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RE: Desi Porn Stories आवारा सांड़
अपडेट—26
शीतल दीदी मुझे मारने के लिए जैसे ही चप्पल उठा कर मेरे पीछे भागी तो मैं दादी के पास से उठ के अंदर की ओर भागा लेकिन भागने के चक्कर मे किसी से टकरा गया.
संयोग से मैं जिससे टकराया उसके दूध पर ग़लती से मेरा हाथ टच हो गया....मुझे उसके दूध का नरम एहसास बहुत अच्छा लगा तो मैने बिना उसकी तरफ देखे ही कि ये कौन है उसके दूध को अपने फुल पंजे मे पकड़ कर खूब ज़ोर ज़ोर से जल्दी जल्दी चार पाँच बार दबा दबा कर मसल दिया.
मैने जैसे ही उसके दूध दबाए ज़ोर से तो उसकी ज़ोर से ‘’आआआहह’’ कर के चीख निकल गयी...मैं ये चीख सुन कर जैसे ही उसका चेहरा देखा तो मेरे चेहरे का रंग उड़ गया.
क्यों कि मैने जिसकी चुचि दबाई थी वो रश्मि दीदी थी….उनके चेहरे पर दर्द के भाव साफ जाहिर हो रहे थे….वो मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी.
राज (मन मे)—लौन्डे लग गये….शीतल दीदी क्या कम थी जो अब तो ये भी मेरा जीना हराम कर देगी.
रश्मि (मन मे)—कितना बड़ा कमीना है….मैं इसकी बहन हूँ ये जानते हुए भी कितनी ज़ोर से मेरी चुचियो को मसल दिया….शीतल सही
कहती है..इससे बच कर रहना होगा…पता नही कब मेरा भी रेप कर दे ये, इस सांड़ का कोई भरोसा नही है.
मैं अपनी ही सोच मे गुम था कि तब तक शीतल दीदी मेरे पास आ गयी और ज़ोर से मेरी पीठ पर एक मुक्का ठोंक दिया…. मेरे जिस्म मे दर्द की एक तेज़ लहर दौड़ गयी….शीतल दीदी का मुक्का सीधा पीठ मे मेरी चोट वाली जगह पर लगा था. जिसके फलस्वरूप मेरी दर्द से कराह निकल गयी….कोई कुछ सवाल करे इसके पहले ही मैं बिना रुके अपने रूम मे भाग गया.
मीनू—शीतल तेरे हाथ मे से ये खून क्यो निकल रहा है, कोई चोट लगी है क्या….?
शीतल (चौंक कर)—न्न्नहि तो…..मुझे तो कोई चोट नही लगी है…..(फिर मन मे)—मुझे तो कोई चोट नही है फिर मेरे हाथ मे ताज़ा खून कहाँ
से आ गया….(कुछ याद आने पर)..ओमाइगॉड..इसका मतलब ये खून राज का है, तभी वो मेरे मुक्का मारने पर चिल्लाया था.
माँ—शीतल बेटा कोई चोट लगी है क्या तुझे….?
शीतल दीदी ने कोई जवाब नही दिया और वहाँ से उठ कर मेरे रूम का दरवाजा नॉक करने लगी…जो कि मैने बंद कर लिया था और इस
समय ब्र्ड पर लेटा हुआ था दर्द की वजह से.
शीतल—ओये…दरवाजा खोल जल्दी.
राज—क्यो फिर से मारना है….?
शीतल—तू दरवाजा तो खोल पहले फिर बताती हूँ कि क्या करना है.
राज—मैं नही खोलता..
शीतल—मैं दरवाजा तोड़ दूँगी समझा...नही तो सीधी तरह से खोल दे.
राज—वाह...मैं दरवाजा खोल दूं तो ये जंगली बिल्ली मुझे नोच डाले...इतना पागल नही हूँ मैं
दादी—क्यो परेशान करती रहती है उसको हमेशा…..? और तेरे हाथ मे खून क्यो बह रहा है….?
शीतल—अभी पता चल जाएगा, एक बार दरवाजा तो खोल दे.
मीनू—रुक मैं खुल्वाती हूँ दरवाजा, मेरे पास आइडिया है
माँ—क्या…?
मीनू (ज़ोर से)—राज….जल्दी से दरवाजा खोल…देख शीतल के हाथ से बहुत खून निकल रहा है….उसको डॉक्टर के पास ले जा जल्दी से.
शीतल दीदी को चोट लगने और खून निकलने की बात सुनते ही मैं तुरंत शर्ट पहन कर बाहर निकल आया और जल्दी से शीतल दीदी के पास जा कर उनका हाथ चेक करने लगा, उनके हाथ मे खून लगा देख मैने उन्हे अपनी गोद मे उठा लिया और तेज़ी से बाहर जाने लगा.
शीतल—उतार मुझे नीचे….जल्दी उतार मुझे नीचे….कहाँ ले के जा रहा है.
राज—नही आपको चोट लगी है….पहले डॉक्टर के पास चलो…..फिर मार लेना मुझे जी भर के.
मेरे ऐसे अचानक करने से सब चौंक गये, सबसे ज़्यादा रश्मि दीदी हैरान हुई....शीतल दीदी बार बार मुझे नीचे उतारने को चिल्लाए जा रही थी.
शीतल—उतार मुझे….कोई चोट वोट नही लगी है मुझे…पहले नीचे उतार फिर बताती हूँ.
रश्मि—ये सब क्या है मीनू…?
मीनू—क्यों कि मुझे पता है कि राज हम सब बहनों मे से शीतल को सबसे ज़्यादा चाहता है...उसकी मामूली सी खरोंच भी वो बर्दास्त नही
कर पता इसलिए मैने झूठ बोला दरवाजा खुलवाने के लिए.
राज—क्याआ.... ? आपने झूठ बोला....लेकिन दीदी के हाथ से खून क्यो निकल रहा है फिर... ?
शीतल—नीचे उतार मुझे फिर बताती हूँ.
मैने शीतल दीदी को नीचे उतार दिया.....नीचे उतरते ही चत्टाअक्कक......चतत्त्टाककक....उन्होने मेरे दोनो गालो पर अपने हाथो की मोहर लगा दी.
माँ (चिल्लाते हुए)—शीतलल्ल्ल्ल्ल....ये क्या बदतमीज़ी है.
शीतल (ज़ोर से)—इसने अपने गंदे हाथो से मुझे छुआ भी कैसे…..? और ये खून मेरा नही आपके इस लाड़ले का है… इसकी शर्ट उतरवाओ पहले…सब पता चल जाएगा.
राज—दादी…चलो मुझे नीद आ रही है.
शीतल (चिल्लाते हुए)—रुक , पहले शर्ट उतार अपनी.
राज—मुझे कुछ नही उतारना है.
माँ—चल दिखा मुझे कहाँ चोट लगी है तुझे.
राज—मुझे कोई चोट नही लगी है माँ…आप चिंता मत करो
मैं जल्दी से रूम मे चला गया…..वैसे भी थप्पड़ खाने के बाद मेरा दिमाग़ खराब हो गया था….मेरे वहाँ से जाने के बाद मीनू दीदी शीतल के उपर चिल्लाने लगी.
मीनू—तू हरदम उसके पीछे क्यो पड़ी रहती है….? क्यो इतनी नफ़रत करती है उससे.... ? एक ही तो भाई है हमारा....जब देखो तब उसे खरी खोटी सुनाती रहती है.....अब तो तेरा हाथ भी उठने लगा है....और एक वो है जो तुझे हम सबसे अधिक चाहता है तेरी एक खरोंच पर भी तड़प जाता है.....क्या तेरे सीने मे दिल नाम की कोई चीज़ नही है..... ?
शीतल (ज़ोर से)—हान्न्न...करती हूँ नफ़रत मैं.....एक बलात्कारी मेरा भाई कभी नही हो सकता.....उससे कह दो मुझसे दूर ही रहा करे....मैं उसकी शकल भी देखना नही चाहती.
माँ (चिल्लाते हुए)—शीतलल्ल्ल्ल्ल......आज के बाद दोबारा ऐसी बेहूदा बाते मुझे सुनने को ना मिले..समझी
मैं दादी के बिस्तर मे लेटे हुए शीतल दीदी के अपने प्रति व्यवहार के बारे मे सोच रहा था....शीतल दीदी की कही हुई बतो से मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी जो कि मैने रूम मे जाते हुए सुन ली थी...साथ मे पीठ मे दर्द भी बहुत हो रहा था.....सोचते हुए कब नीद आ गयी पता ही नही चला.
रात मे मुझे अपने चेहरे पर कुछ गीलापन महसूस होने से नीद टूट गयी....मैने महसूस किया कि कोई मेरे पास बैठ कर रो रहा है जिसके
आँखो से गिरते आँसू मेरे जख़्मो को भिगो रहे थे.
मुझे उसके आँसुओं से बेहद सुखद एहसास होने लगा ऐसा लगने लगा जैसे कि मुझे अब कोई दर्द ही ना हो.....मैं समझ गया कि ये शीतल दीदी ही हैं...क्यों की मुझे भली भाँति पता है की उन्हे मेरी चोट से सबसे ज़्यादा तकलीफ़ होती है.
भले ही वो सब के सामने मुझसे नफ़रत करने का दिखावा करती हैं लेकिन सच तो यही है कि वो मुझे दर्द मे नही देख पाती....कुछ देर तक आँसू टपकाने के बाद उन्होने मलम ला कर मेरे जख़्मो पर लगाया और मेरे गालो पर जहाँ उन्होने थप्पड़ मारा था वहाँ काफ़ी देर तक धीरे धीरे चूमती रही और सिसकती रही.
अपने घर की हर औरत को मैने केवल भोगने की नज़र से देखा है शीतल दीदी को छोड़ कर....ना जाने क्यो उन्हे देखते ही मैं सब कुछ जैसे भूल जाता हूँ....मेरे हृदय मे एक अलग ही तरह की तरंगे हिलोरे लेने लगती हैं....मेरे अंदर की सारी कामुकता गायब सी हो जाती है और मेरा
दिल हमेशा चाँद को भी मात कर देने वाले मुखड़े को अपने सामने देखते रहना चाहता है...ऐसा क्यो है.... ? इसका जवाब तो शायद अभी मेरे पास भी नही है.
उनके इस मर्म स्पर्शी छुवन के एहसास से मैं एक बार फिर अपनी सुध बुध खो कर सुखद नीद की आगोश मे समाता चला गया….मुझे दादी के पास जाने का ख्याल भी दिमाग़ से निकल गया.
सुबह जब मेरी नीद खुली तो वहाँ कोई नही था….आज की सुबह मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत सुबह मे से एक थी…मैने फ्रेश होने के बाद बाहर आ गया तो मुझे कुछ सीटी बजने जैसी आवाज़ सुनाई पड़ी.
मैं समझ गया कि कोई अपनी बुर खोले मूत रही है….बुर की खुश्बू मिलते ही लंड राज अकड़ के सीना तान कर खड़ा हो गया…मैं धीरे कदमो से उधर बढ़ गया जिधर से किसी के मूतने से सीटी बजने की आवाज़ आ रही थी.
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RE: Desi Porn Stories आवारा सांड़
अपडेट-27
अपने घर की हर औरत को मैने केवल भोगने की नज़र से देखा है शीतल दीदी को छोड़ कर....ना जाने क्यो उन्हे देखते ही मैं सब कुछ जैसे भूल जाता हूँ....मेरे हृदय मे एक अलग ही तरह की तरंगे हिलोरे लेने लगती हैं....मेरे अंदर की सारी कामुकता गायब सी हो जाती है और मेरा
दिल हमेशा चाँद को भी मात कर देने वाले मुखड़े को अपने सामने देखते रहना चाहता है...ऐसा क्यो है.... ? इसका जवाब तो शायद अभी मेरे पास भी नही है.
उनके इस मर्म स्पर्शी छुवन के एहसास से मैं एक बार फिर अपनी सुध बुध खो कर सुखद नीद की आगोश मे समाता चला गया….मुझे दादी के पास जाने का ख्याल भी दिमाग़ से निकल गया.
सुबह जब मेरी नीद खुली तो वाहा कोई नही था….आज की सुबह मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत सुबह मे से एक थी…मैने फ्रेश होने के बाद बाहर आ गया तो मुझे कुछ सीटी बजने जैसी आवाज़ सुनाई पड़ी.
मैं समझ गया कि कोई अपनी बुर खोले मूत रही है….बुर की खुश्बू मिलते ही लंड राज अकड़ के सीना तान कर खड़ा हो गया…मैं धीरे कदमो से उधर बढ़ गया जिधर से किसी के मूतने से सीटी बजने की आवाज़ आ रही थी.
अब आगे……..
मैं दबे पावं सीटी की आवाज़ जहाँ से आ रही थी उस तरफ बढ़ गया…..वहाँ पहुचते ही मैने देखा कि रूपा चाची की मझली बेटी संध्या जो
की मुझसे एक साल बड़ी हैं वो अपने गोरे गोरे चूतड़ खोले बैठ कर मूत रही थी….उसके मूतने से सीटी की आवाज़ आ रही थी.
अब चूँकि हमारे घर मे कोई बाथरूम तो था नही….मिट्टी का बना घर है…आँगन मे ही तीन तरफ से लकड़ी गाढ कर उसमे कपड़ा लपेट दिया गया था चारो तरफ से जिससे घर की औरतो को नहाने आदि मे कोई परेशानी ना हो.
फिर भी कपड़ा कयि जगह से फटा हुआ था जिससे झाँक कर अंदर का नज़ारा देखा जा सकता है…आँगन हालाँकि अंदर था जिससे किसी
बाहरी आदमी के वहाँ आने की संभावना लगभग ना के ही बराबर थी.
संध्या दीदी दूसरी तरफ मूह कर के मूत रही थी…इसलिए उनका ध्यान पीछे नही था कि मैं उन्हे देख रहा हूँ…हालाँकि उन्होने अपने मोटे
मोटे गोरे चुतड़ों को अपने कुर्ते से ढक रखा था फिर भी वो आधे से ज़्यादा नंगे दिख रहे थे.
संध्या दीदी के नंगे चुतड़ों का दर्शन करते ही मेरा लंड क़ुतुब मीनार बन गया…..मैने एक नज़र अपने चारो तरफ घुमा कर देखा कि कही कोई मेरे आस पास तो नही है.
जब कन्फर्म हो गया कि कोई नही है तो मेरे मन मे संध्या दीदी की बुर देखने की ख्वाहिश बलवती हो गयी… बार बार मन मे सोचने लगा कि संध्या दीदी की बुर नंगी कैसी दिखती होगी….?
मन मे ये लालच उत्तपन्न होते ही मैं धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा…..और फटे हुए कपड़े मे से अंदर झाँकने लगा लेकिन मेरी फूटी किस्मत, तभी
संध्या दीदी उठ कर खड़ी हो गयी और अपने सलवार का नाडा बाँधने लगी.
मुझे बस उनकी गोरी गोरी जाँघो की एक हल्की झलक ही मिल पाई…..उनकी बुर के दर्शन होते होते रह गये….मायूस होकर मैं मुड़ा ही था की उन्होने मुझे देख लिया.
संध्या (गुस्सा होते हुए)—तू यहाँ क्या ताका झाँकी कर रहा है…..?
राज—क्क्क…कुछ भी तो नही….वो मुझे सीटी की आवाज़ सुनाई पड़ी तो मैं वही सीटी देखने की कोशिश कर रहा था…लेकिन पता नही
अभी तक तो वो बज रही थी, मेरे आते ही बंद हो गयी….
संध्या—यहाँ कोई सीटी वीटी नही है, चल भाग यहाँ से.
राज—मैं समझ गया..इसका मतलब तुम ही सीटी बजा रही थी.....मुझे भी सीटी देखनी है...मुझे वो सीटी दिखाओ जो अभी अभी तुम बजा रही थी.
संध्या (सकपका कर)—मैने कहा ना यहाँ कोई सीटी नही है.
राज—है...सीटी है..तभी तो तुम बजा रही थी...मुझे वही सीटी चाहिए और वो भी अभी दो मुझे अपनी वो सीटी.
संध्या (शर्मा कर)—मेरे पास कोई सीटी नही है, समझा.
राज—मैने खुद सुना है, तुम्हे सीटी बजाते हुए….मुझे सीटी दिखाओ नही तो मैं सब को जा कर बता दूँगा कि तुम सीटी बजा रही थी बाथरूम मे.
संध्या (सकुचाते हुए)—मैं सच कहती हूँ..मेरे पास कोई सीटी नही है राज…समझा कर….
राज—फिर वो सीटी कहाँ से बज रही थी….? मुझे बेवकूफ़ मत बनाओ, मैने खुद सुना है.
संध्या—राज, सच मे मेरे पास कोई सीटी नही है…वो सीटी की आवाज़ तो……
राज—अब रुक क्यो गयी….आगे बताओ….
संध्या (सिर झुका कर)—कुछ नही….चल जा यहाँ से, नही तो अब मारूँगी.
राज—मैं कुछ नही जानता मुझे फिर से वही सीटी बजा कर दिखाओ….मुझे तुम्हारी सीटी देखना है…नही तो मैं चला चाची और चाचा के पास, उन्हे सब बता दूँगा.
संध्या (थोड़ा ज़ोर से)—तुझसे कह दिया ना एक बार की मेरे पास कोई सीटी नही है….और क्या बता देगा तू माँ और पापा से..?
राज—ठीक है….मैं अभी जाता हूँ चाचा और बड़ी चाची के पास....उन्हे बताता हूँ कि संध्या दीदी सलवार उतार कर सीटी बजा रही थी और मुझे दिखा नही रही है.
संध्या (शॉक्ड)—क्या देखा तूने….?
राज—मैने तुम्हे सलवार उतार कर सीटी बजाते हुए खुद अपने कानो से सुना है.
राज की बात सुन कर संध्या शरम और लाज़ से पानी पानी हो गयी…..उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वो अब राज को कैसे समझाए कि ये सीटी की आवाज़ उसके मूतने की वजह से उसकी बुर से आ रही थी…बेचारी बुरी तरह से फँस गयी थी.. साथ ही ये भी सोच रही थी
कि कहीं अगर राज ने सच मे रूपा चाची और चाचा से ये बात कह दी तो वो उनका कैसे सामना करेगी उनके सामने कैसे जा सकेगी….?
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03-20-2021, 08:47 PM,
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RE: Desi Porn Stories आवारा सांड़
अपडेट-28
सारे नौकर, सलमा और देशराज के साथ आए पोलीस वालो के अलावा वहाँ कोई नही था….कमरे की तलाशी चालू रही….अचानक देशराज हवलदार की तरफ अपना रुख़ किया.
देशराज—देख क्या रहा है पांडुरम…? इसके कमरे की अच्छे से तलाशी ले.
पांडुरम—यस सर.
पांडुरम ये कहने के साथ ही मशीनी अंदाज़ मे लॉन के उस पार एक पंक्ति मे बने सर्वेंट क्वॉर्टर्स की तरफ बढ़ गया.. उसके पीछे पीछे बाकी हवलदार भी चले गये साथ मे.
तभी देशराज का मोबाइल बजने लगा….उसने देखा तो ये ठाकुर का कॉल था…उसने एक तरफ जा कर ठाकुर से बात करने लगा.. इधर सभी डरे सहमे खड़े थे.
देशराज—आप चिंता मत कीजिए ठाकुर साहब…जिसने भी नीलेश ठाकुर जी के उपर हाथ उठाया है मैं उसकी और उसके परिवार की जानम कुंडली पलट दूँगा जल्दी ही.
अब आगे…….
ठाकुर से बात करने के बाद देशराज पलट कर कुछ देर तक छमिया और गोविंदा को घूरता रहा और फिर अपना रुख़ पीछे खामोश खड़ी
सलमा की ओर कर दिया.
देशराज—आइए सलमा जी
“आप कुछ कीजिए ना मालकिन…मालिक के सामने कोई पोलीस वाला हम लोगो से इस तरह से व्यवहार नही कर सकता था.” गोविंदा ने अपनी चाल तेज़ की और सलमा के नज़दीक पहुच कर धीरे से फुसफुसाया.
“मैं क्या कर सकती हूँ….?” सलमा इतनी ज़ोर से बोली कि बात इनस्पेक्टर देशराज के कानो तक पहुच जाए—“इनस्पेक्टर साहब को तुम पर शक है.”
“क्या शक है हम पर…?” गोविंदा के रूप मे मानो ज्वालामुखी फॅट पड़ा—“क्या ये कि मालिक को हमने मार डाला…हमने…?…मैं जो उन्हे
देवता समझता था….जो उनके चरण धोकर पानी पीता था……ज़रा सोचो मालकिन…मालिक की हत्या क्या हम करेंगे….हम…?”
देशराज (चिल्लाते हुए)—ज़्यादा नाटक किया तो साले तेरा जबड़ा तोड़ दूँगा…..सारी जिंदगी मैने तेरे ही जैसे कयि मालिक भक्त देखे हैं.
बेचारा गोविंदा कर भी क्या सकता था…बेचारा देशराज की दहाड़ सुनते ही खामोश हो गया…..और फिर एक पुराने संदूक की तलाशी ले रहे हवलदार पांडुरम चिल्लाने लगा.
पांडुरम (ज़ोर से)—मिल गये साहब..मिल गये.
देशराज (उसकी तरफ जाते हुए)—क्या…?
पांडुरम—खून से भीगे कपड़े…ये देखिए साहब.
कहने के साथ ही पांडुरम से गोविंदा का खून से सना हुआ कुर्ता उठा कर हवा मे लहराया तो एक चाकू उस कुर्ते मे से निकल कर ज़मीन पर गिर पड़ा…पांडुरम ने कुर्ता छोड़ कर उसको उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था कि,,
देशराज (ज़ोर से)—नही पांडुरम….चाकू को हाथ मत लगाना…इस पर उंगलियो के निशान होंगे.
पांडुरम ठिठक गया…सभी अवाक रह गये ये देख कर…जबकि गोविंदा और छमिया की तो रूह तक काँपने लगी.
देशराज गोविंदा पर ऐसे झपटा तेज़ी से जैसे की बाज़ किसी कबूतर के उपर झपट्ता हो….गोविंदा के बाल पकड़ लिए उसने और पूरी बेरहमी के साथ घसीटता हुआ संदूक के नज़दीक ले गया.
देशराज (ज़ोर से)—क्यो बे…?…ये क्या है….?
गोविंदा (हाथ जोड़ कर गिड गिडाते हुए)—म्म्म…मुझे नही मालूम….मैं सत्य कहता हूँ इनस्पेक्टर साहब, मुझे कुछ नही मालूम…..म्म..मुझे नही मालूम की ये….
देशराज—ये कुर्ता और संदूक मे पड़ी ये धोती क्या तेरी नही है……?
गोविंदा—य..ये कपड़े तो मेरे ही हैं साहब...मगर मुझे ये नही मालूम कि इनमे खून कहाँ से लग गया…?..मैं सच कहता हूँ...भगवान की
कसम खा कर कहता हूँ...मुझे कुछ नही मालूम साहब.
देशराज—और ये..ये चाकू भी तेरा है.... ?
गोविंदा—ना...नही साहब....ये चाकू मेरा बिल्कुल नही है.
देशराज (चिल्लाते हुए)—चात्त्ताअक्ककककक......अब भी झूठ बोलता है हरामजादे.....
देशराज ने चिल्लाते हुए गोविंदा के चेहरे पर जोरदार थप्पड़ मारा.....जिससे गोविंदा लड़खड़ाते हुए वहाँ बिछि हुई खटिया के पाए से जा
टकराया.....छमिया बेचारी ऐसे खड़ी थी जैसे उसको लकवा मार गया हो.
देशराज (सब की ओर देखते हुए)—देखा तुम लोगो ने…..अपनी आँखो से देखा....इसके खून से सने कपड़े और चाकू, इसकी अपनी संदूक से निकले.....और फिर भी ये हरामी की औलाद कहता है की इसको कुछ नही मालूम.
गोविंदा (ज़ोर से रोते हुए)—मैं सच कहता हूँ इनस्पेक्टर साहब....अगर मैं झूठ बोलू तो अपनी छमिया का मरा मूह देखु….मुझे सच मे बिल्कुल नही मालूम कि ये चाकू मेरे संदूक मे कहाँ से आ गया और मेरे कपड़ो मे खून कहाँ से लग गया... ?
देशराज (चिल्लाते हुए)—हम सब को बेवक़ूफ़ समझता है..मादरचोद.
इतना कहने के साथ ही देशराज ने सरकार द्वारा पहनाई गयी भारी बट्ट वाली बेल्ट निकाल कर गोविंदा को पीटने लगा….उसके पीटने का
अंदाज़ ऐसा था कि जैसे वो किसी इंसान को नही बल्कि कोई जानवर को मार रहा हो…
गोविंदा की चीखे दूर दूर तक गूँज रही थी…..पर उसको बचाता कौन….?….नौकरो की आँखो मे उसके लिए घृणा थी.. और छमिया हतप्रभ
हो कर खड़ी देखे जा रही थी…गोविंदा गिरते पड़ते हुए सलमा के पैर पकड़ कर गिड गिडाने लगा.
गोविंदा (गिड गिडाते हुए)—मुझे बचा लो मालकिन….नही तो इनस्पेक्टर साहब मुझे जान से मार डालेंगे…..मुझे बचा लो, मैं सच कहता हूँ
…मैने मालिक को नही मारा….भला मालिक की हत्या मैं क्यो करूँगा…?
बेचारा गोविंदा…‼ काश, वह जानता कि वो भिखारी के पैरो मे पड़ा भीख माँग रहा है…
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03-20-2021, 08:47 PM,
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अपडेट-29
शीतल (शॉक्ड)—क्याआअ….? चत्त्ताअक्ककक……तुझे मैने समझाया था ना कि उस लड़की से दूर रहा कर…अब ठाकुर चुप नही बैठेगा…हे भगवान..तेरे पास दिमाग़ है कि नही…तू है ही नफ़रत करने के लायक….जा दूर हो जा मेरी . से….मैं तेरी शकल भी नही देखना चाहती.
शीतल दीदी गुस्सा होकर रूम से बाहर निकल गयी….मैं जूते पहनने के लिए जैसे ही झुका तो बिस्तर मे . रखी हुई थी..मैं समझ गया कि ये भी शीतल दीदी का ही काम है….मैने दवा खा कर रश्मि दीदी के साथ कॉलेज निकल गया….हालाँकि माँ और शीतल दीदी ने बहुत
मना किया मुझे कॉलेज जाने से…फिर भी मैं नही माना और चला गया.
मैं क्लासरूम मे जैसे ही एंटर हुआ तो किसी से टकरा गया….जैसे ही उसके उपर मेरी नज़र गयी तो….
अब आगे…….
ये वंदना थी जिससे मैं टकराया था….वो मुझे खा जाने वाली . से देखने लगी….मैने भी मुश्कुरा कर उसके गुस्से को और भी हवा दे दिया.
वंदना—अँधा है क्या…दिखाई नही देता तुझे….?
राज—अँधा तो नही हूँ….पर आज कुछ अब तक दिखाई ही कहाँ हो जो दिखेगा…..हां परसो ज़रूर दिखाया था तुमने….वैसे तुम नीचे से भी
पान खाती हो क्या…?
वंदना—क्या मतलब है तुम्हारा….?
राज—कुछ नही,,,,उस दिन तुम्हारी चड्डी मे से लाल लाल पानी कुछ ज़्यादा ही बह रहा था.
वंदना (शॉक्ड)—व्हाट…अपनी औकात मे रहो समझे…शायद तुम जानते नही कि मैं यहाँ के ठाकुर की बेटी हूँ…मुझसे पंगा लेना तुझे बहुत महनगा पड़ेगा.
राज—सस्ती चीज़े तो मुझे भी यूज़ करने की आदत नही है.
वंदना—लगता है कि आज तेरी रॅगिंग ज़रूर होगी और वो भी मेरा भाई करेगा तरीके से…
वंदना वहाँ से गुस्से मे बड़बड़ाते हुए बाहर चली गयी और मैं अपनी दोस्त मंडली के पास जा कर बैठ गया…सभी स्टूडेंट्स मुझे घूर घूर कर देखने लगे.
राज—अबे..ये सब मुझे क्यो घूर रहे हैं….?
अनवर—तूने उस दिन ठाकुर के आदमियो को मारा जो था इसलिए….अब तो मेरी बात मान और कहीं और अड्मिशन ले ले …मैं तो कहता
हूँ की पढ़ाई छोड़ दे और कुछ दिन के लिए कहीं दूर चला जा …ठाकुर के आदमी तुझे ढूँढ रहे हैं.
राज—आबे ठाकुर क्या मेरी झान्ट उखाड़ेगा….और अगर उखाड़ भी लिया तो अच्छा ही है…वैसे भी मैं रोज रोज बना बना कर परेशान हो गया हू….बिन मौसम की खेती की तरह रोज उग आती हैं..हिहिहीही
रवि—भोसड़ी के…तुझे हँसी आ रही है....क्या तू ठाकुर को जानता नही है कि वो कैसा आदमी है…जब से सीयेम बना है…हर जगह खून
ख़राबा, लूट मार, रेप हो रहे हैं…उसका गुंडा राज चल रहा है राज्य भर मे.
राज—देख भाई मैं ठहरा छटा सांड़...और सांड़ किसी से नही डरता.....ये ठाकुर झाटुआ क्या चीज़ है.
आयुष—गान्डू…तेरी गान्ड मार लेगा वो….अच्छा हुआ कि तू कल कॉलेज नही आया था वरना कल ही तेरी गान्ड मार जाती.
राज—क्यो क्या हुआ था कल…..?
कल्लू—कल नीलेश आया था तुझे ढूँढते हुए….तू तो मिला नही, पर बेचारी वो शिल्पा उनके फंदे मे फँस गयी.. उसको ज़बरदस्ती उठा ले गये
वो…..क्या पता उसका रेप करने के बाद जिंदा भी छोड़ा उसको कि नही…?
राज—क्यो आज नही आई वो….?
रवि—जब बची होगी तब ना आएगी बेचारी.
तभी क्लास मे हिन्दी की मेडम मिसेज़. नीरजा आ गयी…आते ही उन्होने मुझे कुछ देर घूरा और फिर आगे बढ़ गयी… नीरजा मेडम की उमर लगभग 35 के आस पास होगी…बड़े चुचे और पीछे बड़ी सी गान्ड…रंग थोड़ा सांवला ज़रूर था किंतु फेस कट मस्त था.
कल्लू—अरे यार…आज तो इसने टेस्ट लेने को कहा था.
राज—अबे पागल हो गया है क्या…? हमे कॉलेज आए अभी हुए ही कितने दिन है और तू टेस्ट की बात करने लगा…अभी कुछ पढ़ाई हुई ही
कहाँ है.
रवि—भोसड़ी के….कॉलेज को खुले हुए दो महीना हो गये हैं….हम अभी से आना चालू किए हैं …कोर्स आधा हो चुका है.
राज—फिर तो हो गया टेस्ट….मैने तो अभी तक किताब खोल कर भी नही देखा कि उसके अंदर सिलबस क्या है…वैसे तूने तो पढ़ा ही
होगा…मुझे भी थोड़ा बहुत बता देना…मैं भी लिख लूँगा कुछ.
रवि—मैने खुद ही कुछ नही पढ़ा है..तुझे क्या बताउन्गा.
राज—अबे तुम लोग नही पढ़ोगे तो मैं एग्ज़ॅम मे पास कैसे होऊँगा….? लगता है पास होने के लिए अब इस मेडम को भी चोदना पड़ेगा…तभी कुछ हो पाएगा.
आयुष—तुझे चोदने के अलावा कुछ सूझता भी है….जब देखो तब तेरा दिमाग़ चोदने मे ही लगा रहता है.
राज—अब तेरा खड़ा ही नही होता और मेरा बैठता ही नही है तो इसमे मेरी क्या ग़लती है….लगता है कि तुम लोगो की बीवियो को चोदने का शुभ काम भी मुझे ही करना पड़ेगा,
रवि—साले गान्ड तोड़ दूँगा तेरी….वो तेरी भाभी होगी और भाभी माँ समान होती है.
नीरजा—प्ल्स..साइलेंट….आज मैने टेस्ट के लिए कहा था…तो रेडी हैं सभी….?
राज (मन मे)--सबने यस माँ कह कर मेरी गान्ड मरवा दी….आज की जगह कल ले लेती तो क्या हो जाता….वैसे भी कल तक कौन सा मुझे कुछ याद होने वाला था..चलो आज ही नही…कुछ भी लिख दूँगा.
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