12-09-2019, 03:10 PM,
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sexstories
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RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
दरवाजे की दस्तक सुन जब अंजुम ने दरवाजा खोला तो आदम के हाथ में दो बॅग देख और तपोती को देख वो हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी...जैसे उसके मन में कितने सवाल उठ रहे हो कि ये कौन है? मैं हिचकिचा रहा था कहने को तो कह दिया कि मेरे घर आ जाओ...पर अभी मुझे अपनी माँ और पत्नी अंजुम को भी समझाना था कि वो कौन है? मुझे डर था कहीं माँ मुझे मना ना कर दे या फिर कोई गुस्सा ना करे..पर मैं जानता था मुझे ऐसा ही करना है....माँ को अगर अहसास ना कराया तो ज़िंदगी भर जैसे चंपा के रूप में आई तपोती को मैं खो देता
अब प्यार और रिश्ता दोनो ही मेरे आमने सामने खड़े थे
क्या होगा इस अनकहे रिश्ते का हाल जब अपनी व्याबचारी माँ को आदम ज़ाहिर करेगा?
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बाहर मुसलाधार बारिश हो रही थी...और अंदर लिविंग रूम में ठीक सोफे के सामने खड़ी माँ अपने बाज़ुओ को एकदुसरे से मोडे हुए मेरी बातों को सुन रही थी....तो कभी बीच बीच में तपोती की तरफ बड़े गौर से देख रही थी....तपोती जैसे उनको देखके थोड़ी सी सहम सी गयी वो खुद की नज़रों को झुकाए हुए खड़ी थी....
आदम : माँ मैं चाहता हूँ कि आज मैं तुमसे कुछ बातें जो मैने अब तक नही कही या शायद मुझे लगा कि अब तक मेरा कहना ये सब मुनासिब नही आज वो बात तुम्हारे सामने खुल के कहना चाहता हूँ....
माँ ने कोई उत्तर ना दिया वो चुपचाप जैसे बस सुन रही थी....मेरी नज़रों को देखते हुए
आदम : माँ इसकी बहन चंपा जिसका असल नाम तंज़िमा था....उससे मेरी गहरी दोस्ती थी ये दोस्ती तबसे थी जब से मैं दिल्ली छोड़के यहाँ सेट्ल डाउन होने की कोशिश कर रहा था....उसी बीच मेरी चंपा से मुलाक़ात हुई....चंपा ने ग़लत धंधे को अपना पेशा बना रखा था....लेकिन उसका दिल बेहद सॉफ था...जब मैं वापिस दिल्ली से तुझे लेके यहाँ आया तो उसके कुछ दिन बाद जब उसके घर पहुचा तो उसकी मौत की खबर सुनी....वो घर की अकेली एक कमाने वाली थी जिसकी कमाई से घर चलता था उसकी बीमार माँ उसकी मौत और पेशे के सदमे को बर्दाश्त ना कर सकी और उसने दम तोड़ दिया ये जो लड़की मेरे पीछे खड़ी है उसकी अपनी सग़ी जुड़वा बहन है....माँ की मौत के बाद इसे ना सिर्फ़ मकान मालिक ने घर से निकाल दिया बल्कि इसे इधर उधर ठोकर खाने के लिए भी छोड़ दिया....जिस काकी ने इसे यहाँ लाया वो चंपा की जानने वाली है लेकिन इसका वहाँ रहना दुश्वार था जिस वजह से इसके साथ कोई भी गहरा हादसा हो सकता था...
हो सकता था कि शायद इसे लोग चंपा समझ लेते और इसकी इज़्ज़त लूट लेते या फिर इसे भी बढ़ती ग़रीबी और मोहोताजियत में वहीं कॉलगर्ल वाला पेशा ही चुनना पड़ जाता...मैं चाहता हूँ कि ये भी इस घर में एक सदस्य की तरह रहे मैने इसकी बहन से वादा किया था कि मैं उसकी हर मुमकिन मदद करूँगा उसे तो बचा ना सका लेकिन अगर इसे मैं घर ना लाता तो मेरा किया वादा कभी पूरा ना हो पाता...
लेकिन माँ तुम जानती हो कि इतना बड़ा इरादा करना मेरे बस में नही जब तक तुम राज़ी ना हो...अगर तुम्हारी रज़ामंदी ना मिली तो मैं इसे इस घर में नही रखूँगा लेकिन इसका साथ भी नही छोड़ूँगा जब तक इसे किसी काबिल मोक़ाम तक ना पहुचा दूँ ये मेरी ज़िम्मेदारी है...
अंजुम खामोशी से बेटे के चुप होते ही कुछ देर तक सोचती रही....आदम को डर सता रहा था कि कहीं माँ उस पर चिल्लाए कहे कि ये क्या नीच हरकत तू कर रहा है? दुनिया दारी निभाने के लिए तू ही इसे मिला था? ये तेरी लगती क्या है? और ऊपर से लालपाड़ा वाला बात तो बताया नही वो बखूबी जानती थी वो कितनी बदनाम इस शहर की जगह है जहाँ मैं कभी अपनी हवस मिटाने चंपा के पास जाया करता था....एक कॉलगर्ल को मेरा गहरा दोस्त और उसकी हेल्प करने का विचार सुन अंजुम जैसे मेरी तरफ घुर्रके देख रही थी...
कुछ देर बाद अंजुम ने अपने मोडे हुए बाजुओं को एकदुसरे से अलग किया....फिर मेरी तरफ देखा....और धीरे धीरे उसके गंभीर चेहरे पर मुस्कुराहट छाई....
अंजुम : उफ्फ बाप रे मुझे नही मालूम था कि मेरा आदम इतना समझदार और रहमदिल वाला है....मुझे लगा शायद अभी भी तेरे अंदर सिर्फ़ बचपना और ज़िद्द ही बढ़ा है तू बस कमाने लगा है यही सोचती थी...लेकिन आज सिर्फ़ तूने अपनी ग्रहस्ति की ज़िम्मेदारियो को ना ही बल्कि अपने ईमान को भी बखूबी दर्शाया है मुझे कोई इस बात का गम नही कि तूने किसी की मदद की और मैं तो कहती हूँ कि अच्छा किया जो तपोती को तू यहाँ ले आया...मैं जानती हूँ अकेली औरत का क्या हाल होता है यहाँ? सच कह रही हूँ तपोती (एक पल को माँ ने जैसे उसे नाम लेते हुए कहा तपोती भी हड़बड़ाई मुस्कुरा पड़ी)
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