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RE: non veg kahani एक नया संसार
मेरे ज़ोर देने की वजह आप अच्छी तरह जानते हैं अंकल।" विराज ने कहा__"आप जानते हैं कि ये जंग मेरी है और इस जंग में मुझे ही हिस्सा लेकर इसे इसके अंजाम तक पहुचाना है। रही बात फाॅरेनर बन कर अजय सिंह से खेल खेलने की तो इसमें फाॅरेनर के रोल के लिए किसी ऐक्टर की ज़रूरत ही नहीं थी, हाॅ फाॅरेनर लुक की आवश्यकता ज़रूर थी तो उसके लिए आपने मेकअप आर्टिस्ट को बुलवाया ही था। उसने मुझे स्टीव जाॅनसन और गुड़िया(निधि) को एॅजिला जाॅनसन का मेकअप करके लुक दे दिया। उसके बाद आपने देखा ही कि कैसे हम दोनों भाई बहन ने अजय सिंह के साथ ये खेल खेला। मुझे गुड़िया(निधि) की फिक्र ज़रूर थी लेकिन उसने भी अपना एॅजिला जाॅनसन का रोल बेहतरीन तरीके से अदा किया। हलाकि मैं ये नहीं चाहता था कि एॅजिला जाॅनसन के रूप में मेरी पत्नी का किरदार गुड़िया निभाए क्योंकि वो मेरी बहन है, लेकिन गुड़िया की ही ज़िद थी कि ये किरदार वही निभाएगी। ख़ैर जो हुआ अच्छे तरीके से हो गया।"
"अजय सिंह उन दोनो फाॅरेनर को ढूॅढ़ने की जी तोड़ कोशिश कर रहा होगा।" जगदीश ने कहा__"मगर ढूॅढ़ नहीं पाएगा। ढूॅढ़ भी कैसे पाएगा, जबकि स्टीव जाॅनसन और एॅजिला जाॅनसन नाम के इन लोगों का कहीं कोई वजूद ही नहीं है। ये बात तो वो सोच ही नहीं सकता कि जिन दो फाॅरेनर से वह मिला था वो कोई और नहीं बल्कि उसके ही अपने हैं जिनके साथ उसने बुरा करने में कोई कसर नहीं छोंड़ी।"
"हर चीज़ का हिसाब लूॅगा अंकल हर चीज़ का।" विराज ने कहा__"ये तो अभी ट्रेलर है, अभी आगे खुलकर खेल होगा।"
"अरविन्द सक्सेना को इस खेल में कैसे शामिल किया तुमने?" जगदीश के मन में ये सवाल पहले से था__"वो तो अजय सिंह का ही बिजनेस पार्टनर है न?"
"सक्सेना को इस खेल में शामिल नहीं किया अंकल।" विराज जाने क्या सोच कर मुस्कुराया था बोला__"बल्कि उसे अजय सिंह से अलग हो जाने के लिए मजबूर किया था मैंने।"
"क्या मतलब?" जगदीश ने चौंकते हुए कहा__"और वह तुम्हारे द्वारा भला कैसे इस सबके लिए मजबूर हो गया??"
"किसी की कमज़ोर नस अगर आपके पास आ जाए तो आप उससे कुछ भी करा सकते हैं अंकल।" विराज ने कहा__"सक्सेना के साथ वही मामला हुआ है।"
"बात कुछ समझ में नहीं आई बेटे।" जगदीश ने उलझन भरे भाव से कहा__"ज़रा बात को स्पष्ट करके बताओ।"
"दरअसल बात ये है अंकल कि अजय सिंह और सक्सेना बिजनेस पार्टनर के अलावा भी बहुत कुछ हैं।" विराज ने कहा__"आप यूॅ समझिए कि ये दोनो हर चीज़ मिल बाॅटकर खाते पीते हैं। फिर वो चीज़ चाहे कितनी ही पर्शनल क्यों न हो। अगर स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ये कि उन दोनों में उस तरह का संबंध है जिसे ये समाज अनैतिक करार देता है। ये दोनों अपनी खुशी और आनंद को पाने के लिए एक दूसरे की बीवियों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते हैं।"
"क् क्या?????" जगदीश ओबराय ये बात सुनकर इस तरह उछला था जैसे कि जिस सोफे पर वह बैठा था वो अचानक ही गर्म शोलों में तब्दील हो गया हो, बोला__"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?"
"यही सच है अंकल।" विराज ने ज़ोर दे कर कहा__"अब आप समझ सकते हैं कि अजय सिंह किस हद तक कमीना इंसान है।"
जगदीश ओबराय मुह और आखें फाड़े देखता रह गया था विराज को। उसे यकीन नहीहो रहा था कि अजय सिंह इस हद तक गिर सकता है। जबकि,,,,
"मेरे पास सक्सेना की यही कमज़ोरी थी अंकल।" विराज कह रहा था__"मैंने बड़ी मुश्किल से किसी के द्वारा सक्सेना के कुछ ऐसे फोटोग्राफ्स हाॅसिल कर लिए थे जिनमें सक्सेना की अपनी बीवी किसी गैर के साथ सेक्स कर रही थी और सक्सेना एक दूसरे आदमी द्वारा सेक्स(गाॅड मरवा रहा था) कर रहा था। इन फोटोग्राफ्स के आथार पर ही मैंने सक्सेना को मजबूर किया कि वो अजय सिंह से अलग हो जाए वर्ना उसके इन फोटोग्राफ्स को सार्वजनिक कर दिया जाएगा। फिर क्या था, सक्सेना को अजय सिंह से अलग होना पड़ा। अजय सिंह तो ये भी नहीं जानता कि सक्सेना के ही द्वारा अभी और क्या होने वाला है?"
"क्या मतलब?" जगदीश चौंका__"अभी और क्या करवा रहे हो तुम सक्सेना से?"
"आपको भी पता चल जाएगा अंकल।" विराज ने मुस्कुराते हुए कहा__"बस इंतज़ार कीजिए थोड़ा।"
"कम से कम मुझे बताने में तो तुम्हें कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए।" जगदीश ने हॅस कर कहा।
"इन बातों में मज़ा तभी आता है अंकल जब वो चीज़ हो जाए जो हम चाहते हैं।" विराज ने कहा__"और वैसे भी सस्पेन्स नाम की चीज़ कुछ समय तक तो रहना ही चाहिए।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"तुम और तुम्हारी बातें।" जगदीश ने मुस्कुरा कर कहा__"इतना जल्दी समझ में कहाॅ आती हैं? ख़ैर तुम्हारे लिए एक ख़बर है हमारे पास।"
"कैसी ख़बर अंकल?" विराज ने पूॅछा।
"अजय सिंह की बड़ी बेटी रितू अब पुलिस आफिसर बन गई है।"
"ये तो अच्छी बात है न उनके लिए।" विराज ने कहा__"वैसे भी बहुत जल्द उन्हें नए पुलिस वालों से संबंध बनाना पड़ेगा जिससे उसके किसी काम में किसी तरह की रुकावट न हो सके।"
"जो भी हो।" जगदीश ने कहा__"मुझे पता चला है कि तुम्हारे दादा दादी का केस बहुत जल्द रितू अपने हाॅथ में लेने वाली है।"
"उससे कुछ नहीं होगा अंकल।" विराज के चेहरे पर गंभीरत थी__"अजय सिंह अपनी पहुॅच और पावर से इस केस को इसके अंजाम तक पहुॅचने ही नहीं देगा। रितू दीदी अपने सीनियर के आदेश के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती।"
"देखते हैं क्या होता है?" जगदीश ने कहा__"ख़ैर छोंड़ो ये सब...अभी आफिस जा रहे हो क्या?"
"हाॅ कुछ ज़रूरी काम भी है।" विराज कुछ सोचते हुए बोला।
जगदीश ने बड़े गौर से विराज के चेहरे की तरफ देखा, जिसमें कभी कभी पीड़ा के भाव आते और लुप्त होते नज़र आ रहे थे। विराज ने जगदीश को जब इस तरह अपनी तरफ देखते पाया तो कह उठा__"ऐसे क्यों देख रहे हैं अंकल?"
"देख रहा हूॅ कि कितनी सफाई से तुम अपने उस दर्द को छुपा लेते हो जो तुम्हारे दिल में है।" जगदीश ने कहा__"वो दर्द पारिवार से संबंधित नहीं है वो तो किसी से बेपनाह मोहब्बत करने वाला है।"
"ऐसा कुछ नहीं है अंकल।" विराज ने नजरें चुरा कर कहा और एक झटके से सोफे से उठ कर खड़ा हो गया।
"आखें सब बयां कर देती हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"हमने बहुत दुनियाॅ देखी है, इतना तो हम महसूस कर सकते हैं कि सामने वाले के दिल में क्या है? और वैसे भी मोहब्बत एक ऐसी चीज़ होती है जो हर हाल में अपने होने का सबूत देती है।"
"पता नहीं आप क्या कह रहे हैं अंकल?" विराज ने कहा__"चलता हूॅ मैं।"
विराज वहाॅ से बाहर निकल गया, जबकि जगदीश वहीं बैठा रहा आॅखों में आॅसुओं के कतरे लिए।
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"आइये दीदी।" करुणा ने दरवाज़े से हटकर प्रतिमा को अंदर की तरफ आने का रास्ता देते हुए कहा__"मैं कल आपका इंतज़ार कर रही थी लेकिन आप आई ही नहीं।"
"हाॅ वो कमर में दर्द था तो नहीं आ पाई।" प्रतिमा ने कहा और अंदर की तरफ आ कर ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर बैठ गई, फिर करुणा की तरफ देख कर कहा__"अगर कोई ज़रूरी काम था तो तुम ही आ जाती मेरे पास। अब इतना दूर भी तो नहीं है कि तुम आ न सको।"
(आप सब दोस्तों को तो पता ही होगा कि इन लोगों का घर कैसा है? ये घर नहीं बल्कि हवेली थी जो विराज के पिता विजय सिंह ने बनवाई थी। आपने पढ़ा होगा कि हवेली तीनो भाइयों के हिस्से को ध्यान में रख कर बनवाई गई थी। जैसे तीन दो मंजिला विशाल घर को आपस में जोड़ दिया गया हो।)
"आप तो जानती हैं दीदी कि इन्हें(अभय सिंह बघेल) मेरे कहीं आने जाने से तक़लीफ होती है।" करुणा ने कहा__"और वैसे भी घर का इतना सारा काम हो जाता है कि उसी में सारा समय निकल जाता है।"
"मैंने तो अभय से जाने कितनी बार कहा है कि घर के काम के लिए एक दो नौकरानी रखवा दो।" प्रतिमा ने कहा__"मगर न वो मेरी सुनते हैं और न ही अपने बड़े भाई अजय की सुनते हैं। आख़िर हम कोई ग़ैर नहीं अपने ही तो हैं। भला क्या ज़रूरत है अभय को स्कूल में पढ़ाने की? माना कि सरकारी नौकरी है मगर इस नौकरी मिलता क्या है? अपना परिवार भी ढंग से नहीं चला सकते इस नौकरी के रुपये पैसे से। अजय ने कितनी बार कहा है कि अभय बिजनेस में उनका हाॅथ बॅटाए जिससे रुपये पैसे की कोई कमी न आए। मगर,,,,,
"जाने दीजिए दीदी।" करुणा ने बेचैनी से पहलू बदला__"आप तो जानती हैं कि वो इस नौकरी और इस नौकरी से मिलने वाली तनख्वाह से खुश हैं। मैंने भी तो उन्हें बहुत समझाया है मगर वो हमेशा की तरह मेरी बात पर मुझे नसीहतें देने लगते हैं कि 'मैं एक शिक्षक हूॅ, गुरू हूॅ.....स्कूल में बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनका उज्वल भविश्य बनाना मेरा फर्ज़ है। स्कूल के बच्चे हमारे देश का भविश्य हैं। और भी न जाने क्या क्या भाषण देने लगते हैं।"
"हाॅ जानती हूॅ मुझे भी कभी कभी जब मैं उससे बात करूॅगी तो इसी तरह भाषण देने लगते हैं।" प्रतिमा ने कहा__"दिव्या तो अभी अभय के साथ ही स्कूल में होगी न?"
"जी वो तो शाम को उनके साथ ही आएगी।" करुणा ने कहा__"और सुनाइए क्या हो गया था आपकी कमर को??"
"मत पूॅछो करुणा।" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा__"कल तो सारा बदन टूट रहा था लेकिन....हाय मज़ा भी बहुत आया था।"
"मतलब भाई साहब ने कल आपकी हालत बिगाड़ दी।" करुणा मुस्कुराई।
"और नहीं तो क्या।" प्रतिमा ने कहा__"पूरे चार राउण्ड में बुरी तरह रगड़े हैं मुझे।"
"अच्छा तो है न।" करुणा ने एकाएक कुछ उदास भाव से कहा__"आपको शान्ति तो मिल जाती है।"
"अभय से उसके इलाज के संबंध में बात किया कि नहीं तुमने?" प्रतिमा ने पूॅछा।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"वो नहीं मानते हैं दीदी।" करुणा ने अजीब भाव से कहा__"कहते हैं कि अब ज़रूरत ही क्या है? दो बच्चे तो हो ही गए हैं हमारे। अब इलाज़ की कोई ज़रूरत नहीं है।"
दोस्तो बात दरअसल ये है कि दो साल पहले अभय सिंह अपनी मोटर साइकिल (बुलेट जो विराज के पिता ने खरीद कर दी थी) से स्कूल जा रहा था, पता नहीं उसका ध्यान कहाॅ था, उसे पता ही नहीं चला और मोटर साइकिल सड़क से नीचे उतर गई। अभय सिंह कुछ कर न सका क्योंकि तब तक देर हो चुकी थी। भारी भरकम बुलेट के साथ लुढ़कते हुए अभय सिंह नीचे पहुॅच गया। ज़मीन से काफी ऊॅची सड़क थी। इस छोटे से एक्सीडेन्ट में अभय सिंह को काफी चोंटें लगी तथा दाहिना हाॅथ भी टूट गया। ख़ैर ये सब तो इलाज़ में ठीक हो जाना था किन्तु दो दिन बाद जब अभय सिंह अपनी पत्नी करुणा के साथ संभोग करना चाहा तो उसका लिंग ही न खड़ा हुआ। करुणा ने कई तरह से लिंग को खड़ा करने की कोशिश की किन्तु कोई फायदा न हुआ। तब ये बात सामने आई कि एक्सीडेन्ट में अभय सिंह के प्राइवेट पार्ट में भी अंदरूनी चोंट लगी थी, अभय सिंह चूॅकि बेहोश हो गया था इस लिए उसे पता ही नहीं चला। ख़ैर अब समस्या हो गई कि अभय सिंह का लिंग ही नहीं खड़ा हो रहा, इस बात से अभय सिंह से ज्यादा करुणा परेशान हो गई। करुणा ने इसके लिए अभय सिंह को इलाज़ करवाने का कहा लेकिन लाज और शरम के कारण अभय सिंह इसके लिए तैयार ही न हुआ। करुणा ने उसे बहुत समझाया, ये तक कहा कि वो सेक्स के बिना कैसे रह पाएगी? इस पर अभय सिंह नाराज़ भी हुआ, और कहा कि दो बच्चे हो गए हैं। रही बात सेक्स की तो खुद पर काबू रखना सीखो, जीवन में सेक्स ही सब कुछ नहीं होता। अभय सिंह वैसे भी गुस्सैल स्वभाव का था इस लिए करुणा बेचारी मन मार रह गई। ये बात अभय के अलावा सिर्फ करुणा ही जानती थी, बाॅकी किसी को कुछ पता नहीं था। फिर ऐसे ही लगभग एक साल बाद बेध्यानी में ये राज़ की बात करुणा के मुख से प्रतिमा के सामने निकल गई। बाद में करुणा ने विनती करते हुए प्रतिमा से कहा भी कि ये बात वो किसी से न बताएं। औरतज़ात के पेट में कहाॅ देर तक कोई बात रह पाती है, नतीजतन उसने उसी दिन अजय सिंह से ये सब बता दिया। अजय सिंह ये जानकर हैरान हुआ कि उसका छोटा भाई अभय सिंह अब अपनी बीवी के साथ संभोग करने के काबिल नहीं रहा। किन्तु अगले ही पल उसे खुशी भी हुई इस बात से। वो जानता था कि करुणा अभी भरपूर जवानी में है और वो सेक्स के बिना रह नहीं पाएगी। हलाॅकि ये उसकी सोच ही थी, और इसी सोच के आधार पर वह जाने क्या क्या ख्वाब सजा बैठा। उसने प्रतिमा से इस बारे में बात की कि वह करुणा को उसके साथ संभोग के लिए तैयार करे। प्रतिमा अपने पति को अच्छी तरह जानती थी कि अजय सिंह औरत की चूत का कितना दिवाना है, अगर नहीं होता तो अपनी ही बेटी पर नीयत ख़राब नहीं करता। ख़ैर प्रतिमा तो खुद ही चाहती थी कि अभय व करुणा उनके साथ हर काम में शामिल हो जाएं। इस लिए उसने दूसरे दिन से ही करुणा से नज़दीकियाॅ बढ़ाना चालू कर दिया। करुणा किसी भी मामले में प्रतिमा से कम न थी। बल्कि ऊपर ही थी, प्रतिमा के मुकाबले वह अभी जवान ही थी। किन्तु स्वभाव से सरल व बहुत कम बोलने वाली औरत थी। अभय सिंह से उसने प्रेम विवाह किया था। अभय के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में वह सोचना भी गुनाह मानती थी।
प्रतिमा पढ़ी लिखी तथा खेली खाई औरत थी, किसी को कैसे फॅसाना है ये उसे अच्छी तरह आता था। काम मुश्किल तो था लेकिन असंभव नहीं। मगर प्रतिमा की सारी कोशिशें बेकार गईं अर्थात् वह करुणा को इस सबके के लिए तैयार न सकी। दरअसल वह खुल कर ये तो कह नहीं सकती थी कि 'आओ और मेरे पति से संभोग कर लो।' इस लिए उसने उससे सेक्स से संबंधित अपनी लाइफ के बारे में बता बता कर ही करुणा के मन में सेक्स की फीलिंग्स भरने का प्रयास करती रही। वह अजय के साथ अपनी सेक्स लाइफ के बारे में खुल कर उससे बात करती थी। शुरू शुरू में तो करुणा ऐसी बातें सुनती ही नहीं थी कदाचित उसे प्रतिमा के मुख से ऐसी अश्लीलतापूर्ण बातों से बेहद शरम आती थी। इस लिए हर बार वह प्रतिमा के सामने हाॅथ जोड़ कर उससे ऐसी बातें न करने को कहने लगती थी, लेकिन प्रतिमा भला कहाॅ मानने वाली थी? वह तो उसके पास आती ही एक मकसद के साथ थी। ख़ैर धीरे धीरे करुणा को भी इन सब बातों को सुनने की आदत हो गई।
"ये तो कोई बात न हुई करुणा।" प्रतिमा कह रही थी__"आखिर कब तक ऐसा चलेगा? अभय को तुम्हारे बारे में कुछ तो सोचना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि अभी तुम्हारी उमर ही क्या हुई है? अभी तो तुम जवान हो, और शादीशुदा जवान औरत बिना सेक्स के कैसे रहेगी?"
"जाने दीजिए दीदी।" करुणा ने एक गहरी साॅस ली__"अब तो आदत हो गई है। अब इन बातों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता मेरा। घर के काम और बच्चों में ही सब समय निकल जाता है।"
"और जब रात होती है तथा अभय के साथ एक ही बिस्तर पर लेटती हो तब क्या इस तरफ ध्यान नहीं जाता होगा?" प्रतिमा ने कहा__"जरूर जाता होगा छोटी, और ये सोच कर दुख भी होता होगा कि कुछ हो ही नहीं सकता।"
"ऐसा नहीं है दीदी।" करुणा ने भावहीन स्वर में कहा__"मैं तो इनके(अभय) साथ सोती ही नहीं। बल्कि मैं तो हमेशा अपने बेटे शगुन के साथ ही सोती हूॅ। आप तो जानती हैं वो दिमाग से डिस्टर्ब है, रात में उसे देखना पड़ता है वर्ना जागने के बाद वह कब किधर चला जाए पता ही नहीं चलता।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
तब तक चाय बन चुकी थी। करुणा ने चाय को दो कप में डाला तथा एक कप करुणा को थमाया और एक कप खुद लेकर उसे धीरे धीरे पीने लगी। जबकि प्रतिमा के मन में यही चल रहा था कि 'आज फिर एक बार मेरी कोशिश बेकार रही।'
उधर मुम्बई में इस वक्त ड्राइंग रूम में रखे सोफों पर क्रमशः जगदीश ओबराय, विराज, गौरी तथा निधी आदि बैठे हुए थे।
"इस सब की क्या ज़रूरत है अंकल?" विराज ने कहा__"आप जानते हैं कि जीवन में मेरा सिर्फ एक ही मकसद है और वो है अजय सिंह का खात्मा। मैं अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए अब किसी भी प्रकार का ब्यवधान नहीं चाहता।"
"जगदीश भैया ठीक ही कह रहे हैं बेटे।" गौरी ने समझाने वाले लहजे से कहा__"उच्च शिक्षा का होना भी ज़रूरी है। इस लिए तुम अपनी पढ़ाई को भी पूरा करो। हम में से कोई तुम्हें ये नहीं कह रहा कि तुम अपने मकसद से पीछे हटो, बल्कि वो तो तुम्हारा अब प्रण बन गया है उसे तुम ज़रूर पूरा करो। लेकिन साथ साथ अपनी पढ़ाई भी करते रहोगे तो कुछ ग़लत नहीं हो जाएगा।"
"हाॅ भइया।" निधि ने विराज के दाहिने बाजू को मजबूती से पकड़ते हुए कहा__"माॅ और अंकल सही कह रहें हैं आपको अपनी पढ़ाई कान्टीन्यू रखनी चाहिए। और फिर हम दोनों साथ में ही काॅलेज जाया करेंगे। कालेज में अगर मुझे कोई छेड़े तो आप उसकी जम कर धुनाई भी किया करना बिलकुल फिल्म के हीरो की तरह, हाॅ नहीं तो।"
"गुड़िया ने भी कह दिया तो ठीक है अंकल मैं अपनी पढ़ाई जारी करता हूॅ।" विराज ने निधि के सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"मैं कल ही किसी मेडिकल काॅलेज में एडमीशन करवा लेता हूॅ।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है बेटे।" जगदीश ने हॅस कर कहा__"मैंने आलरेडी तुम्हारा एडमीशन एक बढ़िया से मेडिकल काॅलेज में करवा दिया है।"
"क् क्या???" विराज ने चौंकते हुए कहा।
"हाॅ बेटे।" जगदीश ने हॅस कर कहा__"मुझे पता था कि तुम्हें इसके लिए मानना ही पड़ेगा, इस लिए मैंने पहले ही तुम्हारा एडमीशन करवा दिया है। कल कालेज जा कर सबसे पहले प्रिंसिपल से मिल लेना। दरअसल एडमीशन तो मैंने करवा दिया है किन्तु फार्म वगैरा में साइन तो तुम्हारे ही लगेंगे न। इस लिए जा कर पहले ये सब क्लियर कर लेना। बाॅकी किसी चीज़ की फिक्र मत करना। यूॅ समझना कि अपना ही काॅलेज है।"
"शुक्रिया अंकल।" विराज एकाएक सहसा गंभीर हो गया__"आपने इतना कुछ हमारे लिए कर दिया है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। आप हमारे जीवन में भगवान बन कर आए हैं वर्ना हर चीज़ से बेबस व लाचार हम आखिर क्या कर पाते?? ये मेरे ऊपर आपका कर्ज़ है जिसे मैं किसी भी जनम में उतार नहीं सकता।"
"ये सब कह कर तुमने मुझे पराया कर दिया बेटे।" जगदीश भावुक होकर बोला था__"जबकि मैं तुम सबको अपना परिवार ही मानने लगा हूॅ।"
"नहीं अंकल।" विराज सोफे से उठ कर तुरंत ही जगदीश के पैर पकड़ लिया, बोला__"मेरे कहने का मतलब वो नहीं था। आप पराए कैसे हो जाएंगे भला? आप हमारे लिए पराए हो भी नहीं सकते हैं। आप तो अपने व पराए से परे हैं अंकल। आप इस कलियुग के अद्वतीय इंसान हैं जिनके अंदर सिर्फ और सिर्फ नेकदिली और सच्चाई है।"
"ये सच है भैया।" गौरी की आॅखों में आॅसू थे, बोली__"आप हमारे लिए अपनों से भी बढ़ कर हैं, अपने कैसे होते हैं ये भी हमने देखा है मगर आप ग़ैर होकर भी अपने से बढ़ कर हैं। राज तो नासमझ है आप उसकी बात पर ये बिलकुल न समझें कि हम आपको पराया समझते हैं। बल्कि अगर दिल की सच्चाई बताऊॅ तो वो ये है कि अब आपके लिए अपनी जान तक कुर्बान करने का मन करने लगा है। हमारे ह्रदय में आपका स्थान बहुत ऊॅचा है भैया...बहुत ऊॅचा।"
"तुमने ये सब कह कर मुझे वो खुशी दी है बहन जो संसार भर की दौलत मिल जाने पर भी न होती।" जगदीश ने अपनी आॅखों में छलक आए आॅसुओं को पोंछते हुए कहा__"इसके पहले ऐसा लगता था जैसे ये संसार महज एक कब्रिस्तान है जहाॅ कोई इंसान तो क्या परिंदा तक नहीं है। कदाचित् सब कुछ खोकर और अकेलेपन में ऐसा ही महसूस होता है। मगर तुम सबके आ जाने से ये वीरान सा जीवन जैसे फिर से हरा भरा और खुशहाल हो गया है।"
"मैं तो आपको अपने भाई के रूप में पाकर धन्य ही हो गई हूॅ भैया।" गौरी ने कहा__"मेरा अपना कोई भाई न था, एक भाई के लिए तथा उसकी कमी से हमेशा दिल में दर्द रहा था। आपके मिलने से अब मन को त्रप्ति मिल गई है।"
"ये सब ईश्वर की ही कृपा है बहन।" जगदीश ने कहा__"वो जो भी करता है बहुत कुछ सोच कर ही करता है। इसके पहले कौन किसे जानता था किन्तु आज ऐसा है जैसे हम सब कभी गैर थे ही नहीं। सच कहता हूॅ बहन ईश्वर की इस इनायत से बहुत खुश हूॅ मैं।"
"अच्छा अब बहुत हो गया ये इमोशनल ड्रामा।" निधि ने भोलेपन से कहा__"कुछ खाने पीने की बात कीजिए न। मेरे पेट में पता नहीं कितने चूहे हैं जो काफी देर से उछल कूद कर रहे हैं। आप में से किसी को इसका खयाल ही नहीं है....जाओ नहीं बात करना किसी से अब, हाॅ नहीं तो।"
"चूहे तो मेरे पेट में भी कूद रहे हैं गुड़िया।" विराज ने अजीब सा मुह बना कर कहा__"मुझे भी किसी से बात नहीं करना अब, हाॅ नहीं तो।"
"क्या??????" निधि उछल पड़ी__"आपने मेरी नकल की? मतलब आपने मुझे चिढ़ाया? जाओ आपसे तो बिलकुल बात नहीं करनी, हाॅ नही तो।"
"ठीक है फिर।" विराज ने सोफे पर से उठते हुए कहा__"मैं अकेले ही चला जाता हूॅ आइसक्रीम खाने।"
"नननहीहीं।" निधि चीखी और उछल कर फौरन ही खड़ी हो गई__"आप अकेले आइसक्रीम खाने नहीं जा सकते मैं भी चलूॅगी आपके साथ और अगर आप अपने साथ मुझे न ले गए तो सोच लीजिएगा, हाॅ नहीं तो।"
"जो मुझसे बात नहीं करता मैं उसे अपने साथ कहीं नहीं लेकर जाता।" विराज ने अकड़ते हुए कहा__"तुम मुझसे बात नहीं कर रही तो तुम्हें अपने साथ लेकर क्यों जाऊॅ??"
"अरे मैं तो ऐसे ही कह रही थी।" निधि ने चापलूसी वाले अंदाज़ में कहा__"और वैसे भी मैं आपकी जान हूॅ न? आप अपनी जान के बिना कैसे चले जाएॅगे, हाॅ नहीं तो।"
"कोई कहीं नहीं जाएगा।" गौरी ने कहा__"चुप चाप बैठो दोनो, मैं खाना लेकर आती हूॅ।"
"नहीं नहीं।" निधि ने बच्चों की तरह कूदते हुए इंकार किया__"मुझे आइसक्रीम ही खाना है, हाॅ नहीं तो।"
"हा हा हा इन्हें जाने दो बहन।" जगदीश ने हॅसते हुए कहा__"जाओ बेटे, तुम गुड़िया को आइसक्रीम खिला कर आओ।"
"भैया आप नहीं जानते हैं।" गौरी ने जगदीश से कहा__"इसे आइसक्रीम की लत फिर से पड़ जाएगी। पहले ये बिना आइसक्रीम के एक दिन नहीं रहती थी। बड़ी मुश्किल से तो इसकी आइसक्रीम छूटी है।"
"एक दिन में कुछ नहीं होता।" जगदीश ने गौरी से कहने के बाद निधि की तरफ मुखातिब हो कर कहा__"और हाॅ बेटी, ज्यादा आइसक्रीम मत खाना। सेहत के लिए अच्छी नहीं होती।"
"जी अंकल।" कहने के साथ ही निधि ने विराज का बाजू पकड़ा और बाहर की तरफ खींचते हुए ले जाने लगी।
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दूसरे दिन विराज काॅलेज पहुॅचा। निधि उसके साथ ही थी। हलाॅकि ये उसका काॅलेज नहीं था किन्तु फिर भी उत्सुकतावश वह विराज के साथ ज़िद करके आई थी।
काॅलेज को देखकर दोनो भाई बहन चकित रह गए। विराज की आॅखों में जाने क्या सोच कर आॅसू आ गए जिसे उसने बड़ी ही सफाई से पोंछ लिया था। निधि तो कालेज की खूबसूरती में ही खोई हुई थी।
कुछ देर काॅलेज को देखने के बाद विराज निधि के साथ कालेज के अंदर गया। कालेज में थोड़ी देर इधर उधर घूमने के बाद निधि को विराज ने कालेज की कन्टीन में बैठा कर खुद प्रिंसिपल से मिलने उसके आफिस की तरफ बढ़ गया।
रास्ते में एक आदमी से उसने प्रिंसिपल का आफिस पूॅछा और आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद ही वह प्रिंसिपल के आफिस में प्रिंसिपल के सामने खड़ा था। उसने अपना नाम बताया, हलाॅकि जगदीश ओबराय ने सबकुछ पहले ही सेट कर दिया था। इस लिए विराज को ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
सारी फारमेलिटी पूरी करने के बाद तथा अपने कोर्स से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी लेने के बाद वह प्रिंसिपल के आफिस से बाहर आकर कालेज की कन्टीन की तरफ बढ़ गया। कन्टीन से निधि को साथ लेकर वह कालेज से बाहर आ गया।
"तो आख़िर आपको आपके पसंद का काॅलेज मिल ही गया न भइया?" रास्ते में बाइक पर पीछे बैठी निधि ने विराज से सट कर तथा विराज के कान के पास मुह ले जाकर बोली__"एक ऐसा काॅलेज जिसमें पढ़ने की कभी आपने तमन्ना की थी, और आज जब आपकी तमन्ना पूरी हुई तो आपकी आॅखों से आॅसू छलक पड़े। है न ?"
"न नहीं तो।" बाइक चला रहा विराज निधि की बात पर बुरी तरह चौंका था, बोला__"ऐसा कुछ नहीं है।"
"आप समझते हैं कि।" निधि ने कहा__"मुझे कुछ पता ही नहीं चला जबकि मैंने अपनी आॅखों से देखा भी और दिल से महसूस भी किया।"
"बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी है गुड़िया।" विराज ने हॅस कर कहा__"ऐसी जैसे कि कोई सयाना हो जाने पर करता है।"
"हाॅ तो मैं बड़ी हो गई न।" निधि ने भोलेपन से कहा__"आपने देखा था न उस दिन? मैं आपके कंधे से थी, और अब कुछ दिन बाद आपके काॅन से भी हो जाऊॅगी..देख लीजिएगा, हाॅ नहीं तो।"
"हाॅ तू तो कुछ दिन में मेरे सिर के ऊपर से भी निकल जाएगी गुड़िया।" विराज ने हॅसते हुए कहा।
"मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे ये कह कर आपने मेरा मज़ाक उड़ा दिया है?" निधि ने सोचने वाले भाव से कहा__"और अगर ऐसा ही है तो बहुत गंदे हैं आप। जाइए नहीं बात करना अब आपसे, हाॅ नहीं तो।"
"अरे ये क्या बात हुई गुड़िया??" विराज बुरी तरह हड़बड़ा गया।
"बात मत कीजिए अब।" निधि जो अब तक विराज से चिपकी हुई थी अब पीछे हट गई, फिर बोली__"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि मैं आपकी जान हूॅ, और अब अपनी ही जान का मज़ाक उड़ा रहे हैं, हाॅ नहीं तो।"
"अच्छा बाबा ग़लती हो गई।" विराज ने खेद भरे स्वर में कहा__"क्या अपने भइया को माफ़ नहीं करेगी गुड़िया??"
"अब आप माफ़ी मत माॅगिए।" निधि तुरंत ही खिसक कर विराज से फिर चिपक गई__"मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।"
"तू सचमुच मेरी जान है गुड़िया।" विराज ने भावुक होकर कहा__"तेरी एक पल की भी बेरुखी मैं सह नहीं सकता। मुझसे अगर कोई ग़लती हो जाए तो तू मुझे उसकी सज़ा दे देना लेकिन न ही कभी मुझसे नाराज़ होना और न ही ये कहना कि मुझसे बात नहीं करना।"
"भइया...।" निधि की रुलाई फूट गई, उसने अपने दोनो हाॅथ विराज के दोनो साइड से निकाल कर विराज के पेट पर कस लिया। फिर बोली__"आपसे नाराज़ होकर या आपसे बात न करके क्या मैं भी एक पल रह पाउॅगी? अगर मैं आपकी जान हूॅ तो आप भी तो मेरी जान हैं भइया।"
"चल अब तू रो मत गुड़िया।" विराज ने माहौल को बदलने की गरज से कहा__"हम दुकान के पास आ गए हैं। यहां पर मुझे कुछ किताबें वगैरा लेनी हैं। तू बता तुझे क्या चाहिए?"
"मुझे न।" निधि ने खुशी से कहा__"मुझे न एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल लेना है और हाॅ आप भी टच स्क्रीन वाला मोबाइल ले लीजिए। ये की-पैड को अब रिटायर कर दीजिए, हाॅ नहीं तो।"
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11-24-2019, 12:16 PM,
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"क्यों अच्छा तो है ये मोबाइल।" विराज ने कहा__"इसमें क्या खराबी है भला? तुझे पता है इसकी बैटरी हप्तों तक चलती है।"
"मैं कुछ नहीं जानती।" निधि ने कहा__"मैंने कह दिया है कि लेना है तो लेना है बस, हाॅ नहीं तो।"
"अब तो लेना ही पड़ेगा।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"मेरी गुड़िया, मेरी जान ने कह दिया है तो।"
"हाॅ नहीं तो।" निधि खुश हो गई।
"चलो पहले मोबाइल ही ले लेते हैं।" विराज ने कहा__"उसके बाद किताबें खरीद लूॅगा।"
ये कह विराज ने बाइक को मोबाइल स्टोर की तरफ मोड़ लिया। लगभग पाॅच मिनट बाद ही वो दोनो मोबाइल स्टोर में थे।
"गुड़िया।" विराज ने धीरे से कहा__"किस कंपनी का लेना है मोबाइल और कितने रुपये वाला??"
"मैं क्या बताऊॅ?" निधि ने भी विराज की तरह धीरे से ही कहा__"मुझे इस बारे में तो वैसे भी कुछ नहीं पता।"
"फिर अब क्या करें??" विराज ने कहा__"ये तो कमाल ही हो गया गुड़िया। मोबाइल खरीदने आ गए हैं लेकिन हमें यही पता नहीं है कि कौन सी कंपनी का तथा कितने रुपये तक का मोबाइल लेना है?"
"दुकान वाले से पूॅछ लेते हैं न।" निधि ने बुद्धि दी__"उसे तो सब कुछ पता ही होगा।"
"अरे हाॅ गुड़िया।" विराज ने अपने सिर में हाॅथ की थपकी लगा कर कहा__"ये तो मैने सोचा ही नहीं था। अच्छा हुआ तुमने बता दिया वर्ना यहाॅ से वापस जाना पड़ता। है न???"
"अब ज्यादा ड्रामा मत कीजिए।" निधि ने हॅस कर कहा__"मुझे पता है आप बुद्धू बनने का नाटक कर रहे हैं।"
"मतलब तूने पकड़ लिया??" विराज मुस्कुराया।
"और नहीं तो क्या।" निधि हॅसी__"सरलाॅक होम्स एक ज़माने में हमसे जासूसी की ट्रेनिंग लेने आता था, हाॅ नहीं तो।"
"एक्सक्यूज़मी सर।" तभी सहसा उन लोगों के पास शोरूम का एक ब्यक्ति आकर बोला__"व्हाट कैन आई हेल्प यू??"
"हमें किसी अच्छी कंपनी का सबसे अच्छा मोबाइल या आईफोन दिखाइए।" विराज ने उस ब्यक्ति से कहा।
उस ब्यक्ति ने आज के चलन के हिसाब से कई तरह के मोबाइल लाकर टेबल पर रख दिया तथा उन डिब्बों पर लिखी बातों को बता बता कर मोबाइल फोन की खासियत बताने लगा। फिर उसने आईफोन के कुछ सेट दिखाने लगा।
लगभग आधे घंटे बाद दोनो ही शोरूम से बाहर निकले। उन दोनों के हाॅथ में एक एक मोबाइल था।
"भइया आप मुझे सिखा दीजियेगा कि कैसे चलाते हैं??" निधि ने रास्ते में कहा।
"ठीक है गुड़िया।" विराज ने कहा__"चल अभी किताबें भी लेना है।"
"वैसे आपका काॅलेग कब से शुरू होगा?" निधि ने पूॅछा।
"एक हप्ते बाद।" विराज ने कहा।
"भइया मुझे भी आपके साथ इसी काॅलेज में पढ़ना है।" निधि ने कहा।
"अगले साल से तू भी इसी कालेज में आ जाना।" विराज ने कहा।
ऐसी ही बातें करते हुए दोनो बहन भाई बाइक से घर पहुॅच गए। विराज अपने मन पसंद कालेज में पढ़ने से बेहद खुश था। मगर वह नहीं जानता था कि अब आगे क्या होने वाला था??????
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"तुमने कब देखा उसके लंड को?" अजय सिंह ने एक पल रुक कर पूछा और फिर से धक्के लगाने लगा।
"आआआहहह एक दिन दोपहर में खेत पर गई थी अपनी गरमा गरम चूत लेकर।" प्रतिमा ने कहा__"सोच लिया था कि आज इस कमीने से अपनी चूत और गाॅड दोनो मरवा कर ही जाऊॅगी। उस समय खेत मे कोई नहीं था। खेत के मकान के एक कमरे में वो विजय कमीना दोपहर को आराम फरमा रहा था। मैं चुपके से अंदर कमरे मे पहुॅची...आआआहहहह....देखा तो वो गहरी नींद में सोया हुआ नज़र आया। बदन में ऊपर एक बनियान तथा नीचे लुंगी लगा रखी थी उसने। मुझे लगा इससे बढ़िया सुनहरा मौका इससे चुदने का फिर नहीं मिलेगा। ये सोचकर मैंने जल्दी से अपने बदन से सारे कपड़े उतार कर नंगी हो गई और चुपके से विजय की तरफ बढ़ी जो पास ही चारपाई पर सोया हुआ था।"
"क्या हुआ रुक क्यों गई?" अजय सिंह प्रतिमा के एकाएक चुप हो जाने पर कहा__"आगे क्या हुआ था फिर??"
"तुम रुक गए तो मैं भी रुक गई।" प्रतिमा ने कहा__"तुम मेरी कुटाई करते रहो...तभी तो मजे में बताऊगी न।"
"ओह हाॅ।" अजय सिंह चौंका और फिर से धक्के लगाते हुए बोला__"अब बताओ।"
"आआहहहहह हाॅ ऐसे ही आआआहहह जोर जोर से चोदो मुझे।" प्रतिमा ने मजे से आंखें बंद करते हुए कहा__"विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन क्या करने आया है? मैं उसके हट्टे कट्टे शरीर को देख कर आहें भरने लगी थी। चारपाई के पास पहुॅच कर मैंने दोनों हाॅथों से विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। मैंने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। कसम से अजय उसे देख कर मेरे मुॅह में पानी आ गया था। मैंने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा मुझे। मैंने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई मुझे। मैंने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। मैंने चैन की साॅस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। मेरे हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर मुझमें अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था, मेरी साॅसें तेज़ होने लगी थी। मैंने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर मुझे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। मेरे बारे में वो जान चुका था कि मैं क्या चाहती हूॅ उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह मुझसे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। मैंने देखा कि उसका लंड मेरी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक मेरी हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। मुझे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ लूॅ। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही। उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए मैं पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि मैं अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। मेरे अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। मुझसे बरदास्त न हुआ और मैंने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया....और यही मुझसे ग़लती हो गई। मैंने ये सब अपने आपे से बाहर हो कर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। मैंने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो मेरे ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को मेरे मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु तुरंत ही वह मेरे मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतरकर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तो मुझे कुछ समझ ही न आया कि ये क्या और कैसे हो गया। होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ मेरे कानों से टकराई।
"ये क्या बेहूदगी है?" विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__"अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?"
मैं चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन इस लिए मेरी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप मैंने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर मैं सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। मुझे ख़याल ही नहीं रह गया था कि मैं नंगी ही बैठी हूॅ। जबकि,,,
"आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।" विजय कहे जा रहा था__"और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से...और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?"
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