12-18-2018, 02:00 PM,
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RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-11
गतान्क से आगे……………………
मैं गगन के लिए चाइ लेकर आई तो चाचा भी अंगड़ाई लेता हुआ अपने कमरे से बाहर आ गया.
"अरे गगन बेटा तुम आ गये, निधि बेटी एक कप चाइ मेरे लिए भी लेती आओ."
"अभी लाती हूँ." मैं चाचा को गुस्से में घुरती हुई वापिस किचन में चली गयी. मैने चाइ गॅस पर रखी और तुरंत बेडरूम में जाकर सबसे पहले बिस्तर की बेडशीट बदली. उसके बाद मैने कॅमरा से रेकॉर्डेड क्लिप डेलीट की. अपने नितंब की सफाई करने का टाइम मेरे पास नही था. ये सब काम करके मैं वापिस किचन में आई तो चाइ उबल रही थी. मैने चाइ कप में डाली और चाइ लेकर ड्रॉयिंग रूम की तरफ चल दी.
"चाचा जी आपने भी बेल नही सुनी...इतनी गहरी नींद आ गयी थी क्या आपको."
"वो बेटा निधि को मोच उतारते उतारते बहुत थक गया था मैं. नसे बहुत बुरी तरह एक दूसरे पर चढ़ि थी."
"चाचा जी चाइ." मैने उनकी बातों को काटते हुए कहा.
"दुधो नहाओ पुतो फलो" चाचा ने चाइ का कप लेते हुए कहा. उसकी नज़रे मेरी नज़रों पर गाड़ी थी. अजीब सी बेसरमी थी उसकी आँखो में. मुझे अपने नज़रे झुकाने पर मजबूर कर दिया था उसकी नज़रो ने.
"चाचा जी जो भी हो...मान गये आपको. आपने मोच उतार ही दी. वैसे कैसे उतारते हैं आप मोच...मुझे भी सिखा दीजिए...दुबारा कभी ज़रूरत पड़ी तो मैं मोच उतार दूँगा निधि की."
"निधि को सब सीखा दिया है मैने. तुम इस से पुछो...."
"हां तो निधि बताओ क्या सीखा तुमने?"
"म...म...मैने कुछ नही सीखा. म...मेरा मतलब मैं सब भूल गयी." मैं विचलित हो गयी.
"भूल गयी. कोई बात नही कल फिर से सीखा दूँगा तुम्हे. गरम पानी तो याद है ना तुम्हे. बताओ कहाँ डाला था मैने."
ये सुनते ही मेरे होश उड़ गये. मेरा पिछले छिद्र अपने आप सिकुड़ने फूलने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो मुझे वहाँ चाचा के वीर्य के होने का अहसास दिला रहा हो. मुझसे कुछ बोले नही बन रहा था.
"गरम पानी मैं कुछ समझा नही." गगन ने आश्चर्या भाव में पुछा.
"बताउन्गा पहले निधि को जवाब देने दो. कहाँ डाला था गरम पानी मैने निधि बेटी."
मैं शरम से पानी पानी हो रही थी क्योंकि वो गरम पानी अभी भी मेरे नितंब के अंदर था. चाचा जानबूझ कर ऐसी बाते कर रहा था. मुझे गुस्सा आने लगा था. मैने बात को संभालते हुए कहा, "ओह हां पाओं पर टखने के पास ही तो डाला था आपने पानी."
"ह्म्म..तुम्हे तो सब याद है. शाबाश." चाचा ने कहा.
"चाचा जी मुझे भी तो कुछ बतायें."
"वो दरअसल मोच उतारने के बाद थोड़ा गरम निधि की नसों पर डाला था. उस से आराम बना रहेगा. क्यों निधि बेटी आराम है कि नही."
"जी हां है." मैं बोल कर तुरंत वहाँ से खिसक ली.
मैं बेडरूम में घुसी ही थी कि गगन भी मेरे पीछे पीछे बेडरूम में आ गये और मुझे बाहों में भर लिया.
"तुम्हारे लिए ऑफीस से जल्दी आया हूँ. इस बारिस ने आग लगा रखी है तन बदन में.
आओ कुछ हो जाए."
"क्या हुआ आज तुम्हे...ये बारिस का असर है या कुछ और."
"तुम बहुत प्यारी लग रही हो."
गगन ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे उपर लेट गये. उन्होने मेरे होंटो को चूमना शुरू कर दिया. कब मेरा नाडा खुला और कब उनका लिंग मुझ में समा गया पता ही नही चला. हमेशा की तरह गगन ने संभोग का असीम आनंद दिया मुझे. उनके हर धक्के पर मेरी सिसकियाँ निकल रही थी. मैं 4 बार झड़ी गगन के साथ. गगन ने अपने चरम पर पहुँच कर मेरी योनि को अपने वीर्य से लबालब भर दिया. कुछ देर हम यू ही पड़े रहे. लेकिन मुझे किचन में खाना भी बनाना था. इसलिए मैं गगन को निर्वस्त्र ही छोड़ कर बाहर आ गयी. जब मैं किचन में जा रही थी तब मुझे अचानक ये ख्याल आया की उस वक्त मेरे अगले पिछले दोनो छिद्रो में वीर्य है. आगे मेरे पति का वीर्य है और पीछे कमिने देहाती का वीर्य. मैने तुरंत नहाने का फ़ैसला किया और बाथरूम में घुस गयी.
चाचा को सनडे को गाओं वापिस जाना था. सॅटर्डे को हॉस्पिटल में चेक अप करवाकर वो जाने की बात कर रहा था. पर गगन ने उसे एक दिन और रुकने को मना लिया. अभी बुधवार चल रहा था. पूरे 3 दिन बाकी थे अभी चाचा की रवानगी में. मैं गगन की अनुपस्थिति में उसके साथ नही रहना चाहती थी. इसलिए मैने रात को ज़िद करके गगन को 3 दिन की छुट्टी लेने के लिए मना लिया. गगन ने ये बात बड़े खुस हो कर चाचा को बताई.
"चाचा जी मैं घर पर ही रहूँगा तीन दिन. आपको ज़्यादा वक्त नही दे पाया था काम के कारण. लेकिन अब आपको शिकायत नही रहेगी."
चाचा का चेहरा ये सुन कर लटक गया था. मैं चुपचाप खड़ी मन ही मन मुस्कुरा रही थी.
जब गगन बेडरूम में थे तो मोका देख कर चाचा चुपचाप किचन में आया और धीरे से बोला, "तुमने रोका है ना गगन को घर पर."
"जी हां मैने सोचा उनको टाइम ही नही मिलता आपसे ज़्यादा बात करने का. इसलिए उन्हे तीन दिन की छुट्टी लेने को कहा."
"मेरा मज़ा खराब होगा तो तुम्हारा कॉन सा बच जाएगा. मज़ा तो तुम भी लेती हो ना मेरे साथ."
"ज़्यादा बकवास मत करो और मुझे खाना बनाने दो." मैने कठोरता से कहा.
चाचा अपना सा मूह लेकर चला गया. उसकी हालत देखने वाली थी. अब मैं घर में जानबूझ कर चाचा को जलाने के लिए मटक मटक कर घूम रही थी. चाचा घूर घूर कर मुझे देखता था मगर कुछ कर नही पाता था. मुझे उसे इस तरह से सताना अच्छा लग रहा था. उसकी हालत देखते ही बनती थी.
वो ड्रॉयिंग में बैठा होता था तो मैं जानबूझ कर अपनी कमर लचकाती हुई उसके सामने से निकलती थी. बेचारा बस आह भर कर रह जाता था.
तीन दिन यू ही बीत गये. सॅटर्डे को हॉस्पिटल से आकर चाचा ने गगन से कहा,
"बेटा कल सुबह 11 बजे की ट्रेन है. मन तो नही कर रहा यहाँ से जाने का पर जाना ही पड़ेगा."
मैं भी उस वक्त ड्रॉयिंग रूम में गगन के साथ ही बैठी थी.
"कोई बात नही चाचा जी. जब भी मोका लगे दुबारा ज़रूर आना यहाँ. ये आपका ही घर है."
"गाओं से निकलने का वक्त ही नही मिलता बेटा. खेती बाड़ी में ही उलझा रहता हूँ.
तुम दोनो आओ कभी गाओं. निधि बेटी को भी गाओं दीखाओ...अच्छा लगेगा इसे."
"ज़रूर चाचा जी. कभी मोका मिला तो ज़रूर आएँगे." गगन ने कहा.
"अच्छा मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ. बहुत थक गया आज मैं." बोल कर चाचा अपने रूम में चला गया.
शाम को जब मैं किचन में खाना बना रही थी तो चाचा मोका देख कर किचन में आया और धीरे से बोला, "मन कर रहा है तुझे छुने का. पर चलो कोई बात नही. खुस रहना हमेशा."
मैं चुपचाप रोटिया सेकने में लगी रही. मैने बदले में कुछ नही कहा. कुछ कहने की ज़रूरत भी नही थी.
रात को डिन्नर के बाद मैं किचन के काम ख़तम करके बेडरूम में घुसी तो गगन खर्राटे ले रहे थे. आज वो कुछ ज़्यादा ही जल्दी सो गये थे जबकि अभी सिर्फ़ 11 ही बजे थे. मैं भी सोने के लिए लेट गयी. पर मेरी आँखो से नींद गायब थी. मैं बार बार करवट बदल रही थी. मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है. 11 से 12 बज गये पर मेरी आँख नही लगी. गगन मज़े से सोए पड़े थे. अचानक मुझे टाय्लेट का प्रेशर महसूस हुआ तो मैं धीरे से उठ कर बेडरूम से बाहर आ गयी. टाय्लेट की तरफ जाते वक्त मैं अचानक चोंक कर रुक गयी. ड्रॉयिंग रूम में अंधेरे में सोफे पर चाचा बैठा था. उसे देखते ही मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा. मैं वापिस बेडरूम में चले जाना चाहती थी. मगर मन के एक कोने से आवाज़ आई, "जाते जाते एक मोका दे दो बेचारे को खुद को छुने को." और मेरे कदम टाय्लेट की तरफ बढ़ते चले गये.
चलते चलते मेरे पाओं डगमगा रहे थे. टाय्लेट में घुसते ही मैने दरवाजा अंदर से अच्छे से बंद कर लिया. "मैं कोई मोका नही दूँगी इस देहाती को. आइ हेट हिम." मैने खुद से कहा.
मैं खुद को रिलीव करके टाय्लेट से बाहर निकली तो चाचा टाय्लेट के दरवाजे के पास ही खड़ा था. उसे अपने इतना करीब देख कर मैं घबरा गयी. उसके इरादे ठीक नही लग रहे थे. मैं बिना कुछ कहे अपने कमरे की तरफ चल दी.
मगर चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया.
"थोड़ी देर रुक जा."
"छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्ला कर गगन को बुला लूँगी."
"पागल मत बनो. चलो थोड़ी देर बाते करते हैं बैठ कर."
"मुझे तुमसे कोई बात नही करनी छोड़ो मेरा हाथ."
"रुक जाओ ना. इतने नखरे भी ठीक नही."
"बेशरम हो तुम एक नंबर के. छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्लाउन्गि."
"तुम नही चिल्लाओगी मुझे पता है. सब नाटक है तुम्हारे." चाचा ने मेरे हाथ को ज़ोर का झटका देते हुए कहा. अगले ही पल मैं उसकी बाहों में थी और आज़ाद होने के लिए छटपटा रही थी.
"छोड़ दो मुझे. मैं गगन को बुला लूँगी तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी तुम्हारी."
"कल मैं जा रहा हूँ निधि. कल से तुम्हे परेशान नही करूँगा. तुमने गगन को घर पर रोक कर पहले ही मुझ पर बहुत सितम ढा लिए हैं. अब और मत सताओ.
मैं तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए. मैं विनती करता हूँ तुमसे, बस आखरी बार थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे. बस थोड़ी सी देर रुक जाओ."
"किस हक़ से रोक रहे हो तुम मुझे. तुम्हारा कोई हक़ नही है मुझ पर.
""आशिक़ हूँ मैं तुम्हारा. दीवाना हूँ तुम्हारा. तुम्हे देखते ही लट्टु हो गया था तुम पर. तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी."
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