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RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"
सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे। *********************************************************
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RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी। "नेहा बेटी, जब आपकी चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से मुस्कराए। सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे लंड को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी। जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ऊपर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी। मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी चूत की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा विशाल लंड मेरी चूत में इंच इंच करके अंदर घुसने लगा। मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे। सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं। सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी चूत को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया। मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं। सुरेश चाचा ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया। मैंने अपने दोनों हाथ सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी। मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी। सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी चूत में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे। मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए। मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी। सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी चूत मरवाने लगी। सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदर्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिला हिला कर चाचू के लंड की कम से कम चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी। उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी चूत के अंदर डाल रही थी। मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया। "चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ..... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ....चा .......चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड के ऊपर नीचे होते हुए चीखी। सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं आने वाले थी।" सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों को लगा कर उन्हें चूसने लगे। मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"
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मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने से तर थे। सुरेश चाचा के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।" सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।" मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।" मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी। "नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भी तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे। "आँ-आँ! चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया। "नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मुझे सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी। मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।" सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पित्रव्रत ही है । उसके बाद ही हम दोनों मर्दों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।" "तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी। सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंट लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति- क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। काम-उत्तेजना में दर्द भी कामोन्माद का एक रूप बन जाता है।" सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे। मैंने मुस्करा कर चाचू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स] को पहले चूस फिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे। उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे। मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी। मेरे नन्हे हाथों ने चाचू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी। सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी। जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार कर लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी। सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे। मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा। मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।
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RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
"चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे। मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं। **********************************************************************
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RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया। मेरी, गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी। मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी। सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया। "चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे। मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं। **********************************************************************
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