03-24-2020, 09:02 AM,
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RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
मैं सोचने लगा, टेलीफोन तो स्टडी में भी हो सकता था। इतनी बड़ी कोठी में तो कई टेलीफोन मुमकिन थे। मुझे लगा कि घंटी स्टडी में भी बजी थी।
मैं उठ खड़ा हुआ।
स्टडी का दरवाजा खोलकर मैं भीतर दाखिल हुआ। भीतर बत्ती नहीं जल रही थी लेकिन बाहर की जो थोड़ी-बहुत रोशनी वहां प्रतिबिम्ब हो रही थी, उसमें मुझे परे एक मेज पर पड़ा टेलीफोन दिखाई दिया। मैंने आगे बढ़कर उसका रिसीवर उठाकर अपने कान से लगा लिया।
मेरे कानों में एक जनाना आवाज पड़ी लेकिन मुझे गारण्टी थी कि वह आवाज कमला की नहीं थी।
तभी मेरी खोपड़ी पर जैसे कोई बम छूटा । फोन मेरे हाथ से छूट गया और मेरे घुटने मुड़ गए । मेरी आंखों के आगे लाल-पीले सितारे नाचने लगे । अंधेरे में मैंने अपने हाथ सामने को झपटाये तो वे किसी के जिस्म से टकराये । तभी एक और डंडा मेरी खोपड़ी की तरफ आया ।। मैंने पूरी शक्ति से डंडा पकड़कर अपनी तरफ खेंचा डंडे वाला आदमी नीचे आकर गिरा मैं उसकेऊपर सवार हो गया। अंधेरे में मैंने अपने दोनों से अपने नीचे दबे आदमी पर घूँसे बरसाने शुरूकर दिए । मुझे नहीं पता था कि मैं उस पर कितने घूँसे बरसा रहा था पर बदले में कम-से-कम मुझ पर कोई प्रहार नहीं हो रहा था। फिर पता नही कैसे वह मुझे अपने ऊपर से परे धकेलने में कामयाब हो गया ।
नीम अंधेरे में बड़ा मुझे अपने चेहरे की तरफ लहराता जाता दिखाई दिया। मैंने तुरन्त करवट बदली । डण्डा । - जोर से फर्श से टकराया। वह आदमी उठकर दरवाजे की तरफ भागा। मैंने फर्श पर पड़े-पड़े ही जम्प लगाई ।
मेरी दोनों बांहें उसकी कमर से लिपट गई । हम दोनों धड़ाम से नीचे गिरे । मैं उससे पहले उछलकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया। मैंने अपने जूते की एक भरपूर ठोकर उसकी पसलियों में जमाई । वह गेंद की तरह परे उछला और फिर जहां जाकर गिरा, वहां से दोबारा न हिला । में हांफता हुआ उसके सिर पर जा खड़ा हुआ और उसके शरीर में कोई हरकत होने की प्रतीक्षा करने लगा।
तभी लगभग भागती हुई कमला स्टडी रूम में दाखिल हुई। "राज !" - वह आतंकित भाव से बोली - "क्या हुआ ?"
"मुझे नहीं मालूम कि यहां की बिजली का स्विच कहां है !" - मैं बोला - "बत्ती जलाओ, फिर देखते हैं, क्या हुआ ।" .
उसने बत्ती जलाई तो मैंने देखा कि मेरे सामने नीचे फर्श पर जो आदमी पड़ा था, मेरे अधिकतर घूसे, लगता था, उसके चेहरे पर ही पड़े थे। उसकी नाक में से खून बह रहा था, ऊपर का होठ कट गया था, सामने के दो दांत टूट गए थे और चेहरा यूं लगता था जैसे स्टीम रोलर से टकराया था। उस वक्त उसकी चेतना लुप्त थी।
खुद मेरी कनपटी और खोपड़ी पर दो गूमड़ सिर उठाने लगे थे और मेरी खोपड़ी में यूं सांय-सांय हो रही थी जैसे जैसे भीतर कोई बम विस्कोट होने वाला था । मेरा दिल धाड़-धाड़ मेरी पसलियों से टकरा रहा था।
"कौन है यह ?" - कमला बदहवास भाव से बोली।
"तुम नहीं जानती ?" - मैंने पूछा। -
"इसकी सूरत आज से पहले मैंने कभी नहीं देखी ।"
"इसे होश में लाते हैं । फिर यह खुद ही बताएगा कि यह कौन है ! तुम थोड़ा पानी लेकर आओ ।”
वह वहां से चली गई। मैंने उस आदमी की बगलों में हाथ डालकर उसे उठाया और उसे एक कुर्सी पर डाल दिया। वह चालीसेक साल का काफी लम्बा-चौड़ा आदमी था । वह एक सूट पहने था जिसको टटोलकर मैंने उसके कोट की भीतरी जेब से एक रिवॉल्वर बरामद की । जिस डण्डे से दो बार मेरी खोपड़ी पर प्रहार किया गया था, वह परे लुढ़क गया था और गनीमत थी कि वह लकड़ी का था । लोहे का होता तो उसके पहले ही वार से मेरी खोपड़ी तरबूज बन चुकी होती ।। कमला पानी का एक जग लेकर वापिस लौटी। मैंने जग खुद थाम लिया और उसके मुंह पर पानी के छीटें मारने लगा। उसे होश आया। अपने सामने का नजारा देखते ही उसका हाथ अपने कोट की भीतरी जेब की तरफ झपटा।
"इसे ढूंढ रहे हो ?" - मैंने उसकी रिवॉल्वर उसकी तरफ तानी ।
“साले !" - वह खून थूकता हुआ कहर भरे स्वर में बोला - "खून पी जाऊंगा । जान से मार डालूंगा।"
"अच्छा ! कैसे करोगे इतने सारे काम ?"
उसने फिर गाली बकी तो अपने बायें हाथ में अभी भी थमे जग का सारा पानी मैंने उस पर पलट दिया।
"कौन हो तुम ?" - मैं बोला ।
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03-24-2020, 09:03 AM,
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RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"लगता है, तुम एलैग्जैण्डर के नाम से ही वाकिफ हो यह नहीं जानती हो कि वह क्या करता-धरता है !"
"वह एक बिजनेसमैन है।"
"वह एक गैंगस्टर है। दादा है। बड़ा दादा ।" |
"अच्छा ! मुझे नहीं मालूम था ।"
"जाहिर है । चावला साहब की एलैग्जैण्डर से कभी कोई अदावत, कोई झक-झक, कोई तकरार हुई थी ?"
"मेरे सामने तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन आज सुबह मेरे पति ने एक बात की थी जिससे लगता था कि उनकी एलेग्जेण्डर से कोई अदावत थी जिसकी वजह से वे उससे सावधान रहना जरूरी समझते थे।"
"क्या किया था उन्होंने ?"
"आज सुबह वे दो सशक्त बॉडीगार्डों के साथ घर से निकले थे। उनमें से एक आदमी के चेहरे पर चेचक के दाग थे।
अगर तुम चेचक के दागों वाले आदमी को चितकबरा कहते हो तो वे जरूर वही आदमी थे जिनका जिक्र कदमसिंह ने किया था। मैंने उन आदमियों के बारे में अपने पति से सवाल किया था तो उसने बड़ी खोखली हंसी हंसते हुए कहा
था कि वे एलैग्जैण्डर के खिलाफ इंश्योरेंस थे।"
"यानी कि चावला साहब को एलैग्जैन्डर से खतरा था ?"
"लगता तो यही था।" - वह एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - "क्या उनके कत्ल में एलैग्जैन्डर का हाथ हो सकता है ?"
"कत्ल अगर तुमने नहीं किया तो क्यों नहीं हो सकता ?"
"तुम अभी भी मुझ पर शक कर रहे हो ?" - वह आहत भाव से बोली।
"छोड़ो । मैंने तो महज एक बात कही थी।"
"महज एक बात नहीं, दिल दुखाने वाली बात ।"
"क्या यह हैरानी की बात नहीं" - मैंने उसके दुखते दिल की परवाह नहीं की - "कि तुम्हारा पति सारा दिन तो सशस्त्र बॉडीगार्डों के साथ घूमता रहा और जब छतरपुर जैसी उजाड़, तनहा और शहर से दूर जगह पर जाने की बारी आई। तो बॉडीगार्डी को उसने रुखसत कर दिया ।"
"है तो सही हैरानी की बात !" “यह इस बात की तरफ इशारा है कि फार्म पर चावला अकेला नहीं गया था। उसके साथ उसका कोई विश्वासपात्र व्यक्ति था।"
"कौन ?"
"जैसे तुम ?"
उसने फिर आहत भाव से मेरी तरफ देखा।
"या कोई और।" - उसे तसल्ली देने के तौर पर मैंने जल्दी से कहा। वह खामोश रही। तुम्हारी जानकारी के लिए तुम्हारा पति राजेंद्रा प्लेस एलैग्जैण्डर से ही मिलने गया था।"
"अच्छा !"
"अब सवाल यह पैदा होता है कि यहां तुम्हारे पति की स्टडी में इस आदमी को किस चीज की तलाश थी ? जो भी चीज वह थी, यह तो जाहिर है कि वह इसे अभी हासिल नहीं हुई है । हुई होती तो वह इसके पास से बरामद होती ।। लेकिन वह चीज निश्चय ही एलैग्जैण्डर के लिए महत्वपूर्ण थी और उसी वजह से ही शायद उसकी तुम्हारे पति से ठन गई थी। ऐसी चीज क्या हो सकती है?"
उसने अनभिज्ञता से कंधे उचकाये ।
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03-24-2020, 09:04 AM,
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RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
पहले दराज में मुझे कोई दिलचस्पी के काबिल चीज न मिली तो मैंने दूसरा, बीच का दराज खोला और उसका पोस्टमार्टम आरम्भ किया। "चावला साहब" - एकाएक मैंने पूछा - "अपनी रिवॉल्वर कहां रखा करते थे ?"
"इसी मेज के किसी दराज में।”
"कौन से दराज में ?"
"यह मुझे नहीं मालूम ।"
"यहां से रिवॉल्वर निकालते वक्त तो मालूम हो गया होगा ?"
"फिर आ गए एक आने वाली जगह पर । मिस्टर, इस मेज को हमेशा ताला लगा होता था और इसकी चाबी मेरे पति के पास, सिर्फ मेरे पति के पास, होती थी ।" मैं खामोश रहा । मैंने सबसे नीचे का दराज खोला।। उसमें से वह चीज बरामद हुई जिसकी निश्चित ही चौधरी को तलाश थी।
वह एक लाल जिल्द वाली, डायरी के आकार की, लैजर थी जिस पर जान पी एलैग्जैण्डर एण्टरप्राइसिज छपा हुआ था । उसका मुआयना करने पर मुझे लगा कि वह लैजर ही गैंगस्टर सम्राट की कम्पनी की थी। उस पर लिखा । हिसाब-खाता बहुत प्राइवेट था । तारीखों के साथ उसमें केवल आमदनी की प्रविष्टियां थी, खर्चे के कालम उसमें तमाम के तमाम खाली थे।" निश्चय ही वह एलैग्जैण्डर का कोई बहुत खुफिया हिसाब खाता था जो पता नहीं कैसे चावला के हाथ लग गया था
मैंने उसके कुछह पन्ने पलटे । एक स्थान पर एक प्रविष्टि के गिर्द मुझे एक लाल दायरा खिंचा दिखाई दिया। उसी दायरे में एक नाम था और एक रकम थी । नाम शैली भटनागर था और रकम बीस हजार रूपये की थी। मुझे उस लैजर में ब्लैकमेलिंग की बू आने लगी ।
और चावला शायद ब्लैकमेलर को ब्लैकमेल कर रहा था। मैंने लैजर अपने कोट की जेब में डाल ली। चौधरी बहुत गौर से मेरी हर हरकत का मुआयना कर रहा था।
"यह क्या है?" - कमला संदिग्ध भाव से बोली।
"कोई खास चीज नहीं ।" - मैं लापरवाही से बोला - "मामूली लैजर बुक है । मैं घर जाकर बारीकी से इसका मुआयना करूगा ।"
"लेकिन..."
"तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं ? इतनी मामूली चीज का भरोसा नहीं ?"
वह खामोश हो गई।
"तुम अपने के किसी भटनागर नाम के वाकिफकार को जानती हो ?"
"एक शैली भटनागर को मैं जानती हूं।"
"कौन है वो ?"
"पब्लिसिस्ट है । नगर की बहुत बड़ी एडवर्टाइजिंग एजेंसी का मालिक है । मूवी एन्ड फिल्म उसकी स्पेशलिटी है।"
"तुम कैसे जानती हो उसे ?"
"अपने पति की वजह से ही । वह यहां अक्सर होने वाली पार्टियों में जो लोग अक्सर आते थे, उनमें एक शैली, भटनागर भी था।"
"चावला साहब की अच्छी यारी थी उससे ?"
"हां । अच्छी यारी थी। दोनों घुड़दौड़ के शौकीन थे। एक घोड़ी में" - उसके स्वर में विष घुल गया - "खास तौर से उन दोनों की दिलचस्पी थी।"
"कोई खास घोड़ी है वो ?"
"हां । बहुत खास ।
” "कौन ?"
"जूही चावला ।"
"ओह !"
तभी कॉल बैल बजी ।
“पुलिस आई होगी" - मैं बोला - "जाकर दरवाजा खोलो।"
वह चली गई ।
मैंने अपने ताबूत की एक नई कील सुलगाई और सोचने लगा। अब मुझे गारंटी थी कि चौधरी वह लैजर बुक चुराने के लिए ही वहां भेजा गया था। इसका मतलब था कि एलेग्जैण्डर को मालूम था कि चावला मर चुका था। इतनी जल्दी इस बात की खबर उसे कैसे हो सकती थी ? तभी हो सकती थी जबकि उसने कत्ल खुद किया हो या करवाया हो। लेकिन कत्ल का ढंग एलेग्जैण्डर जैसे गैंगस्टर की फितरत से मेल नहीं खाता था । अगर चावला की लाश गोलियों से छिदी किसी गली में पड़ी पाई गई होती या उसका क्षत-विक्षत शरीर यमुना में से निकाला गया होता या वह हिट एंड रन का शिकार हुआ होता तो उसकी मौत में एलैग्जैण्डर का हाथ होना समझ में आ सकता था। हत्या यूं करना, कि वह मोटे तौर पर आत्महत्या लगे, एलेग्जेंडर की फितरत से मेल नहीं खाता था।
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03-24-2020, 09:05 AM,
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RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
क्या पतंगबाज औरत थी - मैं मन ही मन बुदबुदाया - पहले खींचा, फिर बांधा, फिर ताना, फिर तानकर छोड़ दिया कि बेटा और कुछ नहीं तो डोर बंधे-बंधे लटके जरूर रहो।। "मैंने मजाक किया था ।" - वह बोली ।
"आई अंडरस्टैंड ।"
"मैं तुम्हें दिल से कोई अपशब्द नहीं कह सकती । दिल से मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूं।"
“मुझे मालूम है । आठ घंटे की हद से ज्यादा लंबी और मुतवातार मुलाकात में मेरा आपको यूं पसंद आ जाना स्वाभाविक था।"
"मैं तुम्हें पसंद नहीं ?"
पसंद "बहुत ज्यादा पसंद हो । ताजमहल के बाद एक आप ही को तो देखा है पसंद आने के काबिल ।”
"दिल से कह रहे हो ?"
"हां ।"
"फिर तो हमारी खूब निभेगी ।"
"जाहिर है ।"
"जरा हालात सुधर जाएं, फिर देखना क्या आता है जिंदगी का मजा !"
यानी कि उस अक्ल के अंधे की चिता की राख ठंडी पड़ जाए जो पति के नाम से जाना जाता था। वह मुझे कार तक छोडने आई ।। वहां, मेरे विदा होते-होते भी उसने मेरे गाल पर एक चुंबन जड़ दिया। उसकी मजबूरी थी, उसका पति मर कर उसके लिए असुविधा पैदा कर गया था, वरना वह शायद आखिरी क्षण पर भी मुझे कार में से वापिस बाहर घसीट लेती।
* * * ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
टेलीफोन की निरंतर बजती घंटी की आवाज से मेरी नींद खुली । रिसीवर उठाने से पहले मैंने फोन के पहलू में रखी टाइमपीस में टाइम देखा । ग्यारह बज चुके थे।
में हड़बड़ाकर उठ बैठा । आंखें मिचमिचाते हुए मैंने फोन उठाकर कान से लगाया और बोला - "हैलो !”
| "गुड मॉर्निग" - मुझे डॉली का मधुर स्वर सुनाई दिया - "सोचा, आपको खबर कर दें कि कायनात स्टार्ट हो चुकी है।
और लोगों को अपना दिन शुरू किए कई-कई घंटे हो चुके हैं।"
"यही बताने के लिए तुमने मुझे फोन किया है ?" - मैं भुनभुनाया।
"हां ।"
"लानत है तुम पर ।"
| "वो किसलिए ?"
"मैं साढ़े चार बजे सोया था ।"
"यह मेरी गलती है ?"
"नहीं-नहीं । गलती तो मेरी ही है मैंने तुम्हारे जैसी वाहियात सैक्रेट्री चुनी ।”
"सैक्रेट्री कोई बीवी तो नहीं होती जो कि एक बार गेले का फंदा बन गई तो बन गई । निकाल बाहर कीजिये ऐसी वाहियात सैक्रेट्री को ।"
"यह तुम मुझे राय दे रही हो ?" .
"जब तक मैं आपकी सैक्रेट्री हूं तब तक आपको सही और संजीदा राय देना मेरा फर्ज बंता है।"
“अब तुम चाहती क्या हो ?"
"मैं यह चाहती हूं कि जो मेमसाहब आपके पहलू में लेटी हुई हैं और जिनकी वजह से आप साढ़े चार बजे तक सो नहीं पाये हैं, उन्हें रुखसत कीजिये और काम-धाम में लगिए और चार पैसे कमाइए ताकि आप मेरी तनखाह अदा करने के काबिल बन सकें, क्योंकि पहली तारीख करीब आ रही है।"
"मेरे पहलू में कोई नहीं है।"
"यानी कि जो थी वह पहले ही रुखसत हो चुकी है ?"
"कोई थी ही नहीं । मेरा पहलू फकीर की झोली की तरह खाली है। तुम चाहो तो उसे ओक्युपाई कर सकती हो ।”
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