Maa ki Chudai माँ का चैकअप
08-07-2018, 10:52 PM,
#21
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"अब जब तेरे पापा का साथ नही मिल पाता तो मैं क्या कर सकती हूँ ?" ममता अत्यंत दुखी लहजे में बोली. स्वयं उसका दिल ही जानता था कि यदि राजेश उसकी काम-पीपासा को शांत करने में सक्षम होता तो इस वक़्त उसे अपने सगे जवान बेटे के समक्ष यूँ नग्न हो कर नही बैठना पड़ता, मर्यादाओ का उल्लंघन नही करना पड़ता, पति-पत्नी के गुप्त क्रिया-कलापो का इतनी बेशरामी से खुलासा नही करना पड़ता.
"मा! औरत हो या मर्द, एक निश्चित सीमा तक अपनी शारीरिक ज़रूरतो को नज़र-अंदाज़ करना उचित है परंतु उससे ज़्यादा नही. मैने कयि ऐसी औरतो को परामर्श दिया है जिनके पति उनकी संतुष्टि नही कर पाते या कयि ऐसी जिनके पति का लंड खड़ा होना बंद हो गया हो या खड़ा तो होता हो मगर वे जल्द ही स्खलित हो जाते हों" ऋषभ ने कोई प्रवाह नही की, उसकी मा उसके बारे में क्या विचार कर रही होगी. उसे तो बस ममता के टूटने का इंतज़ार था.
"हट बेशरम! खुद तो कितने गंदे-गंदे लफ्ज़ बोल रहा है और अपनी मा से भी बुलवाने के लिए उसे विवश कर रहा था" अचानक ममता का दुखी चेहरा सुर्ख लाल हो गया, आँखें थी जो गहेन उत्तेजना से पल प्रति पल मूंडने को तैयार थी और उसे स्वयं मालूम नही चल पाया कि कब उसके दाएँ हाथ की उंगलियाँ उसकी चूत के सूजे और कामरस से चिपचिपाते हुवे होंठो को सहलाना शुरू कर चुकी थीं.
"इस में बेशर्मी की क्या बात! मैं उन औरतो को वाकाई सलाह देता हूँ कि वे अपनी चूत को अपनी उंगली से शांत कर सकती हैं" ऋषभ मुस्कुराया, अपनी मा के निरंतर हिलते हुवे हाथ से वह काफ़ी पहले जान गया था कि उसने अपनी चूत से खेलना आरंभ कर दिया है और तभी उसने इस विषय पर चर्चा भी छेड़ी थी.
"मैं खुद मूठ मारता हूँ मा! अब दिन में दस बार औरतो के गुप्तांगो की जाँच करूँगा तो मूठ तो मारना ही पड़ेगा ना" बोलते हुए आकस्मात ही वह अपना दायां हाथ अपने पॅंट में बने विशाल तंबू पर रख देता है. अपने पुत्र के निर्लज्जतापूर्ण कथन को सुन कर भी ममता ने अपनी चूत को सहलाना नही छोड़ा बल्कि ऋषभ के अपने तंबू पर हाथ लगाते ही वह तीव्रता से अपनी दो उंगलियों को अपनी चूत की अनंत गहराई के भीतर बलपूवक ठुस लेती है.
"तो शादी कर ले रेशू! बता अगर कोई अच्छी सी लड़की हो मन में तो मैं तेरे पापा से बात करूँ" ममता अपनी नशीली आँखों से अपने पुत्र की वासनमयी आँखों में झाँकते हुवे बोली, ऋषभ की मूठ मारने वाली बात सुन कर तो वह जैसे कामोत्तजना के शिखर पर ही पहुँच गयी थी.
"मुझे जैसी लड़की पसंद है मा अगर वैसी नही मिली तो मैं कभी शादी नही करूँगा" ऋषभ ने दोबारा मायूसी का नाटक किया.
"बता मुझे तुझे कैसी लड़की पसंद है ? मैं कहीं से भी ढूँढ कर लाउन्गि मगर मेरे बच्चे की ख्वाहिश को ज़रूर पूरा करूँगी" ममता उसका ढाढ़स बढ़ाते हुवे बोली, वह जानने को अत्यंत व्याकुल थी कि आख़िर किस तरह की लड़की उसके पुत्र को पसंद हो सकती है.
"तुम्हारे जैसी मा! हूबहू तुम्हारे जैसी" ऋषभ ने अपनी आँखें को अपनी मा के मम्मो से जोड़ते हुवे कहा, फॉरन ममता का दूसरा हाथ भी उसकी चूत के भांगूर को मसल्ने के लिए उस तक की दूरी को तय करना शुरू कर देता है.
"क्यों मुझ में ऐसा क्या ख़ास है रेशू ? मैं तो अब बूढ़ी हो चुकी हूँ" हर औरत की तरह ममता भी अपनी तारीफ़ सुनने को बेक़रार थी, उसे कुच्छ हद्द तक अंदाज़ा भी लग चुका था कि उसका पुत्र क्यों अपनी मा समान बीवी होने की कल्पना कर रहा है.
"किस अंधे ने कहा कि तुम बूढ़ी हो चुकी हो ? तुम्हारा चेहरा बेहद खूबसूरत है, तुम्हारे गाल इतने तरो-ताज़ा, तुम्हारे मम्मो का तो मैं आशिक़ बन गया हूँ और सब से बढ़ कर मा! तुम्हारे चूतड़. अगर आज मैने तुम्हे नग्न नही देखा होता तो मैं जान ही नही पाता कि मेरी मा दुनिया की सबसे कामुक स्त्री है" ऋषभ ने अपना अंतिम और अचूक अस्त्र छोड़ते हुवे कहा. वह कतयि झूट नही बोला था, आज तक उसकी देखी अनगिनत नग्न सुंदरियों में उसकी मा रति सम्तुल्य थी.
"बस कर रेशू! अब और कुच्छ ना तो मैं सुन सकूँगी और ना ही सुनना चाहती हूँ. तू अब मेरी जाँच शुरू कर दे बेटे, मुझे घर भी जाना है" ममता की चूत में अब उसकी उंगलियों का कोई काम नही बचा था, उसने अत्यंत तुरंत उन्हे अपनी चूत के भीतर से बाहर खींचते हुवे कहा और उंगलियों पर चिपका गाढ़ा कामरस अपनी घनी झांतो के ऊपर चुपाड़ने लगती है.
"अभी नही मा! अभी तो कुच्छ सॉफ ही नही हुवा, हमारी बात-चीत अभी अधूरी है" ऋषभ ने उसकी विनती को ठुकराया और अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अचानक अपनी मा के मुलायम बाएँ गाल का हल्का मगर बेहद गीला चुंबन ले लेता है.
"उफ़फ्फ़! रेशू" ममता अपने चूतड़ो को कुर्सी पर रगड़ते हुवे सीत्कार उठी, जहाँ उसकी चूत रिसना बंद नही हो पा रही थी वहीं उसकी गांद का छेद अत्यधिक पसीने की वजह से अब खुजलाने लगा था.
"बोलो ना मा! क्या तुम सच में अपने समान लड़की को ढूंड सकती हो ?" ऋषभ उसी बात पर मानो आड़ चुका था.
"मगर मैं लड़की कहाँ हूँ रेशू! देख ना तेरी मा अब वाकाई बूढ़ी हो चली है" ममता ने अपनी बाहों को हवा में लहराते हुवे कहा, उसके चेहरे की भाव-भंगिमाएँ यह चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी.
"ऋषभ! उसका सगा पुत्र उसके बदन का चक्षु-चोदन करते हुवे उसकी नंगी जवानी की जम कर तारीफ़ करना शुरू कर दे"
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08-07-2018, 10:53 PM,
#22
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--9

"ऋषभ! उसका सगा पुत्र उसके बदन का चक्षु-चोदन करते हुवे उसकी नंगी जवानी की जम कर तारीफ़ करना शुरू कर दे" ममता के आकस्मात ही अपनी बाहों को फैला देने से उसका ऊपरी बदन बेहद तन जाता है. उसके मम्मो की स्वाभाविक बनावट तो पूर्व से ही कसावट से भरपूर थी, अब वे इस कदर उभर चुके थे मानो फूले हुवे गोल-गोल गुब्बारे हों.

"मैं भला तुम से झूट क्यों कहूँगा ? मैने कुँवारी लड़कियों के नंगे बदन भी देखे हैं मा मगर इतने कसे हुवे मम्मे उन में से किसी के नही थे" ऋषभ ने बताया, अपनी बेशरम आँखों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपनी सग़ी मा के सुडोल मम्मो के ऊपर से हटा पाना उसके लिए असंभव था, वह जितना अधिक उन्हें घूरता जाता उतने ही वे उसे अपनी ओर आकर्षित करते जाते. यदि हक़ीक़त में उसके समक्ष बैठी हुवी उस नंगी, अत्यधिक रमणीय औरत से उसका मा नामक अत्यंत पवित्र रिश्ता ना होता तो कब का वह उसके प्रभावशाली मम्मो को निचोड़ना शुरू कर चुका होता.

"सिर्फ़ मम्मो के आंकलन मात्र से यह साबित नही हो सकता कि किसी बूढ़ी औरत को एक जवान लड़की की सन्ग्या दे दी जाए" ममता ने मुस्कुराते हुवे कहा और बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने सुडोल मम्मे अपने दोनो हाथो के पंजो से तोलने लगती है मानो उनका वज़न पता करने की इक्शुक हो, साथ ही साथ उन्हे हौले-हौले सहला भी रही थी.

"बिल्कुल हो सकता है मा! तुम्हारी उमर की औरतों के मम्मे अत्यधिक चर्बी बढ़ जाने की वजह से अक्सर बेदोल हो कर नीचे को झूलने लगते हैं मगर मैं दावे से कह सकता हूँ कि तुम्हारे मम्मो को ब्रा की भी आवश्यता नही" जवाब में ऋषभ भी मुस्कुरा उठा. उसकी मा उसके समक्ष ही स्वयं अपने हाथो से अपने नंगे मम्मो को गूँथ रही थी, इतने कामुक द्रश्य से तो वह आज तक महरूम रहा था. कुच्छ ही लम्हो में बात इतनी तीव्रता से आगे बढ़ जाएगी शायद दोनो ही इससे पूर्णतया अंजान थे. पहले ममता का निर्लज्जतापूर्वक अपनी चूत से खेलना और अब अपने मम्मो से, उसकी असल कामोत्तजना को प्रदर्शित कर रहा था.

"तो तेरा कहना है कि अब मुझे ब्रा पहनानी छोड़ देनी चाहिए ?" ममता ने अत्यंत गर्व से कहा, हर स्त्री की तरह उसे भी अपने विशाल मम्मो की कठोरता पर शुरूवात से ही गुमान था. तत-पश्चात अपनी उंगलियों को वह गहरे भूरे रंगत के अपने तने हुवे निप्पलो की विकसित मोटाई पर गोल आक्रति में घुमाना आरंभ कर देती है.

"ह .. हां वाकाई मा! तुम कम से कम घर में रहते हुवे तो इन्हे राहत की साँसें लेने दे ही सकती हो" ऋषभ काँपते स्वर में बोला, चुस्त फ्रेंची की जकड़न में क़ैद उसका लंड भी उसके अल्फाज़ो की तरह ही फड़फडाए जा रहा था.

"मैं वादा तो नही करती रेशू! फिर भी कोशिश ज़रूर करूँगी" ममता अपने निप्पलो को अपने अंगूठे और प्रथम उंगली के दरमियाँ ताक़त से मसल्ते हुवे बोली, उसका आशय तो खुद उसकी समझ से परे था कि भविश्य में आख़िर किस को लुभाने के उद्देश्य से वह घर पर अपने उच्छल-कूद करते मम्मो को ब्रा की क़ैद से मुक्त रखने वाली थी.

"खेर और मुझ में ऐसा क्या है जो मुझे किसी जवान लड़की के सम्तुल्य दर्शाता है ?" उसने अत्यंत व्याकुल स्वर में पुछा, अपने पति या किसी पर पुरुष की तुलना में अपने सगे बेटे से अपनी नंगी काया की अश्लील प्रशन्षा सुनना उसे एक ऐसे अधभूत रोमांच से भरता जा रहा था मानो इस वक़्त अपने पुत्र के समक्ष उसका नग्न विचरण करना ही उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बन गयी हो. ऐसा भी कतयि नही था कि अब उसकी शरम का पूर्णरूप से अंत हो चुका था. अक्सर ममता समान संकोची स्त्रियाँ जिन्होने कभी अपनी सीमाओ का उल्लघन नही किया हो, जब पथ्भ्रस्ट होने की कगार पर पहुँचती हैं तब उन्हे पूर्व में रही अपनी सभी मर्यादाओ और अतम्सम्मान का कोई विशेष ख़याल नही रहता. वे महसूस तो अवस्य करती हैं कि उन्हे अपने डगमगाते हुवे कदम अत्यंत तुरंत वापस पीछे खींच लेने चाहिए मगर तब-तक परिस्थित उनके अनुकूल नही रह पाती और वे निरंतर गर्त में धँसती ही जाती हैं. अपनी जवानी से ले कर अब तक अनगीनती उसने अपने हुस्न की तारीफ़ सुनी थी मगर अपने सगे बेटे का नीचतापूर्णा हर संवाद उसे आनंदित ही नही वरण बेहद उत्तेजना भी महसूस करवा रहा था.

"वैसे तो तुम्हारे अंग-अंग में कामुकता व्याप्त है मा मगर तुम्हारे मांसल चूतड़! अगर में कवि होता तब भी तुम्हारे इन सुंदर चूतड़ो की तारीफ़ कर पाना मेरे लिए संभव नही हो पाता" अपने अमर्यादित कथन को पूरा करने के उपरांत ही ऋषभ पुनः अपनी मा के बाएँ गाल को चूम लेता है, इस एहसास के तेहेत की वह उसके मुलायम गाल को नही बल्कि उसके गद्देदार चूतड़ के पाटों को चूम रहा है.

"अब तो वाकयि मुझे लग रहा है रेशू कि तू अपनी मा का दिल रखने के लिए उससे झूट पर झूट बोले जा रहा है" ममता ने बेहद नखरीले अंदाज़ में कहा और फॉरन अपने बाएँ गाल पर चुपड़ी हुवी अपने पुत्र की लार को पोंच्छने लगती है.

"मैं झूट नही कह रहा! मा सच में तुम्हारे नंगे चूतड़ तो किसी नमार्द का भी लंड खड़ा कर देने में सक्षम हैं, मेरा तुम्हारा बेटा होना कोई अपवाद थोड़ी ना है" बोलते हुवे ऋषभ अपना चेहरा नीचे झुका कर अपनी पॅंट के तंबू को देखने लगता है ताकि उसकी मा भी उसके लंड के खड़े होने के विषय में जान सके और साथ ही उसके कथन की सत्यता की भी पुष्टि हो जाए.

"उफफफ्फ़" अपने पुत्र के विशाल तंबू को देखते ही ममता सिसकते हुवे अपने निप्पलो को बलपूर्वक उमेठ देती है, निश्चित ही वह अपनी सोच में अपने पति और पुत्र के लंड की आपस में तुलना करने लगी थी.

"ये पाप है रेशू! एक मा और उसके बेटे के दरमियाँ ऐसा रिश्ता कैसे हो सकता है ? मुझे तो यकीन ही नही हो रहा कि तेरी मा हो कर भी मैं तेरे सामने नंगी बैठी हुवी हूँ और इतनी नीचे गिर गयी कि अब तेरे गुप्ताँग को भी घूर्ने से खुद को रोक नही पा रही. देख! कितना तन चुका है अपनी सग़ी मा की निर्लज्ज हरक़तो की वजह से, ये सरासर ग़लत है बेटे" कहने के उपरांत ममता ने अपनी पलकें मूंद ली. अचानक से महसूस हुई शर्मिदगि के एहसास ने अपने आप उसके मूँह से ऐसे विध्वंशक अल्फ़ाज़ बाहर निकलवा दिए थे, जिन्हे सुन कर पल भर को ऋषभ भी सकते में आ जाता है.

"कैसा पाप मा ? हम कहाँ कुच्छ ग़लत कर रहे हैं ? मा-बेटे के रिश्ते से पहले तुम एक औरत और मैं एक मर्द हूँ. तुम जान-बूझ कर हर बार मेरा दिल दुखाने की चेष्टा करती हो जब कि थोड़ी देर पहले तुमने ही कहा था कि मैं तुम्हारे कारण उत्तेजित हो गया हूँ और अब अपनी उसी बात पर शोक भी मना रही हो" बोलते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के माथे का गहरा चुंबन लिया और प्यार से उसके बालो पर अपना हाथ फेरने लगता है.

"मैं अपनी दोस्त ड्र. माया को कॉल कर देता हूँ, अब वे ही तुम्हारा बाकी का इलाज करेंगी" उसने अपने दूसरे हाथ को अपने पॅंट की जेब में डाल कर अपना सेल बाहर निकालते हुवे कहा, ममता की बंद पलकें फॉरन खुल जाती हैं जब वह ऋषभ की बात पर गौर फरमाती है.

"मैने यह भी तो कहा था कि मैं किसी गैर के सामने अपने कपड़े नही उतारुँगी और फिर भी तू अपनी मा को बदनाम करने से बाज़ नही आ रहा! नलायक" ममता ने अपने पुत्र की आँखों में झाँका और उसके हाथ से उसका सेल छुड़ा कर मेज़ पर रख देती है.
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08-07-2018, 10:53 PM,
#23
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"अब तो तुम अपने कपड़े उतार ही चुकी हो और मेरे रहते तुम्हे अपनी बदनामी का भी डर नही. तो फिर और क्या दिक्कत है मा ?" ऋषभ ने पुछा.

"यही तो सबसे बड़ी दिक्कत है रेशू कि तेरी मा होने के बावजूब भी मैने तेरे सामने अपने कपड़े उतार दिए, माना मैं दुनिया की नज़रो में बदनाम नही होउंगी मगर मेरी अपनी नज़रों का क्या ?" ममता ने अपने जवाब के अंत में एक नया सवाल जोड़ते हुवे कहा.

"तुम्हारे इलाज के खातिर तुम्हे इतना तो सहेन करना ही होगा मा" ऋषभ मुस्कुराया.

"मगर इलाज शुरू भी तो हो! तुझे बेशार्मो की तरह अपनी मा के मम्मो और चूतड़ो की झूठी तारीफ़ करने से फ़ुर्सत मिले तब ना" प्रत्युत्तर में ममता शिक़ायती लहजे में बोली.

"अभी लो! चलो खड़ी हो जाओ" ऋषभ ने खुद उसके कंधे पकड़ कर उसे कुर्सी से उठने में मदद की और तत-पश्चात उसके हल्के से उभरे हुवे पेट का ऊपरी तौर पर निरीक्षण करने लगता है, वह आशंकित हो चुका था कि कहीं उसकी मा उसकी गंदी बातों से बिदक ना पड़े और तभी फ़ैसला करता है कि अब वह अपने खुद के शारीरिक स्पर्श और अपनी कामुक हरक़तो के ज़रिए उसका मनोबल तोड़ने का प्रयास करेगा और बीच-बीच में अपने अश्लील अल्फाज़ो की भी सहायता लेता रहेगा.

"तुमने बताया था कि तुम्हे भूख नही लगती! क्या तुम्हे अपच या शौच करने में भी तकलीफ़ होती है मा ?" उसने पुछा और अपने दोनो हाथो की उंगलियों से अपनी मा के गुदाज़ पेट को कयि जगहो से दबाना शुरू कर देता है. उसका मन तो बहुत हुवा कि अपनी इस मन्घडन्त जाँच का फ़ायदा उठा कर वह अपनी जन्मस्थली, अपनी मा की चूत को भी एक नज़र देख ले मगर उसने खुद पर सैयम बनाए रखा ताकि कुच्छ वक़्त पश्चात अपने उसी सैयम को तरल सैलाब में परिवर्तित कर सीधे उसे अपनी मा की चूत की अनंत गहराई के भीतर खाली कर सके.

"न .. नही! अपच जैसा तो कुच्छ महसूस नही होता रेशू" ममता के कप्कपाते बदन के समान ही उसके लफ्ज़ भी काँपते हुवे से प्रतीत होते हैं. अपने बेटे के हाथो का चिर-परिचित स्पर्श पहले भी ना जाने कितनी बार वह अपने बदन पर महसूस कर चुकी थी परंतु तब उसका बेटा स्वयं उसी के आश्रित था, हर वक़्त अपनी मा के आँचल की ठंडी छाँव में छुपा रहता था. आज उसका वही बेटा एक जवान, बलिष्ठ और सक्षम युवक में तब्दील हो चला था, इतने विशाल लंड का स्वामी जो इस वक़्त उसकी सग़ी मा के नग्न बदन के प्रभाव से किसी सर उठाए नाग की भाँति फुफ्कार रहा था जैसे अपनी विकरालता से ही उसे अपनी मा के रोग का निदान करना हो.

"ह्म्‍म्म! और क्या शौच करने में दर्द महसूस होता है ?" ऋषभ ने पुछा.

"मतलब ?" अपने पुत्र के प्रश्न को ना समझ पाने से ममता ने सवालिया स्वर में कहा.

"देखो मा! अब तुम खुद मुझे मजबूर कर रही हो कि मैं तुमसे कोई बे-धन्गा सवाल करूँ ताकि तुम्हे फिर से मुझ पर बरसने का मौका मिल सके" ऋषभ ने चिढ़ने का नाटक किया.

"ओह्ह्ह्ह! तो तू फ्रेश होने के बारे में पुच्छ रहा था, नही कोई दर्द महसूस नही होता मगर ...." अपने कथन को अधूरा छोड़ते हुवे अचानक ही ममता के चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान व्याप्त हो जाती है.

"मगर क्या मा ?" ऋषभ ने अत्यंत तुरंत पुछा.

"मुझे! मुझे पेशाब करना है" ममता ने अत्यधिक लाज से परिपूर्ण अपने चेहरे को नीचे झुका कर कहा, यह कुच्छ वक़्त पिछे अपने सूखे गले की प्यास बुझाने के खातिर दो बॉटल पानी गाटा-गत पी जाने का ही नतीजा था.

"थोड़ी देर बाद कर लेना क्यों कि पहले मुझे तुम्हारे मम्मो की जाँच पूरी करनी है" ऋषभ गंभीरतापूर्वक बोला मानो उसे ममता की पेशाब करने वाली बात से कोई ख़ासा फ़र्क़ नही पड़ा हो बल्कि हक़ीक़त में अपनी मा के पेशाब करने के लिए पैर फैला कर बैठने और उसकी झांतो से भरी चूत की खुली व अत्यंत सूजी फांकों के बीच से निकलती हुवी पेशाब की धार की कल्पना मात्र से ही उसका लंड फॅट पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था.

"मैं! मैं रोक नही पाउन्गि" अनायास ही ममता के मूँह से निकल गया, अब तो उसका अपने पुत्र से आँखें भी मिला पाना मुश्क़िल था.

"तुम्हे रोकने की कोशिश करनी होगी मा! तुमने बताया था कि तुम्हे पेशाब करने में जलन महसूस होती है, मुझे खुशी है कि अब उसका भी निरीक्षण मैं कर सकूँगा" अपना कथन पूरा करते ही ऋषभ ने अपने हाथो को अपनी मा के पेट से ऊपर की ओर सरकाना शुरू कर दिया, उसके दोनो हाथ उसकी मा के बदन की अत्यंत कोमल चॅम्डी से बेहद चिपक कर उसके मम्मो तक की दूरी को नाप रहे थे. ममता की कामोत्तजना में इतनी तीव्रता व्रध्हि होने लगी थी कि वा चाह कर भी अपने पुत्र के खुरदुरे पंजो और लंबी उंगलियों के घर्षण को अपने रूई समान मुलायम बदन से हटा नही पाती.

"मैं तेरे सामने पेशाब नही कर सकती रेशू, तू मुझे बाथरूम का रास्ता बता दे" एक अरसा बीत गया ममता को अपना शर्मसार संवाद कहने में, उसने खुद को कोसा कि क्यों उसने पेशाब करने की अपनी निर्लज्ज इक्छा का खुलासा किया, शारीरिक जाँच के समाप्त होने के उपरांत भी तो वा पेशाब कर सकती थी.

"क्यों ? अब पेशाब करने में क्या दिक्कत है ?" ऋषभ के हाथ उसकी मा के मम्मो की निचली सतह को छु रहे थे.
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08-07-2018, 10:53 PM,
#24
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"आह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू" बिना उत्तर दिए ममता कसमासाई और कहीं उसकी सिसकारी पुनः ना फूट पड़े अपने निचले होंठ को अपने नुकीले दांतो के मध्य बलपूर्वक भीच लेती है.

"वैसे भी कॅबिन में बाथरूम नही है और क्लिनिक का मेन गेट भी खुला हुवा है" ऋषभ ने आकस्मात ही अपनी मा के कसावट से भरपूर दोनो मम्मो को अपने विशाल पंजो के भीतर कस लिया और कुच्छ लम्हे उनकी अन्द्रूनि कठोरता का लुफ्त उठाने के पश्चात अपने पंजो को मुट्ठी के आकार में सिकोड़ने लगता था.

"उफफफफ्फ़" ममता की आँखें मूंद गयी, अपने मम्मो पर अपने पुत्र की हथेलियों की रगड़ और दबाव झेल पाना उसकी सेहेन्शक्ति से बाहर था. उसकी चूत संकुचित हो कर गहराई में छुपे कामरस को अचानक से बाहर उगल देने को विवश हो उठती है और उसके निपल किसी नोक-दार अस्त्र के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं.

"क्या हुआ मा ? क्या तुम्हे अपने मम्मो में दर्द हो रहा है ?" ऋषभ ने चिकित्सक की भाँति पुछा जब कि वह अच्छे से जानता था कि उसकी मा की सीत्कार उसकी उत्तेजना को परिभाषित कर रही थी ना कि उसकी पीड़ा को.

"न .. नही" ममता ने अपने जबड़े भींचते हुवे कहा और अपने दाएँ हाथ की उंगलियों को तेज़ी से अपने सुडोल चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर घुमाने लगती है, तत-पश्चात उसके बाये हाथ का अंगूठा और प्रथम उंगली भी उसकी चूत के भग्नासे को उमेठ देने के उद्देश्य से कुलबुलाने लगते हैं.

ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके का पूरा लाभ लिया, कभी अपने पंजो से वह ममता के मम्मो को बेदर्दी से गूँथने लगता तो कभी उंगलियों से हौले-हौले उन्हे सहलाना शुरू कर देता.

"मा! बचपन में मैने तुम्हारे इन्ही निप्प्लो को चूस कर तुम्हारा दूध पिया था ना ?" उसने अपनी उंगली का हल्का सा स्पर्श अपनी मा के तने हुवे दोनो निप्पलो पर देते हुवे पुछा.

"हां रेशू" ममता अब अपने पुत्र के पूर्ण नियन्त्र में आ चुकी थी, बिना झिझके वह अपनी गान्ड का छेद खुज़ला रही थी और तो और उसकी तीन उंगलियाँ बेहद तीव्रता से उसकी गीली चूत के संकरे मार्ग पर फिसलते हुवे चूत के अंदर-बाहर होने लगी थी.

"मैं तुम्हारे ऋण से कभी मुक्त नही हो सकूँगा मा! किस्मत की मेहेरबानी है जो आज जवानी में पुनः मैं अपनी मा के इन सुंदर निप्पलो को देख पा रहा हूँ" अपनी मा के निप्पलो को अपनी उंगलियों के दरमिया फसा कर ऋषभ उन से खेलना आरंभ कर देता है. आज उसका अपनी मा को देखने का नज़रिया पूरी तरह से बदल चुका था, वह उसे एक ऐसी प्यासी स्त्री जान पड़ रही थी जिसकी संतुष्टि को पूर्ण करना ही अब उसका प्रमुख लक्ष्य बन चला था.

"ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू! ऐसा मत कर बेटे! मैं तेरी सग़ी मा हूँ" ममता ने अपने पुत्र की वासनमयी सुर्ख आँखों में झाँकते हुवे कहा मगर खुद की नीच हरक़त को कतयि नही रोक पाती. वैसे तो औरतों को मर्द के इरादों का बहुत जल्दी पता लग जाता है, फिर भी इस पूरे अमर्यादित घटना-क्रम के दरमिया वह अक्सर अपनी सोच को अपने ममता तुल्य हृदय के आगे केवल वहाँ का नाम देती रही थी.

"मा! मुझे तुम्हारे मम्मो में कोई गाँठ नज़र नही आ रही" ऋषभ ने उसे बताया मगर उसके मम्मो और उन पर शुशोभित तने हुवे निप्पलो को मसलना नही छोड़ा और पहली बार ममता के मन में हुक उठी कि मा होने के बावजूद उसका बेटा उसकी नंगी काया पर बुरी तरह से मोहित हो चुका था.

"यह क्या है मा ?" अचानक ऋषभ ने पुछा और ममता की निगाहें भी अपने पुत्र की आँखों का पिछा करती हुवी अपनी कुर्सी, जिस पर वह काफ़ी देर से बैठी हुवी थी, उससे जुड़ गयी. कुर्सी की रेगजीन सतह उसकी चूत के कामरस से तर-बतर थी और जिसे देखते ही ममता पुनः उस पर विराजमान हो जाती है.
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08-07-2018, 10:54 PM,
#25
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--11

"वो रेशू! उफफफ्फ़ मैं! रेशू! ओह्ह्ह्ह .. मैने जान कर नही किया बेटे" ममता लड़खड़ा गयी. अपने पुत्र के नाखूनो की असहाय घिसन को अपने चूत्डो की दरार के भीतर सह पाना उसके लिए बेहद कठिन था, उसके बदन का सारा भार उसके पंजो पर एकत्रित होता जा रहा था और उसके ऐसा करते ही ऋषभ उसकी गान्ड के छेद को आसानीपूर्वक खोज निकालता है. चूतड़ो की लगभग पूरी दरार ही घुंघराली झांतो से भरी हुवी थी जो पसीने से तरबतर काफ़ी गीलेपन का एहसास भी करवा रही थी.

"अब कह दो कि तुम मेरी वजह से बहेक गयी थी. मैं इतना भी नीच इंसान नही कि अपनी सग़ी मा को ही चोदने का अनैतिक ख्वाब देखने लगूँ, मैने अब तक केवल अपनी चिकित्सक पद्धति का प्रयोग किया है और अपने मरीज़ो से सच उगलवाने के लिए मैं अक्सर ऐसे नाटक करता रहता हूँ" ऋषभ ने अपने बाएँ हाथ की सबसे लंबी उंगली को बेदर्दी से अपनी मा की गान्ड के बेहद कसे छेद के भीतर ठेलते हुवे कहा और अपने दाएँ हाथ की प्रथम उंगली को उसकी चूत की चिपचिपी, अत्यंत सूजी फांको के मध्य फेरने लगता है मानो उसकी चिपकी फांकों के चीरे की असल संकीरणता का जायज़ा ले रहा हो.

ममता का चेहरा अपने पुत्र के कथन को सुनकर खुद ब खुद शामिंदगी से नीचे झुक जाता है, वह सोच भी नही सकती थी कि अब तक ऋषभ सिर्फ़ उसकी भावनाओ से खिलवाड़ कर रहा था. उसे इस कदर लज्जा का अनुभव होने लगा था कि यह धरातल फॅट पड़े और अत्यंत तुरंत वह उसके भीतर समा जाए मगर फिलहाल तो लज्जा से कहीं अधिक उसे अपने पुत्र की मोटी उंगली अपनी गान्ड के छेद के भीतर घुसने का प्रयास करती हुवी महसूस हो रही थी और साथ ही साथ उसकी अन्य उंगली को अपनी चूत के अति-संवेदनशील मुहाने पर तीव्रता से रेगते प्रतीत कर वह कुच्छ भी सोचने-समझने की स्थिति से बिल्कुल महरूम हो चुकी थी.

"अच्छा लग रहा है ना मा ?" ऋषभ ने पुनः उसे झकझोरा. अथक प्रयासो के उपरांत वह अपनी आधी उंगली को अपनी मा की गान्ड के गुदाज़ छेद के भीतर पहुँचा देने में कामयाब हो गया था और अपने बाएँ हाथ के नाखूनो की मदद से बारी-बारी उसकी चूत के दोनो होंठो की ऊपरी सतह को भी कुरेद रहा था.

"ह ... नही! मज़ा नही आ रहा रेशू" ममता ने हड़बड़ाते हुवे पहले हां में अपनी स्वीकृति देनी चाही मगर जल्द ही अपनी भूल में सुधार कर ना में इनकार कर देती है.

"मैने तो अच्छे या बुरे की राय माँगी थी लेकिन तुम तो मज़े के बारे में बता रही हो मा" ऋषभ अपनी उंगली को उसकी गान्ड के छेद के भीतर हौले-हौले हिलाते हुवे बोला.

"ओह्ह्ह मज़ा नही! दर्द .. दर्द हो रहा है रेशू" ममता के कथन में लाचारी की प्रचूरता व्याप्त थी. आज तक उसने अपनी गान्ड के छेद को मात्र मल-विसर्जन हेतु ही प्रयोग में लिया था, रत्ती भर की वास्तु भी उसके भीतर नही पहुँच पाई थी और तभी ऋषभ की उंगली की मोटाई उसकी परेशानी का असल सबब बनती जा रही थी, लग रहा था जैसे उसके गुदा-द्वार का तंग माँस स्वतः ही सिकुड़ते हुवे बाकी की बची उंगली को भी अपने भीतर खींच रहा हो, उंगली को अत्यंत बलपूर्वक चूस रहा हो.

"दर्द ?" ऋषभ ने प्रश्नवाचक लहजे में पुछा.

"अब कहाँ हो रहा है दर्द तुम्हे ? बताओ मुझे" उसने खुल पर सवाल किया.

"पीछे रेशू! उफफफ्फ़ ... बहुत दर्द हो रहा है" ममता ने कराहते हुवे बताया.

"पीछे कहाँ मा ?" ऋषभ ने मुस्कुरा कर पुछा.

"बस पिछे हो रहा है" कहते हुवे ममता अपना चेहरा अपने पुत्र की बलिष्ठ छाति में छुपा लेती है. अगर ऋषभ हक़ीक़त में उसकी भावनाओ से खिलवाड़ नही रहा होता तो अवश्य ही वह बिना किसी संकोच के उसके समक्ष अपनी गान्ड के छेद का उल्लेख कर देती परंतु अब अत्यधिक शरम से जूझती वह खुद को कोस रही थी कि क्यों उसने अपने इलाज के लिए अपने ही सगे पुत्र का चुनाव किया, इससे तो कहीं बेहतर होता यदि वह किसी महिला यौन चिकित्सक के पास चली जाती. उसके पैर लड़खड़ाने लगे थे, काफ़ी देर से एक ही स्थिति में अपने पैरो के पंजो के बल खड़ी वह अत्यंत शर्मीली मा सहारे की आशा से अपने छरहरे बदन का सारा भार अपने पुत्र की विकराल काया पर डाल चुकी थी.

"अब तो बता दो मा! अब तो तुमने अपना सुंदर मुखड़ा भी छुपा लिया है" ऋषभ ने अपनी मा की चूत के चिपके चीरे को अपनी दो उंगलियों की सहायता से फैलाते हुवे कहा.

"आह रेशू! मेरी .. मेरी गान्ड में! ओह्ह्ह्ह तेरी उंगली बेटे" ममता बिलबिला उठी. उसका पुत्र कहीं अपनी उंगलियों को उसकी कामरस छल्काति चूत के भीतर भी ना पेल दे इसके पहले ही उसने अपने हाथ को तीव्रता से नीचे ले जा कर ऋषभ के बाएँ हाथ को थाम लिया जो निश्चित ही कुच्छ विलंभ के उपरांत अपनी लंबी उंगलियों से उसकी चूत की अन्द्रूनि गहराई की नपाई करना आरंभ कर देने वाला था.

"लो बाहर निकाल ली! बहुत कसा हुवा छेद है तुम्हारी गान्ड का" उसने अपने उसी हाथ से अपनी मा के खुले बालो को मुट्ठी में जाकड़ कर कहा जिससे वह उसकी गान्ड के छेद को चौड़ा करने का प्रयत्न कर रहा था. तत-पश्चात उसकी निराशाजनक अवस्था को बढ़ने के उद्देश्य से उसने अपना अगला कथन पूरा किया, जिसके कानो में गूंजते ही ममता के गुदा-द्वार में सिहरन की कपकपि सी ल़हेर दौड़ पड़ती है.
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08-07-2018, 10:54 PM,
#26
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"तुम्हे इस मेज़ पर चढ़ना होगा मा! मुझे अभी और इसी वक़्त तुम्हारी गांद के च्छेद का निरीक्षण करना है" ऋषभ ने कहा और अपने कथन पर खुद ही बुरी तरह दहेल भी जाता है, यक़ीनन शब्दो में ना ढाल सकने योग्य अति-उत्तेजनात्मक द्रश्य, रोमांच की अधिकता से भरपूर अविश्वसनीय पल.

सदैव से शर्मीली! संकोची! सुंदर! मर्यादित परंतु वर्तमान की इस विषम परिस्थिति के अंतर्गत पूर्णतया नंगी अपने जवान पुत्र के समक्ष विचरण करती ममता, जिसे आदेश देता हुवा उसका निर्लज्ज पुत्र अब उसकी गान्ड के छेद की जाँच करने का इक्छुक हो चला था. उसके लंबे, स्याह लहरहाते बाल ऋषभ ने अपने बाएँ हाथ की मुट्ठी में यूँ कस रखे थे मानो वो औरत उसकी मा ना हो कर कोई बाज़ारू रंडी हो. उस छर्हरि, अत्यंत गोरी रंगत की स्वामिनी के दोनो हाथ अपने पुत्र के दाएँ हाथ को अपनी चूत के रिस्ते मुहाने की पहुँच से दूर करने का भरकस प्रयत्न कर रहे थे मगर सफलता तो जैसे उससे रूठ सी गयी थी.

"रेशू! मेरे वहाँ कोई दर्द नही .. तू बे-वजह परेशान हो रहा है" अपने पुत्र की वासनमयी आँखो में झाँकति ममता हौले से फुसफुसाई. ऋषभ ने अपनी बाईं मुट्ठी में उसके बालो को इस कदर बेरहेमी से जाकड़ रखा था, जिसके प्रभाव से उसकी गर्दन बेहद तन गयी थी और चेहरा ठीक उसके चेहरे के सम्तुल्य आ चुका था.

"ह्म्‍म्म" ऋषभ ने अपने दाहिने हाथ को बलपूर्वक झटक कर कहा और अपनी मा के दोनो हाथो को झटकते हुवे अपनी उंगलियाँ उसके उभरे पेडू पर फेरने लगता है, जो कुच्छ भीतर भरी हुवी पेशाब की वजह से और कुच्छ प्राक्रातिक बनावट के कारण किसी मटके के घुमावदार आकार समान जान पड़ रहा था.

"फिर भी में उसे जाँचना चाहूँगा मा! मुझे तसल्ली मिल जाएगी" वह मुस्कुरा कर बोला. अपने अंगूठे से अपनी मा के पेडू को दबाने में उसे अतुलनीय आनंद की प्राप्ति हो रही थी, इस आशा के तेहेत कि उसकी मा कब तक अपनी पेशाब को बाहर आने से रोक सकेगी. वह बिना किसी अतिरिक्त जीझक के उसे पेडू को दबाता रहा.

"उफफफफ्फ़ रेशू! तू मेरे पिछे .. वहाँ देखेगा तो .. तो मैं शरम से मर जाउन्गि बेटे" ममता ने सिसकते हुवे सत्यता का बखान किया. उसकी बेबसी थी या उसकी लालसा, वह चाह कर भी अपने पुत्र की नीच हरक़तों को रोक नही पा रही थी या रोकना ही नही चाहती थी. उसका मात्रधर्म चीख-चीख कर उससे कह रहा था कि वह अपनी बची-खुचि लाज को डूबने से बचा ले मगर उसके तंन और मन पर कामोत्तजना से कहीं अधिक अब उसके पुत्र का अधिकार हो चला था.

"शरम कैसी शरम मा ? मैं तुम्हारा बेटा हूँ ना कि कोई अजनबी" ऋषभ ने अपने दाएँ हाथ को अपनी मा की पतली कमर के गिर्द लपेट'ते हुवे कहा और फुर्ती से उसे अपनी बलिष्ठ छाति से चिपका लेता है.

"स्त्री के गुप्तांगो पर सिर्फ़ उसके पति का हक़ होता है रेशू" अपने पुत्र के सीने से सॅट कर ममता की आँखें नातियाने लगती हैं, कहीं वह पुनः ना बहेक जाए, उसने फॉरन अपनी पलकों को मूंदते हुवे कहा.

"हां! तो मैने कब कहा की तुम्हारे गुप्तांगो पर मेरा हक़ है" ऋषभ अपने होंठो को अपनी मा के कान के बेहद समीप पहुँचाते हुवे बोला.

"मा! क्या तुम्हे यह डर है कि तुम्हारे गुप्तांगो को देखने के बाद तुम्हारा बेटा तुम्हारे पति का हक़ छीन लेगा ?" उसकी हल्की सी फुसफुसाहट भी विध्वंशक साबित हुवी और आकस्मात ही ममता उसके होंठो पर अपना कान रगड़ना आरंभ कर देती है. ऋषभ के नाथुओं में उसकी मा के पसीने की मादक गंद समाने लगी और वह अपने होंठो के दरमियाँ उसके कान को भींच लेता है.

"नही रेशू ! तुझ पर मुझे पूरा विश्वास है, अगर नही होता तो क्या मैं तेरे सामने नंगी खड़ी हो पाती ?" ममता की साँसे उफन उठी, उसने अपने जबड़े भींचे और अपने नुकीले निपल अपने पुत्र की छाति में जितनी तीव्रता से वह गढ़ा सकती थी बलपूर्वक गढ़ा देती है. ऋषभ उस स्वर्णिम मौके का पूरा लाभ लेते हुवे अपनी मा का कान चूस रहा था और उसकी लंबी जीभ कान की गहराई को चाटने की भरकस प्रयासरत हो चुकी थी.

"ईश्ह्ह्ह्ह आहह" ममता से सहेन कर पाना मुश्क़िल था, उसने अपने बचाव के उद्देश्य से अपनी बाहें ऋषभ की पीठ पर कस दी और उसे अपनी ओर खींचा, ठीक उसी पल ऋषभ अपने बाएँ हाथ की उंगलियों को दोबारा अपनी मा के चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर ठेल देता है और शीघ्र ही उसके कान को छोड़, अपनी जीभ से उसकी गर्दन पर बहेते हुवे पसीने को चाटना शुरू कर देता है.
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08-07-2018, 10:54 PM,
#27
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मा! क्या पापा तुम्हे ऐसे ही प्यार करते हैं ?" ऋषभ ने पुछा और अपनी मा के चूतड़ो की दरार के भीतर उगी उसकी लंबी झांतो से खेलने लगता है. उसकी गान्ड के छेद को वह बारी-बारी लगभग अपनी सभी उंगलियों के नाख़ून से कुरेद रहा था और साथ ही बिना किसी भय के अब उसके अनुमानित कुंवारे गुदा-द्वार की संवेदनशील दानेदार सतेह को दोबारा से भेदने का आगाज़ कर चुका था.

"ह्म्‍म्म" अपनी गान्ड के छेद को सिकोडती ममता तड़पने लगती है. उसके होश ओ हवास तो उसका साथ काफ़ी पहले ही छोड़ चुके थे, अब वह मात्र उस अकल्पनीय सुख से कराह रही थी जिसका ज़िम्मेदार स्वयं उसके अपना सगा जवान पुत्र था.

"मा! अपने चूतड़ मत सिकोडो, मैं तुम्हारी गान्ड के छेद के भीतर अपनी उंगली नही घुसा पर रहा हूँ" ऋषभ ने बेहद अश्लीलतापूर्वक कहा और ममता मानो उसकी इस नीच इक्षा के समर्थन में वाकयि अपने चूतड़ो को उभार कर उन्हे ढीला छोड़ देती है.

"अब ठीक है ना रेशू ?" ममता ने अपनी मुंदी पलकों को खोल कर अपने पुत्र की आँखों में झाँकते हुवे पुछा और तत-पश्चात अत्यधिक शरम्वश अपने निच्छले होंठ को चबाने लगती है.

"उन्हूँ! ऐसे नही मा" ऋषभ ने अचानक अपनी मा के चूतड़ो की दारार से अपने बाएँ हाथ को बाहर खींचा और अपने उसी हाथ के विशाल पंजे से उसकी बाईं जाँघ की पिच्छली गद्देदार सतह के माँस को भींच लेता है. इसके उपरांत ही उसने अपनी मा की बाईं जाँघ को ऊपर की दिशा में उठाते हुवे उसे अपने खुद के चूतड़ो पर कस लिया, तथा पॅंट के भीतर खड़े अपने फौलादी लंड की दो-चार असहनीय चोटें भी उसकी चूत के गीले मुहाने पर बेरहमी से ठोक देता है.

"ओह! यह .. यह तू क्या कर रहा है रेशू! उफफफफफ्फ़" ममता अपने पुत्र के इस अप्रत्याशित हमले को सह नही पाती और खुद भी अपने दोनो हाथ उसकी पीठ से ऊपर की ओर रगड़ते हुवे, उसकी गर्दन पर झूल सी जाती है. उसके पुत्र के पत्थर समान कड़क लंड की ठोकर प्राणघातक थी, जिसके प्रभाव से ममता की पेशाब का अनियंत्रित बाहव पुनः रुक गया. वैसे भी उत्तेजना की अधिकता में पेशाब की भला क्या औकात.

"मुझे कस कर पकड़ लो मा" कह कर ऋषभ ने अपने दाएँ हाथ की मुट्ठी जिसमें उसने ममता के सर के बालो को जाकड़ रखा था, उन्हे मुक्त कर अपने दाएँ हाथ को उसके चूतड़ के मांसल पाटों तक ले जाता है और अपने असीम बलप्रयोग से वह उसे अपनी गोदी में उठा लेता है.

"मैं गिर जाउन्गि रेशूउऊुउउ" ममता किसी गुड़िया सम्तुल्य अपने पुत्र की छाति से लिपट ते हुवे बुदबुदाई, उसके आश्चर्य की तो यह परकाश्ठा थी जो ऋषभ ने उसकी बेहद वज़नी काया को फूल की भाँति अपनी गोद में उठा लिया था.

"नही गिरोगि मा! तुम्हे शायद पता नही कि तुम्हारा बेटा कितना शक्ति-शालि हो गया है. यदि तुम्हारी आग्या हो तो मैं पूरे दिन तुम्हे इसी तरह अपने सीने से चिपका कर खड़ा रह सकता हूँ" ऋषभ ने मुस्कुराते हुवे कहा. नीचे गिर जाने के भय से उसकी मा अपनी दोनो टांगे उसकी पीठ पर कस चुकी थी और इस स्थिति में उसके चूतड़ काफ़ी हद्द तक फैल जाते हैं. अब ऋषभ चिंता मुक्त था और अल्प समय की बाधा के पश्चात ही वह उसके चूतड़ो के पाट तीव्रता से मसल्ने लगता है.

"हां रेशूउऊउ! मुझे सच में पता नही चल पाया कि मेरा बेटा कितना अधिक बलवान हो चुका है" ममता की सिसकियाँ निरंतर ज़ारी रही, जवानी के दिनो में अक्सर राजेश भी उसे इसी आसान में घंटो तक चोदा करता था. फ़र्क़ बस इतना सा था कि वर्तमान में वह अपने पुत्र ऋषभ की गोद में चढ़ि हुवी थी और निश्चित तौर पर उसके पुत्र का वस्त्रो से ढका होना उसे बेहद आखर रहा था.

"मा! बचपन में तुम मुझे अपनी गोद में उठाए रखती थी और आज मैने तुम्हे उठा रखा है" ऋषभ ने उसकी गान्ड के अत्यंत कसे छिद्र पर अपने दाएँ हाथ का अंगूठा दबाते हुवे कहा.

"आहह! उस वक़्त तू नंगा हुआ करता था और आज तेरी मा नंगी है" ममता कराह कर बेशर्मी से अंतर स्पष्ट करती है.

"वक़्त भी कैसे अजीब खेल खेलता है! जहाँ एक बेटे ने ता-उमर अपनी मा को मर्यादा के मजबूत बंधन में बँधे हुवे देखा हो और अचानक उसकी वही मा उसके समक्ष नंगी खड़ी हो जाए, विश्वास ना करने योग्य पल .. है ना मा ?" ऋषभ ने आकस्मात ही अपने अंगूठे को अपनी मा के गुदा-द्वार के भीतर ठेलने का प्रयत्न करते हुवे कहा.

"उंगग्गघ .. ऐसा! ऐसा मत बोल बेटे! तेरी मा मजबूर है और तभी उसे अपनी पिच्छली सभी मर्यादों का एक-साथ त्याग करना पड़ा है" ममता ने अपने जबड़े को बलपूर्वक भींचते हुवे कहा, उसके चेहरे पर लगातार उभरते पीड़ा दाई भाव को देख ऋषभ का दिल पिघलने लगता है और अत्यंत तुरंत ही उसे अपनी मा को मेज़ पर बिठा दिया. उंगली हो या लंड, बिना किसी चिकनाई के औरतो के गुदा-द्वार को भेदना बेहद मुश्क़िल होता है और उसके अनुमांस्वरूप उसकी मा की गान्ड का छेद यक़ीनन अब तक कुँवारा था.

"मैं तुम्हारे हर स्वाभाव से पूर्ण रूप से परिचित हूँ और पूर्ण संतुष्ट भी! मा अब हमे देर नही करनी चाहिए, तुम मेज़ पर खुद घोड़ी बन सकोगी या मैं कुच्छ मदद करूँ ? ऋषभ ने कुटिल मुकसान छोड़ते हुवे पुछा, उसकी नीचता इस बात का प्रमाण थी कि अपनी मा के मम्मो को अब भी वह निर्लज्जतापूवक घुरे जा रहा था.

"रेशू! तू समझ बेटे, मेरे वहाँ दर्द नही है" ममता फुसफुसाई, उसने भी स्वयं महसूस किया कि उसके मम्मे आज से पहले कभी इतने अधिक नही फूल पाए थे और निप्पलो के तनाव की तो कोई सीमा ही नही थी.

"अगर भविश्य में होने लगा तो क्या तुम वापस मेरे सामने नंगी हो पाओगि ?" ऋषभ ने विस्फोटक सवाल दागा, इतनी लज्जा और गर्माहट का सामना करने के बाद तो शायद ही उसकी मा कभी दोबारा उससे नज़रें मिला पाती.

"नही .. नही रेशू! तू जाँच ले मगर इस बंद कॅबिन के बाहर हम अब भी मा-बेटे के मर्यादित रिश्ते में बंदे रहेंगे" कह कर ममता ने अपना सर नीचे झुका लिया और पुनः बुदबुदाई.

"पहले मेरी सॅंडल उतार दे रेशू! फिर घोड़ी बनने में मेरी मदद कर देना"

क्रमशः.....................................................
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08-07-2018, 10:54 PM,
#28
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--12

"पहले मेरी सॅंडल उतार दे रेशू! फिर घोड़ी बनने में मेरी मदद कर देना" अपनी मा के निर्लज्ज को कथन सुन कर ऋषभ के होंठो पर शरारत भरी मुस्कान छा गयी, ममता का झुका हुवा चेहरा परस्पर अपने दोनो हाथो से थाम कर वह उसकी रक्त-रंजित सुर्ख आँखों में घूर्ने लगता है. कल्पना से परे की गहेन उत्तेजना की चपेट में आने के उपरांत स्त्री कितनी अधिक वास्तविकता में ढल जाती है, निश्चित तौर पर उसके अनुभव में नया पाठ भी जुड़ गया था.

"नही मा! सॅंडल, गहने, काँच की चूड़ियाँ, कमर का धागा और पाजेब, यह सब तुम्हारी सुंदरता को चार चाँद लगा रहे हैं. इनकी उपस्थिति तुम्हारे कामुक बदन पर बेहद आवाश्यक है और मेरा यकीन मानो, इनके बगैर तुम हक़ीक़त में नंगी हो जाओगी" इतना कह कर ऋषभ ने मेज़ पर बैठी अपनी मा के चेहरे को अपने पेट से चिपका लिया और प्रेमपूर्वक उसके काले, घने बालो में अपनी उंगलियाँ घुमाने लगता है. उसकी लंबाई अधिक होने की वजह से ममता की ठोडी पॅंट के भीतर फड़फड़ाते उसके विशाल लंड से टकराने लगी थी, जिसके प्रभाव से आकस्मात ही दोनो काँप उठती हैं.

"रेशूउऊउउ! बेटा तू कितना प्यार करेगा अपनी इस बूढ़ी मा से, तेरी जवानी के यह दिन तो तेरी पत्नी को नसीब होने चाहिए" अपने पुत्र की शर्ट को अपने सुलगते होंठो से चूमती ममता सिसकी, लंड की जाग्रत अवस्था को अपनी ठोडी पर महसूस कर उसकी धड़कने किसी धुकनी समान ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगी थी.

"तुम्हारे सम्तुल्य पत्नी मिले तब ना अपनी जवानी को सहेज कर रखूं मगर मेरी बुरी किस्मत हमेशा पापा की अच्छी किस्मत से हार जाती है मा" ऋषभ ने मायूस होने का नाटक किया और हौले-हौले अपनी मा के सर को नीचे की दिशा में दबाना आरंभ कर देता है, अपने पैर के पंजो का भी वह बखूबी इस्तेमाल कर रहा था ताकि ममता के भरे हुवे मूंगिया रंगत के प्रभावशाली होंठ उसके विकराल लंड की छुवन को प्राप्त कर सकें. किसी भी प्रकार की जल्दबाज़ी में उसकी कोई विशेष रूचि नही रही थी, उसका मानना था कि औरत के चंचल मन पर निरंतर आघात करने से उसके कोमल हृदय पर अपना सर्वस्व अधिकार जमाया जा सकता है. अपने इस नीच कार्य के ज़रिए वह जानने को बेहद आतुर था कि उसकी मर्यादित परंतु कामोत्तेजित मा के असल स्वाभाव में अब तक कितना अधिक अंतर आया है और यदि वह सच में यौन सुख की लालसा में तरस रही होगी तो भविश्य की उनकी अंतरंगता में कोई ख़ास बाधा उत्पन्न नही होने वाली थी.
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08-07-2018, 10:55 PM,
#29
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"यह संभव नही रेशू! तू अकारण ही अपने पापा से नाराज़ है जब कि वो तुझसे बहुत प्यार करते हैं" ममता अपने पुत्र की उदासीनता को समाप्त करने के उद्देश्य से उसके बलप्रयोग को नज़रअंदाज़ करने का भ्रम पैदा करती है. उसने जानबूझ कर अपने सर को ढीला छोड़ दिया. उसके मन-प्रेम और नैतिक व्यवहार! भावना और कर्तव्य! ममता और यथार्थता के द्वन्द्व में उसकी हार हो चुकी थी. उसे क्या करना चाहिए और क्या नही, वह असमंजस की स्थिति में फस गयी थी. यदि वह समाज के नियमो का उल्लंघन करती तो उसका बचा हुवा संपूर्ण जीवन ख़तरे में पड़ सकता था, माना ऋषभ के साथ की वजह से उसकी सुरक्षा का प्रश्न इतना गंभीर मुद्दा नही था मगर पाप और पुण्य को अचानक से नकार देना भी उचित नही कहलाता. जल्द ही सकारत्मत्का से हट कर उसका भटकाव नकारात्मकता से होने लगता है और तत-पश्चात ही वह अत्यंत शर्मीली मा अपने पुत्र के खड़े लंड की रगड़ अपने चेहरे पर झेलने हेतु बेहद व्याकुल हो उठती है.

"क्या मैं झूठ कह रहा हूँ मा ? क्या पापा ने तुम्हे मुझसे जुदा नही किया ? क्या मुझे अपनी मा के प्रेम की कोई आवश्यकता नही ?" ऋषभ ने एक साथ अनेक सवालो के नुकीले बान छोड़ दिए. अपनी मा के स्वच्छ और कोमल व्यक्तित्व से वह भली भाँति परिचित हो चुका था और जब-जब उसकी पीड़ा दाई व्यथाओ से ममता का सामना हुवा था हर बार वह उसके पूर्ण नियंत्रण में आ गयी थी.

"मातृत्व! स्त्री का श्रेष्ठतम आभूषण. प्रसव-वेदना की भट्टी में तप कर बाहर निकला हुवा सोना, प्रकृति का सबसे शुभ वरदान" विचार-मग्न ममता की तंद्रा को भंग करता हवा का एक मादक झोंका उसके नथुओ में समा गया. उसकी चूत का कामरस जो कुच्छ हद कर उसने ही ऋषभ के पॅंट पर चुपडा था, जिसे सूंघने के उपरांत वह किल्कारी मार उठी. उसके गाल पर गहरा गोल गढ़हा पड़ गया और जिसके परिणामस्वरूप अत्यंत तुरंत वह अपने पुत्र के विशाल लंड से चिपक सी जाती है.

"बोल कितना प्यार चाहिए तुझे! आज मैं तेरी उपेक्षा को सदा-सदा के लिए समाप्त कर देना चाहती हूँ" ममता ने रोमांच से भरते हुवे कहा और बिना किसी अतिरिक्त झिझक के वह स्वयं के कामरस को चाटना शुरू कर देती है. इस एहसास के तहत की उसकी जीभ ऋषभ के लंड के फूले सुपाडे पर फुदक रही है, उसके मर्दाने रस को चाट रही है. अति-शीघ्र अपने होश ओ हवास खोते हुए हक़ीक़त में वह मा अपने पुत्र के लंड को जहाँ-तहाँ चूमने भिड़ जाती है.

"ओह्ह्ह्ह मा! रुक जाओ .. वरना! वरना मैं ...." ऋषभ कराहते हुवे चीखा, अपने कथन को अधूरा छोड़ कर वह ममता के सर को बलपूर्वक अपने लंड पर दबा देता है. हलाकी मन की उपज और वास्तविकता में कोई समानता नही होती परंतु इतना काफ़ी था कि यदि वह भी नंगा होता तो अवश्य ही अपना लंड अपनी सग़ी मा के सुंदर मुख से चुसवाने में सफल हो गया होता.

"मत रोक मुझे रेशू! एक मा को अपने बेटे से प्यार करने से रोकने का तुझे कोई हक़ नही" इससे पहले कि मदहोश ममता के हाथ अपने पुत्र के विशाल लंड का स्पर्श कर पाते ऋषभ ने फॉरन उसके सर को मुक्त कर दिया और तत-पश्चात बिजली की गति से उसे मेज़ से नीचे उतार लेता है.

"मेरे माथे को चूमो! मेरे गालो को चूमो! मेरी हथेली को चूमो मगर यह क्या मा ? तुम्हे अंदाज़ा भी है कि तुम अपने बेटे के किस अंग को चूम रही थी ?" आवेश से ऐसा कहते हुवे ऋषभ अपनी पॅंट में उभरे तंबू को देखने लगा, जिस पर उसकी मा की चूत के कामरस के साथ अब उसकी लार भी अपनी छाप छोड़ चुकी थी.

"देखो! तुमने क्या किया ?" वह पुनः गरजा.

"इसी लिए तो कह रही हूँ रेशू कि मुझे घर चले जाने दे. मैं घोर पापिन हो चुकी हूँ! मुझे समझ नही आ रहा कि मैं क्यों बहकती जा रही हूँ ? क्यों मैं अपने ही सगे बेटे के संग इतने घ्रानित कार्यों को लगातार करने से बाज़ नही आ रही ?" ममता के रुन्वासे स्वर फूट पड़े परंतु उसकी कामग्नी ज्यों की ज्यों बरकरार थी. उसकी वासनमयी निगाहों का जुड़ाव अपने पुत्र के विशाल तंबू से इस कदर जुड़ चुका था कि जानते हुवे भी कि वह कितनी निर्लज्ज हरक़त कर रही है, उसकी निर्लज्जता का कोई अंत शेष ना था.

"इतने जल्द मैं तुम्हे हारने नही दूँगा मा! मुझे खुद पर विश्वास है. मैं बाकी बची जाँचो को ज़रूर पूरा करूँगा, चाहे तुम्हारा मन कितना ही क्यों ना भटक जाए" अपनी मा की नम आँखों को पोंछते हुवे ऋषभ ने उसका साहस बढ़ाया और इसके उपरांत उसके कंधो की मदद से उसे पलटा कर खड़ा कर देता है.
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08-07-2018, 10:55 PM,
#30
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मैं सहारा देता हूँ! तुम अपने दाएँ घुटने को मेज़ पर चढ़ाने की कोशिश करो" उसने ममता की दाईं जाँघ को पकड़ते हुवे कहा, उसकी मा ने भी ज़ोर लगाया और अपने दाएँ घुटने को मोड़ कर उसे मेज़ पर चढ़ने में कामयाब हो जाती है.

"रेशूउऊुउउ! उफफफ्फ़" ममता सिसक उठी. एक तो अधेड़ उमर की अन्द्रूनि जर्जरता, ऊपर से मासपेशियों में अत्यधिक खिंचाव. उस विषम स्थिति में उसकी टाँगो की जड़ समान्य से कहीं ज़्यादा चौड़ी हो गयी थी, जिसके नतीजन उसकी चूत में ना सह पाने योग्य दर्द उत्पन्न होने लगा था.

"परेशान मत हो मा! मैं तुम्हारे दूसरे घुटने को ऊपर चढ़ाने का प्रयत्न करता हूँ बस तुम अपने शरीर को साधे रखना" अपनी मा के बाएँ घुटने को पकड़ कर ऋषभ बोला. उसके शारीरिक बल के आगे ममता का वजन कोई विशेष वजनी नही था, पहले पहल तो उसने अपनी मा को अपनी गोदी मे टाँग लिया था तो अब कौन सी दिक्कत पेश आनी थी. हुंकार भरते हुवे वह उसके बाएँ घुटने को भी मेज़ पर स्थापित कर देता है और तुरंत ही अपने दाएँ हाथ की उंगलियों से उसके चूतड़ो की दरार सहलाने में जुट जाता है.

"माफ़ करना मा! मेरी निर्दयता की वजह से तुम्हारी टाँगो के जोड़ में दर्द हुवा" कह कर ऋषभ ने अपनी उंगलियों की घिसन अपनी मा के चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर और भी अधिक तीव्र कर दी, लग रहा था मानो दरार के भीतर आग सी लगी हो और जिस की अगन से उसकी उंगलियाँ झुलस्ति जा रही हों.

"उंघह रेशू! मगर दर्द तो मेरी ...." ममता ने कुच्छ कहने के लिए अपना मूँह खोला परंतु शरम्वश अपने कथन को पूरा नही कर पाती. दर्द उसकी चूत में हुआ था लेकिन इसके ठीक विपरीत उसके पुत्र की उंगलियों की मनमोहक सहलाहट उसकी गान्ड का संवेदनशील छेद प्राप्त कर रहा था.

"क्या वाकई मेरे चूतड़ इतने आकर्षक हैं या ऋषभ ऐसे ही मेरा दिल रखने के लिए झुटि तारीफें किए जा रहा है" उसने मन ही मन सोचा और अपने निच्छले होंठ को अपने दांतो के मध्य दबा कर अपने पुत्र की उंगलियों का मन्त्र-मुग्ध कर देने वाला आनंद उठाने लगती है.

"मगर क्या मा ?" जैसा कि ममता का विचार था, ऋषभ उसके अधूरे कथन के विषय में पुच्छ ही बैठता है.

"अरे बुध्हु! जब टाँगो की जड़ में खिंचाव होता है तो दर्द कहाँ होना चाहिए. क्या तुझे इतना भी नही मालूम ?" मुस्कुराते हुवे ममता उल्टे उससे सवाल करती है. उसका पुत्र उसके चेहरे को नही देख सकता था, जिसका लाभ वह खुल कर उठा पा रही थी.

"नही मा! मुझे सच में नही पता" ऋषभ ने अंजान बनने का नाटक किया.

"चल रहने दे! मैं खुद वहाँ सहला लेती हूँ" बोल कर ज्यों ही ममता ने अपने बाएँ हाथ की उंगलियों को अपनी चूत के गीले मुहाने पर रगड़ने का प्रयास किया, अचानक से मा-बेटे की उंगलियाँ आपस में टकरा जाती हैं.

"अच्छा! अब समझा, दर्द तुम्हारी चूत में हुआ था" बोल कर ऋषभ ने अपनी मा की उंगलियों को अपनी उंगलियों से पकड़ने की चेस्टा शुरू कर दी और कुच्छ ही लम्हो की कोशिशो के पश्चात पकड़ने में सफल भी हो गया. ममता खुद इस विचित्र खेल का लुफ्त ले रही थी मगर ऋषभ के अगले निर्लज्ज प्रश्न को सुन कर उसका संपूर्ण बदन आकस्मात ही स्थिर हो जाता है.

"मा! क्या पापा भी तुम्हारे गुप्तांगो को इतना ही प्यार करते थे जितना अभी तुम्हारा बेटा कर रहा है ?"

"मा! क्या पापा भी तुम्हारे गुप्तांगो को इतना ही प्यार करते थे जितना अभी तुम्हारा बेटा कर रहा है ?" ऋषभ का यह विस्फोटक प्रश्न ममता और राजेश के निजी सेक्स जीवन से संबंधित था जिसे सुन कर वह पूर्णतया स्तभ्ध रह जाती है और इसके साथ ही मा-बेटे के बीच पनपे उस विचित्र खेल का भी मानो अंत सा हो गया था.
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