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RE: non veg kahani एक नया संसार
अब तक,,,,,,,,
"सबर कर बछुवा।" हरिया ने कहा___"गला फाड़ने से का होई? ऊ ता हिम्मत रखै से होई। अउर ई ता अबे शुरूआतै हुआ है। अबे ता मंजिल बहुत बाॅकी है बछुवा।"
"आआहहहहहह मममममम्मी रेरेएएएएएए।" हरिया ने ज़ोर का झटका दिया। सूरज की गाॅड को चीरता हुआ हरिया का लौड़ा लगभग आधा घुस गया था। सूरज के मुख से बड़ी भयंकर चीख निकली थी। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा छा गया। सूरज बेहोश हो चुका था। उसकी हालत देख कर बाकी सब के होश उड़ गए। सूरज के दोस्त थर थर काॅपने लगे। वो अनायास ही ज़ोर ज़ोर से पागलों की तरह रोने चिल्लाने लगे।
"अबे चुप करा मादरचोदो वरना ई लौड़ा इसकी गाॅड से निकाल के तुम्हरी गाॅड में घुसेड़ दूॅगा हम।" हरिया गुर्राया तो वो डर के मारे एक दम से चुप हो गए। उनके चुप हो जाने के बाद हरिया ने सूरज की गाॅड में थप्पड़ मारते हुए बोला___"का बे मादरचोद। ससुरे इतने से ही टाॅय बोल गया रे। अभी ता हम पूरा लौड़ा डाला भी नहीं हूॅ।"
हरिया सूरज की गाॅड में धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ वह थोड़ा बहुत लौड़े को सूरज की गाॅड में घुसेड़ता ही रहा था। सूरज बेहोशी की हालत में भी कराह रहा था। हरिया एक बार तेज़े से धक्का लगाया तो एच ज़ोरदार चीख के साथ सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वह बुरी तरह रोने बिलखने लगा। रहम की भीख माॅगने लगा वह। मगर हरिया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका वह। तहखाने में सूरज का रोना और चिल्लाना ज़ारी रहा।
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अब आगे,,,,,,,,,
उधर मुम्बई में भी सुुुुबह हुई।
गौरी ने सुबह पाॅच बजे ही विराज को उठा दिया था। सुबह उठ कर उसने थोड़ी बहुत एक्सरसाइज की और फिर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। फ्रेश होने के बाद वह कमरे में आया तो देखा कि उसकी बहन निधि बेड पर बैठी हुई है।
"अरे तुझे स्कूल नहीं जाना क्या?" मैने तौलिये से अपने सिर के बालों को पोंछते हुए कहा।
"जाना है।" निधि ने गौर से मेरे शरीर को देखते हुए कहा___"मैं तो बस आपको बेस्ट ऑफ लक कहने आई थी।"
"अच्छा तो ये बात है।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मेरी गुड़िया मेरी जान मुझे बेस्ट ऑफ लक कहने रूम में आई है?"
"हाॅ लेकिन अपने तरीके से।" निधि ने मुस्कुरा कर कहा।
"अपने तरीके से?" मैं उसकी बात से नासमझने वाले अंदाज़ से बोला___"किस तरीके की बात कर रही है तू?"
"वो मैं कर के बताऊॅगी भइया।" निधि ने कहा___"बस आपको अपनी दोनो ऑखें बंद करना पड़ेगा। और खबरदार ग़लती से भी अपनी ऑखें मत खोलियेगा। वरना मैं आपसे बात नहीं करूॅगी। हाॅ नहीं तो।"
"अरे ये क्या कह रही है गुड़िया?" मैं उसकी बात से हैरान हुआ___"आख़िर क्या चल रहा है तेरे मन में?"
"कुछ नहीं चल रहा भइया।" निधि एकाएक ही हड़बड़ा गई थी, बोली___"बस आप अपनी ऑखें बंद कीजिए न।"
मैं उसे ग़ौर से देखता रहा। उसके चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। खूबसूरती में वह बिलकुल मेरी माॅ की कार्बन काॅपी ही थी। हलाॅकि उसका चेहरा और उसका पूरा रंगरूप मेरी माॅ गौरी की तरह ही था। वो माॅ की हमशक्ल टाइप की थी।
"क्या हुआ भइया?" निधि कह उठी___"क्या सोचने लगे आप? बंद कीजिए न अपनी ऑखें।"
"अच्छा ठीक है बंद करता हूॅ।" मैने कहा__"पर कोई उटपटाॅग हरकत मत करना।"
"मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करूॅगी भइया।" निधि ने कहा___"और अगर कर भी दूॅ तो मेरी भूल समझ कर मुझे माफ़ कर देना। हाॅ नहीं तो।"
मैं उसकी नटखट बातों पर मुस्कुरा उठा और अपनी ऑखें बंद कर ली। कुछ पल बाद ही मुझे अपने होठों पर कोई बहुत ही कोमल चीज़ महसूस हुई। अभी मैं कुछ समझ भी न पाया था कि उस कोमल चीज़ ने मेरे होठों को जोर से दबोच कर दो सेकण्ड तक अपने अंदर रख कर उस पर कुछ किया उसके बाद छोंड़ दिया। मेरे दिमाग़ में विस्फोट सा हुआ। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जली। मैने झट से अपनी ऑखें खोल दी। सामने देखा तो निधि भागते हुए कमरे के दरवाजे पर नज़र आई मुझे। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह रुकी और फिर पलटी। उसके बाद मुस्कुराते हुए कहा__"बेस्ट ऑफ लक भइया।" इतना कह कर वह दरवाछे के बाहर की तरफ हवा की तरह निकल गई। जबकि मैं बुत बना खड़ा रह गया।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी बहन ने इन कुछ पलों के भीतर मेरे साथ क्या कर दिया था। वह मेरे होठों को बड़ी चतुराई से चूम कर मुझे बेस्ट ऑफ लक कहा और भाग भी गई। मुझे उससे इस सबकी उम्मीद नहीं थी। फिर मुझे ध्यान आया कि वो मुझसे प्यार करती है जिसका उसने इज़हार भी किया था।
मैं काफी देर तक बुत बना खड़ा रहा। मेरी तंद्रा तब टूटी जब माॅ कमरे में आकर बोली___"तू अभी तक तैयार नहीं हुआ काॅलेज जाने के लिए? चल तैयार होकर आ जल्दी। मैने नास्ता तैयार करके लगा दिया है।"
मैं माॅ की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा था। उसके बाद मैंने माॅ से कहा कि आप चलिए मैं आता हूॅ। मेरे दिमाग़ में अभी तक यही चल रहा था कि गुड़िया ने ऐसा क्यों किया? मुझे अपने होठों पर अभी भी उसके नाज़ुक होठों का एहसास हो रहा था। मैने अपने होठों पर जीभ फिराई तो मुझे मीठा सा लगा। उफ्फ ये क्या है? मेरी गुड़िया के मुख और होठों का लार इतना मीठा था। मुझे अपने अंदर बड़ा अजीब सा रोमाॅच होता महसूस हुआ। मेरा रोम रोम गनगना उठा था।
ख़ैर मैं काॅलेज की यूनीफार्म पहन कर कमरे से बाहर आया और फिर नीचे डायनिंग हाल की तरफ बढ़ गया। डायनिंग टेबल पर इस वक्त सब लोग बैठे हुए थे। जगदीश अंकल, अभय चाचा, गुड़िया और माॅ। मैं भी एक कुर्सी खींचकर बैठ गया। मेरी नज़र निधि पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपना चेहरा झुका लिया। उसके गोरे गोरे और फूले हुए गाल कश्मीरी सेब की तरह सुर्ख हो गए थे लाज और शर्म की वजह से।
"ये बहुत अच्छा किया राज जो तुमने अपनी पढ़ाई जारी कर दी।" सहसा सामने कुर्सी पर बैठे अभय चाचा ने कहा___"मुझे खुशी है कि इतना कुछ होने के बाद भी तुम अपने रास्ते से नहीं भटके। मुझे तुम पर फक्र है राज और मेरा आशीर्वाद है कि तुम हमेशा कामयाबी और सफलता के नये और ऊॅची बुलंदियों को प्राप्त करो।"
"शुक्रिया चाचा जी।" मैने कहा___"भले ही चाहे जो हुआ हो लेकिन मैं जानता था कि आपके दिल में हमारे लिए इतनी भी नफ़रत नहीं होगी जितनी कि बड़े पापा और बड़ी माॅ के दिलों में है हमारे लिए।"
"समय बहुत बलवान होता है राज।" अभय चाचा ने कहा___"और बहुत बेरहम भी। वो हमसे वो सब भी करवा लेता है जिसे करने की हम कभी कल्पना भी नहीं करते। पर कोई बात नहीं बेटे, इंसान वही श्रेष्ठ और महान होता है जो हर तरह के कस्टों को पार करके आगे बढ़ता है।"
"राज बेटा मैने तुम्हारे लिए काॅलेज जाने के लिए एक नई और शानदार कार मगवा दी है जो कि बाहर ही खड़ी है।" जगदीश अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा___"हम चाहते हैं कि तुम अपने नये सफर की शुरूआत उसी से करो।"
"इसकी क्या ज़रूरत थी अंकल?" मैने कहा___"मैं वहाॅ पर पढ़ने जा रहा हूॅ ना कि किसी को अपनी अमीरी दिखाने। माफ़ करना अंकल लेकिन मैं चाहता हूॅ कि मैं भी उसी तरह कालेज जाऊॅ जैसे सभी आम लड़के जाते हैं। बाॅकि ऑफिस के कामों के लिए मैं ये सब यूज करूॅगा। मुझे खुशी है कि आपने मेरे लिए एक नई कार लाकर दी।"
"ठीक है बेटे जैसी तुम्हारी इच्छा।" जगदीश अंकल ने कहा___"मुझे ये जान कर अच्छा लगा कि तुम ऐसी सोच रखते हो।"
"वैसे राज किस काॅलेज में एडमीशन लिया है तुमने?" अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए पूछा।
"..............में चाचा जी।" मैने बताया।
"अरे इस काॅलेज में तो नीलम ने भी एडमीशन लिया हुआ है।" अभय चाचा चौंके थे___"और निश्चय ही तुम्हारी मुलाक़ात उससे होगी ही वहाॅ। वो जब तुम्हें वहाॅ पर देखेगी तो जरूर बड़े भइया को बताएगी कि तुम भी उसी काॅलेज में पढ़ रहे हो जहाॅ पर वो पढ़ रही है। उसके बाद तुम पर ख़तरा भी हो सकता है बेटे। इस लिए ज़रा सम्हल कर रहना।"
"चिन्ता मत कीजिए चाचा जी।" मैने अजीब भाव से कहा___"मैं तो चाहता ही हूॅ कि अब धीरे धीरे बड़े पापा को ये पता लगे कि मैं किस जगह पर हूॅ। उन्होने तो मेरी तलाश में जाने कब से अपने आदमियों को लगाया हुआ है। उनके आदमी आज महीने भर से मेरी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"
"तुम्हें ये सब कैसे पता?" अभय चाचा बुरी तरह चौंके थे।
"मैं उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहा___"आप अभी कुछ नहीं जानते हैं कि मैंने यहाॅ पर बैठे बैठे ही उनकी कैसी कैसी खातिरदारी की है।"
"क्या मतलब?" अभय चाचा के माथे पर बल पड़ता चला गया, बोले___"किस खातिरदारी की बात कर रहे हो तुम?"
"ये सब आपको जगदीश अंकल बता देंगे चाचा जी।" मैने कहा___"फिलहाल तो मैं अभी काॅलेज जा रहा हूॅ। आज मेरा पहला दिन है। इस लिए मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने इस सफर पर कामयाब होऊॅ।"
"मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ ही रहेगा राज।" अभय चाचा ने कहा।
उसके बाद हम सबने नास्ता किया और फिर नास्ता करके मैंने अपना बैग लिया। सबसे आशीर्वाद लेकर मैं निधि को लेकर बाहर आ गया।
मैने गैराज से अपनी बाइक निकाली और निधि को पीछे बैठा कर लान से होते हुए मेन गेट से बाहर निकल गया। निधि मेरे साथ इस लिए थी क्योंकि उसे भी स्कूल जाना था। जोकि मेरे काॅलेज के रास्ते पर ही था। निधि मेरे पीछे चुपचाप बैठी हुई थी। वो कुछ बोल नहीं रही थी। ये बड़ी आश्चर्य की बात थी वरना वह चुप रहने वालों में से न थी।
"तो मैडम आज चुप चुप सी क्यों है भई?" मैने बाइक चलाते हुए कहा___"वैसे आज तो मैडम ने ग़जब ही कर दिया है।"
"आप किससे बात कर रहे हैं भइया?" निधि ने कहा।
"किससे का क्या मतलब है मैडम?" मैने कहा___"आप ही से बात कर रहा हूॅ।"
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11-24-2019, 12:41 PM,
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"अच्छा।" निधि ने कहा___"तो मैं मैडम हूॅ?"
"और नहीं तो क्या।" मैने कहा___"मेरी गुड़िया किसी मैडम से कम है क्या?"
"ओहो ऐसा क्या?" निधि एकदम से सरक कर मुझसे चिपक गई, बोली___"लेकिन आपकी टोन बदली हुई क्यों लग रही है मुझे?"
"क्या बताऊॅ गुड़िया?" मैने कहा___"आज सुबह सुबह एक बिल्ली ने मेरे होठों को काट लिया था।"
"क्या?????" निधि चीख पड़ी___"आपने मुझे बिल्ली कहा? अपनी जान को बिल्ली कहा? जाइए नहीं बात करना आपसे। हाॅ नहीं तो।"
"अरे तो तुम क्यों नाराज़ हो रही हो?" मैने कहा___"मैं तो उस बिल्ली की बात कर रहा हूॅ जिसने आज मेरे होठों को काटा था।"
"फाॅर काइण्ड योर इन्फोरमेशन।" निधि ने कहा___"आप जिसे बिल्ली कह रहे हैं वो मैं ही थी। और आपने मुझे बिल्ली कहा। बहुत गंदे हैं आप। हाॅ नहीं तो।"
"ओह माई गाॅड।" मैने कहा___"तो वो तुम थी?"
"ज्यादा ड्रामें मत कीजिए।" निधि एकाएक मुझसे अलग होकर बाइक में पीछे सरक गई, बोली___"मुझे आपसे बात नहीं करनी बस। आपने अपनी जान को बिल्ली कहा है। ये तो मेरी इनसल्ट है, हाॅ नहीं तो।"
"लेकिन मुझे ये सब अच्छा नहीं लगा गुड़िया।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"तुझे वैसा नहीं करना चाहिए था मेरे साथ। ये ग़लत है।"
मेरी इस बात पर निधि की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न हुई। वो एकदम से चुप थी।
"तू जानती है न कि भाई बहन के बीच ये सब ग़लत होता है।" मैने कहा___"मैने उस दिन भी तुझसे कहा था। फिर आज तूने ऐसा क्यों किया गुड़िया? तुझे पता है अगर ये सब माॅ को पता चल गया तो उन पर क्या गुज़रेगी?"
इस बार भी निधी कुछ न बोली। मैं उसकी चुप्पी देख कर बेचैन व परेशान सा हो गया। मैंने तुरंत ही सड़क के किनारे पर बाइक को रोंक दी और पीछे पलट कर देखा तो चौंक गया। निधि का चेहरा ऑसुओं से तर था। उसकी ऑखें लाल हो गई थी। मैं उसकी इस हालत को देख कर हिल सा गया। वो मेरी बहन थी, मेरी जान थी। उसकी ऑखों में ऑसूॅ किसी सूरत में नहीं देख सकता था मैं। मैं तुरंत बाइक से नीचे उतरा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया।
"ये क्या है गुड़िया?" मैने दुखी भाव से कहा___"तू जानती है न कि मैं तेरी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकता। फिर क्यों तूने अपनी ऑखों को रुलाया? क्या मुझसे कोई ग़लती हो गई है? बता न गुड़िया।"
"ये ऑसू तो अब मेरी तक़दीर में लिखने वाले हैं भइया।" निधि ने भर्राए गले से कहा__"जब से होश सम्हाला था तब से आप ही को देखा था, आपको ही अपना आदर्श माना था। फिर हमारे साथ वो सब कुछ हो गया। आप हमसे दूर यहाॅ नौकरी करने आ गए। मगर दो दिल तो हमेशा रोते रहे। एक अपने बेटे के लिए तो एक अपने भाई की मोहब्बत के लिए। मैं नहीं जानती भइया कि कब मेरे दिल में आपके लिए उस तरह का प्रेम पैदा हो गया। फिर मैने आपकी वो डायरी पढ़ी। जिसमें आपने अपनी मोहब्बत की दुखभरी दास्तां लिखी थी। विधी की बेवफाई से आप अंदर ही अंदर कितना दुखी थे ये मुझे उस डायरी को पढ़ कर ही पता चला था। उस दिन जब हम दोनो घूमने समंदर गए थे। तब आपने वहाॅ शराब पी और अपनी हालत खराब कर ली थी। आपको मेरे चेहरे में विधी नज़र आई और आपने अपने दिल का सारा गुबार निकाल दिया। मैं आपकी उस दशा को देख कर बहुत दुखी हो गई थी। आप तो शुरू से ही मेरी जान थे। मुझे उस दिन लगा कि आपको सहारे की ज़रूरत है। मैंने जो अब तक अपने दिल में उस प्रेम को छुपाया हुआ था उसे बाहर लाने का फैसला कर लिया। मुझे किसी की परवाह नहीं थी कि लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे? मुझे तो बस इस बात की फिक्र थी कि मेरे भइया दुखी न रहें। मैं अपकी खुशी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई थी। इसी लिए उस दिन मैने आपसे अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था। मुझे पता है कि भाई बहन के बीच ये सब नहीं हो सकता इसके बावजूद मैंने ये अनैतिक कदम उठा लिया। आपने भी तो बाद में मुझसे यही कहा था न कि ठीक है तुझे जो करना है कर। मोहब्बत तो किसी से भी हो सकती है। लेकिन आज फिर आपने कह दिया कि ये सब ग़लत है। अब तो ऐसा हाल हो चुका है कि मेरे दिल से आपके लिए वो चाहत जा ही नहीं सकती। मुझे इस बात पर रोना आया भइया कि आप कभी मेरे नहीं हो सकते। ये देश ये समाज कभी मेरी झोली में आपको जायज बना कर नहीं डाल सकता। तो फिर ये ऑसूॅ तो अब मेरी तक़दीर ही बन गए न भइया। इन ऑसुओं पर आज तक भला किसी का ज़ोर चला है जो मेरा चल जाएगा।"
मैं निधि की बातें सुन कर चकित रह गया था। मुझे उसकी हालत का एहसास था। क्योंकि इश्क़ के अज़ाब तो मुझे पहले से ही हासिल थे। जिनका असर आज भी ऐसा है कि दिल हर पल तड़प उठता है। लेकिन मैं अपनी बहन की मोहब्बत को कैसे स्वीकार कर लेता? मेरी माॅ एक आदर्शवादी और उच्च विचारों वाली है। उसे अगर ये पता चल गया कि उसकी अपनी औलादें ऐसा अनैतिक कर्म कर रही हैं तो वो तो जीते जी मर जाएगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किसे चुनूॅ? अपनी बहन की मोहब्बत को या फिर माॅ को?
"सब कुछ समय पर छोड़ दो गुड़िया।" मैने कहा___"और हर पल यही कोशिश करो कि ये सब तुम्हारे दिल से निकल जाए।"
"नहीं निकलेगा भइया।" निधि ने रोते हुए कहा___"मैने बहुत कोशिश की मगर नहीं निकाल सकी मैं अपने दिल से आपको। ख़ैर जाने दीजिए भइया। आप परेशान न होईये। आज के बाद आपको शिकायत का मौका नहीं दूॅगी।"
मैने निधि को ध्यान से देखा। उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव दिखाई देने लगे थे। जैसे उसने कोई फैंसला कर लिया हो। मैने उसकी ऑखों से ऑसू पोछे और फिर वापस बाइक पर आ गया। बाइक स्टार्ट कर मैं आगे बढ़ गया। सारे रास्ते निधि चुप रही। मुझे भी समझ न आया कि मैं क्या बातें करूॅ उससे। थोड़ी ही देर में उसका स्कूल आ गया। मैने उसे स्कूल के गेट पर उतारा और प्यार से उसके सिर पर हाॅथ फेर कर आगे बढ़ गया। निधि के बारे में सोचते सोचते ही मैं काॅलेज पहुॅच गया।
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पुलिस हेडक्वार्टर गुनगुन।
लम्बी चौड़ी मेज के उस पार पुलिस कमिश्नर बैठा हुआ था। जिसकी वर्दी पर लगी नेम प्लेट में उसका नाम कुलभूषण घोरपड़े लिखा हुआ था। पचास से पचपन के बीच की ऊम्र का वह एक प्रभावशाली ब्यक्तित्व वाला इंसान था। उसके बाएॅ साइड की एक कुर्सी पर इंस्पेक्टर रितू बैठी हुई थी। बाॅकी पूरा ऑफिस खाली था।
रितू ने कमिश्नर से गुज़ारिश की थी कि वो अपनी बात सिर्फ उनसे ही करेगी। उन दोनो के बीच कोई तीसरा नहीं होना चाहिए। कमिश्नर चूॅकि अच्छी तरह जानता था कि रितू हल्दीपुर के बघेल परिवार की ठाकुर अजय सिंह की बेटी है। इस लिए उसकी इस गुज़ारिश को उसने स्वीकार कर लिया था वरना पुलिस की एक मामूली सी इंस्पेक्टर रैंक की ऑफिसर की इस डिमाण्ड को स्वीकार करना कदाचित कमिश्नर की शान में गुस्ताख़ी करने जैसा होता।
"सो ऑफिसर, अब बताओ कि ऐसी क्या खास बात करनी थी तुम्हें जिसके लिए तुमने हमसे ऐसी गुज़ारिश की थी?" पुलिस कमिश्नर ने कहा___"ये तो हम समझ गए हैं कि मामला यहाॅ के मंत्री और उसके बेटे का है। लेकिन ये समझ नहीं आया कि अचानक से तुम्हारा प्लान कैसे बदल गया?"
"आप तो जानते हैं सर कि हमारा कानून आज के समय में बड़े बड़े लोगों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया है।" रितू ने कहना शुरू किया___"मंत्री के जिस बेटे ने अपने दोस्तों के साथ उस मासूम लड़की के साथ वो घिनौना कुकर्म किया था उसके लिए उसे कानूनन कोई सज़ा मिल ही नहीं पाती। क्योंकि उन सभी लड़कों के बाप इस शहर की नामचीज़ हस्तियाॅ हैं। उनके एक इशारे पर हमें पुलिस के लाॅकअप का ताला खोल कर उन लड़कों को छोंड़ देना पड़ता। हमारे पास भले ही चाहे जितने सबूत व गवाह होते मगर हम उन सबूतों और गवाहों के बाद भी उन्हें कानूनी तौर कोई सज़ा नहीं दिला पाते। उल्टा होता ये कि उन पर हाॅथ डालने वालों के साथ ही कुछ बुरा हो जाता। वो लड़की बग़ैर इंसाफ पाए ही इस दुनियाॅ से अलविदा हो जाती। आप नहीं जानते सर, उस लड़की को ब्लड कैंसर है। वह बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। उन दरिंदों को उस पर ज़रा सी भी दया नहीं आई। आप उस लड़की की कहानी सुनेंगे तो हिल कर रह जाएॅगे सर। इस छोटी सी ऊम्र में उसने कितना बड़ा त्याग किया है इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। ऐसे कुकर्मियों का एक ही इलाज़ है सर___सज़ा ए मौत। ऐसे लोगों को हज़ार बार ज़िंदा करके हज़ारों बार तड़पा तड़पा कर मारा जाए तब भी कम ही होगा। इस लिए सर मैने उन सबको ऐसी ही सज़ा देने का फैंसला किया है।"
"देखो ऑफिसर भावनाएॅ और जज़्बात रखना बहुत अच्छी बात है।" कमिश्नर ने कहा___"लेकिन हमारे कानून में भावनाओं और जज़्बातों के आधार पर किसी का फैंसला नहीं हुआ करता। बल्कि ठोस सबूतों और गवाहों के आधार पर ही फैंसला होता है। तुम कानून की एक रक्षक हो तुम्हें इस तरह का गैरकानूनी फैसला लेने का कोई हक़ नहीं है। किसे सज़ा देनी है और कैसे देनी है ये फैसला अदालत करेगी। तुमने अपनी मर्ज़ी से ये जो क़दम उठाया है इसके लिए तुम्हें सस्पेण्ड भी किया जा सकता है। इस लिए बेहतर होगा कि तुम ये सब करने का विचार छोंड़ दो।"
"ये सब मैं आपको बताए बग़ैर भी कर सकती थी सर।" रितू ने कहा___"मगर मैने ऐसा किया नहीं। आपको इस बारे में बताना अपना कानूनी फर्ज़ समझा था मैने। वरना उन लड़कों के साथ कब क्या हो जाता ये कभी कोई जान ही नहीं पाता। ये बात आप भी जानते हैं सर कि मंत्री खुद भी ग़ैर कानूनी काम धड़ल्ले के साथ करता है और हमारा पुलिस डिपार्टमेंट उसके खिलाफ कोई कार्यवाही करने की तो बात दूर बल्कि ऐसा सोचता तक नहीं। ऐसा कौन सा अपराध नहीं है सर जिसे वो चौधरी अंजाम नहीं देता? मगर आज तक उस पर कानून ने हाथ नहीं डाला। सिर्फ इस डर से कि कहीं उसका क़हर हमारे डिपार्टमेंट पर न बरस पड़े। वाह सर वाह, क्या कहने हैं इस पुलिस डिपार्टमेंट के। अरे इतना ही डरते हैं उससे तो पुलिस की नौकरी ही न करनी थी सर।"
"सब तुम्हारे जैसा नहीं सोचते हैं ऑफिसर।" कमिश्नर ने कहा___"और अगर सोचते भी हैं तो बहुत जल्द उनकी वो सोच बदल भी जाती है। क्योंकि डिपार्टमेंट में ऐसे कुछ लोग भी होते हैं जो वर्दी तो पुलिस की पहनते हैं मगर नौकरी उस चौधरी के यहाॅ करते हैं। उसकी जी हुज़ूरी करते हैं। क्योंकि इसी में वो अपना भला समझते हैं। हमें सब पता है ऑफिसर लेकिन कुछ कर नहीं सकते। अगर करना भी चाहेंगे तो दूसरे दिन ही हमारे सामने ट्राॅसफर ऑर्डर आ जाएगा। ये सब तो आम बात हो गई है ऑफिसर।"
"कमाल की बात है सर।" रितू ने कहा___"इस तरह में तो कोई काम ही नहीं हो सकता। पुलिस की अकर्मण्ड्यता से नुकसान किसका होगा? उन मासूम लोगों का जो दिन रात अपने बीवी बच्चों के लिए खून पसीना बहाते हैं, इसके बाद भी भर पेट वो अपने परिवार को खाना नहीं खिला पाते। चरस और अफीम जैसे ज़हर का हर दिन वो इसी तरह शिकार होते रहेंगे। ऐसे ही न जाने कितनी लड़कियों का रेप होता रहेगा। और ये सब कुकर्म करने वाले अपनी हर जीत का जश्न मनाते रहेंगे।"
"कानून ने अपनी ऑखों पर पट्टी बाॅधी हुई है तुम भी ऑखों पर पट्टी बाॅध लो।" कमिश्नर ने कहा___"इसी में इस डिपार्टमेंट का भला है ऑफिसर।"
"हर्गिज़ नहीं सर।" रितू के मुख से शैरनी की भाॅति गुर्राहट निकली। एक झटके से वह कुर्सी से खड़ी हो गई थी, बोली___"मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूॅ जो ऐसे गीदड़ों से डर जाऊॅगी। आपको अपनी चिंता है और इस डिपार्टमेंट की तो करते रहिए चिंता। मगर मैं चुप नहीं बैठूॅगी सर। मैं उन हराम के पिल्लों को ऐसी सज़ा दूॅगी की फरिश्तों का भी कलेजा हिल जाएगा।"
"बिहैव योरसेल्फ ऑफिसर।" कमिश्नर ने शख्त भाव से कहा___"तुम कानून को अपने हाथों में नहीं ले सकती।"
"आपने मजबूर कर दिया है सर।" रितू ने आहत भाव से कहा___"बड़ी उम्मीद के साथ आई थी आपके पास। सोचा था कि आप मेरी मदद करेंगे। मगर आप तो.....ख़ैर जाने दीजिए सर। मुझे बस एक सवाल का जवाब चाहिए आपसे। क्या आप नहीं चाहते हैं कि ऐसे लोगों को सज़ा मिले?"
"बिलकुल चाहते हैं ऑफिसर।" कमिश्नर ने कहा___"मगर हमारे चाहने से क्या होता है? हम तो बस मजबूर कर दिये जाते हैं कुछ न करने के लिए।"
"अगर आप सच में चाहते हैं सर।" रितू ने कहा___"तो फिर मेरा साथ दीजिए। आपको करना कुछ नहीं है। बस इतना करना है कि अगर ऊपर से कोई बात आए तो आप यही कहेंगे कि विधी रेप केस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सबूत के तौर पर आप उन्हें फाइलें भी दिखा सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाती हूॅ सर कि आप पर और आपके इस डिपार्टमेंट पर किसी भी तरह की कोई बात नहीं आएगी। क्योंकि मेरे पास उस मंत्री के ऐसे ऐसे सबूत हैं कि वो चाह कर भी हमारा कुछ बुरा नहीं कर सकता। आप बस वो करते जाइये जो मैं कहूॅ। फिर आप देखिए कि कैसे मैं शहर से इस गंदगी और इस अपराध का नामो निशान मिटाती हूॅ।"
"कैसे सबूत हैं तुम्हारे पास?" पुलिस कमिश्नर चौंका था।
"बस आप ये समझिए सर कि उस मंत्री की और उस जैसे लोगों की जान अब मेरी मुट्ठी में है।" रितू ने कहा___"वो सब अपने हाथ पैर चलाना तो चाहेंगे मगर चला नहीं पाएॅगे।"
"अगर ऐसी बात है ऑफिसर तो हम यकीनन तुम्हारे साथ हैं।" कमिश्नर ने एकाएक गर्मजोशी से कहा___"तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारे पास इन लोगों के खिलाफ़ इतने पुख़्ता सबूत हैं?"
"आप मेरी बात ही कहाॅ सुन रहे थे सर।" रितू ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"बस जाने क्या क्या कहे जा रहे थे।"
"ओह साॅरी ऑफिसर।" कमिश्नर हॅसा__"तो अब बताओ क्या करना है आगे?"
"मैंने तो पहले ही करना शुरू कर दिया था सर।" रितू ने कहा___"बस आपको इस बात की जानकारी देना चाहती थी। अब तो आप बस आराम से यहीं पर बैठ कर न्यूज आने का इंतज़ार कीजिए।"
"ओके ऐज योर विश।" कमिश्नर ने कंधे उचकाए___"एण्ड हमें बेहद खुशी हुई कि तुम एक ईमानदार और बहादुर ऑफिसर हो। बेस्ट ऑफ लक।"
"थैंक्यू सर।" रितू ने कहा और फिर कमिश्नर को सैल्यूट कर वह ऑफिस से बाहर निकल गई।
बाहर आकर वह अपनी पुलिस जिप्सी में बैठ कर हैडक्वार्टर से बाहर निकल गई। उसके चेहरे पर इस वक्त खुशी और जोश दोनो ही भाव गर्दिश कर रहे थे। सड़क पर उसकी जिप्सी हवा से बातें करते हुए एक मोबाइल स्टोर की दुकान पर रुकी। लेकिन फिर जाने क्या सोच कर उसने फिर से जिप्सी को आगे बढ़ा दिया।
आधे घंटे से कम समय में ही वह एक मकान के सामने आकर रुकी। उसने अपनी पाॅकेट से अपना आईफोन निकाला और उसमें कोई नंबर डायल किया।
"बाहर आओ।" उसने काल कनेक्ट होते ही कहा, और फिर बिना उधर का जवाब सुने काल कट कर दिया। थोड़ी देर बाद ही उसके पास एक आदमी आकर खड़ा हो गया। वो आदमी यही कोई पच्चीस या तीस की उमर के आस पास का रहा होगा।
"जी मैडम कहिए क्या आदेश है?" उस आदमी ने बड़ी शालीनता से कहा।
"एक काम करो अगर यहाॅ पास में कहीं कोई मोबाइल स्टोर हो तो एक मोबाइल फोन खरीद कर ले आओ।" रितू ने जेब से दो हज़ार के पाॅच नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा__"और एक नई सिम भी। कोशिश करना कि सिम ऐसे ही मिल जाए और तुरंत एक्टिवेट भी हो जाए। तुम समझ रहे हो न?"
"जी मैं समझ गया मैडम।" आदमी ने सिर हिलाते हुए कहा___"आप फिक्र मत कीजिए। यहीं पास में ही एक मोबाइल स्टोर है। मैं अभी दोनो चीज़ें लेकर आता हूॅ।"
"ठीक है।" रितू ने दो नोट और उसकी तरफ बढ़ाए___"इन्हें भी ले लो। अगर कम पड़ें तो लगा देना नहीं तो खुद रख लेना।"
"ठीक है मैडम।" आदमी ने खुश होकर कहा___"मैं अभी लेकर आता हूॅ। आप यहीं पर इंतज़ार कीजिए।"
"ओके ठीक है।" रितू ने कहा।
वो आदमी हवा की तरह वहाॅ से गायब हो गया। रितू उसे यूॅ तेजी से जाते देख बरबस ही मुस्कुरा पड़ी। सड़क के किनारे जिप्सी को खड़े कर वह जाने किन ख़यालों में खो गई। चौंकी तब जब उस आदमी ने वापस आकर उसे आवाज़ दी।
"ये लीजिए मैडम।" आदमी ने एक छोटा सा थैला पकड़ाते हुए कहा___"इसमें सैमसंग का एक मोबाइल है और एक सिम भी। दुकानदार ने कहा है कि आधे घंटे में सिम चालू हो जाएगी"
"ओह वैरी गुड।" रितू ने कहा___"एण्ड थैक्स। अब जाओ तुम।"
"अच्छा मैडम।" आदमी ने सलाम बजा कर कहा और चला गया।
रितू थैले को अपने बगल से रख कर जिप्सी को यू टर्न दिया और आगे बढ़ गई। अब उसकी जिप्सी का रुख शहर से बाहर की तरफ था।
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मैं काॅलेज की पार्किंग में अपनी बाइक को खड़ी कर काॅलेज के अंदर की तरफ बढ़ गया। ये मुम्बई का सबसे बड़ा और टाप क्लास का काॅलेज था। मुझे पता था काॅलेजों में रैगिंग होना आम बात है। इस लिए मैं खुद भी इसके लिए तैयार था। काॅलेज के अंदर काफी सारे स्टूडेंट्स थे। लेकिन मैं ये देख कर थोड़ा हैरान हुआ कि एक जगह काफी भीड़ सी थी।
मैं समझ तो गया कि वो भीड़ किस बात के लिए थी। मुमकिन था कि वहाॅ पर सीनियर लोग किसी जूनियर की रैगिंग ले रहे होंगे। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि इतनी भीड़ क्यों थी वहाॅ पर। उत्सुकतावश मैं उसी तरफ बढ़ता चला गया।
थोड़ी ही देर में मैं उस भीड़ के पास पहुॅच गया। लेकिन भीड़ की वजह से समझ नहीं आया कि भीड़ के अंदर क्या चल रहा है? तभी मेरे कानों में ज़ोरदार चीख सुनाई पड़ी। ये किसी लड़की की चीख़ थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती की जा रही थी। मेरा रोम रोम खड़ा हो गया। किसी कमज़ोर लड़की पर ज़ोर ज़बरदस्ती? मुझसे ये सहा न गया। मैं एकदम से उस भीड़ का हिस्सा बने लोगों को खींच कर दूर हटाने लगा। बड़ी मुश्किल से मैं उन लोगों के बीच से निकलते हुए अंदर की तरफ पहुॅचा। अंदर का दृष्य ऐसा था कि मेरा दिमाग़ खराब हो गया।
अंदर कोई लड़का किसी लड़की के ऊपर चढ़ा हुआ था। नीचे पड़ी लड़की बुरी तरह रोते हुए छटपटा रही थी और चीख रही थी। वो लड़का उस लड़की के कपड़े फाड़ने पर तुला हुआ था। उसके चारो तरफ खड़े कुछ लड़के हॅस रहे थे। मुझे लड़की का चेहरा नज़र नहीं आ रहा था। मगर ये दृष्य देख कर मेरे अंदर गुस्से की आग धधक उठी।
मैने ज़ोर से एक लात उस लड़के के पेट के बगल में मारी। वो उस लड़की से हट कर तथा लहराते हुए भीड़ के पास गिरा। चारो तरफ फैली हुई भीड़ एकदम से छितर बितर हो गई। मैने जिसे लात मारी थी उसके मुख से ज़ोरदार चीख निकल गई थी। मगर वह जल्दी से उठ कर मेरी तरफ पलटा।
"किसकी मौत आई है?" वो लड़का गरजते हुए बोला___"किसकी इतनी हिम्मत हुई कि मुझे मारा? आशू राना पर हाथ उठाया?"
"उस भीड़ की तरफ क्या देख रहा है?" मैने कहा___"ये सब तो नामर्द हैं। नपुंषक लोंग हैं ये। सिर्फ तमाशा देखना जानते हैं। तुझे कुत्ते की तरह मारने वाला मर्द तो इधर खड़ा है।"
"तूने मुझे मारा?" आशू राना ने अजीब भाव से ऑखें नचाते हुए कहा___"तुझे पता है मैं कौन हूॅ? अबे मेरे बारे में जान जाएगा न तो मूत निकल जाएगा तेरा, समझा क्या?"
"चल बता फिर।" मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा___"बता कौन है तू? मैं भी तो देखूॅ कि तेरे बारे में जान कर मेरा मूत निकलता है कि नहीं। चल बता जल्दी।"
"ये समझा रे इसे।" आशू राना ने इधर उधर देखते हुए कहा___"इसे समझाओ रे कोई। ये साला आशू राना को नहीं जानता। ओ रहमान समझा बे इसे कि मैं कौन हूॅ? इसे बता कि मेरा बाप कौन है?"
"क्यों तेरे क्या बहुत सारे बाप हैं जो ये बोल रहा है कि तेरा बाप कौन है?" मैं उसके करीब पहुॅच गया था। झपट कर उसकी गर्दन दबोच ली मैने। अपनी गर्दन दबोचे जाने पर वह छटपटाने लगा। मुझ पर अपने दोनो हाॅथों से वार करने लगा।
"ओए खड़े क्या हो सालो।" उसने तिरछी नज़र से अपने साथियों की तरफ देखते हुए कहा___"मारो इसे। इसने मुझ पर हाथ उठाया है। इसका काम तमाम करना ही पड़ेगा अब।"
चारो तरफ खड़े उसके साथी एक साथ मेरी तरफ दौड़ पड़े। मैंने आशू राना की गर्दन को छोंड़ कर एक पंच उसकी नाॅक पर ठोंक दिया। वह बुरी तरह चीखते हुए जमीन पर गिर गया। इधर चारो तरफ से जैसे ही उसके साथी मेरे पास आए तो मैं एकदम से पोजीशन में आ गया। जैसे ही एक मेरी तरफ बढ़ा मैने घूम कर बैक किक उसके चेहरे पर रसीद कर दी। वह उलट कर धड़ाम से गिरा। दूसरे के हाॅथ में मुझे चाकू नजर आया। उसने चाकू वाला हाॅथ घुमा दिया मुझ पर। मैने बाएॅ हाथ से उसके उस वार को रोंका और दहिने हाथ से एक मुक्का उसकी नाॅक में जड़ दिया। उसके नाक से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा। बुरी तरह चीखते हुए वह भी लहराते हुए गिर गया। मैं तुरंत पलटा और जल्दी से नीचे झुक भी गया। अगर नहीं झुकता तो तीसरे वाले का हाॅकी का डंडा सीधा मेरे सिर पर लगता। मगर मैं ऐन वक्त पर झुक गया था। हाॅकी का वार जैसे ही मेरे सिर के ऊपर से निकल चुका तो मैं सीधा होकर उछलते हुए उसकी पीठ पर एक किक जमा दी। वह मुह के बल जमीन चाटने लगा। फिर तो जैसे वहाॅ पर उन सबकी चीखों का शोर गूॅजने लगा। कुछ ही देर में आशू राना के सभी साथी जमीन पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे। मैं चलते हुए आशू राना के पास गया और झुक कर उसका कालर पकड़ कर उठा लिया।
"अब एक बात मेरी भी सुन तू।" मैने ठंडे स्वर में कहा___"तू चाहे यमराज का भी बेटा होगा न तब भी मैं तुझे ऐसे ही धोऊॅगा। इस लिए आज के बाद किसी लड़की के साथ कुछ बुरा करने की सोचना भी मत। अब दफा हो जा यहाॅ से। आज के लिए इतना काफी है मगर दूसरी बार तू सोच भी नहीं सकता कि मैं तेरा और तेरे इन साथियों का क्या हाल करूॅगा।"
आशू राना के चेहरे पर डर दिखाई दिया मुझे। वो मेरे छोंड़ते ही वहाॅ से भाग लिया। उसके पीछे उसके सभी साथी भी भाग लिए। कुछ दूर जाकर आशू राना रुका और फिर पलट कर बोला___"ये तूने ठीक नहीं किया। इसका अंजाम तो तुझे भुगतना ही पड़ेगा।"
"अबे जा।" मैं दौड़ा उसकी तरफ तो वो सरपट भागा बाहर की तरफ।
उन लोगों के जाने के बाद मैं वापस पलटा। मैने उस लड़की की तरफ देखा। वो दूसरी तरफ सिर झुकाए खड़ी थी। उसका दुपट्टा मेरे सामने कुछ ही दूरी पर जमीन में पड़ा हुआ था। मैं आगे बढ़ कर उसका पीले रंग का दुपट्टा उठाया और उस लड़की की तरफ बढ़ गया।
"ये लीजिए मिस।" मैने पीछे से उसे उसका दुपट्टा देते हुए बोला___"आपका दुपट्टा।"
"जी धन्यवाद आपका।" उसने मेरे हाॅथ से दुपट्टा लिया, और फिर मेरी तरफ पलटते हुए बोली____"अगर आप नहीं आते तो वो न जाने मेरे सा...........।"
उसका वाक्य अधूरा रह गया। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी ऑखे फैल गई। वह आश्चर्यचकित भाव से मुझे देखने लगी। मेरा भी हाल कुछ वैसा ही था। जैसे ही वह मेरी तरफ पलटी तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी। और मैं उसका चेहरा देख कर उछल ही पड़ा था।
"नी..लम???" मेरे मुख से लरजता हुआ स्वर निकला।
"रा......ज।" उसके मुख से अविश्वसनीय भाव से निकला।
"ओह साॅरी।" मैने एकदम से खुद को सम्हालते हुए कहा___"आपका दुपट्टा।"
मैने उसे उसका दुपट्टा पकड़ाया और तुरंत पलट गया। मैं उसके पास रुकना नहीं चाहता था। मैं तेज तेज चलते हुए उस जगह से दूर चला गया। जबकि नीलम बुत बनी वहीं पर खड़ी रह गई।
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