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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
उन्हहहः.........विशाल .......बेटा......." अंजलि के मुख से मदभरी सिसकारी निकलती है. विशाल एक पल के लिए अपनी माँ के चेहरे को देखता है और फिर अपने होंठ अंजलि की छोटी सी मगर गहरी नाभि के ऊपर रख देता है. नाभि को चूमता वो अपनी जीभ उसमे घुसेड कर उसे छेडता है. अंजलि की गहरी साँसे सिस्कियों का रूप लेने लगती है. विशाल माँ की जांघो पर हाथ फेरता हुए महसूस कर सकता था कैसे उसके माँ का जिसम कांप रहा था, कैसे उसके अंगो अंगो में तनाव भरता जा रहा था. विशाल उठकर पहले की तरह लेटता हुआ अपना चेहरा माँ के चेहरे पर झुकाकर धीरे से उसके काण में फुसफुसाता है.
"मा तुम्हारे सामने तोह स्वर्ग की अप्सराय भी फीकी है"
अंजलि धीरे से ऑंखे खोलती है. अपने ऊपर झुके बेटे की आँखों में देखते हुए बड़े ही प्यार से कहती है "दुनिया के हर बेटे को अपनी माँ सुन्दर लगती है"
"नही माँ, तुम्हारा बेटा पूरी दुनिया घूम चुका है........" विशाल माँ के चेहर से ऑंखे हटाकर उसके ऊपर निचे हो रहे मम्मे को गौर से देखता है. "तुम्हारे जैसी पूरी दुनिया में कोई नहीं है"
अंजली की नज़र बेटे की नज़र का पीछा करती अपने सिने पर जाती है. " मुझ में भला ऐसा क्या है जो........."
विशाल अपनी माँ को जवाब देणे की वजाये अपना हाथ उठकर उसके सिने पर दोनों मम्मो के बिच रख देता है. उसकी उँगलियाँ बड़ी ही कोमलता से मम्मो की घाटी के बिच घुमता है और फिर धीरे धीरे उसकी उँगलियाँ दाएँ मुम्म की और बढ्ने लगती है. अंजलि बड़े ही गौर से देख रही थी किस तरह उसके बेटे की उँगलियाँ उसके मम्मे की गोलाई छुने लगी थी और बहुत धीरे धीरे वो ऊपर की तरफ जा रही थी. अंजलि के निप्पल और भी तन जाते है. उसका बेटा जवान होने के बाद पहली बार उसके मम्मो को छु रहा था, वो भी एक बेटे की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह. रेंगते रेंगते विशाल की उँगलियाँ निप्पल के एकदम करीब पहुँच जाती है. विशाल अपनी तर्जनी ऊँगली को निप्पल के चारो और घुमाता है. अंजलि का दिल इतने ज़ोर से धडक रहा था के उसके कानो में धक् धक् की आवाज़ गुंज रही थी. अपनी पूरी ज़िन्दगी में ऐसी जबरदस्त कमोत्तेजना उसने पहले कभी महसुस नहीं की थी. अखिरकार विशाल बड़े ही प्यार से निप्पल को छुता है, धीरे से उसे छेडता है.
"उननननननहहहहहः.........." अंजलि सीत्कार कर उठती है.
विशाल की उंगली बार बार कड़े निप्पल के उपर, दाएँ बाएं फ़िसल रही थी. वो लम्बे कठोर निप्पल को बड़े ही प्यार से अपने अँगूठे और उंगली के बिच दबाता है. अंजलि फिर से सीत्कार कर उठती है.
"तुम्हेँ क्या बताउ माँ.......कैसे समझायुं तुम्हे.........मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं है बयां करने के लिये..........उफफ तुम्हारे इस हुस्न की कैसे तारीफ करूँ माँ........."
अंजलि बेटे के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर इतनी उत्तेजित होने के बावजूद शर्मा सी जाती है. विशाल अपना हाथ उठकर दूसरे निप्पल को छेडने लगता है. वो अपने निप्पलों से खेलती बेटे की उँगलियाँ बड़े ही गौर से देख रही थी. उसके दिल में कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे. उसकी इच्छायें, उसकी हसरतें सब जवान बेटे पर केन्द्रीत थी. इस समय उसने बेटे के सामने खुले तोर पर समर्पण कर दिया था, वो उसके साथ जैसा चाहा कर सकता था. वो उसे उस समय रोकने की स्थिति में नहीं थी और शायद वो उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वो तोह खुद चाहती थी उसका बेटा आगे बढे और उन दोनों के बिच समाज कि, मर्यादा की हर दीवार तोड़ डाले.
विशाल का हाथ अब अंजलि के मम्मो से आगे उसके पेट् की और बढ़ रहा था. उसका हाथ एकदम सीधा निचे की और जा रहा था, उसकी चुत की और साथ ही साथ उसका चेहरा भी थोड़ा सा आगे को हो गया था. विशाल की उँगलियाँ जब अपनी माँ की कच्छी की इलास्टिक से टकराई तोह उसका चेहरा एकदम उसके मम्मो के ऊपर था. उसके निप्पलों से बिलकुल हल्का सा उपर. अंजलि की आँखों के सामने उसके मोठे मोठे मुम्मे थे जिनके ऊपर निचे होने के कारन वो बेटे का हाथ नहीं देख पा रही थी. अंजलि धीरे से कुहनियों के बल ऊँची उठ जाती है और अब वो अपने मम्मो और उनके थोड़ा सा ऊपर अपने बेटे के चेहरे के ऐन बिच से अपनी चुत को देख रही थी जिस पर उसकी भीगी हुयी कच्छी बुरी तरह से चिपक गयी थी. विशाल का हाथ आगे बढ़ता है-उसकी चुत की और-उसका बेटा उसकी चुत को छूने जा रहा था. अंजलि के पूरे बदन में सिहरन सी दौड जाती है. उसकी कमोत्तेजना अपने चरम पर पहुँच चुकी थी. चुत के होंठ जैसे फडक रहे थे बेटे के स्पर्श के लिये.
विशाल गहरी साँसे लेता धीरे बहुत धीरे बड़ी ही कोमलता से माँ की चुत को छूता है.
"वूहःहःहःहः............उउउउफ..." अंजलि के मुख से एक लम्बी सिसकि फूट पड़ती है. पूरा बदन सनसना उठता है. चुत के मोठे होंठो की दरार के ऊपर विशाल हल्का सा दवाब देता है. अंजलि धम्म से बेड पर गिर जाती है. विशाल के छूते ही चुत से निकलिउत्तेजना की तरंग उसके पूरे जिसम में फैलने लगती है. वो चादर को मुट्ठियों में भींच अपना सर एक तरफ को पटकती है. विशाल तोह जैसे उत्तेजना में सुध बुध खो चुका था. माँ की भीगी चुत और उसकी सुगंध को महसूस करते ही जैसे उसका पूरी दुनिया से नाता टूट गया था. बेखयाली में वो अपना अँगूठा धीरे से चुत की दरार में दबाकर ऊपर निचे करता है. अंजलि उत्तेजना सह नहीं पाती. वो उत्तेजना में अपना सिना कुछ ज्यादा ही उछाल देती है और उसके मम्मे का कड़क लम्बा निप्पल सीधे बेटे के होंठो के बिच चला जाता है और उसका बेटा तरुंत अपने होंठो को दबाकर माँ के निप्पल को कैद कर लेता है.
"आह आह ओह ओह हुन........" अंजलि के मुंह से लम्बी सी सिसकारी निकलती है. कामोन्माद में माँ बेटा मर्यादा की सारी सीमाएँ पार करने को आतुर हो जाते है. एक तरफ विशाल माँ के निप्पल को जवान होने के बाद पहली बार स्पर्श कर रहा था और उसका हाथ माँ की कच्छी की इलास्टिक में घुस कर आगे की और बढ़ रहा था, माँ की चुत की और. उधऱ अंजलि भी अपना हाथ बेटे के लंड की और बढाती है मगर इससे पहले के बेटे का हाथ कच्छी में माँ की चुत को छू पाता या माँ अपने बेटे के लंड को अपने हाथ में पकड़ पाति निचे किचन में किसी बर्तन के गिरने की ज़ोरदार आवाज़ आती है.
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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
"मैं...... तुम्हारे साथ्........ न्यूड डै.....नही बाबा नही....मेरे से यह नहीं होगा......तुम और कोई ढूँढो" अंजलि एकदम से घबरा सी जाती है.
"क्यों नहीं माँ.......यहा कोनसा कोई होगा......पिताजी तोह कल शाम को ही आएंगे.........घर में सिर्फ हम दोनों होंगे.........मान जाओ माँ ........सच में देखना तुम्हे बहुत मज़ा आएगा......" विशाल मुस्कराता है. इस नयी सम्भावना से वो फिर से ख़ुशी से झूम उठा था.
"लेकिन तुम्हे कोई लड़की या औरत चाहिए ही क्यों! तुम अकेले भी तोह मना सकते हो?" अंजलि बेटे के प्रस्ताव से थोड़ा सा घबरा सी गयी थी.
"मैं अकेले मनाऊंगा? तुम कपडे पहने रहोगी और में सारा दिन घर में नंगा घूमूंगा........और तुम मुझे देख देख कर खूब हँसोगी.......अच्छी तरक़ीब है माँ"
"मैं भला क्यों हंसूंगी............और तुझे मेरे सामने नंगा होने में दिक्कत क्या है......मैने तोह तुझे नजाने कितनी बार नंगा देखा है.......तुझे नंगे को नहालाया है......और नजाने क्या......."
"मा तब में छोटा था.....बच्चा था में........"
"मेरे लिए तोह तू अब भी बच्चा ही है......सच में तुझे मुझसे शरमाने की जरूरत नहीं है" अंजलि हँसति हुयी विशाल को कहती है.
"मैं शर्मा नहीं रहा हुन माँ.........."
"नही तुम शरमा रहे हो मेरे सामने नंगे होने से........."अंजली और भी ज़ोर से हँसति है.
"अच्छा....में शर्मा रहा हुन?......तुम नहीं शर्मा रही?" विशाल पलटवार करता है.
"मैं?.....में भला क्यों शरमाने लगी"
"अच्छा तोह फिर तुम मेरे साथ न्यूड डे मनाने के लिए राजी क्यों नहीं हो रही?"
" में तोह बास ऐसे ही.............." अंजलि सच में शर्मा जाती है.
"देखा!!!!!..........मेरा मज़ाक़ उड़ा रही थी.......अब क्या हुआ?"
"बुद्धु....वो बात नहि.......भला एक माँ कैसे.....कैसे में तुम्हारे सामने नंगी......" अंजलि बात पूरी नहीं कर पाती.
"बहानेबाजी छोडो माँ.....खुद मेरे सामने नंगे होने में इतनी शर्म और मुझे यूँ कह रही थी जैसे मामूली सी बात हो"
"मैं शर्मा नहीं रही हु"
"शर्मा भी रही हो और घबरा भी रही हो" विशाल जैसे अंजलि को उकसा रहा था.
"मैं भला क्यों घबरायूंगी?" अंजलि भी हार मानने को तैयार नहीं थी.
"तुम डर रही होगी के मेरे साथ नंगी होने पर शायद...... शायद....तुमसे कण्ट्रोल नहीं होगा" विशाल अपनी माँ की आँखों में ऑंखे डाल कहता है.
"हनणह्हह्ह्.........सच में तुम्हे ऐसा लगता है .......मुझे तोह लगता है बात इसके बिलकुल उलट है......शायद यह घबराहट तुम्हे हो रही होगी के तुमसे कण्ट्रोल नहीं होगा" इस बार अंजलि मुस्कराती बेटे की आँखों में झाँकती उसे चैलेंज कर रही थी.
"मा तुम बात पलट रही हो.....भला में क्यों घबराने लगा"
दोनो माँ बेटे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे. अचानक अंजलि अपने गाउन की गाँठ खोल देती है. बेटे की आँखों में देखति वो अगले ही पल अपना गाउन बाँहों से निकल देती है. गाउन उसके कदमो के पास फर्श पर पड़ा था. उसका दूध सा गोरा बदन बल्ब की रौशनी में नहा उठता है. अंजलि एक टांग आगे को निकाल अपने बालों को झटकती है और फिर अपनी कमर पर हाथ रख बदन के उपरी हिस्से को हल्का सा पीछे को झुकाती है बिलकुल किसी प्रोफेशनल मॉडल की तरह.
"अब बोलो....क्या कहते हो!" अंजलि के होंठो पर वो मधुर मुस्कान जैसे चिपक कर रह गयी थी. विशाल भोचक्का सा ऑंखे फाडे अपनी माँ को देख रहा था. यूँ वो कुछ देर पहले अपनी माँ को सिर्फ ब्रा और कच्छी में देख चुका था मगर तब वो लेटी थी और गाउन पहने थी. अब गाउन उसके बदन से निकल चुका था और वो खड़ी थी मात्र एक ब्रा और कच्छी मैं- अपने बेटे के सामने. उसके मम्मे कितने मोठे थे, अब विशाल को अंदाज़ा हो रहा था. हैरानी की बात थी के इतने बड़े होने के बावजूद भी वो तने हुए थे, सीधे खड़े थे-जैसे युद्ध भूमि में कोई योद्धा अभिमान से सर उठाये खड़ा हो. उनके आकार का, उनके रूप को अंजलि की पतली सी कमर चार चाँद लगा रही थी. मोठे-मोठे मम्मो के निचे उसकी पतली कमर का कटाव और फिर उसकी जांघो का घुमाव. किस तरह उसकी गिली कच्छी चिपकी हुयी थी और विशाल को चुत के होंठो की हलकी उपरी झलक देखने को मिल रही थी. उसके लम्बे स्याह बाल उसकी पीठ पर किसी बादल की तरह लहरा रहे थे. सर से लेकर उसकी जांघो तक्क के हर्र कटाव हर गोलाई को विशाल गौर से देखता अपने दिमाग में उसकी वो तस्वीर कैद कर रहा था जैसे यह मौका दोबारा उसके हाथ नहीं आने वाला था. कभी उसके मम्मो को, कभी उसकी पतली कमर को, कभी उसकी चुत तो कभी उसकी मख़मली जांघो को देखता विशाल जैसे मंत्रमुग्ध सा हो गया था. अंजलि की कंचन सी काया सोने की तरह चमक रही थी. बदन के हर अंग अंग से हुस्न और यौवन छलक रहा था, पूरा जिस्म कामरस में नहाया लगता था. उसके बदन से उठती सुगंध से पूरा महक रहा था. मगर सबसे बढ़कर उसके चेहरे का भाव था.हाँ वो मुस्करा रही थी मगर अब वो शर्मा नहीं रही थी. उसके चेहरे पर शर्म का कोई वजूद ही नहीं था.
उसके होंठो पर हँसी थी- अभिमान की हंसी. उसकी आँखों में चमक थी-गर्व की चमक. उसका पूरा चेहरा आत्मविस्वास से खिला हुआ था. हा उसे अभिमान था अपने छलकते हुस्न पर. उसे गुमान था कामुकता से लबरेज़ अपने जिस्म पर. उसे घमण्ड था अपनी मदमस्त काया पर. और होता भी क्यों न उसका वो हुस्न, जिसके आगे बड़े से बड़ा वीर पुरुष जो आज तक्क कभी युद्ध में हरा न हो, वो भी घुटने टेक देता. उसका वो मादक जिस्म बड़े से बड़े तपसवी का भी तप भंग कर देता. उसकी मख़मली काया को पाने के लिए कोई राजा अपना पूरा खजाना लुटा देता. बेटे की आँखों में देखति वो जैसे उसे नहीं बल्कि पूरी मर्दजात को चुनौती दे रही थी-हाँ में माँ हू, बहन भी और एक बेटी भी मगर उससे पहले में एक औरत हुन, एक नारी हुण. एक ऐसी नारी जो मर्द को वो सुख दे सकती है जिसकी वो कल्पना तक नहीं कर सकता. एक ऐसी नारी जो चाहे तो मर्द के आनंद को उस परिसीमा से आगे ले जा सकती है जिसको पाने की लालसा देवता भी करते हैं.
"तोः........बताओ जरा किसे कण्ट्रोल नहीं होगा" अंजलि दम्भ से भरी आवाज़ में कहती है.
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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
विशाल अपने अंडरवियर से अपने गीले हाथ को और अपनी जांघो को पोंछता है और अंडरवियर निचे फर्श पर फेंक देता है. वो एक ठण्डी आह भरता है. माँ चोदने की उसकी इच्छा इतनी तीव्र हो चुकी थी के वो अब उसके सपने में भी आने लगी थी. खिड़की से हलकी सी झाँकती रौशनी से उसे एहसास होता है के सुबह होने ही वाली है. वो घडी पर समय देखता है हैरान रेह जाता है. छे कब के बज चुके थे. सुबह का सपना........... विशाल अपनी ऑंखे फिर से मूंद लेता है. कल रात के मुकाबले अब वो थकन नहीं महसूस कर रहा था. रात को माँ के साथ हुए कार्यक्रम के बाद वो इतना उत्तेजित हो चुका था के उसे लग रहा था के शायद वो रात को सो नहीं पायेगा. मगर कुछ देर बाद पिछले दिनों की थकन और नींद के आभाव के चलते जलद ही उसे नींद ने घेर लिया था. अभी उसके उठने का मन नहीं हो रहा था. मगर अब उसे नींद भी नहीं आने वाली थी.
निचे से आती अवाज़ों से उसे मालूम चल चुका था के उसके माता पिता जाग चुके है. अपनी माँ की और ध्यान जाते ही रात का वाकया उसकी आँखों के आगे घूम जाता है. जब उसकी माँ....उसकी माँ उसके पास लेटी थी......जब उसने अपने माँ के गाउन की गाँठ खोल उसके दूधिया जिस्म को पहली बार मात्र एक ब्रा और कच्छी में देखा था......सिर्फ देखा ही नहीं था...उसने उसके मम्मो को उसके तने हुए निप्पलों को छुआ भी था......उसे याद हो आता है जब उसने पहली बार अपनी माँ की चुत को देखा था........गीली कच्छी से झाँकते चुत के वो मोठे होंठ..............रस से भीगे हुये....... और विशाल के स्पर्श करते ही वो किस तरह मचल उठि थी.....विशल तकिये के निचे रखी माँ की ब्रा और कच्छी को निकाल लेता है और कच्छी को सूँघने लगता है.......मा की चुत की खुसबू उसमे अभी भी वेसे ही आ रही थे जैसे कल्ल रात को आ रही थी.
ओर फिर......फिर उसने खुद अपना गाउन उतार फेंका था......कीस तरह उसके सामने नंगी खड़ी थी.......और फिर.....फिर......वो उसके गले में बाहे डाले ऐसे झुल रही थी....उसके लंड पर अपनी चुत रगढ रही थी.........वो चुदवाने को बेताब थी.........
विशाल का हाथ अपने लौडे पर फिर से कस जाता है जो अब लोहे की तरह खड़ा हो चुका था. क्या बात थी उसकी माँ में की उसके एक ख्याल मात्र से उसका लंड इतना भीषन रूप धार लेता था. विशाल अपने लंड से हाथ हटा लेता है, उसे मालूम था के अगर ज्यादा देर उसने अपने लंड को पकडे रखा तोह उसकी माँ की यादें उसे हस्त्मथुन के लिए मज़बूर कर देगी.
विशाल आने आने वाले दिन के सुखद सपने सँजोता बेड में लेता रहता है. थोड़ी देर बाद उसके पिता काम पर चले जाने वाले थे......उसके बाद वो और उसकी माँ.....उसकी माँ और ओ......अकेले........सारा दिन........आज उन दोनों के बिच कोई रूकावट नहीं थी......आज तोह उसकी माँ चुदने वाली थी.........आज तोह वो हर हाल में अपनी प्यारी माँ को चोद देणे वाला त......
उसे यकीन था जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए बेताब था, वो भी उससे चुदने के लिए उतनी ही बेताब थी. जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए तडफ रहा था वो भी चुदने के लिए उतनी ही तडफ रही थी. उस दिन की सम्भावनाओं ने विशाल को बुरी तेरह से उत्तेजित कर दिया था. उसका लंड इतना कड़क हो चुका था के दर्द करने लगा था. अखिरकार विशाल बेड से उठ खड़ा होता है और नहाने के लिए बाथरूम में चला जाता है. अब सुबह हो चुकी थी और कुछ समय में उसके पिता भी चले जाने वाले थे.
पाणी की ठण्डी फुहारे विशाल के तप रहे जिस्म को कुछ राहत देती है. उसके लंड की कुछ अकड़ाहट कम् हुयी थी. तौलिये से बदन पोंछते वो बाथरूम से बाहर निकालता है मगर जैसे ही उसकी नज़र अपने बैडरूम में पड़ती है तोह उसके हाथों से तौलिया छूट जाता है. सामने उसकी माँ....उसकी प्यारी माँ......उसकी अतिसुन्दर, कमनीय माँ नंगी खड़ी थी, बिलकुल नंग, हाथों में विशाल का वीर्य से भीगा अंडरवियर पकडे हुये.
विशाल अवाक सा माँ को देखता रहता है जब के अंजलि होंठो पर चंचल हँसी लिए बिना शरमाये उसके सामने खड़ी थी. विशाल के लिए तोह जैसे समय रुक गया था. उसकी माँ उसे अपना वो रूप दिखा रही थी जिसे देखने का अधिकार सिर्फ उसके पति का था. शायद किसी और का भी अधिकार मान लिया जाता मगर उसके बेटे का-- कतई नहि.
"तो कैसी लगती हु मैं!" अंजलि बेटे के सामने अपने जिस्म की नुमाईश करती उसी चंचल स्वर में धीरे से पूछती है. मगर बेचारा विशाल क्या जवाब देता. वो तोह कभी माँ के मम्मो को कभी उसकी उसकी पतली सी कमर को कभी उसकी चुत को तोह कभी उसकी जांघो को देखे जा रहा था. उसकी नज़र यूँ ऊपर निचे हो रही थी जैसे वो फैसला न कर पा रहा हो के वो माँ के मम्मो को देखे, उसकी चुत को देखे, चुत और मम्मो के बिच उसके सपाट पेट् को देखे या फिर उसकी जांघो को. वो तोह जैसे माँ के दूध से गोर जिस्म को अपनी आँखों में समां लेना चाहता था. जैसे उस कमनीय नारी का पूरा रूप अपनी आँखों के जरिये पि जाना चाहता हो.
"तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया" इस बार विशाल चेहरा उठकर माँ को देखता है. उस चंचल माँ के होंठो की हँसी और भी चंचल हो जाती है."तुम्हारा चेहरा देख कर मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा हो गया है के में तुम्हे कैसी लगी हुं.......वैसे तुम भी कुछ कम् नहीं लग रहे हो" विशाल माँ की बात को समझ कर पहले उसके जिस्म को देखता है और फिर अपने जिस्म की और फिर खुद पर आश्चर्चकित होते हुए तेज़ी से झुक कर फर्श पर गिरा तौलिया उठाता है और उससे अपने लंड को धक् लेता है जो पथ्थर के समान रूप धारण कर आसमान की और मुंह उठाये था. विशाल के तौलीये से अपना लंड ढंकते ही अंजलि जोरो से खिलखिला कर हंस पड़ती है.
"है भगवान.........विशाल तुम भी न........" हँसि के बिच रुक रुक कर उसके मुंह से शब्द फुट रहे थे. विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था के उसने ऐसा क्यों किया. जिसकी वो इतने दिनों से कल्पना कर रहा था, जिस पल का उसे इतनी बेसब्री से इंतज़ार था वो पल आ चुका था तोह फिर वो माँ के सामने यूँ शर्मा क्यों रहा था. आज तोह वो जब खुद पहल कर रही थी तोह वो क्यों घबरा उठा था. उधऱ तेज़ हँसी के कारन अंजलि ऑंखे कुछ नम हो जाती है. माँ की हँसी से विशाल जैसे और भी जादा शर्मिंदा हो जाता है. अंजलि मुस्कराती बेटे के पास आती है और उसके बिलकुल सामने उससे सटकर उसका गाल चूमती है.
"मैंने कहा चलो आज में भी तुम्हारा न्यूड डे मनाकर देखति हुन के कैसा लगता है. ऐसा क्या ख़ास मज़ा है इसमें के तुम चार साल बाद भी इसकी खातिर अपनी माँ से मिलने के लिए देरी कर रहे थे." अंजलि और भी विशाल से सट जाती है. उसके कड़े गुलाबी निप्पल जैसे विशाल की चाती को भेद रहे थे तोह विशाल का लंड अंजलि के पेट् में घूसा जा रहा था. वो फिर से बेटे का गाल चूमती है और फिर धीर से उसके कान में फुसफुसाती है; "सच में कुछ तोह बात है इसमे.....यून नंगे होने में........पहले तोह बड़ा अजीब सा लगा मुझे.....मगर अब बहुत मज़ा आ रहा है......बहुत रोमाँच सा महसूस हो रहा है यूँ अपने बेटे के सामने नंगी होने में....वो भी तब जब घर में कोई नहीं है......" अंजलि बड़े ही प्यार से बेटे के गाल सहलाती एक पल के लिए चुप्प कर जाती है.
"तुम्हारे पिताजी जा चुके है......जब हम घर में अकेले है......मैने नाश्ता बना लिया है....जलदी से निचे आ जाओ......बहुत काम पड़ा है करने के लिये.....जानते हो न आज तुमने मेरा काम करना है हा मेरा मतलब काम में मेरा हाथ बँटाना है" अंजलि एक बार कस कर विशाल से चिपक जाती है और फिर विशाल का अंडरवियर हाथ में थामे हँसते हुए कमरे से बाहर चलि जाती है.
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