RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
अदिति- बात तो तुम्हारी सही है विशाल.....तो तुम क्या कहना चाहते हो.......तुम मुझे जहाँ ले चलोगे , जिस हाल में रखोगे मैं रह लूँगी विशाल.......मगर अब जुदाई मुझसे बर्दास्त नहीं होगी.....
विशाल- हमे इसी वक़्त कहीं दूसरे सहर जाना होगा.......यहाँ से बहुत दूर......इतनी दूर की कहीं कोई हमारे बारे में नहीं जानता हो.......दूर दूर तक जिसका हमसे कोई रिश्ता नाता ना हो......हमे कोई पहचानने वाला ना हो.......
अदिति- ऐसा कौन सी जगह है विशाल........तुम मुझे जहाँ ले चलोगे मैं तुम्हारे संग चलूंगी.......
विशाल- शिमला......तुम्हारे सपनों का सहर......वहाँ हमे कोई नहीं जानता...हम उसी सहर में अपना छोटा सा आशियाना बनाएँगे.........वहाँ बस हम और तुम....और हम दोनो के सिवा और कोई तीसरा नहीं होगा.......
अदिति- ठीक है विशाल.......जैसा तुम कहो......फिर मैं अपना समान पॅक करने लगी और अपने मकान मालिक का किराया पूरा चुकाकर हम दोनो दूसरे सहर की तरफ हमेशा हमेशा के लिए उस अंजान रास्ते पर निकल पड़े.........
वहाँ से शिमला की दूरी लगभग 2000 किमी के आस पास थी......हमे वहाँ पहुँचने के लिए दो दिन का वक़्त लगने वाला था.......हम ट्रेन में जाकर बैठ गये और ट्रेन उस सहर को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए अपने मंज़िल की तरफ निकल पड़ी.....एक बार फिर से मेरी आँखों में आँसू आ गये थे......
मुझे बार बार मम्मी पापा की याद सता रही थी.........बार बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कुछ हमेशा के लिए यहाँ छोड़ कर जा रही हूँ......यादें थी मेरे पास जो अब तक जीने के लिए काफ़ी थी.......विशाल मेरी आँखों से आँसू पोछने लगा और कुछ देर बाद मैं उस गम को भूल कर आने वाले उस हसीन पल को याद करने लगी.......
दूसरे दिन हम अब शिमला से 50 किमी की दूरी पर थे.....वहाँ से बस से ही जाया जा सकता था.......पूरा रास्ता पहाड़ों और जंगलो से घिरा हुआ था......विशाल ने शिमला जाने वाली बस का टिकेट लिया और हम दोनो जाकर उसमे बैठ गये.......बस लगभग पूरी भरी पड़ी थी.......
विशाल ने अपने जेब से एक लॉकेट निकाला और उसे मेरे गले में मुझे पहना दिया.......वो लॉकेट बीच से खुलता था......जब मैने उसे खोला तो उसमे एक तरफ मेरी तस्वीर थी तो दूसरी तरफ विशाल की तस्वीर थी......मैं उस लॉकेट को चूम कर उसे अपने गले में पहनकर उसे अपने सीने में कहीं छुपा लिया........
थोड़ी देर बाद बस चल दी.........पहाड़ों और जंगलो से बस गुज़रती हुई धीरे धीरे अपनी मंज़िल के तरफ बढ़ रही थी........मुझे तो ऐसा लगा जैसे हम किसी स्वर्ग से गुज़र रहें है........इस वक़्त मेरा एक हाथ विशाल के हाथों में था.........कुछ दूर जाने पर मेरे साथ वो हादसा हुआ जो मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था........थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी जिससे रोड पूरी तरह से स्लिपी हो गयी थी.........जिससे बस भी अनबॅलेन्स हो गयी और तेज़ी से स्लिप करते हुए साइड की रलिंग को तोड़ते हुए नीचे 1000 फीट गहरी खाई की ओर तेज़ी से नीचे गिरने लगी.........उसमे जितने सवार थे शायद अब उनकी ज़िंदगी के दिन पूरे हो चुके थे......
मुझे उस वक़्त कोई होश नहीं था......ना ही मुझे कुछ पता चला कि अचानक हमारे साथ क्या हुआ था........मगर जब होश आया तो मैं उस वक़्त एक हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी की चाँद साँसें गिन रही थी.........विशाल का कहीं कुछ पता नहीं था......वहाँ कमरे में कई सारे डॉक्टर और कम्पाउन्डर इधेर उधेर घूम रहें थे.......साथ में कुछ पोलीस वाले भी थे..........मेरे साथ तीन चार और मरीज़ भी थे शायद वो भी अपनी ज़िंदगी के आखरी पल की साँसें ले रहें थे.....
मेरे सिर पर गहरी चोट आई थी......मेरी कमर और पैर काफ़ी ज़ख़्मी थे........मेरे पेट में भी चोट आई थी............तभी एक पोलीस वाला मेरे करीब आया......उसके हाथ में एक फाइल थी और साथ में एक लॉकेट भी था......जब मेरी नज़र उस लॉकेट पर पड़ी तो मुझे वो पल याद आ गया जब विशाल ने खुद अपने हाथों से उस लॉकेट को मुझे पहनाया था.........मेरी आँखों से आँसू लगातार बह रहें थे......
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