XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
05-30-2020, 01:34 PM,
#1
Star  XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
घाट का पत्थर

चंद्रपुर संसार के कोलाहल से दूर छोटी-छोटी, हरी-हरी घाटियों में एक छोटा-सा गांव है। दूर-दूर तक छोटे-छोटे टीलों पर लंबी-लंबी घास के खेत लहलहाते दिखाई देते हैं। एक सुहावनी संध्या थी। लोग थके-मांदे घरों को लौट रहे थे। गांव के बाहर वाले मैदान में बालक कबड्डी खेल रहे थे। एक अजनबी, देखने में शहरी, अंग्रेजी वेश-भूषा धारण किए गांव की कच्ची सड़क पर आ रहा था। समीप पहुंचते ही बालकों ने कबड्डी बंद कर दी और उसे घेर, घूर-घूरकर देखने लगे।

'ऐ छोकरे!' अजनबी ने एक बालक को संबोधित करके कहा।

'क्यों क्या बात है?'

'देखो, तुम्हारे गांव में कोई डाक-बंगला है?'

'आपका मतलब डाक बाबू...।'

'नहीं, डाक-बंगला, मेहमानों के ठहरने की जगह।'

'तो सराय बोलो न साहब।'

'सराय नहीं, साहब लोगों के ठहरने की जगह।'

'साहब लोग तो रामदास की हवेली में ठहरते हैं। सामने राज बाबू आ रहे हैं, उनसे बात कर लें।'

'क्यों क्या बात है, रामू, श्यामू ?' राज ने समीप आते ही पूछा।

'यह बाबू रहने की जगह मांगे हैं।'

'जाओ तुम सब लोग अपने-अपने घरों को। संध्या हो गई है।'

'देखिए साहब, हम लोग बंबई जा रहे थे कि हमारी गाड़ी में कुछ खराबी हो गई। रात होने को है। इन पहाड़ियों में रात के समय यात्रा करना खतरे में खाली नहीं। रात बिताने को जगह चाहिए। पैसों की आप चिंता न करें, मुंह-मांगा दिला दूंगा।' अजनबी कहने लगा।

'तुम्हारे साथ और कौन हैं?'

'मेरे मालिक सेठ श्यामसुंदर... बंबई के रईस, उनका सैक्रेटरी और मैं उनका ड्राइवर शामू।'

'गाड़ी कहाँ हैं?'

'सामने सड़क पर।'

राज और शामू, दोनों सड़क की ओर चल दिए।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#2
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज सेठ श्यामसुंदर और उनके साथियों को सीधा अपनी हवेली में ले गया। बाहर वाली बैठक में उनके ठहरने का प्रबंध कर दिया। आदर-सत्कार के लिए नौकर-चाकर तो मौजूद थे ही।

चंद्रपुर में जमींदार रामदास की धाक थी। अतिथि-सत्कार के लिए तो दूर-दूर तक उनकी चर्चा थी। धन था, जायदाद थी, दो सौ तो जंगली घास के खेत थे... लंबी-लंबी और मोटी घास। दूर-दूर के व्यापारी घास के गट्टे के गढे खरीद ले जाते और शहरों में व्यापार करते थे। राज दूर के रिश्ते से उनका भांजा था। अपनी तो कोई संतान थी नहीं, बहन के विधवा होते ही वह उसे अपने पास ले आए थे, जब वह कोई पांच वर्ष का था। बाद में इसकी मां भी चल बसी और राज जमींदार साहब के ही घर का राज बन गया। समीप के ही शहर से उसे बी.ए. तक की शिक्षा दिलाई, उसे सभ्य बनाने में कोई कसर न रखी गई।

अब राज पढ़-लिखकर जवान हो चुका था और रामदास के टिमटिमाते हुए जीवन का अंतिम सहारा था। जीवन की यह यात्रा वह अकेले नहीं कर सकते थे। अब वह चाहते थे कि उनकी दुर्बल हड्डियों को तनिक आराम मिले, परंतु वह यह आराम अपने जीवन की पूंजी खोकर लेने के इच्छुक न थे। जमींदार साहब चाहते थे कि उनका काम राज संभाल ले। व्यापारियों से बातचीत, सौदा ठहराना, बाहर माल भिजवाना, यदि वह इस आयु में नहीं संभालेगा तो कब संभालेगा। अब वह बालक तो है नहीं!

इधर राज के हृदय पर इन हरी-भरी घाटियों के स्थान पर किसी और ही संसार का चित्रण खिंचा हुआ था। वह अपना जीवन इन सुनसान घाटियों में गलाने के लिए तैयार न था। वह इस नई भागती हुई दुनिया के साथ-साथ चलना चाहता था। परंतु यह विचार उसके हृदय के पर्दे से टकराकर ही रह जाते। उसने कई बार प्रयत्न किया कि वह जमींदार साहब से साफ-साफ कह दे परंतु कर्त्तव्य उसे ऐसी अशिष्टता की आज्ञा न देता।
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#3
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
उस रात भी सदा की भांति जमींदार रामदास अपनी अतिथिशाला में बैठे अपने अतिथि सेठ श्यामसुंदर के साथ बातचीत में व्यस्त थे। पास ही राज एक कुर्सी पर बैठा उनकी बातचीत का आनंद ले रहा था।

'जमींदार साहब, आप जैसे संपन्न और प्रसन्नचित्त मनुष्य हमारे शहर में तो ढंटे से भी न मिलेंगे। भगवान ने भी आपको अपनी प्रकृति से दूर छिपा रखा है।' श्यामसुंदर कह रहे थे।

'वाह साहब, आपने भी खूब कही। भला हम किस योग्य हैं! यह तो एक कर्त्तव्यमात्र है जिसे निभाने का मुझे अवसर दिया गया, नहीं तो कौन देवता और कौन पुजारी! यह सब उसकी बिखरी हुई माया है।' जमींदार साहब ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।

'परंतु फिर भी आप हमारे लोभी और बनावटी संसार में आवें तो आप भले और बुरे की परख कर सकें।'

'बहुत देखा साहब आपका संसार, उसकी रंगीनियां और न जाने क्या कुछ, परंतु अब देखने को जी नहीं चाहता। भगवान का दिया सब कुछ है, किस दिन काम आएगा! सब कुछ पास होने पर भी जो मनुष्य ऐसी बातों से परे रहे, उसके जीवन को धिक्कार है।'

'हैलो राज, चुप क्यों हो?' श्यामसुंदर ने बात बदलते हुए कहा।

'यों ही। आप और पिताजी की बातचीत सुन रहा था।'

"कितने भाग्यवान हो तुम कि तुम्हें इतने अच्छे पिता मिले

'भाग्यवान तो मैं भी कम नहीं जिसे इतना होनहार और आज्ञाकारी पुत्र मिला है।' जमींदार साहब बोले।

इस पर सब हंसने लगे। इस प्रकार बहुत देर तक बातचीत होती रही, व्यापार संबंधी, घरेलू संसार संबंधी! सेठ श्यामसुंदर बंबई के प्रसिद्ध व्यापारी थे। बंबई में इनका ऐनक बनाने का कारखाना था। लाखों की आमदनी थी। सारे शहर में अपने ढंग का एक ही कारखाना था।
*
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#4
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
सवेरा होते ही शामू गाड़ी के गिर्द हो लिया और कोई नौ बजे तक सब ठीक कर डाला। सेठ साहब का सामान भी बंध चुका था और चलने की तैयारी थी। जमींदार साहब सेठ साहब को हवेली की ड्योढ़ी तक छोड़ने आए।

'देखिए साहब, यदि आप कभी बंबई आएं तो सीधे हमारे यहाँ आइएगा।'

'क्यों नहीं, यह कभी हो सकता है कि कुएं पर जाकर प्यासे लौट आवें!'

'अच्छा तो अब आराम कीजिए। यदि जीते रहे तो फिर भेंट होगी। मैं आपका यह उपकार जीवन भर नहीं भूल सकूँगा।'

सेठ साहब, आप क्यों व्यर्थ लज्जित करते हैं। मैं आपको नीचे सड़क तक छोड़ आता परंतु स्वास्थ्य आज्ञा नहीं देता। उतर तो लूं परंतु चढ़ना जरा...

'कोई बात नहीं। आप नहीं तो आपका प्रतिरूप तो साथ है।'

'अवश्य, यह भी तो आपका बच्चा है।'


अभिवादन करके सब सड़क की ओर चल दिए। उतरती हुई पगडंडी कितनी सुंदर जान पड़ती थी। चारों ओर एक हरा समुद्र-सा फैला हुआ था।

"क्यों राज, तुम्हारा मन तो ऐसी सुहावनी जगह बहुत लगता होगा। खुली हवा, प्रकृति की गोद और फिर सोने पर सुहागा कि रामदास जैसे पिता?'

'जी आप ठीक कहते हैं, परंतु....'
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#5
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'क्यों राज, इस वातावरण में भी तुम्हारे मुख में परंतु का शब्द!'

'सेठ साहब, आप इस घाटी और यहां के वातावरण को किसी और दृष्टि से देखते हैं और मैं किसी और!'

'आखिर तुम्हारी दृष्टि क्या देखती है! कुछ हम भी तो सुनें।'

'आप जीवन की यात्रा को पूरी करके निर्दिष्ट के समीप पहुंच रहे हैं और मैं अभी यात्रा की तैयारी में हूं। आप उस कोलाहल भरे संसार से उकताकर इन सुनसान घाटियों में चैन और संतोष ढूंढ सकते हैं परंतु मेरे मूक हृदय में घाटियां, जंगली घास के ढेर और ये सूनी पगडंडियां हलचल पैदा नहीं कर सकेंगी। सेठ साहब, आप ही सोचिए, मैंने बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की। इस संघर्षमय संसार में मनुष्य को जीवन की सड़क पर भागते देखा। अब यह किस प्रकार हो सकता है कि मैं यह सब देखकर एक कोने में चुपचाप बैठा रहूं। आप ही कहिए, क्या आपके हृदय में इच्छाओं का समुद्र ठाठे नहीं मार रहा? क्या आप अपने बढ़ते हुए कारोबार को देखकर प्रसन्न नहीं होते और इससे अधिक देखने की आपकी अभिलाषा नहीं? इसी प्रकार मैं भी मनुष्य हूँ। मेरी भी इच्छाएँ हैं। यदि बहुत बड़ी नहीं तो छोटी ही सही।'

'मैं तुम्हारी प्रत्येक बात से सहमत हूं। तुम पढ़े-लिखे हो, सयाने हो, जो चाहो कर सकते हो, परंतु तुम्हें रोकता कौन है?'

'पिताजी। वह चाहते हैं कि मैं अब उनकी तरह दुशाला ओढ़े घास कटवाता रहूं और शाम को घास के स्थान पर चांदी के सिक्के थैलियों में भरकर घर लौटूं। आप ही सोचिए, ऐसे जीवन में क्या धरा है। कई बार कहा है कि शहर में एक कोठी ले लें, आराम से रहें। स्वास्थ्य ठीक नहीं, इलाज भी हो जाएगा। यहां का काम तो नौकर भी कर सकता है, परंतु वह मानते ही नहीं।'

'मानें भी क्यों कर? तुम्हें अनुभव नहीं है। यह काम नौकरों पर नहीं छोड़े जाते। फिर भी यदि तुम चाहो तो अपने ही काम में बहुत उन्नति कर सकते हो। टोकरियां, चटाइयां और ऐसी ही अनेक वस्तुएं जो इस घास से बन सकती हैं, तुम अपने-आप बनवा सकते हो और एक अच्छा-खासा व्यापार खड़ा कर सकते हो।'

'परंतु यह सब कुछ यहां बैठकर तो होने का नहीं। रुपया चाहिए और पिताजी की आज्ञा। दोनों ही बातें कठिन जान पड़ती हैं।'
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#6
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
"प्रयत्न करो। मनुष्य क्या नहीं कर सकता। वह चाहे तो पत्थर से पानी निकाल ले और फिर यह तो तुम्हारे पिता है।'

सामान गाड़ी पर बंध चुका था। ‘अच्छा राज।' कंधे पर हाथ रखते हुए सेठ साहब ने कहा, "बिछड़ने का समय आ गया। तुम्हें छोड़ने का जी तो नहीं चाहता परंतु लाचारी है। बंबई अवश्य आना। यह लो मेरा पता, जो कुछ बन पड़ा, तुम्हारी सहायता करूंगा।' श्यामसुंदर अगली सीट पर बैठ गए। शामू ने गाड़ी स्टार्ट कर दा।

'आशा है शीघ्र ही भेंट होगी।' राज ने सेठ साहब से कहा। राज देर तक खड़ा कार की उड़ती हुई धूल को देखता रहा और जब वह आंखों से ओझल हो गई तो धीरे-धीरे घर लौट पड़ा।
*
*
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सेठ साहब को गए दो माह से अधिक हो चुके थे। राज नित्य खेत में जाता और शाम को रुपयों से भरी थैली लाकर जमींदार साहब के चरणों में रख देता और पुरस्कार स्वरूप शाबाशी और मस्तक पर चुंबन पा लेता। परंतु वह इस जीवन से ऊब चुका था। वह आवश्यकता से अधिक चिंतित था। वह चाहता था कि कहीं भाग निकले। उसके मन में भविष्य और कर्त्तव्य के बीच एक संघर्ष-सा हो रहा था, परंतु अब वह कर्त्तव्य की बेड़ियों को सदा के लिए तोड़ डालना चाहता था। एक दिन सवेरे जब वह अपने कमरे में बैठा दूर सड़क पर टकटकी लगाए देख रहा था,

जमींदार साहब पूजा के कमरे से निकलकर बैठक की ओर जा रहे थे - उसे इस प्रकार बैठा देख कहने लगे 'क्यों बेटा, अभी तक कुल्ला नहीं किया, नहाए नहीं। इतना दिन निकल आया, काम में देर हो रही है, कटी हुई घास बैलगाड़ियों पर लदवानी है...।'

'आज मैं न जा सकूँगा।' राज ने कुछ फीकेपन से उत्तर दिया।

'क्यों? तबियत तो ठीक है, कहीं बुखार तो नहीं?'

'नहीं ऐसी कोई बात नहीं। जी नहीं चाहता।'

'इसका मतलब?' जमींदार साहब ने तनिक कठोरता से कहा।

राज चुपचाप बैठा रहा।

'तो यह बात है! कल मुनीमजी ठीक कह रहे थे कि अब यहां से कहीं और जाना चाहते हो।'


'बंबई।'

'खुशी से जाओ। तुम्हें रोका किसने है? दिल बहल जाएगा। कुछ दिन जलवायु की तबदीली ही सही।'

‘परंतु पिताजी, मैं जलवायु की तबदीली या अपना दिल बहलाने के लिए नहीं जा रहा हूं। मैं एक लंबी अवधि के लिए जाना चाहता हूं।'

‘ऐसी कौन-सी आवश्यकता आ पड़ी?'

'अपना भविष्य बनाने की।'

'भविष्य! तो यहां तुम्हें कौन-सा भिखारियों का जीवन बिताना पड़ रहा है, जो अपने भविष्य की चिंता हो रही है?'

'भविष्य से मेरा मतलब....।'

'मैं सब समझता हूं तुम्हारा मतलब...।' क्रोध में जमींदार साहब बोले।
Reply
05-30-2020, 01:34 PM,
#7
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'नहीं पिताजी, ऐसी कोई बात नहीं। आप दूसरा विचार मन में न लाइए। मैं तो किसी जगह जाकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूं ताकि इस संसार की वास्तविकता को जान सकू।'

'जवानी में एक नशा होता है। युवक चाहते हैं कि अपनी भावनाओं के भेद जान लें और ऐसे वातावरण में जाकर रहे जहां सब लोग उनकी इच्छाओं को समझ सकें और प्रेम और सहानुभूति का व्यवहार करें, परंतु दूर से चमकने वाली प्रत्येक वस्तु सदा सोना नहीं होती।'

'परंतु यह भी तो हो सकता है कि वह सोना ही हो। आप ही सोचिए, यदि मैं यह काम शहर में जाकर बढ़ा लूं तो एक अच्छा-खासा व्यापार खुल सकता है, सौ-दो-सौ मनुष्य काम पर लग सकते हैं, हजारों भूखों का पेट भर सकता है। उसमें नाम है, पैसा है, आदर है।' ।

'मुझे झूठे नाम और आदर की कोई इच्छा नहीं।'

'परंतु आपका यह कर्त्तव्य तो है कि आप अपने बच्चे के जीवन को सुखी बनाने के लिए उसकी सहायता करें।'

'कर्त्तव्य! मां-बाप का कर्त्तव्य! संतान का भी तो कुछ कर्त्तव्य है?'

'मैं अपने कर्त्तव्य का पालन करने से कब इंकार करता हूं? मैंने तो केवल अपनी इच्छा प्रकट की है।'

'तुम्हारे जीवन का तो अभी प्रभात है और इच्छाएं पूरी होने को बहुत समय है परंतु जिसके जीवन की संध्या निकट आ गई है उसके दिल के अरमान उसके साथ ही समाप्त हो जाएं, क्या यही है तुम्हारा कर्त्तव्य?'

'परंतु यहां तो मेरी विशेष आवश्यकता नहीं। काम तो चल ही रहा है। यदि इस दौरान मैं कुछ....'
Reply
05-30-2020, 01:35 PM,
#8
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
जमींदार साहब बात काटते हुए क्रोध से बोले 'तुम जहां चाहे जा सकते हो, मुझे तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं। मैं समझंगा कि मेरा बेटा था ही नहीं। पराई वस्तु को कितना भी अपना बनाकर रखो फिर भी पराई है।' कहते हए जमींदार साहब कमरे से बाहर निकल गए।

राज की आंखों में आंसू उमड़ आए। वह कभी स्वप्न में भी न सोच सकता था कि जमींदार साहब उसको गलत समझेंगे। जमींदार साहब के शब्द रह-रहकर उसके हृदय में हलचल-सी पैदा कर देते। भांति-भांति के विचार उसके हृदय में उदय-अस्त होने लगे।

इसी प्रकार चार दिन बीत गए। न तो जमींदार साहब ने राज को बुलाया और न ही उसने सामने आने का साहस किया। राज अपने मिथ्या विचारों का शिकार बना बैठा था और जमींदार साहब अपने हठ के, परंतु एक ही घर में यह खिंचाव कितने दिन और चल सकता था!
Reply
05-30-2020, 01:35 PM,
#9
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
एक दिन राज काम से लौटकर अपने कमरे में आया तो क्या देखता है कि उसका सब सामान, बिस्तर, ट्रंक आदि बंधा पड़ा है। पहले तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ, परंतु दूसरे ही क्षण वह क्रोधित हो उठा था। इतने में जमींदार साहब कमरे में आ गए। राज कुछ घबरा-सा गया और उसने सिमटकर मुंह नीचे कर लिया।

'क्यों राज, तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों पीला पड़ गया?'

जमींदार साहब की आवाज में काफी नरमी देखकर राज ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और इतना ही बोल पाया 'नहीं, परंतु यह सब....।'

'तुम्हारा ही असबाब है। तुम आज रात की गाड़ी से बंबई जा रहे हो, अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि मेरी आज्ञा से।'

'परंतु इतनी जल्दी....।'

'किंतु परंतु मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। जल्दी से मुंह-हाथ धो लो, जो आवश्यक वस्तुएं ले जानी हैं बांध लो। खाना तैयार करने के लिए कह दिया है। समय कम है और काम अधिक। मुनीमजी और हरिया गाड़ी पर बिठा आवेंगे।'

राज प्रसन्नता से फूला न समाया। वह समझ न सका कि यह सब स्वप्न था या सत्य। उसकी आंखों में प्रसन्नता के आंसू थे। शीघ्र ही वह तैयारी करने में लग गया। मुनीमजी और हरिया उसका हाथ बंटाने लगे। जैसे-जैसे राज के जाने का समय निकट आता था जमींदार साहब का दिल बैठता जाता। पंरतु उन्होंने कोई ऐसा भाव अपने मुख पर न आने दिया।

अंत में समय आ ही पहुंचा। स्टेशन गांव से कोई चार कोस की दूरी पर था। जाना भी जल्दी था। हरिया सारा सामान लेकर नीचे सड़क पर जा चुका था। जमींदार साहब ने सौ-सौ के पांच नोट राज को देते हुए कहा 'इन्हें सावधानी से बॉक्स में रख लेना और मुनीमजी, यह लीजिए, आप टिकट लेकर बाकी पैसे राज को दे देना।'

'पिताजी यदि जीवन भी लगा दं तो भी आपका एहसान नहीं चुका सकता, फिर भी यदि नाचीज किसी काम आ सके तो अवश्य आदेश दीजिएगा।' यह कहते हुए राज ने जमींदार साहब के पांव छुए।

जमींदार साहब ने उठाकर उसे गले लगाया। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अमूल्य वस्तु उनसे सदा के लिए दूर जा रही हो।

'अब तुम एक नए जीवन में प्रवेश कर रहे हो। देखना, इस बूढ़े बाप को न भूल जाना।'

'यह भी संभव है क्या कि मैं आपको भूल जाऊं? मैं कोई सदा के लिए तो जा नहीं रहा हूं, अवसर मिलने पर आपको मिलता ही रहूंगा।'

'देखो, सेठ श्यामसुंदर का पता ले लिया है न?'

'जी। वह मेरे पास है।'

'मेरी ओर से उन्हें बहुत-बहुत पूछना और कहना कि कभी समय मिले तो कुशल-मंगल का पत्र ही लिखते रहा करें।'

'अच्छा अब आप विश्राम कीजिए, मैं चलता हूं।' राज ने पिता के पांव अंतिम बार छुए और सड़क की ओर चल पड़ा।

'मुनीमजी, टिकट दूसरे दर्जे का लेना और किसी में जगह न मिलेगी।'


जमींदार साहब की आंखों से आंसू टपक पड़े। वह देर तक ड्योढ़ी में खड़े राज को देखते रहे। जब वह आंखों से दूर हो गया तो हवेली में प्रवेश किया, चारों ओर सन्नाटा-सा छा रहा था। एक थके यात्री की भांति, जिसका कोई निर्दिष्ट न हो, वह बरामदे में बिछे तख्त पर जा बैठे।
*
Reply
05-30-2020, 01:35 PM,
#10
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
हवा के तीव्र झोंके सांय-सांय कर रहे थे। रात के दस बजने का समय था। आने वाली ट्रेन की गड़गड़ाहट सुनाई दी। राज जल्दी से संभला। मुनीमजी और हरिया ने सामान सिर पर उठा लिया। थोड़ी ही देर में गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर रुकी। भीड़ से भरे डिब्बों को छोड़ता हुआ राज एक सैकिंड क्लास के डिब्बे में प्रविष्ट हुआ और जल्दी से सामान जमा दिया। इंजन ने सीटी दी। हरिया और मुनीमजी जल्दी से नीचे उतर गए और गाड़ी चल दी। 'पिताजी का ध्यान रखना।' उसने चलती ट्रेन से आवाज दी और दरवाजा बंद करते ही कमरे का निरीक्षण करना आरंभ किया।

छ: सीटें थीं, परंतु सब की सब भरी हुई। प्रत्येक पर कोई न कोई लेटा हुआ नींद के मजे ले रहा था, परंतु दरवाजे के समीप वाली सीट पर सुंदर लड़की लेटी हुई फिल्मी मैगजीन पढ़ रही थी। राज ने सोचा कि बैठने के लिए थोड़ी जगह मांगे परंतु साहस न कर सका और इसी प्रकार खड़ा रहा। लड़की ने उसे तीखी निगाह से देखा और सिर झुका लिया। उसके होंठों पर एक भावपूर्ण मुस्कराहट थी।। ट्रेन अपनी पूरी चाल पकड़ चुकी थी। अभी तक किसी यात्री की आंख भी न खुली थी कि राज उससे थोड़ी-सी जगह बैठने को मांग लेता। रात का समय था। किसी से जबरदस्ती भी तो नहीं हो सकती थी। उसने सोचा कि अपना बक्स जमाकर उस पर बैठ जाए। उसने अपना बिस्तर बक्स पर से सरकाया।

लड़की उसे कनखियों से देख रही थी। उसे इस प्रकार देखकर बोली 'आप यहां बैठ सकते हैं।' और यह कहकर उसने अपनी टांगें समेट लीं।

'धन्यवाद!' कहकर राज ने सीट के किनारे बैठकर मन में सोचा, यदि पहले ही प्रार्थना कर ली होती तो टांगों को इतना कष्ट न होता।

हवा तेजी से चल रही थी। उस बाला की साड़ी का पल्ला हवा में उड़-उड़कर उसके चेहरे पर आ पड़ता जिस प्रकार चांद के आगे छोटी सी बदली। राज ने पहली बार उसे ध्यान से देखा। वह सुंदर थी। उसके निखरे केश हवा में लहराते बहुत ही भले जान पड़ते थे। राज छिपी-छिपी निगाहों से उसे देख लेता। गाड़ी बहुत दूर निकल गई। राज चाहता था कि सारी रात इसी प्रकार बैठा उस सुंदर मुखड़े को निहारता रहे। उसने बहुत चाहा था कि किसी प्रकार बातचीत का कोई क्रम आरंभ हो जाए तो समय अच्छा कटे, परंतु यह हो किस प्रकार? वे तो एक-दूसरे के नाम तक से अपरिचित थे। कुछ देर दोनों इसी प्रकार चुपचाप बैठे रहे।

'देखिए, यदि कष्ट न हो तो सामने रखी सुराही में से एक गिलास पानी डाल दें। लड़की ने एक बिल्लौरी गिलास बढ़ाते हुए कहा।

राज पहले तो चौंक पड़ा, परंतु फिर उसने संभलते हुए गिलास पकड़ लिया। उसके हाथ कांप रहे थे। राज ने गिलास भर दिया और वह पीने लगी। राज के चेहरे पर एक रौनक-सी दौड़ गई। उसने साहस किया और पूछा, आप कहां जा रही हैं?

'बंबई।'उसने तीखी नजरों से देखते हुए उत्तर दिया।

'मैं भी बंबई जा रहा हूँ।'

परंतु वह चुप बैठी रही। कुछ देर के मौन के बाद राज ने फिर पूछा, 'आप अकेली हैं या आपके साथ कोई और भी है?'

'अकेली हूँ, अब तुम पूछोगे... मेरा नाम क्या है, बंबई में कहाँ रहती हूँ आदि-आदि। आप परिचय ही चाहते हैं ना, तो सुनिये... नाम डॉली है। अकेली यात्रा इसलिए कर रही हूँ कि आप जैसे लोगों से मैं घबराती नहीं और बंबई में रहती कहां हूं, इसलिए बतला नहीं सकती कि आप जैसे जिंदादिल नवयुवक परिचय करते-करते घरों तक पहुंच जाते हैं और कुछ पूछना है आपको...?' वह सब एक ही सांस में कह गई।

'जी नहीं, इतना ही बहुत है।' राज वहां से उठकर सामने वाले यात्री के पास जा बैठा जो डॉली की तेज आवाज सुनकर उठ बैठा था।
"क्यों साहब, क्या बात है?' वह नींद में ही बोला।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,299,231 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,238 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,150,731 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,763 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,541,923 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,986,614 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,796,264 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,514,007 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,825,052 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,118 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)