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RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
जगमोहन बंगले पर पहुंचा। रात को एक बज रहा था। देवराज चौहान नहीं आया था।
उसने भीतर प्रवेश करके लाइट जलाई और देवराज चौहान को फोन किया।
कहां हो?” बात होते ही जगमोहन ने पूछा।
“मैं दिल्ली में हूं।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी—“एक-दो दिन बाद लौटुंगा ।”
ऐसा क्या काम पड़ गया जो...।”
“आने पर बताऊंगा।” इसके साथ ही उधर से देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।
जगमोहन ने रिसीवर वापस रख दिया।
यही सोचा कि किसी काम में व्यस्त हो गया होगा देवराज चौहान।
खैर मन-ही-मन जगमोहन को तसल्ली थी कि उसने दो लोगों को मरने से बचा लिया। मन-ही-मन फैसला किया कि कल बोरीवली जाकर उस फ्लैट में देखेगा कि वहां सब ठीक तो रहा?
डिनर वो ले आया था। सोने से पहले कॉफी पीने का मन था तो वो किचन में जा पहुंचा।
तब जगमोहन कॉफी बना रहा था कि पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी।
“बहुत खुश हो रहा होगा तू कि जथूरा का काम खराब कर दिया।
“खुश हूं, जथूरा का काम खराब करने के लिए नहीं, बल्कि दो लोगों की जान बचाने के लिए।”
“एक ही बात है, परंतु उन दो लोगों को मरने से बचाकर तेरे को क्या मिला?”
मन की शांति ।”
मन की शांति? जग्गू अब तो जथूरा तेरे जीवन में अशांति पैदा करने जा रहा है।”
मैं तेरी बातों की परवाह नहीं करता।”
“तू परवाह करेगा। बहुत जल्द करेगा। जब तू बर्बाद होने जा रहा होगा, तब तुझे मेरी बातें याद आएंगी।”
“मैं तेरी बातों से डरने वाला नहीं। तू डरपोक है, मैं जानता हूं
अच्छा, जो मैं नहीं जानता मेरे बारे में, वो बात तूने जान ली, हैरानी है।” । ।
“तू हिम्मत वाला होता तो सामने आकर मेरे से बात करता। यूं अदृश्य होकर नहीं ।” ।
इससे समझ गया कि मैं डरपोक हूं?”
“बहुत बड़ा डरपोक ।”
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RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“ये सब तू इसलिए कर रहा है कि मेरा दिमाग, भविष्य की घटनाओं को, जो पहले ही देख लेता है, उन्हें मैं रोकने की चेष्टा न करूं। लोगों का बुरा हो जाने दें। खामखाह के एक्सीडेंट में लोगों को मरने दें।”
“हां। तु ठीक समझा।”
‘’ मेरे बारे में तू गलत सोच रहा है। दौलत पाने के लिए मैं इतना भी कमीना नहीं कि...।”
‘’ तू जिस तरह से दौलत इकट्ठी कर रहा है, देवा भी तेरे साथ रहता है। वो क्या मैं जानता नहीं?”
उन कामों में कमीनापन तो नहीं करते हम।”
मुझे तेरे से कुछ नहीं चाहिए पोतेबाबा ।” जगमोहन गुस्से से बोला-“तू चला जा यहां से।”
मैं तेरे को समझाने...।”
तू समझ गया होगा कि मैं तेरी बात नहीं मानने वाला। मेरे को समझाना तेरे बस का है भी नहीं।” ।
“बहुत बुरा भुगतेगा तू ।” पोतेबाबा के स्वर में चेतावनी के भाव आ गए।
“कुएं में जाकर गिर तू।” जगमोहन ने कहा और कप रखकर, सोफे पर ही लेट गया।
अगले दिन जगमोहन की आंख खुली तो सुबह के नौ बज रहे थे। कुछ पल वो आंखें खोले, कल की बीती घटनाओं के बारे में सोचने लगा, फिर उठा और किचन में जाकर कॉफी बनाई और सोफे पर बैठकर घूट भरने लगा। दिमाग में तरह-तरह के विचार घूम रहे थे। सोचें तेजी से दौड़ रही थीं। " अब वो पोतेबाबा के बारे में सोचने लग गया था। | पोतेबाबा जो भी था, खतरनाक था। जो नजर नहीं आता था और कभी भी उसके आस-पास मंडराता हो सकता था। उसकी हर हरकत को देख सकता था और उसे पता भी नहीं चल सकता। सिर्फ धुएं में उसकी आकृति चमकने लगती थी। उसकी मौजूदगी का स्पष्ट है मैं उसकी आकृत और उसे पता भीकता था। उसकी जगमोहन ने लाख सोचा, परंतु जथूरा के बारे में कुछ भी याद नहीं आया। ये सब उसके पूर्वजन्म के लोग थे। जिनके बारे में सीधे-सीधे कुछ भी याद नहीं आ सकता था। | जथूरा हादसों का देवता था।
इस दुनिया में होने वाले हर बुरे एक्सीडेंट को वो ही तैयार करता था। वो अपनी दुनिया में बैठा इस दुनिया के लोगों को मौत के मुंह में पहुंचा रहा था।
ये गलत बात थी। जथूरा को ऐसा नहीं करना चाहिए। मासूम लोगों की जान नहीं लेनी चाहिए उसे।
लेकिन उसे कैसे पहले ही पता चल जाता था कि कहां पर क्या हादसा होने वाला है?
पोतेबाबा कहता है कि कोई ऐसी शक्ति ये सब बातें उसके मस्तिष्क में डाल रही है, जो जथूरा के खिलाफ है। परंतु वो शक्ति उसे क्यों इस्तेमाल कर रही है, इस मामले में?
सोचों का कोई अंत नहीं था।
जगमोहन को लग रहा था कि इन सब बातों से वो पूरी तरह अंजान है कि ये सब क्या हो रहा है?
वो तो बार-बार ये ही सोचता कि क्या ये सब बातें, पूर्वजन्म की यात्रा की शुरुआत तो नहीं? | देवराज चौहान की जरूरत महसूस कर रहा था वो। परंतु देवराज चौहान दिल्ली में कहीं व्यस्त था और अब उसने ये ही तय किया कि देवराज चौहान को फोन पर कुछ नहीं बताएगा। उसकी बातें सुनकर देवराज चौहान खामखाह परेशान होगा और जो काम कर रहा है, कहीं उसमें न भटक जाए। देवराज चौहान जब वापस आएगा, तभी उसे ये सब बातें बताएगा।
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RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
जगमोहन ने कॉफी समाप्त की और उठ खड़ा हुआ। | वो सबसे पहले बोरीवली के उस फ्लैट पर जाकर देखना चाहता
था कि सब ठीक रहा या नहीं।
जगमोहन नहा-धोकर तैयार हुआ। ब्रेड का नाश्ता किया फिर कार पर बोरीवली के लिए चल दिया। | पचास मिनट के सफर के पश्चात जगमोहन बोरीवली के उन फ्लैटों के पास पहुंचा। कार रोकी और 146 नम्बर फ्लैट तलाश करके सीढ़ियां चढ़ने लगा। दूसरी मंजिल पर 146 नम्बर फ्लैट के दरवाजे पर ठिठका। वहां शांति छाई थी। उसने कॉलबेल पर उंगली रखी तो भीतर कहीं बेल बजने का स्वर सुनाई दिया।
मन-ही-मन जगमोहन सोच रहा था कि सब ठीक हो। एकाएक दरवाजा खुला।।
जगमोहन ने चैन की सांस ली। क्योंकि दरवाजा खोलने वाली युवती वो ही थी, जिसे उसके मस्तिष्क ने देखा था।
“कहिए?” युवती ने उसे देखा। तभी पीछे से मर्द की आवाज आई।
कौन है रानी?”
जगमोहन ने पहचाना कि ये रात वाले आदमी की ही आवाज थी। यानी कि सब ठीक था। उसकी कोशिश सफल रहीं।
तभी वो व्यक्ति दरवाजे पर आया। उसने छोटे से बच्चे को उठा रखा था। जगमोहन को देखते ही वो चौंका।
अ...आप!”
जगमोहन मुस्करा पड़ा।
“ओह, भीतर आइए—मैं...”
मैं यहीं देखने आया था कि क्या सब ठीक है? वो देख लिया, मुझे रोकना मत। मैं व्यस्त हूं। अभी जाना है।”
उस आदमी के होंठों से कुछ न निकला वो अवाक-सा जगमोहन को देख रहा था।
“कौन है ये?” युवती ने उस आदमी को देखा।
जगमोहन पलटा और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां उतरने लगा। कुछ ही पलों में वो नीचे खड़ी अपनी कार में आ बैठा था। ‘मैंने जथूरा का एक हादसा बेकार कर दिया। दो की जानें बचा लीं । जगमोहन बड़बड़ा उठा।
। “तुम आग से खेल रहे हो।” कानों में पोतेबाबा की आवाज पड़ी।
तुम फिर आ गए?”
बहुत खुश हो कि जथूरा का एक हादसा बेकार कर दिया।
तुम कब से कार में हो?”
*अभी आया हूं, जब तुम ऊपर गए।” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम अचानक मुझ तक कैसे आ जाते हो?” जगमोहन ने पूछा।
" “मैं अचानक नहीं आता। मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं। हवा नहीं। मुझे भी भीतर-बाहर जाने के लिए दरवाजे का इस्तेमाल करना पड़ता है। खास बात सिर्फ ये है कि मैं अदृश्य हूं।”
जगमोहन के होंठ सिकुड़े। “मतलब कि इंसानी शरीर तुम्हारे साथ है।”
क्यों नहीं, मैं इंसान हूं तो, शरीर मेरे साथ क्यों नहीं होगा। दवा खाकर मैं अदृश्य हुआ पड़ा हूं।”
उसी पल जगमोहन नै बगल वाली सीट की तरफ हाथ बढ़ाया। जगमोहन का हाथ किसी की बांह से टकराया। परंतु वो बांह उसे नजर नहीं आ रही थी। जगमोहन पूरा शरीर टटोलने लगा।
ये क्या कर रहे हो?” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी।
बांह-कंधा, सिर, चेहरा, दाढ़ी, सब चीजों का एहसास हुआ जगमोहन को।
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RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
बुरी घटनाएं—किसके लिए?” तुम्हारे लिए भी और जथूरा के लिए भी। हम सब के लिए।” “तुम्हारा मतलब कि मेरा दिमाग जथूरा के बुरे हादसों को पहले ही देख लेता है, तो मैं उन हादसों के बारे में कुछ न करूं। बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लें तो, आने वाला बुरा वक्त थम जाएगा।”
हां। ठीक कहा तुमने ।”
“वो बुरा वक्त कैसा होगा?”
“ये मैं नहीं बता सकता।”
“या तुम्हें पता ही नहीं है उस बुरे वक्त के बारे में?”
पता है। कुछ-कुछ पता है।” पोतेबाबा की आवाज में गम्भीरता थी—“इसी कारण तुम्हें समझाने के लिए मारा-मारा फिर रहा हूं। जथूरा चाहता है कि तुम्हें, उसके काम न बिगाड़ने दें।”
फिर तो तुम्हारे हाथ मायूसीं लगेगी। मैं तुम्हारी बातें समझने वाला नहीं।” ।
क्यों जिद करते हो, मैं तुम्हें बहुत बड़ी दौलत...।” ।
यही वो पल थे कि जगमोहन को अपने मस्तिष्क में बिजलियां-सी कौंधती महसूस हुईं।
“आं।” जगमोहन के होंठों से निकला।
क्या हुआ?”
जगमोहन ने फौरन कार को सड़क के किनारे ले जा रोका।
अगले ही पल होंट भींचे जगमोहन ने सिर को कार के स्टेयरिंग पर रख दिया। मस्तिष्क झनझना रहा था उसका। आंखें बंद हो चुकी थीं। और फिर उसके मस्तिष्क में तस्वीरें उभरने लगीं।
एयरपोर्ट का दृश्य उसके मस्तिष्क में चमका ।। रोशनियों से एयरपोर्ट जगमगा रहा था।
दीवार पर उसे डिजिटल बोर्ड पर आज की तारीख और 4 बजे का वक्त दिखा। लोगों की भीड़ थी।
तभी एकाएक पुलिस और काले कपड़ों में कमांडोज़ नजर आने लगे। वो दस-बारह कमांडोज थे, जिन्होंने गनें थाम रखीं थीं। वे सब भीतर से आते एक रास्ते पर खड़े हो गए। पुलिस वहां से लोगों को पीछे हटाने लगी थी।
फिर जगमोहन के मस्तिष्क में कमांडो जैसे काले कपड़ों में एक व्यक्ति दिखा जो भीड़ से अलग खड़ा था। उसकी निगाह इसी तरफ थी और हाथ में मीडियम साइज का सूटकेस थाम रखा था।
तभी उस रास्ते से छः लोगों से घिरे प्रधानमंत्री आते दिखे। छः में से चार प्रधानमंत्री के पर्सनल कमांडोज थे और बाकी के दो उनके सहायक थे। ज्यों ही प्रधानमंत्री उस रास्ते से बाहर आए, वहां मौजूद कमांडोज ने उन्हें अपने घेरे में ले लिया और वे सब बाहर की तरफ बढ़ रहे थे।
पुलिस इस दौरान लोगों को पीछे रख रहीं थी।
कमांडो जैसे काले कपड़े पहने व्यक्ति ने फुर्ती से अपना सूटकेस खोला। उसमें गन रखी थी। उसने गुन निकाली और तेजी से आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री को घेरे चल रहे कमांडोज में शामिल हो गया। किसी का भी ध्यान उस पर नहीं था। वो गन थामे कमांडो के बीच में से रास्ता बनाते जरा-जरा करके आगे बढ़ने लगा।
कमांडोजयुक्त प्रधानमंत्री का काफिला, तेजी से बाहरी गेट की तरफ बढ़ रहा था। | वो व्यक्ति प्रधानमंत्री के भीतरी सुरक्षा घेरे तक आ पहुंचा था। तब तक प्रधानमंत्रीजी बाहरी गेट तक आ पहुंचे थे। सामने सिक्योरिटी से लदी प्रधानमंत्री के कार्यालय की कार खड़ी थी। जिसका दरवाजा खुल चुका था। प्रधानमंत्रीजी आगे बढ़कर उसमें बैठने ही वाले थे कि उस व्यक्ति ने उसी पल गन सीधी की और गोलियां चलाने लगा। सारी जगह गोलियों की तड़-तड़ से गूंज उठी। प्रधानमंत्री का शरीर गोलियों से भर गया। वे नीचे जा गिरे।
| जगमोहन गहरी-गहरी सांसें लेने लगा था।
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अब उसका दिमाग शांत हो गया था। मस्तिष्क में बिजलियां चमकनी बंद हो गई थीं।
कई पलों तक जगमोहन स्टेयरिंग पर सिर रखे रहा। फिर उसने सिर उठाया। सीधा बैठा।
चेहरा पसीने से भरा हुआ था। अभी भी वह लम्बी सांसें ले रहा था। खुली आंखों के सामने वो सब कुछ तैर रहा था, जो उसके मस्तिष्क ने अभी-अभी देखा था।
प्रधानमंत्री की हत्या होने जा रही थी।
जबकि देश का प्रधानमंत्री एक अच्छा और शरीफ इंसान था। जनता में मशहूर था।
ये नहीं होना चाहिए। जगमोहन ने रूमाल निकालकर अपना पसीने से भरा चेहरा पोंछा।
क्या हुआ?” पोतेबाबा की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी।
“तुम?” जगमोहन ने बगल वाली सीट की तरफ देखा–“तुम अभी गए नहीं?" ।
नहीं, मैं तुम्हारे पास ही बैठा था। क्या हुआ था तुम्हें अभी?”
जगमोहन दो पल चुप रहकर बोला।
तुम देश के प्रधानमंत्री को हादसे में मारने जा रहे हो?”
“हम नहीं मार रहे, वो तो हादसा होगा। तुम ये क्यों सोचते हो कि हम लोगों की जान लेते हैं?”
लेकिन वो हादसा जथूरा ने ही रचा है।”
“ठीक समझे ।”
प्रधानमंत्री शरीफ है, उसकी जान मत लो।”
तभी तो जथूरा उसकी जान लेने के लिए हादसा रच चुका है कि वो शरीफ है। वो शरीफ मरेगा तो कोई दूसरा प्रधानमंत्री बनेगा। षड्यंत्र भी होंगे और जथूरा को नए हादसे रचने का और भी मौका मिलेगा।” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी। ।
“तो तुम नहीं मानोगे?”
“मेरे हाथ में कुछ भी नहीं है। मैं तो तुम्हारे पास हूं। हादसे तो उस दुनिया में बैठा जथूरा रच रहा है।”
कैसे रचे जाते हैं हादसे?” “जथूरा सोचता है और अपने शिष्यों को बताता है कि कौन-सा हादसा कैसे रचना है। मैं वहां होता हूं तो जथूरा की इस काम में पूरी सहायता करता हूं। वैसे जथूरा के विद्वानों की जमात हादसों के तरीकों को सोचती है। विद्या ग्रहण किए हजारों शिष्य हैं जथूरा के जो आदेश के मुताबिक हादसों को रचते हैं। फिर रचे जा चुके हादसों का माप-तौल अनुभवी लोगों द्वारा किया जाता है कि हादसे को ठीक से रचा गया है या नहीं। अगर रचे हादसे में कोई कमी होती है तो उसे पुनः दुरस्त करने के लिए वापस भेज दिया जाता है। जो हादसा ठीक होता है उसे तुम्हारी दुनिया में उन नामों पर भेज दिया जाता है, जिसके लिए हादसा तैयार किया जाता है।”
“कैसे भेजा जाता है?"
“बहुत ही आसान है। जैसे तुम्हारी दुनिया के लोग मोबाइल फोन से एस.एम.एस. भेजते हैं, कुछ ऐसा ही सिस्टम हमारे पास है, परंतु उस तकनीक को हम गुप्त रखते हैं ताकि कोई हमारी वो तकनीक खराब न कर दे।”
“तुम लोगों ने बहुत तरक्की कर रखी है।”
“बहुत ज्यादा। तुम्हारी दुनिया से बड़े विद्वान हमारी दुनिया में हैं।”
“मैं पूर्वजन्म की दुनिया में कई बार जा चुका हूं।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।
खबर है मुझे ।” अब नहीं जाना चाहता।” क्योंकि वहां बड़े-बड़े खतरे होते हैं?”
“हां, वे ख़तरे हमारी दुनिया के लोगों पर भारी पड़ते हैं।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।
तुम पूर्वजन्म का सफर न करो, यही मैं चाहता हूं, ये ही जथूरा चाहता है।”
क्या मतलब?” ।
“जथूरा के हादसों में दखल दोगे तो तुम्हें पूर्वजन्म का सफर करना पड़ सकता है।”
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जगमोहन की गर्दन घूमी और सीट की तरफ देखा। वो ख़ाली थी। जगमोहन के होंठ भिंच गए।
कोई चाहता है कि तुम पूर्वजन्म का सफर करो। तभी तो वो जथूरा के हादसों का तुम्हें पूर्वाभास करा रहा है।”
वो क्यों मुझे पूर्वजन्म में भेजना चाहता है?”
ये तो वो ही जाने ।”
कौन है वो?”
“मैं नहीं जानता, परंतु वो शक्ति जो भी है, जथूरा की दुश्मन ही होगी। तभी तो तुम्हें जथूरा के खिलाफ भड़का रही है।”
मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा नहीं।”
मैं झूठ नहीं बोलता जग्गू।”
“नहीं, मैं तुम्हारा यकीन नहीं कर सकता ।”
“एक बार करके देखो।”
“क्या?
सिर्फ एक बार तुम जथूरा के खेल में दखल मत दो। उसके बाद सब कुछ ठीक होता चला जाएगा।”
तुम्हारा मतलब है कि मैं प्रधानमंत्री की हत्या होने दें।
“हां, यही मेरा मतलब है। एक बार भी तुम खामोश बैठे रह गए तो उस शक्ति का चक्र टूट जाएगा। वो कमजोर होती चली जाएगी, फिर तुम्हें पूर्वजन्म का सफर भी नहीं करना पड़ेगा।”
और जथूरा के हादसे इसी प्रकार चलते रहेंगे।”
“हां। जैसे दुनिया चल रही है, वैसे ही चलती रहेगी।”
जगमोहन के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।
पोतेबाबा।”
हां ।”
“तेरे को किसी ने ये नहीं कहा कि तू बहुत बड़ा कमीना है?” जगमोहन ने तीखे में कहा।
“ऐसा मुझे किसी ने नहीं कहा।”
तो मैं कहता हूँ। अपनी जात पहचान ले ।”
“तू मेरी बेइज्जती कर रहा है जग्गू।” पोतेबाबा ने नाराजगी से कहा।
“अभी बहुत इज्जत से बात कर रहा हूं। मेरी कार से बाहर | निकला जा।”
मेरी बात...।” ।
“सुना नहीं तूने...मेरी कार से बाहर निकल जा।” जगमोहन गला फाड़कर चीखा।।
फिर दरवाजा खुला। लगा जैसे कोई बाहर निकला हो और दरवाजा बंद हो गया।
जगमोहन ने उस खाली सीट पर हाथ घुमाया। सब ठीक था। पोतेबाबा वास्तव में बाहर निकल गया था।
“अब एक बात और कान खोलकर सुन ले।” जगमोहन ने गुस्से से कार की खिड़की से बाहर देखा।
क्या?” कार के बाहर से पोतेबाबा की आवाज आई। दोबारा मेरी कार में बैठा तो बहुत मारूंगा।”
तू पागल है जग्गू। मैं जो कह रहा हूं तेरे भले के लिए ही कह रहा हूं।"
“तू मेरा तो क्या, किसी का भी भला नहीं कर सकता।” जगमोहन ने दांत भींचकर कहा और कार आगे बढ़ा दी।
| उखड़ा हुआ था जगमोहन्। पोतेबाबा से। जथुरा से और इन होने वाले हादसों से।
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