्थों की रासायनिक काट नहीं बनी है—मगर दो महीने बाद ये मेकअप खुद तुम्हारा चेहरा छोड़ देगा आशा—तब खुद-ब-खुद ही साबित हो जाएगा कि तुम आशा हो—मैं तुम्हें छोङूंगा नहीं, दो महीने तक इसी टॉर्चर चेयर पर कैद रखूंगा—इस बीच ऐसी-ऐसी यातनाएं सहनी होंगी तुम्हें कि तुम्हारी रूह कांप जाएगी।”
“फिर भी ब्यूटी को आशा नहीं बना सकोगे बॉण्ड!”
“हुंह!” झुंझलाकर बॉण्ड ने जोरदार झटके के साथ उसके बाल छोड़ दिए, टॉर्चर चेयर की पुश्त से आशा के सिर का पिछला भाग टकराया, पुन: एक चीख निकल गई उसके मुंह से—मगर उस तरफ कोई ध्यान दिए बना बॉण्ड गुस्से की अधिकता में हलक फाड़कर चिल्लाय—“टॉर्चर करो इसे, जिस्म से सारा रक्त निचोड़ लो!” जल्लाद हरकत में आया—कक्ष में पुन: विजय-विकास को पुकारती हुई-सी आशा की चीखें गूंजने लगीं।
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05-22-2020, 03:16 PM,
#65
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
चैम्बूर की लाश की तरफ देखते विक्रम ने पूछा—“इसे तुमने क्यों मार डाला विजय?”
“क्यों, अब क्या तुम्हें इसका अचार डालना था प्यारे?”
“न...नहीं—मेरा मतलब....!” विक्रम सकपका-सा गया।
विजय ने कहा—“तुम्हारा कोई मतलब नहीं है प्यारे, ये बात कान खोलकर सुन लो कि इस वक्त हम मुजरिम हैं और जो व्यक्ति मुजरिमों के काम का न रहे, उसे वे जिन्दा नहीं छोड़ते—ऐसे व्यक्ति को तो बिल्कुल भी नहीं, जो आगे चलकर किसी को उनका राज बता सके या अड़चन बन सके और प्यारे, उस आदमी को तो दुनिया में अपना खुद पहलवान भी नहीं छोड़ता, जिसका 'रोल' खत्म हो गया हो।”
“म....मगर अब हम इसकी लाश का क्या करेंगे?” अशरफ ने पूछा।
विजय ने एक पल भी चूके बिना कहा—“मुरब्बा बनाकर इसे एक कुल्हड़ में रखेंगे और सुबह उठते ही, चारों यार उंगली से मुरब्बे को चाटा करेंगे—कसम से, साली सेहत बन जाएगी और फिर हम सीधा चैलेंज मोहम्मद अली को देंगे।”
“तुम मौका मिलते ही बकवास शुरू मत कर दिया करो विजय!”
“अमां मियां झानझरोखे, जब तुम साली बात ही गधे की लात जैसी करते हो तो हम बकवास क्यों न करें—यह भी साला कोई सवाल हुआ—करना ही क्या है, लंदन की किसी सुनसान पड़ी सड़क को आबाद कर आएंगे।”
“अब, यानी दिन में?”
“ऐसे प्यार-मोहब्बत के काम हमेशा रात में होते हैं प्यारे!”
“इसका मतलब सारे दिन लाश यहीं रहेगी?”
“बिल्कुल रहेगी, आपको कोई एतराज?”
इस बार अशरफ तो बुरा-सा मुंह बनाकर चुप रह गया, लेकिन विक्रम बोल पड़ा—“यदि रात के वक्त किसी ने हमें इस लाश को ठिकाने लगाते देख लिया तो?”
“फिर वही साली गधे की लात जैसी बात—अमां प्यारे विक्रमादित्य, जरा सोचो—तुम्हें पैदा होते हुए तो कई व्यक्तियों ने देखा था, याद है—नर्स को देखते ही तुमने कहा था—“हैलो, हाऊ डू यू डू।” तभी क्या हुआ था जो अब होगा, यही न कि मुस्कराती हुई नर्स ने तुमसे हाथ मिला लिया था और तुमने उसकी अंगूठी साफ कर दी थी।”
“बात कुछ कहो, बकता कुछ है!” विक्रम बड़बड़ाकर रह गया।
काफी देर से चुप इस बार विकास विजय से पहले ही कह उठा—“ये लाश तो ठिकाने लग ही जाएगी गुरू, फिलहाल तो सोचने वाली बात ये है कि सूरज निकल चुका है, दिन चढ़ता जा रहा है—अब हमें समय बिल्कुल नहीं गंवाना चाहिए, क्योंकि अगर दिन ज्यादा चढ़ गया तो इस इमारत के इर्द-गिर्द चहल-पहल बढ़ जाएगी और फिर हम अपने स्पेशल मुख्य द्वार का प्रयोग करके बाहर नहीं निकल सकेंगे— सारे दिन के लिए यहीं कैद हो जाएंगे, न कुछ काम कर सकेंगे और न ही खाने-पीने को कुछ मिलेगा।”
“ये हुई एक सौ इक्यावन पाउण्ड की बात, चलो प्यारे झानझरोखे—जेब से निकालकर रकम दो दिलजले को।”
“मगर उससे पहले हमें अपनी आज दिन भर की गतिविधियां सेट करनी हैं।” विकास ने विजय की बात पर कोई ध्यान दिए बिना कहा—“काम बहुत-से हैं, किसे क्या करना है?”
“हम जरा उस इमारत की भौगोलिक स्थिति को देखना चाहेंगे, जिसके माथे पर बैंक संस्थान लिखा है, क्योंकि कोहिनूर तक के लिए एकमात्र रास्ता वहीं से जाता है।”
“तब ठीक है गुरु, आप उसे देखिए—मैं आशा आण्टी को चैक करता हूं।”
विजय ने अशरफ से कहा—“तुम्हें दिलजले के साथ रहना है प्यारे, वहां किसी दृश्य विशेष को देखकर ये ज्यादा हाथ-पैर न चला सके—वहां अपने बॉण्ड प्यारे का जाल बिछा हो सकता है।”
अशरफ ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
“मुझे क्या करना है?” विक्रम ने पूछा।
“तुम्हें लूमड़ प्यारे को वॉच करना है, देखना है कि उसकी जो स्कीम हमें चैम्बूर ने बताई है, उस पर काम करता हुआ फिलहाल वह स्कीम के कौन-से स्पॉट पर है?”
“ओ.के.!” विक्रम का इतना कहना था कि एक साथ वे सभी चौंककर उछल पड़े।
कमरे में रखे फोन की घण्टी अचानक ही घनघना उठी।
उन सभी को जैसे एकदम सांप सूंघ गया, हक्के-बक्के-से वे एक-दूसरे के चेहरे की तरफ देखते रह गए—फिर सभी की दृष्टि तिपाई पर रखे उस 'नेवी ब्लयू' कलर के फोन पर स्थिर हो गई।
लगातार बजती हुई घण्टी पीटर हाउस के सन्नाटे को झकझोर रही थी—बहुत ही रहस्यमयी लग रही थी यह आवाज—अशरफ और विक्रम की तो टांगें कांपने लगी थीं—विजय और विकास जैसे महारथियों के चेहरों का रंग उड़ गया—सबके दिमाग में एक ही सवाल कौंध रहा था—“किसका फोन हो सकता है ये?”
पीटर हाउस तो खाली पड़ा है, लगभग सभी की नजरों में अदालत की सील लगी है इस पर—फिर आखिर कौन यहां किस मकसद से फोन करेगा—या किसी को मालूम है कि इस वक्त वे यहां हैं? घण्टी लगातार बजे जा रही थी।
“पीटर हाऊस बिल्कुल खाली पड़ा है प्यारे, रिसीवर उठेगा ही नहीं।”
“म....मगर!” विकास ने वही प्रश्न कर दिया—“आखिर कोई यहां फोन क्यों कर रहा है?”
घण्टी बन्द हो गई—उन सभी ने संतोष की सांस ली—विक्रम ने कुछ कहा, विषय 'फोन' ही था—और इससे पहले की कोई अन्य कुछ और कह सके, फोन बैल पुन: घनघना उठी—आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हुए वे सब पून: फोन को घूरने लगे—कुछ देर बजने के बाद बैल बंद हो गई—अभी उनके बीच मुश्किल से एक या दो वाक्य ही बोले जा सके थे कि बैल पुन: बजी और फिर यह सिलसिला कुछ इस तरह शुरू हुआ कि बन्द होने का नाम ही न ले रहा था—बीच-बीच में बन्द होकर बैल बजती रही—पन्द्रह मिनट गुजर गए—ये पन्द्रह मिनट उनके लिए बड़े तनावपूर्ण थे और अभी खत्म नहीं हुए थे, उस वक्त कम-से-कम दसवीं बार बैल बज रही थी जब विकास ने कहा—“कोई बार-बार कट करने के बाद यहीं का नम्बर मिला रहा है गुरु!”
“मुझे तो लगता है कि कोई हम ही से बात करना चाहता है।” अशरफ ने राय पेश की।
विक्रम बोला—“हमसे कौन बात करना चाह सकता है—और फिर किसी को क्या मालूम कि हम पीटर हाउस में हैं?”
“कोहिनूर के मामले में मुझे बड़े-बड़े शातिर दिलचस्पी लेते नजर आ रहे हैं प्यारे, मुमकिन है कि किसी ने पीटर हाउस में हमारी मौजूदगी का पता लगा लिया हो।”
“किसने?” विकास ने पूछा।
“कोई भी हो सकता है, शायद अपना लूमड़!”
“फिर क्या आदेश है?”
विजय ने एक पल जाने क्या सोचा, फिर बोला—“जो होगा देखा जाएगा प्यारे, इस बार यदि बैल बजे तो तुम रिसीवर उठा लेना!” उनकी वार्ता के बीच बैल एक बार फिर बन्द हो चुकी थी, जो विजय का वाक्य खत्म होने के साथ ही पुन: बजनी शुरू हो गई, विकास लम्बे-लम्बे दो ही कदमों में फोन के नजदीक पहुंच गया, अशरफ और विक्रम के दिल धक्-धक् कर रहे थे, जबकि लम्बे लड़के ने झट से रिसीवर उठाकर कान से लगाया, बोला—“हैलो!”
“चलो, ये साबित तो हुआ कि बहुत-सी इमारतें ऐसी भी होती हैं जिनके मुख्य द्वार पर अदालत की सील लगी रहती है, लेकिन लोग उसमें फिर भी बड़े आराम से रहते हैं न...न...रिसीवर नहीं रखना मिस्टर विकास!”
अपना नाम सुनते ही विकास दहाड़ उठा—“क....कौन तो तुम?”
“ही....ही....ही!” किसी के बहुत ही व्यंग्य से हंसने की आवाज लाइन पर गूंज गई—क्रोध की अधिकता के कारण लड़के का चेहरा दहककर लाल-सुर्ख हुआ जा रहा था, दूसरी तरफ से बोलने वाली रहस्यमय आवाज ने कहा—“मैंने यह जानने के लिए फोन नहीं किया कि पीटर हाउस खाली पड़ा है या उसमें कोई है—आप लोगों की वहां मौजूदगी की जानकारी तो मुझे पहले से ही थी, तभी तो सोलह मिनट तक भी रिसीवर न उठाए जाने के बावजूद मैं बार-बार रिंग करता रहा—ही...ही...ही...समझ सकता था कि आप लोग रिसीवर क्यों नहीं उठा रहे हैं—सोचा कि कभी तो आप यह समझेंगे कि फोन आप ही के लिए है।”
“तुम कोई काम की बात करते हो या मैं रख दूं फोन?” विकास दहाड़ा।
“ही....ही....ही...ही!” उसी व्यंग्य भरी, डरावनी-सी हंसी के बाद कहा गया—“मैं जानता हूं कि अब आप मेरी पूरी बात सुने बिना फोन नहीं रख सकेंगे मिस्टर विकास!”
“ये बार-बार किसका नाम ले रहे हो तुम?”
“ही....ही....ही...लो कर लो बात, हुजूर, ये आप ही का तो नाम है।”
“बको मत!”
“अच्छा हुजूर, नहीं बकता—आपका ऐसा ही हुक्म है तो अब फरमाए देता हूं— वो बात ऐसी थी जनाब कि मैं सोच रहा था—भूत न सही, भागते भूत का लंगोटा ही सही।”
“क्या मतलब?”
“कोहिनूर का जिक्र है जनाब, ये तो बड़ी नाइंसाफी है कि आप पूरा कोहिनूर ही डकार जाएं और मुझ गरीब को कुछ भी न मिले— मैं ऐसा नहीं होने दूंगा—आधी रोटी न सही, एक टुकड़ा तो इस कुत्ते के सामने भी डालना ही होगा हुजूर, वरना ये भूखा कुत्ता आप पर झपट पड़ेगा, आपको भी खाने नहीं देगा—ही....ही....ही!”
इसमें शक नहीं कि विकास का सारा चेहरा पसीने से तर-ब-तर हो गया था—दूसरी तरफ से बोलने वाले के अन्दाज और उसकी जानकारियों ने विकास जैसे लड़के को भी हिलाकर रख दिया था—आतंकित-सा कर दिया था उसे, फिर भी गुर्राकर बोला—“पता नहीं तुम कौन हो और क्या बक रहे हो?”
“झूठ मत बोलिए बन्दापरवर, मैं जो फरमा रहा हूं उसे तो आप खूब जानते हैं—हां, इस नाचीज को नहीं जानते—आपके पैरों की धूल हूं हुजूर।”
“क्या चाहते हो?”
“वह भी फरमा चुका हूं—अब तो सिर्फ आपकी जर्रानवाजी की जरूरत है, वैसे खाकसार को जल्दी कुछ नहीं है—चाहें तो अपने साथियों से सलाह-मश्वरा कर लें—मैं हुजूर को फिर फोन कर लूंगा, वैसे चैम्बूर नाम के उस गधे का रेंकना तो आपने बन्द कर ही दिया होगा—ही...ही...ही!” रिसीवर रख दिया गया।
“हैलो....हैलो!” विकास चीखता ही रह गया।
वस्तुस्थिति को समझकर आगे बढ़ते हुए विजय ने पूछा—“कौन था प्यारे?”
“पता नहीं!” रिसीवर क्रेडिल पर पटकते हुए विकास ने कहा।
“क्या कह रहा था?”
“कोहिनूर में से हिस्सा चाहता है।”
“क...क्या?” विजय के अलावा विक्रम और अशरफ भी इस तरह उछल पड़े मानो अचानक ही किसी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो, विकास ने कहा, “मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने अपना परिचय नहीं दिया, जबकि वह हमारे बारे में सब कुछ जानता है, यह भी कि हम विकास विजय, अशरफ और विक्रम हैं।”
विजय सहित तीनों के होश उड़ गए।
चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं—अशरफ, विक्रम की टांगों में तो ऐसा कम्पन हुआ था कि वे खड़े न रहे सके और लगभग लड़खड़ाकर धम्म् से सोफे पर गिर गए—विकास ने जेब से रूमाल निकालकर चेहरे से पसीना साफ किया, विजय जैसे व्यक्ति का दिमाग भी इस वक्त बुरी तरह झनझना रहा था, विकास ने फोन पर हुई सभी बातें उन्हें विस्तार से बता दीं।
“कौन हो सकता है ये?” विजय बड़बड़ाया।
मगर इस सवाल का जवाब कम-से-कम उनमें से किसी के पास नहीं था—फिर भी करीब तीस मिनट तक वे उसी के बारे में बात करते रहे, अंत में विजय ने कहा—“दिन काफी चढ़ गया है प्यारे—हमें यहां से निकल जाना चाहिए।”
“म....मगर इस फोन वाले का क्या होगा?”
“वह कोहिनूर में से हिस्सा मांग रहा है, इसका मतलब ये कि जब तक उसे यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि हम उसे कुछ देने वाले नहीं हैं, तब तक हमें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगा—उसने फिर फोन करने के लिए कहा है, इस बार उससे हम बात करेंगे प्यारे।”
“ल...लेकिन यदि हमारे बाद सारे दिन में उसने फिर फोन किया तो?”
“जो यह बात जानता है प्यारे कि हमने चैम्बूर का क्रियाकर्म कर दिया है, वह ये भी जरूर खबर रखेगा कि हम कब कहां हैं, पीटर हाउस में वह तभी फोन करेगा जब हम यहां होंगे।”
विजय के आदेश पर चैम्बूर की लाश वहां से उठाकर एक अन्य कमरे में बन्द कर दी गई और फिर वहां से निकलने के लिए वे दूसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में पहुंच गए जिसमें वह खिड़की थी—जो दरअसल उनके लिए मुख्य द्वार का काम कर रही थी—सबसे पहले उन्होंने खिड़की से बाहर झांककर यह देखा कि आसपास कोई है तो नहीं—विजय ने काफी बारीकी से गली और आसपास का निरीक्षण किया।
फिलहाल कहीं कोई नहीं था, हर तरफ खामोशी—सन्नाटा!
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05-22-2020, 03:16 PM,
#66
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“रास्ता साफ है दिलजले, लपक लो।” विजय के कहते ही विकास ने खिड़की की चौखट पर पैर रखकर हाथ बाहर निकाला और अगले ही पल रेनवाटर पाइप पर झूल गया और फिर बन्दर की तरह तेजी से नीचे उतरता चला गया—उसके बाद विक्रम और विक्रम के बाद विजय के हुक्म पर अशरफ!
विजय खिड़की के बीचोबीच खड़ा था और खिड़की पार करके अशरफ अभी पाइप पर झूला ही था कि गड़बड़ हो गई—सामने वाली इमारत की दूसरी मंजिल की बालकनी में एक बच्चा नजर आया—उसी तरफ देखता हुआ विजय बौखलाया-सा हड़बड़ाया—“जल्दी...जल्दी करो झानझरोखे।”
“क्या बात है?” पाइप पर झूल रहे अनजान अशरफ ने चकराकर पूछा।
बालकनी में खड़ा बच्चा इसी तरफ देख रहा था, दृष्टि उसी पर टिकाए विजय दांत भींचकर गुर्राया—“अबे जल्दी कर बेवकूफ, उतर जा, पीछे वह...।”
और विजय ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया।
बड़ी ही मोहक मुस्कान के साथ मुस्कराता हुआ बच्चा 'हैलो' के अन्दाज में विजय को हाथ हिला रहा था, विजय के तिरपन कांप गए—बौखलाकर उसने भी अटपटी-सी मुस्कान के साथ हाथ हिलाते हुए बहुत धीमे से कहा—“हैलो बेटे।”
पाइप पर झूल रहे अशरफ ने विजय को ऐसा करते देखा तो उसने भी गर्दन पर घुमाकर उस तरफ देखा और उस नौ-दस साल के बच्चे ने अशरफ को भी हाथ हिलाकर 'हैलो' किया।
अशरफ के हाथ से पाइप छूटते-छूटते बचा।
पाइप पर लटका सारा जिस्म सूखे पत्ते की तरह कांप गया, हाथ-पांव फूल गए उसके।
“अबे उतर जा बेवकूफ, अब क्या यहीं चिपका रहेगा?” अजीब-सी मुस्कराहट में विजय दांत भींचकर गुर्राया, मगर अगले ही पल होंठों पर मुस्कान बिखेरकर उसे हाथ हिलाना पड़ा, क्योंकि बच्चा उन्हें यहां देखकर बहुत खुश नजर आ रहा था और बार-बार हैलो के अन्दाज में हाथ हिला रहा था—बड़बड़ाया-सा अशरफ पाइप के सहारे नीचे उतरता ही चला गया।
विजय ने पाइप को पकड़ने के लिए अभी हाथ खिड़की के बाहर निकाला ही था कि उसे बच्चे के पीछे हल्की-सी परछाईं का आभास हुआ—जबरदस्त फुर्ती के साथ विजय न केवल कमरे के अन्दर सरक गया, बल्कि खिड़की भी बंद कर दी उसने, शीशे में से झांककर उसने बालकनी की तरफ देखा।
नाइट गाउन पहने एक महिला बच्चे से कुछ बात कर रही थी— उस वक्त विजय के माथे पर पसीना उभर आया, जब उसने बच्चे को इस तरफ इशारा करके कुछ कहते देखा, बच्चे के होंठ हिल रहे थे—महिला ने खिड़की की तरफ देखा।
विजय को वह गुस्से में नजर आई—विजय का दिल इस वक्त बड़ी तेजी से धड़क रहा ता, अचानक ही महिला ने बच्चे के गाल पर एक जोर का चांटा मारा और जाने क्या-क्या बड़बड़ाने लगी।
बच्चा रोने लगा।
कलाई पकड़कर महिला उसे जबरदस्ती खींचकर अन्दर ले गई—अब बालकनी बिल्कुल खाली पड़ी थी—विजय फुर्ती से खिड़की खोलकर पाइप पर झूल गया, खिड़की को बन्द करके वह बन्दर की तरह उतरता चला गया—मगर वह दस वर्षीय बच्चा अभी भी उसकी आंखों के सामन चकरा रहा था।
गोरा रंग, सेब-से लाल गाल, भूरी आंखों और छोटे-छोटे सुनहरे बालों वाले उस बच्चे ने नीला नेकर और फुल बाजू वाला लाल रंग का स्वेटर पहन रखा था—बहुत खूबसूरत बच्चा था वह और इसी मोहक मुस्कान के साथ बालकनी में खड़ा विजय को अभी तक हैलो के अन्दाज में हाथ हिलाता हुआ महसूस हो रहा था।
पतली गली को तेजी के साथ पार करते विजय के माथे पर पसीना झिलमिला रहा था।
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05-22-2020, 03:18 PM,
#67
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“आप किस नतीजे पर पहुंचे अंकल?”
“मैं तो ये समझता हूं कि आशा के किसी भी तरफ अब कोई 'स्पाई' नहीं है।” अशरफ ने कहा—“उस पर किसी भी माध्यम से कोई नजर नहीं रखी जा रही है, शायद उसने अपने व्यवहार से म्यूजियम की सिक्योरिटी और बॉण्ड को आश्वस्त कर दिया है और उन लोगों ने इसे साधारण जापानी पर्यटक समझकर वॉच करना बंद कर दिया है।”
“सारे दिन की जांच-पड़ताल के बाद मेरा भी यही ख्याल है।” विकास ने कहा।
“इसका अर्थ यही निकलता है कि तुम्हारे द्वारा संगआर्ट के प्रदर्शन से जो अनुमान विजय ने लगाया था, वह सौ प्रतिशत सही नहीं है, बॉण्ड का ध्यान ब्यूटी के आशा होने पर नहीं गया है।”
“तो अब आपकी राय क्या है?”
“किस बारे में?”
“क्यो न आज आशा आण्टी को एलिजाबेथ से अपने साथ पीटर हाउस ले चलें?” विकास ने कहा—“फिलहाल तो बॉण्ड का ध्यान भी उनकी तरफ नहीं है, यदि कल चला गया तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।”
“इस बारे में यदि हम विजय की राय के बाद कल ही कुछ करें तो ज्यादा अच्छा होगा।”
“जैसी अपनी मर्जी, वैसे मेरे ख्याल से तो ऐसी खतरे वाली कोई बात नहीं है।”
“आशा के आसपास तो खतरे जैसी कोई बात नजर नहीं आती।” अशरफ ने कहा—“मगर आज मुझे स्मिथ स्ट्रीट पर खतरा जरूर नजर आ रहा है, सोच रहा हूं कि पीटर हाउस जाएं या न जाएं।”
“ऐसा क्यों?”
“अरे, क्या तुम भूल गए—बताया तो था कि सुबह मुझे और विजय को अपनी बालकनी से एक बच्चे ने उस वक्त देख लिया था जब मैं पाइप के सहारे नीचे उतरने की कोशिश कर रहा था।”
“छोड़िए भी अंकल, आप एक बच्चे से डर रहे हैं?”
“बात बच्चे की नहीं विकास, हालात की है। उस बच्चे को शायद मुझे पाइप पर लटका देखकर अच्छा लगा और इसीलिए उसने खुश होकर हैलो की—मगर सच तो ये है कि उस क्षण मेरे हाथ-पांव ठण्ठे और सुन्न पड़ गए थे, खुदा का ही शुक्र है कि मैं वहीं से नीचे नहीं गिर पड़ा और अब....!”
“अब?”
“यदि उसने अपने मम्मी-डैडी या अन्य किसी बड़े से कह दिया होगा कि उसने वहां दो आदमियों को देखा है तो जरा सोचो—क्या मुसीबत नहीं आ सकती—सारी स्मिथ स्ट्रीट को मालूम है कि पीटर हाउस बिल्कुल खाली पड़ा है—उसकी खिड़की या पाइप पर किन्हीं व्यक्तियों की मौजूदगी का क्या अर्थ है?”
“आपके ख्याल से क्या हो सकता है?”
“स्मिथ स्ट्रीट के लोग इकट्टे होकर उस बच्चे के बयान पर थाने में रिपोर्ट लिखवा सकते हैं, ऐसी स्थिति में सम्भव है कि आज रात पीटर हाउस की निगरानी पुलिस करे या....!”
“या?”
“सम्भव है कि उस बच्चे के मां-बाप बच्चे द्वारा देखा गया दृश्य पीटर के किसी लड़के को बता दें, अगर ऐसा हो गया तो बखेड़ा ही खड़ा हो सकता है—वे एक-दूसरे पर उस खिड़की को 'मुख्य द्वार' बनाकर पीटर हाउस को इस्तेमाल करने का आरोप लगा सकते हैं—उनके आरोपों की जांच के लिए अदालत चाबी पुलिस को सौंपकर पीटर हाउस की भीतरी स्थिति की रिपोर्ट मांग सकती है।”
“और पीटर हाउस के एक कमरे में चैम्बूर की लाश है!”
“उसी की वजह से तो मैं ज्यादा चिंतित हूं और उसी की वजह से आज की रात पीटर हाउस जाना भी बहुत जरूरी है, यदि आज रात लाश ठिकाने न लगाई गई तो कल से उसमें बदबू उठने लगेगी और फिर वह बदबू हमारे लिए मुसीबत बन जाएगी, पीटर हाउस के पड़ोसियों के नथुनों तक बदबू पहुंच गई तो समझ लो कि हम सब बेभाव में ही लद जाएंगे।”
“इन सब बातों का तो एकमात्र यही हल है अंकल कि आज हम बहुत ज्यादा सावधानी के साथ पीटर हाउस में दाखिल हों, पहले अच्छी तरह वॉच करें कि कहीं कोई असाधारण बात तो नहीं है।”
“मजबूरी है, जानना तो होगा ही।” अशरफ ने बड़बड़ाकर मानो स्वयं ही से कहा।
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05-22-2020, 03:18 PM,
#68
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
उस वक्त वातावरण में छाई रात की नीरवता को दूर बज रहे किसी चर्च के घण्टे भंग कर रहे थे, जब बिस्तर पर लेटे अलफांसे ने धीरे-से अपनी कलाई में बंधी रिस्टवॉच में समय देखा।
पूरे बारह बज रहे थे।
शानदार कमरे में नाइट बल्ब का भरपूर प्रकाश बिखरा हुआ था—अलफांसे ने एक नजर बगल में लेटी इर्विन पर डाली—वह सो रही थी—फूल-सा कोमल और खूबसूरत मुखड़ा इस वक्त उसके जागे रहने की अवस्था से कहीं ज्यादा मासूम लग रहा था—सुनहरे और लम्बे बाल डनलप के कोमल तकिए पर बिखरे पड़े थे।
एक ही लिहाफ के अन्दर थे, शनील के कवर वाला खूबसूरत लिहाफ—लिहाफ से बाहर सिर्फ दोनों का चेहरा ही था।
अलफांसे ने ध्यान से इर्विन की तरफ देखा।
शायद इस नजरिए से कि यदि इस वक्त वह उठे तो इर्विन की नींद टूटेगी तो नहीं?
वैसे पत्नी होने का पूर्ण सुख प्राप्त करने के बाद वह मीठी-मीठी नींद सो रही थी—उसके नथुनों से निकली गर्म सांसें अलफांसे के चेहरे से टकरा रही थीं।
उधर, चर्च ने बारह बार टनटनाकर अपनी ड्यूटी पूरी की—इधर, अलफांसे ने बहुत ही आहिस्ता से इर्विन की कलाई अपने सीने से हटाई और धीरे-धीरे सरककर लिहाफ से निकलने लगा।
बिस्तर चूंकि ज्यादा ही गद्देदार था इसलिए इर्विन झूलती-सी महसूस हुई—उसने कुम्हलाकर करवट ली—जब वह ऐसा कर रही थी तब अलफांसे ने सांस रोककर आंखें बन्द कर लीं।
फिर, दस मिनट बाद वह पलंग से उतरकर फर्श पर खड़ा होने में कामयाब हो गया—उसके जिस्म पर इस वक्त केवल एक लुंगी और बनियान था—उसने जल्दी-से कपड़े पहने।
पैरों में जूते डालकर वह दबे पांव दरवाजे की तरफ बढ़ा, अपनी तरफ से उसने बहुत ही आहिस्ता से चिटकनी खोली किन्तु फिर भी हल्की-सी 'कट' की जो आवाज हुई तो इर्विन की आंख खुल गई, अलफांसे को दरवाजे पर देखकर वह चौंक पड़ी—अभी उसे पुकारने ही जा रही थी कि रुक गई, पुकारने के लिए खुला मुंह उसने बिना कुछ कहे ही बन्द कर लिया और ऐसा शायद उसने अपने पति की अवस्था देखकर किया, इस वक्त अलफांसे उसे एक रहस्यमय चोर-सा नजर आया—सचमुच, उसका प्रत्येक एक्शन और हाव-भाव चोर जैसा ही था।
चिटकनी खुलने पर उसने चोर दृष्टि से बेड की तरफ देखा, इस क्षण इर्विन ने आंखें बन्द कर लीं—और यहां अन्तर्राष्ट्रीय मुजरिम सचमुच धोखा खा गया—उसे बिल्कुल इल्म नहीं हो सका था कि इर्विन चिटकनी की आवाज से जाग चुकी है, उसे सोती ही समझकर वह दरवाजा पार कर गया।
दरवाजा बन्द होते ही उसने पुन: आंखें खोल दीं।
अभी लिहाफ से बाहर निकलने के लिए उसने कोहनियां गद्दे पर टेकी ही थीं कि दरवाजे की बाहर वाली सांकल बन्द होने की धीमी-सी सरसराहट की आवाज आई।
इर्विन लिहाफ के अन्दर ही ठिठककर रह गई।
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05-22-2020, 03:18 PM,
#69
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
उस वक्त करीब साढ़े बारह बज रहे थे, जब अशरफ और विकास पीटर हाउस के उस हॉल में पहुंचे, विजय और विक्रम वहां पहले ही से मौजूद थे, उन्हें देखते ही सोफे से उठकर खड़े होते हुए विजय ने कहा—“आओ, प्यारे, लेकिन तुम्हें तो बारह बजे आना था—तीस मिनट लेट कैसे?”
“पीटर हाउस के बाहर तो हम पौने बारह बजे ही पहुंच गए थे लेकिन दाखिल अब हुए हैं।”
“किस खुशी में?”
“चैक करते रहे कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है, सुबह उस बच्चे ने हमें देख लिया था न!”
“हां प्यारे, देख तो लिया था और सबसे ज्यादा बेवकूफी तो तुमने दिखाई थी, तुम्हें बन्दर की तरह पाइप पर लटका देखकर ही उसे ज्यादा मजा आया था और वह 'हैलो' करने लगा।”
“उसने किसी से कुछ कहा तो नहीं?”
“उसी वक्त एक महिला से कहा तो था, शायद वह उसकी मां थी, लेकिन उसकी बात को शायद उसने बचकानी बात ही समझा—किसी वजह से उस वक्त वह क्रुद्ध थी, बच्चे को मारती हुई बालकनी से ले गई।”
“शुक्र है।” एक ठण्डी सांस लेता हुआ अशरफ सोफे पर बैठ गया।
“तुम्हारे अभियान का क्या रहा यानी अपनी गोगियापाशा कैसी है?”
“बिल्कुल ठीक और सुरक्षित है।” अशरफ ने कहा—“अभी तक वह एलिबेथ होटल के कमरे में ही ठहरी हुई है और हम दोनों की राय में अब उसे कोई जासूस वॉच नहीं कर रहा है।”
“गुड!”
उत्साहित-से विकास ने पूछा—“तो क्या हम आशा आण्टी को यहां ले आएं गुरु?”
“कल रात तक और वॉच करना, यदि स्थिति में कोई परिवर्तन न देखो तो ले आना।”
“ओ.के. गुरू!” विकास को जैसे मनचाही मुराद मिल गई, फिर उसने विजय से पूछा—“आपके अभियान का क्या रहा गुरु?”
“बस इतना ही समझ लो प्यारे कि सारी स्थिति चैम्बूर के बताए मुताबिक ही है।”
“और आप विक्रम अंकल, क्या आप पता लगा सके कि अलफांसे गुरु अपनी योजना के कौन-से स्पॉट पर हैं?”
“नहीं। मैं सारे दिन उसे वॉच करता रहा, लेकिन उसने कहीं भी एक क्षण के लिए भी कोई ऐसी हरकत नहीं की, जिससे यह लगे कि वह कोहिनूर के चक्कर में है या उस स्कीम पर काम कर रहा है जो चैम्बूर ने बताई थी—मुझे लगता है कि....!” वह कहता कहता रुक गया।
“बोलो प्यारे, रुक क्यों गए—कैसा लगता है तुम्हें?”
“यह कि इस बार वह किसी स्कीम पर काम नहीं कर रहा है—वह अपनी शादी और इर्विन के प्रति गम्भीर है। मेरे ख्याल से तो नए सिरे से सोचने की जरूरत है—जरा सोचो विजय, ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि अलफांसे सचमुच अपनी आपराधिक जिन्दगी से ऊब चुका हो?”
“लो प्यारे, अपने लूमड़ ने तो विक्रमादित्य की खोपड़ी पर भी घुमा दिया जादू का डंडा—खैर, फिलहाल लूमड़ की तारीफ में गंवाने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है, बहुत-से काम करने हैं।”
“जैसे?”
“सबसे पहले तो उस साले चैम्बूर की लाश को ही यहां से निकालना है, उसके बाद आराम से बैठकर आइस्क्रीम बनानी है कि लूमड़ को हमें किस स्पॉट पर दबोचना है?”
“चलो—पहले लाश का ही इन्तजाम करते हैं।” कहने के साथ ही विकास उस कमरे की तरफ बढ़ गया, जहां चैम्बूर की लाश थी—विजय, अशरफ और विक्रम भी उसके साथ ही थे।
दरवाजा खोलते ही वे सब उछल पड़े।
“ह...हैं...लाश कहां गई?” विक्रम के कंठ से चीख-सी निकली थी।
कमरे में सचमुच कोई लाश नहीं थी— सभी अवाक्-से स्टैचुओं की तरह उस स्थान को देखते रह गए, जहां वे लाश छोड़ गए थे—विजय मूर्खों की तरह पलकें झपका रहा था।
विकास सहित तीनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
“लाश चली कहां गई?” अशरफ बड़बड़ाया।
विजय बोला—“लाश चलकर नहीं प्यारे, उड़कर गई है।”
“क्या बकते हो?” अशरफ झुंझला-सा गया।
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05-22-2020, 03:19 PM,
#70
RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
अलफांसे हॉल के दरवाजे पर ही ठिठक गया।
वे चारों उसे एक कमरे के दरवाजे पर बातें करते नजर आ रहे थे, वहीं ठिठककर उसने उनकी बातें सुनीं और उन्हें सुनकर इस नतीजे पर पहुंचा कि उस कमरे में से कोई लाश गायब हो गई है—उसी ने इन सबको हैरान-परेशान कर रखा है।
अलफांसे ने अनुमान लगा लिया कि वह लाश चैम्बूर की रही होगी—उनकी तरफ बढ़ने के लिए अभी अलफांसे ने पहला कदम हॉल में रखा ही था कि फोन की घण्टी बज उठी।
बिजली की-सी फुर्ती के साथ अलफांसे ने खुद को दरवाजे के पीछे सरका लिया—इस बात ने उसे भी हैरान कर दिया था कि इन चारों को किसी ने यहां फोन किया है।
फोन पर होने वाली बातें अलफांसे सुनना चाहता था, इसीलिए सांस रोककर दरवाजे के पीछे वाली दीवार से चिपक गया, यहां से वह उन चारों को स्पष्ट देख सकता था।
और उन चारों की स्थिति तो आप न ही पूछें तो बेहतर है।
टेलीफन के घनघनाने की आवाज सुनते ही वे चारों फिरकनी की-सी तेजी के साथ एक ही धागे से बंधी चार कठपुतलियों की तरह पलट गए, वहीं—जड़वत-से होकर वे हक्के-बक्के-से फोन को घूरने लगे—इसमें शक नहीं कि उन चारों की शक्ल इस वक्त देखने लायक थी। टेलीफोन की घण्टी बन्द होने का नाम ही न ले रही थी।
अचानक आगे बढ़ते हुए विजय ने कहा—“इस बार हम बात करते हैं प्यारे!” वे तीनों भी उसके पीछे लपक-से पड़े थे।
“हैलो!” विजय ने रिसीवर उठाते ही कहा।
“ही....ही....ही!” वही व्यंग्य में डूबी डरावनी हंसी—“तो इस बार बड़े साहब बोल रहे हैं विजय बाबू।”
“हां प्यारे, हम ही बोल रहे हैं।”
“ही...ही....ही...बोलिए हुजूर, जरूर बोलिए—बन्दे की क्या बिसात है जो आपके बोलने पर पाबन्दी लगाए, वैसे मेरा ख्याल ये है कि जनाब कि आप इस वक्त चैम्बूर की लाश के लिए परेशान होंगे।”
“ओह, तो लाश तुमने गायब की है, प्यारे?”
“बन्दे की क्या बिसात है सरकार, बस आपकी जर्रानवाजी है—वैसे इस खाकसार ने लाश केवल उस कमरे से हटाई है, जहां आप लोगों ने रखी थी—पीटर हाउस से नहीं।”
“इस हरकत का मतलब?”
“मेरी हर हरकत का एक ही मतलब है जनाब, आपके दिमाग में यह जंचा देना कि ये नाचीज भी अगर पूरी रोटी का नहीं तो एक टुकड़े का हकदार जरूर है—मैं बहुत सब्र वाला जीव हूं सरकार—सिर्फ एक परसेंट पर ही खुश हो लूंगा।”
“क्या तुम जानते हो कि कोहिनूर की पूरी कीमत की एक परसेंट रकम ही कितनी बैठेगी?”
“मैं क्या जानूं साहब, आप बड़े आदमी हैं—आप ही को मालूम होगा, ईमानदारी से आप खुद ही कोहिनूर की कीमत आंक लीजिए और फिर उसका एक परसेंट मुजे दे दीजिए।”
“अगर हम तुम्हारी इस ऑफऱ को ठुकरा दें?”
“ठुकरा दीजिए साहब, यो कोई नई बात नहीं होगी—आप जैसे बड़े लोग, हम जैसे गरीबों के पेट पर तो सदियों से लात मारते आए हैं—लेकिन भले ही लात मारना न सीखा हो, चिल्लाना हमने भी सीख लिया है हुजूर—लाश पीटर हाउस में ही कहीं है, जी तोड़ कोशिश के बावजूद तलाश करने पर आपको मिलेगी नहीं और सूरज निकलते-निकलते उसमें से बदबू उठने लगेगी।”
“तुम हमें धमकी दे रहे हो?”
“धमकी देने जैसी हमारी औकात ही कहां है, सरकार?”
“अच्छा ठीक है, तुम्हें जो सौदा करना है—सामने आकर करो।”
“ही...ही...ही..शुक्रिया हुजूर, मैं आपकी हुकमउदूली नहीं कर सकता—कल रात मैं पीटर हाउस में ही आपके दर्शन करने हाजिर हो रहा हूं।”
“अब बताओ, लाश कहां है?”
“ही...ही...ही...माफ करना साहब, सौदा होने से पहले तो मैं इस मसले में आपकी कोई खिदमत नहीं कर सकूंगा, मगर डरिए नहीं—मैंने लाश को ऐसे इन्तजाम से रखा है कि अगले छत्तीस घण्टे तक उसमें से न कोई बदबू उठेगी, न खुशबू—ही...ही...ही!” रिसीवर रख दिया गया।
विजय ने बिना उनमें से किसी के पूछे ही टेलीफोन पर हुई सारी वार्ता उन्हें समझा दी, बोला—“ये जो भी कोई है प्यारे, पहुंची हुई चीज है—हम सबकी आवाज तक पहचानता है।”
“इसका मतबल ये हुआ जासूस प्यारे कि मेरे अलावा भी ऐसा कोई है, जो ये जानता है कि तुम यहां बशीर, मार्गरेट, डिसूजा, चक्रम और ब्यूटी बनकर कोहिनूर के चक्कर मे आए हो और यह भी कि इस वक्त पीटर हाउस पर लगी अदालती सील का भरपूर फायदा उठा रहे हो।” कहता हुआ अलफांसे हॉल में दाखिल हुआ तो वे चारों ही इस तरह उछल पड़े जैसे अचानक ही कमरे का फर्श गर्म तवे में बदल गया हो।
सन्नाटे की अवस्था में रह गए वे—गुमसुम, जड़वत-से।
ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।
कई क्षण तक उनमें से किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली थी—अलफांसे की शक्ल यहां देखने की कल्पना तो शायद विजय ने भी नहीं की थी, इसीलिए उसके दिमाग की समस्त नसें बुरी तरह झनझना गईं और वह अवाक्-सा अलफांसे को देखता रह गया। अपनी सदाबहार, चिर-परिचित मुस्कान के साथ अलफांसे उनकी तरफ बढ़ रहा था और एक ही क्षण में विजय ने यह निर्णय ले लिया कि अब अलफांसे से अपनी हकीकत छुपाने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए बोला—“तुम जिन्न की तरह यहां कहां से प्रकट हो गए लूमड़ प्यारे?”
“तुम शायद भूल गए कि कहीं भी पहुंच जाना अलफांसे की खूबी है।”
अब, विकास ने आगे बढ़कर पूरी श्रद्धा के साथ अलफांसे के चरण स्पर्श कर लिए—जब वह झुका हुआ था, तब अलफांसे ने उसका कान पकड़ा और उमेंठकर उसे ऊपर उठाता हुआ बोला—“बहुत शैतान हो गया है बेटे, सामने पड़ने पर पैर छूता है और बाद में गुरु के खिलाफ योजना बनाता है।”
“जब आप क्राइम करेंगे गुरु, तब मैं आपको बख्शूंगा नहीं।”
अलफांसे ने बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ कहा—“कम-से-कम इस बार क्राइम हम नहीं बेटे तुम कर रहे हो।”
“मुझे सब मालूम है गुरु कि कौन क्या कर रहा है!”
“तुम्हें कुछ मालूम नहीं है बेटे, सिवाय उसके जो इस झकझकिए ने तुम्हारे दिमाग में भरा है।”
आगे बढ़कर विजय ने कहा—“ये कौन-सा पैंतरा है लूमड़ मियां?”
“मुसीबत की जड़ तो यही है कि तुम मेरी हर बात, हर एक्टिविटी में कोई-न-कोई पैंतरा ढूंढने लगते हो और इस बार सच ये है कि तुम ज्यादा चतुर होने की वजह से धोखा खा रहे हो।”
“क्या मतलब?”
“एक पुरानी कहावत है विजय, यह कि 'बद अच्छा, बदनाम बुरा'—मुकद्दर से इस वक्त मैं इसी कहावत में कसा हुआ हूं—बदनाम न होता तो तुम शायद मेरी बात का यकीन कर लेते—मगर, दरअसल गलती तुम्हारी भी नहीं है—मेरा पिछला कैरेक्टर ही ऐसा रहा है कि कम-से-कम तुम चाहकर भी विश्वास नहीं कर सकते कि अलफांसे इस बार कोई चाल नहीं चल रहा है, उसका कोई पैंतरा नहीं है।”
“तुम ये बकरे की तीन टांग वाला राग अलापना बन्द करोगे या नहीं?”
“यदि सच पूछो विजय तो वो ये है कि बकरे की तीन टांग मैं नहीं, तुम साबित करना चाहते हो।”
“मतलब ये कि तुम कोहिनूर के चक्कर में नहीं हो?”
अलफांसे ने वजनदार स्वर में कहा—“बिल्कुल नहीं हूं।”
“और तुम ये भी चाहते हो कि हम तुम्हारी इस बकवास पर यकीन कर लें?”
“बेशक यही चाहता हूं।”
“क्यों—मेरा मतलब यदि तुम सचमुच दूध में धुल चुके हो तो हमारे सक्रिय रहने से तुम्हारे पेट में दर्द क्यों हो रहा है? हम शक कर रहे हैं तो करने दो—जब तुम किसी चक्कर में हो ही नहीं तो तुम्हारा बिगाड़ क्या लेंगे, क्यों तुम्हें बार-बार हमें सन्तुष्ट करने की आवश्यकता पड़ती है?”
“दुख की बात है कि तुम मेरी हर बात का अर्थ उल्टा ही निकाल रहे हो—मगर फिर जब मैं गहराई से सोचता हूं तो इस नतीजे पर पहुंचता हूं कि तुम गलत नहीं हो—गलत था मेरा अतीत—अपने विगत में अलफांसे कभी एक सरल रेखा में नहीं चला, हमेशा आड़ा-तिरछा ही रहा—अलफांसे की हर बात में चाल, हर एक्टिविटी में साजिश होती थी—और अब यदि वही अलफांसे सरल रेखा में चले तो तुम यकीन करो भी तो क्यों—मगर सच मानो दोस्त—आज से साढ़े तीन महीन पहले वह अलफांसे इर्विन की झील-सी नीली गहरी आंखों में डूब चुका है—मैं रैना बहन की कसम खाकर कहता हूं कि मैं अब वो अलफांसे नहीं हूं....व....विकास, हां—शायद तुम मेरे द्वारा खाई गई इसकी कसम पर विश्वास कर सको—इधर देखो दोस्त, ये विकास है, तुम जानते हो कि अपराधी जीवन में मैंने यदि किसी से प्यार किया है तो वह ये है, विकास—मेरा बच्चा—मैं इसके सिर पर हाथ रखकर कसम खाता हूं कि इर्विन से शादी मैंने कोहिनूर के चक्कर में नहीं की है।”
यह सब कुछ अलफांसे ने कुछ ऐसे सशक्त ढंग से कहा था कि एक बार को तो विजय जैसे व्यक्ति का विश्वास भी डगमगा गया—अशरफ, विक्रम और विकास, विजय की तरफ देखने लगे थे—विकास के सिर पर अलफांसे ने अभी भी हाथ रखा था, स्वयं को संभालकर विजय ने कहा—“तुम कब चाहते हो प्यारे कि हममें से कोई या दिलजला जिन्दा रहे—मगर किसी की झूठी कसम खाकर उसे मार देने का यह भारतीय शस्त्र, दरअसल अब खट्टल हो चुका है, अपने दिलजले को बुखार भी नहीं चढ़ेगा।”
बड़े दुखी भाव से अलफांसे ने विकास के सिर से हाथ हटा लिया, बोला—“किसी ने सच कहा है कि वेश्या यदि सचमुच जोगन बनकर मन्दिर में बैठ जाए—भगवान की भक्ति में लीन हो जाए तो उसे जोगन वे तो मान सकते हैं, जो उसके अतीत को नहीं जानते—जो अतीत को जानते हैं यानी अपनी समझ में बहुत ज्यादा बुद्धिमान होते हैं, वे उस बेचारी को उसी दृष्टि से देखेंगे—वेश्या की दृष्टि से।”
“लगता है लूमड़ मियां कि तुम डायलॉग अच्छी तरह रटकर आए हो।”
“कोई भी वस्तु या व्यक्ति हमें ठीक वैसी ही नजर आती है जैसा उसे देखते वक्त हमारा दृष्टिकोण है, यदि पीतल के भाव में सोना बिक रहा हो तो, भले ही आप सोने के चाहे जितने बड़े पारखी हों—उस वक्त उस सोने को पीतल ही समझेंगे—यदि कोई वस्तु मैं तुम्हें अभी जेब से निकालकर दूं और कहूं कि वह विदेशी है, कीमत है दस हजार डॉलर—तो तुम्हें उस साधारण-सी चीज में अपनी दृष्टि द्वारा पैदा किए गए गुण नजर आने लगेंगे—उसी चीज को यदि में तुम्हें यह कहकर दूं कि वह फुटपाथ से एक डालर में खरीदी गई है तो तुम्हें उसमें अपनी दृष्टि के पैदा किए हुए अवगुण नजर आएंगे—एक सुन्दर लड़की सामने खड़ी है, तुम उस पर आसक्त हो—तभी तुम्हारा कोई विश्वसनीय बताता है कि वह दरअसल वेश्या है—उसी क्षण से वह तुम्हें गन्दी और बदसूरत नजर आने लगेगी—यह सब क्या है? दृष्टि भ्रम ही न—सब कुछ वैसा नजर आता है जैसे नजरिए से आप देख रहे हैं—तुम भी इस वक्त उसी दृष्टि-भ्रम के शिकार हो विजय, मेरे अतीत को पचा नहीं पा रहे हो तुम—उससे उभरकर मेरी तरफ देख ही नहीं रहे हो क्योंकि—इसके तीन कारण हैं, मेरा अतीत—तुम्हारा दृष्टि-भ्रम और सबसे बढ़कर तुम्हारे अन्तर में कहीं छुपा ये डर या तर्क कि—कहीं कल को लोग ये न कहें कि विजय, तुम भी धोखा खा गए—तुम तो अलफांसे को सबसे ज्यादा समझने का दावा किया करते थे?”
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