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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुमन अच्छी तरहा जानती थी कि इस वक़्त सुनील कितनी तकलीफ़ से गुजर रहा था….उसका दिल अंदर ही अंदर रो रहा था …..आख़िर सुनील उसका प्यार था…उसका सबकुछ था….विधाता ने उसे ही क्यूँ चुन के रखा है…हर कसौटी पे परखने के लिए…..सुनील का दर्द रिस रहा था सुमन के दिलो-दिमाग़ में…तड़प रही थी वो साथ साथ लेकिन कुछ भी नही कर पा रही थी…सिवाए अपना प्यार लुटाने के ….और कुछ नही कर पा रही थी….और इस वक़्त सुनील को सबसे ज़यादा उसकी ही ज़रूरत थी. सुमन को पता ही नही चला कब वो झुकती चली गयी और अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए…जैसे उसका सारा दर्द चूस लेना चाहती हो.
और इसी वक़्त सवी उनके दरवाजे के बाहर खड़ी ये सोच रही थी कि अंदर क्या हो रहा होगा…उसके दिल में एक हुक सी उठी …आँखों से आँसू के कतरे बह निकले…….अपने आँसू पोंछ उसने दरवाजा खटखटाया ….खाना रेडी है आ जाओ.
ये बोल वो रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गयी.
सोनल रूबी को साथ ही डाइनिंग टेबल पे ले आई …. सुनील उसी जगह बैठा था जहाँ कभी सागर बैठ ता ..रूबी की नज़रें वहीं टिक गयी …शायद वो अपने प्यारे अंकल को खोज रही थी. उसकी आँखों के सामने सागर का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया और पलों में वो चेहरा सुनील के चेहरे में बदलता चला गया. आज उसे समझ में आया कि सुनील को जिस कुर्सी पे उसने बिठा के रखा था वो कोई और नही उसके सागर अंकल की ….वो आदर वो दीवानापन जो उसके अंदर सुनील के लिए था….वो वो प्यार था जो वो अपने सागर अंकल से किया करती थी और आज वो जगह सुनील ले चुका था….उसकी आँखें टपक पड़ी ….. वो अपनी कुर्सी से उठी और सुनील के कदमो के पास जा के बैठ गयी ……उसकी जाँघो पे अपना सर रख रोते हुए बोली …..माफ़ कर दो भैया….मैं पहचान ही नही पाई मुझे मेरा प्यारा अंकल वापस मिल गया आपके रूप में’
सुमन और सोनल दोनो की आँखें डबडबा गयी …….सागर इस रूप में भी सामने आएगा …ये कोई नही सोच सकता था.
सुनील ने फट से उसे उठाया ….पगली रोते नही हैं …मैं हूँ ना…..और रूबी को लग रहा था सागर बोल रहा है …मैं हूँ ना…देख तुझे छोड़ के नही गया …मेरा ही दूसरा रूप तेरे पास है…मेरा सुनील तेरे पास है…
'भैया !!!!!' रूबी रोते हुए सुनील के गले लग गयी.
'बस गुड़िया ....बस.....'
सविता की भी आँखें डबडबा गयी भाई बहन के इस मिलन को देख......काश उसका रमण भी ऐसा निकलता ......रमण का ख़याल आते ही जैसे उसके दिल पे कोई छुरियों से वार करने लगा....और उसकी रुलाई निकल पड़ी.
सुमन ने सविता को चुप करवाया.
‘चल खाना खा फटा फट और आराम कर…कल कॉलेज भी जाना है …और हां अब तू मेरे साथ जाएगी और मेरे साथ ही वापस आएगी’
रूबी सोनल के पास जा बैठी और तब उसकी नज़र सोनल पे ध्यान से पड़ी ….माथे पे सिंदूर, गले में मन्गल्सुत्र ….बिल्कुल एक नयी नवेली दुल्हन …..
‘दीदी….ये ये आप…..की शादी….क क कब ‘
‘सॉरी तुझे तो बताना ही भूल गयी ….तेरी जो हालत थी …उसके बाद तो मैं भी भूल गयी थी कि मेरी शादी हो चुकी है ….मिलाउन्गी तुझे तेरे जीजा से वक़्त आने पर …अभी वो बाहर हैं….’
‘पर ये सब हुआ कब ….’
‘बस मालदीव में मिल गया था मेरे सपनो का राजकुमार और हो गयी शादी’
‘वाउ चट मँगनी पट शादी …..ऐसा तो फ़िल्मो में ही देखा है…..जीजा जी की फोटो तो दिखाओ…’
‘खाना खा सब दिखाउन्गी आराम से’
रूबी मशीन की तरहा खाने लगी.
सुनील :अरे आराम से खा.
रूबी : बस बहुत नाराज़ हूँ आप सब से ….चुप चाप दीदी की शादी कर दी ….ना बॅंड बाजा ना बारात …ना कोई नाच गाना…….ऐसे भी कोई शादी होती है…कितने अरमान थे दीदी की शादी के सब मिट्टी में मिला दिए.
सोनल :जब जीजा जी से मिलेगी ना तब खूब नाच लेना
रूबी : आप तो रहने ही दो…आज की रात आप मेरे पास ही रहोगी …बहुत सी बातें करनी है आपसे.
सोनल :अच्छा मेरी गुड्डो…पर आराम से खा ..मैं कहीं भागी नही जा रही.
रूबी के इस बच्पने ने महॉल हल्का कर दिया था.
कहने के बाद तो रूबी सोनल को खींचती हुई ले गयी…..सवी का चेहरा जो अभी कुछ देर खुशी से दमका था रूबी को चहकता हुआ देख फिर डूब सा गया…वो हसरत भरी नज़रों से सुनील को देखने लगी…जिसने उसकी कोई परवाह ना करी और सुमन के कमरे में चला गया.
सुनील कमरे में जा के ड्रिंक करने लग गया…जहाँ उसे इस बात की खुशी थी कि रूबी रास्ते पे आ गयी थी वहीं वो अपने घर की औरतों की हिफ़ाज़त के लिए परेशान था.
सुमन उसके पास आ के बैठ गयी…..ज़यादा मत लेना..कल कॉलेज भी जाना है .
अब रात को कोई कमरे में नही आनेवाला था…सुमन अपना रूप बदलने लगी….फिर से सुहागन के रूप में आने के लिए.
सुनील अपनी दिलरूबा को रति का रूप धारण करते हुए देखता रहा…….
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कॉलेज के स्टाफ क्वॉर्टर्स में एक फ्लॅट में डॉक्टर. रविकान्त जो माना हुआ सर्जन था….अभी तक उसने शादी नही करी थी. इस वक़्त सुमन की फोटो हाथ में पकड़े हुए आँसू बहा रहा था. वो कॉलेज के जमाने से सुमन से दिल ही दिल में प्यार करता था…पर कभी कह नही पाया…….हमेशा वो इस बात का ध्यान रखता था कि कभी सुमन को कोई तकलीफ़ ना हो. सागर के जाने के बाद तो उसने खास तौर पे सुमन पे नज़रें रखी हुई थी…इस लिए नही कि वो उसे पाना चाहता था…इसलिए कि वो खुश तो है उसे कोई तकलीफ़ तो नही…….रूबी की हालत का उसे पता चल गया था….वो कभी सामने नही गया…पर नर्स से सारी खबर मँगवाता रहा और खुद को तयार करता रहा कि कहीं कोई एमर्जेन्सी ऑपरेशन ना करना पड़े. सुनील को वो अपने बेटे की तरहा ही समझता था और हमेशा सुनील की कोई ना कोई मदद करता ही रहता था.
दूर बहुत दूर मुंबई के एक हॉस्पिटल में रमण किसी के पैरों पे सर झुका रो रहा था.
ये आदमी और कोई नही था…समर था…जो आक्सिडेंट के बाद से कोमा में था.
रमण के साथ एक लड़की भी थी…और उसे देख कोई भी कह सकता था कि हाल ही में उसकी शादी हुई है.
एक घंटा हो चुका था रमण को अपने डॅड के पैरों पे सर रख रोते हुए और ना जाने कितनी बार उसने माफी माँगी होगी.
जब वो मुंबई वापस आया था तो अकेला नही था…उसके साथ उसकी दुल्हन थी वो सीधा अपने घर गया जहाँ उसे पता चला कि समर तो उस दिन से गायब है……वो समर को ढूंढता रहा फिर पता चला के एक हॉस्पिटल में समर महीनो से कोमा में पड़ा हुआ है…क्यूंकी सारे डॉक्टर्स उसे जानते थे …इसलिए समर का इलाज़ चलता रहा.
रमण रोज उसे मिलने जाता घंटों उसके पास बैठ ता रोता बील्कखता बार बार माफी माँगता …पर समर कहीं और ही था किसी और दुनिया में शायद वो भी अपने करमो का पश्चाताप कर रहा था. उसका अवचेतन मश्तिश्क उसे होश में आने ही नही दे रहा था….शायद उसे किसी का इंतेज़ार था…..किसी से वो दिल से माफी माँगना चाहता था…पर लगता है बहुत देर हो चुकी थी.
‘सुनिए…कब तक ऐसे रोते रहेंगे….रोने से तो कुछ हासिल ना होगा….बस उपरवाले पे भरोसा रखिए …एक दिन पापा ज़रूर ठीक हो जाएँगे ….बहुत देर हो चुकी है…चलिए अब घर चलते हैं….ऐसे रो रो कर तो आप अपनी सेहत खराब कर लेंगे….फिर पापा को कॉन देखेगा’
रमण उसकी तरफ देखता है और उसके पेट से अपना चेहरा लगा उसे अपनी बाँहों में कस लेता है.
वो लड़की भी रमण के सर पे हाथ फेरते हुए कहती है ….’बस कीजिए अब…महीनो से देख रही हूँ…रोज यहाँ आते हैं और आप बस रोते ही रहते हो …ऐसा कब तक चलेगा.’
उसकी आवाज़ में कुछ था जो रमण का रोना रुक गया.
‘ डॅड देखो आपकी बहू मिनी रोज आपसे आशीर्वाद माँगने आती है ….होश में आओ डॅड’ एक बार समर के माथे को चूम रमण और मिनी घर के लिए निकल पड़े.
इधर सुमन तयार हो कर सुनील के साथ बैठ गयी ….जो अब भी ड्रिंक कर रहा था.
‘बस भी कीजिए …जानती हूँ बहुत परेशान हो …पर एक चिंता तो कुदरत ने ही दूर कर दी ….रूबी खुद रास्ते पे आ गयी ……बाकी भी सब ठीक हो जाएगा…मस्ती के लिए कभी पी लो चलता है…पर ये टेन्षन में पीना…नही …मैं और नही पीने दूँगी….और इसमे वो नशा कहाँ जो हुस्न में होता है….नशा ही करना है ….तो इधर आइए और पी जाइए इस हुस्न को’
सुमन ने सुनील के हाथ से ग्लास अलग रख दिया. और खुद उसकी गोद में सर रख लेट गयी ……….
‘सोनल को बुलाऊ क्या …..’ सुमन ने मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाया.
सुनील ने उसके हाथ से मोबाइल ले अलग रख दिया ….’तुम से कुछ बात करनी है….’
‘जिस दिन रूबी हॉस्पिटल में अड्मिट हुई थी …अगले दिन कमल आया था……………..’
सुनील सारी बात सुमन को बताता है …यहाँ तक के उसपे शक़ हुआ था फिर छोड़ दिया गया था.’
‘भूल जाओ उसे और रूबी को भी वॉर्न कर दो ….डिस्टेन्स रखे उस से’
‘क्या सोच के ये बोल रही हो …मुझे भी बुरा लगा था कि रूबी की ऐसी हालत में उसने प्रपोज़ किया वो भी जब अभी खुद उसका करियर सेट्ल नही और ना ही रूबी का’
‘सिंपल सी बात है…उसका माइंड स्टेबल नही है ….. जो लड़का लड़कियों से दूर रहता हो वो अचानक ओपन्ली प्रपोज़ कर दे ……जो लड़का ये जानता है कि लड़की मोत से लड़ रही है आ के हॉस्पिटल में घर वालों को शादी का प्रपोज़ल दे दे…….ही’सर्टन्ली कॅन’ट हॅव स्टेबल माइंड …..उसको कुछ तो साइकिक प्राब्लम है ….मैं रूबी की जिंदगी को दाव पे नही लगा सकती ……आपको इस बात का खास ख़याल रखना होगा ….कि वो रूबी के नज़दीक ना आने पाए’
‘ह्म्म्मो’ मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था…लव यू एक उलझन दूर कर दी
‘चलो अब छोड़ो इन बातों को सोते हैं …..कल आप को कॉलेज भी जाना है श्रीमान ’
‘जब तुम पास होती हो तो नींद किस गधे को आएगी’ सुनील ने झपट्टा मार सुमन को अपने नीचे ले लिया……’
उम्म्म ना ना प्लीज़ …..आपको सुबह जाना है …..ऊऊुउउच …उफफफफफफफ्फ़ ना जान समझा करो प्लीज़ ……उफफफफफ्फ़ ओह हो ….देखो मैं नाराज़ हो जाउन्गि…….
जैसे ही सुमन ने नाराज़ शब्द बोला सुनील ऐसे अलग हुआ …जैसे करेंट लग गया हो.
विस्की की बॉटल उठाई और कमरे से बाहर निकल गया अपने कमरे की ओर भाग पड़ा और ज़ोर से दरवाजा बंद कर लिया …..नीट ही पीने लग गया……..
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुमन की हालत ऐसी थी कि वो उसी वक़्त उसके पीछे भाग नही सकती थी सुहागन के रूप में……..रोना छूट गया उसका और मजबूर हो उसने सोनल को फोन कर डाला.
जिस वक़्त सुमन ने सोनल को फोन किया था …उस वक़्त तक रूबी सोनल का दिमाग़ खा खा कर सो चुकी थी …..सोनल को भी नींद नही आ रही थी … कुछ उसे परेशान कर रहा था..पर वो कुछ क्या था वो समझ के भी वो समझना नही चाहती थी …पर जब सुमन का फोन आया तो उसने सिर्फ़ इतना कहा मैं आती हूँ ……और एक नज़र रूबी पे डाल चुप चाप कमरे से बाहर निकल गयी …..
सुमन के कमरे में पहुँची तो सुमन को रोते हुए पाया ………..
‘क्या हुआ …वो कहाँ हैं ….आप रो क्यूँ रही हो ….’
सारी बात सुनने के बाद …..’आप भी ना…खुद ही उन्हें दावत दी और खुद ही नकार दिया ……अब गुस्सा नही करेंगे तो क्या करेंगे …….आपकी प्राब्लम बताऊ ……वो कोई बच्चे नही हैं जितना हम सब का दिमाग़ दौड़ता है वो उसके आगे का सोचते हैं …….और अब आप भूल जाइए कि आप उनकी माँ हैं ……आप सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी बीवी हैं …….परेशान मत होइए मना के भेजती हूँ उन्हें अगर मुझ से भी नाराज़ ना हों तो…..चियर अप दीदी …ये तो विवाहिक जीवन में होता ही रहता है’ सुमन के होंठों पे छोटा सा चुंबन जड़ वो सुनील के कमरे की तरफ बढ़ गयी और सुमन सोचने लगी उसने क्या ग़लती करी………
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वहाँ रमण और मिनी जब घर पहुँचे ……आप बैठिए मैं खाना तयार करती हूँ…..
‘खाना आज बाहर से मंगवा लेते हैं …..बस मेरे पास रहो’ रमण फोन कर किसी रेस्टोरेंट को ऑर्डर कर देता है ………मिनी उसके पास ही बैठी गयी....
………..रमण उसकी गोद में सर रख लेट जाता है ………’आज भी इस बात पे यकीन नही होता …मुझ जैसे गलिज़ आदमी को तुमने पसंद कर लिया ….और पसंद ही नही किया …मुझे उपर से नीचे तक बदल दिया’
‘आप बुरे तो कभी थे ही नही …आपके हालत ही ग़लत थे ……और जब कोई आदमी ग़लत हालत में पालेगा ….तो ग़लत ही बनेगा ना ……लेकिन देखो आप कैसे कोयले की ख़ान में से हीरा बन के बाहर आए ‘
‘मैने बहुत पाप किए हैं मिनी …..जिस बहन का मुझे रक्षक बनना था …जिसकी राखी की लाज को सलामत रखना था …मैं उसका ही भक्षक बन गया और तो और अपनी दूसरी बहन को भी ग़लत नज़रों से देखने लग गया ……….मुझे तो नर्क में भी जगह नही मिलेगी ‘
‘देखना वो दोनो आप को माफ़ कर देंगी एक दिन …..मैं एक बार सब से मिलना चाहती हूँ ….हाथ जोड़ के माफी माँग लूँगी …..देखना सब ठीक हो जाएगा’
‘ये नही हो सकता ….मुझे आज भी सुनील की वो दहक्ति हुई निगाएँ याद हैं …..वो एक भाई की थी ….जो मैं कभी नही बन सका……मैं कभी उन आँखों का सामना नही कर पाउन्गा’
‘तो क्या आप कभी मम्मी जी से भी नही मिलेंगे …..आप बेटे हैं उनके…..आपको उनकी ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए….सब कुछ आप सुनील भाई पे छोड़ देंगे ……अब तो अंकल भी नही उनके साथ…..ज़रा सोचिए ….आप से छोटे हैं वो और अकेले जिंदगी के तूफान से लड़ रहे हैं…..शर्म नही आती आप को …कुछ बुरा भला ही कहेंगे ना ….,है तो आपके अपने ‘
‘तुम नही समझोगी ‘
‘मुझ से बेहतर कॉन समझे गा जी आप को …….और इतना तो समझ ही चुकी हूँ …….आपके घरवाले हीरा हैं हीरा …जिनकी कदर आप नही समझते ….’
‘ तो तुम क्या चाहती हो…मैं उनके सामने जाउ और गालियाँ सुनू’
‘हां एक बार नही ..हज़ार बार सुनो और मुझे भी सुनवाओ’ मिनी रो पड़ी
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यहाँ सोनल ….सुनील के दरवाजे को खटखटा रही थी ….’खोलिए ना….प्लीज़….देखो ऐसे नाराज़ नही होते …..प्लीज़ खोलो ना……खोलिए नही तो शोर मचा दूँगी हां ‘
सुनील कोई जवाब नही देता….
‘मैं रो पड़ूँगी और वो भी रो रही है…खोलो ना….प्लीज़….’
सुनील फिर भी नही खोलता….कैसे खोलता…पूरी बॉटल जो नीट चढ़ा गया था गुस्से में’
सोनल कुछ देर खटखटाती रही और फिर रोती हुई सुमन के पास चली गयी….
सोनल जब कमरे में घुसी तो सुमन रो रही थी……सोनल उसके गले लग रोने लगी…..’क्यूँ मना किया आपने उनको…..अपना हक़ तो माँग रहे थे…….’
‘तू तो जानती है कितने दिनो से कॉलेज मिस हुआ है…..अगर करने देती तो रात भर नही छोड़ते और फिर सुबह जल्दी कैसे उठते….क्या मेरा दिल नही करता कि उनकी बाँहों में रहूं……’
‘अब आप ही उन्हें सुबह मनाना…लगता है पी के लूड़क गये हैं….इतना गुस्सा क्यूँ आता है उनको….’
‘सारी ग़लती मेरी है …..एक बार कर लेते तो उनको थोड़ा सकूँ मिल जाता…मैं भी कितनी गधि हूँ’
दोनो बातें करते करते एक दूसरे के आँसू पोंछते हुए सो गयी.
रात करीब 12बजे का ही समय था….आज भी कमल अपने कमरे से बाहर निकला ….जयंत सो चुका था….
एक साया फिर लड़कियों के हॉस्टिल की तरफ बढ़ रहा था…………उसने फिर एक लड़की के कमरे को खटखटाया ……और फिर घृणात्मक कार्य हुआ …उसका लड़की का रेप कर फिर उसकी छाती में के गोद कर वो जैसे आया था वैसे गायब हो गया.
शायद उसे पहले से ही मालूम था कि वो लड़की अपने रूम में अकेली होगी ….. ……..ये साया कहाँ से आया और कहाँ गायब हुआ पता ही ना चला..
जब कमल अपने कमरे में पहुँचा तो हाँफ रहा था …जैसे कहीं से भाग की आ रहा हो…अंधेरे में वो टेबल से टकराया…और जयंत की नींद खुल गयी उसने लाइट जला डाली ….स्विच उसके बेड के पास था….कमल को देखा जो अभी हाँफ रहा था……
‘क्या हुआ हाँफ क्यूँ रहा है…कहीं गया था क्या तू …..’
‘वो बस नींद नही आ रही थी तो बाहर चला गया था….पता नही कहाँ से चमगडाह आ गये तो भाग के आना पड़ा….’
जयंत का माथा ठनका….ये कुछ छुपा रहा है……..इस वक़्त वो कुछ ना बोला….चुप चाप लेट गया…..पर इस वक़्त रात को ये कहाँ गया था…और चमगडाह तो यहाँ है ही नही …क्यूँ झूठ बोल रहा है …..
जयंत ने अब कमल पे रात को भी निगरानी रखने का फ़ैसला कर लिया.
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अगले दिन सुबह सुनील की नींद जल्दी खुल जाती है….अपने पास पड़ी खाली बॉटल देखता है और रात की सारी बातें याद आने लगती है….किस तरहा वो गुस्से से सुमन के कमरे से बाहर निकला था……..
ग़लती किसकी ………अपने आप से तर्क वितर्क करता है…..तो ग़लती उसे अपनी ही ज़यादा लगती है…….दुखी हो जाता है …….कि उसने अपनी सुमन को रुला दिया….फटा फट तयार होता है ……उसके कुछ कपड़े उसके ही रूम में रखे होते हैं दुनिया को दिखाने के लिए…पर उनमे कोई अच्छी ड्रेस नही होती…ऐसे ही कामचलाऊ घर पहनने वाले होते हैं….वो उनमे से ही कुछ पहन लेता है और सीधा सुमन के कमरे में झाँकता है……..जहाँ अभी सुमन और सोनल दोनो ही सो रही थी….घड़ी पे नज़र पड़ती है….अभी सुबह के 5 ही बजे थे…….हॅंगओवर से उसका सर भन्ना रहा होता है….कसम खा लेता है…कभी नीट नही पिएगा और इतनी ज़यादा तो कभी नही चाहे मूड कितना भी ऑफ क्यूँ ना हो.
किचन जा कर तीन कॉफी तयार करता है और सुमन के कमरे में चला जाता है…….
कॉफी साइड टेबल पे रखता है और सुमन के पास जा के बैठ जाता है…गालों पे आँसू सुख चुके थे और उनके निशान सॉफ सॉफ दिख रहे थे….तड़प उठता है और उसके गालों को चाटने लगता है……सुमन थोड़ा कुन्मूनाती है…..और सुनील धीरे से अपने होंठ उसके होंठों पे रख देता है……..नींद में ही सुमन की बाँहें उसके गले का हार बन चुकी थी……सुनील धीरे धीरे सुमन के होंठों का रस चुराने लगता है और कुछ देर में सुमन की आँख खुल जाती है…वो कस के सुनील से चिपक जाती है.
सुनील ….अपने होंठ अलग करता है ….उसकी आँखों में देखता है और….’सॉरी’ बोलने वाला होता है …कि सुमन उसके होंठ अपने होंठों से बंद कर देती है.
दोनो फिर अलग होते हैं………..और एक साथ ही दोनो के मुँह से निकलता है….’गुड मॉर्निंग डार्लिंग’
फिर सुनील उसे कॉफी का कप पकड़ता है और बिस्तर के दूसरी तरफ जा वो सोनल पे झुक जाता है…..
सोनल जाग चुकी थी और इंतेज़ार कर रही थी….सुबह के उस पहले मीठे चुंबन का ….जिसके बाद ही वो अपनी आँख खोलती …..सुनील के होंठ जैसे ही उसके होंठों को छूते हैं…..वो लिपट जाती है सुनील से…..इनके बीच की नाराज़गी बस इतनी ही देर की होती है…एक चुंबन उस नाराज़गी को …..दूर कर देता है……ऐसा है इनका प्यार …….सोनल और सुनील एक दूसरे में खो जाते हैं…..और किसी की नज़र उन दो आँखों पे नही पड़ती जो इन्हे देख रही थी….और आँसू बहा रही थी…..बेधयानी में सुनील ने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था….
रूबी बहुत खुश थी….सोनल की शादी की फोटोस देखती देखती पता नही कब सो गयी थी…सुबह जल्दी ही उठ गयी…और सोचा कि आज सबको कॉफी पिलाकर सर्प्राइज़ देगी…..खास कर अपने भैया को…रोज तो कभी सुमन और कभी सविता ही मॉर्निंग टी/कॉफी बनाती थी…और आज वैसे भी जल्दी उठ गयी थी..फ्रेश हो कर वो नीचे आई तो देखा सुनील किचन से कॉफी बना के बाहर निकला और सुमन के कमरे में घुस गया….वाह क्या बात है भैया की सुबह सुबह खुद ही कॉफी बना के आंटी को देने चले गये.
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07-19-2019, 01:19 PM,
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सोनल जब कमरे में पहुँची तो सुनील ड्रिंक कर रहा था…उसकी आँखें शुन्य में कुछ तलाश कर रही थी.
सोनल उसके साथ चिपक के बैठ गयी ….क्यूँ इतना परेशान हो रहे हो…..दीदी समझा देगी उसको
सुनील …..वो अपनी उम्र से बहुत आगे निकल गयी है ….जिंदगी के झटकों ने उसका विश्वास डगमगा डाला है…….उसे सकुन ….चाहिए अपने लिए हो या अपनी माँ के लिए ….बस मुझ में दिखाई देता है…….बहुत ग़लत हुआ है दोनो के साथ इसका मतलब ये तो नही कि मैं दोनो को अपना लूँ..देखना कल सवी बोलेगी कि रूबी को अपना लूँ. पागल हो जाउन्गा इस महॉल में.
सोनल ……सुनील के चेहरे को अपनी तरफ घूमती है …….कुछ नही होगा जान ….बहुत लड़ लिए खुद से आप….और अपने होंठ सुनील के होंठों से चिपका देती है…….
सोनल ….सुनील के होंठ चूसने लग गयी और खुद ही उसका हाथ अपने मम्मे पे रख दिया……वो सुनील को दिमाग़ में चल रहे द्वंद से बहुत दूर ले जाना चाहती थी……एक पत्नी अपने धर्म का पालन कर रही थी…अपने शोहर को सकूं पहुँचाना चाहती थी……….कुछ देर तक सोनल सुनील के होंठ चूस्ति रही…फिर अचानक उसे याद आया कि दरवाजा उसने सिर्फ़ भिड़ा है अंदर से लॉक नही किया ……वो उठ के दरवाजा बंद करती है ……और ठुमकती हुई सुमन का वॉर्डरोब खोल उसमे से एक नाइटी निकल बाथरूम में घुस जाती है.
सुनील जब तक सोनल आती ड्रिंक में मस्त हो गया इस वक़्त वो अपने दिमाग़ को बिल्कुल खाली रखना चाहता था तंग आ गया था जो भी उसके साथ हो रहा था उस से…अब समझाने का वक़्त ख़तम हो चुका था…वो फ़ैसला कर चुका था ……या तो दोनो अलग रहें …या फिर वो करें …जो वो चाहता है..उनकी जिंदगी को ढंग से बसाने के लिए ….एनफ ईज़ एनफ.
एक नज़र उसने खिड़की पे डाली….ढंग से बंद है या नही …..दरवाजा खिड़की बंद होने से कमरे में गर्मी होने लगी थी….उसने ए/सी चालू कर दिया और इस वक़्त वो अपनी ड्रिंक एंजाय करने लगा……जब से हनिमून से वापस आया था कोई ना कोई भासुडि होती जा रही थी……उसे सूमी का इंतेज़ार था अपना फ़ैसला सुनाने के लिए …एक बार वो सूमी के कानो में डालना चाहता था कि वो क्या चाहता है …फिर सूमी जाने और उसकी बहन ….इस पचाड़े से खुद को अब बाहर निकलना चाहता था.
अपनी ब्रा का फ्रंट हुक लगाते हुए सोनल बाहर निकली तो सुनील बस उसे देखता ही रह गया.......जब बीवी अपनी पे आजाए तो मर्द चाहे कितनी भी टेन्षन से भरा बैठा हो ....वो सब भूल दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है....ऐसा ही कुछ सुनील के साथ हुआ.....अपनी बीवी की सुंदरता में डूब गया .....और सोनल थी भी रति का रूप
हुस्न कभी तारीफ का मोहताज नही होता ...लाखों तरसते हैं उसकी एक झलक पाने को ...लेकिन जब शोहार ही आशिक़ बन जाता है तो लब गुरेज़ नही करते ये कहने को
मेरे हर खवाब की ताबीर तुम हो,
मेरी मोहब्बत की जागीर तुम हो,
बरसों तराशा है खुदा ने जिस संगे मर-मर को,
उस संगे मर-मर की हँसी तस्वीर तुम हो,
एक दीदार की खातिर लाखों परवाने है फिदा,
इस ज़माने में हुस्न-ए-अफ्रीन कि सरकार तुम हो,
दिल धड़कता है तो इस दिल की धड़कन तुम हो,
सांस आती है तो ज़िंदा रहने की वजह तुम हो,
हीरे की कीमत ज़ोहरी जाने, तेरे हुस्न की कदर हम,
इस कायानात में सबसे धनवान तुम हो,
कोई झोंका हवा का जब च्छू कर गुज़रे लगता है कि तुम हो,
कोई फूल खिल कर जब महकने लगता है कि तुम हो,
खुदा की परिस्थिति की तो हर दुआ में माँगा तुम को,
हर दुआ का बदला ज़न्नत तुम हो,
इसे दीवानगी कहो कि या दीवानापन,
मेरी तो हर नज़म में तुम हो गाज़ल में तुम हो.
सोनल तो बावली हो गयी ये सुन …….उसका प्यार जो जिंदगी के अंधेरे में डूबा रहा था …उजाले में फिर से लॉट आया ……इतनी खुशी उसे इन लफ़्ज़ों को सुन ना हुई थी …जितनी उसे अपने सुनील को फिर से आशिकाना मिजाज़ में आते हुए देख कर हुई थी ……..
‘वाउ !!!!
मेरी जान यूँ ना करो तारीफ इस कनीज़ की
…कि कहीं इस बोझ तले मर ना जाएँ हम
……ये आपका का प्यार है जो समझता है हमे इस काबिल
…वरना हम तो सेहरा में भटकती हुई बस एक धूल है’
सोनल भागती हुई सुनील के गले लग गयी ……..उफफफफ्फ़ ये सकुन ….कितनी मुश्किल से मिला था उसे उसका प्यार पल भर को तो आँखें डबडबाने लगी थी ….फिर याद आया अपना फ़र्ज़ …..अपने शोहर को उसको उसकी टेन्षन से दूर करना था उसे …….(क्या कभी कोई बीवी ऐसा करती है …….ये एक सवाल है मेरा इस कहानी के मॅरीड रीडर्स से) ‘ जानू जब से तुम मेरी जिंदगी में आए हो बस बहार ही बहार है ….ये दुश्वरियाँ तो जिंदगी का हिस्सा होती हैं जानू …इन्हें दिल पे मत लगाया करो……आज की रात भूल जाओ सब …….और अपनी इस बीवी को अपने प्यार की नैमत से नवाज दो…..भर दो उसकी झोली अपने प्यार की बरसात से …….और कुछ मत सोचो…….बस आप और मैं और ये रात ….बना दो इस एक याद गार रात ……लव मी डार्लिंग ….टेक मी….आइ’म डाइयिंग फॉर इट’
‘सोनल …….मेरी जान ……तुम दोनो हो तो मैं हूँ …वरना मेरा कोई वजूद नही …..मैने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था….मुझे सबसे ज़यादा प्यार करने वाली ….मेरी हर सांस की देखभाल करनेवाली और कोई नही ….तुम दोनो हो …..और तुम ……वो हो जो मुझे हर पल नयी उर्जा देती हो ….और सूमी …..तो मेरे वजूद की बुनियाद है ….वो मेरी धमनियों में वास करती है’
‘मैने आपसे कभी कोई शिकायत करी जी …मुझे दासी भी बना के रखोगे तो कबूल है’
‘ना तुम कभी दासी बन सकती हो ना कभी सूमी….तुम दोनो का राज है मेरे दिल पे जिसका मैं बटवारा नही कर सकता …..वो तुम दोनो के ही अधिकार में है …वो तुम दोनो की वजह से ही धड़कता है…..ना मैं तुम्हारे बिना जी सकता हूँ और ना ही सूमी के बिना’
‘आप भी क्या बातें ले के बैठ गये ….देखिए ना ये बदन टूट रहा है …इसे थोड़ा सहला तो दीजिए’ एक कातिलाना अंगड़ाई लेते हुए सोनल बोली …….’आइए ना …..छुईए ना मुझे ….अपनी सांसो को मेरी सांसो से घुलने दीजिए…….मेरे रोम रोम पे अपने प्यार की बरसात कर दीजिए …..कम हनी ….किस मे ‘ और सोनल ने अपने लरजते हुए होंठ सुनील के होंठों से मिला उन्हें दावत दे डाली ….कम सक अस ….महसूस करो हमे ….चूस लो हमारा सारा शहद…ये सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए है …..ये जन्मे ही तुम्हारे लिए थे….आओ देखो कितनी मीठास है इनमे.'
सुनील …सोनल की के होंठों की मीठास में खो गया ……उम्म्म्म सोनल अपने होंठ छुड़ाती एक साँस भरती और फिर अपने लबों को चूसने के लिए अपने रहनुमा को सोन्प देती …….
सोनल ….सोनल…सोनल …….सुनील उसका नाम लेता रहा और उसके होंठ चूस्ता रहा….नारी के ये दो लब अपने आप में कयामत को समेटे हुए होते हैं …..इनकी मीठास के आगे शहद भी फीका लगने लगता है …..और सुनील की क्या बिसात थी जो इन लबों की दुनिया में खो ना जाता. आँखें दोनो की बंद हो चुकी थी….जिस्म दोनो के कांप रहे थे…मचल रहे थे एक दूसरे में सामने के लिए…….सुनील ने सोनल की ब्रा का हुक खोल दिया……और उसके मदमाते उरोज़ आज़ाद हो गये ……
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